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View Full Version : एक कविता : कैसे उबरूँ पीर से?


Suresh Kumar 'Saurabh'
03-05-2012, 06:41 PM
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हृदय छलनी हो गया है, न जाने किस तीर से।
हाय! कैसे उबरूँ, कैसे उबरूँ, मैं इस पीर से?
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शब्द किधर चले गये, भाव कहाँ खो गया है/
व्याग्र हूँ, विस्मित हूँ, ये क्या मुझे हो गया है/
कल्पना धुमिल भई, अब कुछ सोचा नहीं जाता/
कलम है, पृष्ठ है, हाथ कुछ लिख नहीं पाता/
उँगलियाँ जकड़ ली गईं हैं, लगता है जंज़ीर से।
हाय! कैसे उबरूँ, कैसे उबरूँ, मैं इस पीर से।।
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कहीं स्वयं से ही मैं न, अब कोई द्वन्द कर लूँ/
कहीं लिखना ही आज से, मैं ना बन्द कर दूँ/
लिखने के वचन से मैं, यूँ ही नहीं फिर गया/
जब भी मैं कुछ लिखने चला, दो-बूँद गिर गया/
धुल गये शब्द सारे, मेरे नयनों के गिरे नीर से।
हाय! कैसे उबरूँ, कैसे उबरूँ, मैं इस पीर से।।
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उड़ना चाहता था पंछी, किन्तु कट ही गया पाँख/
चन्दन बेचारा जलकर, बन गया चिता का राख/
अपनी ही सेना शत्रु बनी, आशा तार-तार हुई/
जिसकी जीत सुनिश्चित थी, उसी की हार हुई/
विक्षोभ क्या है 'सौरभ', पूछो पराजित वीर से।
हाय! कैसे उबरूँ, कैसे उबरूँ, मैं इस पीर से।।

sombirnaamdev
03-05-2012, 06:56 PM
.................................................. baki aapne kuch kahane ko mana kiya hai ,bina bole sab samjh lijiyega

abhisays
03-05-2012, 07:24 PM
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Sikandar_Khan
03-05-2012, 11:24 PM
आपने तो मुझे लिखने के लिए ही मना कर दिया है ! परन्तु बिना लिखे भी आप सब कुछ समझ गए होँगे |

Suresh Kumar 'Saurabh'
03-05-2012, 11:43 PM
आपने तो मुझे लिखने के लिए ही मना कर दिया है ! परन्तु बिना लिखे भी आप सब कुछ समझ गए होँगे |

सिकन्दर भाई जी,
मैं दो तीन दिन से बहुत दु:खी था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। अभी एक- दो घंटे से कुछ मन को शान्ति प्राप्त हुई है।
मैंने दो रचनाएँ
1- तुम्हें इससे क्या?
और आज शाम को लिखित
2- कैसे उबरूँ पीर से?
बहुत ही अधिक दु:खी मन से लिखी है, लिखी क्या है मन के दर्द ने लिखवाया है। दोनों रचनाएँ बिल्कुल सात-आठ मिनट में पूरी हो गईं।
बहुत जल्दी भावुक होना तथा निराश व दु:खी होना मेरी सबसे बङी कमजोरी है। न जाने कब निराश होने की आदत से छुटकारा मिलेगा।

Sikandar_Khan
04-05-2012, 12:13 AM
सुरेश भाई जी , मै आपका दुःख समझ सकता हूँ ! परन्तु चाहकर भी आपके लिए कुछ नही कर सकता हूँ
ये जरूरी नही है की आप सभी को अपने व्यवहार से प्रसन्न रख सकेँ ! जब पूरी सृष्टि को चलाने वाला ईश्वर भी सभी मनुष्योँ को प्रसन्न नही रख सकता है ! तो उसके सामने हम जैसे तुच्छ मनुष्योँ की क्या औकात है |
आपके द्वारा रचित दोनोँ रचनाओँ मे मैने आपको दर्द पढ़ा है और पढ़कर उस दर्द को महसूस भी किया |

Dark Saint Alaick
04-05-2012, 12:30 AM
सिकन्दर भाई जी,
मैं दो तीन दिन से बहुत दु:खी था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। अभी एक- दो घंटे से कुछ मन को शान्ति प्राप्त हुई है।
मैंने दो रचनाएँ
1- तुम्हें इससे क्या?
और आज शाम को लिखित
2- कैसे उबरूँ पीर से?
बहुत ही अधिक दु:खी मन से लिखी है, लिखी क्या है मन के दर्द ने लिखवाया है। दोनों रचनाएँ बिल्कुल सात-आठ मिनट में पूरी हो गईं।
बहुत जल्दी भावुक होना तथा निराश व दु:खी होना मेरी सबसे बङी कमजोरी है। न जाने कब निराश होने की आदत से छुटकारा मिलेगा।


इस फोरम पर लगातार सक्रिय रहें और मन को इधर-उधर न भटकने दें ! बस, आपकी समस्या का निदान हो जाएगा ! हां, शर्त यह है कि 'कविवर' जैसे अपने 'बड़े' अगर कुछ सुझाव देते हैं, तो उसे गुनें, उसका बुरा न मानें, क्योंकि यहां कोई भी आपकी तरक्की में बाधा बनना नहीं चाहता, बल्कि सभी मित्र चाहते हैं कि आप एक दिन सूर्य की तरह भारतीय काव्य आकाश पर चमकें और हम सब आपसे कुछ ऊर्जा ग्रहण करें ! अब यह आप पर है कि आप चीजों को किस तरह लेते हैं ! यह याद रखें कि 'बड़े' अगर कुछ कहते हैं, तो वह आपके भले के लिए ही होता है, उसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं होता ! सच कहूं, तो 'कविवर' ने आपके एक सूत्र में आपको एक नेक सलाह दी थी, लेकिन आपने उसका बेहद बचकाना प्रतिवाद किया - शायद आपको पता होना चाहिए कि उर्दू ग़ज़ल में 'ढो' आदि ऐसे शब्दों का प्रयोग रदीफ़ में सर्वथा वर्जित है, जो गायन में बाधा उत्पन्न करें, क्योंकि ग़ज़ल मूलतः गायन की विधा है ! खैर, मुझे लगता है कि मैं ज्यादा ही कह गया हूं, लेकिन आप इसका बुरा नहीं मानेंगे, ऎसी उम्मीद है ! धन्यवाद !

Suresh Kumar 'Saurabh'
04-05-2012, 01:06 AM
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Dark Saint Alaick
04-05-2012, 01:18 AM
धन्यवाद, मित्र ! अब मेरी समझ में आ गया है कि आपको कुछ कहना व्यर्थ है ! अब आप मुझे कभी अपने सूत्रों में नहीं पाएंगे ! शुक्रिया !

Suresh Kumar 'Saurabh'
04-05-2012, 01:38 AM
धन्यवाद, मित्र ! अब मेरी समझ में आ गया है कि आपको कुछ कहना व्यर्थ है ! अब आप मुझे कभी अपने सूत्रों में नहीं पाएंगे ! शुक्रिया !


यदि ऐसी बात है तो ठीक है मैं भी आपको और अन्य सदस्यों को अपने सूत्र पर आने का अवसर ही नहीं दूँगा। कैसे नहीं दूँगा ये आप खुद देखेंगे। अब मैं कहीं भी, किसी भी सूत्र पर कुछ भी कमेंट भी नहीं करूँगा। बङी उम्मीद से इस फोरम पर आया था, किन्तु मेरे इस उग्र स्वभाव (जोकि मेरा सबसे नकारात्मक पक्ष है) ने मुझे फिर से विषाद के गहरे गर्त में ढकेल दिया है। मैं आप सबसे अपनी गलती के लिए हाथ जोङकर क्षमा माँगता हूँ।
मैं इस फोरम के योग्य नहीं हूँ।
धन्यवाद!
जय हिन्द!

Suresh Kumar 'Saurabh'
04-05-2012, 07:23 AM
इस फोरम पर लगातार सक्रिय रहें और मन को इधर-उधर न भटकने दें ! बस, आपकी समस्या का निदान हो जाएगा ! हां, शर्त यह है कि 'कविवर' जैसे अपने 'बड़े' अगर कुछ सुझाव देते हैं, तो उसे गुनें, उसका बुरा न मानें, क्योंकि यहां कोई भी आपकी तरक्की में बाधा बनना नहीं चाहता, बल्कि सभी मित्र चाहते हैं कि आप एक दिन सूर्य की तरह भारतीय काव्य आकाश पर चमकें और हम सब आपसे कुछ ऊर्जा ग्रहण करें ! अब यह आप पर है कि आप चीजों को किस तरह लेते हैं ! यह याद रखें कि 'बड़े' अगर कुछ कहते हैं, तो वह आपके भले के लिए ही होता है, उसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं होता !
सच कहूं, तो 'कविवर' ने आपके एक सूत्र में आपको एक नेक सलाह दी थी, लेकिन आपने उसका बेहद बचकाना प्रतिवाद किया - शायद आपको पता होना चाहिए कि उर्दू ग़ज़ल में 'ढो' आदि ऐसे शब्दों का प्रयोग रदीफ़ में सर्वथा वर्जित है

, जो गायन में बाधा उत्पन्न करें, क्योंकि ग़ज़ल मूलतः गायन की विधा है ! खैर, मुझे लगता है कि मैं ज्यादा ही कह गया हूं, लेकिन आप इसका बुरा नहीं मानेंगे, ऎसी उम्मीद है ! धन्यवाद !

1-पता नहीं आपको क्यों ऐसा लगा कि मैंने डा. साहब की सलाह को बुरा माना है। मैंने उनकी सलाह को सकारात्मक रूप में ग्रहण किया था।
2- ''ढो'' शब्द का प्रयोग मैंने नहीं किया था।

malethia
04-05-2012, 07:27 PM
यदि ऐसी बात है तो ठीक है मैं भी आपको और अन्य सदस्यों को अपने सूत्र पर आने का अवसर ही नहीं दूँगा। कैसे नहीं दूँगा ये आप खुद देखेंगे। अब मैं कहीं भी, किसी भी सूत्र पर कुछ भी कमेंट भी नहीं करूँगा। बङी उम्मीद से इस फोरम पर आया था, किन्तु मेरे इस उग्र स्वभाव (जोकि मेरा सबसे नकारात्मक पक्ष है) ने मुझे फिर से विषाद के गहरे गर्त में ढकेल दिया है। मैं आप सबसे अपनी गलती के लिए हाथ जोङकर क्षमा माँगता हूँ।
मैं इस फोरम के योग्य नहीं हूँ।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
अपनी गलती स्वीकार करना आपका सबसे अच्छा सदगुण है ,इसे बनाये रखे !
व्यर्थ गुस्सा करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता !आप बहुत अच्छा लिखते है और कहते है कवि जो होता है वह बहुत सहृदय होता है मिसाल के तौर पर आप डॉ.साहेब या अलेक्क जी को पढ़ लीजिये !आपकी साड़ी समस्याओं का समाधान खुद-बा-खुद हो जाएगा !

Suresh Kumar 'Saurabh'
04-05-2012, 08:04 PM
अपनी गलती स्वीकार करना आपका सबसे अच्छा सदगुण है ,इसे बनाये रखे !व्यर्थ गुस्सा करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता !आप बहुत अच्छा लिखते है और कहते है कवि जो होता है वह बहुत सहृदय होता है मिसाल के तौर पर आप डॉ.साहेब या अलेक्क जी को पढ़ लीजिये !आपकी साड़ी समस्याओं का समाधान खुद-बा-खुद हो जाएगा ! आपका आभार प्रकट करता हूँ! आपने मुझे समझने का प्रयास किया। जहाँ तक गुस्से की बात है तो शायद नया खून है अत: गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है और मैं किसी बात पर जल्दी भावुक भी हो जाता हूँ। गुस्सा करने के बाद मैं स्वयं पछताता हूँ कि आखिर मैंने ऐसा क्यों किया। इस क्रोध पर नियंत्रण करने का बहुत प्रयास करता हूँ, परन्तु प्राय: असफल ही रहता हूँ। यह मेरा सबसे बङा नकारात्मक पक्ष है।
मेरे द्वारा किसी को ठेस पहुँचता है, तो मैं बाद में बङा शर्मिंदा होता हूँ जैसे कि अभी हूँ। मन विचलित हो गया है।

ndhebar
05-05-2012, 12:50 PM
निंदा को भी आलोचना के रूप में ग्रहण करना सिख लीजिये
आपकी सारी तकलीफ दूर हो जाएगी