View Full Version : सोच में इंक़लाब रखियेगा
Dr. Rakesh Srivastava
04-08-2012, 10:16 AM
सोच में इंक़लाब रखियेगा ,
हर किसी सर पे ताज रखियेगा .
ग़र बढ़ानी हो सल्तनत अपनी ,
ख़ुद के ऊपर भी राज रखियेगा .
कर के आलोचना संभालें जो ,
मन में उनका लिहाज़ रखियेगा .
इल्म हर एक शख्स से मिलता ,
तिश्नगी बेहिसाब रखियेगा .
पाँव धरती पे जमाये रख कर ,
आसमानों के ख़्वाब रखियेगा .
दौर जो आये , उसमें ढलने को ,
मोम जैसा मिजाज रखियेगा .
हर कोई प्यास बुझाना चाहे ,
ख़ुद में ऐसी शराब रखियेगा .
चिराग़ बन के अंधेरों के लिए ,
ज़िन्दगी कामयाब रखियेगा .
पालकर रोग मोहब्बत का हसीं ,
अपनी तबियत खराब रखियेगा .
ज़ख्मे उल्फ़त को समझकर नेमत ,
हर ग़ज़ल लाज़वाब रखियेगा .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
abhisays
04-08-2012, 10:48 AM
ग़र बढ़ानी हो सल्तनत अपनी ,
ख़ुद के ऊपर भी राज रखियेगा .
बहुत बढ़िया राकेश जी. :clappinghands::clappinghands:
arvind
04-08-2012, 11:22 AM
आपके लेखन की तारीफ मे मेरे पास शब्दो का अकाल महसूस हो रहा है।
अति सुंदर और सारगर्भित रचना।
Sikandar_Khan
04-08-2012, 06:14 PM
बेहतरीन रचना पढ़वाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद |
सोच में इंक़लाब रखियेगा ,
हर किसी सर पे ताज रखियेगा .
ग़र बढ़ानी हो सल्तनत अपनी ,
ख़ुद के ऊपर भी राज रखियेगा .
कर के आलोचना संभालें जो ,
मन में उनका लिहाज़ रखियेगा .
इल्म हर एक शख्स से मिलता ,
तिश्नगी बेहिसाब रखियेगा .
पाँव धरती पे जमाये रख कर ,
आसमानों के ख़्वाब रखियेगा .
दौर जो आये , उसमें ढलने को ,
मोम जैसा मिजाज रखियेगा .
हर कोई प्यास बुझाना चाहे ,
ख़ुद में ऐसी शराब रखियेगा .
चिराग़ बन के अंधेरों के लिए ,
ज़िन्दगी कामयाब रखियेगा .
पालकर रोग मोहब्बत का हसीं ,
अपनी तबियत खराब रखियेगा .
ज़ख्मे उल्फ़त को समझकर नेमत ,
हर ग़ज़ल लाज़वाब रखियेगा .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
:bravo::bravo: .................................................. .....
Dr. Rakesh Srivastava
11-08-2012, 01:15 PM
ये रचना पढ़ने के लिये अभिशेष जी , डार्क सेंट अल्लेक जी , दीपू जी , अरविन्द जी , सिकंदर खान जी एवं समस्त अज्ञात पाठकों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .
Ranveer
28-08-2012, 08:26 PM
बहुत सुंदर राकेश जी ।
khalid
28-08-2012, 10:50 PM
aapki rachna parhkar dil khush ho jata ha
:bravo:
bhavna singh
29-08-2012, 10:23 PM
सोच में इंक़लाब रखियेगा ,
हर किसी सर पे ताज रखियेगा .
ग़र बढ़ानी हो सल्तनत अपनी ,
ख़ुद के ऊपर भी राज रखियेगा .
कर के आलोचना संभालें जो ,
मन में उनका लिहाज़ रखियेगा .
इल्म हर एक शख्स से मिलता ,
तिश्नगी बेहिसाब रखियेगा .
पाँव धरती पे जमाये रख कर ,
आसमानों के ख़्वाब रखियेगा .
दौर जो आये , उसमें ढलने को ,
मोम जैसा मिजाज रखियेगा .
हर कोई प्यास बुझाना चाहे ,
ख़ुद में ऐसी शराब रखियेगा .
चिराग़ बन के अंधेरों के लिए ,
ज़िन्दगी कामयाब रखियेगा .
पालकर रोग मोहब्बत का हसीं ,
अपनी तबियत खराब रखियेगा .
ज़ख्मे उल्फ़त को समझकर नेमत ,
हर ग़ज़ल लाज़वाब रखियेगा .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .:cheers::cheers::cheers:
बहुत खूब डॉक्टर साहब .............आपकी दवायें बेहतर काम कर रही हैं ...............!
Dr. Rakesh Srivastava
02-09-2012, 10:16 PM
श्री रणवीर जी , जनाब खालिद जी एवं सुश्री भावना सिंह जी का पढ़ने , पसंद करने व प्रतिक्रिया देने हेतु तथा शेष समस्त अज्ञात पाठकों का पढ़ने हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .
rafik
28-04-2014, 04:02 PM
सोच में इंक़लाब रखियेगा ,
हर किसी सर पे ताज रखियेगा .
इंक़लाब जिंदाबाद
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