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View Full Version : प्यार बनाम परम्परा


Dr. Rakesh Srivastava
03-09-2012, 09:01 AM
मुझको हर हाल में पाने की फ़िक्र है तुमको ;
अपने माँ - बाप , घराने की फ़िक्र है हमको .

जो मैं उनकी न हुई , तेरी क्या हो पाऊँगी ;
तुमको एहसास कराने की फ़िक्र है हमको .

हमारी ख़्वाहिशों को फ़र्ज़ जो समझे अब तक ;
उनका हक़ बनता है , उनकी भी फ़िक्र हो हमको .

न तिलमिलाये रवायत न असल प्यार घुटे ;
लोच दोनों में ही लाने की फ़िक्र है हमको .

कुल मिलाकर रवायतें हैं बेहतरी के लिये ;
इनसे तावीज़ बँधाने की फ़िक्र है हमको .

अदब में उनके लम्बा वक़्त गुज़ारें तन्हा ;
उनको महसूस तो हो , उनकी फ़िक्र है हमको .

दौर की माँग ग़र सलीके से हम पेश करें ;
उनके दिल बोलेंगे - " बच्चों की फ़िक्र है हमको ."

रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

Dark Saint Alaick
03-09-2012, 11:57 AM
कुल मिलाकर रवायतें हैं बेहतरी के लिये ;
इनसे तावीज़ बँधाने की फ़िक्र है हमको .


रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .


एकदम नवीन प्रतीक और बिम्बों के इस इस्तेमाल के लिए आप बधाई के पात्र हैं !

hitler
03-09-2012, 10:15 PM
मुझको हर हाल में पाने की फ़िक्र है तुमको ;
अपने माँ - बाप , घराने की फ़िक्र है हमको .

जो मैं उनकी न हुई , तेरी क्या हो पाऊँगी ;
तुमको एहसास कराने की फ़िक्र है हमको .

हमारी ख़्वाहिशों को फ़र्ज़ जो समझे अब तक ;
उनका हक़ बनता है , उनकी भी फ़िक्र हो हमको .

न तिलमिलाये रवायत न असल प्यार घुटे ;
लोच दोनों में ही लाने की फ़िक्र है हमको .

कुल मिलाकर रवायतें हैं बेहतरी के लिये ;
इनसे तावीज़ बँधाने की फ़िक्र है हमको .

अदब में उनके लम्बा वक़्त गुज़ारें तन्हा ;
उनको महसूस तो हो , उनकी फ़िक्र है हमको .

दौर की माँग ग़र सलीके से हम पेश करें ;
उनके दिल बोलेंगे - " बच्चों की फ़िक्र है हमको ."

रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
काफी बेहतर लिखते हैं जनाब

Dr. Rakesh Srivastava
11-09-2012, 03:20 PM
सर्व श्री डार्क सेंट अल्लैक जी एवं हिटलर जी ; आप दोनों का ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु विशेष आभार व्यक्त करता हूँ . उन अज्ञात पाठकों का भी शुक्रिया , जिन्होंने मुझे पढ़ा .