PDA

View Full Version : आयुर्वेदिक औषधियां


sombirnaamdev
19-01-2012, 07:37 PM
अच्छी तन्दुरुस्ती का रहस्य है सकारात्मक सोच (http://www.vhv.org.in/story.aspx?aid=4502)
मनुष्य के मस्तिष्क में सदैव दो तरह की बातें चलती रहती है, एक सकारात्मक तो दूसरी नकारात्मक। नकारात्मक सोच व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालती हैं, जिसके कारण उसके उत्साह में कमी आती है। वहीं, सकारात्मक सोच किसी भी कठिन कार्य को करने में उसे साहस प्रदान करती है, जिसके कारण उस व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।...

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:39 PM
घरेलु नुस्खों से निकलकर भू-मंडलीय पर अंकित आयुर्वेद (http://www.aloe-veragel.com/2010/04/blog-post_15.html)आज विश्वसनीयता के मानचित्र पर सबसे ऊपर दिखाई देने लगा है | वर्षों का सफ़र इस बात का संकेत है की इस आयुर्वेद में निश्चित ही विशिष्ट गुण निहित है जिसके कारण आयुर्वेद प्राचीन काल से अबतक इस धरा पर अपनी पहचान बना कर रखा है | आयुर्वेद का अस्तित्व का होना इस बात को भी इंगित करता है की ऋषि-मुनियों द्वारा देवों की चिकित्सा आयुर्वेद के माध्यम से होती थी और इसी परिपाटी को जीवित करते हुए आयुर्वेद आज मानव सेवा कर रहा है | प्राचीन काल से हमारे घरेलु उपचार की विधियाँ यहाँ के परिवार में रची-बसी रही है |

आयुर्वेद में बढती हुई रूचि का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की आज की युवा वर्ग आयुर्वेद को बदलती शैली के साथ चाहने लगी है | एलोवेरा को आयुर्वेद की खास पहचान जानने लगी है | इतना ही नहीं, युवा पीढ़ी अब खुद को स्वास्थ्य रखने के लिए सामान्य आहार के अलावा अपने भोजन में आंवला, च्यवनप्राश, एलोवेरा का रस (http://www.aloe-veragel.com/2010/04/aloe-vera.html) भी शामिल करने लगे है |

सर्दी-जुकाम जैसे छोटे समस्या के लिए वे आयुर्वेद के नुस्खे व दवाइयों पर ज्यादा भरोसा करने लगे है | भागमभाग और तेज रफ़्तार जिन्दगी के इस दौर में मनुष्य मशीन की तरह काम कर रहा है और मुफ्त में साथ में तनाव पाल रहा है | ऐसे में आयुर्वेदिक औषधियां (http://www.aloe-veragel.com/2010/04/aloevera.html) थकान व तनाव मिटाने में अत्यंत लाभकारी साबित हो रही है |

हर्बल औषधियां ( एलोवेरा जेल) (http://www.aloe-veragel.com/2010/04/aloe-vera-gel.html) मुख्य रूप में सौन्दर्यशक्ति व तनावमुक्ति में लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है | प्रकृति का वास्तव में अनुपम व उत्कृष्ट उत्पाद है एलोवेरा | एलोवेरा की लोकप्रियता का आलम यह है की आज युवाओं में बतौर फैशन यही आयुर्वेद का विकल्प हो गया है |

महगाई की इस दौर में भी ४३ प्रतिशत लोग यह स्वीकार करते है की अपेक्षाकृत सस्ती व सुरक्षित है | मोटापा व बढ़ते वजन तथा असाध्य रोग भी आयुर्वेद ( एलोवेरा ) (http://www.aloe-veragel.com/2009/12/blog-post_08.html) चिकित्सा से ठीक हो रहे है |७२ प्रतिशत लोगों की यह मानना है की पहले बुजुर्ग लोग ही आयुर्वेद पर भरोसा करते थे पर अब युवाओं में जागरूकता आई है , इससे लगता है की आने वाला कल में एलोवेरा और इससे सलग्न पौष्टिक पूरक की चाहत बढ़ेगी , क्युकी आयुर्वेद ( एलोवेरा ) चिकित्सा के अलावा भी शरीर के सर्वांगीन विकाश का काम करता है |

आयुर्वेद को लेकर लोगों में जागरूकता आई है ,लोग यह समझने लगे है की आयुर्वेद ही एक मात्र रास्ता है जहाँ मनुष्य की कायाकल्प संभव है | लोग यह भी जान गए है की एलोवेरा और उनके पौष्टिक पूरक के माध्यम से असाध्य रोगों पर विजयी प्राप्त कर सकते है | कुल मिलाकर जीवन के कसौटी पर आयुर्वेद अब खरा उतरने लगा है |

इसमें अच्छा व्यवसाय भी नजर आने लगा है | आज एलोवेरा (http://www.aloe-veragel.com/2009/11/blog-post.html)( आयुर्वेद ) की उत्पाद को लेकर हमारी कम्पनी भी करीब अपने देश में विगत १० साल से व्यवसाय कर रही है और करीब ८५ प्रोडक्ट इस समय सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए बाजार में उतरा हुआ है | शरीर से सम्बंधित करीब २२० प्रकार के रोग में आप हमारी कंपनी के उत्पाद की सहायता ले सकते है और अपना जीवन पुर्णतः खुशहाल बना सकते है |

फॉरएवर लिविंग प्रोडक्ट जो एलोवेरा के सर्वश्रेष्ठ उत्पादक है | दुनिया में ८५ प्रतिशत बाजार पर इनका अकेले का कब्ज़ा है और ३२ साल से १४२ देश में यह अपना व्यवसाय कर रही है | कम्पनी की पहचान उनका उत्कृष्ट व स्थिरीकरण प्रक्रिया से तैयार किया गया एलोवेरा जेल है | १३००० करोड़ की कंपनी का ५० प्रतिशत विक्री सिर्फ एलोवेरा जेल का है |
शरीर के किसी भी प्रकार के रोग में यह एलोवेरा जेल कारगर साबित होता है |

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:39 PM
चिक्तिसा परामर्श हेतु हमसे संपर्क करने वालो में सर्वाधिक संख्या उन रोगियों की होती है जो उदर रोगों से पीड़ित होते है - जैसे अपच,भूख न लगना, गैस, एसिडिटी और सबसे मुख्य रोग कब्ज़ | अनियमित दिनचर्या और अनुचित आहार-विहार के अलावा मानसिक तनाव, नाना प्रकार के कारणवश होने वाली चिंता का सीधा प्रभाव नींद और पाचन संस्थान पर पड़ता है और व्यक्ति अनिद्रा तथा अपच का शिकार हो जाता है और इस स्थिति का निश्चित परिणाम होता है कब्ज़ होना | कब्ज़ कई व्याधियों की जड़ होती है जिसमे बवासीर, वात प्रकोप, एसिडिटी, गैस और जोड़ों का दर्द आदि व्याधियां कब्ज़ के ही देन होती है |

तो आज मैं चर्चा करने जा रहे है जिसमे सारे रोगों को दूर करने की शक्ति है,जो की ठंढी प्रकृति का है तथा इसकी विशेषता यह है की सूखने पर भी इसके गुण नष्ट नहीं होते | इसे आप हरा या सुखा किसी भी रूप में खाकर इसके सामान गुण का लाभ उठा सकते है | जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ आयुर्वेद में मशहूर बनौषधि जिसका नाम है " आँवला"

संस्कृत में आँवले को अमरफल, आदिफल, आमलकी , धात्री फल आदि नामों से पहचाना जाता है | लेतीं नाम :- एम्ब्लिका ओफिसिनेलिस( Emblica officinalis )

आँवला सर्दी की ऋतू में ताजा मिलता है | नवम्बर से मार्च तक अवाला ताजा मिलता रहता है | जनवरी-फ़रवरी में आवला अपने पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है |

जो आंवला आकर में बड़ा होता हो, गुदे में रेशा नहीं हो, बेदाग और हलकी-सी लाली लिए हुए हो, वह आँवला सबसे उत्तम होता है | वैसे सर्दियों में ही इसका मुरब्बा, अचार, जैम आदि बनाए |

आँवले में विटामिन- सी ( "C") पाया जाता है | एक आँवले में विटामिन- सी की मात्रा चार नारंगी और आठ टमाटर या चार केले के बराबर मिलता है | इसलिए यह शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति में महत्वपूर्ण है | विटामिन-सी की गोलियों की अपेक्षा आँवले का विटामिन-सी सरलता से पच जाता है |

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:41 PM
आयुर्वेद के समस्त औषधियों और जड़ी-बूटियों में तुलसी का अहम् भूमिका है |http://1.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S9H-h-yegSI/AAAAAAAAAUA/wJTUohVtIdA/s200/tulsi.jpg (http://1.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S9H-h-yegSI/AAAAAAAAAUA/wJTUohVtIdA/s1600/tulsi.jpg) तुलसी से कोई अपरिचित नहीं है ,बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी जानते है | इसकी दो प्रजातियाँ होती है - सफ़ेद और काली | तुलसी में बहूत से गुण है | "राजबल्ल्भ ग्रन्थ" में कहा गया है ---- तुलसी पित्तकारक तथा वाट कृमि और दुर्गन्ध को मिटाने वाली है, पसली के दर्द खांसी, श्वांस, हिचकी में लाभकारी है | इसे सभी लोग बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से पूजते है|
http://2.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S9IDg5qqQ9I/AAAAAAAAAUI/8bJUmw0Cb6M/s200/inf+%28108%29.jpg (http://2.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S9IDg5qqQ9I/AAAAAAAAAUI/8bJUmw0Cb6M/s1600/inf+%28108%29.jpg)
भारतीय चिकित्सा विधान में सबसे प्राचीन और मान्य ग्रन्थ "चरक संहिता" में तुलसी के गुणों का वर्णन एकत्रित दोषों को दूर करके सर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूंघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है | भारतीय धर्म गर्न्थों में तुलसी के रोग निवारक क्षमता की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी है ----
तुलसी कानन चैव गृहे यास्यावतिष्ठ्ते |
तदगृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति ममकिंकरा ||
तुलसी विपिनस्यापी समन्तात पावनं स्थलम |
क्रोशमात्रं भवत्येव गांगेयेनेक चांभसा ||
तुलसी से मृत्युबाधा दूर होती है | उसकी गंध का प्रभाव एक कोस तक होता है | जब इससे रोगों की निवृत हो जाती है ,तब यम की बाधा तो हटती ही है, क्यूंकि रोग ही तो यम के दूत बन कर आते है | वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणित हो चूका है की तुलसी के संसर्ग से वायु सुवासित व शुद्ध रहती है |


पौराणिक कथाओं में तुलसी को प्रभु का भक्त बताया गया है | भगवन के आशीर्वाद से ही तुलसी ( पौधे के रूप में ) घर-घर में विराजमान रहने लगी |मंदिर में भगवान् का चरणामृत देते समय पुजारी तुलसी पात्र के साथ गंगाजल देते है और प्रसाद के सभी पदार्थों में तुलसी पत्र डाला जाता है |

क्युकी यह 'अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम' अर्थात यह अकाल मृत्यु से बचाती है और सभी रोगों को नष्ट करती है | मृत्यु के समय तुलसी मिश्रित गंगाजल पिलाया जाता है जिससे आत्मा पवित्र होकर सुख-शांति से परलोक को प्राप्त हो | इसीलिए लोग श्रधापुर्वक तुलसी की अर्चना करते है, सम्मान इसका ऐसा होता है की कार्तिक मास में तो तुलसी की आरती एवं परिकर्मा के साथ-साथ उसका विवाह किया जाता है |

अनुसंधान कर्ताओं ने पाया है की पेट-दर्द, और उदार रोग से पीड़ित होने पर तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रश संभाग मिलकर गर्म करके सेवन करने पर रोग का प्रभाव हट जाता है | तुलसी के साथ में शक्कर अथवा शहद मिलकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है | सिरदर्द में तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण कपडे में छानकर सूंघने से फायदा होता है |

वन तुलसी का फुल और काली मिर्च को जलते कोयले पर दल कर उसका धुना सूंघने से सिर का कठिन दर्द ठीक होते देखा गया है | केवल तुलसी पत्र को पिस कर लेप करने, छाया में सुखाई गयी पत्तियां के चूर्ण को शुन्घने से सिर दर्द में काफी आराम पहुँचता है |
छोटे बच्चे को अफरा अथवा पेट फूलने की शिकायत प्रायः देखि गयी है, जिसमे तुलसी और पान पत्र का रस बराबर मात्रा में मिलाकर इसकी दस-दस बूंद सुबह दोपहर शाम बराबर देते रहने से काफी आराम मिलता है | दांत निकलते समय बच्चों को जोर से दस्त लग जाते है इसमें भी तुलसी पत्ते का चूर्ण शहद में मिलाकर से लाभदायक होता है | बच्चों को सर्दी और खांसी की शिकायत होने पर तुलसी पत्र का रस उपयोगी सिद्ध होता है |

तुलसी के आसपास का वायुमंडल शुद्ध रहने के कारण प्रदुषण अन्य रोगों का पनपने का मौका नहीं मिलता है | पेय जल में यदि तुलसी के पत्तों को डालकर ही सेवन किया जाए तो कई तरह के रोगों से बचा जा सकता है |
तुलसी को संस्कृत भाषा में 'ग्राम्य व सुलभा इसलिए कहा गया है की यह सभी गांवों में सुगमता -पूर्वक उगाई जा sakti है और सर्वत्र सुलभ है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आरोग्य प्राप्त करने की दृष्टि से इसका आरोपण सभी घरो में होना चाहिए |

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:43 PM
आज चर्चा करने जा रहा हूँ जो ( गाँव की शान है ,सेहत की जान है,) आम लोगों को आसानी से आहार में मिलता रहा है | इसकी गणना हरी पतेदार सब्जी में की जाती है | जो लौह तत्व और कल्स्शियम से भरपूर है | हमारे पूर्वजों की सबसे पसंदीदा शाक ( साग ) है जिसका नाम है बथुआ |http://1.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S8TJ0AIu_qI/AAAAAAAAASo/mBu3-1vRmZE/s200/bathua.jpg (http://1.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S8TJ0AIu_qI/AAAAAAAAASo/mBu3-1vRmZE/s1600/bathua.jpg) बथुआ में प्रायः शरीर के सभी पोषक तत्व पाए जाते है | मौसम के अनुसार उपलब्ध इसका सेवन करके छोटे-छोटे रोगों से अपना बचाव स्वयं किया जा सकता है | वैज्ञानिक शोधों से पता चल चूका है कि जिन सब्जियों को शीधे सूर्य से प्रकाश प्राप्त होता है,वे पेट में जाकर विषाणु-कीटाणुओं का नाश करती है | बथुआ भी उन्ही सब्जी में से एक है जिन्हें सूर्य का प्रकाश सीधे मिलता है |

विभिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्वों से सुसज्जित बथुआ http://4.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S8TKgWo0HoI/AAAAAAAAASw/b9bEVBfNPTQ/s200/bathua1.jpg (http://4.bp.blogspot.com/_o1d_zscUOEo/S8TKgWo0HoI/AAAAAAAAASw/b9bEVBfNPTQ/s1600/bathua1.jpg) एक सस्ता साग है | विशेषकर यह ग्रामीण क्षेत्र में सहजता से प्राप्त होने वाला प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है | ग्रामीण इलाकों में बथुआ कि कोई उपियोगित नहीं है,जबकि प्रक्रति ने इसमें सभी प्रकार के अच्छाइयाँ समाहित कर रखी है | भोजन में इसकी मौजदगी से कई प्रकार के रोगों से बच सकते है | यह बाजारों में दिसंबर से मार्च तक आसानी से मिल जाता है |

बथुआ अपने आप गेहूं व जौ के खेतों में उग जाता है | इसके पते त्रिकोनाकर व नुकीले होते है , इसके पौधे पर सफ़ेद,हरे व कुछ लालिमा लिए छोटे-छोटे फुल होते है | बीज काले रंगे के सरसों से भी महीन होते है | पकने पर बीज खेत में गिर जाता है और साल भर तक जमीन के अन्दर पड़े होने के बाद अनुकूल जलवायु व परिस्थितियां मिलने पर स्वतः उग आते है |

बथुआ के बारे में प्राचीन आयुर्वेद ग्रन्थ में भी उल्लेख मिलता है | आयुर्वेद में इसकी दो प्रजातियाँ है ,एक गौड़ बथुआ जिसके पते कुछ बड़े आकर तथा लालिमा लिए होते है ,जो अक्सर सरसों ,गेहूं आदि के खेत में प्राप्त होता है | दूसरा है,यवशाक जिसके पतों पर लालिमा नहीं होती, पते भी पहले जाती के अपेक्षा कुछ छोटे होते है,जो अक्सर जौ के खेतों में अधिकतर मिलता है इसीलिए इसे यवशाक कहते है |

बथुआ को संस्कृत में वस्तुक,क्षारपत्र ( पतों में खरापर के वजह से ) शाकराट ( सागों का राजा ) ,हिंदी में बथुआ ,पंजाबी में बाथू, बंगाली में बेतुवा, गुजराती में वाथुओ,
महारास्त्र में चाकवत, और अंग्रेजी में ह्वाईट गुज फुट ( White goose foot ) कहते है ,इसका लैटिन नाम चिनोपोडियम अल्बम ( Chenopodium album ) है |

बथुआ में 70% जल होता है , इसके अन्दर पारा, लौह, क्षार, कैरोटिन व विटामिन C आदि खनिज तत्व पाए जाते है | भाव प्रकाश में इसके गुणों का उल्लेख में लिखा है कि बथुआ क्षारयुक्त, स्वादिष्ट, अग्नि को तेज करने वाला तथा पाचनशक्ति को बढ़ानेवाला है |


दीपनं पाचनं रुच्यं लघु शुक्रबलप्रदनम |
सरं प्लीहास्त्रपितार्शः कृमिदोषत्रयापहम ||
बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है | विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है |

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:51 PM
अनार : फल के साथ औषधि गुण भी (http://www.vhv.org.in/story.aspx?aid=4234)
आज कल घरेलू नुस्खे ज्यादा कारगर साबित हो रहे है। रोग चाहे जैसा भी हो प्रकृति प्रदत औषधि लोगों की पहली प्राथमिकता होने लगी है। अनार का जूस कई मायनों में सबसे फायदेमंद फल भी है और औषधि भी है। यह कैंसर रोकने के साथ ही ह्वदय के लिए काफी अच्छा है। यही नहीं अब वैज्ञानिकों का कहना है कि इन खूबियों के साथ ही अनार का जूस पेट की चर्बी घटाने में भी काफी कारगर है...

rajeshgouthwal
25-01-2012, 06:36 PM
Dear sir kya aapke pass sexual problem ke liye bhi koi dawa hain

sombirnaamdev
27-01-2012, 09:52 PM
मनुष्य के मस्तिष्क में सदैव दो तरह की बातें चलती रहती है, एक सकारात्मक तो दूसरी नकारात्मक। नकारात्मक सोच व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालती हैं, जिसके कारण उसके उत्साह में कमी आती है। वहीं, सकारात्मक सोच किसी भी कठिन कार्य को करने में उसे साहस प्रदान करती है, जिसके कारण उस व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

.दोस्त मैं कोई डॉक्टर या वैद्य नहीं हूँ /
हालाँकि जो बुजुर्गों के ज्ञान और आयुर विज्ञानं के अनुसार आप अपनी
सेक्सुल पॉवर को बढ़ने की बजाये अपने को मानसिक रूप से तैयार करें /
और शारीरिक ताकत के विकास की तरफ ध्यान दें
जिससे आपकी सेक्सुअल पॉवर अपने आप बढ़ जाएगी /
शारीरिक ताकत बढ़ने के लिए आप नियमित रूप से लोकी ,आवला
और अलोविरा जूस का सेवेन करें
लोकी का जूस आपकी सेक्स पॉवर को भी बढ़ाने में आपकी मदद करेगा
एक बार आजमा कर देखो
शारीरिक कसरत सोने पे सुहागे का काम करेगी

धन्यववाद

sombirnaamdev
15-02-2012, 03:43 PM
चरक संहिता में वर्णित है गुणवान संतान और कामसुख की कामना से वाजीकरण हेतु प्रयुक्त आयुर्वेदिक नुस्खे का प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में किया जाना चाहिए। वात्स्ययान के कामसूत्र में कहा गया है ' काम का उद्देश्य कामसुख और संतानोत्पत्ति है। इसी प्रकार वाजीकरण (अश्वशक्ति) का उद्देश्य गुणवान संतान तथा कामसुख की प्राप्ति है। आयुर्वेद में धर्मयुक्त काम को पुरषार्थ को बढाने तथा मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। व्यवहारिक तौर पर भी यह देखा जाता है कि वाजीकरण (शरीर को अश्वशक्ति प्रदान करने वाली )औषधियां शरीर में मेधा ,ओज ,बल एवं तनाव को कम करती हैं।

काम की प्रबल और सम्मोहक शक्ति को देखकर इसे देवता कहा गया है तथा वसंतपंचमी के रूप में त्यौहार के रूप में मनाने का प्रचलन आज भी है। आज की व्यस्ततम जीवनशैली ,तनावभरी दिनचर्या और भौतिक सुख सुविधायें जुटाने की लालसा ने इस पवित्र कर्म के मूल में निहित भाव एवं उद्देश्य को समाप्त कर दिया है। काम आज दाम्पत्य जीवन की औपचारिकता भर रह गया है ,इन्ही कारणों से यौन संबंधों को लेकर असंतुष्ट युगलों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है, ऐसी स्थिति में आयुर्वेद एवं आयुर्वेदिक औषधियां मददगार हो सकती है जिनका प्रयोग वैद्यकीय निरीक्षण में होना चाहिए-

-असगंध ,विधारा,शतावर ,सफ़ेद मूसली ,तालमखाना के बीज ,कौंच बीज प्रत्येक 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर दरदरा कर कपडे से छान लें तथा 350 ग्राम मिश्री मिला लें, इस नुस्खे को 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम ठन्डे दूध से लें ,लगातार एक माह तक लेने से यौन सामथ्र्य में वृद्धि अवश्य होगी।

-दालचीनी ,अकरकरा ,मुनक्का और श्वेतगुंजा को एक साथ पीसकर इन्द्रिय पर लेप करें तथा सम्भोग के समय कपडे से पोछ डालें ,यह योग इन्द्रियों में रक्त के संचरण को बढाता है।

-शुद्ध शिलाजीत 500 मिलीग्राम की मात्रा में ठन्डे दूध में घोलकर सुबह शाम पीने से भी लाभ मिलता है।

-शीघ्रपतन की शिकायत हो तो धाय के फूल ,मुलेठी ,नागकेशर ,बबूलफली इनको बराबर मात्रा में लेकर इसमें आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर ,इस योग को 5-5 ग्राम की मात्रा में सेवन लगातार एक माह तक करें ,इससे शीघ्रपतन में लाभ मिलता है।

-कामोत्तेजना का बढाने के लिए कौंचबीज चूर्ण ,सफ़ेद मूसली ,तालमखाना ,अस्वगंधा चूर्ण को बराबर मात्रा में तैयार कर 10-10 ग्राम की मात्रा में ठन्डे दूध से सेवन करें निश्चित लाभ मिलेगा।

ये चंद नुस्खें हैं, जिनका प्रयोग यौनशक्ति,यौनऊर्जा एवं पुरुषार्थ को बढाने में मददगार है।

sombirnaamdev
25-02-2012, 02:43 PM
आंवले के आयुर्वेदिक फायदे से हम भली-भांति परिचित हैं। इसके अंदर रोगों को दूर करने की अथाह शक्ति है। इसका हर मौसम में उपयोग करना आपके लिए लाभदायक होगा। आप इसकी सहायता से तरह-तरह के व्यंजन बना सकते हैं। आंवले की चटनी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है तो देर किस बात की चलिए बनाते हैं।



व्यंजन की किस्म(Dish Type): Veg (शाकाहारी)
कितने लोगों के लिए (Dish Made for): 6


सामग्री (Ingredient)
5 आंवले, 1 टी स्पून राई, 4 हरी मिर्च, 1/2 टी स्पून हींग पाउडर, स्वादानुसार नमक, 3 टी स्पून सरसों का तेल।


बनाने की विधि (Method)
एक कुकर में आंवले डालकर उबाल लें। आंवले और हरी मिर्च को पीस लें।
एक कड़ाही में तेल गरम करें, जब तेल गरम हो जाए तो उसमें हींग और राई डाल दें।
जब राई भुन जाए तो आंवले-मिर्च का पेस्ट डालकर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाये। स्वादानुसार नमक डाल दें।
ठंडा होने पर एयरटाइट कंटेनर में रख लें।

sombirnaamdev
10-03-2012, 08:05 PM
हृदय व रक्त संबंधी औषधियाँ : हृदय की कमजोरी (धड़कन बढ़ना, अधिक पसीना आना, घबराहट, मुंह सूखना आदि में- अर्जुनारिष्ट, जवाहर मोहरा, हृदयार्णव रस, नागार्जुभ्रम रस, खमीरा, गावजवा, मुक्ता भस्म, मुक्ता पिष्टी।

उच्च रक्त चाप में (हाई ब्लड प्रेशर): सर्पगंधाघनवटी, रसोन वटी, सूतशेखर (स्वर्णयुक्त), मोती (मुक्तापिष्टी)।

पांडू (खून की कमी पर): पुनर्नवादि मंडूर, मंडूर भस्म, लोहासव, कांतिसार, नवायस लौह, ताप्यादि लौह।

कामला (पीलिया) में: लिवकेयर सीरप, आरोग्यवर्द्धिनी, अविपत्तिकर चूर्ण रोहितकारिष्ट, चन्द्रकला रस, प्रवाल पंचामृत।

शरीर की सूजन में: पुनर्नवारिष्ट, पुनर्नवामंडूर, शोथिर लौह, दुग्ध वटी (शोथ)।

sombirnaamdev
10-03-2012, 08:05 PM
मस्तिष्क संबंधी : सिर में भारीपन, आंखों से पानी बहना, कान में दर्द, नाक बहना, नाक में सूजन आदि में : अकसर सर्दी-बरसात में सुबह के समय तथा खाने के बाद होता है- लक्ष्मीविलास रस, अणुतौल।

पैत्तिक (सिर में दाह, नाक में खून आना आदि। गर्मी में दोपहर के समय सिर में दर्द होना) : स्वर्ण सूतशेखर रस, अणु तेल, रक्त स्तंभक, च्यवनप्राश, खमीरा संदल।

वातिक (सिर दर्द के साथ चक्कर, नींद न आना, आंखों में शुष्कता आदि) : गोदती भस्म, मृगश्रंग भस्म, अणुतौल।

अनन्तवात व सूर्यावर्त (आधीसीसी का सिर दर्द) : अणु तेल, षडबिन्दु तेल, स्वर्ण सूतशेखर रस, गोदती भस्म, शिरःशूलादि वज्र रस, त्रिफला चूर्ण।

स्मृति वर्द्धक व बुद्धि वर्द्धक औषधियां : ब्राह्मी रसायन, अश्वगंधारिष्ट, ब्राह्मी सारस्वत चूर्ण, घृत, बादाम तेल

sombirnaamdev
10-03-2012, 08:06 PM
नींद न आना, चित्तभ्रम, घबराहट, बेचैनी आदि में : अश्वगंधारिष्ट ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट, ख्मीरा, गावजवां, जवाहर मोहरा, सूतशेखर रस व बादाम तेल।

अपस्मार (हिस्टीरिया, मूर्छा) आदि में : अश्वगंधारिष्ट, वात कुलांतक रस, ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट, ख्मीरा, जातिफलादि चूर्ण, वृहत्* वात चिंतामणि, स्मृतिगागर रस, स्नायु शक्तिदा।

sombirnaamdev
18-03-2012, 05:33 PM
आरोचक से तात्पर्य है कि भोजन को ग्रहण करने में ही रुचि न हो या यों कहें कि भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन करने में असमर्थ हो, तो वह आरोचक या ‘मन न करना’ कहलाता है।
आरोचक का अर्थ सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो, फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उतरे।
कारण



चाय-कॉफी का अधिक सेवन, विषम ज्वर (मलेरिया) के बाद, शोक, भय, अतिलोभ, क्रोध एवं गंध, छाती की जलन, मल साफ नहीं आना, कब्ज होना, बुखार होना, लीवर तथा आमाशय की खराबी आदि।

लक्षण



खून की कमी, हृदय के समीप अतिशय जलन एवं प्यास की अधिकता, गले से नीचे आहार के उतरने में असमर्थता, मुख में गरमी एवं दुर्गंध की उपस्थिति, चेहरा मलिन एवं चमकहीन, किसी कार्य की इच्छा नहीं, अल्पश्रम से थकान आना, सूखी डकारें आना, मानसिक विषमता से ग्रस्त होना, शरीर के वजन में दिन-ब-दिन कमी होते जाना, कम खाने पर भी पेट भरा प्रतीत होना।

घरेलू योग



1. भोजन के एक घंटा पहले पंचसकार चूर्ण को एक चम्मच गरम पानी के साथ लेने से भूख खुलकर लगती है।
2. रात में सोते समय आँवला 3 भाग, हरड़ 2 भाग तथा बहेड़ा 1 भाग-को बारीक चूर्ण करके एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से सुबह दस्त साफ आता है एवं भूख खुलकर लगती है।
3. भोजन में पतले एवं हलके व्यंजनों का प्रयोग करने से खाया हुआ जल्दी पच जाता है, जिससे जल्दी ही भूख लग जाती है।
4. खाना खाने के बाद अजवायन का चूर्ण थोड़े से गुड़ के साथ खाकर गुनगुना पानी पीने से खाया हुआ पचेगा, भूख लगेगी और खाने में रुचि पैदा होगी।
5. भोजन के बाद हिंग्वष्टक चूर्ण एक चम्मच खाने से पाचन-क्रिया ठीक होगी।
6. भोजन के बाद सुबह-शाम दो-दो चम्मच झंडु पंचासव सीरप लें, इससे खाया-पिया जल्दी पच जाएगा और खाने के प्रति रुचि जाग्रत् होगी।
7. हरे धनिए में हरी मिर्च, टमाटर, अदरक, हरा पुदीना, जीरा, हींग, नमक, काला नमक डालकर सिलबट्टे पर पीसकर बनाई चटनी खाने से भोजन की इच्छा फिर से उत्पन्न होती है।
8. भोजन करने के बाद थोड़ा सा अनारदाना या उसके बीज के चूर्ण में काला नमक एवं थोड़ी सी मिश्री पीसकर मिलाने के बाद पानी के साथ एक चम्मच खाने से भूख बढ़ती है।
9. एक गिलास छाछ में काला नमक, सादा नमक, पिसा जीरा मिलाकर पीने से पाचन-क्रिया तेज होकर आरोचकता दूर होती है।

आयुर्वेदिक योग
पंचारिष्ट, कुमार्यासव, पंचासव दो-दो चम्मच भोजन के बाद पीना चाहिए। आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी या क्षुब्धानाशक वटी में से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम लें।

पथ्य



सलाद, पेय पदार्थ, छाछ, पाचक चूर्ण आदि लेना पथ्य है।

अपथ्य



चाय, कॉफी, बेसन, तेज मसाले एवं सूखी सब्जियाँ अपथ्य हैं।

बचाव



इस रोग से बचने का सबसे बढ़िया तरीका सुबह-शाम भोजन करके एक घंटा पैदल घूमना एवं सलाद तथा हरी पत्तीदार सब्जियों का प्रयोग करना है।

sombirnaamdev
18-03-2012, 05:35 PM
अग्निमांद्य
पहचान



अल्प मात्रा में लिया गया आहार भी ठीक से न पचे, मस्तक और पेट में वजन मालूम पड़े और शरीर में हड़फुटन हो तो समझिए कि अग्निमांद्य से पीड़ित हैं अर्थात् पेट में भूख की अग्नि (तड़प) मंद हो रही है या पाचन-क्रिया की गति कम हो गई है।

कारण



1. सामान्य कारण:- अजीर्ण होने पर भी भोजन करना, परस्पर विरुद्ध आहार लेना, अपक्व (कच्चा) भोजन करना, द्रव पदार्थों का अधिक सेवन करना, ज्यादा गरम तथा ज्यादा खट्टे पदार्थों का सेवन, भोजन के बाद अथवा भोजन के बीच में पानी पीने का अभ्यास, कड़क चाय का अति सेवन आदि।
2. विशिष्ट कारण:- खाने की नली की बनावट जन्म से ही विकृतमय होना, आँतपुच्छ में सूजन, खून की कमी, एस्प्रीन सैलीसिलेट्स आदि का अधिक सेवन।

लक्षण



इसका प्रमुख लक्षण खाने के बाद पेट भारी रहना है। मुँह सूखना, अफारा, जी मिचलाना, भोजन के प्रति अरुचि, भूख न लगना, दुर्बलता, सिर में चक्कर खाना, मुँह से धुँआँ जैसा निकलना, पसीना आना, शरीर में भारीपन होना, उलटी की इच्छा, मुँह में दुर्गंध, मुँह में पानी भर आना, खट्टी डकारें आना आदि।

घरेलू योग



1. अग्निमांद्य में गरम पानी पीना चाहिए।
2. भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है।
3. सिरका और अदरक बराबर-बराबर मिलाकर भोजन से पहले नित्य खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
4. घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
5. लवणभास्कर चूर्ण को गाय के दूध की छाछ के साथ नित्य लेने से अग्निमाद्य नष्ट होता है।
6. बथुए का रायता नित्य सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
7. दोनों समय के भोजन के बीच पाँच घंटे का फासला रखकर दोपहर का भोजन 10 बजे एवं शाम का भोजन 5 बजे तक कर लें। भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा।
8. भोजन में कद्दू एवं लौकी का रायता खाने से खाना जल्दी पचता है।
9. दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है।
10. भूख से कम एवं खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन जल्दी पच जाएगा एवं भूख की मंद अग्नि दूर होगी।

आयुर्वेदिक योग



1. पंचारिष्ट या पंचासव सीरप- किसी एक की दो-दो चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें।
2. आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी, गैसेक्स, यूनीइंजाम-इनमें से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम छाछ के साथ लें।
3. लवणभास्कर चूर्ण, पंचसकार चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण में से कोई भी एक चम्मच पाचक चूर्ण गरम पानी के साथ लें।

पथ्य



सलाद, छाछ, खिचड़ी, हरी सब्जियाँ एवं रसेदार पदार्थ खाना पथ्य है।

अपथ्य



भूख नहीं लगने पर भी भोजन करना, चाय-कॉफी अधिक मात्रा में लेना, बासी खाना अपथ्य है।

बचाव



भोजन करके दिन या रात में तुरंत नहीं सोना चाहिए।

sombirnaamdev
18-03-2012, 05:37 PM
संग्रहणी
पहचान



मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही दस्त संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने के बाद तुरंत ही शौच होना या खाने के बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल निकलना संग्रहणी कही जाती है। इस रोग के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे, कभी पतला, कभी गाढ़ा कष्ट या दुर्गंध के साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में दुर्बलता आ जाती है।

कारण



इस रोग का प्रमुख कारण विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, सी एवं कैल्सियम की कमी होना है।
वातज संग्रहणी:- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है।
पित्तज संग्रहणी:- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी:- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है।

लक्षण



वातज:- खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न लगे, प्यास अधिक लगे, कानों में भन-भन होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना आदि।
पित्तज:- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना।
कफज:- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।

घरेलू योग



1. सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं चित्रक का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी दूर होगी।
2. 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3. जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4. रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी।
5. हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी।

आयुर्वेदिक योग



अभ्रक गुटिका, संग्रहणी कटक रस, हिमालय की डॉयरेक्स-इनमें से किसी एक की दो-दो गोली सुबह-शाम छाछ के साथ लें।

पथ्य



संग्रहणी के रोगी को हमेशा हलका एवं पाचक भोजन ही करना चाहिए।

अपथ्य



भारी, आमोत्पादक, क्षुधानाशक, चिकना पदार्थ, अधिक परिश्रम अति मैथुन और चिंता से दूर रहे।

sombirnaamdev
22-03-2012, 12:22 AM
शहद को आयुर्वेद में अमृत माना गया है। माना जाता है कि रोजाना सही ढंग से शहद लेना सेहत के लिए अच्छा होता है। लेकिन शहद का सेवन करने के फायदे ही नहीं नुकसान भी हो सकते हैं। इसलिए शहद का सेवन जब भी करें नीचे लिखी बातों को जरूर ध्यान रखें।



- चाय, कॉफी में शहद का उपयोग नहीं करना चाहिए। शहद का इनके साथ सेवन विष के समान काम करता है।



- अमरूद, गन्ना, अंगूर, खट्टे फलों के साथ शहद अमृत है।



- शरीर के लिये आवश्यक, लौह, गन्धक, मैगनीज, पोटेशियम आदि खनिज द्रव शहद में होते हैं।



- शहद के एक बड़ा चम्मच में 75 ग्राम कैलोरी शक्ति होती है।



- किसी कारणवश आप को शहद सूट नहीं किया तो या खाकर किसी तरह की परेशानी महसूस हो रही हो तो नींबू का सेवन करें।



- इसे आग पर कमी न तपायें।



- मांस, मछली के साथ शहद का सेवन जहर के समान है।



- शहद में पानी या दूध बराबर मात्रा में हानिकारक है।



- बाजरू चीनी के साथ शहद मिलाना अमृत में विष मिलाने के समान है।



- शहद सर्दियों में गुनगुने दूध या पानी में लेना चाहिये।



- एक साथ अधिक मात्रा में शहद न लें। ऐसा करना नुकसानदायक होता है। शहद दिन में दो या तीन बार एक चम्मच लें।



- घी, तेल, मक्खन में शहद विष के समान है।

sombirnaamdev
22-03-2012, 12:27 AM
किचन में जब चटपटा खाना बनाने की बात हो या सलाद को जायकेदार बनाना हो तो कालीमिर्च का प्रयोग किया जाता है। पिसी काली मिर्च सलाद, कटे फल या दाल शाक पर बुरक कर उपयोग में ली जाती है। इसका उपयोग घरेलु इलाज में भी किया जा सकता है।आज हम आपको बताने जा रहे हैं कालीमिर्च के कुछ ऐसे ही रामबाण प्रयोग।

- त्वचा पर कहीं भी फुंसी उठने पर, काली मिर्च पानी के साथ पत्थर पर घिस कर अनामिका अंगुली से सिर्फ फुंसी पर लगाने से फुंसी बैठ जाती है।

- काली मिर्च को सुई से छेद कर दीये की लौ से जलाएं। जब धुआं उठे तो इस धुएं को नाक से अंदर खीच लें। इस प्रयोग से सिर दर्द ठीक हो जाता है। हिचकी चलना भी बंद हो जाती है।

- काली मिर्च 20 ग्राम, जीरा 10 ग्राम और शक्कर या मिश्री 15 ग्राम कूट पीस कर मिला लें। इसे सुबह शाम पानी के साथ फांक लें। बावासीर रोग में लाभ होता है।

- शहद में पिसी काली मिर्च मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से खांसी बंद हो जाती है।

- आधा चम्मच पिसी काली मिर्च थोड़े से घी के साथ मिला कर रोजाना सुबह-शाम नियमित खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

- काली मिर्च 20 ग्राम, सोंठ पीपल, जीरा व सेंधा नमक सब 10-10 ग्राम मात्रा में पीस कर मिला लें। भोजन के बाद आधा चम्मच चूर्ण थोड़े से जल के साथ फांकने से मंदाग्रि दूर हो जाती है।

- चार-पांच दाने कालीमिर्च के साथ 15 दाने किशमिश चबाने से खांसी में लाभ होता है।

- कालीमिर्च सभी प्रकार के संक्रमण में लाभ देती है।

- यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो दिन में दो-तीन बार पांच दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे।

- बुखार में तुलसी, कालीमिर्च तथा गिलोय का काढ़ा लाभ करता है।

- कालीमिर्च, हींग, कपूर का (सभी पांच-पांच ग्राम) मिश्रण बनायें। फिर इसकी राई के बराबर गोलियां बना लें। हर तीन घंटे बाद एक गोली देने से उल्टी, दस्त बंद होते है।

sombirnaamdev
22-03-2012, 12:28 AM
पथरी में अमृत है कुलथी
http://www.patrika.com/articlephoto.aspx?id=32203 कुलथी उड़द के समान होती है। रंग इसका लाल होता है। इसकी दाल बनाकर रोगी को दी जाती है, जिससे पथरी निकल जाती है। इसे पथरीनाशक बताया गया है। गुर्दे की पथरी और मसाने की पथरी के लिए यह फायदेमंद औषधि है। आयुर्वेद में गुणधर्म के अनुसार कुलथी में विटामिन ए पाया जाता हैे। यह शरीर में विटामिन ए की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मददगार है। बाजार में पंसारी की दुकान पर यह आसानी से मिल जाती है।

प्रभाव
कुलथी के सेवन से पथरी टूटकर या धुलकर छोटी हो जाती है, जिससे पथरी सरलता से मूत्राशय में जाकर पेशाब के रास्ते से बाहर आ जाती है। मूत्रल गुण होने के कारण इसके सेवन से पेशाब की मात्रा और गति बढ़ जाती है, जिससे रूके हुए पथरी कण पर दबाव ज्यादा पड़ने के कारण वह नीचे की तरफ खिसक कर बाहर हो जाती है।

इस्तेमाल
1 सेंटीमीटर से छोटी पथरी में यह सफ ल औषधि है। 25 ग्राम कुलथी को 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर लगभग 100 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर 50-50 मिलीलीटर सुबह शाम एक माह रोगी को पिलाने से पेशाब के साथ निकल जाती है। लेने के पहले और बाद में जांच करवा लें, नतीजा सामने आ जाएगा। इसे अन्य दाल की तरह भी खाया जा सकता है। कुलथी 25 ग्राम लेकर मोटी-मोटी दरदरी कूटकर 16 गुने पानी में पकाएं, चौथा भाग पानी शेष रहने पर उतारकर छान लें, इसमें से 50 मिलीलीटर सुबह शाम लेते रहें। इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिला लें।

पथरी दुबारा ना हो
जिस व्यक्ति को एक बार पथरी पैदा हो जाती है, उसे फिर से होने का भय बना रहता है। इसलिए पथरी निक ालने के बाद भी रोगी कभी-कभी इसका सेवन करते रहें। कुलथी पथरी में अमृत के समान है।

-वैद्य बंकटलाल पारीक

sombirnaamdev
22-03-2012, 12:30 AM
स्मृति वर्घक ब्राह्मी
http://www.patrika.com/articlephoto.aspx?id=32271 बुद्धि, स्मरण शक्ति तथा अध्ययन कर्ताओं के लिए उपयोगी औषधियों में "ब्राह्मी" का नाम सर्वोपरि है। इसका नाम ही ब्राह्मी से जुड़ा है जो सृष्टि के रचयिता एवं विद्याओं के स्त्रोत वेदों के सर्वज्ञाता हैं। इस औष्ाधि का प्रयोग उन लोगों के लिए उपयोगी है जो पढ़ने, लिखने, बोलने तथा निर्णय लेने का कार्य करते हैं।

इनमें सभी वैज्ञानिक, विधिवेत्ता, प्राध्यापक, प्रशासक, संपादक, कवि, लेखक शामिल हैं। विद्यार्थियों की तो यह परम हितकारी है। ब्राह्मी के छोटे-छोटे पौधे पूरे देश में जलाशयों के किनारे पैदा होते हैं, पर हरिद्वार से बद्री नारायण तक के पावन पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा तथा उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली ब्राह्मी उत्पन्न होती है तथा वहीं से संग्रह होकर सारे देश में औष्ाधि विक्रेताओं के पास आती है।

ब्राह्मी से मिलते-जुलते रंग रूप वाली तथा लगभग इन्हीं गुणों वाली दूसरी औषधि मंडूक पर्णी भी है। इन दोनों में भेद मुश्किल से हो पाता है। इसलिए ये दोनों ही मिलीजुली उपलब्ध होती हैं। ब्राह्मी के पौधे जमीन पर फैले, इसके पत्तों का अग्रभाग गोलाकार डंठल की तरह पत्ते संकरे इन पर छोटे-छोटे निशान फूल नीलिमा युक्त सफेद मोटाई अपेक्षाकृत कम तथा इसकी हर शाखा में से जड़े निकलकर जमीन में घुसती जाती है। जबकि मंडूक पर्णी के पत्ते अपेक्षाकृत मोटे पत्ते का अग्रभाग नोकदार उठल की तरह चौड़ा तथा फूल लाल होते हैं।

पत्ते ब्राह्मी से कुछ बड़े होते हैं। इसके डालों से भी जड़े निकलकर पृथ्वी में घुसी रहती हैं। ब्राह्मी स्वाद में कड़वी जबकि मंडूक पर्णी कसैलेपन युक्त कड़वी तथा चबाने पर विशेष्ा गंध युक्त होती है। ब्राह्मी को संस्कृत में ब्राह्मी, सरस्वती, शारदा, हिन्दी गुजराती व मराठी में ब्राह्मी, अंग्रेजी में इंडियन पेनीवर्ट तथा वनस्पति विज्ञान में हरवेस्टिस मोनिएरा या मोनिरा कुनी फोलिया कहते हैं।

आयुर्वेद के मतानुसार ब्राह्मी शीतल, मल को नीचे धकेलने वाली, हलकी, मेधावर्घक, कसैली-कड़वी, विपाक में मधुर- आयुवर्घक, वृद्धावस्था रोकने वाली, स्वर की मधुरता व स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, रक्त विकार, प्रमेह, विष्ा, सूजन, ज्वर, खांसी मिटाने वाली, अग्नि प्रदीपक, ह्वदय को हितकर, वातपित्त कफ तीनों दोष्ाों की नाशक, प्लीहावृद्धि, वातरक्त, श्वास, यक्ष्मा में लाभ दायक दिव्य महौष्ाधि है। इसका पंचांग (पूरा पौधा) ही उपयोगी है।

रासायनिक विश्लेषण
इसमें ब्राह्मीन नामक एक उपक्षार मिलता है जो छोटी मात्रा में रक्तचाप बढ़ाता तथा ह्वदय को मांसपेशियों, श्वास प्रणाली, गर्भाशय और छोटी आंतों को उत्तेजना प्रदान करता है। इसमें कुछ कुचले जैसा पर उससे कम विषैला असर भी होता है। ब्राह्मी में एक उड़नशील तेल मिलता है जो इसे धूप में सुखाने या आग पर गर्म करने से उड़ जाता है। यह तेल इसके गुणों का मुख्य आधार है अत: इसे बचाना चाहिए।

ब्राह्मी हिस्टीरिया, अपस्मार (मिर्गी) तथा उन्माद रोगों में बहुत लाभदायक पाई गई है। इसके सेवन से इन तीनों रोगों में उल्लेखनीय लाभ मिलता है। इसके साथ शंखपुष्पी, बच तथा कूठ का मिश्रण अत्यधिक गुणकारक असर करता है तथा ब्राह्मी की विषाक्तता को कम करते हैं। ब्राह्मी मस्तिष्क को पुष्टि व शांति देती है। इसके प्रयोग से मज्जा तंतुओं के रोग मिटते हैं। अनावश्यक तथा अनर्गल बोलना, शीघ्र उत्तेजित हो जाना, चारों तरफ से उदासीनता बनाना आदि रोग ब्ा्राह्मी के उपयोग से मिर्गी के दौरों की तीव्रता, अवधि तथा आवृत्ति में कमी आती है व हिस्टीरिया पूरी तरह मिट जाता है।

शास्त्रीय उपयोग
ब्राह्मी से ब्राह्मी घृत, सारस्वत घृत, सारस्वत चूर्ण, सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी रसायन, ब्राह्मीवटी, ब्राह्मी चूर्ण, ब्राह्मी शर्बत आदि शास्त्रोक्त नुस्खों के अलावा प्राय: हर आयुर्वेदिक औष्ाध निर्माता कंपनी अपने पृथक-पृथक प्रोप्रायटरी योग बनाकर अनेक टेब्लेट, सीरप, कैप्सूल वगैरह बनाते हैं। पर इस बात से सभी सहमत हैं कि ब्ा्राह्मी मस्तिष्क, ह्वदय, मज्जा, तंतुओं के रोगों, अनेक मानसिक रोगों तथा स्नायु तंत्र के रोगों में आयुर्वेद का गरिमापूर्ण प्रतिनिधित्व कर मानस रोगियों का कल्याण करती है।

बुद्धिवर्घक योग
प्रतियोगिता के इस दौर में सबके प्रयोग के लिए एक अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत है- छाया में सुखाए ब्राह्मी के पत्ते, शंखपुष्पी पंचांग, बचदूधिया, कूठशतावर, विदारीकंद, छोटी इलायची, छिले हुए बादाम, मालकांगनी तथा जटामांसी का चूर्ण बनाएं। अन्य चीजों से जटामांसी आधी, बच चौथा भाग लें। चूर्ण को पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ चटनी की तरह पीस गाय के मीठे दूध तथा दो चम्मच गाय के घी के साथ मिला कर पीवें, स्मरण शक्ति तीव्र होगी।

-वैद्य हरिमोहन शर्मा

sombirnaamdev
24-09-2012, 07:50 PM
अगर आपने ताजे आंवले (Amla) का स्वाद लिया होगा तो आप अनायास ही कह उठेंगे, कसैले स्वाद वाला..

आंवले का (Amla) स्वाद भले ही कसैला होता है परंतु यह है बहुत ही गुणकारी इसके गुणों के कारण इसे "धातृ फल" (Dhatri Fal) भी कहा जाता है, धातृ का अर्थ होता है पालन पोषण करने वाला अर्थात "मां".

च्यवनप्राश आप जरूर खाते होंगे इसका स्वाद भी आपको काफी अच्छा लगाता है,. च्यवनप्राश में काफी मात्रा में आंवला (Amla) होता है. आंवले से मुरब्बा, अचार, चटनी,जैम आदि बनते हैं. आप किसी भी रूप में आंवले का सेवन कर सकते हैं, इससे आपको स्वास्थ्य लाभ मिलेगा.

आंवला (Amla) में संतरे से भी 20 प्रतिशत अधिक विटामिन सी पाया जाता है. इसके सेवन से त्वचा सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है, त्वचा स्वस्थ और जवां बनी रहती है. आंवला आपके स्नायु तंत्र को मजबूती देता है. सौन्दर्य के साथ साथ आपकी स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है.

जिन लोगों को खांसी और कफ की समस्या रहती है अथवा पचन सम्बन्धी शिकायत है वे भी नियमित आंवला (Amla) खाएं तो उन्हें लाभ मिलता है.

आप जंक फूड का सेवन करने वालों में से हैं तो आपको आंवला (Amla) जरूर खाना चाहिए, रात को सोने से पहले आंवला (Amla) खाएं इससे पेट में हानिकारक तत्व इकट्ठा नहीं हो पाएंगे व पेट साफ रहेगा. मूत्र रोग एवं मूत्र सम्बन्धी परेशानी में भी आंवला (Amla) का सेवन करना फायदेमंद होता है.

आंवला (Amla) हानिकारक टांक्सिन को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है, व रक्त को साफ करता है. अगर आपके दांत व मसूड़ों में तकलीफ हो रही है तो एक कच्चा आंवला (Amla) नियमित खाएं आपको लाभ मिलेगा.

गर्मियों के मौसम में सुबह खाली पेट में एक आंवले का मुरब्बा खा कर पानी पीने से शरीर अंदर से शीतल रहता है. इसकी चटनी खाने में अच्छी लगती है और पाचन क्रिया को दुरूस्त करती है. तो चलिए आज से हम सब आंवले का सेवन शरू करते हैं.




https://fbcdn-sphotos-c-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash4/c0.0.400.400/p403x403/229348_156857331121656_1941336926_n.jpg
(https://www.facebook.com/photo.php?fbid=156857331121656&set=a.119625794844810.19354.119598938180829&type=1&relevant_count=1)

rakeshkhare
09-04-2015, 10:41 AM
please send us symptoms & treatment of spondylitis

Deep_
09-04-2015, 12:29 PM
This is what i found on internet

करें वज्रासन, नहीं सताएगा सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस
आधुनिक जीवनशैली की कुछ प्रमुख बीमारियों में सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस भी है। योग की कुछ क्रियाओं से इसका पूरी तरह इलाज किया जा सकता है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस गरदन में स्थित रीढ़ की हड्डियों में लम्बे समय तक कड़ापन होने, गरदन तथा कंधों में दर्द तथा जकड़न के साथ सिर में दर्द होने की स्थिति को कहते हैं। यह दर्द धीरे-धीरे कंधे से आगे बाहों तथा हाथों तक बढ़ जाता है।

क्या है कारण
आधुनिक जीवनशैली इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण है। कम्प्यूटर पर अधिक देर तक काम करना, गलत तरीके से बैठना, आरामतलब जिन्दगी, व्यायाम न करने की आदत तथा मानसिक तनाव इस समस्या के प्रमुख कारण हैं। योग के अभ्यास से इस समस्या से मुक्ति पाने में सहायता मिलती है। जल्दी पता चल जाए तो रोग पर काबू पाया जा सकता है।

योग क्रियाएं
कुर्सी पर या जमीन पर रीढ़ को सीधी कर बैठ जाएं। चेहरे को दाएं कंधे की तरफ सुविधाजनक स्थिति तक ले जाएं। इसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं। इसके तुरन्त बाद चेहरे को बाएं कंधे की ओर ले जाएं। पांच सेकेंड तक इस स्थिति में रुककर वापस पूर्व स्थिति में आएं। अब सिर को पीछे की ओर आरामदायक स्थिति तक ले जाएं। थोड़ी देर इस स्थिति में रुकने के बाद पूर्व स्थिति में आएं। सिर को सामने की ओर न झुकने दें।

दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में गूंथकर हथेलियों को सिर के पीछे मेडुला पर रख कर हथेलियों से सिर को आगे की ओर तथा सिर से हाथों को पीछे की ओर पूरे जोर के साथ इस प्रकार दबाव दीजिए कि हाथ तथा सिर अपनी जगह से हिले-डुले नहीं। इस स्थिति में कुछ समय तक दबाव रखते हुए वापस पूर्व स्थिति में आएं।
इसके बाद, हथेलियों को माथे पर रख कर दबाव डालिए। अन्त में हथेलियों से ठुडी को पूरे जोर के साथ दबाएं। इन्हें पांच-पांच बार दुहराएं।

आसन
ऐसे लोगों को गरदन को आगे झुकाने वाले आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। रोग की गंभीर स्थिति में सबसे पहले फिजियोथेरेपी का सहारा लेना चाहिए। जब थोड़ा आराम मिल जाए तो वज्रासन, सर्पासन, मकरासन, भुजंगासन का अभ्यास करना चाहिए। जब दर्द बहुत कम हो जाए तो योग्य मार्गदर्शन में मत्स्यासन, सुप्त वज्रासन, सरल धनुरासन आदि को अभ्यास में जोड़ देना चाहिए।

मत्स्यासन की अभ्यास विधि
पैरों को सामने फैला कर जमीन पर बैठ जाएं। इसके बाद दाएं पैर को घुटने से मोड़ कर इसके पंजे को बाईं जांघ पर तथा बाएं पंजे को दाईं जांघ पर रखें। यह पद्मासन है। पद्मासन में बैठ कर दोनों हाथों के सहारे पीछे जमीन पर इस प्रकार लेटें कि सिर का ऊपरी भाग जमीन पर आ जाए। इस स्थिति में गरदन तथा रीढ़ जमीन से ऊपर वृत्ताकार होते हैं। दोनों हाथों से पैर के अंगूठों को पकड़ने का प्रयास करें। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुक कर वापस पूर्व स्थिति में आएं।

इन बातों का ध्यान रखें

गरदन पर पट्टा बांधना लाभदायक होता है।
कड़े बिस्तर पर सोना चाहिए तथा अधिक वजन नहीं उठाना चाहिए।
सिर को आगे की ओर झुका कर काम नहीं करना चाहिए।

Deep_
09-04-2015, 12:30 PM
ऐलोपैथी में इसका कोई इलाज नहीं है। दर्द से क्षणिक आराम के लिए वे दर्दनाशक गोलियाँ दे देते हैं, जिनसे कुछ समय तो आराम मिलता है, लेकिन आगे चलकर वे बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं और उनका प्रभाव भी खत्म हो जाता है।

दूसरे इलाज के रूप में डाक्टर लोग एक मोटा सा पट्टा गर्दन के चारों ओर लपेट देते हैं, जिससे सिर नीचे झुकाना असम्भव हो जाता है। लम्बे समय तक यह पट्टा लगाये रखने पर रोगी को थोड़ा आराम मिल जाता है, लेकिन कुछ समय बाद समस्या फिर पहले जैसी हो जाती है, क्योंकि अपनी मजबूरियों के कारण वे कम्प्यूटर का प्रयोग करना बन्द नहीं कर सकते।

लेकिन योग चिकित्सा में इसका एक रामबाण इलाज है। स्वामी देवमूर्ति जी, स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और स्वामी रामदेव जी ने इसके लिए कुछ ऐसे सूक्ष्म व्यायाम बताये हैं जिनको करने से इस समस्या से स्थायी रूप से मुक्ति मिल सकती है और रोगी सामान्य हो सकता है। इन व्यायामों को मैं संक्षेप में नीचे लिख रहा हूँ। इनका लाभ मैंने स्वयं अपनी सर्वाइकल स्पौंडिलाइटिस की समस्या को दूर करने में उठाया है और अन्य कई लोगों को भी लाभ पहुँचाया है। इन्हीं व्यायामों के कारण मैं दिन-रात कम्प्यूटर पर कार्य करने में समर्थ हूँ और कई दर्जन पुस्तकें लिख पाया हूँ।

व्यायाम इस प्रकार हैं-

ग्रीवा-
(1) किसी भी आसन में सीधे बैठकर या खड़े होकर गर्दन को धीरे-धीरे बायीं ओर जितना हो सके उतना ले जाइए। गर्दन में थोड़ा तनाव आना चाहिए। इस स्थिति में एक सेकेंड रुक कर वापस सामने ले आइए। अब गर्दन को दायीं ओर जितना हो सके उतना ले जाइए और फिर वापस लाइए। यही क्रिया 10-10 बार कीजिए। यह क्रिया करते समय कंधे बिल्कुल नहीं घूमने चाहिए।
(2) यही क्रिया ऊपर और नीचे 10-10 बार कीजिए।
(3) यही क्रिया अगल-बगल 10-10 बार कीजिए। इसमें गर्दन घूमेगी नहीं, केवल बायें या दायें झुकेगी। गर्दन को बगल में झुकाते हुए कानों को कंधे से छुआने का प्रयास कीजिए। अभ्यास के बाद इसमें सफलता मिलेगी। तब तक जितना हो सके उतना झुकाइए।
(4) गर्दन को झुकाए रखकर चारों ओर घुमाइए- 5 बार सीधे और 5 बार उल्टे। अन्त में, एक-दो मिनट गर्दन की चारों ओर हल्के-हल्के मालिश कीजिए।

कंधे-
(1) सीधे खड़े हो जाइए। बायें हाथ की मुट्ठी बाँधकर हाथों को गोलाई में 10 बार धीरे-धीरे घुमाइए। घुमाते समय झटका मत दीजिए और कोहनी पर से हाथ बिल्कुल मत मुड़ने दीजिए। अब 10 बार विपरीत दिशा में घुमाइए।
(2) यही क्रिया दायें हाथ से 10-10 बार कीजिए।
(3) अन्त में दोनों हाथों को इसी प्रकार एक साथ दोनों दिशाओं में 10-10 बार घुमाइए।

कंधों के विशेष व्यायाम-
(1) वज्रासन में बैठ जाइए। दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर सारी उँगलियों को मिलाकर कंधों पर रख लीजिए। अब हाथों को गोलाई में धीरे-धीरे घुमाइए। ऐसा 10 बार कीजिए।
(2) यही क्रिया हाथों को उल्टा घुमाते हुए 10 बार कीजिए।
(3) वज्रासन में ही हाथों को दायें-बायें तान लीजिए और कोहनियों से मोड़कर उँगलियों को मिलाकर कंधों पर रख लीजिए। कोहनी तक हाथ दायें-बायें उठे और तने रहेंगे। अब सिर को सामने की ओर सीधा रखते हुए केवल धड़ को दायें-बायें पेंडुलम की तरह झुलाइए। ध्यान रखिये कि केवल धड़ दायें-बायें घूमेगा, सिर अपनी जगह स्थिर रहेगा और सामने देखते रहेंगे। ऐसा 20 से 25 बार तक कीजिए।

इन सभी व्यायामों को एक बार पूरा करने में मुश्किल से 10 मिनट लगते हैं। इनको दिन में 3-4 बार नियमित रूप से करने पर स्पोंडिलाइटिस और सर्वाइकल का कष्ट केवल 5-7 दिन में अवश्य ही समाप्त हो जाता है। सोते समय तकिया न लगायें तो जल्दी लाभ मिलेगा।

rakeshkhare
12-04-2015, 10:37 PM
please send us gastric /vat symptoms & treatment

Arvind Shah
13-04-2015, 12:50 AM
स्पोडिलाईटिस और सवाईकल की समस्या के लिए बहुत ही अच्छी जानकारी दी दीपा भाई ! धन्यवाद!!