sombirnaamdev
29-05-2012, 09:00 PM
दोस्तों यहाँ पर मैं एक छेत्रीय मुद्दे का रास्ट्रीयकरन करने की कोशिश करूँगा उम्मीद है आप साथ देंगे !
आज मैं हरयाणा , पंजाब और राजस्थान में यु कहिये भारत में बसे किसान की व्यथा को आप के सामने कहने की कोशिस करूँगा
लेकिन मातर बोली हरयाणवी में !
हो सकता है आपको बोली और भाव समझाने में थोड़ी दिक्कत हो उसके लिए माफ़ी चाहुंगा
कौन खता होई मेरे तै यो पूछ रह्या सै किसान तन्नै .
एक गंठा दो रोटी लिखदी क्यूँ किस्मत मैं भगवान तन्नै !
उठ सबेरे हल जोड़ू मैं पानी तक ना पीना
मरे बरोबर जिन्दगी मेरी के जीने मैं जीना
गर्मी मैं हाल बेहाल मेरा ना सुख्या कदे पसीना
गर्मी सर्दी चौमासे मैं न मिलदा कती आराम मंन्नै
दुनिया का अन्नदाता मैं ,मेरे घर मैं दो दाणे ना
सब नै अपनी चिंता लाग रही कोई मेरा दर्द पिछाने ना
धरती ऊपर सोकें करूँ गुजारा कदे मिले नरम बिछाने ना
सुख का साँस कदे मिलया ना दी पूरी धरती छान मंन्नै
मेरी रुली मुमताज गरीबी मैं कपडे लिरम लीर रहै
सुख की साँस कदे ना आवे दुःख मै हर दम सीर रहै
कोय सुननिया ना म्हारी किस्ते अपनी पीर कहैं
इस जग मै कोय म्हारा तू तो ले प हचान मंन्नै
जितना मोल मंन्नै मिलै फसल का उतना साहुकार मुनाफा खावें सै
ये साहुकार और सरकार मंन्नै लूट लूट के खावें सै
मेरी मेहनत का फायदा तो ये साहूकार उठावें सै
इस साहूकारी और सरकारी नै कर राख्या सै बीरान मंन्नै
बनके बैल कमाया पर मेरे हाथ किम्मै न आया
कुछ साहुकार नै ले लिया कुछ बैंक का ब्याज चुकाया
कददे खड़ी गाल दी फसल खेत मैं कददे पानी बिन सुखाया
नामदेव तन्नै बुझे सै किस दिन आवेगा मेरे ऊपर तरस भगवान् तन्नै
सोमबीर सिंह '' नामदेव ''
sombirnaamdev@gmail.com
sombirnaamdev@yahoo.com
आज मैं हरयाणा , पंजाब और राजस्थान में यु कहिये भारत में बसे किसान की व्यथा को आप के सामने कहने की कोशिस करूँगा
लेकिन मातर बोली हरयाणवी में !
हो सकता है आपको बोली और भाव समझाने में थोड़ी दिक्कत हो उसके लिए माफ़ी चाहुंगा
कौन खता होई मेरे तै यो पूछ रह्या सै किसान तन्नै .
एक गंठा दो रोटी लिखदी क्यूँ किस्मत मैं भगवान तन्नै !
उठ सबेरे हल जोड़ू मैं पानी तक ना पीना
मरे बरोबर जिन्दगी मेरी के जीने मैं जीना
गर्मी मैं हाल बेहाल मेरा ना सुख्या कदे पसीना
गर्मी सर्दी चौमासे मैं न मिलदा कती आराम मंन्नै
दुनिया का अन्नदाता मैं ,मेरे घर मैं दो दाणे ना
सब नै अपनी चिंता लाग रही कोई मेरा दर्द पिछाने ना
धरती ऊपर सोकें करूँ गुजारा कदे मिले नरम बिछाने ना
सुख का साँस कदे मिलया ना दी पूरी धरती छान मंन्नै
मेरी रुली मुमताज गरीबी मैं कपडे लिरम लीर रहै
सुख की साँस कदे ना आवे दुःख मै हर दम सीर रहै
कोय सुननिया ना म्हारी किस्ते अपनी पीर कहैं
इस जग मै कोय म्हारा तू तो ले प हचान मंन्नै
जितना मोल मंन्नै मिलै फसल का उतना साहुकार मुनाफा खावें सै
ये साहुकार और सरकार मंन्नै लूट लूट के खावें सै
मेरी मेहनत का फायदा तो ये साहूकार उठावें सै
इस साहूकारी और सरकारी नै कर राख्या सै बीरान मंन्नै
बनके बैल कमाया पर मेरे हाथ किम्मै न आया
कुछ साहुकार नै ले लिया कुछ बैंक का ब्याज चुकाया
कददे खड़ी गाल दी फसल खेत मैं कददे पानी बिन सुखाया
नामदेव तन्नै बुझे सै किस दिन आवेगा मेरे ऊपर तरस भगवान् तन्नै
सोमबीर सिंह '' नामदेव ''
sombirnaamdev@gmail.com
sombirnaamdev@yahoo.com