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View Full Version : गुरुमंत्र


sombirnaamdev
21-01-2012, 09:05 PM
आप सब ने नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे, बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें बहुत सही और प्रभावशाली मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे वे बातें दिमाग से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही हो जाता है।

इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से पाया जा सकता है।

हम महसूस करते हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा।

आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारे में सोचकर देखिए। आप यही पाएंगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।

आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियां अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती हैं।

इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुंचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।
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जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियां होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दीं।

वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहां कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुंढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।

क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।

इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुंचाती है।

सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुंचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।

आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा। यही वह व्यक्तित्व होगा, जो अपने परीक्षण की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरेगा-24 कैरेट स्वर्ण की तरह।

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आप पर निर्भर करते हैं परिणाम
अगर आपने ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब न केवल अच्छे विचार आएंगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएंगे। यह स्थिति आते ही आपके कार्यों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना आरंभ हो जाएगा। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आपमें स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा।

सकारात्मकता के कारण ही कंपनियां अपने कर्मचारियों को आगे बढ़ने का मौका देती हैं। यही नहीं, कंपनियां अब इस बात को पहले इंटरव्यू में ही जान लेती हैं कि आने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। क्या वह सकारात्मकता में विश्वास रखता है कि नहीं? वह नकारात्मक परिस्थितियों में किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है? क्या वह केवल दिखावे के लिए सकारात्मकता का चोला ओढ़े हुए है? कोई भी कंपनी ऐसा कर्मचारी नहीं रखना चाहती, जिसकी नकारात्मक विचारधारा हो। इसलिए 'थिंक पॉजीटिव...एक्ट पॉजीटिव'।

नकारात्मक सोच से ऐसे बचें
सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही रहता है, परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा वह कई बार अवसाद में भी चला जाता है।

ऐसी स्थिति से बाहर आने में काफी लंबा समय भी लग सकता है। नकारात्मकता से आखिर कैसे बचे? क्योंकि प्रोफेशनल वर्ल्ड में हमें तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है। साथ ही अपने आपको प्रतिस्पर्धा के इस युग में आगे बनाए रखने के लिए भी तरह-तरह के जतन करना पड़ते हैं। ऐसे में हम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखने के लिए स्वयं ही प्रयत्न कर सकते हैं।

परिस्थितियों को पहचानें
अक्सर हमारे मन में कोई भी आवश्यक कार्य या कोई बिजनेस मीटिंग के पूर्व नकारात्मक विचार आते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो? अगर मीटिंग सफल नहीं हुई तब? मेरा फर्स्ट इम्प्रेशन गलत पड़ गया तो फिर क्या होगा? इस प्रकार के प्रश्न मन में आते जरूर हैं। इनसे पीछा छु़ड़ाने के लिए इन बातों का अध्ययन करें कि आखिर ये प्रश्न कौन-सी परिस्थितियों में उपजते हैं। फिर इन समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिश करें, सकारात्मक सोच बनाए रखें।

इन परिस्थितियों में संभलना सीखें
जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे सही तरीके से सामना करना सीखें। इस बात की तरफ ध्यान दें कि इन परिस्थितियों के दौरान अब आप पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं देंगे और इस दौरान संयमित होकर स्वयं के सफल होने की ही कामना स्वयं से करेंगे। आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि जो नकारात्मक विचार आ रहे हैं वह धीरे-धीरे पॉजीटिव सोच मे बदल जाएंगे।

स्वयं से तर्क करना सीखें
नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें और अपने प्रयासों में सफलता हासिल करें।

sombirnaamdev
21-01-2012, 09:06 PM
वर्ष 2012 नई संभावनाओं और आशाओं को लेकर आपके सामने खड़ा है। वर्ष का प्रथम सप्ताह अपने आप में काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यहां से आप वर्ष को अपने तरीके से देख सकते हैं और अपने तरीके से प्लान भी कर सकते हैं। कई युवा साथी प्लान भी करते हैं। टारगेट भी सेट कर लेते हैं पर जब वर्ष का अंत आता है तब वे स्वयं को खाली पाते हैं। संकल्प लें और लक्ष्य ऐसा बनाएं कि उसे पूर्ण करने की ताकत स्वयं में हो।

कई युवा साथी लगातार एक ही परीक्षा पास करने के चक्कर में वर्षों व्यर्थ कर देते हैं। इतना ही नहीं नववर्ष के संकल्प में कई लोग शराब छोड़ने से लेकर तंबाखू, गुटखा नहीं खाने और अपने आप को सकारात्मकता की ओर ले जाने की बातें करते हैं। ढेर सारी पढ़ाई और माता-पिता के सपनों को पंख लगाने की बात करते हैं पर क्या सभी के सपने और संकल्प पूर्ण हो पाते हैं...निश्चित रूप से उत्तर है नहीं। सभी के सपने पूर्ण नहीं होते किसी के अधूरे रहते हैं। किसी के मंजिल पास आते-आते टूट जाते हैं और कई लोग सपने पूर्ण करने की दौड़ आरंभ ही नहीं कर पाते।

कई साथी केवल बातें करते हैं और संकल्प पूर्ण करने के लिए किसी भी तरह की मेहनत करने से कतराते हैं। दरअसल व्यक्ति का मन बड़ा विचित्र होता है वह अपनी सफलता प्राप्ति के लिए जरा सा सहारा भी मिल जाता है तब मानने लगता है कि सफलता मिल ही गई। जबकि वास्तविकता यह है कि जब तक व्यक्ति स्वयं मेहनत करने का संकल्प नहीं लेता उसे सफलता प्राप्ति के सपने पहले नहीं देखना चाहिए।

एक चिड़िया और उसके दो छोटे बच्चों की कहानी है जो काफी कुछ सिखाती है। एक बड़े से खेत के बीच एक चिड़िया ने घोंसला बनाया और उसमें दो अंडे दिए। उनमें से दो छोटे बच्चे निकले और चिड़िया प्रतिदिन खेत में और आसपास से उनके लिए खाना लाती थी। ऐसा सिलसिला काफी दिनों तक चला। बच्चे बड़े होने लगे थे परंतु इतने बड़े भी नहीं हुए थे कि उड़ सकें। कुछ दिनों बाद खेत में लगी फसल पकने को आ गई थी और इधर चिड़िया को भी चिंता होने लगी थी।

एक दिन जब चिड़िया घोसले में नहीं थी तब किसान अपने बेटे के साथ आया और कहने लगा कि बेटा फसल पक गई है हमें कुछ करना चाहिए। दोनों ने यह निश्चय किया कि गांववालों और अपने रिश्तेदारों की मदद से हमें फसल काटना चाहिए। यह बात सुनकर घोंसले में बैठे बच्चे घबरा गए और अपनी मां के आने का इंतजार करने लगे।

जब चिड़िया अपने घोंसले में आई तब दोनों बच्चों ने यह बात बताई कि जल्द ही फसल कटने वाली है किसान और उसका बेटा आया था। अब हमारा क्या होगा? चिड़िया ने बात समझी और कहा कि यह तो ठीक है पर वह फसल काटने के बारे में क्या बोले तब दोनों बच्चों ने कहा कि वे कह रहे थे कि गांववालों व और अपने रिश्तेदारों को फसल काटने के लिए लाएंगे। तब चिड़िया ने कहा कि डरने की जरूरत नहीं अभी फसल नहीं कटने वाली।

इस तरह काफी दिन बीत गए और कोई भी फसल काटने नहीं आया। कुछ समय बाद फसल इतनी पक गई थी कि दानें गिरने लगे। तब एक दिन किसान फिर अपने बेटे को लेकर आया। उसने फसल की स्थिति देखी और कहा कि बेटा कल हमें ही आना पड़ेगा और दोनों मिलकर फसल काटेंगे। चिड़िया जब घोसले में आई तब दोनों बच्चों ने यह बात जब चिडिया को बताई कि कल किसान और उसका बेटा स्वयं आकर फसल काटने वाले तब चिड़िया बोली कि अब हमें यहां से निकलना ही होगा। अब तुम दोनों उड़ने लायक भी हो गए हो। कल हिम्मत करो और यहां से निकलने का प्रयत्न करो।

दूसरे दिन किसान और उसका बेटा खेत पर आने से पहले चिड़िया और उसके दोनों बच्चे वहां से जा चुके थे। दोस्तो यह छोटी सी कहानी हमें यह सीख देती है कि संकल्प करें, उसके बारे में बातें भी करें पर जिसके लिए संकल्प लिया है उस कार्य को करने के लिए कमर कसें और असल में काम करके बताएं।

sombirnaamdev
21-01-2012, 09:07 PM
तय कीजिए कि अब से मन के आंगन में बस खूबसूरत यादों के फूल महकेंगे, दुःख, चिंता, तनाव और निराशा के साये से निकलकर आप नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे। दूसरों को अपने लिए दुःख पहुंचाने की वजह मानने की बात दिल से निकालकर अपने आप से खुश रहना सीखें।

जहर की शीशी फोड़ दो
यदि आपका अपनी बहन, भाई, सास, भाभी, देवर, पिता या किसी दोस्त से किसी छोटी-सी बात को लेकर झगड़ा हो गया है या आपके रिश्तों के बीच कोई तनाव चल रहा है तो इस जाते हुए साल के साथ उस तनाव को भी 'बाय-बाय' कह दीजिए। अपने दिल-ओ-दिमाग में भरी जहर की शीशी को फोड़ डालिए। यह जहर आपकी जिंदगी में फैले, इससे पहले बेहतर होगा कि आप इससे छुटकारा पा लें। तय कर लीजिए कि आने वाले साल में आप अपने रूठे हुए रिश्तेदारों को मनाकर एक नई शुरुआत करेंगे।

बुहार दो दिमाग का जंग
हम में से कई के दिमाग में कई पुरानी दुःख पहुंचाने वाली बातें कबाड़ की तरह साल-दर-साल इकट्ठी होती जा रही हैं। आपने कभी इस पर गौर ही नहीं किया कि इसकी वजह से आप अपने आपको, दिमाग को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। कोशिश करें कि इस साल के अंत तक आप अपने दिमाग में इकट्ठा यह सारा जंग साफ कर देंगे। गर आपके साथ किसी ने कोई धोखा, अविश्वास या बेईमानी की हो तो तमाम बातें भुलाकर बस भविष्य में सावधानी और समझदारी से काम करने की बात याद रखें।

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आजमाएं कुछ अटपटा
समय पर उठना फिर घड़ी की सुइयों की तरह उसी गति से अपने तयशुदा दायरे में काम करना। एक ही रास्ते से ऑफिस जाना, एक ही तरह के कपड़े पहनना और उन्हीं गिने-चुने लोग से मेल-मिलाप यानी सब कुछ एक जैसा...। इस एक ही तरह की दिनचर्या से आपको ऊब होने लगे इससे पहले आप अपनी एकरसता के घेरे से बाहर निकलिए।

छुट्टी के दिन घर में अटपटे-से कपड़े पहनिए, खाने में कुछ नया ट्राय करिए, आभासी दुनिया के दोस्तों की बजाए वास्तविक दुनिया के दोस्तों की लिस्ट बढ़ाइए और घूमने जाने के लिए भी कुछ नई जगह तलाशिए। तो फिर देर किस बात की, आने वाले साल में कुछ अटपटा करने की प्लानिंग अभी से कर लीजिए।

ढीली छोड़ो तनाव की रस्सी
वर्तमान की जीवनशैली के साथ तनाव भी मानो नत्थी हो गया है। घर और कार्यस्थल पर बढ़ते तनाव की वजह से दिनोदिन मानसिक बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। कई बार तो लोग बहुत छोटी-छोटी बातों की वजह से तनाव में आ जाते हैं। जब काम करना ही तो तनाव में रहकर क्यों किया जाए? आप खुशी-खुशी अपना काम करिए। तनाव की यह जो रस्सी आपने अपने इर्द-गिर्द बांधे रखी है, उसे ढीला छोड़ दीजिए। सच मानिए, इससे आप अच्छा महसूस करेंगे।

साथ रखें पेशंस की पुड़िया
आज सभी चाहते हैं कि उनका हर काम पलक झपकते ही हो जाए। नौकरी लगते ही लाखों का पैकेज और ऊंचा पद पाने की चाह, किसी ने कुछ कह दिया तो तुरंत प्रतिक्रिया देना, किसी भी बात पर नाराज हो जाना अधिकतर लोगों की आदत में शुमार हो चुका है। इस आदत की वजह से कई लोग बेवजह परेशानी मोल ले बैठते हैं। लाइफ में इन बेवजह की परेशानियों से बचने के लिए आने वाले साल से आप अपने साथ हमेशा पेशंस की पुड़िया रखें। यह आपको किसी दुकान पर नहीं मिलेगी। इसे आपको खुद बनाना होगा।

आगे पाठ-पीछे सपाट अच्छा है कभी-कभी
वैसे तो बच्चों को सिखाया जाता है कि आगे की पढ़ाई के साथ पीछे का भी याद रखें। लेकिन वास्तविक जिंदगी में आपके लिए कभी-कभी पिछली बातों को भूलना ठीक होगा। यदि कुछ बातें और यादें आपको परेशान करती हैं तो उन्हें भूलना ही बेहतर है। आप भी फिल्मी अंदाज में अपनी तमाम बुरी यादों को फ्लश करके चिंतामुक्त हो जाएँ। नया साल आपके लिए खुशियाँ लाए 'देन, वाय दिस कोलावेरी डी?'

sombirnaamdev
21-01-2012, 09:08 PM
स्टीव जॉब्स की जिंदगी ने दुनिया भर में करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है। उनके बातचीत करने का ढंग हो या प्रस्तुतिकरण की बात हो या फिर किसी भी उत्पाद को देखने और मार्केट करने का ढंग हो, सबकुछ बिलकुल अलग सोच लिए होता था। इसी अलग सोच ने उन्हें स्टीव जॉब्स बनाया। आइए जानते हैं कि स्टीव जॉब्स की सफलता के मूलमंत्र क्या थे।

वही काम करें जिससे आपको प्यार हो : स्टीव के अनुसार आप अगर अपने काम से प्यार करते हैं तब अच्छा है। दुनिया भर में कई लोग ऐसे हैं जो ऐसा काम कर रहे हैं जो उन्हें दिल से पसंद नहीं। अगर दुनिया भर में ऐसा हो जाए कि जिसे जो काम पसंद है वही करे तब दुनिया ही बदल जाएगी।

दुनिया को बताओ कि आप कौन हो : स्टीव के अनुसार दुनिया को पता चलना चाहिए कि आप कौन हैं और दुनिया को बदलने का माद्दा आपमें नहीं होगा तब तक दुनिया आपको नहीं पहचानेगी।

सभी क्षेत्रों में संबंध जोड़ें : जॉब्स ने अपने जीवनकाल में विभिन्न विषयों का अध्ययन किया। उन्होंने कैलिग्राफी भी सीखी और विभिन्न प्रकार के डिजाइन्स का अध्ययन किया। इतना ही नहीं उन्होंने हॉस्पिटेलिटी के क्षेत्र में भी हाथ आजमाए और उसका ज्ञान लिया। यह ज्ञान उन्हें बाद में काम भी आया।

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मना करना सीखें : स्टीव ने अपनी जिंदगी में मना करना खूब सीखा था और इसका फायदा भी उन्हें मिला था। जब वे 1997 में वापस एप्पल में आए थे तब कंपनी के पास 350 उत्पाद थे। मात्र दो वर्षों में उन्होंने उत्पादों की संख्या कम करके 10 कर दी। 10 उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया और सफलता भी पाई।

ग्राहकों को अलग तरह का अनुभव दो : स्टीव मानते थे कि जब तक आप अपने ग्राहकों को अलग तरह का अनुभव नहीं देंगे, वे आपके उत्पादों की तरफ आकर्षित बिलकुल भी नहीं होंगे। यही कारण था कि उन्होंने एप्पल स्टोर्स को कुछ अलग तरह का बनाया। जहा पर ग्राहकों के लिए अलग तरह का अनुभव था और एप्पल कंपनी के प्रति लोगों का भावनात्मक लगाव हो गया था।

अपनी बात रखने में पीछे न रहें : स्टीव के अनुसार अगर आपके पास अच्छे आइडियाज है और आप इसे सभी के सामने रख नहीं पाए तब ऐसे आइडियाज का क्या काम। स्टीव अपनी बात प्रेजेंटेशन के दौरान रखते थे और केवल अपनी बात नहीं रखते थे बल्कि प्रेजेंटेशन के माध्यम से वे कई तरह की बातें बताते थे जिससे प्रेरणा भी मिलती थी।

सपने बेचें...उत्पाद नहीं : स्टीव हर दम यही कहते थे की अपने ग्राहकों को उत्पाद नहीं सपने बेचो। उनके अनुसार आपके ग्राहकों को आपके उत्पाद के बारे में कोई मतलब नहीं है, उन्हें उनकी आशाओं और आकांक्षाओं से मतलब है और अगर आपने उनके सपनों को उत्पाद से जोड़ा तभी आपको सफलता मिलेगी।

sombirnaamdev
31-01-2012, 10:44 PM
गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥

आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥

ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥

sombirnaamdev
05-02-2012, 01:19 PM
'सादा जीवन, उच्च विचार', 'अहिंसा परमोधर्म' का संदेश देने वाले हमारे महान राष्*ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने सत्य के रास्ते पर चलते हुए देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचाया और अपने लक्ष्य को पाया। हम सब भी अपने जीवन में एक लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं। उन्हें मूर्त रूप देने के लिए हम अपनी तरफ से पूरा प्रयास भी करते हैं, लेकिन किसी को सफलता हाथ लगती है तो किसी को असफलता और किसी को आधी-अधूरी सफलता। यह सब हमारे विचारों, आदर्शों और मेहनत पर निर्भर करता है। गांधीजी ने अपने जीवन में कुछ आदर्शों को विशेष महत्व दिया जिनके बल पर उन्होंने विशिष्ट मुकाम हासिल किया।

वेबदुनिया की खास पेशकश, उनके गुरुमंत्र जो आज भी प्रासंगिक हैं:-

* गांधीजी ने हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलने की सलाह दी।

* राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा ही नई तालीम को जानने और उसे अपनाने के समर्थन में रहे।

* शाकाहारी भोजन को गांधीजी ने अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बना लिया था।

* गांधीजी ने भगवान महावीर के रास्ते पर चल कर त्याग को अपने जीवन में सदा अपनाए रखा और सादगी भरा जीवनयापन किया।

* महात्मा गांधी हर धर्म के प्रति विशेष आस्था रखते थे।

* गांधीजी ने सत्य की राह पर चल कर सत्याग्रह की नींव रखी। कठिन मोड़ आने पर भी उन्होंने सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ा।

गांधीजी के आदर्शों को हमने अब तक किताबों में पढ़ा, टीवी पर देखा और दूसरों से सुना था, लेकिन कभी उन पर पूरी रीति से अमल नहीं किया। गांधीजी की पुण्यतिथि पर वक्त है उन आदर्शों को एक बार पुन: स्मरण करने का और उन्हें पूर्णत: अपनाने का ताकि जिस भारत देश का उन्होंने सपना संजोया था उसे हम पूरा कर सकें और वही होगी हमारी ओर से बापू को सच्ची श्रद्धांजली।

sombirnaamdev
05-02-2012, 01:20 PM
आपने कितनी बार अपने आपसे ही यह कहा होगा 'जिस तरह से मैं योजना बनाता हूं, वह कभी काम नहीं आती', 'मैं कभी डेड लाइन पर काम पूरा नहीं कर सकूंगा', 'मैं हमेशा काम बिगाड़ देता हूं'। इस किस्म की बातें जो आप अपने अंदर ही अंदर करते हैं उनसे ज्यादा कोई दूसरी चीज आपके जीवन को दिशा नहीं देती। आपको पसंद हो या न हो, तथ्य यह है कि आप अपनी जीवन यात्रा अपने विचारों के अनुसार ही पूरी करते हैं। अगर आपके विचारों में उदासी और कष्ट भरे हैं तो आप उसी तरफ जा रहे हैं क्योंकि नकारात्मक शब्द आत्मविश्वास को ध्वस्त कर देता है। इससे न हौसला बढ़ता है और न मदद मिलती है।

अगर आप अच्छा महसूस करना चाहते हैं तो अच्छा सोचें भी। इस तरह से-

अपने विचारों को दुरुस्त करें
अपने नए थैरेपिस्ट से सुमन ने पहला वाक्या यह कहा- 'मैं जानती हूं आप मेरी मदद नहीं कर सकते डॉक्टर, मैं पूरी तरह से टूट चुकी हूं। मैं कार्यस्थल पर हमेशा गलतियां करती रहती हूं और मुझे यकीन है कि नौकरी से निकाल दी जाऊंगी। कल ही मेरे बॉस ने बताया कि मेरा ट्रांसफर हो गया है। उनके अनुसार यह प्रमोशन है, लेकिन अगर मैं अच्छा काम कर रही थी तो फिर ट्रांसफर क्यों किया?'

आहिस्ता-आहिस्ता सुमन की कहानी खुलने लगी। उसने दो साल पहले एमबीए किया था और उसे अच्छा वेतन मिल रहा था। जाहिर है यह असफलता नहीं थी। पहली मीटिंग के बाद सुमन के थैरेपिस्ट ने उससे कहा कि वह अपने विचारों को लिखे, विशेषकर रात में जब उसे सोने में कठिनाई हो रही हो। अगली मीटिंग में सुमन की सूची में शामिल था, 'मैं वास्तव में स्मार्ट नहीं हूं। मैं तुक्के में ही आगे बढ़ गई हूं। कल तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी क्योंकि अब से पहले मैंने कोई मीटिंग चेयर नहीं की है। आज सुबह बॉस ने मुझे बहुत गुस्से में देखा, मैंने क्या कर दिया था?'

सुमन ने स्वीकार किया, 'अकेले एक दिन में मैंने 26 नकारात्मक विचार लिखे। इसलिए आश्चर्य नहीं है कि मैं हमेशा थकान व डिप्रेशन महसूस करती हूं।' सुमन के डर और अंदेशों को जब जोर से पढ़ा गया तब उसे एहसास हुआ कि वह काल्पनिक हादसों पर कितनी अधिक ऊर्जा बर्बाद कर रही है। अगर आप उदास महसूस कर रहे हैं तो निश्चित रूप से आप अपने तक नकारात्मक संदेश पहुंचा रहे हैं। आपके सिर में जो शब्द उठ रहे हैं, उन्हें सुनो। उन्हें जोर से बोलो या लिख लो ताकि नकारात्मक विचारों को पक़डने में मदद मिले।

प्रैक्टिस करने से विचारों को बेहतर बनाने में आसानी हो जाती है। जब आप सड़क पर चल या ड्राइव कर रहे हों तो अपने खामोश ब्रॉडकास्ट को आप सुन सकते हैं। जल्द ही आपके विचार आपके इशारे पर चलने लगेंगे और आप अपने विचारों के अनुसार चलने से बच जाएंगे। जब ऐसा होने लगेगा तो आपकी भावनाएं और एक्शन भी बदल जाएंगे।

घातक शब्दों को निकालें
फरहाद की अंतरात्मा उससे कहती रहती थी कि वह केवल एक सचिव है। महेश को याद दिलाया जाता था कि वह बस एक सेल्समैन है। केवल या बस जैसे शब्दों से ये दोनों व्यक्ति अपने जॉब्स को हीन बना रहे थे। नतीजतन अपने आपको भी। इसलिए नकारात्मक शब्दों को जब आप अपने जीवन से निकाल देते हैं तो उस हानि से भी बच जाते हैं जो आप अपने ऊपर कर रहे हैं।

फरहाद और महेश के लिए दोषी शब्द 'केवल' और 'बस' थे। जब एक बार इन शब्दों को निकाल दिया जाए तो यह कहने में कुछ भी नुकसान नहीं है- 'मैं एक सेल्समैन हूं' या 'मैं एक सचिव हूं'। ये दोनों वाक्य सकारात्मक फॉलोअप के लिए द्वार खोल देते हैं जैसे- 'मैं तरक्की की राह पर हूं'।

विचार पर विराम लगाएं
जैसे ही कोई नकारात्मक संदेश आए उसे स्टॉप कहकर शॉर्ट सर्किट कर दें। 'मैं क्या करूंगा अगर...?' स्टॉप! थ्योरी की दृष्टि से स्टॉपिंग या रोकना एक साधारण तकनीक है। व्यवहार में यह इतनी आसान नहीं है जितनी प्रतीत होती है। रोकने के लिए आपको काफी हिम्मत दिखानी पड़ती है। जब आदेश दें तो अपनी आवाज को ऊंचा कर लें। कल्पना करें कि आप अपने अंतरमन के डर को दफन कर रहे हैं।

जब व्यक्ति डिप्रेशन के मूड में होता है तो उसे हर चीज खराब लगती है। इसलिए जब एक बार आप नकारात्मक विचारों पर स्टॉप कहकर विराम लगा दें तो उनकी जगह सकारात्मक विचार विकसित करें। इस प्रक्रिया को एक व्यक्ति ने इस प्रकार बताया, 'हर रात मैं अजीब किस्म के विचारों के साथ जागता रहता- क्या मैं अपने बच्चों पर बहुत कठोर हूं? क्या मैं अपने क्लाइंट को कॉल करना भूल गया? जब इस किस्म के विचारों से मैं बहुत परेशान हो गया तो मैंने उस समय को याद किया जब मैं अपनी बेटी के साथ जू में था। चिम्पांजी को देखकर मेरी बेटी कितनी खुश थी। उसका हंसता हुआ चेहरा देखकर मुझे नींद आ गई।'

दरअसल, जब लोग अलग तरह से सोचते हैं तो वे न सिर्फ अलग तरह से महसूस करते हैं बल्कि उनके एक्शन भी अलग तरह के होते हैं। दूसरे शब्दों में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि अपने विचारों को किस तरह नियंत्रित करते हैं। मिल्टन ने कहा- 'मन स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग कर सकता है'। विकल्प का चयन आपका है।

sombirnaamdev
05-02-2012, 01:21 PM
लोगों को अपनी समझ से अवगत कराने और उन्हें अपनी बात से सहमत कराने का गुण सफलता प्राप्त करने का एक मूल मंत्र है। किसी को अपनी बात से राजी करने और उसे परेशान करने में एक बारीक सा फर्क है। लोगों को अपने विचार समझा पाना वाकई एक *कठिन काम है। इसमें आपकी जरा सी एक चूक उस व्यक्ति को परेशान कर सकती है और वह आप पर झुंझला सकता है। नीचे लिखे कुछ आसान से टिप्स अपनाकर आप आसानी से लोगों को अपनी बात से सहमत कर सकते हैं।

1. पहले से करें तैयारी : सबसे पहले आप अपने विचारों और बातें को अच्छी तरह समझ लीजिए मसलन अगर आप किसी को इस बात से सहमत करना चाहते हैं कि एफिल टॉवर, स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से ज्यादा लंबा है तब इससे संबंधित सारे आंकड़े पता करें सिर्फ अंदाजा न लगाएं।

2. फील्ड को अच्छी तरह जानें : कुछ मामलों में आपको आंकड़ों से कहीं ज्यादा जानने की जरूरत रहती है। जैसे कि यदि आप यह साबित करना चाहते हैं कि स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी, एफिल टॉवर से ज्यादा सुंदर है तब इसके लिए आपको आकंड़ों के साथ-साथ उनके वास्तु-कला और सौंदर्य-शास्त्र की सारी जानकारी होना जाहिए जिससे आप अपनी बात को प्रभावी रूप से कह सकें।

इसी तरह यदि आप किसी कार को बेचना चाहते हैं तो आपको उस कार के साथ-साथ उसकी प्रतिस्पर्धी सारी कारों की संपूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।

3. नम्रतापूर्वक अपनी बात कहें : जहां तक संभव हो आई कॉनटेक्ट बनाए रखें, आपसी सम्मान की भावना बनाए रखें। *अगर किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि आप उसका सम्मान नहीं करते तब आप उसे कभी अपनी बात से सहमत नहीं करा सकते। इसलिए अपनी बातों को नम्रतापूर्वक कहें।

4. भरोसा हासिल करें : लोगों को अपनी बात से सहमत कराने के लिए जरूरी है उनका विश्वास जीतना, उन्हें भरोसा दिलाना कि जो आप कह रहे हैं वह सही है। इसके लिए जरूरी है कि आप विषय से संबं*धित सारी जानकारी एकत्रित कर लें।

5. ध्यान से सुनें : जिस व्यक्ति को आप सहमत करना चाह रहे हैं, उनकी बातों को भी सुनें, उनके *विचारों को भी समझें। उन्हें रियल फेक्ट्स के साथ उनके सवालों के जबाब दें।

6. संकेतों पर ध्यान दें : नॉन-वर्बल फीडबैक जैसे बात को सुनकर सिर हिलाने के संकेतों पर भी ध्यान दें।

7. अडिग रहें : अपने विश्वास पर अडिग रहें। दूसरों के विश्वास की कद्र करें। उन्हें विस्तारपूर्वक बताएं कि आपका यकीन आपके लिए इतना अहम क्यों हैं।

8. सरल अंदाज : अपनी बात को इस अंदाज में रखें कि लोगों को उसे समझने में आसानी हो।

9. फॉलो-अप जरूरी : बातचीत के बाद हमेशा फॉलो-अप लें। लोगों से सवाल करें ताकि आप जान सकें कि वे आपकी बात को पूरी तरह समझे हैं या नहीं।

sombirnaamdev
11-02-2012, 10:01 PM
ध्यान में रहे कि ग़लती करना यह सीखने का एक भाग है हेल्गा का अपना पहला जवाहिरात का भंडार स्थापित करने का प्रयास असफल रहा. अपने अनुभव का पुनरावलोकन करने के बाद, उस ने दूसरा जवाहिरात भंडार खोला. अब हेल्गा तीन सफल भंडारों की गर्वीली मालकिन है
हेल्गा अपने पहले प्रयास में असफल नहीं हुई. असफलता तब होती है जब हम कार्य छोड देते हैं या यत्*न करना बंद करते हैं. हेल्गा दीर्घोद्योगी है - "जारी-रखना-पन"
दीर्घोद्योग सफलता का गुरुमंत्र है. बिजली का दिया बनाने के हजार प्रयासों के बाद, थॉमस एडिसन ने कहा, "मैं असफल नहीं हुआ. मैं ने १०,००० ऐसे तरीके ढूँढ़े हैं जो काम के नहीं हैं." मारिओ लेमियक्स, हेलेन केलर, अब्राहम लिंकन, मेरी क्यूरी तथा अन्य महान सफलता प्राप्त लोगों की अनंत सूचि से मालूम होत है कि हरएक जो दीर्घोद्योगी है उसे सफलता हमेशा प्राप्त होती ही है.
वांछित जॉब या पदोन्*नति प्राप्त करना, या किसी व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने में कठिनाइयाँ होगी. लेकिन यह सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा है. अंततः, जो दीर्घोद्योग करते हैं, वे सफल होते हैं. वे अपनी ग़लतियों से सीखते हैं.
क्या आप दीर्घोद्योग करते हैं? या, अस्वीकृति या कठिनाइयाँ आने पर आप कार्य को छोड देते हैं?

sombirnaamdev
11-02-2012, 10:02 PM
लंबी आयु की कामना तो सभी करते हैं लेकिन क्या किसी को लंबी उम्र पाने का गुरुमंत्र पता है. जी हाँ, लंबी आयु का भी गुरुमंत्र होता है, सभी को उसके बारे में पता भी होता है लेकिन केवल कुछ ही को पता होता है कि ऐसा करने से उम्र बढ़ती है.

अमेरिका के एंटी एजिंग विशेषज्ञ डा एरिक ब्रावरमन का कहना है कि सेक्स एक ऐसा गुरुमंत्र है जिससे आयु बढ़ती है. सेक्स करने से हार्मोन में वृद्धि होती है जिससे लोगों का मेटाबोलिज्म सही ढंग से कार्य करता है, मस्तिष्क सामान्य रूप से कार्य करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति स्वस्थ रहता है और दीर्घायु होता है. डा. ब्रावरमन का यह भी कहना था कि इसके विपरीत अगर लोग अपने सेक्स जीवन से सुखी नहीं रहते तो इसका असर उनके निज़ी जीवन में भी पड़ता है जिससे तनाव बढ़ता है और तनाव मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला करता रहता है. इसके अलावा तलाक का एक बहुत बड़ा कारण है सेक्स लाइफ में तनाव आना.

सेक्स जीवन के सद्गुणों के बारे में बेलफेस्ट स्थित क्वीन यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया शोध भी कुछ तथ्य उजागर करता है. इस शोध के आंकड़ों से पता चलता है कि अगर लोगों का सेक्स जीवन सही ढंग से चलता है तो उससे उसके हृदयाघात और आघात होने की संभावना भी कम होती है.

इस शोध के अनुसार चरमोत्कर्ष संक्रमित कोशिकाओं को 20 फीसदी अधिक सुरक्षा प्रदान करता है. इसके अलावा एक दूसरे शोध से पता चलता है कि केवल युवा ही नहीं बल्कि अधेड़ उम्र के लोगों के जीवन में भी सेक्स लाइफ का बहुत अधिक महत्व होता है.

sombirnaamdev
11-02-2012, 10:06 PM
वाह क्या बात है बढ़िया...ऐसे ही सफलता प्राप्त करते रहो... मेहनत का फल मिला है आदि वाक्य किसी की सफलता प्राप्ति के बाद बोले जाते हैं। ऑफिस की बात हो या किसी की वैयक्तिक सफलता की बात हो, सफलता प्राप्त करने के बाद लोगों के तारीफ के तरीकों को लेकर कभी आपने सोचा है।

कई लोग बिना बात के भी खूब तारीफ करते रहते हैं। उनके अनुसार तारीफ करने से आप खुश रहेंगे और संबंध अच्छे बने रहेंगे, पर यह अच्छी दोस्ती के संकेत तो नहीं।

ऑफिस की बात करें, तब कई कर्मचारी अपने बॉस को हरदम खुश करने में लगे रहते हैं और उनकी यह तारीफ चापलूसी में बदल जाती है और बॉस को इस बात का एहसास भी नहीं रहता और इसी चापलूसी के कारण एक दिन बॉस को एहसास होता है कि इससे कार्य पर असर पड़ रहा है, पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है। तारीफ और चापलूसी में फर्क करते आना चाहिए और यह पहचानना जिसे भी आ गया, वह अपनी तरक्की का रास्ता स्वयं तय कर सकता है।

एक छोटी-सी कहानी है, जिसमें चापलूसी को बड़े ही सुंदर तरीके से बताया गया है। जंगल में सूखा पड़ा और जानवरों को खाने की मुश्किल होने लगी। हालात यह हो गए कि एक-एक टुकड़े के लिए झगड़े होने लगे। एक दिन एक सियार खाने की तलाश में निकला और काफी दूर तक चला गया, बावजूद इसके उसे खाने का कोई भी निशान तक नहीं मिला। वापस आते समय उसकी नजर एक पेड़ पर गई, जिस पर कौवा बैठा था।

कौवे के मुंह में खाने की बड़ी-सी वस्तु थी। सियार ने सोचा की चलो, यहीं से कुछ मिल जाए। वह पेड़ के नीचे पहुंचा और कौवे की तरफ देखने लगा और उसकी तारीफ करने लगा कि यह पक्षी अपने आप में इतना सुंदर है कि इसकी क्या बात की जाए। इसके पंख इतने अच्छे हैं और यह इतनी अच्छी आवाज निकालता है कि बाकी सभी पक्षी इसके आगे पानी भरते हैं।

पहले कौवे को कुछ असर नहीं हुआ, पर सियार ने इसके बाद आवाज को लेकर इतने कसीदे पढ़े कि कौवा अपनी तारीफ से फुला नहीं समाया और उसने मुंह खोल ही दिया। जैसे ही उसने मुंह खोला खाद्य पदार्थ नीचे गिरा, जिसे सियार ने तत्काल खा लिया और आगे चल पड़ा। कौवे ने जब यह देखा तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। दोस्तों दुनिया में आपकी तारीफ हो रही है, तब वह कौन, कैसे और कब कर रहा है? इस बात पर विचार करना जरूरी है।

इतना ही नहीं तारीफ और चापलूसी में फर्क करना आना ही चाहिए। कई लोग अपनी तरक्की केवल चापलूसी के कारण नहीं कर पाते, क्योंकि वे स्वयं भी आगे नहीं बढ़ना चाहते और दूसरों को भी आगे नहीं बढ़ने देना चाहते।

sombirnaamdev
11-02-2012, 10:06 PM
'डरना मनुष्य की आम प्रवृत्ति है और इस डर में भी उसे एक अलग तरह का सुख मिलता है डर का सुख। यह सुख और कुछ नहीं किसी बड़े काम या पहल न करने का सुख होता है। अगर आप कोई भी पहल करके या रिस्क लेकर काम न करेंगे तब जिंदगी में आगे ही नहीं बढ़ सकते परंतु मनुष्य प्रवृत्ति होती है कि किसी भी तरह के बदलाव को खासतौर पर जिसमें काफी सारी हिम्मत और रिस्क शामिल हो तब उस काम को नहीं करने का ही मन बना लेता है।

करियर की बात हो या जिंदगी में कुछ नया करने की बात हो मन में शंका उठना स्वाभाविक है और उस शंका का निवारण भी हमें ही करना होता है। कुछ साथी ऐसे होते हैं जो अपनी बात पर कायम रहते हैं फिर चाहे सफलता मिले या असफलता वे सबकुछ अपने दम पर अपनी हिम्मत पर करने का माद्दा रखते हैं। जबकि कुछ साथी किसी अन्य द्वारा भी जरा सी शंका जाहिर करने पर अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं जबकि वे स्वयं इस बात से आश्वस्त रहते हैं कि जो काम वे करने जा रहे हैं वह अच्छा है और ऐसा किया जाना चाहिए। परंतु केवल शंका भर जाहिर करने से सबकुछ मामला गड़बड़ हो जाता है।

किसी भी कार्य को करने के पहले योजनाबद्ध तरीके से चलना चाहिए और सोच-समझकर कार्य करना ही चाहिए पर कई बार ऐसी परिस्थितियां आन पड़ती हैं जब सोचने-समझने का समय नहीं बल्कि केवल निर्णय लेना होता है ऐसे समय व्यक्ति की असल परीक्षा होती है। व्यक्ति परिस्थितियों से डर बहुत जल्दी जाता है और कई बार जरा सी प्रेरणा ही उसे इन विपरित परिस्थितियों से सामना करने की प्रेरणा भी दे देती है।

'स्वामी विवेकानंद' जब देशाटन पर निकले थे तब काशी भी गए थे। दिन भर सत्संग चलता रहता था। विभिन्न आश्रमों में जाना लगा ही रहता था। स्वामीजी का नियम था कि प्रतिदिन अलग-अलग मंदिरों में दर्शन करने जाते थे। स्वामीजी खासतौर पर दुर्गा देवी के मंदिर जरूर जाते थे। एक दिन मंदिर से दर्शन कर बाहर आए और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े तब उनके पीछे बंदरों का झुंड लग गया।

स्वामीजी चोगा पहनते थे और बंदरों को लगा कि चोगे की जेबों में खाने के लिए कुछ रखा हो। स्वामीजी ने बंदरों के इस झुंड से पीछा छुड़ाने के लिए अपने कदमों को तेज कर दिया परंतु बंदर थे कि मान ही नहीं रहे थे वे और तेजी से आगे बढ़ते आ रहे थे। स्वामीजी ने कदम और तेज कर दिए और एक स्थिति ऐसी आ गई कि स्वामीजी को दौड़ लगाना पड़ी। वे काफी देर तक भागते रहे। अचानक एक मोड़ पर एक वृद्ध महात्मा सामने से आ रहे थे उन्होंने स्वामीजी की स्थिति देखी और कहा कि नौजवान, रुक जाओ, भागो नहीं बंदरों की ओर मुंह करके खड़े हो जाओ। इस वाक्य ने स्वामीजी को प्रेरणा दी और वे बंदरों की ओर मुंह करके खड़े हो गए।

यह देखकर बंदर ठिठक गए और कुछ ही समय में इधर-उधर हो गए। इस घटना से स्वामीजी ने भी प्रेरणा ली कि जब भी विपरित परिस्थितियां सामने हों तब उसके सामने मुंह करके खड़े हो जाओ और मन से डर निकालकर उनका सामना करोगे तब सफलता निश्चित है।

sombirnaamdev
11-03-2012, 02:53 PM
केन्द्र सेवा के एक अधिकारी सुबह सुबह मेरे घर पर विराजमान हुये उन्हें देखकर मैं हैरान हुआ व सोच में पढ गया कि ये महाशय यहां कैसे व किस कारण से पधारे हैं, चाय-पानी के दौरान मैंने पूछा कैसे आना हुआ, जवाब मिला गुरु जी मैं नया नया नौकरी में आया हूं मेरी प्रथम पोस्टिंग है आपके शहर में, मेरे पिता जी आपके बहुत बडे फ़ैन हैं आपकी लिखी हुई ऎसी कोई लाईन नहीं होगी जो उन्होंने पढी न हो !

जब मैं घर से निकला यहां ज्वाईनिंग के लिये तब पिता जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा - बेटा वहां पहुंच कर सबसे पहले आप से मिल लेना तथा नौकरी में सफ़लता का गुरुमंत्र ले लेना, सो आपके पास आया हूं गुरुमंत्र लेने ... अरे मैं कोई पंडित-वंडित नहीं हूं ... हां पता है आप एक जाने-माने लेखक हैं ... फ़िर मैं कैसे मंत्र दे सकता हूं ... मेरे पिता जी ने जब आपके पास भेजा है मतलब वो यह जानते व विश्वास रखते हैं कि आपसे ज्यादा अच्छा मुझे कोई दूसरा गुरुमंत्र नहीं दे सकता !

मैं चाहता हूं कि आप मुझे ऎसा मंत्र दें जिसे पाकर मैं सफ़लता ही सफ़लता प्राप्त कर सकूं ... चलो ठीक है तो सुनो ... देखो सामने जो मेरा कुत्ता बंधा है उसे गौर से देखो और आज से तुम कुत्ते को अपना आदर्श मान लो ... उसके पांच महत्वपूर्ण गुण अर्थात मंत्र तुम्हें बताता हूं गौर से सुनो ... पहला - तलुवा चाटना अर्थात पैर चटना ... दूसरा - दुम दबाना ... तीसरा - दुम हिलाना ... चौथा - गुर्राना अर्थात भौंकना ... पांचवा - काट लेना ...

... हर समय कुत्ते को अपने जहन में रखना तथा ये सोचना कि सामने जो व्यक्ति आया है ... उसके पैर चाटना हितकर होगा ... या उसके सामने दुम दबाना हितकर होगा ... या उसके सामने दुम हिलाना हितकर होगा ... या उसे गुर्राना-भौंकना हितकर होगा ... या फ़िर सीधा उसे काट लेना हितकर होगा ... जो तत्कालीन हालात में उचित लगे वैसा-वैसा करते जाना ... सफ़ल हो जाओगे अर्थात सफ़लता तुम्हारे कदमों को चूमेगी ... मेरी बातें अर्थात मंत्र तुम्हें जरा अट्पटा जरुर लग रहा होगा पर आज के युग में सफ़लता का यही मूल मंत्र है !

महाशय आशीर्वाद लेकर चले गये ... सोमवार टू सोमवार हर हफ़्ते आते और आशीर्वाद लेकर चले जाते ... सब मौजा-ही-मौजा ... लगभग तीन साल कैसे गुजरे पता ही नहीं चला ... फ़िर अचानक एक दिन चिंतित मुद्रा में नजर आये ... मैंने पूछा क्या हुआ ? ... कुछ नहीं गुरुजी सब ठीक चल रहा था एक छोटी सी गल्ती हो गई है मैंने एक ऎसे आदमी को काट खाया है जो सी.एम.साहब का पुराना खास आदमी है और सालों से उनके तलवे चाट रहा है और मुझे तो अभी जुम्मा-जुम्मा ही हुआ है !

उफ़ ... खैर कोई बात नहीं जिसको काटा है वह मरा तो नहीं ... नहीं लेकिन बहुत पावरफ़ुल है ... एक काम करो जो हो गया उसे मिटा तो नहीं सकते पर सुधार जरुर सकते हो, किसी माध्यम से जाओ उसके पास और तीसरा गुण अर्थात मंत्र - दुम हिलाना का पालन कर लो सब ठीक हो जायेगा ... लेकिन सिर्फ़ तीसरे मंत्र का ही पालन करना ... ठीक है गुरुजी ... प्रणाम !

... पन्द्रह दिन बाद ... गुरुजी आपके आशीर्वाद से सब ठीक हो गया मेरा प्रमोशन हो गया है और राजधानी में सी.एम.साहब ने मेरी पोस्टिंग कर दी है कह रहे थे तुम यहीं आकर काम करो ... आपके गुरुमंत्र ने मेरा जीवन ही सुधार दिया है मैं कहां-से-कहां पहुंच गया हूं जिसकी कल्पना करना भी असंभव था ... धन्य हैं मेरे पिता जी और उनकी दूरदर्शिता ... और धन्य हैं आप ... प्रणाम गुरुदेव ... प्रणाम !

sombirnaamdev
11-03-2012, 02:56 PM
खेल खेल में बैंकिंग और शेयर बाजार के गुरुमंत्र

हिसाब किताब की बात होती है तो युवा क्या, बड़े बड़े भी चकरा जाते हैं. इसीलिए कुछ जर्मन बैंक यूरोप के युवाओं के लिए खास कार्यक्रम चला रहे है जिसमें खेल खेल में बैंकिंग और शेयर बाजार से जुड़ी बारीकियां सिखाई जाती हैं.
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वित्तीय संकट के बाद तो जर्मनी के युवाओं को बैंकों और शेयर बाजार पर बहुत कम भरोसा रह गया है. लेकिन ऐसे तो बात नहीं बनेगी. इसीलिए यह खास कार्यक्रम तैयार किया गया है जिसमें जीतने वाली टीम को 800 यूरो का ईनाम भी मिलता है. 800 यूरो यानी लगभग 50 हजार रुपये.
शेयर बाजार की ए बी सी
इसके तहत बेहद दिलचस्प तरीके से नौजवानों को शेयर बाजार के काम करने के तौर तरीकों के बारे में बताता है. 12 से 25 साल की उम्र के लोगों को म्युचुअल फंड, शेयर बाजार और बैंकों से जुड़ी सभी तकनीकी और व्यवहारिक बातें बताई जाती हैं. वह भी
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बहुत ही आकर्षक और आसान शब्दों में. जर्मन शहर ड्यूसलडॉर्फ में शेयर बाजार के प्रमुख डिर्क एल्बर्सकिर्श कहते हैं, "मुझे लगता है कि युवा लोग शेयरों के बारे में ज्यादा बात नहीं करते हैं क्योंकि वे उसके बारे में ज्यादा नहीं जानते. अब हाल ही में हम वैश्विक संकट से उबरे हैं, तो लोग लगभग रोज ही अख़बार में पढ़ते हैं कि वित्त बाजार को कितनी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं और शेयर भी मार्केट का हिस्सा हैं."
एल्बर्सकिर्श मानते हैं कि वित्त बाजार के बारे में युवाओं को समझाया जाना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि कैसे शेयर बाजार से जुड़े जोखिमों को कम कर सकते हैं. खास कर हमेशा निवेश को अलग अलग क्षेत्रों में लगाया जाए ताकि खुद करके सीखने की इस प्रक्रिया में कोई बड़ा नुकसान न हो.
फायदा ही फायदा
श्पार्कासे बैंक जर्मनी और यूरोप में इस कार्यक्रम को 1983 से चला रहा है. इस खेल के तहत एक टीम में छह से आठ बच्चे होते हैं. हर टीम को काल्पनिक तौर पर 50 हजार यूरो दिए जाते हैं और अगर कॉलेज के छात्र हैं तो हर टीम को एक लाख यूरो दिए जाते हैं. हर टीम को 10 हफ्तों के समय के दौरान इन पैसों को वित्त बाजार में लगाना होता है. इस कार्यक्रम से जुड़ी ड्यूसलडॉर्फ के श्पार्कासे में मिशाएल होमायर कहती हैं, "वे अपने हिसाब से म्यूचुअल फंड खरीद सकते हैं, बेच सकते हैं. और इसे लंबे समय तक अपने पास रख सकते हैं. फायदे के लिए कारोबार कर सकते हैं. इस तरह वे खेल खेल में शेयर बाजार के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं."
असल जीवन की तरह ही यहां कारोबार होता है. मसलन शेयर बाजार खुलता और बंद होता है. उसी तरह डिपो खुलने की घोषणा की जाती है और भागीदारों के पास 200 म्यूचुअल फंड के कारोबार का विकल्प होता है. अब वे अपनी पसंद की कंपनी का म्युचुअल फंड खरीदते हैं या फिर अपने जानकारी के मुताबिक बाजार का विश्लेषण करके कारोबार कर सकते हैं, यह उन पर निर्भर करता है. अगर वे चाहें तो अपने टीचर या श्पार्कासे के सलाहकार से मशिवरा कर सकते हैं. आखिरी दिन तक जो टीम सबसे ज्यादा मुनाफा कमाती है, उसे विजेता घोषित किया जाता है. विजेता टीम को इनाम के तौर पर 800 यूरो दिए जाते हैं.
निवेश का गुरुमंत्र
वैसे इनाम से कहीं बड़ी बात यह है कि इस तरह युवाओं को शेयर बाजार और बैंकिंग का अनुभव मिलता है. इस खेल में हिस्सा लेने अर्थशास्त्र अंटोनियो होफर कहते हैं, "किसी छात्र का वाकई यह सपना होता है कि उसे बाजार में निवेश करने के लिए एक लाख यूरो मिले और इस खेल में ये आपके पास होते हैं. आप उसका स्वतंत्र रूप से निवेश कर सकते हैं और अपने हिसाब कारोबार कर सकते हैं. यह बहुत अच्छी बात है कि इस तरह का खेल आयोजित किया जा रहा है. इसमें हमें पता चलता है कि हमारी सीमाएं कहां तक हैं किस तरह पैसे का उपयोग करना है और क्या इसका फायदा हो सकता है. इससे मुझे यह भी अनुभव मिलता है कि जब मैं व्यक्तिगत तौर पर शेयर मार्केट में काम करूंगा, तो मुझे कितना फायदा हो सकता है और मैं कैसे ठीक से निवेश करूं."
खेल में तो अंटोनियो को इनाम नहीं मिला, लेकिन इससे शेयर बाजार में निवेश करने और लाभ कमाने की उनकी इच्छा किसी भी तरह कम नहीं हुई. खेल खेल में सीखी हुई बातों को अब वह असल जिंदगी में उतारना चाहता है.

sombirnaamdev
11-03-2012, 02:58 PM
टैक्स गुरू सुभाष लखोटिया जी से जानिए टैक्स की बारीकियां और टैक्स से जुड़ी उलझनों पर सुझाव -

सवाल : व्यक्ति जिस घर में रह रहा है, उस घर पर टैक्स की देनदारी कैसे बनती है?

सुभाष लखोटिया : व्यक्ति जिस घर में रह रहा है, उस घर पर कोई टैक्स नहीं लगता है। हालांकि अगर एक से ज्यादा घर हो तो घर की कीमत पर टैक्स लग सकता है। टैक्स के लिहाज से सिर्फ एक घर रखना बेहतर होगा। दूसरा घर हो तो उसे किराए पर देना अच्छा विकल्प है।

सवाल : कमोडिटी मार्केट में 50,000 रुपये का नुकसान हुआ है। क्या इसे इनकम से घटाकर छूट ले सकते है?

सुभाष लखोटिया : कमोडिटी मार्केट में हुआ नुकसान स्पेकुलेटिव लॉस कहलाएगा। स्पेकुलेटिव लॉस सिर्फ स्पेकुलेटिव इनकम से घटाया जा सकता है।

सवाल : अपनी खेती की जमीन बेचकर मकान खरीदते हैं, तो क्या किसी भी तरह का टैक्स देना होगा?

सुभाष लखोटिया : खेती की जमीन बेचकर घर खरीदने पर किसी भी तरह की टैक्स की देनदारी नहीं बनती है। पुरानी प्रॉपर्टी बेचकर नई प्रॉपर्टी में निवेश करने पर टैक्स नहीं लगता है।

सवाल : क्या खुद के घर पर वेल्थ टैक्स देना पड़ेगा?

सुभाष लखोटिया : वेल्थ टैक्स कानून के तहत एक घर जिसमें आप रहते हैं, उस पर वेल्थ टैक्स की छूट होती है। एक से ज्यादा घर तो बाकी घरों की कीमत के मुताबिक वेल्थ टैक्स लगेगा। ध्यान रखें कि अगर संपत्ति 30,00,000 रुपये से ज्यादा हो तो ही वेल्थ टैक्स लग सकता है। अगर दूसरा घर साल में 300 दिन से ज्यादा किराए पर दिया तो वेल्थ टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती है।

सवाल : पिताजी ने साल 1980 में मकान खरीदा था, जो मेरे और मेरे भाई के नाम पर था और उस समय हम दोनों छोटे थे। लेकिन अभी जो हम रेग्युलर रिटर्न फाइल करते है, उसमें कई भी मकान के बारे में नहीं बताया है। अगर हम भाई अभी उस मकान को बेचते है, तो क्या उसको व्यक्तिगत आय समझा जाएगा? साथ ही लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कैक्युलेट कैसे होगा?

सुभाष लखोटिया : पिता ने प्रॉपर्टी अपने बेटों को गिफ्ट की है, तो प्रॉपर्टी रिटर्न में नहीं दिखाई तो कोई परेशानी की बात नहीं है। प्रॉपर्टी बेचने पर जो भी मुनाफा मिलेगा वो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहलाएगा और साथ ही कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स का फायदा भी मिलेगा।