PDA

View Full Version : प्रार्थना


Dr. Rakesh Srivastava
08-01-2012, 11:06 AM
तीखे बोल सहन कर पाऊं , ख़ुद पर वो संयम दे भगवन ;
प्यार से जीतूं सबके दिल को , लड़ने का वो ढंग दे भगवन .

अरबों लोग हुए धरती पर , कुछ का होना हुआ सार्थक ;
मरने पर भी याद रखे जग , जीने का वो फ़न दे भगवन .

जब सब तेरे ही बन्दे हैं , भेद भाव फिर उनसे कैसा ;
जात धर्म स्तर सब भूलूं , बच्चों जैसा मन दे भगवन .

आकर्षक दिखने की धुन में , असली सूरत खो बैठे सब ;
सबकी सीरत को दर्शाये , मुझको वो दरपन दे भगवन .

आगे बढ़ने की हड़बड़ में , बहुतों के हक कुचल गए हैं ;
जब मुझसे दिल दुखे किसी का , ख़ुद से कुछ अनबन दे भगवन .

दिन भर की आपा धापी में , क्या पाया क्या खो बैठा हूँ ;
रोज़ रात झाँकूं मैं ख़ुद में , फुर्सत के कुछ क्षण दे भगवन .

सीमित संसाधन के कारण , अति अभिलाषायें दुःख देतीं ;
अपनी चादर में आ जाये , इच्छा को वो तन दे भगवन .

इतने रंग में रंग कर देखा , कोई भी रंग टिक ना पाया ;
अब मुझको अपने रंग में तू , धीरे - धीरे रंग दे भगवन .

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 ,गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ ~~ सीरत = Inner beauty / आतंरिक सौंदर्य )
--------------------------------------------------------------------------

Sikandar_Khan
08-01-2012, 05:32 PM
तीखे बोल सहन कर पाऊं , ख़ुद पर वो संयम दे भगवन ;
प्यार से जीतूं सबके दिल को , लड़ने का वो ढंग दे भगवन .

अरबों लोग हुए धरती पर , कुछ का होना हुआ सार्थक ;
मरने पर भी याद रखे जग , जीने का वो फ़न दे भगवन :fantastic:

जब सब तेरे ही बन्दे हैं , भेद भाव फिर उनसे कैसा ;
जात धर्म स्तर सब भूलूं , बच्चों जैसा मन दे भगवन .

आकर्षक दिखने की धुन में , असली सूरत खो बैठे सब ;
सबकी सीरत को दर्शाये , मुझको वो दर्पण दे भगवन .

आगे बढ़ने की हड़बड़ में , बहुतों के हक कुचल गए हैं ;
जब मुझसे दिल दुखे किसी का , ख़ुद से कुछ अनबन दे भगवन .

दिन भर की आपा धापी में , क्या पाया क्या खो बैठा हूँ ;
हर इक रात मैं झाँकूं ख़ुद में , फुर्सत के कुछ क्षण दे भगवन .

सीमित संसाधन के कारण , अति अभिलाषायें दुःख देतीं ;
अपनी चादर में आ जाये , इच्छा को वो तन दे भगवन .

इतने रंग में रंग कर देखा , कोई भी रंग टिक ना पाया ;
अब मुझको अपने ही रंग में , धीरे - धीरे रंग दे भगवन .

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 ,गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ ~~ सीरत = inner beauty / आतंरिक सौंदर्य )
--------------------------------------------------------------------------

डॉक्टर साहब ,अतिसुन्दर प्रार्थना को शब्दोँ मे पिरोकर पेश करने के लिए आपका हार्दिक आभार |

Dr. Rakesh Srivastava
09-01-2012, 08:33 PM
डॉक्टर साहब ,अतिसुन्दर प्रार्थना को शब्दोँ मे पिरोकर पेश करने के लिए आपका हार्दिक आभार |

सम्माननीय सिकंदर जी ;
आप सदैव मुझे पढ़ते हैं ,
मैं आपका शुक्रगुजार हूँ .

Dr. Rakesh Srivastava
09-01-2012, 08:35 PM
सम्माननीय रणवीर जी ;
आप सदैव मुझे पढ़ते हैं ,
मैं आपका शुक्रगुजार हूँ .

Dark Saint Alaick
09-01-2012, 11:00 PM
अति सुन्दर कविवर ! बेहतरीन भावों को बेहद ऊर्जस्वी शब्दों में पिरोया है आपने ! साधुवाद ! उर्दू कवियों ने दर्पण को तनिक कोमल करने के लिए कई जगह 'दरपन' इस्तेमाल किया है ! मेरी व्यक्तिगत राय है कि यहां यह प्रयोग अत्यंत आकर्षक और श्रेष्ठ होता ! उम्मीद है मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगे ! धन्यवाद !

malethia
10-01-2012, 09:40 AM
सच में एक सार्थक प्रार्थना है ये,
इस अति सुंदर प्रस्तुती के लिए धन्यवाद, डॉ.साहेब !

ndhebar
10-01-2012, 06:30 PM
सीमित संसाधन के कारण , अति अभिलाषायें दुःख देतीं ;
अपनी चादर में आ जाये , इच्छा को वो तन दे भगवन .

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 ,गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ ~~ सीरत = inner beauty / आतंरिक सौंदर्य )
--------------------------------------------------------------------------

इश्वर से प्रार्थना करूँगा की आपकी प्रार्थना सफल करें

naman.a
11-01-2012, 05:10 PM
राकेश जी, एक और सुन्दर रचना. अब तो शब्द ही नहीं मिल रहे हैं क्या कहूँ? बस एक ही बात कहूँगा अति सुन्दर. अगली प्रस्तुति के इंतज़ार में.

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 07:51 PM
अति सुन्दर कविवर ! बेहतरीन भावों को बेहद ऊर्जस्वी शब्दों में पिरोया है आपने ! साधुवाद ! उर्दू कवियों ने दर्पण को तनिक कोमल करने के लिए कई जगह 'दरपन' इस्तेमाल किया है ! मेरी व्यक्तिगत राय है कि यहां यह प्रयोग अत्यंत आकर्षक और श्रेष्ठ होता ! उम्मीद है मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगे ! धन्यवाद !

सम्माननीय Dark saint Alaick जी ;
आपके बहुमूल्य सुझाव का समावेश कर लिया है .
कोई जब इतनी बारीकी से पढ़ता है तो और भी अच्छा
लगता है . आपको दोहरा धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 07:56 PM
सच में एक सार्थक प्रार्थना है ये,
इस अति सुंदर प्रस्तुती के लिए धन्यवाद, डॉ.साहेब !

सम्माननीय मलेथिया जी ;
आपने सदा की भाँति पढ़ा और
सराहा . आपका बहुत - बहुत आभार .

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 08:05 PM
इश्वर से प्रार्थना करूँगा की आपकी प्रार्थना सफल करें

सम्माननीय n dhebar जी ;
अगर ऐसा हो सके ,तब तो
आपके मुंह में घी - शक्कर .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 08:14 PM
राकेश जी, एक और सुन्दर रचना. अब तो शब्द ही नहीं मिल रहे हैं क्या कहूँ? बस एक ही बात कहूँगा अति सुन्दर. अगली प्रस्तुति के इंतज़ार में.

सम्माननीय naman .a जी ;
आप मुझे पढ़ते हैं , आपको अच्छा लगता है
तो मुझे भी अच्छा लगता है . साथ ही उत्साह भी बढ़ता है .
सर्वोत्तम प्रयास करूंगा कि स्वयं में निरंतर सुधार करता रहूँ .
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 08:46 PM
आदरणीय Abhisays जी ;
पढ़कर उत्साह बढ़ाने हेतु
आपका बहुत - बहुत आभार .

Dr. Rakesh Srivastava
11-01-2012, 08:51 PM
सम्माननीय Sombirnaamdev जी ;
पढ़कर उत्साह बढ़ाने हेतु
आपका बहुत - बहुत आभार .
' फोरम ' पर आपका स्वागत है .

aksh
11-01-2012, 09:56 PM
तीखे बोल सहन कर पाऊं , ख़ुद पर वो संयम दे भगवन ;
प्यार से जीतूं सबके दिल को , लड़ने का वो ढंग दे भगवन .

अरबों लोग हुए धरती पर , कुछ का होना हुआ सार्थक ;
मरने पर भी याद रखे जग , जीने का वो फ़न दे भगवन .

जब सब तेरे ही बन्दे हैं , भेद भाव फिर उनसे कैसा ;
जात धर्म स्तर सब भूलूं , बच्चों जैसा मन दे भगवन .

आकर्षक दिखने की धुन में , असली सूरत खो बैठे सब ;
सबकी सीरत को दर्शाये , मुझको वो दरपन दे भगवन .

आगे बढ़ने की हड़बड़ में , बहुतों के हक कुचल गए हैं ;
जब मुझसे दिल दुखे किसी का , ख़ुद से कुछ अनबन दे भगवन .

दिन भर की आपा धापी में , क्या पाया क्या खो बैठा हूँ ;
रोज़ रात झाँकूं मैं ख़ुद में , फुर्सत के कुछ क्षण दे भगवन .

सीमित संसाधन के कारण , अति अभिलाषायें दुःख देतीं ;
अपनी चादर में आ जाये , इच्छा को वो तन दे भगवन .

इतने रंग में रंग कर देखा , कोई भी रंग टिक ना पाया ;
अब मुझको अपने रंग में तू , धीरे - धीरे रंग दे भगवन .

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 ,गोमती नगर ,लखनऊ .
( शब्दार्थ ~~ सीरत = Inner beauty / आतंरिक सौंदर्य )
--------------------------------------------------------------------------

बहुत ही सुन्दर कविता है डॉक्टर साहब....!!!

:fantastic:

देश हमारा दुनिया के सब देशों में सबसे प्यारा बना रहे;
बचपन खिले, जवानी जिए, बुढापा सब का हँसे भगवन.

Dr. Rakesh Srivastava
12-01-2012, 08:08 PM
बहुत ही सुन्दर कविता है डॉक्टर साहब....!!!

:fantastic:

देश हमारा दुनिया के सब देशों में सबसे प्यारा बना रहे;
बचपन खिले, जवानी जिए, बुढापा सब का हँसे भगवन.

सम्माननीय अक्ष जी ;
आप सदैव मुझे पढ़ते हैं .
इस हेतु मैं कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ .

Mahendra Singh
19-01-2012, 09:05 AM
Prarthana Bahut achchi hai.

Dr. Rakesh Srivastava
19-01-2012, 03:37 PM
prarthana bahut achchi hai.


सम्माननीय महेन्द्र सिंह जी ;
पढ़ने व पसन्द करने हेतु
आपका बहुत - बहुत आभार .