Dr. Rakesh Srivastava
26-09-2012, 04:29 PM
खिज़ां न जिसपे आई हो , कोई भी गुलसितां नहीं ;
नहीं कोई जहां में इस , के जिसको दुख मिला नहीं .
तू रात काट सब्र से , सुबह के इन्तज़ार में ;
रहे सदा अमर , जहां में ऐसा सिलसिला नहीं .
ख़ुदी पे अपनी कर यकीं , कदम बढ़ा के देख तो ;
जो हौसलों से तय न हो , जहां में फ़ासला नहीं .
बना के अपनी लीक ख़ुद निकल पड़ो मुक़ाम पे ;
न इसकी फ़िक्र तुम करो कि साथ काफ़िला नहीं .
जो अड़चने हों राह में ठहर के उनसे बात कर ;
सुलझ सके न प्यार से , कोई भी मसअला नहीं .
तेरी हरेक सोच में जहां की बेहतरी बसे ;
जो सबके काम का न हो असल वो फ़लसफ़ा नहीं .
महक बिखेर फूल - सी , ज़रा सी ज़िन्दगी में तू ;
बहुत दिनों तलक चले , जहां में बुलबुला नहीं .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
नहीं कोई जहां में इस , के जिसको दुख मिला नहीं .
तू रात काट सब्र से , सुबह के इन्तज़ार में ;
रहे सदा अमर , जहां में ऐसा सिलसिला नहीं .
ख़ुदी पे अपनी कर यकीं , कदम बढ़ा के देख तो ;
जो हौसलों से तय न हो , जहां में फ़ासला नहीं .
बना के अपनी लीक ख़ुद निकल पड़ो मुक़ाम पे ;
न इसकी फ़िक्र तुम करो कि साथ काफ़िला नहीं .
जो अड़चने हों राह में ठहर के उनसे बात कर ;
सुलझ सके न प्यार से , कोई भी मसअला नहीं .
तेरी हरेक सोच में जहां की बेहतरी बसे ;
जो सबके काम का न हो असल वो फ़लसफ़ा नहीं .
महक बिखेर फूल - सी , ज़रा सी ज़िन्दगी में तू ;
बहुत दिनों तलक चले , जहां में बुलबुला नहीं .
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .