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View Full Version : नपुंसकामृतार्णव


Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:30 PM
नपुंसकामृतार्णव

अर्थात नपुंसकों के लिए अमृत का समुद्र
यानी यौन क्रिया में अक्षम लोगों के लिए नायाब नुस्खे

मित्रो, अनेक आयुर्वेदिक चिकित्सक अपने अनुभव और अनेक बीमारियों पर शोध तथा अध्ययन से प्राप्त ज्ञान को अपनी हस्तलिपि में कागजों पर उतारते रहे हैं ! कुछ पुस्तक के रूप में प्रकाशित होते हैं, कुछ सिर्फ पांडुलिपि के रूप में ही रह जाते हैं ! यहां मैं एक अनुपम ग्रन्थ 'नपुंसकामृतार्णव' संस्कृत से अनूदित कर प्रस्तुत कर रहा हूं ! यह कभी वाराणसी के किसी संस्थान से संस्कृत में प्रकाशित हुआ था, किन्तु अब उसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं है ! मेरे पास हस्तलिखित पांडुलिपि मौजूद है, अतः मैं आज से इसे क्रमशः अनूदित कर प्रस्तुत करूंगा ! मेरा मानना है कि यह ग्रन्थ आज की नौजवान पीढी के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:31 PM
नोट- मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इस सूत्र में कृपया यह ध्यान रखें -


1. मैं कोई वैद्य नहीं हूं, अतः आपकी किसी यौन समस्या का निदान नहीं बता सकता, अतः ऐसे कोई प्रश्न मुझसे नहीं पूछें !

2. मैं सिर्फ एक कृति आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, यदि आपको नुस्खे में दी गई किसी जड़ी-बूटी के सम्बन्ध में कुछ पूछना है, तो आप निस्संकोच मुझसे सवाल कर सकते हैं, क्योंकि यह पांडुलिपि हस्तगत होने के बाद मैंने कई वैद्यों और अत्तारों से जड़ी-बूटियों के नामों में उनके परिवर्तन के अनुसार सुधार कर लिया है, किन्तु कृपया मुझसे किसी बीमारी का इलाज़ न पूछें !

3. कृपया यह भी याद रखें कि दवाओं का एक निश्चित अनुपात आयुर्वेद ही नहीं, प्रत्येक चिकित्सा पद्धति के अनुसार निर्धारित है, अतः अपने डॉक्टर कृपया खुद न बनें, किसी भी नुस्खे का इस्तेमाल कृपया किसी वैद्य के निर्देशन में ही करें ! आपकी किसी लापरवाही अथवा दवा निर्माण में त्रुटि से होने वाले किसी भी नुक्सान के लिए सूत्र-निर्माता अथवा फोरम कतई जिम्मेदार नहीं होगा, कृपया यह ध्यान रखें !

धन्यवाद !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:32 PM
इस सूत्र में आगे कई प्रकार की भारतीय तौल मात्राएं आएंगी, अतः मैं यहां इस पद्धति को स्पष्ट कर देना उचित समझता हूं !


4 धान की एक रत्ती बनती है !
8 रत्ती का एक माशा बनता है !
12 माशों का एक तोला बनता है !
5 तोलों की एक छटाक बनती है !
16 छटाक का एक सेर बनता है !
5 सेर की एक पनसेरी बनती है !
8 पनसेरियों का एक मन बनता है !



एक रत्ती लगभग 0.12125 ग्राम के बराबर है। एक तोला में आप 12 ग्राम मान सकते हैं, किन्तु ब्रिटिश काल में जारी किए गए चांदी के सिक्के ठीक एक तोला के होते थे, जिनका सही वज़न 11.6638038 ग्राम था और वर्तमान में आयुर्वेदिक औषधियों के अलावा स्वर्ण और चांदी का वज़न भी इसी पद्धति से होता है, जिसमें एक तोला आज भी 11.6638038 ग्राम के बराबर ही है।

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:33 PM
प्रारम्भ्यते !

मंगलाचरणम

विलोलद्वीचि संयुक्ता दुःख त्रय विनाशिनी !
राजते ह्यापगा यस्य शाशि शोभित मस्तके !!
गिरिजा यस्य वामांगे सपुत्रा च विराजते !
भस्मोद्धूलित देहाय नमस्तस्मै पिनाकने !!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:34 PM
दोहा -


चपल वीचि युत आपगा, करहि दुःखत्रयनाश !
शशि शोभित मस्तक विषे, रही निरंतर भास् !!
गणनायक को अंक ले, गिरिजा वामाचार !
भस्म लिप्त तनु देव को, नमः है बारम्बार !!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:34 PM
ग्रंथारम्भः !


पुंसत्व वृद्धिकरम चैव शंडादिदोषनाशनं !
संत्यादि सुख कर मायुरा रोग्यदम तथा !!
तरंगैरष्टभिः शुद्धैर्नपुंसका मृतार्नवम !
अनुभव कृतैर्योगैस्तथैव शास्त्रसंमते : !!
निबन्धामि नियोगाच्च सतां लोक हितैशिणाम !
वैद्यो रामप्रसादोहं दृष्टा लोकस्य संस्थितिम !!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:35 PM
संसार का हित चाहने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की आज्ञा से तथा इस समय लोक की अवस्था देख कर मैं रामप्रसाद नामक वैद्य इस 'नपुंसकामृतार्णव' ग्रन्थ को शास्त्र सम्मत अनुभव किए हुए योगों से निबंधन करता हूं अर्थात अपने अनुभूत योगों को ग्रन्थ रूप में लिखता हूं ! सो यह 'नपुंसकामृतार्णव' (नपुंसकों के लिए अमृत का समुद्र) सुन्दर शुद्ध आठ तरंगों से युक्त होगा और पुरुषार्थ को बढ़ाने वाला तथा षंड (नपुंसक) आदि दोषों को हरने वाला, और संतान आदि सुख का दान करने वाला, आयु तथा आरोग्यता देने वाला होगा !!1-3!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:50 PM
मित्रो, यहां से मैं संस्कृत का उपयोग ख़त्म कर रहा हूं अर्थात अब सूत्र सिर्फ हिन्दी में चलेगा ! यदि मित्र चाहें, तो मैं साथ ही संस्कृत प्रस्तुत करने को भी तैयार हूं, किन्तु संस्कृत लिखने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ! जैसे ऊपर दिए गए कुछ श्लोकों में अनेक स्थानों पर 'न' के बजाय 'ण' का प्रयोग होना था, किन्तु संयुक्त रूप में काफी प्रयास के बाद भी यह न कर पाने की स्थिति में मैंने 'न' जाने देना ही उचित समझा ! ठीक इसी तरह कुछ स्थानों पर षटकोण वाला 'ष' प्रयोग होना था, किन्तु कई प्रयास के बावजूद मुझे संयुक्त अक्षरों में 'श' ही जाने देने को विवश होना पड़ा ! (इसी तरह) संस्कृत संयुक्त वाक्यांशों में लिखी जाने वाली भाषा है, लेकिन जब मैंने ऐसे वाक्यांश प्रविष्ट किए, तो बीच-बीच में अजीब आकृतियां प्रकट हो गईं, तब मुझे संयुक्त अक्षरों को तोड़ कर प्रस्तुत करना पड़ा ! मेरा संस्कृत के विद्वानों से अनुरोध है कि आप सभी सज्जन मेरी विवशता समझते हुए मुझे क्षमा करेंगे ! धन्यवाद !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:56 PM
शरीर में सब धातुओं का सारभूत वीर्य ही कहा जाता है ! वही वीर्य ओज, तेज, बल, कांति और पराक्रम रूप से शरीर में स्थित है, जिसके शुद्ध होने से शरीर की गति सर्वदा सब तरह से शुद्ध रहती है ! ब्रह्मचर्य अवस्था में वीर्य के क्षीण होने से मनुष्य पराक्रम, धैर्य और तेज से हीन होकर अनेक रोगों से युक्त शरीर वाला होता है ! जैसे सारहीन पदार्थ रद्दी होता है, वैसे ही वीर्य के बिना पुरुषार्थ है !!4 -6!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:56 PM
और भी बहुत सी महाव्याधियों से भी मनुष्य नपुंसकता को प्राप्त होता है तथा माता-पिता के रज-वीर्य संबंधी विकारों से भी मनुष्य को नपुंसकता प्राप्त होती है और कुछ पूर्व जन्म के पापों के सबब से भी कुछ नपुंसकता को प्राप्त होते हैं ! परन्तु इस समय अधिकतर मनुष्य ब्रह्मचर्य से विहीन होकर अपने ही कुकर्मों के फल से नपुंसकता को प्राप्त हो दुःख भोग रहे हैं !!7-8!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:57 PM
शिष्य उवाच !

हाथ जोड़ कर शिष्य कहने लगे ! हे गुरो, इस संसार की अवस्था देख कर अत्यंत आश्चर्य होता है ! प्रायः मैं जिधर भी देखता हूं, सब मनुष्यों की प्रवृत्ति धर्मादिकों में नहीं है, बल्कि धर्म से, दया से, सत्य से और योग-तप आदि से निवृति ही दिखाई देती है ! खासकर ब्रह्मचर्य तो नष्टप्राय सा प्रतीत होता है ! मन में शान्ति भाव और इन्द्रियों को दमन तो पहले ही दूर हो गया था, परन्तु अब तो विवेक भी मानो भारत को ही छोड़ भागा ! हे नाथ, इस समय जिधर देखा जाए, प्राय सबकी प्रवृत्ति संसार की विषय-वासना से भरी हुई है और ऐसा विचित्र समय आया है कि लोग अनुचित मैथुन की इच्छा को ही शरीर धारण करने का मुख्य कर्तव्य समझने लगे हैं !

हे गुरो ! यद्यपि इन कुकर्मियों को परस्त्रीगमन से अनेक दु:सह दुखों का सामना करना पड़ता है और वेश्यागमन आदि से आत्सक, सोजाक आदि दारुण रोगों की कड़ी जेल की सेवा सदा के लिए करनी पड़ती है तथा अयोनिज मैथुन से नपुंसकता को प्राप्त होकर अनेक दु:सह रोगों की जंजीर में जकड़े जाते हैं, बल्कि इनके विचारों, दृष्टि, बल, बुद्धि शरीर इन विषयों की भेंट हो लेती है, परन्तु आश्चर्य है कि अपने कुकर्म का फल देख कर भी न तो ये आप ही इन महा पापों से आगे को बचने के लिए घृणा करते हैं और न इनको देख कर अन्य मनुष्य ही बुरा समझते हैं ! सो हे आयुर्वेद के ज्ञाता ! मुझ पर कृपा कर के कहिए कि इस अनर्थ का कारण क्या है !!9-13!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:58 PM
इस प्रश्न को सुन कर शिष्य के प्यारे सद्गुरु बड़े प्रसन्न हुए ! मुख की कांति उज्ज्वल हो उठी, मन में आनंद हुआ, फिर कृपा कर शिष्य से कहने लगे, हे पुत्र ! तुमको धन्य है कि तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है ! तुम विद्या-बल संपन्न होकर दीर्घायु होगे ! सांसारिक मनुष्यों पर कृपा करने की इच्छा से इस समय की कुकर्म जनित अवस्था का जो कारण पूछा है, वह सुनाता हूं, सो हे श्रेष्ठ शिष्य ! सावधान होकर सुनो !!14-16!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:58 PM
शास्त्रों में लिखा है कि परमात्मा ने सब देवताओं की शक्तियों से राजा (शासक) बनाया है ! इसीलिए राजा संसार का नेता होता है ! यदि वह धर्मात्मा हो, तो सब प्रजा भी धर्मपरायण होती है और यदि राजा पाप में लीन हो, तो प्रजा भी वैसी ही हो जाती है ! जिस जगह राजा प्रजा का पीड़न करने वाला होता है, उस जगह की प्रजा शिश्नोदरपरायण (सिर्फ पेट और पेट से नीचे वाले का ध्यान रखने वाली) हो जाती है ! उस समय माता-पिता अपनी संतान के उचित संस्कार न कराकर अज्ञान से पालन करते हैं ! ... अतः संसार में इस अनर्थ का कारण एक तो राजा, दूसरा माता-पिता तथा तीसरा ये बेचारे स्वयं ही हैं !!17-24!!

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:58 PM
मित्रो, यह सम्पूर्ण ग्रन्थ संस्कृत में बहु-प्रचलित गुरु-शिष्य संवाद शैली में लिखा गया है ! इतने श्लोकों के बाद काफी सारे ब्रह्मचर्य एवं आचरण से सम्बंधित हैं, जिन्हें छोड़ कर मैं आगे निकल रहा हूं ! कारण यह है कि इतना यह सब मैंने सिर्फ भूमिका वश प्रस्तुत किया था, ताकि आप सभी को यह विश्वास हो जाए कि मैं वास्तव में एक संस्कृत ग्रन्थ प्रस्तुत कर रहा हूं, कहीं से दादी-नानी के नुस्खे उड़ा कर पेश नहीं कर रहा ... और मेरा मानना है कि अब ये बातें ज्यादा प्रासंगिक नहीं हैं, क्योंकि आज का मनुष्य कल के मुकाबले ज्यादा समझदार है ! इसके बाद मैं अधिकांश जगह संवाद शैली का भी प्रयोग नहीं करूंगा ! यदि किसी मित्र को कहीं कुछ संदेह तो, तो कृपया बेझिझक मुझे कहें, मैं मूल संस्कृत तत्काल प्रस्तुत कर दूंगा ! धन्यवाद !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 08:59 PM
नपुंसकता के कारण

मनुष्य स्त्री से मैथुन की इच्छा तो करे, किन्तु इन्द्रिय की कमजोरी के कारण कर न सके, इस शारीरिक स्थिति को क्लैब्य (नपुंसकता) कहते हैं !
पुरुष के हृदय को अप्रिय (जिनसे उसे नफरत हो) स्थितियों, भय, शोक, क्रोध आदि से चित्त दुखित होने से लिंग में शिथिलता हो और संसर्ग की इच्छा न हो, उसे नपुंसक कहते हैं !
यह सात प्रकार की होती है !
1. जिस पुरुष को मैथुन के विषय में चर्चा बुरी लगे, उसे मानस क्लीब कहते हैं !
2. मिर्च, खटाई, नमक आदि पित्तकर्ता पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने से पित्त बढ़ कर वीर्य को बिगाड़ देता है ! इससे वीर्य क्षीण होकर नपुंसकता की स्थिति हो जाती है !
3. यदि मनुष्य मैथुन अधिक करे और वीर्य की वृद्धि करने वाली बाजीकरण औषधि का सेवन नहीं करे, तो वीर्य के क्षीण होने से इन्द्रिय शिथिल हो जाती है ! इसे शुक्रक्षयज नपुंसक कहते हैं !
4. जो मनुष्य प्रमादवश लिंग को बड़ा करने वाली औषधि का सेवन करते हैं, उससे लिंग बड़ा होने के कारण चौथी नपुंसकता होती है !
5. पांचवीं नपुंसकता वीर्यवाही नस कट जाने और दारुण प्रमेह आदि रोगवश भी प्राप्त होती है !
6. यदि बलवान मनुष्य खिन्न मन होकर ब्रह्मचर्य से वीर्य रोक ले, यह वीर्य स्तम्भ निमित्तिक छठी नपुंसकता है !
7. जो पुरुष जन्म से ही नपुंसक हो उसे सहज नपुंसक कहते हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:00 PM
बीजोपघात के लक्षण और निदान


नपुंसकता के सामान्य लक्षण यह हैं कि रमण करने का विचार तो नित्य उत्पन्न हो, किन्तु इन्द्रिय की शिथिलता के कारण अपनी विवाहिता से भी सहवास नहीं कर सके ! यदि करे, तो श्वास तेज़ हो, देह एवं कन्धों पर पसीना आए और सब प्रयास निष्फल हो कर सम्भोग नहीं कर पाए, यह स्थिति नपुंसकता में होती है ! आयुर्वेद इस स्थिति को बीजोपघात अथवा ध्वजभंग, जरासंभव और क्षयज नपुंसकता में बांट कर निदान का विचार करता है !

पहले इन स्थितियों के कारण पर विचार करें -

शीतल, रूखा, खट्टा, कठोर तथा विरुद्ध भोजन करने से और अजीर्ण में भोजन करने से ! शोक, चिंता, भय, अति मैथुन से तथा अभिघात और अविश्वास से, रस आदि धातुओं की क्षीणता से, निर्जल व्रत करने से, अति परिश्रम करने के कारण स्त्रियों में अनुरक्ति नहीं होने से, वमन विरेचना आदि पञ्च कर्म बिगड़ जाने से मनुष्यों का वीर्य बिगड़ता है ! इस मनुष्य के यह लक्षण होते हैं - देह में पीलापन, शरीर दुबला होना, संतान का अल्पायु होना, स्त्रियों में स्नेह न होना तथा श्वास आदि होना बीजोपघात नपुंसकता के लक्षण हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:01 PM
ध्वजभंग के लक्षण

अत्यंत खटाई तथा नमक और तीक्ष्ण खार, विरुद्ध भोजन (दूध-मछली आदि), कच्चा अन्न तथा बिना भूख भोजन करने, बहुत अधिक पानी पीने, दूध देने वाले जीवों का मांस खाने, पित्त बढ़ाने वाले भारी पदार्थ खाने, अत्यंत कमजोरी तथा कम आयु की स्त्री से संसर्ग करने से, गुप्तांग पर कड़े बाल वाली, राज:स्वला, प्रदर के कारण अत्यंत गीले गुप्तांग वाली स्त्री के सहवास से; मूर्खता पूर्ण ढंग से सम्भोग करने से, चौपाए पशु से संसर्ग करने से, शिश्न में चोट लगने अथवा उसे ठीक प्रकार से नहीं धोने से यदि वीर्य नष्ट हो जाता है, तो इसे ध्वजभंग अथवा इन्द्रिय के सुस्त होकर गिर जाने की अवस्था कहते हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:02 PM
ध्वजभंग के महा उपद्रव


इन्द्रिय का सूज जाना, उसमें पीड़ा होना, फोड़े-फुंसियां हो जाना अथवा पक जाना, शिश्न का मांस बढ़ जाना, तत्काल घाव हो जाना और उसमें से काले, लाल अथवा धोवन जैसे रंग का स्राव होना, इन्द्रिय में गोल चूड़ी सी बन जाना, जड़ का आटे की तरह कठोर हो जाना तथा इस रोग से पीड़ित होने के कारण ज्वर (बुखार), मूर्च्छा (बेहोशी), तृषा (अधिक प्यास), वमन (उल्टियां) आदि विकार हों ! इन्द्रिय से लाल-काला स्राव हो, अग्नि से जलने का सा पीड़ादायक दर्द हो; वृषण, मुंड तथा सीवन (मुंड को शेष हिस्से से जोड़ने वाली खाल) में जलन के साथ दर्द हो, कभी इनमें से गाढ़ा पीला स्राव हो, कभी इन्हीं स्थानों में मंद सूजन और थोड़ा स्राव हो, कभी देर में तथा कभी जल्दी पक जाए और मुंड गल कर गिर जाए अथवा यही स्थिति मुंड और वृषण दोनों की हो, यह ध्वजभंग के महा उपद्रव हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:03 PM
ज़रासंभवन के कारण और लक्षण


यह मूलतः वृद्धावस्था के कारण उत्पन्न होने वाली नपुंसकता है ! इसकी अवस्था तीन प्रकार की होती है - उत्तम, मध्यम तथा अधम ! रसादिकों का क्षय होने, बिना बाजीकरण औषधियों का सेवन किए अत्यधिक सम्भोग से, बल, वर्ण इन्द्रियों के कमजोर होने से, पर्याप्त पुष्टिकारक भोजन नहीं करने के कारण वृद्धावस्था में मनुष्य का वीर्य नष्ट हो जाता है, जिसके कारण नपुंसकता की स्थिति उत्पन्न होती है ! ज़रासंभव नपुंसकता से ग्रस्त मनुष्य अत्यंत क्षीण-दुर्बल हो जाता है ! देह का वर्ण बदल जाता है ! वह विह्वल और दीन हो जाता है ! उसे रोग शीघ्र घेर लेते हैं ! प्रथम दो अवस्थाओं में मनुष्य का इलाज संभव है, किन्तु तृतीय अधम अवस्था का निदान दुष्कर है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:04 PM
क्षयजन के लक्षण


अगर कोई नवयुवक कमजोर होने के बावजूद बहुत ज्यादा चिंता, गुस्सा, ईर्ष्या, उत्तेजना और डर की वजह से पौष्टिक भोजन नहीं करे, बहुत कम खाना खाए या रूखा-सूखा खाकर पेट भर ले, तो लम्बे समय तक लगातार ऐसा करने से हृदय में स्थित प्रधान धातु (आयुर्वेद इसे शरीर में स्थित अन्य सभी धातुओं को बनाने वाला और जीवन का मूल मानता है) कमजोर हो जाता है ! इसके कारण पहले उसका खून, फिर वीर्य और इसके बाद शरीर के सभी धातु पहले विकृत और फिर क्षीण अथवा नष्ट हो जाते हैं ! इसके विपरीत अगर कोई बहुत ज्यादा प्रसन्नता अथवा कामातुरता (सेक्स की ज्यादा इच्छा) के कारण अंधाधुंध सम्भोग करता है, तो उसका शुक्र (वीर्य में पाए जाने वाले अणु) कमजोर हो जाता है ! इस स्थिति को क्षयजन कहा जाता है ! ऐसा होने से मनुष्य महा ब्याधियों से घिर जाता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है ! इसलिए शुक्राणु की रक्षा सभी को अवश्य करनी चाहिए !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:04 PM
सुश्रुत के अनुसार अन्य नपुंसक


सुश्रुत संहिता नपुंसकों के कुछ अन्य प्रकारों का वर्णन भी करती है, यहां मैं इनके उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं ! ये ज्यादातर अपने माता-पिता के दोषों का फल भुगतते हैं !
1 . पिता के बहुत कम वीर्य से जो गर्भ ठहरता है, उससे पैदा होने वाला 'आसेक्य' नपुंसक होता है ! यह जब अन्य पुरुष का वीर्य पीए, तो ही उसके लिंग का उत्थान (कड़ापन आना) होता है ! इस श्रेणी के नपुंसक को मुखयोनि भी कहा गया है !
2 . जो बालक दुर्गंधित योनि से पैदा हुआ है, उसे 'सौगंधिक' नपुंसक कहते हैं ! इसे लिंग अथवा योनि को सूंघने से ही सम्भोग करने की क्षमता मिल पाती है, वरना इसका लिंग मृतप्राय रहता है ! इसे नासायोनि भी कहा गया है !
3. जो आदमी खुद का गुदा मैथुन कराए बिना सम्भोग के लिए तैयार नहीं हो पाए, उसे कुम्भिक और गुदयोनि कहा जाता है !
4 . जो मनुष्य किसी अन्य का सम्भोग देख कर ही खुद भी सम्भोग को तैयार हो पाता है, उसे ईर्ष्यक और दृगयोनि कहा जाता है !
5. यदि आदमी नीचे हो और स्त्री ऊपर से संभोगरत हो और ऎसी अवस्था में गर्भ ठहर जाए, तो पुत्र होने पर वह स्त्री की चेष्टाओं (हरकतों) वाला और पुत्री हो तो वह पुरुष की चेष्टाओं वाली होती है ! इन्हें नारीषन्ढ कहा जाता है !
इनमें से आसेक्य, सौगंधिक, कुम्भिक और ईर्ष्यक वीर्ययुक्त (वीर्य वाला) और षन्ढ वीर्यरहित (बिना वीर्य वाला) होता है ! इस प्रकार इन नपुंसकों में विरुद्ध चेष्टाओं से शुक्रवाही नसें फूल जाती हैं, जिससे इनकी उत्तेजना जाग्रत होती है ! कुछ आचार्य ध्वजभंग और क्षयज को असाध्य मानते हैं, कुछ वीर्यबाही नस के कटने और अंडकोष नहीं रहने की स्थिति को ही असाध्य मानते हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:05 PM
दूषित वीर्य के प्रकार और लक्षण


अनुचित खान-पान और अनियमित दिनचर्या की वज़ह से, अप्राकृतिक सम्भोग से, क्षमता से ज्यादा तेज़ दौड़ने से, चोट लगने के कारण तथा धातुओं की खराबी से वात, पित्त और कफ कुपित (उग्र) होकर अलग-अलग या मिलकर वीर्यवाहक नसों तक पहुंच कर वीर्य को दूषित कर देते हैं !
दूषित वीर्य के आठ प्रकार इस प्रकार हैं - झागदार, बहुत कम मात्रा में निकलना, शुष्क (सूखा हुआ सा), विवर्ण (रंगत में फर्क आना), दुर्गंधित (बदबूदार), पिच्छिल (जिसमें पूंछ अथवा तार जैसे बनते दिखाई दें), खून अथवा अन्य प्रकार का पदार्थ साथ आना तथा शुक्राणुओं की कमी !

वात दूषित - झागदार, सूखा हुआ, कठिनाई से निकलने वाला, लेसदार और बहुत कम मात्रा में निकलने वाला वीर्य वात से दूषित होता है और इससे गर्भ नहीं ठहरता !

पित्त दूषित - नीला, पीला, अधिक गर्म, बदबूदार, निकलते समय गुप्तांग में दर्द करने वाला वीर्य पित्त से दूषित होता है !

कफ दूषित - अत्यंत गाढा और थक्केदार वीर्य कफ से दूषित होता है ! इसमें कभी-कभी तेज़ गंध भी महसूस हो सकती है !

सफ़ेद, पतला, चिकना, मीठा और शहद की सी गंध वाला वीर्य शुद्ध होता है ! कुछ आचार्य तेल और शहद की तरह के वीर्य को ही शुद्ध मानते हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:06 PM
वीर्य को शुद्ध करने के तरीके

(नोट - सूत्र में प्रस्तुत सभी जड़ी-बूटियां इन्हीं नामों से पंसारियों के पास उपलब्ध हैं, जिन पर मुझे संदेह था, वह मैं पूछ-ताछ कर शुद्ध कर चुका हूं ! फिर भी कोई कठिनाई हो तो आप मुझसे पूछ सकते हैं ! मैं एक बार फिर पूछ-ताछ कर वैकल्पिक नाम प्रस्तुत करने का वादा करता हूं ! हां, स्वेदन आदि विशेष क्रियाएं, घी को सिद्ध करना क्या होता है, यह कृपया मुझसे नहीं पूछें, यह एक रासायनिक क्रिया है, जिसे कोई वैद्य ही बता सकता है और मैं वैद्य नहीं हूं ! धन्यवाद !)

चिकित्सा से पहले वायु से दूषित वीर्य वाले को स्नेह्पान और स्वेदन आदि कराना चाहिए ! पित्त दूषित वीर्य वाले को विरेचन कराना चाहिए और कफ दूषित वीर्य वाले को वमन (उल्टी) और विरेचन दोनों कराने चाहिए ! इससे औषधियां ज्यादा असर करती हैं !

मुर्दे जैसी बदबू वाले वीर्य को शुद्ध करने के लिए रोगी को धावे के फूल, दाड़िम और अर्जुन वृक्ष की छाल से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए !
थक्के अथवा गांठदार वीर्यवाले को कचूर अथवा पलाश की भस्म से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए !
लेसदार वीर्यवाले को फालसे और बट से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए ! जिसके वीर्य में विष्टा (शौच) जैसी दुर्गन्ध हो, उसे चित्रक, खस और हींग से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए !
क्षीण (कम शुक्राणु) वीर्य वाले को बाजीकरण औषधियों का सेवन कराना चाहिए !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:07 PM
नपुंसकों की चिकित्सा


यह एक सामान्य नियम है कि नपुंसकता का जो कारण है, मनुष्य को उसके विपरीत आचरण करने के निर्देश दें यानी जिस कारण से रोग हुआ है, उसे त्याग देना चाहिए ! नुकसान की भरपाई के लिए वस्तिकर्म करें, दूध, घी, पुष्टिकारक पदार्थ और रसायन आदि का सेवन करें ! साथ ही, औषधि और काल (समय) को जानने वाला वैद्य देह-दोष और अग्नि का बलाबल (बीमारी की प्रबलता और रोगी की दवा को पचाने की क्षमता) देख कर नपुंसकता को नष्ट करने वाले उपाय करे !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:08 PM
बाजीकरण पदार्थ


विचित्र भोजन, अनेक प्रकार के दूध, शर्बत, आसव आदि पीने के पदार्थ, सुनने में प्रिय वचन, देह को सुखकारक नरम वस्त्र, पूर्ण चन्द्र से शोभायमान रात, सर्वांग सुन्दर नवयौवना स्त्री, कर्णप्रिय और मन को हरने वाले गीत-संगीत, पान का बीड़ा, आकर्षक बाग़-बगीचे, मन की इच्छा को पूरे करने वाले कार्य - ये सभी काम (सेक्स) को बढ़ाने वाले पदार्थ अथवा कारण हैं !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:08 PM
शतावरीघृतं

एक सेर गौघृत (गाय के दूध से निकला घी) लेकर उसमें दस सेर शतावर का रस और दस सेर गाय का दूध मिला कर पकाएं ! फिर दस तोला पीपल, दस तोला शहद, बीस तोला खांड मिलाकर गाढा होने तक पकाएं ! इस घी को रोज़ दो तोला खाकर दूध पीने से वीर्य बढ़ता है और मनुष्य पुष्ट और बलवान होता है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:09 PM
लघुबाजीसर्पि:

एक सेर उत्तम गौघृत, एक सेर असगंध का कल्क, बकरी का चार सेर दूध - इन सभी को मिला कर घी को सिद्ध कर लें और फिर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर रोज सेवन करें, तो बल और वीर्य की वृद्धि होती है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:09 PM
गोधूमादिघृतं


पांच सेर सफ़ेद गेहूं का सत्व बीस सेर पानी में पकाएं ! जब पांच सेर बाक़ी रह जाए, तो इसे छान लें ! अब सफ़ेद गेहूं, मुंजातक फल, उड़द, दाख, फालसे, काकोली, क्षीर काकोली, जीवंती, शतावरी, असगंध, छुहारे, मुलहठी, सौंठ, काली मिर्च, पीपल, मिश्री, कौंच के बीज - प्रत्येक को छै (6) मासे की मात्रा में कूट कर मिला लें ! गाय का एक सेर घी, चार सेर दूध इस में मिलाकर मंद आंच पर पकाएं ! अब दालचीनी, इलायची, पीपल, धनिया, भीमसेनी कपूर - इन सभी को 6 मासे की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और पकती हुई सामग्री में डाल दें ! सिद्ध होने पर छान लें और इसमें बत्तीस तोला शहद, बत्तीस तोला मिश्री मिला दें ! फिर इसको ईख (गन्ना) के डंडे से मथ कर दूध में मिला कर पीयें अथवा चावल के भात के साथ खाएं या मांस के रस (शोरबे) के साथ पीयें ! इसे अपने पाचन तथा बल के अनुसार दो तोला से आठ तुला तक लेना चाहिए ! यदि इसे अकेला लेना हो, तो मात्रा चार तोला ही रखें ! इसके सेवन से लिंग में शिथिलता नहीं होती, वीर्य कभी क्षीण नहीं होता, बल में वृद्धि होती है ! इसके साथ ही यह वात रोगों को भी शांत करता है ! बूढ़े पुरुषों के लिए यह परम उपयोगी है ! दस दिन तक इसका सेवन करने वाला एक साथ दस स्त्रियों से रमण के योग्य हो जाता है ! यह गौधूमादि रसायन अश्वनी कुमार का कहा हुआ उत्तम नुस्खा है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:10 PM
वानरी गुटिका


एक पाव कौंच के बीज लेकर एक सेर दूध में पकाएं ! जब दूध गाढा हो जाए, तब उतार कर बीज निकालें और उनका छिलका उतार कर पीस लें ! इस पीसे गए गाढे घोल से दो-दो तोला की टिकिया बना लें और इन्हें गोघृत में पका लें ! अब आधा सेर खांड की चाशनी बनाएं और उसे समस्त टिकियों के ऊपर बालूशाही की तरह चढ़ा लें ! फिर इन्हें शहद में डुबो कर रख लें और प्रतिदिन पंद्रह माशे खाकर ऊपर से गर्म दूध पिएं ! प्रतिदिन सुबह-शाम ऐसा करने से लिंग की सारी कमजोरी, वीर्य का जल्दी निकल जाने जैसे सारे विकार दूर हो जाते हैं और पुरुष घोड़े के सामान सम्भोग करने में सक्षम हो जाता है ! आचार्यों ने कहा है कि इससे ज्यादा प्रभावशाली कोई अन्य बाजीकरण नुस्खा नहीं है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:10 PM
बाजीकरण शष्कुली

काले तिल, असगंध, कौंच के बीज, बिदारीकंद, मुलहठी - इन सभी को समान मात्रा में लेकर कूट लें और कपड़छान करके बकरी के दूध में गूंथ कर पूरियां बना लें ! बकरी के दूध से बनाए गए घी में ये पूरियां तल लें ! इन्हें मिश्री मिले दूध के साथ खाने से शरीर बलवान और वीर्य पुष्ट तथा सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाता है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:11 PM
पायस

जिसका बछड़ा बड़ा हो, उस गाय के दूध में चावल की खीर बना लें ! इस खीर में घी, शहद और मिश्री मिला कर खाने से बूढा भी सम्भोग की इच्छा करने लगता है ! यदि युवा ऎसी इच्छा करें, तो आश्चर्य की कोई बात ही नहीं है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:11 PM
सितादिवृष्य योग

मिश्री चार सौ तोला, गाय का शुद्ध घी 64 तोला, बिदारी कंद 64 तोला, पिप्पली का चूर्ण 128 तोला, उत्तम शहद 128 तोला लेकर सभी को मिला लें और चिकनी मिट्टी से बने बर्तन में रखें ! अपनी पाचन शक्ति के अनुसार प्रतिदिन सुबह खाएं ! यह योग परम वृष्य (वीर्य को शुद्ध करने और बढ़ाने वाला) तथा शरीर के सभी रसों और धातुओं को पुष्ट (बलवान) करने वाला है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:12 PM
योग्य दूध

ऎसी पालतू गाय जिसने पहली बार बच्चा पैदा किया हो, उसे उड़द के पत्ते नित्य खिलाएं ! इस गाय का दूध पीने से बल और वीर्य में आशातीत बढोतरी होती है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:12 PM
भीमसेनी रसाला

गाढा, मीठा, मलाईदार दही 2 सेर, सफ़ेद बूरा 1 सेर, गाय का घी एक छटांक तथा काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, नागकेसर सभी 6-6 मासे लेकर, इनको बारीक कूट कर दही में मिला लें और फिर रंगहीन (सफ़ेद) कपड़े में छान लें ! अब इसको भीमसेनी कपूर की धूनी देकर मिट्टी के कोरे बर्तन में रख लें ! यह भीमसेन का बनाया हुआ रसाला स्वयं भगवान् मधुसूदन (कृष्ण) सेवन कर चुके हैं ! आचार्यों का कहना है कि इसका सेवन अतुलित शक्ति और वीर्य को प्रदान करने वाला है !

Dark Saint Alaick
16-10-2012, 09:13 PM
अश्वगंधादि घृत

एक सेर असगंध और एक सेर गाय के घी को 8 सेर दूध में मिला कर धीमी आंच पर पकाएं ! जब पक कर सिर्फ घी रह जाए, तो इसमें सौंठ, काली मिर्च, पीपल, चतुर्जात, वायविडंग, जावित्री, बला, अतिबला, गोखरू, विधारा - इन सभी का चूर्ण चार-चार तोला; लौह भस्म, बंग भस्म, अभ्रक भस्म - प्रत्येक चार तोला, शहद और मिश्री 32-32 तोला मिलाकर घी को उतार लें और चिकने बर्तन (मर्तबान आदि) में भर कर रख दें ! अपनी पाचन शक्ति का ध्यान रखते हुए इसका प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने वाला मनुष्य वात से सम्बंधित सभी रोग, जोड़ों में वायु से उत्पन्न होने वाला दर्द, कमर, गर्दन एवं कन्धों का दर्द, गर्भ संबंधी समस्त रोग, प्रसव के उपरान्त के सभी रोग, वीर्य के सभी विकारों को इस प्रकार जीत लेता है, जैसे सिंह मतवाले हाथी को भगा देता है ! यह परम बाजीकरण होने से पुरुषों को सभी प्रकार के सुख देने वाला है !

Dark Saint Alaick
17-10-2012, 09:38 AM
माषादिघृत

कौंच के बीज 4 सेर, उड़द 4 सेर, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि, बृद्धि, शतावर, मुलहठी, असगंध - प्रत्येक 16 तोले लेकर आठ गुने पानी में पकाएं ! जब पाक कर चौथाई रह जाए, तब उतार कर छान लें ! अब इसमें 1 सेर घी, 10 सेर दूध, 10 सेर विदारीकन्द का रस डाल कर फिर पकाएं ! जब पक कर सिर्फ घी रह जाए, तो इसमें मिश्री, वंशलोचन, शहद (प्रत्येक 16 तोले), पीपल का चूर्ण 8 तोले मिला कर चिकने बर्तन (मर्तबान आदि) में रख दें ! अपनी पाचन शक्ति के अनुसार खाने के बाद मूंग, चावल अथवा घी इच्छा के अनुसार खाएं ! प्रतिदिन यह प्रयोग करने से वीर्य कभी क्षय नहीं होता और शिश्न में अपूर्व ताकत आ जाती है !

Sikandar_Khan
17-10-2012, 09:51 AM
आपके इस सूत्र के जरिए अच्छी जानकारी मिल रही है |

abhisays
17-10-2012, 05:17 PM
bahut hi laabhdaayak jaankaari hai is sutra mein.. iske liye sutradhaar ko thanks.. :bravo:

Dark Saint Alaick
18-10-2012, 01:26 AM
महासुगंधि तैलम

कपूर, अगर, दालचीनी, पत्रज, नलिका, लाख, कचूर, धावे के फूल, सतवन, एलवालुक, सुगंधद्रव्य, सरल, छड़, जटामासी, सुगंधबाला, इलायची, केशर, गोरोचन, दोनों प्रकार के मरुवा, श्रीवास, जायफल, कंकोल, सुपारी, सफ़ेद चिरमिटी, कस्तूरी, मुरा, प्रियंगु, लौंग, कूठ, नेत्रवाला, खस, रेणुका, चन्दन, थुनेर, गठोना, नख, जावित्री, काकड़ा सिंघी, पद्माख, स्पृक्का (सुगंध द्रव्य), पालक, मजीठ और लोध प्रत्येक को 4 तोला लेकर इनका काढ़ा बना लें, आठवां भाग बाकी रह जाने पर इस काढ़े को छान कर इसमें 4 सेर तिल का शुद्ध तेल मिला कर फिर मंद आंच पर पकाएं ! जब पानी जल कर केवल तेल बाक़ी रह जाए, तो उतार कर छान लें ! इस तेल की मालिश करने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान की तरह स्त्रियों का प्रिय, कान्तिमान, शुक्रवान, अनेक पुत्रों वाला हो जाता है तथा किसी भी प्रकार का नपुंसक भी सहवास में सक्षम हो जाता है ! इस तेल के प्रतिदिन सेवन से बांझ अथवा वृद्धा स्त्री भी गर्भ धारण में सक्षम हो जाती है ! इसके अलावा अश्वनी कुमार का बनाया यह महासुगंधि तेल मालिश करने से शरीर की खुजली, ज्यादा पसीना आना, शरीर से दुर्गन्ध आना, कोढ़, खाज आदि समस्त चर्म रोगों को भी नष्ट कर देता है !

Dark Saint Alaick
19-10-2012, 12:24 PM
चन्दनादि तैलम

सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, पतंग, हरिचन्दन, अगर, काला अगर, देवदार (देवदारु), सरल, पद्माख, सुपारी, कपूर, कस्तूरी, लता कस्तूरी, शिला रस, केशर, गौ का घी, जायफल, जावित्री, लवंग, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, कंकोल, तज, कमल, नागकेशर, सुगंधबाला, खस, जटामासी, दालचीनी, मुरा, कचूर, छड़, शिलाजीत, भद्र मोथा, रेणुका, प्रियंगु पुष्प, श्रीवास, गुग्गल, लाख, नख, राल, धावे के फूल, गठौना, मंजीठ, तगर, मोम - इन सभी को चार-चार माशे लेकर कल्क बना लें ! शुद्ध धुली तिल्ली का तेल लेकर उसमें यह कल्क डाल कर तेल-पाक विधि से तेल बना कर बोतल में भर कर रख लें ! इसकी मालिश से अस्सी बर्ष का बूढ़ा व्यक्ति भी अत्यंत वीर्यवान होकर स्त्रियों को प्यारा हो जाता है ! नपुंसक भी तरुण के समान सम्भोग के योग्य हो जाता है ! जिसके संतान न होती हो, उस पुरुष को संतान प्राप्ति होती है और बांझ स्त्री भी संतान - उत्पत्ति में सक्षम हो जाती है ! इसका सेवन करने वाले की आयु पूर्ण सौ वर्ष हो जाती है ! इसके अलावा यह चन्दनादि तेल रक्त-पित्त, क्षय (टीबी), ज्वर (बुखार), दाह (जलन), पसीना ज्यादा आना, शारीरिक दुर्गन्ध, कोढ़, खाज आदि चरम रोगों में भी राम-बाण है !

Dark Saint Alaick
21-10-2012, 08:28 AM
राक्षस योग

बकरे के अंड कोष को घी में भून कर पीपल और सेंधा नमक मिला कर सेवन करें ! इसे निरंतर खाने से व्यक्ति मदमती स्त्रियों के मद का भी भंजन (अत्यधिक कामातुर स्त्रियों को भी संतुष्ट) करने योग्य हो जाता है !

Dark Saint Alaick
21-10-2012, 08:43 AM
द्राक्षासवं

चार सेर मुनक्का को 16 सेर पानी में पकाएं ! जब 4 सेर बाक़ी रह जाए, तो उतार लें और फिर इसमें 4 सेर गुड़ और 1 सेर धावे के फूल मिला कर मिट्टी के बर्तन में भर कर करडी में दबा दें ! जब वह सड़ कर उफनने लगे, तो वारुणी यंत्र द्वारा अर्क खींच लें ! फिर उस अर्क को दोबारा वारुणी यंत्र से खींचें ! इस प्रकार इस अर्क को दस बार वारुणी यंत्र से खींचें और फिर चतुर्जात, जावित्री, लौंग, भीमसेनी कपूर, केशर यह सब अनुमान से मिला कर अपनी जठराग्नि का विचार कर सेवन करें, तो यह क्षय, यक्ष्मा (टीबी) को दूर करता है ! इसे चिकने भोजन के साथ सेवन करने से 90 वर्ष का बूढा भी पौरुष पर अभिमान करने योग्य हो जाता है !

Dark Saint Alaick
23-10-2012, 09:40 AM
बाजीकरण पूपालिका

तिल, उड़द, विदारीकन्द, शाली चावल - इन चारों का बारीक चूर्ण कर पौंडा नामक गन्ने के रस में गूंथ लें ! इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिलाएं और मेद्का मोन डालें ! अब इसकी शुद्ध घी में पूड़ी बना लें ! यह पूड़ी परम बाजीकरण है ! इसको खाने वाला पुरुष इच्छा के अनुसार कितना ही सहवास लगातार करने में सक्षम हो जाता है !

Dark Saint Alaick
23-10-2012, 09:45 AM
म्लेच्छ योग

बकरे के अंडकोष को दूध में डाल कर पकाएं ! इस दूध की भावना तिल को दें ! इस प्रकार कई बार तिलों को इस दूध की भावना दें, फिर सुखा लें ! फिर दो तोला तिल खाकर ऊपर से मिश्री मिला धारोष्ण दूध पी लें ! इस योग को नित्य करने वाला पुरुष चिड़े के सामान सहवास में सक्षम हो जाता है !

Dark Saint Alaick
24-10-2012, 11:44 PM
पुरुषार्थ दायक वस्ति कर्म

जीवंती, अतिबला, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, दोनों तरह का जीरा, हरड, पीपड, काकनासा, वायविडंग, कौंच के बीज, पुनर्नवा अथवा कचूर, काकड़ासिंगी, जीवक, ऋषभक, दोनों तरह के सारिवा, सहचर, वीयावांसा, त्रिफला, सोंठ, पिप्पली मूल - इन सभी को समान भाग लेकर चूर्ण करके पहले थोड़े घी में भून लें ! इसके बाद घी अथवा तेल या तेल और घी दोनों के मिश्रण में इस कल्क को मिलाएं और तेल-घी से आठ गुना दूध डाल कर पकाएं ! इसके द्वारा अनुवासनवस्ति देने से वीर्य की, जठराग्नि की और बल की वृद्धि होती है ! सिद्ध किया हुआ यह तेल पुष्टिकारक तो है ही, साथ ही वात, पित्त का नाश करता है तथा गुल्म और अफारा को पूरी तरह नष्ट कर देता है ! इसको यदि नासिका से अथवा पीकर सेवन किया जाए, तो यह सर्दी तथा कफ से जनित सभी रोगों को समूल नष्ट कर देता है !

Dark Saint Alaick
25-10-2012, 12:05 AM
अब इस सूत्र में कुछ ऐसे चूर्ण बनाने की विधियां प्रस्तुत की जाएंगी, जो वीर्य को शुद्ध करने, बढ़ाने, शुक्र की क्षीणता को नष्ट करने के साथ प्रमेह (महिलाओं का श्वेत प्रदर) आदि घोर व्याधियों को नष्ट करके आयु तथा आरोग्यता को बढ़ाने वाली औषधियां हैं ! इन्हें तैयार करते समय दो बातें विशेषकर याद रखें - जहां-जहां कपड़छन का प्रयोग हो, वहां यह ध्यान रखें कि दवा को छानने वाला वस्त्र रंगहीन और एकदम शुद्ध हो (या तो धुला हुआ अथवा कोरा सूती) ! दूसरी बात- सभी औषधियों को खरल अथवा सिल-बट्टे पर ही बारीक करें, मिक्सी का प्रयोग करने की भूल कदापि न करें, यदि आप ऐसा करेंगे, तो औषधि का सम्पूर्ण तेज़ नष्ट हो जाएगा यानी वह शक्ति रहित हो जाएगी ! तीसरी बात, इस पिसे हुए पदार्थ अथवा चूर्ण का संबोधन कई जगह आपको रज अथवा क्षोद भी मिल सकता है, अनुवाद करते समय अक्सर यह स्मरण नहीं रहता कि अब तक हम किस शब्द का उपयोग करते आए हैं, अतः ये दोनों शब्द कहीं आने पर उन्हें चूर्ण ही मानें ! यह भी ध्यान रखें कि चूर्ण की सेवन मात्रा सामान्यतया एक तोला बताई गई है, किन्तु इससे अधिक किसी कुशल वैद्य के निर्देशन में ही सेवन करें, अन्यथा आप दस्त, उल्टी अथवा अन्य विकारों का शिकार हो सकते हैं ! धन्यवाद !

Dark Saint Alaick
25-10-2012, 12:52 AM
गोक्षुरादि चूर्णम

गोखरू, तालमखाना, शतावर, कौंच के बीज, गंगेरण और खरैटी - इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर रख लें, अब प्रतिदिन रात्रि के समय इसमें समान मात्रा की मिश्री मिलाकर दो तोला चूर्ण खाएं और ऊपर से मिश्री मिला गर्म अथवा धारोष्ण (गाय के थनों से तत्काल निकाला गया) दूध पिएं ! परम बाजीकर्ता यह योग बूढ़े को भी जवान बना देने में सक्षम है !

Dark Saint Alaick
28-10-2012, 03:01 AM
गोक्षुरादि चूर्णम : एक अन्य प्रयोग

गोखरू और कौंच के बीज को समान मात्रा में लेकर मिला लें ! इस चूर्ण को मिश्री मिले गर्म दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने वाला पुरुष स्त्री से नित्य दस बार सम्भोग करने योग्य शक्तिवान हो जाता है !

Dark Saint Alaick
28-10-2012, 03:21 AM
नारसिंह चूर्णम

शतावर का चूर्ण एक सेर, दक्षिणी गोखरू का चूर्ण एक सेर, बराही कंद का चूर्ण एक सेर, गिलोय सत्व सवा सेर, शुद्ध भिलावे दो सेर, चित्रक की छाल ढाई पाव, शुद्ध तिल एक सेर, त्रिकुटा आधा सेर, मिश्री साढ़े चार सेर, शहद सवा दो सेर, गाय का घी एक सेर- दो छटांक लें ! इन सभी को कूट छान कर मिला लें और चिकने शुद्ध पात्र में रख दें ! इसमें से दो तोला प्रतिदिन प्रातःकाल खाएं और उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन करें ! इसके एक माह तक लगातार सेवन से बुढापे के कारण होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं ! देह में गुठलियां बनना, बाल सफ़ेद होना अथवा गंजापन होना, प्रमेह, पांडु (पीलिया अथवा रक्त की कमी), पीनस, कोढ़ सहित अठारह प्रकार के चर्म (त्वचा) रोग, आठ तरह के उदार रोग, भगंदर, मूत्रकृच्छ, हलीमक, क्षयरोग, महाश्वास, पांच प्रकार की खांसी, 80 प्रकार के वायु रोग, 40 प्रकार के पित्त रोग, काफ के 20 तरह के रोग, मिश्रित और सन्निपात के रोग, सभी तरह के बबासीर जैसे रोगों को यह चूर्ण ठीक उसी प्रकार नष्ट कर देता है जिस तरह इंद्र का वज्र वृक्षों को नष्ट करता है ! इसके सेवन से वीर्य अत्यंत बढ़ जाता है, जिससे मनुष्य स्त्री से नित्य दस बार गमन करने योग्य हो जाता है ! इसके प्रभाव से मनुष्य शेर के समान शूरवीर पुत्र उत्पन्न करने में सक्षम हो जाता है ! अनेक गुणों वाला यह नारसिंह चूर्ण मनुष्य के समस्त रोगों को दूर करने की सामर्थ्य वाली दिव्य औषधि है !

Dark Saint Alaick
28-10-2012, 03:21 AM
मूसली चूर्णम

मूसली स्याह और सफ़ेद, विदारी कंद, गिलोय का सत्व, कौंच के बीज, गोखरू, शेंवला की मूसली इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और फिर चूर्ण के बराबर मिश्री मिला कर रख लें ! प्रतिदिन डेढ़ या दो तोला खाकर ऊपर से मिश्री और घी मिला कर दूध पिएं ! इससे वीर्य शुद्ध, पुष्ट होता है और मनुष्य की काम शक्ति बढ़ जाती है !

Dark Saint Alaick
01-11-2012, 10:16 AM
वाराहीकन्दचूर्णम

वाराहीकन्द (विदारीकन्द) और भांगरे के चूर्ण को 16-16 पल लेकर घी में थोड़ा भून लें ! फिर इसमें बराबर मात्रा मिश्री मिला कर रख लें ! प्रतिदिन एक तोला चूर्ण खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से काम-शक्ति बढ़ जाती है !

एक अन्य प्रयोग -

दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, मुलहठी-इन सभी को चार-चार तोला लेकर बराबर मात्रा की चीनी मिलाकर रख लें ! इस चूर्ण को मिश्री मिले चूर्ण के साथ खाएं अथवा ऊपर दिए गए वाराहीकन्द के चूर्ण के साथ मिला कर खाएं और ऊपर से दूध पिएं ! यह काम-शक्ति को बढाने का श्रेष्ठ उपाय है !

Dark Saint Alaick
07-11-2012, 11:22 AM
अन्यच्चूर्णम

कौंच के बीज और तालमखाना को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसमें समान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें ! इसे एक से दो तोला प्रतिदिन धारोष्ण (ताज़ा निकाला गया बिना गर्म किए) दूध के साथ सेवन करें ! यह प्रयोग नित्य करने वाले मनुष्य का वीर्य कभी क्षीण नहीं होता !

Dark Saint Alaick
07-11-2012, 11:27 AM
मधुयष्टीचूर्णम

मुलहठी के एक तोला चूर्ण में छः मासा शुद्ध देशी घी और एक तोला शहद मिला कर चाट लें ! इसके बाद इच्छा के अनुसार मिश्री मिला गर्म दूध पिएं ! यह प्रयोग नित्य करने वाला मनुष्य सदैव वीर्य के वेग से युक्त रहता है अर्थात उसकी कामेच्छा कभी क्षीण नहीं होती !

Dark Saint Alaick
16-11-2012, 11:01 AM
आमलकी चूर्णम

नई फसल के आंवलों को सुखा कर चूर्ण बना लें । इसे आंवलों के रस की इक्कीस भावना देकर रख लें और इसमें से डेढ़ से दो तोला मिश्री, शहद और घी मिला कर खाएं। फिर ऊपर से गर्म दूध पी लें। यह प्रयोग नित्य करने वाला अस्सी वर्ष का बूढ़ा भी सम्भोग में जवान की तरह सक्षम हो जाता है ।

Dark Saint Alaick
16-11-2012, 11:07 AM
विदारीकन्द चूर्णम

विदारीकन्द के चूर्ण को विदारीकन्द के रस की इक्कीस बार भावना देकर सुखा लें और साफ़ बर्तन में भर कर रख लें। इसमें से एक तोला चूर्ण लेकर एक तोला घी और दो तोला शहद मिलाकर खाएं और ऊपर से मिश्री मिला गर्म दूध पीयें। यह प्रयोग प्रतिदिन करने वाला अनेक स्त्रियों से इच्छा के अनुसार सहवास के योग्य हो जाता है।

Dark Saint Alaick
16-11-2012, 11:15 AM
शतावर्यादि चूर्णम

शतावर, खरैटी, विदारीकन्द, गोखरू, आंवला समान मात्रा में लेकर इन सबका एक साथ अथवा अलग-अलग चूर्ण बना कर रख लें। इनमें घी, शहद और मिश्री मिला कर खाएं ! यह अनुपम बाजीकरण प्रयोग है !

आचार्यों ने इन सब चूर्णों के मिश्रण और सभी के अलग-अलग कुल छह प्रयोग बताए हैं। यह छहों प्रयोग कामदेव से मदांध और अति सम्भोग के आदी मनुष्य के वीर्य को असीमित रूप से बढाने वाले हैं ! अब आगे इन सबके अलग-अलग रूप प्रस्तुत किए जाएंगे।

Dark Saint Alaick
24-11-2012, 04:59 AM
गोखरू चूर्णम

गोखरू का पांच टंक चूर्ण सात टंक शहद में मिला कर चाट लें और इसके बाद बकरी का गर्म किया दूध मिश्री मिला कर पी लें। यह प्रयोग करने से हस्त मैथुन आदि से उत्पन्न हुई नपुंसकता कुछ ही दिनों में दूर हो जाती है।

Dark Saint Alaick
24-11-2012, 05:06 AM
मूसल्यादि चूर्णम

काली मूसली, तालमखाना और गोखरू क्रम से एक, दो और तीन भाग (यथा काली मूसली तीन तोला, तालमखाना छः तोला और गोखरू नौ तोला) लेकर इनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह मिश्री मिले गर्म दूध के साथ छह माशा खाएं। यह प्रयोग इक्कीस दिन करने वाला सौ वर्ष का बूढा व्यक्ति भी स्त्री से नौजवान की तरह संसर्ग में सक्षम हो जाता है।

Dark Saint Alaick
05-12-2012, 04:15 AM
अन्य शतावर्यादि चूर्णम

शतावर, गोखरू, असगंध, पुनर्नवा, खरैटी, मूसली - सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह दो तोला चूर्ण प्रतिदिन घी और मिश्री मिलाकर गर्म दूध के साथ सेवन करने वाला क्षीण मनुष्य भी मतवाले हाथी के समान बलशाली और पुरुषार्थवान हो जाता है।

Dark Saint Alaick
05-12-2012, 04:22 AM
अश्वगंधादि चूर्णम

असगंध नागौरी और विधारा 40-40 तोला लेकर बारीक चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर रख लें। इसमें से प्रतिदिन दो तोला चूर्ण गर्म अथवा धारोष्ण दूध के साथ सेवन करें, तो धातु पुष्ट होकर मनुष्य स्त्री से रमण में कभी न थकने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 02:05 AM
करवीरादिचूर्णम

कनेर की जड़ का चूर्ण एक तोला, नए सेमल की जड़ पांच तोला, कौंच के बीज की गिरी सात तोला, इन सभी को लेकर कपड़छान कर लें और बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर घी और मिश्री मिले दूध के साथ प्रतिदिन छह मासे सेवन करें, तो मनुष्य का वीर्य पुष्ट होकर अनेक स्त्रियों का मान भंग करने योग्य हो जाता है।

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 02:18 AM
कामदेवचूर्णम

गोखरू 1 पल, कौंच के बीज 2 पल, गंगनेर के बीज 1 पल, शतावर 1 पल, विदारीकन्द 2 पल, असगंध 3 पल तथा अडूसा, गिलोय, लाल चन्दन, त्रिसुगंध (दालचीनी, इलायची, तेजपात) पीपल, आंवला, लौंग, नागकेशर-इन सभी को एक-एक तोला लें। खरटी और सेमल की मूसली 21-21 तोला लें। कुशा की जड़, काश की जड़, सरपते की जड़- प्रत्येक सात तोला लें। इन सभी को मिला कर चूर्ण बना लें और फिर चूर्ण की बराबर मात्रा की खांड मिला कर रख लें। इस चूर्ण को नित्य एक-दो तोला (बलाबल के अनुसार) दूध के साथ ग्रहण करें, तो दुष्टवीर्य, अल्पवीर्य, मूत्रकृच्छ आदि वीर्य एवं मूत्र से सम्बंधित सभी रोग दूर हो जाते हैं। भगवान् धन्वन्तरि का कहा हुआ यह निदान वीर्य की शक्ति को इस तरह बढ़ा देता है कि मनुष्य दस स्त्रियों के साथ घोड़े के समान रमण करने में सक्षम हो जाता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 06:29 AM
मानसोल्लास चूर्णम

तज, पीपल, लौंग, छोटी इलायची, सफ़ेद चन्दन, आंवला प्रत्येक को एक पल (4 तोला), लौह भस्म डेढ़ पल, शुद्ध भांग 2 पल, भीमसेनी कपूर और कस्तूरी दस-दस माशे लेकर सभी का चूर्ण बना लें। चूर्ण के बराबर मिश्री मिला कर रख लें और इस चूर्ण को प्रतिदिन 6 माशे शुद्ध दूध के साथ ग्रहण करें। यह प्रयोग जठराग्नि को बढाने के साथ काम शक्ति और कामेच्छा दोनों को तीव्र करता है।

Dark Saint Alaick
18-04-2013, 03:49 PM
बृहद्वाराहीकंद चूर्णम

बाराहीकंद, सिंघाड़े, बिदारीकंद - इन सभी का चूर्ण चार-चार तोले लेकर शुद्ध घी में भून लें। अब इसमें दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर, लवंग, पीपल, सौंठ, वंशलोचन (सभी दो-दो तोला) को चूर्ण कर मिला लें। अब सबके बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर चिकने बर्तन में रख लें। इसमें से नित्य दो तोला चूर्ण खाकर भैंस का दूध मिश्री मिलाकर पीयें। इस चूर्ण का सेवन इस प्रकार नित्य रात्रिकाल में करने वाले की सभी प्रकार की नपुंसकता दूर हो जाती है और स्तम्भन शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।

Dark Saint Alaick
18-04-2013, 03:56 PM
मदनप्रकाश चूर्णम

तालमखाने, मूसली, बिदारीकंद, सौंठ, असगंध, कौंच के बीज, सेमल के फूल, खरैटी, शतावर, मोचरस, गोखरू, जायफल, भुनी उड़द की दाल, भांग, वंशलोचन - इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें चूर्ण के बराबर मिश्री दाल कर अच्छी तरह मिला लें। इस चूर्ण को नित्य दो तोला खाकर ऊपर से दूध पीने वाले का वीर्य सम्पूर्ण दोषों से मुक्त हो जाता है, उसमें शुक्राणुओं की संख्या बढ़ जाती है तथा प्रमेह नष्ट हो जाता है।

Dark Saint Alaick
24-05-2013, 12:26 AM
अश्वगंधा चूर्णम

असगंध और काले तिल बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को शहद और शुद्ध घी में मिला कर नित्य दो तोला खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से वीर्य की वृद्धि होती है और सभी प्रकार की नपुंसकता दूर हो जाती है।

Dark Saint Alaick
24-05-2013, 01:01 AM
माष चूर्णम

शुद्ध उड़दों के बारह तोला चूर्ण को शुद्ध घी में थोड़ा भून लें। ठंडा होने पर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला लें। इस चूर्ण में से नित्य दो तोला थोड़ा घी और शहद मिलाकर सेवन करने और ऊपर से गर्म दूध पीने से बल और वीर्य की वृद्धि होती है। साथ ही, शरीर में गुठली पड़ना और बाल सफ़ेद होना भी रुक जाता है।

Dr.Shree Vijay
03-08-2013, 08:47 PM
मित्र डार्क संत जी द्वारा दिए गए सभी प्रयोग शतप्रतिशत सही हें,मेने अनेकों व्यक्तियों पर इन नुस्खो के सफलतम प्रयोग कई बार किये हैं,मित्र जनहितार्थ आपने यहा प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद........................................... ...........

dipu
08-08-2013, 07:51 PM
Great