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View Full Version : राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका


Dark Saint Alaick
03-08-2012, 04:00 PM
आप सभी को संभवतः स्मरण होगा कि अन्ना हजारे ने जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया, तभी से कांग्रेस के कई सिंह, सिंघवी, तिवारी, द्विवेदी, सिब्बल, अल्वी और खुर्शीद आदि-आदि बार-बार उन्हें चुनौती देते रहे कि यदि वे क़ानून बनाना चाहते हैं, तो चुनाव लड़ें और संसद में आएं ! अब जब टीम अन्ना यह कदम उठाने जा रही है, तो वे सब कांग्रेसी यह कह कर विलाप में जुटे हैं कि 'टीम अन्ना का असली मकसद सामने आ गया' अथवा 'हम तो पहले ही कहते थे कि इनका उद्देश्य यही है' ! यहां सवाल उठता है कि आखिर आपको आपत्ति किस वज़ह से है ? क्या राजनीति के माध्यम से तथाकथित 'देश-सेवा' का ठेका आपने लिया हुआ है कि इस ओर और कोई नहीं देख सकता और फिर यह ठेका आपको दिया किसने है ? उम्मीद की जानी चाहिए कि देश को शीघ्र ही एक नया स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक गठबंधन उपलब्ध हो जाएगा !

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 04:20 PM
एक बयान पर करें नज़र -

टीम अन्ना हमेशा से सत्ता चाहती थी : कांग्रेस

टीम अन्ना की राजनीतिक विकल्प तलाश करने की नीयत जाहिर करने के बाद उसके खिलाफ अपने हमले जारी रखते हुए कांग्रेस ने आज कहा कि टीम अन्ना के सदस्य हमेशा से सत्ता चाहते थे। कांग्रेस नेता और केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री जी. के. वासन ने चेन्नई में संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस पिछले एक वर्ष से लगातार कह रही है कि अन्ना और उनकी टीम की दिलचस्पी राजनीति में है और वह हमेशा सत्ता में आना चाहते थे।’’

abhisays
03-08-2012, 04:26 PM
पहले तो अलैक जी को यह एक ज्वलंत और काफी महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद.

कांग्रेस के इस रवैये के पीछे उनका अहंकार दीखता है, उन्हें लगता है हर बार गाँधी परिवार नामक घोड़े पर सवार होकर, भारत के मुस्लिमो को हांक कर सत्ता के शिखर पर वो लोग बार बार विराजमान हो जायेंगे. लेकिन उन्हें नहीं पता की वक़्त बदल चूका है. अब लोग उनके बहकावे में नहीं आने वाले. जहाँ तक अन्ना की टीम का सवाल है मेरा मानना है की उन्हें पहले अपना एक agenda बनाना होगा. हम लोगो को उनकी भ्रस्टाचार के मुद्दे पर राय पता है लेकिन उनकी कश्मीर पर क्या राय है, पाकिस्तान के बारे में उनका क्या ख्याल है, विदेश नीति कैसी होनी चाहिए, अर्थ नीति कैसी होनी चाहिए, इन सवालों पर टीम अन्ना को अपना नजरिया जनता को बताना होगा. जहाँ तक मैं देख पा रहा हूँ. उनको हिसार policy को आगे बढ़ाना चाहिए. चुन चुन कर इमानदार उम्मीदवारो का समर्थन करना चाहिए, चाहे वो किसी भी पार्टी के हो. वैसे टीम अन्ना का रुझान सेण्टर राईट में ज्यादा है.

और अंत में यही कहूँगा, "कांग्रेस सत्ता में वापिस" २०१४ में इससे बुरी खबर और कोई नहीं हो सकती. :india:

arvind
03-08-2012, 04:34 PM
आप सभी को संभवतः स्मरण होगा कि अन्ना हजारे ने जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया, तभी से कांग्रेस के कई सिंह, सिंघवी, तिवारी, द्विवेदी, सिब्बल, अल्वी और खुर्शीद आदि-आदि बार-बार उन्हें चुनौती देते रहे कि यदि वे क़ानून बनाना चाहते हैं, तो चुनाव लड़ें और संसद में आएं ! अब जब टीम अन्ना यह कदम उठाने जा रही है, तो वे सब कांग्रेसी यह कह कर विलाप में जुटे हैं कि 'टीम अन्ना का असली मकसद सामने आ गया' अथवा 'हम तो पहले ही कहते थे कि इनका उद्देश्य यही है' ! यहां सवाल उठता है कि आखिर आपको आपत्ति किस वज़ह से है ? क्या राजनीति के माध्यम से तथाकथित 'देश-सेवा' का ठेका आपने लिया हुआ है कि इस ओर और कोई नहीं देख सकता और फिर यह ठेका आपको दिया किसने है ? उम्मीद की जानी चाहिए कि देश को शीघ्र ही एक नया स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक गठबंधन उपलब्ध हो जाएगा !
सामने वाले को गलत साबित कर खुद को सही सिद्ध करना - धूर्त राजनीतिज्ञो का यही तरीका है। खुद राजनीति कर रहे है तो सही, और अगर सामने वाला कर रहा है तो गलत। अगर टीम अन्ना का "असली मकसद" इन्हे दिख ही गया, तो इनके पेट मे मरोड़ क्यो होने लगा। "राजनीति" करने का "लाईसेंस" यही लोग देते है क्या? और क्या टीम अन्ना के लोग इनसे बिना "लाईसेंस" लिए ही "राजनीति" करने जा रहे है? दूसरे की तरफ अंगुली उठाने वाले, पहले ये भी देख ले की चार उंगुली उनके तरफ भी है। मगर बेशर्मी से कह देंगे की ये हमारे विरोधियों की चाल है।

अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब संधर्ष शुरू किया तो सारे भ्रष्टाचारी नेता, चाहे वो किसी भी दल के हो, पूरा दाना पानी लेकर टीम अन्ना के खिलाफ मुहिम मे जुट गए थे। सबका इतिहास ढूंढ रहे थे, अन्ना को सेना से भगोड़ा बताने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुये थे, पाँच साल बाद अरविंद केजरीवाल के पास लाखो रुपये चुकाने के लिए विभागीय नोटिश आता है। वही सभी भ्रष्टाचारी नेता आराम से स्विस बैंक मे अपना बैंक बैलेन्स बढ़ाने मे लगे हुये रहते है। एक माननीय मंत्री जी संसद भवन खुलेआम अन्ना हज़ारे का माखौल उड़ाते है, और बाकी मंत्री बेशर्मी से उसपर ठहाका लगाते है। कोई उनको चुनाव लड़कर जीतने के लिए ललकारता है, कोई उनके दौड़ने पर आश्चर्य करता है.... हद हो गई भाई। मगर किसी ने इसके पीछे छिपी मंशा पर कुछ नहीं बोला। बोलते भी कैसे..... भला कोई अपने पैर मे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता है? कैसे कह सकता है की देश मे भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये। कैसे कहे की मुझे जेल भेज दो। बेहतर है की अन्ना को ही जेल भेज दो। कैसे कहे की हम दोषी है, इसीलिए अन्ना को दोषी कह दो। कैसे कहे की भ्रष्टाचार खत्म करो, इसीलिए अन्ना को खत्म कर दो।

Sikandar_Khan
03-08-2012, 04:35 PM
जब से ये खबर सुनी है मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा है ! लेकिन अब सोचने वाली ये बात है की अन्ना जी राजनीति के दलदल मेँ उतरने के बाद कब तक खुद को कीचड़ से बचाकर रख सकेँगे ?
क्या गारंटी होगी की उनकी पार्टी की सभी सदस्य पूरी ईमानदारी के साथ देश की सेवा मे लगे रहेँगे ?

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 05:11 PM
पहले तो अलैक जी को यह एक ज्वलंत और काफी महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद.

कांग्रेस के इस रवैये के पीछे उनका अहंकार दीखता है, उन्हें लगता है हर बार गाँधी परिवार नामक घोड़े पर सवार होकर, भारत के मुस्लिमो को हांक कर सत्ता के शिखर पर वो लोग बार बार विराजमान हो जायेंगे. लेकिन उन्हें नहीं पता की वक़्त बदल चूका है. अब लोग उनके बहकावे में नहीं आने वाले. जहाँ तक अन्ना की टीम का सवाल है मेरा मानना है की उन्हें पहले अपना एक agenda बनाना होगा. हम लोगो को उनकी भ्रस्टाचार के मुद्दे पर राय पता है लेकिन उनकी कश्मीर पर क्या राय है, पाकिस्तान के बारे में उनका क्या ख्याल है, विदेश नीति कैसी होनी चाहिए, अर्थ नीति कैसी होनी चाहिए, इन सवालों पर टीम अन्ना को अपना नजरिया जनता को बताना होगा. जहाँ तक मैं देख पा रहा हूँ. उनको हिसार policy को आगे बढ़ाना चाहिए. चुन चुन कर इमानदार उम्मीदवारो का समर्थन करना चाहिए, चाहे वो किसी भी पार्टी के हो. वैसे टीम अन्ना का रुझान सेण्टर राईट में ज्यादा है.

और अंत में यही कहूँगा, "कांग्रेस सत्ता में वापिस" २०१४ में इससे बुरी खबर और कोई नहीं हो सकती. :india:

आपने सही कहा, अभिषेकजी ! वैसे टीम अन्ना ने सांसद और विधायक निधि बंद करने, लाल बत्ती की सुविधा बंद करने और सांसदों-विधायकों के वेतन-भत्ते कम करने जैसी कुछ घोषणाएं अभी-अभी की हैं, लेकिन सभी मुद्दों पर एक समग्र नीति घोषित करने की वाकई जरूरत है !

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 05:14 PM
सामने वाले को गलत साबित कर खुद को सही सिद्ध करना - धूर्त राजनीतिज्ञो का यही तरीका है। खुद राजनीति कर रहे है तो सही, और अगर सामने वाला कर रहा है तो गलत। अगर टीम अन्ना का "असली मकसद" इन्हे दिख ही गया, तो इनके पेट मे मरोड़ क्यो होने लगा। "राजनीति" करने का "लाईसेंस" यही लोग देते है क्या? और क्या टीम अन्ना के लोग इनसे बिना "लाईसेंस" लिए ही "राजनीति" करने जा रहे है? दूसरे की तरफ अंगुली उठाने वाले, पहले ये भी देख ले की चार उंगुली उनके तरफ भी है। मगर बेशर्मी से कह देंगे की ये हमारे विरोधियों की चाल है।

अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब संधर्ष शुरू किया तो सारे भ्रष्टाचारी नेता, चाहे वो किसी भी दल के हो, पूरा दाना पानी लेकर टीम अन्ना के खिलाफ मुहिम मे जुट गए थे। सबका इतिहास ढूंढ रहे थे, अन्ना को सेना से भगोड़ा बताने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुये थे, पाँच साल बाद अरविंद केजरीवाल के पास लाखो रुपये चुकाने के लिए विभागीय नोटिश आता है। वही सभी भ्रष्टाचारी नेता आराम से स्विस बैंक मे अपना बैंक बैलेन्स बढ़ाने मे लगे हुये रहते है। एक माननीय मंत्री जी संसद भवन खुलेआम अन्ना हज़ारे का माखौल उड़ाते है, और बाकी मंत्री बेशर्मी से उसपर ठहाका लगाते है। कोई उनको चुनाव लड़कर जीतने के लिए ललकारता है, कोई उनके दौड़ने पर आश्चर्य करता है.... हद हो गई भाई। मगर किसी ने इसके पीछे छिपी मंशा पर कुछ नहीं बोला। बोलते भी कैसे..... भला कोई अपने पैर मे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता है? कैसे कह सकता है की देश मे भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये। कैसे कहे की मुझे जेल भेज दो। बेहतर है की अन्ना को ही जेल भेज दो। कैसे कहे की हम दोषी है, इसीलिए अन्ना को दोषी कह दो। कैसे कहे की भ्रष्टाचार खत्म करो, इसीलिए अन्ना को खत्म कर दो।


आपने सही कहा, अरविन्दजी ! चार नहीं, आठ-आठ अंगुलियां इनकी ओर उठी हुई हैं और इसके बावजूद ये बेशर्मी से स्वयं को जन-नेता बता रहे हैं ! धन्य है भारत !

Dark Saint Alaick
03-08-2012, 05:19 PM
जब से ये खबर सुनी है मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा है ! लेकिन अब सोचने वाली ये बात है की अन्ना जी राजनीति के दलदल मेँ उतरने के बाद कब तक खुद को कीचड़ से बचाकर रख सकेँगे ?
क्या गारंटी होगी की उनकी पार्टी की सभी सदस्य पूरी ईमानदारी के साथ देश की सेवा मे लगे रहेँगे ?

आपने वाकई एक विचारणीय मुद्दा उठाया है, सिकंदरजी ! मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि राजनीति एक दलदल है और इसमें खुद को बचाए रखना बहुत मुश्किल है, किन्तु कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है, ऐसा मेरा मानना है ! उम्मीदवारों के चयन की जो प्रक्रिया अन्ना हजारे ने बताई है, उसके अनुसार जनता तय करेगी कि अन्ना का उम्मीदवार कौन हो, मेरे विचार से यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है और काफी हद तक दागी और बाहुबलियों से छुटकारा दिलाने में कारगर रहेगी ! फिर भी यह समय बताएगा कि टीम अन्ना कैसे लोग चुनती है !

malethia
10-12-2012, 09:28 PM
अन्ना हजारे ने तो अपनी राजनैतिक बनाने का विचार त्याग दिया है लेकिन उनके साथी केजरीवाल ने तो अपनी नई पार्टी लांच कर ही दी ,देखना ये है की केजरीवाल और नकी पार्टी क्या गुल खिलाती है ,सिर्फ अन्य पार्टी के नेताओं का भण्डाफोड़ ही करती रहेगी या कुछ और करेगी !

Dark Saint Alaick
10-12-2012, 10:40 PM
मित्रो, मैंने जब यह सूत्र बनाया था, तब स्थितियां अलग थीं, लेकिन जैसा कि आप सभी बुद्धिजीवी बन्धु जानते हैं, अब स्थितियां एकदम जुदा हैं यानी अरविन्द केजरीवाल अपनी टीम को लेकर अन्ना हजारे से अलग हो गए हैं और उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी घोषित कर दी है। दूसरी ओर अन्ना हजारे ने उन्हें एक बार समर्थन देने के बाद स्पष्ट रूप से सत्ता लोलुप बताते हुए नए सिरे से विचार करने की बात की है। मेरा मानना है कि इन नई परिस्थितियों में किसका क्या कदम क्या होगा और उसके परिणाम क्या होंगे, इस पर हमें एक बार पुनर्विचार करना होगा। ... तो इस विषय में क्या ख़याल है आपका? इस पर अपने विचार अवश्य प्रकट करें। धन्यवाद।

Ranjansameer
25-12-2012, 01:54 PM
अन्ना हजारे के सहायक अरविन्द केजरीवाल ने आख़िरकार "आम आदमी पार्टी" को वास्तविकता की धरातल पर उतार ही दिया. अन्ना हजारे से समर्थन खोने के बाद या यु कहे की अन्ना के राजनीती में ना उतरने के फैसले के बाद इस पार्टी की सारी जिम्मेदारियां और दारोमदार अब अरविन्द केजरीवाल के कंधो पर आ गया. केजरीवाल राजनीति की पथरीली, कंटीली और ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चल पड़े है वो इसमें सफल होंगे या असफल इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में छिपा है.

केजरीवाल स्वयं देश की जनता को यह बता रहे हैं कि राजनीतिक व्यवस्था और नेता आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं. उन्होंने कई राजनीतिज्ञों के काले कारनामो को मीडिया की सहायता से आम जनता को बताने की कोशिश की. लेकिन मेरा एक सवाल हैं उनसे की जब राजनीति काजल की कोठरी और भ्रष्टाचार के कीचड़ में सनी हुई है तो फिर केजरीवाल ने स्वयं इस कीचड़ में उतरने का निर्णय क्यों लिया? वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था और नेताओं से ऊबी जनता जिस भावना, जोश और आवेश के साथ इण्डिया अंगेस्ट करप्शन से जुड़ी थी क्या उसी तर्ज पर आम आदमी ‘आप’ से जुड़ेगा, यह अहम् प्रश्न है. राजनीति बड़ी कठोर, निर्दयी और संवेदनहीन होती है उसका कुछ अनुभव पिछले दो वर्षों में अरविंद को हो ही चुका है. क्या अरविंद को राजनीतिक दल बनाने के बाद पूर्व की भांति भारी जन समर्थन मिलेगा? क्या अरविंद राजनीति की काली कोठरी के काजल से स्वयं को बचा पाएंगे? क्या अरविंद राजनीति में सफल होने के लिए दूसरे राजनीतिक दलों व नेताओं की भांति वही तो करने लगेंगे जिसका अब तक वो विरोध करते आए हैं?

लेकिन इन सब बातों से दूर अरविन्द केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं और शायद इसलिए उन पर देश के आम आदमी से लेकर विशेष तक सबकी दृष्टि लगी हुई है. पिछले दो वर्ष में इण्डिया अंगेस्ट करप्शन के बैनर तले लाखों की भीड़ जुटने का सबसे बड़ा कारण यही था कि देश की जनता सार्वजनिक जीवन में तेजी से बढ़ते और फैलते भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जन लोकपाल बिल चाहती थी. लेकिन राजनीति की हठधर्मिता और अड़चनों से जनता का मनोबल टूट चुका है और भीड़ बिखर चुकी है. अन्ना और केजरीवाल अलग रास्तों पर चल पड़े हैं. अन्न अभी भी जनआंदोलनों में विशवास रखते हैं लेकिन केजरीवाल ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए राजनीति की राह पकड़ी है. टीम अन्ना के टूटने से आम आदमी का जनआंदोलनों से विश्वास भी टूटा है. वर्तमान में आम आदमी राजनीतिक दलों और सामाजिक आंदोलनों से बराबर की दूर बनाये हुए है और वो चुपचाप सारे ड्रामे और उछल-कूद को देख रहा है. असल में आम आदमी अनिर्णय की स्थिति में पहुंच चुका है उसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि वो किसका साथ दे और किससे किनारा करे. कौन सच्चा है या झूठा वो यह भी समझ नहीं पा रहा है.

यही द्वन्द स्थिति मेरे साथ भी हैं. मैं सब कुछ जानते हुए भी यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ की केजरीवाल का साथ दू या फिर अन्ना जी के जन आन्दोलन की. जब मेरे जैसा पढ़ा लिखा व्यक्ति यह भ्रम की स्थिति दूर नहीं कर पा रहा हैं तो देश अधिकांश अशिक्षित जनता क्या सोच रही होगी, इसका अनुमान तो आप लगा ही सकते हैं.

राजनीति सेवा की बजाय मेवा खाने और कमाने का जरिया बन चुकी है. देश की जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी और लिखा-पढ़ा वर्ग राजनीति से दूरी बनाये हुए है. अरविंद के आंदोलन की सबसे बड़ी शक्ति देश के युवा, मध्यम वर्ग और पढ़े-लिखे लोग ही थे. ये वर्ग राजनीति और नेताओं को भ्रष्ट, स्वार्थी, अपराधी, गुण्डा, अनपढ़ और देश के विकास में बाधक मानता है, और अब केजरीवाल जब उसी रास्ते पर चल पड़े है जिसे वो अब तक कोसते रहे हैं. अहम् सवाल यही है कि केजरीवाल के आहवान पर लाखों की संख्या में रामलीला मैदान पहुंचने वाली भीड़ उनके साथ राजनीति के सफर में साथ चलेगी?

देखते हैं भविष्य में आम आदमी पार्टी कुछ कर पाती हैं जिसके सपने उन्होंने जनता को दिखाए थे या फिर यह भी दूसरी पार्टियों की तरह राजनीती के कीचड़ और दलदल में डूब जाएगी. जनता इस पार्टी को कितना समर्थन देती हैं यह तो आने वाले कुछ सालो में पता लग जायेगा. तब तक हम कयास लगाने के लिए बैठे ही हैं.

jitendragarg
25-12-2012, 02:14 PM
सामने वाले को गलत साबित कर खुद को सही सिद्ध करना - धूर्त राजनीतिज्ञो का यही तरीका है। खुद राजनीति कर रहे है तो सही, और अगर सामने वाला कर रहा है तो गलत। अगर टीम अन्ना का "असली मकसद" इन्हे दिख ही गया, तो इनके पेट मे मरोड़ क्यो होने लगा। "राजनीति" करने का "लाईसेंस" यही लोग देते है क्या? और क्या टीम अन्ना के लोग इनसे बिना "लाईसेंस" लिए ही "राजनीति" करने जा रहे है? दूसरे की तरफ अंगुली उठाने वाले, पहले ये भी देख ले की चार उंगुली उनके तरफ भी है। मगर बेशर्मी से कह देंगे की ये हमारे विरोधियों की चाल है।

अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब संधर्ष शुरू किया तो सारे भ्रष्टाचारी नेता, चाहे वो किसी भी दल के हो, पूरा दाना पानी लेकर टीम अन्ना के खिलाफ मुहिम मे जुट गए थे। सबका इतिहास ढूंढ रहे थे, अन्ना को सेना से भगोड़ा बताने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुये थे, पाँच साल बाद अरविंद केजरीवाल के पास लाखो रुपये चुकाने के लिए विभागीय नोटिश आता है। वही सभी भ्रष्टाचारी नेता आराम से स्विस बैंक मे अपना बैंक बैलेन्स बढ़ाने मे लगे हुये रहते है। एक माननीय मंत्री जी संसद भवन खुलेआम अन्ना हज़ारे का माखौल उड़ाते है, और बाकी मंत्री बेशर्मी से उसपर ठहाका लगाते है। कोई उनको चुनाव लड़कर जीतने के लिए ललकारता है, कोई उनके दौड़ने पर आश्चर्य करता है.... हद हो गई भाई। मगर किसी ने इसके पीछे छिपी मंशा पर कुछ नहीं बोला। बोलते भी कैसे..... भला कोई अपने पैर मे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता है? कैसे कह सकता है की देश मे भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये। कैसे कहे की मुझे जेल भेज दो। बेहतर है की अन्ना को ही जेल भेज दो। कैसे कहे की हम दोषी है, इसीलिए अन्ना को दोषी कह दो। कैसे कहे की भ्रष्टाचार खत्म करो, इसीलिए अन्ना को खत्म कर दो।


main aapki ek ek bat se sehmat hu.

bharat
06-01-2013, 02:33 AM
अन्ना हजारे जी एक कंफ्यूज्ड से कैरेक्टर लगे मुझे तो! ऐसा लगा जैसे अपनी कोई सोच समझ रखते ही नहीं है और कुछ भी कहकर पलट जाना या फैसले बदलना उनकी ख़ास आदत है! ठीक है आपने भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाई है पिछले कुछ सालों में (दिल्ली में रामदेव के साथ पहली बार मंच पर आये तब मुझे मालूम हुआ था की ये भी कोई हैं!, बाद में उसी रामदेव को आँख दिखाने लगे !) खैर ये मेरे निजी विचार हैं जो हाल फिलहाल की घटनाओं से मेरे मन में उपजे!
केजरीवाल को लेकर दिल में सिर्फ एक ही शंका है की बुरे लोगों या भ्रष्ट लोगों की आस्तीन में हाथ डालकर एकदम छोड़ क्यूँ देते हैं! सुब्रमण्यम स्वामी के शब्दों में कहूँ तो हिट एंड रन वाला फंडा किसी काम का तो नहीं है! बल्कि ऐसा जरूर लगता है की पुराणी बातों से ध्यान भटकाने के लिए नया कुछ खोज फिर उसे भी बीच में ही छोड़ दिया!
और उस पर नवीन जिंदल के बारे में कहीं एक भी शब्द न बोलना??? उसके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगें हैं तो वहां आकर केज्ज्रिवाल जी की बहादुरी या भ्रष्ट लोगों को सजा दिलवाने की कसम को क्या हो जाता है!

(निजी विचार हैं, कृपया अपना मत दें!)