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View Full Version : लाचार पत्ता


Suresh Kumar 'Saurabh'
30-04-2012, 07:02 AM
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सूचना:-

यह एक फालतू रचना है। वैसे तो मैं पहले भी अच्छा नहीं लिखता था और अब तो मैंने अच्छा लिखने का प्रयास ही छोड़ दिया है। आप लोगों के विचार बहुत ही क़ीमती हैं। कृपया इस बेकार की रचना पर अपने बहुमूल्य विचारों को बरबाद न करें।

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Suresh Kumar 'Saurabh'
30-04-2012, 07:05 AM
यह एक समकालीन कविता है। इसमें वृक्ष के एक सूखे/मुरझाये पत्ते और हरे-भरे पत्तों की बात है। वृक्ष एक समाज की तरह है, जबकि पत्ते समाज में रहने वाले व्यक्तियों की तरह हैं। सूखा पत्ता बेबस, लाचार तथा असहाय दिखाया गया है। यह सूखा पत्ता समाज में रहने वाले शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका की खूब शोषण किया जाता है। जबकि हरे-भरे पत्ते उच्च वर्गीय शोषक का प्रतिनिधित्व करते हैं। हवा/आँधी इत्यादि मानवताहीनता तथा बेईमानी के प्रतीक हैं।
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लाचार पत्ता

बाग़ में,
एक पेड़ की छाया में,
मैं बैठा था!
पंछी चहचहा रहे थे,
पत्ते झूम-झूमकर गा रहे थे,
तभी!
एक मुरझाया हुआ पत्ता मेरे सामने
आकर गिरा,
कटी पतंग की तरह,
तड़फड़ाता रहा जैसे परकटा
कोई पंछी हो,
मैंने पूछा-
कहो! कैसे गिर पड़े?
पैर तो नहीं न फिसले तुम्हारे?
वो बोला-
हरे-भरे पत्तों ने,
हवा से मिलकर,
योजनाबद्ध ढंग से,
मुझे नीचे ढकेल दिया,
क्योंकि मैं सूखा था
कुछ नहीं कर सकता था
पेड़ के लिए!
मैंने कहा-
हाँ भाई!
आज बेबसों, लाचारों,
किस्मत के मारों को,
कौन पूछता है,
सिवाय यमराज के!
तभी हवा का एक प्रचण्ड झोंका
लहराता हुआ आया
उड़ाकर ले गया पत्ते को
एक तालाब में,
अभी जान बाक़ी थी उसकी
किन्तु, हवा ने पत्ते का
जीते-जी अन्तिम संस्कार
कर डाला
मैंने देखा!
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Sikandar_Khan
30-04-2012, 08:42 AM
यह एक समकालीन कविता है। इसमें वृक्ष के एक सूखे/मुरझाये पत्ते और हरे-भरे पत्तों की बात है। वृक्ष एक समाज की तरह है, जबकि पत्ते समाज में रहने वाले व्यक्तियों की तरह हैं। सूखा पत्ता बेबस, लाचार तथा असहाय दिखाया गया है। यह सूखा पत्ता समाज में रहने वाले शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका की खूब शोषण किया जाता है। जबकि हरे-भरे पत्ते उच्च वर्गीय शोषक का प्रतिनिधित्व करते हैं। हवा/आँधी इत्यादि मानवताहीनता तथा बेईमानी के प्रतीक हैं।
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लाचार पत्ता

बाग़ में,
एक पेड़ की छाया में,
मैं बैठा था!
पंछी चहचहा रहे थे,
पत्ते झूम-झूमकर गा रहे थे,
तभी!
एक मुरझाया हुआ पत्ता मेरे सामने
आकर गिरा,
कटी पतंग की तरह,
तड़फड़ाता रहा जैसे परकटा
कोई पंछी हो,
मैंने पूछा-
कहो! कैसे गिर पड़े?
पैर तो नहीं न फिसले तुम्हारे?
वो बोला-
हरे-भरे पत्तों ने,
हवा से मिलकर,
योजनाबद्ध ढंग से,
मुझे नीचे ढकेल दिया,
क्योंकि मैं सूखा था
कुछ नहीं कर सकता था
पेड़ के लिए!
मैंने कहा-
हाँ भाई!
आज बेबसों, लाचारों,
किस्मत के मारों को,
कौन पूछता है,
सिवाय यमराज के!
तभी हवा का एक प्रचण्ड झोंका
लहराता हुआ आया
उड़ाकर ले गया पत्ते को
एक तालाब में,
अभी जान बाक़ी थी उसकी
किन्तु, हवा ने पत्ते का
जीते-जी अन्तिम संस्कार
कर डाला
मैंने देखा!
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बहुत ही सुन्दर ! लाचारी का दर्द शब्दोँ मे की माला मे पिरोकर पेश किया है |

sombirnaamdev
03-05-2012, 09:05 PM
यह एक समकालीन कविता है। इसमें वृक्ष के एक सूखे/मुरझाये पत्ते और हरे-भरे पत्तों की बात है। वृक्ष एक समाज की तरह है, जबकि पत्ते समाज में रहने वाले व्यक्तियों की तरह हैं। सूखा पत्ता बेबस, लाचार तथा असहाय दिखाया गया है। यह सूखा पत्ता समाज में रहने वाले शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका की खूब शोषण किया जाता है। जबकि हरे-भरे पत्ते उच्च वर्गीय शोषक का प्रतिनिधित्व करते हैं। हवा/आँधी इत्यादि मानवताहीनता तथा बेईमानी के प्रतीक हैं।
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लाचार पत्ता

बाग़ में,
एक पेड़ की छाया में,
मैं बैठा था!
पंछी चहचहा रहे थे,
पत्ते झूम-झूमकर गा रहे थे,
तभी!
एक मुरझाया हुआ पत्ता मेरे सामने
आकर गिरा,
कटी पतंग की तरह,
तड़फड़ाता रहा जैसे परकटा
कोई पंछी हो,
मैंने पूछा-
कहो! कैसे गिर पड़े?
पैर तो नहीं न फिसले तुम्हारे?
वो बोला-
हरे-भरे पत्तों ने,
हवा से मिलकर,
योजनाबद्ध ढंग से,
मुझे नीचे ढकेल दिया,
क्योंकि मैं सूखा था
कुछ नहीं कर सकता था
पेड़ के लिए!
मैंने कहा-
हाँ भाई!
आज बेबसों, लाचारों,
किस्मत के मारों को,
कौन पूछता है,
सिवाय यमराज के!
तभी हवा का एक प्रचण्ड झोंका
लहराता हुआ आया
उड़ाकर ले गया पत्ते को
एक तालाब में,
अभी जान बाक़ी थी उसकी
किन्तु, हवा ने पत्ते का
जीते-जी अन्तिम संस्कार
कर डाला
मैंने देखा!
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एक बात कहूँ मित्र आप एक अच्छे कवि और सुलझे हुए इन्सान है \
इस लिए फिजूल की बातों की तरफ ध्यान न देकर सर्जन कार्य को निर्बाध रूप से आगे बढाइये ,
हम सब फोरम के सदस्य एक परिवार की भांति है ,सब भावनाओ को समझिये और सब को साथ लेकर चलिए ,धन्यवाद
.आपको पूरा सहयोग दिया जाएग इस लिए इस सुचना और signature को बदलिए ताकि फोरम पे सदभाव बना रहे!

आपका शुभ इच्छुक .सोमबीर सिंह सरोया

abhisays
03-05-2012, 09:10 PM
एक बात कहूँ मित्र आप एक अच्छे कवि और सुलझे हुए इन्सान है \
इस लिए फिजूल की बातों की तरफ ध्यान न देकर सर्जन कार्य को निर्बाध रूप से आगे बढाइये ,
हम सब फोरम के सदस्य एक परिवार की भांति है ,सब भावनाओ को समझिये और सब को साथ लेकर चलिए ,धन्यवाद
.आपको पूरा सहयोग दिया जाएग इस लिए इस सुचना और signature को बदलिए ताकि फोरम पे सदभाव बना रहे!

आपका शुभ इच्छुक .सोमबीर सिंह सरोया


baate pate ki kahin hai apane सोमबीर ji.

Sikandar_Khan
03-05-2012, 09:54 PM
सुरेश भाई जी , आपसे हाथ जोड़कर विनती है की अपने निर्णय पर पुनः विचार करेँ
किसी एक के लिए आप स्वयं को सजा मत देँ |

Suresh Kumar 'Saurabh'
04-05-2012, 02:54 PM
सभी का धन्यवाद!