Dr. Rakesh Srivastava
11-08-2012, 01:18 PM
ये भरम तोडूंगा , " मौत आई तो मर जाना है " ;
फूल - सा बन मुझे ख़ुश्बू - सा बिखर जाना है .
जब मेरा बस नहीं सूरत पे , तो क्यों शरमाऊँ ;
अपनी सीरत तराश करके सँवर जाना है .
ख़ुद की नाकामियों से सीखना - सुधरना है ;
ठोकरें जितनी मिलें उतना निखर जाना है .
कभी चिराग़ बनूँगा मैं अंधेरों के लिये ;
बन के सावन कभी सहरा से गुज़र जाना है .
वज़ूद मेरा मौत भी न कर सकेगी फ़ना ;
हसीन याद बन हर दिल में ठहर जाना है .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~ सीरत = आन्तरिक गुण / Inner beauty ,
सहरा = रेगिस्तान , वज़ूद = अस्तित्व , फ़ना = नष्ट होना
फूल - सा बन मुझे ख़ुश्बू - सा बिखर जाना है .
जब मेरा बस नहीं सूरत पे , तो क्यों शरमाऊँ ;
अपनी सीरत तराश करके सँवर जाना है .
ख़ुद की नाकामियों से सीखना - सुधरना है ;
ठोकरें जितनी मिलें उतना निखर जाना है .
कभी चिराग़ बनूँगा मैं अंधेरों के लिये ;
बन के सावन कभी सहरा से गुज़र जाना है .
वज़ूद मेरा मौत भी न कर सकेगी फ़ना ;
हसीन याद बन हर दिल में ठहर जाना है .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~ सीरत = आन्तरिक गुण / Inner beauty ,
सहरा = रेगिस्तान , वज़ूद = अस्तित्व , फ़ना = नष्ट होना