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View Full Version : शहंशाह जो दिल से शायर था


Dark Saint Alaick
24-10-2012, 04:01 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19024&stc=1&d=1351076411

मित्रो, भारत के अंतिम शहंशाह बहादुर शाह ज़फर का आज जन्म दिवस है ! इस फकीराना तबीयत और मस्त-मौला बादशाह का जीवन अपने-आप में अनूठा रहा है ! उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए आनन-फानन में सम्राट घोषित किया, इस तरह उस समय वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में उभरे, अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, उनके पुत्रों को मौत के घाट उतार कर उनके सर ज़फर को भेंट कर दिए गए और अंततः उन्हें अपने वतन से निर्वासित कर बर्मा (अब मयन्मार) भेज दिया गया, जहां अपनी मिट्टी को याद करते हुए उन्होंने देह-त्याग किया ! उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं यह सूत्र शुरू कर रहा हूं, जिसमें मैं पहले उनका जीवन और फिर शायरी पेश करूंगा ! उम्मीद है, यह सूत्र आपको कई नई जानकारियां देगा ! धन्यवाद !

Dark Saint Alaick
24-10-2012, 11:16 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19036&stc=1&d=1351102565 http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19037&stc=1&d=1351102565

अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर वैसे तो भारत के मध्यकाल में राज करने वाले, मुगल काल के आखिरी बादशाह थे, लेकिन इतिहास में उन्हें मुगल शासक के तौर पर नहीं, बल्कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे नायक के रूप में याद किया जाता है, जो राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बने। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आमजन ही नहीं, तमाम राजे-रजवाड़ों ने भी उन्हें अपना बादशाह माना था।

Dark Saint Alaick
24-10-2012, 11:21 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19038&stc=1&d=1351102763

बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्तूबर 1775 को हुआ था। अपने पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद 28 सितंबर 1838 को दिल्ली के बादशाह बने। उनकी मां ललबाई हिन्दू परिवार से थीं। 1857 में जब हिन्दुस्तान में आजादी की चिंगारी भड़की, तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों से युद्ध छेड़ने का बिगुल फूंक दिया।

Dark Saint Alaick
24-10-2012, 11:22 PM
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय अंग्रेज काफी मजबूत हो चुके थे और जफर की सल्तनत कमजोर पड़ने लगी थी। इसी समय वह ऐसे नायक के रूप में उभरे जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रूप से स्वीकार करते थे। उन्हीं के नेतृत्व में हिन्दू और मुसलमानों ने अंग्रेजों से स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई एक साथ मिलकर लड़ी। 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया था। इसमें हिन्दू और मुसलमानों ने एक साथ भाग लिया था, कहा जा सकता है कि वह देश की राष्ट्रीय एकता के प्रतीक नायक थे।

Dark Saint Alaick
25-10-2012, 12:35 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19040&stc=1&d=1351107307

संग्राम के लिए निश्चित तिथि से पहले ही मेरठ छावनी के सैनिकों ने कारतूस में सुअर और गाय की चर्बी होने पर विद्राह छेड़ दिया था। बागी सैनिक विद्रोह के लिए निश्चित 10 मई से पहले ही अपने बंदी साथियों को छुड़ाकर मेरठ छावनी से भाग निकले। विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित कर दिया। गद्दीनशीन होने के बाद बादशाह ने अपने पहले आदेश में हिन्दू मान्यताओं से जुड़ी गाय का वध प्रतिबंधित कर दिया। इस फैसले से सांप्रदायिक एकता पर अच्छा प्रभाव पड़ा।

Sikandar_Khan
25-10-2012, 08:48 AM
अलैक जी! इस सूत्र के लिए बहुत बहुत शक्रिया ! बहुत ही बढ़ियाँ जानकारी मिली है |

raju41
25-10-2012, 06:24 PM
मित्रो, भारत के अंतिम शहंशाह बहादुर शाह ज़फर का आज जन्म दिवस है ! इस फकीराना तबीयत और मस्त-मौला बादशाह का जीवन अपने-आप में अनूठा रहा है ! उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए आनन-फानन में सम्राट घोषित किया, इस तरह उस समय वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में उभरे, अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, उनके पुत्रों को मौत के घाट उतार कर उनके सर ज़फर को भेंट कर दिए गए और अंततः उन्हें अपने वतन से निर्वासित कर बर्मा (अब मयन्मार) भेज दिया गया, जहां अपनी मिट्टी को याद करते हुए उन्होंने देह-त्याग किया ! उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं यह सूत्र शुरू कर रहा हूं, जिसमें मैं पहले उनका जीवन और फिर शायरी पेश करूंगा ! उम्मीद है, यह सूत्र आपको कई नई जानकारियां देगा ! धन्यवाद !
"बाबुल मोरा नैहर छूटा ही जाये...."
इस मशहूर गीत की रचना दिल्ली से बर्मा के रास्ते मे हुआ था।

abhisays
25-10-2012, 06:50 PM
पहले तो इस शानदार सूत्र के लिए आपको धन्यवाद. और एक ख़ास बात जो लोग इस अंतिम मुग़ल बादशाह के बारे में और जानना चाहते है तो इस दूरदर्शन सीरियल को जरुर देखे. इसमें अशोक कुमार ने बादशाह बहादुर शाह जफ़र की भूमिका निभाई थी.



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Dark Saint Alaick
31-10-2012, 07:22 AM
बहादुर शाह जफर मुल्क की आवाम से मोहब्बत करने वाला बादशाह था। वह हिन्दुस्तान की मुकम्मल तस्वीर को हिन्दू और मुसलमानों के साथ देखता था। मुसलमान शासक होने के बावजूद उसने हिन्दुओं की मान्यताओं और परंपरा से जुड़े अनेक कार्य किए, जिससे देश की एकता पर उसका सकारात्मक प्रभाव हुआ। राजनीति के अलावा जफर की साहित्य में भी गहरी रूचि रही। उनके काल को उर्दू कविता का स्वर्णिम काल कहा जाता है। जफर ने हिन्दी और उर्दू मिश्रित भाषा में गजलें लिखीं, जो बाद में साहित्य की नवीन शैली और परंपरा रूप में विकसित हुई। जफर के नेतृत्व में किए गए युद्ध के शुरुआती परिणाम तो हिन्दुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे, लेकिन अंग्रेजों के छलकपट से प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख बदल गया और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए।

Dark Saint Alaick
31-10-2012, 07:29 AM
बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली, लेकिन अंग्रेज मेजर हडसन ने उन्हें बेटे मिर्जा मुगल, खिरज सुल्तान और पोते अबू बकर के साथ पकड़ लिया। अंग्रेजों ने उसके पुत्रों के सर काटकर बहादुर शाह जफर के सामने परोस दिए। आजादी की बगावत को पूरी तरह खत्म करने के लिए अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह का निर्वासित कर रंगून भेज दिया। जहां सात नवंबर 1882 को उनकी मौत हो गई। रंगून में उनका मकबरा आज भी है।

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19171&stc=1&d=1351650532

Dark Saint Alaick
31-10-2012, 07:33 AM
मकबरे पर लगा घोषणा-पत्र !

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19172&stc=1&d=1351650737

Dark Saint Alaick
31-10-2012, 07:33 AM
भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह बहादुर शाह जफर उर्दू के माने हुए शायर भी थे। उनके दरबारी साथियों में मिर्जा गालिब, जौक, मोमिन जैसे अरबी-फारसी और उर्दू के कई विद्वान और शायर शामिल थे। उनकी गजले भी हिन्दी-उर्दू की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं। जहां जफर के समकालीन शायर अरबी और फारसी में रचनाएं कर रहे थे, वहीं बहादुरशाह जफर हिन्दुस्तानी तहजीब की हिन्दी-उर्दू मिश्रित गजलें लिख रहे थे। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उनका यह उदाहरण भी अप्रतिम है।

Ranveer
04-11-2012, 09:09 PM
इसमे कोई शक नहीं की बहादुर शाह भारत के सच्चे सपूतों मे से एक थे । ये उनका दुर्भाग्य ही था की उनके काल मे मुगल साम्राज्य अंतिम साँसे ले रहा था और जज्बे के बावजूद कुछ करने मे अक्षम थे । 1857 की क्रान्ति मे उन्हे अचानक ही सैनिकों का नेतृत्व मिल गया । बुढ़ापे के बावजूद उन्होने नेतृत्व की चुनौती को स्वीकार किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका ।

उनकी देशभक्ति को हमारा नमन ।
'दो गज़ जमीन न मिली' उनकी ही रचना थी जो उन्होने शायद बर्मा मे निर्वासन काल मे रचा था ।

Dark Saint Alaick
04-11-2012, 09:57 PM
सूत्र की जानकारियों में सार्थक इजाफा करने के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं, रणवीरजी ! यदि आपके पास कोई अतिरिक्त जानकारी हो, तो उसका सदैव स्वागत है ! अब मैं इसमें ज़फर का कलाम प्रस्तुत करूंगा !