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View Full Version : एक ग़ज़ल : मेहनत


Suresh Kumar 'Saurabh'
12-05-2012, 07:47 PM
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धरती खोदेंगे तभी पायेंगे जल यारों।
बिन मेहनत नहीं मिलेगा फल यारों।।
.
जो किसान धूप में पसीना बहाता है,
उसी की लहलहाती है फसल यारों।।
.
जब समुद्र का मंथन किया जाता है,
तभी मिलता रत्न-अमृत-गरल यारों।।
.
बीस सालों तक जब अथक प्रयास हुए,
तब बना था अजूबा ताजमहल यारों।।
.
चुन-चुनकर जब शेर इकट्ठे करोगे,
तभी बन पायेगी मुक़म्मल ग़ज़ल यारों।।
.
तुम कुछ नहीं कर सकते, क्यों सोचते हो,
ये सोच अभी से ही दो बदल यारों।।
.
हम नौजवान हैं दुनिया बदल सकते हैं,
अगर करलें अपना इरादा अटल यारों।।
.
बदनसीबी का कीचड़ है, पर मत भूलो,
कीचड़ में भी खिलता है कमल यारों।।
.
ये हाथ माथे पर क्यों हैं? हटा लो इसे,
अरे! कौन नहीं होता है असफल यारों।।
.
हमें हर हाल में चलना है ठान लें गर,
पथरीली राह बन जाये मखमल यारों।।
.
सूरज को तोड़कर हथेली पर रख लो,
रास्ते का हर पर्वत जायेगा पिघल यारों।।
.
'आराम हराम हैं' का नारा लगाते हुए,
देखो, निकल पड़ा चींटियों का दल यारों।।
.
समन्दर ज़रूर पा लेती हैं वे नदियाँ,
जो एक बार पड़ती हैं निकल यारों।।
.
आओ एक बार फिर से कोशिश करते हैं,
ज़रूर होंगे हम एक दिन सफल यारों।।
.
इक्कीसवीं सदी है कुछ भी 'सौरभ',
आसानी से नहीं मिलता आजकल यारों।।
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Sikandar_Khan
12-05-2012, 11:17 PM
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धरती खोदेंगे तभी पायेंगे जल यारों।
बिन मेहनत नहीं मिलेगा फल यारों।।
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जो किसान धूप में पसीना बहाता है,
उसी की लहलहाती है फसल यारों।।
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जब समुद्र का मंथन किया जाता है,
तभी मिलता रत्न-अमृत-गरल यारों।।
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बीस सालों तक जब अथक प्रयास हुए,
तब बना था अजूबा ताजमहल यारों।।
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चुन-चुनकर जब शेर इकट्ठे करोगे,
तभी बन पायेगी मुक़म्मल ग़ज़ल यारों।।
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तुम कुछ नहीं कर सकते, क्यों सोचते हो,
ये सोच अभी से ही दो बदल यारों।।
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हम नौजवान हैं दुनिया बदल सकते हैं,
अगर करलें अपना इरादा अटल यारों।।
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बदनसीबी का कीचड़ है, पर मत भूलो,
कीचड़ में भी खिलता है कमल यारों।।
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ये हाथ माथे पर क्यों हैं? हटा लो इसे,
अरे! कौन नहीं होता है असफल यारों।।
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हमें हर हाल में चलना है ठान लें गर,
पथरीली राह बन जाये मखमल यारों।।
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सूरज को तोड़कर हथेली पर रख लो,
रास्ते का हर पर्वत जायेगा पिघल यारों।।:fantastic:
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'आराम हराम हैं' का नारा लगाते हुए,
देखो, निकल पड़ा चींटियों का दल यारों।।
.
समन्दर ज़रूर पा लेती हैं वे नदियाँ,
जो एक बार पड़ती हैं निकल यारों।।
.
आओ एक बार फिर से कोशिश करते हैं,
ज़रूर होंगे हम एक दिन सफल यारों।।
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इक्कीसवीं सदी है कुछ भी 'सौरभ',
आसानी से नहीं मिलता आजकल यारों।।
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सुरेश भाई जी ,अत्यंत प्रेरणादायक रचना है ! जो हमेँ निराशा के क्षणोँ मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है |

ndhebar
13-05-2012, 12:23 PM
too good bhaai
keep it up