PDA

View Full Version : इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प्&


stolen heart
12-08-2012, 01:46 PM
राम कृष्ण राव की कलम से -
मैंने जब पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ूक मामला भी है क्योंकि दूनिया में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (school of thought) और फ़िरक़ों में बंटे रहते हैं।-----(कृष्*णा राव)

stolen heart
12-08-2012, 01:48 PM
इस्लाम के पैग़म्बरःहज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान में मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार 20 अप्रैल 571 ई. में हुआ। ‘मुहम्मद’ का अर्थ होता है ‘जिस की अत्यन्त प्रशंसा की गई हो।’ मेरी नज़र में आप अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं। क्या आपसे पहले और क्या आप के बाद, इस लाल रकतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा आप का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है।जब आप पैदा हूए अरब उपमहीद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद(सल्ल.) की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन का, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता का। आपके द्वारा एक ऐसे नये राज्य की स्थापना हुई, जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया, अफ्ऱीक़ा, और यूरोप के विचार और जीवन पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला।
उदारता की ज़रूरतमैंने जब पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ूक मामला भी है क्योंकि दूनिया में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (school of thought) और फ़िरक़ों में बंटे रहते हैं।हालाँकि कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि धर्म पूर्णतः एक व्यक्तिगत मामला है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि धर्म में पूरे जगत् को अपने घेरे में ले लेने की प्रवृत्ति पाई जाती है, चाहे उसका संबंध प्रत्यक्ष से हो या अप्रत्यक्ष चीज़ों से। वह किसी न किसी तरह और कभी न कभी हमारे हृदय, हमारी आत्माओं और हमारे मन और मस्तिष्क में अपनी राह बना लेता है। चाहे उसका ताल्लुक़ उसके चेतन से हो, अवचेतन या अचेतन से हो या किसी ऐसे हिस्से से हो जिसकी हम कल्पना कर सकते हों। यह समस्या उस समय और ज़्यादा गंभीर और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि इस बात का गहरा यक़ीन भी हो कि हमारा भूत, वर्तमान और भ्विष्य सब के सब एक अत्यन्त कोमल, नाज़ुक, संवेदनशील रेशमी सूत्रों से बंधे हुए हैं। यदि हम कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील हुए तो फिर हमारे सन्तुलन केन्द्र के अत्यन्त तनाव की स्थिति में रहने की संभावना बनी रहती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दूसरों के धर्म के बारे में जितना कम कुछ कहा जाए उतना ही अच्छा है। हमारे धर्मों को तो बहुत ही छिपा रहना चाहिए। उनका स्थान तो हमारे हृदय के अन्दर होना चाहिए और इस सिलसिले में हमारी ज़ुबान बिल्कुल नहीं खुलनी चाहिए।

stolen heart
12-08-2012, 01:48 PM
मनुष्य: एक सामाजिक प्राणी
लेकिन समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। मनुष्य समाज में रहता है और हमारा जीवन चाहे-अनचाहे, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे लोगों के जीवन से जुड़ा होता है। हम एक ही धरती का अनाज खाते हैं, एक ही जल-स्रोत का पानी पीते हैं और एक ही वायुमंडल की हवा में सांस लेते हैं। ऐसी दशा में भी, जबकि हम अपने निजी विचारों व धार्मिक धारणाओं पर क़ायम हों, अगर हम थोड़ा-बहुत यह भी जान लें कि हमारा पड़ोसी किस तरह सोचता है, उसके कर्मों के मुख्य प्रेरणा-स्रोत क्या हैं? तो यह जानकारी कम से कम अपने माहौल के साथ तालमेल पैदा करने में सहायक बनेगी। यह बहुत ही पसन्दीदा बात है कि आदमी को संसार मे धर्मों के बारे में उचित भावना के साथ जानने की कोशिश करनी चाहिये, ताकि आपसी जानकारी और मेल-मिलाप को बढ़ावा मिले और हम बेहतर तरीक़े से अपने क़रीब या दूर के पास-पड़ोस के लोगों की क़द्र कर सकें।फिर हमारे विचार वास्तव में उतने बिखरे नहीं हैं जैसा कि वे ऊपर से दिखाई देते हैं। वास्तव में वे कुछ केन्द्रों के गिर्द जमा होकर स्टाफ़िक़ जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें दुनिया के महान धर्मों और जीवन्त आस्थाओं के रूप में देखते हैं। जो धरती में लाखों ज़िन्दगियों का मार्गदर्शन करते और उन्हें प्रेरित करते हैं। अतः अगर हम इस संसार के आदर्श नागरिक बनना चाहते हैं तो यह हमारी जि़म्मेदारी भी है कि उन महान धर्मों और उन दार्शनिक सिद्धान्तों को जानने की अपने बस भर कोशिश करें, जिनका मानव पर शासन रहा है।

stolen heart
12-08-2012, 01:49 PM
पैग़म्बर : ऐतिहासिक व्यक्तित्व
इन आरम्भिक टिप्पणियों के बावजूद धर्म का क्षेत्र ऐसा है, जहाँ प्रायः बुद्धि और संवेदन के बीच संघर्ष पाया जाता है। यहाँ फिसलने की इतनी सम्भावना रहती है कि आदमी को उन कम समझ लोगों का बराबर ध्यान रखना पड़ता है, जो वहाँ भी घुसने से नहीं चूकते, जहाँ प्रवेश करते हुए फ़रिश्ते भी डरते है। इस पहलू से भी यह अत्यन्त जटिल समस्या है। मेरे लेख का विषय एक विशेष धर्म के सिद्धान्तों से है। वह धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैग़म्बर का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहाँ तक कि सर विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कु़रआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कु़रआन के अतिक्ति) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’1 मैं इसमें इतना और बढ़ा सकता हूँ कि पैग़म्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक महापुरुष हैं, जिनके जीवन की एक-एक घटना को बड़ी सावधनी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आनेवाली नसलों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है। उनका जीवन और उनके कारनामे रहस्य के परदों में छुपे हुए नहीं हैं। उनके बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को सिर खपाने और भटकने की ज़रूरत नहीं। सत्य रूपी मोती प्राप्त करने के लिए ढेर सारी रास से भूसा उड़ाकर चन्द दाने प्राप्त करने जैसे कठिन परिश्रम की ज़रूरत है।

stolen heart
12-08-2012, 01:50 PM
पूर्वकालीन भ्रामक चित्रण
मेरा काम इस लिए और आसान हो गया है कि अब वह समय तेज़ी से गुज़र रहा है, जब कुछ राजनैतिक और इसी प्रकार के दूसरे कारणों से कुछ आलोचक इस्लाम का ग़लत और बहुत ही भ्रामक चित्रण किया करते थे।1 प्रोफ़सर बीबान ‘केम्ब्रिज मेडिवल हिस्ट्री (Cambrigd madieval history) में लिखता है-‘‘ इस्लाम और मुहम्मद के संबंध में 19वीं सदी के आरम्भ से पूर्व यूरोप में जो पुस्तकें प्रकाशित हुईं उनकी हैसियत केवल साहित्यिक कौतूहलों की रह गई है’’मेरे लिए पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन-चित्र के लिखने की समस्या बहुत ही आसान हो गई है, क्योंकि अब हम इस प्रकार के भ्रामक ऐसिहासिक तथ्यों का सहारा लेने के लिए मजबूर नहीं हैं और इस्लाम के संबंध में भ्रमक निरूपणों के स्पष्ट करने में हमारा समय बर्बाद नहीं होता।मिसाल के तौर पर इस्लामी सिद्धान्त और तलवार की बात किसी उल्लेखनीय क्षेत्र में ज़ोरदार अन्दाज़ में सुनने को नहीं मिलती। इस्लाम का यह सिद्धान्त कि ‘धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नही’, आज सब पर भली-भाँति विदित है। विश्वविख्यात इतिहासकार गिबन ने कहा है, ‘मुसलमानों के साथ यह ग़लत धारणा जोड़ दी गई है कि उनका यह कर्तव्य है कि वे हर धर्म का तलवार के ज़ोर से उन्मूलन कर दें।’ इस इतिहासकार ने कहा कि यह जाहिलाना इलज़ाम कु़रआन से भी पूरे तौर पर खंडित हो जाता है और मुस्लिम विजेताओं के इतिहास तथा ईसाइयों की पूजा-पाठ के प्रति उनकी ओर से क़ानूनी और सार्वजनिक उदारता का जो प्रदर्शन हुआ है उससे भी यह इलज़ाम तथ्यहीन सिद्ध होता है। पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन की सफलता का श्रेय तलवार के बजाय उनके असाधारण नैतिक बल को जाता है।

stolen heart
12-08-2012, 01:50 PM
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) : महानतम क्षमादान
आत्मसंयम एवं अनुशासन
‘‘जो अपने क्रोध पर क़ाबू रखते है।’’ (क़ुरआन, 3:134)
एक क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे।

stolen heart
12-08-2012, 01:51 PM
प्रतिरक्षात्मक युद्ध
विरोधियों से समझोते और मेल-मिलाप के लिए आपने बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और हालात ऐसे पैदा हो गए कि आपको केवल अपने बचाव के लिए लड़ाई के मैदान में आना पड़ा तो आपने तणनीति को बिल्कुल ही एक नया रूप दिया। आपके जीवन-काल में जितनी भी लड़ाइयाँ हुईं-यहाँ तक कि पूरा अरब आपके अधिकार-क्षेत्र में आ गया- उन लड़ाइयों में काम आनेवाली इंसानी जानों की संख्या चन्द सौ से अधिक नहीं है।आपने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना यानी नमाज़ की शिक्षा दी, अकेले-अकेले अदा करने की नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से अदा करने की,यहाँ तक कि युद्ध-विभीषिका के दौरान भी। नमाज़ का निश्चित समय आने पर- और यह दिन में पाँच बार आता है- सामूहिक नमाज़ (नमाज़ जमाअत के साथ) का परित्याग करना तो दूर उसे स्थगित भी नहीं किया जा सकता। एक गिरोह अपने ख़ुदा के आगे सिर झुकाने में,जबकि दूसरा शत्रू से जूझने में व्यस्त रहता। तब पहला गिरोह नमाज़ अदा कर चुकता तो वह दूसरे का स्थन ले लेता और दूसरा गिरोह ख़ुदा के सामने झुक जाता।

stolen heart
12-08-2012, 01:52 PM
युद्ध क्षेत्र में भी मानव-मूल्यों का सम्मान
बर्बता के युग में मानवता का विस्तार रणभूमि तक किया गया। कड़े आदेश दिए गए कि न तो लाशों के अंग-भंग किए जाएँ और न किसी को धोखा दिया जाए और न विश्वासघात किया जाए और न ग़बन किया जाए और न बच्चों, औरतों या बूढ़ों को क़त्ल किया जाए, और न खजूरों और दूसरे फलदार पेड़ों को काटा या जलाया जाए और न संसार-त्यागी सन्तों और उन लोगों को छेड़ा जाए जो इबादत में लगे हों। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ ख़ुद पैग़म्बर साहब का व्यवहार आपके अनुयायियों के लिये एक उत्तम आदर्श था। मक्का पर अपनी विजय के समय आप अपनी अधिकार-शक्ति की पराकाष्ठा पर आसीन थे। वह नगर जिसने आपको और आपके साथियों को सताया और तकलीफ़ें दीं, जिसने आपको और आपके साथियों को देश निकाला दिया और जिसने आपको बुरी तरह सताया और बायकाट किया, हालाँकि आप दो सौ मील से अधिक दूरी पर पनाह लिए हुए थे, वह नगर आज आपके क़दमों में पड़ा है। युद्ध के नियमों के अनुसार आप और आपके साथियों के साथ क्रूरता का जो व्यवहार किया उसका बदला लेने का आपको पूरा हक़ हासिल था। लेकिन आपने इस नगरवालों के साथ कैसा व्यवहार किया? हज़रत मुहम्मद का हृदय प्रेम और करूणा से छलक पड़ा। आप ने एलान किया---‘‘ आज तुम पर कोई इलज़ाम नहीं और तुम सब आज़ाद हो।’’

stolen heart
12-08-2012, 01:53 PM
कट्टर शत्रुओं को भी क्षमादान
आत्म-रक्षा में युद्ध की अनुमति देने के मुख्य लक्ष्यों में से एक यह भी था कि मानव को एकता के सुत्र में पिरोया जाए। अतः अब यह लक्ष्य पूरा हो गया तो बदतरीन दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया गया। यहाँ तक कि उन लोगों को भी माफ़ कर दिया गया, जिन्होंने आपके चहेते चचा को क़त्ल करके उनके शव को विकृत किया और पेट चीरकर कलेजा निकालकर चबाया।

stolen heart
12-08-2012, 01:53 PM
सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देनेवाले ईशदूत
सार्वभौमिक भईचारे का नियम और मानव-समानता का सिद्धान्त, जिसका एलान आपने किया, वह उस महान योगदान का परिचायक है जो हज़रत मुहम्मद ने मानवता के सामाजिक उत्थान के लिए दिया। यों तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही सिद्धान्त का प्रचार किया है, लेकिन इस्लाम के पैग़म्बर ने सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देकर पेश किया। इस योगदान का मूल्य शायद उस समय पूरी तरह स्वीकार किया जा सकेगा, जब अंतर्राष्ट्रीय चेतना जाग जाएगी, जातिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह पूरी तरह मिट जाएँगे और मानव भाईचारे की एक मज़बूत धारणा वास्तविकता बनकर सामने आएगी।

stolen heart
12-08-2012, 01:55 PM
ख़ुदा के समक्ष रंक और राजा सब एक समान
इस्लाम के इस पहलू पर विचार व्यक्त करते हुए सरोजनी नायडू कहती हैं-‘‘यह पहला धर्म था जिसने जम्हूरियत (लोकतंत्र) की शिक्षा दी और उसे एक व्यावहारिक रूप दिया। क्योंकि जब मीनारों से अज़ान दी जाती है और इबादत करने वाले मस्जिदों में जमा होते हैं तो इस्लाम की जम्हूरियत (जनतंत्र) एक दिन में पाँच बार साकार होती है, ‘अल्लाहु अकबर’ यानी ‘‘ अल्लाह ही बड़ा है।’’भारत की महान कवियत्री अपनी बात जारी रखते हुए कहती हैं-‘‘मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता को देख कर बहुत प्रभावित हुई हूँ, जो लोगों को सहज रूप में एक-दूसरे का भाई बना देती है। जब आप एक मिस्री, एक अलजीरियाई, एक हिन्दूस्तानी और एक तुर्क (मुसलमान) से लंदन में मिलते हैं तो आप महसूस करेंगे कि उनकी निगाह में इस चीज़ का कोई महत्त्व नहीं है कि एक का संबंध मिस्र से है और एक का वतन हिन्दुस्तान आदि है।’’

stolen heart
12-08-2012, 01:55 PM
इंसानी भाईचारा और इस्लाम
महात्मा गाँधी अपनी अद्भूत शैली में कहते हैं- ‘‘ कहा जाता है कि यूरोप वाले दक्षिणी अफ्ऱीक़ा में इस्लाम के प्रासार से भयभीत हैं, उस इस्लाम से जिसने स्पेन को सभ्य बनाया, उस इस्लाम से जिसने मराकश तक रोशनी पहुँचाई और संसार को भईचारे की इंजील पढ़ाई। दक्षिणी अफ्ऱीक़ा के यूरोपियन इस्लाम के फैलाव से बस इसलिए भयभीत हैं कि उनके अनुयायी गोरों के साथ कहीं समानता की माँग न कर बैठें। अगर ऐसा है तो उनका डरना ठीक ही है। यदि भाईचारा एक पाप है, यदि काली नस्लों की गोरों से बराबरी ही वह चीज़ है, जिससे वे डर रहे हैं, तो फिर (इस्लाम के प्रसार से) उनके डरने का कारण भी समझ में आ जाता है।’’

stolen heart
12-08-2012, 01:56 PM
हज: मानव-समानता का एक जीवन्त प्रमाण
दुनिया हर साल हज के मौक़े पर रंग, नस्ल और जाति आदि के भेदभाव से मुक्त इस्लाम के चमत्कारपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय भव्य प्रदर्शन को देखती है। यूरोपवासी ही नहीं, बल्कि अफ्ऱीक़ी, फ़ारसी, भारतीय, चीनी आदि सभी मक्का में एक ही दिव्य परिवार के सदस्यों के रूप में एकत्र होते हैं, सभी का लिबास एक जैसा होता है। हर आदमी बिना सिली दो सफ़ेद चादरों में होता है, एक कमर पर बंधी होती है तथा दूसरी कंधों पर पड़ी हुई। सब के सिर खुले हुए होते हैं। किसी दिखावे या बनावट का प्रदर्शन नहीं होता। लोगों की ज़ुबान पर ये शब्द होते हैं-‘‘मैं हाज़िर हूँ, ऐ ख़ुदा मैं तेरी आज्ञा के पालन के लिए हाज़िर हूँ, तू एक है और तेरा कोई शरीक नहीं।’’इस प्रकार कोई ऐसी चीज़ बाक़ी नहीं रहती, जिसके कारण किसी को बड़ा कहा जाए, किसी को छोटा। और हर हाजी इस्लाम के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का प्रभाव लिए घर वापस लौटता है। प्रोफ़सर हर्गरोन्ज (Hurgronje) के शब्दों में- ‘‘पैग़म्बरे-इस्लाम द्वारा स्थापित राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय एकता और मानव भ्रातृत्व के नियमों को ऐसे सार्वभौमिक आधारों पर स्थापित किया है जो अन्य राष्ट्रों को मार्ग दिखाते रहेंगे।’’वह आगे लिखता है-‘‘वास्तविकता यह है कि राष्ट्रसंघ की धारणा को वास्तविक रूप देने के लिए इस्लाम का जो कारनामा है, कोई भी अन्य राष्ट्र उसकी मिसाल पेश नहीं कर सकता।’’

stolen heart
12-08-2012, 01:57 PM
इस्लाम: स्म्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ
इस्लाम के पैग़म्बर ने लाकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। ख़लीफ़ा उमर और ख़लीफ़ा अली (पैग़मम्बर इस्लाम के दामाद), ख़लीफ़ा मन्सूर, अब्बास (ख़लीफ़ा मामून के बेटे) और कई दूसरे ख़लीफ़ा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफे़द रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चैदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो बिलाल के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस ग़ुलाम नीग्रो को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठोंवाला नीग्रो गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्*ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप(सल्ल.) ने एक भाषण (ख़ुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फ़रमाया-‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया। ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डरने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो ख़ुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’इसी की पुष्टि क़ुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज़्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह ख़ूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रख़नेवाला है।’’ (क़ुरआन,49:13)

stolen heart
12-08-2012, 01:57 PM
इस्लाम: स्म्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ
इस्लाम के पैग़म्बर ने लाकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। ख़लीफ़ा उमर और ख़लीफ़ा अली (पैग़मम्बर इस्लाम के दामाद), ख़लीफ़ा मन्सूर, अब्बास (ख़लीफ़ा मामून के बेटे) और कई दूसरे ख़लीफ़ा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफे़द रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चैदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो बिलाल के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस ग़ुलाम नीग्रो को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठोंवाला नीग्रो गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्*ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप(सल्ल.) ने एक भाषण (ख़ुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फ़रमाया-‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया। ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डरने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो ख़ुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’इसी की पुष्टि क़ुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज़्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह ख़ूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रख़नेवाला है।’’ (क़ुरआन,49:13)

stolen heart
12-08-2012, 01:58 PM
महान परिवर्तन
इस प्रकार पैग़म्बरे-इस्लाम हृदयो में ऐसा ज़बरदस्त परिवर्तन करने में सफल हो गए कि सबसे पवित्र और सम्मानित समझे जानेवाले अरब ख़ानदानों के लोगों ने भी इस नीग्रो गुलाम की जीवन-संगिनी बनाने के लिए अपनी बेटियों से विवाह करने का प्रस्ताव किया। इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा और मुसलमानों के अमीर (सरदार) जो इतिहीस में उमर महान(फ़ारूक़े आज़म) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इस नीग्रो को देखते ही तुरन्त खड़े हो जाते और इन शब्दों में उनका स्वागत करते, ‘‘हमारे बड़े, हमारे सरदार आ गए।’’ धरती पर उस समय की सबसे अधिक स्वाभिमानी क़ौम, अरबों में क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद ने कितना महान परिवर्तन कर दिया था। यही कारण है कि जर्मनी के एक बहुत बड़े शायर गोयटे ने पवित्र क़ुरआन के बारे में अपने उद्गार प्रकट करते हुए एलान किया है-‘‘यह पुस्तक हर युग में लोगों पर अपना अत्यधिक प्रभाव डालती रहेगी।’’इसी कारण जॉर्ज बर्नाड शॉ का भी कहना है-‘‘अगर अगले सौ सालों में इंग्लैंड ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप पर किसी धर्म के शासन करने की संभावना है तो वह इस्लाम है।’’

stolen heart
12-08-2012, 01:59 PM
इस्लाम: नारी-उद्धारक
इसलाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता है कि उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आज़ादी दिलाई। सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन ने कहा है-‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’
स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार
अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक क़ानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैग़म्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चूके थे-‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’‘‘ इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’अध्याय .3विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन)
सुनहरे साधन
इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवसथा से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहाँ तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इंसान के आचार व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़सर मेसिंगनन के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्मान का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान में रखता है।’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, ज़ख़ीरा अन्दोज़ी ;भ्वंतकपदहद्ध बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोशित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमख़ाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया । कहा जाता है कि यतीमख़ानों की स्थापना का आरम्भ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमख़ानों की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद यतीम था। कारलायल पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाइयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से उँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?इस सूचि को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है।इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरणवाला पाया था?
बेदाग़ आचरण
ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे- इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे-‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैग़मम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्राड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते तो आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।1इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देनेवाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता या अनैतिकता पाते?

stolen heart
12-08-2012, 01:59 PM
इस्लाम: नारी-उद्धारक
इसलाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता है कि उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आज़ादी दिलाई। सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन ने कहा है-‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’
स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार
अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक क़ानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैग़म्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चूके थे-‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’‘‘ इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’अध्याय .3विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन)
सुनहरे साधन
इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवसथा से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहाँ तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इंसान के आचार व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़सर मेसिंगनन के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्मान का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान में रखता है।’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, ज़ख़ीरा अन्दोज़ी ;भ्वंतकपदहद्ध बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोशित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमख़ाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया । कहा जाता है कि यतीमख़ानों की स्थापना का आरम्भ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमख़ानों की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद यतीम था। कारलायल पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाइयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से उँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?इस सूचि को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है।इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरणवाला पाया था?
बेदाग़ आचरण
ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे- इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे-‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैग़मम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्राड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते तो आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।1इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देनेवाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता या अनैतिकता पाते?

stolen heart
12-08-2012, 02:00 PM
पैग़म्बर से अमर प्रेम
आरम्भिक काल के इसलाम स्वीकार करनेवालों के ऐतिहासिक किस्से पढ़िए तो इन बेक़ुसूर मर्दों और औरतों पर ढाए गए ग़ैर इंसानी अत्याचारों को देखकर कौन-सा दिल है जो रो न पड़ेगा? एक मासूम औरत सुमैया को बेरहमी के साथ बरछे मार-मार कर हलाक कर डाला गया। एक मिसाल यासिर की भी है, जिनकी टांगों को दो ऊटों से बाँध दिया गया और फिर उन ऊँटों को विपरित दिशा में हाँका गया। ख़ब्बाब बिन अरत को धधकते हुए कोयलों पर लिटाकर निर्दयी ज़ालिम उनके सीने पर खड़ा हो गया, ताकि वे हिल-डुल न सकें, यहाँ तक कि उनकी खाल जल गई और चर्बी पिघलकर निकल पड़ी। और ख़ब्बाब बिन अरत के गोश्त को निर्ममता से नोच-नोचकर तथा उनके अंग काट-काटकर उनकी हत्या की गई। इन यातनाओं के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या अब वे यह न चाहेंगे कि उनकी जगह पर पैग़म्बर मुहम्मद होते? (जो कि उस वक्त अपने घरवालों के साथ अपने घर में थे) तो पीड़ित खब्बाब ने ऊँचे स्वर में कहा कि पैग़म्बर मुहम्मद को एक कांटा चुभने की मामूली तकलीफ़ से बचाने के लिए भी वे अपनी जान, अपने बच्चों एवं परिवार, अपना सब कुछ कु़र्बान करने के लिए तैयार हैं। इस तरह के दिल दहलानेवाले बहुत-से वाक़िए पेश किए जा सकते हैं, लेकिन ये सब घटनाएँ आख़िर क्या सिद्ध करती हैं? ऐसा कैसे हो सका कि इस्लाम के इन बेटे और बेटियों ने अपने पैग़म्बर के प्रति केवल निष्ठा ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर, हृदय और आत्मा का नज़राना पैश किया? पैग़म्बर मुहम्मद के प्रति उनके निकटतम अनुयायियों की यह दृढ़ आस्था और विश्वास, क्या उस कार्य के प्रति, जो पैग़म्बर मुहम्मद के सुपुर्द किया गया था, उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता तथा तन्मयता का अत्यन्त उत्तम प्रमाण नहीं है?

stolen heart
12-08-2012, 02:01 PM
उच्च सामर्थ्*यवान अनुयायी
ध्यान रहे कि ये लोग न तो निचले दर्जे के लोग थे और न कम अक्लवाले। आपके मिशन के आरम्भिक काल में जो लोग आपके चारों ओर जमा हुए वे मक्का के श्रेठतम लोग थे,उसके फूल और मक्खन, ऊँचे दर्जे के, धनी और सभ्य लोग थे। इनमें आपके ख़ानदान और परिवार के क़रीबी लोग भी थे जो आपकी अन्दरूनी और बाहरी जिन्दगी से भली-भाँति परिचित थे। आरम्भ के चारों ख़लीफ़ा भी, जो कि महान व्यक्तित्व के मालिक हुए, इस्लाम के आरम्भिक काल ही में इस्लाम में दाख़िल हुए।

stolen heart
12-08-2012, 02:01 PM
इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ में उल्लिखित है-‘‘समस्त पैग़म्बरों और धर्मिक क्षेत्र के महान व्यक्तित्वों में मुहम्मद सबसे ज़्यादा सफल हुए हैं।’’लेकिन यह सफलता कोई आकस्मित चीज़ न थी। न ऐसा ही है कि यह आसमान से अचानक आ गिरी हो, बल्कि यह उस वास्तविकता का फल थी कि आपके समकालीन लोगों ने आपके व्यक्तित्व को साहसी और निष्कपट पाया। यह आपके प्रशंसनीय और अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्तित्व का फल था।अध्याय .4सत्यवादी (अस-सादिक़)

stolen heart
12-08-2012, 02:02 PM
मानव-जीवन के लिए उत्कृष्ट नमूनापैग़म्बर मुहम्मद के व्यक्तित्व की सभी यथार्थताओं को जान लेना बड़ा कठिन काम है। मैं तो उसकी बस कुछ झलकियाँ ही देख सका हूँ। आपके व्यक्तित्व के कैसे-कैसे मनभावन दृश्य निरन्तर नाटकीय प्रभाव के साथ सामने आते हैं। पैग़म्बर मुहम्मद कई हैसियत से हमारे सामने आते है- मुहम्मद--पैग्म्बर, मुहम्मद--जनरल,मुहम्मद--शासक, मुहम्मद--योद्धा, मुहम्मद--व्यापारी, मुहम्मद--उपदेशक, मुहम्मद--दार्शनिक, मुहम्मद--राजनीतिज्ञ, मुहम्मद --वक्ता, मुहम्मद --समाज-सुधारक, मुहम्मद--यतीमों के पोषक, मुहम्मद -- गुलामों के रक्षक, मुहम्मद -- स्त्री वर्ग का उद्धार करनेवाले और उनको बन्धनों से मुक्त करानेवाले, मुहम्मद--न्याय करनेवाले, मुहम्मद --सन्त। इन सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं और मानव-कार्य के क्षेत्रों में आपकी हैसियत समान रूप से एक महान नायक की है।अनाथ अवस्था अत्यन्त बेचारगी और असहाय स्थिति का दूसरा नाम है और इस संसार में आपके जीवन का आरम्भ इसी स्थिति से हुआ। राजसत्ता इस संसार में भौतिक शक्ति की चरम सीमा होती है। और आप शक्ति की यह चरम सीमा प्राप्त करके दुनिया से विदा हुए। आपके जीवन का आरम्भ एक यतीम बच्चे के रूप में होता है, फिर हम आपको एक सताए हुए मुहाजिर (शरणार्थी) के रूप में पाते हैं और आख़िर में हम यह देखते हैं कि आप एक पूरी क़ौम के दुनियावी और रूहानी पेशवा और उसकी क़िस्मत के मालिक हो गए हैं। आपके इस मार्ग में जिन आज़माइशों, प्रलोभनों, कठिनाइयों और परिवर्तनों, अन्धेरों और उजालों, भय और सम्मान, हालात के उतार-चढ़ाव आदि से गुज़रना पड़ा, उन सब में आप सफल रहे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपने एक आदर्श पुरुष की भूमिका निभाई। उसके लिए आपने दुनिया से लोहा लिया और पूर्ण रूप से विजयी हुए। आपके कारनामों का संबंध जीवन के किसी एक पहलू से नहीं है, बल्कि वे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।

stolen heart
12-08-2012, 02:03 PM
मुहम्मदः महानतम व्यक्तित्व
उदाहरणस्वरूप अगर महानता इस पर निर्भर करती है कि किसी ऐसी जाति का सुधार किया जाए जो सर्वथा बर्बरता और असभ्यता में ग्रस्त हो और नैतिक दृष्टि से वह अत्यन्त अन्धकार में डूबी हुई हो तो वह शक्शिाली व्यक्ति हज़रत मुहम्मद हैं, जिसने अत्यन्त पस्ती में गिरी हुई क़ौम को ऊँचा उठाया, उसे सभ्यता से सुसज्जित करके कुछ से कुछ कर दिया। उसने उसे दुनिया में ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश फैलानेवाली बना दिया। इस तरह आपका महान होना पूर्ण रूप से सिद्ध होता है। यदि महानता इसमें है कि किसी समाज के परस्पर विरोधी और बिखरे हुए तत्वों को भईचारे और दयाभाव के सूत्रों में बाँध दिया जाए तो मरुस्थल में जन्मे पैग़म्बर निस्संदेह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र हैं। यदि महानता उन लोगों का सुधार करने में है जो अन्धविश्वासों तथा इस प्रकार की हानिकारक प्रभाओं और आदतों में ग्रस्त हों तो पैग़म्बरे-इस्लाम ने लाखों लोगों को अन्धविश्वासों और बेबुनियाद भय से मुक्त किया। अगर महानता उच्च अरचरण पर आधारित होती है तो शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मुहम्मद साहब को ‘‘ अल-अमीन’’ और ‘‘अस-सादिक़’’ अर्थात विश्वसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है। अगर एक विजेता महानता का पात्र है तो आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अनाथ और असहाय और साधारण व्याक्ति की स्थिति से उभरे और ख़ुसरो और क़ैसर की तरह अरब उपमहाद्वीप के स्वतंत्र शासक बने। आपने एक ऐसा महान राज्य स्थापित किया जो चौदह सदियों की लम्बी मुद्दत गुज़रने के बावजूद आज भी मौजूद है। और अगर महानता का पैमाना वह समर्पण है जो किसी नायक को उसके अनुयायियों से प्राप्त होता है तो आज भी सारे संसार में फैली करोडों आत्मओं को मुहम्मद का नाम जादू की तरह सम्*मोहित करता है।

stolen heart
12-08-2012, 02:03 PM
निरक्षर ईशदूत
हज़रत मुहम्मद ने एथेन्स, रोम, ईरान, भारत या चीन के ज्ञान-केन्द्रों से दर्शन का ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, लेकिन आपने मानवता को चिरस्थायी महत्व की उच्चतम सच्चाइयों से परिचित कराया। वे निरक्षर थे, लेकिन उनको ऐसे भाव पूर्ण और उत्साहपूर्ण भाषण करने की योग्यता प्राप्त थी कि लोग भाव-विभोर हो एठते और उनकी आँखों से आँसू फूट पड़ते। वे अनाथ थे और घनहीन भी, लेकिन जन-जन के हृदय में उनके प्रति प्रेमभाव था। उन्होंने किसी सैन्य अकादमी से शिक्षा ग्रहण नही की थी,लेकिन फिर भी उन्*होंने भयंकर कठिनाइयों और रुकावटों के बावजूद सैन्य शक्ति जुटाई और अपनी आत्मशक्ति के बल पर, जिसमें आप अग्रणी थे, कितनी ही विजय प्राप्त कीं। कुशलतापूर्ण धर्म-प्रचार करनेवाले ईश्वर प्रदत्त योग्यताओं के लोग कम ही मिलते हैं। डेकार्ड के अनुसार, ‘‘आदर्श उपदेशक संसार के दुर्लभतम प्राणियों में से है।’’ हिटलर ने भी अपनी पुस्तक "Mein Kamp" (मेरी जीवनगाथा) में इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। वह लिखता है-‘‘महान सिद्धान्तशास्त्री कभी-कभार ही महान नेता होता है। इसके विपरीत एक आन्दोलनकारी व्यक्ति में नेतृत्व की योग्यताएँ अधिक होती हैं। वह हमेशा एक बेहतर नेता होगा, क्*योंकि नेतृत्व का अर्थ होता है, अवाम को प्रभावित एवं संचालित करने की क्षमता। जन-नेतृत्व की क्षमता का नया विचार देने की योग्यता से कोई सम्बंध नहीं है।’’लेकिन वह आगे कहता है-‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’पैग़म्बरे-इस्लाम मुहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है।इससे अधिक विस्मयकारी है वह टिप्पणी, जो बास्वर्थ स्मिथ ने की है-‘‘ वे जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और क़ेसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीज़र (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडम्बर से मुक्त। और वे ऐसे क़ेसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे, राजस्व-प्राप्ति की विशिष्ट व्यवस्था। यदि कोई व्यक्ति यह कहने का अधिकारी है कि उसने दैवी अधिकार से राज किया तो वे मुहम्मद ही हो सकते हैं, क्योंकि उन्*हें बाह्य साधनों और सहायक चीजों के बिना ही राज करने की शक्ति प्राप्त थी। आपको इसकी परवाह नहीं थी कि जो शक्ति आपको प्राप्त थी उसके प्रदर्शन के लिए कोई आयोजन करें। आपके निजी जीवन में जो सादगी थी, वही सादगी आपके सार्वजनिक जीवन में भी पाई जाती थी।’’

stolen heart
12-08-2012, 02:04 PM
मुहम्मद (सल्ल.) : अपना काम स्वयं करने वाले
मक्का पर विजय के बाद 10 लाख वर्गमील से अधिक ज़मीन हज़रत मुहम्मद के क़दमों तले थी। आप पूरे अरब के मालिक थे, लेकिन फिर भी आप मोटे-झोटे वस्त्र पहनते, वस्त्रों और जूतों की मरम्मत स्वयं करते, बकरियाँ दूहते, घर में झाडू़ लगाते, आग जलाते और घर-परिवार का छोटे-से-छोटा काम भी ख़ुद कर लेते। इस्लाम के पैग़म्बर के जीवन के आख़िरी दिनों में पूरा मदीना धनवान हो चुका था। हर जगह दौलत की बहुतात थी, लेकिन इसके बावजूद ‘अरब के इस सम्राट’ के घर के चूल्हे में कई-कई हफ़्ते तक आग न जलती थी और खजूरों और पानी पर गुज़ारा होता था। आपके घरवालों की लगातार कई-कई रातें भूखे पेट गुज़र जातीं, क्योंकि उनके पास शाम को खाने के लिए कुछ भी न होता। तमाम दिन व्यस्त रहने के बाद रात को आप नर्म बिस्तर पर नहीं, खजूर की चटाई पर सोते। अकसर ऐसा होता कि आपकी आँखों से आँसू बह रहे होते और आप अपने से्रष्टा से दुआएँ कर रहे होते कि वह आपको ऐसी शक्ति दे कि आप अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकें। रिवायतों से मालूम होता है कि रोते-रोते आपकी आवाज़ रुँध जाती थी और ऐसा लगता जैसे कोई बर्तन आग पर रखा हुआ हो और उसमें पानी उबलने लगा हो । आपके देहान्त के दिन आपकी कुल पूँजी कुछ थोड़े से सिक्के थे, जिनका एक भाग क़र्ज़ की अदायगी में काम आया और बाक़ी एक ज़रूरतमंद को दे दिया गया, जो आपके घर दान माँगने आ गया था। जिन वस्त्रों में आपने अंतिम साँस लिए उनमें अनेक पैवन्द लगे हुए थे। वह घर जिससे पूरी दुनिया में रोशनी फैली, वह ज़ाहिरी तौर पर अन्धेरों में डूबा हुआ था, क्योकि चिराग़ जलाने के लिए घर में तेल न था।

stolen heart
12-08-2012, 02:05 PM
अनुकूल-प्रतिकूल : प्रत्येक परिस्थिति में एक समान
परिस्थितियाँ बदल गई, लेकिन ख़ुदा का पैग़म्बर नहीं बदला। जीत हुई हो या हार, सत्ता प्राप्त हुई हो या इसके विपरीत की स्थिति हो, ख़ुशहाली रही हो या ग़रीबी, प्रत्येक दशा में आप एक-से रहे, कभी आपके उच्च चरित्र में अन्तर न आया। ख़ुदा के मार्ग और उसके क़ानूनों की तरह ख़ुदा के पॅग़म्बर में भी कभी कोई तब्दीली नहीं आया करती।अध्याय .5संसार के लिए एक सम्पूर्ण विरासत

stolen heart
12-08-2012, 02:05 PM
सत्*यवादी से भी अधिक
एक कहावत है- ईमानदार व्यक्ति ख़ुदा का है। मुहम्मद तो ईमानदार से भी बढ़कर थे। उनके अंग-अंग में महानता रची-बसी थी। मानव-सहानुभूति और प्रेम उनकी आत्मा का संगीत था। मानव-सेवा, उसका उत्थान, उसकी आत्मा को विकसित करना, उसे शिक्षित करना सारांश यह कि मानव को मानव बनाना उनका मिशन था। उनका जीना, उनका मरना सब कुछ इसी एक लक्ष्य को अर्पित था। उनके आचार-विचार, वचन और कर्म का एक मात्र दिशा निर्देशक सिद्धान्त एवं प्रेरणा स्रोत मानवता की भलाई था।आप अत्यन्त विनीत, हर आडम्बर से मुक्त तथा एक आदर्श निस्स्वार्थी थे। आपने अपने लिए कौन-कौन सी उपाधियाँ चुनीं? केवल दो-अल्लाह का बन्दा और उसका पैग़म्बर, और बन्दा पहले फिर मैग़म्बर। आप (सल्ल.) वैसे ही पैग़म्बर और संदेशवाहक थे, जैसे संसार के हर भाग में दूसरे बहुत-से पैग़म्बर गुज़र चके हैं। जिनमें से कुछ को हम जानते है और बहुतों को नहीं। अगर इन सच्चाइयों में से किसी एक से भी ईमान उठ जाए तो आदमी मुसलमान नहीं रहता। यह तमाम मुसलमानों का बुनियादी अक़ीदा है।एक यूरोपीय विचारक का कथन है-‘‘ उस समय की परिस्थितियां तथा उनके अनुयायियों की उनके प्रति असीम श्रद्धा को देखते हुए पैग़म्बर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कभी भी मोजज़े (चमत्कार) दिखा सकने का दावा नहीं किया।’’पैग़म्बरे-इस्लाम से कई चमत्कार ज़ाहिर हुए, लेकिन उन चमत्कारें का प्रयोजन धर्म प्रचार न था। उनका श्रेय आपने स्वयं न लेकर पूर्णतः अल्लाह को और उसके उन अलौकिक तरीक़ों को दिया जो मानव के लिए रहस्यमय हैं। आप स्पष्ट शब्दों में कहते थे कि वे भी दूसरे इंसानों की तरह ही एक इंसान हैं। आप ज़मीन व आसमानों के ख़ज़ानों के मालिक नहीं। आपने कभी यह दावा भी नहीं किया कि भ्विष्य के गर्भ में क्या कुछ रहस्य छुपे हुए हैं। यह सब कुछ उस काल में हुआ जब कि आश्चर्यजनक चमत्कार दिखाना साधू सन्तों के लिए मामूली बात समझी जाती थी और जबकि अरब हो या अन्य देश पूरा वातावरण ग़ैबी और अलौकिक सिद्धियों के चक्कर में ग्रस्त था।आपने अपने अनुयायियों का ध्यान प्रकृति और उनके नियमों के अध्ययन की ओर फेर दिया। ताकि उनको समझें और अल्लाह की महानता का गुणगान करें।कु़रआन कहता है-‘‘ और हमने आकाशों व धरती को और जो कुछ उनके बीच है, कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया। हमने इन्हें बस हक़ के साथ (सोद्देश्य) पैदा किया, परन्तु इनमें अधिकतर लोग (इस बात को ) जानते नहीं।’’(क़ुरआन 44:38.39)

stolen heart
12-08-2012, 02:05 PM
विज्ञान : मुहम्मद (सल्ल.) की विरासत
यह जगत् न कोई भ्रम है और न उद्देश्य-रहित। बल्कि इसे सत्य और हक़ के साथ पैदा किया गया है। क़ुरआन की उन आयतों की संख्या जिनमें प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की दावत दी गई है, उन सब आयतों से कई गुना अधिक है जो नमाज़, रोज़ा, हज आदि आदेशों से संबंधित हैं। इन आयतों का असर लेकर मुसलमानों ने प्रकृति का निकट से निरीक्षण करना आरम्भ किया। जिसने निरीक्षण और परीक्षण एवं प्रयोग के लिए ऐसी वैज्ञानिक मनोवृति को जन्म दिया, जिससे यूनानी भी अनभिज्ञ थे। मुस्लिम वनस्पतिशास्त्री इब्ने-बेतार ने संसार के सभी भू-भागों से पौधे एकत्र करके वनस्पतिशास्त्र पर वह पुस्तक लिखी, जिसे मेयर ;डंलमतद्धने अपनी पुस्तक, श्ळमेबी कमत ठवजंदपांश् में ‘कड़े श्रम की पुरातननिधि’ की संज्ञा दी है। अल्बेरूनी ने चालीस वर्षों तक यात्रा करके खनिज पदार्थों के नमूने एकत्र किए तथा अनेक मुस्लिम खगोलशात्री 12वर्षों से भी अधिक अवधि तक निरीक्षण और परीक्षण में लगे रहे, जबकि अरस्तू ने एक भी वैज्ञानिक परीक्षण किए बिना भौतिकशास्त्र पर क़लम एठाई और भौतिकशास्त्र का इतिहास लिखते समय उसकी लापरवाही का यह हाल है कि उसने लिख दिया कि ‘इंसान के दांत जानवर से ज़्यादा होते हैं’ लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए कोई तकलीफ़ नहीं एठाई, हालाँकि यह कोई मुश्किल काम न था।

stolen heart
12-08-2012, 02:06 PM
पाश्चात्य देशों पर अरबों का ऋण
शरीर रचनाशास्त्र के महान ज्ञाता गैलेन ने बताया है कि इंसान के निचले जबड़े में दो हड्डियाँ होती हैं, इस कथन को सदियों तक बिना चुनौती असंदिग्ध रूप से स्वीकार किया जाता रहा, यहाँ तक कि एक मुस्लिम विद्वान अब्दुल लतीफ़ ने एक मानवीय कंकाल का स्वयं निरीक्षण करके सही बात से दुनिया को अवगत कराया। इस प्रकार की अनेक घटनाओं को उद्धृत करते हुए राबर्ट ब्रीफ्फालट अपनी प्रसिद्ध मुस्तक Ther making of humanity (मानवता का सर्जनऋ में अपने उद् गार इन शब्दों में व्यक्त करता है-‘‘हमारे विज्ञान पर अरबों का एहसान केवल उनकी आश्चर्यजनक खोजों या क्रांतिकारी सिद्धांतों एवं परिकल्पनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि विज्ञान पर अरब सभ्यता का इससे कहीं अधिक उपकार है, और वह है स्वयं विज्ञान का अस्तित्व।’’यही लेखक लिखता है-‘‘यूनानियों ने वैज्ञानिक कल्पनाओं को व्यवस्थित किया, उन्हें समान्य नियम का रूप दिया और उन्हें सिद्धांतबद्ध किया, लेकिन जहाँ तक खोजबीन करने के धैर्यपूर्ण तरीक़ों को पता लगाने, निश्चयात्मक एवं स्वीकारात्मक तथ्यों को एकत्र करने, वैज्ञानिक अध्ययन के सूक्ष्म तरीक़े निर्धारित करने, व्यापक एवं दीर्घकालिक अवलोकन व निरीक्षण करने तथा परीक्षणात्मक अन्वेषण करने का प्रश्न है, ये सारी विशिष्टिताएँ यूनानी मिज़ाज के लिए बिल्कुल अजनबी थीं। जिसे आज विज्ञान कहते हैं, जो खोजबीन की नई विधियों, परीक्षण के तरीकों , अवलोकन व निरिक्षण की पद्धति, नाप-तौल के तरीक़ों तथा गणित के विकास के परिणामस्वरूप यूरोप में उभरा, उसके इस रूप से यूनानी बिल्कुल बेख़बर थे। यूरोपीय जगत् को इन विधियों और इस वैज्ञानिक प्रवृति से अरबों ही ने परिचित कराया।’’

stolen heart
12-08-2012, 02:06 PM
इस्लामः एक सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था
पैग़म्बर मुहम्मद की शिक्षाओं का ही यह व्यावहारिक गुण है, जिसने वैज्ञानिक प्रवृति को जन्म दिया। इन्हीं शिक्षाओं ने नित्य के काम-काज और उन कामों को भी जो सांसारिक काम कहलाते हैं आदर और पवित्रता प्रदान की। क़ुरआन कहता है कि इंसान को ख़ुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (उपासना) की उसकी अपनी अलग परिभाषा है। ख़ुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अन्तर्गत आता है। इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे संबंध सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित किया है। शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनियत के साथ किया जाए। पवित्र और अपवित्र के बीच चले आ रहे अनुचित भेद को मिटा दिया। क़ुरआन कहता है कि अगर तुम पवित्र और स्वच्छ भोजन खाकर अल्लाह का आभार स्वीकार करो तो यह भी इबादत है। पैग़बरे- इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को खाने का एक लुक्मा खिलाता है तो यह भी नेकी और भलाई का काम है और अल्लाह के यहाँ वह इसका अच्छा बदला पाएगा। पैग़म्बर का एक और कथन है-‘‘अगर कोई व्यक्ति अपनी कामना और ख्वाहिश को पूरा करता है तो उसका भी उसे सवाब (पुण्य) मिलेगा। शर्त यह है कि वह इसके लिए वही तरीक़ा अपनाए जो जायज़ हो।’’एक साहब, जो आपकी बात सुन रहे थे, आश्चर्य से बोले-‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, वह तो केवल अपनी इच्छाओं और अपने मन की कामनाओं को पूरा करता है।’’आपने उत्तर दिया-‘‘यदि उसने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अवैध तरीक़ों को अपनाया होता तो उसे इसकी सज़ा मिलती, तो फिर जायज़ तरीक़ा अपनाने पर उसे इनाम क्यों नहीं मिलना चाहिए?’’

stolen heart
12-08-2012, 02:07 PM
व्यावहारिक शिक्षाएँ
धर्म की इस नई धारणा ने कि धर्म का विषय पूर्णतः अलौकिक जगत् के मामलों तक सीमित न रहना चाहिए, बल्कि इसे लौकिक जीवन के उत्थान पर भी ध्यान देना चाहिए,नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र के नए मूल्यों एवं नई मान्यताओं को नई दिशा दी। इसने दैनिक जीवन में लोगों के सामान्य आपसी संबंधों पर स्थाई प्रभाव डाला। इसने जनता के लिए गहरी शक्ति का काम किया। इसके अतिरिक्त लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों की धारणाओं को सुव्यवस्थित करना और इसका अनपढ़ लोगांे और बुद्धिमान दार्शनिकों के लिए समान रूप से ग्रहण करने और व्यवहार में लाने के योग्य होना पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
सत्कर्म पर आधारित सुद्ध धारणायहाँ यह बात सर्तकता के साथ दिमाग़ में आ जानी चाहिए कि भले कामों पर ज़ोर देने का अर्थ यह नहीं है कि इसके लिए धार्मिक आस्थाओं की पवित्रता एवं शुद्धता को क़ुर्बान किया गया है। ऐसी बहुत-सी विचारधाराएँ हैं, जिनमें या तो व्यावहारिकता के तहत्व की बलि देकर आस्थाओं ही को सर्वोपरि माना गया है या फिर धर्म की शुद्ध धारणा एवं आस्था की परवाह न करके केवल कर्म को ही महत्व दिया गया है। इनके विपरीत इस्लाम सत्य, आस्था एवं सत्कर्म के नियम पर आधरित है। यहाँ साधन भी उतना ही महत्व रखते हैं जितना लक्ष्य। लक्ष्यों को भी वही महत्ता प्राप्त है जो साधनों को प्राप्त है। यह एक जैव इकाई की तरह है। इसके जीवन और विकास का रहस्य इनके आपस में जुड़े रहने में निहित है। अगर ये एक-दूसरे से अलग होते हैं तो ये क्षीण और विनष्ट होकर रहेंगे। इस्लाम में ईमान और अमल को अलग- अलग नहीं किया जा सकता। सत्य- ज्ञान को सत्कर्म में ढल जाना चाहिए, ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सकें। ‘‘जो लाग ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, केवल वे ही स्वर्ग में जा सकेंगे।’’ यह बात कु़रआन में कितनी बार दोहराई गई है? इस बात को पचास बार से कम नहीं दोहराया गया है। सोच विचार और ध्यान पर उभारा अवश्य गया है, लेकिन मात्र ध्यान और सोच-विचार ही लक्ष्य नहीं है। जो लाग केवल ईमान रखें, लेकिन उसके अनुसार कर्म न करें, उनका इस्लाम में कोई मुक़ाम नही है। जो ईमान तो रखें लेकिन कुकर्म भी करें, उनका ईमान क्षीण है। इश्वरीय क़नून मात्र विचार-पद्धति नहीं, बल्कि वह एक कर्म और प्रयास का क़ानून है। यह दीन (धर्म) लोगों के लिए ज्ञान से कर्म और कर्म से परितोष द्वारा स्थायी एवं शाश्वत उन्नति का मार्ग दिखलाता है

stolen heart
12-08-2012, 02:08 PM
ईश्वर : उस जैसा और कोई नहीं
लेकिन वह सच्चा ईमान क्या है, जिससे सत्कर्म का आविर्भव होता है, जिसके फलस्वरूप पूर्ण परितोष प्राप्त होता है? इस्लाम का बुनियादी सिद्धांत एकेश्वरवाद है। ‘पूज्य प्रभु बस एक ही है, उसके अतिरिक्त कोई पूजय प्रभु नहीं’ इस्लाम का मूल मंत्र है। इस्लाम की तमाम शिक्षाएँ और कर्म इसी से जुड़े हुए हैं। वह केवल अपने अलौकिक व्यक्तित्व के कारण ही अद्वितीय नहीं बल्कि अपने दिव्य एवं अलौकिक गुणों एवं क्षमताओं की दृष्टि से भी अनन्य और बेजोड़ है।जहाँ तक ईश्वर के गुणों का संबंध है, दूसरी चीज़ों की तरह यहाँ भी इस्लाम के सिद्धांत अत्यन्त सुनहरे हैं। यह धारणा एक तरफ़ ईश्वर के गुणों से रहित होने की कल्पना को अस्वीकार करती है तो दूसरी तरफ़ इस्लाम उन चीज़ों को ग़लत ठहराता है जिनसे ईश्वर के उन गुणों का आभास होता है जो सर्वथा भैतिक गुण होते हैं। एक ओर कु़रआन यह कहता है कि उस जैसा कोई नहीं, तो दूसरी ओर वह इस बात की भी पुष्टि करता है कि वह देखता, सुनता और जानता है। वह ऐसा सम्राट है जिससे तनिक भी भूल-चूक नहीं हो सकती। उसकी शक्ति का प्रभावशली जहाज़ न्याय एवं समानता के सागर पर तैरता है। वह अत्यन्त कृपाशील एवं दयावान है, वह सबका रक्षक है। इस्लाम इस स्वीकारात्मक रूप के प्रस्तुत करने पर ही बस नहीं करता , बल्कि वह समस्या के नकारात्मक पहलू को भी सामने लाता है, जो उसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण विशिष्टता है। उसके अतिरिक्त कोई नहीं जो सबका रक्षक हो। वह हर टूटे को जोड़नेवाला है, उसके अलावा कोई नहीं जो टूटे हुए को जोड़ सके। वही हर प्रकार की क्षतिपूर्ति करनेवाला है। उसके सिवा कोई और उपास्य नहीं। वह हर प्रकार की अपेक्षाओं से परे है। उसी ने शरीर की रचना की, वही आत्माओं का स्रष्टा है। वही न्याय (क़ियामत) के दिन का मालिक है। सारांश यह कि कु़रआन के अनुसार सारे श्रेष्ठ एवं महान गुण उसमें पाए जाते हैं।

stolen heart
12-08-2012, 02:08 PM
ब्रह्मांड में मनुष्य की हैसियत
ब्रह्मांड में मनुष्य की जो हैसियत है, उसके विषय में कु़रआन कहता है-‘‘वह अल्लाह ही है जिसने समुद्र को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें, और ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो और इसलिए कि तुम कृतज्ञता दिखाओ। जो चीज़ें आकाशों में हैं और जो धरती में हैं, उस (अल्लाह) ने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है।’’ (कु़रआन, 45:12.13)लेकिन ख़ुदा के संबंध में क़ुरआन कहता है-‘‘ऐ लोगो, ख़ुदा ने तुमको उत्कृष्ट क्षमताएँ प्रदान की हैं। उसने जीवन बनाया और मृत्यू बनाई, ताकि तुमहारी परीक्षा की जा सके कि कौन सुकर्म करता है और कौन सही रास्ते से भटकता है।’’इसके बावजूद कि इंसान एक सीमा तक अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र है, वह विशेष वातावरण और परिस्थतियों तथा क्षमताओं के बीच घिरा हुआ भी है। इंसान अपना जीवन उन निश्चित सीमाओं के अन्दर व्यतीत करने के लिए बाध्य है, जिनपर उसका अपना कोई अधिकार नहीं है। इस संबंध में इस्लाम के अनुसार ख़ुदा कहता है कि मैं अपनी इच्छा के अनुसार इंसान को उन परिस्थितियों में पैदा करता हूँ, जिनको मैं उचित समझता हूँ। असीम ब्रह्मांड की स्कीमों को नश्वर मानव पूरी तरह नही समझ सकता। लेकिन मैं निश्चय ही सुख में और दुख में, तन्दुरुस्ती और बीमारी में, उन्नति और अवनति में तुम्हारी परीक्षा करूँगा। मेरी परीक्षा के तरीक़े हर मनुष्य और हर समय और युग के लिए विभिन्न हो सकते हैं। अतः मुसीबत में निराश न हो और नाजायज़ तरीक़ों व साधनों का सहारा न लो। यह तो गुज़र जानेवाली स्थिति है। ख़ुशहाली में ख़ुदा को भूल न जाओ। ख़ुदा के उपहार तो तुम्हें मात्र अमानत के रूप में मिले हैं। तुम हर समय व हर क्षण परीक्षा में हो। जीवन के इस चक्र व प्रणाली के संबंध में तुम्हारा काम यह नही कि किसी दुविधा में पड़ो, बल्कि तुम्हारा कर्तव्य तो यह है कि मरते दम तक कर्म करते रहो। यदि तुमको जीवन मिला है तो ख़ुदा की इच्छा के अनुसार जियो और मरते हो तो तुम्हारा यह मरना ख़ुदा की राह में हो। तुम इसको नियति कह सकते हो, लेकिन इस प्रकार की नियति तो ऐसी शक्ति और ऐसे प्राणदायक सतत प्रयास का नाम है जो तुम्हें सदैव सतर्क रखता है। इस संसार में प्राप्त अस्थायी जीवन भी है जो सदैव बाक़ी रखने वाला है। इस जीवन के बाद आनेवाला जीवन वह द्वार है जिसके खुलने पर जीवन के अदृश्य तथ्य प्रकट हो जाएँगे। इस जीवन का हर कार्य, चाहे वह कितना ही मामूली क्यों न हो, इसका प्रभाव सदा बाक़ी रहनेवाला होता है। वह ठीक तौर पर अभिलिखित या अंकित हो जाता है।सावधान !

stolen heart
12-08-2012, 02:08 PM
यह जीवन परलोक की तैयारी है
ख़ुदा की कुछ कार्य-पद्धति को तो तुम समझते हो लेकिन बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ से दूर और नज़र से ओझल हैं। ख़ुद तुम में जो चीजें छिपी हुई हैं और संसार की जो चीज़ें तुमसे छिपी हुई हैं वे दूसरी दुनिया में बिल्कुल तुम्हारे सामने खोल दी जाएँगी। सदाचारी और नेक लोगों को ख़ुदा का वह वरदान प्राप्त होगा जिसको न आँख ने देखा, न कान ने सुना और न मन कभी उसकी कल्पना कर सका। उसके प्रसाद और उसके वरदान क्रमशः बढ़ते जाएँगे और उसको अधिकाधिक उन्नति प्राप्त होती रहेगी। लेकिन जिन्होंने इस जीवन में मिले अवसर को खेा दिया वे उस अनिवार्य क़ानून की पकड़ में आ जाएँगे, जिसके अन्तर्गत मनुष्य को अपने करतूतों का मज़ा चखना पढ़ेगा। उनको उन आत्मिक रोगों के कारण, जिनमें उन्होंने ख़ुद अपने आपको ग्रस्त किया होगा, उनको इलाज के एक मरहले से गुज़रना होगा। सावधन हो जाओ। बड़ी कठोर व भयानक सज़ा है। शारीरिक पीड़ा तो ऐसी यातना है, उसको तुम किसी तरह झेल भी सकते हो, लेकिन आत्मिक पीड़ा तो जहन्नम (नरक) है जो तुम्हारे लिए असहनीय होगी। अतः इसी जीवन में अपनी उन मनोवृत्तियों का मुक़ाबला करे, जिनका झुकाव गुनाह की ओर रहता है और वे तुम्हें पापाचार की ओर प्रेरित करती हैं। तुम उस अवस्था को प्राप्त करो, जबकि अन्तरात्मा जागृत हो जाए और महान नैतिक गुण प्राप्त करने के लिए विकल हो उठे और अवज्ञा के अवरुद्ध विद्रोह करे। यह तुम्हें आत्मिक शान्ति की आख़िरी मंज़िल तक पहुँचाएगा। यानी अल्लाह की रिज़ा हासिल करने की मंज़िल तक। और केवल अल्लाह की रिज़ा ही में आत्मा का अपना आनन्द भी निहित है। इस स्थिति में आत्मा के विचलित होने की संभावना न होगी, संघर्ष का दौर गुज़र चुका होगा, सत्य ही विजयी हेाता है और झूठ अपना हथियार डाल देता है। उस समय सारी उलझनें दूर हो जाएँगी। तुम्हारा मन दुविधा में नहीं रहेगा, तुम्हारा व्यक्तित्व अल्लाह और उसकी इच्छाओं के प्रति सम्पूर्ण भाव के साथ पूर्णतः संगठित व एकीकृत हो जाएगा। तब सारी छुपी हुई शक्तिया एवं क्षमताएँ पूर्णतः स्वतंत्र हो जाएँगी और आत्मा को पूर्ण शान्ति प्राप्त होगी, तब ख़ुदा तुम से कहेगा-‘‘ऐ सन्तुष्ट आत्मा, तू अपने रब से पूरे तौर पर राज़ी हुई, तू अब अपने रब की ओर लौट चल, तू उससे राज़ी है और वह तुझसे राज़ी है। अब तू मेरे (प्रिय) बन्दों में शामिल हो जा और मेरी जन्नत में दाख़िल हो जा।’’ (क़ुरआन, 89:27.30)

stolen heart
12-08-2012, 02:09 PM
मनुष्य का परम लक्ष्य
यह है इस्लाम की दृष्टि में मनुष्य का परम लक्ष्य कि एक ओर तो वह इस जगत् को वशीभूत करने की कोशिश में लगे और दूसरी ओर उसकी आत्मा अल्लाह की रिज़ा में चैन तलाश करे। केवल ख़ुदा ही उससे राजी न हो, बल्कि वह भी ख़ुदा से राजी और सन्तुष्ट हो। इसके फलस्वरूप उसको मिलेगा चैन और पूर्ण चैन,परितोष और पूर्ण परितोष, शान्ति और पूर्ण शान्ति। इस अवस्था में ख़ुदा का प्रेम उसका आहार बन जाता है और वह जीवन-स्रोत से जी भर पीकर अपनी प्यास को बुझाता है। फिर न तो दुख और निराशा उसको पराजित एवं वशीभूत कर पाती है और न सफलताओं में वह इतराता और आपे से बाहर होता है।थॉमस कारलायल इस जीवन-दर्शन से प्रभावित होकर लिखता है-‘‘और फिर इस्लाम की भी यही माँग है- हमें अपने को अल्लाह के प्रति समर्पित कर देना चाहिए, हमारी सारी शक्ति उसके प्रति समर्पण में निहित है। वह हमारे साथ जो कुछ करता है, हमें जो कुछ भी भेजता है, चाहे वह मौत ही क्यों न हो या उससे भी बुरी कोई चीज़,वह वस्तुतः हमारे भले की और हमारे लिए उत्तम ही होगी। इस प्रकार हम ख़ुद को ख़ुदा की रिज़ा के प्रति समर्पित कर देते हैं।’’लेखक आगे चलकर गोयटे का एक प्रश्न उद्धृत करता है, ‘‘गायटे पूछता है, यदि यही इस्लाम है तो क्या हम सब इस्लामी जीवन व्यतीत नहीं कर रहे हैं?’’ इसके उत्तर में कारलायल लिखता है-‘‘ हाँ, हममें से वे सब जो नैतिक व सदाचारी जीवन व्यतीत करते हैं वे सभी इस्लाम में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह तो अन्ततः वह सर्वोच्च ज्ञान एवं प्रज्ञा है जो आकाश से इस धरती पर उतारी गयी है।’’

stolen heart
12-08-2012, 02:10 PM
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) :प्रसिद्ध व्यक्तित्व‘‘
यदि उद्देश्य की महानता, साधनों का अभाव और शानदार परिणाम- मानवीय बुद्धिमत्ता और विवेक की तीन कसौटियाँ हैं, तो आधुनिक इतिहास में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के मुक़ाबले में कौन आ सकेगा? विश्व के महानतम एवं प्रसिद्धतम व्यक्तियों ने शस्त्रास्त्र,क़ानून और शसन के मैदान में कारनामे अंजाम दिए। उन्होंने भौतिक शक्तियों को जन्म दिया, जो प्रायः उनकी आँखों के सामने ही बिखर गईं। लकिन हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने न केवल फ़ौज, क़ानून, शासन और राज्य को अस्तित्व प्रदान किया, बल्कि तत्कालीन विश्व की एक इतिहास जनसंख्या के मन को भी छू लिया। साथ ही, आप (सल्ल.) ने कर्मकांडों, वादों, धर्मों, पंथों, विचारों, आस्थाओं इत्यादि में अमूल परिवर्तन कर दिया।इस एक मात्र पुस्तक (पवित्र क़ुरआन) ने, जिसका एक-एक अक्षर क़ानूनी हैसियत प्राप्त कर चुका है, हर भाषा, रंग, नस्ल और प्रजाति के लोगों को देखते-देखते एकीकृत कर दिया, जिससे एक अभूतपूर्व अखिल विश्व आध्यात्मिक नागरिकता का निर्माण हुआ। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा एकेश्वरवाद की चामत्कारिक घोषणा के साथ ही विभिन्न काल्पनिक तथा मनघड़न्त आस्थाओं, मतों, पंथों, धारमिक मान्यताओं, अंधविश्वासों एवं रिति-रिवाजों की जड़ें कट गईं। उनकी अनन्त उपासनाएँ, ईश्वर से उनकी आध्यात्मिक वार्ताएँ, लौकिक और पारलौकिक जीवन की सफलता- ये चीज़ें न केवल हर प्रकार के पाखण्डों का खण्डन करती हैं, बल्कि लोगों के अन्दर एक दृढ़ विश्वास भी पैदा करती हैं, उन्हें एक शाश्वत धार्मिक सिद्धान्त क़ायम करने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। यह सिद्धान्त द्विपक्षीय है। एक पक्ष है ‘एकेश्वरवाद’ का और दूसरा है ‘ईश्वर के निराकार’ होने का। पहला पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या है?’ और दूसरा पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या नही है?’दार्शनिक ,वक्ता, धर्मप्रचाक, विधि-निर्माता, योद्धा, विचारों को जीतनेवाला, युक्तिसंगत आस्थाओं के पुनरोद्धारक, निराकार (बिना किसी प्रतिमा) की उपासना, बीस बड़ी सल्तनतों और एक आध्यात्मिक सत्ता के निर्माता एवं प्रतिष्ठाता वही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) हैं, जिनके द्वारा स्थापित मानदण्डों से मानव-चरित्र की ऊँचाई और महानता को मापा जा सकता है। यहाँ हम यह पूछ सकते हैं कि क्या हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से बढ़कर भी कोई महामानव है? ’’