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View Full Version : पिला दे ग़ज़ल- अशोक जानी ‘आनंद’


shahpravin46
05-08-2012, 09:17 PM
अब डसने लगी है तन्हाई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल,
आंखे अश्कोंसे भर आई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

हम तो आवाज़ लगाते रहे, वो मुंह फेर कर चले गये
अब कौन करेगा सुनवाई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

हम दीप जलानेकी कोशिश वो फूंक लगानेकी साजिश.
कैसे ढूंढे अब परछाई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

चल, सन्नाटेका हाथ पकड़ कर सुब्हा तक चलते ही चले,
इक आश हवामें लहराई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

वो दू..र उफक पर हलकीसी किरने अलसाती निकली हैं,
बादलकी आंखे शरमाई, अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

जब इन्द्रधनुषके रंगोमें ये भोर नहाके आई है,
इस बात पे कलियाँ इतराई अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

ये कलियोंके इतराने पर भंवरोंका दिल भी आया है,
बागोमें बहारें मुस्काई अय यार मुझे पिला दे ग़ज़ल.

-अशोक जानी ‘आनंद’

Sikandar_Khan
06-08-2012, 06:17 PM
:fantastic::fantastic:
बहुत ही खूबसूरत अंदाज है |

abhisays
06-08-2012, 07:11 PM
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

rajnish manga
28-08-2012, 11:23 PM
प्रयास अच्छा है, आपको बधाई देता हूँ. कृपया गज़ल के मूल तत्वों का ध्यान रखें और अभ्यास करते रहें. हर शेऽर के अंत में -पिला दे गज़ल- लिखना न तो उचित मालूम पड़ता है और न अर्थपूर्ण.

sombirnaamdev
29-08-2012, 01:15 AM
अच्छा प्रयास लगे रहिये