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View Full Version : अलख ज्योति, मोमबती की - एक व्यंग्य


Kunal Thakur
30-03-2012, 10:24 PM
अलख ज्योति, मोमबती की - एक व्यंग्य

दोपहर अपनी ढलान पर था| लगभग ४ बजे होंगे | गोपाल प्रसाद अपने नगरपालिका के दफ्तर से लौट रहा था | अपने गृहस्त जीवन के ख्यालों में खोया हुआ था की आज घर पर जा कर क्या क्या करना है |बाज़ार के हलचल से अनभिग अपनी रफ़्तार में चला जा रहा था |तभी कुछ लोगो के शोर ने उसका ध्यान खिंचा | उसने देखा की शहर के मुख्य चौराहे पे स्तिथ गाँधी जी की प्रतिमा के तरफ २०-२५ लोग नारा लगाते हुए बढे चले जा रहे थे |उसे डर लगा की कहीं लोग पहले से जर्जर , धुल से ओत प्रोत गाँधी जी की प्रतिमा को हटाने तो नहीं जा रहें | उसने अपनी २२ इंच वाली हीरो साइकिल को उस ओर मोड़ दिया | लेकिन वहां कुछ और ही नज़ारा था | सबके हाथ में जलती हुई मोमबती थी और लोग 'युवा दिवस' के अवसर पर स्वामी विवेकानंद के लिए नारे लगा रहे थे | शहर में स्वामी विवेकानंद की कोई प्रतिमा न होने के कारण ये लोग गाँधी जी की प्रतिमा पर ही पहुँच गए थे | गोपाल टकटकी लगाये उन्हें देखता रहा | उसे ताजुब हो रहा था की इस दोपहरी में ये लोग मोमबती क्यूँ जलाएं हुए हैं | कुछ देर बाद उसने अपनी साइकिल घुमाई और मस्ती में अपने घर की ओर चल दिया |

हरी, ताज़ी और सस्ती सब्जियों से भरा थेला अपनी धर्म पत्नी, राधा को थमाया और चौकी पर जा बैठे | राधा ने गरमागरम चाय और भुना हुआ चुउरा हरी मिर्च के साथ गोपाल के सामने रखा और अपने कभी नही खत्म होने वाले घरेलु काम में लग गयी | गोपाल की इच्छा हुई की क्यूँ न दिन भर की ख़बरों की खबर ली जाये |संज्योग से बिजली भी थी | उसने प्रादेशिक न्यूज़ चैनल लगाया | कुछ समाचारों के बाद चौराहे वाले लड़के टी वि पर नज़र आ गएँ | उत्सुकता से गोपाल के चेहरे पे हलकी मुस्कान भी आ गयी |कोने में उसने अपने आपको देखा | बिना समय गवाएं राधा को जोर की आवाज़ लगायी | राधा भागती हुई आई , उसे लगा की क्या अनर्थ हो गया | पर उसके आते आते , दूसरा समाचार भी आ गया | पति ने सारा किस्सा सुनाया , राधा हर्षित हुई| पर पति देव को टी वि पर देखने की इच्छा रह ही गयी | गोपाल प्रादेशिक से राष्ट्रीय समाचारों के तरफ बढे | वहां के समाचार में भी उन्होंने कुछ लोगो को मोमबती जलाये इंडिया गेट की तरफ जाते देखा | ये लोग भ्रस्टाचार का विरोध कर रहे थे | उसका सर चकराया | उसे ताजुब हो रहा था की लोग मोमबती ही क्यूँ जला रहे हैं | चाहे तो टार्च जला ले या मशाल ही जला ले और नहीं तो टायर जला लें जैसा की गाँव में होता है , मोमबती ही क्यूँ | चाहे ख़ुशी हो या गम , दिन हो या रात , सब के सब मोमबती ही जला रहे हैं | इसी तरह की कुछ खबरें उसने मुंबई , शिमला और पंजाब में भी देखि |कोई पानी की किल्लत से परेशान, कोई किसी नेता के गिरफ़्तारी के लिए तो कोई पर्यावरण की रक्षा की लिए मोमबती जलाये हुए है | गोपाल के हिम के सामान शांत मानस पटल पर हलचल मच गयी | उसे याद आ रहा था की बचपन में बिजली चले जाने पर और किरासन तेल नहीं होने पर उसके घर में मोमबती जलती थी | दीपावली में जब दीप कम पड़ जाते थे , तब मोमबती जलाई जाती थी | इसे जलाना आसान होता था और समय से बुझ भी जाता था | पर इस तरह मोमबती का प्रयोग उसने अपने जीवन काल में पहले न देखा था | रात को भी इसी पर विचार करते करते सो गया | प्रात: दफ्तर पहुँच कर अपने सहयोगियों के सामने अपने हृदय की व्यथा रखी| कोई कुछ जवाब देता तो कोई कुछ | किसी ने कहा की मोमबती लेकर चलने से ध्यान केन्द्रित रहता है | किसी ने कहा की सफ़ेद मोमबती की रौशनी से चेहरे का कालापन चला जाता है | किसी ने कहा ये सस्ता है और कम प्रदुषण करता है | किसी भी जवाब में गोपाल के मन को शांत करने का सामर्थ्य नहीं था | उसने सोचा की मोमबती जलाने की जरुरत ही क्या है | बिना उसके भी तो बात कही जा सकती है , विरोध किया जा सकता है , युवा दिवस भी मन सकता है |
बहुत सोच विचार कर वह शाम को अपने बचपन के दोस्त , मंगेश से मिलने गया | मंगेश नए जमाने का सजीला नवयुवक था | फिल्मी दुनिया में काफी रूचि रखता था | लम्बे बाल , रंग बिरंगी जींस पैंट , गोल गले का टी शर्ट और जींस की पिछली जेब में कंघी रखना मंगेश का शौख था | मंगेश से मिलने पर गोपाल ने इसी विषय को छेड़ दिया | मंगेश सोच में पड़ गया| फिर उसे किसी फिल्म का कोई दृश्य ध्यान में आया | उसने कहा की ये लोग फिल्म से प्रेरित हैं |एक फिल्म में अभिनेता , अभिनेत्री अपने दोस्तों के साथ सफ़ेद मोमबती जलाये इंडिया गेट जाते हैं | आज लोग इन्ही की नक़ल कर रहे हैं | जो मोमबती नहीं जलाता उसको न सरकार पूछती है न समाचार पत्र वालें | मंगेश की बात तार्किक तो थी और गोपाल अपने समाज में नक़ल करने की प्रविति को भी भली भाति जानता था | फिर भी गोपाल के मन में टीस बनी हुई थी | आम लोग तो नक़ल कर लें, ये बात तो समझ में आती है , पर उसने कई विद्वानों को भी जलती हुई मोमबती लेकर जाते देखा था |
उसे समझ में आ गया था की इस गूढ़ रहस्य का भेद श्री श्री १०८ बाबा गोरखनाथ ही खोल सकते हैं | बाबा गोरखनाथ अर्थशास्त्र और रसायनशास्त्र के पुराने ज्ञाता रहें हैं | किस अनुपात में 'पेट्रोल' में रासन की दूकान से निकला हुआ किरासन तेल मिलकर बेचा जाये , इस शहर में बाबा से अच्छा कोई नहीं जनता था |३ कोठी और ४ कारों का स्वामित्य मिलने के बाद वो बाबा बन गएँ | जाएदा ठण्ड होने के कारण बाबा आज फुर्सत में थे | फिर भी ५-६ महिला प्रार्थी और २-३ चेले उनके दर्शन का सानिध्य उठा रहे थे |गोपाल उनके पुराने जान पहचान का था | दोनों एक ही गाँव से थे | गोपाल को पास बुला कर पूछा,'' गोपाल , परेशान क्यूँ लग रहे हो ?" थोड़ी हिचकिचाहट के बाद उसने अपने दिल की बात बाबा के आगे रख दी और हाथ जोड़ विनती किया की इसका रहस्य बताएं | बाबा पहले तो बहुत हँसे फिर उसके सर पर हाथ रख कर बोले, " तू बहुत अज्ञानी है रे" |मोमबती का प्रचलन इतना अधिक बढ़ने के पीछे सरकार का हाथ है | इस सरकार के मुखिया बहुत बड़े अर्थशास्त्री हैं | उन्होंने गोपाल से पूछा , " पिछली दीपावली में तुमने दीप जलाया था , मोमबती या कुछ और ?" गर्व से गोपाल ने बोला की इस बार उसने चाइनीज़ बिजली की लड़िया जलाई थी, जो बड़े और धनवान लोग जलाते हैं | बाबा ने बीच में ही उसे रोककर बोला," इस बार पुरे देश में सैकरो करोरो की चाइनीज़ बिजली की लड़ियाँ जली हैं , मोमबती और दीप बहुत कम | बड़े शहरों में बिजली की उपलब्धता और चाइनीज़ लड़िया के कारण मोमबती उधोग घाटे में चला गया था |पर सरकार के मुखिया ने इस बात को समझ लिया था |इसलिए तो सरकार ने देश हित में इतने सारे घोटाले करवाए और विरोध करने वालों को भरपूर मोमबती उपलब्ध कराया | आज मोमबती उधोग देश का एक कारगर उधोग बन चूका है |"
बाबा के इस अदभूत ज्ञान ने गोपाल की अज्ञान रूपी पट्टी को खोल दिया था | फिर भी एक प्रश्न ने जन्म ले ही लिया | उसने पूछा , " बाबा, इतने सारे मोमबती अगर उन बच्चो को दे दी जाती जो रात के अँधेरे के कारण पढ़ नहीं पाते तो देश से अशिक्षा दूर हो जाती |" बाबा फिर मुस्कुराएँ और बोले ," बेटा गोपाल , अगर सभी शिक्षित ही हो जायेंगे तो सरकार और मैं दोनों बेरोजगार न हो जायेंगे "| ये कह कर बाबा ने अपनी आँखें बंद कर ली थी| बाबा के इस अमृतवाणी ने गोपाल के अँधेरे मनस में मोमबती की अलख ज्योति जला दी थी |

कृत - कुणाल
व्यंग्य

Sikandar_Khan
30-03-2012, 11:16 PM
कुणाल जी , बहुत ही उम्दा व्यंग रचा है ! मेरी ओर से आपको सेल्यूट |:fantastic:

abhisays
31-03-2012, 08:23 AM
good one.. :clap:

ndhebar
31-03-2012, 10:53 AM
कुनाल जी
काफी दिन बाद आपको सक्रीय देखकर बहुत ख़ुशी हुई
आपकी व्यंग रचनाये हमेशा ही प्रभावित करती है
धन्यवाद

arvind
31-03-2012, 01:00 PM
सुंदर कटाक्ष है बंधु। :giggle:

Kunal Thakur
02-04-2012, 01:17 AM
आभार है सब का :)