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View Full Version : रुपए में गिरावट के छह कारण


abhisays
26-05-2012, 11:07 AM
पिछले साल जुलाई से लेकर अब तक भारत की मुद्रा डॉलर के मुकाबले 27 प्रतिशत गिरी है.
Bbc के बिजनेस मामलों के जानकार एलम श्रीनिवास गिना रहे हैं रुपए में लगातार गिरावट के छह कारण:

abhisays
26-05-2012, 11:08 AM
व्यापार घाटा

भारत निर्यात के मुकाबले आयात अधिक करता है, इसकी वजह से व्यापार में काफी असंतुलन होता है जिसे व्यापार घाटा भी कहते हैं.
मार्च 2012 में समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में यह घाटा बढ़ कर 185 अरब डॉलर पहुंच गया जबकि इसका अनुमान 160 अरब डॉलर का था.
भारत के वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा है कि कच्चे तेल में गिरावट और सोने के आयात में नियंत्रण से इसमें 2012-13 में कुछ कमी आएगी.
तेल में एक डॉलर प्रति बैरल की गिरावट से देश का घाटा 90 करोड़ डॉलर कम हो सकता है.
दूसरी तरफ भारत के निर्यात में इस साल का प्रदर्शन निराश कर सकता है.
खुल्लर का कहना है कि भारत खुशकिस्मत होगा अगर यूरोप का संकट और अमरीका की धीमी बहाली के चलते 2011-12 में 21 % से बढ़ने वाला निर्यात 2012-13 में 10-15% की वृद्धि कर पाए

abhisays
26-05-2012, 11:08 AM
धीमा पूंजी अंतर्वाह

हालांकि भारत एक आकर्षक ठिकाना बन गया है जो विदेशी निवेश और अप्रवासी भारतीयों का पैसा खींच सकता है, यह व्यापार घाटे को पूरा करने के लिए काफी नहीं है.
साल 2011-12 में भारत में स्टॉक और बॉंड में आए 18 अरब डॉलर के अलावा 30 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था.
लेकिन भारत के आर्थिक सुधारों के प्रति वचनबद्धता को लेकर अनिश्चितिता, बीते समय से लगाए जाने वाले कर और सरकारी नीतियों में गतिहीनता ने विदेशियों को यहां निवेश करने के फैसले स्थगित करने या भारतीय स्टॉक बाजार से पैसे निकालने के लिए मजबूर कर दिया है.

abhisays
26-05-2012, 11:09 AM
अधिक करंट अकाउंट घाटा

व्यापार के घाटे का पैमाना माना जाने वाला देश का करंट अकाउंट घाटा भी इन्ही कारणों की वजह से फूल रहा है.
साल 2011-12 में यह घाटा 74 अरब डॉलर से अधिक था जो पिछले साल के 46 अरब डॉलर से काफी ज्यादा था. साल 2012-13 में यह 77 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है.
इसका परिणाम यह है कि भारत के विदेशी मुद्रा की आरक्षित निधियाँ सितंबर 2011 के 320 डॉलर से अब तक के 290 डॉलर पर गिर गई है.

abhisays
26-05-2012, 11:09 AM
अवमूल्यन का दबाव

ऐसे हालात में अधिक लोग रुपए को बेच कर डॉलर (या अपनी जरूरत की कोई मुद्रा) खरीदते हैं.
आयात करने वालों में विदेशों में सामान खरीदने के लिए डॉलर की होड़ लगी रहती है.
निर्यातकर्ता प्रयाप्त डॉलर नहीं ला पाते. दरअसल वे अपनी विदेशी आय विदेशों में ही रखते हैं क्योंकि वे रुपए में और गिरावट की उम्मीद करते हैं.

abhisays
26-05-2012, 11:09 AM
धीमा विकास और अधिक महंगाई

साल 2009-10 और 2010-11 में लगभग 9 % विकास के बाद देश 2011-12 में 6.5 % से बढ़ा है.
चालू वित्त वर्ष के अनुमान कुछ खास प्रोत्साहित करने वाले नहीं हैं.
अब इसे मिलाएं खाद्यपदार्थ और ईंधन के उंचे दामों के वजह से अधिक महंगाई दर को.
अगर सरकार अपने राजकोषीय घाटाघाटों पर काबू नहीं पा सकी तो महंगाई दर इस साल बढ़ कर दोहरे आंकड़ों तक पहुंच सकता है.
ऐसी स्थिति में अधिकतर विदेशी और भारतीय अपना पैसा विदेशों में ले जाना चाहते हैं.
अपने देशों में आर्थिक संकट के कारण वैश्विक निवेशक भी भारत जैसे दूसरे देशों में पैसा लगाने से घबरा रहे हैं.
इससे रुपए पर और दबाव पड़ रहा है.

abhisays
26-05-2012, 11:09 AM
रुपए पर अटकलबाजी

पिछले हफ्तों और महीनों में रुपए को गिरने से बचाने के लिए खुले बाजार में डॉलर बेचने की भारतीय रिजर्व बैंक की कोशिशें नाकाम रही हैं. इससे मुश्किलें और बढ़ी हैं.
अगर एक बार मुद्रा के व्यापारी और सट्टेबाज यह मान लें कि भारत का केंद्रीय बैंक अपना एक्सेंज यानी विनिमय दर नहीं संभाल पा रहा, और मुद्रा पर प्रतिकूल असर कम नहीं कर पा रहा तो वे रुपए को बेचने के लिए बड़े पैमाने पर भारतीय बाजार में उतर सकते हैं.
इसका नतीजा यह होगा कि रुपए की कीमत और गिर सकती है.
विश्लेषक जो यह मानते थे कि भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 55 रुपए तक स्थिर हो जाएगी अब कह रहे हैं कि ऐसा 60 रुपए पर होगा.

~VIKRAM~
26-05-2012, 07:28 PM
hamari sarkar is mamle ko le kar behad gambhir hai ....
lekin ye bhi sach hai ki hmari sarkar mahegai ko le kar bhi behad gambhir hai par vo 6-7 salon se kuch nahi kar pai .... !
is sarkar se jada to aaj ki janta jyada chitit hai..