View Full Version : वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:13 PM
वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग के क्रियाकलापों को समझाने वाला कंप्यूटर चिप बनाया
लंदन। अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसे कंप्यूटर चिप बनाए हैं, जो इंसानों के दिमाग की नकल कर इसके क्रियाकलापों को समझने में काफी सहायक हो सकते हैं। जर्मनी स्थित हिडेलबर्ग विश्वविद्यालय के कार्लहेंज मीयर ने बताया, ‘हमारे इस तंत्र में आप सीधे तौर पर तंत्रिका कोशिकाओं का अनुभव कर सकते हैं।’ ‘स्पाइके’ नाम के इस चिप में ‘तंत्रिका कोशिकाओं’ जैसे 400 सर्किट लगाए गए हैं। इस चिप के जरिए तंत्रिका कोशिकाओं में संकेतों के जरिए इस्तेमाल होने वाले संचार को समझा जा सकता है।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:14 PM
‘दिमाग को अच्छे हालत में बनाए रखना है, तो पढना-लिखना जारी रखें’
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन में कहा गया है पढाई, लिखाई और शतरंज जैसे खेल खेलने के मानसिक क्रियाकलापों से उम्रदराज लोगों का दिमाग अच्छे हालात में बना रहता है। अमेरिका के शिकागो स्थित इलिनोएस प्रौद्योगिकी संस्थान और रश विश्वविद्यालय मेडिकल सेंटर के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि इस तरह की गतिविधियों से दिमाग स्वस्थ्य स्थिति में बना रहता है। इस अनुसंधान की जानकारी रेडियोलॉजिकल सोसाइटी आॅफ नार्थ अमेरिका में प्रकाशित की गई है।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:15 PM
मोटापा कम करने में सहायक हो सकते हैं प्रोबायोटिक पदार्थ
न्यूयार्क। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जीवित कीटाणुयुक्त पूरक खाद्य पदार्थों (प्रोबायोटिक) से मोटापा कम किया जा सकता है। ‘लाइवसाइंस’ पत्रिका के अनुसार कनाडा के मैनिटोबा विश्वविद्यालय स्थित अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया है कि ऐसे प्रोबायोटिक पदार्थ वसा को इकट्ठा होने से रोकते हैं और मोटा कम करने में सहायक हो सकते हैं। मुख्य अनुसंधानकर्ता पीटर जोन्स ने कहा कि आम तौर पर हम सारे आहार को खपा लेते हैं, लेकिन प्रोबायोटिक अत्याधिक कैलोरी की खपत रोकते हैं और उसे मल के रास्ते बाहर निकालने में मदद करते हैं।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:15 PM
‘मानव मस्तिष्क, इंटरनेट एवं ब्रह्मांड का संरचना एक जैसी’
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन में पाया गया कि ब्रह्मांड की संरचना एवं विकास उसी तरह हुआ जिस तरह मानव मस्तिष्क और इंटरनेट। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ब्रह्मांड की संरचना तथा इसके विकास संबंधी नियमों मानव मस्तिष्क एवं इंटरनेट जैसे जटिल नेटवर्क के बीच काफी समानताएं हैं। यह पहले सोची गयी समानताओं के स्तर से काफी ज्यादा हैं। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा कराये गये अध्ययन के सह लेखक दिमित्री क्रियूकोव ने कहा, ‘हम किसी भी तरह से यह दावा नहीं कर सकते कि ब्रह्मांड एक वैश्विक मस्तिष्क या एक कंप्यूटर है।’ विश्वविद्यालय के एक बयान में क्रियूकोव ने कहा, ‘लेकिन ब्रह्मांड के विकास एवं जटिल नेटवर्कों के विकास के बीच पता लगायी सम तुलना इस बात का मजबूती से संकेत देती है कि इन विभिन्न जटिल प्रणालियों की गतिशीलता को संचालित करने वाले नियम समान हैं।’
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:16 PM
अपने मोटापे को लेकर खुश हैं अधिकतर अमेरिकी : अध्ययन
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिका के अधिकतर लोग अपने मोटापे को लेकर खुश हैं, लेकिन इसे मानने से इनकार करते हैं। ‘डिस्कवरी समाचार’ के अनुसार गैलप ने एक सर्वेक्षण के दौरान पाया कि ‘थैंक्सगिविंग’ के दौरान अमेरिकी लोगों ने जानबूझ कर अपने आहार में मौजूद कैलोरी पर ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2010 के एक अनुसंधान के अनुसार लगभग 40 फीसदी मोटी महिलाएं खुद को अपेक्षाकृत कम मोटी मानती हैं।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:16 PM
अब ऐसी चॉकलेट जो भीषण गर्मी में भी नहीं पिघलेगी
लंदन। अब एक ऐसी चॉकलेट जो तापमान का ‘मुकाबला’ करने में सक्षम है। कनफेक्शनरी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी कैडबरी ने ऐसी चॉकलेट विकसित की है, जो 40 डिग्री सेल्सियस में भी पिघलेगी नहीं। जल्द ही यह चॉकलेट भारत जैसे गर्म देशों में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। ब्रिटेन के बॉर्नविले के कैडबरीज अनुसंधान एवं विकास संयंत्र के वैज्ञानिकों नई चॉकलेट बार 40 डिग्री के तापमान में भी तीन घंटे तक पिघलेगी नहीं। ‘डेली मेल’ की खबर के अनुसार कैडबरीज के इंजीनियरों ने 8,000 शब्द के पेटेंट आवेदन में तापमान को सह सकने वाली चॉकलेट बनाने के बारे में जानकारी दी है। वहीं जहां आम मानक चॉकलेट 34 डिग्री तक तापमान झेल सकती हैं यह नई चॉकलेट ज्यादा गर्म तापमान में भी चल सकती है। यह नई चॉकलेट भारत और ब्राजील जैसे गर्म देशों में जल्द उपलब्ध होगी।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:16 PM
वैज्ञानिकों ने हर्पीयस विषाणु के अज्ञात प्रोटीनों का पता लगाया
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने हर्पीयस विषाणु जीनोम का अनुक्रम तैयार किया है और सैकड़ों अज्ञात प्रोटीनों की पहचान की जिससे विषाणु की जटिल कार्यविधि की अच्छी समझ बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा। मार्टिनश्रीड के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट आफ बायोकेमिस्ट्री और कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने दिखाया है कि इस विषाणु के जीनोम के बारे में पहले जितना सोचा जाता था, उससे काफी अधिक सूचना है। उल्लेखनीय है कि दुनिया की 80 फीसदी से अधिक जनसंख्या हर्पीयस विषाणु से ग्रस्त है । यह विषाणु नवजात शिशुओं और कमजोर प्रतिरोधक तंत्र वाले व्यक्तियों में कई रोग पैदा करता है। वैसे तो अनुसंधानकर्ताओं ने 20 साल पहले ही हर्पीयस विषाणु जीनोम का अनुक्रम तैयार कर लिया था और मान बैठा था कि विषाणु जितने प्रोटीन बनाता है, उन सभी का वे अनुमान लगा लेंगे। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने जीनोम की सूचना का ज्यादा सटीकता से विश्लेषण किया है। यह अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
Dark Saint Alaick
25-11-2012, 10:17 PM
आइंस्टीन और न्यूटन की बुद्धिमत्ता के पीछे दिवास्वप्न
लंदन। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि आइंस्टीन और न्यूटन सहित वैज्ञानिकों ने जो महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सफलताएं अर्जित की उनमें से कुछ का कारण था कि उन वैज्ञानिकों ने अपनी बुद्धिमत्ता को कल्पना की उड़ान भरने से नहीं रोका। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा द्वारा कराये गये एक नये अध्ययन के अनुसार वैज्ञानिकों ने पाया कि सामान्य काम करने से हमे दिवास्वप्न देखने का मौका मिलता है। हमारे दिमाग में चलने वाले जटिल सवालों का हल खोजने में इन दिवास्वप्न की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार अल्बर्ट आइंस्टीन और आइसेक न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने जो महत्वपूर्ण खोज की हैं उनमें से कुछ इसलिए संभव हो पायी क्योंकि उन लोगों की बुद्धि ने अपने दिमाग को भटकने दिया। अध्ययन में दिखाया गया कि जब लोगों ने काम को बीच में रोका और कोई आसान काम करने के बात उन्होंने कोई मुश्किल काम किया तो उनका प्रदर्शन करीब 40 प्रतिशत बढ गया। अध्ययन के प्रमुख लेकर बेंजमिन बेयर्ड ने कहा कि कई प्रभावशाली वैज्ञानिक चिंतकों ने दावा किया कि उनके प्रेरणापद क्षण वे हुआ करते हैं जब विचारों या किसी ऐसी गतिविधि में संलग्न होते है। यह गतिविधियां या विचार उन समस्याओं से जुड़े नहीं होते है जिसके समाधान का वह प्रयास कर रहे होते हैं।
Dark Saint Alaick
27-11-2012, 11:15 PM
हब्बल दूरबीन ने वलयाकार आकाशगंगा की खोज की
वाशिंगटन। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने नासा-ईएसए के हब्बल दूरबीन के माध्यम से नयी ढीली-ढाली वलयाकार आकाशगंगा का पता लगाने का दावा किया है जिसमें गैस और धूल भरे हैं। नासा ने एक बयान में कहा कि हाइड्रा के दक्षिणी छोर पर ईएसओ 499-जी37 नामक आकाशगंगा है। यूरोपीयन साउदर्न आब्जर्वेटरी और उप्पसाला आब्जेर्वेटरी ने मिलकर ईएसओ 1 मीटर स्कीमडिट दूरबीन के माध्यम से इसका पता लगाया। आकाश गंगा की भुजाओं में विशाला मात्रा में गैस और धूल हैं और बहुधा ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां नये तारे लगातार बनते रहते हैं। आकाशगंगा का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है उसका चमकता लंबा केंद्रक। उभरा हुए केंद्रीय क्षेत्र में तारों का सबसे अधिक घनत्व है जहां तुलनात्मक दृष्टि से बड़ी संख्या में ठंडे पुराने तारे हैं। कई वलयाकार आकाशगंगाओं में एक साझा लक्षण है - उनके केंद्र के आरपार आती जाती छड़ जैसी आकृति। इसके बारे में माना जाता है कि यह भुजाओं से केंद्र की ओर गैस खींचती है और तारे का निर्माण तेज होता है। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि ईएसओ 499-जी37 का केंद्रक छड़ जैसी इसी आकृति का है।
Dark Saint Alaick
27-11-2012, 11:17 PM
तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकती है अर्द्धअनिद्रा की समस्या : विशेषज्ञ
लंदन। आजकल बहुत से लोग अर्द्ध अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं और निद्रा विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह तनाव और तकनीक का अधिक प्रयोग करना है। विशेषज्ञों का दावा है कि अनिद्रा के शिकार लोगों के मुकाबले अर्द्ध अनिद्रा के शिकार लोग टुकडों में नींद लेते हैं और उनकी नींद रात में कई बार उचटती है। ऐसा उन दिनों में खासकर होता है जब वे ज्यादा व्यस्त होते हैं या किसी तरह के तनाव से गुजरते हैं। एक भारतीय मूल के विशेषज्ञ ने इसे ‘फिजी स्लीप’ की संज्ञा दी है। लंदन के निद्रा विशेषज्ञ और ‘टायर्ड बट वीयर्ड’ पुस्तक की लेखिका डॉ. नेरिना रामलखन ने कहा, ‘यह कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है लेकिन मरीजों का कहना है कि वे अपने सिर में कुछ इसी तरह की समस्या का अनुभव करते हैं। वे सोते तो हैं लेकिन चैन की नींद नहीं होती। इसमें उनका दिमाग बहुत क्रियाशील रहता है जिससे बेचैनी बनी रहती है।’ डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार इस तरह की अवस्था को अनिद्रा की समस्या की छोटी बहन कहा जा सकता है लेकिन यह अनिद्रा की तरह हानिकारक नहीं होती। अर्ध अनिद्रा से पीड़ित लोग हर रात कम से कम 30 मिनट जागते रह जाते हैं या उनके लिए एक घंटे तक सोना असंभव हो जाता है क्योंकि उनका दिमाग इधर उधर भटक रहा होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल के कारण लोगों में अर्ध अनिद्रा की स्थिति तेजी से बढ रही है। लोगों की थकान से संबंधित परेशानियों को दूर करने वाली एक सलाहकार संस्था ‘द एनर्जी प्रोजेक्ट’ के अध्यक्ष जीन गोम्स ने कहा, ‘हमने 30,000 पीड़ितों पर पांच साल तक शोध किया, संभवत: तकनीक ही इसका प्रमुख कारण है।’
Dark Saint Alaick
27-11-2012, 11:18 PM
विनाशकारी भृंग के चलते ब्रिटिश कोलंबिया में गर्मी का तापमान एक डिग्री बढा
लंदन। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि चावल के दाने के आकार के एक नन्हे से भृंग ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में विशाल वनक्षेत्र का नाश कर वहां गर्मियों के तापमान में एक डिग्री का इजाफा कर दिया। डेली मेल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों का कहना है कि पेड़-पौधों से हवा में जाने वाले पानी की मात्रा कम कर भृंग ने स्थानीय जलवायु को प्रभावित किया है। रिपोर्ट के अनुसार सूर्य की उर्जा से पानी के वाष्पीकरण होने के बजाय जमीन की सतह का तापमान बढा। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि सतही उर्जा संतुलन बादल निर्माण और बारिश के रूझान में तब्दीली ला सकता है। भृंग से समूचे प्रांतीय ब्रिटिश कोलंबिया के करीब 20 फीसद को प्रभावित किया है। यहां करीब पाइन के दो लाख 72 हजार वर्ग किलोमीटर वन है।
Dark Saint Alaick
27-11-2012, 11:18 PM
बहुत ज्यादा या बहुत कम श्रम घुटना के लिए है खराब: अध्ययन
वाशिंगटन। बहुत अधिक या बहुत कम शारीरिक श्रम से प्रौढावस्था में घुटने की उपास्थियों का क्षरण तेज हो सकता है। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है। सान फ्रांसिस्को के कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएसएफ) के अनुसंधानकर्ताओं को पहले शारीरिक एवं उपास्थि क्षरण के बीच संबंध नजर आया था। नये अध्ययन के लिए यूसीएसएफ के अनुसंधानकर्ताओं ने चार साल तक प्रौढ लोगों में घुटना उपास्थि में बदलाव का अध्ययन किया। उन्होंने घुटने में प्रारंभिक क्षरणात्मक उपास्थि बदलाव शुरू होने के लिए एमआरआई आधारित टी 2 प्रणाली का उपयोग किया। अनुसंधानकर्ताओं ने 45 से 60 साल तक के लिए 205 मरीजों की स्थिति का मूल्यांकन किया। अध्ययन के नतीजे के अनुसार ऐसा जान पड़ता है कि दौड़ने जैसे अधिक श्रम वाली गतिविधियां करने वाले लोगों में अधिक उपास्थि क्षरण होता है और उनमें आस्टियोअर्थराइटिस का अधिक जोखिम होता है। उसी तरह कम श्रम वालों में भी ऐसा ही खतरा होता है। यह अध्ययन रेडियोलोजिकल सोसायटी आॅफ नोर्थ अमेरिका की वार्षिक बैठक में पेश किया गया।
Dark Saint Alaick
27-11-2012, 11:18 PM
87 फीसदी भारतीय मानते हैं कि जानवरों को भी इंसानों के बराबर अधिकार हैं : अध्ययन
नई दिल्ली। एक नए अध्ययन के अनुसार भारत के अधिकतर लोग जानवरों के अधिकारों के प्रति जागरुक हैं और यह मानते हैं कि उनका संरक्षण महत्वपूर्ण है। वर्ल्ड सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन आफ एनीमल्स (डब्ल्यूएसपीए) की ओर से आज राजधानी दिल्ली में जारी इस नए अध्ययन में कहा गया है कि 87 फीसदी भारतीय लोग यह मानते हैं कि जानवरों के भी उतने ही अधिकार हैं, जितने इंसानों के लिए हैं। इसके अलावा 73 फीसदी भारतीय यह मानते हैं कि ‘जानवरों के प्रति लोगों का व्यवहार हमारे समाज में एक गंभीर चुनौती है।’ साथ ही डब्ल्यूएसपीए ने भालुओं के संरक्षण एवं भारत में भालुओं के नाच के पेशे को खत्म कराने के प्रयास में अपने योगदान पर भी चर्चा की। संस्था के मुख्य कार्यपालक अधिकारी माइक बेकर ने कहा कि डब्ल्यूएसपीए ने भालुओं के नाच कराने के पेशे से जुड़े लोगों को जागरुक बनाने और उन्हें अन्य रोजगार मुहैया कराने के भी कदम उठाए हैं। संस्था की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सरकार ने भी उसके इस योगदान को माना है और इस संदर्भ में एक नया ‘नेशनल बीयर कंजरवेशन एंड वेलफेयर एक्शन प्लान’ शुरू किया है। बेकर ने कहा, ‘भारत के लोगों में जानवरों के अधिकारों के प्रति जागरुकता काफी उत्साहवर्धक है। भारत में जानवरों के संरक्षण के अपने अभियान की सफलता ने हमें बहुत खुशी है।’ इस अध्ययन को पूरा करने में ‘ग्लोबन स्कैन’ और ‘टीएनएस ग्लोबल’ नाम की अनुसंधान संस्थाओं ने भी योगदान दिया है।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 12:00 AM
जीवनशैली की वजह से बढ रहे हैं पथरी के मामले
नई दिल्ली। ज्यादा समय तक टीवी, कंप्यूटर या वीडियोगेम में उलझे रहना, तले भुने एवं वसा युक्त आहार का सेवन, मोटापा, पानी कम पीने जैसी आदतों के चलते पथरी के मामले बढ रहे हैं। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में यूरोलॉजिस्ट डॉ राजीव सूद ने बताया ‘पथरी बनने के कारण कैल्शियम की जमावट, मूत्राशय की नलिका में रूकावट आदि हैं। इसका संबंध हाइपर पैराथायरॉइडिजम से भी होता है। यह अंत:स्त्रावी ग्रंथियों से जुड़ी एक विकृति है जिसकी वजह से पेशाब में कैल्शियम की मात्रा बढ जाती है। यदि यह कैल्शियम पेशाब के साथ बाहर निकल जाए तो बेहतर है वर्ना यह गुर्दे की कोशिकाओं में एकत्र होता रहता है और पथरी का रूप ले लेता है।’ उन्होंने बताया ‘पेशाब में कैल्शियम की अधिकता हाइपरकैल्सियूरिया कहलाती है। यह समस्या अत्यधिक कैल्शियम वाले आहार के सेवन से होती है। कैल्शियम आग्जेलेट या फॉस्फेट के कण अत्यधिक मात्रा में हों तो वह पेशाब के जरिये पूरी तरह नहीं निकल पाते और एक जगह एकत्र होने लगते हैं। यही कण पथरी का रूप ले लेते हैं।’ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रवि मलिक ने बताया ‘पथरी बच्चों को भी होती है। अनुवांशिकी भी पथरी के 60 फीसदी मामलों का एक कारण होती है। अगर परिवार में किसी को सिस्टीन्यूरिया या प्रायमरी हाइपरोक्सैल्यूरिया हो तो पथरी होने की आशंका बढ जाती है। ऐसे बच्चों को पेशाब में अमीनो अम्ल, सिस्टीन या आग्जेलेट की अधिकता के कारण पथरी हो सकती है।’ डॉ मलिक ने बताया ‘पथरी होने पर टमाटर, पालक, आलू आदि नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि इनसे आॅग्जेलेट की मात्रा बढती है। पथरी से बचने के लिए अत्यधिक मात्रा में पानी पीना जरूरी है क्योंकि गुर्दे की लगातार फ्लशिंग जरूरी है। शरीर में पानी की कमी होने से कोशिकाएं आंत से आग्जेलेट शोषित करने लगती हैं जो नुकसानदायक होता है। महिलाएं अक्सर इस झिझक के कारण पानी अधिक नहीं पीतीं कि टायलेट जाना पड़ेगा। लेकिन इससे समस्या हो सकती है।’ बत्रा हॉस्पिटल में वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ प्रीतपाल सिंह ने बताया कि तरल पदार्थों जैसे नारियल का पानी, सामान्य पानी, फलों का जूस आदि का अधिक मात्रा में सेवन, नमक तथा तले भुने पदार्थों का कम सेवन, अत्यधिक शारीरिक सक्रियता आदि से पथरी की समस्या से बचा जा सकता है।’ डॉ सिंह ने कहा ‘हर घंटे कम से कम 200 मिली पानी पीना चाहिए ताकि गुर्दे में नियमित पानी पहुंचता रहे और कोशिकाओं को भी पानी की कमी न होने पाए। शारीरिक सक्रियता की वजह से शरीर में पानी की खपत अधिक होती है और प्यास भी लगती है। जो पानी हम पीते हैं वह विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद पेशाब के रूप में बाहर निकलता है और यह व्यवस्था गुर्दे के लिए अत्यंत जरूरी है।’ उन्होंने बताया कि जिन लोगों को एक बार पथरी हो चुकी हो उन्हें दोबारा यह समस्या हो सकती है। ऐसे लोगों को रेड मीट, पालक, टमाटर, आलू, चाय, कॉफी, चावल, नमक आदि के सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए। जिन लोगों को कैल्शियम स्टोन हो उन्हें दूध और इसके उत्पादों से बचना चाहिए क्योंकि इनमें कैल्शियम अधिक होता है।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 12:01 AM
एक बूंद खून या लार से मलेरिया का पता लगा लेगी नयी जांच
लंदन। अनुसंधानकर्ताओं ने एक नयी सस्ती प्रणाली विकसित की है, जिससे सिर्फ एक बूंद खून या लार के जरिए मलेरिया का पता लगाया जा सकेगा। इस प्रणाली के इस्तेमाल में कम संसाधनों वाले इलाकों में विशेष तौर पर प्रशिक्षित लोगों और महंगे उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ेगी। डेनमार्क स्थित आरहस विश्वविद्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार यहां के अनुसंधाकर्ताओं की ओर से विकसित यह प्रणाली प्लाजमोडियम पैरासाइट में टोपोआईसोमरेज1 नाम के एनजाइम की गतिविधियों को दर्ज करेगी। इस प्रणाली का नाम रोलिंग सर्किल एनहांस्ड एनजाइम एक्टिविटी डिटेक्शन (आरईईएडी) रखा गया है।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 11:50 AM
वैज्ञानिकों ने कणों के टकराव से एक नए तत्व के निर्माण की संभावना जताई
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि ‘हिग्स बॉसम’ या ‘हिग्स कण’ का पता लगाने के लिए एलएचसी का इस्तेमाल कर विभिन्न कणों के बीच कराए गए टकराव के कारण ‘कलर ग्लास कंडेनसेट’ नाम के एक नए तत्व का निर्माण हो गया है। अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) न्यूज के अनुसार स्विटजरलैंड में जिनेवा के पास स्थित एलएचसी में प्रोटोन और अन्य कणों के बीच हुए टकराव के बाद बने कुछ तत्यों में आश्चर्यजनक बर्ताव देखा गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य बर्ताव की जगह इन कणों ने एक दूसरे के साथ एक ही मार्ग पर जाना शुरू कर दिया। एमआईटी में भौतिकी के प्रोफेसर गुंथेर रोलैंड ने बताया कि ये कण एक ही दिशा में जाने लगे, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन कणों ने कैसे एक दूसरे के साथ संपर्क बनाया।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 11:52 AM
आइंस्टीन के मस्तिष्क का आकार औसत लेकिन ‘असाधारण रूप से जटिल’
लंदन ! वैज्ञानिकों का दावा है कि भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन के मस्तिष्क का आकार औसत ही था लेकिन उसमें बड़ी संख्या में ऐसे मोड़ (फोल्ड) थे जिससे इस वैज्ञानिक को ‘असाधारण तरीके से’ सोचने की क्षमता हासिल हुई होगी। नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक का मस्तिष्क 240 भागों में बंटा था और 1955 में उनके निधन के बाद इन्हें शोधकर्ताओं में बांटा गया। ज्यादातर नमूने खो गये और शरीर के इस भाग की संरचना के बारे में बहुत कम लिखा गया। ‘द टेलीग्राफ’ ने खबर दी कि वैज्ञानिकों ने आइंस्टीन के मस्तिष्क की तस्वीरों का उपयोग किया। पैथोलाजिस्ट थामस हार्वे के निजी संग्रह से ली गई तस्वीरों ने आइंस्टीन के मस्तिष्क के बारे में कई विशेष जानकारियां दीं। इससे पता चला कि 85 अन्य मस्तिष्कों की तुलना में आइंस्टीन के मस्तिष्क का आकार सामान्य था और इसका वजन 1230 ग्राम था। इसके कुछ भागों में ज्यादा संख्या में मोड़ (फोल्ड एंड ग्रूव्स) हैं।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 11:52 AM
पांच में से एक रूसी मनचाही नौकरी वास्ते सेक्स के लिये तैयार
मास्को। यदि मनमाफिक नौकरी मिलती हो तो हर पांच में से एक रूसी व्यक्ति नियोक्ता के साथ सेक्स के लिये तैयार है। रूस की समाचार एजेंसी रिया नोवोत्सी ने रोजगार देने वाली एक कम्पनी की वेबसाइट रोबोटा डाट मेल डाट आरयू जाब एग्रिगेटर के सर्वेक्षण के हवाले से आज यह खबर दी। हालांकि मनचाही नौकरी पाने के इच्छुक 65 प्रतिशत व्यक्तियों ने इस तरीके को जायज नहीं माना है लेकिन ।5 प्रतिशत का कहना है कि यदि वे नौकरी दिलाने वाले को पसंद करते हैं तो वे उसके साथ सेक्स करना पसंद करेंगे और पांच प्रतिशत का जवाब था कि मनचाही नौकरी मिलती हो तो वह इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। वेबसाइट ने 3360 रूसी कर्मचारियों के सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि मनपसंद नौकरी के इच्छुक 29 प्रतिशत पुरषों का कहना था कि वे बेडरूम के रास्ते रोजगार पाना चाहते हैं लेकिन महिलाओं में सिर्फ नौ प्रतिशत ने ही इस तरह नौकरी पाने को उचित बताया। स्वच्छंदभोगी कर्मचारी वर्ग में सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी शामिल थे। इनमें रोजगारविहीन के मुकाबले किसी यौनाचारी के साथ सोने के लिए 17 प्रतिशत राजी थे जबकि केवल ।। प्रतिशत सेक्स के जरिए रोजगार पाने के इच्छुक थे। मनमाफिक नौकरी पाने के लिए सेक्स का रास्ता अख्तियार करने के इच्छुक लोगों की इंजीनियंरिंग क्षेत्र में संख्या नौ प्रतिशत और प्रबंधकों में चार प्रतिशत थी। इलेक्ट्रीशियन, बढई, क्लर्क या निजी गार्ड इस रास्ते को अपनाने के इच्छुक दिखाई नहीं दिए। पांच प्रतिशत व्यक्तियों ने बताया कि उन्होंने नौकरी पाने के लिए फ्लर्ट तो किया लेकिन इसके लिए किसी के साथ हमबिस्तर नहीं हुए जबकि चार प्रतिशत लोगों का कहना था कि वे नौकरी हासिल करने के लिए भर्ती करने वाले के साथ सोना तो चाहते थे लेकिन वे उस दिशा में कदम बढाने का साहस नहीं कर सके।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 01:57 PM
सास-ससुर में छुपा है खुशहाल वैवाहिक जीवन का राज
लंदन। जो पति अपने सास ससुर के साथ मधुर सम्बंध बनाकर रखते हैं उनका अपनी पत्नी से तलाक होने की आशंका 20 फीसदी कम हो जाती है। दो दशकों तक किए गए अध्ययन के बाद यह नतीजा निकाला गया है। लेकिन महिलाओं के साथ इसका उलटा है। जो बहुएं अपने सास-ससुर के साथ मधुर सम्बंध बनाए रखती हैं उनकी अपने पति से तलाक होने की आशंका 20 फीसदी अधिक रहती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जो पत्नियां अपने सास-ससुर को पसंद करती हैं, उनके लिए सीमाएं तय करना मुश्किल हो जाता है और आने वाले सालों में वे महसूस करती हैं कि सब कुछ घालमेल हो गया है। डेली मेल में यह खबर प्रकाशित हुई है। यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन के शोधकर्ताओं ने 26 सालों से अधिक समय तक एक ही नस्ल के 373 दंपतियों का अध्ययन किया। उन्होंने अध्ययन के बाद पाया कि जो पति अपनी सास के साथ अच्छे सम्बंध बनाकर रखते हैं उनकी पत्नियां उनसे खुश रहती हैं और दोनों के बीच प्रेम बढ़ता है। ये सभी दंपती 25 से 37 आयु वर्ग के थे और 1986 में जब शोध शुरू किया गया तो इनकी शादियों को सालभर ही हुआ था। मनोचिकित्सक और शोध प्रोफेसर डॉ. टेरी ओरबुच ने कहा कि इसका कारण यह होता है कि महिलाओं के लिए रिश्ते बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। उनकी पहचान एक मां और एक पत्नी के रूप में उनके अस्तित्व के केंद्र में होती है। वे अपने सास-ससुर की कही बातों को एक पत्नी और एक मां के रूप में अपनी पहचान में हस्तक्षेप के रूप में देखती हैं। इसमें पत्नियों को सलाह दी गई है कि वे अपनी शादी के बारे में सूचनाएं साझा करने में सावधानी बरतें, ताकि घर का हर सदस्य एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान कर सके। दूसरी ओर पतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने सास-ससुर को ‘विशेष और महत्वपूर्ण’ मानें।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 07:46 PM
सबसे शक्तिशाली ‘क्वेजार’ धमाका पहचाना
इसकी ऊर्जा सूर्य से बीस खरब गुना ज्यादा
सेंटियागो। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने अब तक के सबसे शक्तिशाली ‘क्वेजार’ धमाके की पहचान की है। इस धमाके से उन महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पहला प्रमाण मिला है जो बताते हैं कि ब्रह्मांड ने किस तरह आकार ग्रहण किया। ‘क्वेजार’ ऐसे आकाशीय पिंड हैं जो दिखने में असाधारण रूप से चमकदार तारों की तरह हैं, लेकिन अब अंतरिक्ष यात्रियों का मानना है कि क्वेजार तारे नहीं हैं और वे अपनी शक्ति नई-नई बनी हुई आकाशगंगाओं के केन्द्र में स्थित ब्लैक होल्स से लेते हैं। दक्षिणी यूरोप में स्थित वेधशाला की चिली में स्थापित विशाल दूरबीन से ऊर्जा की एक किरण की पहचान की गई। यह अध्ययनों में अब तक देखी गई किसी भी किरण से पांच गुना ज्यादा बड़ी थी। नए विश्लेषण में ऊर्जा के भारी बहाव की पहचान की गई। यह ऊर्जा सूर्य की ऊर्जा से बीस खरब गुना ज्यादा थी। यह ऊर्जा अब तक ज्ञात क्वेजार एसडीएसएस जे1106प्लस1939 की ऊर्जा से 400 गुना ज्यादा है। वर्जीनिया तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता नाहुम अरव ने कहा कि मैं ऐसी किसी चीज की तलाश में पिछले एक दशक से था। पहले कभी पूर्वानुमानित ऐसे भारी प्रवाह देखना वाकई रोमांचकारी है। चूंकि क्वेजार हमसे बहुत दूर हैं, इसलिए उनके प्रकाश को सबसे शक्तिशाली दूरबीन तक पहुंचने में भी अरबों साल लग जाते हैं। बहुत दूर स्थित ये क्वेजार ब्रह्मांड के इतिहास की झलक दिखाते हैं। ब्लैक होल्स में ऊर्जा की मात्रा होने के कारण क्वाजेर के इर्द-गिर्द भी कुछ ऊर्जा होती है। वे इसे ब्रह्मांड में वापस तेज गति से फेंक देते हैं। अंतरिक्ष विज्ञानी बताते हैं कि ऊर्जा के ये प्रवाह कुछ बड़ी आकाशगंगाओं के होने को समझने में मदद करते हैं। साथ ही इनसे यह भी समझा जा सकता है कि किसी आकाशगंगा का द्र्रव्यमान उसके केंद्रीय ब्लैक होल से कैसे जुड़ा रहता है। अरव ने कहा कि पहली बार क्वेजार से ऊर्जा के प्रवाह का आकलन किया गया है जो सिद्धांतों में पूर्वानुमानित उच्च ऊर्जा का एक प्रकार है। क्वेजार एसडीएसएस जे1106प्लस1939 की खोज तो पहले ही की जा चुकी थी, लेकिन पहली बार इससे होने वाले प्रवाह का ठीक आकलन विस्तार से किया गया है।
Dark Saint Alaick
29-11-2012, 07:46 PM
जन्म लेने के लिए स्विट्जरलैंड सबसे अच्छा स्थान
लंदन। हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2013 में स्विट्जरलैंड विश्वभर में जन्म लेने के हिसाब से सबसे अच्छा स्थान रहेगा। इस अध्ययन में भारत को 66वें और ब्रिटेन को 27वें स्थान पर रखा गया है। स्विट्जरलैंड में जन्म लेने वाले बच्चे काफी खुश रहेंगे और धन, स्वास्थ्य तथा सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास के मामले में विश्व की सबसे अच्छी गुणवत्ता प्राप्त करेंगे। स्कैंडिनेवियाई देशों के नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क को भी अगले साल जन्म लेने वाले बच्चों के जीवन सूचकांक सम्बंधी गुणवत्ता के मामले में शीर्ष पांच में रखा गया है। इकोनॉमिस्ट की सहयोगी कंपनी द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) ने यह पता लगाने का प्रयास किया है कि कौन सा देश आने वाले दिनों में स्वास्थ्य, सुरक्षा और समृद्ध जीवन के मामले में सबसे अच्छा अवसर प्रदान करेगा। सूचकांक में व्यक्तिपरक जीवन संतुष्टि सर्वेक्षण के परिणामों को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण में लोगों ने देशों में जीवन की गुणवत्ता के बारे में बताया। यहां पर धनी बनना सबसे महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन इसमें अपराध सहित, सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में विश्वास और परिवारिक जीवन का स्वास्थ्य और अन्य तथ्य शामिल हैं। कुल मिला कर इस सूचकांक में 11 तथ्यों का अन्वेषण किया गया है।
Dark Saint Alaick
30-11-2012, 11:09 AM
ज्यादा मर्दाना गठन वाले पुरूषों के बजाय पतले पुरूष हैं महिलाओं की पसंद
न्यूयार्क। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि महिलाओं को कुछ ज्यादा ही मर्दाना दिखने वाले पुरूषों की तुलना में थोड़े पतले पुरूष ज्यादा आकर्षित करते हैं। पहले मर्दाना दिखने को एक ऐसी खासियत माना जाता था जो महिलाएं अपने होने वाले साथी में देखना चाहती हैं लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि टेस्टोस्टीरोन का स्तर वजन और मर्दाना झलक से संबंधित था। ऐसे में उनके अनुसार, आकर्षण में वजन की ज्यादा अहम भूमिका हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका में शोधकर्ताओं ने पाया कि हालांकि महिलाएं किसी पुरूष के चेहरे और शरीर को ज्यादा बेहतर तरीके से प्रतिक्रिया देती हैं, और वे अपनी धारणाएं बनाते हुए मोटापे और पतलेपन में से किसी एक की ओर इशारा करती हैं न कि मर्दाना झलक पर। इस प्रयोग में पाया गया कि ज्यादा मजबूत प्रतिरक्षात्मक क्षमता वाले पुरूषों में कमजोर प्रतिरक्षा वाले पुरूषों के मुकाबले एंटीबॉडी का निर्माण ज्यादा होता था। प्रयोग के नतीजे में पाया गया कि मोटापन (खासकर चेहरे पर) का संबंध एंटीबॉडी के निर्माण और आर्कषण से था। दक्षिण अफ्रीका के प्रेटोरिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक विनेट कोत्जी ने लाइव साइंस को बताया, ‘मोटापन प्रतिरक्षा का एक मजबूत सूचक है क्योंकि इसका संबंध सेहत और प्रतिरक्षात्मकता से होता है।’ उन्होंने कहा, ‘पुरूष का वजन उनकी प्रतिरक्षात्मक क्षमता और आकर्षण क्षमता के बीच संबंध को मर्दाना झलक के मुकाबले ज्यादा बेहतर ढंग से दिखाता है।’
Dark Saint Alaick
30-11-2012, 11:10 AM
समय की बर्बादी है गृहकार्य : अध्ययन
लंदन। गृहकार्य क्या समय की बर्बादी है? जी हां, हाल में किये गये एक नये अध्ययन के मुताबिक अधिक गृहकार्य आपको बेहतर परिणाम देने में सहायक नहीं है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में दसवीं जमात के 18,000 से अधिक छात्रों को शामिल किया। अध्श्श्न का उद्देश्य यह पता लगाना था कि घर में अतिरिक्त पढाई से क्या परीक्षा परिणाम पर कोई असर पड़ता है। डेली मेल में प्रकाशित खबर के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक गृह कार्य करने से बच्चों को मानक परीक्षा में भले ही मदद मिलती हो, लेकिन इससे उनके ग्रेड पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अमेरिका में शर्लट्सविल स्थित वर्जिनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक गृहकार्य में की जाने वाली मेहनत बेहतर गे्रड पाने में मददगाार नहीं होती है।
Dark Saint Alaick
30-11-2012, 11:10 AM
पुरूष बना लेते हैं महिलाओं को मुस्कान का कायल
लंदन। पहले कहा जाता था कि महिलाएं मुस्कुराकर अपना काम करवाना जानती हैं लेकिन एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि पुरूष किसी महिला को देखकर मुस्कुरा दें तो वे बाकी पुरूषों के मुकाबले उनसे मनचाहा काम करवाने में ज्यादा सक्षम हैं। तीन प्रयोगों में शोधकर्ताओं ने इस बात का अध्ययन किया कि किसी पुरूष की मुस्कान का उसके बारे में महिला की धारणा पर और उसकी अपनी भावभंगिमाओं पर कैसा प्रभाव पड़ता है। इस प्रयोग में कई जगह पुरूष प्रभावी भूमिका में था और वह महिलाओं को निर्देश देता था। प्रयोग में पाया गया कि अगर वह महिलाओं को देखकर मुस्कुरा देता था तो महिलाएं उसकी बात अधिकतर मान ही लेती थीं। डेलीमेल की खबर के अनुसार, यह बात तब भी लागू थी जब वह मुस्कुराने के बाद कोई बेहद कामुक बात भी बोल जाए। स्पेन के ग्रानादा विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जब पुरूष महिलाओं को देखकर मुस्कुराते हैं तो वे ज्यादा विनम्र रूप से पेश आती हैं। शारीरिक भावभंगिमाओं की जानकार पैटी वुड ने कहा कि इस अध्ययन के निष्कर्ष थोड़ा परेशान करने वाले भी थे क्योंकि महिलाएं पुरूषों की तुलना में अपने फैसले करने के लिए शारीरिक भंगिमाओं पर ज्यादा निर्भर करती हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर कही जा रही बात और शारीरिक हाव भाव में तालमेल नहीं होगा तब भी महिलाएं शरीर की ओर ही देखेंगी। अगर उन्हें मुस्कान नजर आती है तो उन्हें यह बातचीत बहुत मित्रवत लगती है।’ महिलाओं को सलाह देते हुए वुड कहती हैं कि उन्हें अपने व्यवहार के प्रति सचेत रहना चाहिए और पुरूष की सिर्फ शारीरिक भाव भंगिमाओं पर ही गौर नहीं करना चाहिए। जो महिलाएं पुरूषों की मुस्कान के बहकावे में नहीं आना चाहतीं उन्हें पुरूष से मिलते समय मिलने की वजह को पूरी तरह याद रखना चाहिए। साथ ही वह कहती हैं कि बहुत ज्यादा मुस्कुराने से आप खुद भी बचें। उन्होंने कहा, ‘जवाब देने से पहले पुरूष के मौखिक संदेश पर गौर करें, कि आखिर कहा क्या गया है। अगर वह कुछ कामुक बात कहता है और आप उस पर मुस्कुरा देती हैं तो इसका अर्थ है कि वह ऐसी बातें कर सकता है।’
Dark Saint Alaick
01-12-2012, 12:12 AM
बड़ी बीमारियों से बचना हो तो सेब खाना न भूलें
नई दिल्ली। एंटी आक्सीडेंट से भरपूर सेब में कई बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता होती है क्योंकि कोशिकाओं की सामान्य गतिविधियों के दौरान आक्सीडेशन की प्रक्रिया को नुकसान से बचाव में एंटी आॅक्सीडेंट मददगार होते हैं। सेब में एंटी आक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं जिनके कारण यह फल कैंसर, मधुमेह, अल्झाइमर, पार्किन्सन जैसी समस्याओं से बचाव कर सकता है। एम्स में आहार विशेषज्ञ अनुजा अग्रवाल ने बताया कि सेब में पेक्टिन नामक रेशा भरपूर मात्रा में होता है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। यह बात बहुत ही कम लोगों को पता होगी कि सेव चबा कर खाने से मुंह में लार बनने की प्रक्रिया तेज होती है जिससे बैक्टीरिया का स्तर घटता है और दांतों का सड़ना कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि रेशा यानी फाइबर पार्किन्सन रोग से बचाव में उपयोगी होता है और सेब में फाइबर भरपूर होता है। सेब में फ्लैवोनोल तथा ट्राइटेरपेनोइड्स भी होते है जो जिगर, गुदा और स्तन में कैंसर उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं की गतिविधियों को रोकते हैं। मेदान्ता मेडिसिटी में आहार विशेषज्ञ गीतिका सिंह ने बताया कि दिन में एक सेब का सेवन टाइप 2 मधुमेह के खतरे को 28 फीसदी कम करता है। इसमें पाये जाने वाले घुलनशील फाइबर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करते हैं। ये फाइबर आंत में वसा को तोड़ते हैं और कोलेस्ट्राल के स्तर को भी घटाते हैं। कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होने से यह धमनियों की दीवार पर नहीं जमता और रक्त का प्रवाह निर्बाध बना रहता है। सेब के इसी महत्व को देखते हुए कुछ देशों में एक दिसंबर को ‘ईट अ रेड एप्पल डे’ मनाया जाता है। गीतिका ने बताया कि सेब के छिलके में फेनोलिक पाया जाता है जो कोलेस्ट्रोल का स्तर कम करता है। धमनियों की दीवार कोलेस्ट्राल जमने से मोटी हो जाती है और हृदय में रक्त प्रवाह बाधित होता है जिसकी वजह से कोरोनरी आर्टरी की समस्या होती है। बत्रा हॉस्पिटल में यूरोलॉजिस्ट डा प्रीतपाल सिंह ने बताया कि सेब पित्ताशय में पथरी बनने से भी रोकता है। अक्सर मोटे लोगों के पित्ताशय में कोलेस्ट्राल अधिकता में जम जाता है और पथरी का रूप ले लेता है। फाइबरयुक्त आहार के सेवन से पित्ताशय की पथरी की समस्या से बचा जा सकता है। ऐसा आहार वजन तथा कोलेस्ट्राल को भी नियंत्रित रखता है और सेब में यह गुण पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि सेब खाने से उन्हें अपच की शिकायत हो जाती है। यह एक भ्रांति मात्र है। सेब के रेशे शरीर से या मल से अतिरिक्त पानी को शोषित कर लेते हैं जिससे अपच या अतिसार की समस्या नहीं होती तथा पेट भी ठीक रहता है। अनुजा के अनुसार शरीर में पाए जाने वाले विषैले तत्व हटाने की जिम्मेदारी जिगर की होती है। सेब के घुलनशील रेशे इस काम में बेहद मददगार होते हैं। उन्होंने कहा कि सेब में पाया जाने वाला क्वेरसेटिन एंटीआॅक्सीडेंट शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है। इसकी वजह से तनाव के दौरान नुकसानदायक हारमोन का स्राव भी कम होता है। एंटीआॅक्सीडेंट गुण की वजह से यह मोतियाबिंद की रोकथाम भी कर सकता है।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:47 PM
क्रिसमस की तैयारी पर 12 दिन, 14 घंटे और 13 मिनट लगते हैं
लंदन। क्रिसमस साल में भले ही एक बार आता है लेकिन 25 दिसंबर के इस उत्सव की तैयारी में बिल्कुल 12 दिन, 14 घंटे और 13 मिनट लगते हैं। एक नये अध्ययन में पाया गया है कि 25 दिसंबर के लिए खरीदारी से लेकर उपहार तक, साज सज्जा से लेकर क्रिसमस डिनर पकाने तक विभिन्न परिवार करीब करीब दो सप्ताह लगा देते हैं। कैम्ब्रिज न्यूज की खबर के मुताबिक एक खुदरा कारोबारी के अध्ययन में पाया गया है कि ब्रिटेन में एक औसत परिवार क्रिसमस के लिए अगस्त के अंतिम सप्ताह में योजना बनाना और धन बचाना शुरू करता है। हालांकि हर सात में एक व्यक्ति जनवरी में ही यानी 12 महीने पहले ही क्रिसमस उपहार खरीदना शुरू कर देता है। करीब एक तिहाई व्यक्ति चार सप्ताह पहले यह काम शुरू करते हैं। अध्ययन के अनुसार क्रिसमस उपहार खरीदने से पहले लोग नौ दिन, 15 घंटे और 48 मिनट तक सोच विचार एवं गुणा-भाग करते हैं। उपहार का पैकेट तैयार करने में तीन घंटे 26 मिनट लगते हैं। क्रिसमस कार्ड लिखने के लिए दो घंटे 31 मिनट लगते हैं।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:48 PM
संक्षिप्ताक्षरों से बढ सकता है बच्चों का लेखन कौशल
लंदन। अभिभावक आधुनिक दिनों की विशिष्ट भाषा से भले ही परेशान हो जाते हों लेकिन नये अध्ययन से पता चला है कि ठहाका लगाकर हंसना के अर्थ में प्रयक्त अंग्रेजी शब्द ‘लाफिंग आउट लाउड’ के लिए ‘एलओएल’, अंग्रेजी शब्द ‘ग्रेट’ के लिए ‘जीआर8’ तथा ‘बिफोर’ अंग्रेजी शब्द के लिए ‘बी4’ जैसे संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल से बच्चों के लेखन कौशल में सुधार आ सकता है। ब्रिटिश सरकार के अध्ययन के अनुसार तथाकथित ‘संक्षेप लेखन’ और आलेख का प्रारूप तैयार करने की विद्यार्थियों की क्षमता के बीच सकारात्मक संबंध है। समाचार पत्र टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक शिक्षा विभाग द्वारा कराए गए इस अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन में कुछ हद तक स्वरविज्ञान संबंधी जागरूकता का उपयोग होता है जो लेखन कार्य के मानक को उपर ले जा सकता है। अध्ययनकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो विद्यार्थी नियमित रूप से ब्लाग लिखते हैं एवं फेसबुक तथा ट्विटर जैसी नेटवर्किंग वेबसाइटों का उपयोग करते हैं वे उन छात्रों की तुलना में अच्छे लेखक हैं जो इन प्रौद्योगिकियों से बिल्कुल दूर रहते हैं।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:53 PM
देश में तेजी से बढ रहा है डेटिंग का ऑनलाइन बाजार
नई दिल्ली। युवाओं की बढती आबादी तथा संस्कृति में आ रहे बदलावों के मद्देनजर देश का ऑनलाइन डेटिंग बाजार तेजी से बढ रहा है और इस बाजार के खिलाड़ियों का मानना है कि इसके प्रयोगकर्ताओं का आंकड़ा तीन साल में 11.5 करोड़ पर पहुंच जाएगा। उनका कहना है कि देश में यह बाजार अभी शुरुआती अवस्था में है, लेकिन यह तेजी से बढ रहा है। ऑनलाइन डेटिंग साइट स्टेपआउट.काम के अनुसार फिलहाल देश में 60 लाख लोग आनलाइन डेटिंग साइट का इस्तेमाल करते हैं। स्टेपआउट.काम ने पिछले साल ही भारत में परिचालन शुरू किया है। इसका अनुमान है कि 2015 तक यह आंकड़ा 11.5 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इसके बाजार का आकार 20.6 करोड़ डालर का होगा। फिलहाल आनलाइन डेटिंग का बाजार 13 करोड़ डालर का है। वैश्विक स्तर पर यह बाजार 4 अरब डालर का है। स्टेपआउट के सह संस्थापक एवं सीईओ एडम साक्स ने कहा कि भारत में डेटिंग संस्कृति धीरे-धीरे बढ रही है। संस्कृति में आ रहे बदलाव मसलन विवाद की औसत आयु में बढोतरी से इसको बढावा मिल रहा है। एक अन्य आनलाइन डेटिंग साइट क्वैकक्वैक.इन के मुताबिक यह उद्योग सालाना 20 फीसद की दर से बढेगा। क्वैकक्वैक के विपणन प्रमुख सहाना ने कहा कि लोग इंटरनेट की डेटिंग सेवाओं का इस्तेमाल मुख्य रूप से उसकी सुविधा और आसानी से उपलब्धता की वजह से करना चाहते हैं।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:54 PM
आपसी संबंधों का रहस्य ‘गंध’ में होता है छिपा : अध्ययन
लंदन। हमारे अच्छे संबंध कायम करने में हमारी नाक की अहम भूमिका होती है। एक नये अध्ययन के मुताबिक हमारी दीर्घकालीन प्रतिबद्धता के लिए यह महत्वपूर्ण कारक है। ‘द इंडीपेंडेंट’ में प्रकाशित खबर में बॉयोलॉजिकल साइकोलॉजी पत्रिका की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि अध्ययनकर्ताओं ने पहली बार यह पाया कि गंध की पहचान करने में अक्षमता के साथ जन्म लेने से पुरूषों और महिलाओं के संबंध के निर्धारक तत्व प्रभावित होते हैं। अध्ययन में 18 वर्ष से 46 वर्ष आयुवर्ग के पुरूषों और महिलाओं को शामिल किया गया। अध्ययन में पाया गया कि सूंघने में अक्षम पुरूष और महिलाओं में सामाजिक असुरक्षा का उच्च स्तर था। एक सिद्धांत यह भी कहता है कि गंध पहचान करने की क्षमता कम होने से पुरूष कम साहसी होते हैं। उन्हें अन्य लोगों की समस्याओं का आकलन करने और उनसे संवाद करने में अधिक समस्या हो सकती है।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:56 PM
नीलामी में बिकेगा कूट भाषा में लिखा नेपोलियन का पत्र
लंदन। नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा 200 वर्ष पहले कूट भाषा में लिखे गए पत्र की फ्रांस में नीलामी होने वाली है और इससे 15,000 यूरो की राशि मिलने की संभावना है । नेपोलियन ने अपने इस पत्र में क्रेमलिन को ध्वस्त करने की कसम ली है । 19वीं सदी के आरंभ में रूस पर विजय प्राप्त करने की नाकाम कोशिश के दौरान वर्ष 1812 में नेपोलियन ने पेरिस में अपने विदेश मंत्री हुगुस-बर्नर्ड मार्ते को यह पत्र लिखा था । पत्र की पहली लाइन है ‘22 तारीख को सुबह तीन बजे मैं क्रेमलिन को ध्वस्त करूंगा ।’ बीबीसी की खबर के अनुसार, इस नीलामी में काफी लोगों की रूचि लेने की संभावना है । पत्र में नेपोलिन ने अपनी सेना की दुर्दशा के बारे में लिखा है ‘मेरा तोपखाना बर्बाद हो रहा है, काफी संख्या में घोड़े मर रहे हैं । यह सुनिश्चित करो की हम जितनी जल्दी संभव हो ज्यादा घोड़े खरीद सकें।’
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:57 PM
वित्त्तीय परेशानी से जूझ रहे हैं ब्रिटेन के लाखों परिवार: अध्ययन
लंदन। एक उपभोक्ता संगठन ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि ब्रिटेन में लाखों परिवार दो जून की जरूरतों को पूरा करने के लिए जूझ रहे हैं। यह अध्ययन अक्तूबर में 2,100 लोगों की राय पर आधारित है। इसके अनुसार लगभग दस प्रतिशत परिवार रिण, बिजली या आवासीय भुगतान समय पर नहीं कर पाये हैं। उपभोक्ता संगठन 'विच' के इस अध्ययन के अनुसार 32 प्रतिशत लोगों के लिये अपनी मौजूदा आय पर गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। बीबीसी की रपट के अनुसार संगठन के सर्वे के अनुसार 23 करोड़ परिवार रिण, बिल या आवासीय भुगतान समय पर नहीं कर पाये हैं।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:57 PM
याददाश्त को नुकसान पहुंचा सकता है कीटनाशक : वैज्ञानिक
लंदन। वैज्ञानिकों का कहना है कि कीटनाशक में मौजूद आरगैनोफॉस्फेट्स का अत्यल्प संपर्क भी मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है । अनुसंधानकर्ताओं ने अलग-अलग 14 अध्ययनों की समीक्षा के दौरान पाया कि यह रसायन याददाश्त को कमजोर बना सकते हैं और सूचनाओं के त्वरित विश्लेषण की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं । यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और द ओपन यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं को पहली बार अपने अध्ययन में इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि आरगैनोफॉस्फेट्स का मामूली संपर्क भी मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है । ‘द टेलीग्राफ’ की खबर के अनुसार, इस बारे में डॉक्टरों को बहुत पहले से जानकारी है कि कीटनाशकों और वायुयानों के ईंधन में प्रयुक्त इन रसायनों की बड़ी मात्रा मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है । मनोवैज्ञानिक व यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की वरिष्ठ व्याख्याता डॉक्टर सारा मैकिन्जे रोस का कहना है कि इस अध्ययन के बाद काम के दौरान इन रसायनों के संपर्क में आने वाले लोगों के लिए सुरक्षा नियमों को कड़ा करना होगा ।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 10:57 PM
महिलाओं में अल्जाइमर्स के खतरे को कम कर सकता है विटामिन डी : अध्ययन
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि विटामिन डी के ज्यादा सेवन से महिलाओं में अल्जाइमर्स का खतरा कम हो जाता है । ‘जर्नल्स आॅफ जेरॉन्टोलॉजी सीरिज ए : बायोलॉजिकल साइंसेज एण्ड मेडिकल साइंसेज’ नामक पत्रिका में प्रकाशित दो नए अध्ययनों के अनुसार, महिलाओं की उम्र बढने पर विटामिन डी उनके मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए ज्यादा लाभदायक है । फ्रांस की एंजर्स यूनिवर्सिटी में केड्रिक एनवेइलर के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने भोजन के माध्यम से विटामिन डी के ज्यादा सेवन और अल्जाइमर्स के खतरे के बीच संपर्क सूत्र को खोजा । उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि जिन महिलाओं ने भोजन में विटामिन डी कम मात्रा में लिए, उन्हें सामान्य महिलाओं के मुकाबले अल्जाइमर्स का खतरा काफी ज्यादा था ।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 11:10 PM
लंबे समय तक एरोमाथेरेपी से हृदय को पहुंच सकता है नुकसान
न्यूयार्क। एरोमाथेरेपी कुछ समय के लिए तो फायदेमंद हो सकती है लेकिन लंबे समय तक इसका इस्तेमाल करने से हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। यह दावा एक नये अध्ययन में किया गया है। एरोमाथेरेपी के तहत चिकित्सीय गुण वाले तेलों के भाप का सेवन किया जाता है। माई हेल्थ न्यूज डेली की खबर के मुताबिक अध्ययन के तहत ताइपेई में स्पा के 100 कामगारों को एक कमरे में बिठाया गया और उन्हें एक खास तेल का भाप लेने को कहा गया। अध्ययनकर्ताओं ने इस दौरान इन लोगों के रक्तचाप और हृदय गति तथा ‘अस्थिर आर्गेनिक यौगिक’ (वीओसी) को मापा। वीओसी ऐसे पदार्थ हैं जो सामान्य तापमान पर आसानी से हवा में विलीन हो जाते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने पहले घंटे पाया कि कामगारों के रक्तचाप व हृदय गति में कमी दर्ज की गई जबकि 120 मिनट के बाद विपरीत प्रभाव दर्ज किये। उन्होंने बताया कि इन यौगिकों को सांस लेने से शरीर में सूजन बढ जाती है और तंत्रिका तंत्र के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है जिसके बाद हृदय पर असर पड़ सकता है।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 11:22 PM
पथरीले ग्रहों का ठिकाना रहा होगा भूरा वामन
लंदन। तारों और ग्रहों के बीच एक अस्पष्ट लकीर खींचने वाला ‘भूरा वामन’ पथरीले ग्रहों का ठिकाना रहा होगा क्योंकि उनके धूल वाले छल्ले हैं। खगोलविदों ने पहली बार पाया कि किसी भूरा वामन को घेरे रखने वाले धुंधले छल्ले के बाहरी क्षेत्र में मिलीमीटर आकार के ठोस कण पाये गए जैसे कि नये तारे के चारों ओर मौजूद घने छल्लों में पाये जाते हैं। अटकामा लार्ज मिलीमीटर एरे की नयी खोज ने उन मान्यताओं को चुनौती दी है जिसके तहत कहा जाता है कि किस तरह से पथरीले, पृथ्वी के आकार के ग्रह निर्मित हुए। नयी खोज के मुताबिक पथरीले ग्रह पहले के अनुमानों की तुलना में ब्रह्मांड में कहीं अधिक समान्य चीज हो सकते हैं।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 11:23 PM
लगातार व्यायाम करने के बाद भी डेस्कजॉब से हो सकता है स्वास्थ्य को नुकसान
न्यूयार्क। यदि आप जमकर जिम में पसीना बहाते हैं लेकिन बिना बे्रक लिए घंटों बैठ कर काम करते हैं तो आपको मधुमेह, हृदय रोग और मोटापा जैसी बीमारियों का खतरा बढ जाता है। न्यूयार्क डेली न्यूज की ख्बर के अनुसार इंटरनेशनल जर्नल आॅफ बिहेवियरल न्यूट्रीशन एंड फिजीकल एक्टिविटी में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि नियमित व्यायाम फायदेमंद है लेकिन यह कुर्सी पर बैठकर लंबे समय तक काम करने वालों के स्वास्थ्य के खतरे को कम नहीं करता है। शिकागो स्थित नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फेनबर्ग स्कूल आॅफ मेडिसीन के प्राध्यापक एवं मुख्य अध्ययनकर्ता लेयनेट क्राफ्ट ने कहा कि यदि ये लोग काम के दौरान बीच बीच में उठ कर इधर उधर टहलते हैं, खड़े होकर फोन पर बात करते हैं और कार्यालय में अन्य लोगों को ईमेल भेजने की बजाय खुद चलकर वहां तक जाते हैं तो उनके स्वास्थ्य को फायदा हो सकता है।
Dark Saint Alaick
02-12-2012, 11:23 PM
दर्द के प्रति संवेदना को कम कर सकती है ज्यादा नींद
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन के अनुसार रात में ज्यादा नींद लेने पर दिन में आप ‘सजग’ महसूस करेंगे और दर्द के प्रति आपकी संवेदनशीलता में भी कमी आएगी । ‘स्लीप’ नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने 18 ऐसे लोगों का अध्ययन किया जो स्वस्थ थे, जिन्हें दर्द की समस्या नहीं थी और उनकी नींद में भी कोई समस्या नहीं थी । प्रतिभागियों को चार रातों के लिए सामान्य नींद लेने को या फिर उसे बढा कर 10 घंटा करने को कहा गया । इस प्रयोग के बाद सभी की दर्द सहने की क्षमता का परीक्षण किया गया । जिन लोगों ने रात में अपनी नींद के समय को बढाया उनमें दर्द सहने की क्षमता सामान्य लोगों के मुकाबले 25 प्रतिशत ज्यादा पाई गई ।
Dark Saint Alaick
03-12-2012, 11:43 AM
वैज्ञानिकों ने बनाया ‘अब तक सबसे वास्तविक मानव मस्तिष्क’
लंदन। वैज्ञानिकों ने मानवीय मस्तिष्क के कामकाज का अब तक का ‘सबसे निकट मॉडल’ तैयार करने का दावा किया है, जो बुद्धि कौशल परीक्षा उत्तीर्ण करने में पर्याप्त रूप से सक्षम है। डेली मेल की खबर के अनुसार नकली मस्तिष्क सुपर कम्प्यूटर पर चलता है। इसमें एक डिजिटल आंख है, जिसका वह इस्तेमाल दृश्य ग्रहण करने के लिए करता है। इसके साथ ही उसमें एक रोबोटिक हाथ भी लगा हुआ है, जिसका इस्तेमाल वह अपनी प्रतिक्रिया के लिए करता है। कनाडा की यूनीवर्सिटी आफ वाटरलू के न्यूरो वैज्ञानिकों और साफ्टवेयर इंजीनियरों का दावा है कि यह दुनिया में अब तक तैयार मानव मस्तिष्क का सबसे जटिल नकली माडल है।
Dark Saint Alaick
03-12-2012, 11:44 AM
अपने जन्मदिन पर दुखी है एसएमएस
लंदन। पर्व-त्योहार हो जन्मदिन या कोई और अवसर, हम अक्सर अपने प्रियजन को संदेश भेजते हैं और मोबाइल फोन की वर्तमान दुनिया में उसका जरिया है एसएमएस । इस वर्ष एसएमएस अपना 21वां जन्मदिन मना रहा है लेकिन वर्तमान दौर में एसएमएस करने का ट्रेंड घट रहा है । एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दो दशक पहले जन्म लेकर लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बनने वाले एसएमएस के जीवन में पहली बार ढलान आया है । पिछले दो दशक में इसने कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापार सम्बंधी सौदों का भविष्य तय करने से लेकर प्रेम, खुशी और दुख आदि भावनाओं से युक्त लोगों के दिलों की बातें भी कहीं। पहली बार तीन दिसंबर 1992 में एक कंप्यूटर से मोबाइल फोन पर संदेश भेजा गया जिसमें लिखा था ‘मेरी क्रिसमस’। वर्ष 1998 के बाद तो जैसे एसएमएस की दुनिया में बहार ही आ गई। फिलहाल दुनिया में कुल चार अरब लोग एसएमएस सेवा का उपयोग करते हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है जब एसएमएस की संख्याओं में काफी कमी आयी है। मीडिया नियामक आफकॉम का कहना है कि पिछली दो तिमाही में एसएमएस की संख्याओं में करीब एक अरब की कमी आई है ।
Dark Saint Alaick
03-12-2012, 11:46 AM
अब सौर चालित ट्री से कर सकते हैं अपना मोबाइल चार्ज
लंदन। फ्रांस के एक डिजायनर ने एक ऐसा बोनसाई ट्री (बौना पेड़) तैयार किया है, जो आपकी कॉफी टेबल पर न केवल देखने में अच्छा लगेगा, बल्कि सौर ऊर्जा का उपयोग कर वह मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रोनिक्स सामान को भी चार्ज करेगा। ‘द इलेक्ट्रिक प्लस’ नाम इस बोनसाई ट्री को डिजायनर विवियन मुलर ने तैयार किया है। इसमें 27 सिलकिन सौर पैनल लगे होते हैं जिन्हें पत्तियां कहा जा सकता है। उपयोगकर्ता जरूरत और शैली के हिसाब से इन पत्तियों को सजा सकता है, ताकि अनोखा ट्री दिखे। डिजायनर ने कहा कि वह मूल पौधे को देखने के बाद यह उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित हुए। उन्होंने देखा कि मूल पौधे की पत्तियां प्राकृतिक सौर पैनल की तरह काम करती हैं। इस उपकरण के आधार में एक बैटरी छिपी रहती है जो सौर ऊर्जा का भंडारण करती है। जब इसमें पूर्ण क्षमता तक ऊर्जा समाहित हो जाती है, तो उससे मोबाइल और आईपॉड चार्ज किया जा सकता है।
Dark Saint Alaick
03-12-2012, 11:46 AM
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्थाई रूप से बंद कर सकता है ड्रोन विमान
लंदन। विमान निर्माता कंपनी ने दावा किया है कि इमारतों का निशाना बनाने के लिए विद्युत चुंबकीय तरंगों का इस्तेमाल करने वाला एक नया प्रक्षेपास्त्र लोगों को नुकसान पहुंचाए बिना देश के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्थायी रूप में बंद कर सकता है। अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने दावा किया है कि उसने हथियार का सफल परीक्षण किया है। इस परीक्षण के दौरान प्रक्षेपास्त्र ने उटाह रेगिस्तान स्थित एक सैन्य परिसर में लगे सभी कम्प्यूटरों को बंद कर दिया। डेली मेल की खबर के अनुसार ऐसा सोचा गया था कि प्रक्षेपास्त्र ऐसे बंकरों और गुफाओं में प्रवेश कर सकता है, जिसमें माना जाता है कि ईरान के परमाणु सन्यंत्र चोरी छुपे चल रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रौद्योगिकी गलत हाथों में पड़ गई, तो इसका इस्तेमाल पश्चिमी देशों को घुटने टेकने के लिए किया जा सकता है। बोइंग के इस परीक्षण के दौरान प्रक्षेपास्त्र उटाह के परीक्षण एवं प्रशिक्षण रेंज के ऊपर कम ऊंचाई पर उड़ान भरी और सात लक्ष्यों पर विद्युत चुंबकीय तरंगें छोड़ी, जिससे इलेक्ट्रानिक उपकरणों को स्थाई रूप से बंद कर दिया।
rajnish manga
03-12-2012, 02:28 PM
[QUOTE=Dark Saint Alaick;186954]बड़ी बीमारियों से बचना हो तो सेब खाना न भूलें
सेब के बारे में हमने सुन रखा था “An apple a day keeps the doctor away”. इस स्वास्थ्य सूत्र में सेंट अलैक जी, आपने विद्वान डॉक्टरों के हवाले से सेब के जुड़े सभी पहलुओं पर विस्तार से जो जानकारी दी है उससे अंग्रेजी की उपरोक्त सूक्ति सत्य साबित होती है. इसमें कोई शक नहीं कि सेब हमारे पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और केंसर तथा अन्य रोगों के प्रति हमारे शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढाता है.
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 12:26 AM
ग्रह निर्माण की धारणाओं के सामने नई चुनौती
सेंटियागो। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को एक ऐसी नई जानकारी मिली है, जो पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों के निर्माण से जुड़े पारंपरिक सिद्धांतों के सामने चुनौती पेश करती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा बुध, शुक्र और मंगल तीन अन्य चट्टानी ग्रह हैं। इनकी सतह ठोस है और यहां भारी धातुओं की मौजूदगी है। ये ग्रह बृहस्पति और शनि जैसे गैस के बड़े और घूमते पिंडों से काफी अलग हैं। यह अध्ययन एस्ट्रोफिजीकल जर्नल आॅफ लैटर्स में कल प्रकाशित किया गया। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने उत्तरी चिली के सुदूरवर्ती रेगिस्तान में पर्वत की चोटी पर पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर एल्मा नामक एक दूरबीन का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अंतरिक्ष में आईएसओ-ओपीएच 102 नामक ब्राउन डवार्फ की खोज की। ब्राउन डवार्फ एक ऐसा चीज है, जो है तो तारे जैसा, लेकिन वह बहुत छोटा है कि ज्यादा तेजी से चमक नहीं पाता। पारंपरिक सिद्धातों के अनुसार चट्टानी ग्रहों का निर्माण एक तारे के चारों ओर पदार्थ के घेरे में सूक्ष्म कणों के अनियमित टकराव के कारण होता है। काजल सरीखे ये कण एक दूसरे से चिपक कर विकसित होते हैं। वैज्ञानिकों ने सोचा था कि ब्राउन डवार्फ की बाहरी सीमाएं कुछ भिन्न थीं। उनका मानना था कि चूंकि चारों ओर की डिस्क बहुत पतली हैं, इसलिए कण आपस में जुड़े हुए रह ही नहीं सकते। साथ ही, टक्कर होने के बाद कण बहुत तेजी से एक दूसरे से चिपकने के लिए भागते हैं, लेकिन आईएसओ-ओपीएच 102 के चारों ओर की डिस्क में वैज्ञानिकों ने ऐसी चीजें खोज निकालीं, जो उनके लिए बड़े मिलीमीटर के कण थे। अमेरिका, यूरोप और चिली आधारित अंतरिक्ष विज्ञानियों के समूह का नेतृत्व करने वाले कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के लुका रिक्की ने कहा कि इस आकार के ठोस कण ब्राउन डवार्फ के चारों ओर की डिस्क के ठंडे क्षेत्र में निर्माण के लायक नहीं होने चाहिए, लेकिन अब लगता कि वे इसके लायक हैं। हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि एक पूरा चट्टानी ग्रह ही वहां बन सकता हो या फिर बन चुका हो। हम इसके शुरुआती चरण देख रहे हैं। इसलिए हम ठोस के विकसित होने के लिए जरूरी स्थितियों के बारे में अपनी धारणाओं को बदलने जा रहे हैं।
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 01:41 AM
अब रक्त से स्टेम कोशिकाएं विकसित की वैज्ञानिकों ने
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक व्यक्ति के रक्त से स्टेम कोशिकाएं विकसित की हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह कोशिकाएं अनेक बीमारियों के उपचार में काम आ सकती हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने कहा कि यह स्टेम कोशिकाओं का सबसे सुरक्षित और आसान स्रोत हो सकता है। बीबीसी न्यूज के अनुसार कोशिकाओं का इस्तेमाल रक्त वाहिका बनाने में किया जा रहा था पर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि ऐसी स्टेम कोशिकाओं की सुरक्षा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर स्टेम कोशिकाओं का एक स्रोत भ्रूण को माना जाता है पर यह नैतिक रूप से विवादास्पद है। शोधकर्ताओं ने त्वचा के नमूनों से भी स्टेम कोशिकाएं विकसित करने में सफलता पायी थी। कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने रक्त नमूनों की जांच की और परीक्षण के बाद उनको स्टेम कोशिकाओं में परिवर्तित कर दिया। शोध दल के डॉक्टर आमिर राणा का कहना है कि यह तरीका त्वचा से नमूने लेने से ज्यादा सहज है।
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 02:00 AM
इंग्लैंड में रह रहे खानाबदोश लोगों की जड़ें पंजाब में
नई दिल्ली। इंग्लैंड में रह रहे खानाबदोश लोगों को पश्चिमोत्तर भारत, खास कर पंजाब की अनुसूचित जतियों तथा जनजातियों में अपनी जड़ें दिखाई दी हैं। अब तक समझा जाता रहा है कि ये लोग मिस्र से आए हैं। सीएसआईआर के ‘सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने यूरोपीय रोम की आबादी के पूर्वज स्रोतों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए 10,000 से अधिक वैश्विक नमूनों का अनुवांशिक अध्ययन किया। यूरोपीय रोम वासियों की आबादी को ही आम तौर पर जिप्सी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि रोम के शुरुआती लोग करीब 1,405 साल पहले भारत से यूरोप गए। अध्ययन में पाया गया है कि पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन अनुसूचित जातियां जनजातियां डोम और दलित कहलाती हैं और उनके आधुनिक यूरोपीय रोमवासियों के पूर्वज होने की संभावना प्रबल है। सीसीएमबी के कुमारसामी थंगराज की अगुवाई में वैश्विक वैज्ञानिकों के दल ने पीएलओएस वन जर्नल में प्रकाशित एक लेख में कहा है ‘पुरातत्व दस्तावेजों के अभाव में और रोम के ऐतिहासिक दस्तावेजीकरण के आधार पर तुलनात्मक भाषायी अध्ययन किया गया। यह अध्ययन ऐसा पहला अध्ययन है जो जिप्सियों के भारतीय मूल के होने के बारे में बताता है।’ वैज्ञानिकों द्वारा किया गया ‘फाइलोजियोग्राफिकल’ अध्ययन संकेत देता है कि रोम के लोग उत्तर के एक मार्ग से यूरोप गए थे। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, जिप्सियों ने उत्तरी हिन्दूकुश में गिलगित के आसपास से अपनी चढाई शुरू की। फिर यह लोग बास्पोरस से आगे काले सागर के दक्षिणी तट में कॉकेशस के दक्षिण भाग में स्थिति कैस्पियन लिटोरल गए। 13 वीं सदी के आसपास से यह लोग पूरी तरह यूरोप में बसने लगे। इन रोमवासियों में भारतीयों में विशेष रूप से पाए जाने वाले वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति उनके दक्षिण एशियाई मूल को बल देती है और बाद में यह लोग पूर्वी तथा यूरोपीय आबादी से घुलमिल गए। मनुष्यों में वाई क्रोमोसोम पिता से पुत्र को मिलता है। एक परिवार के सभी पुरूषों में या एक ही संस्थापक पुरूष की अगली पीढियों में एक जैसा ही वाई क्रोमोसोम मिलेगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि रोम वासियों के हेपलोग्रुप्स और भारतीय जनजातियों के नमूनों का मिलान करने पर जो समानताएं पाई गईं उनके आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि डोम और दलित पूर्वज आबादी हैं।
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 02:04 AM
सबसे खुशनुमा नहीं होता हनीमून पीरियड या शादी का पहला साल : अध्ययन
मेलबर्न। हनीमून पीरियड को खुशहाल वैवाहिक जीवन की शुरूआत का प्रतीक मानने वाले लोगों के लिए एक बुरी खबर है कि नव विवाहित दंपति अपने विवाह के पहले साल सबसे ज्यादा नाखुश रहते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात कही गयी है। आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं के अनुसार सबसे खुशहाल दंपति वह होते हैं जिनकी शादी को 40 साल से ज्यादा समय पूरा हो गया हो। आस्ट्रेलिया के देकिन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में 2000 लोगों से विवाह को लेकर उनकी खुशी के बारे में पूछा गया। उनके जवाबों के आधार पर उन्हें 0-100 के बीच अंक दिए गए। ज्यादातर लोगों को इसमें औसतन 75 अंक मिले और जिनकी नयी-नयी शादी हुई थी या जिनका शादी का यह पहला साल था उन्हे औसतन 73.9 अंक मिले जबकि वैसे दंपति जिनकी शादी को चार दशक से ज्यादा समय हो गया था, उन्हें औसतन 79.8 अंक मिले। मुख्य अध्ययनकर्ता मेलिसा विनबर्ग ने कहा, ‘यह थोड़ा अप्रत्याशित है क्योंकि आम धारणा यह है कि नवविवाहित जोड़े सबसे अधिक खुश रहते हैं जबकि असल में ऐसा नहीं है।’ विनबर्ग ने कहा कि लोग कल्पना करते हैं कि उनकी शादी का दिन उनकी जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिल होगा। वह दिन आता है, लोग बहुत खुश रहते है, लेकिन धीरे-धीरे यह खुशी कम होने लगती है। एक अन्य अध्ययन में भी इस तथ्य का समर्थन किया गया है और कहा गया कि शादी के दूसरे या तीसरे साल दंपति की खुशी बढने लगती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि विवाहित लोग अवविवाहित, तलाकशुदा आदि लोगों से अधिक खुश रहते हैं। वहीं विवाहित महिलाएं विवाहित पुरूषों की तुलना में अधिक खुश रहती हैं।
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 02:23 AM
इस वर्ष याहू सर्च में छाया अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का जादू
लॉस एंजिलिस। इंटरनेट पर सर्च करने वाले लोगों में जहां अकसर पॉप संस्कृति का खुमार छाया रहता है, वहीं इस साल आन लाइन सर्च में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव सबसे ज्यादा खोजा जाने वाला आइटम बना। रियल्टी स्टार किम कर्दाशियन आनलाइन सबसे ज्यादा खोजे जानी वाली शख्सियत बनी। सर्च इंजन कम्पनी याहू ने वर्ष 2012 में सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले दस विषयों की सूची जारी की है। कम्पनी की ओर से आज जारी बयान में कहा गया कि आनलाइन सर्च में लोगों ने इस साल जिस एक शब्द को खोज के लिए सर्वाधिक बार टाइप किया वह था चुनाव। याहू के वेब ट्रेंड वेरा चान एनालिस्ट ने कहा, वर्ष 2012 में आन लाइन सर्च में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव छाया रहा, लेकिन यह बेहद चौंकाने वाला परिणाम है कि चुनाव एक ऐसा विषय था, जिससे खबरों का पूरा संसार ही पटा हुआ था । हर कहीं इसी की सबसे ज्यादा चर्चा थी, लेकिन इस सब के बावजूद यह ही वह शब्द था जिसे साल भर ज्यादा से ज्यादा लोगों ने सर्च के लिए टाइप किया। इसके बाद आनलाइन खोजे जाने वाले विषय में सबसे दूसरे नंबर पर रहा एप्पल कम्पनी का आई फोन 5 हालांकि कम्पनी द्वारा वर्ष 2007 से यह फोन लांच किये जाने के बाद से लगातार इसका प्रचार किया जा रहा है लेकिन यह पहली बार है कि इसका कोई विशेष माडल आनलाइन सर्च में ऊपर की पायदान पर रहा है। इसके अलावा दुनिया की दस जानी मानी महिलाओं में वेबसाइट पर रिएल्टी स्टार किम करदाशियन को सबसे ज्यादा खोजा गया और याहू कम्पनी की सर्च विषयों की सूची में किम ने तीसरा स्थान हासिल किया। याहू की इस सूची में खेल माडल केट अपटान, ब्रिटेन के राजकुमार हैरी की पत्नी केट मिडलटन, दिवंगत गायक व्हिटनी ह्यूस्टन, लिंडसे लोहान और अमेरिकन आइडल की पूर्व जज जेनिफर लोपेज का नाम भी शामिल रहा।
Dark Saint Alaick
04-12-2012, 02:23 AM
मूंछ पर ताव दे रहे हैं नकली मूंछों के कारोबारी
कोलकाता। पूरी दुनिया में मूंछों की बढती लोकप्रियता के बीच भारत नकली मूंछों और उससे संबंधित वस्तुओं का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है । ‘अलीबाबा डॉट कॉम इंडिया’ के कंट्री जनरल मैनेजर खालीद इस्सर का कहना है, ‘भारत में मूंछ हमेशा फैशन में रहे हैं । भारतीय संस्कृति में इसका स्थान भी बहुत विशेष है क्योंकि यह प्रतिष्ठा का सूचक है ।’ इस्सर, ‘लेकिन वेबसाइट के विश्लेषण अनुसार, अक्तूबर 2012 के आंकड़ों के अनुसार इसके व्यापार में प्रतिवर्ष 58 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है । इससे ऐसा लगता है कि भारतीय भी अब इस ट्रेंड का हिस्सा बन रहे हैं ।’ वेबसाइट के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जो भारतीय पुरूष वास्तविक मूछें नहीं रखना चाहते वे नकली मूंछें लगा रहे हैं ।
Dark Saint Alaick
05-12-2012, 12:12 AM
यादें आपको दे सकती हैं गर्माहट : अध्ययन
लंदन। बीते समय की यादें आपके हाथों के साथ-साथ दिल को भी गर्माहट दे जाती हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि दिल को गर्माहट देने वाली यादें हमें ठंड सहने की क्षमता देती हैं और हम शारीरिक रूप से गर्म महसूस करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस सिद्धांत को इस तरह से समझा जा सकता है कि दिमाग का एक क्षेत्र यादों में डूब जाता है और यही दिमाग शरीर को महसूस होने वाली ठंड के बारे में भी बताने का काम करता है। साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए इस अध्ययन में यादों के अनुभव की सर्दी के लिए प्रतिक्रिया और गर्माहट से इन यादों के संबंध की जांच की गई। चीन और नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के इच्छुक लोगों ने इन पांच अध्ययनों में भाग लिया। साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. टिम वाइल्डशट ने कहा, ‘हर किसी को रह-रहकर पुरानी यादें आती हैं। हम जानते हैं कि इससे मनौवैज्ञानिक रूप से आराम मिलता है। उदाहरण के लिए-ये यादें अकेलापन दूर कर देती हैं। हम इससे एक कदम आगे बढते हुए यह देखना चाहते थे कि क्या ये यादें शारीरिक रूप से भी आराम देती हैं?’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘हमारे अध्ययन ने दर्शाया कि यादें दिमाग को पिछले अच्छे समय में तो ले जाती ही हैं साथ ही ये हमें शारीरिक रूप से भी आराम देती हैं। इस दौरान हम गर्माहट महसूस करते हैं और ये यादें सर्दी सहने की हमारी क्षमता को बढा देती हैं।’ पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों से तीस दिन तक अपनी यादों का लेखा जोखा रखने के लिए कहा। नतीजों में पाया गया कि ठंडे दिनों में उन्हें बीते समय की यादें ज्यादा आती थींं। दूसरे अध्ययन में इन प्रतिभागियों को तीन कमरों में रखा। एक कमरा ठंडा (20 डिग्री सेल्सियस), आरामदायक (24 डिग्री) और गर्म (28 डिग्री) था। इसके बाद यह मापा गया कि वे खुद को कितना पिछली यादों में खोया हुआ पाते हैं। नतीजों में पाया गया कि प्रतिभागियों को ठंडे कमरों में आरामदायक और गर्म कमरों के मुकाबले ज्यादा पुरानी यादें आईं। आरामदायक और गर्म कमरों के लोगों में कोई खास अंतर नहीं था। तीसरे अध्ययन को आॅनलाइन किया गया। इसमें संगीत की मदद से यादें जगाकर गर्माहट से इसका सम्बंध जांचने की कोशिश की गई। जिन प्रतिभागियों ने कहा था कि संगीत उन्हें यादों में डुबो देता है, उन्होंने यह भी कहा कि संगीत उन्हें गर्माहट भी देता है। चौथे अध्ययन में यादों और शारीरिक गर्माहट के बीच सम्बंध जांचने के लिए प्रतिभागियों को एक ठंडे कमरे में रखकर उन्हें अपने अतीत की एक सुनहरी यादों भरी घटना या एक साधारण घटना याद करने के लिए कहा गया। इसके बाद इन्हें कमरे के तापमान का अंदाजा लगाने के लिए कहा गया। यह अध्ययन इमोशन पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
Dark Saint Alaick
05-12-2012, 12:13 AM
लिपस्टिक लगाने से कम हो सकता है दिमाग: विशेषज्ञ
लंदन। लिपस्टिक लगाने वाली महिलाएं सावधान हो जाएं क्योंकि एक नए अध्ययन के अनुसार लिपीस्टिक के प्रयोग से दिमाग पर असर पड़ सकता है। अध्ययन के अनुसार अधिकतर लिपस्टिक उत्पादों में सीसा मौजूद होता है जिसकी हल्की मात्रा के संपर्क में आने से भी दिमाग, व्यवहार और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। गुड मार्निंग अमेरिका पत्रिका द्वारा कराए गए इस अध्ययन में 22 लिपस्टिक ब्रांडों को शामिल किया था। इनमें 55 प्रतिशत लिपस्टिकों में जहरीले तत्व की निहित मात्रा पायी गयी। अंडरराइटर्स प्रयोगशाला में की गयी जांच में 12 लिपस्टिक उत्पादों में सीसा पाया गया। इनमें सीसा का उच्चतम स्तर पाया गया। बोस्टन सीसा विषाक्तता रोकथाम कार्यक्रम के चिकित्सा निर्देशक डॉक्टर शॉन पालफे्र ने चेतावनी देते हुए कहा कि सीसे की कम मात्रा के संपर्क में आने से भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं और इससे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। पॉलफ्रे ने कहा, ‘हमें पता चला है कि सीसे की कम मात्रा भी आपके दिमाग, आपके व्यवहार और सीखने की क्षमता पर प्रभाव डाल सकती है।’
Dark Saint Alaick
05-12-2012, 12:13 AM
अब दस्ताने पहनकर भी चला सकेंगे टचस्क्रीन फोन
लंदन। सर्दियों में ठिुठरे हाथों को दस्तानों से बार-बार निकालकर टचस्क्रीन के फोन को चलाने के झंझट से अब मुक्ति मिल सकती है। अब नीदरलैन्ड की एक कंपनी चमड़े के बने ऐसे दस्ताने लेकर आई है, जिन्हें पहने रखकर आप अपने टचस्क्रीन फोन को चला सकते हैं। इससे सर्दियों में फोन चलाने के लिए आपको इन दस्तानों को बार-बार उतारने की जरूरत नहीं होगी। डेली मेल की खबर के अनुसार, डच कंपनी के ये ‘लैदर टचस्क्रीन ग्लव्ज’ आपके हाथों को तो गर्म रखेगा ही, साथ ही इसका इस्तेमाल आप टचस्क्रीन के फोन चलाने के लिए भी कर सकेंगे। इथोपियाई मेमने की खाल के इन दस्तानों में नैनो तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जो इन्हें टचस्क्रीन के लायक बनाती है। साथ ही इन्हें हवा और पानी रोधी बनाने के लिए विशेष उपचार भी किया गया है। कंपनी की वेबसाइट पर दिए विवरण के अनुसार, चमड़े से बने अन्य दस्ताने टचस्क्रीन पर काम नहीं करते। इन दस्तानों में नैनो तकनीक का प्रयोग किया गया है। ये बिना किसी रूकावट के लगभग हर टचस्क्रीन के साथ काम करते हैं। कंपनी मुज्जो ने कहा कि नैनो तकनीक इंसान की त्वचा पर निर्भर किए बिना काम करती है। इसकी मदद से हम दस्तानों को ऊनी परत से अवरोधित कर सके। कंपनी ने कहा कि दस्ताने में इस्तेमाल चमड़े में इसकी असल विशेषताएं मौजूद हैं और इसे पहनने पर किसी भी अन्य दस्ताने की तरह अधिकतम आराम और दक्षता मिलती है।
Dark Saint Alaick
08-12-2012, 03:10 PM
केरल में दो सदी पहले हुई थी दास प्रथा उन्मूलन की शुरुआत
तिरुवनंतपुरम। अत्यंत प्रगतिशील माने जाने वाले राज्यों में से एक केरल कभी दास प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों का गढ़ हुआ करता था। इस तरह की सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए राज्य में दो सदी पहले सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई थी। बीसवीं सदी के शुरू में न सिर्फ नारायण गुरु और चट्टम्पी स्वामीगल जैसे संत सुधारक थे, बल्कि कुछ राजा-महाराजाओं ने भी इस काम में अपना योगदान दिया और ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भी यह प्रक्रिया जारी रही। उदाहरण के लिए तथाकथित निचली जातियों के लोगों को दास के रूप में खरीदने और बेचने का काम केरल के कई हिस्सों में दो सदी पहले इसके खत्म होने तक जारी था। ब्रिटिश संसद द्वारा दासता प्रथा उन्मूलन अधिनियम पारित किए जाने से दो दशक पहले 1812 में त्रावणकोर रियासत की 20 वर्षीय एक रानी ने इस प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया था। रोचक बात यह है कि महारानी गौरी लक्ष्मी बाई ने रियासत में दास प्रथा और दासों की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए ब्रिटिश प्रशासकों और ईसाई मिशनरियों के दबाव में आदेश जारी किया था। इतिहासकारों के अनुसार हालांकि, इस आदेश से दास प्रथा पूरी तरह नहीं रुकी, लेकिन यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसला था, जिससे भविष्य में और अधिक सामाजिक सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर टी. पी. शंकरनकुट्टी नायर का मानना है कि त्रावणकोर में दास प्रथा उन्मूलन के असल नायक ब्रिटेन निवासी कर्नल मनरो थे, जिन्हें उस अवधि में रियासत का दीवान (प्रधानमंत्री) माना जाता था। नायर ने कहा कि केरल ऐसा पहला भारतीय राज्य है, जिसने सदियों पुरानी दासता प्रथा का खत्मा किया है। मनरो की प्रगतिशील नीतियों और ईसाई मिशनरियों के प्रभाव के चलते त्रावणकोर के राजाओं ने दास प्रथा पर रोक लगाई।
Dark Saint Alaick
08-12-2012, 03:11 PM
यूरोप में 1500 साल पहले गई थीं भारतीय घुमंतू जातियां
न्यूयार्क। यूरोप के आस पास के हिस्सों में रहने वाले 13 घूमंतू समूहों के अनुवांशिक (जीन) विश्लेषण से यह पता चला है कि इन सभी जातियों का सम्बंध पश्चिमोत्तर भारत से है, जो लगभग 1500 वर्ष पहले बहुत लंबी दूरी तय करके यहां पहुंची थीं। करंट बायोलाजी जरनल में प्रकाशित ताजा अध्ययन के मुताबिक 1500 वर्ष पहले भारत से ये घुमंतू जातियां लगभग एक ही बार यूरोप की ओर निकली थीं। इससे पहले तक यह माना जाता रहा था कि ये घुमंतू समूह मिस्र से आए थे और इससे पहले इन्हें इजिप्शियन ही कहा जाता था। पश्चिमोत्तर भारत से सबसे पहले ये घुमंतू बाल्कन क्षेत्र में पहुंचे और वहां छह सौ साल तक रहने के बाद इन्होंने वहां से आगे और उसके आसपास के क्षेत्रों की ओर रुख किया।
Dark Saint Alaick
13-12-2012, 11:21 PM
शनि के उपग्रह टाइटन पर छोटी नील नदी खोजी
वाशिंगटन। नासा के वैज्ञानिकों ने शनि के उपग्रह टाइटन पर सबसे लंबी परग्रही नदी प्रणाली खोजी है जो पृथ्वी की नील नदी का छोटा रूप मालूम पड़ती है। ‘नासा जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी’ ने एक बयान में कहा कि टाइटन पर नदी घाटी अपने उद्गम से बड़े सागर तक चार सौ से अधिक किलोमीटर में फैली है। इसकी तुलना में पृथ्वी पर नील नदी करीब 6700 किलोमीटर में फैली है। नासा के कासिनी मिशन की तस्वीरों ने पृथ्वी के अलावा कहीं और पहली बार इतनी विशाल नदी घाटी का खुलासा किया है। माना जाता है कि सौर मंडल में पृथ्वी के अलावा टाइटन पर विशाल सागर हंै। ‘डिस्कवरी न्यूज’ ने खबर दी है कि हालांकि टाइटन का वायुमंडल बहुत ठंडा है जिसका तात्पर्य यह है कि द्रवीय जल का बहना यहां संभव नहीं है। टाइटन पर द्रव मीथेन और ईथेन जैसे हाइड्रोकार्बनों के रूप में पाया जाता है।
Dark Saint Alaick
13-12-2012, 11:22 PM
2043 तक अमेरिकी श्वेत आबादी खो देगी बहुसंख्यक दर्जा
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्र के गठन होने के बाद पहली बार ताजा अनुमानों के अनुसार 2043 तक अमेरिका में श्वेत आबादी अल्पसंख्यक हो सकती है। जनगणना ब्यूरो के मुताबिक, पहली बार बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक राष्ट्र के तौर पर वर्ष 2043 की आबादी का अनुमान लगाया गया है। हालांकि, गैर हिस्पेनिक श्वेत आबादी सबसे बड़ा समूह रहेगा लेकिन कोई भी समूह बहुसंख्यक नहीं होगा। ब्यूरो ने 2060 तक के लिए अपनी आबादी के अनुमानों को जारी किया है। उस समय ज्यादा अमेरिकी आबादी बूढ़ी हो जाएगी तथा नस्ली और जातीय रूप से ज्यादा विविधता होगी। अभी अमेरिकी आबादी में अल्पसंख्यक का हिस्सा 37 फीसदी हैं। 2060 तक 57 फीसदी आबादी होने की संभावना है। अल्पसंख्यक आबादी 11.62 करोड़ से 24.13 करोड से ज्यादा हो जाएगी। वर्ष 2012 में गैर हिस्पैनिक श्वेत आबादी के 19.78 करोड़ से 2024 में 19.96 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। वहीं, हिस्पैनिक आबादी 2012 में 5.3 करोड़ की तुलना में 2060 में बढ़कर 12.8 करोड़ हो जाएगी।
rajnish manga
17-12-2012, 10:10 AM
यूरोप में 1500 साल पहले गई थीं भारतीय घुमंतू जातियां
न्यूयार्क। यूरोप के आस पास के हिस्सों में रहने वाले 13 घूमंतू समूहों के अनुवांशिक (जीन) विश्लेषण से यह पता चला है कि इन सभी जातियों का सम्बंध पश्चिमोत्तर भारत से है, जो लगभग 1500 वर्ष पहले बहुत लंबी दूरी तय करके यहां पहुंची थीं। करंट बायोलाजी जरनल में प्रकाशित ताजा अध्ययन के मुताबिक 1500 वर्ष पहले भारत से ये घुमंतू जातियां लगभग एक ही बार यूरोप की ओर निकली थीं। इससे पहले तक यह माना जाता रहा था कि ये घुमंतू समूह मिस्र से आए थे और इससे पहले इन्हें इजिप्शियन ही कहा जाता था। पश्चिमोत्तर भारत से सबसे पहले ये घुमंतू बाल्कन क्षेत्र में पहुंचे और वहां छह सौ साल तक रहने के बाद इन्होंने वहां से आगे और उसके आसपास के क्षेत्रों की ओर रुख किया।
रोमा जिप्सी जातियों के बारे में यह माना जाता है कि वे भी इतने समय पहले भारत से कूच करने के बाद यूरोप के एक विस्तृत इलाके में यायावरी का जीवन व्यतीत करने लगे. उनकी भाषा तथा रहन सहन में भारतीय भाषाओं के शब्दों और भारतीय परम्पराओं (चाहे बिगड़े हुये रूप में ही सही) की झलक मिलती है. समाचार में वर्णित खोज भी इसी ओर इशारा करती है.
Dark Saint Alaick
22-12-2012, 09:43 PM
भारतीय महिलाएं रोजाना पुरुषों के मुकाबले 94 मिनट ज्यादा काम करती हैं
नई दिल्ली। भारत में महिलाएं रोजाना पुरुषों के मुकाबले डेढ घंटे ज्यादा काम करती हैं। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) की स्त्री-पुरुष और रोजगार संबंधी रपट के मुताबिक विश्व भर में श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी बढी है लेकिन काम के समय, दशा और उससे आय के मामलों में स्त्री पुरुष के बीच बड़ी विषमता है। विश्लेषण में पाया गया कि ज्यादातर देशों में यदि बिना भुगतान वाले काम को भी जोड़ ले तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अधिक समय काम करना पड़ता है । ओईसीडी की रपट में कहा गया कि ओईसीडी के सदस्य देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले औसतन 21 मिनट ज्यादा काम करती हैं। कुल मिलाकर यह अंतर भारत में सबसे अधिक है जहां महिलाएं रोजाना पुरुषों के मुकाबले 94 मिनट ज्यादा काम करती है। हालांकि कुछ देशों डेनमार्क, स्वीडेन, नार्वे, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड - में पुरुष आम तौर पर महिलाओं के मुकाबले थोड़ा ज्यादा काम करते हैं। ब्रिटेन और जर्मनी में पुरुष महिलाएं रोजाना बराबर काम करते हैं। ओईसीडी देशों में एक ही तरह का काम करके पुरुष महिलाओं के मुकाबले 16 फीसद अधिक आय अर्जित करते हैं। शीर्ष पद और उच्चतम वेतन वाली नौकरियों के मामले में महिलाएं और भी पीछे हैं और शिकायत है कि शीर्ष पद पर महिलाओं की प्रोन्नति में बाधाएं हैं। ओईसीडी के महासचिव एंजल ग्यूरिया ने पेरिस में ओईसीडी जेंडर फोरम की रपट में कहा, ‘सतत आर्थिक वृद्धि और समावेशी समाज बनाने की किसी भी रणनीति में इस बात का भी प्रमुखता से ध्यान रखा जाए कि - पुरुष और महिलाओं के बीच के बीच भेदभाव खत्म हो।’
Dark Saint Alaick
03-01-2013, 08:17 PM
अंतरिक्ष में ऊर्जा के विशाल स्रोत
मेलबर्न। खगोलविदों के एक दल ने दावा किया है कि उन्होंने अंतरिक्ष में पृथ्वी से दिखाई देने वाले, ऊर्जा के विशाल स्रोतों को मापने में मदद की है और ये स्रोत 1,000 किमी प्रति सेकंड की गति से आकाशगंगा के मध्य से निकल रहे हैं। न्यूसाउथ वेल्स में एक दूरबीन से इस प्रक्रिया का अवलोकन कर रहे खगोलविदों के हवाले से एबीसी की खबर में कहा गया है कि कथित अंतरिक्ष गीजर नवनिर्मित तारों से अत्यंत वेग से निकल रहे हैं। पहले माना जाता था कि ऊर्जा के इन स्रोतों का उद्भव आकाशगंगा के मध्य में स्थित ब्लैक होल से हो रहा है। इन कथित अंतरिक्ष गीजर्स की खोज न्यू साउथ वेल्स, अमेरिका, इटली और नीदरलैंड के खगोलविदों ने की। खोज के बारे में जानकारी ‘नेचर’ पत्रिका के आज के अंक में प्रकाशित हुई है। अनुसंधान दल के प्रमुख, सीएसआईआरओ के एत्तोरे कैरेटी ने कहा कि जो बहाव है उसमें मौजूद उर्जा तारे के विस्फोट से निकलने वाली उर्जा से लाख गुना ज्यादा है। यह हमारी ओर नहीं आ रहा है। गैलेक्टिक प्लेन से निकलने के बाद इसकी दिशा में कई बार बदलाव हो रहा है। हमें कोई खतरा नहीं है, क्योंकि गैलेक्टिक सेंटर से हमारी पृथ्वी की दूरी 30,000 प्रकाश वर्ष है।
Dark Saint Alaick
06-01-2013, 08:07 PM
परेशानी में महिलाओं की मदद के लिए छात्रों ने बनाई ‘रोबोटिक सैंडल’
ठाणे। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की पृष्ठभूमि में ठाणे के चार छात्रों ने एक ‘रोबोटिक सैंडल’ बनाया है जो परेशानी के समय महिलाओं के लिए मददगार होगा। सातवीं और नौवीं कक्षा के चार छात्रों ने एक लेडीज सैंडल तैयार किया है जिसके निचले भाग में एक उपकरण लगाया गया है। इस उपकरण में धातु की एक कील है जिसमें पांच वोल्ट का करेंट आता है। छात्रों ने कल मीडिया के समक्ष इस सैंडल के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि परेशानी के समय अगर सैंडल को जमीन पर दो बार जोर से मारा जाए तो यह सक्रिय हो जाता है और इसका उपकरण से जुड़ा वायरलेस अलार्म बज उठता है। उपकरण को बैग में या पर्स में रखा जा सकता है। अलार्म बजना बंद होने पर उपकरण पहले से तय किए गए कुछ विशेष नंबरों पर एसएमएस भेजता है जिससे पता लगाया जा सकता है कि परेशान महिला किस जगह पर है। छात्रों का यह भी दावा है कि अगर महिला सैंडल से हमलावर पर प्रहार करती है तो धातु की कील के सक्रिय होने की वजह से उसे करेंट लगेगा। यह गैजेट पिछले माह ठाणे में एक स्पर्द्धा के दौरान पेश किया गया था। वहां बच्चों ने अपने बनाए हुए वैज्ञानिक गैजेट पेश किए थे। रोबोटिक सैंडल मराठा मंदिर स्कूल में नौवीं कक्षा के छात्र सिद्धार्थ वानी, ए के जोशी स्कूल में सातवीं कक्षा की शाम्भवी जोशी और चिन्मय मराठे तथा माउंट मार्यस केल्हर स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र चिन्मय जाधव ने तैयार किया है। बाद में इन छात्रों को शहर के एक निजी संगठन ‘चिल्ड्रन्स टेक सेंटर’ ने सहयोग दिया। यह संगठन बच्चों की प्रतिभा एवं विज्ञान आधारित गतिविधियों को बढ़ावा देता है। सेंटर के प्रबंधन निदेशक पुरुषोत्तम पाचपांडे ने बताया कि सेंटर ने बच्चों को रोबोट के बारे में प्रशिक्षण दिया जिससे छात्रों को अपने गैजेट तैयार करने में मदद मिली। उन्होंने बताया कि रोबोटिक सैंडल का करीब दर्जन भर महिलाओं ने परीक्षण किया और इसकी कीमत 2,000 रुपए है। फिलहाल इसे वाणिज्यिक रूप से तैयार नहीं किया जा रहा है। छात्रों ने कहा कि अपराधों की आशंकाओं के मद्देनजर लोग आत्मरक्षा के लिए हथियार रखते हैं, कराटे की कक्षाएं जाते हैं, काली मिर्च और लाल मिर्च का पाउडर रखते हैं लेकिन यह उपकरण कहीं ज्यादा बेहतर है।
Dark Saint Alaick
06-01-2013, 08:08 PM
नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल पर मोती के रंग का ‘फूल’ ढूंढा
वाशिंगटन। नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर फूल के आकार वाला अलग तरह का झुरमुट पाया जिससे लाल ग्रह पर फूलों के खिलने की संभावनाओं को बल मिला है। इसे ‘मंगल के फूल’ नाम से बुलाया जा रहा है। इस झुरमुट की तस्वीर नासा के क्यूरोसिटी रोवर द्वारा पिछले महीने खींची गई थी। तस्वीर में मोती के रंग वाला यह फूल एक चट्टान की सतह से निकलता दिख रहा है। न्यूयार्क डेली न्यूज की खबर के अनुसार अंतरिक्ष की खबरों में दिलचस्पी रखने वाले लोग आॅनलाइन चर्चाओं में विभिन्न राय व्यक्त कर रहे हैं। एक टिप्पणीकार ने कहा कि यह एक खिलते हुए फूल की शरुआती अवस्था हो सकती है। इससे पहले अक्टूबर में इसी तरह की एक खोज सामने आई थी लेकिन वह प्लास्टिक का टुकड़ा निकला था जो रोवर से ही वहां गिरा था। लेकिन नासा के प्रवक्ता जी वेबस्टर ने समाचारपत्र को एक इमेल में बताया कि लेकिन यह झुरमुट चट्टान का ही हिस्सा लग रहा है।
Dark Saint Alaick
07-01-2013, 11:21 PM
ठंड में रहें चौकस : लापरवाही से हो सकती है परेशानी
कानपुर। कड़ाके की ठंड में वैसे तो सभी को सावधान रहने की जरूरत है, लेकिन उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी के मरीज इन दिनों थोड़ा ज्यादा एहतियात बरतें क्योंकि ठंड भगाने के लिए खाने या ‘पीने’ में की गई जरा सी लापरवाही उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है। डाक्टरों का मानना है कि भीषण सर्दी उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी के मरीजों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है, इसलिए सर्दी से तो बचाव करें ही साथ ही साथ खान-पान पर भी ध्यान दें और तेल और मक्खन से बने खाद्य पदार्थों से पूरी तरह बचें । उनका कहना है कि लोगों के मन में एक गलतफहमी है कि सर्दी के दिनों में गर्म चीजें जैसे गुड़ से बनी गजक आदि खाने से या व्हिस्की या रम के दो पैग गुनगुने पानी से लेने से सर्दी भाग जाएगी, लेकिन दरअसल ऐसा नहीं है क्योंकि ऐसा करने से आपको फौरी तौर पर भले ही सर्दी से राहत मिले, लेकिन बाद में रक्तचाप और ब्लड शूगर बढ़ सकता है, जो नुकसानदेह साबित हो सकता है । संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) के कार्डियोलोजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सुदीप कुमार ने एक विशेष बातचीत में बताया कि सर्दियां बच्चों और बुजुर्गो के लिए तो खतरनाक होती ही हैं लेकिन हाई ब्लड प्रेशर अथवा दिल की किसी बीमारी के मरीजों के लिए भी खासी परेशानी पैदा करती हैं । सर्दी में उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि ठंड की वजह से पसीना नहीं निकलता है और शरीर में नमक (साल्ट) का स्तर बढ़ जाता है जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है । प्रो. कुमार ने बताया कि सर्दी में शारीरिक गतिविधियां कम होने से भी रक्तचाप बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है और रक्तचाप बढ़ने से दिल के दौरे का जोखिम बढ़ जाता है । सर्दी में धमनियों में सिकुड़न से खून में थक्का जमने की आशंका बढ़ जाती है, जो दिल के रोगियों के लिए ठीक नहीं है। इस तरह के रोगियों को सर्दी में अधिक चिकनाई वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए क्योंकि सर्दी में दिल को अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है जो कभी कभी उस पर भारी पड़ जाती है । पीजीआई के डा. सुदीप के अनुसार ठंड में उच्च रक्तचाप और दिल के मरीज सुबह की सैर से बचें और हो सके तो शाम को टहल लें या व्यायाम कर लें। उन्होंने सलाह दी कि इस तरह के रोगियों को इतना चलना या व्यायाम करना चाहिए कि इनके शरीर से पसीना निकलने लगे । इसके लिए खुले मैदान में जाना जरूरी नहीं, किसी हेल्थ क्लब या घर में ही व्यायाम कर अपने को चुस्त दुरुस्त रखा जा सकता है । उन्होंने रक्तचाप और दिल के मरीजों को सात या आठ घंटे की नींद लेने की सलाह दी ताकि तनाव से बचे रहें। साथ ही सर्दी में शरीर और कानों को गर्म कपड़े से ढक कर रखने पर जोर दिया क्योंकि जरा सी लापरवाही परेशानी का कारण बन सकती है । जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल प्रो नवनीत कुमार ने बताया कि सर्दी के मौसम में अस्पताल आने वाले उच्च रक्तचाप और दिल के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है।
Dark Saint Alaick
08-01-2013, 10:32 AM
जुकाम, कफ, कंपकंपी, बुखार, सांस में दिक्कत हो सकते हैं न्यूमोनिया के लक्षण
नई दिल्ली। लगातार जुकाम, कफ, कंपकंपी, बुखार और सांस लेने में दिक्कत अगर समय रहते दूर न हो तो इसे केवल ठंड की बीमारी नहीं समझना चाहिए क्योंकि यह न्यूमोनिया की शुरूआत भी हो सकती है। यूनिसेफ का कहना है कि फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी न्यूमोनिया दुनिया भर में बच्चों की मौत का मुख्य कारण है और हर साल विश्व के करीब 18 फीसदी बच्चे इसकी वजह से अपनी जान गंवाते हैं। सर गंगाराम अस्पताल के शिशु स्वास्थ्य संस्थान में नियोनैटोलॉजी विभाग के कन्सल्टैंट नियोनैटोलॉजिस्ट डॉ. पंकज गर्ग ने कहा ‘दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के करीब 20 फीसदी मामलों का कारण न्यूमोनिया होता है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। ठंड तो एक कारण है ही। समय से पूर्व प्रसव और नवजात शिशुओं का सामान्य से कम वजन न्यूमोनिया के खतरे को बढाते हैं।’ उन्होंने कहा ‘न्यूमोकॉकल कॉन्जूगेट टीका (पीसीवी) और एचआईबी टीका नवजात शिशुओं और बच्चों में न्यूमोकॉकल बीमारियों और एच इन्फ्लुएंजा बीमारी से बचाव के लिए कारगर होता है। लेकिन जानकारी के अभाव में कई बच्चे इन टीकों से वंचित रह जाते हैं। ऐहतियात के तौर पर इन टीकों का लगना जरूरी होता है।’ इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रोहित सी अग्रवाल ने कहा कि दुनिया भर में हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब 14 लाख बच्चे न्यूमोनिया की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं। यह आंकड़ा एड्स, मलेरिया और टीबी से बच्चों की मौत के कुल आंकड़े से कहीं ज्यादा है। यह समस्या ठंड में बढ जाती है। डॉ. अग्रवाल ने कहा ‘भारत के लिये यह अधिक चिंता की बात है। न्यूमोनिया पर इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर की 2012 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर दिन पांच साल से कम उम्र के 1,000 से अधिक बच्चों की मौत इस बीमारी से होती है। इससे बचाव के लिए स्वच्छ पर्यावरण, कुपोषण की समस्या का हल, शुरूआती छह माह तक स्तनपान, समय पर टीकाकरण और स्वास्थ्य संबंधी समुचित देखभाल जरूरी है। ऐसा होने पर ही न्यूमोनिया से होने वाली शिशु मृत्युदर पर लगाम कसी जा सकती है। टीके की मदद से न्यूमोनिया को रोका जा सकता है।’ न्यूमोनिया वास्तव में श्वांस संबंधी समस्या है जिसमें फेफड़ों में बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद या परजीवी का संक्रमण हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, न्यूमोनिया से होने वाली मौत का मुख्य कारण स्ट्रैप्टोकॉकस न्यूमोनिया है। फेफड़ों में संक्रमण (न्यूमोनिया), मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्क में संक्रमण), बैक्टेरेमिया (रक्त में संक्रमण), ओटाइटिस मेडिया (कानों में संक्रमण) और साइनोसाइटिस (साइनस संक्रमण) आदि को न्यूमोकॉकल बीमारियां कहा जाता है। डॉ. पंकज के अनुसार, 24 माह से 59 माह के ऐसे बच्चों को न्यूमोकॉकल बीमारियां होने की आशंका अधिक होती है जिनका जन्म समय से पहले हुआ हो, जिनका वजन सामान्य से कम हो, जिनके फेफड़ों का पूर्ण विकास न हुआ हो, फेफड़ों में हवाओं की गुहा संकरी हों, जिन्हें कुपोषण हो या जिनका प्रतिरोधक तंत्र कमजोर हो। न्यूमोनिया से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान के बारे में जागरूकता का प्रसार कर रही गेरियाट्रिक सोसायटी आफ इंडिया के सचिव डॉ. ओ. पी. शर्मा ने कहा ‘न्यूमोकॉकल बीमारी से बुजुर्गों के प्रभावित होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ साथ उनकी प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। ’ उन्होंने कहा ‘वृद्धावस्था में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, ब्रोंकाइटिस, गुर्दे की बीमारी, कैंसर आदि की वजह से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में बुजुर्गों को न्यूमोकॉकल बीमारियां होने की आशंका बढ जाती है। इसीलिए शिशुओं के साथ साथ 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए भी टीकाकरण बहुत जरूरी है।’
Dark Saint Alaick
12-01-2013, 03:54 PM
अकेले रहोगे तो जल्दी मरोगे, वैज्ञानिकों का है कहना
लंदन । अकेले रहने वाले महिला और पुरुष की तुलना में शादी शुदा लोग अधिक लंबा जीवन जीते हैं। यह कुछ इस तरह का खुलासा है जिससे अकेले और खुशहाल रहने वाले महिला और पुरुष भी जल्द से जल्द अपना पार्टनर तलाश करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। ब्रिटेन के दैनिक ‘द टेलीग्राफ’ के अनुसार हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि ऐसे महिला एवं पुरुष जो शादीशुदा हैं या रिश्तों को लंबे समय तक बनाए रखकर उनको स्थायित्व देते हैं वे अकेले रहने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा दिन जीते हैं। अमेरिका की ड्यू क यूनिवर्सिटी आफ अमेरिका के अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि अगर व्यक्तित्व और व्यवहार पर भी नजर डाली जाए तो इस पर भी लंबा जीवन जीने में वैवाहिक स्थिति का बड़ा प्रभाव देखा जा सकता है। अध्ययन में यह भी खुलासा किया गया कि क्यों शादीशुदा लोग या स्थायी संबंध बनाने वाले लोग लंबा जीवन जी पाते हैं। अध्ययन में बताया गया कि शादीशुदा लोगों को अपने साथी से जिस तरह का भावनात्मक सहयोग मिलता है वह ऐसे लोगों के लंबे समय तक जीने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डा. इलीने सीगलर और उनके सहयोगियों ने जीवन के मध्य में होने वाली असमय मृत्यु पर वैवाहिक इतिहास और विवाह के समय के प्रभाव का अध्ययन 1940 के दशक में जन्मे 4802 लोगों पर किया। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि शादीशुदा लोग और लंबे समय तक स्थायी रिश्ते निभाने वाले लोगों के लंबा जीवन जीने की प्रबल संभावना होती है और इन लोगों की तुलना में ऐसे लोग जो अपनी आधी उम्र गुजर जाने तक विवाह नहीं कर पाए हैं या जिनके पास कोई स्थायी पार्टनर नहीं है ऐसे लोगों पर असमय मृत्यु का खतरा अधिक मंडराता रहता है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि जीवन के मध्य में बनने वाले सामाजिक संबंध असमय होने वाली मृत्यु को समझने में हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि ऐसे लोग जिनके पास अपना साथी है उनका मानसिक स्वास्थ्य भी अकेले रहने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा अच्छा रहता है।
Dark Saint Alaick
12-01-2013, 03:57 PM
खगोलविदों ने खोजी ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचना
लंदन। खगोलविदों ने क्वासर्स के समूह के रूप में ब्रह्माण्ड की अभी तक की सबसे बड़ी ज्ञात संरचना की खोज की है। क्वासर्स का यह समूह इतना विशाल है कि अगर प्रकाश की गति से चला जाए तो भी इस समूह को पार करने में चार अरब वर्षों का समय लगेगा। ब्रिटेन की केंद्रींय लंकाशायर यूनिवर्सिटी द्वारा की गई इस खोज को रायल एस्ट्रोनामिकल सोसायटी के मासिक जनरल में प्रकाशित किया गया है, साथ ही इसे सोसायटी की वेबसाइट पर भी डाला गया है। क्वासर्स को ब्रह्माण्ड का सबसे अधिक चमकीला तत्व माना जाता है, जिसमें ब्रह्माण्ड के निर्माण के शुरुआती दिनों से आकाशगंगाओं के नाभिकों से प्रकाश निकल रहा है जो अरबों प्रकाश वर्ष से प्रकाशमान है। सोसायटी की वेबसाइट में कहा गया कि क्वासर्स के सम्बंध में 1982 से यह ज्ञात है कि यह तत्व एक-दूसरे के निकट आकर आश्चर्यजनक रूप से बडेþ संरचना बनाने की क्षमता रखते हैं और अंतत: लार्ज क्वासर्स ग्रुप (एलक्यूजी)बनाते हैं। हाल ही में खोजे गए क्वासर्स समूह का विस्तार 500 मेगा पारसेक तक है और एक मेगा पारसेक का आकार 33 प्रकाश वर्ष के बराबर होता है।
Dark Saint Alaick
14-01-2013, 12:26 AM
पंजाब में कैंसर से रोज मरते हैं 18 से अधिक लोग
जालंधर। पंजाब सरकार द्वारा हाल ही में सूबे में कैंसर के मरीजों की पहचान के लिए कराये गए सर्वेक्षण में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं । इसके अनुसार पिछले पांच साल से औसतन हर रोज इस बीमारी से राज्य में 18 से अधिक लोगों की मौत हो रही है । कैंसर से सबसे अधिक मौतें लुधियाना जिले में और सबसे कम मौतें नवांशहर जिले में हुई हैं । पंजाब सरकार के राज्य स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र के कार्यकारी निदेशक डा. प्यारे लाल गर्ग ने बताया, ‘राज्य सरकार द्वारा कराये गए सर्वे की रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि पिछले पांच साल में राज्य में रोज इस बीमारी से औसतन 18 से अधिक लोगों की जानें गयी हैं । कैंसर से सबसे अधिक मौतें लुधियाना में हुई हैं और उसके बाद जालंधर तथा अमृतसर में हुई हैं ।’ गर्ग ने बताया, ‘सर्वेक्षण की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में पिछले पांच साल में 33,109 लोगों ने इस बीमारी से दम तोड़ा है । इस बीमारी से पिछले पांच साल में लुधियाना में 3945, जालंधर में 3249 और अमृतसर में 2755 मौत हुई हैं । इसके बाद फिरोजपुर का स्थान है जहां 2440 लोगों ने इससे दम तोड़ा है ।’ उन्होंने बताया कि एक दिसंबर से पांच जनवरी तक चले इस सर्वे में राज्य में 23,675 कैंसर मरीजों की पहचान की गयी है । इसमें भी लुधियाना का स्थान सबसे आगे है और वहां 3169 कैंसर के मरीज पाये गए हैं । इसके बाद फिरोजपुर में 2108 तथा अमृतसर में 1870 मरीजों की पहचान की गयी है । गर्ग ने बताया कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार इस बीमारी से पिछले पांच साल में सबसे कम मौत नवांशहर और बरनाला जिले में हुई हैं । इन दोनों जिलों में यह संख्या क्रमश: 548 और 780 है । हालांकि कैंसर के मरीजों की पुष्टि के मामले में तरन तारन जिला सबसे नीचे है और उससे उपर नवांशहर है । दोनों जिलों में क्रमश: 407 और 503 लोगों में कैंसर की पुष्टि हुई है । निदेशक ने यह भी बताया कि सर्वेक्षण में कैंसर के लक्षणों का भी पता लगाया गया है । राज्य में 84, 110 ऐेसे लोग पाए गए हैं जिनमें कैंसर के लक्षण हैं । इस मामले में अमृतसर पहले स्थान पर है और उसके बाद जालंधर तथा संगरूर का नंबर है जहां क्रमश: 8483, 8179 और 7738 लोगों में कैंसर के लक्षण पाये गए हैं । उन्होंने यह भी बताया कि बरनाला जिले में सबसे कम 1091 लोगों में कैंसर के लक्षण मिले हैं । हालांकि, इससे उपर नवांशहर का स्थान है जहां 1232 लोगों में इसके लक्षण पाये गए हैं । अधिकारी ने बताया, ‘यह सर्वेक्षण राज्य में एक दिसंबर से 31 दिसंबर तक चलाया गया था । हालांकि कुछ जिलों में सर्वेक्षण का काम चार पांच दिन आगे भी चला । अब हम इन सभी जिलों से आ रहे इन आंकड़ों को एकत्र कर रहे हैं और यह लगभग पूरा हो चुका है ।’ यह पूछे जाने पर अंतिम रिपोर्ट कब तक आएगी, गर्ग ने कहा कि यह लगभग पूरा हो चुका है । इस महीने की 15 तारीख को संबंधित मंत्री रिपोर्ट जारी करेंगे । एक अन्य सवाल के उत्तर में अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में राज्य के 50 लाख से अधिक घरों के दो करोड़ 63 लाख से अधिक लोगों को शामिल किया गया है । कैंसर से सर्वाधिक प्रभावित बठिंडा जिले में कैंसर से मौत, मरीजों की पुष्टि और इसके लक्षण के मामले में सुधार हुआ है । सर्वेक्षण के अनुसार जिले में यह आंकड़ा क्रमश: 1627, 2058 और 3521 है । सर्वेक्षण के अनुसार जिन अन्य जिलों में पिछले पांच साल में अधिक मौत हुई हैं उनमें फिरोजपुर में 2440, संगरूर में 2274 और गुरदासपुर में 2125 लोग शामिल हैं । इन जिलों में क्रमश: 2108, 1482 तथा 1424 लोगों में कैंसर बीमारी की पुष्टि हुई है । इसमें यह भी कहा गया है कि उपरोक्त अवधि में श्रीफतेगहगढ साहिब में 809 और तरन तारन में 930 लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं । नये सर्वेक्षण के अनुसार अब दोआबा क्षेत्र को भी यह बीमारी अपनी चपेट में ले रही है ।
Dark Saint Alaick
15-01-2013, 12:50 AM
आईएलबीएस ने तीन साल में यकृत के 66 और गुर्दे के पांच सफल प्रतिरोपण किए
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली स्थित यकृत एवं पित्त संस्थान (आईएलबीएस) ने अपनी स्थापना के तीन साल के भीतर ही यकृत के 66 और गुर्दे के पांच सफल प्रतिरोपण कर कई लोगों को नया जीवन दिया है। संस्थान के तीसरे स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में आईएलबीएस के निदेशक डॉ. एस के सरीन ने बताया कि विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त यह संस्थान पूरी तरह से यकृत के उपचार को समर्पित एशिया का एकमात्र विश्वविद्यालय है। डॉ. सरीन ने कहा कि आईएलबीएस ने वर्ष 2012 में यकृत अध्ययन का एशिया का पहला केंद्र स्थापित किया है और पूरी तरह से यकृत के उपचार को समर्पित एशिया का एकमात्र विश्वविद्यालय है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार की ओर से स्थापित इस अतिआधुनिक संस्थान में 180 बिस्तर हैं, जिनमें से 74 को सघन जांच(आईसीयू) के लिए इस्तेमाल किया जाता है। संस्थान ने कई पोस्ट डॉक्टोरल कार्यक्रम भी शुरू किए हैं, जो इसे अन्य संस्थानों से काफी अलग श्रेणी में ला खड़ा करता है। संस्थान में आयोजित समारोह के दौरान अंगदान करने वाले कई लोगों के योगदान की चर्चा हुई और कई लोगों ने अंगदान का संकल्प भी लिया।
Dark Saint Alaick
16-01-2013, 02:33 AM
बेल्जियम में दृष्टिहीन जुड़वां भाइयों को इच्छामृत्यु
ब्रुसेल्स । बेल्जियम में जन्म से गूंगे और बहरे जुड़वां भाइयों ने 45 वर्ष की आयु का कष्टप्रद सफर मिलजुलकर तय किया लेकिन इसके बाद दोनों की देखने की शक्ति भी चली गई । देखने और सुनने से लाचार एक दूसरे पर पूरी तरह निर्भर इन अभिन्न यानी आइडेंटिकल भाइयों का जीना दुश्वार हो गया और उन्होंने साथ-साथ ही मौत को गले लगाने की इच्छा व्यक्त की जिसे देश की अदालत ने स्वीकार कर लिया । यूजे ब्रुसेल्स अस्पताल के प्रवक्ता ने बताया कि दोनों भाइयों ने साथ-साथ काफी पी और एकदूसरे को अश्रुपूरित नयनों से अलविदा किया । इसके बाद डाक्टर ने उन्हें जहरीला इंजेक्शन लगाकर मौत की नींद सुला दिया। प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें इच्छामृत्यु सिर्फ इसलिए नहीं दी गई क्योंकि वे गूंगे और दृष्टिहीन थे बल्कि इसलिए दी गई क्योंकि एक दूसरे को देख और न सुन पाने के कारण उनके लिए जीना मुश्किल हो गया था। प्रवक्ता ने बताया कि उनके परिवार ने भी इच्छामृत्यु की उनकी मांग का समर्थन किया था । बेल्जियम उन कुछ देशों में एक है जहां इच्छामृत्यु कानूनी अधिकार है। बेल्जियम ने वर्ष 2002 में इच्छामृत्यु को कानूनन वैध किया गया था । इसके बाद से इस तरह के मामलों की संख्या लगातार बढ़ी है । वर्ष 2011 में 1133 लोगों को इच्छामृत्यु दी गई जिनमें से 86प्रतिशत 60वर्ष से अधिक उम्र के थे तथा 72 प्रतिशत कैंसर से जूझ रहे थे ।
Dark Saint Alaick
16-01-2013, 02:34 AM
आस्ट्रेलियाई मूल निवासियों में हो सकते हैं भारतीय जीन्स : अध्ययन
बर्लिन। वैज्ञानिकों ने आज से लगभग चार हजार साल पहले भारतीय और आस्ट्रेलिया के बीच होने वाले जैविक प्रवाह के सबूत खोज निकाले हैं। भारत और आस्ट्रेलिया का यह संपर्क भारत के यूरोप के साथ संबंधों से भी पुराना है। शोधकर्ताओं ने आस्ट्रेलिया के सबसे पुराने निवासियों, न्यू गिनी के लोगों, दक्षिण पूर्वी एशियाई और भारतीयों में जीन परिवर्तनों का विश्लेषण किया। इन परिणामों से पता चलता है कि आज से 4,230 साल पहले भारत से आस्ट्रेलिया की ओर काफी मात्रा में जैविक प्रवाह हुआ था। यह यूरोप के संपर्क में आने से पहले की बात है। ऐसा माना जाता है कि आस्ट्रेलिया लगभग 40 हजार साल पहले अपने प्रारंभिक उपनिवेशीकरण और 1800 के अंतिम सालों में यूरोपीयों के आने के बीच में अलग-थलग सा पड़ा रहा था। इस अध्ययन को जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर एवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी ने किया। संस्थान को आस्ट्रेलियाई, न्यू गिनी और फिलीपीन की मामान्वा जनसंख्या के बीच एक समान उद्भव के सबूत देखे। इन समुदायों ने शुरूआत में दक्षिणी दिशा में प्रवास मार्ग को अपनाया था जबकि अन्य आबादी इस क्षेत्र में कुछ समय बाद रहने आईं। अफ्रीका के बाहर कुछ आधुनिक इंसानों की मौजूदगी के पुरातत्विक सबूत आस्ट्रेलिया में देखने को मिलते हैं। यहां के पुराने स्थल आज से कम से कम 45 हजार साल पुराने होंगे। ये स्थल आस्ट्रेलिया में अफ्रीका के अतिरिक्त सबसे पुरानी और सतत जनसंख्या होने की पुष्टि करते हैं। पहले यह माना जाता था कि साहुल-समग्र आॅस्ट्रेलिया-न्यू गिनी भूभाग पर लोगों के आने के बाद और 18 वीं सदी के अंत में यूरोपीयों के आगमन के बीच आॅस्ट्रेलिया बाकी विश्व से पूरी तरह अलग-थलग पड़ा था। शोधकर्ता इरीना पुगाचा ने एक बयान में कहा, ‘यह तिथि आस्ट्रेलिया के पुरातत्विक रिकॉर्ड में कई बदलावों की तारीखों से मेल खाती है। इनमें वनस्पति प्रसंस्करण में अचानक आए परिवर्तन और पत्थर के बने औजारों की तकनीकें और अवशेषों के रिकॉर्ड रखने के लिए डिंगो (आस्ट्रेलियाई कुत्ता) की मदद लेना आदि शामिल हैं।’ उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम भारत से आस्ट्रेलिया की ओर जैविक प्रवाह भी इसी समय के दौरान देख रहे हैं इसलिए ये बदलाव इस प्रवास से जुड़े हुए भी हो सकते हैं।’ शोधकर्ताओं ने आस्ट्रेलिया, न्यू गिनी और ममान्वा की आबादी और फिलीपीन्स के निग्रितो समूह के बीच समान उद्भव पाया। उनका अनुमान है कि ये समूह आज से लगभग 36 हजार साल पहले एक दूसरे से अलग हो गए थे। इससे संकेत मिलते हैं कि आस्ट्रेलियाई और न्यू गिनी के लोग काफी पहले ही अलग-अलग चले गए थे न कि तब जबकि यह इलाका 8000 साल पहले समुद्री जल के बढने से अलग हुआ था।
Dark Saint Alaick
16-01-2013, 02:35 AM
भारतीय वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज में सहायक अणु की खोज की
कन्नूर (केरल)। बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अणु की पहचान की है जिसके बारे में उनका दावा है कि यह कैंसर के इलाज में मददगार होगा। इस अणु की खोज संस्थान के वैज्ञानिक डा. एस सी राघवन के नेतृत्व वाले वैज्ञानिकों के एक दल ने की है। इस अणु का नाम ‘सतीश एस एससीआर7’ रखा गया है तथा इसके बारे में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका ‘सेल’ में विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है। आईआईएससी के सहायक प्रोफेसर राघवन ने यहां संवाददाताओं से कहा कि यह खोज कैंसर के इलाज के वर्तमान इलाज में सुधार में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। केरल के कन्नूर जिले के रहने वाले प्रो राघवन ने कहा कि हम आशा करते हैं कि यह खोज कैंसर के इलाज के वास्ते नई पीढ़ी की दवाएं विकसित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी।
भारतीय वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज में सहायक अणु की खोज की
कन्नूर (केरल)। बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अणु की पहचान की है जिसके बारे में उनका दावा है कि यह कैंसर के इलाज में मददगार होगा। इस अणु की खोज संस्थान के वैज्ञानिक डा. एस सी राघवन के नेतृत्व वाले वैज्ञानिकों के एक दल ने की है। इस अणु का नाम ‘सतीश एस एससीआर7’ रखा गया है तथा इसके बारे में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका ‘सेल’ में विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है। आईआईएससी के सहायक प्रोफेसर राघवन ने यहां संवाददाताओं से कहा कि यह खोज कैंसर के इलाज के वर्तमान इलाज में सुधार में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। केरल के कन्नूर जिले के रहने वाले प्रो राघवन ने कहा कि हम आशा करते हैं कि यह खोज कैंसर के इलाज के वास्ते नई पीढ़ी की दवाएं विकसित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी।
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Dark Saint Alaick
22-01-2013, 12:36 AM
भारत में पहले प्रोटोन उपचार केंद्र की स्थापना करेगा अपोलो अस्पताल
कोलकाता। देश में स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराने वाला अस्पताल समूह अपोलो भारत में कैंसर के इलाज के लिये प्रोटोन उपचार केंद्र खोलेगी जो दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में अपनी तरह का पहला केंद्र होगा । अस्पताल सूत्रों ने यहां बताया कि इससे भारत में विकिरण के जरिये उपचार की दिशा में नये चरण की शुरूआत होगी । इस केंद्र के खोलने पर 400 करोड़ रपये का खर्च आयेगा । सूत्रों ने बताया कि इस बात पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है कि कहां पर केंद्र को स्थापित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि आपोलो प्रोटोन उपचार केंद्र के लिये आईबीए (इओन बीम अप्लीकेशन एस. ए) उपकरण और सेवायें मुहैया करायेगी ।
Dark Saint Alaick
22-01-2013, 10:10 PM
अब कम पैसे में भी हो सकेगा दिल का इलाज
लखनऊ। अब कम पैसे में भी हो सकेगा दिल का इलाज वह भी सरकारी अस्पतालों में। यह कारनामा यहां डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान ने कर दिखाया है। संस्थान ने मात्र तीस हजार रुपए में एक किशोर के दिल के सफल आपरेशन से यह साबित कर दिया कि सरकारी अस्पताल में दिल का बेहतर इलाज हो सकता है वह भी कम पैसे में। संस्थान में दिल के आपरेशन के लिए आधुनिकतम सुविधाएं शुरू हुए मात्र दो वर्ष हुए और इस अवधि में यह पहला सफल आपरेशन रहा। खेलने, कूदने और पढ़ने की उम्र में एक बच्चे को मजबूरी में स्कूल छोड़ना पड़ा, क्योकि उसके माता-पिता को अचानक पता चला कि उसके लाल के हृदय में जबर्दस्त खराबी है। चौदह वर्षीय अशोक कुमार का न सिर्फ स्कूल छूटा, बल्कि बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले का यह बालक यहां के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में अपनी जिन्दगी की जंग लड़ रहा है। उसे हृदय विभाग के गहन कक्ष में वरिष्ठ डॉक्टरों की देखरेख में रखा गया है। चिकित्सकों के अनुसार वह हृदय की घात (रियूमेटिक) बीमारी से ग्रस्त है। सांस की दिक्कत और सीने में असहनीय दर्द की वजह से उसकी पढ़ाई छूटी और अब वह जान बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। दिन-प्रतिदिन उसके स्वास्थ्य में गिरावट आती जा रही है।
Dark Saint Alaick
23-01-2013, 11:27 PM
शराब पीने वालों को नहीं आते सपने
लंदन। सदियों से शराब पीने के बाद अच्छी नींद आने के दावे तो किए जाते रहे हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इसके आदी होने के कारण लोगों को सपने दिखने भी बंद हो जाते हैं। यह मानकर कि शराब पीने से अच्छी नींद आती है दुनिया की कई संस्कृतियों मे सोने से पहले थोड़ी शराब पीने की परंपरा है। इसी तरह कई अस्पतालों में भी मरीजों को नींद लाने के लिए थोड़ी शराब दी जाती है लेकिन हाल ही में किए गए एक शोध से पता चला है कि इस नींद के लिए लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। ब्रिटेन की राजधानी लंदन स्थित स्लीप सेंटर ने हाल ही में नींद पर शराब के प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान पता चला कि शुरुआत में शराब पीने की वजह से नींद आती है इसीलिए अनिद्रा के मरीज धड़ल्ले से इसका सेवन करते हैं। शोधकर्ता डा. अब्राहम का कहना है कि लोगों को नियमित रूप से शराब पीने से बचना चाहिए। शोध के मुताबिक शुरुआत में थोड़ी मात्रा में शराब फायदेमंद लगती है लेकिन अगर सोने के पहले हर दिन नियमित रूप से शराब का सेवन किया जाने लगता है तो इससे कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। लोग नींद के लिए शराब पर निर्भर हो जाते हैं और शराब पीने के बाद नींद भी उचाट हो जाती है। लगातार शराब सेवन से धीरे-धीरे हल्की नींद आने लगती है और इस वजह से सपने पहले कम आते हैं और बाद में सपने दिखते ही नहीं। शराब का एक और दुष्प्रभाव यह है कि इसके कारण लोगों को खर्राटे आने लगते हैं और खर्राटे अगर पहले से ही आते हैं तो नींद में सांस रुकने की समस्या शुरू हो जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि नींद लाने के लिए शराब पीने के बजाय नाइट कैप पहनना ज्यादा अच्छा है।
Dark Saint Alaick
24-01-2013, 12:51 AM
भारतीय सीईओ सर्वाधिक आशावादी
पीडब्ल्यूसी ने सर्वेक्षण में किया खुलासा
दावोस। इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और लम्बी अवधि में अपने कारोबारी आय की संभावनाओं को लेकर उम्मीद की बात की जाए तो दुनियाभर में भारतीय कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) सबसे अधिक आशावादी हैं। भारतीय सीईओ के विश्वास के उच्च स्तर के उलट दुनियाभर में सीईओ के विश्वास का स्तर गिर रहा है। यह खुलासा विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक में पीडब्ल्यूसी द्वारा जारी एक सर्वेक्षण में किया गया। सर्वेक्षण के मुताबिक, अपनी कंपनियों के लिए लोगों की नियुक्तियों के सम्बंध में भी भारत में सीईओ के विश्वास का स्तर काफी ऊंचा है, जबकि पिछले साल अपनी कंपनियों में छंटनी की संभावना देखने वाले सीईओ का प्रतिशत न्यूनतम है। सोलहवें वार्षिक सीईओ सर्वेक्षण के नतीजों की घोषणा करते हुए पीडब्ल्यूसी ने कहा कि सीईओ को अपने कारोबार के लिए सही प्रतिभा खोजने, शेयर बाजारों में स्थिरता की कमी, राजकोषीय घाटे को लेकर सरकार के कदमों और बढ़ते नियमन व कर बोझ के सम्बंध में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दुनियाभर में 36 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि वे 2013 में अपनी कंपनी के विकास की संभावना को लेकर ‘बहुत विश्वस्त’ हैं। पिछले साल 40 प्रतिशत सीईओ और 2011 में 48 प्रतिशत सीईओ ने यह प्रतिक्रिया दी थी। संपूर्ण आर्थिक परिदृश्य के बारे में 28 प्रतिशत सीईओ को इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में और गिरावट आने की आशंका है, जबकि केवल 18 प्रतिशत सीईओ ने उम्मीद जताई कि इसमें सुधार होगा, वहीं 50 प्रतिशत से अधिक ने अनुमान जताया कि यह जस का तस रहेगी।
Dark Saint Alaick
25-01-2013, 02:23 PM
मोटापे के मामले में कोच्चि अव्वल
कोच्चि। महानगरों और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) शहरों को पछाड़ते हुए केरल की व्यावसायिक राजधानी कोच्चि मोटापे के मामले में सबसे आगे निकल गई है । यहां मोटे लोगों की सर्वाधिक संख्या है । एसी नेल्सन द्वारा किए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह बात सामने आई । सर्वेक्षण में देश के 11 शहरों को शामिल किया गया । कोच्चि की लगभग आधी आबादी औसत से अधिक वजन की समस्या से ग्रस्त है । शहर के 46 प्रतिशत लोगों का वजन आदर्श मानक से ज्यादा है । 13 प्रतिशत लोग मोटे हैं और सात प्रतिशत लोग बहुत ज्यादा मोटे हैं। सर्वेक्षण में बेंगलूर, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, लुधियाना, जयपुर, मुम्बई, कोलकाता, अहमदाबाद और नागपुर को शामिल किया गया । सनराइज अस्पताल समूह के चिकित्सा निदेशक डॉ. आर पद्मकुमार और अमृता इंस्टिट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के कंसल्टेंट सर्जन ओवी सुधीर ने सर्वेक्षण के परिणाम पेश किए । पद्मकुमार ने कहा कि सर्वेक्षण का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि कोच्चि में आदर्श वजन से अधिक वजन वाले 80 प्रतिशत लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कॉलेस्ट्रोल, अनिद्रा, नपुंसकता और कैंसर जैसी कम से कम एक स्वास्थ्य संबंधी समस्या से ग्रस्त हैं । उन्होंने कहा कि शहर में 17 प्रतिशत मोटे लोगों ने अपनी समस्या से निजात पाने के लिए कोई समाधान नहीं ढूंढा है । सुधीर के अनुसार कोच्चि में यह समस्या सबसे अधिक इसलिए है क्योंकि इसमें ज्यादातर नगरीय क्षेत्र हैं, जबकि अन्य शहरों में ग्रामीण आबादी भी अच्छी खासी है ।
Dark Saint Alaick
26-01-2013, 12:05 AM
धार्मिक समागमों से बढती है तंदुरूस्ती की भावना : अध्ययन
इलाहाबाद। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ जैसे धार्मिक समागमों में भाग लेने के कारण ‘समान पहचान’ तथा ‘प्रवृत्ति में प्रतिस्पर्धा के बदले सहयोग की भावना’ आने से लोगों में तंदुरूस्ती की भावना और सुख की अनुभूति बढ जाती है। यह निष्कर्ष भारत और ब्रिटेन के नौ विश्वविद्यालयों के मनोचिकित्सकों द्वारा किये गये एक अध्ययन में सामने आये हैं। अध्ययन में पांच भारतीय विश्वविद्यालयों एवं चार ब्रिटिश विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक शामिल हैं। अध्ययन में दावा किया गया है कि यह अभी तक की संभवत: सबसे बड़ी ब्रिटिश भारतीय सामाजिक विज्ञान परियोजना है। इसके निष्कर्षो को आज मीडिया से साझा किया गया। अध्ययन के बारे में जानकारी देते हुए डंडी विश्वविद्यालय के निक हाप्किंस ने कहा, ‘हमने गंगा यमुना नदी के तट पर होने वाले वार्षिक माघ मेले में श्रद्धालुओं द्वारा किये जाने वाले तप कल्पवास का अध्ययन किया है। यह भले ही कुंभ जितना विशाल न हो लेकिन इसमें सैकड़ों से हजारों लोग भाग लेते हैं।’ सेंट एंड्रयू विश्वविद्यालय के स्टीफन रिएचर ने कहा कि एक माह तक कठोर एवं बार..बार दोहरायी जाने वाली दिनचर्या के कारण कल्पवासियों के रवैये में अस्थायी तौर पर ही सही, बदलाव आता है। उनका रवैया प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोगात्मक हो जाता है। यह रवैया रेलवे स्टेशन की भीड़ से ठीक विपरीत होता है जहां हर कोई अपनी जगह सुरिक्षत करने की फिराक में होता है और हर किसी को धक्का देने को तैयार रहता है। इस तरह के समागमों में भीड़ के अनूठे व्यवहार के मूल में यह बात होती है कि वे अन्य लोगों के बारे में ऐसा सोचते हैं कि वे भी हममें से एक है। किसी दूसरे व्यक्ति को अपने में से एक मान लेने की सोच से ही अन्य के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव आ जाता है, भले ही वह पूरी तरह से अपरिचित हो। रिएचर ने कहा कि यह ही बात संभवत: इस तथ्य का स्पष्टीकरण है कि इस तरह के समागमों से जुड़ी साफ सफाई की स्थिति और ध्वनि प्रदूषण के बावजूद तीर्थयात्रियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि लासेंट जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने अपने कई आलेखों में इस तरह के समागमों को स्वास्थ्य के लिए खराब बताया है। उन्होंने कहा, ‘निस्संदेह मेले के कारण स्वास्थ्य के लिए वास्तविक जोखिम उत्पन्न होते हैं और उनकी अनदेखी करना गलत होगा। लेकिन यह कहानी का केवल एक पक्ष है। निश्चित तौर पर हमारे अध्ययन का यह सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकला कि मेले में भागीदारी करने से लोगों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है।’ बेलफास्ट के क्वींस विश्वविद्यालय के क्लिफफोर्ड स्टीवनसन ने कहा कि मेले से हम मानव की तंदुरूस्ती के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं।
Dark Saint Alaick
26-01-2013, 12:06 AM
हल्दी के बड़े-बड़े गुण
ह्यूस्टन। हल्दी का इस्तेमाल तो भारतीय व्यंजनों में किया ही जाता है स्वास्थ्य के दृष्टकोण से भी यह काफी लाभदायक है। इसमें कई औषधीय गुण हैं जो कैंसर, मधुमेह और जलन से निपटने में मददगार होता है। अमेरिका में भारतीय मूल के डॉक्टरों ने इस पर अध्ययन किया है। जॉन हॉपकिंस मेडिसीन के सरस्वती सुकुमार के मुताबिक हल्दी में पीलापन के लिए करक्यूमिन जिम्मेवार होता है। भारतीय व्यंजनों में इसका काफी इस्तेमाल होता है। हजारों वर्षों से भारतीय भोजन में हल्दी का प्रयोग किया जाता रहा है। पिछले दो दशकों में इस पर भी काफी शोध हुए हैं जिससे पता चलता है कि करक्यूमिन गठिया, कैंसर से निपटने में मदद करता है। मधुमेह को भी दूर करने में इसकी अहम भूमिका है।
Dark Saint Alaick
26-01-2013, 12:26 AM
जंक फूड बीमारियों की जड़-शोध
नई दिल्ली। अगर आपके बच्चे जंक फूड के शौकीन है तो सावधान हो जाइए क्योकि इनके शौकीन बच्चो में दमा खुजली और नाक की हड्डियो का संक्रमण (राइनीटिस) देखने को मिल रहा है। सांस संबंधी बीमारियो पर आधारित मेडिकल जर्नल 'थोरेक्स' के आनलाइन एडीशन में यह खुलासा हुआ है। इसमे कहा गया है कि अमीर और गरीब वर्ग के बच्चे पारपंरिक भोजन के बजाय झटपट तैयार होने वाले जंक फूड की चपेट में आकर अपना स्वास्थ्य तो खराब कर ही रहे है, दूसरी गंभीर बीमारियो को भी निमंत्रण दे रहे है। इस अध्ययन 'इन्टरनेशनल स्टडी आफ अस्थमा एवं एलर्जिज इन चाइल्डहुड' में विश्व के 100 से भी अधिक देशो में छह से सात वर्ष और 13 से 14 वर्ष के लगभग पांच लाख बच्चो पर हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पता चला है कि जंक फूड के शौकीन बच्चो में एलर्जिक दमा, एक्जिमा और राइनीटिस के मामले ज्यादा देखने को मिले। खास बात यह भी है कि इन बीमारियो का कोई कारगर इलाज नहीं है और परहेज तथा एहतियात बरतकर इन बीमारियो से बचा जा सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि बच्चो को फल, सब्जियों, दूध और घर में बनने वाली अन्य खाद्य वस्तुओ के लिए प्रेरित करके उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाई जा सकती है।
Dark Saint Alaick
28-01-2013, 11:01 AM
एक टीका छुड़ाएगा शराब की लत
नशामुक्ति टीके का भारत में होगा परीक्षण
वाशिंगटन। शराब के बढ़ते प्रकोप से निबटने के प्रयास में, भारत में जल्द ही एक नए टीके का परीक्षण होने जा रहा है, जिसका उपयोग शराब के आदियों को नशे से छुटकारा दिलाने में किया जाएगा। इस दवा का चिली में प्रीक्लीनिक परीक्षण हो चुका है। चिली विश्वविद्यालय के ‘इंस्टीट्यूट फार सेल डायनामिक्स एंड बायोटेक्नोलाजी’ के निदेशक डाक्टर जुआन असेंजो के हवाले से ‘सांतियागो टाइम्स’ ने कहा कि प्रीक्लीनिकल परीक्षण के बाद अब भारत में क्लीनिक परीक्षण किया जाएगा, जिसके तहत डाक्टर पहली बार इस दवा का लोगों पर प्रयोग करेंगे। अगर सब कुछ ठीक रहता है, तो यह टीका अब से करीब दो साल में उपलब्ध हो सकता है। छह महीने से एक साल में असर दिखाने वाला यह टीका जैवरसायनिक संदेशों को यकृत तक भेजता है। आमतौर पर, यकृत ज्यादा नशा करने वाले वाले व्यक्ति के अंदर अल्कोहल को एसीटलडिहायड में बदलता है, जिसे मेटाबालिसिंग एंजाइम द्वारा तोड़ा जाता है। खबर में कहा गया कि अगर यह टीका लगवाने वाला कोई व्यक्ति शराब पीने की कोशिश करता है, तो उसे तुरंत जी मचलने, दिल की धड़कन बढ़ने और असहज महसूस होने की शिकायत होती है। यह टीका एक बार लगाने के बाद इसे बदला नहीं जा सकता। असेंजो ने कहा कि यह टीका पूरा इलाज नहीं है, लेकिन यह महत्वपूर्ण पहला कदम साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि नशे का आदी होना सामाजिक और व्यक्तिगत समस्या है, क्योंकि वे शर्माते हैं और फिर वे अवसाद के शिकार हो जाते हैं, इसलिए इसका इलाज आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि लेकिन हम समस्या के मूल भाग रसायन को बदल सकते हैं और मुझे लगता है कि इससे थोड़ी मदद मिल सकती है। इस टीके से विश्वभर में लाखों शराबियों को मदद मिल सकती है।
Dark Saint Alaick
28-01-2013, 11:03 AM
सूर्य के वातावरण में ‘चुंबकीय परतों’ की खोज
न्यूयॉर्क। नासा की एक अंतरिक्ष दूरदर्शी से सूर्य के बाहरी वातावरण में बहुत गर्म तत्व की ‘चुंबकीय परतें’ देखी गई हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे सूरज के रहस्यमय गर्म वातावरण के बारे में विस्तार से जानकारी मिल सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि नासा की उच्च रिजॉल्यूशन वाली कोरोनल इमेजर या हाई सी द्वारा की गई यह खोज अंतरिक्ष के मौसम के बारे में और अच्छी तरह पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकती है। नासा के मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर में सौर अंतरिक्ष विज्ञानी जोनाथन किरटेन और उनके दल ने पिछले साल जुलाई में 9.5 इंच की दूरदर्शी को पृथ्वी के वातावरण से परे 10 मिनट की उड़ान पर सूर्य के गर्म क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए भेजा था। यह क्षेत्र लाखों डिग्री सेल्सियस वाला सूर्य का बाहरी क्षेत्र है। ‘स्पेस डॉट कॉम’ के अनुसार दूरदर्शी की मदद से 165 तस्वीरें खींची गईं। वैज्ञानिकों ने हाल ही में पता लगाया था कि सूर्य की सतह से नीचे शक्तिशाली चुंबकीय तरंगें सूर्य के बाहरी क्षेत्र को 15 लाख डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर सकती हैं। हालांकि केवल इससे सूर्य के बाहरी क्षेत्र के अत्यधिक तापमान का पता नहीं चलेगा। इस बारे में जानकारी ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित की गई है।
Dark Saint Alaick
28-01-2013, 11:03 AM
आइंस्टीन के समीकरण के पीछे हो सकते हैं एक से अधिक दिमाग?
वाशिंगटन। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हो सकता है कि आइंस्टीन के युगांतरकारी समीकरण ‘ई बराबर एमसी स्क्वायर’ में एक अनजाने से आस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी ने भी योगदान दिया हो। ‘यूरोपियन फिजीकल जर्नल एच’ में जल्द ही प्रकाशित होने वाले एक अध्ययन में पेन्सिल्वेनिया के हावरफोर्ड कालेज के स्टीफन ब्राउन और न्यूजर्सी के प्रिंसटन विश्वविद्यालय के टोनी रोथमैन ने कहा कि हो सकता है कि अपनी मेहनत के लिए थोड़ा ही श्रेय हासिल करने वाले आस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी फ्रेडरिक होसनेहर्ल ने समीकरण (ई बराबर एमसी स्क्वायर) में योगदान दिया हो। शोधकर्ताओं ने एक बयान में कहा कि ऐसा नहीं है कि वर्ष 1905 में यह समीकरण अचानक से सामने आ गया, जब आइंस्टीन ने अपने कागजों में इसे प्रकाशित किया। होसनेहर्ल के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इस आस्ट्रियाई वैज्ञानिक ने ब्लैकबॉडी रेडिएशन के क्षेत्र में वास्तविक काम किया। उन्होंने कहा कि होसनेहर्ल ने ऊर्जा और द्रव्यमान का आपसी सम्बंध स्थापित तो किया, लेकिन वह गलत समीकरण (ई बराबर तीन बंटा आठ एमसी स्क्वायर) दे बैठे।
Dark Saint Alaick
28-01-2013, 04:19 PM
अवसाद, मनोरोग संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद कर सकता है योग
वाशिंगटन। सौ से अधिक अध्ययनों की समीक्षा में पाया गया है कि पांच हजार साल पुरानी भारतीय ध्यान परंपरा ‘योग’ अवसाद और शयन संबंधी समस्याओं सहित बड़े मनोविकारों पर सकारात्मक असर डाल सकता है। इस व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि योग का अवसाद और शयन संबंधी विकारों पर सकारात्मक असर पड़ता है और यह स्वास्थ्य में सुधार करता है। खास बात यह है कि योग का असर दवाओं के इलाज के बगैर भी होता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में लिखा कि हमारा लक्ष्य यह पता करने का था क्या सबूतों का वादों से तालमेल है या नहीं।
Dark Saint Alaick
28-01-2013, 09:27 PM
चने का जीनोम डीकोड किया गया
नई दिल्ली । अर्ध सिंचित क्षेत्रों के फसलों पर शोध करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था, इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर द सेमी एरिड ट्रोपिक्स (एक्रीसेट) ने दक्षिण एशिया में दाल दलहन की प्रमुख फसल चने के जीनोम को, डीकोड पढ़ लिया गया है। एक्रीसेट के महानिदेशक डा. विलियम्स दार ने यहां बताया कि इससे दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों में चने की फसल का लाभ होगा और उन्नत किस्में विकसित की जा सकेंगी। डा. दार ने बताया कि चने के जीनोम को डीकोड करने की योजना लगभग दो वर्ष पहले बनाई गई और इस पर व्यापक शोध हैदराबाद स्थित एक्रीसेट के मुख्यालय में किया गया। इस परियोजना से 10 देशों के 23 संगठनों के 49 वैज्ञानिक जुडे थे। उन्होंने बताया कि शोध में 10 देशों में बोए जाने वाले चनों को शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि इस परियोजना से भारत,अमेरिका और चीन मुख्य रूप से जुड़े हुए थे। उन्होंने बताया कि चने की डीकोडिंग के बाद इसकी किस्मों को विकसित करने में मदद मिलेगी। यह डीकोडिंग मुख्य रूप से भारत, केन्या, तंजानिया, आस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन और अमेरिका के लिए लाभप्रद होगी। डा. दार ने कहा है कि एक ओर तो वैश्विक स्तर पर तापमान बढ़ रहा है और दूसरी ओर लगभग साढे अरब आबादी को भोजन उपलबध कराना बड़ी चुनौती है। उन्होंने दावा किया गया कि चने की किस्मों को विकसित करना आसान होगा और इसे नकदी फसल में बदला जा सकेगा। चने को नकदी फसल में बदलने से किसानों की आय मे इजाफा होगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि चने में शोध का नया रास्ता खुला है और अगले चार से आठ वर्ष के भीतर नई किस्म सामने आ जाएगी। डा. दार ने कहा कि जीनोम की डीकोडिंग का डाटा सबकी पहुंच मे रहेगा। कोई भी शिक्षण संस्थान, निजी संस्थान, व्यापारिक संस्थान और व्यक्तिगत स्तर पर इसका इस्तेमाल कर सकता है। कृषि सचिव आशीष बहुगुणा कहा कि भारत मे चने की नई किस्म विकसित करने से विदेशी मुद्राएं बचाई जा सकेंगी। चने की डीकोडिंग से कीट रोधी और सूखा रोधी किस्में विकसित होंगी। शोध का भारतीय प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक और फसल विज्ञान विभाग के प्रमुख डा. स्वप्न दत्ता ने कहा कि चने की डीकोडिंग से भारत को बहुत लाभ होगा। शोध में भारतीय चने की 20 किस्मों को शामिल किया गया था।
Dark Saint Alaick
29-01-2013, 02:09 AM
सुंदरबन के 85 फीसद बच्चों की सेहत का दारोमदार झोला छाप डाक्टरों पर: रिपोर्ट
सुंदरबन (पश्चिम बंगाल)। एक नवीनतम रिपोर्ट में यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया गया है कि पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के 85 फीसद बच्चों की सेहत का दारोमदार झोला छाप डाक्टरों और नीम-हकीमों पर है। अगले माह प्रकाशित होने जा रही आईआईएचएमआर, जयपुर और फ्यूचर हेल्थ सिस्टम्स की सुंदरबन हेल्थ वाच रिपोर्ट में गैर-पंजीकृत आरएमपी डाक्टरों के व्यापक नेटवर्क का नक्शा पेश किया गया है कि कैसे अधकचरे नीम हकीम वहां के स्वास्थ्यसेवा पर काबिज हैं। रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक संपदा से मालामाल सुंदरबन के सुंदर टापुओं पर वास करने वाले 45 लाख लोगों की सेहत की देखरेख तकरीबन पांच से सात हजार झोला छाप डाक्टरों के भरोसे होती है। वहां बमुश्किल 50 एमबीबीएस डाक्टर कार्यरत हैं। रिपोर्ट में यह भी रहस्योद्घाटन किया गया है कि चाहे अमीर हों या गरीब, 85.3 फीसद बीमार बच्चों के मां-बाप इलाज के लिए पाथरप्रतिमा के झोला छाप आरएमपी के पास जाते हैं। इन बच्चों का इलाज ऐसे ही झोला छाप डाक्टरों के नुस्खों और दवाओं से होता है। रिपोर्ट कहती है, ‘लोग (इलाज के लिए कुछ गैर सरकारी संगठन को छोड कर) भौतिक निकटता, यात्रा में लगने वाले न्यूनतम समय और सबसे सस्ती बाजार दर के कारण आरएमपी को पसंद करते हैं।’ दूरदराज पर स्थित होने, गंदे पेयजल और भौगोलिक एवं जलवायु के खतरों के चलते टापु वासियों को स्वास्थ्य के बड़े जोखिमों से जूझना पड़ता है। मछली पकड़ने या शहद तथा लकड़ी जैसे वनोत्पाद जमा करने के लिए दलदली इलाकों और जलमार्गों से बार-बार गुजरने वालों को शेर या मगरमच्छ जैसे जानवरों के काटने का खतरा बना रहता है। इसके साथ ही सांप के डंसने, कुत्तों के काटने, हादसों में घायल होने और त्वचा रोगों से ग्रस्त होने वालों की एक बड़ी तादाद है जिन्हें स्वास्थ्य सेवा की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा ऐसे भी लोगों की अच्छी खासी संख्या है जो मानसिक विकार के शिकार हैं और जिन्हें इन विकारों के लिए स्वास्थ्य सेवा दरकार होती है। सुंदरबन के इन टापुओं पर सभी तरह के संक्रामक रोगों का प्रकोप है। इन टापुओं के निवासियों को श्वसन प्रणाली और पाचन संबंधी संक्रामक रोग सबसे ज्यादा सताते हैं। रिपोर्ट में यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया गया है कि झोला छाप डाक्टर ना सिर्फ जटिल बीमारियों का इलाज करने की कोशिश करते हैं, वे छोटे बड़े आपरेशनों से भी बाज नहीं आते। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित की गई है कि ये डाक्टर ऐंटीबायोटिक्स के अलावा स्टेरायड्स का उपयोग कर रहे हैं और धीरे धीरे इन-पेशेंट स्वास्थ्यसेवा में घुस रहे हैं। इस तरह के रोगियों को अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। श्रीधरनगर ग्राम पंचायत के लोग याद करते हैं कि कैसे जब 25 साल की फातिमा बेगम (परिवर्तित नाम) गर्भधारण के अंतिम चरण में थी तो एक झोला छाप डाक्टर ने उसका सीजरियन आपरेशन किया था। नीम हकीम के चक्कर में फंस कर ना सिर्फ फातिमा के गर्भ में पल रहा बच्चा मर गया बल्कि उसको भी अपनी जान गंवानी पड़ी। आईआईएचएमआर के प्रो. बरूण कांजीलाल ने बताया कि दूरदराज के टापुओं और सुंदरबन के दक्षिणी हिस्सों के ज्यादातर लोगों को इन्हीं झोला छाप डाक्टरों के भरोसे रहना पड़ता है।
bindujain
29-01-2013, 05:05 AM
डाक्टरों की कमी होना तथा ग्रमीण क्षेत्र में उनका कम न करना कारण है
Dark Saint Alaick
29-01-2013, 09:46 PM
थायरॉइड भी बन सकता है दिल की बीमारियों का कारण
नई दिल्ली। आम तौर पर लोग थायरॉइड की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते लेकिन इसके कारण शरीर में कोलेस्ट्रॉल और लिपोप्रोटीन का स्तर अनियमित हो जाता है जिससे दिल की बीमारियां, हृदयाघात, अवसाद और आर्थरोस्क्लेरोसिस की आशंका बढ़ जाती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डॉ रवि मलिक ने बताया कि ‘गले में पाए जाने वाली अंत:स्त्रावी ग्रंथि थायरॉइड से निकलने वाला हार्मोन थायरॉक्सिन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है। किसी कारणवश इस हार्मोन का उत्पादन कम या ज्यादा होने लग जाए तो थायरॉइड की समस्या हो जाती है। थायरॉक्सिन का उत्पादन कम होने पर व्यक्ति को हाइपोथायरॉइड और उत्पादन अधिक होने पर हाइपरथायरॉइड की समस्या हो जाती है।’ उन्होंने बताया कि आम तौर पर लोगों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है। दवाओं से इसे नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसका समय रहते पता चलना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वरना यह बीमारी खतरनाक हो सकती है। जिन बच्चों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है उनका मानसिक विकास बाधित होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि थायरॉक्सिन हार्मोन दिमाग के विकास के लिए बहुत जरूरी है। इंडियन थायरॉइड सोसायटी के अध्यक्ष तथा कोच्चि स्थित अमृता इन्स्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ आर वी जयकुमार ने बताया कि यह कड़वा सच है कि हाइपोथायरॉइड के चलते कोलेस्ट्रॉल और लिपोप्रोटीन का स्तर अनियमित हो जाता है और करीब 90 फीसदी मरीज डिस्लिपीडीमिया के शिकार हो जाते हैं। डॉ जयकुमार ने बताया ‘डिस्लिपीडीमिया के कारण अवसाद, आर्थरोस्क्लेरोसिस, हृदयाघात और दिल की अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। थायरॉइड हार्मोन शरीर में लिपिड सिंथेसिस, मेटाबोलिज्म (चयापचय) और अन्य शारीरिक क्रियाओं में मुख्य भूमिका निभाता है। डिस्लिपीडीमिया की वजह से कोलेस्ट्रॉल, लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल आदि का स्तर बढ़ जाता है जो खुद शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण के लिए दवाएं दी जाती हैं लेकिन थायरॉइड का नियंत्रण इसमें कारगर हो सकता है। राजधानी के मेट्रो हॉस्पिटल के डॉ अनुपम जुत्शी ने बताया कि थायरॉइड की समस्या के कारण अनुवांशिकी, पर्यावरणीय या पोषण आधारित हो सकते हैं। यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन आम तौर पर 20 से 40 साल के लोगों को इसकी आशंका अधिक होती है। डॉ जयकुमार ने बताया कि थायरॉइड की समस्या आॅटोइम्यून डिजीज की देन भी होती है। किसी कारणवश थायरॉइड ग्रंथि की कोशिकाएं और ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाएं या ये कोशिकाएं और ऊतक स्वत: ही क्षतिग्रस्त हो जाएं तो थायरॉक्सिन हार्मोन के उत्पादन पर असर पड़ता है। कभी थायरॉइड ग्रंथि में गांठ बन जाती हैं जिससे हार्मोन उत्पादन प्रभावित हो जाता है। हमारे शरीर को ऊर्जा उत्पादन के लिए थायरॉइड हार्मोन की निश्चित मात्रा चाहिए। इसमें एक बूंद की कमी या अधिकता ऊर्जा स्तर को गहरे तक प्रभावित करती है। डॉ मलिक ने बताया कि थायराइॅड की समस्या का स्थाई इलाज नहीं है। लेकिन समय-समय पर जांच तथा दवाओं से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है और लोग सामान्य जीवन बिता सकते हैं।
Dark Saint Alaick
29-01-2013, 09:47 PM
फसल की उत्पादकता बढ़ाने वाले नए जीन की खोज
न्यूयार्क। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे नए जीन की खोज की है जिससे फसल के उत्पादन में कम से कम पचास फीसदी के इजाफे की उम्मीद की जा रही है। इस जीन की खोज से यह उम्मीद की जा रही है कि किसान अब पुराने खेत में उतनी ही मात्रा में पानी और खाद का इस्तेमाल करके भी इतना फसल उत्पादन कर पाएंगे कि 2050 तक लगभग 9.5 अरब जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी। न्यूयार्क स्थित कोरनेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए ‘स्केयरक्रो ’ नाम के इस जीन से कृषि क्षेत्र मे क्रांति आ सकती है इस जीन की मदद से खाद्य फसलों की नई किस्मों का विकास किया जा सकता है जिनकी उत्पादकता पचास प्रतिशत से ज्यादा होगी। इस जीन को पत्ती की एक विशेष कैज संरचना को नियंत्रित करने के दौरान खोजा गया था लेकिन बाद में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इससे प्रकाशसंश्लेषण ‘फोटोसिंथेसिस’ में भी इजाफा होता है। पौधों में दो तरीकों से प्रकाशसंश्लेषण को अंजाम दिया जाता है। सीश3 नाम का पहला तरीका थोड़ा कम प्रभावी होता है लेकिन धान और गेंहू के साथ-साथ अधिकतर पौधों में प्रकाशसंश्लेषण का यही तरीका पाया जाता है। सीश4 नाम का दूसरा तरीका प्रभावी अनुकूलन है जो घास, मक्का और गन्ने में पाया जाता है यह सूखी-मृदा में पोषक तत्वों के अभाव और अत्यधिक गर्मी जैसी चरम स्थितियों में भी प्रभावी रहता है।
Dark Saint Alaick
31-01-2013, 01:07 AM
वक्त से पहले ही ‘लोगों को पढना’ शुरू कर देते हैं शिशु
न्यूयार्क। बच्चे मात्र डेढ़ साल की उम्र में यह अंदाजा लगाना सीख जाते हैं कि दूसरे लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है । चीन, फीजी और इक्वाडोर में 19 माह से लेकर पांच साल तक के बच्चों पर किए गए शोध में यह बात सामने आई है । अध्ययन रिपोर्ट के लेखक और यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया में मानव विज्ञानी एच क्लार्क बैरेट ने कहा कि ये आंकड़े हमारी उन सामाजिक क्षमताओं पर और प्रकाश डाल सकते हैं जिनके चलते हम अपने करीबी जीवित सम्बंधियों यानी चिम्पांजी से खुद को अलग पाते हैं । लाइव साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इंसान दूसरे व्यक्ति के दिमाग में चल रहे विचारों, भावनाओं, इच्छाओं को समझने में बेहद दक्ष होता है । इस चीज को समझने के लिए छोटे बच्चों पर ‘फाल्स बिलीफ’ टेस्ट किया गया । इस जांच में एक व्यक्ति कमरे के भीतर आता है और किसी वस्तु को एक छुपाने वाली जगह पर रखता है । एक दूसरा व्यक्ति उसके बाद आता है और उस वस्तु को अपनी जेब में रख लेता है। उसे पहले व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं पता। इसके बाद कोई बच्चे से पूछता है कि तुम्हें क्या लगता कि पहला व्यक्ति छुपाई गई चीज को कहां ढूंढेगा? पश्चिमी देशों में चार से सात साल के अधिकर बच्चों का जवाब होता है कि पहला व्यक्ति उस चीज को उसी स्थान पर ढूंढेगा जहां वह छुपाकर गया था क्योंकि उसे नहीं पता कि उसकी चीज उस जगह से हटा दी गई है । लेकिन दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बच्चों द्वारा यह जवाब देने की उम्र अलग अलग होती है ।
Dark Saint Alaick
31-01-2013, 01:07 AM
मासूम दिखने वाली बिल्लियां होती है जन्मजात हत्यारिन
वाशिंगटन। बिल्लियों का नाम आते ही आपके मन में क्या छवि उभरकर आती है, अगर यह छवि ‘मासूम’ है तो आप सावधान हो जाइए क्योंकि मासूम नजर आने वाली ये बिल्लियां जन्मजात हत्यारिन होती हैं। अमेरिका मे हाल ही में हुए एक शोध में बिल्लियों से जुड़ी इस बेहद चौंका देने वाली सच्चाई का खुलासा हुआ है। स्मिथसोनियन संरक्षण जीवविज्ञान संस्थान और अमेरिकी मत्स्यन तथा वन्यजीवन सेवा के शोधार्थियों द्वारा किए गए अध्ययन में बताया गया कि बडे पैमाने पर पक्षियों और दूसरे स्तनपायी जानवरों की मौत के लिए ज्यादातर बिल्लियां ही जिम्मेदार होती हैं। आनलाइन जनरल ‘नेचर कम्युनिकेशन’ पर आए इस शोध में बताया गया कि पहले जितना समझा जाता था, उसकी तुलना में बिल्लियां कहीं अधिक संख्या में दूसरे वन्यजीवों की हत्या को अंजाम देती है। इंसानों की घनी बस्तियों में तो अधिकतर पक्षियों और दूसरे स्तनपायी जीवों की हत्या में तो संभवत: सबसे अधिक हाथ बिल्लियों का ही होता है।
Dark Saint Alaick
31-01-2013, 09:32 PM
चीन में डिब्बाबंद स्वच्छ हवा की बिक्री शुरु
बीजिंग। चीन के करोड़पति उद्यमी चेन गुआंगबियाओ ने देश मे बढ़ते जा रहे वायु प्रदूषण के खिलाफं एक अनूठी मुहिम छेडते हुये डिब्बाबंद स्वच्छ हवा बेचने की शुरुआत की है। गुआंगबियाओ ने कल कहा कि मैं हमारे देश के सभी अधिकारियों को यही संदेश देना चाहता हूं कि सिर्फ जीडीपी विकास दर के पीछे मत भागिए हमारे बच्चों नाती पोतों और पर्यावरण की बलि देकर लाभ कमाने की नीति छोड़िए। गुआंगबियो ने कल सोडा कैन के आकार वाले स्वच्छ हवा के डिब्बों को बेचने की कल से शुरुआत की। यह हवा शिनजियांग जैसे दूरदराज के हिस्सो से भरकर लाई गई है। उल्लेखनीय है कि विश्व की चोटी की अर्थव्यवस्था बनने की होड मे चीन दुनियाभर की कंपनियों को अपने यहां आकर कारखाने लगाने का न्यौता दे रहा है। इन कारखानो से निकलने वाले धुएं से देश मे वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से ऊपर चढ़ा है। वायु प्रदूषण को पीएम2.5 पैमाने पर मापा जाता है। विश्व स्वास्थय संगठन के अनुसार रोजाना 20 पीएम का स्तर सामान्य है, जबकि तीन सौ से अधिक के स्तर को स्वास्य के लिये खतरनाक बताया गया है। बीजिंग मे वायुप्रदूषण का स्तर पांच सौ पीएम का आंकडा पार कर चुका है और 12 जनवरी को 755 पीएम के स्तर तक जा पहुंचा था।
Dark Saint Alaick
01-02-2013, 09:01 AM
भारत में तेजी से कम हो रही है ‘हिमालयी वियाग्रा’ : अध्ययन
काठमांडो। भारत और नेपाल में ‘हिमालयी वियाग्रा’ के नाम से मशहूर यर्सगुम्बा तेजी से घट रही है क्योंकि इसकी बहुत अधिक कटाई हो रही है। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के निष्कर्ष में यह बात कही है। शोधकर्ताओं ने कहा कि मर्दाना ताकत में बढोतरी करने वाली यह औषधि नेपाल में बड़ी तेजी से कम हो रही है। चाइनीज एकैडमी आफ साइंसेज इंस्टीट्यूट आफ माइक्रोब्लॉजी के वैज्ञानिक लियू जिंघजोंग ने कहा, ‘हिमालय से लगे कई देशों जैसे चीन, भारत और भूटान में भी यह औषधि तेज रफ्तार से घट रही है।’ अध्ययन में बताया गया है कि इस औषधि से जुड़ा सालाना कारोबार 11 अरब डालर है।
Dark Saint Alaick
01-02-2013, 10:24 PM
विवाह घटा सकता है हृदयाघात का खतरा : अध्ययन
लंदन। अविवाहित लोगों की तुलना में विवाहित लोगों को हृदयाघात का खतरा कम होता है और दिल का दौरा पड़ने पर उनके ठीक होने की संभावना भी अविवाहितों की तुलना में ज्यादा होती है। फिनलैंड के एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि अविवाहित महिला या अविवाहित पुरूष को किसी भी उम्र में हृदयाघात होने का खतरा अधिक होता है। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि प्रौढ विवाहित जोड़े में से अगर किसी को दिल का दौरा पड़े तो अस्पताल ले जाने से पहले और अस्पताल ले जाने के बाद उसकी हालत उतनी खराब नहीं होती जितनी अविवाहितों की होती है। अध्ययन के नतीजे ‘यूरोपियन जर्नल आॅफ प्रीवेन्टिव कार्डियोलॉजी’ में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन ‘एफआईएनएएमआई’ मायोकार्डियल इन्फर्मेशन रजिस्टर के वर्ष 1993 से 2002 के बीच के आंकड़ों पर आधारित है। यह अध्ययन फिनलैंड के चार अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों में रह रहे 35 साल से अधिक उम्र के लोगों के आंकड़ों पर आधारित है।
Dark Saint Alaick
01-02-2013, 10:24 PM
परिवर्तित अनुवांशिकी वाला हरपीज वायरस कैंसर रोकने में सक्षम
लंदन। वैज्ञानिकों ने अनुवांशिकी में बदलाव कर एक ऐसा हरपीज वायरस तैयार किया है जो स्तन कैंसर और अंडाशय के कैंसर का प्रसार रोक सकता है। इतालवी वैज्ञानिकों को लगता है कि यह वायरस कैंसर का नया इलाज विकसित करने में मददगार हो सकता है। इस वायरस की अनुवांशिकी इस तरह परिवर्तित की गई है कि इसका मनुष्य पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। ‘ओंकेलाइटिक’ हरपीज सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) उन ट्यूमरों पर बहुत तेजी से हमला करता है जिनमें अत्यधिक सक्रिय ‘हर-2’ जीन पाया जाता है। अनुसंधानकर्ताओं ने प्रयोग के दौरान चूहों में मानव के स्तन और अंडाशय के कैंसर वाले ट्यूमर विकसित कराए। फिर उन्होंने परिवर्तित अनुवांशिकी वाला हरपीज वायरस उनके शरीर में इंजेक्शन के जरिये प्रविष्ट कराया। उन्होंने पाया कि वायरस ने कैंसर कोशिकाओं का प्रसार रोक दिया था। अध्ययन के नतीजे ‘पब्लिक लायब्रेरी आॅफ साइंस पैथोजेन्स’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
Dark Saint Alaick
01-02-2013, 11:46 PM
कबूतर के जीनोम का खाका तैयार
वाशिंगटन। अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने कबूतरों के पालतू बनाए जाने के 5,000 सालों बाद उनके जीनोम का खाका तैयार किया है। कोलुंबा लिविया के वैज्ञानिक नाम वाला यह पक्षी पृथ्वी के सबसे आम प्रजातियों में से एक है। विभिन्न रंग रूपों वाली इसकी करीब 350 प्रजातियां पूरे ग्रह पर फैली हैं। कबूतर उन चुनींदा पक्षियों में है, जिनके जीनोम का अब तक खाका तैयार किया गया है। यूनिवर्सिटी आफ उटाह में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े माइकल शैपरियो ने कहा कि पक्षी पृथ्वी पर जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा हैं और आश्चर्यजनक तौर से हम उनकी आनुवांशिकी के बारे में बहुत कम जानते हैं। उन्होंने बताया कि इससे हमें पक्षियों के क्रमिक विकास के बारे में नई जानकारियां मिलेंगी।
Dark Saint Alaick
02-02-2013, 02:27 PM
खुशहाल शादीशुदा जीवन से जुड़ा है किशोरावस्था में मिला सकारात्मक पारिवारिक माहौल
वाशिंगटन। नए अध्ययन में दावा किया गया है कि किशोरावस्था में सकारात्मक पारिवारिक वातावरण में रहने वाले लोग अपने शादीशुदा जीवन में ज्यादा संतुष्ट महसूस करते हैं । डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट एकरमैन और उनके सहयोगी देखना चाहते थे कि किशोरावस्था में परिवार में मिले सकारात्मक वातावरण से लोगों को दीर्घावधि लाभ होता है या फिर उनका भविष्य के संबंधों पर कोई असर होता है । अध्ययनकर्ताओं ने लोवा यूथ एण्ड फैमिलिज प्रोजेक्ट में भाग लेने वाले लोगों के आंकड़ों का अध्ययन किया । इस अध्ययन के परिणाम एसोसिएशन फॉर साइकोलॉजिकल साइंस की पत्रिका 'साइकोलॉजिकल साइंस' में प्रकाशित हुआ है ।
Dark Saint Alaick
04-02-2013, 01:23 AM
अब प्रतिभाओं को निखारने के लिए अलग तरीका अपना रही हैं कंपनियां
नई दिल्ली। विभिन्न कंपनियां अब अपने कर्मचारियों की प्रतिभा को निखारने के लिए परंपरागत ‘क्लासरूम’ के तरीके छोड़ रही हैं। अब कंपनियां कर्मचारियों की प्रतिभा को निखारने के लिए उन्हें कठिन परियोजनाओं में काम करने का मौका देती हैं। वैश्विक मानव संसाधन कंपनी हे ग्रुप ने यह बात कही है। विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण आर्थिक और कारोबारी माहौल के बीच यह चलन देखने को मिल रहा है। हे ग्रुप इंडिया के लीडरशिप एंड टैलेंट प्रैक्टिस लीड मोहनीश सिन्हा ने कहा कि प्रतिभा प्रबंधन और उनको निखारने पर अब सिर्फ एचआर विभाग ही ध्यान नहीं दे रहा, बल्कि कुल प्रबंधन की निगाह इस पर है। प्रतिभा और नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करने के चलते अब कंपनियां कर्मचारियों के विकास के लिए ‘क्लासरूम’ का तरीका छोड़ रही हैं। सिन्हा ने कहा कि हाल के समय में खासकर उभरते बाजारों की कंपनियां अपने प्रतिभावान कर्मचारियों को मुश्किल परियोजनाओं में काम करने का मौका दे रही हैं। इससे न केवल उनकी प्रतिभा निखरेगी, बल्कि भविष्य के लिए उनके नेतृत्व का विकास भी हो सकेगा। हे गु्रप के अनुसार यदि किसी कंपनी के कर्मचारियों या अधिकारियों को भविष्य में सफलता हासिल करनी है, तो उन्हें नई दक्षताएं और क्षमताएं पानी होंगी।
Dark Saint Alaick
06-02-2013, 03:54 AM
गलती करेंगे तो थरथराएगी कलम
लंदन। जर्मनी की एक कंपनी ने ऐसा हाई-टेक कलम तैयार किया है जो व्याकरण या हिज्जे की आपकी हर गलती पर थरथराएगा और आपको इसका एहसास दिलाएगा । जर्मन कंपनी लर्नस्ट्रिफ्ट ने युवाओं के लिए इस पेन को तैयार किया है ताकि उन्हें लिखने में मदद मिल सके । हालांकि सभी उम्र के व्यक्ति के यह काम आएगा । डेली मेल की खबर में बताया गया कि कलम झटपट हिज्जे और व्याकरण की गलती पकड़ पाने में सक्षम है और यह लेखक के हाथ में थरथराने लगता है । लर्नस्ट्रिफ्ट की वेबसाइट के मुताबिक, पेन का निर्माण करने वाले फॉल्क और मैंडी वोल्स्की को अपने बेटों की शुरुआती लेखन प्रयासों को देखने के बाद इस बनाने की प्रेरणा मिली।
Dark Saint Alaick
06-02-2013, 11:33 PM
सोशल मैसेजिंग की नई एप्लीकेशन ‘गपशप मैसेंजर’
नई दिल्ली। गपशप टेक्नोलॉजीज ने गपशप मैसेंजर नाम से आज अपना मोबाइल एप्लीकेशन पेश किया जो सोशल मैसेजिंग को नए स्तर पर ले जाएगा और लोगों को सभी तक पहुंचने की सुविधा उपलब्ध कराएगा। गपशप एप्लीकेशन एंड्रायड, आईओएस, ब्लैकबेरी और नोकिया एस 40 प्लेटफार्म पर चलने में सक्षम है। अगर संदेश प्राप्त करने वाले व्यक्ति के मोबाइल में यह एप्लीकेशन नहीं है तो गपशप उसे बिना किसी शुल्क के सामान्य प्रारूप में संदेश भेजेगा। इस एप्लीकेशन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उसे किसी तरह का एसएमएस प्लान खरीदने की जरूरत नहीं होगी। एप्लीकेशन को पेश करने के मौके पर गपशप के सह संस्थापक और सीईओ बीरूड सेठ ने कहा कि भारत और इंडोनेशिया जैसे उभरते बाजारों में ढेरों खूबियों वाले स्मार्टफोन आ गए हैं। गपशप जैसी सेवाएं डाटा और एसएमएस को एकीकृत करती हैं और लोगों की जरूरतें पूरी करती हैं।
Dark Saint Alaick
07-02-2013, 03:11 PM
चार करोड़ साल पहले एशिया से मिला था भारत : नया अध्ययन
न्यूयार्क। मेसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत और एशिया के बीच मिलन 4 करोड़ साल पहले हुआ था। अभी तक माना जाता है कि यह टक्कर 5 करोड़ साल पहले हुई थी और इसी टकराव के चलते भारत इस महाद्वीप का हिस्सा बना था । संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं को इस बात का साक्ष्य मिला है जिससे पता चलता है कि पहले के अनुमानों के विपरीत भारत एशिया से (अवधारणा से) एक करोड़ साल बाद जुड़ा। पहले के अनुमानों के विपरीत टक्कर के समय भारत का आकार भी बहुत छोटा था। हिमालय की चोटियां विशाल टैक्टोनिक बलों (प्लेटों) के अवशेष हैं जिन्होंने करोड़ों साल पहले भारत और एशिया को मिला दिया था। पहले ऐसा अनुमान था कि यह टक्कर करीब पांच करोड़ साल पहले हुई थी। उस समय भारत बहुत तेजी से उत्तर की ओर बढ रहा था और यूरेशिया से टकरा गया। दोनों प्लेटों के बीच हिमालय उपर उठा। हिमालय में आज भारत एवं एशिया, दोनों के भूगर्भीय सबूत मिलते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि भारत और एशिया के बीच यह टक्कर करीब 4 करोड़ साल पहले हुई थी जबकि पहले के अनुमान के अनुसार पांच करोड़ साल पहले यह टक्कर हुई थी। वैज्ञानिकों ने हिमालय के दो क्षेत्रों के चट्टानों के नमूनों के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला। संस्थान के पृथ्वी विभाग के सहायक प्राध्यापक ओलिवर जागोउत्ज ने कहा कि अध्ययन के परिणामों ने टेक्टोनिक सिद्धांत की समय रेखा बदल दी है।
Dark Saint Alaick
10-02-2013, 10:42 PM
फिगर नहीं महिलाओं के दांतों की खूबसूरती पर मरते हैं मर्द
लंदन। महिलाओं और युवतियों को इस बात पर गौर करना चाहिए कि मर्द खूबसूरत फिगर के बजाय मोतियों से चमकते दांतों वाली महिलाओं की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि पुरुष किसी महिला में पहली चीज जो देखते हैं, वह हैं उसके दांत। शोध में यह बात भी सामने आई है कि किसी नई महिला मित्र की खोज में लगे पुरुष के मापदंडों में आकर्षक दांत पहली वरीयता पर होते हैं। शोध में भाग लेने वाले 58 फीसदी लोगों ने कहा कि वे महिलाओं के दांतों की ओर अधिक ध्यान देते हैं। इसके बाद बाकी चीजें आती हैं। इसी प्रकार 71 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे किसी पुरुष में जो पहली चीज देखती हैं, वह उनके दांत होते हैं। डेली मेल में यह खबर प्रकाशित हुई है।
Dark Saint Alaick
17-02-2013, 12:47 PM
ठंडे माहौल में क्यों लंबी उम्र तक जीते हैं ठंडे खून वाले प्राणी
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने एक आनुवंशिक प्रोग्राम की शिनाख्त की है जो ठंडे माहौल में केंचुए को लंबी उम्र तक जीने में मदद करता है और उनका कहना है कि यह तंत्र मानव समेत गर्म खून वाले प्राणियों में भी होती है । यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन लाइफ साइंसेज इंस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ता शॉन शू ने कहा कि इससे यह संभावना बढ़ रही है कि ठंडी हवा से संपर्क या ठंड-संवेदनशील आनुवंशिक प्रोग्राम का औषधवैज्ञानिक स्पंदन स्तनधारियों में लंबी उम्र को बढ़ावा दे सकता है। अनुसंधानकर्ता लगभग एक सदी से जानते थे कि कृमि, मक्खियां, और मछलियों जैसे शीत रक्तक प्राणी ठंडे वातावरण में ज्यादा लंबी उम्र तक जीते हैं, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि ऐसा क्यों होता है। वैज्ञानिक मानते थे कि किसी निष्क्रिय उष्मा-गतिकीय प्रक्रिया के चलते प्राणी ठंडे वातावरण में ज्यादा दिन जीते हैं। उनके अनुसार निम्न तापमान रसायनिक प्रतिक्रिया की दर घटा देता है और इसलिए बूढ़े होने की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है।
Dark Saint Alaick
17-02-2013, 02:25 PM
टेस्टोस्टेरॉन का कमाल
नई दिल्ली। आमतौर पर माना जाता है कि टेस्टोस्टेरॉन नाम का हॉमोर्न पुरुषों को आक्रामक बनाता है मगर अब वैज्ञानिक कहते हैं कि यह पुरुषों को ईमानदार और व्यवहार कुशल भी बनाता है। जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस मामले में 91 पुरुषों को अपनी स्टडी में शामिल किया। इनमें से 46 को टेस्टोस्टेरॉन जैल दिया गया और 45 को बिना टेस्टोस्टेरॉन का जैल। कुछ समय बाद इनके व्यवहार का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि जिनको टेस्टोस्टेरॉन दिया गया था वह दूसरों लोगों के मुकाबले ज्यादा प्रभावी तरीके से बातचीत कर रहे थे और अपने से जुड़ी बातों को ज्यादा ईमानदारी से बता रहे थे। वैज्ञानिकों का कहना है कि टेस्टोस्टेरॉन का हायर लेवल पुरुषों को टाइप-टू डायबिटीज और मोटापे से दूर रखने में भी मदद करता है। साथ ही उन्हें आत्मगौरव का भी अहसास कराता है।
Dark Saint Alaick
17-02-2013, 02:25 PM
एक्जिमा की वजह
नई दिल्ली। एक्जिमा स्किन की एक ऐसी बीमारी है जो मरीज को बेचैन कर देती है। इसमें त्वचा लाल हो जाती है, खुजली होती है और कई बार प्रभावित हिस्से में सूजन भी आ जाती है। दुनिया में करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं। आमतौर पर माना जाता है कि यह बीमारी संपर्क में आने पर फैलती है, मगर साइंटिस्टों का कहना है कि इसके जिनेटिक कारण भी हो सकते हैं। अमेरिका की ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि एक खास प्रोटीन सीटीआईपी-2 की कमी से एक्जिमा हो सकता है। यह प्रोटीन शरीर में कई किस्म के जिनेटिक और मेटाबॉलिक फंक्शंस को संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि सीटीआईपी-2, टीएसएलपी नाम के एक प्रोटीन को निष्प्रभावी करने का काम करता है जो कि स्किन पर सूजन लाता है। साइंटिस्ट कहते हैं कि सीटीआईपी-2 का अगर शरीर में उत्पादन कम हो रहा हो तो टीएसएलपी ज्यादा सक्रिय हो जाता है। इसके कारण त्वचा पर सूजन के साथ ही एक्जिमा के अन्य लक्षण भी उभर आते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नई खोज से एक्जिमा का इलाज करने में आसानी होगी।
Dark Saint Alaick
17-02-2013, 02:25 PM
थोड़ा गुस्सा किया करो
नई दिल्ली। अक्सर कहा जाता है कि गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है। इससे बीपी बढ़ जाता है और दिल के रोगों का खतरा होता है। लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो यह थ्योरी गलत है। वह कहते हैं कि गुस्से को दबाने वाले लोगों के मुकाबले अपनी भड़ास निकाल लेने वाले ज्यादा जीते हैं। जर्मनी की यूनिवर्सिटी आफ जेना के साइंटिस्टों ने छह हजार से ज्यादा लोगों पर की गई अपनी स्टडी में पाया है कि जो लोग अपने गुस्से या अपनी निगेटिव फीलिंग्स को दबा जाते हैं, वह अपना बीपी बढ़ाने का काम करते हैं। ऐसे लोगों का पल्स रेट बढ़ जाता है, जिससे उनके दिल पर दबाव पड़ता है। ऐसे लोग तनावग्रस्त भी रहते हैं। ऐसा ज्यादा समय तक जारी रहने पर दिल के साथ ही शरीर के अन्य अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है और यह किसी भी व्यक्ति की उम्र को कम करने का काम करता है।
Dark Saint Alaick
18-02-2013, 12:37 AM
स्वाइन फ्लू रोगियों को हो सकता है निमोनिया का खतरा
नई दिल्ली। दिल्ली समेत देश के अनेक हिस्सों में स्वाइन फ्लू के प्रकोप के मद्देनजर विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या से ग्रस्त रोगियों को सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया का भी गंभीर खतरा हो सकता है और इसके लक्षण सामने आने पर तत्काल डॉक्टरों की राय ली जानी चाहिए। श्वांस सम्बंधी रोगों के विशेषज्ञ डॉ. आर के मणि के अनुसार स्वाइन फ्लू भी सामान्य फ्लू या इन्फ्लुएंजा (बुखार जुखाम) की तरह फैलता है। इसमें बुखार, शरीर में दर्द, खांसी और सर्दी जैसे लक्षण सामान्य होते हैं। स्वाइन फ्लू से प्रभावित लोगों को निमोनिया का भी गंभीर खतरा हो सकता है। डॉ मणि के अनुसार इस तरह के रोगियों में कुछ दिन बुखार के बाद सांस लेने सम्बंधी दिक्कतें पैदा होने लगती हैं। इसके वायरस की पहचान लार का परीक्षण करके की जाती है। बुखार जैसी समस्या गंभीर होने पर जांच जरूर कराने की सलाह दी जाती है ताकि संक्रमण रोका जा सके। स्वाइन फ्लू के गंभीर रोगियों में निमोनिया का जोखिम होता है और इससे रोगी के फेफड़ों पर प्रभाव पड़ सकता है हालांकि डॉक्टर यह सलाह भी देते हैं कि जांच के नतीजे के परिणाम ‘पॉजिटिव’ आने पर दहशत और घबराहट से बचना चाहिए और विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए। जांच से शुरुआती स्तर पर ही निमोनिया का पता लगाया जा सकता है और समय रहते उपचार किया जा सकता है। मेदांता अस्पताल के डॉ हिमांशु गर्ग ने कहा कि स्वाइन फ्लू में शुरुआती लक्षणों में सामान्य सर्दी और खांसी होने से एच1एन1 (स्वाइन फ्लू) की पहचान करना मुश्किल होता है। संक्रमण बढ़ने से सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है और ऐसे में तत्काल डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है। डॉ गर्ग ने कहा कि पहले से फेफड़े सम्बंधी समस्या वाले लोगों को इस तरह की समस्या होने का जोखिम अधिक होता है। स्वाइन फ्लू के उपचार के लिए फिलहाल एंटी वायरल दवा ‘टैमीफ्लू’ देने की सलाह दी जाती है लेकिन रोगी का सावधानी पूर्वक बचाव करना, देखभाल करना और संक्रमण से बचना ज्यादा जरूरी है। इस साल देश में एक जनवरी से अब तक स्वाइन फ्लू के 708 मामले सामने आए हैं जिनमें 132 रोगियों की मौत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार इस समय राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब समेत देश के कुछ हिस्सों में सीजनल इन्फ्लुएंजा का प्रकोप फैल रहा है जिनमें ए एच1एन1 (स्वाइन फ्लू) वायरस से रोगियों के संक्रमित होने के अनेक मामले सामने आ रहे हैं। मंत्रालय ने अपने बयान में साफ किया है कि स्वाइन फ्लू के प्रसार में सुअरों या मुर्गी पालन उद्योग को वजह नहीं माना जाना चाहिए जैसी कि धारणा है। यह वायरस मनुष्य से मनुष्य में खांसी और छींकने आदि से फैलता है। इसके लिए विशेषज्ञ समय समय पर हाथ धोने, नाक और मुंह को रु माल से ढंकने, भीड़ वाले स्थानों से बचने और उचित एहतियात बरतने की सलाह देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अधिक उम्र वाले लोगों, गर्भवती महिलाओं, मधुमेह, फेफड़ों की बीमारी, हृदय रोग, जिगर और गुर्दे संबंधी समस्या, रक्तचाप की समस्या वाले रोगियों को भी इस तरह के वायरस के संक्रमण से बचने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए। सरकार ने सलाह दी है कि अगर इस तरह के रोगियों में मौसमी फ्लू के लक्षण पाये जाते हैं तो उन्हें डॉक्टर की सलाह पर ‘ओसेल्टामिविर’ दवा लेनी चाहिए।
Dark Saint Alaick
18-02-2013, 01:31 AM
मौसम संबंधी हादसों के ज्यादा शिकार होते हैं निजी विमान : अध्ययन
नई दिल्ली। मौसम संबधी सूचना तंत्र की कमी और पायलट तथा अन्य कर्मियों के बीच ठीक से संवाद नहीं हो पाने के कारण निजी विमान ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है। विमानन क्षेत्र के मौसम विज्ञानियों ने वर्ष 1990 से 2008 के बीच भारत में 121 विमान हादसों का विश्लेषण किया। अध्ययन से पता चला कि 32 फीसदी मामलों में विमान ‘प्राइवेट और बिजनेस’ श्रेणी की थी। इसके बाद 26 प्रतिशत विमान प्रशिक्षण और 22 फीसदी नन शिड्यूल्ड आपरेशन संबंधी थे। वरिष्ठ मौसम विज्ञानी राजेंद्र कुमार जेनामणि और अशोक कुमार ने ‘करंट साइंस’ में एक आलेख में कहा है कि इन हादसों में 15 फीसदी निर्धारित उड़ानें अथवा ‘शिड्यूल्ड आपरेशंस’ थी। जेनामणि और कुमार इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर भारत मौसम विभाग के मेट्रोलॉजिकल वाच आफिस में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा है कि खराब मौसम के कारण जो सबसे ज्यादा हादसे हुए उसमें 56 फीसदी विमान निजी अथवा बिजनेस श्रेणी के थे। मौसम खराब या अन्य वजहों के कारण होने वाले हादसों का कुल अनुपात 32 फीसदी का है। प्राइवेट अथवा बिजनेस विमान केटेगरी के हेलिकॉप्टर भी शामिल है जिसका इस्तेमाल नेता और कारोबारी करते हैं।
Dark Saint Alaick
18-02-2013, 01:46 AM
लाभकारी होता है मछली का तेल
नई दिल्ली। कई सालों से मछली के तेल से कई प्रकार के अध्ययन किया जा रहा है। इसी के चलते कुछ दिनों पहले हुए शोध में पता चला है कि मछली के तेल में पाया जाने वाला ओमेगा-3 अम्ल डायलिसिस के भरोसे जीने वाले मरीजों को धड़कन रुकने से होने वाली मौत से बचा सकता है। इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन में मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर तथा शोध के सहलेखक एलन. एन. फ्रीडमैन ने कहा कि हमने अपने अध्ययन में देखा कि हाल में हीमोडायलिसिस शुरू करने वाले मरीजों के रक्त में ओमेगा-3 अम्ल का उच्च स्तर उनके इलाज के पहले वर्ष के दौरान दिल की धड़कन रुकने के कारण होने वाली मौत की सम्भावना को कम करता है। शोधकर्ता ने कहा कि डायलिसिस पर चलने वाले रोगियो में हृदयाघात से अचानक होने वाली मृत्यु के खतरे को कम करने के लिए औषधि विकास की दिशा में यह हमारा पहला कदम है। यह अध्ययन हीमोडायलिसिस के पहले वर्ष में चल रहे 400 मरीजों पर किया गया, जिनमें से 100 की मृत्यु हो गई जबकि 300 सुरक्षित रहे।
Dark Saint Alaick
18-02-2013, 01:47 AM
दमा की दवा से मधुमेह का इलाज सम्भव
नई दिल्ली। जापान में दमा के इलाज में काम आने वाली दवा एमलेक्सानॉक्स का प्रयोग चूहों पर किए जाने से पता चला कि यह दवा मोटापे, मधुमेह और फैटी लीवर की समस्या खत्म करती है। यह बात हाल ही हुए शोध में सामने आई। मिशिगन विश्वविद्यालय के लाइफ साइंस इंस्टीट्यूट (एलएसआई) के निदेशक एलान साल्टिएल ने कहा कि कुछ लोगों में भोजन कम करने से भी वजन नहीं घटता है। इसका कारण यह है कि उनका शरीर भोजन की कम खुराक से प्राप्त कैलोरी को भी समायोजित कर लेता है और उपापचय प्रक्रिया को भी धीमा कर देता है। इस तरह मोटापे पर कोई असर नहीं पड़ता। ऐसा लगता है कि एमलेक्सानॉक्स चूहों में अधिक कैलोरी के प्रति उपापचय प्रक्रिया को बदल देता है एमलेक्सानोक्स के अलग-अलग फार्मूलों की सिफारिश जापान में दमा के इलाज में और अमेरिका में नासूर के इलाज में की जाती है। ऐसा लगता है कि एमलेक्सानॉक्स चूहों में आईकेकेई और टीबीके1 जीनों को बाधित करता है। अध्ययन में पाया गया कि इस दवा के इस्तेमाल से चूहों में मोटापा कम हुआ और मधुमेह और फैटी लीवर जैसी उपापचय से सम्बंधित समस्या भी दूर हो गई।
Dark Saint Alaick
19-02-2013, 10:25 PM
अनुवांशिक प्रक्रिया में गड़बड़ी से होता है आटिज्म रोग
नई दिल्ली। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है आटिज्म रोग के शिकार बच्चों का विकास असामान्य होता है और यह बीमारी अनुवांशिक प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी की वजह से होता है। चिकित्सा विशेषज्ञों ने आटिज्म रोग पर यहां ‘द हंस फाउण्डेशन’ की एक कार्यशाला में ये विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में देश-विदेश के कई विशेषज्ञ एवं डाक्टर शामिल हुए। ‘द हंस फाउण्डेशन’ की प्रबंध निदेशक श्वेता रावत ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य आटिज्म रोग ‘स्वलीनता’ से जूझ रहे मरीजों में इस बीमारी के प्रति जागरूकता पैदा करना है। उन्होंने कहा कि आटिज्म मानसिक विकास सम्बंधी बीमारी है जिसमें सही प्रशिक्षण तथा परामर्श से रोगी को जागरूक बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में इस बीमारी से कई लोग पीड़ित हैं तथा जागरूकता के अभाव में उन्हें इससे छुटकारा नहीं मिल पाता है। उन्होंने आटिज्म रोग से जूझ रहे मरीजों में जागरूकता बढेþगी। कार्यशाला मे डा. सूसन एल हैमन न्यूयार्क, डा. ऐरिक लंदन, डा. मोनिका जुनेजा तथा आटिज्म साइंस फाउण्डेशन की अध्यक्ष एलिसन सिंगर आदि विशेषज्ञों का कहना था कि इस बीमारी के लक्षण बाल्यावस्था से ही नजर आने लगते हैं। जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है। विशेषज्ञ इस बीमारी के कारणों की वजह अनुवांशिक प्रक्रिया में पैदा हुई गड़बड़ी बताते हैं।
Dark Saint Alaick
21-02-2013, 07:52 AM
डियो जैसे सौंदर्य प्रसाधनों से बढ़ रहा है कैंसर
नई दिल्ली । संयुक्त राष्ट्र के नए शोध में पता लगा है कि सौंदर्य प्रसाधनों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और कीटनाशकों जैसे उत्पादों मौजूद खतरनाक सिंथेटिक रसायन से हारमोन सम्बंधी कैंसर,नपुसंकता, बच्चों में नर्वस रोग और जन्म विकलांगता जैसी बीमारियां बढ़ रहीं है। इंडोक्रिनल यानी हारमोन में बाधा पहुंचाने वाले इस रसायन से न सिर्फ इंसानों में गंभीर बीमारियां बढ़ रहीं हैं बल्कि वन्यजीवों की प्रजातियां भी नष्ट हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनइपी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि इडीसी नाम से जाने जाने वाले इस रसायन से महिलाओं में स्तन कैंसर, पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और बच्चों के नर्वस सिस्टम और थायराइड कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो रहीं हैं।
Dark Saint Alaick
22-02-2013, 11:53 PM
हमारे सौरमंडल के बाहर अब तक का सबसे छोटा ग्रह खोजा गया
वाशिंगटन। नासा ने हमारे सौरमंडल के बाहर अब तक के सबसे छोटे ग्रह का पता लगाया है जो चंद्रमा से थोड़ा सा बड़ा और अपने सूर्य जैसे तारे का प्रत्येक 13 दिन में परिक्रमा करता है। नासा की केपलर अंतरिक्ष दूरबीन ने सर्वाधिक छोटे ग्रह का पता लगाया है जो सूर्य जैसे तारे की परिक्रमा करने वाला अब तक का सर्वाधिक छोटा ज्ञात ग्रह है। यह ग्रह पृथ्वी से करीब 210 प्रकाश वर्ष दूर है और यह ‘केपलर 37 मंडल’ में स्थित है। सर्वाधिक छोटा ग्रह ‘केपलर 37 बी’ चंद्रमा से थोड़ा सा ही बड़ा है और पृथ्वी के आकार का एक तिहाई है। यह बुध से भी छोटा है जिसके चलते इसे ढूंढने में परेशानी हुई। चंद्रमा के आकार के इस ग्रह और दो अन्य ग्रहों (केपलर 37 सी और केपलर 37 डी) को वैज्ञानिकों ने नासा के केपलर मिशन के तहत पता लगाया है जिसका उद्देश्य पृथ्वी के आकार के ग्रहों का ‘जीवन योग्य क्षेत्रों में’ या इसके आस पास के क्षेत्रों में पता लगाना है। इन क्षेत्रों में किसी ग्रह की सतह पर पानी अपने तरल रूप में रहा होगा। हालांकि, केपलर 37 में मौजूद तारा हमारे सूर्य के समान है पर यह सौरमंडल जैसा नहीं है जिसमें हम रह रहे हैं। खगोल विज्ञानियों का मानना है कि केपलर 37 बी में वायुमंडल नहीं है और वहां जीवन संभव नहीं हो सकता। यह अपनी संरचना में चट्टानी है।
Dark Saint Alaick
23-02-2013, 10:43 AM
फराओ रामसेस के वजीर का पिरामिड मिला
3200 वर्ष पहले किया गया था इसका निर्माण
काहिरा। मिस्र के इतिहास के प्रमुख फराओ में से एक रामसेस द्वितीय के शासनकाल (1279-1213) के अंतिम चरण में उनके मुख्य सलाहकार एवं वजीर रहे खाय के पिरामिड का पता चल गया है। इस पिरामिड का निर्माण 3200 वर्ष से अधिक पहले किया गया था। बेल्जियम के एक दल ने लक्सर के शेख अबद अल कुरना में इस पिरामिड की खोज की, जो र्इंटों से बनाया गया है। इसकी वास्तविक ऊंचाई 49 फीट है। यह पिरामिड सातवीं से आठवीं शताब्दी के बीच ज्यादा क्षतिग्रस्त हो गया और इसका इस्तेमाल अन्य कामों के लिए किया जाने लगा। रामसेस के शासनकाल ईसा पूर्व (1279-1213) में वजीर रहे खाय के पिता हई मिस्र के एक कमांडर थे और मां नब एम निउत एक पुजारिन। वजीर खाय का वर्णन कई पुराने दस्तावेज में मिलता है, लेकिन लगातार हो रहे प्रयासों के बावजूद अभी तक उनके पिरामिड का पता नहीं चल पाया था।
Dark Saint Alaick
23-02-2013, 10:44 AM
जानवर के मूत्र से पता लगेगा जलवायु परिवर्तन का कारण
बोस्टन। वैज्ञानिक करीब चार अरब वर्ष पुरानी पृथ्वी पर पहले भी हो चुके जलवायु परिवर्तन के कारणों का एक अनूठी तरकीब से पता लगाने जा रहे हैं, जिसमें एक जानवर के मूत्र का इस्तेमाल किया जाएगा। दरअसल गिनी पिग के आकार का हाइरेक्स नाम का जानवर गुफाओं के अंदर चट्टान पर घर बनाकर रहता है और इसकी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही स्थान पर मूत्र त्याग करती है। दक्षिण अफ्रीका की एक ऐसी चट्टान की दरार का पता लगा है, जहां पिछले 55 हजार से साल से इनके पूर्वज मूत्र त्याग कर रहे थे। इसके मूत्र की खासियत यह है कि यह चिपचिपा होता है और जल्द ही सूख जाता है। इससे इस पर घास-पात और गैस के बुलबुले जम जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका की जलवायु आर्कटिक और अंटार्कटिक समेत सुदूर क्षेत्रों की भौगोलिक घटनाआें से प्रभावित हुई थी। पिछले हिम युग की समाप्ति के कुछ साल बाद ही आर्कटिक क्षेत्र के तापमान में बहुत ज्यादा गिरावट आ गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि बर्फ की विशाल झीलें समुद्र मे तब्दील हो गई थीं। इस विषय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के दल के प्रमुख फ्रांस के मोटपेलियर विश्वविद्यालय के ब्रायन चेस ने बताया कि इस समूची भौगोलिक उथल-पुथल के उत्तरी यूरोप में पड़े प्रभाव की तो जानकारी है, लेकिन शेष पृथ्वी पर इसके असर के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है। यह अध्ययन इस मामले में महत्वूपर्ण है कि मौजूदा समय में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण जलवायु में खतरनाक तरीके से परिवर्तन हो रहा है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी पर क्या असर पडेþगा, इसे जानने के लिए भूतकाल की घटनाओं को जानना जरूरी है।
Dark Saint Alaick
23-02-2013, 10:44 AM
देश में 6.13 करोड़ लोग मधुमेह से प्रभावित
नई दिल्ली। देश में छह करोड़ 13 लाख लोग मधुमेह से प्रभावित हैं। लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह संघ के आंकड़ों के मुताबिक देश में 20 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 6.13 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मधुमेह समेत गैर संक्रामक रोगों के बढ़ने में गैर स्वास्थ्यकर भोजन, शारीरिक श्रम की कमी, अल्कोहल का इस्तेमाल, अधिक वजन, तंबाकू आदि का इस्तेमाल जिम्मेदार है। आजाद ने कहा कि सरकार ने कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग जैसी बीमारियों पर लगाम लगाने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है, जो 21 राज्यों के 100 जिलों में चल रहा है।
Dark Saint Alaick
23-02-2013, 10:45 AM
कैंसर के पांच सेमी से कम ट्यूमर को खत्म कर सकती है नैनोनाइफ तकनीक
नई दिल्ली। कई बार फेफड़े, गुर्दे, अग्नाशय, जिगर और गुदा के कैंसर के ट्यूमर का आपरेशन कर पाना संभव नहीं होता या फिर इस तरह के कैंसर के मरीज पर परंपरागत इलाज का असर नहीं होता। नैनोनाइफ तकनीक कैंसर के ऐसे मरीजों के इलाज के लिए उम्मीद की एक नयी किरण साबित हो सकती है। राजधानी के राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में ओन्कोलॉजी विभाग के वरिष्ठ कन्सल्टेंट डॉ सुनील गुप्ता ने बताया, ‘इस तकनीक में इलेक्ट्रोपोरेशन तकनीक का उपयोग होता है। इसके जरिये कोशिकीय स्तर पर कैंसर के उस ट्यूमर को खत्म किया जाता है, जिस तक पहुंच पाना आसान नहीं होता। ये ट्यूमर कई बार ऐसी जगह होते हैं, जहां आॅपरेशन संभव नहीं होता।’ उन्होंने बताया, ‘कैंसर के ट्यूमर पर इलेक्ट्रोड के जरिये कुल 90 इलेक्ट्रिकल पल्स की श्रृंखला भेजी जाती है जो कैंसरकारी कोशिका की बाहरी झिल्ली को पूरी तरह नष्ट कर देती है। एक बार झिल्ली नष्ट हो जाए तो कोशिश अपने आप ही नष्ट हो जाती है। इस तकनीक में नाइफ यानी चाकू का उपयोग नहीं होता लेकिन यह अत्यंत छोटी जगह पर बने कैंसर के ट्यूमर को नष्ट कर सकती है इसलिए इसे नैनोनाइफ तकनीक कहा जाता है।’ जीआई ओन्को सर्जरी एंड लिवर ट्रान्सप्लांट सर्विसेज के प्रमुख और वरिष्ठ कंसलटेन्ट डा शिवेन्द्र सिंह ने कहा ‘नैनोनाइफ तकनीक से खास तौर पर पांच सेमी से कम आकार के, कैंसर के ट्यूमर को खत्म किया जा सकता है। क्रिटिकल लोकेशन की वजह से अक्सर ऐसे ट्यूमर आॅपरेशन से निकालना संभव नहीं होता। कई बार इन पर परंपरागत इलाज का भी असर नहीं होता।’ डॉ सिंह ने कहा ‘अगर ऐसे ट्यूमर को न हटाया जाए तो यह बढता रहता है और फिर लाइलाज हो जाता है। इस तकनीक से इलाज में तीन से चार लाख रूपये का खर्च आता है।’ रेडियेशन ओन्कोलाजी के कंसल्टेन्ट डॉ स्वरूप मित्रा ने कहा ‘इस तकनीक में आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती। चीरा लगाए बिना तीन सुइयों जैसे इलेक्ट्रोड की मदद ली जाती है। कंप्यूटर की मदद से विद्युत प्रवाह किया जाता है और ट्यूमर को नष्ट किया जाता है। इलेक्ट्रोड्स की मदद से इसे सीधे ट्यूमर तक ही पहुंचाया जाता है। इस दौरान आसपास की कोशिकाओं, उतकों, धमनियों, शिराओं और तंत्रिकाओं को कोई नुकसान नहीं होता। ट्यूमर नष्ट होने के बाद स्वस्थ कोशिका और उतक फिर से तैयार हो जाते हैं।’ नैनोनाइफ तकनीक परंपरागत आॅपरेशन और साइबरनाइफ से पूरी तरह अलग है। इसमें मरीज को दर्द नहीं होता और न आसपास के उतकों तथा अंगों में जलन होती है। जरूरत पड़ने पर इसे दोहराया जा सकता है। यह तकनीक फेफड़े, गुर्दे, अग्नाशय, जिगर और गुदा के कैंसर के ट्यूमर खत्म करने के लिए उपयोगी है। डॉ गुप्ता ने बताया कि अमेरिका में वर्ष 2008 में इस तकनीक को मान्यता मिल चुकी है। वहां इसकी 30 मशीनें हैं। इसके अलावा दुनिया के अलग अलग देशों में इस तकनीक की पांच मशीनें हैं। उन्होंने बताया कि राजधानी के राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में कुछ ही माह में इस तकनीक की शुरूआत होने जा रही है। उन्होंने बताया कि सामान्य थैरेपी में लगने वाले समय से आधा समय नैनोनाइफ तकनीक में लगता है।
Dark Saint Alaick
24-02-2013, 09:02 PM
कैनन ने उतारा मिनी प्रिंटिंग प्रेस
ग्रेटर नोएडा। डिजिटल इमेजिंग क्षेत्र की दिग्गज कैनन इंडिया ने देश में पांच नए एप्लीकेशंस पेश किए जिसमें एक मिनी प्रिटिंग प्रेस और आईडी कार्ड प्रिंटिर शामिल हैं। यहां आयोजित प्रिंटपैक प्रदर्शनी में कैनन इंडिया के कार्यकारी उपाध्यक्ष आलोक भारद्वाज ने बताया, ‘हमने भारत में पहली बार एक मिनी प्रिंटिंग प्रेस ओसीई 2110 पेश किया है। यह ऐसे प्रकाशकों के लिए बहुत उपयोगी है जो जरूरत के मुताबिक मसलन 200-250 किताब ही प्रकाशित करना चाहते हैं।’ उन्होंने बताया कि इस मशीन की सहायता से प्रकाशक आॅर्डर के मुताबिक कम या अधिक पुस्तक आदि की छपाई कर सकते हैं। इसकी कीमत 12 लाख रुपए है। भारद्वाज ने कहा कि कैनन इंडिया ने कॉरपोरेट, स्कूल, अन्य संगठनों की आईडी कार्ड की जरूरत को पूरा करने के लिए एक कांपैक्ट आईडी कार्ड पीआर-सी101 मशीन भी उतारी है, जो प्लास्टिक कार्ड पर कुछ भी प्रिंट करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से यह मशीन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तरह का कार्ड बाहर से बनवाने में इसके गलत हाथ में जाने और दुरुपयोग का खतरा रहता है। कंपनी ने यह मशीन 1.25 लाख रुपए में लांच की है। इसके अलावा कैनन इंडिया द्वारा पेश तीन अन्य एप्लीकेशन में एक एप्लीकेशन ऐसा है जो किसी भी चीज मसलन, मोबाइल, कपड़े, पत्थर आदि पर इमेज प्रिंट करने में सक्षम है। वहीं, पेशेवर फोटो स्टूडियो मालिकों के लिए कंपनी ने अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण फोटो के लिए एक एप्लीकेशन पेश किया है, जिससे उन्हें बाहर से फोटो प्रिंट कराने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा, एक एप्लीकेशन आर्किटेक्ट के लिए है, जो इमेज को एक्सरे की तरह देख सकते हैं।
Dark Saint Alaick
24-02-2013, 09:02 PM
भारत में पैडल वाली इलेक्ट्रिक साइकिल लाएगी हीरो
चंडीगढ़। विदेशों में पैडल वाली इलेक्ट्रिक साइकिल को मिली जबर्दस्त प्रतिक्रिया से उत्साहित हीरो ईको ग्रुप इस साल इसे भारत में उतारने की संभावना तलाश रही है। इसकी कीमत 2 लाख रुपए तक है। हीरो ईको के प्रबंध निदेशक नवीन मुंजाल ने बताया, ‘हम अपनी ए2बी साइकिल को भारत में उतारने पर विचार कर रहे हैं। हम बाजार का अध्ययन कर रहे हैं और इस पर निर्णय अगले छह-आठ महीनों में कर लिया जाएगा।’ कंपनी लुधियाना में आयोजित की जा रही साइकिल प्रदर्शनी में अपनी ए2बी इलेक्ट्रिक पैडेलेक साइकिल की नुमाइश कर रही है। उन्होंने बताया कि कंपनी ने पिछले एक साल में ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा सहित 22 देशों में 8,000-9,000 ए2बी साइकिलें बेची हैं। शहरी उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई यह साइकिल मिश्रित धातुओं से बनी है और इसमें लिथियम आयन बैटरी लगी है। एक बार चार्ज करने पर यह 70 किलोमीटर तक चल सकती है। बैटरी चार्ज करने में तीन-चार घंटे लगते हैं।
Dark Saint Alaick
24-02-2013, 09:03 PM
मुंह की साफ सफाई पर ध्यान दें तो घट सकते हैं मुंह के कैंसर के मामले
नई दिल्ली। मुंह के कैंसर से बचने के लिए तंबाकू उत्पादों तथा अल्कोहल के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है लेकिन मुंह की साफ सफाई के पहलू को उपेक्षित कर दिया जाता है। अगर मुंह की साफ सफाई पर ध्यान दिया जाए तो हमारे देश में मुंह के कैंसर के मामलों में काफी कमी आ सकती है। राजधानी के राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में ओन्कोलॉजी विभाग के वरिष्ठ कन्सल्टेंट डॉ सुनील गुप्ता ने बताया ‘मुंह की साफ सफाई एक अहम पहलू है। छोटे बच्चे और कई बार बड़े लोग भी लिखते समय पेन या पेन्सिल का पिछला हिस्सा मुंह में डालते हैं। किताबों या कॉपियों के पन्ने पलटते समय अक्सर लोग उंगली या अंगूठे को जीभ में लगा कर उसे थूक से गीला करते हैं। नोट गिनते समय भी कई लोग ऐसा करते हैं। गीले अंगूठे या उंगली से पन्ना या नोट का सरकना तो आसान हो जाता है लेकिन ऐसा करने से कागज की डाई भी मुंह में चली जाती है जो मुंह के कैंसर का कारण बन सकती है।’ उन्होंने कहा ‘प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वालों को मुंह का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि छपाई के समय वे कागज सरकाने के लिए उंगली या अंगूठे को थूक लगा कर गीला करते हैं। मच्छर भगाने के लिए जो रेपलेन्ट का उपयोग किया जाता है, उसकी टिकिया छूने के बाद हाथ धोना चाहिए। यह टिकिया, डाई तथा अन्य रसायन मुंह के कैंसर का कारण बन सकते हैं। यह चूक पढे लिखे लोगों से भी खूब होती है।’ ‘मैक्स हेल्थकेयर’ के वरिष्ठ दंत चिकित्सक अजय शर्मा ने बताया कि भारत में मुंह का कैंसर सबसे आम है और अधिकतर लोग समय पर इलाज नहीं कराने के कारण इसके शिकार होते हैं। डॉ शर्मा ने कहा कि मुंह में किसी भी तरह का अल्सर अगर दो सप्ताह तक ठीक न हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए। यह कैंसर की शुरूआत हो सकती है पर लोग इसे टाल देते हैं। उन्होंने कहा ‘बार बार कहने के बावजूद पैसिव स्मोकिंग फेफड़ों के कैंसर का कारण बना हुआ है। दूसरे व्यक्ति के सार्वजनिक स्थल पर सिगरेट पीने से आसपास के लोग इसके धुएं से बच नहीं पाते। प्रतिबंध के बावजूद तंबाकू उत्पादों की बिक्री जारी है। यही वजह है कि मुंह के कैंसर के मामले भारत में अधिक हैं।’ डॉ गुप्ता ने कहा कि कि भारत मुंह के कैंसर के मामलों में पूरे विश्व में अब भी सबसे उपर बना हुआ है तथा देश में प्रत्येक वर्ष कैंसर के 75 से 80 हजार नये मामले सामने आते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू) के विशेषज्ञों की ओर से गुटखा के हानिकारक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए पिछले दिनों तैयार एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूरे विश्व के 86 प्रतिशत मुंह के कैंसर के मामले भारत में सामने आते हैं। ओन्कोलॉजिस्ट भावना सिरोही ने कहा ‘चिंताजनक बात यह है कि तंबाकू और उसके उत्पादों का सेवन देश में मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है। तंबाकू चबाने वालों की 26 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है जबकि धूम्रपान करने वालों में से 14 प्रतिशत भारतीय हैं। गैर संचारी रोगों को कम करने के लिए तंबाकू तथा उसके उत्पादों पर रोक बहुत जरूरी है।’ उन्होंने कहा कि शिक्षित लोगों के मुकाबले अशिक्षित लोगों में कैंसर से मरने वालों की संख्या दोगुनी है। यह भिन्नता शहरी और ग्रामीण इलाकों में एक जैसी ही है। भावना ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को सशक्त तंबाकू विरोधी नीति अपनानी होगी।
Dark Saint Alaick
26-02-2013, 03:47 PM
हिन्द महासागर में मिला प्रागैतिहासिक ‘खोया हुआ महाद्वीप’
बर्लिन। वैज्ञानिकों ने भारत और मेडागास्कर के बीच एक प्राचीन खोया हुआ महाद्वीप खोजने का दावा किया है जो लावा के बोझ से दब गया था। मौरिशिया नाम वाले महाद्वीप का यह टुकड़ा 6 करोड़ साल पहले अलग हुआ जब मेडागास्कर और भारत अलग हुए । और तब से वह लावा में छिपा था । नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित नये अध्ययन के मुताबिक, पहले की धारणा के विपरीत महासागरों में लघु महाद्वीप ज्यादा की संख्या में मौजूद हैं । नार्वे, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और जर्मनी के भूवैज्ञानिकों का अनुसंधान मॉरीशस के तट पर मौजूद लावा बालू कणों के अध्ययन पर आधारित है ।
Dark Saint Alaick
28-02-2013, 01:28 AM
50 के बाद हो सकते है पौरुष ग्रन्थि के रोगी
वाराणसी। आप अगर 50 वर्ष की उम्र पार कर चुके है तो सतर्क हो जाइए, क्योंकि आप पौरुष ग्रन्थि के रोगी हो सकते हैं। जाने माने मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रवीन्द्र कुमार शाह ने आज यहां बताया कि यह रोग अकसर 50 वर्ष की उम्र के बाद होता है। आमतौर पर 60 से 70 वर्ष की उम्र में 80 प्रतिशत पुरुषों में यह रोग तथा दस प्रतिशत में प्रोस्टेंट कैंसर पाया जाता है। उन्होंने कहा कि बढ़ती उम्र के साथ ही पौरुष ग्रन्थि में बदलाव आता है और इसके आकार में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि अब नई तकनीक के आने से प्रारम्भिक अवस्था में ही इस रोग का निदान सम्भव है। उन्होंने बताया कि बारशबार पेशाब जाना, पेशाब को रोक न पाना, उसमें ज्यादा समय लगना, उसमें खून आना तथा जलन व दर्द होना, उल्टी आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
Dark Saint Alaick
03-03-2013, 11:18 PM
शराब पीते जाएं, दिल के रोग भगाते जाएं
वाशिंगटन। अगर आप जैतून का तेल, सूखे मेवे और शराब का प्रयोग नियमित रूप से करते हैं तो दिल की सभी समस्याओं से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं। हाल ही में आए एक शोध के अनुसार जो लोग खाने में जैतून का तेल, मछली, सूखे मेवे, फल और शराब का इस्तेमाल करते हैं तो उनकी हृदयघात और दिल की अन्य बीमारियों से मौत होने की आशंका 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। न्यू इंगलैड जर्नल आफ मेडिसिन की ओर से प्रकाशित इस शोध में स्पेन के 4479 लोगों को शामिल किया गया जिनमें महिला तथा पुरुष की उम्र 55 से 80 वर्ष के बीच थी। इन लोगों को तीन समूहों में बांटा गया और इन सभी के आहार को अलग-अलग तरह के खाद्यान पदार्थ से संतुलित किया गया। शोध में पाया गया कि फल- मछली शराब और जैतून का तेल दिल की बीमारी को दूर रखता है।
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05-03-2013, 09:38 AM
एचआईवी के खिलाफ जंग में कामयाबी
पहली बार हुआ एचआईवी ग्रस्त बच्ची का इलाज
वाशिंगटन। पहली बार एचआईवी के खिलाफ जंग में कामयाबी हासिल करते हुए वैज्ञानिकों ने एक एचआईवी पीड़ित बच्ची के इलाज में सफलता पाई। वैज्ञनिकों ने बताया कि अमेरिका में जन्मी दो वर्षीय यह बच्ची जन्म से ही एचआईवी से ग्रसित थी। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कहा कि उनका मानना है कि इस तरह के मामले में यदि जन्म के तीस घंटे के अंदर तीन विषाणुरोधी दवाएं दे दी जाएं तो इस बीमारी पर काबू पाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि ‘सक्रिय इलाज’ तभी संभव है जब शरीर में विषाणु की मात्रा बेहद कम हो और जीवनभर के लिए इलाज की आवश्यकता न हो साथ ही मानक चिकित्सकीय जांच के दौरान रक्त में इस विषाणु का पता न चल सके। इस निष्कर्ष की घोषणा इस वर्ष अटलांटा में आयोजित ‘रेट्रोवायरस एंड आॅपरचुनिस्टिक इंफेक्शन’ विषय पर हुए सम्मेलन के दौरान की गई। बाल्टीमोर स्थित जॉन्स होपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुख्य शोधकर्ता और वायरोलॉजिस्ट डॉ. देबोराह परसॉड ने सम्मेलन में इस निष्कर्ष को प्रस्तुत किया। ऐसी संभावना है कि निष्कर्ष से प्राप्त परिणाम से एचआईवी ग्रस्त बच्चों के इलाज में मदद मिले। मिसिसिपी की यह अज्ञात बच्ची जन्म से ही एचआईवी पीड़ित थी और इसकी मां की भी प्रसव के दौरान कोई देखभाल नहीं हुई थी जिसकी वजह से प्रसव से पहले तक उसके एचआईवी पीड़ित होने का पता नहीं चल पाया था। डॉ. हन्नाह गे ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान मां के इलाज के लिए हमारे पास अनुकूल अवसर नहीं था जिससे हम बच्ची के अंदर विषाणु के प्रवेश को रोक पाते। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि भविष्य में इस तरह के अध्ययन से इसके प्रभावशाली इलाज में मदद मिलेगी और यह इस धारणा को और भी मजबूत करता है कि जन्मजात शिशुओं में इस बीमारी का प्रभावशाली इलाज हो सकता है।
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05-03-2013, 03:35 PM
कार्यस्थल पर लचीलापन पसंद करती हैं भारतीय महिलाएं
नई दिल्ली। देश की ज्यादातर महिलाएं काम करने की जगह पर ज्यादा लचीलापन पसंद करती हैं और वे काम व व्यक्तिगत जीवन के बीच सही संतुलन को पेशेवराना सफलता मानती हैं। पेशेवरों की नेटवर्किंग साइट लिंक्डइन के जारी सर्वेक्षण में कहा गया कि 94 फीसदी महिलाओं का मानना है कि उन्होंने सफल पेशेवर जिंदगी जी है। इस रपट में कहा गया कि विश्व भर की ज्यादातर महिलाओं (63 फीसदी) ने काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच सही संतुलन को पेशेवर सफलता करार दिया है। साथ ही करीब तीन तिहाई (74 फीसदी) महिलाओं का मानना है कि उन्हें दोनों ही (काम और सफल व्यक्तिगत जीवन) मिल सकता है। रपट के मुताबिक काम के छह साल से ज्यादा अनुभव प्राप्त भारतीय महिलाएं कम अनुभव प्राप्त महिलाओं के मुकाबले अपने पेशेवर जीवन से ज्यादा संतुष्ट हैं।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 03:35 PM
तीन करोड़ में बिकी उन्नीसवीं सदी के भारतीय चित्रों की पुस्तक
लंदन। उन्नीसवीं सदी के भारत के अलग-अलग रंगों को अपनी कूची के माध्यम से कैनवास पर उकेरने वाले ब्रिटिश चित्रकारों थॉमस और विलियम डेनियल के चित्रों की पुस्तक ने यहां हुई नीलामी में 2.7 करोड़ रुपए हासिल किए हैं। विलियम वर्ष 1784 में अपने चाचा थॉमस के साथ भारत आए थे। उन्होंने अपनी चित्रकला के माध्यम से उस दौर के भारत के रमणीय दृश्य कागज पर उकेरे। यह वह दौर था जब फोटोग्राफी का आगाज ही नहीं हुआ था और समय के बिंबों को दर्ज करने का एकमात्र विकल्प चित्रकारी के रूप में ही उपलब्ध था। हाथ से पेंट करके तैयार की गई चित्रों की यह पुस्तक ब्रेडफोर्ड के अर्ल के निजी संग्रह का हिस्सा थी। इसे भारतभूमि पर प्रकाशित हुए चित्रों का सबसे श्रेष्ठ संग्रह माना जाता रहा है। चाचा भतीजे ने वर्ष 1786 से 1793 के बीच इन चित्रों को पेंट किया था। नीलामी गृह सूथबी ने गत 28 फरवरी को हुई नीलामी में इस पुस्तक को 2.7 करोड़ रुपए में नीलाम किया। इन चित्रों ने ब्रिटेन में भारतीय वास्तुकला को बढ़ावा देने का काम किया। प्रख्यात वास्तुविदों हंफरी रीपटन और जान नाश पर भी इनका प्रभाव देखा जा सकता है।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 03:37 PM
प्रसव के चलते हर दिन मरती है आठ सौ महिलाएं
नई दिल्ली। विश्व में प्रतिदिन आठ सौ महिलाओं की प्रसव से जुड़ी समस्याओं के कारण मौत हो जाती है जिनमें से 99 प्रतिशत मौतें विकासशील देशों में होती हैं। इसे देखते हुए फेडरेशन आफ आब्स्टेट्रिक एंड गाइनेकालाजिकल सोसाइटीज आफ इंडिया (फोगसी) में साउथ एशियन फेडरेशन आफ आस्स्टेट्रिक एंड गाइनकालजी (सफोग) जान हापकिंस विश्वविद्यालय के सहयोग से दक्षिण एशियाई देशों में प्रसूति मृत्यु दर को कम करने के लिए त्वरित प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है। फोगसी की अध्यक्ष डा. हेमा दिवाकर ने यहां संवाददाता सम्मेलन मे बताया कि सफोग के हाल मे आगरा मे सम्पन्न नौवे सम्मेलन मे प्रसूति स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सा अघिकारियो प्राथमिक स्वास्य केन्द्रकमिर्यो और नर्सो को व्यापक पैमाने पर प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि दक्षिण एशियायी देशों में कुपोषण और खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण प्रसूति मृत्यु दर अधिक है। उन्होने बताया कि अफगानिस्तान में प्रसूति मृत्यु दर सबसे अधिक है और यहां प्रति एक लाख में 1400 मौत होती है।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 03:38 PM
भारत में 2017 तक 13.4 करोड़ बच्चे होंगे आनलाइन : अध्ययन
हैदराबाद। बोस्टन कंसलटिंग गु्रप के एक अध्ययन के अनुसार भारत में आनलाइन रहने वाले बच्चों की संख्या 2017 तक तिगुनी होकर 13.4 करोड़ हो जाएगी, जो कि पिछले साल लगभग चार करोड़ थी। अध्ययन में कहा गया है, भारत के लिए अध्ययन को अपेक्षा है कि 9.5 नये बच्चे 2017 तक आनलाइन होंगे। दूसरे शब्दों में आनलाइन होने वाले नये बच्चों में अधिकांश भारत से होंगे। बोस्टन कंसलटिंग ग्रुप ने यह अध्ययन यूरोपीय दूरसंचार कंपनी टेलीनार के लिए किया है। इसके अनुसार, अध्ययन का अनुमान है कि 2017 तक 13.4 करोड़ बच्चे आनलाइन होंगै जबकि 2012 में यह संख्या 3.95 करोड़ थी। इसके अनुसार टेलीनार के 11 बाजारों व रूस में 2017 तक 17.6 करोड़ च्चे आनलाइन होंगे। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बच्चे इंटरनेट पहुचंच के लिए पहले उपकरण के रूप में मोबाइल का इस्तेमाल करेंगे।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 03:38 PM
भाषा के जन्म का रहस्य जानने की अनूठी कोशिश कर रहा एक कलाकार
कोच्चि। केरल में दुनिया भर से आये लोगों की भाषाओं पर शांतिनिकेतन के एक कलाकार ने शोध किया है जिसमें उसने इस सवाल को उठाया कि मलयालम के अलावा इस भूमि पर अन्य भाषाएं विलुप्त क्यों हो गयीं। शांतिनिकेतन के संचयन घोष ने इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिये कायर्शालाओं का सहारा लिया है। कोच्चि मुजिरिस द्विवाषिर्की सम्मेलन में घोष ने बताने का प्रयास किया कि जो शब्द अनजान होते हैं दरअसल वह भी ध्वनि के माध्यम से जुड़े हुये पाये जा सकते हैं। विश्व भारती विश्वविद्यालय में प्रख्याता घोष ने बताया, ह्यह्यअरबी लोगों के आ जाने के बाद से अभी तक 24 समुदाय कोच्चि आ चुके हैं जिनमें से सबसे आखिर में कश्मीरी समुदाय के लोग यहां आये। भाषाओं के बीच के जुड़ाव को जानने के लिये घोष ने अंतर भाषायी ध्वनि खेल बनाया है जिस पर वह पिछले तीन साल से काम कर रहे हैं। घोष ने बताया कि उनके इस खेल से पता चलता है कि विभिन्न भाषाओं के शब्द कैसे उत्पन्न हुये। उन्होंने बताया कि इस शोध के लिये कोंकणी और गुजराती जैसे समुदायों के लोगों से संपर्क किया। घोष का कहना है कि इस खेल से उन्होंने लोगों को एक सांस्कृतिक संपर्क का मौका दिया है।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 03:38 PM
मोबाइल पर विज्ञापन देखना पसंद करते हैं लोग
नई दिल्ली। दुनिया में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले 59 प्रतिशत लोग टेलीविजन या आनलाइन माध्यमो की ही तरह अपने हैडसेट पर विज्ञापन देखना पसंद करते है। मोबाइल विज्ञापन नेटवर्क (इनमोबी) के हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक मोबाइल फोन अब केवल संचार का माध्यम नहीं रह गया है बल्कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने और विभिन्न ब्रांडो के बारे मे जानकारी लेने का प्लेटफार्म भी बन गया है। मोबाइल उपभोक्ता हमेशा अपने हैडसेट पर सक्रिय रहते है चाहे वह अपने परिवार के साथ समय व्यतीत कर रहे हो अथवा बाजार मे खरीददारी। कंपनी के मुख्य कायर्कारी अधिकारी नवीन तिवारी ने बताया कि सभी महाद्वीपो मे 14 प्रमुख बाजारो के 15 हजार से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओ पर किये गये सर्वेक्षण के मुताबिक मोबाइल उपकरण इन दिनो आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन गये है। उन्होने बताया कि ज्यादातर मोबाइल उपभोक्ता हमेशा अपने हैडसेट पर कुछ न कुछ करते रहते है और नये उत्पादो एवं सेवाओ के बारे मे जानकारी लेते रहते है। सर्वेक्षण के मुताबिक 48 प्रतिशत मोबाइल उपभोक्ता परिवार के साथ समय गुजारने के दौरान इंटरनेट पर सक्रिय रहते हैं, 45 प्रतिशत लोग सामाजिक गतिविधियों के दौरान, 60 फीसदी लोग यात्रा करते समय और लगभग 43 प्रतिशत लोग खरीदारी करते वक्त इंटरनेट का इस्तेमाल करते रहते हैं।
Dark Saint Alaick
05-03-2013, 11:06 PM
नेट ने चूहों को टेलीपैथी में किया सक्षम
दो देशों में बैठे चूहों के मस्तिष्कों को एक-दूसरे से जोड़ने में कामयाबी हासिल
न्यूयार्क। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने टेलीपैथी के जरिए दूसरों के दिमाग को पढ़ लेने की कपोल कल्पना को हकीकत में बदलते हुए दुनिया के दो अलग-अलग देशों में बैठे चूहों के मस्तिष्कों को इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जोड़ने में कामयाबी हासिल की है। साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में गुरुवार को प्रकाशित हुए इस शोधपत्र में ड्यूक विश्वविद्यालय के न्यूरोबायोलॉजिस्ट मिगुयेल निकोलेलिस ने बताया कि इसके तहत ब्राजील के एक चूहे के दिमाग को इंटरनेट की मदद से अमेरिका में रहने वाले चूहों के साथ जोड़ दिया गया। टेलीपैथी उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसके जरिए बिना किसी भौतिक माध्यम की सहायता के एक इंसान दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क को पढ़ने अथवा उसे अपने विचारों से अवगत कराने में कामयाब होता है। इसके जरिए वैज्ञानिकों ने बाल की मोटाई के सौवें हिस्से जितने बारीक सेंसर को चूहों के मस्तिष्क में फिट कर दिया और उन्हें इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे से जोड़ दिया। इस तरह से ब्राजील में रहने वाले चूहे को जैसे ही लाल रंग की एक बत्ती जलती दिखाई दी, तो उसने एक लीवर दबाया और उसे पीने का पानी उपलब्ध हो गया। उसकी इस कामयाबी के संकेत दूसरे चूहों तक भी इस इलेक्ट्रानिक टेलीपैथी के जरिए पहुंच गए और उन्होंने भी अपने अपने यहां लीवर दबाकर पानी पीने में सफलता हासिल की। प्रोफेसर निकोलेलिस को इस शोध के लिए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डारपा) से 2.6 करोड डालर की आर्थिक सहायता भी प्राप्त हुई है। इसी एजेंसी को ही इंटरनेट की खोज करने का श्रेय प्राप्त है। ब्रेन मशीन इंटरफेस कहलाने वाली इस तकनीक के जरिए ही अपंग और लकवाग्रस्त लोग रोबोटिक बांह और कंप्यूटर के कर्सर को हिला पाते हैं। इसके मस्तिष्क के संकेत भेजने के क्रम को सुधार कर रोगी के खुद के अंगों को भी क्रियाशील बनाया जा सकता है। निकोलेलिस ने हालांकि अपनी इस तकनीक को एक आर्गेनिक कंप्यूटर करार देते हुए कहा है कि इसके जरिए दुनिया के कई मस्तिष्कों को जोड़ कर एक ऐसा जैविक कंप्यूटर तैयार हो जाता है, जो उन समस्याओं को भी चुटकियों में हल कर सकता है जिन्हें एक मस्तिष्क से हल कर पाना संभव नहीं है। निकोलेलिस अब चूहों के ऊपर मिली कामयाबी से उत्साहित होकर बंदरों के ऊपर यह शोध करने जा रहे हैं। हालांकि इस शोध से कई नैतिक सवाल भी खडे हो गए हैं। इसके आलोचकों का यह कथन ही पढ़ने वालों के पसीने छुड़ाने में सक्षम है कि इसके जरिए किसी दिन वैज्ञानिक रिमोट तकनीक से संचालित होने वाले जानवरों अथवा इंसानों की विशाल सेना तैयार करने में सक्षम हो जाएंगे। कुछ दूसरे शोधकर्ताओं को इस तकनीक में कुछ भी नया नहीं दिखाई दे रहा है और उनका कहना है कि इससे पहले भी डयूक के शोधकर्ता अमेरिका में बैठे एक बंदर के मस्तिष्क से जापान में लगी रोबोटिक बांह को नियंत्रित करने में सफलता हासिल कर चुके हैं।
Dark Saint Alaick
13-03-2013, 11:04 PM
शहरी इलाकों में जून 2013 तक होंगे 6.6 करोड़ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता
नई दिल्ली। सस्ते स्मार्टफोन की उपलब्धता और मोबाइल इंटरनेट उपयोग बढने के कारण भारत के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया वेबसाइटों का इस्तेमाल करने वालों की संख्या जून 2013 तक बढकर 6.6 करोड़ हो जाएगी। इंटरनेट एंड मोबाइल ऐसोसिएशन आफ इंडिया (आईएएमएआई) और इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो (आईएमआरबी) ने भारत में सोशल मीडिया की स्थिति के बारे में तैयार रपट में कहा गया है, ‘भारत के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं की संख्या दिसंबर 2012 में 6.2 करोड़ थी और जून 2013 में यह तादाद बढकर 6.6 करोड़ हो जाएगी।’ रपट में कहा गया कि शहरी इलाकों में 74 फीसद सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। रपट के मुताबिक, ‘सोशल नेटवकि’ग उपयोगकर्ताओं की संख्या में बढोतरी का श्रेय भारत में इंटरनेट के प्रसार को दिया जा सकता है।’ सस्ते स्मार्टफोन की उपलब्धता और इसके कारण मोबाइल इंटरनेट का उपयोग बढ रहा है। निष्कर्ष के मुताबिक शहरों में इंटरनेट के आठ करोड़ सक्रिय उपयोगकर्ता हैं और 72 फीसद (5.8 करोड़ लोग) किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े हैं।
Dark Saint Alaick
17-03-2013, 03:25 PM
कानों में अचानक सीटी की आवाज सुनें तो उसे हल्के में न लें
नई दिल्ली। अगर आपको फोन पर बात करते समय साफ सुनाई न दे या अचानक कानों में सीटी की आवाज सुनाई दे तो उसे हल्के तौर पर न लें। यह कानों की बीमारी एकॉस्टिक न्यूरोमा के लक्षण हो सकते हैं और इसे नजरअंदाज करने का नतीजा बहरेपन के रूप में सामने आ सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक और ईएनटी विशेषज्ञ डॉ एस के कक्कड़ कहते हैं कि एकॉस्टिक न्यूरोमा वास्तव में एक ट्यूमर होता है जिससे कैंसर तो नहीं होता लेकिन यह श्रवण क्षमता को क्षीण करते करते कई बार खत्म भी कर देता है। इसके और भी गंभीर नतीजे होते हैं। मुश्किल यह है कि इसके लक्षण इतने धीरे-धीरे उभरते हैं कि बीमारी का समय पर पता ही नहीं चल पाता। एम्स के ही पूर्व ईएनटी विशेषज्ञ डॉ बी एम अबरोल ने बताया कि हमारे मस्तिष्क से निकल कर आठवीं क्रेनियल तंत्रिका कान के अंदरूनी हिस्से तक जाती है। आठवीं और सातवीं क्रेनियल तंत्रिका एक दूसरे से सटी होती हैं। आठवीं क्रेनियल तंत्रिका पर बनने वाला ट्यूमर ही एकॉस्टिक न्यूरोमा कहलाता है। यह आठवीं क्रेनियल नर्व की शाखा वेस्टीबुलर तक भी पहुंच जाता है जिसकी वजह से इसे वेस्टिबुलर श्वेनोमा भी कहते हैं।’ मेदान्ता मेडिसिटी के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ के के हांडा ने बताया कि इस ट्यूमर के विकसित होने में कई बार बरसों लग जाते हैं। इसकी वजह से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। डॉ हांडा ने कहा कि इसमें फोन पर या नियमित बातचीत सुनाई नहीं देती। कभी-कभी अचानक कान में सीटी बजती महसूस होती है। अक्सर लोग इन लक्षणों कोे गंभीरता से नहीं लेते लेकिन यही एकॉस्टिक न्यूरोमा की शुरुआत होती है। अगर शुरू में इस समस्या का पता चल जाए तो इसका इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन बाद में गंभीर समस्या हो जाती है। डॉ अबरोल ने बताया कि कुछ मरीजों में यह समस्या तेजी से बढ़ती है। एकॉस्टिक न्यूरोमा की वजह से ऐसा लगता है जैसे चक्कर आ रहे हों या चलते समय अचानक कदम लड़खड़ा रहे हों। अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा बहुत बढ़ जाए तो इसके फलस्वरूप चेहरे पर लकवा भी हो सकता है। चूंकि यह आठवीं क्रेनियल तंत्रिका में होता है तो अपने आसपास की उन अन्य क्रेनियल तंत्रिकाओं और रक्त वाहिनियों को भी यह प्रभावित करता है जो मस्तिष्क को रक्त पहुंचाती हैं या मस्तिष्क तक जाती हैं। उन्होंने बताया कि सातवीं क्रेनियल तंत्रिका का सम्बंध चेहरे की मांसपेशियों से होता है। यह तंत्रिका अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा के ट्यूमर से प्रभावित हो जाए तो फेशियल पैरालिसिस या फेशियल पाल्सी जैसी समस्या हो सकती है। इससे मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, आंसू और नाक में एक द्रव का लगातार उत्पादन होता है और जीभ की स्वाद ग्रंथियां भी प्रभावित हो जाती हैं। डॉ अबरोल के अनुसार, पांचवीं क्रेनियल नर्व अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा से प्रभावित हो जाए तो चेहरे की मांसपेशियों में तीव्र दर्द होता है और यह समस्या ‘ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया’ कहलाती है।
Dark Saint Alaick
17-03-2013, 03:29 PM
बच्चों को कुबडा बना रहे हैं वजनी स्कूल बैग
नई दिल्ली। स्कूली बच्चों की पीठ पर लदा भारी स्कूल बैग उन्हें स्थाई या अस्थाई रूप से कुबड़ा बना सकता है। सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन (एसडीएफ) के तहत किए गए एसोसिएटेड चैम्बर आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) सर्वेक्षण के अनुसार पांच से 12 वर्ष के आयु वर्ग के 82 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपनी पीठ पर अत्यधिक भारी बैग ढोते हैं जिसके कारण बच्चों में कमर दर्द जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। रीढ़ चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बहुत अधिक भारी बस्ते ढोने से उनमें अस्थाई अथवा स्थाई कूबड़पन भी पैदा हो सकता है। एसोचैम की ओर से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार दस साल से कम उम्र के करीब 58 प्रतिशत बच्चे हल्के कमर दर्द के शिकार हैं जो बाद में गंभीर दर्द एवं कूबड़पन का कारण बन सकता है। कूबड़पन की चिकित्सा के विशेषज्ञ डा. शिशिर कुमार के अनुसार पूरी आबादी में करीब चार प्रतिशत लोग इससे पीड़ित होते हैं और प्रति दो हजार बच्चों में एक बच्चा कुबडेþपन का शिकार होता है। लड़कियों में कू बड़पन दस गुना अधिक होता है। आरएलकेसी हास्पिटल एंड मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट के अस्थि शल्य चिकित्सक डा. शिशिर कुमार के अनुसार अगर समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह शरीर में विकलांगता पैदा कर सकती है। किसी असामान्यता के चलते या दुर्घटना का शिकार होने पर रीढ़ मे आए विकार के कारण स्कोलियोसिस हो सकती है। कभी-कभी श्रोणि प्रदेश के झुक जाने के कारण एक पैर छोटा या एक पैर बड़ा हो जाता है। नतीजतन रीढ़ भी झुक जाती है। विशेष किस्म के आर्थोपैडिक जूतों का उपयोग करने से भी इससे बचा जा सकता है। यही नहीं अगर रीढ़ का झुकाव लगातार होता रहे तो आर्थोपैडिक सर्जन से परामर्श करके शल्य क्रिया भी कराई जा सकती है। डा. कुमार के अनुसार कूबड़पन से जुड़े ज्यादातर कारण वैसे तो जन्मजात होते हैं लेकिन लगातार अधिक वजन उठाने, गलत तरीके से बैठने आदि कारणों से भी कूबड़पन की समस्या हो सकती है। यह विकृति महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। जब लोगों में 10 डिग्री से ज्यादा टेढ़ापन होता है तब उस विकृति को स्कोलियोसिस कहते हैं। एसोचैम सर्वेक्षण से पता चलता है कि हमारे देश में करीब 82 प्रतिशत बच्चे अपनी पीठ पर अपने पूरे वजन का 35 प्रतिशत हिस्सा लेकर चलते हैं। एसोचैम स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डा. बी के राव के अनुसार पीठ पर अत्यधिक वजन या असामान्य वजन से पीठ की समस्या या रीढ़ में विकृति हो सकती है। अत्यधिक वजन के कारण रीढ़ पर पड़ने वाले दवाब के कारण (मस्कुलो-स्केलेटल प्रणाली) के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, देहरादून, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद सहित दस बडेþ शहरों में किए गए इस सर्वेक्षण से पता चला कि जिन दो हजार स्कूली बच्चों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया उनमें से 12 साल से कम उम्र के करीब 1500 बच्चे किसी सहारे के बिना ठीक से बैठ भी नहीं पाते हैं और वे हड्डी से सम्बंधित समस्याओं से ग्रस्त हैं तथा 40 प्रतिशत शारीरिक तौर पर निष्क्रिय हैं। डा. कुमार के अनुसार लड़कों की तुलना में लड़कियों में पीठ दर्द की समस्या अधिक व्यापक है। कूबड़पन के मामले में गंभीर बात यह है कि ज्यादातर मामलों में इसका पता 25 से 30 वर्ष की उम्र में लगता है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की मानें तो 50 से 60 फीसदी तक कूबड़पन हो जाए तो उसका उपचार सिर्फ आपरेशन से ही संभव है।
Dark Saint Alaick
23-03-2013, 04:38 PM
वर्ष 2010 में हुई 23 लाख लोगों की मौत का कारण रहा नमक का ज्यादा सेवन
वाशिंगटन। वर्ष 2010 के दौरान दुनिया भर में दिल के दौरे सहित इससे जुड़ी कई दूसरी समस्याओं के कारण हुई 23 लाख मौतों के पीछे का कारण नमक का ज्यादा सेवन करना रहा है। यह नया खुलासा करने वाले शोधकर्ताओं के दल में भारतीय मूल का एक वैज्ञानिक भी शामिल है। न्यू आरलींस में हुई अमेरिकी हृदय संघ की बैठक में मौजूद शोधकर्ताओं के मुताबिक, नमक के अत्याधिक सेवन के कारण हुई मौतों में 2109 के आंकड़े के साथ यूक्रेन का नाम दुनिया के तीस बड़े देशों में सबसे उपर है। वहीं 1803 मौतों के साथ रूस दूसरे और मिस्र (836) तीसरे स्थान पर है। वहीं दुनिया के तमाम देशों में नमक के अत्याधिक सेवन के कारण हुई मौतों में प्रति दस लाख 73 मौतों के आंकड़े के साथ कतर, केन्या (780 और संयुक्त अरब अमीरात (134) का नाम सबसे नीचे हैं। दुनिया भर के पचास देशों में स्थित 303 संस्थानों के 488 वैज्ञानिकों द्वारा मिलकर किए गए इस शोध ‘ग्लोबल बर्डन आफ डिजीजेज स्टडी-2010’ में शोधकर्ताओं ने वर्ष 1990 और 2010 के बीच विभिन्न आयुवर्ग, लिंग और क्षेत्रों के लोगों के नमक सेवन पर किए 247 सर्वेक्षणों का अध्ययन करके यह आंकड़ा निकाला है। उन्हें अपने अध्ययन में नमक सेवन की मात्रा के हृदय से जुड़ी बीमारियों पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया। इस अध्ययन से पता चला कि दुनिया भर में हुई कुल मौतों में से करीब दस लाख (40 फीसद) लोगों की मौत 69 साल से कम उम्र में ही हो गई। मारे गए लोगों में 60 फीसद पुरुष और 40 फीसद महिलाएं शामिल हैं। भारतीय मूल की गीतांजलि सिंह के साथ समन फहीमी, रेनाटा मिचा, शहाब खातिबजादेह, गूदार्ज दनाइ, माजिद एज्जाती, स्टीफेन लिम और जॉन पॉवेल्स ने मिलकर यह अध्ययन किया है।
Dark Saint Alaick
26-03-2013, 10:30 AM
कम खर्च में घुटना प्रत्यारोपण शुरू किया मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल ने
कानपुर। घुटने के दर्द से परेशान बुजुर्ग मरीजों को राहत देने के लिये शहर के सरकारी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल और हडडी रोग विशेषज्ञ मानवता के नाते आगे आए है। घुटने के प्रत्यारोपण के लिये मरीज को जहां प्राइवेट अस्पतालों में दो से ढाई लाख रूपये की रकम खर्च करनी पड़ती है, वहीं सरकारी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिसिंपल और हड्डी रोग विशेषज्ञ यह सुविधा सिर्फ 60 से 70 हजार हजार रूपये में मुहैया करा रहे हैं। शहर के सरकारी गणेश शंकर विदयार्थी मेडिकल कालेज (जीएसवीएम) में प्राचार्य और हडडी रोग विभाग के प्रमुख प्रो आनंद स्वरूप ने अभी कुछ महीने पहले अस्पताल में अत्याधुनिक उपकरणों और सुविधाओं से सुसज्जित स्टेट आफ दि आर्ट आपरेशन थियेटर की शुरूआत की थी जिसका उद्देश्य गरीब मरीजों को कम राशि में यह सुविधा मुहैया कराना था । लेकिन अब उनके इस पद से हट जाने और अनुभवी तथा योग्य हड्डी रोग विशेषज्ञों की कमी के कारण गरीबों को यह सुविधा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में प्रो स्वरूप ने गरीब मरीजों को सस्ते इलाज की यह सुविधा दिलाने के लिए अब मेडिकल कालेज के ही निकट लाजपतनगर में ‘होप आर्थोपेडिक एंड स्पाइन सुपर स्पेशियालिटी क्लीनिक’ की शुरूआत की है, जहां मानवता के नाते डा स्वरूप और उनकी टीम गरीबों का आपरेशन निशुल्क करती है । बस मरीजों को आपरेशन में लगने वाला जरूरी सामान लाना पड़ता है । इसके लिये बाहर के मरीज प्रो स्वरूप से उनके ई मेल एड्रेस नीपेनक्योर डाट सीओ डाट इन या डाआनंदस्वरूपस्वरूप एट दि रेट याहू डाट को डाट इन पर संपर्क कर सकते हैं। प्रो आनंद स्वरूप ने आज पीटीआई भाषा से एक विशेष बातचीत में यह जानकारी दी। डा स्वरूप ने बताया कि इसमें 45 हजार रूपये रोगी के घुटने में लगाये जाने वाले स्वदेशी इंप्लांट के लगते हैं तथा 15 से 20 हजार रूपये अन्य खर्चो में । इसके अलावा रोगी को दवायें और भर्ती रहने के दौरान खाना पीना अस्पताल से मुफ्त में दिया जाता है। यहीं नही घुटना प्रत्यारोपण करवाने वाले रोगी को तीन दिन के अंदर अपने पैरो पर चलने लायक बना दिया जाता है तथा एक हफ्ते के अंदर घर जाने की इजाजत भी दे दी जाती है। प्रो स्वरूप से पूछा गया कि जब प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में एक घुटने के प्रत्यारोपण में दो से ढाई लाख रूपये का खर्च आता है और अगर कारपोरेट अस्पताल में कोई रोगी यह आपरेशन कराता है तो यही खर्च तीन से साढे तीन लाख रूपये तक बढ जाता है तो फिर यहां यह प्रत्यारोपण इतना सस्ता क्यों हो जाता है, इस पर उन्होंने बताया कि प्राइवेट अस्पतालों में घुटना प्रत्यारोपण करने वाले सर्जन की फीस ही 70 हजार से एक लाख रूपये के बीच होती है। इसके बाद आपरेशन थियेटर, नर्सिन्ग और एनीस्थिीसिया आदि की फीस भी 70 से 80 हजार होती है। इसके अलावा करीब 30 से 40 हजार की दवाएं लगती हैं। उन्होंने बताया कि एनजीओ की मदद से किए जाने वाले इन आपरेशनों के लिए मरीजों से न तो प्रत्यारोपण आपरेशन करने की फीस ली जाती है और न ही आपरेशन थियेटर आदि का खर्च और न ही दवाओं के पैसे । इसलिये यहां रोगी को केवल स्वदेशी इंप्लांट बाहर से लाना पड़ता है जिसका खर्च 45 हजार रूपये होता है तथा 15 हजार रूपये अतिरिक्त खर्चे के होते है। इसमें वह एंटीबायोटिक्स दवायें शामिल होती हैं जो अस्पताल में उपलब्ध नही होतीं। इसके अलावा अगर मरीज बहुत गरीब है तो वह उसका इलाज किसी भी सरकारी अस्पताल के आपरेशन थियेटर में जाकर मुफ्त में करते है और गरीब मरीजों के लिये आपरेशन के सामान और दवाओं में लगने वाले खर्चे का इंतजाम वह खुद एनजीओ की मदद से करते है।
Dark Saint Alaick
27-03-2013, 08:10 PM
डायनासोर का सफाया करने वाला उल्कापिंड नहीं बल्कि धूमकेतु था
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने नए अध्ययन में पता लगाया है कि साढे छह करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी से डायनासोर समेत 70 प्रतिशत जीव जंतुओं का सफाया करने वाला आकाशीय पिंड उल्का पिंड नहीं बल्कि धूमकेतु था। न्यू हैंपशायर के वैज्ञानिकों ने बताया कि मेक्सिको के युकातान प्रायद्वीप में 180 किलोमीटर चौडा गड्ढा करने वाला पिंड पहले माने जाने वाले पिंड से अपेक्षाकृत छोटा था। न्यू हैंपशायर के दार्तमाउथ कालेज के वैज्ञानिक जैसन मूरे ने कहा कि हमारे शोध का प्रमुख उद्देश्य पिंड का बेहतर अध्ययन करना है। आकाशीय पिंड से रासायनिक तत्व इरिडियम समृद्ध कण की पूरी पृथ्वी पर परत बन गई थी। इरिडियम का नए सिरे से अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि दरअसल इरिडियम का अध्ययन ठीक से नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी पाया कि वह पिंड अपेक्षाकृत तेजी से घूम रहा था।
Dark Saint Alaick
29-03-2013, 10:24 PM
वैज्ञानिकों ने कैंसर के लिए जिम्मेदार जीन का पता लगाने का किया दावा
मेलबर्न। आस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों के एक समूह ने ऐसे जीन का पता लगाने का दावा किया है जो किसी व्यक्ति में कई तरह के कैंसर विकसित होने के जोखिम को बढा सकते हैं। एबीसी की रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में इस अनुसंधान परियोजना के लिए क्वींसलैंड इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल रिसर्च (क्यूआईएमआर) ने एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया जिसके तहत दो लाख से अधिक लोगों के डीएनए संघटन की जांच की गई। एबीसी ने क्यूआईएमआर की प्रवक्ता जार्जिया चेनेविक्स -ट्रेंच के हवाले से कहा, ‘हमने कैंसर के लिए जिम्मेदार जिन 150 जीन का पता लगाया है उनमें से प्रत्येक जीन हमें विभिन्न अंगों में होने वाले अलग अलग तरह के कैंसर के लिए एकदम नई ईलाज पद्धति की ओर ले जा सकता है।’ उन्होने कहा, ‘इस बात का पता लगाने के लिए अभी और अनुसंधान करना पड़ेगा कि ये जीन कैंसर के लिए किस तरह जिम्मेदार हैं और हम कैंसर विकसित करने से रोकने के लिए उन्हें किस तरह रोक सकते हैं।’ प्रवक्ता ने हालांकि बताया कि अनुसंधान से प्राप्त नतीजों को ईलाज में बदलने में अभी लंबा समय लग सकता है। उन्होंने कहा, नई उपचार पद्धति के लिए आपको पहले इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार तंत्र को समझना होगा। इस अध्ययन से वास्तव में ऐसी कुछ जीन का पता लगाया गया है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
Dark Saint Alaick
29-03-2013, 10:26 PM
मनुष्य और निअंडरथल की संतान का पहली बार पता लगा?
वाशिंगटन। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि वैज्ञानिकों को 30 से 40 हजार साल पहले उत्तरी इटली में रहने वाले एक ऐसे मानव का कंकाल मिला है जिसकी मां संभवत: निअंडरथल और पिता आधुनिक मनुष्य था। यदि आधुनिक मनुष्य और निअंडरथल की पहली ज्ञात संतान संबंधी यह बात सत्य साबित होती है तो यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण होगा कि मनुष्य और निअंडरथल की संतानें भी थीं। निअंडरथल और आधुनिक मनुष्य यूरोप में साथ रहा करते थे। ‘डिस्कवरी न्यूज’ के अनुसार इससे पहले किए गए उत्पत्ति संबंधी अध्ययनों ने बताया था कि यूरोपियाई और एशियाई पुरखों के डीएनए में से एक से चार प्रतिशत निअंडरथल थे। यह कंकाल इटली के मोंटी लेसिनी क्षेत्र से मिला है जिसके अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने जबड़े पर ध्यान केंद्रित किया है। अध्ययन की सह लेखिका एई-मैरशीले विश्वविद्यालय की सिल्वाना कोंडेमी ने कहा, ‘निचले जबड़े की आकृति देखने से पता चलता है कि यह मानव काफी हद तक निअंडरथल और आधुनिक मनुष्य दोनों से मेल खाता होगा। निअंडरथल का निचला जबड़ा :बिना ठोढी: छोटा होता था जबकि आधुनिक मनुष्य की ठोढी विकसित और निचला जबड़ा आगे की ओर निकला होता है।’ कंकाल का माइटोकोंड्रियल डीएनए निअंडरथल है। यह डीएनए मां से बच्चे को मिलता है। इसी से अनुसंधानकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इसकी मां निअंडरथल थी जबकि पिता आधुनिक मनुष्य था। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि हालांकि इन दोनों प्रजातियों की आपसी संतानें थी लेकिन निअंडरलैंड ने अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाए रखा। यह अध्ययन पीएलओस वन पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
Dark Saint Alaick
29-03-2013, 10:27 PM
वैज्ञानिकों ने विकसित किया हैरी पॉटर का अदृश्य करने वाला लबादा
वाशिंगटन । प्रकाश तरंगों की सीमित पहुंच में किसी वस्तु को अदृश्य करने के क्रांतिकारी नए सिद्धांत के आविष्कार के साथ ही वैज्ञानिक ‘हैरी पॉटर’ के अंदाज वाला ऐसा लबादा विकसित करने के थोड़ा और करीब पहुंच गए हैं जिसे पहनकर व्यक्ति अदृश्य हो जाता है । यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘मैंटल क्लोक’ नामक पतला कपड़ा विकसित किया है जिसे लपेटने के बाद किसी वस्तु को अदृश्य किया जा सकता है। सीएनएन ने बताया कि हालांकि इसका प्रभाव प्रकाश तरंगों की सीमित पहुंच तक ही रहता है। वैज्ञानिकों ने एक सिलेंडर को इस लबादे से ढका जिसके बाद इसे माइक्रोवेव डिटेक्टर से नहीं देखा जा सकता था हालांकि मानवीय आंखों से यह अब भी दिख रहा था। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इसी सिद्धांत को आंखों से दिखने वाले प्रकाश के क्षेत्र में भी हस्तांतरित जा सकता है जिससे मानवीय आंखों से भी वस्तु दिखाई नहीं देगी। यह अध्ययन नई जरनल आॅफ फिजिक्स में प्रकाशित किया गया था।
Dark Saint Alaick
30-03-2013, 03:40 AM
गुर्दा माह पर विशेष
भारत में तेजी से बढ रहे हैं गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के मरीज
भारत में गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के मरीज तेजी से बढ रहे हैं । लेकिन इस बीमारी के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये सरकारी स्तर पर एड्स, पोलियो और अन्य असंक्रामक रोगों के लिए चलने वाले अभियान जैसे प्रयास नहीं हो रहे। फिलहाल गुर्दा को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय का अलग से कोई कार्यक्रम नहीं है, विज्ञापन के स्तर पर जागरूकता में कमी है। सरकारी अस्पतालों में गुर्दे की बीमारी के विशेषज्ञों की भी कमी है। हालात यह हैं कि सफदरजंग जैसे बड़े अस्पताल में गुर्दा प्रत्यारोपण नहीं हो रहा तो भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे संस्थान में गुर्दा रोग विभाग के विस्तार का प्रस्ताव काफी सालों से लंबित है। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक भारत में सालाना करीब 5000 गुर्दा प्रत्यारोपण होते हैं, इनमें 85 फीसदी प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में जबकि 15 फीसदी ही सरकारी अस्पतालों में होता है। एम्स में गुर्दा प्रत्यारोपण के समय तकरीबन 40 हजार से एक लाख रूपये तक का खर्च आता है जबकि निजी अस्पतालों में चार से छह लाख तक हो सकता है। विश्व में आज लाखों लोग गुर्दा देने के बाद भी सही तरीके से जीवन जी रहे हैं। एम्स में नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. संजय के अग्रवाल के अनुसार, ‘सरकारी अस्पतालों में गुर्दा प्रत्यारोपण ज्यादा नहीं हो पाने के कारण कम आय वाले लोग अक्सर इलाज से महरूम रह जाते हैं। प्रत्यारोपण नहीं होने की स्थिति में डायलिसिस ही एकमात्र उपाय बचता है, जो भारत में करीब पांच फीसदी मरीजों को ही उपलब्ध हो पाता है और गुर्दा प्रत्यारोपण का प्रतिशत उससे भी कम है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद भी मरीज को आजीवन दवाएं लेनी पड़ती हैं। हृदय, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और आघात जैसी बीमारियों की तुलना में इसके इलाज में खर्च ज्यादा आता है।’ प्रो. अग्रवाल के मुताबिक, ‘लोगों में अंगदान को लेकर जागरूकता में कमी प्रत्यारोपण के मार्ग में बाधक है। मौजूदा कानून के मुताबिक अस्पताल में यदि कोई मरीज ब्रेन डेड (दिमागी तौर पर मृत) घोषित कर दिया जाता है तब परिवार की रजामंदी के बाद उसके शरीर के अंगों को जरूरतमंद मरीजों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। लेकिन यदि कोई सड़क दुर्घटना में घायल हो जाए और समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाए जाने के कारण उसकी मृत्यु हो जाए तो उसके अंगों को उपयोग में नहीं लाया जा सकता। इसलिए आज भी 95 फीसदी अंग प्रत्यारोपण जीवित व्यक्तियों से और पांच फीसदी ही ब्रेन डेड व्यक्तियों से होते हैं।’ प्रो. संजय बताते हैं, ‘एम्स में गुर्दा रोग विभाग को विस्तार दिए जाने का प्रस्ताव लंबित है। हालांकि हरियाणा के झज्जर में अलग केंद्र बनाने का सुझाव मिला है लेकिन इससे मरीजों की परेशानी बढ जाएगी। हमलोगों की कोशिश है कि एम्स में ही इसे बनाया जाए और मरीजों के लिए केंद्रीयकृत व्यवस्था हो। इसके लिए हाल में सफदरजंग अस्पताल में राष्ट्रीय अंग एवं उत्तक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) की स्थापना की गई, यहां सभी ब्रेन डेड व्यक्तियोंं और अंग प्रत्यारोपण के जरूरतमंदों की जानकारी रखी जाएगी।’ प्रो. संजय का सुझाव है कि सरकार पिछले साल से ही हृदय से संबंधित बीमारी, कैंसर, मधुमेह की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) को 50 से अधिक जिलों में चला रही है, जिसमें गुर्दा रोग को भी जोड़ा जाना चाहिए। इससे गुर्दा मरीजों की भी वास्तविक संख्या का पता चल सकेगा। 64 साल पुराने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में भी गुर्दा रोग को लेकर कोई आंकड़े नहीं रखे जा रहे हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अनंत कुमार के अनुसार, ‘गुर्दा देने के बाद एक सामान्य बड़े आपरेशन में जिस तरह की सावधानी बरती जानी चाहिए उसी तरह की सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इसके बाद व्यक्ति दो हफ्ते के आराम के बाद सामान्य रूप से काम कर सकता है।’ गुर्दा प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अनंत कुमार के अनुसार, ‘गुर्दा देने के बाद एक सामान्य बड़े आपरेशन के बाद बरती जाने वाली सावधानी के जैसे ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इसके बाद व्यक्ति दो हफ्ते के आराम के बाद हर तरह का काम कर सकता है। मरीज को गुर्दा लगने के बाद उसकी आयु दस से 15 साल बढ जाती है। कानून के अनुसार 18 साल से उपर का कोई भी व्यक्ति बिना किसी लोभ के अपने निकटतम संबंधियों को गुर्दा दान कर सकता है। लेकिन जागरूकता के अभाव में परिवार के लोग ऐसा करने से बचते हैं जिससे मानव अंगों की तस्करी जैसी समस्याएं सामने आती हैं।’ एम्स में आर्गन रिट्रिवल बैंकिंग आर्गेनाइजेशन (ओआरबीओ) की प्रमुख डॉ. आरती विज ने कहा, ‘अंगदान का इच्छुक कोई भी व्यक्ति यहां पंजीकरण करा सकता है। अब तक 17 हजार से ज्यादा लोगों ने पंजीकरण कराया है। मरीज के ब्रेन डेड होने पर यह संस्था सरकारी या निजी अस्पतालों से संपर्क करती है। हालांकि यह संख्या कम है।’ एम्स में असिस्टेंट डायटिशियन डॉ. गुरदीप कौर गुर्दे के मरीजों के लिए विशेष आहार की आवश्यकता पर जोर देते हुए बताती हैं, गुर्दे के मरीजों को प्रोटीनयुक्त आहार की विशेष आवश्यकता होती है। डायलिसिस पर रह रहे मरीजों को हम प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे कि दूध, दही, अंडे की सफेदी, मांस, मछली की सलाह देते हैं। मांस, मछली में पोटैशियम और फॉस्फोरस भी मौजूद होते है इसलिए हम इन्हें खास विधि से बनाने का सुझाव देते हैं। दो डायलिसिस के बीच वजन ज्यादा नहीं बढना चाहिए। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद भी मरीज को शुरुआती चार से छह हफ्ते में ज्यादा प्रोटीन और कैलोरी वाले भोजन लेने चाहिए जबकि इसके बाद के चार से छह हफ्ते में थोड़े कम प्रोटीन और कैलोरी वाले भोजन लेने चाहिए।
Dark Saint Alaick
30-03-2013, 04:27 AM
मच्छरों से बचाव करेगा हरी चाय का पौधा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफसर ने हर्बल और बेहद सस्ता उपाय खोज निकाला
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के द्रव्य गुण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन. द्विवेदी ने मच्छरों से बचाव के लिए हरी चाय के पौधे के रूप में हर्बल और बेहद सस्ता उपाय खोज निकाला है। हरि चाय का पौधा जानलेवा मच्छरों का दुश्मन है। इस पौधे की खुशबू से मच्छर दूर भाग जाएंगे। प्रो. द्विवेदी ने बताया कि इस पौधे का अस्तित्व सदियों से है और ये गांवों में बड़ी ही आसानी से पाए जाते हैं, लेकिन लोगों को इसके गुण और प्रयोग करने का तरीका पता ही नहीं है। यह एक ऐसा कारगर पौधा है, जो आपके घर से मच्छरों को भगा देगा। इस पौधे को आयुर्वेद की भाषा में ‘कृत्रण’ कहते हैं और इसका वैज्ञानिक नाम ‘सिम्बोपोगां स्कुलेथाश’ है। उन्होंने बताया कि हरी चाय के पौधे की खुशबू बिल्कुल नींबू की तरह होती है। ये पौधे मच्छर और मक्खियों का दुश्मन है। हरी चाय हर्बल होने के साथ ही मच्छरों को मारने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली तमाम दवाइयों से बहुत ही सस्ती है। मच्छरों को मारने के लिए बाजार में बिक रही कई अच्छी कम्पनियों की दवाओं में कुछ मात्रा में इस पौधे का रस मिलाया जाता है। इसकी पत्तियों को पीस कर शरीर में लगा लेने पर इसकी खुशबू से मच्छर आपके आस-पास भी नहीं फटकेंगे। बुखार और खांसी होने पर इसे उबाल कर पीने से भी लाभ होगा। यही नहीं कब्ज की शिकायत या फिर पुराना दर्द हो तो किसी आयुर्वेद के डॉक्टर की सलाह पर हरी चाय का सेवन किया जा सकता है। हरी चाय के पत्तों के रसों का भी इस्तेमाल चर्म रोग के लिए भी कारगर है।
Dark Saint Alaick
31-03-2013, 04:04 PM
आम के प्रेमी कृत्रिम ढंग से पकाए फलों से रहे सावधान
पुणे। फलों का राजा माने जाने वाले आम का मौसम निकट आने के मद्देनजर सलाह दी गई है कि इस फल के प्रेमी प्राकृतिक रूप से पकाए गई आम की अल्फांसो किस्म की पहचान करने के लिए उसकी विशिष्ट सुगंध और सिकुडन रहित छिलके पर ध्यान दें। शहर में स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के ‘फूड केमिस्ट्री जरनल’ में प्रकाशित शोध लेख के अनुसार सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ तालुक में पाए जाने वाले अल्फांसो आम को उसकी प्राकृतिक सुगंध से पहचाना जा सकता है। कृत्रिम रूप से पकाए गए आम में यह सुगंध नहीं होती। देवगढ तालुक आम उत्पादक सहकारी सोसाइटी के निदेशक एवं अध्यक्ष अजित गोगाटे ने कहा, ‘रासायनिक तत्व का इस्तेमाल करके पकाए गए आमों में इस प्रकार की सुगंध नहीं होती। इसे सूंघने के लिए आपको आम को अपनी नाक से जोर से दबाना होगा।’ महाराष्ट्र में खाद्य एवं औषधि प्रशासन:एफडीए: ने पिछले कुछ समय में ऐसे व्यापारियों के यहां छापे मारे हैं जिन्होंने प्रतिबंधित रासायनिक तत्व कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करके कृत्रिम रूप से आम को पकाया था। यह रासायनिक तत्व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। प्राकृतिक रूप से पके आम का छिलका पतला और कोमल होता है जबकि कृत्रिम ढंग से पके आम का छिलका पीला और कठोर होता है। रासायनिक रूप से पके आम का रंग एक सा होता है। इसके विपरीत प्राकृतिक रूप से पके आम में पीले और हरे रंगों का मिश्रण होता है। गोगाटे ने कहा, ‘आम का छिलका सिकुड़ा हुआ नहीं लगना चाहिए। कई लोगों का मानना है कि यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ हो तो वह अच्छा होता है। लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा तभी होता है जब आम जरूरत से ज्यादा पका हो। यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ है और फिर भी उसका रंग हरा है तो उसे न खरीदें। इसका मतलब है कि उसे बिना पके ही तोड़ा गया है।’ उन्होंने बताया कि 700 किसानों की 25 वर्ष पुरानी सहकारी सोसाइटी अल्फांसो को अपने सदस्यों के बागों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए ई-कॉमर्स का सहारा लेने जा रही है और इसके लिए वेबसाइट पर आर्डर दिए जाएंगे।
Dark Saint Alaick
31-03-2013, 11:39 PM
यौन अपराधों से लड़ने में महिलाओं की ‘मदद’ करेगा अंतर्वस्त्र
अहमदाबाद। चेन्नई की तीन आटोमोबाइल इंजीनियरों ने जीपीएस मॉड्यूल लगा एक ऐसा अंतर्वस्त्र तैयार किया है जिनके बारे में उनका दावा है कि यह भारत में यौन अपराधों को काबू कर सकता है । अंतर्वस्त्र लड़की के माता पिता और पुलिस को अलर्ट कर पाने में सक्षम है । सोसाइटी हारनेसिंग इक्विपमेंट (शी) नामक इस उत्पाद को तैयार करने वालों में से एक मनीषा मोहन ने बताया कि अंतर्वस्त्र में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन और दबाव संवेदक लगे हैं और यह 3,800 केवी के झटके और लड़की के माता पिता और पुलिस को अलर्ट भेजने में सक्षम है । उन्होंने बताया कि झटके 82 बार दिए जा सकते हैं । यह उपकरण महिलाओं को बसों, सार्वजनिक स्थलों पर सामना किए जाने वाली स्थितियों से निजात दिलाएगा । अंतर्वस्त्र के काम करने की प्रक्रिया को समझाते हुए मनीषा ने बताया कि दबाव संवेदक के लड़की का उत्पीड़न करने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को जबरदस्त झटका लगेगा जबकि जीपीएस और जीएसएम से आपात नंबर 100 और लड़की के माता पिता को एसएमएस जाएगा । श्रीरामास्वामी मेमोरियल यूनिवर्सिटी की इंजीनियरिंग की छात्रा मनीषा ने अपने दो सहकर्मियों रिंपी त्रिपाठी और नीलाद्री बसु पाल के साथ मिलकर यह अंतर्वस्त्र तैयार किया है ।
Dark Saint Alaick
04-04-2013, 12:32 PM
कार में वाई-फाई
इंदौर में देश की पहली इंटरनेट कार दौड़ेगी सड़कों पर
इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘बीएसएनएल’ ने देश मे पहली बार कार में इंटरनेट लगाया है। इस कार को पूरी तरह से वाई-फाई किया गया है। इस कार में और कार के बाहर भी आप इंटरनेट का उपयोग कर सकेंगे। इस पूरी प्रणाली को 5 से 6 हजार के खर्च पर कार में स्थापित किया जा सकता है। पहली इंटरनेट कार ‘बीएसएनएल’ के महाप्रबन्धक जी.सी. पांडे की ही है, जिसे प्रेक्टिकल के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। बीएसएनएल के इंदौर के महाप्रबन्धक जी.सी.पांडे ने बुधवार को अपने कार्यालय में इस कार्य का डेमो देते हुए बताया कि ये देश में अपने तरह की पहली सेवा है। कार में लगे एक छोटे से ऐंटिना से सिग्नल प्राप्त होते हैं और उससे फोन और इंटरनेट दोनों ही चलने लगते है। सीडीएमए प्रणाली पर आधारित इस सिस्टम पर 3.6 एमबीपीएस की स्पीड मिलती है। कार को वाई-फाई बनाने से कार के अलावा 15 फीट तक वाई-फाई का उपयोग किया जा सकता है। यह इंटरनेट कार फिलहाल पूरी तरह से लोकल इंदौर कार्यालय द्वारा संचालित की जा रही है, लेकिन जल्दी ही इस प्रोजेक्ट को राष्टñीय स्तर पर अपनाया जा सकता है।
Dark Saint Alaick
04-04-2013, 12:33 PM
चीन में दुनिया का सबसे हल्का पदार्थ बनाया
केवल 0.16 मिलीग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है घनत्व
बीजिंग। चीन के वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे हल्का पदार्थ ‘कार्बन एरोजेल’ का विकास किया है, जिसका घनत्व हवा के घनत्व का केवल छठा हिस्सा होगा। झीजियांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसका उत्पादन किया है। इस ठोस पदार्थ का घनत्व केवल 0.16 मिलीग्राम प्रति घनसेंटीमीटर है। इससे पहले विश्व का सबसे हल्का पदार्थ ‘ग्रेफाइट एरोजेल’ था। ग्रेफाइट एरोजेल का विकास पिछले वर्ष जर्मनी के वैज्ञानिकों ने किया था, जिसका घनत्व 0.18 मिलीग्राम प्रति घनसेंटीमीटर है। प्रोफेसर गाओ चाओ के नेतृत्व वाले शोध दल ने कार्बन नैनोट्यूब्स और ग्रेफाइन के सूखे घोल को जमाया और उसकी नमी को हटाकर अखंडता बरकरार रखी।
Dark Saint Alaick
04-04-2013, 12:33 PM
एचआईवी की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती है ‘आत्म परीक्षण किट’
तीस साल बाद भी ‘बचाव ही उपचार’
टोरंटो। भारतीय मूल की वैज्ञानिक की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, एड्स की रोकथाम में एचआईवी के ‘आत्म परीक्षण किट’ काफी मददगार साबित हो सकती है। भारत सहित कई देशों के आंकड़ों पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि एचआईवी के ‘आत्म परीक्षण किट’ के जरिए इस घातक रोग के साथ जुड़ी आशंकाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मेकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के शोध संस्थान (आरआई-एमयूएचसी) की डॉक्टर नितिका पंत पई द्वारा किया गया यह अध्ययन इस क्षेत्र में अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इससे दुनिया भर में इस रोग के जल्द पता लगने और उपचार का रास्ता साफ हो सकता है, जिससे इसके फैलने में कमी आने की उम्मीद है। पंत पई का कहना है कि एचआईवी के पता चलने के तीस वर्ष बाद भी आज हमारे पास इसका कोई टीका नहीं है। इससे बचाव को ही उपचार के कारगर उपाए के तौर पर देखा जाता है, लेकिन एचआईवी से जुड़े कलंक और भेदभाव जैसी सामाजिक दिक्कतों की वजह से इसकी जांच कराने वालों की संख्या बेहद कम है। संयुक्त राष्ट्र के एचआईवी-एड्स कार्यक्रम (यूएनएड्स) के मुताबिक दुनिया भर में हर साल लगभग 25 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं और इनमें से 50 फीसद लोगों को अपने एचआईवी पीड़ित होने का पता ही नहीं है। पंत पई मानती हैं कि एचआईवी के आत्म परीक्षण किट तक लोगों की पहुंच आसान होने से इससे जुड़े नजरिए में सकारात्मक बदलाव आएगा।
20 मिनट में स्वयं करें जांच :
इस ‘आत्म परीक्षण किट’ से लोग घर बैठे ही अपने मसूढ़ों से लिए गए तरल की जांच कर एचआईवी का पता लगा सकते हैं। इस बेहद आसान और गोपनीय जांच से 20 मिनट के भीतर ही परिणाम का पता चल जाता है।
Dark Saint Alaick
05-04-2013, 04:14 PM
एक लीटर में एक हजार किलोमीटर चलेगी वाली कार
अबुधाबी। सुनने मे भले ही यह अविश्वसनीय लगे, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में इंजीनियरिंग के छात्रों के एक दल ने ऐसी कार का निर्माण किया है जो एक लीटर इंधन में एक हजार किलोमीटर की दूरी तय करेगी। छात्रों ने इस कार को ‘इको दुबई’ नाम दिया है। यह कार निर्माण के अंतिम चरण में है और अगले दो सप्ताह के भीतर इसका परीक्षण शुरू कर दिया जाएगा। दुबई तकनीकी कॉलेज के छात्र दो वर्ष से इको कार पर काम कर रहे हैं। यह अत्यंत हल्की कार है और इसका वजन लगभग 25 किलो है। कार आधा मीटर चौड़ी, दो मीटर लम्बी और आधा मीटर ऊंची है। यह कार इसी प्रकार की तकनीक से बनी कारों के साथ जुलाई में विश्वस्तरीय रेस में शामिल होगी। कार के निर्माण से जुड़े एक छात्र ने बताया कि धरती पर पेट्रोल का सीमित भंडार है। यह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता, इसलिए हमने परिस्थितिकी आधारित वाहन के निर्माण की दिशा में कदम उठाया। छात्रों को इस कार के निर्माण के लिए बिजली, सौर एवं इसी तरह की दूसरी तकनीक का इस्तेमाल किया है।
Dark Saint Alaick
05-04-2013, 11:26 PM
2050 में बढ़ना बंद हो जाएगी विश्व की जनसंख्या
लंदन। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस सदी के मध्य के आसपास तक पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की संख्या स्थिर हो जाएगी। स्पेन स्थित साइंटिफिक इन्फार्मेशन एंड न्यूज सर्विस (एसआईएनसी) ने बताया कि यह निष्कर्ष भौतिक विज्ञानियों द्वारा इस्तेमाल एक मॉडल से प्राप्त हुआ है। यह संयुक्त राष्ट्र के गिरावट के पूर्वानुमान से मेल खाता है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्वानुमान के अनुसार 2100 में विश्व की जनसंख्या सर्वोच्च अनुमान के मुताबिक 15.8 अरब और निम्नतम अनुमान (न्यूनतम प्रजनन क्षमता) के अनुसार 6.2 अरब होगी जो कि वर्तमान के सात अरब के आंकड़े से भी नीचे है। आॅटोनॉमस यूनिवर्सिटी आफ मैड्रिड और सान पैबलो यूनिवर्सिटी (दोनों स्पेन की) निम्न अनुमान की पुष्टि करती प्रतीत होती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1950 और 2100 के बीच मुहैया कराई गई जनसंख्या संभावना का इस्तेमाल पत्रिका ‘सिमुलेशन’ में प्रकाशित अध्ययन करने के लिए किया गया। यूएएफ अनुसंधानकर्ता फेलिक्स एफ मुनोज ने कहा कि यह एक ऐसा मॉडल है जो दो स्तरीय प्रणाली का विकास का वर्णन करता है, जिसमें एक स्तर से दूसरे में गुजरने की संभावना है।
Dark Saint Alaick
06-04-2013, 12:01 AM
चीनी वैज्ञानिकों ने किया ‘डार्क मैटर’ के अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान का दावा
बीजिंग। चीन के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में मौजूद ‘डार्क मैटर’ सम्बंधी अनुसंधान में अपनी ओर से महत्वपूर्ण योगदान देने का दावा किया है। अंतरिक्ष विज्ञान के तहत माना जाता है कि ‘डार्क मैटर’ ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का एक बड़ा हिस्सा है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद अल्फा मैगनेटिक स्पेक्ट्रोमीटर (एएमएस) ऐसा उपकरण है जो विभिन्न तरह के असामान्य द्रव्यों की जानकारी इकट्ठा करता है। एएमएस टीम के सदस्य चेन हेशेंग ने बताया कि इस उपकरण का एक मुख्य भाग चीन में निर्मित बहुत बड़े आकार का स्थायी चुंबक है। उन्होंने बताया कि डार्क मैटर के दो कणों के टकराव से पॉजिट्रोन पैदा होते हैं, जिन्हें एएमएस की मदद से पहचाना जा सकता है। उन्होंने बताया कि बुधवार को मिले परिणामों के अनुसार एएमएस ने 4 लाख पॉजिट्रोनों का पता लगाया है।
Dark Saint Alaick
07-04-2013, 12:23 AM
फास्टफूड खाया तो लीवर हो सकता है खराब
लखनऊ । ज्यादा फास्टफूड खाकर व्यायाम नहीं करने वाले सावधान हो जाएं क्योंकि इससे उनका लीवर (यकृत) खराब हो सकता है । यह चेतावनी खासतौर से गर्भवती होने वाली महिलाओं पर लागू होती है क्योंकि ज्यादा फास्टफूड खाने पर गर्भस्थ शिशु पर भी कुप्रभाव पड़ सकता है । गर्भावस्था में लीवर की होने वाली बीमारियों को लेकर कल यहां आयोजित होने वाले सेमिनार की जानकारी देते हुए कार्यक्रम के आयोजक डा. दीपक अग्रवाल और डा. सुनीता चन्द्रा ने बताया कि सेमिनार में देश के करीब 850 वरिष्ठ चिकित्सक भाग लेंगे जिसमें गर्भावस्था में लीवर में होने वाले संक्रमण पर चर्चा की जाएगी । डा. सुनीता चन्द्रा का कहना था कि लीवर मे संक्रमण से बचाव के लिए बाहर के खाने और फास्टफूड से परहेज करना चाहिए । तेल मसाले युक्त भोजन से भी बचना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि फास्टफूड खाना है तो व्यायाम करना ही पडेगा ।
Dark Saint Alaick
08-04-2013, 11:34 PM
तनाव तैयार करता है दिमाग को चुनौतियों के लिए
टोरंटो। जीवन के शुरुआती दौर में यदि मस्तिष्क को तनाव का अनुभव हो जाए तो व्यक्ति भविष्य में मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है। कनाडा में कैलगरी विश्वविद्यालय के हॉचकिस ब्रेन इन्स्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि मस्तिष्क के ‘स्ट्रेस सर्किट’ में बचपन में सीखने की अपार क्षमता होती है। अनेक प्रयोगों और अध्ययन के बाद जयदीप बैंस और उनके सहयोगियों का कहना है कि स्ट्रेस सर्किट तनाव के बाद खुद को सामान्य अवस्था में ले आता है। अध्ययन के नतीजे जर्नल ‘नेचर न्यूरोसाइंस’ में प्रकाशित हुए हैं। फिजियोलॉजी और फर्मेकोलॉजी विभाग के प्राध्यापक बैंस ने कहा कि नए नतीजे बताते हैं कि मस्तिष्क में जिन प्रणालियों को जटिल समझा जाता है वे वास्तव में, खास तौर पर जीवन के शुरुआती दौर में बेहद लचीली होती हैं।
Dark Saint Alaick
08-04-2013, 11:35 PM
दिल पर भी पड़ता है डर का असर
लंदन। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि भयभीत कर देने वाली किसी घटना को लेकर मस्तिष्क जो प्रतिक्रिया देता है उसका असर दिल पर पड़ सकता है। ब्रिटेन स्थित ब्राइटन एंड ससेक्स मेडिकल स्कूल के अनुसंधानकर्ताओं ने दिल की धड़कनों के चक्र और भय की आशंका के बीच सम्बंध का पता लगाया है। स्वस्थ स्वयंसेवकों पर किए गए परीक्षणों में पाया गया कि जब उनके हृदय में संकुचन होता है और रक्त का पूरे शरीर में प्रवाह होता है उस समय उनके द्वारा भय की अनुभूति को महसूस करने की संभावना अधिक होती है। लेकिन यह संभावना उस समय बेहद कम होती है जब हार्टबीट पूरी तरह ‘रिलैक्स’ या शिथिल होती है। एक खबर में कहा गया है कि परिणाम बताते हैं कि भयभीत कर देने वाली किसी घटना को लेकर मस्तिष्क जो प्रतिक्रिया देता है उसका असर दिल पर पड़ सकता है और यह सब कुछ संकुचन और शिथिलता के नियमित चक्र पर निर्भर करता है। इस अध्ययन को लंदन में होने जा रहे ‘ब्रिटिश न्यूरोसाइंस एसोसिएशन फेस्टीवल’ में पेश किया जाएगा।
Dark Saint Alaick
08-04-2013, 11:35 PM
उच्च रक्तचाप से दक्षिण-पूर्व एशिया में हर साल मरते हैं लगभग 15 लाख लोग
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार उच्च रक्तचाप से दक्षिण-पूर्व एशिया में हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत होती है। इस तरह उच्च रक्तचाप दिल के दौरे जैसी गैर संक्रामक बीमारी का सबसे खतरनाक कारक है। डब्ल्यूएचओ के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र निदेशक डॉक्टर सामली प्लियनबांगचांग ने कहा कि हर व्यक्ति स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर-संतुलित आहार लेकर, नमक की मात्रा कम कर, नियमित कसरत कर, अल्कोहल के हानिकारक इस्तेमाल से बचकर, सिगरेट पीना छोड़कर और नियमित रूप से अपने रक्त चाप की जांच कराकर उच्च रक्तचाप से बच सकता है। डब्ल्यूएचओ ने इस साल सात अपे्रल को मनाए गए विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर उच्च रक्तचाप को लेकर लोगों को सतर्क किया। डब्ल्यूएचओ के सर्वेक्षणों में पाया गया कि भारत में हर तीन में से एक वयस्क में उच्च रक्तचाप की समस्या है और इनमें से अधिकतर को इसका पता नहीं है। वरिष्ठ शोधविज्ञानी और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया में एसोसियेट प्रोफेसर, डॉक्टर शैलेश मोहन ने बताया कि भारत में वर्ष 2000 से 2025 के बीच उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों की संख्या 11.8 करोड़ से बढ़कर 21.3 करोड़ हो जाने की संभावना बताई गई थी। हालांकि हमने हाल ही में अनुमान लगाया कि 2013 में 25 साल की उम्र के लोगों में पहले से ही लगभग 19.9 करोड़ वर्तमान में उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। इनमें पुरुषों की संख्या 10.3 करोड़ जबकि महिलाओं की 9.6 करोड़ है। मोहन ने कहा कि पिछले तीन दशकों में देश में वयस्कों में उच्च रक्तचाप की समस्या बहुत तेजी से बढ़ी है। यह बढ़कर कुछ ग्रामीण और शहरी समुदायों में पांच प्रतिशत, शहरी इलाकों में 20 से 40 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 12 से 17 प्रतिशत हो गई है। उन्होंने कहा कि इनके पीछे कई कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण तेजी से होता शहरीकरण है जिसकी वजह से लोगों की जीवन शैली में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं।
Dark Saint Alaick
10-04-2013, 12:01 AM
एलर्जी से बचाव का सबसे उपयुक्त तरीका प्राकृतिक उपचार
भोपाल। एलर्जी रोग से जुडे विभिन्न पहलुओ पर शोध करने वाले एक विशेषज्ञ चिकित्सक का कहना है कि इस रोग से बचाव का सबसे कारगर तरीका प्राकृतिक उपचार है और इनके जरिए किसी मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। एलर्जी को लेकर दो दशक से शोध कर रहे एक चिकित्सक डॉ सैयद अरहम का दावा है कि एलर्जी से बचाव के लिए पश्चिमी देशों की तरह इलाज करने की अवधारणा गलत साबित हुयी है। यही वजह है कि यूरोप और अन्य विकसित देशो मे 50 साल के दौरान इस रोग से पीडितो की संख्या मे लगभग एक सौ गुना बढ़ोतरी हुयी है। उन्होंने एलर्जी को लेकर विभिन्न संस्थाओं के हवाले से कहा कि इस समय यूरोप और अमरीकी देशों में लगभग 50 करोड व्यक्ति एलर्जी से परेशान है। नाक कान और गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञ डॉ. अरहम ने कहा कि उन्होंने अपने शोध के दौरान दो से 12 वर्ष की आयु के लगभग तीस बच्चो पर परीक्षण किए। उन्होने इन बच्चो को प्राकृतिक तरीके से उपचार के मद्देनजर धूल पराग कण और पालतू जानवरों आदि के संपर्क मे रहने दिया। लगातार ऐसा करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मे वृद्धि हुयी और फिर उन्हे एलर्जी ने कभी परेशान नहीं किया। उनका मानना है कि बचपन मे बच्चो को धूल पराग.कणो और पालतू जानवरो के संपर्क मे आने देना चाहिए। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढेगी और वह भविष्य मे भी स्वस्थ रहेगे। भोपाल के चिकित्सा महाविद्यालय से दो दशक पहले चिकित्सा मे स्रातक और फिर मॉस्टर आफ सर्जरी (एमएस) हासिल करने वाले डॉ. अरहम ने कहा कि उन्होने अपने अनेक शोध.पत्रो के आधार पर रेड बुक आफ एलर्जी का लेखन किया है और यह यूरोप अमरीकी और एशियाई देशो मे उपलब्ध है। इसके अलावा उनके एलर्जी से जुडे ताजा शोधपत्र को हेंमिंग लोवेस्टिन रिसर्च एवार्ड के लिए भी स्वीकार किया गया है। इस संबंध मे वह आगामी जून माह मे इटली भी जा सकते है। उनका कहना है कि एलर्जी के प्राकृतिक उपचार की अवधारणा को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाने मे बडी दवा कंपनियां भी कठिनाइयां पैदा कर रही है क्योकि इससे उनके व्यावसायिक हित प्रभावित हो सकते है।
Dark Saint Alaick
10-04-2013, 07:38 AM
डेंगू की उपचार पद्धति खोजने के निकट पहुंचे शोधकर्ता
वाशिंगटन। अनुसंधानकर्ता प्रतिकारकों की मदद से डेंगू के उपचार की एक नई पद्धति विकसित करने के थोड़ा और करीब पहुंच गए हैं। मेसाच्युसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान में एकीकृत कैंसर शोध के कॉच संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि विश्व की करीब आधी जनसंख्या को डेंगू विषाणु के संक्रमण का खतरा है। इसके बावजूद इस बीमारी का कोई निश्चित उपचार नहीं खोजा गया है। इस घातक बीमारी से लड़ने के लिए टीके का विकास करना चुनौतीपूर्ण रहा है क्योंकि डेंगू किसी एक नहीं अपितु चार अलग अलग विषाणुओं के कारण होता है। डेंगू को काबू करने के लिए प्रत्येक विषाणु को टीके से प्रभावहीन करना जरूरी है। एमआईटी में बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर राम शशिशेखरन ने बताया कि यदि लोगों को किसी एक विषाणु या चारों में से कुछ विषाणुओं से ही बचाया जाता है और बाद में यदि वे उस विषाणु का शिकार हो जाते हैं जिसके लिए उन्हें रक्षा प्रदान नहीं की गई तो डेंगू और घातक रूप धारण कर सकता है। उन्होंने एक बयान में कहा कि हमारे अनुसंधान की प्रेरणा यही थी कि ऐसा रोग प्रतिकारक विकसित किया जाए जो चारों विषाणुओं के खिलाफ काम करे। डेंगू के लिए रोग प्रतिकारक उपचार पद्धति विकसित करने के लिए विषाणु के एनवलप प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। शशिशेखरन ने कहा कि यह काफी जटिल प्रोटीन है जो विषाणु को मरीज तक पहुंचने, उसे संक्रमित करने और फैलने में मदद करता है।
Dark Saint Alaick
13-04-2013, 10:22 PM
भारत ने रोगाणुमुक्त झींगे का विकास किया
नई दिल्ली। राजीव गांधी मत्स्यपालन केंद्र ने उच्च गुणवत्ता वाले झींगे की रोगाणुुमुक्त किस्म का विकास किया है। भारत में यह अपनी तरह की पहली किस्म है जो विशेष रोगाणुओं से मुक्त है। किस्म का नाम लिटोपेनाइयुस वान्नामेई ब्रूडस्टाक है। इससे देश में निर्यात गुणवत्ता वाले झींगे के उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि नयी किस्म वाणिज्यिक उत्पादन के लिए बेहतर है।
Dark Saint Alaick
14-04-2013, 07:07 AM
बैरेन द्वीप का ज्वालामुखी है 18 लाख साल पुराना : अध्ययन
नई दिल्ली। एक नए अध्ययन के अनुसार अंडमान सागर के बैरेन द्वीप में स्थित भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी 18 लाख साल पुराना है। आईआईटी-मुंबई और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने इस जवालामुखी द्वारा निर्मित 42,000 साल से अधिक पुरानी राख की दो परतों की उम्र का पता लगाने के लिए आर्गन डेटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। बैरेन द्वीप ज्वालामुखी, समुद्र तल से लगभग 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ज्वालामुखी पिछले 70,000 साल में छिटपुट रूप से फटा है। लेकिन इसका निर्माण कितने साल पहले हुआ यह पता नहीं था। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इससे निकले धातु के कणों की उम्र राख की परत की उम्र से ज्यादा है। पिछले दो दशकों में यह ज्वालामुखी सक्रिय रहा है, इससे राख निकली है और कम से कम चार बार विस्फोट में लावा निकला है। वैज्ञानिकों ने कहा कि मिश्रित ज्वालामुखी होने की वजह से इससे भविष्य में बड़े विस्फोट हो सकते हैं जिससे अंडमान सागर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के जनजीवन पर गंभीर असर पड़ा सकता है।
Dark Saint Alaick
14-04-2013, 10:52 AM
हमारे पूर्वज मनुष्य और चिपांजी के मिश्रण थे
लंदन। मानव जाति के तीन पूर्वजों के कंकाल के हिस्सों को जोड़कर पूरा खाका तैयार करने के बाद नए शोध में पाया गया है कि हमारे पूर्वज मानव और चिपांजी का जटिल मिश्रण थे। अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के पास वर्ष 2008 में 20 लाख वर्ष पहले विचरण करने वाले मनुष्य के संभावित पूर्वजों के कंकाल के टुकडेþ मिले थे। शोध में पाया गया कि एस्ट्रालोपिथेकस सेडिबा नाम की इस प्रजाति के कूल्हे, दांत और हाथ तो मनुष्य जैसे थे, लेकिन पैर चिंपाजी की तरह का था। साइंस पत्रिका में प्रकाशित नए शोध में बताया गया है कि छह अलग-अलग वैज्ञानिक शोधों में एक किशोर नर (जिसे बोलचाल की भाषा में एमएच-1), एक मादा (यानी एमएच-2) और एक वयस्क पुरुष (यानी एमएच-4) के कंकालों की संरचना का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। ये कंकाल जोहान्सबर्ग के पश्चिमोत्तर में मालपा की एक गुफा से निकाले गए थे, जिसकी छत भूक्षरण से समाप्त हो गई थी।
Dark Saint Alaick
14-04-2013, 11:32 PM
एलर्जी से बचने के लिए बच्चों का एलर्जन्स से सम्पर्क बेहद जरूरी
भोपाल। भारत में एलर्जी पर किए गए एक बड़े शोध से पता चला है कि बच्चों में ‘एलर्जन’ जैसे धूल, परागण, डेन्ड्रफ (रूसी), पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी से सम्पर्क बहुत आवश्यक है, क्योंकि ये प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं और यदि ऐसा नहीं हुआ, तो व्यक्ति को सदा एलर्जी होती ही रहती है। एलर्जी पर शोध करने वाले डा. सैय्यद अरहम ने यहां यह जानकारी देते हुए कहा, बच्चों में एलर्जन्स से सम्पर्क बहुत जरूरी है। बचपन में थायमस, टान्सिल्स, पीयर्स पेचेस आदि के सम्पर्क में आने से ये प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं और यदि दो से बारह साल की उम्र में इनके सम्पर्क में नहीं आए, तो इनके लिए प्रतिरोधक क्षमता नहीं बन पाती। उन्होंने कहा कि बचपन में इन एलर्जन्स के सम्पर्क में नहीं आया गया, तो फिर जीवन में इनके सम्पर्क में आने पर सदा एलर्जी होती रहती है, क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता बनाने वाले ‘शायमन’, टान्सिल आदि की कार्यक्षमता कम होती जाती है। अपने इसी शोध के आधार पर डा. अरहम ने दावा किया कि दुनिया भर के समृद्ध पश्चिमी सभ्यता वाले देशों में व्याप्त गलत अवधारणा की वजह से पिछले पचास सालों में एलर्जी लगभग सौ गुना बढ़ गई है। भारत में तीस बच्चों पर पिछले दो दशकों में नेचुरल इम्यूनोथेरेपी पर किए गए इस शोध में डा. अरहम का कहना है कि बच्चों को सभी प्राकृतिक एलर्जन्स जैसे धूल, परागण, डेन्डरफ (रूसी), पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी आदि के सम्पर्क में रखने पर बच्चों में जो प्रतिरोधक क्षमता बनी, वह गांव में रहने वाले बच्चों की तरह थी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जिन बच्चों पर दो दशकों तक यह शोध किया गया, उनमें उनके दो बेटे उमेर एवं बख्तावर भी शामिल थे। डा. अरहम ने कहा कि इस शोध को उन्होंने एलर्जी के कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पेश किया, जिनमें एशियन पेसफिक सोसायटी आफ रेसपेरोलाजी एपीएसआर शंघाई-2011, नेशनल कान्फ्रेंस आफ इंडियन कालेज आफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लायड इम्यूनोलाजी (आईसीएएआईसीओएन) 2011, वर्ल्ड एलर्जी आर्गेनाइजेशन-इंटरनेशनल साइंटिफिक कान्फ्रेंस (डब्लूएओ-डब्लूआईएससी) 2012 आदि शामिल हैं। इस साल जून में इटली के मिलान में होने वाली यूरोपियन एकडेमी आॅफ एलर्जी ऐंड क्लीनिकल इम्यूनोलाजी डब्लूएओ-2013 में भी वह अपने दो शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले हैं। यह पूछने पर कि नेचुरल इम्यूनोथेरिपी के इस शोध पर विश्व एलर्जी समुदाय की क्या प्रतिक्रिया है, डा. अरहम ने कहा कि उनके इस सिद्धान्त का समूचे एलर्जी समुदाय ने विरोध किया है, क्योंकि एलर्जी के लिए किए गए अधिकतर शोध कार्य दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा कराए जाते रहे हैं। यहां तक कि एलर्जी के लिए विश्व के बड़े संगठनों के कार्य एवं कार्यक्रम भी इन दवा निर्माता कंपनियों द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि एलर्जी का एक बड़ा सच छिपा रहा, क्योंकि यदि ये सत्य एलर्जी पीड़ित विश्व समुदाय के सामने आ जाए, तो बीमारी पर पूरी तरह काबू पाया जा सकता है, लेकिन इससे जो दवा निर्माता कंपनियों का नुकसान होगा और एलर्जी के लिए एलर्जी टेस्ट एवं अप्राकृतिक इम्यूनोथेरेपी कर रहे विश्व समुदाय को जो नुकसान होगा, वह जगजाहिर है। एक अन्य प्रश्न पर डा. अरहम ने कहा कि समस्त एलर्जी समुदाय द्वारा उनके शोध का विरोध करने के बावजूद उनकी लिखी हुई किताब ‘रेड बुक आॅफ एलर्जी’ अमेजन बुक्स किन्डले एडीशन में अमेरिका, यूरोप एवं जापान के बाद अब भारत में भी उपलब्ध है।
Dark Saint Alaick
15-04-2013, 12:57 AM
अंडे से घटेगा ब्लड प्रेशर
न्यूयॉर्क। अगर आप ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी से परेशान हैं तो अंडे खाना शुरू कर दीजिए। हाल ही में हुए एक अध्ययन में देखा गया है कि अंडे के सफेद हिस्से में रक्तचाप को घटाने की क्षमता होती है और इसका कोई नकारात्मक असर भी नहीं होता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का एक अध्ययन इस दृष्टिकोण का समर्थन करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों का कहना है कि अंडे का सफेद हिस्सा उन लोगों के बीच पहले से ही लोकप्रिय है, जो कोलस्ट्रॉल की अधिकता के कारण पीला हिस्सा या जर्दी नहीं खाना चाहते हैं। अब यह भी पता चला है कि सफेद हिस्सा रक्तचाप कम करने में सक्षम है। वैज्ञानिकों का अध्ययन, विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक सोसाइटी अमेरिकी केमिकल सोसाइटी (एसीएस) के 245 वीं राष्ट्रीय बैठक और प्रदर्शनी का हिस्सा था। जानकारों के मुताबिक अंडे के सफेद हिस्से में मौजूद अवयव (पेप्टाइड, जो प्रोटीन निर्माण का प्रमुख तत्व होता है) रक्तचाप को कम करता है और यह कैप्टोप्रिल (रक्तचाप की दवा) की एक छोटी खुराक जितनी प्रभावी है।
Dark Saint Alaick
15-04-2013, 12:58 AM
दांतों में कैविटी से खतरा
नई दिल्ली। फूड व आलू से बने पदार्थों के अधिक सेवन से दांतों में कैविटी की समस्या बढ़ गई है। कैविटी होने पर नजर अंदाज नहीं करें, बल्कि फिलिंग करा लें। वरना खाली जगह में नुकीला दांत लगने या कोई चीज फंसने से कैंसर का खतरा रहता है। दंत चिकित्सकों के मुताबिक सुबह व रात में टूथब्रश न करने से दांतों में खाद्य पदार्थ चिपके रहते हैं। इससे बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो एसिड निकालते हैं। धीरे-धीरे वह जगह खोखली हो जाती है और बगल के दांत नुकीले हो जाते हैं। उनकी रगड़ से कैंसर हो सकता है। जानकारों का मानना है कि जो लोग गुटखा दबाकर खाते हैं। दबाने वाले स्थान में कैं सर का खतरा रहता है। मुंह के परीक्षण से विभिन्न रोगों का भी पता लगा सकते हैं। दंत चिकित्सकों के मुताबिक दांतों की सुरक्षा के लिए एक मिनट तक ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर टूथब्रश करें। साथ ही माउथवाश भी करें। दांतों की बेहतरी के लिए तंबाकू, सिगरेट व एल्कोहल लेने से परहेज करना चाहिए।
Dark Saint Alaick
15-04-2013, 05:10 PM
मानसिक शर्मिंदगी से लड़ना सिखाती एक अमेरिकी डॉक्टर
नई दिल्ली। वर्षों तक वह पिता के शिजाफ्रेनिया से ग्रसित होने की वजह से पैदा शर्मिंदगी से लड़ती रही लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह बहुत पुरानी बात थी। अब वही लड़की एक अमेरिकी डॉक्टर है जो कि भारत समेत पूरी दुनिया में सैर करते हुए अपनी फिल्म के जरिए लोगों में मानसिक रोगों के उपचारों से जुड़े भ्रामक तथ्यों को दूर करके उन्हें जागरूक करने में लगी हैं। स्टेनफोर्ड से प्रशिक्षण प्राप्त फिजीशियन, फिल्मकार और फुलब्राइट नेहरू स्कॉलर शोधार्थी डीलेने रस्टन ने ‘हिडन पिक्चर्स’ नाम से वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित एक वृतचित्र बनाया है। इसका हाल ही में यहां प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म आम लोगों से लेकर विशेषज्ञों तक को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा समझदारी से बातचीत करने के लिए प्रेरित करती है और साथ ही ‘मसले के मूल में जाने’ की कोशिश करती है। डीलेने कहती हैं कि जब मेरे पिता के साथ ये परेशानियां थीं तब एक किशोर के रूप में मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती थी, लेकिन जब उन्होंने वर्ष 2006 में मेरे सामने आत्महत्या कर ली तो मैं खुद से लड़ पड़ी। इससे मुझे दुनिया भर के लोगों की मानसिक स्थितियों को समझने की इच्छा पैदा हुई। इसीलिए मैंने यह फिल्म बनाई। उन्होंने कहा कि मेरी जिज्ञासा मानव स्थितियों की ओर निर्देशित है। मैं इन पीड़ित लोगों के दर्द दर्शाकर दर्शकों और लोगों से समानुभूति चाहती थी। हम जानते हैं कि शर्मिंदगी से उनकी दशा को दर्शाया नहीं जा सकता।
Dark Saint Alaick
16-04-2013, 08:07 AM
गर्मी में ठंडक का एहसास कराएगी ‘सौर कमीज’
सेल फोन, टैबलेट और अन्य डिजिटल यंत्र भी हो सकेंगे चार्ज
कोलकाता। शहर के एक वैज्ञानिक ने एक ऐसी ‘सौर ग्रीष्म कमीज’ की परिकल्पना पेश की है, जिसमें सौर सेल और पंखे लगे होंगे और यह कमीज पहनने वाले को गर्मी के दिनों में भी ठंडक का एहसास कराएगी। फोटोवोल्टिक सिस्टम इंजीनियरिंग और डिजाइन के विशेषज्ञ शांतिपदा गणचौधरी ने कहा कि हम एक ऐसी तकनीक विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके जरिए कमीज के फाइबर या उसकी जेब में छोटे सौर सेल लगाए जा सकें। गणचौधरी ने कहा कि सौर सेलों की मदद से करीब 400 वॉट ऊर्जा पैदा की जा सकती है। इन सौर सेलों का आकार 2.5 से तीन इंच तक होगा। कमीज में इतनी ऊर्जा होगी, जिससे सेल फोन, टैबलेट और अन्य डिजिटल यंत्रों को चार्ज किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कमीज में दो परतें होंगी, जिनमें से एक परत में दो से चार छोटे पंखे लगे होंगे जो कि सौर ऊर्जा से संचालित होंगे। इन पंखों का आकार कम्प्यूटर में मौजूद होने वाले पंखों से छोटा होगा। वैज्ञानिक ने कहा कि मान लीजिए, यदि कोई व्यक्ति 5.5 फुट लंबा है, तो उसके शरीर के प्रति वर्ग फुट पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें सौर सेल के माध्यम से 400 वॉट ऊर्जा पैदा करने के लिए काफी है। इस ऊर्जा से मोबाइल, टैबलेट, आईपॉड आदि चार्ज किए जा सकते हैं।
केन्द्र को सौंपा शोध पत्र :
बंगाल इंजीनियरिंग और साइंस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले और एश्डन पुरस्कार से सम्मानित गणचौधरी ने इस बारे में अपना शोध पत्र केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को सौंपा है। उन्होंने कहा कि इस कमीज को हमेशा पहनना जरूरी नहीं है। निर्धारित समय के लिए सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने पर इस कमीज के यंत्र चार्ज हो जाएंगे।
नहीं होंगे ज्यादा दाम :
कमीज की कीमत के बारे में पूछे जाने पर वैज्ञानिक ने कहा कि यदि सामान्य कमीज की कीमत 1000 रुपए होती है तो सौर सेल वाली उसी कमीज का दाम करीब 1600 रुपए होगा। उन्होंने सौर कमीज से मानव शरीर पर पड़ने वाले किसी भी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव की संभावना से इन्कार किया। उन्होंने कहा कि विश्वभर में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अधिक से अधिक अनुसंधान किए जाने से इस ऊर्जा की लागत में कमी आएगी।
Dark Saint Alaick
17-04-2013, 03:46 AM
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संभावना जगाती कैक्टस की नई प्रजाति
राजस्थान के बीकानेर जिले में जल्दी ही कांटारहित कैक्टस की पैदावार के प्रयास शुरू होंगे। यह कैक्टस लोगों के स्वास्थ्यवर्द्धन, प्राकृतिक रंग बनाने और पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी माना जाता है। इस कैक्टस की खेती का प्रयोग जोधपुर के काजरी में जब पहले किया गया था तो उसके उत्साहजनक परिणाम नहीं आए थे लेकिन काजरी से इसी कैक्टस के कुछ पौधे बीकानेर के ऊष्ट अनुसंधान केन्द्र में रोपित करने पर उत्साहजनक परिणाम सामने आए। केन्द्र के निदेशक डॉ.एनवी पाटिल का कहना है कि कांटारहित कैक्टस की इटली,अफ्रीका समेत कई देशों में जबरदस्त पैदावार हो रही है। प्रायोगिक सफलता के बाद ग्रामीणों की सहभागिता पर एक गांव को आदर्श गांव के रूप में चयनित कर वहां इस कैक्टस के पौधे रोपे जाएंगे। यदि परिणाम अनुकूल आते हैं तो बीकानेर जिले में कांटारहित कैक्टस की खेती पूरे जोर शोर से की जाएगी। राष्ट्रीय ऊष्ट अनुसंधान केन्द्र रेगिस्तानी इलाके और बीकानेर जिले में पारिस्थितिकी तंत्र और खराब चारागाह में सुधार के लिए अंतर्राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र कृषि अनुसंधान केन्द्र के साथ मिलकर काम शुरू करेगा। डा. पाटिल का कहना है कि पशुधन पर किसानों की आजीविका की निर्भरता तथा पौष्टिक चारे के कम हो रहे क्षेत्र और मांग के अनुरूप चारे के नहीं मिलने से पशुओं को हो रही समस्याओं के समाधान के लिए केन्द्र, अंतर्राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र कृषि अनुसंधान केन्द्र के साथ मिलकर काम करने हेतु जल्दी ही इकारडा (अंतर्राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र कृषि अनुसंधान केन्द्र) को प्रस्ताव भेजेगा। डा. पाटिल राजस्थान के शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में समुदाय आधारित चारागाह सुधार, फसल पशुधन प्रणाली के एकीकरण और शुष्क क्षेत्र के पशुधन उत्पादकता सुधार कार्यक्रम को तेजी से लागू करने की वकालत करते हैं और इनका मानना है कि मौजूदा समय राज्य में चारे की बहुत कमी है और पशुपालक भी परेशान हैं। ऐसे में चारे की कमी को पूरा करने के लिए समय रहते काम शुरू करना होगा। इकारडा शुष्क क्षेत्रों में चारागाह को विकसित करने और क्षेत्र के पशुधन और उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ किसानों के लिए पोषण और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए उनके जीवन स्तर में महत्वपूर्ण बदलाव लाने हेतु सतत कार्य करने वाला विश्व का एक अंतरर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र है। इस केन्द्र का काजरी में भी प्रोजेक्ट कार्य चल रहा है तथा अब बीकानेर क्षेत्र में इस उद्देश्य से कार्य करने के लिए केन्द्र की ओर से संभावना जताई गई है। इस योजना के अंतर्गत शोध एवं पैदावार की प्रायोगिक तौर पर शुरूआत करने पर सहमति बनने की आशा व्यक्त करते हुए इससे मिलने वाले दूरगामी परिणाम के बारे में डॉ. पाटिल का मानना है कि शुष्क क्षेत्र में चारागाह विकसित होने, पशुधन प्रणाली को बढावा दिए जाने से पशु पालकों को लाभ मिलेगा, जिससे घटती पशु संख्या पर अंकुश लगेगा। अंतर्राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र कृषि अनुसंधान केन्द्र के समन्वयक (दक्षिण एशिया और चीन) के डा. आशुतोष सरकार का भी मानना है कि शुष्क क्षेत्र के लिए प्रस्ताव मंजूर होने पर क्षेत्र के पशुपालकों के जीवन स्तर में सुधार आयेगा। कैक्टस की कांटारहित प्रजाति से जुड़ा कार्यक्रम पशुओं के लिए ब्राजील, मोरटिनिया, इथियोपिया जैसी जगहों पर चलाया गया जहां कांटा रहित कैक्टस से पशु खाद्य के साथ अन्य उत्पाद तैयार करने में सफलता मिली। कांटा रहित कैक्टसों की बढ़ती पैदावार से पशु खाद्य के एक विकल्प के साथ-साथ इससे निर्मित अन्य विविध उत्पाद से क्षेत्र के लोगों के लिए कमाई का साधन मिल सकेगा जो इलाके की समृद्धि में भी सहायक होगा।
Dark Saint Alaick
22-04-2013, 01:40 AM
कृषि अवशेषों को खेतों में जलाने का असर उर्वरता पर
भूमि के पोषक तत्व होते हैं नष्ट
जालंधर। पंजाब सहित अन्य प्रदेशों में फसल की कटाई के बाद खेतों में जलाए जाने वाले कृषि अवशेषों के दुष्प्रभावों की ओर गंभीरता पूर्वक ध्यान देने की वकालत करते हुए कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल जहरीली गैसें वातावरण में घुल रही हैं बल्कि खेतों में जलाए जाने से भूमि की उर्वरता पर भी असर होता है। कृषिकार्य के जानकारों का यह भी कहना है कि इसका चौतरफा दुष्प्रभाव है। इससे न केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि इससे भूमि के पोषक तत्वों को भी नुकसान पहुंचता है, जिसका असर उर्वरता पर होता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बीएस ढिल्लो ने कहा कि खेतों में कृषि अवशेषों का जलाया जाना किसानों और सरकार दोनों के हित में नहीं है। इस बारे में न केवल सरकार को बल्कि किसानों को भी गंभीरतापूर्वक सोचने और इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। खेतों में फसल अवशेष जलाए जाने से प्रदूषण तो फैलता ही है इसका असर भूमि की उर्वरता पर भी होता है क्योंकि इससे भूमि का पोषक तत्व चला जाता है। इतना ही नहीं इससे मिट्टी के जैविक पदार्थों का भी क्षय होता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाए जाने से मिट्टी गरम होती है और इस वजह से इसका दुष्प्रभाव ही पड़ता है और अंतत: इसका असर अगली फसल पर भी देखा जा सकता है। हालांकि, बेहतर उत्पादन के लिए लोग अधिक खाद डालते हैं पर यह भी सही नहीं है। इस पर सरकार के साथ-साथ किसानों को भी सोचने की आवश्यकता है, इससे खेत की जैविक शक्ति पर असर होता है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि धान के अवशेष जलाने से जितना नुकसान होता है उससे कम नुकसान गेहूं के अवशेष जलाने से होता है। अंतत: नुकसान किसी प्रकार से अच्छा नहीं है। दूसरी ओर पंजाब सरकार के कृषि विशेषज्ञ नरेश गुलाटी कहते हैं कि खेतों में कटाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है। यही कारण है कि अवशेष रह जाते हैं, जिसमें आग लगा दी जाती है । यह नुकसानदायक है। इससे न केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि इससे भूमि के पोषक तत्वों को भी नुकसान पहुंचता है। जिन स्थानों पर कटाई के लिए मशीनों का जितना अधिक इस्तेमाल होता है उतना अधिक अवशेष वहां जलाया जाता है। सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में हर साल लाखों टन फसल अवशेष खेतों में जला दिया जाता है। इससे जहर हवा में घुल रहा है। इसे जलाने से निकलने वाले धुएं में कार्बन डाईआक्साइड, मिथेन और अन्य जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। ढिल्लो का यह भी कहना है कि प्रदूषण और वातावरण में फैल रहे इस जहर को रोकने की दिशा में भी सरकारों का ध्यान होना चाहिए।
Dark Saint Alaick
22-04-2013, 01:41 AM
स्कंदनरोधी दवाओं के सेवन से उत्तर भारतीयों में हो सकता है रक्तस्राव
291 रोगियों पर किए शोध में सामने आया
नई दिल्ली। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि उत्तर भारत के निवासी आनुवंशिक रूप से स्कंदनरोधी (एंटीकोगुलेंट) दवाओं का सेवन करने पर अपने दक्षिणी समकक्षों की तुलना में रक्तस्राव की समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं। अग्रणी शोधकर्ता रिशा नाहर लुल्ला ने कहा कि यद्यपि यह सिर्फ एक दवा से सम्बंधित है लेकिन यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दवा बड़ी संख्या में उन मरीजोें को दी जाती है जिन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है ताकि हृदय में और फेफड़ों में रक्त का थक्का जमने से रोका जा सके। सर गंगाराम अस्पताल के सेंटर आॅफ मेडिकल जेनेटिक्स में 291 लोगों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि उत्तर भारतीय वारफेरिन के कारण होने वाले रक्तस्राव को लेकर अतिसंवेदनशील हैं। ऐसा विशेष तरह के जीन उत्परिवर्तन के कारण होता है जो दक्षिण भारतीयों की तुलना में उत्तर भारतीयों में ज्यादा व्याप्त है। उत्तर भारतीयों को आर्यों और दक्षिण भारतीयों को द्रविड़ोें के समूह में रखा गया था। स्कंदनरोधी दवाओं का इस्तेमाल स्वत: रक्त का थक्का जमने से रोकने के लिए किया जाता है। इसके जरिए रक्त प्रवाह में कुछ न्यूनतम सीमा तक रक्त को पतला करके थक्का जमने से रोका जाता है। लुल्ला ने कहा कि कुछ चिकित्सक मरीजों की आनुवंशिक बनावट के बावजूद दवा की वही खुराक बताते हैं। इससे उन मरीजों में अक्सर रक्तस्राव होता है जो दवाओं के लिए अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं, जिससे उन्हें अनावश्यक रूप से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। लुल्ला ने कहा कि उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों के लिए अलग-अलग प्रतिक्रिया खास जीन उत्परिवर्तन के कारण बताई गई, जो दक्षिण भारतीयों की तुलना में उत्तर भारतीयों में ज्यादा व्याप्त है। इसलिए ज्यादातर उत्तर भारतीयों को मानक खुराक से कम खुराक देनी होगी। लुल्ला के अतिरक्त ईश्वर चंद्र वर्मा, रेणु सक्सेना, रत्ना दुआ पुरी (सर गंगा राम अस्पताल के सेंटर आॅफ मेडिकल जेनेटिक्स) और एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीट्यूट आॅफ बायोटेक्नोलॉजी की रौमी देव इस शोध पत्र के अन्य लेखक हैं।
Dark Saint Alaick
22-04-2013, 01:45 AM
हर्बल दवाओं से हृदय सम्बंधी जोखिम नहीं होता
नई दिल्ली। आयुर्वेदिक औषधि निर्माता संगठन (एडीएमए) का कहना है कि थोड़े समय के लिए हर्बल दवाओं को हल्की खुराक लेने से हृदय सम्बंधी खतरा नहीं होता है। लंदन में किए गए अध्ययन को लेकर मीडिया में आई एक रिपोर्ट का हवाला देकर संगठन ने कहा कि हर्बल दवाओं में टॉक्सिस एरिस्टोलॉकिक एसिड होता है जो दमा और कुछ दूसरी बीमारियों के उपचार में सहायक होता है। एडीएमए ने कहा कि वैज्ञानिक शोध में खुराक और अवधि का जिक्र करना चाहिए। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को लिखे पत्र में एडीएमए ने कहा कि एरिस्टोलोकिया इंडिका उन दो पौधों में से एक है जिन्हें पौराणिक साहित्य में एरिस्टोलॉकिक एसिड और एरिस्टोलोकिया के नाम से जाना जाता है।
Dark Saint Alaick
24-04-2013, 12:17 AM
डीजल उत्पादन करेगा जीवाणु
लंदन। अनुसंधानकर्ताओं ने एक बड़ी उपलब्धि के तहत एक ऐसा तरीका विकसित करने का दावा किया है, जिसमें जीवाणु या बैक्टीरिया डीजल का उत्पादन करेगा। एक्सेटर विश्वविद्यालय ने शेल के सहयोग से यह प्रौद्योगिकी विकसित की है। हालांकि, इसके व्यावसायीकरण में अभी भी काफी चुनौतियां आ रही हैं। ई-कोली बैक्टीरिया के विशेष स्टेñंस से तैयार डीजल बहुत हद तक परंपरागत र्इंधन की तरह होगा। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि ऐसे में इसे पेट्रोलियम उत्पादों के साथ मिलाने की जरूरत नहीं होगी, जैसा कि आमतौर पर प्लांट आयल से निकाले गए बायोडीजल के मामले में जरूरत होती है।
Dark Saint Alaick
25-04-2013, 08:35 AM
पसीने से तरबतर होने पर भी ताजगी का एहसास कराएगा यह कपड़ा
नई दिल्ली। गर्मी का मौसम आते ही चिलचिलाती धूप और पसीने की बदबू की चिंता सताने लगती है। लेकिन जल्द ही लोगों की यह चिंता दूर हो जाएगी। आईआईटी, दिल्ली ने एक औद्योगिक फर्म के साथ मिलकर एक ऐसा कपड़ा विकसित किया है जो बदबू दूर रखते हुए व्यक्ति को ताजगी का एहसास कराएगा। भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, दिल्ली के स्मिता (स्मार्ट मैटेरियल एंड इन्नोवेटिव टेक्सटाइल एप्लीकेशंस) रिसर्च लैब ने नैनो विज्ञान आधारित यह नवप्रवर्तन विकसित किया है। आईआईटी, दिल्ली में प्रोफेसर अश्विनी के. अग्रवाल ने प्रेट्र को बताया, ‘एक कपड़े में गंध इसलिए आती है क्योंकि उसमें सूक्ष्म कीटाणु मौजूद होते हैं और हमारा नवप्रवर्तन आधारित नैनोसिल्वर इस सूक्ष्म कीटाणु को बढने से रोकता है और पसीने के बावजूद कपड़ा पहनने वाले व्यक्ति को तरोताजा रखता है।’ इस कपड़े को हाल ही में आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित प्रदर्शनी ‘12टेक ओपेन हाउस’ में प्रदर्शित किया गया। उन्होंने बताया, ‘हमने इस कपड़े के लिए सभी तरह के परीक्षण किए जिसमें यह पूरी तरह से खरा उतरा और यह 30 से अधिक धुलाई तक चलता है।’ इस परियोजना के लिए केंद्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और बेंगलूर स्थित कपड़ा रसायन कंपनी आरईएसआईएल केमिकल्स ने धन उपलब्ध कराया।
Dark Saint Alaick
25-04-2013, 08:37 AM
चीन की कंपनी ने जैव ईंधन के जरिये विमान उड़ाया
बीजिंग। चीन की शीर्ष तेल रिफाइनरी कंपनी सिनोपेक ने जैव ईंधन के नए संस्करण के जरिये विमान उड़ानें में सफलता हासिल की है। यह जैव ईंधन पाम तेल तथा रीसाइकिल्ड कुकिंग तेल के जरिये बनाया गया है। चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस का एयरबस ए320 विमान कल सुबह शांगहाए के हांगक्यिो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। कंपनी की ओर से जारी बयान के अनुसार इस विमान ने 85 मिनट की उड़ान सिनोपेक के नए विमान ईंधन के जरिये पूरी की। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इस जैव ईंधन का उत्पादन सिनोपेक जेनहेई रिफाइनरी एंड केमिकल कंपनी ने किया है। विमान उड़ाने वाले पायलट ने कहा कि जैव ईंधन से उतनी की क्षमता मिली, जितनी परंपरागत ईंधन से मिलती है। यह सामान्य उड़ान से अलग नहीं थी। इस प्रकार चीन जैव विमान ईंधन तैयार करने वाला चौथा देश हो गया है। उससे पहले अमेरिका, फ्रांस और फिनलैंड इस प्रकार का ईंधन विकसित कर चुके हैं।
Dark Saint Alaick
27-04-2013, 08:49 PM
आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत अब तक के सबसे कठोर परीक्षण पर खरा उतरा
वाशिंगटन। आइंस्टीन ने स्पेसटाइम का परीक्षण पास किया। खगोलविदों ने दावा किया कि पृथ्वी से करीब 7000 प्रकाश-वर्ष दूर एक विचित्र युग्मतारा प्रणाली के अध्ययन ने दिखाया कि अत्यंत कठोर स्थितियों में भी परीक्षण करने पर आइंस्टीन का आम सापेक्षता का सिद्धांत खरा उतरता है। एक नए खोजे गए ‘पल्सर’ और उसके ‘व्हाइट ड्वार्फ’ सहयोगी तारे ने गुरूत्वाकार्षण के सिद्धांतों को अब तक के सबसे कठोर परीक्षण से गुजारा। पल्सर और उसका सहयोगी तारा दोनों हर ढाई घंटे पर एक दूसरे की परिक्रमा पूरी करते हैं।
Dark Saint Alaick
30-04-2013, 10:20 PM
शोध ने बदला एक अवधारणा को
भारत में हाल ही में एलर्जी पर किए गए एक बड़े शोध से पता चला है कि बच्चों का एलर्जन जैसे धूल, परागण, डेंड्रफ (बालों में रूसी), पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी से सम्पर्क रहना निहायत जरूरी है क्योंकि ये बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं। शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि अगर यदि ऐसा नहीं हुआ तो बड़ा होकर बच्चा किसी ना किसी एलर्जी से परेशान ही रहेगा। एलर्जी पर शोध करने वाले डा. सैयद अरहम ने कुछ दिनो पहले दी गई अपनी जानकारी में यह बताया था कि बच्चों को अगर बड़े होने पर एलर्जी से बचाए रखना हो तो इनका एलर्जन्स से सम्पर्क रहना बहुत जरूरी है। बचपन में थायमस, टान्सिल्स, पीयर्स पेचेस आदि के सम्पर्क में आने से ये प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं और यदि दो से बारह साल की उम्र में इनके सम्पर्क में नहीं आए, तो इनके लिए प्रतिरोधक क्षमता नहीं बन पाती। अगर बचपन में इन एलर्जन्स के सम्पर्क में नहीं आया गया तो फिर जीवन में जब भी इनके सम्पर्क में आएंगें, सदा एलर्जी होती रहेगी है, क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता बनाने वाले ह्यशायमनह्ण, टानसिल आदि की कार्यक्षमता कम होती जाती है। अपने इसी शोध के आधार पर डा. अरहम का यह भी दावा है कि पश्चिमी सभ्यता वाले समृद्ध देशों में व्याप्त गलत अवधारणा की वजह से पिछले पचास सालों में एलर्जी लगभग सौ गुना बढ़ गई है। भारत में तीस बच्चों पर पिछले दो दशकों में नेचुरल इम्यूनोथेरेपी पर किए गए इस शोध में डा. अरहम का कहना है कि बच्चों को सभी प्राकृतिक एलर्जन्स जैसे धूल, परागण, डेंड्रफ, पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी आदि के सम्पर्क में रखने पर बच्चों में जो प्रतिरोधक क्षमता बनी, वह गांव में रहने वाले बच्चों की तरह थी। जिन बच्चों पर दो दशकों तक यह शोध किया गया उनमें उनके दो बेटे भी शामिल थे। इस शोध को उन्होंने एलर्जी के कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पेश किया जिनमें एशियन पेसफिक सोसायटी आफ रेसपेरोलाजी (एपीएसआर) शंघाई, नेशनल कान्फ्रेंस आफ इंडियन कालेज आफ एलर्जी, अस्थमा ऐंड एप्लायड इम्यूनोलाजी (आईसीएएआईसीओएन), वर्ल्ड एलर्जी आर्गेनाइजेशन-इंटरनेशनल साइंटिफिक कान्फ्रेंस आदि शामिल हैं। इस साल जून में इटली के मिलान में होने वाले एक सम्मेलन में भी वे दो शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले हैं। हालांकि उनके इस सिद्धान्त का समूचे एलर्जी समुदाय ने विरोध भी किया है क्योंकि एलर्जी के लिए किए गए अधिकतर शोध कार्य दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा कराए जाते रहे हैं। यहां तक कि एलर्जी के लिए विश्व के बड़े संगठनों के कार्य एवं कार्यक्रम भी इन दवा निर्माता कंपनियों द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं। यही कारण है कि एलर्जी का एक बड़ा सच छिपा रहा, क्योंकि यदि ये सत्य एलर्जी पीड़ित विश्व समुदाय के सामने आ जाए तो बीमारी पर पूरी तरह काबू पाया जा सकता है, लेकिन इससे जो दवा निर्माता कंपनियों का नुकसान होगा और एलर्जी के लिए एलर्जी टेस्ट एवं अप्राकृतिक इम्यूनोथेरेपी कर रहे विश्व समुदाय को जो नुकसान होगा, वह जगजाहिर है। डा. अरहम का कहना है कि समस्त एलर्जी समुदाय द्वारा उनके शोध का विरोध करने के बावजूद उनकी लिखी हुई किताब ह्यरेड बुक आफ एलर्जीह्ण अमेरिका, यूरोप एवं जापान के बाद अब भारत में भी उपलब्ध है। याने कहा जा सकता है कि एक चिकित्सक का शोध समाज के लिए तो हितकर है और उस पर गौर किया जाना चाहिए लेकिन जिस तरह से बड़ी कम्पनियां अपनी बिक्री को कम ना होने देने के लिए इस शोध को नजरअंदाज कर रहीं हैं तो यह चिंताजनक बात है।
Dark Saint Alaick
02-05-2013, 11:06 AM
तूफानी हो जाएगी डेटा स्ट्रीमिंग की रफ्तार
सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का भारतीय वैज्ञानिक का प्रयास
लंदन। ब्रिटिश वैज्ञानिकों के साथ मिल कर भारतीय वैज्ञानिक डेटा स्ट्रीमिंग की रफ्तार तेज से तेजतर कर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने के प्रयास में जुटे हैं। हेरियोट-वाट युनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड की ओर से आज जारी एक बयान के अनुसार कोलकाता के सेंट्रल ग्लास ऐंड सेरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीजीसीआरआई) के वैज्ञानिक हेरियोट-वाट यूनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड के स्कूल आॅफ इंजीनियरिंग ऐंड फिजिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों के साथ मिल कर एक अभिनव प्रयोग में जुटे हैं जो इंटरनेट की दुनिया में एक नई क्रांति ला सकता है। भारतीय और स्कॉटिश वैज्ञानिक एक ऐसा नायाब फाइबर कंपोनेंट विकसित कर रहे हैं, जो मानव बाल से भी बारीक ग्लास फाइबर से गुजरने वाले डेटा का परिमाण बेतहाशा बढ़ा देगा। भारतीय टीम का नेतृत्व डॉ. मुकुल चंद्रपाल कर रहे हैं। सीजीसीआरआई की यह टीम नायाब आॅप्टिक फाइबर संरचनाओं के फैब्रिकेशन की अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर नए फाइबर विकास करेगी, जबकि डा. हेनरी बुकी के नेतृत्व में स्कॉटिश वैज्ञानिक इन फाइबरों से सक्षम किए गए उपकरणों का डिजाइन, परीक्षण एवं निर्माण करेंगे। दोनों देशों की यह संयुक्त टीम ब्रिटेन-भारत शिक्षा एवं अनुसंधान पहल (यूकेआईईआरआई) के तहत एक परियोजना पर काम रही है, जिसे 70 हजार पौंड का अनुदान मिला है। वीडियो स्ट्रीमिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और अन्य क्षेत्रों में द्रुत विकास के साथ आॅप्टिकल संचार में बैंडविर्थ की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि दुनियाभर में अभी फाइबर संचार प्रणाली पूरी तरह सिंगल-कोर फाइबर आधारित है, लेकिन अगर प्रौद्योगिकी में कोई नया विकास नहीं हुआ तो जल्द ही इसकी सीमित क्षमता वीडियो स्ट्रीमिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग इत्यादि क्षेत्रों के लिए अवरोध पैदा करने लगेगी। ऐसे में व्यापक स्तर पर अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि ‘मल्टी-कोर’ फाइबर इस समस्या का एक बेहतर हल हो सकता है। स्कॉटिश वैज्ञानिकों के साथ मिल कर भारतीय वैज्ञानिक इसी ‘मल्टी-कोर’ फाइबर के विकास में लगे हैं। हेरियोट-वाट युनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड के स्कूल आॅफ इंजीनियरिंग ऐंड फिजिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे बुकी ने कहा कि वीडियो स्ट्रीमिंग के दबदबे और क्लाउड कंप्यूटिंग के उभार के साथ हम मानक सिंगल-कोर फाइबर की क्षमता के अंतिम छोर पर पहुंच रहे हैं। ढेर सारे लोग मल्टी-कोर आप्टिकल फाइबर को आॅप्टिकल संचार के अगले मंच के रूप में देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संचार के अवयवों के अलावा मल्टी-कोर फाइबर लेजर ऐर्रे डिवाइस का उपयोग एंडोस्कोपी, लेजर सर्जरी, मशीनिंग इत्यादि के लिए मल्टी-फंक्शनल फाइबर प्रोब के रूप में हो सकेगा। इसके साथ ही, इस प्रौद्योगिकी का उपयोग रक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक है।
Dark Saint Alaick
02-05-2013, 04:09 PM
गुर्दे को भी खराब करता है सिगरेट का धुंआ
नई दिल्ली। धूम्रपान को मुख्य तौर पर फेफडे और ह्रदय के लिये खतरनाक माना जाता है लेकिन नये अध्ययनों से पता चला है कि सिगरेट का धुंआ आपके गुर्दे को भी बेकार कर सकता है। हाल के एक अध्ययन के अनुसार धूम्रपान नहीं करने वाले पुरूषों की तुलना में धूम्रपान करने वाले पुरूषों के गुर्दे की कार्यक्षमता में एक तिहाई कमी आती है। इस अध्ययन के अनुसार प्रतिदिन एक पैकेट से अधिक सिगरेट का सेवन गुर्दे के गंभीर रूप से खराब होने के खतरे को 51 प्रतिशत तक बढाता है। किशोरों में धूम्रपान उनके गुर्दे को और भी अधिक नुकसान पहुंचाता है। गुर्दा रोग विशेषज्ञ (नेफरोलॉजिस्ट) डा. जितेन्द्र कुमार बताते हैं कि सिगरेट का धुंआ शरीर के अंदर रक्त प्रवाह को बाधित करता है, जिससे गुर्दे का कार्य प्रभावित होता है। धूम्रपान धमनियों को कडा कर देता है और रक्त वाहिकाओं को संकुचित कर देता है जो गुर्दे के रक्त प्रवाह में रूकावट पैदा करता है और उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करता है। एशियन इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (एआईएमएस) के प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट डा. जितेन्द्र कुमार के अनुसार धूम्रपान करने पर रक्तचाप भी बढ जाता है। यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप है, तो धूम्रपान और गंभीर बना देता है। उच्च रक्तचाप से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों में गंभीरतम किडनी रोग (एंड स्टेज रीनल डिजीज-ईएसआरडी) का खतरा बढ जाता है जो गुर्दे की बीमारी का अंतिम चरण है। अध्ययनों से पता चला है कि मधुमेह से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों को गुर्दे की बीमारी होने का खतरा दोगुना या तीन गुना हो सकता है। यदि किसी को मधुमेह और गुर्दे की बीमारी दोनों है, तो धूम्रपान गुर्दे के कार्य क्षमता को कम कर सकता है जिसकी परिणति ईएसआरडी में हो सकता है। मधुमेह से पीडित धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों की तुलना में मधुमेह से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों को बहुत जल्द ही गुर्दे की समस्याएं होने का खतरा रहता है और बहुत जल्द ही उनके गुर्दे का कार्य प्रभावित हो सकता है। अध्ययनो से यह भी निष्कर्ष निकला है कि अगर किसी को गुर्दे की समस्या है और वह धूम्रपान करता है तो इसके दुष्प्रभाव का खतरा बढ जाता है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को गुर्दे की बीमारी होती है तो उसे तुरंत धूम्रपान छोड देना चाहिए। विशेषज्ञो का कहना है कि तम्बाकू प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सेवन किशोरो के लिए बडी स्वास्य समस्या है जिसका स्वास्य पर तात्कालिक एवं दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
Dark Saint Alaick
06-05-2013, 12:10 AM
लोगों का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं विषाक्त रसायन : अध्ययन
वाशिंगटन। भारत में विषाक्त कचरों के ढेर में सीसा और क्रोमियम का स्तर सामान्य से बहुत ज्यादा होने के कारण लोगों में बीमारियां और विकलांगता बढ़ रही हैं और इससे लोगों की जान भी जा रही है। इसके कारण बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ जीवन नहीं बिता पा रहे हैं। ‘विषाक्त कचरा स्थलों के कारण वर्ष 2010 में भारत, इंडोनेशिया और फिलीपीन में बीमारियों का बढ़ता बोझ’ शीर्षक से किए गए अध्ययन में इन तीनों देशों में मौजूद 373 कचरा घरों के निकट रहने वाले लोगों पर आधारित है। इस अध्ययन के परिणाम ‘इंवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव’ में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में कहा गया है कि इससे होने वाली परेशानियां अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मलेरिया और वायु प्रदूषण जिनती ही गंभीर हैं। माउंट सिनाई के इकहान स्कूल आॅफ मेडिसिन में पेडियाट्रिक इंवायरमेंटल हेल्थ फेलो के प्रबंध निदेशक और मुख्य अध्ययनकर्ता केविन चाथम-स्टिफेन ने कहा कि सीसा और हेक्सावेलेंट क्रोमियम सबसे विषाक्त रसायनों में से एक हैं।
Dark Saint Alaick
06-05-2013, 12:29 AM
सफेद बालों का संभावित इलाज खोजा वैज्ञानिकों ने
लंदन। सफेद बालों को छिपाने के लिए उन्हें काले रंग में रंगना जल्द ही अतीत का किस्सा बन सकता है क्योंकि सफेद बालों को काला करने का संभावित इलाज वैज्ञानिकों ने खोज लिया है। यूरोपीय अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ व्यक्तियों के हेयर फॉलिकल में हाइड्रोजन पराक्साइड जमने लगता है जिसके कारण व्यक्ति गहरे तनाव में आ जाता है। हाइड्रोजन पराक्साइड बालों को ब्लीच कर देता है। अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक मात्रा में हाइड्रोजन परॉक्साइड के जमाव की समस्या को वैज्ञानिक एक नए इलाज से दूर कर सकते हैं। इस इलाज में तत्व पीसी केयूएस का उपयोग किया जाता है। अध्ययन के नतीजे ‘द एफएएसईबी’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
aspundir
06-05-2013, 06:35 PM
'सेक्*स सुपरबग' से मचा हड़कंप
हवाई में 'सेक्स सुपरबग' के दो मामले सामने आने पर दुनिया भर के डॉक्टरों को मौत की घंटी सुनाई दे रही है। हवाई के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने चिंता जताई है कि यह सुपरबग एड्स फैलाने वाले वायरस एचआईवी से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है। स्वास्थ्य विभाग ने सरकार से इसकी रोकथाम के लिए नया एंटीबॉयटिक ढूंढने को 54 मिलियन डॉलर की राशि की मांग की है। इस सुपरबग पर किसी दवा का असर नहीं होता है। हवाई में सेक्स सुपरबग का पहला मामला मई 2011 में एक युवती में मिला था। सेक्स सुपरबग को गोनोरिया या h041 के नाम से भी जाना जाता है और इसकी खोज जापान में 2011 में की गई थी। इसके बाद यह हवाई में फैला और कैलीफोर्निया और नॉर्वे में भी अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं।
हवाई हेल्थ डिपार्टमेंट के पीटर विचर का कहना है कि पूरे हवाई में फिजिशियन और स्वास्थ्य सेवा देने वालों को इस सुपरबग के बारे में एडवाइजरी जारी कर दी गई है। सभी से कहा गया है कि इस सुपरबग से विशेष तौर पर सावधान रहें। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इसे एचआईवी वायरस से कम न समझा जाए। गोनोरिया या प्रमेह उत्तरी अमेरिका में दूसरा सबसे तेजी से फैलने वाला इंफेक्शन है। यह एचआईवी से ज्यादा खतरनाक इस मायने में है कि इसके बैक्टीरिया ज्यादा आक्रामक होते हैं। यह तेजी से फैलते हैं और कम समय में ही अपना असर दिखाते हैं। जबकि एचआईवी से संक्रमित मरीज के शरीर को कमजोर होने में ज्यादा समय लगता है।
aspundir
06-05-2013, 06:36 PM
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एड्स और इससे संबंधित कारणों से दुनिया भर में अब तक करीब 30 मिलियन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन गोनोरिया के बैक्टीरिया के इससे भी घातक होने की आशंका जताई जा रही है। डॉक्टरों का मानना है कि गोनोरिया से संक्रमित होने से सेप्टिक शॉक हो सकता है और कुछ ही दिनों के अंदर इंसान की मौत भी हो सकती है। डॉक्टरों ने इसके बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने की जरूरत बताई है।
हालांकि अभी तक HO41 की वजह से किसी की मौत के मामले का पता नहीं चला है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका जानकारी और संक्रमित होने से बचना है। इससे बचने के लिए लोगों को हमेशा सेफ सेक्स करना चाहिए। हवाई में
किसी को भी नए संबंध बनाने से पहले अपने पार्टनर का टेस्ट कराने की सलाह दी गई है।
aspundir
06-05-2013, 06:36 PM
गोनोरिया काफी खामोशी से फैलने वाला वायरस है। इससे संक्रमित कई लोगों को भी इसके बारे में पता नहीं होता। इन्ही खूबियों की वजह से इसकी रोकथाम की खोज करना काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इस रोग के लक्षण हैं कि इससे पेशाब करने में दर्द या जलन होती है। यह महिला और पुरुषों दोनों को हो सकता है। इसका इलाज न करने पर दूसरी कई बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा गोनोरिया के बाद एचआईवी वायरस से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि इस वायरस के लिए संक्रमित और कमजोर शरीर में पनपना और बढ़ना काफी आसान हो जाता है। गोनोरिया 15 से 24 साल के युवाओं में होने की आशंका ज्यादा रहती है। ब्रिटेन में नेशनल रेफरेंस लैबोरेटरी फॉर गोनोरिया के हेड प्रोफेसर कैथी आइसन का कहना है कि अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो 2015 तक गोनोरिया का इलाज असंभव हो जाएगा।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 10:37 PM
गहरे सागर की खोज में जापान को मिला अटलांटिक में प्राचीन महाद्वीप होने का संकेत
रियो डी जेनेरो। रियो डी जेनेरो के तट पर समुद्री हिस्से में भारी मात्रा में ग्रेनाइट पाया गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अटलांटिक महासागर में कभी एक महाद्वीप रहा होगा। ब्राजील के एक अधिकारी ने कल कहा कि ग्रेनाइट हमेशा सूखी जमीन पर ही बनता है। तटीय हिस्से में ग्रेनाइट की खोज एक दमदार सबूत है कि जिस जगह पर अटलांटिस द्वीप है, वहां कभी महाद्वीप था। इस अधिकारी ने प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो की इस बात का भी संदर्भ दिया कि अत्यंत विकसित सभ्यता वाला द्वीप करीब 12,000 साल पहले बाढ़ की वजह से समुद्र में डूब गया था। अब तक हालांकि इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। नई खोज में ‘जापान एजेंसी फॉर मेरीन अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ की पनडुब्बी शिनकाई 6500 का उपयोग किया गया। जिस समुद्री सतह पर ग्रेनाइट पाया गया है, अनुमान है कि वह सतह लाखों साल पहले समुद्र में डूबी हुई थी, हालांकि यहां मानव निर्मित कोई भी रचना नहीं पाई गई है। यह पहला अवसर है जब दक्षिण अटलांटिक महासागर में मानवयुक्त पनडुब्बी का उपयोग कर अनुसंधान किया गया है।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 10:38 PM
पानी से नहीं, आंधी से बने मंगल पर टीले
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों का मानना था कि मंगल ग्रह पर 5.6 किलोमीटर ऊंचा टीला इस बात का सबूत है कि वहां कोई विशाल झील रही होगी, लेकिन अब एक नए विश्लेषण के अनुसार यह पानी की किसी झील के कारण नहीं, बल्कि रक्ताभ ग्रह पर चलने वाले धूल भरे विशिष्ट झक्कड़ों से वजूद में आए हैं। अगर ताजा अनुसंधान सही है, तो यह उन आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है कि टीला जल के किसी विशाल निकाय का सबूत है। मंगल के अतीत की निवास्यता को जानने-समझने में इसके अहम निहितार्थ हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि माउंट शार्प के नाम से पहचाना जाने वाला यह टीला धूल भरी हवाओं के तेज झक्कड़ों का नतीजा है, जिसने 154 किलोमीटर चौड़े क्रेटर को धूल और बालू से भर दिया। यह टीला इसी क्रेटर पर स्थित है। पत्रिका ‘जियोलॉजी’ में अपने आलेख में उन्होंने बताया कि जब दिन में मंगल की सतह गर्म होती है, तो विशाल गेल क्रेटर से हवा उठती है और रात में उसकी तीखी दीवारों पर लौट आती है।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 11:01 PM
एक माल में बनाया गुप्त घर
न्यूयार्क। अमेरिका के एक शॉपिंग माल का सुरक्षाकर्मी उस समय हैरान रह गया जब उसें पता चला कि उसने माल में अनाधिकृत रूप से घुसने वाले जिस व्यक्तिको पकड़ा है वह पिछले चार साल से सात अन्य लोगों के साथ वहां एक गुप्त घर बनाकर रह रहा है। सूत्रों के मुताबिक माइकल जे टाउनसेड (36) एक कलाकार है और वह पिछले चार साल से एक माल में अपने दल के सात सदस्यों के साथ छुपकर रह रहा था। टाउनसेड का कहना है कि वह इसे आर्ट समझता है और उसकी यह गुप्त योजना माल में रहने की अमेरिकी ख्वाब की पूर्ति है। टाउनसेट की चतुराई उस समय पकड़ में आई जब वह हांगकांग से लौटे अपने एक साथी को लेकर माल में चुपके से घुस रहा था। सुरक्षा गार्ड को माल के अंदर उसका गुप्त कमरा मिल गया है। वह कमरा पूरी तरह सुसज्जित है, लेकिन वहां एक भी बाथरूम नहीं बना था। टाउनसेड का कहना है कि उन्हें बाथरूम की जरूरत नहीं महसूस हुई, क्योंकि माल में पहले से ही काफी बाथरूम थे।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 11:02 PM
सिगमंड फ्रायड की ऐतिहासिक कुर्सी हुई जर्जर
लंदन। मनोविज्ञान को नई दिशा देने वाले मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड की जिस कुर्सी पर उनके सभी मरीज बैठकर अपनी आपबीती सुनाते थे। वह अब जर्जर हो गई है। फ्रायड के काम के प्रशंसक इस कुर्सी को ठीक कराने के लिए मदद की मांग कर रहे हैं। फ्रायड का जन्म छह मई 1856 को हुआ था और यह कुर्सी भी लगभग उसी समय बनाई गई थी। फ्रायड को यह कुर्सी वियेना में रहने वाली उनकी एक अमीर महिला मरीज मदाम बेनवेनिस्ती ने दी थी। में जब नाजियो का कहर बढ़ने लगा तो वह 1938 में अपने परिवार के साथ हैम्सटीड में बस गए। उनके परिवार के साथ यह कुर्सी भी वहीं आई। 1939 में जब फ्रायड की मौत हुई तो उनकी बेटी अन्ना ने उनके कमरे को उसी हालत में रहने दिया। उन्होंने फ्रायड की हर चीज संभालकर रखी। उनकी बेटी की 1982 में मौत हो गई थी तब हैमस्टीड स्थित इस घर को फ्रायड संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 11:03 PM
अमेरिकी डिजाइनर ने बनाया स्टील का आइस क्यूब
न्यूयार्क। कई बार लोग अपने ड्रिंक में आइस क्यूब डालना पसंद तो करते हैं लेकिन जब इससे उनके ड्रिंक में पानी अधिक हो जाता है तो उन्हें वही फीका ड्रिंक पीना पड़ता है। एक अमेरिकी डिजाइनर ने इसी परेशानी से छुटकारा पाने के लिए स्टील से आइस क्यूब बनाया है। मैसाचुसेट्स प्रांत के वेलैड में रहने वाले डेव लैतुरि ने वैसे लोगों की समस्या हल कर दी है जो अपने ड्रिंक में आइस क्यूब तो चाहते हैं लेकिन उसके पिघलने से बने पानी को पीना पसंद नहीं करते। डेव ने स्टील आइस क्यूब का नाम ‘पक्स’ रखा है। सूत्रों के मुताबिक ड्रिंक को ठंडा करने के लिए मनचाही संख्या में उसमे पक्स डालने होते हैं। ये पक्स 70 ग्राम वजन के हैं। 51 वर्षीय डेव ने बताया कि उन्होंने सुना था कि प्रसिद्ध डिजाइनर रेमंड लोवी अपनी ड्रिंक में बाल बियरिंग डालकर उसे ठंडा करके पीते थे लेकिन बाल बियरिंग डालकर ड्रिंक पीना घातक हो सकता है इसीलिए मैंने गिलास की सतह पर ठहरने वाले पक्स बनाए हैं।
Dark Saint Alaick
08-05-2013, 11:04 PM
अब बिना सुई के दवाई देना होगा आसान
नई दिल्ली। भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कलम के आकार का बिना सुई का दवा देने वाला उपकरण विकसित किया है जो सुपर सोनिक शाक वेव्स के जरिए शरीर में दवा पहुंचा सकता है। मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री शशि थरूर ने लोकसभा में सदस्यों के सवालों के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में इस बिना सुई के टीकाकरण प्रणाली उपकरण का सफल परीक्षण किया है। उन्होंने बताया कि भारतीय विज्ञान संस्थान के माइक्रोबॉयलोजी और सेल बॉयोलोजी तथा एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभागों के हाइपरसोनिक और शॉक वेव्स लैब ने मिलकर विकसित किया है। थरूर ने बताया कि इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चूहों में टाइफाइड का टीका सफलतापूर्वक लगाया गया। उन्होंने बताया कि आईआईएस एकमात्र ऐसा संस्थान है, जिसने दुनिया में पहली बार सुपरसोनिक शॉक वेव तकनीक के माध्यम से इस प्रकार का उपकरण तैयार किया है। उन्होंने बताया कि इस उपकरण के कई फायदे हैं। इसके जरिए बिना दर्द के टीका लगाया जा सकता है और इसे लाना ले जाना भी आसान है।
Dark Saint Alaick
09-05-2013, 06:01 PM
मातृत्व अवकाश के बाद काम पर लौटने वाली महिला से कंपनी की लागत घटती है : सर्वे
नई दिल्ली। मातृत्व अवकाश के बाद काम पर लौटने वाली महिला कर्मचारी से किसी कंपनी को लागत में कटौती तथा उत्पादकता बढाने में मदद मिलती है। बिजनेस सेवा कंपनी रेगस के सर्वेक्षण के अनुसार जब महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश के बाद नौकरी पर लौटती हैं, तो इससे कंपनी को प्रशिक्षण तथा नियुक्ति की लागत घटाने में मदद मिलती है। वैश्विक स्तर पर भारत सहित विभिन्न देशों पर 26,000 कारोबारी लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 65 फीसद लोगों का मानना है कि मातृत्व अवकाश के बाद काम पर लौटने वाली कर्मचारियों से उत्पादकता बढाने में मदद मिलती है। इसकी वजह यह है कि ये महिला कर्मचारी वह कौशल और अनुभव प्रदान कर सकती हैं जो मौजूदा समय में मिलना मुश्किल होता है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि नियोक्ता को कार्य मातृत्व कार्यक्रमों के जरिये महिला कर्मचारियों को नौकरी पर कायम रखने के लिए उपाय करने चाहिए।
Dark Saint Alaick
11-05-2013, 10:09 PM
किंडल फोन बना रही है अमेजन?
न्यूयार्क। एक नई रपट में संकेत दिया गया है कि अमेजन एक स्मार्टफोन बना रही है, जिसे संभवत: किंडल फोन के रूप में पेश किया जा सकता है। वाल स्ट्रीट जनरल की रपट के अनुसार अमेजन का यह स्मार्टफोन निनटेंडो 3डी की तरह होगा, लेकिन इसके इस्तेमाल के लिए विशेष चश्मे की जरूरत नहीं होगी। इसमें एक रेटिना ट्रैकर होगा, जो फोटो को 3डी के रूप में दिखाएगा। हालांकि कंपनी के अधिकारियों ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि ऐसी अटकलें हैं कि किंडल फॉर टेबलेट की सफलता को देखते हुए कंपनी इस दिशा में काम कर रही है।
Dark Saint Alaick
11-05-2013, 10:11 PM
माओ की दुर्लभ तस्वीर बिकी 55,300 अमेरिकी डालर में
बीजिंग। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महानायक माओ त्से तुंग की एक दुर्लभ तस्वीर यहां हुई एक नीलामी में 55,300 अमेरिकी डालर में बिकी। माओ की तस्वीर का इतनी अधिक कीमत में बिकना इस बात का गवाह है कि अपनी मौत के 27 साल बाद भी वे चीन में कितने लोकप्रिय हैं। मशहूर पर्यटक स्थल लूशान पर्वत की पृष्ठभूमि में एक आरामदेह कुर्सी पर अधलेटे माओ की यह तस्वीर कल हुई नीलामी में 3,40,000 यूआन (55,300 डालर) में बिकी, जो उसके बिक्री पूर्व अनुमानित मूल्य से दस गुना अधिक है। सरकारी ‘चाइना डेली’ की रिपोर्ट के अनुसार, फोटो का शीर्षक है ‘चेयरमैन माओ, द ब्राइटेस्ट सन इन द हार्ट आॅफ वर्ल्ड पीपल’। यह 1961 में लीन जिन ने खींची थी। यह नाम उनकी पत्नी च्यांग क्विंग का उपनाम है और इसी नाम से उन्होंने 1966 से 76 तक सांस्कृतिक क्रांति के दौरान अनेक फोटो खींचे थे।
Dark Saint Alaick
12-05-2013, 03:22 AM
आनुवंशिक दिमागी विकार पैदा करने वाले जीन की पहचान
नई दिल्ली। दिल्ली के दो अस्पतालों के डॉक्टरों समेत 16 अनुसंधानकर्ताओं की एक वैश्विक टीम ने एक आनुवंशिक दिमागी विकार पैदा करने वाले एक जीन का पता लगाया है। इस विकार के कारण तंत्रिका तंत्र के अंगों का देर से विकास होता है जिससे पीड़ित व्यक्ति किसी सहारे के बगैर बैठ या चल नहीं पाता है। पंजाब के 4 वर्षीय लड़के समेत विश्व के कई इलाकों के 9 अन्य बच्चों के इलाज के दौरान ‘डीएआरएस’ जीन का पता लगाया गया। क्विंसलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. रयान टाफ्ट की अगुआई वाली इस टीम में सर गंगाराम अस्पताल के मेडिकल जेनेटिक्स केंद्र के निदेशक डॉ. आई सी वर्मा और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के पेडियाट्रिक्स विभाग की डॉ. मोनिका जुनेजा शामिल हैं। डॉ. वर्मा ने बताया, ‘यह लोगों में पर्याप्त ‘मायेलीन’ की कमी के कारण होता है। मायेलीन तंत्रिका फाइबरों की परत के तौर पर मौजूद होता है और तंत्रिका तंत्र में विद्युतीय आवेगों को प्रसारित करता है।’
Dark Saint Alaick
13-05-2013, 03:57 AM
बनाई सूटकेस में समा सकने लायक प्रयोगशाला
नई दिल्ली। गांव के लोगों को भी अब जल्द ही घर बैठे ही सटीक चिकित्सा निदान सुविधाएं मिल सकेंगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के एक पूर्व छात्र ने सूटकेस में समा सकने लायक एक छोटी पैथोलॉजिकल लैब विकसित की है। इसके जरिए कई रोगों की जल्द पहचान कर सही समय पर उनका निदान किया जा सकेगा। आईआईटी-रुड़की के पूर्व छात्र अमित भटनागर ने हॉलीवुड की मशहूर फिल्म निर्माण कंपनी यूनिवर्सल स्टूडियोज की एक अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर इस मोबाइल जैव रसायन प्रयोगशाला का निर्माण किया है। गुर्दा, यकृत, हृदय, रक्त अल्पता, मधुमेह और गठिया सहित 23 महत्वपूर्ण चिकित्सा परीक्षण कर सकने में सक्षम यह प्रयोगशाला एक छोटे से सूटकेस के अंदर समा सकती है। विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्री एस. जयपाल रेड्डी द्वारा कल शुरू की गई यह मोबाइल लैब दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए बड़ा वरदान साबित हो सकती है, जो अब तक इस प्रकार की रोग निदान सुविधाओं से वंचित ही रहे हैं और इस कारण उनके कई रोगों का सही समय पर पता भी चल पाता है। भटनागर ने बताया कि एक सूटकेस में फिट हो सकने वाला यह लैब पूरी तरह से पावर बैकअप से लैस है। इसके जरिए बेहद सटीक, कम लागत में और सही समय पर गुर्दा, यकृत, हृदय, रक्त अल्पता, मधुमेह और गठिया सहित 23 महत्वपूर्ण रक्त परीक्षण किए सकते हैं। इस लैब की अधिकतम कीमत 3.5 लाख रुपए है। सीमा सड़क संगठन करगिल, लेह और लद्दाख के दूरदराज क्षेत्रों में इस मोबाइल लैब का उपयोग कर रही है। वहीं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल इसे छत्तीसगढ़ के जंगलों में और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन हरियाणा और केरल में परीक्षण के तौर पर इसका उपयोग कर रही है।
Dark Saint Alaick
13-05-2013, 04:41 AM
वैज्ञानिकों ने बेहतर उत्पादन देने वाली गेहूं की नई किस्म विकसित की
लंदन। कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नई किस्म विकसित किये जाने का दावा किया है जो उत्पादकता में 30 प्रतिशत का इजाफा कर सकती है। ब्रिटेन स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एग्रीकल्चर बोटनी ने गेहूं की प्राचीन तथा आधुनिक किस्मों के मिलन से नई प्रजाति विकसित की है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार शुरूआती परीक्षण में मौजूदा आधुनिक गेहूं की किस्मों के मुकाबले इससे होने वाले फसल बडी और बेहतर जान पड़ती है। शोधकर्ताओं के अनुसार परीक्षण तथा नियामकीय मंजूरी में अभी कम-से-कम पांच साल लगेंगे। उसके बाद ही किसानों तक इस बीज की पहुंच हो सकेगी।
Dark Saint Alaick
15-05-2013, 03:52 AM
विकसित हुआ मक्का का नया संकर बीज
अहमदाबाद। मक्के का एक नए संकर बीज विकसित किया गया है, जिससे राज्य के आदिवासी इलाकों में फसल का उत्पादन दोगुना किया जा सकता है। आणंद कृषि विश्वविद्यालय (एएयू) के अनुसंधान निदेशक के. बी. कथेरिया के मुताबिक नई किस्म - गुजरात आणंद येलो हाइब्रिड मेज-1 - गुजरात के उत्तरी और केंद्रीय क्षेत्रों में खरीफ सत्र में बोई जा सकती है जो आदिवासी बहुल इलाके हैं। इस किस्म में लाइसिन (आवश्यक एमिनो एसिड) प्रचुर मात्रा में है, जिसे आदिवासियों के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत माना जाता है। आदिवासी अपने खाने में मक्के का भरपूर उपयोग करते हैं। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मक्के की नई किस्म को राज्य स्तरीय अनुसंधान परिषद से मंजूरी मिल गई है। उन्होंने कहा कि लाइसिन मानव शरीर के लिए आवश्यक एमिना एसिड है, जो इस मक्के के प्रोटीन में 2.8 प्रतिशत तक उपलब्ध है और यह मात्रा अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक है। यह आदिवासियों के लिए प्रोटीन का अच्दा स्रोत है। गुजरात की यह नकदी फसल - मक्का- आम तौर पर साबरकांठा, बनासकांठा, पंचमहल, दाहौद जैसे आदिवासी बहुल जिलों में उगाई जाती है।
Dark Saint Alaick
15-05-2013, 03:52 AM
वैज्ञानिकों ने विकसित किया नया बर्ड फ्लू का टेस्ट
मेलबर्न। आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने पहली बार नए एच 7 एन 9 बर्ड फ्लू स्ट्रेन के लिए टेस्ट विकसित किया है, जिससे इस बीमारी को देश से दूर रखने में मदद मिलेगी। क्वींसलैंड के वैज्ञानिकों ने रायल ब्रिस्बेन तथा वीमेंस हास्पिटल की बालरोग प्रयोगशाला के सहयोग से यह टेस्ट विकसित किया है। सरकार का कहना है कि इस टेस्ट से बीमारी को देश से बाहर रखने में अहम योगदान मिलेगा। इस बीच शोधकर्ताओं ने कहा है कि टेस्ट बर्ड फ्लू के संभावित खतरे से निपटने की तैयारियों का हिस्सा है। एच 7 एन 9 ने अब तक 31 लोगों की जान ली है और पिछले सप्ताह इस बीमारी से चार और लोग मारे गए। सबसे पहले मार्च में सामने आया बर्ड फ्लू का यह स्ट्रेन केवल पूर्वी चीन और ताइवान में देखा गया है।
Dark Saint Alaick
15-05-2013, 03:52 AM
आधुनिक जीवनशैली के कारण कम उम्र में कम हो रही है याददाश्त
लंदन। आधुनिक जीवनशैली के कारण कम उम्र में ही लोग याददाश्त कम होने एवं मस्तिष्क से सम्बंधित अन्य बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। एक नए शोध में पाया गया कि कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और रसायनों के ज्यादा प्रयोग के कारण लोग इन बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं। नवीनतम शोध में पाया गया है कि 74 वर्ष से कम उम्र के लोगों में याददाश्त खत्म होने एवं तंत्रिका सम्बंधी अन्य मामले तेजी से बढ रहे हैं। पब्लिक हेल्थ पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक इसमें वृद्धि इसलिए हो रही है कि ज्यादा संख्या में उम्रदराज लोग इस तरह की स्थितियों से प्रभावित हो रहे हैं और चिंताजनक बात है कि यह कम उम्र में शुरू हो रहा है और 55 वर्ष से कम उम्र के लोग भी अब इसके शिकार बनते जा रहे हैं। दस बड़े पश्चिमी देशों में तंत्रिका सम्बंधी बीमारी से होने वाली मौत के मामले में सबसे ज्यादा बुरी स्थिति अमेरिका की है, जहां 1979 से 2010 के बीच पुरुषों की मौत में 66 फीसदी तक और महिलाओं की मौत में 92 फीसदी तक की वृद्धि हुई। ब्रिटेन चौथा बड़ा देश है जहां पुरूषों की मौत में 32 फीसदी और महिलाओं की मौत में 48 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई।
Dark Saint Alaick
15-05-2013, 03:53 AM
बेचैनी की प्रभावी वैकल्पिक चिकित्सा मुहैया कराएगा कावा पौधा
मेलबर्न। दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में पाया जाना वाला औषधीय पौधा कावा बेचैनी से पीड़ित लोगों के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है। पौधे पर पहले क्लीनिकल अध्ययन में यह बात सामने आई है। मेलबर्न विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ कि जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसार्डर (जीएडी) से पीड़ित लोगों के लिए कावा एक वैकल्पिक चिकित्सा मुहैया करा सकता है। मेलबर्न विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जेरोम सैरीस ने कहा कि जीएडी एक जटिल स्थिति है जो लोगों की दैनिक जीवनचर्या को काफी प्रभावित करता है। वर्तमान चिकित्सा का साधारण प्रभाव होता है और बेचैनी से पीड़ित रोगियों के लिए नए प्रभावी विकल्प की आवश्यकता है।
Dark Saint Alaick
15-05-2013, 06:07 AM
डायरिया से बचाव के लिए वैज्ञानिकों ने पेश किया ‘रोटावैक’
नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने जानलेवा रोटावाइरस डायरिया से बचाव के लिए पूरी तरह भारत में ही विकसित किया गया सस्ता टीका ‘रोटावैक’ आज पेश किया । गौरतलब है कि रोटावाइरस डायरिया से भारत में हर साल पांच वर्ष से कम उम्र के एक लाख से ज्यादा बच्चे दम तोड़ देते हैं । ‘रोटावैक’ टीके के क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण के नतीजे एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जारी किए गए । करीब 28 साल की मेहनत के बाद यह टीका तैयार किया जा सका है । बच्चों की उम्र के पहले साल में इसकी प्रभावोत्पादकता 56 फीसदी बतायी जा रही है । जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव एम के भान ने यहां संवाददाताओं को बताया, ‘रोटावैक जानलेवा रोटावाइरस डायरिया को 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में कम करता है ।’ बहरहाल, इस टीके का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने में अभी वक्त लगेगा क्योंकि इसे अब तक भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) से मंजूरी नहीं मिली है । भारत बायोटेक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक कृष्णा एम एल्ला ने कहा, ‘हम जुलाई में डीसीजीआई के पास एक डॉजियर दाखिल करने पर विचार कर रहे हैं । जरूरी विनियामक मंजूरियों के बाद हम बाजार में उतरेंगे ।’ अधिकारियों ने बताया कि 40 से ज्यादा देशों में दो लाइसेंस प्राप्त टीके पेश किए गए लेकिन विकासशील देशों में से ज्यादातर की पहुंच से वे बाहर हैं । जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के विजयराघवन ने कहा, ‘‘नतीजे संकेत देते हैं कि यदि लाइसेंस मिल गया तो यह टीका भारत में हर साल हजारों बच्चों की जान बचा सकता है ।’
Dark Saint Alaick
21-05-2013, 02:27 AM
भारतीय किशोरी ने बनाया 20 सेकंड वाला चार्जर
वाशिंगटन। भारतीय अमेरिकी मूल की 18 वर्षीय एक किशोरी ने ऐसा उपकरण तैयार किया है, जिससे मोबाइल फोन 20 सेकंड में चार्ज हो सकेंगे। कैलिफोर्निया की ईशा खरे को इस खोज के लिए इंटेल फाउंडेशन के यंग साइंटिस्ट पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ईशा का यह उपकरण मोबाइल फोन की बैटरियों में लगाया जा सकेगा जिससे बैटरी 20-30 सेकंड में चार्ज हो सकेगी। एनबीसी न्यूज की खबर के अनुसार इस लघु उपकरण में काफी ऊर्जा होती है और इससे बैटरी तुरंत चार्ज हो सकती है तथा लंबे समय तक बैटरी काम कर सकती है। इस खोज के लिए ईशा को 50 हजार अमेरिकी डालर का इनाम मिला है।
Dark Saint Alaick
24-05-2013, 02:25 AM
मधुमक्खी का शहद ही नहीं, जहर भी स्वास्थ्य के लिए मुफीद
लखनऊ। सैकड़ों बीमारियों में गुणकारी माना जाने वाला शहद ही नहीं, मधुमक्खी के डंक का जहर भी स्वास्थ्य के लिए मुफीद है। मधुमक्खी के डंक से निकला जहर गठिया के लिए काफी लाभप्रद है। एक शोध से पता चला है कि मधुमक्खी के डंक के जहर के साथ एक-दो रासायनिक पदार्थ मिलाकर लगाने से गठिया ठीक हो सकता है। यही नहीं मधुमक्खी की रॉयल जेली की मदद से एड्स जैसी घातक बीमारियों के साथ ही सेक्सुअल मेडिसिन भी तैयार की जाती हैं। सेन्ट्रल बी रिसर्च इन्स्टीट्यूट पुणे के सहायक निदेशक आर.के. सिंह ने बताया कि मधुमक्खी पालन से किसानों के आर्थिक हालात में जहां खासा परिवर्तन हो सकता है, वहीं इसकी एक-एक चीज मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद गुणकारी है।
Dark Saint Alaick
27-05-2013, 10:51 PM
पाषाण काल के 5000 भित्ति चित्र मिले
मेक्सिको। मेक्सिको के उत्तर पूर्व में स्थित पर्वत श्रृंखला में पाषाण काल के लगभग 5000 भित्ति चित्र मिले हैं। मेक्सिको के राष्ट्रीय विज्ञान एवं इतिहास संस्थान ने बताया कि पुरातत्वविदों ने पाषाण काल के पीले, लाल, सफेद और काले रंग की भित्ति चित्रो की खोज की है। इन चित्रो में हिरण, छिपकली और कनखजुरे को चित्रित किया गया है जिससे यह पता चलता है कि जिन्होने ये चित्र बनाये हैं। वे शिकार करने, मछली पकड़ने और भोजन संग्रह करने वाले थे। इन भित्ति चित्रो मे धर्म- खगोल से सम्बंधित तस्वीरे भी हैं। इनमे से अधिकतर चित्र अच्छी अवस्था में हैं। अभी तक इन चित्रों की कार्बनडेटिंग नहीं की गई है। पुरातत्वविदों ने तस्वीरों में चित्रित दृश्यों के कारण इसका संबंध पाषाण काल से जोड़ा है।
Dark Saint Alaick
27-05-2013, 10:57 PM
अब कीटनाशक भी पहचानने लगे हैं कॉकरोच
आसानी से ढूंढ लेते हैं बचने का उपाय
न्यूयॉर्क। अमरीकी शोधकर्ताओं के दल को यूरोप में कॉकरोचों की ऐसी किस्म मिली है जो उनके लिए तैयार कीटनाशक को चखते ही पहचान लेते हैं। जैव विकास के परिणाम स्वरूप इन कॉकरोचों की स्वाद ग्रंथि परिवर्तित हो गई है। कीटनाशक गोलियों पर चढ़ाई गई चीनी की परत इन्हें मीठी के बजाय कड़वी लगती है। नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक दल ने कॉकरोचों को जैम और पीनट बटर में से एक को चुनने का विकल्प दिया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इनकी स्वाद ग्रंथियों का विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं के इसी दल ने बीस साल पहले किए गए अपने अध्ययन में पाया था कि कॉकरोचों के लिए तैयार कुछ कीटनाशक उन पर असर नहीं कर रहे हैं क्योंकि कॉकरोच कीटनाशक मिलाकर रखी गई गोलियों को खाते ही नहीं थे। डॉक्टर कॉबी शाल ने साइंस जर्नल में इस शोध के बारे में समझाते हुए कहा है कि इस नए अध्ययन से कॉकरोचों के इस व्यवहार के पीछे की स्रायविक प्रक्रिया सामने आ चुकी है।
चालाक हो गए कॉकरोच
इस प्रयोग के पहले चरण में वैज्ञानिकों ने भूखे कॉकरोचों को पीनट बटर और ग्लूकोज वाला जैम खाने को दिया। जैम में ग्लूकोज की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जबकि पीनट बटर में काफी कम ग्लूकोज होता है। डॉक्टर कॉबी कहते हैं,आप देख सकते हैं कि ये कॉकरोच जेली खाते ही झटका खा कर पीछे हट जाते हैं लेकिन पीनट बटर पर वे टूट पड़ते हैं। वैज्ञानिकों ने कॉकरोचों को स्थिर कर दिया और उनकी स्वाद कोशिकाओं का अध्ययन करने के लिए उन्हें पतल-पतले तारों से जोड़ दिया। ये स्वाद कोशिकाएं कॉकरोचों के मुंह पर स्थित नन्हें बालों में जमे स्वाद का अनुभव करती हैं। डॉक्टर शाल बताते हैं कि ग्लूकोज चखने पर कॉकरोचों की उन कोशिकाओं में भी प्रतिक्रिया होती है जो मीठा खाने पर सक्रिय होती है लेकिन कड़वे स्वाद की ग्रंथियां इन्हें बीच में ही रोक देते हैं जिसकी वजह से आखिर में इसका स्वाद कड़वा प्रतीत होता है। इन कॉकरोचों के व्यवहार को स्प्ष्ट करते हुए डॉक्टर शाल कहते हैं कि ये कॉकरोच ग्लूकोज खाने पर वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि छोटे बच्चे पालक की सब्जी खाने पर करते हैं। ग्लूकोज चखने पर ये कॉकरोच अपना सिर झटकते हैं तथा उसे और चखने से मना कर देते हैं।
फायदा उठाते हैं हमारा
डॉक्टर शाल कहते हैं कि मनुष्य और कॉकरोचों के बीच चल रही ऐतिहासिक होड़ में यह एक नया अध्याय है। हम कॉकरोचों को मिटाने के लिए कीटनाशक बनाते जा रहे हैं और कॉकरोच इन कीटनाशकों से बचने के उपाय करते जा रहे हैं। डॉक्टर शाल कहते हैं कि कॉकरोचों का मैं बहुत सम्मान करता हूं। वो हम पर निर्भर हैं लेकिन वो हमारा फायदा उठाना भी जानते हैं।
Dark Saint Alaick
30-05-2013, 03:24 PM
स्पैस्टिसिटी को काबू में कर सकता है व्यायाम
मांसपेशियों में विकृति पैदा कर अक्षम बना देती है यह बीमारी
नई दिल्ली। मांसपेशियों में विकृति की समस्या स्पैस्टिसिटी कई बार इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने में भी अक्षम हो जाता है, लेकिन दूसरों पर निर्भर बना देने वाली यह समस्या नियमित व्यायाम से नियंत्रित की जा सकती है। नोयडा स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख एवं सीनियर कन्सल्टेंट डॉ. संजय के सक्सेना ने बताया कि मस्तिष्क आघात की वजह से होने वाली समस्या स्पैस्टिसिटी वास्तव में मांसपेशियों में विकृति की समस्या है, जिसमें मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं और उन पर नियंत्रण की क्षमता भी क्षीण या खत्म हो जाती है। कई बार यह समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि व्यक्ति एक तरह से अक्षम हो जाता है। सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पी. के. सेठी ने बताया कि यह समस्या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र यानी मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड से मांसपेशियों को भेजे जाने वाले संकेतों के असंतुलन की वजह से होती है। जो लोग सेरिब्रल पाल्सी, मस्तिष्क में चोट, आघात, मल्टीपल स्क्लेरोसिस या स्पाइनल कॉर्ड में चोट से पीड़ित होते हैं, अक्सर उन लोगों में ही केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मांसपेशियों को भेजे जाने वाले संकेतों में असंतुलन पाया जाता है। डॉ. सक्सेना के अनुसार, मांसपेशियों के कड़े होने की वजह से दर्द भी होता है, लेकिन यह दर्द कितना तेज है यह स्पैस्टिसिटी के स्तर पर निर्भर करता है। खासकर पैरों की मांसपेशियों में स्पैस्टिीसिटी होने पर बहुत तेज दर्द होता है। इस बीमारी का इलाज भी इसके स्तर पर ही निर्भर करता है। डॉ. सक्सेना के मुताबिक, मस्तिष्क की कोशिकाओं को आॅक्सीजन तथा रक्त से अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति बहुत जरूरी है। यह काम रक्त वाहिनियां करती हैं। आघात की वजह से यह आपूर्ति बाधित हो जाती है। अगर नियमित व्यायाम किया जाए, तो रक्त वाहिनियों की सक्रियता बरकरार रहती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को उनके लिए आवश्यक तत्वों एवं आक्सीजन की कमी नहीं हो पाती। डॉ. सेठी ने कहा कि मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं अगर आघात के चलते आक्सीजन और पोषक तत्वों के अभाव में मर जाती हैं तो उस भाग का सम्बंधित मांसपेशियों और उनकी गतिविधियों पर से नियंत्रण खो जाता है। ये गतिविधियां चलने फिरने से ले कर बोलने तक कुछ भी हो सकती हैं। नियमित व्यायाम भले ही लोगों को महत्वपूर्ण न महसूस हो, लेकिन इसकी वजह से रक्त की आपूर्ति को निर्बाध बनाए रखने में बहुत मदद मिलती है। डा. सेठी ने बताया कि कई बार जोड़ों के दर्द या उनमें कड़ापन महसूस होता है जिसका कारण अकसर थकान को माना जाता है। पर इसका कारण स्पैस्टिसिटी भी हो सकता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो जोड़ों तक पहुंच जाता है। इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अनूप कोहली का कहना है कि स्पैस्टिसिटी के कारण मरीज के लिए चलना-फिरना, हाव-भाव जाहिर करना और संतुलन आदि में समस्या होने लगती है, क्योंकि मस्तिष्क वांछित मांसपेशियों तक संकेत भेजने की अपनी क्षमता खो देता है। इससे शरीर के एक अंग या अधिक अंग या शरीर के एक तरफ के हिस्से की क्षमता पर असर पड़ता है। आघात के ज्यादातर मरीज स्पैस्टिसिटी की समस्या की गिरफ्त में नहीं आते, लेकिन जो आते हैं, उनके लिए अक्सर जीवन जीना दूभर हो जाता है। व्यायाम ऐसे मरीजों के लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
Dark Saint Alaick
04-06-2013, 11:12 PM
तम्बाकू है सिर, गर्दन में कैंसर बढ़ने की वजह
अहमदाबाद। गुजरात में हर साल सामने आने वाले कैंसर के 45 हजार नए मामलों में 35 प्रतिशत मामले सिर और गर्दन के कैंसर के होते हैं। इसका मुख्य कारण तम्बाकू का बढ़ता सेवन है। यह आंकड़ा गुजरात कैंसर अनुसंधान संस्थान (जीसीआरआई) का है। जीसीआरआई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. परिमल जीवराजनी ने कहा कि राज्य में हर साल सामने आने वाले कैंसर के मामलों में अनुमानित तौर पर 30-35 प्रतिशत मामले सिर और गर्दन के कैंसर के होते हैं। उन्होंने राज्य में पुरुषों में बढ़ते कैंसर मामलों पर चिंता जताई और कहा कि राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक पुरुषों में इस कैंसर के लक्षण तम्बाकू के बढ़ते सेवन की वजह से हैं। जीसीआरआई ने अहमदाबाद कैंसर रजिस्ट्री का उल्लेख किया। इसके अनुसार अहमदाबाद जिले में शहरी महिलाओं के मुकाबले ग्रामीण महिलाएं सिर और गर्दन के कैंसर की अधिक शिकार हो रही हैं। डॉ. जीवराजनी ने कहा कि अहमदाबाद में नगरीय क्षेत्रों में 18 प्रतिशत महिलाओं को कैंसर की आशंका है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत तक है। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद जिले में नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में 55 प्रतिश पुरुष सिर और गर्दन के कैंसर के मामलों से ग्रस्त हैं। हेल्थ केयर ग्लोबल कैंसर सेंटर के वरिष्ठ परामर्शदाता एवं निदेशक डॉ. राजेंद्र तोपरानी ने कहा कि आजकल युवा पीढ़ी बहुत छोटी उम्र में तम्बाकू की आदी हो रही है, युवा आबादी में भी गर्दन और कैंसर के लक्षणों में वृद्धि हो रही है। गांधी नगर स्थित अपोलो अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. विशाल चोस्की ने कहा कि कुल मिलाकार सिर और गर्दन के कैंसर के मामलों में 90 प्रतिशत तम्बाकू से सम्बंधित हैं, जो धुंआरहित तम्बाकू चबाने, नसवार लेने और अन्य कारणों की वजह से होता है। गुजरात में करीब 60 प्रतिशत पुरुष तम्बाकू के आदी हैं, जबकि तम्बाकू की आदी महिलाओं का प्रतिशत 8.40 है। इस तरह के कैंसर के लक्षणों में मुंह में छाले, गले में सूजन, आवाज में बदलाव और खाने में कठिनाई तथा अन्य समस्याएं शामिल हैं। डॉ. तोपरानी ने कहा कि भारत में आम तौर पर 70 प्रतिशत रोगी डॉक्टरों के पास तब पहुंचते हैं, जब कैंसर काफी बढ़ चुका होता है, जबकि पश्चिमी देशों में मरीज काफी शुरुआती चरण में ही डॉक्टरों के पास पहुंच जाते हैं। डॉ. तोपरानी ने कहा कि आॅपरेशन, रेडियोथेरापी और कीमोथेरापी से इस तरह के कैंसर का इलाज हो सकता है, और यदि यहां मरीज डॉक्टरों के पास शुरुआती अवस्था में ही पहुंच जाए, तो उपचार की सफलता का प्रतिशत काफी हो सकता है।
Dark Saint Alaick
05-06-2013, 01:03 AM
सुअरों में रोग के लिए जिम्मेदार विषाणु का पहली बार भारत में पता चला
एजल। मिजोरम और शायद देश में भी पहली बार छोटे सुअरों के श्वसन से जुड़े जानलेवा रोग के लिए जिम्मेदार विषाणुओं का पता चला है। इस रोग से जुड़े नमूने जांच के लिए प्रयोगशालाओं में भेजे गए थे। पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ एलबी साइलो ने बताया कि रोगग्रस्त सुअरों के नमूने की मिजोरम स्थित सेलीश स्थित वेटनरी कॉलेज और मेघालय के बोरापानी स्थित आईसीएआर रिसर्च काम्पलेक्स में जांच की गई, जहां ‘आर्टेवाइरस’ का पता चला। यह विषाणु पोरसीन रिप्रोडक्टिव एंड रेसपिरेटरी सिंड्रोम (पीआरएसएस) रोग का वाहक है। गौरतलब है कि पीआरआरएस का इससे पहले राज्य में और देश में कभी पता नहीं चला था, लेकिन यह कुछ एशियाई देशों, पड़ोसी देश म्यामां में मौजूद है। म्यामां के साथ राज्य की 404 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा लगी हुई है।
Dark Saint Alaick
05-06-2013, 01:04 AM
पूर्वोत्तर के छात्रों ने डिजाइन किया नए तरीके का सोलर हीटर
ईटानगर। नॉर्थ ईस्ट रिजनल इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (पूर्वोत्तर क्षेत्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान) के तीन छात्रों ने मिलकर एक नए तरीके का सोलर हीटर बनाया है जिसे घरेलू और औद्योगिक दोनों ही उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है। इंजीनियरिंग (मेकेनिकल) के छात्र सुमन पाओ, विकास गौतम और जुवेल त्रिपुरा ने अपने सोलर हीटर के बारे में बताया कि इसमें एक पैराबोलिक रिफ्लेक्टर है जो पानी से भरे ड्रम के साथ संयोजन करते हुए काम करता है। सोलर हीटर की कार्यप्रणाली का विवरण देते हुए सुमन पाओ ने बताया कि सोलर हीटर का एलुमिनियम डिश सूर्य की ऊर्जा को ढक्कन लगे ड्रम में परावर्तित करता है, जिसके ऊपर भोजन बनाया जा सकता है। बारिश के दिनों में ड्रम का उपयोग बारिश का पानी जमा करने में भी किया जा सकता है।
Dark Saint Alaick
06-06-2013, 06:37 PM
भारतीय कंपनियों में कर्मचारियों के छोड़ने की दर ऊंची
नई दिल्ली। एक रपट के अनुसार अनेक भारतीय कंपनियों को प्रतिभाओं को आकर्षित करने तथा अपने यहां बनाये रखने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और इनमें नौकरी छोड़ने की दर 14 प्रतिशत है जो वैश्विक औसत से उंची है। वैश्विक पेशेवर सेवा फर्म टावर्स वाटसन ने एक रपट में यह निष्कर्ष निकाला है। रपट के अनुसार, भारत में नौकरी छोडने यानी एट्रीशन की दर 14 प्रतिशत है जो कि वैश्विक तथा एशिया प्रशांत क्षेत्र की दर से कुछ अधिक है। रपट के अनुसार वैश्विक स्तर पर यह दर 11.20 प्रतिशत तथा एशिया प्रशांत देशों में 13.81 प्रतिशत है। रपट में कहा गया है कि देश की 92 प्रतिशत फर्मों का कहना है कि उन्हें विशेष कौशल वाली प्रतिभाओं को आकर्षित करने में परेशानी हो रही हैं वहीं 75 प्रतिशत संगठनों का कहना है कि उन्हें अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों को अपने यहां बनाये रखने में दिक्कत हो रही है। इसके अनुसार भारतीय कर्मचारियों के लिए रोजगार सुरक्षा तथा करियर में आगे बढने के अवसर दो प्रमुख प्राथमिकताएं हैं।
Dark Saint Alaick
06-06-2013, 06:38 PM
गर्भाशय कैंसर की स्क्रीनिंग का किफायती तरीका ईजाद
मुंबई। देश के प्रमुख कैंसर उपचार संस्थान टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) ने घोषणा की कि संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने सर्विकल (गर्भाशय) कैंसर की स्क्रीनिंग का किफायती तरीका खोजा है। भारतीय महिलाओं में सर्विकल कैंसर के काफी मामले देखने को मिलते हैं। संस्थान के अनुसार इस प्रक्रिया में सिरके का इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय महिलाओं में गर्भाशय कैंसर के हर साल करीब 1,42,000 नये मामले सामने आते हैं और संस्थान के प्रवक्ता के अनुसार इस बीमारी से हर साल 77 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। प्रवक्ता ने कहा, ‘दुनिया में सर्विकल कैंसर के एक तिहाई मामले भारत में हैं। यह बीमारी ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के संक्रमण से होती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह बीमारी धीरे धीरे विकसित होती है और अधिकतर महिलाओं को इसके बाद के चरणों में पहुंचने तक इसके लक्षण का पता नहीं चलता। इस स्तर पर अकसर उपचार विफल होता है। अगर बीमारी का शुरूआती स्तर पर पता लगा लिया जाए और समय पर इलाज कर लिया जाए तो इसकी रोकथाम की जा सकती है।’ प्रवक्ता के अनुसार स्क्रीनिंग के लिए प्रचलित पैप स्मीयर टेस्ट को साजो-सामान संबंधी दिक्कतों के कारण सभी के लिए लागू कर पाना कठिन है। उन्होंने कहा कि 4 प्रतिशत एसीटिक एसिड के इस्तेमाल के बाद गर्भाशय का देखकर निरीक्षण करने का (वीआईए स्क्रीनिंग) तरीका किफायती है। अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययन में शामिल महिलाओं को दो समूहों में बांटा। 75 हजार महिलाओं को ‘स्क्रीनिंग समूह’ को आवंटित किया गया वहीं अन्य 75 हजार महिलाओं को ‘नियंत्रण समूह’ को आवंटित किया गया। स्क्रीनिंग समूह की महिलाओं को एक कैंसर शिक्षण कार्यक्रम के लिए बुलाकर उनका वीआईए परीक्षण कराया गया। हर दो साल में इस समूह को चार दौर में स्क्रीनिंग से गुजारा गया और कैंसर के बारे में जानकारी दी गयी। दूसरे समूह की महिलाओं की वीआईए जांच नहीं की गयी लेकिन उन्हें कैंसर के बारे में जानकारी दी गयी। उन्हें सर्विकल कैंसर का किसी तरह के लक्षण का संदेह होने पर टीएमसी में रिपोर्ट करने को कहा गया। टीएमसी के मुताबिक नतीजों से पता चला कि वीआईए स्क्रीनिंग सुरक्षित, व्यावहारिक और भारतीय महिलाओं के लिहाज से स्वीकार्य तरीका है।
Dark Saint Alaick
13-06-2013, 12:40 AM
पुरूषों को 43 साल की उम्र में जाकर आती है अक्ल : अध्ययन
लंदन। महिलाएं अक्सर पुरूषों पर ‘बचकानेपन’ का आरोप लगाती रहती हैं लेकिन अब वैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात सही साबित हो गयी है । ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरूषों को 43 साल की उम्र में जाकर अक्ल आती है जबकि महिलाएं 11 साल पहले ही समझदार हो चुकी होती हैं । निकलोडियन यूके द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि महिलाएं 32 साल की उम्र में ही परिपक्व हो जाती हैं। अध्ययन में प्रत्येक दस में से आठ महिलाओं का मानना था कि पुरूष कभी भी बचकानी हरकतें करना बंद नहीं करते और महिलाओं को तड़के उठकर फास्ट फूड खाना और वीडियो गेम खेलने की उनकी हरकतें सर्वाधिक बचकानी लगती हैं । द डेली एक्सप्रेस में यह खबर छपी है । लड़ाई के बाद मौन धारण करना, ट्रैफिक लाइट पर गाड़ी दौड़ाना, खिचड़ी तक ठीक से नहीं पका पाना, भद्दे शब्दों पर खीं खीं करके हंसना ये पुरूषों की कुछ ऐसी आदतें हैं जो महिलाओं की दृष्टि में पुरूषों के बचकानेपन को दर्शाती हैं । ऐसे पुरूष जिनकी मांए अभी तक भी उनके कपड़े धोती हैं और खाना पकाती हैं वे परिपवक्ता के चार्ट में सबसे नीचे हैं। अध्ययन में करीब 46 फीसदी महिलाएं ऐसे संबंध में रह चुकी थीं जहां उन्हें अपने साथी का ध्यान एक मां की तरह रखना पड़ता था।
Dark Saint Alaick
14-06-2013, 10:01 AM
पैदल काम पर जाएं, तो बेहतर हो सकती है दिल की सेहत
एक नए अध्ययन ने भारतीयों को दी सलाह
लंदन। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जो भारतीय पैदल चलकर या साइकिल चलाकर काम पर जाते हैं, उनमें दिल की बीमारियों का खतरा काफी कम होता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि पैदल चलने या साइकिल चलाने से उनमें मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की आशंका काफी कम हो जाती हैं। लंदन के इंपीरियल कॉलेज और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आॅफ इंडिया के शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के नतीजों में पाया गया कि शारीरिक रूप से सक्रिय रखने वाले परिवहन माध्यम अपनाने से कई दीर्घकालिक बीमारियों के खतरे कम किए जा सकते हैं। भारत और अन्य कम व मध्य आय वाले देशों में अगले दो दशकों में मधुमेह और दिल की बीमारियों के नाटकीय ढंग से बढ़ने की आशंका है। पीएलओएस मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शारीरिक सक्रियता और स्वास्थ्य सूचनाओं का विश्लेषण किया गया। ये सूचनाएं वर्ष 2005 से 2007 के बीच भारतीय प्रवासी अध्ययन (आईएमएस) में शामिल चार हजार प्रतिभागियों से जुटाई गई थीं। आईएमएस का यह अध्ययन भारत के चार शहरों के कारखानों में किया गया था। इनमें लखनऊ की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, नागपुर की इंडोरामा सिंथैटिक्स लिमिटेड, हैदराबाद की भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और बेंगलूरू की हिंदुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण इलाकों के 68.3 प्रतिशत लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं और 11.9 प्रतिशत पैदल काम पर जाते हैं। शहरों और कस्बों में साइकिल से काम पर जाने वालों की संख्या 15.9 प्रतिशत है और पैदल जाने वालों की संख्या 12.5 प्रतिशत है। किसी निजी वाहन से काम पर जाने वाले लोगों में आधे लोग और सार्वजनिक वाहन लेने वालों में से 38 प्रतिशत लोगों का वजन अधिक पाया गया, जबकि पैदल या साइकिल से काम पर जाने वालों में अधिक वजन वाले लोग मात्र एक चौथाई ही थे। अध्ययन में उच्च रक्तचाप और मधुमेह के लिए भी ऐसे ही प्रारूप दिखाई दिए। अध्ययन का नेतृत्व करने वाले क्रिस्टोफर मिलेट ने कहा कि यह अध्ययन दर्शाता है कि चलना और साइकिल चलाना सिर्फ पर्यावरण के लिए ही अच्छा नहीं है बल्कि यह व्यक्ति की सेहत के लिए भी अच्छा है। इस तरह काम पर जाते हुए लोगों का व्यायाम हो जाता है, इसलिए उन्हें जिम में जाने के लिए अलग से वक्त नहीं निकालना पड़ता। उन्होंने कहा कि भारतीय शहरों में पैदल चलने व साइकिल चलाने के लिए सुविधा और सुरक्षा को सुधारने की भी जरूरत है।
Dark Saint Alaick
14-06-2013, 10:02 AM
जरूरी है जिंदगी के लिए
चाय, इंटरनेट, एक अच्छा दोस्त और प्यार की झप्पी
लंदन। रोजाना गर्मागर्म चाय की प्याली, हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन, एक भरोसेमंद दोस्त और प्यार की झप्पी ब्रिटिश लोगों की नजर में आधुनिक जिंदगी की ये कुछ ‘न्यूनतम आवश्यकताएं’ हैं, जिनके बिना आज के दौर में जिंदगी जीना मुहाल है। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 20 ऐसी शीर्ष चीजों को शामिल किया गया, जो ब्रिटेनवासियों की आज की आधुनिक जीवनशैली के लिए जरूरी हैं और इसमें 18 से 65 साल के दो हजार वयस्कों ने भाग लिया। इस सूची में प्रतिभागियों ने जिन 20 चीजों को शीर्ष वरीयता दी, उनमें इंटरनेट कनेक्शन, टेलीविजन और प्यार भरी जादू की झप्पी को चुना गया है। महिलाओं ने शीर्ष वरीयता जादू की झप्पी को दी है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह जिंदगी जीने की सबसे पहली जरूरत है, लेकिन दूसरी ओर पुरुषों ने टेलीविजन को सबसे बड़ी जरूरत बताया है। मेट्रो डाट सीओ डाट यूके में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस सूची में एक भरोसेमंद दोस्त, रोजाना शॉवर और सेंट्रल हीटिंग को भी शामिल किया गया है। कुछ लोगों ने कहा है कि उनका चाय के बिना गुजारा नहीं हो सकता। इसके अलावा कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें हर समय यह सुनने की आदत है ‘आई लव यू।’ इसके अलावा ब्रिटेनवासी जिन चीजों के बिना जिंदगी को अधूरा पाते हैं, उनमें एक मजबूत वैवाहिक सम्बंध, कार, चश्मा, काफी, चॉकलेट तथा वाइन को भी प्रमुख स्थान दिया गया है। सर्वे में पाया गया है कि ब्रिटिश लोगों को भरपूर अंग्रेजी नाश्ता, साल में एक विदेशी टूर तथा बीयर और आईफोन जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत लगते हैं। डिज्नी ने यह सर्वेक्षण ‘द जंगल बुक’ के ब्लू रे संस्करण को रिलीज किए जाने से पूर्व करवाया।
Dark Saint Alaick
14-06-2013, 10:14 AM
आंख के कोर्निया की नई परत की खोज
भारतीय प्रोफेसर के नाम पर नामकरण
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28058&stc=1&d=1371186853
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए मानवीय शरीर रचना के हिस्से आंख के कोर्निया में नर्ई परत को खोज निकाला है और इसका नाम इसकी खोज करने वाले भारतीय शोधकर्ता के नाम पर रखने का फैसला किया है। इंसान की आंख के अगले हिस्से को कोर्निया कहा जाता है। ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी आफ नॉटिंघम के शोधकर्ताओं द्वारा की गई इस खोज से चिकित्सकों को कोर्निया ग्राफ्टिंग करवाने या कोर्निया प्रत्यारोपण करवाने वाले मरीजों को अधिक अच्छे परिणाम देने में मदद मिलेगी। कोर्निया की नई खोजी गई इस परत का नाम ‘दुआ’ज लेयर’ रखा गया है। प्रोफेसर हरमिंदर दुआ ने इसकी खोज की है। इससे पहले वैज्ञानिकों को कोर्निया की इस परत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आंख के अगले हिस्से में कोर्निया एक स्पष्ट सुरक्षात्मक लैंस होता है, जिसके माध्यम से प्रकाश आंख में प्रवेश करता है। पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि कोर्निया की आगे से लेकर पीछे तक पांच परतें होती हैं जिन्हें कोर्नियल ऐपिथेलियम , बोमैन्स लेयर, कोर्नियल स्ट्रोमा , डिसेमेट्स मैम्ब्रेन तथा कोर्नियल एंडोथेलियम कहा जाता है। नई खोजी गई परत कोर्नियल स्ट्रोमा और डिसेमेट्स के बीच स्थित है। हालांकि यह केवल 15 माइक्रोन्स मोटाई की है, लेकिन यह बेहद मजबूत है। पूरे कोर्निया की मोटाई करीब 550 माइक्रोन्स या 0.5 मिमी होती है। प्रोफेसर दुआ ने कहा कि यह एक बड़ी खोज है, जिसका मतलब है कि नेत्र विज्ञान से सम्बंधी पाठ्य पुस्तकों को फिर से लिखने की जरूरत होगी। उन्होंने बताया कि कोर्निया के उत्तकों की गहराई में इस नई और अनोखी परत की खोज के बाद, अब हम इसकी दबाव सहने की क्षमता का इस्तेमाल कर मरीजों की आंखों का आॅपरेशन अधिक सुरक्षित और आसान तरीके से करने की संभावनाओं का पता लगा सकते हैं। यह शोध रिपोर्ट आपथैलमोलोजी जर्नल में प्रकाशित हुई है।
Dark Saint Alaick
14-06-2013, 10:19 AM
वीडियो गेम्स से चीजों को विस्तार से देखने में मिलती है मदद : अध्ययन
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में कहा है कि वीडियो गेम खेलने में आप जितना अधिक समय लगाते हैं, आपके मस्तिष्क को दृश्य सामग्री को उतनी ही अधिक तेजी तथा स्पष्ट तरीके से समझने में यह प्रशिक्षित करता है। ड्यूक स्कूल आफ मेडिसिन के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर ग्रेग एप्पलबौम ने कहा कि वीडियो गेम खेलने वाले दुनिया को अलग नजरिए से देखते हैं। वे किसी दृश्य चित्र से किसी अन्य व्यक्ति के मुकाबले अधिक सूचना एकत्र करने में सक्षम होते हैं। ड्यूक यूनिवर्सिटी के स्टीफन मिट्रोफ ने विज्युअल कोगनिशन लैब में बहुत कम वीडियो गेम खेलने वालों और बेहद अधिक गेम खेलने वालों के व्यवहार को लेकर अध्ययन किया। एप्पलबौम ने बताया कि अधिक वीडियो गेम खेलने वाले लोगों ने किसी चित्र को बहुत कम समय के लिए दिखाए जाने के बावजूद उसके अधिक विवरण को ग्रहण किया, जबकि दूसरे लोग इस काम को उतनी कुशलता से नहीं कर पाए। शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिक समय तक वीडियो गेम खेलने वाले लोग संभवत: अधिक स्पष्ट तरीके से बारीकियों को देखने में सक्षम होते हैं, उनकी याददाश्त अधिक तेज होती है और वे निर्णय लेने में अधिक सटीकता तथा तेजी से काम लेते हैं।
Dark Saint Alaick
16-06-2013, 11:04 AM
पहले ही जान जाते हैं कि अब आएगी चेहरे पर मुस्कान
वाशिंगटन। कहा जाता है कि दिल के भाव चेहरे पर आ ही जाते हैं लेकिन दिल के भाव चेहरे पर बयां हो इससे पहले ही सामने वाले को हमारे भाव का पता चल पाता है। ब्रटिेन की राजधानी लंदन स्थित बैगर विश्वविद्यालय के एक दल ने इस दिशा मे एक नया शोध किया है जिसे जर्नल साइकोलाजिकल साइंस पत्रिका मे प्रकाशित किया गया है। शोध के मुताबिक चेहरे पर असली मुस्कान के आने से पहले ही सामने वाले को पता चल जाता है कि अब हम मुस्कुरायेगे। हालांकि जबरन या औपचारिक मुस्कान की स्थिति मे सामने वाला भ्रम में पड जाता है। असली मुस्कान का पता चेहरे पर आने के पहले ही पता चल जाता है। असली मुस्कान मे हमारी आखो के पास की कुछ मांसपेशियो में खिंचाव होता है जिससे उसके बारे मे पहले ही पता चल जाता है। शोध मे पता चला कि जब दो अजनबी एक दूसरे से मिलते है तो दोनो न सिर्फ मुस्कुराते है बल्ेकि उनकी मुस्कान भी एक जैसी ही होती है। इस पर अध्ययन करने के बाद पता चला कि जब दो व्यक्ति बात करते है और सामने वाले को मुस्कान आने वाली होती है तो उससे बात करने वाला मुस्कान देखकर खुद भी मुस्कुरा पडता है। शोधकर्ताओ के मुताबिक लोग औपचारिक रूप से तब मुस्कुराते है जब उन्हे लगता है कि इस बात पर मुस्कुराना सामाजिक बर्ताव है लेकिन असली मुस्कान उनके चेहरे पर तब आती है जब वे आह्लादित होते है।
Dark Saint Alaick
16-06-2013, 11:05 AM
हमउम्र लोगों का दबाव, सामाजिक कारणों से लगती है धूम्रपान की लत : सर्वेक्षण
कोलकाता। कोलकाता में ज्यादातर धूम्रपान करने वालों को 16 से 20 साल की उम्र में इसकी लत लगती है और लत लगने में सामाजिक कारकों जैसे मित्रों और हमउम्र लोगों का दबाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आईसीआईसीआई लोंबार्ड सामान्य बीमा कंपनी द्वारा कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और बेंगलूर में एक महीने तक कराये गये सर्वेक्षण में कहा, ‘सामाजिक कारक जैसे मित्र और हमउम्र लोगों का दबाव (93 प्रतिशत), धूम्रपान की लत लगने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके बाद काम का दबाव आता है।’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘धूम्रपान को स्टाइल के रूप मे देखा जाता है और एक ऐसी चीज जो दबाव से मुक्ति दिलाती है।’ इस सर्वेक्षण का उद्देश्य धूम्रपान की लत के कारणों का पता लगाना और समझना था। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोलकाता में 66 प्रतिशत धूम्रपान करने वाले लोगों ने 16 से 20 साल की उम्र में धूम्रपान शुरू किया । उसने कहा, ‘आधे धूम्रपान करने वाले लोगों ने इसे जारी रखा क्योंकि उन्हें लगता है कि एक सीमा के अंदर धूम्रपान करने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता ।’
Dark Saint Alaick
17-06-2013, 12:54 PM
दुर्गम इलाकों में गुब्बारों के सहारे पहुंचेगा इंटरनेट नेटवर्क
कैलिफोर्निया। अमेरिका की इंटरनेट सेवा प्रदाता कम्पनी गूगल इंक ने दक्षिणी गोलार्द्ध के दुर्गम इलाकों में इंटरनेट की पहुंच आसान बनाने के लिए गुब्बारों की मदद से एक नेटवर्क का संचालन शुरू किया है। गूगल ने बताया कि न्यूजीलैंड के दक्षिणी द्वीपों पर प्रोजेक्ट लून के नाम से शुरू किए गए इस नेटवर्क में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा। यह करीब बीस किलोमीटर की ऊचाई पर हवा की दिशा में उड़ सकेगा जो एक वायुयान की उड़ान से दो गुना अधिक है। हवा के साथ उड़ने में सक्षम ये गुब्बारे एक बड़े क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधा मुहैया करा पाएंगे, जिसकी गति 3जी के बराबर होगी। न्यूजीलैंड में इस माह पायलट परीक्षण के तहत तीस गुब्बारों का छोटे पैमाने पर एक नेटवर्क स्थापित किया गया है। इनके साथ एक इंटरनेट एंटीना भी लगा होगा। हालांकि गूगल ने अभी तक इस नेटवर्क पर होने वाले खर्च का कोई बयौरा नहीं दिया है।
Dark Saint Alaick
17-06-2013, 12:54 PM
महिलाओं में दिल के दौरे पड़ने के संकेत पुरुषों से अलग
रोम। एक शोध से यह बात सामने आई है कि महिलाओं और पुरुषों में दिल के दौरों के संकेत अलग-अलग होते है। शोध के मुताबिक आमतौर पर जब पुरुषों को दिल का दौरा पड़ता है तो दर्द छाती से बांए हाथ की ओर बढ़ता है जबकि महिलाओं के मामले में मितली के बाद दर्द पेट के निचले हिस्से की ओर बढ़ता है। शोध के प्रमुख तथा पडुआ विश्वविद्यालय अस्पताल में आंत चिकित्सा विभाग के निदेशक प्रो. जियोविनेला ने बताया कि महिलाआें में ऐसे संकेत के बाद भी उन्हें आमतौर पर चिकित्सा उपलब्ध नहीं हो पाती। हमारा शोध इस बात को दर्शाता है कि कर्डियोवेंस्कुलर बीमारी, कंैसर, कलेजे की बीमारी, ओस्टीयोपोरोसिस तथा फारमेकोलोजी के दौरान भी स्त्री, पुरुष में अलग संकेत देखने को मिले हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं में सामान्यत: यह बीमारी नहीं दिखने के कारण तथा उन्हें सही उपचार जैसे ईसीजी, एंजीयोग्राफी नहीं मिलने के कारण यह और भी घातक हो जाता है।
Dark Saint Alaick
17-06-2013, 12:55 PM
सोशल नेटवर्किंग से संपर्क पसंद करता है युवा वर्ग
सर्वेक्षण के अनुसार, 75 फीसदी भारतीय युवा फोन के बजाय सोशल नेटवर्किंग को देते हैं प्राथमिकता
नई दिल्ली। इंटरनेट के बढते इस्तेमाल के साथ ही भारतीय युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग की लोकप्रियता बढ़ रही है। टीसीएस के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 75 फीसद भारतीय युवा संपर्क के लिए फोन कॉल्स के बजाय सोशल नेटवर्किंग को प्राथमिकता देते हैं। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के जेन-वाई 2012-13 के सर्वेक्षण में कहा गया है कि आज का युवा सोशल नेटवर्किंग टूल्स के जरिए संपर्क करने पर विश्वास करता है। उचित कीमत वाली बैंडविड्थ तथा स्मार्ट उपकरणों के जरिए वह वर्चुअल कम्युनिटीज का निर्माण करता है। देश की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण में 14 शहरों के 17,500 हाईस्कूल के 17,500 विद्यार्थियों को शामिल किया गया। दावा किया गया है कि यह देश में इस तरह का पहला सर्वेक्षण है। चार में से तीन विद्यार्थियों ने ‘स्कूल के लिए शोध’ को इंटरनेट इस्तेमाल की मुख्य वजह बताया। वहीं 62 प्रतिशत ने कहा है कि वे इसका इस्तेमाल चैटिंग और दोस्तों से संपर्क के लिए करते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 74 प्रतिशत विद्यार्थियों ने कहा कि संपर्क के लिए वे फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, वहीं 54 प्रतिशत ने एसएमएस के इस्तेमाल की बात कही। वहीं सिर्फ 44 प्रतिशत का कहना था कि वे इस कार्य के लिए वॉयस कॉल्स का इस्तेमाल करते हैं। टीसीएस के मुख्य कार्यकारी एन चंद्रशेखरन ने कहा कि शहरी स्कूली छात्रों को उचित कीमत और स्मार्ट उपकरणों के साथ बेहतर आनलाइन पहुुंच उपलब्ध है। आज की यह पीढ़ी शिक्षा के साथ आपसी संपर्क के लिए सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कर रही है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष के अनुसार आज के युवा का अपने दोस्तों आदि से संपर्क का पसंदीदा माध्यम फेसबुक और ट्विटर है। इनमें से 92 प्रतिशत फेसबुक को प्राथमिकता देते हैं।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:32 PM
‘भारतीय सोचते हैं कि रक्तदान से बदल सकता है व्यक्तित्व’
वाशिंगटन। एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारतीय उसी दानदाता से अंग प्रतिरोपण या खून चढ़ाना पसंद करते हैं, जिसका व्यक्तित्व या व्यवहार उनसे मिलता है। मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत और अमेरिका में प्रतिरोपण करवाने वाले कुछ लोग मानते हैं कि उनका व्यक्तित्व या व्यवहार उसी तरह से हो जाएगा, जिस तरह का खून या अंगदान करने वाले व्यक्ति का है। शोध का नेतृत्व करने वाले मेरेडिथ मेयर ने कहा कि लोग सोचते हैं कि व्यवहार या व्यक्तित्व आशिंक रूप से खून या शरीर के अंग में गहराई तक रहता है। यह अध्ययन भारत और अमेरिका के लोगों में कराया गया है।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:49 PM
तिब्बत की कैंसर दवाओं का अध्ययन करेंगे हार्वर्ड के शोधकर्ता
बीजिंग। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तिब्बत के शोधकर्ताओं के साथ कैंसर के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तिब्बत की जड़ी-बूटी वाली दवाओं का अध्ययन करेंगे। यह उपचार पद्धति प्राचीन बौद्ध ग्रंथों पर आधारित है, जो प्राचीन काल से ही भारतीय चिकित्सा पद्धति में प्रचलित है। चीन के पश्चिमोत्तर गांसू प्रांत में तिब्बत मेडिसिन एक्सर्टनल प्रिपरेशन इंजीनियरिंग लैब के शोधकर्ता हार्वर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसरों के साथ मिलकर नई औषधीय तकनीक का इस्तेमाल करेंगे, ताकि तिब्बती दवाओं की (विशेषकर कैंसर के इलाज में) कारगर होने की प्रक्रिया का पता लगाया जा सके। चीन की संवाद समिति शिन्हुआ ने हार्वर्ड के प्रोफेसर डेविड क्रिस्टिआनी के हवाले से कहा कि कई परंपरागत तिब्बती जड़ी-बूटियां कैंसर के लक्षण को खत्म करने में मदद करती हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सकीय रूप से हम जानते हैं कि ये दवाएं मदद करती हैं, लेकिन यह अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि वे वैज्ञानिक रूप से कैसे काम करती हैं।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:50 PM
करियर संवारने में कम समय देती हैं भारतीय महिलाएं
नई दिल्ली। भारत में महिलाएं अपने पुरुष सहकर्मियों के मुकाबले करियर को संवारने में कम समय देती हैं जिस वजह से कई बार उन्हें अपनी पेशेवर जिंदगी में आगे बढ़ने और महत्वपूर्ण अवसरों को भुनाने में नाकामी हाथ लगती है। एक पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है। ‘सेप्रेटेड एंड डाइवोर्स्ड वीमेन इन इंडिया-इकनॉमिक राइट्स एवं एनटाइटलमेंट्स’ नामक इस पुस्तक में अलग रहने वाली महिलाओं के आर्थिक अधिकारों तथा कानून में दायरे में उनके कामकाजी महत्व का उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक की लेखिका कृति सिंह हैं, जो महिलाओं के मुद्दे पर काम करने वाली वकील हैं। कृति अपनी इस पुस्तक में लिखती हैं कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आम तौर पर पत्नी अपने घर को बनाने और संवारने में ज्यादातर समय खर्च करती है। घर पर ज्यादा समय बिताने की वजह से महिला कमाने और पेशेवर दुनिया में स्पर्धा करने की अपनी क्षमता खो देती है। लेखिका का कहना है कि घर के कामों को पूरा करने में महिलाएं अधिकांश मौकों पर अपने करियर को ही दांव पर लगा देती हैं। उनके घर के कामकाज और सेवा सम्बंधी कार्य को कानूनी और सामाजिक दायरे में मान्यता नहीं मिलती तथा कई बार इन सबसे बावजूद उन्हें भेदभाव और विषमता का शिकार होना पड़ता है।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:50 PM
पर्याप्त नींद बचाती है मधुमेह से
लॉस एंजिलिस। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि अगर आप भरपूर नींद लेते हैं तो आप में टाइप-2 मधुमेह होने का जोखिम काफी कम हो जाता है। लॉस एंजिलिस बायोमेडिकल रिसर्च इस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि सप्ताहांत में तीन रात की अच्छी नींद काफी हद तक इंसुलिन की सक्रियता बढ़ा देती है, जिसके न बनने अथवा शरीर पर उसकी प्रतिक्रिया नहीं होने से यह बीमारी होती है। प्रमुख अनुसंधानकर्ता डा. पीटर लिउ ने बताया कि हम सभी जानते हैं कि पर्याप्त नींद जरूरी है, लेकिन अधिक काम की वजह से समय नहीं निकाल पाते। हमारे अध्ययन में पाया गया कि नींद के घंटे बढ़ा देने से शरीर के इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ती है और प्रौढ़ व्यक्तियों में टाइप-2 मधुमेह का जोखिम कम हो जाता है। इंसुलिन किसी व्यक्ति के रक्त में शर्करा के स्तर को नियमित करने के लिए जिम्मेदार है। टाइप-2 मधुमेह के मरीज का शरीर उससे निकलने वाले इंसुलिन का कारगर ढंग से इस्तेमाल नहीं करता अथवा इंसुलिन के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करता। लिउ ने कहा कि अच्छी खबर है कि प्रौढ़ व्यक्ति जो अधिक काम की वजह से पर्याप्त नहीं सो पाते हैं, वे अगर सोने के घंटे बढ़ा दें, तो यह जोखिम कम हो सकता है।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:51 PM
वैज्ञानिकों ने तैयार की सूक्ष्म कीड़ों की थ्री-डी प्रतिकृति
मेलबर्न। आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार सूक्ष्म कीड़ों की थ्री-डी प्रतिकृति बनाई है, जिनका आकार उनके मूल आकार से 50 गुना अधिक बड़ा है। इससे वैज्ञानिकों को इन जीवों पर अध्ययन करने में आसानी होगी, जिन्हें नंगी आंखों से मुश्किल से ही देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने बड़े आकार वाले सूक्ष्म जीवों की रचना के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया। आस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी, सीएसआईआरओ के शोधकर्ताओं की इस परियोजना का उद्देश्य पहली बार सूक्ष्म कीड़ों, विशेषकर जिन्हें नंगी आंखों से मुश्किल से देखा जा सकता है, के निरीक्षण एवं अध्ययन के लिए बड़े पैमाने पर सूचनाएं जुटाकर वैज्ञानिकों की मदद करना है। सीएसआईआरओ (कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च आॅर्गेनाइजेशन) ने कहा कि वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से उन्हें इन कीड़ों की उन विशेषताओं का पता करने में मदद मिलेगी, जिनके बारे में उनके सूक्ष्म आकार की वजह से मुश्किल से पता चल पाता है।
Dark Saint Alaick
20-06-2013, 12:51 PM
वैज्ञानिकों ने बनाया कृत्रिम कान
नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने जैव अभियांत्रिकी की मदद से कृत्रिम कान का विकास किया है और यह विकास उन लोगों के लिए वरदान साबित होगा, जो दुर्घटनाओं में अपने कान खो देते हैं अथवा जिनके कान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने थ्रीडी प्रिंटिंग और इंजेक्टेबल मोल्ड के इस्तेमाल से एक ऐसे जैव अभियांत्रिक कृत्रिम कान का विकास किया है, जो प्राकृतिक कान की तरह ही दिखता और काम करता है। जैव इंजीनियरों और चिकित्सकों के द्वारा बनाए गए इस त्रिम कान ने मिक्रोटिया नामक जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुए हजारों बच्चों के लिए उम्मीद की किरण पैदा की है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में कनरेल बायोमेडिकल इंजीनियर और वेल कनरेल मेडिकल कालेज के चिकित्सकों ने बताया है कि 3 डी प्रिंटिंग और इंजेक्टेबल जेल की मदद से जीवित कोशिकाओं से फैशनेबल कान का किस प्रकार विकास किया गया, जो व्यावहारिक रूप से एक मानव कान के समान है। वैज्ञानिकों के अनुसार तीन महीने की अवधि के दौरान ये लचीले कान कोलेजन को हटाने के लिए कार्टिलेज का विकास करने लगते हैं, जिसका इस्तेमाल उन्हें मोल्ड करने के लिए किया जाता है।
Dark Saint Alaick
24-06-2013, 04:41 AM
कम नींद का सम्बंध है मोटापे से
वाशिंगटन। किशोर उम्र के जो लोग अच्छी नींद लेते हैं, वे कम सोने वालों की तुलना में स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन पसंद करते हैं। अमेरिका के स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी स्कूल आॅफ मेडीसन में प्रीवेन्टिव मेडिसन के एसोसिएट प्रोफेसर लॉरेन हेल के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि नींद और मोटापे का आपसी सम्बंध है। हेल ने कहा किशोर उम्र के जो लोग कम सोते हैं, वे वह भोजन अधिक पंसद करते हैं जो उनके लिए अच्छा नहीं है और जो अच्छा है उसे कम लेते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि किशोरावस्था के दौरान जो लोग सात घंटे से कम सोते हैं, वे हर हफ्ते दो अथवा उससे अधिक बार फास्ट फूड खाते हैं और फल एवं तरकारी पर कम ध्यान देते हैं। अमेरिकन एकाडमी आॅफ पेडियाट्रिक्स की सलाह है कि किशोर वय के लोगों को नौ से दस घंटे की नींद लेनी चाहिए। अध्ययन को एसोसिएटेड प्रोफेशनल स्लीप सोसायटीज की वार्षिक बैठक में पेश किया गया।
Dark Saint Alaick
24-06-2013, 06:22 AM
मेक्सिको में खोजा पुरातन माया शहर
न्यूयॉर्क। पुरातत्वविदों ने दक्षिण-पूर्व मेक्सिको के एक सुदूर जंगल में 54 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए प्राचीन मायाकालीन शहर की खोज की है, जहां पिरामिड और आलीशान भवन के निशान मिले हैं। पश्चिमी युकातन प्रायद्वीप में केपेंची प्रांत में हरे भरे पेड़-पौधों के बीच शहर के अवशेष मिले हैं। लाइवसाइंस की खबर के अनुसार नए मिले स्थल को चाकतून नाम दिया गया है। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि शहर 600 ईसवी से 900 ईसवी तक मायाकालीन सभ्यता का हिस्सा रहा और धीरे-धीरे रहस्यमय तरीके से यह सभ्यता लुप्त हो गई। मेक्सिको के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एंथ्रोपोलॉजी एंड हिस्ट्री के पुरातत्वविद इवान स्प्राज्क ने कहा कि यह सेंट्रल लोलैंड्स के सबसे बड़े स्थलों में से है।
Dark Saint Alaick
24-06-2013, 08:48 AM
मार्गदर्शक बनने बनाने से हिचकती हैं महिलाएं
मुंबई। पुरुष सहकर्मियों के मुकाबले महिलाएं किसी को अपना मार्गदर्शक बनाने या या खुद को मार्गदर्शक या विश्वसनीय सलाहकार की भूमिका में रखने से हिचकिचाती हैं। डेवलपमेंट डायमेन्शंस इंटरनेशनल (डीडीआई) द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है, ‘महिलाओं की सफलता के लिए मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें अपने कार्यस्थल पर सामाजिक पूंजी (दायरा) बनाने में अक्सर मुश्किलें आती हैं। यह स्थिति उन जगहों पर अधिक है जहां महिला कर्मचारियों की संख्या कम होती है।’’ सर्वेक्षण के मुताबिक, कार्यस्थल पर महिलाएं अब भी अपने लिए किसी को मार्गदर्शक या संरक्षक बनाने के मूड में नहीं होती है जबकि वरिष्ठ पदों पर कार्यरत करीब 78 प्रतिशत महिलाओं ने कभी न कभी औपचारिक रूप से परामर्शदाता के तौर पर काम किया है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 63 प्रतिशत महिलाओं ने कभी भी औपचारिक तौर पर किसी को मार्गदर्शक नहीं बनाया।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 03:36 AM
डाक्टरों को भारी पड़ सकता है धूम्रपान करना
नई दिल्ली। आम लोग ही नहीं बल्कि डाक्टर भी धूम्रपान करते हैं और एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है कि 81 फीसदी लोग ऐसे डाक्टर से इलाज नहीं कराना चाहते जो मरीजों के सामने ही धूम्रपान करता हो । हार्ट केयर फाउंडेशन द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि सर्वे में भाग लेने वाले 67 फीसदी लोगों का यह भी मानना है कि डाक्टरों की लिखावट पढने लायक होनी चाहिए तथा अधिकतर मरीज कम्प्यूटरीकृत पर्चे को तरजीह देते हैं । फाउंडेशन के अध्यक्ष डा के के अग्रवाल ने आज सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक किया। सर्वे में दावा किया गया है कि कुल 452 प्रतिभागियों में से 46 फीसदी लोग डाक्टर से समय लेने के लिए उनके सेके्रटरी के बजाय सीधे डाक्टर से बात करना पसंद करते हैं । करीब 78 फीसदी लोगों का मानना है कि चिकित्सा के पेशे का व्यावसायीकरण हो रहा है और इसे आम आदमी की पहुंच में लाया जाना चाहिए। करीब 41 फीसदी प्रतिभागियों का विचार था कि डाक्टरों को कम फीस लेनी चाहिए क्योंकि उनका पेशा सेवा से जुड़ा हुआ है । दिल्ली में यह सर्वेक्षण मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोगों के बीच किया गया और इसमें यह भी पाया गया कि 57 फीसदी लोग किसी डाक्टर के पास जाने से पूर्व उसकी योग्यता आदि की जांच करते हैं। इससे भी आगे 60 फीसदी लोगों का कहना था कि वे अपने डाक्टर के साथ अपने यौन व्यवहार के बारे में बातचीत करने में सहज महसूस नहीं करते । 40 फीसदी मरीज फेसबुक पर अपने डाक्टर के साथ मित्रता नहीं करना चाहते । 37 फीसदी लोगों का यह भी मानना था कि एक डाक्टर को सभ्य तरीके से और करीने से कपड़े पहनना चाहिए। यही नहीं 65 फीसदी लोगों का यह विश्वास है कि ‘सफेद बालों’ वाले वरिष्ठ डाक्टर अपने जूनियर समकक्षों के मुकाबले अधिक बेहतर इलाज कर सकते हैं । इस सर्वेक्षण में मरीजों, समाज सेवकों, कालेज छात्रों , सुबह की सैर पर निकलने वाले लोगों तथा सरकारी कर्मचारियों से बातचीत की गयी। अग्रवाल ने कहा कि यह सर्वे डाक्टर और मरीज के संबंधों के बारे में लोगों की धारणा का अनुमान लगाने के लिए किया गया। उन्होंने कहा, ‘मैंने मरीजों और डाक्टरों के बीच विवाद देखे हैं । मैंने मरीजों की शिकायतों का विश्लेषण करने का प्रयास किया। एक डाक्टर होने के नाते, मैं उनकी उम्मीदें जानना चाहता था। इसीलिए मेरे दिमाग में यह सर्वेक्षण कराने का विचार आया।’
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 03:38 AM
मूल अमेरिकन्स से बेहतर जीवन जीते हैं भारतीय
वाशिंगटन। अमेरिका मे रह रहे एशियाई मूल के लोगो की जिंदगी स्थानीय निवासियों की जिंदगी से बेहतर है। उनकी आय भी अमेरिकी नागरिकों से ज्यादा है। अमेरिका में किये गये एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ। ब्राउन यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार अमेरिका में रह रहे करीब एक करोड़ अस्सी लाख एशियाई सबसे प्रगतिशील अल्पसंख्यक है, जिनकी संख्या 1990 के मुकाबले दोगुनी हो गयी है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपलब्ध कराये गये जनगणना के आंकड़े से स्पष्ट होता है कि अमेरिका में रह रहे चीन, भारत, फिलिपीन्स, जापान, कोरिया और वियतनामी लोगो की स्थिति में कितना बदलाव आया है। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय तथा जापानी नागरिकों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है, जबकि वियतनामियों की आर्थिक स्थिति सबसे कमजोर है।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 04:14 AM
भारतीय कर्मचारियों के लिए मायने रखती हैं सीएसआर गतिविधियां: सर्वेक्षण
नई दिल्ली। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कर्मचारियों के लिए निगमित सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) गतिविधियां बहुत मायने रखती हैं और आधे से अधिक कर्मचारी अपनी कंपनियों के समाज के प्रति व्यवहार को लेकर चिंतित हैं। इपसोस का यह सर्वेक्षण 24 देशों में किया गया है जिसके अनुसार उदीयमान बाजार अर्थव्यवस्थाओं में कर्मचारी अपने नियोक्ताओं या कंपनियों की समाज के प्रति जवाबदेही को लेकर विकसित देशों की तुलना में अधिक चिंतित हैं। इसके अनुसार निगमित जवाबदेही या जिम्मेदारी को लेकर भावनाएं ब्राजील (65 प्रतिशत), मैक्सिको (59 प्रतिशत), अर्जेंटीना (57 प्रतिशत), इंडोनेशिया (55 प्रतिशत) तथा भारत (51 प्रतिशत) सबसे प्रबल हैं। सर्वेक्षण के अनुसार जापान व फ्रांस में मामला उलटा है। वहां 20 प्रतिशत से भी कम लोग इस दिशा में सोचते हैं। स्पेन, बेल्जियम, जर्मनी, दक्षिण कोरिया व चीन में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से नीचे आंका गया है।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 04:14 AM
महिलाये कैलोरी गिनने मे गंवाती है एक साल
न्यूयार्क। फिट रहने की दौड मे महिलाएं अपनी बहुमूल्य जिंदगी का लगभग एक साल कैलोरी और अपने वजन के बारे में चिंता करने मे गंवा देती है। एक शोध के अनुसार महिलाएं अपने दिन के 2। मिनट मतलब सप्ताह के लगभग दो घंटे, साल के ।27 घंटे और अपनी 67 साल की औसत जिंदगी का एक पूरा साल अपनी डाइट के बारे मे सोचने मे बिताती है। फिट रहने की इस दौड मे पुरूष भी ज्यादा पीछे नहीं है। पुरूष अपनी जिंदगी के लगभग 304 दिन कैलोरी काऊंटिंग और वजन के बारे मे सोचते है। दिलचस्प तो यह है कि दुनिया के लगभग 50 प्रतिशत लोग अपने वजन से नाखुश रहते है और इस पर काबू रखने के लिए हर खाने की चीजो की कैलोरी काउंट करते है।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 04:15 AM
सेहत के लिए रोज खाएं गुड
जयपुर। आपको यदि सेहत बनाये रखनी है और मीठा खाने का शौक है तो कैडी, च्युइंगम और चीनी के बजाये रोजाना 20 ग्राम गुड खाये। चरक संहिता और आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने भी लोगो को खाना खाने के बाद रोजाना थोडा सा गुड खाने की सलाह दी है। अंग्रेजो के शासनकाल मे गन्ना उत्पादक काश्तकार खाण्डसारी के बजाय गुड बनाना पसंद करते थे जबकि अंग्रेजो को चीनी की जरुरत होती थी। जब गुड निर्माताओ ने चीनी मिलो को गन्ने की आपूर्ति बंद कर दी तो अंग्रेजो ने गुड बनाने पर ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैर कानूनी भी घोषित कर दिया। प्राचीन आयुर्विज्ञान में गुड को स्वास्य के लिए अमृत जबकि चीनी को सफेद जहर माना गया है। गुड खाने के बाद हमारे शरीर में पाचनक्रिया के लिए जरुरी क्षार पैदा होता है जबकि चीनी अम्ल पैदा करती है जो शरीर के लिए हानिकारक है। आयुर्वेद मेें किये गये शोध से पता चला है कि गुड के मुकाबले चीनी को पचाने मे पांच गुणा ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। यदि गुड को पचाने मे ।00 केलोरी उंर्जा लगती है तो चीनी को पचाने मे 500 केलोरी खर्च होती है। इसी तरह गुड मे कैल्शियम के साथ फास्फोरस भी होता है जो हड्डियो को मजबूत करने मे सहायक माना जाता है। वहीं चीनी हड्डियो के लिए नुकसानदायक होती है क्योकि चीनी इतने अधिक तापमान पर बनाई जाती है कि गन्ने के रस मे मौजूद फास्फोरस भस्म जाता है। फास्फोरस कफ को संतुलित करने मे भी सहायक माना जाता है। आयुर्वेद का मानना है कि गुड में मौजूद क्षार शरीर मौजूद अम्ल .एसिड. को खत्म करता है इसके विपरीत चीनी के सेवन से अम्ल बढ जाता है जिससे वात रोग पैदा होते है। वैद्य सलाह देते है कि निरोग और दीर्घायु के लिए भोजन के बाद नियमित रुप से 20 ग्राम गुड का सेवन किया जाना चाहिए। गुड के तमाम फायदो के बावजूद आयुर्वेद मे कुछ पदाथा6 के साथ इसके सेवन को निषेध माना है जिनमे दूध मे मिला कर पीने की मनाही की गयी है। हालांकि पहले गुड खाये और फिर दूध पिये .आपकी सेहत ठीक रहेगी और कई रोगो से बचाव होगा।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 04:15 AM
अलजाइमर की नयी ‘दवा’ से याददाश्त के चले जाने पर रोक संभव
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों का दावा है कि एक नयी दवा के समान छोटे अणुओं से अलजाइमर रोग में याददाश्त के चले जाने पर रोक लग सकती है। इस संबंध में अभी अनुसंधान जारी है। नार्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय की डा मार्टिन वाटरसन प्रयोगशाला में विकसित अणुओं से याददाश्त गायब होने पर रोक लगायी जा सकती है। इसके साथ ही इससे क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। अध्ययन के प्रमुख लेखक वाटरसन ने कहा कि नयी दवाओं के विकास में यह शुरूआती कदम है और यह संभव है कि किसी दिन यह दवाई अलजाइमर से पीड़ित लोगों को पहले चरण में दी जा सकती है। अलजाइमर में याददाश्त की समस्या प्रकट होने होने से 10..15 दिन पहले ही मस्तिष्क में परिवर्तन होने लगता है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस श्रेणी की दवा उस समय फायदेमंद हो सकती है जब कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की शुरूआत होती है। इन अणु को एमडब्ल्यू 108 नाम दिया गया है।
Dark Saint Alaick
29-06-2013, 07:52 AM
चार में से एक भारतीय सेवानिवृत्ति योजना को प्राथमिता देते हैं
मुंबई। अपने परिवार को सर्वाधिक महत्व देने वाले भारतीय शहरी उपभोक्ताओं में से करीब 24 प्रतिशत सेवानिवृति योजना को प्राथमिकता देते हैं। अमेरिप्राइज इंडिया द्वारा जारी रपट में कहा गया ‘करीब 24 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनकी प्रमुख वित्तीय प्राथमिकता सेवानिवृत्ति योजना है। 2012 में सिर्फ 10 प्रतिशत लोग इस खंड में थे।’ अमेरिप्राइज ने भारत में इस रपट को तैयार करने का जिम्मा बाजार अनुसंधान कंपनी टीएनएस इंडिया को दिया था।
bindujain
29-06-2013, 08:18 AM
अच्छा तथा उपयोगी सूत्र है
Dark Saint Alaick
12-07-2013, 08:44 AM
रुमैटिक फीवर का बढना चिंतनीय
अलीगढ़। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कालेज के हृदय रोग केन्द्र के उपनिदेशक एवं प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर आसिफ हसन ने कहा है कि भारत मे रुमैटिक फीवर आमवातिक ज्वर जिस प्रकार से फैल रहा है वह एक चिंता का विषय है और इस पर काबू पाने के लिए आवश्यक है कि सरकार द्वारा हरेक शहर मे पैनसलीन के इंजेक्शन उपलब्ध कराये जायें। प्रोफेसर आसिफ हसन ने यह बात डाक्टर्स डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होने कहा कि इस रोग की शुरुआत गले मे खराश. बुखार और जोडो मे दर्द से होती है जो आगे चलकर भयंकर रुप धारण कर लेती है। उन्होने कहा कि यह बीमारी मुख्य रुप से बच्चो मे 5 से ।5 वर्ष के बीच होती है और इसके निरंतर बने रहने से हृदय धमनियां खराब हो जाती है जिसके कारण यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। यह फीवर हृदय के अलावा. जोडो. स्किन और मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। प्रो. हसन ने कहा कि यह सोचना गलत है कि इस रोग से ग्रस्त मरीजो की संख्या मे कमी आ रही है बल्कि वास्तविकता यह है कि इससे प्रभावित रोगियो की संख्या मे निरंतर वृद्धि हो रही है। उन्होने कहा कि भारत मे सामाजिक व आर्थिक विकास मे कमी के कारण बडी संख्या मे लोग इसका शिकार हो रहे है यूपी. बिहार. उडीसा तथा अन्य पिछडे राज्यो के लोग विशेष रुप से इस रोग से प्रभावित हो रहे है। उन्होने कहा कि अगर किसी भी बच्चे के जोडो मे दर्द निरंतर हो रहा हो या बार बार गले मे खराश और जोडो मे सूजन की शिकायत हो तो तुरन्त डाक्टर से संपर्क स्थापित करना चाहिए। प्रो. हसन ने कहा कि सरकारी स्तर पर भी इस रोग के निदान के लिए गंभीर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है और इस बात को भी सुनिश्चित बनाने की आवश्यकता है कि देश के हरेक शहर मे पैसलीन के इंजेक्शन उपलब्ध हो।
Dark Saint Alaick
12-07-2013, 08:45 AM
चीन में बना 100 मेगापिक्सेल का कैमरा
बीजिंग। चीन के एक संस्थान ने हवाई मानचित्रण, आपदा निगरानी और बेहतर परिवहन प्रणालियों के उपयोग में आने वाला 100 मेगापिक्सेल का कैमरा बनाया है। चाइना एकेडमी आफ सांइस (सीएएस) ने एक बयान में कहा कि इंस्ट्यूट आफ आप्टिकल एंड इलेक्ट्रिानिक्स ने 100 मेगापिक्सल वाला आईओ-3-कानबान कैमरा विकसित किया है। सीएएस का दावा है कि यह दुनिया का सर्वाधिक पिक्सल वाला कैमरा है। बयान में कहा गया है कि यह कैमरा 10,240 गुणा 10,240 पिक्सल की तस्वीर उतार सकता है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ने सीएएस के बयान के आधार पर लिखा है कि यह कैमरा बहुत छोटा है और इसका आकार केवल 19.3 सेमी है। एजेंसी ने बताया कि इसे शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस से कम और 55 डिग्री सेल्सियस के उच्चतम तापमान पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
Dark Saint Alaick
14-07-2013, 07:51 AM
जंगल की आग के कारण तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर : रिपोर्ट
कोलकाता। जंगलों में लगी आग से पैदा हुआ काला कार्बन हिमालय के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का कारण बन सकता है और जमी हुई नदियों के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। जंगल की आग के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले इन परिणामों के बारे में चेतावनी एक नए अध्ययन में दी गई है। बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में दिवेशा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट कहती है, ‘‘हिमालय की निचली श्रृंखलाओं में मौजूद बहुत से हिमखंडों, जैसे पीर पंजाल और ग्रेटर हिमालय के जमाव वाले क्षेत्र इलाके में काले कार्बन के जमने के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही तापमान और अवक्षेपण (प्रेसीपिटेशन) में बदलाव भी हो सकता है।’’ अपनी जांच के दौरान उन्होंने वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश में स्थित बास्पा बेसिन के जमाव क्षेत्र की ‘परावर्तन क्षमता’ में हुए बदलाव का विश्लेषण किया। यह क्षेत्र जंगलों की भारी आग और उत्तरी भारत में जैविक ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल का शिकार हुआ था। उनकी रिपोर्ट दर्शाती है कि जमाव क्षेत्र के दर्शनीय इलाके की ‘परावर्तन क्षमता’ में गिरावट वर्ष 2009 के अप्रैल से मई के बीच के समय में वर्ष 2000 से 2012 तक के किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में काफी ज्यादा थी। वर्ष 2009 की गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं वर्ष 2001 से 2010 के बीच के किसी भी अन्य साल की तुलना में कहीं ज्यादा थीं। वैज्ञानिक ए वी कुलकर्णी कहते हैं, ‘‘इसकी व्याख्या काले कार्बन के जमाव के जरिए ही की जा सकती है। यह अध्ययन कहता है कि मानवीय या प्राकृतिक कारणों से जमाव क्षेत्र में काले कार्बन के एकत्र होने की वजह से बर्फ की परावर्तन क्षमता में हो रहा बदलाव हिमाचल प्रदेश के बास्पा बेसिन में ग्लेशियरों को प्रभावित कर सकता है।’’ पश्चिमी और केंद्रीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई भारतीय राज्यों में मई और जून में जंगलों में भारी आग लग जाती है। इसके अलावा भारत-गंगा मैदानी इलाकों में भी पेड़ पौधों में भारी आग लग जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे भारी मात्रा में काले कार्बन कण पैदा हो सकते हैं और दक्षिणी हवाओं के कारण ये हिमालय की निचली पर्वत श्रृंखलाओं के जमे हुए हिस्से में पहुंच सकते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा, ‘‘यह मौसमी बर्फ और ग्लेशियरों के जमाव क्षेत्र की परावर्तन क्षमता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि काला कार्बन प्राकृतिक धूल की तुलना में कहीं ज्यादा विकिरण सोख लेता है।’’
Dark Saint Alaick
14-07-2013, 08:12 AM
पैरों की छटपटाहट बन सकती है उच्च रक्तचाप का कारण
नई दिल्ली। मध्यम वय की महिलायें आम तौर पर पैरों की छटपटाहट (रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम) की समस्या से ग्रस्त रहती हैं लेकिन शोंधकर्ताओं का कहना है कि यह समस्या उच्च रक्त चाप का कारण बन सकती है इसलिये इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। महिलाओं पर किये गए एक अध्ययन मे शोधकर्ताओं ने पाया कि रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम से पीडित करीब 26 प्रतिशत महिलाओं में उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। अमरीका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (बोस्टन) और वुमेन्स हॉस्पीटल (बर्मिघम) में किये गये शोध से पता चलता है कि रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम की परिणति उच्च रक्त चाप में हो सकती है और अगर रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम की जल्द पहचान और इलाज हो जाये तो उच्च रक्तचाप रोकने में मदद मिलती है। नींद की बीमारियों के विशेषज्ञ तथा यहां स्थित दिल्ली साइकियेंट्री सेंटर (डीपीसी) के निदेशक डा. सुनील मित्तल ने महिलाओ मे होने वाली इस आम समस्या के बारे मे बताया कि पैरों में छटपटाहट की समस्या आम तौर पर 40-50 साल की महिलाओं में होती है। रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कारण रात में अच्छी नींद नहीं आती और इस कारण दिन में सुस्ती और उबासी का अहसास होता रहता है। इस समस्या से आबादी मे करीब 15 प्रतिशत वयस्क लोग पीडित हैं जिनमे सबसे अधिक महिलाये है। रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कुछ मामलों में इलाज इतना सामान्य होता है कि सिर् आयरन सप्लिमेंट लेने से ही यह समस्या दूर हो जाती है। इसलिए रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षण र्पंकट होते ही अपने चिकित्सक से बात करनी चाहिए।
Dark Saint Alaick
14-07-2013, 08:14 AM
रमजान में बिना डाक्टर की सलाह के मधुमेह और दिल के मरीज न रखें रोजा
कानपुर। पवित्र माह रमजान में इस बार रोजे करीब 15 घंटे लंबे होंगे। रोजे में दिल और मधुमेह रोग के शिकार मरीज खास सतर्क रहें और बिना अपने डाक्टर की सलाह के रोजा न रखें। लखनउ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने बताया कि रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह पीडित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिये। उन्होंने बताया कि तमाम शोध में देखा गया है कि हल्के दिल के दौरे के शिकार हो चुके लोगों को रमजान में रोजा रखने के दौरान भी आम दिनों की तरह ही जोखिम रहता है। बस उन्हें डाक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य बिठा लेना चाहिये और खाने पीने में सावधानी बरतनी चाहिये। प्रो. कुमार कहते है कि जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड़ चुका है और बाईपास सर्जरी हो चुकी है। उन्हें रोजे से परहेज रखना चाहिये क्योंकि ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पड़ती है। साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरूरी है। लेकिन फिर भी अगर ऐसे रोगी रोजा रखना चाहते है तो वह बिना अपने डाक्टर की सलाह के कतई रोजा न रखें। वह कहते है कि जो जन्म से मधुमेह :टाइप वन: के रोगी हैं और इंसुलिन लेते हैं उन्हें रोजा रखने से बचना चाहिये क्योंकि अगर वह इंसुलिन नहीं लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर बढ जायेगा। कुमार ने कहा कि इसी तरह जिन लोगों को मधुमेह टाइप टू है वे रोजा रखते वक्त काफी सावधानी बरते। उन्हें अपने खाने पीने का तरीका बदलना होगा। ऐसे लोगों को सुबह सहरी में पर्याप्त खाना खा लेना चाहिये और उसके साथ अपनी दवायें भी ले लेनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिये कि ऐसे रोगी जो भी खाना खायें वह ज्यादा तला भुना न हो और अगर मांसाहार लेते हैं तो वह बहुत कम मात्रा में लेना चाहिये तथा काफी कम तेल मसाले में बना हुआ होना चाहिये। वह कहते हैं कि इफ्तार के समय भी ऐसे रोगियों को एकदम से पूरा खाना नहीं खा लेना चाहिये बल्कि थोड़े फल और फलों का जूस लेना चाहिये और कुछ हल्की फुल्की खानें की चीजे लेकर तुरंत दवा ले लेनी चाहिये। लखनउ पीजीआई के मधुमेह रोग विशेषज्ञ डा. सुशील गुप्ता के अनुसार, रमजान के दौरान दिल की बीमारी और मधुमेह से पीड़ित रोगियों को अपने खानपान पर थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिये। रोजा रखने वाले मधुमेह रोगियों को चाहिये कि रोजा खोलने के एक घंटे बाद पूरा खाना खायें लेकिन वह ज्यादा तला भुना न हो, जहां तक हो सके वे सादा खाना ही खायें, जिसमें रोटी सब्जी और सलाद शामिल हो। उन्होंने कहा कि शाम को पकवान खाते ही रोगी का कोलेस्ट्रोल और रक्तचाप के साथ साथ खून में शर्करा का स्तर बढने की आशंका बनी रहती है जो उनके दिल के लिये नुकसानदायक है। वह कहते है कि अगर दिन में रोजा रखने के दौरान कमजोरी महसूस हो तो तुरंत लेटकर आराम कर लेना चाहिये। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को दिल के रोग के साथ मधुमेह भी है उन्हें इस तरह के तेल और रोगन वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिये।
Dark Saint Alaick
14-07-2013, 08:15 AM
धूम्रपान पर रोक और भारी कर से बच सकती हैं 90 लाख भारतीयों की जान : अध्ययन
वाशिंगटन। भारत अगर धूम्रपान पर रोक के उपायों के साथ ही तंबाकू पर अधिक कर लगाए तो दिल की बीमारी से अगले दशक में संभावित 90 लाख से अधिक मौतों को रोक सकता है। एक नए अध्ययन में ऐसा कहा गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि धूम्रपान मुक्ति कानूनों और तंबाकू पर कर बढाकर भविष्य में हृदय रोग से होने वाली मौतों पर रोक लगायी जा सकती है। पीएलओएस मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ‘‘भारत में तंबाकू मुक्त कानूनों को व्यवस्थित रूप से लागू नहीं किया गया है। 2009 और 2010 में हर तीन में से एक वयस्क कार्यस्थल पर धूम्रपान की चपेट में था। चंडीगढ में इनकी संख्या सबसे कम 15.4 प्रतिशत और जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा 67.9 प्रतिशत बतायी गयी है।’’ शोध में कहा गया, ‘‘तंबाकू मुक्ति कार्यक्रमों को सरकार की तरफ से बहुत कम वित्तीय सहायता मिली और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशेवर सही तरह से मुक्ति संबंधी सलाह नहीं देते। देश में तंबाकू पर बहुत कम कर लगा हुआ है। सिगरेट की कीमतों पर करीब 38 प्रतिशत और बीड़ी की कीमतों पर करीब 9 प्रतिशत कर लगे हैं जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सिफारिश किए गए 70 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर से बहुत कम है।’’ संजय बसु और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के उनके सहयोगियों द्वारा किए गए इस अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि भारत और संभावित रूप से दूसरे कम एवं मध्य आय वाले देशों में अगले दशक में दिल की बीमारी से होने वाली मौतों को कम करने के लिए विशेष तंबाकू नियंत्रण रणनीतियां सबसे अधिक प्रभावशाली होंगी।
Dark Saint Alaick
18-07-2013, 07:00 AM
तीन सौ अरब टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
लंदन। एक उपग्रह से पता चला है कि पिछले एक दशक में अंटाकर्टिक और ग्रीनलैंड ग्लेशियर की बर्फ करीब 300 अरब टन प्रति वर्र्ष की दर से पिघल रही है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रीनलैंड एवं अंटाकर्टिक की विशाल बर्फ की चादरों में बदलाव की वजह से पृथ्वी के गुरूत्व में होने वाले परिवर्तन का पता लगाने वाले एक उपग्रह ने इस गलन का पता लगाया। इससे दुनियाभर में समुद्र के स्तरों पर नाटकीय प्रभाव पड़ सकता है। अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे उपग्रह ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) ने 2002 के बाद से बर्फ के इतनी तेजी से पिघलने के बारे में पता लगाया। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि इन जानकारियों से आने वाले दशक में कितनी बर्फ पिघलेगी और समुद्र स्तरों में कितनी तेजी से बढ़ोतरी होगी, इसका सही आकलन करना मुश्किल है, क्योंकि यह एक अल्पकालीन अध्ययन है। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजी सेंटर से जुड़े बर्ट वोउटर्स ने कहा कि इस अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि बर्फ की चादरें बहुत अधिक मात्रा में बर्फ खो रही हैं। इसकी दर 300 अरब टन प्रतिवर्ष है। ग्लेशियर के पिघलने की दर बेहद तेज हो रही है। नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए इस शोध के मुख्य अध्ययनकर्ता वोउटर्स ने कहा कि ग्रेस मिशन के शुरू होने के बाद के पहले कुछ साल की तुलना में हाल के सालों में बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र स्तर में होने वाली वृद्धि पर लगभग दोगुना असर पड़ रहा है।
rajnish manga
18-07-2013, 11:18 AM
तीन सौ अरब टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
लंदन। एक उपग्रह से पता चला है कि पिछले एक दशक में अंटाकर्टिक और ग्रीनलैंड ग्लेशियर की बर्फ करीब 300 अरब टन प्रति वर्र्ष की दर से पिघल रही है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रीनलैंड एवं अंटाकर्टिक की विशाल बर्फ की चादरों में बदलाव की वजह से पृथ्वी के गुरूत्व में होने वाले परिवर्तन का पता लगाने वाले एक उपग्रह ने इस गलन का पता लगाया। इससे दुनियाभर में समुद्र के स्तरों पर नाटकीय प्रभाव पड़ सकता है। अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे उपग्रह ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) ने 2002 के बाद से बर्फ के इतनी तेजी से पिघलने के बारे में पता लगाया। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि इन जानकारियों से आने वाले दशक में कितनी बर्फ पिघलेगी और समुद्र स्तरों में कितनी तेजी से बढ़ोतरी होगी, इसका सही आकलन करना मुश्किल है, क्योंकि यह एक अल्पकालीन अध्ययन है। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजी सेंटर से जुड़े बर्ट वोउटर्स ने कहा कि इस अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि बर्फ की चादरें बहुत अधिक मात्रा में बर्फ खो रही हैं। इसकी दर 300 अरब टन प्रतिवर्ष है। ग्लेशियर के पिघलने की दर बेहद तेज हो रही है। नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए इस शोध के मुख्य अध्ययनकर्ता वोउटर्स ने कहा कि ग्रेस मिशन के शुरू होने के बाद के पहले कुछ साल की तुलना में हाल के सालों में बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र स्तर में होने वाली वृद्धि पर लगभग दोगुना असर पड़ रहा है।
ग्लेशियर पिघल रहे हैं, यह तो पुरानी जानकारी है. लेकिन यह इतनी तेज गति से पिघल रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में इनके पिघलने की दर 300 अरब टन प्रति वर्ष है. विश्व के सभी देशों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि पिघलने की इस दर को गंभीरता से लें और इसे सीमित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठायें. दुनिया भर के अन्य स्थानों में फैले ग्लेशियर भी आज पहले की अपेक्षा चिंताजनक रूप से पिघल रहे हैं. इससे वैश्विक तापमान और महासागरीय जल-स्तर में खतरनाक बदलाव से मानव जीवन भी अछूता नहीं रह सकता.
Dark Saint Alaick
20-07-2013, 12:30 PM
आसमां में सितारे भिड़े तो धरती पर आया सोना ?
शोधकर्ताओं का मानना है कि कीमती धातु सोना धरती पर दुर्लभ है क्योंकि यह पूरे ब्रह्मांड में ही दुर्लभ है
लॉस एंजिलिस। एक नए अध्ययन की मानें तो पृथ्वी पर जितना सोना है वह बहुत पहले सघन मृत सितारों के आपसी कॉस्मिक टकरावों से आया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि कीमती धातु सोना धरती पर दुर्लभ है क्योंकि यह पूरे ब्रह्मांड में ही दुर्लभ है। कार्बन या लौह जैसे तत्वों की तरह इसका निर्माण किसी सितारे के भीतर संभव नहीं है। इसका निर्माण किसी प्रलयकारी भूकंप जैसी घटना में होना चाहिए। ऐसी ही एक घटना पिछले माह हुई थी जिसे लघु गामा किरण विस्फोट (जीआरबी) के नाम से पहचाना जाता है। जीआरबी बहुत अधिक उर्जा वाली गामा किरणों के अत्यधिक उर्जापूर्ण विस्फोट से निकली एक तेज चमक है। जीआरबी के अवलोकन से प्रमाण मिलता है कि यह दो न्यूट्रॉन सितारों के टकराव के कारण हुआ। न्यूट्रॉन सितारे पहले विस्फोटित हो चुके सितारों का मृत भाग है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जीआरबी के स्थल पर कई दिनों तक रहने वाली चमक सोने जैसी भारी धातुओं की उत्पत्ति की बड़ी संभावना को दर्शाती है। हावर्ड स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजीक्स के प्रमुख लेखक एडो बर्जर ने कहा कि हमारा आकलन है कि दो न्यूट्रॉन सितारों के मिलने से निर्मित होकर निकलने वाले सोने की मात्रा दस चंद्र्रमाओं के द्र्रव्यमान जितनी बड़ी भी हो सकती है। आकलन के अनुसार जीआरबी में निकले पदार्थ का द्रव्यमान एक सौर द्र्रव्यमान के सौवें हिस्से के बराबर था। इस पदार्थ में कुछ मात्रा सोने की भी थी। किसी एकल लघु गामा किरण विस्फोट में निर्मित सोने की मात्रा और ब्रह्मांड की कुल आयु में हुए ऐसे ही विस्फोटों की संख्या को आपस में मिलाते हुए कहा जा सकता है कि ब्रह्मांड में मौजूद सारा सोना गामा किरणों के विस्फोट से आया होगा।
Dark Saint Alaick
20-07-2013, 12:35 PM
सींग वाले डायनोसोर का पता लगा
लॉस एंजिलिस। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बैल जैसे सींग वाले एक नए किस्म के डायनोसोर का पता लगाया है जो अपनी इस खूबी का इस्तेमाल अपने शत्रुओं को दूर भगाने तथा मादा डायनोसोर को आकर्षित करने मे करता होगा। जीवाश्मविद स्काट सैपसन ने बताया कि नेसुटोसेराटाप्स प्रजाति का यह डायनासोर 7.6 करोड वर्ष पहले पश्चिमोत्तर अमेरिका के उस इलाके में रहता होगा जो एक प्राचीन समुद्र की वजह से अमेरिका की मुख्यभूमि से अलग थलग रहा होगा। इस डायनोसोर के बारे में आलेख रायल सोसाइटी के एक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। प्रोफेसर सैपसन ने बताया कि यह डायनोसोर अब तक मिले सभी सींग वाले डायनोसोरो में हटकर है और इसके सींग बेहद विलक्षण है। इस डायनोसोर के सींग बैल के जैसे हैं जो इसके माथे से शुरु होकर इसकी नाक तक जाते हैं और मुड जाते हैं। सैपसन के अनुसार इन सींगो का विकास मादा डायनोसोर को आकर्षित करने,शत्रुआें को भयभीत कर भगा देने अथवा दिमाग को ठंडा रखने के लिए हुआ होगा। ठंडे खून वाला यह पशु अपने चोचनुमा मुख का इस्तेमाल आसपास मौजूद वनस्पत्तियां खाने में करता होगा। इसके दांतो की संरचना शार्क मछली की तरह थी। इस नयी किस्म के डायनोसोर के पाये जाने से पता चलता है कि पश्चिमोत्तर अमेरिका के दक्षिणी छोर पर प्राचीनकाल मे अलग ही किस्म के डायनोसोर वास करते थे।
Dark Saint Alaick
21-07-2013, 12:19 AM
दफ्तर में प्रबंधन को समझ नहीं पाते शीर्ष बिजनेस स्कूलों के स्नातक
नई दिल्ली। देश के शीर्ष बिजनेस स्कूलों के एमबीए स्नातक वास्तव में कार्यस्थल पर प्रबंधन की व्यावहारिक समझ नहीं रखते हैं। रोजगार क्षमता समाधान प्रदाता एस्पाइरिंग माइंड्स की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। ‘प्रैक्टिकल इंटेलिजेंस इन टॉप बी-स्कूल इन इंडिया’ विषय की रिपोर्ट में देश के शीर्ष बिजनेस स्कूलों के छात्रों पर यह अध्ययन किया गया है। इसमें कहा गया है कि व्यावहारिक बुद्धिमता तथा स्थिति से निपटने की क्षमता के मामले में प्रबंधन स्नातक तथा उद्योग का अनुभव रखने वाले लोगों के अंकों में काफी अंतर पाया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन एमबीए स्नातकों तथा उद्योग का 3 से 5 साल का अनुभव रखने वाले लोगों के बीच व्यवहारिक समझ के मामले में काफी अंतर पाया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के ये निष्कर्ष इस दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं कि देश की प्रमुख कंपनियां इन बिजनेस स्कूलों के छात्रों की ही नियुक्तियां करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजनेस स्कूलों को एमबीए पाठ्यक्रम से उपर उठकर छात्रों की व्यावहारिक बुद्धिमता को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एस्पाइरिंग माइंड्स के सीटीओ और सीओओ वरण अग्रवाल ने कहा, ‘हमारे देश के शीर्ष बिजनेस स्कूल देश की प्रमुख कंपनियों को प्रतिभा उपलब्ध कराते हैं। उद्योग इन प्रतिभाओं के आकलन के लिए कई तरीके अपनाता है।’
Dark Saint Alaick
21-07-2013, 03:56 AM
भारतीय हिमालयी क्षेत्र के कई हिस्से भूकंप के प्रति संवेदनशील
हैदराबाद। शहर के नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट (एनजीआरआई) के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय हिमालीय क्षेत्र के कई भाग भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं और वहां भूकंप आने का खतरा है। एनजीआरआई के वैज्ञानिक दल का अध्ययन करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक (सीस्मिक टोमोग्राफी) श्याम राय ने बताया ‘अध्ययन के लिए उत्तराखंड के कुमाउं-गढवाल क्षेत्र में सिस्मिक इमैजिंग के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है।’ सिस्मिक इमैजिंग मानव शरीर की इमैजिंग की तरह होती है। अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से यह अध्ययन अप्रैल 2005 से जून 2008 के बीच किया गया। अमेरिकी सरकार को इस अध्ययन की जरूरत थी और इसकी शुरूआती रिपोर्ट वर्ष 2010 में सौंपी गई थी। बहरहाल, सिस्मिक इमैजिंग और अध्ययन के अन्य पहलुओं का विस्तृत ब्यौरा इसके बाद ही मिला। यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तराखंड में पिछले माह हुई भीषण बारिश का संबंध अध्ययन के नतीजों से है, राय ने कहा ‘नहीं।’ बहरहाल उन्होंने कहा कि यह सब मिलीजुली प्रणााली है। उन्होंने कहा ‘उत्तराखंड को इसलिए चुना गया क्योंकि कुछ आंकड़े उपलब्ध थे जिनसे पता चलता है कि इस क्षेत्र में स्ट्रेन बिल्ड अप बहुत ज्यादा है। इसीलिए यहां भूकंप आने की आशंका भी अत्यधिक है। वह जानना चाहते थे कि भूकंप कहां आ रहे हैं। कुमाउं में वर्ष 1803 में तीव्र भूकंप आया था।’ एनजीआरआई वैज्ञानिकों के दल की अगुवाई कर रहे मुख्य वैज्ञाानिक (भूंकपीय टोमोग्राफी) श्याम राय ने उस दिन के ब्रिटिश गजट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1803 में आए भूकंप के झटके लखनउ तक महसूस किए गए थे। राय ने कहा, ‘‘उससे बड़ा नहीं तो उसी तीव्रता का भूकंप भी आज अगर आता है, तो नए निर्माण, बांधों और इतनी बड़ी आबादी के कारण इसके परिणाम कही अधिक गंभीर हो सकते हैं। इसी संदर्भ मेें सरकार ने यह फैसला किया कि हमें उचित निगरानी करनी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से लेकर अरणाचल प्रदेश तक भारतीय हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं। भूवैज्ञानिकों ने पाया कि बद्रीनाथ, केदारनाथ से लेकर उत्तर पश्चिम हिमालय की ओर जा रही लकीर के करीब ही 90 फीसद से अधिक भूकंप आए हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अंतर्गत आने वाला एनजीआरआई देश का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास संगठन है। राय ने बताया, ‘‘ऐसा हमेशा से कहा जाता है कि भारत एशिया से नीचे खिसक रहा है और इसी वजह से सभी भूकंप आ रहे हैं... इसलिए, यह कुछ कोणों से नीचे जा रहा होगा। अगर यह कोण निर्बाध है, तो ऐसे में किसी उर्जा एकाग्रता की संभावना बेहद कम हो जाती है। लेकिन यह कोण बढ जाता है, तो उर्जा एकाग्रता की आंशका बढ जाती है, जहां यह मुड़ने लगता है।’’ राय ने कहा, ‘‘शुरआत में ऐसा कहा जाता था कि भारत 4-5 डिग्री के कोण से नीचे जा रहा है, जो निर्बाधा था। हालांकि, जब हमने इसका अध्ययन किया, तो हमने पाया कि यह सही नहीं है।’’ एनजीआरआई दल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि यहां 16 डिग्री के तीव्र कोण पर भूकंपीय गतिविधियां चल रही थीं। उन्होंने कहा कि चमोली के इर्द गिर्द यह हो रहा है। पिछले एक दो वर्ष में उत्तरकाशी और चमोली में भूकंप के कई झटके आए हैं और इनमें से ज्यादातर वहीं आए हैं, जहां यह मुड़ रहा है। प्रमुख भूवैज्ञानिक ने कहा, ‘‘इसी वजह से हमने यह बयान जारी किया था कि यह मुड़ रहा है और काफी तेज कोण से मुड़ रहा है।’’ उन्होंने कहा कि यहां की भूगर्भीय गतिविधियां इस क्षेत्र को अतिसंवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र बना देती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उर्जा एकाग्रता की आशंका बेहद बढ गई है। उर्जा एकाग्रता बदस्तूर जारी है और यहां कोई बड़ा भूकंप भी नहीं आ रहा। इसका अर्थ यह है कि उर्जा इस जगह पर लगातार संग्रहित हो रही है। लेकिन यह अनंत काल तक चलता नहीं रहेगा। एक दिन इस उर्जा को मुक्त होना और जब यह मुक्त होगी तब यहां आठ से अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप या सात से अधिक तीव्रता वाले 20-30 भूकंप आ सकते है।’’ उन्होंने कहा कि चमोली या कुमाउं क्षेत्र में अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तो इसका प्रभाव दिल्ली पर भी पड़ने की आशंका है, क्योंकि यह उसी रेखा पर पड़ता है। राय ने कहा कि इसकी कोई समय सीमा निर्धारित करना असंभव है। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, भूकंप चक्र के सामान्य पैटर्न के आधार पर ऐसा अनुमान है कि प्रत्येक 180 वर्ष बाद 7.5 से अधिक तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका रहती है। इस क्षेत्र में इस तरह का बड़ा भूकंप पिछली बार वर्ष 1803 में आया था।’’
Dark Saint Alaick
25-07-2013, 02:10 PM
टमाटर और सेब के छिलके से दूर होगा पानी का प्रदूषण
सिंगापुर। भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने पानी का प्रदूषण दूर करने वाली दुनिया की पहले ऐसे तकनीक का विकास किया है जो प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को दूर करने के लिए टमाटर और सेब के छिलकों का उपयोग करेगा । नेशनल यूनिवसिर्टी आफ सिंगापुर (एनयूएस) में पीएचडी के छात्र रामकृष्ण मल्लमपति ने कम मूल्य पर स्वच्छ जल उपलब्ध कराने की कोशिश के तहत आसपास मौजूद वस्तुओं का उपयोग पानी को शुद्ध करने के लिए किया । एनयूएस के फैकल्टी आफ साइंस के रसायन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सुरेश वालियावीत्तिल की देखरेख में यह प्रयोग किया गया है । शोध दल ने टमाटर के छिलकों का प्रयोग कर पानी में मिले हुए धातु कण सहित अन्य आॅर्गेनिक प्रदूषकों को भी निकालने में सफलता पायी । इन छिलकों की मदद से पानी में पीएच की स्थिति में भी सुधार हुआ है । इसके अलावा वह कीटनाशकों आदि को भी पानी से अलग कर देता है । इस शोध के परिणाम रॉय सोसायटी आॅफ केमिस्ट्री के जर्नल एरएससी एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं ।
Dark Saint Alaick
25-07-2013, 02:46 PM
मोबाइल फोन का जासूसी का निशाना बनना आसान
1970 के दशक की पुरानी तकनीक हो रही है अब भी इस्तेमाल
ह्यूस्टन। दुनिया में लाखों-करोड़ों मोबाइल फोन जासूसी का आसानी से निशाना बन सकते हैं, क्योंकि 1970 के दशक की तकनीक के जरिए इनका इस्तेमाल होता है। एक नए शोध में यह दावा किया गया है। अमेरिका में होने जा रहे ‘ब्लैक हैट’ सुरक्षा सम्मेलन में इस शोध को प्रस्तुत किया जाएगा। इसमें कहा गया गया है कि पुरानी क्रिप्टोग्राफी तकनीक के इस्तेमाल के कारण बड़ी संख्या में मोबाइल फोन की सुरक्षा को खतरा है। क्रिप्टोग्राफी के जरिए मोबाइल नेटवर्क पर बातचीत संभव होती है। ‘सिक्योरिटी रिसर्च लैब्स’ के साथ जुड़े विशेषज्ञ क्रिस्टोग्राफर कर्सटन नोल ने पाया कि किस तरह से मोबाइल फोन के स्थान, एसएमएस तक पहुंच तथा व्यक्ति के वॉयसमेल नंबर में बदलाव संभव है। नोल ‘रूटिंग सिम कार्ड’ नाम से एक प्रस्तुति 31 जुलाई को लास वेगास में आयोजित ब्लैक हैट सुरक्षा सम्मेलन में देंगे। दुनियाभर में इस वक्त सात अरब से अधिक सिम कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है। बातचीत के समय सिम कार्ड एनक्रिप्सन का इस्तेमाल करते हैं। नोल के शोध में पाया गया है कि सिम एनक्रिप्सन मानक 1970 के दशक हैं जिन्हें डाटा एनक्रिप्सन स्टैंडर्ड (डीईएस) कहा जाता है। शोध का संक्षिप्त रूप उनकी कंपनी के ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है। डीईएस को एनक्रिप्सन का सबसे कमजोर रूप माना जाता रहा है और कई मोबाइल आपरेटर अब उन्नत एनक्रिप्सन का इस्तेमाल कर रहे हैं। डीईसी के इस्तेमाल होने वाले मोबाइल फोन को भेदना आसान है। ब्लैक हैट सुरक्षा सम्मेलन 2013 का मकसद भविष्य में आईटी क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर गहन मंथन करना है। इसमें दुनिया भर के जानकार लोग शामिल होंगे।
Dark Saint Alaick
25-07-2013, 02:48 PM
मलेरिया का मुकाबला करेगी नई दवा
मेलबर्न। आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं का कहना है कि एक ऐसी दवा विकसित की गई है जो विटामिन बी 1 का इस्तेमाल करके मलेरिया को रोकने में सफल रहेगी। आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिर्टी के औषधि विशेषज्ञ केविन सालिबा और उनके दल के नए शोध का विवरण ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। मानवों की तरह मलेरिया परजीवियों को बढ़ने और प्रसार के लिए विटामिन की जरूरत होती है। इसमें विटामिन बी 1 (थियामिन) की प्रमुख भूमिका होती है। सालिबा और उनके साथियों ने विटामिन बी 1 के उपापचय के रास्तों को रोकने की दिशा में काम किया। उन्होंने कहा कि हम उन रास्तों को रोक सकते हैं जिनसे परजीवी विटामिन लेते हैं और उपापचय होता है। मलेरिया विरोधी प्रयासों के रास्ते की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि मलेरिया परजीवी की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता रहता है। सालिबा ने कहा कि हमने मलेरिया के खिलाफ जितनी दवाओं का इस्तेमाल किया, उनमें से अधिकांश का मलेरिया परजीवी पर असर नहीं हुआ। अब एक नई दवा का सामने आना महत्वपूर्ण है, जो ऊर्जा उपापचय में एंजाइमों के बढ़ने को नियंत्रित करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की लगभग आबादी (3.3 अरब) के सामने मलेरिया का खतरा मंडरा रहा है।
Dark Saint Alaick
26-07-2013, 02:01 AM
त्वचा की जांच की 3 डी तकनीक अब भारत में
नई दिल्ली। त्वचा रोगों का पता लगाने वाली त्रिआयामी स्किन एसेसमेंट तकनीक अब भारत में भी उपलब्ध हो गई है। इस तकनीक की मदद से त्वचा रोगों का इलाज समय से पहले ही सकता है। भारत में इस तकनीक की शुरुआत करने वाले मुंबई के पॉजिटिव हेल्थ के प्रबंध निदेशक डा. अक्षय बत्रा ने बताया कि इस तकनीक की मदद से न केवल त्वचा रोगों की समयपूर्व पर सटीक पहचान हो जाती है, बल्कि त्वचा की बनावट एवं त्वचा को सूर्य से होने वाली क्षति का भी विशलेषण हो सकता है। इसके अलावा यह तकनीक त्वचा में मौजूद मेलानिन एवं हीमोग्लोबिन की सटीक सांद्रता का पता लगाने में भी सहायता करती है। इस तकनीक का एक और अत्यंत महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इससे पूर्वानुमानित विश्लेषण करना संभव हो जाता है। 3 डी इमेजिंग डाइग्नोसिस की मदद से त्वचा में आने वाले उन बदलावों को भी देखना संभव है, जिन्हें आंखों से देखना तीन माह बाद ही संभव हो पाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग दस प्रतिशत लोग त्वचा से सम्बंधित बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें सोरियासिस सफेद धब्बे, डर्मेटाइटिस एक्जीमा, कील-मुंहासे तथा हाइपरशपिग्मेंटशन शमिल हैं। इन अनेक रोगों के साथ सामाजिक लज्जा भी जुड़ी हुई है और रोगी अक्सर इन स्थितियों के कारण मनोवैज्ञानिक समस्या का भी सामना करते हैं।
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