Dr. Rakesh Srivastava
14-07-2012, 07:33 PM
ज़ख्म दर ज़ख्म मेरे दिल पे सजाये रखिये ;
अपने बीमार पे कुछ करम बनाये रखिये .
आप संवरेंगे , तभी ग़ज़ल मेरी निखरेंगी ;
अपनी मेंहदी में मेरा खून मिलाये रखिये .
मेरी नज़रों को कभी और ना जँचे कोई ;
अश्क का पहरा इन आँखों पे बिठाये रखिये .
जब भी अँदेशा लगे मेरा दम निकलने का ;
गुदगुदा करके मुझमें आस जगाये रखिये .
कुछ वजह भी तो ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिये ;
आपको पाने की उम्मीद बँधाये रखिये .
साँच की आँच में जलकर मेरा दम निकले ना ;
छाँव गफ़लत की मेरे सिर पे बनाये रखिये .
डोर और पेंच तेरे और मैं पतंग तेरी ;
आपका मन है , कटा दें या उड़ाये रखिये .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
अपने बीमार पे कुछ करम बनाये रखिये .
आप संवरेंगे , तभी ग़ज़ल मेरी निखरेंगी ;
अपनी मेंहदी में मेरा खून मिलाये रखिये .
मेरी नज़रों को कभी और ना जँचे कोई ;
अश्क का पहरा इन आँखों पे बिठाये रखिये .
जब भी अँदेशा लगे मेरा दम निकलने का ;
गुदगुदा करके मुझमें आस जगाये रखिये .
कुछ वजह भी तो ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिये ;
आपको पाने की उम्मीद बँधाये रखिये .
साँच की आँच में जलकर मेरा दम निकले ना ;
छाँव गफ़लत की मेरे सिर पे बनाये रखिये .
डोर और पेंच तेरे और मैं पतंग तेरी ;
आपका मन है , कटा दें या उड़ाये रखिये .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .