PDA

View Full Version : मन का झरोखा


abhisays
02-03-2012, 07:53 PM
प्यारे मित्रों नमस्कार,

इस मंच पर आप सब अपने ब्लॉग लिख सकते हैं. जैसे आप सूत्र बनाते हैं वैसे ही नए ब्लॉग बनाए. कोई भी समस्या होने पर आप किसी भी नियामक से संपर्क कर सकते हैं. यहाँ आप अपनी राजनीतिक और सामजिक टिप्पणियों, अपने विचारों, मनोभावों या जो कोई भी चीजें आपको रुचिकर लगती हैं उन्हे आप यहाँ पोस्ट कर सकते हैं. ब्लॉगिंग का मतलब अपने विचारों को वेब पर प्रस्तुत करने से कुछ अधिक है. यह ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ जुड़ने और उनकी सुनने के बारे में है, जो आपके कार्य को पढ़ता है और उसकी प्रतिक्रिया देने का प्रयास करता है.

मैंने भी अपना ब्लॉग शुरू किया है, नाम है.. मन का झरोखा

तो मित्रो देर किस बात की है, आइये शुरू करते हैं ब्लॉगिंग.


आपका,
अभिषेक

abhisays
02-03-2012, 08:10 PM
क्या एकता के लिए एक जैसा होना जरुरी है?

http://www.tillhecomes.org/wp-content/uploads/2011/05/unity-pic.jpg

abhisays
02-03-2012, 08:27 PM
कुछ लोग कहते है की मुंबई में कलकत्ता से बहुत ही ज्यादा क्रिकेट खिलाड़ी हुए हैं. बात तो सही है, किसी ज़माने में आधी भारतीय टीम मुंबई से होती थी. अभी भी कई खिलाड़ी है मुंबई से हैं. इसके पीछे लोग कारण बड़ा ही सटीक देते हैं. और इसका कारण है भारतीय मानक समय. जी हां भारतीय मानक समय. मगर कैसे? जैसा की हम सबको पता है की क्रिकेट ज्यादातर जाड़े में खेला जाता है और कलकत्ता में जाड़े में अँधेरा १ घंटा पहले हो जाता है, इसलिए कलकत्ता वासियों को १ घंटा क्रिकेट कम खेलने को मिलती है. सो कायदे से कलकत्ता में समय भारतीय मानक समय से १ घंटा पहले होना चाहिए. गुजरात में हमेशा असम में सूर्य अस्त होने के २ घन्टे के बाद सुर्याश्त होता है. आज़ादी से समय इसपर विचार किया गया था लेकिन सारे देश में एक ही जैसा समय रहे, इसलिए एक ही भारतीय मानक समय चुना गया.

आज़ादी के बाद से करीब ४५ वर्ष कांग्रेस का राज रहा, अभी भी है, लेकिन तब और अब में काफी अंतर है. १९८९ से पहले तक कांग्रेस केंद्र में भी रहती थी और अधिकतर राज्यों में भी. इसलिए शासन पूरा केंद्र के कण्ट्रोल में होता था. अब ऐसा नहीं है. कांग्रेस केंद्र में तो है लेकिन सहयोगी दलों के साथ. और राज्यों में भी अधिकतर जगह या तो बीजेपी है नहीं तो क्षेत्रीय पार्टिया. इस कारण कांग्रेस को केंद्र में मज़ा नहीं आ रहा है क्योंकि कई फैसलों में राज्यों से तीखी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है. चाहे वो लोकपाल का मामला हो, nctc का, या रेलवे पुलिस का, आज स्थिति ऐसी है की बिना राज्यों के साथ लेकर केंद्र सरकार कई फैसले नहीं ले सकती.

५० और ६० के दशक में अपनी आज़ादी नयी नयी थी, तो देश टूटने का खतरा था, बाद में पाकिस्तान के साथ युद्ध भी हुआ, शीत युद्ध भी चरम पर था. तब शायद एक मजबूत केंद्र की जरुरत ज्यादा थी. आज आज़ादी के ६५ साल के बाद भारत एक मजबूत गणतंत्र के रूप में सामने आया है इसलिए राज्य अगर केंद्र से कई फैसलों पर बात करना चाहते है तो इससे केंद्र सरकार को विचलित नहीं होना चाहिए. प्रजातंत्र के लिए शक्तिशाली केंद्र के साथ मजबूत राज्यों के भी होना जरुरी है.

कई साल पहले हिंदी के समर्थक हल्ला मचाते थे की हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया जाए और हर जगह हिंदी ही हिंदी हो. इसका ६० के दशक में तमिलनाडु में जबरदस्त विरोध हुआ. सी राजगोपालाचारी जो की १९३० में हिंदी के बड़े समर्थक थे, इस विरोध में सबसे आगे निकल कर आये. फिर लोगो को समझ में आया इतना बड़ा देश तभी १ रह सकता है जब सभी लोगो को हर तरह से खुली छुट दी जाए. आज देखिये करीब ९० प्रतिशत हिन्दुस्तानी हिंदी समझ सकते है और करीब ७० प्रतिशत से अधिक बोल सकते हैं. और यह किसी नियम क़ानून के कारण नहीं हुआ. इसके कई कारण है, हिंदी बोलने वाले धीरे धीरे पुरे देश में फैलते जा रहे हैं. हिंदी फिल्मो का भी इसमें बड़ा योगदान है.

जब देश का विभाजन हुआ था तो कुछ ही साल में पाकिस्तान इस्लामिक गणतंत्र बन गया, इसपर नेहरु सरकार को दबाव आया की भारत को हिन्दू राष्ट्र को बनाया जाए. लेकिन शायद यह उस समय के नेताओं की दूरदृष्टि थी जिसके कारण भारत सेकुलर राष्ट्र के रूप में सामने आया. उस ज़माने में कई लोगो ने हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान का भी नारा बुलंद किया था. लेकिन नेहरु जो की खुद एक नास्तिक थे, उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ. और यह भारत के लिए काफी अच्छा हुआ. आज भारत १ है और पाकिस्तान २ हो चूका है और ३ होने की कगार पर. पाकिस्तान से बंगलादेश के टूटने का सबसे बड़ा कारण था की पश्चिम पाकिस्तान, जहां की पंजाबियों का दबदबा था, अभी भी है, के पूर्बी पाकिस्तान (आज का बंगलादेश) पर उर्दू थोपने की कोशिश की, तमाम विकास पंजाब और सिंध का हुआ है पूर्बी पाकिस्तान पर ध्यान नहीं दिया गया. इस्लाम जो की पाकिस्तान की बुनियाद थी, वो भी उसको टूटने से नहीं बचा पायी. अब बलूचिस्तान में भी कुछ ऐसा है नज़ारा है. जो लोग ऐसा सोचते है की धर्म के आधार पर देश को एक करके रखा जा सकता है, तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है. अगर ऐसा होता तो दुनिया में केवल ५ ६ मुल्क ही होते. एक इसाइयों का, के मुस्लिमो का, हिन्दुओ का और आदि आदि.

एक देश में भी २० अलग अलग भाषाएँ होने से कोई समस्या नहीं है लेकिन सबपर १ भाषा थोपने के कारण १ देश २० भाग में विभाजित हो जाए तो फिर मामला काफी गंभीर है.

उम्मीद करता हूँ, कभी ना कभी भारत में अलग अलग मानक समय होंगे और फिर कलकत्ता के भी क्रिकेटरो को बराबर अभ्यास का मौका मिलेगा.

###################@@@@@@@@@@@@@##################

bhavna singh
04-03-2012, 09:57 AM
एडमिन जी , अत्यंत सुन्दर लेख लिखा है ....................!

sombirnaamdev
04-03-2012, 01:03 PM
अत्यंत सुन्दर लेख लिखा है
abhisays जी

abhisays
04-03-2012, 04:32 PM
राहुल गाँधी के हसीन सपने

http://www.topnews.in/files/Rahul-Gandhi2.jpg

abhisays
04-03-2012, 04:33 PM
भारत के युवराज, भावी प्रधानमन्त्री, ४१ साल के युवा, राहुल गाँधी को राजनीति में आये ८ साल हो गए हैं लेकिन शायद उनके राजनैतिक जीवन का यह बरस कुछ अच्छा घटित होता हुआ नहीं दिख रहा है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चौथा स्थान लगभग तय ही है. लगता है दलितों के घर में खाने, बुनकरों को हजारो करोड़ देने का, अल्पशंक्षक वर्ग को ४.५ प्रतिशत कोटा देने का, कुछ फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. वैसे इससे राहुल गाँधी को कोई खास फर्क तो पड़ता नहीं है क्योंकि इससे पहले भी बिहार के चुनाव में उन्होंने और उनकी पार्टी ने काफी हो-हल्ला मचाया था और फिर अंत में २ सीट के साथ दिल्ली वापसी हुई. कांग्रेस की यह एक परंपरा रही है की किसी भी चुनाव में अगर सफलता मिलती है तो उसका श्रेय हमेशा गाँधी परिवार के सदस्य के खाते में भी जाता है और अगर असफलता मिलती है तो कोई ना कोई कारण या बलि का बकरा खोज ही लिया जाता है.

पिछले चुनाव यानी २००७ में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के २२ सीट थे जो की इस बार बढ़ कर ४० से ५० होने के उम्मीद है और फिर कांग्रेसी यह कह कर बच निकलेंगे की देखिये राहुल जी का कमाल इस बार सीट दुगुने से भी ज्यादा मिले. लेकिन सवाल यह नहीं है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और राहुल गाँधी ने काफी मेहनत से काम किया है. कांग्रेस यहाँ किंग मेकर बनना चाहती है ताकि वो जिसे यहाँ किंग बनाए वो पार्टी इसके बदले उनको दिल्ली में समर्थन दे. वैसे ६ तारीख को यह तय हो जाएगा की चुनाव के नतीजे से कांग्रेस को नुकसान होता है या फायदा. चुनाव के बाद क्या समीकरण बनेगा वो तो अगले ४८ घंटे में तय हो ही जाएगा.

हम लोग बात कर रहे थे कांग्रेस और राहुल गाँधी के चुनाव प्रचार और मीडिया hype की. कांग्रेस ने हर बार की तरह इस बार भी जबरदस्त तरीके से वोट बैंक की राजनीति की और नजदीक के फायदे के लिए अजीब अजीब फैसले लिए. पहला फैसला, राहुल गाँधी द्वारा उत्तर प्रदेश के चुनाव को निजी जंग के तौर पर लेना था. सबको पता है grass root पर कांग्रेस के पास कार्यकर्ता और अच्छे लोग ही नहीं है, परिवार वाद के कारण कांग्रेस का कैडर सिस्टम बिलकुल ख़त्म होता जा रहा है. उनके पास उत्तर प्रदेश में अच्छे नेता ही नहीं हैं. फिर भी इस चुनाव में २०० सीट का दावा करना काफी हास्याद्पद था.

दूसरी सबसे बड़ी गलती यह थी की अल्पशंक्षक वर्ग को ४.५ प्रतिशत कोटा देने का फैसला चुनाव की घोषणा के ठीक २ दिन पहले करना. इस फैसले के पीछे का धोखा बड़ा ही दिलचस्ब था. मंडल प्लान के मुताबिक़ अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े लोगो को २७ में पहले से ही कोटा था. इस नियम के बाद यह हो जाता की २७ का ४.५ प्रतिशत यानी १०० में १.२ प्रतिशत कोटा वो भी अल्पशंक्षक वर्ग (मुस्लिम, सिख, इसाई, बौध आदि) के लिए अलग से रिज़र्व हो जाता. मज़े के बाद है की इतनी सीट तो ऐसे ही अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े को मिल जाती है.

और इस फैसले को राहुल और कांग्रेस ने यह कह कर प्रोजेक्ट किया की मुस्लिमों को आरक्षण दे रहे हैं. जबकि असल में यह फैसला अल्पशंक्षक वर्ग के पिछड़े लोगो के लिए लिया गया था. बाद में और वोट पाने के लिए कांग्रेस ९ प्रतिशत का दावा करने लगी. यहाँ तक की इलेक्शन कमीशन से भी पंगे ले बैठी. और एक गलती कांग्रेस द्वारा यह हुई की उसके नेता यह कहने लगे की या तो उनको सरकार बनेगी नहीं तो प्रेसिडेंट रुल होगा. इससे भी जनता का पार्टी के प्रति रुझान घटा.

इन सब अटकलों का फैसला तो ६ को हो ही जाएगा. देखते हैं राहुल गाँधी के हसीन सपने पुरे होते हैं की नहीं. वैसे सबको पता ही है राहुल बाबा का हसीन सपना दिल्ली की गद्दी ही है. लेकिन शायद वो भूल गए है की अभी २०१२ चल रहा है और दिल्ली का रास्ता लखनऊ, पटना, गांधीनगर, मुंबई या चेन्नई से होकर गुजरता है. वो दिन बीत गए जब किसी गाँधी ने नारा दे दिया की गरीबी हटाओ और सभी गरीबो के वोट बटोर लिए. अब केवल बातो से काम नहीं चलेगा कुछ काम करके भी दिखाना होगा.

balamrasia
13-03-2012, 11:32 AM
शुरु में कबीले हुआ करते थे . हर कबीला दुसरे कबीलों से बैर रखता था . फिर कुछ बुद्धिमान कबीले आपस में मिल गए और कोई छोटा मोटा राज्य बन गया . भयभीत होकर दुसरे कबीले भी राज्यों में तदबील हो गए . इसी प्रकार कालांतर में कई राज्य मिल कर राष्ट्र बने . मध्य युग में राष्ट्र -राज्य की अवाधारना यूरोप से शुरु होकर दुनिया भर में फ़ैल गई. सारी दुनिया में राष्ट्र राज्य ( Nation -state ) भाषा -धर्मं -नस्ल के आधार पर बने हैं . आखिर किसी भी जुड़ाव के लिए कुछ तो जोड़ने वाली चीज होनी चाहिए ! अमेरिका -आस्ट्रेलिया -न्यूजीलैंड वगेरा जगहों पर european प्रवासी लोगों ने नए देश बना लिए . इन नए देशों का भी आधार भाषा , नस्ल और धर्म ही रहा .
१५ अगस्त १९४७ के दिन अस्तित्व में आया देश , इसको हम भारत या इंडिया कहते हैं . ये दुनिया का एकमात्र देश है जो अधिकारिक तौर पर अंग्रेजी में काम करता है जो की इसकी भाषा है ही नहीं -जिसे ढंग से मुश्किल से ५ प्रतिशत लोग जानते हैं .एक ही नस्ल होने के बावजूद अनगिनत जातियों में बंटा ये देश अभी भी कबीलाई मानसिकता में जीता है . कुछ पाने के लिए कुछ खोना होता है. "भारत" को पाने के लिए भिन्न भिन्न भाषाएँ -बोलियाँ ,स्थानीय रिवाजों से ऊपर उठाना था पर हम डीठ की तरह अपनी डफली पर अपना राग गाते रहे . नतीजा यह की भारत महज़ संविधान से बंधा एक कृत्रिम देश है. और हम इसमें गर्वान्वित हो रहे हैं .
भारतीय उप महाद्वीप एक भोगोलिक-सांस्कृतिक अवधारणा है . १९४७ के पहले भारत कभी भी राजनितिक दृष्टि से एक देश नहीं रहा . आज के भारत को ,जो की एक राजनितिक देश है ,हम पुराने भारत के साथ मिला कर भ्रम पैदा करते हैं. ब्रिटिश भारत में भी सैंकड़ों रियासतें थी .पटेल ने इन रियासतों को लगभग जबरन भारत में शामिल किया था .भारतीय संस्कृति को हमने हिन्दू संस्कृति से मिला दिया .जो राष्ट्रीय था वो सांप्रदायिक हो गया . धर्म के नाम पर ब्रिटिश भारत का बंटवारा होने के बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनाने दिया और मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे. भारतीय नेताओं ने तमिल भाषाई कट्टर पंथियों के सामने घुटने टेक दिए और अंग्रेजी से हिंदी हार गई .
आधुनिक भारत संघ राष्ट्र के सामने दो विकल्प थे या यूँ कहें हैं . पहला, एक मजबूत केंद्र -जिसमे हिंदी राष्ट्रीय भाषा होती और राज्य प्रशासनिक सुविधा के आधार पर होते न की भाषाई आधार पर .
दूसरा विकल्प -मजबूत राज्य ,और राज्यों का एक संघ जिसके पास सिर्फ चुनिंदे अधिकार हों . सच तो ये है की अगर हमने दूसरा विकल्प चुना होता तो पाकिस्तान बनता ही नहीं ! जिन्ना यही तो चाहते थे जिसे नेहरु ने ठुकरा दिया था .
नेहरु ने पहला विकल्प चुना -मजबूत केंद्रीकृत सत्ता का लेकिन उसका कोई मजबूत आधार होना चाहिए इसकी समझ न उन्हें थी न आज के नेताओं को है. चीन ,पाकिस्तान नक्साल्वाद ,इस्लामिक उग्रवाद और भाषाई कट्टरवाद -ये सब खतरे मुंह बाये खड़े हैं . भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है . संसद अपनी गरिमा खो रही है ,न्यायालय अन्यायालय हो चुके हैं मीडिया महा भ्रष्ट है इस पर भी कोई आशावादी है तो दुराशा किसे कहते हैं

abhisays
18-03-2012, 10:01 AM
१५ अगस्त १९४७ के दिन अस्तित्व में आया देश , इसको हम भारत या इंडिया कहते हैं . ये दुनिया का एकमात्र देश है जो अधिकारिक तौर पर अंग्रेजी में काम करता है जो की इसकी भाषा है ही नहीं -जिसे ढंग से मुश्किल से ५ प्रतिशत लोग जानते हैं .एक ही नस्ल होने के बावजूद अनगिनत जातियों में बंटा ये देश अभी भी कबीलाई मानसिकता में जीता है . कुछ पाने के लिए कुछ खोना होता है. "भारत" को पाने के लिए भिन्न भिन्न भाषाएँ -बोलियाँ ,स्थानीय रिवाजों से ऊपर उठाना था पर हम डीठ की तरह अपनी डफली पर अपना राग गाते रहे . नतीजा यह की भारत महज़ संविधान से बंधा एक कृत्रिम देश है. और हम इसमें गर्वान्वित हो रहे हैं .



भारत में अधिकारिक तौर पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों में काम होता है. केवल अंग्रेजी में ही काम होता है यह कहना पूर्ण रूप से सही नहीं है.

तो आप यह कहना चाहते है सब लोगो को जबरदस्ती एक जैसा बना देते. भिन्न भिन्न भाषाएँ -बोलियाँ और स्थानीय रिवाजों को सरकार खत्म करवा देती. याद रखिये पाँचों उंगलियाँ एक जैसी नहीं होती. विश्व के कई देश जैसे अमेरिका, ब्राज़ील, रूस में काफी मिश्रित संस्कृति है.

भारत केवल संविधान में ही केवल नहीं बंधा हुआ है. एक असाधारण शक्ति है जो भारत को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर सिक्किम तक जोड़े हुई है.

abhisays
18-03-2012, 10:34 AM
भारतीय उप महाद्वीप एक भोगोलिक-सांस्कृतिक अवधारणा है . १९४७ के पहले भारत कभी भी राजनितिक दृष्टि से एक देश नहीं रहा . आज के भारत को ,जो की एक राजनितिक देश है ,हम पुराने भारत के साथ मिला कर भ्रम पैदा करते हैं. ब्रिटिश भारत में भी सैंकड़ों रियासतें थी .पटेल ने इन रियासतों को लगभग जबरन भारत में शामिल किया था .भारतीय संस्कृति को हमने हिन्दू संस्कृति से मिला दिया .जो राष्ट्रीय था वो सांप्रदायिक हो गया . धर्म के नाम पर ब्रिटिश भारत का बंटवारा होने के बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनाने दिया और मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे. भारतीय नेताओं ने तमिल भाषाई कट्टर पंथियों के सामने घुटने टेक दिए और अंग्रेजी से हिंदी हार गई .


ऐसा नहीं है. कई बार भारत एक हुआ पूर्ण रूप से तो नहीं लेकिन काफी हद तक.

मौर्य काल

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/b/bf/Mauryan_Empire_Map.gif

मराठा राज्य

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/5/55/Marathas.GIF

मुग़ल साम्राज्य

http://www.paradoxplace.com/Insights/Civilizations/Mughals/Mughal_Images/Mughal%20Empire%20BR.jpg


तो ऐसा है की भारत का नक्शा मौर्य काल से हिसाब से होना चाहिए. पाकिस्तान १९४७ में अलग हो गया जो की नहीं होना चाहिए था.

और आपने जो बातें कही है वो अंग्रेजो द्वारा फैलाया हुआ भ्रम था ताकि भारतवासी अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ना ले सके और उनके गुलाम बन कर रहे.

abhisays
18-03-2012, 10:51 AM
धर्म के नाम पर ब्रिटिश भारत का बंटवारा होने के बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनाने दिया और मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे.


इतिहास गवाह है की जो भी देश एक धर्म लेकर चला वो काफी तरक्की नहीं कर सका है. पाकिस्तान को देखिये जिन्ना इसको सेकुलर राज्य बनाना चाहते थे, लेकिन जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी और पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बन गया और देखिये क्या हालत है वहाँ पर.

और जहां तक मुस्लिम तुष्टिकरण का मामला है, यह तो अपने नेताओं की कारस्तानी है, कुछ लोग हिन्दू तुष्टिकरण करते है और कुछ मुस्लिम तुष्टिकरण. और केरल में चुनाव हो तो इसाई तुष्टिकरण भी करते है लोग..

abhisays
18-03-2012, 11:01 AM
भारतीय नेताओं ने तमिल भाषाई कट्टर पंथियों के सामने घुटने टेक दिए और अंग्रेजी से हिंदी हार गई.

ऐसा बिलकुल भी नहीं है, हिंदी उन शक्तियों में से है जो भारत को जोड़े हुई है. चेन्नई में आखिरी १० साल में करीब 3 लाख से भी ज्यादा हिंदी बोलने वाले सॉफ्टवेर इंजिनियर बस गए हैं. इसके कारण चेन्नई में भी हिंदी बोलने वालो की कमी नहीं है.

मैं करीब ५ साल से बंगलोर में हूँ, और हर जगह हिंदी से काम चल जाता है. हिंदी आज देश के कोंनेक्टिंग भाषा हो गयी है.

पिछले ६५ साल में हर प्रधान मंत्री ने १५ अगस्त को लाल किले पर हिंदी में भाषण दिया है चाहे वो कन्नड़ बोलने वाले देव गौड़ा हो या तेलगु बोलने वाले नरसिंह राव.

अंग्रेजी की अपनी जगह बन गयी है भूमंडलीकरण के कारण. पर अंग्रेजी की अपनी लिमिट है वो कभी ही हिंदी का मुकाबला नहीं कर सकती.

abhisays
18-03-2012, 11:51 AM
आधुनिक भारत संघ राष्ट्र के सामने दो विकल्प थे या यूँ कहें हैं . पहला, एक मजबूत केंद्र -जिसमे हिंदी राष्ट्रीय भाषा होती और राज्य प्रशासनिक सुविधा के आधार पर होते न की भाषाई आधार पर .
दूसरा विकल्प -मजबूत राज्य ,और राज्यों का एक संघ जिसके पास सिर्फ चुनिंदे अधिकार हों . सच तो ये है की अगर हमने दूसरा विकल्प चुना होता तो पाकिस्तान बनता ही नहीं ! जिन्ना यही तो चाहते थे जिसे नेहरु ने ठुकरा दिया था .
नेहरु ने पहला विकल्प चुना -मजबूत केंद्रीकृत सत्ता का लेकिन उसका कोई मजबूत आधार होना चाहिए इसकी समझ न उन्हें थी न आज के नेताओं को है.

अगर दूसरा आप्शन लिया जाता तो आज भारत ३ की जगह करीब २०-२५ भागो में विभाजित रहता.

abhisays
18-03-2012, 11:56 AM
नेहरु ने पहला विकल्प चुना -मजबूत केंद्रीकृत सत्ता का लेकिन उसका कोई मजबूत आधार होना चाहिए इसकी समझ न उन्हें थी न आज के नेताओं को है. चीन ,पाकिस्तान नक्साल्वाद ,इस्लामिक उग्रवाद और भाषाई कट्टरवाद -ये सब खतरे मुंह बाये खड़े हैं . भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है . संसद अपनी गरिमा खो रही है ,न्यायालय अन्यायालय हो चुके हैं मीडिया महा भ्रष्ट है इस पर भी कोई आशावादी है तो दुराशा किसे कहते हैं

हर देश में समस्याएँ होती ही है, भारत में भी है. आशा है इनका समाधान भी होगा. :india:

abhisays
01-04-2012, 10:18 PM
जेनरल की जंग
http://cache.daylife.com/imageserve/0gQYaJxeFR4XG/800x493.jpg

abhisays
01-04-2012, 10:19 PM
पिछले कई दिनों से जेनरल वी के सिंह सुर्खियों में रहे हैं. मुद्दा काफी गंभीर है, देश की रक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ खड़े हुए हैं. २ महत्वपूर्ण बातें हुई हैं.

१. जेनरल वी के सिंह के एक साक्षात्कार में खुलासा किया की उन्हें एक सेना के ही
retired सैनिक ने १४ करोड़ की रिश्वत की पेशकश की.
२. जेनरल वी के सिंह के लिखा गया एक गोपनीय पत्र मीडिया में लीक हो गया. यह पत्र जेनरल ने प्रधान मंत्री को लिखा था जिसमे उन्होंने सेना की कुछ समस्याओं का जिक्र किया था.

इन मुद्दों पर बात करने से पहले एक बात जान ले की सेना के लिए हथियार खरीदने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की होती है. सेना कभी कोई हथियार खुद नहीं खरीदती, वो केवल किसी भी हथियार को खरीदने की दर्खावस्त देती है और फिर सरकार फैसला करती है की कौन सा हथियार ख़रीदे या ना ख़रीदे. ऐसे में कोई घोटाला होता है तो कमाई सबसे ज्यादा रक्षा मंत्रालय के बाबु लोग और नेताओ की होती है.

जेनरल वी के सिंह ने इन्ही खरीद फरोक्त में गड़बड़ियो की तरफ सब का ध्यान दिलाया है.

चिट्टी कहा से लीक हुई. क्या यह लीक जेनरल वी के सिंह की तरफ से हुई या रक्षा मंत्रालय का इसमें हाथ है. कुछ ही महीने पहले प्रणव मुख़र्जी की चिट्टी लीक हुई थी. किसने लीक की थी, अभी तक पता नहीं चला. लेकिन एक बात साफ़ है सरकारी तंत्र चिट्टी लीक करने में हमेशा से ही आगे रहा है.

वैसे यह बड़ा सवाल नहीं है की चिट्टी किसने लीक की, बड़ा सवाल यह है की हथियारों की खरीदारी में भ्रष्टाचार हो रहा है, भारतीय सेना के पास अच्छे हथियारों की कमी है. जेनरल वी के सिंह की चिट्टी से जो सवाल खड़े हुए है उसके जवाब आज १२० करोड़ भारतवासी केंद्र सरकार से मांग रहे हैं.

रक्षा मंत्री ए के अंटोनी ने इस मामले की जांच के लिए CBI को कहा है, अंटोनी के संसद में कहा की जेनरल ने लिखित शिकायत नहीं की, और उस व्यक्ति के खिलाफ भी कुछ नहीं किया. मेरा मानना है की रक्षा मंत्री सेनाध्यक्ष का बॉस होता है ऐसे में जिम्मेदारी रक्षा मंत्री की ही होती है की वो शिकायत पर कार्यवाई करे.

फ़रवरी २०१० में जेनरल वी के सिंह ने टेट्रा ट्रक के सौदे (दर्खावस्त) पर मुहर लगाने से इनकार कर दिया था क्योकि उन्हें इसकी काफी गड़बड़ियो के बारे में पता चला था.

आखिरकार ऐसा क्या हुआ था? आइये मैं बताता हूँ.

beml (भारत Earth movers लिमिटेड), जो की एक सरकारी कंपनी है, को इन ट्रक की आपूर्ति का ठेका मिला था. नियमो के मुताबिक़ beml को यह ट्रक सीधे जो कंपनी यह ट्रक बनाती है, उससे खरीदना चाहिए थी, लेकिन beml ने यह ट्रक टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड से ख़रीदा, जो की यह ट्रक असली कंपनी से खरीदती है और काफी अधिक दाम पर बेचती है.

बहुत लोग ऐसा मानते है की beml ने यह ट्रक टेट्रा सिपॉक्स से इसलिए ख़रीदे क्योंकि उनके उच्च अधिकारियों और नेताओं को टेट्रा सिपॉक्स की तरफ से काफी अच्छी खासी रिश्वत मिली थी.

अब यह सब बातें सामने आ रही है तो सब लोग जेनरल वी के सिंह के ही पीछे पड़ गए हैं. किसी ने सही कहा है भलाई का ज़माना नहीं रहा.

abhisays
20-04-2012, 06:11 PM
जंगल जंगल पता चला है, मनु जी का नया cd मिला है.

http://indologygoa.files.wordpress.com/2012/04/abhishek-manu-singhvi.jpg

हाँ तो खबर यह है अपने बरबोले कांग्रेसी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की cd इन्टरनेट पर आ गयी सब लोग देख रहे हैं और दोस्तों को भी भेज रहे हैं. जिन लोगो ने यह cd देखा है उनका कहना है की यह cd देखकर तो कोई अंधा भी बोल देगा की यह अभिषेक मनु जी हैं.

अब मीडिया की बात करते हैं, जो मीडिया अभी कुछ बेचारे भाजपा नेताओ के अश्लील फोटो और विडियो देखने पर इतनी हाय तौबा मचा रहा था वो अब बिलकुल चुप है. अभिषेक जी ने कोर्ट से अपने विडियो को ना प्रचारित करने का फैसला भी निकलवा लिया है, आखिरकार बड़े वकील जो ठहरे. मीडिया ने कुछ दिन पहले कर्नाटक के ३ विधायको के ऊपर टिपण्णी की था की "This is the real chaal, charitra & chehra of बीजेपी, अब वो लोग क्यों कुछ नहीं बोल रहे हैं.

मगर अभिषेक मनु जी यह बात भूल गए की आज टीवी और अखबार का बाप इन्टरनेट भी एक चीज़ है जहाँ दूध का दूध और पानी का पानी होते देर नहीं लगती और वही हुआ, इनका विडियो लोग काफी मज़े ले कर देख रहे हैं.

यहाँ जो मैंने अभिषेक मनु का जो फोटो लगाया है, वो किसी interview के वक़्त टीवी पर आ गया था, आज यह चित्र कितना प्रासंगिक है, यह आप खुद ही सोच सकते हैं.

वैसे क्या इस प्रकरण के बाद अभिषेक मनु का राजनैतिक सफ़र समाप्त हो गया है क्या?
यह एक बड़ा सवाल है.

hkJSdsq0eiE

abhisays
21-04-2012, 12:01 AM
बड़े अच्छे लगते है...*

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=15895&stc=1&d=1334948966

आपको पता है क्या, टेलीविजन सीरियल बड़े अच्छे लगते है में आखिरकार राम कपूर और साक्षी तंवर ने सेक्स कर ही लिया, इसी बात पर हो जाए तालियाँ. इसमें सबसे अच्छी बात यह रही की राम कपूर को सालो बाद कुछ व्यायाम करने का मौका मिल गया. सीरियल का शीर्षक भी राम कपूर को ध्यान में रखकर ही रखा गया है, बड़े अच्छे लगते हैं. वैसे इस सीरियल की कहानी भी कुछ इस तरह से ही थी की पति और पत्नी में आखिरकार सेक्स होगा की नहीं. इस सीरियल के सेक्स के चक्कर में बहुत लोगो का सेक्स लॉन्ग पेंडिंग था.

पर आखिरकार कत्ल की रात आ ही गयी और भारतीय टीवी के इतिहास में पहली बार एक पति और पत्नी ने ऐसा काम कर दिया जो को आज तक किसी ने नहीं किया था (टीवी पर), जी हाँ दोस्तों, पति पत्नी के सेक्स कर लिया. और यह सीरियल सुपरहिट हो गया. सेक्स सीन वाला विडियो इन्टरनेट पर viral भी हो गया. और हम भारतीय एक अधेड़ दंपत्ति के सेक्स को देख कर भी excited हो गए. इसको कहते हैं अंग्रेजी में सेक्स starved nation .

खैर जो भी हो, इस दिन पप्पू को बीच में पापा ने बोला की जाओ पानी पी कर आओ, पप्पू बोला मैंने तो अभी अभी खाने के बाद पानी पिया है, फिर से क्यों पियु. पापा बोले जाओ मेरे लिए पानी ले कर आओ. मुझे अभी पानी पीना है. पप्पू बेचारा पानी लेने चला गया. और मन ही मन गुस्से में बोला, पापा को क्या लगता है मैं अभी बच्चा हूँ, मैंने भी सविता भाभी के सभी कॉमिक्स पढ़े हैं और अन्तर्वासना का रजत सदस्य भी हूँ. आप ही देखिये अपना बोरिंग किसिंग सीन मैं चला सविता भाभी का नया कॉमिक्स पढने, आज ही अपलोड हुआ है.

आखिर में जाते जाते आपको बता दूं उस दिन सीरियल का नाम बार बार ब्रेक के दौरान बदल रहा था, पहले ब्रेक से पहले सीरियल का नाम था खड़े अच्छे लगते हैं, दुसरे ब्रेक के बाद था बड़े अच्छे लगते हैं, और जब सेक्स सीन हो गया तो सीरियल का नाम हो गया पड़े अच्छे लगते हैं.

* Contains strong language/sex references along with non-detailed sexual activity.

भारतीय111
24-08-2012, 09:20 AM
अभिजी ठहर क्यूँ गए ? लिखते जाओ भाई !!! बड़ा ही सुन्दर लिखते है आप...