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View Full Version : तू रात काट सब्र से


Dr. Rakesh Srivastava
26-09-2012, 04:29 PM
खिज़ां न जिसपे आई हो , कोई भी गुलसितां नहीं ;
नहीं कोई जहां में इस , के जिसको दुख मिला नहीं .

तू रात काट सब्र से , सुबह के इन्तज़ार में ;
रहे सदा अमर , जहां में ऐसा सिलसिला नहीं .

ख़ुदी पे अपनी कर यकीं , कदम बढ़ा के देख तो ;
जो हौसलों से तय न हो , जहां में फ़ासला नहीं .

बना के अपनी लीक ख़ुद निकल पड़ो मुक़ाम पे ;
न इसकी फ़िक्र तुम करो कि साथ काफ़िला नहीं .

जो अड़चने हों राह में ठहर के उनसे बात कर ;
सुलझ सके न प्यार से , कोई भी मसअला नहीं .

तेरी हरेक सोच में जहां की बेहतरी बसे ;
जो सबके काम का न हो असल वो फ़लसफ़ा नहीं .

महक बिखेर फूल - सी , ज़रा सी ज़िन्दगी में तू ;
बहुत दिनों तलक चले , जहां में बुलबुला नहीं .

रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

arvind
26-09-2012, 06:31 PM
खिज़ां न बना के अपनी लीक ख़ुद निकल पड़ो मुक़ाम पे ;:fantastic:
न इसकी फ़िक्र तुम करो कि साथ काफ़िला नहीं .





बहुत शानदार कविता।

YUVRAJ
30-09-2012, 10:59 AM
वाह… क्या बात है… :)
बेजोड़ रचना डाक्टर साहब।:bravo:

abhisays
30-09-2012, 11:29 AM
गजब की रचना है।

Sikandar_Khan
30-09-2012, 01:06 PM
1ð11ô11î91ô51ï91ñ6 1ò41ó01ò51ñ2 , 1ò51ñ41ó91ò21ó0 1î91ó2 1ð41ñ61ò5 1î31î9 1î81ñ6 1ï01ó41ñ21ò41ó41ñ61ð4 1ñ61ï41ð81ó0 1î91ó9 1ñ81ó11î3 1ð41ò51ó91ð61ó11ñ8 1ò41ó9 1ð61ó01ð6 1î91ó31ñ21ó41ñ8 1î91ñ61ó91ì9 |

ndhebar
30-09-2012, 04:23 PM
.महक बिखेर फूल - सी , ज़रा सी ज़िन्दगी में तू ;बहुत दिनों तलक चले , जहां में बुलबुला नहीं .रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
Too good...
zindgi ki sachchai se rubaru karati gazal

sombirnaamdev
30-09-2012, 07:48 PM
बहूत खूब , अति सुंदर कविता , अच्छी प्रस्तुति
thanks डॉ साहब