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View Full Version : मीडिया स्कैन


Dark Saint Alaick
23-05-2012, 03:24 PM
मित्रो। मेरा यह नया सूत्र आप तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की आवाज़ पहुंचाने के लिए है अर्थात संसार भर के समाचार पत्र विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर क्या अभिमत प्रकट कर रहे हैं, मेरा यह सूत्र प्रतिदिन आपको यह बताएगा। किन्तु इसमें मैं बहुत सारी प्रविष्ठियां नहीं करूंगा, प्रतिदिन सिर्फ एक या दो अखबारों का किसी एक विषय पर नज़रिया ही इसमें संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत होगा, ताकि आप सभी उस पर गहन चिंतन कर सकें और शेष विश्व से निरंतर जुड़े रहें। मुझे उम्मीद है कि वैश्विक राजनीति और घटनाक्रम में रूचि रखने वालों के लिए मेरा यह सूत्र उपयोगी साबित होगा। धन्यवाद।

Dark Saint Alaick
23-05-2012, 03:26 PM
रेलवे के विकास की उम्मीद जागी

बीमार बांग्लादेश रेलवे में जान डालने की जद्दो-जहद के लिए नए संचार मंत्री ओबैदुला क्वादर को शुक्रिया। दशकों से रेलवे नजरअंदाज होती रही है। जाहिर है, हुकूमत की तरफ से कोताही बरती गई। अब उम्मीद जगी है। रेलगाड़ियों की तादाद बढ़ेगी और वक्त की पाबंदी का ख्याल रखा जाएगा। ये हुकूमत के दावे हैं, जो पैशनगोई ज्यादा लगते हैं, लेकिन अगर इनकी तुलना रेलवे के सामर्थ्य से की जाए। जैसे रेलगाड़ियां बड़ी तादाद में मुसाफिरों और सामानों को ढोती हैं और पड़ोसी मुल्कों में आवाजाही के इस साधन की तरक्की को देखें, तो ये दावे समंदर में कुछ बूंद भर हैं। वैसे उम्मीद जो जगी है, उसे पाने के लिए मंत्री को लंबा सफर तय करना होगा। अगर वाकई रेलवे को हालिया वक्त के बराबर लाना है, तो सबसे पहले इस महकमे व इसके कामकाज में आमूलचूल बदलाव लाने होंगे। मसलन, जरूरत के मुताबिक काबिल लोगों को बहाल करना होगा, रेलवे का जाल और फैलाना होगा, बेहतर रखरखाव व्यवस्था करनी होगी। रेलवे बजट बढ़ाना होगा।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का अखबार

Dark Saint Alaick
23-05-2012, 03:30 PM
सागर में संग्राम

दक्षिण चीन सागर और उसके संसाधनों को लेकर विवाद बढ़ते जा रहे हैं। फिलीपींस, वियतनाम, चीन और दूसरे देश जो इसके इर्द-गिर्द हैं, कई बार इस पर अपना एकाधिकार जता चुके हैं या इसके द्वीपों पर अपनी संप्रभुता का दावा पेश कर चुके हैं। वे इस समुद्र में युद्धाभ्यास करने के साथ दूसरे क्रिया-कलापों को भी अंजाम देते हैं और संसाधनों को लेकर भी उन्होंने कई सर्वेक्षण किए हैं। यही नहीं वे समुद्री कानून और मुद्दों की संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ एजेसियों के सामने भी इस सागर पर अपना हक जता चुके हैं, जबकि इन देशों के बीच एक मौन सहमति है कि हक जताने के अलावा संसाधनों के साझा विकास के पक्ष में माहौल कायम रखा जाए। अब यह मौन सहमति टूट गई है और दक्षिण चीन सागर को लेकर विवाद गहरे हो गए हैं। निकट भविष्य में इनके दूर होने के आसार भी नहीं दिखते। वास्तविकता यह है कि ताकत की आवाज ऊंची होती है। इस पूरे मामले में ताइवान एक सॉफ्ट पावर है; जो बस, गठबंधन बनाने और उसमें शामिल होने की हैसियत रखता है। इसे भी बेहतर तरीके से करने के लिए कूटनीतिक चतुराई की जरूरत पड़ेगी। हाल के वर्षों में कई समुद्री विवाद उपजे हैं और उनमें सबसे ऊपर दक्षिण चीन सागर का विवाद है।

- ताईपेई टाइम्स
ताइवान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-05-2012, 05:42 PM
तालमेल की जरूरत

अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कई स्तरों पर हैं। इसलिए भी हमारी विदेश नीति के एजेंडे पर अमेरिकी हावी रहते हैं। दरअसल पूरे अफगान मामले में कई खिलाड़ी एक साथ शामिल हैं। इनकी राहें जुदा-जुदा हैं पर चाल लगभग एक समान। हाल ही में एक बैठक हुई जिसमें अफगानिस्तान में नाटो फौज के कमांडर और पाकिस्तान व हिन्दुस्तान के आर्मी चीफ शामिल हुए। इसमें सरहद पर अमन-चैन को पुख्ता करने पर जोर डाला गया। दोनों तरफ के नुमाइंदे इस बात को जानते-समझते हैं कि सरहदी इलाकों में आपसी तालमेल की सख्त जरूरत है क्योंकि इन इलाकों में अक्सर जंग जैसा माहौल बना रहता है जिससे दोनों ही तरफ गलतफहमियां पैदा होती हैं। बहरहाल यह गुफ्तगू फौज से फौज की रही। वैसे यह गुफ्तगू इस लिहाज से बिल्कुल अलग कही जा सकती है कि इसके कामकाज का तरीका कूटनीतिक नहीं बल्कि उससे काफी अलग था। उसमें तो मैदान-ए-जंग की हकीकत पर तब बहस होती है जब कोई गलती कर बैठता है। जैसे पिछले साल नवम्बर महीने में अमेरिकी फौज से गलती हुई थी। यही नहीं कूटनीतिक नक्शे पर बहुत कुछ साफ-साफ नहीं दिखता। पल भर में जंग जैसा माहौल बन जाता है।

-द न्यूज
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-05-2012, 05:44 PM
ओबामा के दावे

शिकागो के नाटो सम्मेलन में बराक ओबामा के दावे झूठे थे। उन्होंने कहा कि अगले दो वर्षो में जब अमेरिकी फौज अफगानिस्तान में अपनी भूमिका खत्म कर चुकी होगी तो जैसा कि हम समझते हैं कि युद्ध वहां पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अव्वल तो अमेरिकी फौज कभी यह समझ ही नहीं पाई कि अफगानिस्तान में उसकी भूमिका क्या थी और उसकी लड़ाई किसके खिलाफ है। पिछले साल ही जनरल स्टेनली मैकक्रिस्टल ने इन खामियों को कबूला था। वह अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने आतंक विरोधी अभियान और राष्ट्र निर्माण से जुड़े विराधाभासों को दूर करने की कोई कोशिश नहीं की। दूसरी बात जब नाटो अफगानिस्तान से निकलने की तैयारी में है तब वाशिंगटन की ओर से यह बयान ठीक नहीं। क्या वहां सचमुच शांति बहाल हो गई है? यह तो अफगान बाशिंदे ही बेहतर पता पाएंगे। कोई भी व्यक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति से इतनी उम्मीद तो कर ही सकता है कि वह एक्जिट स्ट्रेटजी के नाम पर कुछ सम्मानजनक कदम उठाएं, लेकिन जैसा कि अमेरिकी कूटनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर महसूस करते हैं कि एक्जिट स्ट्रेटजी अब 'एक्जिट' तक सिमट गई है।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
26-05-2012, 01:49 AM
सबक तो सीखें

क्या पाकिस्तान कभी यह सीखेगा कि किसी भी तरह की पाबंदी का उल्टा असर होता है और ये पाबंदियां आखिरकार हमें मजाक का विषय ही बनाती हैं। क्या कायदा-कानून बनाने वाले हमारे रहनुमा कभी यह कबूल करेंगे कि दुनिया की चौकीदारी करने की कोशिश बेकार है। इन सवालों के जवाब हैं - नहीं। एकाध साल पहले की ही बात है। लाहौर हाईकोर्ट के निर्देश पर पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशंस अथॉरिटी (पीटीए) ने 800 वेबपेजों और यूआरएल्स पर रोक लगा दी थी। इनमें फेसबुक और विकीपीडिया के वे हिस्से भी शामिल थे, जिनमें ईशनिंदा से जुड़ी चीजें थीं। पीटीए के इस कदम की काफी नुक्ताचीनी हुई थी और वह मजाक बनकर रह गया, क्योंकि उन वेबसाइटों तक पहुंचने के अनगिनत रास्ते थे, जिन पर पाबंदी लगाई गई थी। इंटरनेट पर काबू करने का एक ही रास्ता है कि पूरे पाकिस्तान को इससे विलगा दिया जाए और ऐसी सूरत में पीटीए को पीछे हटना पड़ा था, लेकिन इस वाकये से कोई सबक नहीं सीखा गया। इन आहत करने वाली सामग्रियों को लेकर पाकिस्तान भी वैसा ही कुछ कर सकता है, जो दुनिया के दूसरे इलाकों में होता है यानी उन्हें महत्व ही नहीं दीजिए। सेंसरशिप और पाबंदी से समस्या दूर नहीं होगी।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
27-05-2012, 10:56 PM
एक और विस्तार

संविधान सभा का कार्यकाल पांचवीं बार बढ़ाने की सिफारिश की गई है। पहले भी जब राजनीतिक पार्टियों ने संविधान सभा के कार्यकाल बढ़ाने के फैसले लिए तो लोगों में आक्रोश दिखा। कई लोग मानते हैं कि नेपाल की राजनीतिक पार्टियां तय वक्त में संविधान तैयार करने में अक्षम हैं। यह एक बड़ी विफलता है। पार्टियां अपने राजनीतिक कर्तव्य से मुंह चुरा रही हैं। दलील यह भी दी जा रही है कि कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश असंवैधानिक है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चुनौती है, जिसमें कहा गया है कि संविधान सभा का चौथा कार्यकाल ही आखिरी होगा। इससे अधिक निराशा की बात क्या हो सकती है कि राजनीतिक पार्टियां नेपाली जनता को यह समझाने में विफल हैं कि समय-सीमा खत्म होने को है और उनकी तैयारियां अधूरी हैं। ऐसे में उन शीर्ष नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जो संविधान सभा का कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में हैं। उन्हें अगले विस्तार की प्रासंगिकता बतानी होगी। माओवादी नेता पुष्पकमल दहल प्रचंड और प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने हाल में राजनीतिक व्यावहारिकता दिखाई है। वे कहते रहे कि निर्धारित तारीख आखिरी होगी पर अब ऐन मौके पर वे मुकर रहे हैं। इससे जनता की नजरों में उनकी साख घटी है।

-द काठमांडो पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
29-05-2012, 02:12 PM
कब्जे में एक देश

साठ साल में चीन अधिकृत तिब्बत उपनिवेश का सबसे कामयाब उदाहरण है। ऐसे वक्त में जब पुराने साम्राज्य ढह रहे हैं, चीन की फौज तिब्बत पर काबिज है। यही नही, औपनिवेशिक शक्तियां अपने प्रारब्ध को लेकर आश्वस्त हैं। वे इस मुल्क को चीनी लोगों से भर रहे हैं। विद्रोह के सभी तरीके कुचल दिए गए हैं। हालांकि पिछले साल कुछ तिब्बतियों ने आत्मदाह भी किए। यकीनन वे त्रासद और भयावह घटनाएं थीं। बहरहाल निर्वासित सरकार अब स्वायत्तता की मांग कर रही है न कि स्वतंत्रता की। और उन्हें यह भी मिलने की रत्ती भर उम्मीद नहीं है। बावजूद इन सबके यह सोचना गलत होगा कि दलाई लामा अपने मकसद में विफल रहे। वह एक राजनीतिज्ञ हैं, जिनके पीछे न तो कोई फौज है और न ही देश। वह एक धर्मगुरु हैं, जो अपने मठों का दौरा नहीं कर सकते और जिनके समर्थकों पर दुश्मनों की निगाहें हैं। सबसे बढ़कर तो यह कि वह जो सिखाते हैं और मानते हैं आधुनिक सोच-समझवालों के लिए वे निरर्थक हैं। फिर भी वह एक वैश्विक शख्सियत हैं। एक ऐसे शख्स हैं, जो अहिंसा के लिए खड़ा है और सत्य पर अडिग है। अन्य धर्मगुरुओं में यह प्रबंधन नहीं दिखता है। इस पूरी प्रक्रिया में उन्होंने यह साबित किया कि तिब्बत एक देश है, जो अब भी चीन के कब्जे में है।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
30-05-2012, 02:22 AM
सही है नाराजगी

अपनी मौत से कई साल पहले लादेन ने पाकिस्तान में सैनिक छावनी वाले इलाके में शरण ली थी। अलकायदा सरगना की मौजूदगी के बारे में पाक खुफिया विभाग या फौज को जानकारी नहीं थी, यह सफेद झूठ है, लेकिन अमेरिकी स्पेशल फोर्स ने ओसामा को मार गिराया। पाकिस्तान सरकार इस बात पर अड़ गई कि दुनिया के सबसे मोस्ट वॉन्टेड शख्स को उसने नहीं छिपाया था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने तो यहां तक कहा कि आतंकियों के हाथों किसी और देश को इतना नुकसान नहीं हुआ, जितना पाकिस्तान को हो रहा है। बावजूद इसके उन लोगों के साहस और देशभक्ति की सराहना होनी चाहिए, जिन्होंने ओसामा को ढूंढ़ने में मदद की, लेकिन इसके एवज में एक पाक डॉक्टर शकील आफरीदी को 33 साल की सजा सुनाई गई है। उनके विरुद्ध फ्रंटियर क्राइम रेगुलेशन के तहत मुकदमा चला। कोई जज नहीं नियुक्त हुआ। सुनवाई एक स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा संचालित हुई। तुलनात्मक अंतर देखिए कि ओसामा को पनाह देने के आरोप में न तो किसी की गिरफ्तारी हुई और न ही किसी पर मुकदमा चला। शायद डॉ. आफरीदी को बचाने के लिए अमेरिकियों को और कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन आफरीदी के साथ जो सलूक हुआ उस पर अमेरिकी नाराजगी सही है।

- द टेलीग्राफ
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
31-05-2012, 10:57 PM
तालिबान की ताकत

जैसे-जैसे अमेरिकी फौज लौट रही है, तालिबान की ताकत बढ़ती जा रही है। रिपोर्टों के मुताबिक गजनी, कंधार, हेलमंद और दूसरे इलाकों में दहशतगर्दी बढ़ी है। पिछले महीने काबुल और अफगानिस्तान के दूसरे सूबों में आतंकी घटनाएं घटीं। जाहिर है कि तालिबान के मंसूबे कारगर हो रहे हैं। अमेरिकी सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी अध्यक्ष डी. फेनस्टेन ने एक इंटरव्यू में कहा है, मेरे विचार में तालिबान की ताकत बढ़ती जा रही है। फेनस्टेन के साथ हाउस इंटेलिजेंस कमेटी के अध्यक्ष माइक रोजर्स भी थे और वह भी उनके विचार से सहमत दिखे। दोनों पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के दौरे पर थे। खैर, ऐसे बयान कि तालिबान का सफाया हो चुका है या शांति-सुलह कार्यक्रमों ने तालिबान को कई धड़ों में बांट दिया है; बस, कहने भर को अच्छे लगते हैं। हकीकत यह है कि अब तालिबान करजई हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की जुगत में है। आशंका बढ़ गई है कि अंतर्राष्ट्रीय फौज जाने के बाद वहां तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और अल-कायदा के दहशतगर्दो की तादाद बढ़ेगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक पड़ोसी मुल्क में हजारों दहशतगर्दों को तैयार किया जा रहा है। तालिबान ने मुस्लिम मुल्कों से इमदाद मांगी है।

-डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
31-05-2012, 11:03 PM
सीरिया की मुश्किलें

'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने खुलासा किया है कि अमेरिका-रूस में इस बात पर सहमति बन रही है कि सीरिया में भी यमन की तरह रास्ते निकाले जाएं। दोनों देश चाहते हैं कि बशर अल असद भी उसी तरह से हुकूमत छोड़ें, जैसे यमन में अली अब्दुल्ला सालेह ने छोड़ी है। अमेरिकी अखबार का कहना है कि इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है, पर रूस ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या सीरिया में यमन मॉडल कामयाब होगा? जवाब है कि कई वजहों से यह मुश्किल है। सबसे अहम तो यह है कि आज जो कुछ सीरिया में हो रहा है, वह यमन में घटी घटनाओं से काफी आगे निकल चुका है। दोनों देशों की घटनाओं की तुलना ही नहीं की जा सकती। सीरिया में असद शासन के हाथों मरने वालों की संख्या 12 हजार के आंकड़े को पार कर चुकी है। आखिर इस कत्लेआम का दोषी किसे ठहराया जाएगा? वास्तव में रूस और बशर अल असद के बीच के करार के जो कुछ खुलासे हुए हैं, उनसे न केवल बागियों का गुस्सा भड़केगा, बल्कि खुद असद के करीबियों को भी तगड़ा झटका लगेगा। करार यह है कि सत्ता से बेदखल होने के बाद असद को सीरिया से सुरक्षित जाने का रास्ता मुहैया कराया जाएगा, लेकिन उनके सुरक्षा महकमे के आला अफसरों व नेताओं के भविष्य के बारे में सोचिए, जिन्होंने असद के इशारे पर सीरिया में कत्लेआम जारी रखा।

-अरब न्यूज
सऊदी अरब का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-06-2012, 10:10 PM
संकट की अर्थव्यवस्था

उन्होंने मौका फिर गंवा दिया, जबकि ग्रीस की मंदी से बैंकों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गई है। पूरे यूरोप पर आर्थिक संकट के बादल घुमड़ रहे हैं। बावजूद इसके यूरोप के शासक इस हफ्ते एक आवश्यक कदम उठाने में विफल रहे, जबकि उन्हें इसकी सख्त जरूरत थी। बीते बुधवार की डिनर मीटिंग से चंद रोज पहले ऐसा लग रहा था कि जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल कठोर कदमों से पीछे हटेंगी। दरअसल जब फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में फ़्रैन्कोइस होल्लांद को अपने प्रो. ग्रोथ एजेंडे के बूते जीत मिली, तब अचानक मर्केल बोल पड़ीं कि ग्रीस और दूसरे देशों में विकासवादी कार्यक्रम सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ मदद की संभावना बनती है, लेकिन बुधवार को ग्रीस व यूरो जोन के दूसरे देशों की मदद की बजाय वह खर्च कटौती व असंभव लक्ष्यों पर जोर देने लगीं। वैसे यह स्पष्ट है कि मितव्ययिता विफल रही है और यह अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने की निशानी है। इससे यह और मुश्किल हो जाता है कि कर्ज में डूबे देश उधार चुका पाएं। राजनीतिक परिदृश्य भी साफ नहीं है। इसी महीने ग्रीस के पार्लियामेंट चुनावों में मतदाताओं ने उन दो दलों के उम्मीदवारों को खारिज कर दिया, जो जर्मन आदेशित पैकेज के समर्थन में थे। जाहिर है आर्थिक असमंजस का माहौल है।

-द न्यूयॉर्क टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
04-06-2012, 10:52 AM
विदेश दौरे पर आंग सान सू की

आंग सान सू की अब वाकई आजाद महसूस कर रही होंगी। दो दशक से भी ज्यादा वक्त तक वह बर्मा में कैद रहीं। वह पड़ोसी देश थाईलैंड गई। पिछले 24 में से 15 वर्षो तक सू की अपने ही घर में नजरबंद रहीं। हालांकि उन्हें कैद करने वालों की यही मंशा थी कि वह देश छोड़ दें। सैनिक शासक तो किसी तरीके से इस लेडी से छुटकारा चाहते थे, ताकि उन समस्याओं से निपटा जा सके, जिनकी वह जननी थीं। हालांकि सू की को आशंका थी कि अगर विदेश जाती हैं, तो उन्हें बर्मा लौटने नहीं दिया जाएगा। उस वक्त सैन्य सरकार भी यही सोचती थी कि अगर वह देश से निकलीं, तो लोकतांत्रिक आंदोलन कुचलने में देर नहीं लगेगी। लोकतांत्रिक आंदोलन से आंग सान सू की 1988 से जुड़ी हुई हैं। 1999 में इंग्लैंड भी नहीं जा सकीं, जबकि उनके पति व ब्रिटिश विद्वान माइकल ऐरिस का निधन हो गया था। पिछले साल से सैन्य सरकार ने राजनीतिक सुधार की शुरुआत की है। इससे सू की के मन में उम्मीद जगी है कि वह बर्मा के अंदर और बाहर आ-जा सकती हैं। बैंकॉक में बर्मी समुदाय के लोगों से मिलकर वे काफी भावुक हो गईं।

- द इर्रावड्डी
म्यांमा का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-06-2012, 02:30 AM
कानून लागू करने की जरूरत

चीनी मानवाधिकार कार्यकर्ता चेन ग्वांगचेंग अमेरिका में हैं। मीडिया के सामने वह चीन के राजनीतिक नेतृत्व को कोसते हुए कहते हैं, चीन में अच्छे कानूनों की कमी नहीं है, बल्कि इन्हें ठीक से लागू करने की जरूरत है। वाकई कम्युनिस्ट पार्टी हुक्म और सनक के बूते सरकार चलाती है, न कि कानून के शासन के जरिए। इसकी वजह साफ है। दरअसल वहां व्यक्ति के स्व शासन की परवाह पार्टी नहीं करती। नतीजतन कायदे-कानून पार्टी से बनकर आते हैं न कि जनप्रतिनिधियों से। फिर भी उम्मीद की एक किरण है। वर्षों से इस पार्टी पर यह दबाव डाला जा रहा है कि वह व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता दे, चाहे वे अधिकार प्रशासन में हों या जायदाद के मामलों में। लगता है कि कम्युनिस्ट नेतृत्व की नई फसल इस बात पर सहमत हो रही है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विस्तार ही चीन की निरंतर समृद्धि की बेहतर राह है। मई महीने में नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च की एक स्टडी प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक चीन के ग्रामीण क्षेत्र में चुनाव की शुरुआत से आर्थिक विषमता घटी है। यह भविष्य के लिए उम्मीद की लिरण है।

- द क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-06-2012, 08:03 AM
सड़क सुरक्षा सबसे जरूरी

श्रीलंका में वर्षों से सड़क सुरक्षा पर बहस चलती रही है। फिर भी कुछ बेहतर नतीजे सामने नहीं आए हैं। रोज हादसों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है । इन्हें लेकर जनता में न भय है और न घृणा। श्रीलंकाई अखबारों और टीवी चैनलों पर इन हादसों की रिपोर्टें होती हैं, लेकिन तब भी न तो जनता में जागरूकता फैली और न ही प्रशासन की नींद खुली है। विडंबना यह है कि वह देश जो पिछले तीन साल से शांति पथ पर है, जिसने मानव बम और विस्फोटों से मुक्ति पाई, वह सड़क हादसों में वृद्धि के कारण मौत की घाटी बनता जा रहा है। इसके लिए कौन दोषी है। सड़कें या बढ़ते वाहन। इतना तो साफ है कि सड़क पर जिंदगी और मौत के बीच का फर्क मिटता जा रहा है। हालांकि हादसों की कुछ ऐसी वजहें हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। सबसे पहली वजह है चालकों और यात्रियों की लापरवाही। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें, तो राजमार्गों पर तेज गति से वाहन चलाने, सिग्नल की अनदेखी करने, शराब पीकर ड्राइविंग करने और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं।

- डेली मिरर
श्रीलंका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-06-2012, 05:42 PM
मिस्र का इम्तिहान

इस वक्त मिस्र एक चौराहे पर खड़ा है। उसके लिए इम्तिहान की घड़ी है। दरअसल मिस्र इस वक्त बदलाव और राजनीतिक-सामाजिक बवंडर से बुरी तरह जूझ रहा है और जनता इनसे पार पाने की जुगत में है। बीते दिनों मिस्र के लोगों ने ऐसे ही एक दौर का सामना किया, जब कोर्ट ने पुराने निजाम की ताकतवर हस्तियों के खिलाफ फैसले सुनाए। सत्ता से बेदखल राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को बगावत कुचलने और आंदोलनकारियों की हत्या के आदेश देने के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। उनके घरेलू मामलों के मंत्री हबीब अल अदली को भी इसी मामले में इतनी ही सजा दी गई। वहीं भ्रष्टाचार के दूसरे मामलों में मुबारक और उनके बेटों को बरी कर दिया गया। कुछ लोगों ने इन फैसलों पर सहमति जताई है, तो अनेक को यह फैसला मंजूर नहीं। आज के मिस्र के लिए यह अहम नहीं है कि वह इस एक मुकदमे में उलझा रहे, बल्कि इसे बड़े स्तर पर देखने की जरूरत है, ताकि मुल्क में एक संजीदा और मजबूत जम्हूरी समाज की स्थापना हो सके, जहां समानता और कानून का शासन हो।

-गल्फ न्यूज
संयुक्त अरब अमीरात का अखबार

Dark Saint Alaick
09-06-2012, 12:38 AM
रोचक खगोलीय घटना

यह हफ्ता शुक्र के पारगमन के लिए जाना जाएगा। आसमान में यह नजारा मंगलवार को अमेरिकियों ने देखा और आज यूरोप के लोगों ने। वाकई यह एक अतुलनीय खगोलीय घटना है और इसे देखना एक जादुई अहसास देने वाला है। आठ साल पहले भी यह नजारा दिखा था, जब पृथ्वी व सूर्य के बीच से शुक्र गुजरा था। अब 2117 से पहले यह नजारा नहीं दिखेगा। अब तक पारगमन की छह घटनाएं दर्ज हैं। 1639 में इस तरह की सबसे पहली घटना दर्ज हुई। इसकी भविष्यवाणी इंग्लैंड में टॉक्सटेथ के एक पादरी ने की थी। अगले दो दशकों तक उनके दस्तावेज अप्रकाशित रहे। जेरेमियाह होरोक्स की मृत्यु 22 साल में ही हो गई थी। वह उस दुनिया में जन्मे थे, जिसमें यह भ्रांति थी कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है। अपरिष्कृत दूरबीन, त्रुटियुक्त घड़ी व केपलेर के पूर्व के आकलनों के आधार पर उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी। फिर भी उन्होंने सौर तंत्र की पुष्टि की और पारगमन का इस्तेमाल किया, परंतु इसे हूबहू अवलोकित करने की जरूरत होती है। 1761, 1874,1882 व 2004 में भी पारगमन हो चुका है।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
12-06-2012, 12:36 AM
सीरियाई अराजकता के खतरे

लीबिया में मित्र राष्ट्रों की उपस्थिति कमजोर रही और ओबामा प्रशासन ने वहां नेपथ्य से नेतृत्व करने की रणनीति अपनाई। जाहिर है लीबिया में आक्रामक सैन्य कार्रवाई नहीं हुई। नतीजतन विद्रोही सेनाओं को काबू में रखने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सका, जबकि बागी संगठनों में से कई के तार अलकायदा से जुड़े थे। इन बेलगाम विद्रोही फौजों ने लीबियाई तानाशाह गद्दाफी द्वारा जुटाए गए रॉकेटों और मिसाइलों को लूट लिया। कमोबेश इसी तरह का खतरा सीरिया में पैदा हो रहा है। हालांकि वहां राष्ट्रपति असद को ईरान का समर्थन मिला रहा है, वहीं असद विरोधी अभियान में अलकायदा की भूमिका अहम हो गई है। सीरिया की लड़ाई लंबी चली, तो अलकायदा से जुड़े संगठन अपनी स्थिति और मजबूत कर लेंगे, जबकि असद पर तेहरान का प्रभाव गहराता जाएगा। सीरिया के इस अराजक माहौल में उसके नरसंहारकारी हथियार चरमपंथी गुटों के हाथ लग सकते हैं। वहां सैन्य कार्रवाई को लेकर रूस और चीन विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इन दोनों देशों की जिम्मेदारी बनती है कि वे वहां जंग रोकने लायक दबाव बनाएं।

-द जेरूसलम पोस्ट
इजरायल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
13-06-2012, 02:34 AM
मिले जुले संकेत

हालांकि रफ्तार धीमी कही जा सकती है, पर साल 2011-12 के इकोनॉमिक सर्वे से कुछ उम्मीदें भी जगती हैं। ऊर्जा संकट, जबरदस्त सैलाब और दुनिया के डगमगाते आर्थिक हालात के बावजूद इकोनॉमी की रफ्तार पिछले साल की दर 2.4 से बढ़कर 3.7 फीसदी हो गई है। मैन्युफैक्चरिंग और खेती में सुधार है, लेकिन सर्विस सेक्टर में तरक्की की गति जस की तस है। अगर हुकूमत 4.2 फीसदी के ग्रोथ टारगेट को छूने में फिर नाकाम होती है, तो इसकी एकमात्र वजह होगी ऊर्जा संकट को दूर करने में मिली नाकामयाबी। दो फीसदी का घाटा तो इसी से होता है। पिछले दिनों इकोनॉमिक गवर्नेस और ऊर्जा सेक्टर को सुधारने की कोशिशें हुई हैं। इनसे कुछ बेहतर नतीजे आ सकते हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि हुकूमत जीडीपी के अनुपात में टैक्स उगाही में नाकाम रही। यह दस फीसदी से नीचे है, जो उपमहाद्वीप में सबसे कम है। न सब्सिडी घटाने की व्यवस्था हुई, न घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को उबारने की। हमारी आर्थिक दिक्कतें दूर हो सकती हैं, अगर सूबाई व संघ सरकार तालमेल के साथ काम करें।

-डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
13-06-2012, 04:04 AM
यूरो संकट के सवाल

आखिर उन्हें गलती क्यों नहीं दिख सकी? यही सवाल ब्रिटिश पर्यवेक्षकों को निराश करता है और हैरत में भी डालता है। जबकि यह सवाल तब से बना रहा है, जब से पूरे यूरोप में एकल मुद्रा पद्धति लागू हुई या फिर जब से पूरे यूरो जोन में आर्थिक संकट के हालात हैं। एक के बाद दूसरे देश के बाजार पस्त हो रहे हैं। इस पर खूब सारे स्पष्टीकरण दिए गए। अलग-अलग चर्चाएं भी हुई। कयास लगाए गए कि ग्रीक समुदाय द्वारा वित्तीय अनुशासन तोड़ने से यह संकट आया। लेकिन सारे तर्क बेकार थे। हाल ही में यूरोप के कुलीन तबके ने इसे स्वीकारा है। इनके मुताबिक न तो ग्रीस की लापरवाही और न ही जर्मनी में आई तंगी इसकी जड़ है बल्कि मूल वजह खुद यूरो है। दरअसल यूरोप की भिन्न अर्थव्यवस्थाओं को एकल मुद्रा नीति में जबरदस्ती पिरोया गया जबकि इससे पहले न तो केंद्रीय बैंक का गठन हुआ और न ही वास्तविक राजकोषीय शासन की व्यवस्था की गई। यहां तक कि पुर्तगाल से लेकर जर्मनी तक पर एक समान ब्याज दर थोपी गई। दक्षिणी देशों को उत्तरी देशों से होड़ लेने के लिए उकसाया गया लेकिन मुद्रा अवमूल्यन से बचने के तरीके उन्हें नहीं सुझाए गए।

-द टेलीग्राफ
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
13-06-2012, 04:07 AM
तालमेल की जरूरत

अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कई स्तरों पर हैं। इसलिए भी हमारी विदेश नीति के एजेंडे पर अमेरिकी हावी रहते हैं। दरअसल पूरे अफगान मामले में कई खिलाड़ी एक साथ शामिल हैं। इनकी राहें जुदा-जुदा हैं पर चाल लगभग एक समान। हाल ही में एक बैठक हुई जिसमें अफगानिस्तान में नाटो फौज के कमांडर और पाकिस्तान व हिन्दुस्तान के आर्मी चीफ शामिल हुए। इसमें सरहद पर अमन-चैन को पुख्ता करने पर जोर डाला गया। दोनों तरफ के नुमाइंदे इस बात को जानते-समझते हैं कि सरहदी इलाकों में आपसी तालमेल की सख्त जरूरत है क्योंकि इन इलाकों में अक्सर जंग जैसा माहौल बना रहता है जिससे दोनों ही तरफ गलतफहमियां पैदा होती हैं। बहरहाल यह गुफ्तगू फौज से फौज की रही। वैसे यह गुफ्तगू इस लिहाज से बिल्कुल अलग कही जा सकती है कि इसके कामकाज का तरीका कूटनीतिक नहीं बल्कि उससे काफी अलग था। उसमें तो मैदान-ए-जंग की हकीकत पर तब बहस होती है जब कोई गलती कर बैठता है। जैसे पिछले साल नवम्बर महीने में अमेरिकी फौज से गलती हुई थी। यही नहीं कूटनीतिक नक्शे पर बहुत कुछ साफ-साफ नहीं दिखता। पल भर में जंग जैसा माहौल बन जाता है।

-द न्यूज
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
13-06-2012, 04:11 AM
सीरिया में असद हुकूमत की हताशा

सीरिया के दर्द का कोई भी इलाज कारगर साबित होता नहीं दिख रहा। वहां के हालात बदतर होते जा रहे हैं। जिस तरह से हौला शहर में फौज ने 108 लोगों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया वह असद हुकूमत की हताशा का परिचायक है। यह हुकूमत इसी तरह के जालिमाना कदमों के जरिए अपनी सत्ता बनाए रखना चाहती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि असद सरकार ने हौला नरसंहार में अपनी किसी भूमिका से इनकार किया है और राष्ट्रपति असद के समर्थकों ने इस कांड का दोष विपक्ष के सिर मढ़ा है लेकिन कोई भी दलील इस हकीकत को झुठला नहीं सकती कि सरकार ने एक बार फिर अपने ही लोगों का कत्लेआम करवाया है। होम्स और अन्य शहरों में सैकड़ों सीरियाई नागरिक फौजी हमले के शिकार बन चुके हैं। ऐसे में यकीन ही नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रपति असद बिल्कुल मासूम और बेगुनाह हैं। जिन मुल्कों को सीरियाई अवाम की तकलीफों से कोई वास्ता है उनसे वहां के हालात की अब यही मांग है कि असद हुकूमत के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-06-2012, 11:04 AM
पेनेटा और पाकिस्तान

अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों में पैबंद की कवायदें जारी हैं, पर इसका मतलब यह नहीं कि अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पेनेटा के उन भड़काऊ बयानों को सही ठहराया जाए, जो उन्होंने हाल ही में पाकिस्तान के मामले में दूसरे मुल्कों की राजधानियों में दिए हैं। उन्होंने काबुल में कहा कि अमेरिका अपने सब्र की हद तक पहुंच चुका है। दरअसल उन्होंने पाकिस्तान के कबायली इलाकों में दहशतगर्दों के महफूज ठिकानों के मद्दे-नजर बयान दिया। नई दिल्ली वह जगह नहीं थी, जहां अमेरिका-पाकिस्तान तनाव पर चर्चा हो या आपरेशन ओसामा की जानकारी पाकिस्तान से छिपाने पर मजाक किया जाए। वह भी तब, जब हिन्दुस्तान को एशिया में नई अमेरिकी फौजी कूटनीति का अहम साझीदार बताया जा रहा हो। पेनेटा ने जिस तरह के अल्फाज इस्तेमाल किए और इसके लिए जिन ठिकानों को चुना, उनसे हमारी फौज में अमेरिका विरोधी तल्खी बढ़ेगी। पेनेटा के गलत जगह गलत बयानों ने कट्टरपंथी जमातों की हिन्दुस्तानी-अमेरिकी मुखालफत के लिए चारा का काम किया है। अब इस सबसे यह मुश्किल हो जाएगा कि पाकिस्तानी हुकूमत अमेरिका की मदद करे।

-डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-06-2012, 10:39 AM
विज्ञान से बढ़ती दूरी

जहां चीन, भारत और दूसरे देश आर्थिक प्रगति व अनुसंधानों में निवेश क्षमता को बढ़ा रहे हैं, वहीं इन मामलों में यूरोप ढलान पर है। दरअसल हाल के वर्षों में यूरोप ने विज्ञान आधारित अपनी ताकत की लगातार उपेक्षा की है, जबकि यह शक्ति उसकी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है और उसने उसकी पहचान गढ़ी है। बहरहाल यह जानने के लिए कि विज्ञान यूरोप के लिए क्या कर सकता है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि वह यूरोप के लिए क्या नहीं कर सकता यानी यह ऐसे परिणाम नहीं दे सकता, जिससे तत्काल कमाई की जा सके। दरअसल आधुनिक शोधों के अगुवा अब नए तरीके से काम कर रहे हैं। जाहिर है इसके लिए नए हुनर व ज्ञान की जरूरत है, जो समाज में व्याप्त होकर उत्पादन और सेवाओं में गुणात्मक सुधार ला सके। विज्ञान मानव समाज की एकमात्र ऐसी चीज है, जिसमें एक काल को दिशा देने की क्षमता है। क्षणभंगुर भविष्य में भी भरोसा पैदा करता है विज्ञान। आधुनिक विज्ञान की शुरुआत 300 साल पहले यूरोप में ही हुई थी। तब इस क्षेत्र में बहुत कम लोग थे। संभवत हजार से ज्यादा नहीं थे, जब वैज्ञानिक क्रांति चरम पर थी। आज उसी यूरोप की यह स्थिति सोचनीय है।

-शंघाई डेली
चीन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
25-06-2012, 07:50 AM
एक अफसोसनाक कदम

चुने गए वजीर-ए-आजम को नाकाबिल करार देते हुए शीर्ष अदालत ने न सिर्फ असाधारण बल्कि अफसोसनाक कदम उठाया है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रक्रिया सम्बंधी फैसला दिया होता, तो इस कहानी को ऐसा रूप दिया जा सकता था, जिससे मुल्क में मजबूत हो रही जम्हूरियत की जड़ों को कम से कम नुकसान पहुंचता और न्यायपालिका, पार्लियामेंट तथा कार्यपालिका टकराव के जिस मोड़ पर खड़ी दिख रही हैं, उससे भी बचा जा सकता। इस मामले में ऐसे कई पड़ाव आए थे, जब अदालत अवमानना के इस मुकदमे को नजरअंदाज कर सकती थी। खासकर इस बात के मद्देनजर वह ऐसा कर सकती थी कि जिस करप्शन के मामले को लेकर वह संजीदा है, वह सदर से बाबस्ता है न कि वजीर-ए-आजम से। कानूनी तौर पर भले ही पीएम के खिलाफ मामला बन रहा हो, पर शीर्ष अदालत के लिए बेहतर यही था कि वह सियासत के पानी में यों गहरे न उतरती। अच्छा होता कि स्पीकर को फैसला लेने दिया जाता। यह मुमकिन नहीं था, तो सुप्रीम कोर्ट स्पीकर के फैसले को नामंजूर करते हुए इसे इलेक्शन कमीशन को भेज सकता था।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
28-06-2012, 12:56 PM
यूरोप का संकट

यूरोपीय संघ के शासक यूरो संकट से छुटकारा पाने के लिए सक्रिय कदम उठा सकते हैं। बॉन्ड बाजार में इस संकट ने भूचाल पैदा कर रखा है। मैक्सिको में जी-20 शिखर सम्मेलन की विज्ञप्ति के मुताबिक यूरोजोन के सदस्य देश सभी जरूरी उपायों को अपना रहे हैं। उधर ग्रीस में एंटोनिस समारास कामचलाऊ गठबंधन बनाकर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, तो क्या कई हफ्तों की उथल-पुथल के बाद आखिरकार यूरोप की डूबती नैया किनारे लगने लगी है? दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसा नहीं है। जब तक कि यूरोजोन के नीति-नियंता इस क्षणिक राहत को स्थायी रूप नहीं देते, तब तक दुर्दिन की आशंका बनी रहेगी। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि कैसे एकल मुद्रा की ढांचागत गड़बड़ियों से यूरोप को छुटकारा मिले? जी-20 सम्मेलन में भी इसकी धीमी आवाज सुनाई दी। प्रस्ताव यह है कि ग्रीस संकट से यूरो देशों को दूर रखने के लिए 500 बिलियन यूरो राहत पैकेज के तौर पर दिए जाएं। अगले ही हफ्ते ब्रुसेल्स में भी बैठक होने वाली है। दरअसल, निवेशकों को पैबंद से ज्यादा की दरकार है। इसलिए ठोस कदम उठाने ही होंगे।

-द इंडिपेंडेंट
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
28-06-2012, 11:15 PM
अधर में लटके फैसले

शीर्ष अदालत द्वारा यूसुफ रजा गिलानी को 26 अप्रैल से ही वजीर-ए-आजम के ओहदे के नाकाबिल करार दिए जाने से अजीब हालात पैदा हो गए। 26 अप्रैल से 19 जून के बीच उनके द्वारा लिए गए फैसलों को लेकर अफवाहों और अटकलों का बवंडर खड़ा हो गया था। इस दरम्यान लिए गए तमाम फैसलों को कानून सम्मत बनाने के लिए एक ऑर्डिनेंस लाया गया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के हवाले से कहा गया कि यदि ऑर्डिनेंस के जरिए उन फैसलों को कानूनन जायज नहीं बनाया जाता, तो नए वजीर-ए-आजम राजा परवेज अशरफ के लिए काम करना मुश्किल हो जाता। जहां तक इस ऑर्डिनेंस का सवाल है, इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिससे कोई बवाल पैदा हो सके। अलबत्ता इसके जारी करने के वक्त को लेकर कुछ सवाल उठाए जा सकते हैं। कई कानूनदां पहले से कह रहे हैं कि ऐसे ऑर्डिनेंस को शीर्ष अदालत में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं होता कि सरकार अध्यादेश जारी करने से पहले शीर्ष अदालत के तफसील फैसले का इंतजार कर लेती, यह वक्त धैर्य और परिपक्वता दिखाने का है, न कि टकराव मोल लेने का।

- द न्यूज
पाकिस्तान का प्रमुख अख़बार

Dark Saint Alaick
30-06-2012, 03:32 PM
मोहम्मद मुर्सी की जीत

मोहम्मद मुर्सी इस बहु-प्रतीक्षित और चर्चित राष्ट्रपति चुनाव के विजेता के तौर पर उभरे। वैसे सबसे घनी आबादी वाले अरब मुल्क में आए इस नतीजे पर किसी को हैरत नहीं हुई। सब जानते थे कि यही होगा। बहरहाल यह मिस्र का पहला फ्री इलेक्शन था और इसमें एक सिविलियन उम्मीदवार की जीत हुई। जाहिर है मुर्सी अब नील नदी की इस पाक जमीन के सबसे बड़े ओहदेदार हैं। उन्हें अहमद शफीक के खिलाफ खड़ा किया गया था। शफीक मुबारक की सरकार में प्रधानमंत्री थे। यही काबिलीयत उनकी बरबादी की वजह बनी। शायद जनता उनके नाम पर इसलिए राजी नहीं हुई, क्योंकि उनका उस तानाशाह से रिश्ता रहा, जिसने तीस साल तक मुल्क पर निरंकुश राज किया। वोटरों ने उन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दिया। अरब क्रांति के मामले में मिस्र सूत्रधार की भूमिका में रहा। मुर्सी ने कहा है कि वह मिस्र के सभी लोगों के लिए हुकूमत चलाएंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि वह अपने बयान पर कायम रहेंगे। पश्चिमी दुनिया ने अमेरिका में पढ़े मुर्सी की जीत का स्वागत किया है। हालांकि ज्यादातर हुकूमतें उनके बयान को लेकर चौकन्ना भी हैं।

-द पेनिनसुला
कतर का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
03-07-2012, 01:21 AM
किसानों के दुश्मन

रासायनिक उर्वरकों की कमी हर साल की समस्या है। इस वर्ष यह कमी विस्फोटक हो गई है। एग्रीकल्चर इनपुट कंपनी (एआईसी) देश में रासायनिक उर्वरकों की आपूर्ति करने वाली अकेली कंपनी है। देर से ही सही, मगर मानसून ने दस्तक दे दी है। यह धान की बुआई का महीना है। अभी मक्का की फसलों को भी रासायनिक खाद की जरूरत होती है, लेकिन दुर्भाग्य से पर्याप्त उर्वरक नहीं है। आकलनों के मुताबिक देश को सात लाख टन उर्वरक की जरूरत है, परंतु एआईसी अब तक महज डेढ़ लाख टन उपलब्ध करा पाई है यानी मांग के मुकाबले आपूर्ति 20 फीसदी है। एआईसी का कहना है कि स्टॉक खत्म हो चुका है। कृषि के लिए आवश्यक चीजें मुहैया न करा पाना वास्तव में सरकार की एक बड़ी नाकामी है। हमारी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े और सर्वाधिक रोजगार मुहैया कराने वाले क्षेत्र के प्रति सरकार की यह अक्षमता यह बताती है कि क्यों किसान खुद को व्यवस्था में हाशिये पर पाते हैं। पिछले दो साल में भरपूर फसल हुई है, लेकिन अगले एक पखवाड़े में यदि उर्वरकों की कमी दूर नहीं की गई, तो इस साल की खेती बच नहीं पाएगी।

-काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
03-07-2012, 03:18 AM
कैदियों की रिहाई

एक सराहनीय पहल नाकामी में तब्दील हो गई और पाकिस्तानी फौज व चुनी हुई हुकूमत के रिश्तों को लेकर सवाल पूछे जाने लगे। यहां तक कहा जाने लगा कि जम्हूरी हुकूमत की पहल को एक बार फिर फौज ने बेकार कर दिया है। अगर सरकारी अमले ने साफगोई के साथ यह जाहिर किया होता कि हुकूमत हिन्दुस्तान के किस कैदी को छोड़ने जा रही है और मीडिया ने रिपोर्ट प्रसारित करने से पहले तथ्यों की पड़ताल कर ली होती, तो एक अप्रिय स्थिति से बचा जा सकता था। बहरहाल सरबजीत और सुरजीत की पहचान में घालमेल के पीछे एक अहम मसला है हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की जेलों में ऐसे अनेक कैदी हैं, जो अपनी कैद की सजा काफी पहले पूरी कर चुके हैं या जो मामूली आरोपों में सालों से सलाखों के पीछे हैं। इन बदनसीबों को तब तक आजादी नहीं मिल सकती, जब तक कि दोनों मुल्क ऐसी व्यवस्था पर रजामंद नहीं होते, जो सिर्फ गंभीर अपराधों के मुजरिमों को सजा पूरी होने के बाद कैद में रखने की इजाजत देती हो।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-07-2012, 03:35 AM
दुनिया का सरदर्द

समुद्री लूट रोकने को लेकर दुनिया की नजर सोमालिया की बरबादी और अराजकता की ओर नहीं जाती। आखिरी तानाशाह मोहम्मद सैयद के पतन के दो दशक बाद यह मुल्क समुद्री लुटेरों का गढ़ बन चुका है और इसने कई मायने में दुनिया को चुनौती दी है। इसके नौजवान भटक गए हैं। दरअसल उनके सामने रोजगार संकट है। लाखों सोमालियाई अकाल की भेंट चढ़ चुके हैं। कुछ महीनों में समुद्री लूट की घटनाएं कम हुई हैं। इसके लिए यूरोपीय यूनियन नेवल फोर्स व नाटो के नौसैनिक शुक्रिया के हकदार हैं पर इस अफ्रीकी मुल्क की दशा नहीं बदली। यहां कहने भर को हुकूमत काम करती है। संगठन अल शहबाब के बागियों को अलकायदा का समर्थन हासिल है। वे खुलेआम हिंसा फैलाते हैं। जब मर्जी हो गोलियां बरसाते हैं। जो बचे हैं वे समुद्री लूट के पेशे में शामिल हैं। साफ है सोमालियाई समुद्री दस्यु समस्या का स्थायी हल जरूरी है क्योंकि यह मुसीबत विश्व अर्थव्यवस्था का सात अरब डॉलर हड़प लेती है। पिछले साल शिपिंग इंडस्ट्री को135 मिलियन डॉलर फिरौती के रूप में चुकानी पड़ी थी।

-खलीज टाइम्स
दुबई का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-07-2012, 04:56 AM
शर्मनाक खुलासे पर गौर करना होगा

विदेश मंत्रालय व विदेशी रोजगार विभाग के ताजा सर्वेक्षण के जो नतीजे आए हैं वे बेहद शर्मनाक हैं। लगभग 25 से 30 नेपाली हर रोज सऊदी अरब में मारे जा रहे हैं। इस वक्त लगभग पांच लाख नेपाली सऊदी अरब में हैं और उनमें से ज्यादातर नौकर का काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर दुघर्टना, कार्य स्थल पर हादसे, खुदकुशी, हत्या और ज्यादा गरमी की भेंट चढ़ रहे हैं। वैसे चश्मदीदों और दूतावास अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर नेपाली घरेलू शराब के सेवन से मरते हैं लेकिन चूंकि सऊदी अरब में शराबखोरी पर पाबंदी है इसलिए वहां की सरकार इन मौतों को किसी और वजह के खाते में डाल देती है। इनमें से अनेक जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। यदि हम विदेश जाने से पहले अपने लोगों को संबंधित देशों के कानून, तौर-तरीके, ट्रैफिक आदि के बारे में अच्छी तरह से अवगत करा दें तो यह उनकी काफी बड़ी मदद होगी। नेपाल सरकार का यह फर्ज बनता है कि वह अपने उन लोगों की सुरक्षा में सुनिश्चित करे। जो कमियां हैं उन्हें जल्दी से जल्दी दुरुस्त किया ही जाना चाहिए।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-07-2012, 05:46 AM
अनसुनी कर रहा है पाकिस्तान

वर्षों से पाकिस्तान ओबामा प्रशासन की दलीलों-शिकायतों को अनसुना करता आया है। अमेरिका यह कहता रहा है कि आतंकवादी पाकिस्तान से अफगानिस्तान में घुसकर अमेरिकी फौज पर हमला करते हैं इसलिए पाकिस्तान उनका सफाया करे। हाल ही में तालिबान आतंकियों ने सीमा पार करते वक्त पाकिस्तानी जवानों को गोलियों से छलनी कर डाला। अब तो उसे अमेरिकी शिकायतों को गंभीरता से लेने की बात समझ में आ जानी चाहिए। आतंकियों के खिलाफ जंग दोनों देशों का मूल मकसद होना चाहिए पर पाकिस्तानी फौज के कर्ता-धर्ता यह नहीं समझते। वे हक्कानी व दूसरे आतंकी संगठनों के साथ नाता तोड़ना नहीं चाहते। पाकिस्तान का राजनीतिक तंत्र भी काम नहीं कर रहा जबकि सरहद पर अराजकता दूर करने की जरूरत है। इन्हीं कारणों से अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कह डाला था कि हम अपने धैर्य की सीमा तक पहुंच गए हैं। अमेरिका हाथ पर हाथ धरे नहीं रह सकता। अमेरिका को पाकिस्तान में ड्रोन हमले करते रहने होंगे तभी आतंकियों का सफाया हो सकेगा।

-द न्यूयॉर्क टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
11-07-2012, 04:46 PM
अराफात की मौत हुई या हत्या

यासिर अराफात फलस्तीनी संघर्ष के अगुवा के तौर पर जाने जाते थे, लेकिन 2004 में उनकी मौत को लेकर एक खबर आई है। अलजजीरा चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक अराफात की हत्या हुई और वह भी अजीबोगरीब तरीके से। चैनल पर रिपोर्ट दिखाई गई कि कैसे अलजजीरा ने आखिरी समय में अराफात के पहने कपड़े और उनकी मेडिकल फाइलें उनकी विधवा सुहा अराफात से हासिल की थीं। स्विट्जरलैंड में जो हाई-टेक टेस्ट हुए, उनसे खुलासा हुआ है कि उनके कपड़ों पर पोलोनियम 210 के कण मौजूद थे, जो एक शक्तिशाली रेडियोएक्टिव तत्व है। यह विषैला होता है। फिलहाल जितनी मात्रा मिली है, वह बहुत कम है, लेकिन उस वक्त यह मात्रा ज्यादा रही होगी, क्योंकि इस समस्थानिक की आधी आयु महज 138 दिनों की होती है, जबकि जो नमूने मिले हैं, वे सात साल से भी ज्यादा पुराने हैं। वैसे पोलोनियम कत्ल करने का अजीबोगरीब हथियार है। इसे इस्तेमाल में लाना काफी मुश्किल होता है तथा इसे पाना और भी पेचीदा। अराफात के मामले में जवाब से ज्यादा सवाल ही हैं।

-द नेशनल
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
11-07-2012, 04:49 PM
अब महसूस नहीं होगा वह माहौल

बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कभी बड़े गर्व के साथ घोषणा की थी कि मैं ब्रिटिश हूं। एक ऐसे शख्स के मुंह से निकले इन शब्दों से यदि आप कुछ अचंभित हैं, जिसका चेहरा सौ डॉलर की अमेरिकी मुद्रा पर दर्ज है और जो संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापकों में से एक है, तो आप जरा उस दौर को समझने की कोशिश कीजिए। फ्रेंकलिन ने 1763 में यह घोषणा की थी। तब ग्रेट ब्रिटेन ने उत्तरी अमेरिका पर फ्रांसीसी आधिपत्य की लंबी लड़ाई जीती थी। इस जीत के बारे में इतिहासकार जॉन फर्लिंग ने लिखा, एक ऐसे महान तथा कुलीन साम्राज्य का हिस्सा बनना गर्व की बात है, जो अद्भुत सहिष्णुता और विशाल क्षमताओं के लिए विश्वविख्यात है, लेकिन13 साल बाद ही फ्रेंकलिन व उनके हमवतनों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत कर दी और उसके बाद उन्होंने कभी खुद को ब्रिटिश नहीं कहा। वे अमेरिकी हो गए। उस दौर में आक्रोश का जो माहौल था, उसे आज महसूस करना वाकई मुश्किल हो सकता है। ये हैं जीवन, स्वाधीनता एवं खुशी पाने के अधिकार।

-द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
12-07-2012, 02:48 AM
ईश निंदा के नाम पर कैसी बर्बरता

बहावलपुर में एक शख्स को जिंदा जलाने की वारदात का सीधा सा मतलब यही है कि पाकिस्तानी समाज बर्बर हो चुका है। खासकर जब उसकी जानकारी में तथाकथित ईश निंदा के मामले आते हैं, वह असहिष्णु हो जाता है। ताजा वाकये में मारा गया शख्स दिमागी रूप से बीमार था। यह घटना इस बात की तस्दीक करती है कि ईश निंदा कानून का मुल्क में बेहद निर्मम दुरुपयोग हो रहा है और बगैर सबूत व वजह के सजाएं थोपी जा रही हैं। घटना यह भी साफ करती है कि ईश निंदा के आरोप के आगे मुल्क का पूरा कानूनी तंत्र बेबस हो चुका है। भीड़ ने पुलिस थाने से आरोपी को खींचकर बाहर निकाला और उसे आग के हवाले कर दिया। ठीक इसी तरह की दो अन्य घटनाएं जून महीने में घट चुकी हैं, जब क्वेटा और कराची में भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला कर ईश निंदा कानून के आरोपियों को सौंपने की मांग की, जबकि उनमें से एक आरोपी नशेड़ी था और दूसरा दिमागी तौर पर बीमार। ये घटनाएं बताती हैं कि लोगों में सब्र और सहानुभूति की कमी तो है ही, यह एक जालिम हरकत भी है।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-07-2012, 07:05 AM
लीबिया में कामयाब हुआ लोकतंत्र

अरब क्रांति की कामयाबी देखनी है, तो इसकी बारीकियों में न जाएं। ऐसा इसलिए, चूंकि गुजरे साल में आजादी के जो बीज बोए गए; उनमें से कुछ ही अंकुरित हो सके हैं। ज्यादातर तानाशाहों, फौज और मजहबी चरमपंथियों की ज्यादतियों से मुरझा गए। जो गौर करने लायक और प्रशंसनीय तथ्य है, वह है लीबिया में हुआ मतदान। यह चुनाव अरब क्रांति को नकारने वालों को चुनौती देता है। आधी सदी में पहली बार हुए इस स्वतंत्र चुनाव में करीब दो तिहाई नागरिकों ने वोट डाले। साफ है कि मतदान प्रतिशत काफी ऊंचा रहा। चुनाव पूर्व हिंसा और मतदान संबंधी गड़बड़ियां न के बराबर हुईं। इससे पुष्टि होती है कि चुनाव काफी हद तक भयरहित हुए। ये तथ्य उस आधारशिला की तरह हैं, जिन पर लीबिया के 60 लाख लोगों के भविष्य का निर्माण होना है। ट्यूनीशिया व मिस्र में इस लक्ष्य की प्राप्ति हो चुकी है। इन मिसालों के जरिए सीरिया, बहरीन और मध्य-पूर्व के दूसरे हिस्सों में भी लोकतंत्र की मांग को पहचान मिल रही है। यही वह राह है, जो कबीलों में बंटे लीबिया को एकजुट कर सकती है।

-द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-07-2012, 09:53 AM
एक बंधक देश की त्रासदी

अरब के आसमान में 65 वर्षों से फिलस्तीनियों की त्रासदी काले बादल की तरह घुमड़ रही है। यह हमारी सोच से परे है कि कैसे इंसानों को जानवरों की तरह घेरकर रखा जा सकता है, वह भी उनके अपने मुल्क में। हमारे पड़ोस का मुल्क यह सब कर रहा है। वह परमाणु हथियारों से लैस है और उसे सुपर पावर का समर्थन हासिल है। यह मुल्क इजरायल है, जो फिलस्तीनियों के साथ बुरा सलूक करता है। हाल ही में आक्सफेम संस्था की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें इजरायलियों की दुस्साहसी करतूतों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक फिलस्तीनियों को जमीन और पानी के इस्तेमाल से वंचित रखने के लिए उन पर पाबंदियां लगाई जाती हैं। करीब पांच लाख यहूदी सौ अलग-अलग बस्तियों में रह रहे हैं। वेस्ट बैंक व पूर्वी येरूशलम के इलाकों पर इनका कब्जा है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। साजिश हो रही है कि अपने मुल्क के लिए लड़ने वालों को वहां से हटा दिया जाए और अपने दम पर टिके रहने वाले फिलस्तीनियों की उम्मीदें हमेशा के लिए खत्म कर दी जाएं।

-अरब न्यूज
सऊदी अरब का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-07-2012, 01:09 AM
नैतिकता के ठेकेदार

हर शख्स नैतिकता का ठेकेदार है। प्रकाश दहल मामले पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उनसे तो यही लगता है। प्रकाश शादीशुदा और एक बच्चे के पिता हैं। वह साथी कॉमरेड बीना मागर के साथ फरार हैं। बीना भी शादीशुदा हैं। इस तरह की घटनाएं अक्सर पहले पन्ने की सुर्खियां नहीं बनतीं, लेकिन दहल यूपीसीएन (माओ) के मुखिया पुष्प कमल के बेटे हैं। खबर में तीखी और निजी प्रतिक्रियाएं भी हैं और लापरवाही के साथ लोगों की नाराजगी दिखाई गई है। जूनियर दहल को काफी कोसा गया है। उन्हें सत्ता के नशे में धुत बताया गया। उनकी पहचान एक ऐसे बिगड़ैल के तौर पर की गई है, जो जिसे चाहता है, उसे पाकर दम लेता है। एक ने तो सोशल नेट्वर्किंग साइट पर टिप्पणी कर चिंता जताई है कि दहल की करतूत से दुनिया में नेपाल की छवि बिगड़ेगी। इस प्रकरण में एक पेच है। मागर के पति उस माओवादी पार्टी में हैं, जो यूपीसीएन से अलग होकर बनी है, जबकि प्रकाश मूल पार्टी के मुखिया के बेटे हैं। ऐसे में कुछ इस मामले को निजी बताते हैं, तो बाकी किसी न किसी की तरफदारी में जुटे हैं।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-07-2012, 10:12 PM
सीरिया में शांति की उम्मीद टूटी

सीरिया रसातल में पहुंच गया है। पिछले दिनों हमा शहर के त्रेमसेह गांव में सीरियाई फौज की गोलीबारी में 220 लोग मारे गए। पहले हवाई हमले हुए फिर जातीय सेना ने बेगुनाहों पर बेरहमी से धावा बोला। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इसे नरसंहार कहा है। सीरिया में सुनियोजित तरीके से खास समुदाय के लोगों की हत्याएं की जा रही हैं। सरकारी फौज और अलावेते समुदाय के लड़ाकों के दस्ते दोनों सुन्नी बहुल इलाकों पर हमले कर रहे हैं। सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद अलावेते समुदाय के हैं। वैसे तो यह समुदाय अल्पसंख्यक है, पर असद की सत्ता को इसी ने मजबूती दी है। इसी के बूते असद ने दुनिया की उस अपील को ठुकरा दिया, जिसमें बागियों की निर्मम हत्या को बंद करने की मांग की गई थी। इसमें कोई दोराय नहीं कि रूस असद को बचा रहा है। रूस ने अमेरिका और दूसरे देशों को समर्थन देने से मना कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत कोफी अन्नान ने सीरिया में संघर्ष विराम की योजना बनाई थी। वह शांतिपूर्ण तरीके से राजनीतिक बदलाव चाहते थे, पर नरसंहार से उनकी उम्मीदें टूट गई हैं।

- द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
27-07-2012, 03:42 PM
अब तक कुछ नहीं सीखा

नेपाली कांग्रेस और मोहन वैद्य के नेतृत्व में हाल में गठित माओवादी पार्टी की छात्र इकाइयों ने इन दिनों नेपाल में विदेशी नाम वाले स्कूलों के खिलाफ हमला बोल रखा है। नेपाली कांग्रेस से सम्बद्ध छात्र इकाई नेपाल स्टूडेंट यूनियन ने जहां ऐसे नाम वाले स्कूलों के होर्डिंग्स को तहस-नहस कर जला दिया या फिर उन पर काले रंग पोत डाले, वहीं माओवादी पार्टी की छात्र इकाई इससे भी आगे चली गई। उसने तो साउथ-वेस्टर्न स्टेट कॉलेज एवं एवरेस्ट फ्लोरिडा हायर सेकेण्डरी स्कूल में न सिर्फ जमकर उत्पात मचाया, बल्कि एक स्कूल बस को जलाने की कोशिश की। संगठन में संयोजक शरद रसैली के मुताबिक इन स्कूलों को निशाना इसलिए बनाया गया, क्योंकि इनके नामों में विदेशी शब्द हैं। उन्होंने छात्र संगठन की तरफ से यह मांग भी रखी कि देश में बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की जाए और निजी स्कूलों में तर्कसंगत फीस ढांचा लागू किया जाए। हमलों ने साबित किया है कि राजनीतिक पार्टियों और इनकी छात्र इकाइयों ने अब तक कुछ भी नहीं सीखा है।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
27-07-2012, 04:16 PM
हिन्दुस्तान के नए सदर हैं हकदार

हिन्दुस्तान के सदर के तौर पर प्रणव मुखर्जी का चुना जाना कई वजहों से अहम है। सबसे पहले तो इससे हिन्दुस्तान की सियासत में इस तजुर्बेकार बंगाली सियासतदां की हैसियत का पता चलता है। दूसरी राष्ट्रपति भवन की गरिमा में इजाफा ही होगा। वैसे मुखर्जी ज्यादा खुश होते, यदि उनके नाम पर आम राय बन पाती। मुखर्जी एक ऐसे शख्स हैं, जो राष्ट्रपति भवन की उस गरिमा को बहाल रख सकते हैं, जो 1947 में मिली आजादी के बाद से ही इस पद ने बरकरार रखी है। मुखर्जी उस कुरसी के हकदार बने हैं, जिस पर पहले राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन, वी.वी. गिरी, शंकरदयाल शर्मा और उनके बराबर की बौद्धिक प्रतिभा वाले लोग बैठ चुके हैं। एक मायने में मुखर्जी को उन सब पर बढ़त हासिल है कि वह इस कुरसी पर पहुंचने से पहले अहम मंत्रालयों के मंत्री रह चुके हैं। जल बंटवारे से जुड़ा विवाद हो या कोई और मसला, उनका जो सहयोगपूर्ण रुख रहा है, उसी वजह से बांग्लादेश की जनता और हुकूमत उनकी इज्जत करती है।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अख़बार

Dark Saint Alaick
28-07-2012, 11:11 PM
अंत के करीब असद की सत्ता

सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद भले ही अपनी जिद पर कायम रहें, परंतु जिस तरह उनके तीन अहम सिपहसालार मारे गए, उससे उनके समर्थकों को भी अहसास हो गया होगा कि असद की हुकूमत का अंत निकट है। फ्री सीरियन आर्मी की नई मुनादी के बाद तो उनके समर्थकों पर दबाव और बढ़ेगा। फ्री सीरियन आर्मी ने ऐलान किया है कि जो लोग तानाशाह असद का साथ नहीं छोड़ेंगे, उन्हें दुश्मन माना जाएगा और नए मुल्क में उनकी कोई भूमिका नहीं होगी। हालांकि विपक्ष की यह चुनौती खुद उसी के लिए घातक हो सकती है। इससे विपक्ष के आत्मविश्वास की झलक तो मिलती है, लेकिन यह आशंका भी गहराती है कि बागियों के खिलाफ फिर से सख्त फौजी कार्रवाई की जा सकती है। यह इसलिए भी मुमकिन लगता है, क्योंकि जो जवान बागियों के साथ जाने को तैयार नहीं हैं, वे असद हुकूमत के अंत के बाद की स्थिति के डरकर उसे बचाने की हर संभव कोशिश करेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि फौज के जवान अधिक आक्रामकता के साथ और पूरी क्षमता से जंग लड़ेंगे।

-अरब न्यूज
सऊदी अरब का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
29-07-2012, 12:54 AM
मिस्र में अब भी जारी है संघर्ष

मिस्र में सत्ता-संघर्ष जारी है। राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अहसास हो रहा होगा कि चुनाव जीतना कितना आसान और बतौर राष्ट्रपति काम कितना मुश्किल है। सत्ता पर अब भी एक तरह से सैन्य परिषद का नियंत्रण है। राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले और बाद में उसने जो दो फैसले दिए, उनसे यह साबित होता है कि मिस्र में माहौल उतना ही तनावपूर्ण है, जितना 18 महीने पहले क्रांति के वक्त था। विगत सप्ताह ही मोहम्मद मुर्सी ने पार्लियामेंट की बहाली के आदेश दिए थे, लेकिन मिस्र की शीर्ष अदालत ने इस आदेश को रद्द कर दिया। इस वजह से पार्लियामेंट की बैठक पांच मिनट चल पाई। इस हफ्ते संविधान सभा को लेकर नाटकीय माहौल है। संविधान लिखने की जिम्मेदारी इसी सभा की है, लेकिन सैन्य परिषद उसे काम करने से रोक रही है। यहां तक कि संविधान सभा भंग करने की सुगबुगाहट होती दिख रही है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा की है कि मिस्र में सरकार को असली सत्ता दिलवाने में अमेरिका से जो भी बन सकेगा, वह करेगा। वह चाहती हैं कि सेना अपनी पुरानी भूमिका में लौट जाए।

-द गाजिर्यन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
29-07-2012, 01:08 AM
एंटीबायोटिक्स पर मंडराता खतरा

एंटीबायोटिक्स महत्वपूर्ण चिकित्सकीय खोजों में शामिल है, परंतु लाइलाज रोगाणुओं की तादाद बढ़ने से इसकी अहमियत घटी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक मार्गेट चान ने चेतावनी दी थी कि एंटीबायोटिक्स युग के बाद का मतलब है आधुनिक दवाओं का निष्प्रभावी हो जाना। ऐसे में स्ट्रेप थ्रोट या घुटने छिलने भर से बच्चों की मौत हो सकती है। यकीनन 1940 के बाद बीमारियां घटीं। मृत्यु दर में भी भारी कमी आई है। यह सब एंटीबायोटिक दवा के कारण मुमकिन हो सका। मॉडर्न मेडीसिन की परिभाषा ही बदल गई। जटिल इलाजों जैसे अंग प्रत्यारोपण, कैंसर कीमोथेरेपी और वक्त से पहले बच्चों का जन्म इसी की वजह से संभव हो पाया, लेकिन अब ऐसे सबूत मिले हैं, जिनसे यह जाहिर होता है कि एंटीबायोटिक्स का असर घट रहा है। रोगाणुओं में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी क्षमता आ गई है। इसे क्रमिक विकास की प्रक्रिया कहते हैं और इस समस्या को रोगाणुरोधी प्रतिरोध। तपेदिक तथा गनोरिया के जीवाणु पर तो कई एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं पड़ रहा है।

-द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
31-07-2012, 04:28 PM
अभी केवल ओलिंपिक का आनद उठाएं

हर चार साल बाद दुनियाभर के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों को ओलिंपिक गेम्स में कमाल करते हुए लोग देखते हैं। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। लंदन में ओलिंपिक 2012 शुरू हो गया है। विडंबना यह है कि ओलिंपिक गेम्स उसी साल पड़ते हैं, जिस साल अमेरिकी अपना राष्ट्रपति चुनते हैं। देश के सर्वोच्च कार्यालय के लिए होने वाले चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उम्मीदवार आपस में जूझ रहे हैं। आने वाले वर्षो में वे देश को किस दिशा में ले जाएंगे, इस बात पर उनमें गरमा-गरम बहस छिड़ी है, लेकिन कुछ हफ्तों के लिए ही सही; तमाम अमेरिकी एकजुट दिखेंगे और उनकी निगाहें दुनियाभर के शीर्ष एथलीटों पर होंगी। अमेरिकी ही क्यों, इस गरमी में दुनियाभर के लोग अपनी रोजमर्रा की समस्याओं, गतिविधियों और खबरों से ध्यान हटाकर ओलिंपिक खेल के रोमांच का लुत्फ उठाएंगे। हमारी तरफ से सभी एथलीटों को जो व्यक्तिगत मुकाबले और टीम प्रतियोगिता में शामिल हो रहे हैं उम्दा प्रदर्शन की शुभकामनाएं। तो आइए, इस ओलिंपिक का आनंद लें।

-साउथ ईस्ट मिस्सोरियन
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
02-08-2012, 11:21 AM
जैव विविधता की लगातार हो रही है कमी

जैव विविधता की सुरक्षा का लोकप्रिय तरीका है पर्यावरणीय मूल्यों वाले क्षेत्रों की रक्षा करना। जैसे-जैसे वनों की कटाई बढ़ी, वैसे वैसे यह सिद्धांत पुख्ता होता गया। संरक्षित इलाके दुर्लभ प्रजातियों के लिए अभयारण्य बन गए। इस तरह से हमारे सामने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र तैयार होता है। 193 देश कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी के समझौते पर राजी हुए हैं। यह संधि 2020 तक रहेगी। हालांकि इसमें अमेरिका शामिल नहीं है, परंतु उम्मीद जताई जा रही है कि इसके तहत कम से कम 17 फीसदी पारिस्थितिकी समृद्ध क्षेत्रों की सुरक्षा मुमकिन हो पाएगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इन क्षेत्रों के चारों ओर कृत्रिम तंत्र की स्थापना जायज है? एक संरक्षण तंत्र के रूप में संरक्षित क्षेत्रों का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। कई बार तो इसकी आलोचना की गई है, क्योंकि इसकी वजह से गरीब आबादी जो वनों पर भोजन, लकड़ी तथा दूसरे संसाधनों के लिए आश्रित रहती है, उसे बेघर होना पड़ता है। हकीकत यह है कि संरक्षित क्षेत्रों का आधा हिस्सा जैव विविधता की कमी से जूझ रहा है।

-नेचर
ब्रिटेन का प्रमुख जर्नल

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 12:25 AM
जिंदगी में और भी है बहुत कुछ

इस तथ्य में सचमुच मानव मर्म को छूने वाली जादुई ताकत है कि एक शो में इतने सारे लोग एवं मुल्क शिरकत करने उमड़ पड़ते हैं और वह शो है ओलिंपिक का आयोजन। सिर्फ यही एक वजह नहीं है कि खिलाड़ियों या दर्शकों के लिए ओलिंपिक इतना खास है। दरअसल ओलिंपिक का एक लंबा इतिहास है, जो इसे ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी के ग्रीस से जोड़ता है। 1894 में एक फ्रांसीसी ने विश्व बंधुत्व के संदेश के रूप में इसकी पुनर्कल्पना की। यही भावना इस खेल का निर्देशन करती है और विभिन्न देशों के बीच के विवादों और प्रतिद्वंद्विता को स्वीमिंग पूलों, रिंगों, ट्रैकों तथा अन्य खेलों के अखाड़ों में ले आती है। मसलन क्यूबा और उत्तर कोरिया को ही लीजिए। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मुताबिक ये देश बहिष्कार लायक हैं, लेकिन ओलिंपिक में उनके एथलीट हिस्सा लेते हैं। अफ्रीका और एशिया के गरीब मुल्कों ने साबित किया है कि यदि उन्हें मौका मिले, तो वे भी बेहतर कर सकते हैं। ओलिंपिक यह याद करने का एक अच्छा मौका होता है कि सियासत और पैसे के अलावा भी जिंदगी में बहुत कुछ है।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 08:21 PM
महिलाओं की भागीदारी ने बढ़ाई उम्मीदें

ओलिंपिक में पहली बार सभी देशों की टीमों में महिला एथलीट हैं। अमेरिकी दल में तो पुरुषों से ज्यादा महिलाएं हैं। ऐसा पहली बार हुआ। ब्रुनेई, कतर एवं सऊदी अरब की नुमाइंदगी महिला एथलीट कर रही हैं। इससे पहले किसी ने ऐसा देखा-सुना न था। आखिरी मिनट में नाटकीय बदलाव करते हुए सऊदी अरब ने भी अपनी टीम में दो महिला खिलाड़ियों को शामिल होने की इजाजत दी। हाल ही ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट में सऊदी अरब की आलोचना करते हुए कहा था कि यह देश महिलाओं को खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं लेने देता। कतर की महिला एथलीटों में से एक एयर राइफल शूटर बाहिया अल हमाद को मार्चपास्ट के दौरान राष्ट्रीय झंडा लेकर चलने का गौरव हासिल हुआ। इसी तरह तलवारबाजी में मारियल जगुनिस अमेरिकी झंडा लेकर बढ़ीं। वाकई वे महत्वपूर्ण पल थे, जिन पर इन्हें नाज होगा और इनके देशों को भी, लेकिन इतने भर से काम नहीं चलने वाला। अब भी दुनिया के कई देशों में महिला खिलाड़ियों के लिए बेहतर सुविधाएं नहीं हैं।

-लॉस एंजिलिस टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-08-2012, 03:42 PM
हिन्दुस्तान में निवेश अच्छी खबर

यह हमारे देखने के नजरिये पर निर्भर करता है कि हिन्दुस्तान ने पाकिस्तानी निवेश को अपने यहां जो मंजूरी दी है उसकी हम सराहना करें या फिर इससे चिंतित हों। इसकी आलोचना की बुनियाद इस दलील पर टिकी है कि पाकिस्तान की अपनी इकोनॉमी बदहाल है। हालांकि इसे बचाने की ख्वाहिशें जोर पकड़ती जा रही हैं पर घरेलू मसलों की वजह से घरेलू व विदेशी दोनों तरह के निवेश में गिरावट आई है। पाकिस्तानी निवेशक अपनी रकम गैर मुल्कों में लगाते रहे हैं। जाहिर है हिन्दुस्तान के ताजा फैसले से उन्हें एक और मंजिल मिल जाएगी। हिन्दुस्तान इसे बखूबी समझता है इसलिए वह इस मौके को भुनाना चाहता है। लेकिन इस चिंता को अलग रखकर देखें तो दांव पर बहुत कुछ लगा हुआ है। हम जानते हैं कि हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के बीच ज्यादा से ज्यादा कारोबार होना अच्छी खबर है। इसके लिए महज यही दलील नहीं दी जा सकती कि कारोबार से दोनों मुल्कों को खूब आर्थिक फायदे होंगे। वक्त आ गया है कि दोनों मुल्क एक-दूसरे की स्थिरता में अपना योगदान दें। इस मायने में हिन्दुस्तान का कदम अहम है।

-डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
10-08-2012, 08:30 PM
प्रतिमाओं पर प्रहार ठीक नहीं

जाफना के एक सामुदायिक भवन में एक महापुरूष की प्रतिमा को तहस-नहस करने की खबर तब आई जब श्रीलंका के सुरक्षा हालात पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। ब्यौरे बताते हैं कि वहां मौजूद दो पार्टियों के कार्यकर्ता आपस में भिड़ पड़े। जाफना पुलिस के अनुसार इस सामुदायिक भवन में स्थानीय लोग इकट्ठे होते रहे हैं और तरह-तरह की खेल गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे हैं जबकि कुछ लोग वहां शराबखोरी भी करते हैं। खैर, इसी साल अप्रैल महीने में बत्तीकलोआ शहर में नियमित अंतराल पर कई मूर्तियां तोड़ी गईं। आज तक इसकी वजह साफ नहीं हो सकी।अगर लोग महान हस्तियों की प्रतिमाएं क्षत-विक्षत करने की हद तक जा सकते हैं तो इससे यही संकेत मिलता है कि देश में कानून को तोड़ने वाली पीढ़ी उभर रही है। ऐसे कृत्यों में संलिप्त लोगों को अंदाजा भी नहीं है कि इन शख्सियतों ने मानवता और अपने समुदाय की सेवा के जरिए दुनिया भर में पहचान बनाई। नागरिकों के नैतिक पतन को हम हल्के में नहीं ले सकते। हमारी संस्कृति 25 सौ साल पुरानी है। इस पर आंच न आए हमें यह तय करना ही होगा।

-डेली मिरर
श्रीलंका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-08-2012, 03:53 PM
फिर वही दास्तां

एक और शर्मिंदगी भरी दास्तां। वजीर-ए-आजम राजा परवेज अशरफ 27 अगस्त को शीर्ष अदालत में दाखिल होंगे, जहां मुमकिन है कि उन पर अदालती नाफरमानी का मुकदमा चले। उनकी हुकूमत भी स्विस अफसरों को खत लिखने में नाकाम रही। फिर कशमकश है। अदालत चुनी हुई हुकूमत को इससे बढ़कर और क्या शर्मिन्दा कर सकती है। यह लगातार दूसरे वजीर-ए-आजम होंगे जिन्हें अदालत की नाफरमानी के मामले में लपेटा जाएगा। एक और जियाला (पाकिस्तान की सरकार) अपने रहनुमा आसिफ अली जरदारी के लिए शहादत देगी। जब जस्टिस आसिफ खोसा की अगुवाई वाली बेंच ने अपनी आखिरी सुनवाई में हुकूमत को नोटिस जारी किया उससे पहले तक हर कोई यह उम्मीद लगाए बैठा था कि इस बार सरकार अपनी हिफाजत में कामयाब होगी और इस ऊल-जुलूल कहानी का अंत होगा। पर अफसोस इस बार भी नाउम्मीदी हाथ लगी। यह साफ है कि वजीर-ए-आजम को नाकाबिल ठहराने का सीधा असर सदर पर नहीं पड़ेगा। ऐसे में यही लगता है कि वजीर-ए-आजम की जो भी तकदीर अदालत तय करेगी उसे हुकूमत मानेगी।

-डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
15-08-2012, 12:31 PM
जमीन हड़पने पर रोक लगे

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक खबर दिखाई थी, जिसमें जबरिया मजहब बदलने के खौफ के साए में 17 साल की पाकिस्तानी हिंदू लड़की के अगवा होने का जिक्र किया गया था। पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी हिंदुओं द्वारा हिन्दुस्तान कूच करने की खबरें आती रही हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इस इलाके के जमीन माफिया अकलियत तबके के लोगों को निशाना बनाते हैं। उधर, वाघा बॉर्डर पर भारत जा रहे करीब 250 पाकिस्तानी हिंदू तीर्थयात्रियों को जायज वीजा रहते हुए भी रोक दिया गया। घरेलू मामलों के मंत्रालय का कहना था कि उन्होंने एनओसी नहीं ली थी। ऐसे में तीन कदम उठाने की जरूरत है। एक, जैकोबाबाद में हिंदुओं की जमीन हड़पने के इरादे से लोकल गुंडे उनके साथ जो ज्यादती कर रहे हैं, उन पर फौरन और मुसलसल रोक लगे। दूसरा, गृह मंत्री पूरी तरह से साफ करें कि क्या किसी पाकिस्तानी को अपने मुल्क से बाहर जाने के लिए एनओसी की दरकार होगी और तीन जैसा कि सदर ने कहा है कि पाकिस्तान पर अकलियतों की हिफाजत करने में नाकाम मुल्क की तोहमत जड़ने की हर कोशिश को नाकाम किया जाए।

-द नेशन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-08-2012, 02:45 PM
हत्याओं का कसूरवार है तालिबान

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक इस साल के पहले छह महीनों में अफगानिस्तान में नागरिक हताहतों की संख्या में कमी आई है। जनवरी 2012 से अब तक 3 हजार से ज्यादा नागरिक हताहत हुए हैं। यूनाइटेड नेशंस एसिस्टेंस मिशन इन अफगानिस्तान की रिपोर्ट कहती है कि इसमें से 1,145 जानें गईं और 1,954 जख्मी हुए। अगर पिछले साल से इसकी तुलना करें, तो महज 15 फीसदी की कमी आई है। संयुक्त राष्ट्र के खास उपदूत निकोलस हेसम कहते हैं कि दहशतगर्द खास तौर से तालिबान 80 फीसदी जान-माल के नुकसान के जिम्मेदार हैं। दस फीसदी हत्याएं अंतर्राष्ट्रीय फौज एवं अफगान नेशनल सिक्युरिटी फोर्स की गलतियों की वजह से हुई हैं। बाकी 10 फीसदी के बारे में किसी खास पार्टी को कसूरवार नहीं माना जा सकता। बावजूद इन दावों के दहशतगर्दों के जेहन में आम जिंदगियों का कोई मोल नहीं है। यहां तक कि उनकी सुरक्षा के मद्देनजर जो एहतियात बरते जा रहे हैं, वे उनकी भी धज्जियां उड़ाते रहते हैं। इसमें कोई शक नहीं पिछले दस बरस की जंग में लोगों की हत्याओं का सबसे बड़ा कसूरवार तालिबान ही है।

-डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-08-2012, 03:45 PM
खुमारी से बाहर निकलना होगा

हर किसी ने हमें सराहा। अधिकतर ने जितनी उम्मीदें लगा रखी थीं उनसे कहीं बेहतर 2012 का लंदन ओलंपिक रहा। जैसे-जैसे ओलंपिक परवान चढ़ता गया, इस आयोजन, मुकाबलों व खिलाड़ियों की तूती बोलने लगी। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दुनिया के करोड़ों लोगों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया। वे इसके प्रतिभागी बने। उन्होंने दर्शक दीर्घा में बैठकर रोमांच का लुत्फ उठाया। वे टीवी स्क्रीन के जरिए सीधे खेल मैदान तक पहुंचे। सचमुच ये कभी न भूलने वाली बातें हैं जो करोड़ों के जेहन में कैद हो गई हैं। वैसे इन सबके परे भी बहुत कुछ है जिसने गुजरे 17 दिनों ने इस देश को बदल डाला है। अगर किसी की राय में कुछ भी बेहतर न था तब भी बेहतरी के कई रास्ते खुले हैं। अब ब्रिटेन और उसकी राजधानी लंदन को ओलंपिक की खुमारी से बाहर निकलना होगा। इस सच का अहसास जरूरी है कि महाखेल का समापन हो चुका है। कल तक जो सपना था वह आज स्मृति शेष है। हालांकि पैरा ओलंपिक्स एक और मेजबानी का आसरा देख रहे हैं पर दुनिया के सबसे बड़े खेलोत्सव को वापस ब्रिटेन में लाने में कम से कम आधी सदी लगेगी।

-गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
22-08-2012, 12:51 AM
एयरबेस पर हमले से उठे सवाल

कामरा एयर फोर्स अड्डे पर हमले ने कई सवाल पैदा किए हैं। हम इस बात से खुश नहीं हो सकते कि हमले में नौ दहशतगर्द मारे गए जबकि मुकाबले में सिर्फ एक जवान शहीद हुआ है। अहम सवाल तो यह है कि इतनी सख्त पहरेदारी वाले फौजी इलाके में आखिर आतंकी दाखिल होने में कामयाब कैसे हुए? मुमकिन है आने वाले दिनों में नॉर्थ वजीरिस्तान में अपने खिलाफ किसी किस्म की फौजी कार्रवाई की सुगबुगाहट को महसूस करते हुए दहशतगर्दों ने पहले ही हमला बोला हो। तो क्या खुफिया चेतावनियां सिर्फ नीति के रूप में जारी की जाती हैं और हिफाजत में जुटे लोगों तक वे पहुंच भी नहीं पातीं? पाकिस्तान एयर फोर्स के पंजाब स्थित अड्डों पर आतंकी संगठन टीटीपी के जवाबी हमले का खतरा तो साफ था क्योंकि इस महीने की शुरुआत में खुफिया महकमे के लोगों ने उसके एक नेता को उठाया था और जो मारा गया। बहरहाल, पहले के आतंकी हमलों की तरह ही कामरा हमले में भी किसी भीतरी शख्स की मिलीभगत मुमकिन है। इस जंग को और टालना हमारे हित में नहीं हैए क्योंकि ऐसे में दहशतगर्दी से निपटना और मुश्किल होता जाएगा।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
23-08-2012, 12:06 PM
अफगानियों की देश में अमन की दुआ

अफगानिस्तान की 99 फीसदी आबादी मुसलमान है और रमजान में अफगानियों ने मुल्क में अमन,शांति और भाईचारे की दुआएं मांगी। नमाजी गुजरे 32 साल से ये मांग रहे हैं पर अमन की वापसी न हुई। यहां तक कि इस पाक महीने में भी अफगानियों पर हमले होते रहे। इससे साफ है कि तालिबान अफगानियों व उनके मजहब के दुश्मन हैं। बीते दिनो एक धमाके में दो दर्जन से ज्यादा बेगुनाह मारे गए। कई विदेशी साथी हमसे अमन बहाली और स्थिरता के वायदे करते रहे हैं। लेकिन वे वायदे एक के बाद एक टूटते चले गए। दूसरी ओर मुल्क में घरेलू बगावत और तालिबानी दहशतगर्दी चरम पर पहुंच गई। ऐसे में जब हुकूमत की पकड़ कमजोर पड़ रही है और 2014 के अंत तक नाटो फौजों की वतन वापसी तय है तब अफगानिस्तान की तकदीर भी नाउम्मीदी के घने कोहरे में छिपती दिख रही है। आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि तालिबान की ताकत में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा चलाई गई दहशतगर्दी विरोधी मुहिम के एक दशक बाद भी हम यह नहीं कह सकते है कि हमारी जीत हुई है।

-डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
27-08-2012, 05:19 AM
संघर्ष का कारण बन रहे द्वीप

हाल ही जापान के खिलाफ चीनी नागरिकों ने प्रदर्शन कर जापानी कारों और उद्योग-धंधों को निशाना बनाया । सात वर्षों में यह तीसरा विरोध प्रदर्शन था, जिसके मूल में दरअसल समुद्री इलाकों के आधिपत्य की लड़ाई है। इस क्षेत्र के हरेक देश कुछ छोटे द्वीपों पर अपना हक जता रहे हैं। बहरहाल यह चीन में राष्ट्रवाद का हिंसक विस्फोट है, जिसकी धमक स्वभाव से शांतिपसंद जापानियों के बीच गूंजती है। कुछ दिनों पहले दक्षिण कोरिया ने भी जापान से नाराजगी जताई थी, जब उसके प्रधानमंत्री कुछ विवादित द्वीपों के दौरे पर थे। चीन ने भी हाल में दक्षिण चीन सागर के छोटे द्वीपों पर नियंत्रण के फिलीपींस और वियतनाम के प्रयासों का विरोध किया था। कुछ हद तक पूर्वी एशिया के देश इस तरह के संघर्षों में शामिल हैं, ताकि वे दमित इच्छाओं की पूर्ति कर सकें। वे इच्छाएं हैं इन द्वीपों के इर्द-गिर्द के समद्र में मौजूद तेल पर कब्जा जमाना और मछली पालन करना। यह भी सच है कि कुछ कमजोर राष्ट्र-नायक इस विवाद की आड़ में जनता में खुद को स्थापित कर रहे हैं।

-द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
30-08-2012, 02:20 PM
ऐसी पाबंदी के क्या मायने ?

पाकिस्तानी हुकूमत अपने एक दायरे को पार कर गई, जब उसने ईद के पहले की रात 12 बारह घंटे के लिए मोबाइल सेवा ठप कर दी। इस फैसले को घरेलू महकमे के वजीर रहमान मलिक ने जायज बताते हुए कहा कि मुल्क को नौ आतंकी धमकियां मिली थीं और चूंकि दहशतगर्द सेल फोन के जरिए रिमोट कंट्रोल्ड बम फोड़ते हैं, इसीलिए यह खेदजनक लेकिन जरूरी कदम उठाना पड़ा। अगर कोई रहमान मलिक की सफाई पर यकीन कर भी ले, तो भी इस फैसले को जायज नहीं ठहराया जा सकता। कमोबेश पूरा मुल्क सेल फोन पर निर्भर है। वैसे भी ईद के मौके पर तो सेल फोन की जरूरत ज्यादा होती है, क्योंकि पाकिस्तानी एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। इस फैसले से यह बू आती है कि हुकूमत यह जताने की जुगत में है कि वह जब चाहे, तब अवाम के कामकाज और बात-बर्ताव को रोक सकती है। चिंता की बात यह है कि अगर हुकूमत के अमलेदार इस तरह के तानाशाहाना कदम बिना किसी मुखालिफत के उठा सकते हैं, तो आतंकी धमकियों की दुहाई देकर अवाम की आजादी और इंसानी हुकूक भी छीन सकते हैं।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
30-08-2012, 03:26 PM
बाजार कोई राजनीति नहीं

अगर वक्त के साथ आप रवैया नहीं बदलते हैं तो आप मुख्यधारा से बाहर हो जाएंगे, परंतु बाजार राजनीति की तरह आचरण नहीं करता। यह अधिक जटिल होता है क्योंकि इसका सीधा वास्ता दुनियादारी से है। ईमानदारी और बुद्धि के आधार पर इसे चलाया जाता है। इसे अनिश्चितता और हस्तक्षेप से घृणा है। हाल ही में प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग के अध्यक्ष तिलक करुणारत्ने ने इस्तीफा दे दिया। इसे उदाहरण के तौर पर रखा जा सकता है कि बाजार के कामकाज को कैसे प्रशासनिक वर्ग नहीं समझ पा रहा है। संबंधित नियामक आन रिकॉर्ड यही बता रहा है कि जिन्होंने उन्हें चुना उनके भारी दबाव में वह थे। बहरहाल इस मामले में व्यावहारिक होने की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अहम ओहदे हासिल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है। और जब आप उस ओहदे पर आ जाते हैं तो पीछे के दरवाजे से उन लोगों की मदद भी करनी पड़ती है। बीते नौ महीनों में इस्तीफा देने वाले आयोग के वह दूसरे अध्यक्ष हैं। जाहिर है इसका असर कोलंबो स्टॉक मार्केट तथा निवेशकों पर पड़ेगा।

-डेली मिरर
श्रीलंका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-09-2012, 12:19 AM
अलविदा कह गए आर्मस्ट्रांग

मोक्ष सागर में उतरने से कुछ माह पहले जब दुनिया की सर्वाधिक लोकप्रिय हस्तियों में शुमार इस शख्स से पूछा गया था कि इंसान चांद पर बसने की योजना क्यों बना रहा है, तो उनका जवाब था, हम चांद पर इसलिए जाना चाहते हैं, क्योंकि यह मानव प्रकृति है कि वह चुनौतियों को चुनता है। यह एक शानदार जवाब था और इससे इस महान शख्सियत की विशिष्टताओं का भी पता चलता है। अब यह महानायक दुनिया से रुख्सत हो गया। 43 साल पहले उन्होंने सबसे पहले चांद पर अपना कदम रखा था। दरअसल ये बातें हो रही हैं नील आर्मस्ट्रांग की, लेकिन उनकी पूरी कहानी बस, इतनी नहीं है। आर्मस्ट्रांग अपने बेखौफ मिजाज के लिए भी जाने जाते थे और उनके इस मिजाज को उभारने का काम किया था अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ .केनेडी ने। 1969 में आर्मस्ट्रांग की सफल चंद्रमा यात्रा चकित कर देने वाली उपलब्धि थी। आर्मस्ट्रांग ने अपोलो 11 मिशन को बड़ी बहादुरी और ठंडे दिमाग से अंजाम दिया। यह आर्मस्ट्रांग का ही आकर्षण था कि इसके गैर वैज्ञानिक पहलुओं को दुनिया ने भुला दिया।

-द गाजिर्यन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-09-2012, 12:20 AM
म्यांमार में हिंसा की फैलती जड़ें

बौद्ध और मुसलमान दोनों म्यांमार में साथ रहते आए हैं। हाल ही इन समुदायों के बीच हिंसा भड़की थी। यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन चिंता की बात यह है कि भविष्य में ऐसी हिंसक झड़पों का कोई अंत नहीं दिख रहा। दरअसल दोनों समुदायों में जो अविश्वास उत्त्पन्न हुआ है और सामंजस्य की जिस तरह कमी है, उसे लेकर राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर कभी कोई तर्कसंगत बहस नहीं होती। इससे आपसी अविश्वास के गहराने और तनाव फैलने लायक माहौल बनता है। यह सच है कि म्यांमार में ऐसी ताकतें हैं, जो इस विस्फोटक स्थिति का फायदा उठाना चाहती हैं। इन तत्वों के अपने राजनीतिक एजेंडे हैं और अगर नफरत एवं आपसी गलतफहमी की चिनगारी आगे भी सुलगती रही, तो निश्चित तौर पर उनका हित सधेगा। न्यूयॉर्क स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि सरकार और उसकी फौज की तरफ से पिछले कुछ महीनों में भड़के दंगों को रोकने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की गई। रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर डाला गया है कि दोनों पक्षों के बीच अमन का माहौल न बने, इसके लिए फौज भी उत्तरदायी है।

-द इर्रावड्डी
म्यांमार का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
03-09-2012, 04:44 AM
उम्मीदों के साथ करें ताज़ा हालात पर गौर

पाकिस्तानी नुमाइंदों की एक टीम हिन्दुस्तान से लौटी है। उसका कहना है कि दोनों मुल्कों के कुछ सियासी कट्टरपंथियों ने आपसी रिश्ते को बिगाड़ रखा है, जिसे अच्छे कामों से दुरुस्त किया जा सकता है। पटना में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की अनुशा रहमान कहती हैं कि हम सरहद पार से मोहब्बत का पैगाम लेकर आए हैं। इसके बाद सबकी आंखें नम हो गईं। यकीनन ऐसा पहले भी हुआ होगा, पर उनकी बुनियाद पर ऐतबार की इमारत नहीं खड़ी की जा सकी या यूं कहें कि ऐसी जज्बाती कवायदें इतनी बार हो चुकी हैं कि दक्षिण एशिया के बाहर की दुनिया ने इनके प्रति दिलचस्पी दिखानी ही बंद कर दी। इससे पहले कि हमें एक बार फिर गलत करार दिया जाए ताजा हालात पर उम्मीदों के साथ गौर कीजिए। पाकिस्तानी फौज की नजर तालिबान पर है, सो हिन्दुस्तान के प्रति उसमें नरमी आई है। बहरहाल पीपीपी के जहांगीर बदर, अवामी नेशनल पार्टी के हाजी अदील और पीएमएल (एन) के खुर्रम दस्तगीर इस टीम में शामिल थे। गुफ्तगू में वीजा कायदों में ढील देने की मांग सबसे अहम रही।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
15-09-2012, 08:31 PM
अफगानिस्तान और अफीम

दुनिया में 90 फीसदी से ज्यादा अफीम अफगानिस्तान में होती है। यहीं से बाकी दुनिया तक नशे का कारोबार पहुंचता है। यह दुनिया भर की हुकूमतों के लिए सिरदर्द से कम नहीं, परंतु सबसे पहले इसकी चपेट में अफगान ही आते हैं। ताजा आकलन के मुताबिक मुल्क में अफीमचियों की तादाद 20 लाख से ऊपर पहुंच गई है। ड्रग तस्करी से जो रकम उगाही होती है वह जंग, दहशतगर्दी की भेंट चढ़ जाती है। नशे की खेती मुल्क को भीतर से खा रही है। नामालूम हमारी हुकूमत को यह बात कब समझ आएगी? अफीम तो अफगान समाज में गहरे तक धंस चुकी है। हमारे नौजवान नशे में अपने घर का रास्ता भूल गए हैं। हर साल हजारों लोगों की जानें जाती हैं। और बाकी दुनिया में जो इंसानियत तहस-नहस होती है सो अलग। अफीम के कारोबार से अगर कोई मुनाफे में है तो वह है तालिबान। तालिबान को अपने नापाक मनसूबों के लिए जो रकम चाहिए वह अफीम के कारोबार से आती है। इसलिए वह अफीम की खेती को बढ़ावा देता है। इसके लिए कभी वह किसानों की चिरौरी करता है तो कभी उन्हें धमकाता है। हकीकत यह भी है कि दर्द मिटाने के लिए गांवों में अफीम लेने की पुरानी रवायत है।

-डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-09-2012, 03:38 PM
एंडी मरे की क्षमता

क्या कभी किसी खिताब की कमी इतनी शिद्दत से महसूस की गई या उस पर इस हद तक बहस हुई जितनी कि पुरुष एकल टेनिस ग्रैंड स्लैम पर हुई जिसके लिए ब्रिटेन को 76 साल तक इंतजार करना पड़ा? बहस की शुरुआत 1936 में शुरू हुई जब फ्रेड पेरी ने यूएस ओपन का खिताब जीता था। और बीते सोमवार जब एंडी मरे ने न्यूयॉर्क में उसी खिताब पर अपना कब्जा जमाया तब जाकर अंतहीन बहस का दौर थमा। इस दौरान बहुत कम ग्रैंड स्लैम इवेंट्स ऐसे हुए जब पेरी युग के अवसान का शोक न मना। कई ब्रिटिश महारथी आए और चले गए। उनमें आॅस्टिन, टेलर व टिम हेनमैन जैसे दिग्गज भी थे परंतु वे विफल रहे। यकीनन,मुकाबलों में उन्होंने कड़ी टक्कर दी पर हर शिकस्त के साथ तकदीर के खेल का बोध प्रबल हो उठता और एक ब्रिटिश विजेता की आस नाउम्मीदी में बदल जाती। बहुत वर्ष नहीं बीते जब यह कहा जाता था कि अंग्रेजी भाषा में सबसे ज्यादा हतोत्साहित करने वाले तीन शब्द हैं- कम आॅन टिम। इस वजनदार मजाक से पिंड छुड़ाने में एंडी मरे को वक्त जरूर लगाए पर वह अपनी प्रतिभा क्षमता के बूते इस बात को पुष्ट करते रहे कि उनमें ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने की क्षमता है।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अख़बार

Dark Saint Alaick
29-09-2012, 01:16 AM
मरते मासूम

आंकड़े स्तब्ध करने वाले हैं। विगत 18 महीनों में सीरिया में लोकतंत्र समर्थकों के खिलाफ जारी दमनात्मक कार्रवाई के चलते 26 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। दुनिया ने सीरिया के बच्चों को लेकर गंभीर चिंता जताई । इस गृहयुद्ध का न केवल मासूम शिकार हैं, बल्कि उन्हें जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है। सुरक्षा परिषद की बैठक में हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में बच्चों की संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि लीला जेरुगुई ने कहा कि सीरिया में बच्चे दर्दनाक हालात से गुजर रहे हैं। उनका भीषण उत्पीड़न हो रहा है। उनके साथ यौन शोषण के मामले भी सामने आए हैं। उनके विद्यालयों पर हमले होते हैं। यहां तक कि विद्यालयों को युद्धस्थल बना दिया गया है। इस तरह की खबरें भी आई हैं कि फ्रीसीरियन आर्मी बच्चों को भर्ती कर रही है। लीला की यह प्रतिक्रिया उस रिपोर्ट के बाद आई, जो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग को अगस्त में सौंपी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक मई में एक नरसंहार में 49 मासूम मारे गए थे और वह घटना असद सरकार की वजह से हुई थी।

-द क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-10-2012, 03:08 PM
कैसी तालीम

स्कूली किताबों में हमारी तहजीब और रवायतों के बारे में गलत व गुमराह करने वाली जानकारियां हैं। यह कड़वी हकीकत है। इससे मुल्क की जनजातियों और कबाइली समुदायों को पीड़ा पहुंचती है जिनके पुरखों की पैदाइश इसी मिट्टी में हुई और जिनके रग-रग में बांग्लादेश रचा-बसा है। हालांकि गलत व गुमराह करने वाली जानकारियां इस लिहाज से हैरत पैदा करने वाली खबर है कि मुल्क की मौजूदा हुकूमत अकलीयत के अखलाक व हकों की पैरोकार है। बीते दिनों एक सम्मेलन में शामिल शख्सियतों ने इस बात पर चिंता जताई गई कि मुल्क की तरक्की व तहजीब में अकलीयतों, जिसमें कबाइली लोग शामिल हैं, के योगदान को भुलाया जा रहा है। तकलीफदेह बात यह है कि हम अपने नौनिहालों और नौजवानों के जेहन में उनके प्रति नफरत भर रहे हैं। इससे अमन की राह में दीवारें खड़ी होती हैं। इसमें शक नहीं कि कबाइली लोगों की अलग बोली-भाषा है। उनके मिलने-जुलने का तरीका अलग है। लेकिन इसमें बुरा भी क्या है? उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने का पूरा हक है।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
05-10-2012, 08:48 AM
भूमि अधिकार

साल भर पहले चीन का छोटा सा गांव वुकान बगावत की आग से धधक उठा था। करीब तीन हजार लोग उस विद्रोह में शामिल हुए थे। वजह सुनी-सुनाई थी। भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा किसानों की जमीनों पर कब्जा किया जाना। वैसे वुकान में कुछ अनोखा नहीं हुआ था। हर साल चीन में लाख से ज्यादा छोटे-बड़े आंदोलन होते रहते हैं। उनमें से अधिकतर जमीन विवाद से जुड़े हैं। अनुमान के मुताबिक 2003 से 2008 के बीच सरकार ने किसानों की दस लाख एकड़ जमीन हथिया ली है। दुनिया भर में यह समस्या गहराती जा रही है। इसी के मद्देनजर इस साल संयुक्त राष्ट्र ने जवाबदेह शासन से सम्बंधित एक दिशा-निर्देश जारी किया था। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने हाल ही में अपने भाषण में यह चेतावनी दी है कि विकासशील देशों में जमीन पट्टेदारी कानून पुराना पड़ चुका है और यह लोगों को निवेश से रोकता है। वुकान विद्रोह इस मायने में अनोखा था कि इससे भूमि अधिकार और व्यक्तिगत आजादी के बीच एक रिश्ता कायम हो गया।

-द क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-10-2012, 09:55 PM
आशंका सच साबित हुई

इसकी आशंका अरसे से थी कि सीरिया में जारी गृह युद्ध का असर आसपास के क्षेत्रों में भी दिख सकता है। बीते दिनों सीरिया ने सरहद पार तुर्की में गोलीबारी कर इसे सच साबित कर दिया। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी खासकर नाटो से यह उम्मीद बंधती है कि वह तुर्की की ठोस सामरिक मदद के लिए आगे आए। तुर्की के अकाकेले गांव में सीरियाई फौज ने गोलीबारी की है। प्रतिक्रिया में तुर्की पार्लियामेंट ने फौज को सीरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की इजाजत दी। गौरतलब है कि नाटो सदस्य देशों में तुर्की की अंकारा दूसरी सबसे बड़ी फौज है। तुर्की के जवाबी हमले से इतना तो साफ हो गया कि असद हुकूमत आग से खेल रही है। अगर तुर्की इस मामले को और तूल दे तो सीरिया में विदेशी हस्तक्षेप बढ़ जाएगा। निस्संदेह असद की हुकूमत से लड़ रही विद्रोही सेना को इसका फायदा होगा। वैसे अपने नाटो सहयोगियों के साथ तुर्की के बेहतर रिश्ते कभी नहीं रहे हैं।

-द आस्ट्रेलियन
आस्ट्रेलिया का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
28-10-2012, 01:27 AM
बहुत सतर्क हैं बराक ओबामा

जब साल 2008 में बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे, तब वह वैश्विक राजनीति में नए थे। वह अनुभवहीन थे, नौसिखिए थे लेकिन उनसे ढेरों उम्मीदें थीं। चार साल बाद भी अमेरिकी गणराज्य में वह खुद को एक कुशल प्रबंधक और मार्गदर्शक नेता के रूप में स्थापित नहीं कर सके हैं। दरअसल एक रस्मी भाषण के दौरान जनता उनकी प्रतिभा की कायल हुई और इस तरह से वह गुमनामी के अंधेरे को चीरते हुए बाहर निकले। फिर जन उम्मीदों के सैलाब ने उन्हें राष्ट्रपति की कुरसी तक पहुंचा दिया, लेकिन आज बराक ओबामा पहले से काफी अलग तरह के उम्मीदवार हैं। उन्हें दो युद्ध विरासत में मिले थे और उन्होंने उनका बखूबी सामना किया। सबसे महत्वपूर्ण यह कि ओबामा ने व्हाइट हाउस की मर्यादा एवं प्रभुत्व को वह ऊंचाई दी, जिनके लिए वह जाना जाता है। वह बोलने में संयम बरतते हैं। ऐसा लगता है कि वह अहंकारी की बजाय अधिक सतर्क हैं।

-द लॉस एंजिलिस टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
26-11-2012, 07:47 PM
बचत की आदत बढ़ानी ही होगी

पूंजीगत निवेश के लिए जरूरी दौलत जमा करने के लिहाज से बचत की आदत एक अहम औजार बन सकती है। बचत रूपी यह निवेश न सिर्फ नए कारखाने लगाने की राह खोलती हैए बल्कि इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर की हालत भी सुधरती है। जाहिर है इस तरह इकोनॉमी की रफ्तार तो बनी ही रहती है आम लोगों के लिए बड़ी तादाद में नौकरी के मौके भी पैदा होते हैं। बड़े कारखानों व इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए अरबों डॉलर की रकम चाहिए जिसे जुटाना किसी भी मुल्क के लिए आसान नहीं है। लचर माली हालत वाले ज्यादातर मुल्क इसके लिए ऊंची दर पर कर्ज लेते हैं और फिर हर साल उनके बजट का एक बड़ा हिस्सा उन कर्जों को ब्याज सहित चुकाने में खर्च होता है। हर साल कर्ज की वह राशि एक बहुत बड़ी रकम को निगल जाती है जो तरक्की के दूसरे मदों में खर्च की जा सकती थी। यह अच्छी स्थिति नहीं है समस्या का तार्किक हल यही है कि हर मुल्क अपने नागरिकों में बचत की आदत को बढ़ावा दे।

-द डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-12-2012, 11:00 PM
एक नजीर ने सबक सिखाया

आखिरकार जालिम को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। उसे इस अंजाम तक पहुंचाने में चार साल का लंबा वक्त जरूर लगा, मगर उसे निष्पक्ष अदालती सुनवाई का इंसानी हक दिया गया। 26/11 के मुंबई हमले के इकलौते जिंदा कातिल अजमल आमिर कसाब की फांसी से उम्मीद है कि जिन लोगों ने उस त्रासद हादसे में अपनों को खोया था, उन्हें इत्मीनान पहुंचा होगा और अब वे अपनी जिंदगी में आगे बढ़ेंगे। हिन्दुस्तान में इस वक्त बहस छिड़ी हुई है कि कसाब को लटकाने में काफी वक्त लगा, लेकिन अब इस मुल्क के लोगों को आगे की तरफ देखना चाहिए। यह बात भी गौर करने लायक है कि कसाब को जिस दिन फांसी दी गई, उसके एक दिन पहले हिन्दुस्तान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फांसी के खिलाफ पेश प्रस्ताव की मुखालफत की थी। यह फांसी इस बात की नजीर है कि एक जम्हूरियत कैसे काम करती है। इस पूरे मसले से काफी सबक सीखे जा सकते हैं।

-गल्फ न्यूज
संयुक्त अरब अमीरात का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-12-2012, 11:03 PM
उम्मीद है अब इंसाफ होगा

2008 के मुंबई हमले का वह इकलौता गनमैन (भाड़े का हत्यारा) था जिसे खौफनाक मंजर के बीच जिंदा दबोचने में कामयाबी मिली थी। उस दहतशतगर्द यानी अजमल कसाब को बिना किसी शोर-शराबे के फांसी पर लटका दिया गया और वहीं दफना भी दिया गया। इस घटना से वे दिल दहला देने वाले मंजर फिर से आंखों के सामने तैर गए हैं, जिनमें पाकिस्तान व हिन्दुस्तान को लगभग जंग के मुहाने पर पहुंचा दिया गया था। वे गलतियां चीख-चीखकर कहती हैं कि दहशतगर्दी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान के कदम ठोस नहीं हैं। मुंबई हमले के मामले में पाकिस्तान में जारी सुनवाई लटकती जा रही है। भारत बार-बार कहता है कि हम आतंकवाद पर गंभीर नहीं हैं। उम्मीद है इससे केस पर नई रोशनी पड़ेगी और इंसाफ होगा। पाकिस्तानियों को जानने का हक है कि हुकूमत ऐसा क्या करने जा रही है कि आइंदा दूसरे मुल्क के खिलाफ हमारी जमीन का नापाक इस्तेमाल न हो सके।

-डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
01-12-2012, 11:05 PM
ऐतिहासिक दौरे से बंधी उम्मीद

अमेरिकी सदर बराक ओबामा का म्यांमा दौरा इस मायने में तो ऐतिहासिक था ही कि वे अमेरिका के पहले शख्स हैं जिन्होंने बहैसियत प्रेसिडेंट यांगून की जमीन पर अपने कदम रखे हैं। यांगून में उन्होंने म्यांमा के सदर थेन शेन और विरोधी पार्टी की मुखिया आंग सान सू की से मुलाकात की। गौरतलब है कि थेन शेन फौजी जुंटा के सदस्य रह चुके हैं और मार्च 2011 से,जबसे उन्होंने सदर का ओहदा संभाला है, म्यांमा में सुधारों की रफ्तार तेज हुई है। दूसरी तरफ आंग सान सू की ने अपने मुल्क में फौजी तानाशाही की मुखालफत की नुमाइंदगी की है। बहरहाल ओबामा का दौरा वाशिंगटन के उस बयान की तस्दीक करता है जिसमें ओबामा प्रशासन ने म्यांमा में अपनी विदेश नीति की जीत की बात कही है। दरअसल अमेरिका ने म्यांमा के फौजी जनरलों को अपने मुल्क में सुधार के लिए बाध्य किया है और पिछले साल भर में वहां सुधार के तमाम कदम उठाए भी गए हैं।

-द पेनिनसुला
कतर का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
05-12-2012, 02:36 AM
पाकिस्तान में मुंह फाड़ती महंगाई

हाल ही में जारी एक सर्वेक्षण के मुताबिक पाकिस्तान में रोजमर्रा में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के दामों में करीब 200 फीसदी का इजाफा हुआ है। नवा-ए-वक्त की तरफ से यह सर्वे कराया गया है। जाहिर है मरकज और सूबों की हुकूमतें आसमान छूती महंगाई रोकने में नाकाम हैं। इसे इनकी लाचारी कहें या अवाम की मदद न करने की मंशा पर यह शीशे की तरह साफ है कि कारोबारियों पर इनका जोर नहीं चल रहा और वे मनमाने तरीके से कीमतें बढ़ा रहे हैं। बेलगाम महंगाई से आम पाकिस्तानी को सबसे ज्यादा दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसकी आमदनी इतनी ज्यादा नहीं बढ़ी कि वह कीमतों में इजाफे का भार सह सके। दूसरी तरफ आलम यह है कि घरेलू बैंकों से हुकूमत की लेनदारी सभी हदें पार कर गई है। हकीकत यह भी है कि टैक्स अदा करने वाले औसत पाकिस्तानी की जिंदगी हुकूमत में शामिल तबकों को आलीशान जिंदगी मुहैया कराने में गुजर जाती है।

-द नेशन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-12-2012, 12:02 AM
सच्चे मित्र का चले जाना

बानवे साल के वयोवृद्ध भारतीय नेता तथा पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र् कुमार गुजराल आखिरकार दुनिया से विदा हो गए। गुजराल का हमेशा ही नेपाल के साथ बेहद करीबी रिश्ता रहा और वह आखिरी भारतीय प्रधानमंत्री थे जो नेपाल की औपचारिक राजकीय यात्रा पर काठमांडू आए थे। जिस वक्त नेपाल में जन-आंदोलन चरम पर था, तब वे भारत के विदेश मंत्री हुआ करते थे। इस आंदोलन की परिणति नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र व सांविधानिक राजशाही की स्थापना के रूप में हुई। गुजराल नेपाल में लोकतंत्र के जबर्दस्त समर्थक थे और साथ ही वह हमारे अंदरूनी मामलों में किसी हस्तक्षेप के भी विरोधी थे। उनके नेपाल प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण है कि जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पहली विदेश यात्रा के लिए काठमांडू को चुना। उस वक्त उन्होंने नेपाल को ब्लैंक चैक का आफर दिया, जो संकेत था कि भारत द्विपक्षीय मसलों को सुलझाने को लेकर कितना तत्पर है।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-12-2012, 12:02 AM
तालीम ही रोक पाएगी तबाही

पाकिस्तान में तरक्की और तबाही के बीच जारी जंग खत्म होती नहीं दिख रही। अगर इस जंग में तरक्की शिकस्त खाती है तो हम सीधे गर्त में चले जाएंगे। इसलिए तरक्की करते हुए मुल्क के तौर पर हमें ज्यादा मेहनत-मशक्कत करनी होगी। हमारे मासूम तालीम के लिए स्कूल जाएं और महफूज घर लौटें यह हम सबकी जिम्मेदारी है। हम यह न भूलें कि दहशतगर्द स्कूलों को लगातार निशाना बना रहे हैं। दरअसल दहशतगर्द चाहते हैं कि मॉडर्न तालीम नहीं बल्कि मजहब की तालीम हासिल करें। कोई उन्हें समझाए, महज मजहबी तालीम से जरूरी नहीं कि घर का खर्चा निकल आए। जिंदगी जीने के लिए तो कारोबार के नुस्खे सीखने होते हैं, हुनरमंद बनना पड़ता है, अपने दिमाग का बखूबी इस्तेमाल करना होता है। लेकिन जो पाकिस्तान के स्कूलों में धमाके करते है उनके लिए ये सब तो पश्चिमी और मजहब विरोधी खयाल हैं। आखिर मसला तालीम का है, जिसे पाना हमारा हक है।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-12-2012, 12:53 AM
शुरू हो गई है एक नई जंग

सालाना भ्रष्टाचार सूचकांक हर देश में इंसानियत की ईमानदारी का लेखा-जोखा रखता है। इसे तैयार करने की जिम्मेदारी बर्लिन स्थित ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की है। इसकी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में भ्रष्टाचार को लेकर जबरदस्त आक्रोश है और यह ऐसी समस्या है, जिस पर सबसे अधिक बात की जाती है। इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया और भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों की उल्लेखनीय भूमिका के चलते पूरी दुनिया में गबन व घोटालों के मामले ज्यादा उजागर होने लगे हैं। इसके अलावा जैसे ही विश्व अर्थव्यवस्था को मंदी झेलनी पड़ी, वैसे ही अन्याय, अकर्मण्यता व भ्रष्टाचार के प्रति लोगों की असहिष्णुता बढ़ गई। बावजूद इसके इस साल की रैंकिंग में विशेष बदलाव नहीं आया है। 176 देशों में से दो-तिहाई पहले जैसी स्थिति में हैं। अच्छी खबर यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू हो गई है। तो क्या भ्रष्टचार के खिलाफ दुनिया एकजुट हो चुकी है?

-क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

rajnish manga
17-12-2012, 11:19 AM
संत अलैक जी, इस सूत्र के ज़रिये आपने वैश्विक स्तर पर होने वाले महत्वपूर्ण बदलावों और घटनाओं पर दुनियाभर का मीडिया तथा विशेष रूप से भारत के पड़ोसी देशों का मीडिया क्या सोचता है, इसका व्यापक चित्र प्रस्तुत किया है. यह जान कर हर्ष हुआ कि पाकिस्तान का मीडिया आतंकवाद को बढ़ावा देने के काम में लगे हुये संगठनों के विरुद्ध जनता को जागरूक कर रहा है और सरकार पर भी इस बारे में सार्थक कार्यवाही के लिये दबाब डाल रहा है. इससे पाकिस्तान में आतंकवाद फैलाने वाले लोगों और गुटों के विरुद्ध एक जनमत तैयार करने में मदद मिलेगी.

Dark Saint Alaick
02-01-2013, 03:13 AM
गुस्सा जुर्म के खिलाफ

जुर्मों के खिलाफ लोगों का गुस्सा स्वाभाविक है लेकिन समाज इसे अपनी सभ्यता की तरक्की से जोड़कर देखता है। जहां लोगों की शराफत व सोच-समझ विकसित है वहां पीड़ित कोई भी हो, उसके लिए हमदर्दी की लहर उठती है। जाहिर है बुरे हालात में इंसानों की संवेदना एक जैसी होती है लेकिन जहां जनसमुदाय पीड़ित को जाति, नस्ल, मजहब के चश्मे से देखते हैं, वहां गुस्से के गुबार आसमान नहीं छूते हैं। हिन्दुस्तान में भी कुछ ऐसे समुदाय हैं, जिन्हें लगता है कि उनके लिए हमदर्दी की आवाज ज्यादा नहीं उठती। वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की मदद में न केवल कम आवाज उठती है, बल्कि उन्हें पीड़ित बने रहने के बावजूद प्रताड़ित होना पड़ता है। बहुलतावादी समाज मसलन अमेरिकी समाज में गुस्से के गुबार का उठना उनका हक बताया गया है। हाल ही में वहां स्कूली बच्चों व शिक्षकों पर कातिलाना हमले हुए। इसे लेकर वहां की जनता बेहद नाराज है।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
04-01-2013, 09:32 PM
नाकाम साबित होता कानून

एक लड़की की खुदकुशी की खबर इन दिनों सुर्खियों में है। 2010 में यौन शोषण की शिकार 14 लड़कियों ने, जिनमें 13 साल की लड़की भी थी, वारदात के चार महीनों में खुदकुशी कर ली थी। अब एक बार फिर दो दिन पहले ही 15 साल की एक और लड़की ने अपनी जान दे दी। उसे उसी के साथी ने, जिसकी उम्र 18 साल है, अगवा किया था। इस कांड में एक इलाकाई गुंडा भी शामिल था। जब लड़की ने यौन शोषण का आरोप लगाया तो आरोपी और उसके घरवालों ने लड़की और उसके परिवार वालों को धमकाना शुरू किया। उस पर मामले को वापस लेने का दबाव बढ़ता जा रहा था। तंग आकर लोकलाज और धमकियों के सामने उसने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। बांग्लादेश में ऐसे कई मामले आते रहते हैं। अगर मीडिया इन्हें उछालता है तभी सबकी निगाहें समस्या पर जाती हैं। साफ है, हमारे कानून, परिवार व सामाजिक संगठन औरतों के मामले में नाकाम साबित हो रहे हैं।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
04-01-2013, 09:58 PM
सूचना का खेल भी गोपनीय

अमेरिका की संघीय सरकार हर साल कई पेटाबाइट्स (एक पेटाबाइट बराबर 10 लाख गीगाबाइट्स) सूचनाएं गोपनीय रखती है। इनमें से कुछ संवेदनशील होती हैं और कुछ बेकार। 1972 का वह राजनयिक तार 1997 तक गोपनीय रखा गया जिसमें अमेरिका और चीन के बीच उपहारों के आदान-प्रदान का उल्लेख था। गौरतलब है कि इसमें निक्सन सरकार द्वारा दो चीनी पांडा के बदले कस्तूरी बैल दिए जाने की चर्चा थी। अमेरिकी लोगों को यह अधिकार है कि वे अमेरिकी सरकार की उन तमाम गतिविधियों को जानें जो उनके नाम पर की गई हैं या की जा रही हैं। विशेष परिस्थितियों में अपवाद मुमकिन है। एक क्रियाशील लोकतंत्र में जनता द्वारा सरकार को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है सरकारी कामकाजों की जानकारी रखना। लेकिन अमेरिकी तंत्र ज्यादा जानकारियां गोपनीय बनाए रखने पर यकीन करता है।

- द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
07-01-2013, 11:59 PM
शायद अंधेरा खत्म होगा

पत्रकारों के लिए साल 2012 हमलों का रहा। जेल में पत्रकारों की संख्या रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई। अपने कर्तव्य निबाहने के दौरान 132 संवाददाता मारे गए। हममें से अधिकांश ने साल 2012 में एक नई तरह की संधि को देखा। लगभग 89 देशों ने इंटरनेट पर सरकारी प्रतिबंध का समर्थन किया। चीन से सीरिया तक की दमनकारी सत्ताओं ने महूसस किया कि कैसे डिजिटल मीडिया सरकारी झूठ, अत्याचार व भ्रष्टाचार को उजागर करता है। दिसम्बर में संयुक्त राष्टñ समर्थित इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन्स यूनियन की बैठक हुई जिसमें सरकारें इंटरनेट का गला घोंटने में कामयाब रहीं। हर सरकार अपने लिए अलग इंटरनेट प्रणाली की वकालत कर रही है जहां उनके डिजिटल वाल पर तमाम शर्ते हों। इंटरनेट ने खोजी पत्रकारिता का असर तेज किया है। बेशक 2012 मीडिया के लिए बुरा रहा पर उम्मीद है कि 2013 में सरकारी सेंसरशिप का अंधेरा खत्म होगा।

-क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 12:45 AM
कई मुद्दों पर बंटा मुल्क

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच के क्रिकेट मुकाबले दोनों मुल्कों के लोग चाव से देखते-सुनते हैं। ऐसे मुकाबलों में अपने मुल्क के लिए भावनाएं किस तरह से हिलोरें मारती हैं, उस मर्म को भी हम बखूबी समझते हैं। कोलकाता में दर्शकों ने पाकिस्तानी खेल को सराहा, जबकि उनकी अपनी हिन्दुस्तानी टीम मैदान में शिकस्त खा रही थी। पाकिस्तान में क्रिकेट उन कुछ खास तत्वों में शामिल हैn जो अवाम को जोड़ते हैं, वरना आज यह मुल्क कई मसलों पर कई टुकड़ों में बंटा हुआ है। निस्संदेह हिन्दुस्तान के खिलाफ मिली पाकिस्तानी टीम की इस जीत और हिन्दुस्तानी दर्शकों द्वारा पाकिस्तानी टीम की हौसला अफजाई की तस्वीरें बार-बार देखी जानी चाहिए। शुरुआती दो वनडे मैचों को जीतकर पाकिस्तानी टीम ने सीरीज में पहले ही फतह हासिल कर ली। इसमें कोई शक नहीं कि जबर्दस्त दबाव में टीम एकजुट हुई व जीती।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

rajnish manga
15-01-2013, 09:53 PM
नाकाम साबित होता कानून

एक लड़की की खुदकुशी की खबर इन दिनों सुर्खियों में है। 2010 में यौन शोषण की शिकार 14 लड़कियों ने, जिनमें 13 साल की लड़की भी थी, वारदात के चार महीनों में खुदकुशी कर ली थी। अब एक बार फिर दो दिन पहले ही 15 साल की एक और लड़की ने अपनी जान दे दी। उसे उसी के साथी ने, जिसकी उम्र 18 साल है, अगवा किया था। इस कांड में एक इलाकाई गुंडा भी शामिल था। जब लड़की ने यौन शोषण का आरोप लगाया तो आरोपी और उसके घरवालों ने लड़की और उसके परिवार वालों को धमकाना शुरू किया। उस पर मामले को वापस लेने का दबाव बढ़ता जा रहा था। तंग आकर लोकलाज और धमकियों के सामने उसने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। बांग्लादेश में ऐसे कई मामले आते रहते हैं। अगर मीडिया इन्हें उछालता है तभी सबकी निगाहें समस्या पर जाती हैं। साफ है, हमारे कानून, परिवार व सामाजिक संगठन औरतों के मामले में नाकाम साबित हो रहे हैं।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

यदि यहाँ बांगलादेश का नाम न छापा जाता तो इसे आसानी से हम अपने देश की अखबारी सुर्ख़ियों में शामिल कर सकते थे. अभी कुछ दिन पहले अमरीका से सामूहिक बलात्कार रुपी महिला उत्पीड़न का समाचार पढ़ने को मिला. इस प्रकार लगता है कि स्त्रियों का यौन शोषण एक वैश्विक समस्या है भले ही भारत और उसके आसपास के कुछ देशों में इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है.

Dark Saint Alaick
16-01-2013, 02:09 AM
यदि यहाँ बांगलादेश का नाम न छापा जाता तो इसे आसानी से हम अपने देश की अखबारी सुर्ख़ियों में शामिल कर सकते थे. अभी कुछ दिन पहले अमरीका से सामूहिक बलात्कार रुपी महिला उत्पीड़न का समाचार पढ़ने को मिला. इस प्रकार लगता है कि स्त्रियों का यौन शोषण एक वैश्विक समस्या है भले ही भारत और उसके आसपास के कुछ देशों में इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है.

आपने सही कहा रजनीशजी। भारतीय उप महाद्वीप, विशेषकर भारत में यह समस्या इसलिए भी ज्यादा है कि जातिवादी सोच और अहंकार से उपजे बदले (रिवेंज) के लिए भी इसका उपयोग होता है और इसकी शिकार बनती है नारी।

Dark Saint Alaick
16-01-2013, 03:01 AM
सीमा पर झड़प अफसोसनाक

लाइन आफ कंट्रोल पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच ताजातरीन झड़पें अफसोसनाक हैं। ये तब हुए जब दोनों मुल्कों के दरमियान रिश्तों की गरमाहट महसूस की जा रही थी। गोलीबारी व उसके बाद दोनों तरफ से शुरू हुए तल्ख बयानों के सिलसिले ने वैसे हालात पैदा कर दिए हैं कि दोनों में से कोई भी मुल्क रिश्ते की बेहतरी की दिशा में उठते अपने कदम को रोक सकता है। आठ जनवरी को हिन्दुस्तान ने दावा कि सीमापार से गोलीबारी में उसके दो जवान शहीद हो गए। हिन्दुस्तानी फौज की उत्तरी कमान के प्रवक्ता ने इसे लड़ाई-बंदी की शर्तों की नाफरमानी बताया। इधर पाकिस्तान ने साफ किया है कि उसकी फौज उकसावे की इस कार्रवाई में शामिल नहीं थी। हमें नहीं मालूम कि हकीकत क्या है। उम्मीद है कि लाइन आफ कंट्रोल पर झड़पें दोबारा नहीं होंगी। इस्लामाबाद और नई दिल्ली दोनों इस तनाव को खत्म करने की दिशा में पहल करें।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-01-2013, 01:48 PM
मनमोहक नजारा है महाकुंभ का

हिन्दुस्तान के इलाहाबाद में संगम किनारे कुंभ मेले का आगाज हो चुका है। नदियों के इस संगम स्थल पर लाखों श्रद्धालुओं ने पहले दिन शाही स्नान किए। इलाहाबाद में गंगा व यमुना का मिलन होता है। ऐसी मान्यता है कि सरस्वती भी यहीं आकर मिलती है। हर 12 साल पर कुंभ का आयोजन होता है जहां धरती पर इंसानों की सबसे बड़ी जमघट लगती है। उम्मीद है 55 दिन के इस पर्व में दस करोड़ लोग हिस्सा लेंगे। साल 2001 में तो मुख्य शाही स्रान के दिन चार करोड़ लोग इकट्ठा हुए थे उसने इंसानों के जमघट के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ डाले। हिन्दुओं का मानना है कि कुंभ में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष नसीब होता है। कुंभ की महानता इसी से साबित हो जाती है कि दूसरे मुल्कों के हिंदू भी इसमें नहाने के लिए हिन्दुस्तान जाते हैं। तीर्थयात्रियों की हिफाजत के तमाम इंतजाम भी हैं। वाकई मनमोहक नजारा है इस महाकुंभ का।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
03-02-2013, 07:58 PM
कमजोर ही रहे नेतन्याहू

इजरायल के आम चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। जानकार मानकर चल रहे थे कि इस चुनाव में भी पहले की तरह लहर उठेगी। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत होंगे और ईरान के खिलाफ उनकी तीखी जुबानी जंग होगी। चुनाव के बाद नेतन्याहू कमजोर नेता के तौर पर उभरे। वह अब दहाड़ नहीं सकते। राइट विंग एलायंस, जो उन्होंने पूर्व विदेशमंत्री लेबेरमान के साथ मिल कर बनाया था, को 120 सीटों वाले नेसेट (संसद) में 31 सीटें हासिल हुईं। नेतन्याहू की पार्टी को इसमें 20 सीटें मिलीं जबकि पिछले नेसेट में यह आंकड़ा 27 था। सबसे असाधारण यह रहा कि पत्रकार याइर लैपिद की पार्टी ने, जो महज नौ महीने की है,19 सीटें जीतीं। चुनाव में इस पार्टी ने सामाजिक आर्थिक मसले ही उठाए। अपने लिकुद बेतेनू गठबंधन के खराब प्रदर्शन के बाद नेतन्याहू के पास यही विकल्प है कि वह इस पार्टी के साथ मिलकर काम करें।

-द पेनिनसुला
कतर का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
05-02-2013, 01:48 PM
युद्ध क्षेत्र में आ रही महिलाएं

पेंटागन ने कहा कि युद्ध क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के समकक्ष भूमिकाएं निभाने में सक्षम हैं। यकीनन इराक व अफगानिस्तान युद्ध से अमेरिकी रक्षा विभाग को यह महसूस हुआ। वैसे तो आधिकारिक रूप से युद्ध के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी 2016 तक ही मुमकिन हो पाएगी। अलबत्ता शुरू में उनकी तादाद बहुत कम भी हो सकती है परंतु महिला सैनिकों की नियुक्ति का जो रास्ता साफ हुआ है, वह प्रशंसनीय है और इसमें विस्मय की कोई बात नहीं है। हाल के इतिहास बताते हैं कि इंसानों ने शारीरिक सीमाओं के बंधन तोड़े हैं। खास तौर पर महिलाएं रूढ़ियों व तथाकथित कमजोरियों को सिरे से खारिज कर चुकी हैं। वे हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। कई क्षेत्रों में तो वे बाजी मार चुकी हैं। निस्संदेह 1972 के संघीय कानून से यह मुमकिन हो पाया। इस कानून ने लड़कियों को प्रोत्साहित करने का काम किया।

-द क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
05-02-2013, 11:02 PM
स्कूलों में बढ़ रहा है शुल्क

बीते कुछ दशकों में देश भर में प्राइवेट स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। ये विद्यालय अलग-अलग स्तरों व आकारों के हैं। इसी तरह उनकी शिक्षा की गुणवत्ता भी अलग-अलग हैं। इन स्कूलों के शिक्षण-शुल्क सरकारी स्कूलों की तुलना में कहीं अधिक हैं। तब भी माता-पिता अपने बच्चों को लेकर प्राइवेट स्कूल की ओर ही जाते हैं। इसके पीछे सोच यह है कि ज्यादा शुल्क चुकाकर अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा की गारंटी पाना। ऐसा लगता है कि बेहतर शिक्षा एक वर्ग-विशेष का मसला बनकर रह गया है। इसी तथ्य को भांपते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल प्राइवेट स्कूलों को शिक्षण-शुल्क हर तीन साल पर शुल्क बढ़ाने का निर्देश दिया था। फिर भी निजी व आवासीय पाठशाला संघ ने आदेश की अवहेलना करते हुए देश भर में प्राइवेट स्कूल के शिक्षण-शुल्क में दस फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। सरकारी नीति इसके लिए जिम्मेदार हैं।

- द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-02-2013, 12:34 AM
अदालत का अच्छा निर्णय

अबुल कलाम उर्फ बच्चू राजकर के खिलाफ लंबे वक्त से लटके मामले की अदालती सुनवाई आखिर पूरी हुई और अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई है। यकीनन यह एक सराहनीय फैसला है क्योंकि बच्चू ने बेहद वहशियाना तरीके से गुनाह को अंजाम दिया था। वह न केवल बांग्लादेश की आजादी की जंग के खिलाफ खड़ा हुआ, बल्कि उसने दुश्मनों की हिमायत की, उन्हें मदद पहुंचाई। दूसरी तरफ उसने मानवता को शर्मसार करने वाला कुकर्म किया। हम इस मामले में सरकार की ईमानदारी की भी तारीफ किए बिना नहीं रह सकते कि उसने न सिर्फ इंसाफ की इस प्रक्रिया की शुरुआत की, बल्कि उसने कभी इसकी रफ्तार सुस्त नहीं पड़ने दी। इस फैसले के साथ जहां उन लोगों को दंडित करने की शुरुआत हो गई है, जो 1971 से किसी तरह से बचते आए हैं, वहीं इसने उन लोगों का कर्ज चुकाया जो बच्चू के जुल्म का शिकार बने थे।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-02-2013, 03:28 AM
फिर यह हाय तौबा क्यों

भयंकर बर्फबारी के बावजूद शीर्ष खेल आयोजन देखना सुकूनदायक रहा। बीते दिनों सफेद पिचों पर रगबी के दिलचस्प मुकाबले हुए, जहां टीमों ने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किए और दर्शकों ने जमकर लुत्फ उठाए। इन सबके बीच शर्मिंदगी की बात यह रही कि परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से ठप रही और स्कूलों को बंद रखा गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सर्दी में ज्यों मौसम बिगड़ता है, बर्फबारी होती है, तो सबसे पहले परिवहन व्यवस्था बाधित हो जाती है और इसके बाद स्कूलों को बंद करने के आदेश जारी किए जाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के बाद आवाजाही मुश्किल हो जाती है लेकिन शहरों में यातायात तंत्र का ठप होना और स्कूलों का बंद हो जाना कहां तक जायज है? बर्फ गिरना प्राकृतिक घटना है जो अक्सर सर्दी में घटती है। पहले की तुलना में अब बर्फबारी कम ही होती है। फिर यह हाय-तौबा क्यों?

-द टेलीग्राफ
लंदन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-02-2013, 03:29 AM
गुजर चुका बदतर दौर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक दावोस में हुई। पाकिस्तान के लिए वहां से अच्छी और बुरी दोनों खबरें थी। अच्छी यह है कि सम्मेलन में पाकिस्तानी आस्कर विजेता फिल्मकार शरमीन ओबैद चिनॉय को मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए अवॉर्ड दिया गया, तो वहीं इमरान खान भी इस मंच से दुनिया को यह बताने के लिए मौजूद थे कि हमारे सुनहरे कल के लिए उन्होंने कैसे ख्वाब बुने हैं, लेकिन खूबसूरत एहसास जगाने वाली खबरें यहीं खत्म भी हो जाती हैं। दावोस वह जगह है, जहां दुनिया की माली हालत की तस्वीर उतारी जाती है। हकीकत यह है कि दुनियाभर के मुल्कों की आर्थिक तरक्की की रफ्तार सुस्त और कमजोर पड़ी है। यूरोजोन में गंभीर परेशानियां हैं हालांकि यह साफ है कि बदतर दौर अब गुजर चुका है। पर दुनिया के तमाम हिस्सों में स्थानीय सियासी झमेलों ने छोटे व बड़े दोनों तरह के बाजारों में अनिश्चितता का माहौल बनाया है।

-द न्यूज
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-02-2013, 10:35 PM
सच सामने आना चाहिए

बरसों से टुकड़ों में जानकारियां लीक होती रही हैं और उनसे हम यह अंदाजा लगाते रहे हैं कि करगिल की जंग कैसे छिड़ी, जबकि यह जंग अपने आप में गलत व बिना तैयारी के लिया गया फैसला था। तब हमारे सैकड़ों फौजियों की जानें दांव पर लगा दी गई थीं, जबकि मुल्क को यह कह कर मुगालते में रखा गया कि यह मुजाहिदों का जेहाद है। यह जो जुआ खेला गया था, उसे लेकर एक बार फिर नए खुलासे सामने आए हैं, जो जनरल मुशर्रफ के आर्मी चीफ बनने के बाद की तस्वीर को धुंधली करती है। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि एक शख्स की गवाही या बोली एक विवादास्पद संघर्ष की पूरी कहानी बयां नहीं करतीं, लेकिन इस मामले में मिलिटरी आपरेशन्स मुखिया को भी अंधेरे में रखा गया तब उनके अल्फाज करगिल की घटनाओं के दूसरे पहलुओं पर नजर डालने को बेबस करती हैं। वक्त आ चुका है कि करगिल जंग से जुड़ी सारी जानकारियां जुटाई जाएं।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-02-2013, 11:29 PM
रिश्ते की नींव और मजबूत

बांग्लादेश और भारत के बीच दो समझौतों पर सहमति बनी है। पहला हवालगी करार (प्रत्यर्पण संधि) और दूसरा वीजा कायदों में ढील। दोनों मुल्कों ने इन करारों पर दस्तख्त कर दिए हैं जो निस्संदेह सराहनीय कदम है। साफ है इससे भारत-बांग्लादेश रिश्ते की बुनियाद और पुख्ता होगी और दोनों देश साझा रिश्ते की दशा-दिशा तय करते हुए आगे बढ़ेंगे। अगर ये करार अपने अल्फाज व जज्बात के साथ लागू किए जाते हैं तो इनसे नफा न होने का सवाल ही नहीं उठता है। खास तौर पर हवालगी करार से बांग्लादेश व भारत अपने-अपने वांछितों व मुल्क में जुर्म साबित हो चुके मुजरिमों को एक-दूसरे को सौंप पाएंगे। ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपने मुल्क में संगीन जुर्म को अंजाम देकर दूसरे मुल्क में छिप जाते हैं। हालांकि सियासी जुर्म के दायरे में आने वाले लोगों को इस करार से आजाद रखा गया है। इसे इस करार की खामी माना जा सकता है।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
08-02-2013, 11:32 PM
खामियों पर भी गौर हो

जब आप अपनी मान्यताओं से ठीक विपरीत होती चीजों के बारे में सुनते हैं तो उन पर आपको विश्वास करना वाकई बेहद कठिन लगता है। एक गैर लाभकारी संगठन ने ताईवान के ताओयुआन स्थित एयरपोर्ट को दुनिया के शीर्ष 10 हवाई अड्डों में शामिल किया। वहीं एक दूसरे गैर सरकारी संगठन ने रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार को खत्म करने की सरकारी कोशिशों को सराहा है। जाहिर है इन गुणगानों से परिवहन व रक्षा मंत्रालय के अधिकारी उत्साहित महसूस कर रहे होंगे पर हम लोग इन संगठनों द्वारा किए जा रहे गुणगानों से सहमत नहीं हैं। ताईवान लंबे समय से भ्रष्टाचार से रुग्ण है। एक पूर्व राष्ट्रपति घूस लेने के मामले में लंबी कैद काट रहे हैं। एक पूर्व कैबिनेट महासचिव व पूर्व नेशनल फायर चीफ पर भी भ्रष्टाचार के छींटें पड़े हैं। हॉलीवुड स्टाइल हत्या-रिश्वत प्रकरण से फौज भी अछूती नहीं है। साफ है अपने बखान से पहले खामियों पर भी गौर जरूरी है।

- द चाइना पोस्ट
ताईवान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-02-2013, 01:33 PM
अच्छे संकेत पर शक का साया

पहले अच्छी खबर। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में तेहरान के साथ छह देशों के समूह की बातचीत के अगले दौर के लिए वक्त व स्थान तय किए जाने की खबर है। अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जोए बिडेन और ईरानी विदेश मंत्री अली अकबर सालेही ने कहा है कि वे सीधी बातचीत के लिए तैयार हैं हालांकि दोनों ने चेतावनियों के साथ ही रजामंदी जताई है। बिडेन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच यह प्रस्तावित बातचीत इस मामले में ईरान की संजीदगी पर निर्भर करता है। वहीं सालेही ने कहा है कि दोनों पक्षों की बातचीत बराबरी के स्तर पर होनी चाहिए और यह तभी हो सकता है जब ईरान पर लगे प्रतिबंध हटेंगे। हाल की टीवी बहसों ने ईरान के रुख को भी कुछ नरम किया है। बुरी खबर यह है कि यह सब कुछ उस वक्त होने जा रहा है जब जून में ईरान अपना नया राष्टñपति चुनने वाला है और इस बातचीत पर उसका साया पड़ेगा। बल्कि कुछ भी नाटकीय हो सकता है।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
17-02-2013, 01:34 PM
इस मुलाकात के क्या मायने?

इंग्लैंड में करजई-जरदारी मुलाकात दो पड़ोसी मुल्कों के बीच बेहतरी का सबूत है। अफगान तालिबान से अमन-सुलह के लिए छह महीने की समय-सीमा तय की गई ह जो उम्मीद की किरण के तौर पर नजर आती है। अलबत्ता इस मामले में हो रही कोशिशों की रफ्तार बेहद धीमी रही है और दोहा बातचीत भी नाकामयाब साबित हुई। इन सबसे यह तो जाहिर हो ही जाता है कि अमन व भरोसे की बहाली की प्रक्रिया कितनी मुश्किल है। वैसे, अब तक यह भी साफ नहीं कि इस शिखर बातचीत का सुलह-समझौता या अमन और सुलह से क्या वास्ता है क्योंकि इस बातचीत में शामिल लोगों को यह तनिक भी आइडिया नहीं है कि वे तालिबान से गुफ्तगू करके क्या हासिल कर लेंगे? अब तक तो यही सब हुआ है कि कई मोर्चो पर कई मुल्कों की मदद से बात चलती रही पर किसी किस्म की तरक्की नहीं दिखी। एक तरह से यह प्रक्रिया धीमी व पेचीदा ही होती गई।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
19-02-2013, 12:52 AM
यह तो होना ही था

यह बात हम पहले भी कई बार कह चुके हैं। स्विस सरकार ने पाकिस्तान की चिट्ठी का वही जवाब दिया है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ जांच फिर से नहीं शुरू की जा सकती, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत उन्हें विशेष संरक्षण मिला हुआ है। यह मामला पिछले 15 साल से बंद है। यह बात 2007 की है, जब जनरल मुशर्रफ की सत्ता पर पकड़ कुछ ढीली होने लगी थी, तो उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी की नेता बेनजीर भुट्टो से समझौते की कोशिश शुरू की थी। उन दोनों में जो समझौता हुआ, उसमें राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश के तहत बेनजीर और जरदारी के खिलाफ सभी मामले वापस ले लिए गए थे। इनमें कोटेनका केस भी था, जिनमें इन दोनों के खिलाफ स्विटजरलैंड में जांच चल रही थी। उसके बाद पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने सुलह अध्यादेश को ही खारिज कर दिया और सभी मामलों को फिर खोलने की मांग की, लेकिन नतीज़ा सामने है।

-द डेली टाइम्स
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
23-02-2013, 01:52 AM
खेल लिए, इतना ही काफी है

हिन्दुस्तान में हुए महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तानी टीम के शर्मनाक प्रदर्शन की जबर्दस्त आलोचना हो रही है। टीम ने अपने सारे मैच गंवा दिए। यहां तक कि अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्वी टीम हिन्दुस्तान के हाथों वह आखिरी मैच भी हार गई और आठ देशों की फेहरिस्त में सबसे आखिरी पायदान पर रही। यकीनन हमारी टीम ने इस टूर्नामेंट में बेहद कमजोर प्रदर्शन किया है लेकिन इसमें चौंकने वाली कोई बात नहीं है। अव्वल तो दुनियाभर में क्रिकेट को भद्र पुरुषों के खेल के तौर पर पहचाना जाता है। फिर पाकिस्तान में महिलाओं को मैदान में उतरने के लिए वैसे ही काफी विरोध का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यही कम बड़ी बात नहीं है कि हमारी टीम ने वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। कुछ साल पहले तक पाकिस्तानी महिला क्रिकेट व खिलाड़ियों का कोई वजूद नहीं था। आज वे लगातार श्रृंखलाएं खेल रही हैं और दुनिया में खेल दौरे भी कर रही हैं। इतना ही काफी है कि वे खेल रही हैं।

-द न्यूज
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-02-2013, 01:30 AM
उत्तर कोरिया का दुस्साहस

उत्तर कोरिया ने घोषणा की है कि उसने देश के पूर्वोतर इलाके में तीसरा भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है और परीक्षण सफल रहा है। सियोल मौसम विभाग ने भी कहा है कि सुबह 11.57 बजे उसने रिक्टर स्केल पर 4.9 तीव्रता का झटका दर्ज किया है जिसका केंद्र्र नॉर्थ हेमग्योंग राज्य के गिलजू में था। स्तालिनवादी पड़ोसी ने इस बार भी उसी छल-नीति का अनुसरण किया जो नीति उसने मध्य दिसंबर में मिसाइल परीक्षण के वक्त अपनाई थी। राष्टñपति ली म्युंग-बाक व निवर्तमान राष्टñपति पार्क गिऊन-ही ने स्पष्ट किया कि हम किसी भी सूरत में यह बर्दाश्त नहीं कर सकते कि उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार हों। यह बिल्कुल सही है। साल 2006 और 2009 के मुकाबले इस तीसरे परीक्षण से दक्षिण कोरिया की सुरक्षा को खतरा काफी बढ़ गया है। ऐसा लगता है कि यह उद्दंड शासन अब अपने बूते पर परमाणु हथियार बनाने के अंतिम चरण में पहुंच गया है।

- द कोरिया टाइम्स
दक्षिण कोरिया का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
26-02-2013, 03:56 PM
चुनाव पर सहमति बनी

आदर्श स्थिति तो यह होती कि नेपाल में जो भी सरकार आए उनके अगुवा राजनीतिक पार्टियों के ही लोग हों। राजनीतिक पार्टियां वैधानिक संस्थाएं होती हैं जो जनाकांक्षाओं की नुमाइंदगी करती हैं। समाज में इनकी जड़ें गहरी पहुंचती हैं और ये देश और जनता के बीच कड़ी की भूमिका निभाती हैं। बीते आठ महीनों के जो अनुभव रहे हैं उनसे साफ है कि नेपाल की राजनीतिक पार्टियों के लिए यह तय करना असंभव हो गया था कि कौन सरकार की अगुवाई करे। दरअसल सत्ता पक्ष विपक्ष को साथ लेकर चलना नहीं चाहता था। वहीं सत्ता में शामिल पार्टियों की अगुवाई में विपक्ष ने भी चुनाव में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। वे अंतत: इस नतीजे पर पहुंचे कि नेपाल के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश बालुवतार (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) पर काबिज होंगे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव पर सहमति बनी। यह उम्दा विकल्प नहीं था पर कम से कम चुनाव की राह तो बनी।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

rajnish manga
26-02-2013, 06:25 PM
नेपाल में काफी लम्बे समय से राजनैतिक अस्थिरता का माहौल चला आ रहा है, यह न सिर्फ नेपाल के लिए बल्कि भारत के लिए भी चिंता का विषय है. राजनैतिक खालीपन की वजह से कई विदेशी ताकतों को अपने गलत इरादों को क्रियात्मक रूप देने का मौक़ा मिलता है. भारत को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है. हमें आशा करनी चाहिए कि नेपाल में प्रधान न्यायाधीश स्थिति से युक्तिपूर्वक निबटेंगे और आगामी चुनाव के पार ले जाते हुए एक स्थिर सरकार का मार्ग प्रशस्त करेंगे.

Dark Saint Alaick
28-02-2013, 02:49 AM
ठोस कदम की जरूरत

हम बांग्लादेशी किसी भी हिन्दुस्तानी वजीर के दौरे को दिलचस्पी से लेते हैं। ऐसे में जब विदेश मामलों के हिन्दुस्तानी वजीर यहां आए तो क्या कहने थे। दोनों मुल्कों के बीच जो समझौते हुए उनमें एक यह है कि साझा बुनियाद बनाई जाए जिसके जरिये दोनों मुल्कों के बीच इकोनॉमी, विज्ञान, तालीम, तकनीक व सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाया जा सके। इसके अलावा बांग्लादेश के पास तीन ऐसे मसले हैं जिन पर वह हिन्दुस्तान से सकारात्मक जवाब की उम्मीद लगाए बैठा है। जहां तक सरहद पर खून-खराबा का मामला है तो इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दुस्तान सीमा पर तनातनी नहीं चाहता लेकिन इस दिशा में दोनों ओर से ठोस कदम की जरूरत है। वैसे हाल के दिनों में सरहद पर हिंसक घटनाएं कम घटी हैं। हम इस बात से भी खुश हैं कि 1974 के जमीन सीमा समझौते को ही बातचीत के केंद्र में रखा गया। इस मामले में हिन्दुस्तानी हुकूमत ने बेहतर कदम उठाए हैं।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-03-2013, 01:20 AM
वापस हो लूट का सामान

हाल ही में हिन्दुस्तान दौरे पर आए ब्रिटिश वजीर-ए-आजम डेविड कैमरन कारोबारी रिश्ते बढ़ाने के प्रति उत्सुक दिखे लेकिन बरसों से कोहिनूर लौटाने की मांगों को वह दरकिनार कर गए। कैमरन को लगा कि बेशकीमती रतन को लौटाना समझदारी भरा कदम तो कतई नहीं कहलाएगा। मौजूदा वक्त में यह हीरा ताज का हिस्सा है, जो टावर आफ लंदन में रखा हुआ है, लेकिन ब्रिटेन ही वह यूरोपीय औपनिवेशिक शक्ति नहीं जो दूसरों की तहजीबी विरासत पर अपना हक जताता आ रहा है। इराक में 2003 के अमेरिकी हमले के बाद वहां की सांस्कृतिक संपत्ति को जमकर लूटा गया। दुनिया के कितने लोग इस बात पर खुश होंगे कि उनके मुल्क से उनकी ही जायदाद छिनकर विश्व विरासत में शामिल कर दी जाए? नैतिकता तो यही कहती है कि जिन मुल्कों के बेशकीमती सामान लूटे गए, उन्हें वापस कर दिए जाएं।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-03-2013, 12:29 PM
ढाका में मेट्रो की तैयारी

मेट्रो रूट से जुड़ी तमाम चिंताओं और किचकिचबाजी के बाद आखिर ढाका में मेट्रो रेल के लिए बांग्लादेश और जापान ने ऋण एग्रीमेंट पर दस्तखत किए। जापान की जानिब से बांग्लादेश को चार प्रोजेक्ट के लिए 792.82 मिलियन डॉलर की रकम बतौर कर्ज मिलेगी। इनमें एक मेट्रो रेल प्रोजेक्ट भी है। इस करारनामे का सबसे अहम बिंदु यह है कि यह एक उदार कर्ज है जिसे हमें चालीस सालों में अदा करना है और इसमें दस साल की मोहलत अवधि भी है। बांग्लादेश मौजूदा वित्त वर्ष में मेट्रो प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए जापान से 116.32 मिलियन की रकम लेगा। यकीनन इससे 20.1 किलोमीटर के रेल प्रोजेक्ट का ढांचा तैयार करने में बड़ी मदद मिलेगी। कहने की जरूरत नहीं कि बेतरतीब ट्रैफिक से पस्त ढाका के बाशिंदों के लिए यह पुरसुकून खबर है। तेज रफ्तार वाली मेट्रो के आने के बाद ढाका की बड़ी आबादी को तकलीफों से निजात मिलेगी।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-03-2013, 12:30 PM
संजीदगी अब भी कायम

आठ मार्च को पूरी दुनिया महिला दिवस के तौर पर मनाती है ताकि औरतों के खिलाफ हो रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार के खुलासे हों और उनके प्रति दुनिया के रवैये में बदलाव आए। अफगानिस्तान भी इस तारीख को मनाता है। और यह दिन उसके लिए इसलिए भी खास है क्योंकि हमारा समाज उनमें एक है जहां औरतों के हक,किरदार व वजूद को लेकर संजीदगी कायम है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बीते कुछ बरसों में अफगानी समाज में औरतों की हालत पहले से सुधरी है पर फिक्र करने के हालात बने हुए हैं। दरअसल औरतों के खिलाफ हो रही ज्यादतियों की वजहों को जड़ से उखाड़ फेंका नहीं गया इसलिए बुनियादी समस्याएं समाज में धंसी हुई हैं। औरतों के हक मारे जाने की अहम वजहें हैं सख्त कायदे, भेदभाव, मजहबी कट्टरता, हुकूमत के कमजोर कानून और व्यवस्था बहाली में बरती जाने वाली कोताही। हुकूमत को इस पर गौर करना चाहिए।

-द डेली आउटलुक
अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-03-2013, 12:34 PM
कठघरे में श्रीलंका सरकार

जेनेवा के पैलेस आफ नेशंस में वृत्तचित्र नो फायर जोन देखने के बाद श्रीलंका के राजदूत बिफर पड़े। उन्होंने मानवाधिकार आयोग की आलोचना इसलिए की है कि उसकी अनुमति से यह वृत्त चित्र दिखाया गया। उनके आलोचनात्मक भाषण को खामोशी से सुना गया। जेनेवा में आयोग के सत्र में शामिल होने दुनियाभर के राजनयिक इकट्ठा हुए और श्रीलंका में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा की। जानकारों का कहना है कि चुप्पी ही भाषण का माकूल जवाब था। श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे दावा करते रहे हैं कि 2009 में आंतरिक युद्ध के खात्मे के वक्त सरकार की ओर से कोई महत्वपूर्ण युद्ध-अपराध नहीं हुआ। पर यह साफ हो चुका है कि उनका दावा विश्वसनीय नहीं है। चैनल-4 की तीसरी फिल्म इसी पर आधारित थी कि कैसे संघर्ष के आखिरी निर्णायक दिनों में तथाकथित अपराध हुए और श्रीलंका सरकार द्वारा गैर-कानूनी हत्याएं की गईं।

-द गार्जियन
ब्रिटेन का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
30-03-2013, 04:14 AM
गृह युद्ध की आशंका

इराक युद्ध को दस साल बीत चुके हैं मगर उसका भूत अब भी अमेरिका को परेशान करता रहता है। इस जंग में करीब 4,500 अमेरिकी फौजी शहीद हुए जबकि तीस हजार से अधिक जख्मी हुए और दो खरब से अधिक डॉलर इस आपरेशन व इराकी पुनर्निर्माण पर खर्च हुए। इस वजह से घाटा तो बढ़ा ही,अमेरिकी नेतृत्व व ताकत की सीमाएं भी उजागर हो गईं। इसका दंश इराक भी भोग रहा है जहां करीब एक लाख से अधिक इराकी जंग की भेंट चढ़ गए। 2003 में राष्टñपति जॉर्ज बुश और रक्षा-उप मंत्री पॉल वोल्फोविट्ज ने 11 सितंबर 2001 को सद्दाम हुसैन व इराकी परमाणु हथियार के खिलाफ इस जंग की शुरुआत की थी हालांकि वहां ऐसे किसी हथियार का वजूद नहीं था लेकिन इराक आज भी अस्थिरता की शिकार है और वहां शिया व सुन्नी तथा अरब व कुर्द के बीच जबर्दस्त तनाव है जो कभी भी गृह युद्ध में तब्दील हो सकता है।

-द न्यूयार्क टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-04-2013, 09:36 AM
सम्मान का सिलसिला

मुक्ति संग्राम में जो हमारे साथ थे उन्हें इज्जत बख्शने का यह पांचवां दौर रहा। इस बार बांग्लादेश ने 68 शख्सियतों को मुक्ति संग्राम और मुक्ति संग्राम बंधु सम्मान से नवाजा है। इसमें क्यूबा के क्रांतिकारी नेता और पूर्व सदर फिदेल कास्त्रो, ब्रिटेन के पूर्व वजीर-ए-आजम हैरॉल्ड विल्सन, हिन्दुस्तान के पश्चिम बंगाल सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और 13 पाकिस्तानी हैं। पाकिस्तानियों में एक शायर, एक पायलट, एक सियासतदां, एक वकील और एक खबरनवीस शामिल हैं। ये वे लोग थे या हैं जिन्होंने बंगालियों के खिलाफ पाकिस्तानी जुल्म पर जमकर लिखा और उसके खिलाफ आंदोलन के उठ खड़ा होने में हर तरीके से मदद पहुंचाई। बशर्ते सम्मान का सिलसिला देर से शुरू हुआ है लेकिन अहम यह है कि इसके जरिये हम उन विदेशी बंधुओं के योगदान को मान रहे हैं जिन्होंने 1971 में बंगाली अस्मिता के बारे में दुनिया भर में जागरूकता फैलाई थी।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
10-04-2013, 09:57 AM
पाकिस्तान में पहली बार

इंतिखाबी रैलियों, सियासी कारिंदों के बीच टिकट के लिए मारामारी के बीच कट्टरपंथी कबाइली इलाके से दो औरतें आगे आईं और 11 मई के मतदान के लिए परचे भरे। इन औरतों, बजाउर से बदाम जरी व लोअर दीर से नुसरत बेगम, ने बड़ा कदम उठाया है, जो मुल्क की इंतिखाबी सियासत की सबसे बड़ी छलांग है। इन दो औरतों ने उन इलाकों से चुनाव लड़ने का इरादा किया है, जहां पार्टियां यह पक्का कर लेती हैं कि औरतें वोटिंग हक का इस्तेमाल मनमाफिक न कर सकें। ऐसे माहौल में इन दो महिला उम्मीदवारों ने न केवल पाकिस्तान के बाकी हिस्सों बल्कि दुनिया तक पैगाम पहुंचाया है कि पाकिस्तान के कबाइली इलाके अब दहशतगर्दी के लिए ही नहीं जाने जाएंगे। हालांकि पाकिस्तान अभी इनके फैसले पर खुशियां मना रहा है, लेकिन उसे नहीं भूलना चाहिए कि वे उन खित्ते में प्रचार के लिए जा रही हैं जो दहशतगर्दी से बुरी तरह पस्त हैं।

- द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
15-04-2013, 12:55 AM
डरा रहे हैं ये नए आंकड़े

ये हमारे मुल्क से जुड़े आंकड़े हैं। अगर इन्हें जोड़ दिया जाए तो जो संख्या बनती है वह किसी को भी सुन्न कर देगी। पिछले एक साल में पाकिस्तान में दहशतगर्दों ने 1,577 हमले किए जिनमें दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए और तीन हजार से भी अधिक जख्मी हुए। 2012 में 900 से भी अधिक औरतें इज्जत के नाम पर कत्ल कर दी गईं और शिया हाजरा समुदाय के सौ से अधिक का बलूचिस्तान में कत्ले आम कर दिया गया। यदि हिफाजती एजेंसियों की गिरफ्त से लापता हुए लोगों के मामलों को देखें तो पिछले साल ऐसे 72 लोगों की लाशें बरामद हुईं। जहां तक प्रेस की आजादी से मुतल्लिक 179 देशों की सूची में हमारे नंबर का सवाल है तो पाकिस्तान इस लिस्ट में 151वें पायदान पर है। बीते साल कम से कम 14 खबरनवीसों को मौत के घाट उतार दिया गया। पाकिस्तान अब भी उन मुल्कों में है जहां टीबी,पोलियो और मलेरिया लोगों को निगल लेती हैं।

-द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-04-2013, 08:23 AM
मुशर्रफ की मुश्किलें

पूर्व सदर जनरल (रिटायर्ड) परवेज मुशर्रफ वतन लौटते ही मुश्किलों में धंसते चले गए। गौरतलब है कि पाकिस्तान की शीर्ष अदालत की तीन मेंबरों वाली बेंच उन दो मुकदमों की सुनवाई कर रही है जिनमें पाकिस्तान के आईन के आर्टिकल छह के तहत मुशर्रफ पर गद्दार होने का आरोप है। ये मुकदमे लाहौर हाईकोर्ट बार असोसिएशन के रावलपिंडी चैप्टर व इसी असोसिएशन के एक पूर्व मुखिया द्वारा दायर किए गए हैं। 2007 में मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के तब के जजों को मुअत्तल कर उन्हें हिरासत में लेने का फरमान सुनाया था। ये मामले उसी से जुड़े हैं। चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी पर उस कार्रवाई में सबसे ज्यादा ज्यादती हुई थी। वैसे इस बेंच के मुखिया के तौर पर वही इन मामलों की सुनवाई करते पर आखिरी पल में उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया। सचमुच यह न तो इंतकाम का मसला है और न ही हिसाब बराबर करने का।

-द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
19-04-2013, 01:33 AM
जन्म के नियम ही बदल डाले

यकीनन रॉबर्ट जी. एडवर्ड्स ने चिकित्सा क्षेत्र में नए युग को जन्म दिया। जब उन्होंने अपने एक सहयोगी के साथ कृत्रिम निषेचन पर काम शुरू किया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि आगे चलकर इसी पद्धति से लाखों बच्चे उन शादीशुदा जोड़ियों की गोद भरेंगे, जो किन्हीं कारण माता-पिता कहलाने से वंचित थे। जिसने जन्म की परिभाषा बदल दी, जिनके आविष्कार से लाखों बच्चे इस दुनिया में आ पाए वह शख्स बीते इंग्लैंड में कैमब्रिज के निकट अपने घर में नियति से हार कर हमेशा के लिए मौत की नींद सो गया। अपने महान काम के लिए 2010 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ. एडवर्ड्स की उम्र 87 थी। वह खुशमिजाज चिकित्सा विज्ञानी थे। अपनी आलोचनाओं का वह खुलकर जवाब देते थे, पर इन सबसे बड़ी उनकी पहचान यह थी कि सहकर्मी डॉ. पैट्रिक स्टेपटो के साथ मिलकर उन्होंने संसार में मनुष्य के आने के नियम बदल दिए।

-द न्यूयार्क टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
23-04-2013, 10:34 PM
परिपक्वता ही दिखाई दी

वर्ष 2001 के आतंकी हमले के बाद कई सप्ताहों और महीनों तक हर बड़े खेल आयोजन की सफलता को लेकर चिंता बनी रहती थी। बोस्टन मैराथन हर साल देशभक्ति दिवस को आयोजित होता है। दुनिया के शीर्ष धावकों के लिए यह प्रतिष्ठित खेल आयोजन है। मैसाचुसेट्स के गवर्नर डेवल पैट्रिक के मुताबिक यह यहां के लिए खास दिन होता है। लेकिन इसी दिन फीनिश लाइन के पास दो विस्फोट हुए जिनमें तीन लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए। खैर, धमाके के बाद जो मंजर वहां दिखाए, उससे एक बार फिर हमारी परिपक्वता की ही तस्दीक हुई। बेशक कई अफवाहें उड़ीं और प्रत्यक्षदर्शियों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं दीं पर लोगों ने धैर्य नहीं खोया। स्थानीय पुलिस, एफबीआई, स्टेट पुलिस और संघीय प्रशासन के अन्य अंगों के साथ सहयोग करती नजर आई यानी सनसनी मचाने का उनका कोई इरादा नहीं था।

-द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
30-04-2013, 10:19 PM
नेपाल, भारत और चीन

माओवादी पार्टी के मुखिया पुष्प कमल दहल ने 2008 में पहली बार चीन की आधिकारिक यात्रा की। तब परिस्थितियां भिन्न थीं। दरअसल जब वह प्रधानमंत्री बने थे तब चीन के दौरे पर बीजिंग ओलंपिक में बतौर आमंत्रित सदस्य गए थे। तथ्य यह भी है कि दहल भारत की यात्रा से पहले चीन गए थे जिससे नई दिल्ली में काफी नाराजगी दिखी थी। उसके बाद माओवादी सरकार के अन्य कदमों के चलते माओवादी पार्टी और दिल्ली के बीच मतभेद की खाई गहरी होती गई। तब से दहल भारतीय दृष्टिकोण के प्रति अधिक संवेदनशील हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार वह चीन यात्रा से पहले नई दिल्ली को भरोसे में ले चुके थे। चीन से लौटने के बाद वह दोनों देशों के साथ घनिष्ठ सम्बंध बनाए जाने की बात कर रहे हैं। साथ ही वह भारतीय प्रतिष्ठानों की चिंता दूर करने के प्रयास में भी जुटे हुए हैं। यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता का एक उदाहरण माना जा रहा है।

- द काठमांडू टाइम्स
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
02-05-2013, 12:15 PM
बागियों में गहरी होती निराशा

सीरियाई बागी अब निराशा में अपने हाथ मलने लगे हैं क्योंकि अमेरिका व उसके पश्चिमी साथी बागियों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे तथा उन्हें अब और अधिक सैन्य सहायता मुहैया कराने से इनकार कर रहे हैं। बगावत शुरू होने के बाद यह पहला मौका है जब बागियों ने अपनी बेबसी व गुस्से का यों खुले तौर पर इजहार किया है। सीरिया में फिलहाल जो गतिरोध छाया है उसका खामियाजा असद विरोधी आंदोलन को ही भुगतना पड़ेगा जबकि इसे आज सही दिशा और आर्थिक व सैन्य मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। बागियों में गहराती निराशा की तस्दीक इसी से की जा सकती है कि नेशनल अपोजिशन कोलिशन के नेता मोआज अल खातिब ने ऐलान किया है कि वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। गौरतलब है कि खातिब के नेतृत्व में ही सीरिया में असद विरोधी आंदोलन चल रहा है और उन्हें अरब व पश्चिमी हुकूमतों की भरपूर हिमायत हासिल रही है।

- द पेनिनसुला
कतर का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-05-2013, 12:53 AM
धरे रह गए सभी कयास

कयासों के समंदर में हम भले गोते लगाएं कि बहुमत के जादुई आंकड़े किसकी मदद से जुटाए जाएंगे मगर इतना पक्का हो चुका है कि पाकिस्तान में हुकूमत पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज) की बनेगी क्योंकि यह पार्टी बहुमत के करीब पहुंच चुकी है। यह फैसला सबको हैरतअंगेज लगा। माना जा रहा था कि यह गठबंधन का दौर है और सियासी पार्टियां व वोटर दोनों आपस में इतने बंटे हुए हैं कि किसी भी मसले पर एक आवाज बुलंद नहीं हो सकती। साथ ही यह भी माना जाता था कि यह वह इंतिखाब है जिसमें इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के पक्ष में इंतिखाबी लहर उठेगी और वे बेमिसाल कामयाबी हासिल करेंगे। कयास धरे रह गए और नवाज को जनादेश मिला। वाकई साइलेंट वोटरों ने अपना निर्णायक फैसला सुनाया और यह दिख रहा है कि एक बार फिर नवाज के सिर पर ताज होगा। अवाम के मूड को भांपने में हम नाकाम रहे।

- द डॉन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
24-05-2013, 12:55 AM
इस अपराध पर नियंत्रण जरूरी

संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स एवं अपराध विभाग के नए अध्ययन में पता चला है कि पूर्वी एशिया और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आपराधिक गिरोह ड्रग्स, मादक वस्तुओं, इंसानों व जंगली जीवों की तस्करी में लिप्त हैं जिसका कारोबार 90 बिलियन डॉलर का हो चुका है। यह अपनी तरह की एक विस्तृत रिपोर्ट है जो इस क्षेत्र में फल-फूल रहे एक बड़े संगठित अपराध और उसकी प्रकृति का खुलासा करती है। रिपोर्ट के अनुसार आपराधिक गिरोहों के लोग मानव और मादक पदार्थो की तस्करी से जुड़े हैं। इसके अलावा वे जंगली जीवों व उनके अंगों, लकड़ी और इलेक्ट्रॉनिक कचरे की भी तस्करी करते हैं। जाहिर है ये सभी काम मुनाफे वाले हैं। इस गंभीर होते खतरे से निपटने के लिए सीमा पर चौकसी बढ़ाने, कानून लागू करने वाली एजेंसियों से तालमेल बिठाने, गैर-कानूनी उत्पादों की मांग घटाने और पूंजी के प्रवाह पर नियंत्रण करना अधिक जरूरी है।

- द जापान टाइम्स
जापान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
29-05-2013, 07:21 AM
सुधार कार्य को बढ़ावा

अधिकतर तानाशाह या सैन्य शासक सत्ता छोड़ने की इच्छा नहीं जताते। क्या बर्मा के शासक इसके अपवाद बनेंगे? वाशिंगटन दौरे पर आए बर्मा (म्यांमार) के राष्ट्रपति थेन सेन से हर कोई यही सवाल पूछना चाहेगा। बीते सोमवार को थेन सेन व्हाइट हाउस पहुंचे। यह 1966 के बाद बर्मा के किसी राष्ट्रपति की पहली व्हाइट हाउस यात्रा है। इससे पहले 1966 में व्हाइट हाउस में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लेंडन बी जॉनसन ने बर्मा के शासनाध्यक्ष का स्वागत किया था। लगभग आधी सदी में यह दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र एकांतप्रिय जनरलों के कुशासन और दमनकारी नीतियों के चलते बदहाल हो गया। लेकिन दो वर्षो से सेनाध्यक्ष व मौजूदा राष्ट्रपति थेन सेन सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने अपने शासन में राजनीतिक बंदियों को आजाद किया है, सेंसरशिप कानूनों में ढील दी है और विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले।

-द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
05-06-2013, 12:46 AM
उम्मीद पूरी नहीं हुई

नेपाल अपना छठा गणतंत्र दिवस मना चुका। नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि 240 साल पुरानी राजशाही ध्वस्त होते ही सब ठीक हो जाएगा। वे मानते थे कि देश की जर्जर दशा के लिए राजशाही जिम्मेदार है। इसी वजह से नेपाल अपनी विशिष्टता गंवा रहा है। इसलिए जनादेश के इंतजार के बिना उन्होंने देश में गणतंत्र की स्थापना कर दी। जो राजनीतिक पार्टियां इस जल्दबाजी में शामिल नहीं हुईं उन्हें मुख्यधारा से अलग कर दिया गया। राजनेता यह बताते नहीं थकते कि गणतांत्रिक नेपाल ऐतिहासिक उपलब्धि है। यकीनन क्या ऐसा ह? इस तरह के सवाल अब उठने लगे हैं। इस परिवर्तन से आम लोगों की जिंदगी में क्या गुणात्मक अंतर आया? क्या नेपाली लोगों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है? सच यह है कि जो प्रशासन व्यवस्था इन्हें मिल रही है उससे वे और निराश हैं। कानून-व्यवस्था का स्तर आज भी उस मुकाम पर नहीं पहुंचा है जिसकी उम्मीद जताई गई थी।

- द हिमालयन टाइम्स
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
14-06-2013, 10:05 AM
फिर से घिर आए बादल

साल के वे दिन फिर लौट आए जब बादलों से आसमान आच्छादित होता है। लगता है कि बादल जवानों की तरह काठमांडू की हरी.भरी वादियों के समक्ष प्रस्तुत हो आए हैं। फिर पूरी घाटी घनघोर घटा की आगोश में आ जाती है और यह विहंगम छटा देखकर महसूस होता है मानो मशहूर फ्रांसीसी चित्रकार मॉनेट ने कूची चलाई हो। कहीं-कहीं तो यह आभास होता है कि नीले रंग के समंदर में डैब मछली हो। कुछ पल के लिए दिखी और फिर गोता लगाकर गायब हो गई। मौसम की तरह ही बादल भी मनमौजी होते हैं। कभी गरजते हैं तो कभी सूरज के साथ लुका.छिपी का खेल खेलते हैं। लेकिन आखिर में क्या होता है? यही न कि बरखा-बहार आती है। पहले बूंदाबांदी शुरू होती है जो कुछ देर में मूसलाधार बरसने लगती है। वाहनों की आवाजाही थम जाती है। मकानों के छज्जे तले अजनबी रुकते हैं और टिप टिप बरसते पानी के ताल सुनते हैं।

-द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
18-06-2013, 11:43 AM
सट्टेबाजी के प्रभाव पर गौर

किसी मैच के नतीजों को साजिशन अपने खराब प्रदर्शन से प्रभावित करना और इससे जुड़ा प्रलोभन सभी खेलों में है और हर दौर में रहा है। चाहे भारत हो या यूरोप या फिर अमेरिका, सट्टेबाजों के हित खिलाड़ियों को भ्रष्ट आचरण या धोखेबाजी के लिए उकसाते हैं। इससे किसी भी खेल आयोजन का महत्वपूर्ण व बुनियादी मूल्य नष्ट होता है। लोग अनुमान लगाते हैं कि यह निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा है जिसमें उस दिन के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी या टीम की जीत होगी लेकिन क्या ऐसा होता है? कुछ जानकार सलाह दे रहे हैं कि भारत में सट्टेबाजी को कानूनी वैधता मिल जाए तो मैच फिक्सिंग रुक जाएगी। कुछ कह रहे हैं कि खेल संघों और सट्टा तंत्र पर सरकारी नियंत्रण से खेल में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगेगा। लेकिन आवश्यक यह है कि दुनिया में सट्टेबाजी के प्रभावों और इसके विरोध में खड़े नैतिक पहलुओं पर गहरा अध्ययन हो क्योंकि यहीं से मैच फिक्सिंग के विरुद्ध मार्ग खुलेगा।

- द क्रिश्चियन साइंस मोनीटर
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
20-07-2013, 11:05 PM
बलजीत सिंह की व्यस्तता खत्म

वह भी एक समय था, जब बलजीत सिंह की गिनती सबसे अधिक व्यस्त कर्मचारियों में होती थी। वह दिल्ली में कश्मीरी गेट स्थित टेलीग्राम दफ्तर में काम करते हैं। यह दफ्तर दो मंजिला भवन में है जो राजाओं के दौर में बना था। ऊंची छतें और चौड़ी सीढ़ियां इमारत की खासियत हैं। खैर,बलजीत सिंह की उम्र 58 साल हो चली है। एक वक्त ऐसा भी था जब चौड़े कंधे वाले बलजीत की दफ्तर में मांग बहुत थी। दरअसल दफ्तर का टेलीग्राम डेस्क उन्हीं की देखरेख में था। वह बताते हैं तब काम का जबर्दस्त दबाव होता था। इसके चलते कई बार मुझे रात भी वहीं बितानी पड़ती थी। इस जिम्मेदारी को बलजीत ने बखूबी निभाया। करोड़ों तार उन्होंने भेजे। लेकिन एक तार उन्हें आज भी अक्षरश: याद हैं। वह बताते हैं कि वह तार एक नवविवाहित महिला की मौत की खबर से जुड़ा था। अब समय बदल चुका है। भारत में तार युग खत्म हो चुका है और संदेश भेजने के कई नए माध्यम आ चुके हैं।

- द गार्जियन
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dipu
26-07-2013, 08:32 AM
bahut badiyaa

Dark Saint Alaick
06-08-2013, 12:41 AM
रुक सकता था विवाद

किसी विवाद को रोका नहीं जा सकता मगर खत्म तो किया जा सकता है। पाकिस्तान के नए सदर के चुनाव का मसला गहरे विवाद में इसलिए फंस गया था क्योंकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने बदली तारीख में हुए इंतिखाब में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। बेवजह के इस झगड़े में असली दोषी कौन है यह बताना बेहद मुश्किल है। क्या पीएमएल(एन) ने लड़ाई नहीं लड़ी ताकि इलेक्शन कमीशन द्वारा तय तारीख बदली जा सके? दरअसल पार्टी की यह कवायद जबर्दस्त जीत हासिल करने के लिए थी। वह कम सीटों के अंतर से नहीं जीतना चाहती थी। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने इंतिखाबी तारीख छह अगस्त की बजाय 30 जुलाई कर दी लेकिन अदालत के पास इख्तियार था कि वह सभी पक्षों का खयाल कर आईन का हवाला देकर कहती कि इलेक्शन कमीशन को इंतिखाब की तारीख तय करने का हक है। पीएमएल और अदालत दोनों ने सावधानी नहीं बरती।

- द डान
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-08-2013, 12:42 AM
कड़ी मेहनत करनी होगी

पोलियो एक अति संक्रामक बीमारी है जो तंत्रिका तंत्र प्रभावित करती है। इससे रोगियों में लकवा हो जाता है। पांच साल तक के बच्चे इसके प्रभाव में जल्दी आते हैं। पोलियो के विरुद्ध संघर्ष में टीकाकरण असरकारी व महत्वपूर्ण हथियार है। बतौर टीका मुंह में दो बूंद दवा डालने का व्यापक असर पड़ा है। लेकिन सोमालिया के पांच लाख बच्चों को कई वर्षों से टीका नहीं लगाया गया। ये बच्चे असुरक्षित इसलिए हैं कि सोमालिया सरकार कमजोर है तभी इस क्षेत्र में पोलियो का प्रकोप बढ़ने की आशंका है। मौजूदा स्थिति यह भी बताती है कि कैसे सशस्त्र संघर्ष आबादी को न सिर्फ बुलेट बल्कि बीमारियों से भी डराते हैं। पाकिस्तान के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में पोलियो के मामले आज भी हैं क्योंकि आतंकियों के डर से पोलियो टीकाकरण कार्यकर्ता भाग खड़े होते हैं। सौभाग्य से सोमालिया में यह स्थिति नहीं है। पर साफ है दुनिया को इस संकट से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से काम लेना होगा।

-द वाशिंगटन पोस्ट
अमेरिका का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
06-08-2013, 12:44 AM
तरक्की से कोसों दूर

बावजूद इसके कि मुल्क के कई हलकों में तरक्की की निशानियां दिखी हैं, गरीबी खौफनाक स्तर पर बरकरार है। जब वर्ल्ड बैंक ने अपने दस्तावेज में बताया कि करीब 2.8 करोड़ बांग्लादेशी बेहद मुश्किल हालात में, मसलन खनन इलाकों, रेतीले, दुर्गम पहाड़ी व तटीय इलाकों जी रहे हैं, तब हकीकत खुद बयां हो जाती है। यह चिंता का सबब है क्योंकि रिपोर्ट में इन इलाकों को हार्ड टु रिच एरियाज की श्रेणी में रखा गया है। चिंता दो-आयामी है। पहली हमें वर्ल्ड बैंक के उस दस्तावेज को बारीकी से देखना होगा ताकि उन बदतर जगहों की पहचान हो सके जहां लोग दुश्वारियों के साथ जी रहे हैं। दूसरी हम इस बात से हैरत में हैं कि इन गुजरे बरसों में जब तरक्की पसंद इकोनॉमी का डंका पीटा जा रहा था, इन लोगों की फरियादें अनसुनी रहीं। आखिर क्यों? बहरहाल, यह आंकड़ा अफसोसनाक है क्योंकि 2.8 करोड़ बाशिंदे उस दुनिया को बनाते हैं, जो तरक्की व मॉडर्न खयालों से कोसों दूर है।

-द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-09-2013, 07:15 AM
जनता ने दे दिया इस बार जवाब

कम्युनिस्ट पार्टियां आम तौर पर बंद का ऐलान करती हैं तो बाकायदा उन पर सख्ती से अमल भी करती हैं। इन पार्टियों द्वारा भारी संख्या में कार्यकर्ताओं को सड़कों पर उतार दिया जाता है और बंद की अनदेखी कर सड़कों पर निकली गाड़ियों में तोड़फोड़ की जाती है तथा लोगों को डराया जाता है कि उनकी भलाई घर के भीतर रहने में ही है। इसलिए काठमांडू, ललितपुर, भक्तपुर और चितवां बंद का जो आह्वान यूसीपीएन (माओवादी) ने किया था उसका विफल हो जाना चौंकाने वाली बात है। इसे एक बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। और यह परिवर्तन कितना अनूठा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मई 2010 में जब इसी पार्टी ने बंद का आह्वान किया था, पूरे एक सप्ताह तक जिंदगी ठप हो गई थी। इस बदलाव के पीछे कारक दिखाई पड़ते हैं कि अब जनता इनकी मांगों से तंग आ चुकी है और अब वह इन्हें खुली चुनौती देने के मूड में आ गई है।

- द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-09-2013, 07:15 AM
औरतों पर बढ़ते जुल्म

बांग्लादेश में औरतों के खिलाफ जुर्म हर रोज एक नई शक्ल इख्तियार कर रहा है। मुल्क की बेटियां और औरतें तरह-तरह के जुल्म झेल रही हैं। कुछ दिनों पहले इसी अखबार ने औरतों के खिलाफ एक नहीं तीन-तीन जुल्मो-सितम की खबर पेश की थी। यह कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए कि जुल्म की इन ज्यादातर घटनाओं के पीछे जाने-पहचाने लोग ही होते हैं। इंसान की शक्ल में ऐसे जानवर या तो उनके अड़ोस-पड़ोस में बसते हैं या फिर घर की चारदीवारी में जी रहे होते हैं। लेकिन यह सब अब और देखा, सुना, सहा नहीं जाता। हम शिद्दत से महसूस कर रहे हैं कि इन वहशियाना करतूतों पर लगाम के लिए हुकूमत को नए और ठोस तरीके ईजाद करने होंगे। मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू करने के अलावा ऐसे भी कानून बनाए जाने चाहिए जिनसे मुजरिमों का बचकर निकलना नामुमकिन हो जाए। मुजरिम पर फौरन दबिश पड़नी चाहिए।

- द डेली स्टार
बांग्लादेश का प्रमुख अखबार

Dark Saint Alaick
16-09-2013, 07:17 AM
ओबामा जनता का भरोसा जीतें

सीरिया अमेरिकी हमला टालना चाहता है, तो विश्व निगरानी में रासायनिक हथियार सौंपे। प्रस्ताव पर ओबामा प्रशासन की मिश्रित प्रतिक्रिया होंगी। राष्ट्रपति ने इसको महत्वपूर्ण उपलब्धि कहा। अब यह जानना कठिन है कि क्या यह प्रस्ताव अर्थपूर्ण है या आखिरी समय में मामले को टालने की यह साजिश सीरियाई राष्ट्रपति ने रची है। जो भी हो पर इस प्रस्ताव को संजीदगी से लेने के कारण हैं। किसी भी स्थिति के लिए ओबामा प्रशासन तैयार रहे। ओबामा ने कहा है कि प्रस्ताव विफल होता है तब के लिए हमारी योजना तैयार रहनी चाहिए। इस दौरान वह संभवत: सैन्य हमले की अपनी रणनीति के लिए देश में समर्थन हासिल करेंगे। इस पर देश बंटा हुआ है। लेकिन यह साफ है कि राष्ट्रपति तब अधिक सफल होंगे जब वह जनता से अपील करेंगे व उन सबूतों को सार्वजनिक करवाएंगे जिनमें सीरियाई हुकूमत रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करती दिखती है।

- द लॉस एंजिलिस टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अखबार

rajnish manga
16-09-2013, 01:06 PM
जनता ने दे दिया इस बार जवाब

कम्युनिस्ट पार्टियां आम तौर पर बंद का ऐलान करती हैं तो बाकायदा उन पर सख्ती से अमल भी करती हैं। इन पार्टियों द्वारा भारी संख्या में कार्यकर्ताओं को सड़कों पर उतार दिया जाता है और बंद की अनदेखी कर सड़कों पर निकली गाड़ियों में तोड़फोड़ की जाती है तथा लोगों को डराया जाता है कि उनकी भलाई घर के भीतर रहने में ही है। इसलिए काठमांडू, ललितपुर, भक्तपुर और चितवां बंद का जो आह्वान यूसीपीएन (माओवादी) ने किया था उसका विफल हो जाना चौंकाने वाली बात है। इसे एक बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। और यह परिवर्तन कितना अनूठा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मई 2010 में जब इसी पार्टी ने बंद का आह्वान किया था, पूरे एक सप्ताह तक जिंदगी ठप हो गई थी। इस बदलाव के पीछे कारक दिखाई पड़ते हैं कि अब जनता इनकी मांगों से तंग आ चुकी है और अब वह इन्हें खुली चुनौती देने के मूड में आ गई है।

- द काठमांडू पोस्ट
नेपाल का प्रमुख अखबार

नेपाल में जनता राजशाही के खात्मे के बाद से ही अस्थिरता का जीवन जी रही है. आरम्भ में माओवादियों ने कुछ आशा जगाई थी किन्तु लगता है उनकी नकारात्मक सोच को जनता ने समर्थन देना बंद कर दिया है. यह एक अच्छी सूचना है.

Dark Saint Alaick
21-09-2013, 08:57 AM
इंतिखाब की तैयारी शुरू

जैसे ही हिन्दुस्तान में इंतिखाब की तारीख नजदीक आई भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया ताकि आम चुनाव में पार्टी की फतह हो सके। वहीं कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार की घोषणा बाकी है मगर यह लगता है कि मोदी की मुखालफत में नौजवान सियासतदां राहुल गांधी उतारे जाएंगे। राहुल भी गांधी खानदान के वारिस हैं और वह अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी के नक्शो-कदम पर चल भी रहे हैं। ये दोनों ही हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री रहे। ये दोनों नेता हिन्दुस्तान की आजादी के आइकन भी हैं। मोदी अक्खड़ हैं और हिंदू राष्ट्रवाद के मुखर प्रवक्ता भी। गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री उनके विवादास्पद कार्यकाल को देखने और गुजरे वक्त में मुसलमानों के खिलाफ उनके भड़काऊ बयानों को जानने के बाद उनकी उम्मीदवारी को लेकर शंकाएं तो काफी व्यक्त की जा रही हैं।

- द नेशन
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार