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View Full Version : मेरा काव्य : मेरी मातृभाषा भोजपुरी में


Suresh Kumar 'Saurabh'
25-04-2012, 05:48 AM
मैं इस सूत्र में अपनी भोजपुरी रचनाओं को प्रेषित करूँगा। भोजपुरी की समझ रखने वाले पाठकों का स्वागत है।

Suresh Kumar 'Saurabh'
25-04-2012, 06:32 AM
गीत-1
जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख

इ जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख हऽ,
सुख जोहे के पड़ेला।
जे नाहीं जोहल चाहेला,
ओकरा के रोये के पड़ेला।।
.
दूर से नाहीं लउकेला मंजिल
हर कदमवें पर आवेला मुस्किल
राह में चलले चल जा हो राही
एगो अइसन जगहिया भी आई
जेके दुनिया इ मंजिल कहेला ।।
इ जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख हऽ,
सुख जोहे के पड़ेला ।
जे नाहीं जोहल चाहेला, ओकरा के रोये के पड़ेला ।।
.
अबे बा घाम छाँहा हो जाई
रात ढली फिर दिनवा भी आई
इ जिनिगिया बा मौसम के जइसे
इहो जाई बदल कूछ अईसे
जईसे गरमी के बाद बर्खा होला ।।
इ जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख हऽ,
सुख जोहे के पड़ेला।
जे नाहीं जोहल चाहेला, ओकरा के रोये के पड़ेला।।
.
सभे एक-बेर हऽ किस्मत कऽ मारल
जग में केहू न बा जे ना हारल
मत बनावऽ जिनिगिया के साजा
हँस के जीयऽ ल जिनगी कऽ माजा
बड़ा भागे से जीवन मिलेला।।
इ जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख हऽ,
सुख जोहे के पड़ेला।
जे नाहीं जोहल चाहेला, ओकरा के रोये के पड़ेला।।
.
हो सके त निरासा के त्यागऽ
तबे बा सुबह जबे तू जागऽ
तोड़ऽ उम्मीद कऽ जनि डोरा
ओकरे जीवन में बाटे अँजोरा
जेकर आसा कऽ दीया जरेला ।।
इ जिनिगिया कऽ दूसर नाम दु:ख हऽ,
सुख जोहे के पड़ेला।
जे नाहीं जोहल चाहेला, ओकरा के रोये के पड़ेला।।


.
रचनाकार:- सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता:- जमानिया कस्बा, जिला-गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
Sureshkumarsaurabh@gmail.com

Suresh Kumar 'Saurabh'
25-04-2012, 08:24 AM
गीत-2


प्यार दिलवा से करीहऽ इ देहियाँ से ना
.

गोरे गाल, ओठ लाल, कोमल बहियाँ से ना।
प्यार दिलवा से करीहऽ इ देहियाँ से ना ।।
.
केतना दिन देह से प्यार करबऽ
उम्र ढल जाई फेर नाहीं पूछबऽ
इ समयिया बड़ा ह बेदरदी
रूप रंगत के बरबाद कर दी
देह नश्वर एके देखीहऽ नेहियाँ से ना।
प्यार दिलवा से करीहऽ इ देहिया से ना
.
लैला मजनू के के नाहीं जाने
उनकर प्रीती अमर जग माने
मन से मन के मोहब्बत में चूर
होके भईलें दुनों मशहूर
काहें गुजरे ल तू उनके रहिया से ना।
प्यार दिलवा से करीहऽ इ देहियाँ से ना।।
.
गुन देखऽ न मुख पर द ध्यान
सच्चा दिल क करऽ पहिचान
नजर बदले क बाटे जरूरत
लागी बदसूरतो खूबसूरत
फेर उतरी उ सूरत निगहिया से ना।
प्यार दिलवा से करीहऽ देहियाँ से ना।।
गोरे गाल, ओठ लाल, कोमल बहियाँ से ना।
प्यार दिलवा से करीहऽ इ देहियाँ से ना।।

.
रचनाकार:- सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता:- जमानिया कस्बा, जिला-गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
Sureshkumarsaurabh@gmail.com

Sikandar_Khan
25-04-2012, 10:13 AM
:fantastic: अरे वाह , फोरम पर भोजपुरी मिट्टी की सोँधी महक भी मिलेगी |

Dark Saint Alaick
26-04-2012, 11:47 PM
मित्र ! आपको अनेकानेक साधुवाद ! आपको पढ़ते हुए मुझे अनेक बार बाबा नागार्जुन याद आते रहे, लेकिन आपको सावधान कर रहा हूं कि मैं आपकी तुलना बाबा से नहीं कर रहा हूं, वस्तुतः भोजपुरी साहित्य की समृद्ध परम्परा को सम्मान से स्मरण कर रहा हूं और आपसे उम्मीद कर रहा हूं कि आप यहां पेश की जाने वाली रचनाओं में इसका ध्यान रखेंगे ! फोरम पर आपका दिन-प्रतिदिन निखरता रूप मुझे बहुत संतुष्टि दे रहा है और मैं आपमें 'ज्ञानपीठ' से नवाज़ा गया भावी व्यक्तित्व देख रहा हूं, लेकिन आपको निस्संदेह इसके लिए मेहनत करनी होगी ! एक बार और आभार !

Suresh Kumar 'Saurabh'
27-04-2012, 08:54 AM
मित्र ! आपको अनेकानेक साधुवाद ! आपको पढ़ते हुए मुझे अनेक बार बाबा नागार्जुन याद आते रहे, लेकिन आपको सावधान कर रहा हूं कि मैं आपकी तुलना बाबा से नहीं कर रहा हूं, वस्तुतः भोजपुरी साहित्य की समृद्ध परम्परा को सम्मान से स्मरण कर रहा हूं और आपसे उम्मीद कर रहा हूं कि आप यहां पेश की जाने वाली रचनाओं में इसका ध्यान रखेंगे ! फोरम पर आपका दिन-प्रतिदिन निखरता रूप मुझे बहुत संतुष्टि दे रहा है और मैं आपमें 'ज्ञानपीठ' से नवाज़ा गया भावी व्यक्तित्व देख रहा हूं, लेकिन आपको निस्संदेह इसके लिए मेहनत करनी होगी ! एक बार और आभार !

सबसे पहले आपको प्रणाम!
आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ निश्चय ही कारगर सिद्ध होती हैं और कार्य को कुशल करने के लिए प्रेरित भी करती हैं। जहाँ तक श्री वैद्यनाथ मिश्र 'नागार्जुन' जी की बात है, तो मैंने उनकी 10-12 रचनाएँ पढ़ी हैं। मेरे विचार से वे भोजपुरी में नहीं लिखते थे। हाँ, वे अपनी रचनाओं में गाँव-जवार में प्रचलित भोजपुरी शब्दों का खूब समावेश करते थे। बाबा प्रयोगवाद के महानतम कवियों में से एक थे। शोषित वर्ग की पीङा, पिछङे हुए निम्न वर्ग की समस्या आदि बाबा के काव्य का मुख्य विषय रहा है।
बाबा के आस-पास आने के लिए सम्भवत: मुझे तीन चार जन्म और लेना पङेगा।
सच कहिए तो मैं कविता लिखता नहीं था, बल्कि आप जैसे महानुभावों ने मुझे प्रेरित करके लिखवाया और जाने-अंजाने में मैं कुछ-कुछ लिखने लगा।
मेरा लक्ष्य है भोजपुरी गीत लेखन, किन्तु अब भोजपुरी के साथ-साथ हिन्दी में भी लिखने लगा हूँ।
'ज्ञानपीठ' की बात तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था और मेरे विचार से इसके बारे में मुझे सोचना भी नहीं चाहिए। साहित्यिक क्षेत्र में बहुत सी महान हस्तियाँ पङी हुई हैं। मैं वास्तविक रूप से महज 1.5 या 2 साल से ही लिख रहा हूँ। मुझे अभी लम्बा रास्ता तय करना है। अब मुझ पर अच्छा लिखने की जिम्मेदारी आन पङी है, क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि आजकल गुनीजन भी मेरी रचना पढने लगे हैं। आप लोगों से आशीर्वाद की अपेक्षा है।
धन्यवाद!

Dark Saint Alaick
27-04-2012, 12:01 PM
मित्र ! आपकी यह बात सोलह आने सही है कि बाबा 'भोजपुरी' में नहीं लिखते थे ! उन्होंने 'नागार्जुन' नाम से हिंदी में और 'यात्री' नाम से मैथिली में ही सृजन किया है, किन्तु मैंने उनका उल्लेख उन अर्थों में नहीं किया था ! यह ठीक उसी तरह था, जैसे मैं आपकी कोई रचना पढ़ते हुए इब्ने-इंशा या कीट्स को याद करूं, तो इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि आप उर्दू या अंग्रेज़ी में लिख रहे हैं अथवा ये दोनों रचनाकार आपकी भाषा में ! किसी को पढ़ते हुए किसी अन्य रचनाकार का स्मरण हो आने के कई कारण होते हैं और उनमें मेरे विचार से वर्णित भावों की भूमिका प्रमुख है ! खैर, जहां तक सपने की बात है; कलाम साहब ने कहा है कि तरक्की के लिए मनुष्य को सपने अवश्य देखने चाहिए ! इसी से आपका लक्ष्य या उपलब्धि निर्धारित होती है !

Suresh Kumar 'Saurabh'
27-04-2012, 12:09 PM
मित्र ! आपकी यह बात सोलह आने सही है कि बाबा 'भोजपुरी' में नहीं लिखते थे ! उन्होंने 'नागार्जुन' नाम से हिंदी में और 'यात्री' नाम से मैथिली में ही सृजन किया है, किन्तु मैंने उनका उल्लेख उन अर्थों में नहीं किया था ! यह ठीक उसी तरह था, जैसे मैं आपकी कोई रचना पढ़ते हुए इब्ने-इंशा या कीट्स को याद करूं, तो इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि आप उर्दू या अंग्रेज़ी में लिख रहे हैं अथवा ये दोनों रचनाकार आपकी भाषा में ! किसी को पढ़ते हुए किसी अन्य रचनाकार का स्मरण हो आने के कई कारण होते हैं और उनमें मेरे विचार से वर्णित भावों की भूमिका प्रमुख है ! खैर, जहां तक सपने की बात है; कलाम साहब ने कहा है कि तरक्की के लिए मनुष्य को सपने अवश्य देखने चाहिए ! इसी से आपका लक्ष्य या उपलब्धि निर्धारित होती है ! हाँ , ये बात बिल्कुल सही लगती है। वैसे मेरे लिए आपने नागार्जुन जी की बात की है तो यह गर्व की बात है।