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View Full Version : खून अपना तुम यूँ जला कर बैठो


dipu
15-02-2012, 06:42 PM
खून अपना तुम यूँ जला कर बैठो,
खतरा-इ लहू को आंसू से बहा कर बैठो,
दोस्तों से जो मिले हिस्सा-इ-ग़म-ओ-नफरत,
तो लाजिम है फिर उससे संभल कर बैठो,
कुछ तो सामान ग़म-इ-दुनिया का भी हो,
जो अपनों से मिले वो गले लगा कर बैठो,
ख़ुरबत-इ सनम अगर हो तेरा गुनाह जैसा,
तो ज़िन्दगी में एक आखरी गुनाह कर बैठो,
सरे बाज़ार गुनाहों से पर्दा जो फाश करदे,
तो अपनी ज़िन्दगी से तुम साफ़ मुकर कर बैठो

sombirnaamdev
18-02-2012, 11:14 PM
खून अपना तुम यूँ जला कर बैठो,
खतरा-इ लहू को आंसू से बहा कर बैठो,
दोस्तों से जो मिले हिस्सा-इ-ग़म-ओ-नफरत,
तो लाजिम है फिर उससे संभल कर बैठो,
कुछ तो सामान ग़म-इ-दुनिया का भी हो,
जो अपनों से मिले वो गले लगा कर बैठो,
ख़ुरबत-इ सनम अगर हो तेरा गुनाह जैसा,
तो ज़िन्दगी में एक आखरी गुनाह कर बैठो,
सरे बाज़ार गुनाहों से पर्दा जो फाश करदे,
तो अपनी ज़िन्दगी से तुम साफ़ मुकर कर बैठो
very very very nice from sombir haryanvi

rafik
28-04-2014, 03:56 PM
ये गजल इतनी अच्छी हे की इसका जवाब नहीं