Suresh Kumar 'Saurabh'
01-05-2012, 07:26 PM
*****************************
तुम्हें इससे क्या?
मेरा धन है आँखों का पानी,
मैं तो अपना धन खो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आँसू की धारा बह रही है,
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
अभी जो मेरे साथ हो रहा है होने दो/
जाओ, तुम अपना काम करो, मुझे रोने दो/
रोकर ही आज आराम पायेगा मेरा दिल /
न सुलझाने की कोशिश करो मेरी मुश्किल/
मैं और उलझना चाहता हूँ,
उलझनें पिरो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
किसी साथी-दोस्त की नहीं तलाश मुझे/
अब तो किसी पर भी नहीं विश्वास मुझे/
हमदर्द का नाटक करके क्या दोगे मुझे?
जैसे औरों ने दिया वैसे ही दग़ा दोगे मुझे/
कहो, मैं शक्की हो रहा हूँ,
हाँ! हाँ! हाँ! हो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
तुम मुझे मनमानी करने दो, टोको मत/
मैं खेती करने चला हूँ, मुझे रोको मत /
बीज पड़ चुका है दिल के खेत में दर्द का/
नहीं जोहा बाट गर्मी-बरखा-सर्द का/
सींचकर अश्रु के जल से,
दु:ख की फसल बो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
हर घड़ी, हर पल होता हूँ नाकाम अब/
बेवजह, सरेआम होता हूँ बदनाम अब/
कोई आशा नहीं दुर्भाग्य के बदलने की/
हिम्मत नहीं ज़िन्दगी लेकर चलने की/
मौत के हवाले कर दूँगा 'सौरभ',
ये जीवन ढो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
*****************************
सुरेश कुमार 'सौरभ'/ व्यर्थ
*****************************
तुम्हें इससे क्या?
मेरा धन है आँखों का पानी,
मैं तो अपना धन खो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आँसू की धारा बह रही है,
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
अभी जो मेरे साथ हो रहा है होने दो/
जाओ, तुम अपना काम करो, मुझे रोने दो/
रोकर ही आज आराम पायेगा मेरा दिल /
न सुलझाने की कोशिश करो मेरी मुश्किल/
मैं और उलझना चाहता हूँ,
उलझनें पिरो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
किसी साथी-दोस्त की नहीं तलाश मुझे/
अब तो किसी पर भी नहीं विश्वास मुझे/
हमदर्द का नाटक करके क्या दोगे मुझे?
जैसे औरों ने दिया वैसे ही दग़ा दोगे मुझे/
कहो, मैं शक्की हो रहा हूँ,
हाँ! हाँ! हाँ! हो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
तुम मुझे मनमानी करने दो, टोको मत/
मैं खेती करने चला हूँ, मुझे रोको मत /
बीज पड़ चुका है दिल के खेत में दर्द का/
नहीं जोहा बाट गर्मी-बरखा-सर्द का/
सींचकर अश्रु के जल से,
दु:ख की फसल बो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
.
हर घड़ी, हर पल होता हूँ नाकाम अब/
बेवजह, सरेआम होता हूँ बदनाम अब/
कोई आशा नहीं दुर्भाग्य के बदलने की/
हिम्मत नहीं ज़िन्दगी लेकर चलने की/
मौत के हवाले कर दूँगा 'सौरभ',
ये जीवन ढो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
आज मैं रो रहा हूँ,
तुम्हें इससे क्या?
*****************************
सुरेश कुमार 'सौरभ'/ व्यर्थ
*****************************