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View Full Version : मंत्र संग्रह


aspundir
10-11-2012, 08:27 PM
मंत्र संग्रह



http://i232.photobucket.com/albums/ee251/Rumiwater/GaneshaAnimated.gif

aspundir
10-11-2012, 08:29 PM
श्री गणेश मंत्र (Ganesha Mantra)

"ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम: सिद्धिं मे देहि बुद्धिं प्रकाशय ग्लूं गलीं ग्लां फट् स्वाहा||"
http://www.cec.vcn.bc.ca/rdi/bartle/images/ganesh.gif

विधि :-

इस मंत्र का जप करने वाला साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठकर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का लड्डू आदि रखे तथा जप काल में कपूर की धूप जलाये तो यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को सिद्ध करने की ताकत (Power, शक्ति) प्रदान करता है|

aspundir
10-11-2012, 08:31 PM
स्नान मन्त्र (Bathing Mantra)

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।

aspundir
12-11-2012, 04:05 PM
आँखों की सुरक्षा का मंत्रः

ॐ नमो आदेश गुरु का... समुद्र... समुद्र में खाई... मर्द(नाम) की आँख आई.... पाकै फुटे न पीड़ा करे.... गुरु गोरखजी आज्ञा करें.... मेरी भक्ति.... गुरु की भक्ति... फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
नमक की सात डली लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सात बार झाड़ें। इससे नेत्रों की पीड़ा दूर हो जाती है।

aspundir
12-11-2012, 04:06 PM
‘ॐ अरुणाय हूँ फट् स्वाहा।’
इस मंत्र के जप के साथ-साथ आँखें धोने से अर्थात् आँख में धीरे-धीरे पानी छाँटने से असह्य पीड़ा मिटती है।

aspundir
12-11-2012, 04:06 PM
नेत्ररोगों के लिए चाक्षोपनिषद्

ॐ अस्याश्चाक्क्षुषी विद्यायाः अहिर्बुधन्य ऋषिः। गायत्री छंद। सूर्यो देवता। चक्षुरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः।
ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुधन्य हैं। गायत्री छंद है। सूर्यनारायण देवता है। नेत्ररोग की निवृत्ति के लिए इसका जप किया जाता है। यही इसका विनियोग है।.
ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरित चक्षुरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहं अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु करु।
याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूल्य निर्मूलय। ॐ नम: चक्षुस्तेजोरत्रे दिव्व्याय भास्कराय। ॐ नमः करुणाकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षि तेजसे नमः।
खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। हंसो भगवान शुचिरप्रति-प्रतिरूप:।
ये इमां चाक्षुष्मती विद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्या-सिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।
ॐ हे सूर्यदेव ! आप मेरे नेत्रों में नेत्रतेज के रूप में स्थिर हों। आप मेरा रक्षण करो, रक्षण करो। शीघ्र मेरे नेत्ररोग का नाश करो, नाश करो। मुझे आपका स्वर्ण जैसा तेज दिखा दो, दिखा दो। मैं अन्धा न होऊँ, इस प्रकार का उपाय करो, उपाय करो। मेरा कल्याण करो, कल्याण करो। मेरी नेत्र-दृष्टि के आड़े आने वाले मेरे पूर्वजन्मों के सर्व पापों को नष्ट करो, नष्ट करो। ॐ (सच्चिदानन्दस्वरूप) नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले, दिव्यस्वरूप भगवान भास्कर को नमस्कार है। ॐ करुणा करने वाले अमृतस्वरूप को नमस्कार है। ॐ भगवान सूर्य को नमस्कार है। ॐ नेत्रों का प्रकाश होने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ आकाश में विहार करने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ रजोगुणरूप सूर्यदेव को नमस्कार है। अन्धकार को अपने अन्दर समा लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है।
हे भगवान ! आप मुझे असत्य की ओर से सत्य की ओर ले चलो। अन्धकार की ओर से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु की ओर से अमृत की ओर ले चलो।
उष्णस्वरूप भगवान सूर्य शुचिस्वरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य शुचि तथा अप्रतिरूप हैं। उनके तेजोमय रूप की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है।
जो कोई इस चाक्षुष्मती विद्या का नित्य पाठ करता है उसको नेत्ररोग नहीं होते हैं, उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता है। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर यह विद्या सिद्ध हो जाती है।

aspundir
12-11-2012, 04:07 PM
चाक्षुषोपनिषद् की पठन-विधिः

श्रीमत् चाक्षुषीपनिषद् यह सभी प्रकार के नेत्ररोगों पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इस अदभुत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है।
सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है। इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें।
शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए।
प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि 'मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।' लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके 'चाक्षुषोपनिषद्' का पठन प्रारंभ करें।
इस उपनिषद का शीघ्र गति से लाभ लेना हो तो निम्न वर्णित विधि अनुसार पठन करें-
नेत्रपीड़ित श्रद्धालु साधकों को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। अनार की डाल की लेखनी व हल्दी के घोल से काँसे के बर्तन में नीचे वर्णित बत्तीसा यंत्र लिखें-
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19737&stc=1&d=1352722623
मम चक्षुरोगान् शमय शमय।

बत्तीसा यंत्र लिखे हुए इस काँसे के बर्तन को ताम्बे के चौड़े मुँहवाले बर्तन में रखें। उसको चारों ओर घी के चार दीपक जलावें और गंध पुष्प आदि से इस यंत्र की मनोभाव से पूजा करें। पश्चात् हल्दी की माला से 'ॐ ह्रीं हंसः'इस बीजमंत्र की छः माला जपें। पश्चात् 'चाक्षुषोपनिषद्' का बारह बार पाठ करें। अधिक बार पढ़ें तो अति उत्तम। 'उपनिषद्' का पाठ होने के उपरान्त 'ॐ ह्रीं हंसः'इस बीजमंत्र की पाँच माला फिर से जपें। इसके पश्चात सूर्य को श्रद्धापूर्वक अर्घ्य देकर साष्टांग नमस्कार करें। 'सूर्यदेव की कृपा से मेरे नेत्ररोग शीघ्रातिशीघ्र नष्ट होंगे – ऐसा विश्वास होना चाहिए।
इस पद्धति से 'चाक्षुषोपनिषद्' का पाठ करने पर इसका आश्चर्यजनक, अलौकिक प्रभाव तत्काल दिखता है।

aspundir
12-11-2012, 04:18 PM
पीपल पूजन मन्त्र (Pipal Poojan Mantra).

अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।
अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।

aspundir
12-11-2012, 04:46 PM
दाँत-दाढ़ के दर्द पर मंत्र प्रयोगः

ॐ नमो आदेश गुरु का... बन में ब्याई अंजनी...जिन जाया हनुमंत.... कीड़ा मकड़ा माकड़ा.... ये तीनों भस्मंत.... गुरु की भक्ति.... मेरी भक्ति.... फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
एक नीम की टहनी लेकर दर्द के स्थान पर छुआते हुए सात बार इस मंत्र को श्रद्धा से जपें। ऐसा करने से दाँत या दाढ़ का दर्द समाप्त हो जायगा और पीड़ित व्यक्ति आराम का अनुभव करेगा।

aspundir
12-11-2012, 04:54 PM
बवासीर का मंत्रः

ॐ काका कता क्रोरी कर्ता... ॐ करता से होय....यरसना दश हंस प्रगटे.... खूनी बादी बवासीर न होय.... मंत्र जान के न बताये..... द्वादश ब्रह्महत्या का पाप होय... लाख जप करे तो उसके... वंश में न होय.... शब्द साँचा... पिण्ड काँचा... फुर्रो मंत्र ईश्वरोवाचा।
रात्रि के रखे हुए पानी को लेकर इस मंत्र को 21 बार शक्तिकृत करके गुदाप्रक्षालन करें तो दोनों प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।

aspundir
12-11-2012, 04:56 PM
पीलिया का मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु का... श्रीराम सर साधा... लक्ष्मण साधा बाण... काला-पीला-रीता.... नीला थोथा पीला.... पीला चारों झड़े तो रामचंद्रजी रहै नाम.... मेरी भक्ति.... गुरु की शक्ति.... फुरे मंत्र ईश्वरोवाचा।
काँसे के पात्र में जल भरकर, नीम के पत्तों को सरसों के तेल में भीगोकर इस मंत्र का जाप करते हुए रोगी को सात बार झाड़े। शीघ्र लाभ होगा।

aspundir
12-11-2012, 07:18 PM
प्रसव पीड़ा

मंत्रः ॐ कौंरा देव्यै नमः। ॐ नमो आदेश गुरु का.... कौंरा वीरा का बैठी हात... सब दिराह मज्ञाक साथ.... फिर बसे नाति विरति.... मेरी भक्ति... गुरु की शक्ति.... कौंरा देवी की आज्ञा।
प्रसव के समय कष्ट उठा रही स्त्री को इस मंत्र से अभिमंत्रित किया हुआ जल पिलाने से वह स्त्री बिना पीड़ा के बच्चे को जन्म देती है।

jai_bhardwaj
29-12-2012, 07:52 PM
चाक्षुषोपनिषद् की पठन-विधिः

श्रीमत् चाक्षुषीपनिषद् यह सभी प्रकार के नेत्ररोगों पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इस अदभुत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है।
सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है। इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें।
शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए।
प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि 'मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।' लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके 'चाक्षुषोपनिषद्' का पठन प्रारंभ करें।
इस उपनिषद का शीघ्र गति से लाभ लेना हो तो निम्न वर्णित विधि अनुसार पठन करें-
नेत्रपीड़ित श्रद्धालु साधकों को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। अनार की डाल की लेखनी व हल्दी के घोल से काँसे के बर्तन में नीचे वर्णित बत्तीसा यंत्र लिखें-
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=19737&stc=1&d=1352722623
मम चक्षुरोगान् शमय शमय।

बत्तीसा यंत्र लिखे हुए इस काँसे के बर्तन को ताम्बे के चौड़े मुँहवाले बर्तन में रखें। उसको चारों ओर घी के चार दीपक जलावें और गंध पुष्प आदि से इस यंत्र की मनोभाव से पूजा करें। पश्चात् हल्दी की माला से 'ॐ ह्रीं हंसः'इस बीजमंत्र की छः माला जपें। पश्चात् 'चाक्षुषोपनिषद्' का बारह बार पाठ करें। अधिक बार पढ़ें तो अति उत्तम। 'उपनिषद्' का पाठ होने के उपरान्त 'ॐ ह्रीं हंसः'इस बीजमंत्र की पाँच माला फिर से जपें। इसके पश्चात सूर्य को श्रद्धापूर्वक अर्घ्य देकर साष्टांग नमस्कार करें। 'सूर्यदेव की कृपा से मेरे नेत्ररोग शीघ्रातिशीघ्र नष्ट होंगे – ऐसा विश्वास होना चाहिए।
इस पद्धति से 'चाक्षुषोपनिषद्' का पाठ करने पर इसका आश्चर्यजनक, अलौकिक प्रभाव तत्काल दिखता है।

मुझे नहीं पता कि सचाई क्या थी किन्तु मेरे पितामह (दादा जी) के पास ज्वर - पीड़ित आया करते थे तब दादा जी एक बिना प्रयुक्त की गयी मिट्टी की मटकी को तोड़ कर रखे गए उसके छोटे छोटे टुकड़ों पर यही बत्तीसा यंत्र लिख कर कुछ निर्धारित दिनों में दिया करते थे जो कदाचित बिना प्रयोग किये हुए लाल रंग के कपडे में बाँध कर पीड़ित की बांह अथवा गले में पहना दिया जाता था।

jai_bhardwaj
29-12-2012, 08:05 PM
पीलिया का मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु का... श्रीराम सर साधा... लक्ष्मण साधा बाण... काला-पीला-रीता.... नीला थोथा पीला.... पीला चारों झड़े तो रामचंद्रजी रहै नाम.... मेरी भक्ति.... गुरु की शक्ति.... फुरे मंत्र ईश्वरोवाचा।
काँसे के पात्र में जल भरकर, नीम के पत्तों को सरसों के तेल में भीगोकर इस मंत्र का जाप करते हुए रोगी को सात बार झाड़े। शीघ्र लाभ होगा।

प्रसव पीड़ा

मंत्रः ॐ कौंरा देव्यै नमः। ॐ नमो आदेश गुरु का.... कौंरा वीरा का बैठी हात... सब दिराह मज्ञाक साथ.... फिर बसे नाति विरति.... मेरी भक्ति... गुरु की शक्ति.... कौंरा देवी की आज्ञा।
प्रसव के समय कष्ट उठा रही स्त्री को इस मंत्र से अभिमंत्रित किया हुआ जल पिलाने से वह स्त्री बिना पीड़ा के बच्चे को जन्म देती है।

पुंडीर जी, हार्दिक अभिवादन।
मैं इस विषय में अधिक जानकारी के लिए लालायित हूँ। मैं गलत भी हो सकता हूँ किन्तु मैंने उपरोक्त भाषा में तांत्रिक मन्त्र देखे हैं जिनमे अपने गुरु अथवा किसी अन्य ज्ञानी पुरुष के आदेश को उद्धृत किया जाता है और कई मन्त्रों में तो इन्हें आहूत भी किया जाता है ... ये सात्विक मन्त्र नहीं। ये झाड-फूँक के लिए प्रयुक्त होने वाले मन्त्र प्रतीत होते हैं। हाँ यह सच है कि ये मन्त्र भी सिद्ध करने के बाद ही प्रयुक्त किये जा सकते हैं। ये स्वघाती भी होते हैं।
मेरे विचार से सूत्र की प्रथम प्रविष्टि में आपको एक सूचना अवश्य चिपका देनी चाहिए कि " सदस्य इन मन्त्रों को प्रयुक्त करने से पूर्व योग्य और प्रशिक्षित गुरु का सानिध्य अवश्य प्राप्त करें। किसी भी प्रकार के दैहिक, मानसिक और आर्थिक संताप के लिए मंच दोषी नहीं होगा।"
मेरे विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है। धन्यवाद।

aspundir
29-12-2012, 08:32 PM
पुंडीर जी, हार्दिक अभिवादन।
मैं इस विषय में अधिक जानकारी के लिए लालायित हूँ। मैं गलत भी हो सकता हूँ किन्तु मैंने उपरोक्त भाषा में तांत्रिक मन्त्र देखे हैं जिनमे अपने गुरु अथवा किसी अन्य ज्ञानी पुरुष के आदेश को उद्धृत किया जाता है और कई मन्त्रों में तो इन्हें आहूत भी किया जाता है ... ये सात्विक मन्त्र नहीं। ये झाड-फूँक के लिए प्रयुक्त होने वाले मन्त्र प्रतीत होते हैं। हाँ यह सच है कि ये मन्त्र भी सिद्ध करने के बाद ही प्रयुक्त किये जा सकते हैं। ये स्वघाती भी होते हैं।
मेरे विचार से सूत्र की प्रथम प्रविष्टि में आपको एक सूचना अवश्य चिपका देनी चाहिए कि " सदस्य इन मन्त्रों को प्रयुक्त करने से पूर्व योग्य और प्रशिक्षित गुरु का सानिध्य अवश्य प्राप्त करें। किसी भी प्रकार के दैहिक, मानसिक और आर्थिक संताप के लिए मंच दोषी नहीं होगा।"
मेरे विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है। धन्यवाद।


भारद्वाज जी, इस सूत्र में दिये सभी मन्त्र हानिरहित तथा निरापद हैं, ये शान्तिकारक तथा पौष्टिक मन्त्र हैं ।
सर्वप्रथम तो यह विषय आस्था से जुड़ा होने के कारण सर्व-साधारण इन मन्त्रों का उपयोग ही नहीं करता है तथा जो उपयोग करते हैं, उनको मन्त्र विज्ञान का साधारण ज्ञान होता ही है ।
हालांकि कहा गया है "गुरु बिना ज्ञान नहीं होता", लेकिन माना जाता है की भगवान् दत्तात्रेय ने जिसके भी ज्ञान अर्जित किया (यहाँ तक की किसी भी जन्तु की विशेष क्रिया या विशेषता को अपना कर) उसे गुरु माना । एकलव्य तो गुरु-मूर्ति को ही गुरु मान कर सर्व-श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया । मन्त्र विज्ञान में शाम्भवी-दीक्षा के अनुसार यदि योग्य गुरु न मिले तो भगवान् शिव को गुरु मानकर दीक्षा ग्रहण कर मन्त्र का पुरश्चरण किया जा सकता है ।
एतद् विषय आस्था व विश्वास से सम्बन्धित है तथा मेरे द्वारा प्रस्तुत सभी मन्त्र हानिरहित व निरापद हैं । इन मन्त्रों से किसी भी प्रकार का अहित नहीं होता, अगर आस्था व विश्वास के साथ साधना नहीं की गई है, तो कोई फल ही नहीं है तथा फल है तो वह भी सकारात्मक ।

aspundir
22-05-2013, 04:07 PM
दुर्गा सप्तशती

दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति

1) प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए |

2) दूसरा अध्याय- मुकदमे,झगडे आदि मे विजय पाने के लिए |

3) तीसरा अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिए |

4) चतुर्थ व पंचम अध्याय- भक्ति,शक्ति तथा दर्शन के लिए |

5) छठा अध्याय- डर,शक बाधा हटाने के लिए |

6) सप्तम अध्याय-हर कामना पूर्ण करने के लिए |

7) अष्टम अध्याय-मिलाप व वशीकरण करने के लिए |

8)नवम व दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश एवं पुत्र प्राप्ति के लिए |

9) एकादश अध्याय- व्यापार व सुख संपती के लिए |

10) द्वादश अध्याय-मान सम्मान व लाभ के लिए|

11) त्रियोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिए |

aspundir
22-05-2013, 04:09 PM
धन प्राप्ति मंत्र

विशेष ऋग्वेद का प्रसिद्ध धन प्राप्ति मंत्र इस प्रकार है -

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर।
भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्।
आ नो भजस्व राधसि।।´
ऋग्वेद (4/32/20-21)

हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं।

आप्तजनों से सुना है कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं - उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान मुझे इस अर्थ संकट से मुक्त कर दो।

rajnish manga
02-07-2013, 10:57 PM
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते/
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावाशिष्यते//
(ईशावास्योपनिषद)

भावार्थ : वह (परमात्मा) पूर्ण है और यह (आत्मा / अणु) भी पूर्ण है. पूर्ण से पूर्ण निकल आया है. फिर भी पूर्ण पहले के समान ही पूर्ण बना है.

internetpremi
23-07-2013, 08:50 PM
संस्कृत और हिन्दी में मंत्र, श्लोक व भजनों का संग्रह, Vishwa Hindu Parishad of America द्वारा तैयार किया गया का एक pdf file कुछ साल पहले किसीने मुझे भेजा था। 417 Kilobytes का पी डी एफ फाइल है । इस फाइल के दो पन्ने यहाँ attach कर रहा हूँ। एक, Table of contents और दूसरा एक Sample page. यदी किसी को इसमे रुची है तो हमें सूचित करें।