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View Full Version : हुजूर इस कदर भी...


sombirnaamdev
27-04-2012, 11:17 PM
सरे आम न यूँ हमको दीवाना, अपना बना के चलिए .
हुजुर इस कदर भी दिल पे ना सितम ढाके चलिए !

इन मदमस्त आँखों से तुम्हारी,कोई हो इशारा ना जाये .
बेमौत कोई तुम्हारे पीछे यु ही मारा ना जाये..
सीने से दुपट्टा ना सरका के चलिए !
हुजुर इस कदर भी दिल पे ना सितम ढाके चलिए !

मीठी मीठी बातें तो सहेलियों से हो रही हैं .
पर ना जाने क्यू नजरें कहीं और खो रही हैं..
यूँ सहेलियों को भी न पागल बनके चलिए !
हुजुर इस कदर भी दिल पे ना सितम ढाके चलिए !

तेरी आँखों का काजल सागर की गहराई ले बैठा .
क्या होग अगर कोई मासूम दिल तुमको दे बैठा ..
सरे बाज़ार ना यु आँखों का तुनका के चलिए !
हुजुर इस कदर भी दिल पे ना सितम ढाके चलिए !

मस्तानी इस चाल पे तम्हारी आशिक मोर हो गए .
चुपके २ निहारे हम सरे आम देखने के भी चोर हो गए ..
सीने ऊपर रखके कदम इस तरह न इठला के चलिए !
हुजुर इस कदर भी दिल पे ना सितम ढाके चलिए !

"नामदेव " भी तुम्हारे हाथों क़त्ल होने का इरादा रखता है .
ये दिल तुम को ही अपना बनाने का इरादा रखता है ..
इस तरह से इस मासूम दिल को ना यूँ बहला के चलिए !

Sikandar_Khan
28-04-2012, 10:03 AM
बहुत ही सुन्दर लिखा है नामदेव जी ! परन्तु आपकी रचना का शीर्षक किसी गीत से हू-ब-हू मैच करता है |

sombirnaamdev
28-04-2012, 09:59 PM
बहुत ही सुन्दर लिखा है नामदेव जी ! परन्तु आपकी रचना का शीर्षक किसी गीत से हू-ब-हू मैच करता है |


जरूर मिलती होंगी सर लेकिन ये कविता 100 % मेरी है !
हर किसी रचना के के पीछे कोई न कोई प्रेरणा तो होती ही है !
शायद किसी गजल के बोल हो सकते है

Suresh Kumar 'Saurabh'
29-04-2012, 08:19 AM
अच्छा है। भाव बढिया है।

sombirnaamdev
29-04-2012, 07:09 PM
अच्छा है। भाव बढिया है।
dhanyavaad saurabh ji jo aapne hame is kabil samjha

Dr. Rakesh Srivastava
30-04-2012, 06:26 PM
क्या बात है ! बड़े रोमांटिक नज़र आ रहे हैं .

Dark Saint Alaick
30-04-2012, 08:54 PM
मित्र, फिल्म 'मासूम' का यह एक मशहूर गीत है, जिसे भूपेन्द्र और सुरेश वाडकर ने आवाज़ दी है -
हुजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए
खुले आम आंचल ना लहरा के चलिए

कोई मनचला अगर पकड़ लेगा आंचल
ज़रा सोचिए आप क्या कीजिएगा
लगा दे अगर, बढ़ के जुल्फों में कलियां
तो क्या अपनी जुल्फें झटक दीजिएगा ... !

आपकी सिर्फ एक लाइन इससे मिल रही है और मेरा मानना है कि यह कोई बड़ी बात नहीं है ! दरअसल कई बार कुछ पढी या सुनी हुई चीजें हमारे अवचेतन में कहीं गहरे पैंठ जाती हैं और फिर कालान्तर में रूप बदल कर अथवा जस के तस हमारी अनभिज्ञता में मौलिक रूप में प्रकट हो जाती हैं ! आपके साथ संभवतः यही हुआ है ! महज़ एक पंक्ति आपकी रचना पर बदनुमा दाग लगा रही है और मेरा मानना है कि इसे आपको बदल ही देना चाहिए ! धन्यवाद

sombirnaamdev
30-04-2012, 09:16 PM
मित्र, फिल्म 'मासूम' का यह एक मशहूर गीत है, जिसे भूपेन्द्र और सुरेश वाडकर ने आवाज़ दी है -
हुजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए
खुले आम आंचल ना लहरा के चलिए

कोई मनचला अगर पकड़ लेगा आंचल
ज़रा सोचिए आप क्या कीजिएगा
लगा दे अगर, बढ़ के जुल्फों में कलियां
तो क्या अपनी जुल्फें झटक दीजिएगा ... !

आपकी सिर्फ एक लाइन इससे मिल रही है और मेरा मानना है कि यह कोई बड़ी बात नहीं है ! दरअसल कई बार कुछ पढी या सुनी हुई चीजें हमारे अवचेतन में कहीं गहरे पैंठ जाती हैं और फिर कालान्तर में रूप बदल कर अथवा जस के तस हमारी अनभिज्ञता में मौलिक रूप में प्रकट हो जाती हैं ! आपके साथ संभवतः यही हुआ है ! महज़ एक पंक्ति आपकी रचना पर बदनुमा दाग लगा रही है और मेरा मानना है कि इसे आपको बदल ही देना चाहिए ! धन्यवाद

श्रीमान जी, मैंने इसमें परिवर्तन कर दिया है, अब title को आप परिवर्तित
कर दीजियेगा |

sombirnaamdev
30-04-2012, 10:01 PM
क्या बात है ! बड़े रोमांटिक नज़र आ रहे हैं . kya dr saab har vaqat rota hi rahun kya ,

dhanyavaad aapko kavita padhane or pasand karane ke liye