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View Full Version : आरोग्यनिधि


aspundir
12-11-2012, 03:55 PM
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में इन तीन बातों की अत्यधिक आवश्यकता होती है – स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन तथा सम्मानित जीवन। सुख का आधार स्वास्थ्य है तथा सुखी जीवन ही सम्मान के योग्य है।
उत्तम स्वास्थ्य का आधार है यथा योग्य आहार-विहार एवं विवेकपूर्वक व्यवस्थित जीवन। बाह्य चकाचौंध की ओर अधिक आकर्षित होकर हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं इसलिए हमारा शरीर रोगों का घर बनता जा रहा है।
‘चरक संहिता’ में कहा गया हैः
आहाराचारचेष्टासु सुखार्थी प्रेत्य चेह च।
परं प्रयत्नमातिष्ठेद् बुद्धिमान हित सेवने।।
'इस संसार में सुखी जीवन की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान व्यक्ति आहार-विहार, आचार और चेष्टाएँ हितकारक रखने का प्रयत्न करें।'
उचित आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य – ये तीनों वात, पित्त और कफ को समान रखते हुए शरीर को स्वस्थ व निरोग बनाये रखते हैं, इसीलिए इन तीनों को उपस्तम्भ माना गया है। अतः आरोग्य के लिए इन तीनों का पालन अनिवार्य है।
यह एक सुखद बात है कि आज समग्र विश्व में भारतीय के आयुर्वेद के प्रति श्रद्धा, निष्ठा व जिज्ञासा बढ़ रही है क्योंकि श्रेष्ठ जीवन-पद्धति का जो ज्ञान आयुर्वेद ने इस विश्व को दिया है, वह अद्वितीय है। अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ केवल रोग तक ही सीमित हैं लेकिन आयुर्वेद ने जीवन के सभी पहलुओं को छुआ है। धर्म, आत्मा, मन, शरीर, कर्म इत्यादि सभी विषय आयुर्वेद के क्षेत्रान्तर्गत आते हैं।
आयुर्वेद में निर्दिष्ट सिद्धान्तों का पालन कर के हम रोगों से बच सकते हैं, फिर भी यदि रोगग्रस्त हो जावें तो यथासंभव एलोपैथिक दवाइयों का प्रयोग न करें क्योंकि ये रोग को दूर करके 'साइड इफेक्ट' के रूप में अन्य रोगों का कारण बनती हैं।

aspundir
12-11-2012, 03:56 PM
ऋतुचर्या

मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ हैं- शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु। आयुर्वेद के मतानुसार छः ऋतुएँ मानी गयी हैं- वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, और शिशिर। महर्षि सुश्रुत ने वर्ष के 12 मास इन ऋतुओं में विभक्त कर दिये हैं।
वर्ष के दो भाग होते हैं जिसमें पहले भाग आदान काल में सूर्य उत्तर की ओर गति करता है, दूसरे भाग विसर्ग काल में सूर्य दक्षिण की ओर गति करता है। आदान काल में शिशिर, वसन्त एवं ग्रीष्म ऋतुएँ और विसर्ग काल में वर्षा एवं हेमन्त ऋतुएँ होती हैं। आदान के समय सूर्य बलवान और चन्द्र क्षीणबल रहता है।
शिशिर ऋतु उत्तम बलवाली, वसन्त ऋतु मध्यम बलवाली और ग्रीष्म ऋतु दौर्बल्यवाली होती है। विसर्ग काल में चन्द्र बलवान और सूर्य क्षीणबल रहता है। चन्द्र पोषण करने वाला होता है। वर्षा ऋतु दौर्बल्यवाली, शरद ऋतु मध्यम बल व हेमन्त ऋतु उत्तम बलवाली होती है।

aspundir
12-11-2012, 03:56 PM
वसन्त ऋतुः

शीत व ग्रीष्म ऋतु का सन्धिकाल वसन्त ऋतु होता है। इस समय में न अधिक सर्दी होती है न अधिक गर्मी होती है। इस मौसम में सर्वत्र मनमोहक आमों के बौर की सुगन्ध से युक्त सुगन्धित वायु चलती है। वसन्त ऋतु को ऋतुराज भी कहा जाता है।
वसन्त पंचमी के शुभ पर्व पर प्रकृति सरसों के पीले फूलों का परिधान पहनकर मन को लुभाने लगती है। वसन्त ऋतु में रक्तसंचार तीव्र हो जाता है जिससे शरीर में स्फूर्ति रहती है। वसन्त ऋतु में न तो गर्मी की भीषण जलन-तपन होती है और न वर्षा की बाढ़ और न ही शिशिर की ठंडी हवा, हिमपात व कोहरा होता है। इन्ही कारणों से वसन्त ऋतु को 'ऋतुराज' कहा गया है।
(वसन्ते निचितः श्लेष्मा दिनकृभ्दाभिरितः।)
चरक संहिता के अनुसार हेमन्त ऋतु में संचित हुआ कफ वसन्त ऋतु में सूर्य की किरणों से प्रेरित (द्रवीभूत) होकर कुपित होता है जिससे वसन्तकाल में खाँसी, सर्दी-जुकाम, टॉन्सिल्स में सूजन, गले में खराश, शरीर में सुस्ती व भारीपन आदि की शिकायत होने की सम्भावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो जाती है अतः इस ऋतु में आहार-विहार के प्रति सावधान रहें।

aspundir
12-11-2012, 03:57 PM
वसन्त ऋतु में आहार-विहारः
इस ऋतु में कफ को कुपित करने वाले पौष्टिक और गरिष्ठ पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम करते हुए गर्मी बढ़ते हुए ही बन्द कर के सादा सुपाच्य आहार लेना शुरु कर देना चाहिए। चरक के सादा सुपाच्य आहार लेना शुरु कर देना चाहिये। चरक के अनुसार इस ऋतु में भारी, चिकनाईवाले, खट्टे और मीठे पदार्थों का सेवन व दिन में सोना वर्जित है। इस ऋतु में कटु, तिक्त, कषारस-प्रधान द्रव्यों का सेवन करना हितकारी है। प्रातः वायुसेवन के लिए घूमते समय 15-20 नीम की नई कोंपलें चबा-चबाकर खायें। इस प्रयोग से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है।
यदि वसन्त ऋतु में आहार-विहार के उचित पालन पर पूरा ध्यान दिया जाय और बदपरहेजी न की जाये तो वर्त्तमान काल में स्वास्थ्य की रक्षा होती है। साथ ही ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य की रक्षा करने की सुविधा हो जाती है। प्रत्येक ऋतु में स्वास्थ्य की दृष्टि से यदि आहार का महत्व है तो विहार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
इस ऋतु में उबटन लगाना, तेलमालिश, धूप का सेवन, हल्के गर्म पानी से स्नान, योगासन व हल्का व्यायाम करना चाहिए। देर रात तक जागने और सुबह देर तक सोने से मल सूखता है, आँख व चेहरे की कान्ति क्षीण होती है अतः इस ऋतु में देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। हरड़े के चूर्ण का नियमित सेवन करने वाले इस ऋतु में थोड़े से शहद में यह चूर्ण मिलाकर चाटें।

aspundir
12-11-2012, 03:57 PM
ग्रीष्मचर्याः
ग्रीष्मऋतु में हवा लू के रूप में तेज लपट की तरह चलती है जो बड़ी कष्टदायक और स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होती है। अतः इन दिनों में पथ्य आहार-विहार का पालन करके स्वस्थ रहें।
पथ्य आहारः सूर्य की तेज गर्मी के कारण हवा और पृथ्वी में से सौम्य अंश (जलीय अंश) कम हो जाता है। अतः सौम्य अंश की रखवाली के लिए मधुर, तरल, हल्के, सुपाच्य, ताजे, जलीय, शीतल तथा स्निग्ध गुणवाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जैसे ठण्डाई, घर का बनाया हुआ सत्तू, ताजे नींबू निचोड़कर बनाई हुई शिकंजी, खीर, दूध, कैरी, अनार, अंगूर, घी, ताजी चपाती, छिलके वाली मूंग की दाल, मौसम्बी,लौकी, गिल्की, चने की भाजी, चौलाई, परवल, केले की सब्जी, तरबूज के छिल्के की सब्जी, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पोदीना, कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, गुलकन्द, पेठा आदि खाना चाहिए।
इस ऋतु में हरड़े का सेवन गुड़ के साथ समान मात्रा में करना चाहिए जिससे वात या पित्त का प्रकोप नहीं होता है। इस ऋतु में प्रातः 'पानी-प्रयोग' अवश्य करना चाहिए जिसमें सुबह-सुबह खाली पेट सवा लिटर पानी पीना होता है। इससे ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, दमा, टी.बी. जैसी भयंकर बीमारियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। यह प्रयोग न करते हों तो शुरु करें और लाभ उठायें। घर से बाहर निकलते समय एक गिलास पानी पीकर ही निकालना चाहिए। इससे लू लगने की संभावना नहीं रहेगी। बाहर के गर्मी भरे वातावरण में से आकर तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए। 10-15 मिनट बाद ही पानी पीना चाहिए। इस ऋतु में रात को जल्दी सोकर प्रातः जल्दी जगना चाहिए। रात को जगना पड़े तो एक-एक घण्टे पर ठण्डा पानी पीते रहना चाहिए। इससे उदर में पित्त और कफ के प्रकोफ नहीं रहता।
पथ्य विहारः प्रातः सूर्योदय से पहले ही जगें। शीतल जलाशय के पास घूमें। शीतल पवन जहाँ आता हो वहाँ सोयें। जहाँ तक संभव हो सीधी धूप से बचना चाहिए। सिर में चमेली, बादाम रोगन, नारियल, लौकी का तेल लगाना चाहिए।
अपथ्य आहारः तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ इस ऋतु में नहीं खाने चाहिए। नमकीन, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी दही, अमचूर, आचार, सिरका, इमली आदि नहीं खायें। शराब पीना ऐसे तो हानिकारक है ही लेकिन इस ऋतु में विशेष हानिकारक है। फ़्रिज का पानी पीने से दाँतों व मसूढ़ों में कमजोरी, गले में विकार, टॉन्सिल्स में सूजन, सर्दी-जुकाम आदि व्याधियाँ होती हैं इसलिए फ्रीज का पानी न पियें। मिट्टी के मटके का पानी पियें।
अपथ्य विहारः रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोये रहना त्याग दें। अधिक व्यायाम, स्त्री सहवास, उपवास, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, भूख-प्यास सहना वर्जित है।

aspundir
12-11-2012, 03:57 PM
वर्षा ऋतु में आहार-विहारः

वर्षा ऋतु से 'आदान काल' समाप्त होकर सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और विसर्गकाल शुरु हो जाता है। इन दिनों में हमारी जठराग्नि अत्यंत मंद हो जाती है। वर्षाकाल में मुख्य रूप से वात दोष कुपित रहता है। अतः इस ऋतु में खान-पान तथा रहन-सहन पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी हो जाता है।
गर्मी के दिनों में मनुष्य की पाचक अग्नि मंद हो जाती है। वर्षा ऋतु में यह और भी मंद हो जाती है। फलस्वरूप अजीर्ण, अपच, मंदाग्नि, उदरविकार आदि अधिक होते हैं।
आहारः इन दिनों में देर से पचने वाला आहार न लें। मंदाग्नि के कारण सुपाच्य और सादे खाद्य पदार्थों का सेवन करना ही उचित है। बासी, रूखे और उष्ण प्रकृति के पदार्थों का सेवन न करें। इस ऋतु में पुराना जौ, गेहूँ, साठी चावल का सेवन विशेष लाभप्रद है। वर्षा ऋतु में भोजन बनाते समय आहार में थोड़ा-सा मधु (शहद) मिला देने से मंदाग्नि दूर होती है व भूख खुलकर लगती है। अल्प मात्रा में मधु के नियमित सेवन से अजीर्ण, थकान, वायुजन्य रोगों से भी बचाव होता है।
इन दिनों में गाय-भैंस के कच्ची-घास खाने से उनका दूध दूषित रहता है, अतः श्रावण मास में दूध एवं पत्तेदार हरी सब्जियाँ तथा भादों में छाछ का सेवन करना एवं श्रावण मास में हरे पत्तेवाली सब्जियों का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है।
तेलों में तिल के तेल का सेवन करना उत्तम है। यह वात रोगों का शमन करता है।
वर्षा ऋतु में उदर-रोग अधिक होते हैं, अतः भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए। नींबू वर्षा ऋतु में होने वाली बीमारियों में बहुत ही लाभदायक है।
इस ऋतु में फलों में आम तथा जामुन सर्वोत्तम माने गये हैं। आम आँतों को शक्तिशाली बनाता है। चूसकर खाया हुआ आम पचने में हल्का, वायु तथा पित्तविकारों का शमन करता है। जामुन दीपन, पाचन तथा अनेक उदर-रोगों में लाभकारी है।
वर्षाकाल के अन्तिम दिनों में व शरद ऋतु का प्रारंभ होने से पहले ही तेज धूप पड़ने लगती है और संचित पित्त कुपित होने लगता है। अतः इन दिनों में पित्तवर्द्धक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
इन दिनों में पानी गन्दा व जीवाणुओं से युक्त होने के कारण अनेक रोग पैदा करता है। अतः इस ऋतु में पानी उबालकर पीना चाहिए या पानी में फिटकरी का टुकड़ा घुमाएँ जिससे गन्दगी नीचे बैठ जायेगी।
विहारः इन दिनों में मच्छरों के काटने पर उत्पन्न मलेरिया आदि रोगों से बचने के लिए मच्छरदानी लगाकर सोयें। चर्मरोग से बचने के लिए मच्छरदानी लगाकर सोयें। चर्मरोग से बचने के लिए शरीर की साफ-सफाई का भी ध्यान रखें। अशुद्ध व दूषित जल का सेवन करने से चर्मरोग, पीलिया, हैजा, अतिसार जैसे रोग हो जाते हैं।
दिन में सोना, नदियों में स्नान करना व बारिश में भीगना हानिकारक होता है।
वर्षाकाल में रसायन के रूप में बड़ी हरड़ का चूर्ण व चुटकी भर सेन्धा नमक मिलाकर ताजे जल के साथ सेवन करना चाहिए। वर्षाकाल समाप्त होने पर शरद ऋतु में बड़ी हरड़ के चूर्ण के साथ मात्रा में शक्कर का प्रयोग करें।

aspundir
12-11-2012, 03:58 PM
शरद ऋतु में स्वास्थ्य सुरक्षाः

समग्र भारत की दृष्टि से 16 सितम्बर से 14 नवम्बर तक शरद ऋतु मानी जा सकती है।
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से संचित पित्त-दोष का प्रकोप शरद ऋतु में बढ़ जाता है। इससे इस ऋतु में पित्त का पाचक स्वभाव दूर होकर वह विदग्ध बन जाता है। परिणामस्वरूप बुखार, पेचिश, उल्टी, दस्त, मलेरिया आदि होता है। आयुर्वेद में समस्त ऋतुओं में शरद ऋतु को 'रोगों की माता' कहा जाता है। इस ऋतु को ‘प्राणहर यम की दाढ़’ भी कहा है।
इस ऋतु में पित्त-दोष एवं लवण रस की स्वाभाविक ही वृद्धि हो जाती है। सूर्य की गर्मी भी विशेष रूप से तेज लगती है। अतः पित्त-दोष, लवण रस और गर्मी इन तीनों का शमन करे ऐसे मधुर (मीठे), तिक्त (कड़वे) एवं कषाय (तूरे) रस का विशेष उपयोग करना चाहिए। पित्त-दोष की वृद्धि करें ऐसी खट्टी, खारी एवं तीखी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। पित्त-दोष के प्रकोप की शांति के लिए मधुर, ठंडी, भारी, कड़वी एवं तूरी (कसैली) वस्तुओं का विशेष सेवन करें।
इस ऋतु में सब्जियाँ खूब होती हैं किन्तु उसमें वर्षा ऋतु का नया पानी होने की वजह से वे दोषयुक्त होती हैं। उनमें लवण (खारे) रस की अधिकता होती है। अतः जहाँ तक हो सके शरद ऋतु में कम लें एवं भादों (भाद्रपद) के महीने में तो उन्हें त्याज्य ही मानें।
घी-दूध पित्त दोष का मारक है इसलिए हमारे पूर्वजों ने भादों में श्राद्ध पक्ष का आयोजन किया होगा।
इस ऋतु में अनाज में गेहूँ, जौ, ज्वार, धान, सामा (एक प्रकार का अनाज) आदि लेना चाहिए। दलहन में चने, तुअर, मूँग, मसूर, मटर लें। सब्जी में गोभी, ककोड़ा (खेखसा), परवल, गिल्की, ग्वारफली, गाजर, मक्के का भुट्टा, तूरई, चौलाई, लौकी, पालक, कद्दू, सहजने की फली, सूरन (जमीकंद), आलू वगैरह लिये जा सकते हैं। फलों में अंजीर, पके केले, जामफल (बिही), जामुन, तरबूज, अनार, अंगूर, नारियल, पका पपीता, मोसम्बी, नींबू, गन्ना आदि लिया जा सकता है। सूखे मेवे में अखरोट, आलू बुखारा, काजू, खजूर, चारोली, बदाम, सिंघाड़े, पिस्ता आदि लिया जा सकता है। मसाले में जीरा, आँवला, धनिया, हल्दी, खसखस, दालचीनी, काली मिर्च, सौंफ आदि लिये जा सकते हैं। इसके अलावा नारियल का तेल, अरण्डी का तेल, घी, दूध, मक्खन, मिश्री, चावल आदि लिये जायें तो अच्छा है।
शरद ऋतु में खीर, रबड़ी आदि ठंडी करके खाना आरोग्यता के लिए लाभप्रद है। पके केले में घी और इलायची डालकर खाने से लाभ होता है। गन्ने का रस एवं नारियल का पानी खूब फायदेमंद है। काली द्राक्ष (मुनक्के), सौंफ एवं धनिया को मिलाकर बनाया गया पेय गर्मी का शमन का करता है।

aspundir
12-11-2012, 03:58 PM
त्याज्य वस्तुएँ: शरद ऋतु में ओस, जवाखार जैसे क्षार, दही, खट्टी, छाछ, तेल, चरबी, गरम-तीक्षण वस्तुएँ, खारे-खट्टे रस की चीजें त्याज्य हैं। बाजरी, मक्का, उड़द, कुलथी, चौला, फूट, प्याज, लहसुन, मेथी की भाजी, नोनिया की भाजी, रतालू, बैंगन, इमली, हींग, पोदीना, फालसा, अन्नानास, कच्चे बेलफल, कच्ची कैरी, तिल, मूँगफली, सरसों आदि पित्तकारक होने से त्याज्य हैं। खासकर खट्टी छाछ, भिंडी एवं ककड़ी खास न लें। इस ऋतु में तेल की जगह घी का उपयोग उत्तम है। जिनको पित्त-विकार होता हो तो उन्हें महासुदर्शन चूर्ण, नीम, नीम की अंतरछाल जैसी कड़वी एवं तूरी-कसैली चीजें खास करके उपयोग में लानी चाहिए।
ऋतुजन्य विकारों से बचने के लिए अन्य दवाइयों पर पैसा खर्च करने की अपेक्षा आँवला 10 ग्राम, धनिया 10 ग्राम, सौंफ 10 ग्राम, मिश्री 33 ग्राम लेकर इनका चूर्ण बनाकर खाने के आधे घण्टे बाद पानी के साथ लेना हितकर है। इस ऋतु में जुलाब लेने से पित्तदोष शरीर से निकल जाता है। पित्तजन्य विकारों से रक्षा होती है। जुलाब के लिए हरड़े उत्तम औषधि है।
इस ऋतु में शरीर पर कपूर एवं चंदन का उबटन लगाना खुले में चाँदनी में बैठना, घूमना-फिरना, चंपा, चमेली, मोगरा, गुलाब आदि पुष्पों का सेवन करना लाभप्रद है। दिन की निद्रा, धूप, बर्फ का सेवन, अति परिश्रम, थका डाले ऐसी कसरत एवं पूर्व दिशा से आने वाली वायु इस ऋतु में हानिकारक है।
शरद ऋतु में रात्रि में पसीना बने ऐसे खेल खेलना, रास-गरबा करना हितकर है। होम-हवन करने से, दीपमाला करने से वायुमंडल की शुद्धि होती है।

aspundir
12-11-2012, 03:58 PM
हेमन्त और शिशिर की ऋतुचर्याः

शीतकाल आदानकाल और विसर्गकाल दोनों का सन्धिकाल होने से इनके गुणों का लाभ लिया जा सकता है क्योंकि विसर्गकाल की पोषक शक्ति हेमन्त ऋतु हमारा साथ देती है। साथ ही शिशिर ऋतु में आदानकाल शुरु होता जाता है लेकिन सूर्य की किरणें एकदम से इतनी प्रखर भी नहीं होती कि रस सुखाकर हमारा शोषण कर सकें। अपितु आदानकाल का प्रारम्भ होने से सूर्य की हल्की और प्रारम्भिक किरणें सुहावनी लगती हैं।
शीतकाल में मनुष्य को प्राकृतिक रूप से ही उत्तम बल प्राप्त होता है। प्राकृतिक रूप से बलवान बने मनुष्यों की जठराग्नि ठंडी के कारण शरीर के छिद्रों के संकुचित हो जाने से जठर में सुरक्षित रहती है जिसके फलस्वरूप अधिक प्रबल हो जाती है। यह प्रबल हुई जठराग्नि ठंड के कारण उत्पन्न वायु से और अधिक भड़क उठती है। इस भभकती अग्नि को यदि आहाररूपी ईंधन कम पड़े तो वह शरीर की धातुओं को जला देती है। अतः शीत ऋतु में खारे, खट्टे मीठे पदार्थ खाने-पीने चाहिए। इस ऋतु में शरीर को बलवान बनाने के लिए पौष्टिक, शक्तिवर्धक और गुणकारी व्यंजनों का सेवन करना चाहिए।
इस ऋतु में घी, तेल, गेहूँ, उड़द, गन्ना, दूध, सोंठ, पीपर, आँवले, वगैरह में से बने स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजनों का सेवन करना चाहिए। यदि इस ऋतु में जठराग्नि के अनुसार आहार न लिया जाये तो वायु के प्रकोपजन्य रोगों के होने की संभावना रहती है। जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न हो उन्हें रात्रि को भिगोये हुए देशी चने सुबह में नाश्ते के रूप में खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। जो शारीरिक परिश्रम अधिक करते हैं उन्हें केले, आँवले का मुरब्बा, तिल, गुड़, नारियल, खजूर आदि का सेवन करना अत्यधिक लाभदायक है।
एक बात विशेष ध्यान में रखने जैसी है कि इस ऋतु में रातें लंबी और ठंडी होती हैं। अतः केवल इसी ऋतु में आयुर्वेद के ग्रंथों में सुबह नाश्ता करने के लिए कहा गया है, अन्य ऋतुओं में नहीं।
अधिक जहरीली (अंग्रेजी) दवाओं के सेवन से जिनका शरीर दुर्बल हो गया हो उनके लिए भी विभिन्न औषधि प्रयोग जैसे कि अभयामल की रसायन, वर्धमान पिप्पली प्रयोग, भल्लातक रसायन, शिलाजित रसायन, त्रिफला रसायन, चित्रक रसायन, लहसुन के प्रयोग वैद्य से पूछ कर किये जा सकते हैं।
जिन्हें कब्जियत की तकलीफ हो उन्हें सुबह खाली पेट हरड़े एवं गुड़ अथवा यष्टिमधु एवं त्रिफला का सेवन करना चाहिए। यदि शरीर में पित्त हो तो पहले कटुकी चूर्ण एवं मिश्री लेकर उसे निकाल दें। सुदर्शन चूर्ण अथवा गोली थोड़े दिन खायें।

aspundir
12-11-2012, 03:59 PM
विहारः आहार के साथ विहार एवं रहन-सहन में भी सावधानी रखना आवश्यक है। इस ऋतु में शरीर को बलवान बनाने के लिए तेल की मालिश करनी चाहिए। चने के आटे, लोध्र अथवा आँवले के उबटन का प्रयोग लाभकारी है। कसरत करना अर्थात् दंड-बैठक लगाना, कुश्ती करना, दौड़ना, तैरना आदि एवं प्राणायाम और योगासनों का अभ्यास करना चाहिए। सूर्य नमस्कार, सूर्यस्नान एवं धूप का सेवन इस ऋतु में लाभदायक है। शरीर पर अगर का लेप करें। सामान्य गर्म पानी से स्नान करें किन्तु सिर पर गर्म पानी न डालें। कितनी भी ठंडी क्यों न हो सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए। रात्रि में सोने से हमारे शरीर में जो अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होती है वह स्नान करने से बाहर निकल जाती है जिससे शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है।
सुबह देर तक सोने से यही हानि होती है कि शरीर की बढ़ी हुई गर्मी सिर, आँखों, पेट, पित्ताशय, मूत्राशय, मलाशय, शुक्राशय आदि अंगों पर अपना खराब असर करती है जिससे अलग-अलग प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार सुबह जल्दी उठकर स्नान करने से इन अवयवों को रोगों से बचाकर स्वस्थ रखा जा सकता है।
गर्म-ऊनी वस्त्र पर्याप्त मात्रा में पहनना, अत्यधिक ठंड से बचने हेतु रात्रि को गर्म कंबल ओढ़ना, रजाई आदि का उपयोग करना, गर्म कमरे में सोना, अलाव तापना लाभदायक है।
अपथ्यः इस ऋतु में अत्यधिक ठंड सहना, ठंडा पानी, ठंडी हवा, भूख सहना, उपवास करना, रूक्ष, कड़वे, कसैले, ठंडे एवं बासी पदार्थों का सेवन, दिवस की निद्रा, चित्त को काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष से व्याकुल रखना हानिकारक है।

aspundir
12-11-2012, 03:59 PM
अवश्य पढ़ें-

उपवासः उपवास काल में रोगी के शरीर में नया मल उत्पन्न नहीं होता है और जीवनशक्ति को पुराना जमा मल निकालने का अवसर मिलता है। इस प्रकार मल-शुद्धि द्वारा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
उपवास का अर्थ होता है निराहार रहना। लोग उपवास तो कर लेते हैं लेकिन उपवास छोड़ने पर क्या खाना चाहिए, इस पर ध्यान नहीं देते। इसीलिए अधिक लाभ नहीं होता। जितने दिन उपवास करें उतने ही दिन उपवास छोड़ने पर मूँग का पानी तथा उसके दोगुने दिन तक मूँग लेना चाहिए। तत्पश्चात् खिचड़ी, चावल आदि तथा अन्त में सामान्य भोजन करना चाहिए।
किसी भी रोग की शुरुआत में उपवास, मूँग का पानी, मूँग, परवल, भुने हुए चने, चावल की राब आदि लेना चाहिए।
दवा लेने की यदि विधि न बताई गई हो तो वह दवा केवल पानी या शहद के साथ लें।
भूखे पेट ली गई आयुर्वैदिक काष्ठ औषधि अधिक लाभदायकर होती है। खाली पेट दोपहर एवं रात्रि को भोजन से पूर्व दवा लें किन्तु जहाँ स्पष्ट बताया गया हो वहाँ उसी प्रकार दवा लेने की सावधानी रखें।
सामान्य रूप से दवा चार घण्टे के अंतर से दिन में तीन बार ली जाती है।
विविध दवाओं की मात्रा जब न बताई गयी हो वहाँ उन्हें समान मात्रा में लें।
दवा के प्रमाण में जब अनिश्चितता हो, अथवा शंका उठे, तब प्रारंभ में थोड़ी-ही मात्रा में दवा लेना शुरु करें। फिर पचने पर धीरे-धीरे बढ़ाते जायें या अनुभवी वैद्य की सलाह लें।
वच, अतिविष, कुचला, जायफल, अरीठे जैसी उग्र दवाओं को सावधानीपूर्वक एवं कम मात्रा में ही लें।
हरड़े खाना तो बहुत हितकारी है।। भोजन के पश्चात् सुपारी की तरह तथा रात्रि को हरड अवश्य लेनी चाहिए। इसे धात्री अर्थात् दूसरी माता भी कहा गया है। लेकिन थके हुए, कमजोर, प्यासे, उपवासवाले व्यक्तियों एवं गर्भवती स्त्रियों को हरड़े नहीं खानी चाहिए।
आँवले का सेवन अत्यंत हितावह है। अतः भोजन के प्रारंभ, मध्य एवं अन्त में नित्य सेवन करें।
भोजन के एक घण्टे बाद जल पीना आरोग्यता की दृष्टि से हितकर है।
दोपहर के भोजन के पश्चात सौ कदम चलकर 10 मिनट वामकुक्षि (बायीं करवट लेटना) करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
दाँयें स्वर में भोजन एवं बाँयें स्वर में पेय पदार्थ लेना स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
भोजन एवं सब्जी के साथ फलों का रस कभी न लें। दोनों के बीच दो घण्टे का अंतर अवश्य होना चाहिए।

aspundir
12-11-2012, 03:59 PM
दूध के साथ दही, तुलसी, अदरक, लहसुन, तिल, गुड़, खजूर, मछली, मूली, नींबू, केला, पपीता सभी प्रकार के फल एवं उनके रस तथा फ्रूट आइसक्रीम आदि नहीं खायें।
फलों का रस दिन के समय ही लें। रात्रि को फलों का रस पीना हितकर नहीं है।
आम के रस की अपेक्षा आम को चूसकर खाना अधिक गुणकारी है।
केले को सुबह खाने से ताँबे जैसी, दोपहर को खाने से चाँदी जैसी और शाम को खाने से सोने जैसी कीमत होती है। श्रम न करने वालों को अधिक मात्रा में केला खाना हानिकारक है।
बीमारी में केला, आम, अमरूद, पपीता, कद्दू, टमाटर, दही, अंकुरित अनाज, कमलकंद, पनीर, सूखी सब्जियाँ, मछली, मावा, बेकरी तथा फ्रीज की वस्तुएँ, चॉकलेट, बिस्किट, कोल्डड्रिंक्स, मिल्कशेक आदि कभी न खायें-पियें। मक्का (भुट्टा), ज्वार, बाजरी, उड़द, आलू, मूँगफली, केला, पपीता, नारंगी आदि बड़ी मुश्किल से हजम होते हैं। आयुर्वेद ने इन्हें दुर्जर कहा है, इसलिए न खायें।
टमाटर, पथरी, सूजन, संधिवात, आमवात और अम्लपित्त के रोगियों के लिए अनुकूल नहीं है। जिन्हें शीतपित्त की शिकायत हो, शरीर में अधिक गर्मी हो, जठर, आँतों या गर्भाशय में छाले हों, दस्त लगे हों, खटाई अनुकूल न हो – वे टमाटर का सेवन न करें।
रात्रि में, वसंत, ग्रीष्म, शरद ऋतु में और बारिश में दही खाना हितावह नहीं है। बुखार, सूजन, रक्तपित्त, कफ, पित्त, चर्मरोग, मेद (मोटापा), कामला, रक्तविकार, घाव, पांडुरोग, जलन आदि में दही न खायें।
बादाम से भरी बर्नी में दो चम्मच शक्कर डालने से महीनों तक बादाम बेस्वाद नहीं होती।
सिर एवं हृदय पर ज्यादा सेंक करने से हानि होती है।
स्नान से पूर्व मालिश करें, फिर व्यायाम करें। व्यायाम के बाद तुरंत स्नान न करें, आधे घण्टे बाद स्नान करें।

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12-11-2012, 04:00 PM
वेग रोकने से होने वाले रोग

भूख रोकने से होने वाले रोगः

अंगभंगारूचिग्लानिकार्श्यशूलभ्रमाः क्षुधः।
भूख रोकने से, भूख लगने पर भी न खाने से शरीर टूटता है, अरुचि, ग्लानि और दुर्बलता आती है। इसके अलावा पेट में शूल-दर्द होता है और सिर में चक्कर आते हैं।
पेट में जब दर्द हो तब यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि यह दर्द अजीर्ण के कारण तो नहीं है? यह दर्द अजीर्ण के कारण हो और उसे भूख के कारण होने वाला दर्द मानकर अधिक भोजन करने पर परिस्थिति बिगड़ जाती है।
प्यास रोकने से होने वाले रोगः

शोषांगसादबाधिर्यसम्मोहभ्रमह्रदगदाः।
तृष्णाया निग्रहात्तत्र.....
प्यास रोकने से मुखशोष (मुँह का सूखना), शरीर में शिथिलता, अंगों में कार्य करने की अशक्ति महसूस होना बहरापन, मोह, भ्रम, चक्कर आना, आँखों में अन्धापन आना आदि रोग हो सकते हैं। शरीर में धातुओं की कमी होने से हृदय में भी विकृति हो सकती है।
खाँसी रोकने से होने वाले रोगः

कासस्य रोधात्तद् वृद्धिः श्वासारूचिहृदामयाः।
शोषो हिध्मा च.....
खाँसी को रोकने से खाँसी की वृद्धि होती है। दमा, अरूचि, हृदय के रोग, क्षय, हिचकी जैसे श्वासनलिका के एवं फेफड़ों के रोग हो सकते हैं।
थकान के कारण फूली हुई साँस को रोकने से होने वाले रोगः

गुल्महद्रोगसम्मोहाः श्रमश्वासाद्धिधारितात्।
चलने से, दौड़ने से, व्यायाम करने से फूली हुई साँस को रोकने से गोला, आँतों एवं हृदय के रोग, बेचैनी आदि होते हैं।

छींक रोकने से होने वाले रोगः

शिरोर्तिन्द्रियदौर्बल्यमन्यास्तम्भार्दितं क्षुतेः।
छींक को रोकने से सिरदर्द होता है, इन्द्रियाँ दुर्बल बनती हैं व गरदन अकड़ जाती है। आर्दित नामक वायुरोग माने मुँह का पक्षाघात, लकवा (Facial Paralysis) होने की संभावना रहती है।

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12-11-2012, 04:00 PM
प्रयुक्त तोल-माप

1 रत्ती – 125 मिलिग्राम
6 रत्ती – एक आनी भार – 750 मिलिग्राम
8 रत्ती – 1 ग्राम या 1 मासा
पाव तोला – 3 ग्राम
आधा तोला – 6 ग्राम
1 तोला – 12 ग्राम
चवन्नी भार – 2.5 ग्राम
एक रूपया भार – 10 ग्राम

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12-11-2012, 04:01 PM
नेत्रज्योति बढ़ाने के लिएः

पहला प्रयोगः इन्द्रवरणा (बड़ी इन्द्रफला) के फल को काटकर अंदर से बीज निकाल दें। इन्द्रवरणा की फाँक को रात्रि में सोते समय लेटकर (उतान) ललाट पर बाँध दें। आँख में उसका पानी न जाये, यह सावधानी रखें। इस प्रयोग से नेत्रज्योति बढ़ती है।
दूसरा प्रयोगः त्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भीगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आँखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
तीसरा प्रयोगः जलनेति करने से नेत्रज्योति बढ़ती है। इससे आँख, नाक, कान के समस्त रोग मिट जाते हैं।

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12-11-2012, 04:01 PM
रतौंधी अर्थात् रात को न दिखना (Night Blindness)-

पहला प्रयोगः बेलपत्र का 20 से 50 मि.ली. रस पीने और 3 से 5 बूँद आँखों में आँजने से रतौंधी रोग में आराम होता है।
दूसरा प्रयोगः श्याम तुलसी के पत्तों का दो-दो बूँद रस 14 दिन तक आँखों में डालने से रतौंधी रोग में लाभ होता है। इस प्रयोग से आँखों का पीलापन भी मिटता है।
तीसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम मिश्री तथा जीरे को 2 से 5 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से एवं लेंडीपीपर को छाछ में घिसकर आँजने से रतौंधी में फायदा होता है।
चौथा प्रयोगः जीरा, आँवला एवं कपास के पत्तों को समान मात्रा में लेकर पीसकर सिर पर 21 दिन तक पट्टी बाँधने से रतौंधी में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:01 PM
आँखों का पीलापनः

रात्रि में सोते समय अरण्डी का तेल या शहद आँखों में डालने से आँखों की सफेदी बढ़ती है।

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12-11-2012, 04:01 PM
आँखों की लालिमाः

पहला प्रयोगः आँवले के पानी से आँखें धोने से या गुलाबजल डालने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः जामफल के पत्तों की पुल्टिस बनाकर (20-25 पत्तों को पीसकर, टिकिया जैसी बनाकर, कपड़े में बाँधकर) रात्रि में सोते समय आँख पर बाँधने से आँखों का दर्द मिटता है, सूजन और वेदना दूर होती है।
तीसरा प्रयोगः हल्दी की डली को तुअर की दाल में उबालकर, छाया में सुखाकर, पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व दिन में दो बार आँख में आँजने से आँखों की लालिमा, झामर एवं फूली में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:02 PM
आँखों का कालापनः

आँखों के नीचे के काले हिस्से पर सरसों के तेल की मालिश करने से तथा सूखे आँवले एवं मिश्री का चूर्ण समान मात्रा में 1 से 5 ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ लेने से आँखों के पास के काले दाग दूर होते हैं।

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12-11-2012, 04:02 PM
आँखों की गर्मी या आँख आने परः

नींबू एवं गुलाबजल का समान मात्रा का मिश्रण एक-एक घण्टे के अंतर से आँखों में डालने से एवं हल्का-हल्का सेंक करते रहने से एक दिन में ही आयी हुई आँखें ठीक होती हैं।

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12-11-2012, 04:02 PM
आँख की अंजनी (मुहेरी या बिलनी) (Stye)-

हल्दी एवं लौंग को पानी में घिसकर गर्म करके अथवा चने की दाल को पीसकर पलकों पर लगाने से तीन दिन में ही गुहेरी मिट जाती है।

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12-11-2012, 04:03 PM
आँख में कचरा जाने परः

पहला प्रयोगः सौ ग्राम पानी में एक नींबू का रस डालकर आँखे धोने से कचरा निकल जाता है।
दूसरा प्रयोगः आँख में चूना जाने पर घी अथवा दही का तोर (पानी) आँजें।

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12-11-2012, 04:03 PM
आँख दुखने परः

गर्मी की वजह से आँखें दुखती हो तो लौकी को कद्दूकस करके उसकी पट्टी बाँधने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:03 PM
आँखों से पानी बहने परः

पहला प्रयोगः आँखें बन्द करके बंद पलको पर नीम के पत्तों की लुगदी रखने से लाभ होता है। इससे आँखों का तेज भी बढ़ता है।
दूसरा प्रयोगः रोज जलनेति करें। 15 दिन तक केवल उबले हुए मूँग ही खायें। त्रिफला गुगल की 3-3 गोली दिन में तीन बार चबा-चबाकर खायें तथा रात्रि को सोते समय त्रिफला की तीन गोली गर्म पानी के साथ सेवन करें। बोरिक पावडर के पानी से आँखें धोयें इससे लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:03 PM
मोतियाबिंद (Cataract) एवं झामर (तनाव)-

पहला प्रयोगः पलाश (टेसू) का अर्क आँखों में डालने से नये मोतियाबिंद में लाभ होता है। इससे झामर में भी लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः गुलाबजल में विषखपरा (पुनर्नवा) घिसकर आँजने से झामर में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:04 PM
चश्मा उतारने के लिएः

पहला प्रयोगः छः से आठ माह तक नियमित जलनेति करने से एवं पाँव के तलवों तथा कनपटी पर गाय का घी घिसने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 7 बादाम, 5 ग्राम मिश्री और 5 ग्राम सौंफ दोनों को मिलाकर उसका चूर्ण बनाकर रात्रि को सोने से पहले दूध के साथ लेने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
तीसरा प्रयोगः एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालें और प्रतिदिन रात्रि को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पाँच बूँद आँखों में डालकर आँखों की पुतलियों को इधर-उधर घुमायें। साथ ही पैरों के तलुए में आधे घण्टे तक घी की मालिश करें। इससे आँखों के चश्मे के नंबर उतारने में सहायता मिलती है तथा मोतियाबिंद में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:04 PM
सर्वप्रकार के नेत्ररोगः

पहला प्रयोगः पैर के तलवे तथा अँगूठे की सरसों के तेल से मालिश करने से नेत्ररोग नहीं होते।
दूसरा प्रयोगः ‘ॐ अरुणाय हूँ फट् स्वाहा।’ इस मंत्र के जप के साथ-साथ आँखें धोने से अर्थात् आँख में धीरे-धीरे पानी छाँटने से असह्य पीड़ा मिटती है।
तीसरा प्रयोगः हरड़, बहेड़ा और आँवला तीनों को समान मात्रा में लेकर त्रिफलाचूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 2 से 5 ग्राम मात्रा को घी एवं मिश्री के साथ मिलाकर कुछ महीनों तक सेवन करने से नेत्ररोग में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:04 PM
आँखों की सुरक्षाः

रात्रि में 1 से 5 ग्राम आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से, हरियाली देखने तथा कड़ी धूप से बचने से आँखों की सुरक्षा होती है।
आँखों की सुरक्षा का मंत्रः

ॐ नमो आदेश गुरु का... समुद्र... समुद्र में खाई... मर्द(नाम) की आँख आई.... पाकै फुटे न पीड़ा करे.... गुरु गोरखजी आज्ञा करें.... मेरी भक्ति.... गुरु की भक्ति... फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
नमक की सात डली लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सात बार झाड़ें। इससे नेत्रों की पीड़ा दूर हो जाती है।

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12-11-2012, 04:41 PM
नाक के रोग

नकसीर (नाक से रक्त गिरना)(Epistaxis)-

पहला प्रयोगः फिटकरी का पानी बनाकर उसकी कुछ बूँदें अथवा दूर्वा के रस की या निबौली के तेल की कुछ बूँदें डालने से नकसीर में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 10 से 50 मिलीलीटर हरे आँवलों के रस में 2 से 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पुराने नकसीर में भी लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः नकसीर के रोगी को ताजी धनिया का रस सुँघाने से तथा उसकी हरी पत्तियाँ पीसकर सिर पर लेप करने से गर्मी के कारण होनेवाली नकसीर में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः आम की गुठली के रस का नस्य लेने (नाक से सूँघने से) लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:42 PM
घ्राणशक्ति का अभावः

घ्राणशक्तिनाशक रोग में मरीज को नाक द्वारा किसी भी प्रकार की गंध का अहसास नहीं होता। ऐसे मरीज को लहसुन की पत्तियों अथवा कलियों के रस की बूँदें नाक में डालने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:42 PM
कान के रोग

कान में पीब(मवाद) होने परः

पहला प्रयोगः फुलाये हुए सुहागे को पीसकर कान में डालकर ऊपर से नींबू के रस की बूँद डालने से मवाद निकलना बंद होता है।
मवाद यदि सर्दी से है तो सर्दी मिटाने के उपाय करें। साथ में सारिवादी वटी 1 से 3 गोली दिन में दो बार व त्रिफला गुग्गल 1 से 3 गोली दिन में तीन बार सेवन करना चाहिए।
दूसरा प्रयोगः शुद्ध सरसों या तिल के तेल में लहसुन की कलियों को पकाकर 1-2 बूँद सुबह-शाम कान में डालने से फायदा होता है।

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12-11-2012, 04:42 PM
बहरापनः

पहला प्रयोगः दशमूल, अखरोट अथवा कड़वी बादाम के तेल की बूँदें कान में डालने से बहरेपन में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः ताजे गोमूत्र में एक चुटकी सेंधा नमक मिलाकर हर रोज कान में डालने से आठ दिनों में ही बहरेपन में फायदा होता है।
तीसरा प्रयोगः आकड़े के पके हुए पीले पत्ते को साफ करके उस पर सरसों का तेल लगाकर गर्म करके उसका रस निकालकर दो-तीन बूँद हररोज सुबह-शाम कान में डालने से बहरेपन में फायदा होता है।
चौथा प्रयोगः करेले के बीज और उतना ही काला जीरा मिलाकर पानी में पीसकर उसका रस दो-तीन बूँद दिन में दो बार कान में डालने से बहरेपन में फायदा होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः कम सुनाई देता हो तो कान में पंचगुण तेल की 3-3 बूँद दिन में तीन बार डालें। औषधि में सारिवादि वटी 2-2 गोली सुबह, दोपहर तथा रात को लें। कब्ज न रहने दें। भोजन में दही, केला, फल व मिठाई न लें।

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12-11-2012, 04:42 PM
कान का दर्दः

अदरक का रस कान में डालने से कान के दर्द, बहरेपन एवं कान के बंद होने पर लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:42 PM
कान में आवाज होने परः

लहसुन एवं हल्दी को एकरस करके कान में डालने पर लाभ होता है। कान बंद होने पर भी यह प्रयोग हितकारक है।

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12-11-2012, 04:43 PM
कान में कीड़े जाने परः

दीपक के नीचे का जमा हुआ तेल अथवा शहद या अरण्डी का तेल या प्याज का रस कान में डालने पर कीड़े निकल जाते हैं।

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12-11-2012, 04:43 PM
कान के सामान्य रोगः

सरसों या तिल के तेल में तुलसी के पत्ते डालकर धीमी आँच पर रखें। पत्ते जल जाने पर उतारकर छान लें। इस तेल की दो-चार बूँदें कान में डालने से सभी प्रकार के कान-दर्द में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:43 PM
दाँत के रोग

दाँत की सफाई तथा मजबूतीः

पहला प्रयोगः नींबू के छिलकों पर थोड़ा-सा सरसों का तेल डालकर दाँत एवं मसूढ़ों को घिसने से दाँत सफेद एवं चमकदार होते हैं, मसूढ़े मजबूत होते हैं, हर प्रकार के जीवाणुओं का नाश होता है तथा पायरिया आदि रोगों से बचाव होता है।
मशीनों से दाँत की सफाई इतनी हितकारी नहीं है।
दूसरा प्रयोगः बड़ और करंज की दातौन करने से दाँत मजबूत होते हैं।
तीसरा प्रयोगः जामफल के पत्तों को अच्छी तरह चबाकर उसका रस मुँह में फैलाकर, थोड़ी देर तक रखकर थूक देने से अथवा जामफल की छाल को पानी में उबालकर उसके कुल्ले करने से दाँत के दर्द, मसूढ़ों में से खून आना, दाँत की दुर्गन्ध आदि में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:43 PM
दाढ़ का दर्दः

कपूर की गोली अथवा लौंग या सरसों के तेल या बड़ के दूध में भिगोया हुआ रूई का फाहा अथवा घी में तली हुई हींग का टुकड़ा दाढ़ के नीचे रखने से दर्द में आराम मिलता है।

मसूढ़ों की सूजनः

जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े के कुल्ले करने से दाँतों के मसूढ़ों की सूजन मिटती है व हिलते दाँत मजबूत होते हैं।
दाँत खटा जाने परः

तिल के तेल में पीसा हुआ नमक मिलाकर उँगली से दाँतों को रोज घिसने से दाँत खटा जाने की पीड़ा दूर हो जायगी।
दाँत क्षत-विक्षत अवस्था में-

तिल के तेल से हाथ की उँगली से दिन में तीन बार दाँतों एवं मसूढ़ों की मालिश करें। 7 दिन बाद बड़ की दातौन को चबाकर मुलायम बनने पर घिसें। तिल के तेल का कुल्ला मुँह में भरकर जितनी देर रख सके उतनी देर रखें। मुँह आँतों का आयना है अतः पेट की सफाई के लिए छोटी हरड़ चबाकर खायें।

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12-11-2012, 04:44 PM
रक्तस्राव बंद करने हेतुः

नमक के पानी के कुल्ले करने तथा कत्थे अथवा हल्दी का चूर्ण लगाने से गिरे हुए दाँत का रक्तस्राव बंद होता है।

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12-11-2012, 04:44 PM
पायरियाः

पहला प्रयोगः नीम के पत्तों की राख में कोयले का चूरा तथा कपूर मिलाकर रोज रात को लगाकर सोने से पायरिया में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर दाँतों पर लगाने से दाँतों से निकलती दुर्गन्ध एवं रक्त बंद होकर दाँत मजबूत होते हैं तथा पायरिया जड़मूल से निकल जाता है। साथ में त्रिफला गुग्गल की 1 से 3 गोली दिन में तीन बार लें व रात्रि में 1 से 3 ग्राम त्रिफला का सेवन करें।

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12-11-2012, 04:46 PM
दाँतों की सुरक्षा हेतुः

भोजन के पश्चात् अथवा अन्य किसी भी पदार्थ को खाने के बाद गिनकर 11 बार कुल्ला जरूर करना चाहिए। गर्म वस्तु के सेवन के तुरंत पश्चात् ठण्डी वस्तु का सेवन न करें।
मसूढ़े के रोगी को प्याज, खटाई, लाल मिर्च एवं मीठे पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए।

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12-11-2012, 04:46 PM
मुँह के रोग मुँह में छालेः
पहला प्रयोगः पान में उपयोग किया जाने वाला कोरा कत्था लगाने से छाले में राहत होती है।
दूसरा प्रयोगः सुहागा एवं शहद मिलाकर छालों पर लगाने से या मुलहठी का चूर्ण चबाने से छालों में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः मुँह के छालों में त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगायें। थूक से मुँह भर जाने पर उससे ही कुल्ला करने से छालों से राहत मिलती है।
छाले कब्जियत अथवा जीर्ण ज्वर के कारण होते हैं। अतः इन रोगों का उपचार करें।

aspundir
12-11-2012, 04:47 PM
गले का सूखना(प्यास)-
पहला प्रयोगः 1 से 5 तोला गुड़ का आवश्यकतानुसार पानी बनाकर 4-5 बार कपड़छान करके पीने से प्यास (गले का सूखना) मिटती है।
दूसरा प्रयोगः गर्मी में नीम के पत्तों का एक तोला (12 ग्राम) रस पीने से भी लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः सूखे आँवले के 50 ग्राम चूर्ण को मिट्टी के बर्तन में चार घण्टे भीगोकर पीने से गर्मी की ऋतु में बार-बार लगने वाली प्यास में राहत होती है।

aspundir
12-11-2012, 04:47 PM
गले की सूजन एवं टॉन्सिल्स (Tonsils)-
पहला प्रयोगः नमक के पानी से अथवा दो ग्राम फुलायी हुई फिटकरी को 125 ग्राम गर्म पानी में डालकर दिन में दो-तीन बार गरारे करने से गले की सूजन मिटती है।
दूसरा प्रयोगः हरड़े की छाल के साथ हल्दी को उबालकर उसके गरारे करने के साथ ही 2 से 5 ग्राम हरड़े का नियमित सेवन करें तो टॉन्सिल्स में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः हल्दी, काली मिर्च, सेंधा नमक तथा अजवायन के समभाग चूर्ण को उँगली पर लेकर मुँह के अन्दर टॉन्सिल्स पर दबायें जिससे थोड़ी-सी डकारें आकर दो-चार बार कफ निकल जायेगा। यह प्रयोग दिन में तीन-चार बार, तीन दिन तक करें तो टॉन्सिल्स ठीक होते हैं।
चौथा प्रयोगः हल्दी एवं काली मिर्च को शहद में मिलाकर टॉन्सिल्स के ऊपर लगाने से एवं तुलसी के 7 पत्ते, नागरबेल का 1 पत्ता और काली मिर्च के 3 दाने चबाने से बारंबार होने वाले टॉन्सिल्स में लाभ होता है।
दाँत पर दाँत रखकर मुँह से जोर से श्वास लें और 'हाआ....' करके श्वास को बाहर निकाल दें। भुने हुए चने व उबले मूँग का सेवन हितकारी है।
आईसक्रीम, चिंगम, मिठाई, चॉकलेट, दही, केला आदि न खायें।

aspundir
12-11-2012, 04:47 PM
हिचकीः

पहला प्रयोगः गुड़ और सोंठ को पानी में मिलाकर उसकी कुछ बूँदे नाक में डालते रहने से एवं हरड़ के 1 से 3 ग्राम चूर्ण को फाँकने अथवा सोंठ और गुड़ की गोली (2-2 ग्राम गुड़ और सोंठ में आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर बनायें) को चूसने से तथा मरीज को बिना तकिये के सीधा सुलाकर उसकी नाभि से तीन अँगुल ऊपर अपने अँगूठे से दस सेकण्ड तक दबाने से हिचकी में राहत होती है।
दूसरा प्रयोगः शहद में मोर के पंख की भस्म मिलाकर चाटने से हिचकी बंद होती है।
तीसरा प्रयोगः हिचकी बन्द न हो रही हो तो पुदीने के पत्ते या नींबू चूसें।

aspundir
12-11-2012, 04:47 PM
आवाज बैठ जाने परः

पहला प्रयोगः 2-2 ग्राम मुलहठी, आँवले और मिश्री का 20 से 50 मिलिलीटर काढ़ा देने से या भोजन के पश्चात् 1 ग्राम काली मिर्च के चूर्ण में घी डालकर चटाने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः आवाज सुरीली बनाने के लिए 10 ग्राम बहेड़ा की छाल को गोमूत्र में भावित कर (किसी चूर्ण को किसी द्रव्य के साथ मिलाकर सूख जायें तब तक घोंटना = भावित करना) चूसने से आवाज एकदम सुरीली होती है।
यह प्रयोग खाँसी में भी लाभदायक है।
तीसरा प्रयोगः 10-10 ग्राम अदरक व नींबू के रस में एक ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में तीन बार धीरे-धीरे पीने से आवाज मधुर होती है।
चौथा प्रयोगः आवाज सुरीली करने के लिए घोड़ावज का आधा या 1 ग्राम चूर्ण 2 से 5 ग्राम शहद के साथ लेने से लाभ होता है। यह प्रयोग कफ होने पर भी लाभकारी है।
पाँचवाँ प्रयोगः जामुन की गुठलियों को पीसकर शहद में मिलाकर गोलियाँ बना लें। दो-दो गोली नित्य चार बार चूसें। इससे बैठा गला खुल जाता है। आवाज का भारीपन ठीक हो जाता है। अधिक बोलने-गानेवालों के लिए यह विशेष चमत्कारी प्रयोग है।

aspundir
12-11-2012, 04:48 PM
पेट के रोग

मंदाग्नि और अजीर्णः

पहला प्रयोगः 2 से 5 ग्राम पकी निबौली अथवा अदरक में 1 ग्राम सेंधा नमक लगाकर खाने से या लौंग एवं लेंडीपीपर के चूर्ण को मिलाकर 1 से 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम लेने से मंदाग्नि मिटती है। यह प्रयोग दो सप्ताह से अधिक न करें।
दूसरा प्रयोगः भोजन से पूर्व 2 से 5 मिलिलीटर नींबू एवं 5 से 10 मिलिलीटर अदरक के रस में सेंधा नमक डालकर पीने से मंदाग्नि, अजीर्ण एवं अरुचि में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः हरड़े एवं सोंठ का 2 से 5 ग्राम चूर्ण सुबह खाली पेट लेने से मंदाग्नि में लाभ होता है।
सावधानीः बहुत पानी पीने से, असमय भोजन करने से, मलमूत्रादि के वेगों को रोकने से, निद्रा का नियम न होने से, कम या अधिक खाने से अजीर्ण होता है। अतः कारणों को जानकर उसका निवारण करें। बार-बार पानी न पियें। प्यास लगने पर भी धीरे-धीरे ही पानी पियें एवं स्वच्छ जल का ही सेवन करें। इन सावधानियों को ध्यान में रखने से अजीर्ण से बचा जा सकता है।

aspundir
12-11-2012, 04:48 PM
अपच

सेंका व पीसा हुआ जीरा, काली मिर्च व सेंधा नमक दही के पानी में डालकर नित्य खाने से अपच ठीक हो जाता है। भोजन शीघ्र पचता है।

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12-11-2012, 04:49 PM
अरूचि

पहला प्रयोगः सोंठ और गुड़ को चाटने से अथवा लहसुन की कलियों को घी में तलकर रोटी के साथ खाने से अरूचि मिटती है।
दूसरा प्रयोगः नींबू की दो फाँक करके उसके ऊपर सोंठ, काली मिर्च एवं जीरे का पाउडर तथा सेंधा नमक डालकर थोड़ा-सा गर्म करके चूसने से अरूचि मिटती है।
तीसरा प्रयोगः अनार के रस में सेंधा नमक व शहद मिलाकर लेने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:49 PM
आफरा व पेटदर्द

पहला प्रयोगः पेट पर हींग लगाने तथा हींग की चने जितनी गोली को घी के साथ निगलने से आफरा मिटता है।
दूसरा प्रयोगः छाछ में जीरा एवं सेंधा नमक या काला नमक डालकर पीने से पेट नहीं फूलता।
तीसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम काले नमक के साथ उतनी ही सोनामुखी खाने से वायु का गोला मिटता है।
चौथा प्रयोगः भोजन के पश्चात् पेट भारी होने पर 4-5 इलायची के दाने चबाकर ऊपर से नींबू का पानी पीने से पेट हल्का होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः गर्म पानी के साथ सुबह-शाम 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेने से पत्थर जैसा पेट मखमल जैसा नर्म हो जाता है।
छठा प्रयोगः अदरक एवं नींबू का रस 5-5 ग्राम एवं 3 काली मिर्च का पाउडर दिन में दो-तीन बार लेने से उदरशूल मिटता है।
सातवाँ प्रयोगः काली मिर्च के 10 दानों को गुड़ के साथ पकाकर खाने से लाभ होता है।
आठवाँ प्रयोगः प्रातःकाल एक गिलास पानी में 20-25 ग्राम पुदीने का रस व 20-25 ग्राम शहद मिलाकर पीने से गैस की बीमारी में विशेष लाभ होता है।
नौवाँ प्रयोगः पेट में दर्द रहता हो व आँतें ऊपर की ओर आ गई है ऐसा आभास होता हो तो पेट पर अरण्डी का तेल लगाकर आक के पत्ते को थोड़ा गर्म करके बाँध दें। एक घंटे तक बँधा रहने दें। रात को एक चम्मच अरण्डी का तेल व एक चम्मच शिवा का चूर्ण लें। गोमूत्र का सेवन हितकर है। पचने में भारी हो ऐसी वस्तुएँ न खायें।
दसवाँ प्रयोगः वायु के प्रकोप के कारण पेट के फूलने एवं अपानवायु के न निकलने के कारण पेट का तनाव बढ़ जाता है। जिससे बहुत पीड़ा होती है एवं चलना भी मुश्किल हो जाता है। अजवायन एवं काला नमक को समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण को गर्म पानी के साथ एक चम्मच लेने से उपरोक्त पीड़ा में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:49 PM
नाभि (गोलाहुटी) के अपने स्थान से खिसकने परः

मरीज को सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें। दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है तथा दस्त आदि उपद्रव शांत हो जाते हैं।
नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें। दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस पिलाने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:49 PM
यकृत (लीवर) एवं प्लीहा (तिल्ली) (Spleen) के रोगः

पहला प्रयोगः प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट एक चुटकी साबूत चावल निगलकर ऊपर से पानी पीने पर लीवर के रोगी को आराम मिलता है।
दूसरा प्रयोगः सुदर्शनवटी 1 से 4 गोली दिन में तीन बार लेने से लीवर और प्लीहा के दर्द में राहत होती है।
तीसरा प्रयोगः 20 से 50 मिलिलीटर अनार का रस पीने से अथवा 20 मिलिलीटर कुंवारपाठे के रस में 1 से 5 ग्राम हल्दी मिलाकर पीने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि में पपीते की पुल्टिस बनाकर बाँधने से एवं दिन में 3 बार पपीते का आधा चम्मच दूध एक चम्मच मिश्री मिलाकर खिलाने से लाभ होता है।
एलोपैथी में लीवर का कोई भी इलाज नहीं है।

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12-11-2012, 04:49 PM
सब प्रकार के शूल रोगः

पहला प्रयोगः गर्म पानी में 1-2 तोला अरण्डी का तेल पीने से आँतों का मल साफ होकर आँतों के दर्द में राहत होती है।
दूसरा प्रयोगः 2 ग्राम सोंठ एवं 1-1 ग्राम सेंधा नमक और हींग पीसकर पानी के साथ लेने से पेट के शूल में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः राई के 1 से 2 ग्राम चूर्ण एवं त्रिफला के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को शहद एवं घी (विषम मात्रा) के साथ लेने से सभी प्रकार के उदरशूल में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः अजवायन 250 ग्राम व काला नमक 60 ग्राम दोनों को किसी काँच के बर्तन या चीनी के बर्तन में डालकर इतना नींबू का रस डालें कि दोनों वस्तुएँ डूब जाएँ। तत्पश्चात् इस बर्तन को रेत या मिट्टी से दूर किसी छायादार स्थान पर रख दें। जब नींबू का रस सूख जाय तो पुनः इतना रस डाल दें कि दोनों दवाएँ डूब जाएँ। इस प्रकार 5 से 7 बार करें। दवा तैयार है। 2 ग्राम दवा प्रातः व सायं भोजन के पश्चात् गुनगुने पानी के साथ पी लें। पेट के अनेक रोगों को दूर करने के लिए यह अदभुत दवा है। इससे भूख खूब लगती है। भोजन पच जाता है। आफरा व पेटदर्द दूर होता तथा उल्टी व जी मिचलाने में भी लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:51 PM
आंत्रपुच्छ शोथ (अपेन्डिसाइटिस)-

पहला प्रयोगः अपेन्डिसाइटिस में असह्य दर्द उठा हो और डॉक्टरों ने अभी ही ऑपरेशन करवाने की सलाह दे दी हो, ऐसी परिस्थिति में भी मिट्टी भीगोकर अपेन्डिक्स से प्रभावित हिस्से पर रखें तथा थोड़ी-थोड़ी देर में बदलते रहें एवं तीन दिन तक निराहार रहें। चौथे दिन आधी कटोरी मूँग का पानी, पाँचवें दिन एक कटोरी, छठे दिन एक कटोरी मूँग व सातवें दिन क्षुधानुसार मूँग खायें। आठवें दिन मूँग और चावल का आहार लें तथा नौवें दिन से सब्जी-रोटी खाना प्रारंभ करें। इससे अपेन्डिक्स मिट जायेगा व जीवन में फिर कभी नहीं होगा।
दूसरा प्रयोगः तीन मिनट प्रतिदिन पादपश्चिमोत्तानासन करने से कुछ ही दिनों में अपेन्डिक्स मिटता है।
भोजन से पहले अदरक, नींबू एवं सेंधा नमक खाने से आंत्रपुच्छ प्रवाह में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:52 PM
अम्लपित्त(Acidity) के रोगः

पहला प्रयोगः एक लीटर कुनकुने पानी में 8-10 ग्राम सेंधा नमक डालकर पंजे के बल बैठकर पी जायें। फिर मुँह में उँगली डालकर वमन कर दें। इस क्रिया को गजकरणी कहते हैं। सप्ताह में एक बार करने से अम्लपित्त सदा के मिट जाता है।
दूसरा प्रयोगः आँवले का मुरब्बा खाने अथवा आँवले का शर्बत पीने से अथवा द्राक्ष (किसमिस), हरड़े और मिश्री के सेवन से अम्लपित्त में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः 1-1 ग्राम नींबू के फूल एवं काला नमक को 10 ग्राम अदरक के रस में पीने से अथवा 'संतकृपा चूर्ण' को पानी या नींबू के शर्बत में लेने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः सुबह 5 से 10 तुलसी के पत्ते एवं दोपहर को ककड़ी खाना तथा रात्रि में 2 से 5 ग्राम त्रिफला का सेवन करना एसिडिटी के मरीजों के लिए वरदान है।
पाँचवाँ प्रयोगः अम्लपित्त के प्रकोप से ज्वर होता है। इसमें एकाध उपवास रखकर पित्तपापड़ा, नागरमोथ, चंदन, खस, सोंठ डालकर उबालकर ठंडा किया गया पानी पीने से एवं पैरों के तलुओं में घी घिसने से लाभ होता है। ज्वर उतर जाने पर ऊपर की औषधियों में गुडुच, काली द्राक्ष एवं त्रिफला मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
छठा प्रयोगः करेले के पत्तों के रस का सेवन करने से पित्तनाश होता है। वमन, विरेचन व पित्त के प्रकोप में इसके पत्तों के रस में सेंधा नमक मिलाकर देने से फायदा होता है।
सातवाँ प्रयोगः जिनको पित्त-विकार हो उन्हें महासुदर्शन चूर्ण, नीम पर चढी हुई गुडुच, नीम की अंतरछाल जैसी कड़वी एवं कसैली चीजों का सेवन करने से लाभ होता है। गुडुच का मिश्री के साथ सेवन करने से भी लाभ होता है।
आठवाँ प्रयोगः पित्त की उल्टी होने पर एक गिलास गन्ने के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। अजीर्ण में यह प्रयोग न करें।
नौवाँ प्रयोगः ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तप्रकोप शांत होता है।
दसवाँ प्रयोगः खाली पेट ठण्डा दूध या अरण्डी का 2 से 10 मि.ली. तेल 100 से 200 मि.ली. गाय के दूध में मिलाकर या मीठी छाछ में मिश्री डालकर पीने से पित्तप्रकोप शांत होता है।
ग्यारहवाँ प्रयोगः नीम के पत्तों का 20 से 50 मि.ली. रस 5 से 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सात दिन पीने से गर्मी मिटती है।

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12-11-2012, 04:52 PM
कब्जियत

पहला प्रयोगः रात का रखा हुआ सवा लीटर पानी हर रोज सुबह सूर्योदय से पूर्व बासी मुँह पीने से कभी कब्जियत नहीं होगी तथा अन्य रोगों से सुरक्षा होगी।
दूसरा प्रयोगः रात्रि में पानी के साथ 2 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण का सेवन करने से अथवा 3-4 तोला (40-50 ग्राम) मुनक्का (काली द्राक्ष) को रात्रि में ठण्डे पानी में भीगोकर सुबह उन्हें मसलकर, छानकर थोड़े दिन पीने से कब्जियत मिटती है।
तीसरा प्रयोगः एक हरड़ खाने अथवा 2 से 5 ग्राम हरड़ के चूर्ण को गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज मिटती है। शास्त्रों में कहा गया हैः
यस्य माता गृहेनास्ति तस्य माता हरीतकी।
कदाचित्कुप्यते माता न चोदरस्था हरीतकी।।
'जिसकी माता नहीं है उसकी माता हरड़ है। माता कभी क्रुद्ध भी हो सकती है किन्तु पेट में गई हुई हरड़ कभी कुपित नहीं होती।'
चौथी प्रयोगः गुडुच का सेवन लंबे समय तक करने से कब्ज के रोगी को लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः कड़ा मल होने व गुदाविकार की तकलीफ में जात्यादि तेल या मलहम को शौच जाने के बाद अंगुली से गुदा पर लगायें। इससे 7 दिन में ही रोग ठीक हो जायगा। साथ में पाचन ठीक से हो ऐसा ही आहार लें। छोटी हरड़ चबाकर खायें।
छठा प्रयोगः एक गिलास सादे पानी में एक नींबू का रस एवं दो-तीन चम्मच शहद डालकर पीने कब्ज मिट जाता है।
सातवाँ प्रयोगः एक चम्मच सौंफ का चूर्ण और 2-3 चम्मच गुलकन्द प्रतिदिन दोपहर के भोजन के कुछ समय पश्चात् लेने से कब्ज दूर होने में सहायता मिलती है।
सावधानीः कब्ज सब रोगों का मूल है। अतः पेट को सदैव साफ रखना चाहिए। रात को देर से कुछ भी न खायें तथा भोजन के बाद दो घंटे तक न सोयें। मैदे से बनी वस्तुएँ एवं दही अधिक न खायें। बिना छने (चोकरयुक्त) आटे का सेवन, खूब पके पपीते का सेवन एवं भोजन के पश्चात् छाछ का सेवन करने से कब्जियत मिटती है।

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12-11-2012, 04:53 PM
बवासीर (मस्से) (Piles)

पहला प्रयोगः डेढ़-दो कागजी नींबू का रस एनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेटे रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग चार-पाँच दिन में एक बार करें। तीन बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है।
साथ में हरड़ अथवा बाल हरड़ (छोटी हरड़) के 2 से 5 ग्राम चूर्ण का नित्य सेवन करने तथा अर्श (बवासीर) पर अरण्डी का तेल लगाते रहने से बहुत लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः बड़ी इन्द्रफला की जड़ को छाया में सुखाकर अथवा कनेर की जड़ को पानी में घिसकर बवासीर पर लगाने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः नीम का तेल मस्सों पर लगाने से एवं 4-5 बूँद रोज पीने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः सूरन (जमीकंद) को उबाल कर एवं सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 32 तोला, चित्रक 16 तोला, सोंठ 4 तोला, काली मिर्च 2 तोला, गुड़ 108 तोला इन सबको मिलाकर छोटे-छोटे बेर जैसी गालियाँ बना लें। इसे सूरनवटक कहते हैं। ऐसी 3-3 गोलियाँ सुबह-शाम खाने से अर्श (बवासीर) में लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः करीब दो लीटर ताजी छाछ लेकर उसमें 50 ग्राम जीरा पीसकर एवं थोड़ा-सा नमक मिला दें। जब भी पानी पीने की प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छाछ पी लें। पूरे दिन पानी के बदले में यह छाछ ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें। मस्से ठीक हो जायेंगे। चार दिन के बदले सात दिन प्रयोग जारी रखें तो अच्छा है।
छठा प्रयोगः छाछ में सोंठ का चूर्ण, सेंधा नमक, पिसा जीरा व जरा-सी हींग डालकर सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:53 PM
खूनी बवासीर

पहला प्रयोगः जीरे का लेप अर्श पर करने से एवं 2 से 5 ग्राम जीरा उतने ही घी-शक्कर के साथ खाने से एवं गर्म आहार का सेवन बंद करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः बड़ के दूध के सेवन से रक्तप्रदर व खूनी बवासीर का रक्तस्राव बन्द होता है।
तीसरा प्रयोगः अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है।

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12-11-2012, 04:54 PM
उलटी एवं दस्त

उलटी होने पर

पहला प्रयोगः नींबू का शर्बत या सोडे का पानी लेने से अथवा तुलसी के पत्तों के 2 से 10 मिलिलीटर रस को उतने ही मिश्री अथवा शहद के साथ पीने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः प्याज का 2 से 10 मिलिलीटर रस पिलाने से उलटी दस्त में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः धनियापत्ती अथवा अनार का रस थोड़ी-थोड़ी देर के अंतर में पीने से उलटी बंद होने लगती है।

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12-11-2012, 04:54 PM
दस्त होने पर

पहला प्रयोगः 1 से 2 ग्राम सोंठ का पाउडर 2 से 10 ग्राम शहद के साथ देने से दस्त एवं उलटी में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः तुलसी के पंचांग (जड़, पत्ती, डाली, मंजरी, बीज) का काढ़ा देने से अथवा प्याज, अदरक एवं पुदीने प्रत्येक के 2 से 5 मिलिलीटर रस में 1 से 2 ग्राम नमक मिलाकर देने से दस्त में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः दस्त के रोगी की नाभि में बड़ का दूध अदरक का रस भर देने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः आम की गुठली की गिरी का 4 से 5 ग्राम चूर्ण शहद के साथ देने से लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः सौंफ और जीरा सम भाग लेकर तवे पर भूनें और बारीक पीसकर 3-3 ग्राम दिन में 2-3 बार पानी के साथ खिलावें। दस्त बन्द करने के लिए यह सस्ता व अच्छा इलाज है।
छठा प्रयोगः कैसे भी तेज दस्त हों जामुन के पेड़ की पत्तियाँ (न ज्यादा पकी हुई न ज्यादा मुलायम) लेकर पीस लें। उसमें जरा सा सेंधा नमक मिलाकर उसकी गोली बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम पानी के साथ लेने से दस्त बन्द हो जाते हैं।

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12-11-2012, 04:54 PM
खूनी दस्त

पहला प्रयोगः एक-एक तोला (12 ग्राम) इन्द्रजौ एवं अनार की छाल का काढ़ा बनाकर शहद के साथ पीने से खूनी दस्त में लाभ होता है। इसमें अनार के रस का सेवन भी लाभदायक है।
दूसरा प्रयोगः खूनी बवासीर (अल्सरेटीव कोलाइस) में तुलसी के बीज उपयोगी हैं। 10 से 20 ग्राम बीज कूटकर रात को मिट्टी के बर्तन में छः गुने पानी में भिगोयें। सुबह उसमें जीरा र शक्कर मिलाकर उस पानी को पीने से दस्त में गिरता खून बंद होता है। फीके दही के साथ तुलसी के बीज का चूर्ण लेने से भी मल के साथ जाता रक्त बंद होता है।
तीसरा प्रयोगः एक कप गन्ने के रस में आधा कप अनार का रस मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से रक्तातिसार मिटता है।

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12-11-2012, 04:55 PM
अतिसार

पहला प्रयोगः हरड़, सोंठ एवं सोंफ में से प्रत्येक को समान मात्रा में लेकर, सेंककर 3 से 6 ग्राम चूर्ण लेने से अतिसार का शूल मिटता है।
दूसरा प्रयोगः आम की गुठली को छाछ अथवा चावल के मांड में पीसकर देने से आमातिसार में लाभ होता है।
उपवास हर प्रकार के दस्त में अत्यंत लाभदायक है।

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12-11-2012, 04:55 PM
पांडुरोग(Anaemia) एवं पीलिया (Jaundice)

पांडुरोग

पहला प्रयोगः लोहे की कढ़ाई में 5-7 काली मिर्च डालकर उबाला हुआ 200 मि.ली. दूध में पीने से पाण्डुरोग में लाभ होता है। यह प्रयोग हीमोग्लोबीन की कमी को भी पूरा करता है।
दूसरा प्रयोगः ताजे आँवले का पाँच तोला (लगभग 60 ग्राम) रस एवं 2 तोला (लगभग 24 ग्राम) शहद मिलाकर पीने से पाण्डुरोग में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः सुबह 4 से 6 ग्राम धात्री लौह चूर्ण दूध या गौमूत्र के साथ लेना चाहिए।
चौथा प्रयोगः रक्ताल्पता अर्थात् रक्त की कमी दूर करने के लिए पालक की सब्जी का नियमित सेवन करें व आधा गिलास पालक के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर 50 दिन पियें। इससे लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:55 PM
पीलिया

पहला प्रयोगः एक केले का छिलका जरा-सा हटाकर उसमें 1 चने जितना भीगा हुआ चूना लगायें एवं रात भर ओस में रखें। सुबह उस केले का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः आकड़े की 1 ग्राम जड़ को शहद में मिलाकर खाने अथवा चावल की धोवन में घिसकर नाक में उसकी बूँद डालने से पीलिया में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः 5-5 ग्राम कलमी शोरा एवं मिश्री को नींबू के रस में लेने से केवल छः दिन में पीलिया में बहुत लाभ होता है। साथ में गिलोय का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा पीना चाहिए।
चौथा प्रयोगः आँवला, सोंठ, काली मिर्च, पीपर (पाखर), हल्दी और उत्तम लोहभस्म इन सबको बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। दो आनी भार (करीब 1.5 ग्राम) जितना चूर्ण दिन में तीन बार शहद के साथ लेने से पीलिया का उग्र हमला भी 3 से 7 दिन में शांत हो जाता है।
पाँचवाँ प्रयोगः पीलिया में गौमूत्र या शहद के साथ 2 से 4 ग्राम त्रिफला देने से एक माह में यह रोग मिट जाता है।
छठा प्रयोगः दही में मीठा सोडा डालकर खाने से भी लाभ होता है।
सातवाँ प्रयोगः जामुन में लौहतत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है अतः पीलिया के रोगियों के लिए जामुन का सेवन हितकारी है।
पथ्यः पीलिया में केवल मूँग एवं चने ही आहार में लें। गन्ने को छीलकर एवं काटकर उसके टुकड़ों को ओस में रखकर सुबह खाने से पीलिया में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:56 PM
अण्डवृद्धि एवं अंत्रवृद्धि (Hernia)

अण्डवृद्धिः 20 से 50 मि.ली. सोंठ के काढ़े (2 से 10 ग्राम सोंठ को 100 से 300 मि.ली. पानी में उबालें) में 1 से 5 मि.ली. अरण्डी का तेल डालकर पीने से तथा अरनी के पत्तों को पानी में पीसकर बाँधने से अण्डवृद्धि रोग में लाभ होता है।
अंत्रवृद्धिः 1 से 10 मिलिग्राम अरण्डी के तेल में छोटी हरड़ का 1 से 5 ग्राम चूर्ण मिलाकर देने से व मेग्नेट का बेल्ट बाँधने से हार्निया में लाभ होता है।

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12-11-2012, 04:56 PM
सर्दी-जुकाम-खाँसी

सर्दी-जुकामः
पहला प्रयोगः गर्म दूध में 1 से 2 ग्राम पिसी सोंठ मिलाकर अथवा तुलसी के पत्ते का 2 से 10 मि.ली. रस एवं अदरक के 2 से 20 मि.ली. रस में एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो तीन बार लेने से सर्दी में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 5 से 10 ग्राम पुराना गुड़ एवं 2 से 10 ग्राम अदरक मिलाकर खाने से अथवा आधी कटोरी दूध में 2 से 10 ग्राम काली मिर्च और 1 से 5 ग्राम हल्दी उबालकर देने से सर्दी में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः शरीर ठण्डा होने पर बिना छिलके के भूने चने का पाउडर एवं सोंठ का पाउडर सूखा-सूखा घिसने पर शरीर में गर्मी आती है।
चौथा प्रयोगः नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात को सोते समय पीने से सर्दी मिटती है।
पाँचवाँ प्रयोगः रात के समय नित्य सरसों का तेल या गाय के घी को गुनगुना गर्म करके नाक द्वारा एक- दो बूँद लेने से नजला-जुकाम नहीं होता है व मस्तिष्क स्वस्थ रहता है।
छठा प्रयोगः बड़ के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर कूट कर पीस लें। आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढ़ा बनायें। जब चौथाई पानी शेष बचे तब उतारकर छान लें और पिसी मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पियें। यह प्रयोग दिमागी शक्ति बढ़ाता है व नजले जुकाम में भी लाभदायक है।
सातवाँ प्रयोगः सर्दी के कारण होता सिरदर्द, छाती का दर्द एवं बेचैनी में सोंठ के पाउडर को पानी में डालकर गर्म करके पीड़ावाले स्थान पर थोड़ा लेप करें। सोंठ की डली डालकर उबाला गया पानी पियें। सोंठ का चूर्ण शहद में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा रोज चाटें। भोजन में मूँग, बाजरी, मेथी एवं लहसुन का प्रयोग करें। इससे भी सर्दी मिटती है।
आठवाँ प्रयोगः पुदीने का ताजा रस कफ, सर्दी में लाभप्रद है।

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12-11-2012, 05:04 PM
खाँसी

पहला प्रयोगः तीन रत्ती (375 मिलीग्राम) फुलाया हुआ सुहागा शहद के साथ रात्रि में लेने से अथवा मुनक्कें एवं मिश्री को मुँह में रखकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम मुलहठी एवं तुलसी का 5 से 10 मिलीलीटर रस मिलाकर शहद के साथ चाटने से अथवा 4-5 लौंग को भूनकर तुलसी के पत्तों के साथ लेने से सभी प्रकार की खाँसी में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः दो ग्राम काली मिर्च एवं डेढ़ ग्राम मिश्री का चूर्ण अथवा शितोपलादि चूर्ण एक-एक ग्राम दिन में तीन चार बार शहद के साथ चाटने से खाँसी में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः पीपरामूल, सौंठ एवं बहेड़ादल का चूर्ण बना कर शहद में मिलाकर प्रतिदिन खाने से सर्दी-कफ की खाँसी मिटती है।
पाँचवाँ प्रयोगः हल्दी के टुकड़े को घी में सेंककर रात्रि को सोते समय मुँह में रखने से कफ, सर्दी और खाँसी में फायदा होता है। कष्टदायक खाँसी भी उससे कम होती है। साथ-साथ हल्दी के धुएँ का नस्य लेने से सर्दी और जुकाम तुरंत मिटते हैं।
छठा प्रयोगः अनार की सूखी छाल आधा तोला बारीक कूटकर, छानकर उसमें थोड़ा-सा कपूर मिलायें। यह चूर्ण दिन में दो बार पानी के साथ मिलाकर पीने से भयंकर कष्टदायक खाँसी मिटती है।
सातवाँ प्रयोगः सर्दी-जुकाम एवं खाँसी में हल्दी-नमक मिश्रित ताजे भुने हुए एक मुट्ठी चने सुबह तथा रात्रि को सोते वक्त खायें किंतु उसके ऊपर पानी न पियें। भोजन में घी, दूध, शक्कर, गुड़ एवं खटाई का सेवन बंद कर दें। सर्दी-खाँसीवाले स्थायी मरीज के लिए यह एक सस्ता प्रयोग है।
आठवाँ प्रयोगः हल्दी नमकवाली भुनी हुई अजवायन को भोजन के पश्चात् मुखवास के रूप में नित्य सेवन करने से सर्दी खाँसी मिट जाती है। अजवायन का धुआँ लेना चाहिए। अजवायन की पोटली से छाती का सेंक करना चाहिए। मिठाई, खटाई एवं चिकनाईयुक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
गर्मी की खाँसीः सोंफ एवं मिश्री का चूर्ण बारंबार मुँह में रखने से गर्मी की खाँसी मिटती है।

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12-11-2012, 05:04 PM
श्वास-दमा (Asthama) – हाँफ

पहला प्रयोगः सरसों के तेल में नमक डालकर दमा के रोगी के छाती की मालिश करनी चाहिए। रोगी को खुली हवा तथा पंखें की हवा से बचना चाहिए। प्रतिदिन काली मिर्च, हल्दी में उड़द के पाउडर की धूनी नाक से लेने तथा भस्रिका प्राणायाम करने से बहुत लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः बहेड़े की 1 से 2 ग्राम छाल को 2 से 10 ग्राम शहद के साथ लेने से श्वास रोग में तथा हरड़ एवं सोंठ को समान मात्रा में मिलाकर आधा-आधा चम्मच चूर्ण रोज लेने से दमा, श्वास, खाँसी एवं कमरदर्द में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः कलई किये हुए बर्तन में तीन अंजीर 24 घण्टे अथवा 36 घण्टे तक पानी में भिगोये रखें। प्रातः उठकर उबाल लें।
सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नान, शौचादि से निपटकर उगते सूर्य के सामने बैठें। 10 से 15 प्राणायाम करें। गहरे श्वास लें। पहले जोर से श्वास लेकर फेफड़ों में भरें। जितना अधिक श्वास भर सकें उतना लाभदायक होगा। पूरक करते समय यह भावना करें कि , मैं श्वास के साथ सूर्य की ओजस्वी किरणों को अन्दर भर रहा हूँ। फिर बहुत धीरे-धीरे श्वास बाहर निकालते समय यह भावना करें कि मैं रोग के किटाणुओं को बाहर फेंक रहा हूँ।
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि श्वास अन्दर लेते समय जोर से लेनी है और छोड़ते समय बहुत धीरे- धीरे । इसे एक प्राणायाम कहेगें। इस प्रकार के 10 से 15 प्राणायाम करने चाहिए। इस क्रिया के साथ ॐ अथवा अपना इष्टमंत्र मन जपने से बहुत लाभ होता है।
इतनी क्रिया के पश्चात् उबाले हुए अंजीर खूब चबाकर खा लें और वही पानी पी जायें। इससे दमे के रोग में अवश्य लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः एक चुटकी काली मिर्च का चूर्ण, 4 बूँद शहद एवं थोड़ा सा घी मिलाकर लेने से श्वास रोग में लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः भटकटैया (कंटकारि, कंटकारिका), जीरा और आँवले का चूर्ण सम भाग में लेकर शहद में मिलाकर चाटने से श्वास रोग में शीघ्र लाभ होता है।
पथ्य आहारः मूँग, चना, रोटी।

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12-11-2012, 05:04 PM
क्षय रोग (टी.बी.)

पहला प्रयोगः घी-मिश्री के साथ बकरी के दूध का सेवन करने से, स्वर्णमालती तथा च्यवनप्राश के सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अडूसे के पत्तों के 10 से 50 मि.ली. रस में 9 से 10 ग्राम शहद मिलाकर दिन में दो बार नियमित पीने से क्षय में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः 1 किलो बकरी की मिंगनी (लेंडी) 3 किलो पानी में तीन दिन तक मिट्टी के बर्तन में रखें। तत्पश्चात् उसे पानी में मसलकर लकड़ी या कोयले की आग पर ठीक प्रकार से उबालें। पानी कम लगे तो उबालने से पूर्व उसमें आधा किलो पानी और डाल दें। फिर उसे छानकर किसी बर्तन में भर लें। उसमें से आधा-आधा कप प्रातः एवं सायं पियें। इससे क्षय रोग में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः क्षय के कारण होती खाँसी में गोखरू तथा असगंध के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से तथा ऊपर से दूध पीने से लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः 5 ग्राम पिसी शक्कर, 5 ग्राम पिसा हुआ सिंधवखार तथा 10 ग्राम शुद्ध शहद इन तीनों चीजों को एकत्रित करके दिन में तीन बार नियमित रूप से 1 महीने तक लेने से महा भयंकर क्षय रोग में लाभ होता है।
फेफड़ों का क्षयः लहसुन के ताजे रस में रूई डुबोकर नाक पर बाँध दें ताकि अंदर जानेवाली श्वास के साथ मिलकर वह रस फेफड़ों तक पहुँचे। लहसुन का रस सूख जाने पर बार-बार रस छींटकर रूई को गीला रखना चाहिए। ऐसा करने से फेफड़ों का क्षय मिटता है।
पथ्यः क्षय रोग में बकरी का दूध, चावल, मूँग की खिचड़ी परमल आदि का सेवन करें।

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12-11-2012, 05:05 PM
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर)

पहला प्रयोगः निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure) तथा उच्च रक्तचाप (High B.P.) वास्तव में कोई रोग नहीं है अपितु शरीर में अन्य किसी रोग के लक्षण हैं। निम्न रक्तचाप में केवल 'ॐ…' का उच्चारण करने से तथा 2 से 5 ग्राम पीपरामूल का सेवन करने से एवं नींबू के नमक डाले हुए शर्बत को पीने से लाभ होता है।
उच्च रक्तचाप में 'ॐ शांति' मंत्र का जप कुछ भी खाने-पीने से पहले एवं बाद में करने से तथा बारहमासी के 11 फूल के सेवन से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः रतवेलिया (जलपीपली) का 5 ग्राम रस दिन में एक बार पीने से उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है। यह रतवा में भी लाभदायक है।
तीसरा प्रयोगः लहसुन की कलियों को चार-पाँच दिन में धूप में सुखाकर काँच की बरनी में भरकर ऊपर से शहद डालकर रख दें। पंद्रह दिन के बाद लहसुन की एक-दो कली को एक चम्मच शहद के साथ चबाकर एक गिलास ठंडा दूध पीने से (जो कि फ्रीज में रखकर ठंडा न किया हो) रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) सामान्य रहता है।
चौथा प्रयोगः 1 ग्राम सर्पगंधा बूटी को 2 ग्राम बालछड़ बूटी में मिलाकर दें। चन्द्रकला रस की 2-2 गोली सुबह-शाम दे। 2 चम्मच त्रिफला चूर्ण रात्रि को सोते समय दें। अगर वातप्रधान प्रकृति है तो प्रातः तिल का 20 मि.ली. तेल गर्म पानी के साथ दें। इससे उच्च रक्तचाप (H.B.P.) में लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:05 PM
मूत्र रोग

पहला प्रयोगः केले की जड़ के 20 से 50 मि.ली. रस को 50 से 100 मि.ली. गोमूत्र के साथ मिलकर सेवन करने से तथा जड़ पीसकर उसका पेडू पर लेप करने से पेशाब खुलकर आता है।
दूसरा प्रयोगः आधा से 2 ग्राम शुद्ध शिलाजीत, कपूर और 1 से 5 ग्राम मिश्री मिलाकर लेने से अथवा पाव तोला (3 ग्राम) कलमी शोरा उतनी ही मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः एक भाग चावल को चौदह भाग पानी में पकाकर उन चावलों का मांड पीने से मूत्ररोग में लाभ होता है।
कमर तक गर्म पानी में बैठने से भी मूत्र की रूकावट दूर होती है।
चौथा प्रयोगः उबाले हुए दूध में मिश्री तथा थोड़ा घी डालकर पीने से जलन के साथ आती पेशाब की रूकावट दूर होती है। यह प्रयोग बुखार में न करें।
पाँचवाँ प्रयोगः 50-60 ग्राम करेले के पत्तों के रस चुटकी भर हींग मिलाकर देने से पेशाब बहुतायत से होता है और पेशाब की रूकावट की तकलीफ दूर होती है अथवा 100 ग्राम बकरी का कच्चा दूध 1 लीटर पानी और शक्कर मिलाकर पियें।
छठा प्रयोगः मूत्ररोग सम्बन्धी रोगों में शहद व त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग बुखार में न करें।

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12-11-2012, 05:06 PM
पेशाब में मवाद बहने पर

पहला प्रयोगः आधा या 1 ग्राम इलायची, 2 से 5 ग्राम मिश्री तथा 1 से 2 ग्राम शंखावली का चूर्ण देने से पेशाब में मवाद बहने की शिकायत में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः आँवले के रस में या काढ़े में शहद व हल्दी डालकर पीने से पेशाब मार्ग से जाता मवाद बंद हो जाता है।

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12-11-2012, 05:06 PM
पेशाब में रक्त आना

पहला प्रयोगः सात बूँद बड़ का दूध शक्कर के साथ देने से पेशाब तथा गुदा द्वारा होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अडूसी के पत्तों का 1 तोला (लगभग 12 ग्राम) रस रोज सुबह पीने से अथवा केले के फूल का 2 से 10 मि.ली. रस 10 से 50 मि.ली. दही के साथ खाने से रक्तस्राव में लाभ होता है।
किडनी का दर्दः 50 से 100 मि.ली. जौ के पानी में 2 से 5 मि.ली. नींबू का रस तथा 2 से 10 ग्राम शहद अथवा केवल शहद मिलाकर पीने से किडनी की सूजन, पस, किडनी का बराबर काम न करना आदि तकलीफों में राहत होती है।

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12-11-2012, 05:06 PM
पथरी (Stones)

पहला प्रयोगः पानफुटी के पत्तों का 20 ग्राम रस अथवा सहजने की जड़ का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा या मुनक्के (काली द्राक्ष) के 50 मि.ली. काढ़े का सेवन पथरी में लाभदायक है।
दूसरा प्रयोगः गोखरू के बीजों का पाव तोला (3 ग्राम) चूर्ण भेड़ के दूध के साथ सात दिन पीने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः आश्रम में उपलब्ध कालीबूटी भोजन से आधा घण्टा पूर्व और बाद में एक ग्राम मात्रा में पानी के साथ लेने से व कटिपिंडमर्दनासन करने से पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है।
चौथा प्रयोगः नींबू के रस में सेंधा नमक मिलाकर कुछ दिन तक नियमितरूप से पीने से पथरी पिघल जाती है।

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12-11-2012, 05:06 PM
प्रमेह (पेशाब का रंग बदलना व बहुमूत्रता) (Polyurea)

पहला प्रयोगः 200 मि.ली. दूध के साथ बबूल के पत्तों का 10 मि.ली. रस 15 दिन पीने से अथवा अनार के 20 से 50 मि.ली. रस में 2 से 5 ग्राम मिश्री डालकर पीने से प्रमेह में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः रोज सुबह कच्ची हल्दी का रस एवं शुद्ध शहद 1-1 तोला मिलाकर खायें एवं रात्रि को सोते समय 3 ग्राम सूखी हल्दी का चूर्ण तथा 6 ग्राम शहद उबालकर ठण्डे किये हुए एक पाव बकरी के दूध के साथ लें। चालीस दिन ऐसा करने से पुराना प्रमेह, धातुजनित दोष, पतलापन, कमर-दर्द, बेचैनी एवं मंदाग्नि में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः त्रिफला चूर्ण एवं मिश्री 3-3 भाग तथा हल्दी चूर्ण एक भाग मिलाकर 6 ग्राम चूर्ण दिन में दो बार शहद के साथ चाटने से प्रमेह मिटता है। प्रमेह की तीव्र पीड़ा शान्त हो जाने के बाद कम-से-कम एक महीने तक सेवन चालू रखें।

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12-11-2012, 05:06 PM
मधुप्रमेह (डायबिटीज)

पहला प्रयोगः गूलर अथवा मूली के पत्तों का 30 ग्राम रस पीने से अथवा बेल के दस पत्तों के रस में 2 से 10 पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह पीने से मधुप्रमेह में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 20 से 50 मि.ली. बड़ की छाल का काढ़ा पीने से अथवा बड़ के 2 से 10 फल खाने से डायबिटीज में राहत होती है।
तीसरा प्रयोगः दो तोला (24 ग्राम) जामुन की छाल खाने से अथवा पके जामुन की गुठली का 2 से 5 ग्राम चूर्ण खाने से मधुप्रमेह में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः प्रतिदिन सुबह करेले का रस लेने से मधुमेह के रोगी को विशेष लाभ होता है। रस के अभाव में करेलों के टुकड़े करके छाया में सुखाकर बारीक पीसकर 10-10 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम तीन-चार महीने तक सेवन करने से मधु्प्रमेह अवश्य मिटता है।
पाँचवाँ प्रयोगः 8-9 बिल्वपत्र, 2-3 काली मिर्च पीसकर एक गिलास पानी डालकर सुबह पीने से मधुप्रमेह मिटता है एवं मूत्र संबंधी अन्य रोग भी दूर होते हैं। सप्ताह में दो दिन यह प्रयोग न करें।

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12-11-2012, 05:07 PM
हृदय-रोग

हृदय की कमजोरी

पहला प्रयोगः तुलसी के बीज का आधा या 1 ग्राम चूर्ण उतनी ही मिश्री के साथ लेने से अथवा मेथी के 20 से 50 मि.ली. काढ़े (2 से 10 ग्राम मेथी को 100 से 300 ग्राम पानी में उबालें) में शहद डालकर पीने से हृदय-रोग में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अर्जुन वृक्ष की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक गिलास पानी मिश्रित दूध में उबालकर पीने से खूब लाभ होता है। इसके अलावा लहसुन, आँवला, शहद, अदरक, किसमिस, अंगूर, अजवायन, अनार आदि चीजें हृदय के लिए लाभदायी हैं।
तीसरा प्रयोगः नींबू के सवा तोला (करीब 15 ग्राम) रस में आवश्यकतानुसार मिश्री मिलाकर पीने से हृदय की धड़कनें सामान्य होती हैं तथा स्त्रियों की हिस्टीरिया के कारण बढ़ी हुई धड़कनें भी दो-तीन नींबू के रस को पानी में मिलाकर पीने से शांत होती हैं।
चौथा प्रयोगः गुडुच (गिलोय) का चूर्ण शहद के साथ इस्तेमाल करने से अथवा अदरक का रस व पानी समभाग मिलाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः उगते हुए सूर्य की सिंदूरी किरणों में लगभग 10 मिनट तक हृदयरोग से दूर करने की अपरिमेय शक्ति होती हैं। अतः रोगी प्रातः काल सूर्योदय का इंतजार करे और यह प्रयत्न करे कि सूर्य की सर्वप्रथम किरण उस पर पड़े।
छठा प्रयोगः मोटी गाँठवाली हल्दी कूटने के बाद कपड़छान करके 8 मासा रख लें। फिर प्रतिदिन लाल गाय के दूध में 1 चम्मच चूर्ण घोलकर पियें। हल्दी में यह खास गुण है कि यह रक्तवाहिनी नसों में जमे हुए रक्त के थक्कों को पिघला देती है और नसों को साफ कर देती है। जब रक्तवाहिनी नलिकाएँ साफ हो जाएँगी तब वह कचरा यानी विजातीय द्रव्य पेट में जमा हो जाएगा और बाद में मल के द्वारा बाहर निकल जाएगा।
सातवाँ प्रयोगः रोहिणी नामक हरड़ कूट-कपड़छान करके रख लें। अगर रोहिणी हरड़ नहीं मिले तो कोई भी हरड़ जो बहेड़े के आकार की होती है वह लें। इस हरड़ का लगभग एक चम्मच चूर्ण रात को सोते समय लाल गाय के दूध में लें। लाल गाय अगर देशी नहीं मिले तो जरसी लाल गाय के दूध के साथ मिलाकर लें। यह विजातीय द्रव्य को शरीर से मल, पेशाब और पसीने इत्यादि के रूप में बाहर निकाल देती है।

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12-11-2012, 05:07 PM
वीर्यवृद्धि

वीर्यवृद्धि हेतुः

पहला प्रयोगः सफेद प्याज का 10 से 20 मि.ली. रस 5 से 10 मि.ली. शहद, अदरक का 5 से 10 मि.ली. रस और 1 से 2 ग्राम घी मिलाकर प्रातःकाल 21 दिन सेवन करके वीर्यवृद्धि होती है।
दूसरा प्रयोगः अश्वगंधा के 2 ग्राम चूर्ण को घी-मिश्री के साथ खाने से तथा ऊपर से दूध पीने से अथवा कौंचबीज एवं खसखस का समान मात्रा में चूर्ण मिलाकर, उसमें से आधा तोला (6 ग्राम) चूर्ण रोज दूध के साथ सुबह-शाम लेने से कभी-भी धातु क्षीण नहीं होती एवं वीर्यविकार मिटते हैं।
तीसरा प्रयोगः प्रतिदिन 1 हरड़ का सेवन करने से या एक पके केले में 6 ग्राम घी डालकर रोज सुबह-शाम खाने से धातुक्षीणता एवं प्रदर रोग में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः सुखाये हुए सिंघाड़े एवं मखाने को समान मात्रा में लेकर उसका चूर्ण बना कर रखें। उसमें से 1 तोला (करीब 12 ग्राम) चूर्ण मिश्री के साथ खाकर ऊपर से ताजा दूध पीने से अथवा 2 से 5 ग्राम गुड़ के साथ श्याम तुलसी के आधा से 1 ग्राम बीज खाने से यौवनसुरक्षा होती है।

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12-11-2012, 05:07 PM
धातुस्राव होने पर

पहला प्रयोगः गुडुच (गिलोय), गोखरु एवं आँवले का आधा से 1 ग्राम चूर्ण अथवा 1 से 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण पानी के साथ रोज दो बार लेने से वीर्यस्राव में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम तुलसी के बीज रात्रि को पानी में भीगोकर सुबह लेने से अथवा बड़ के पत्ते के दूध की कुछ बूँदें बताशे में डालकर रोज सुबह एक बताशे में डालकर रोज सुबह खाकर ऊपर से दूध पीने से 15-20 दिन में धातुस्राव बंद होकर वीर्य गाढ़ा होता है।

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12-11-2012, 05:08 PM
स्वप्नदोष

पहला प्रयोगः बेल के पत्तों का 10 से 50 मि.ली. रस 2 से 10 ग्राम शहद डालकर पीने से अथवा 1 से 2 ग्राम हरड़ को उतनी ही मिश्री के साथ खाने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः ठीक से पके हुए दो केलों को छीलकर मसल डालें। उसमें हरे आँवलों का रस एवं शुद्ध शहद एक-एक तोला मिलाकर प्रातः-सायं सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है। यह प्रयोग थोड़े दिन करें।
तीसरा प्रयोगः 4-5 ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से स्वप्नदोष ठीक होता है।
चौथा प्रयोगः स्वप्नदोष, वीर्यविकार या प्रदररोग में आँवले का चूर्ण एवं समान मात्रा में मिश्री का चूर्ण मिलाकर रात को भोजन के पश्चात् पानी के साथ लेने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:08 PM
बुखार (Fever)

सादा बुखार

सादे बुखार में उपवास अत्यधिक लाभदायक है। उपवास के बाद पहले थोड़े दिन मूँग लें फिर सामान्य खुराक शुरु करें। ऋषि चरक ने लिखा है कि बुखार में दूध पीना सर्प के विष के समान है अतः दूध का सेवन न करें।
पहला प्रयोगः सोंठ, तुलसी, गुड़ एवं काली मिर्च का 50 मि.ली काढ़ा बनाकर उसमें आधा या 1 नींबू निचोड़कर पीने से सादा बुखार मिटता है।
दूसरा प्रयोगः शरीर में हल्का बुखार रहने पर, थर्मामीटर द्वारा बुखार न बताने पर थकान, अरुचि एवं आलस रहने पर संशमनी की दो-दो गोली सुबह और रात्रि में लें। 7-8 कड़वे नीम के पत्ते तथा 10-12 तुलसी के पत्ते खाने से अथवा पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के एक तोला रस में 3 ग्राम शक्कर डालकर पीने से हल्के बुखार में खूब लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः कटुकी, चिरायता एवं इन्द्रजौ प्रत्येक की 2 से 5 ग्राम को 100 से 400 मि.ली. पानी में उबालकर 10 से 50 मि.ली. कर दें। यह काढ़ा बुखार की रामबाण दवा है।
चौथा प्रयोगः बुखार में करेले की सब्जी लाभकारी है।
पाँचवाँ प्रयोगः मौठ या मौठ की दाल का सूप बनाकर पीने से बुखार मिटता है। उस सूप में हरी धनिया तथा मिश्री डालने से मुँह अथवा मल द्वारा निकलता खून बन्द हो जाता है।

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12-11-2012, 05:08 PM
जीर्ण ज्वर

लक्षण: शरीर में हल्का दर्द, आँखों में जलन, पेशाब में पीलापन, पीठ में दर्द।
पहला प्रयोगः पलाश के फूलों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दूध-मिश्री के साथ लेने से गर्मी तथा जीर्णज्वर में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः दूध में 6 रत्ती (750 मिलीग्राम) लेंडीपीपर का चूर्ण उबालकर पीने से या आधा से 2 ग्राम शीतोपलादि चूर्ण अथवा गुडुच (गिलोय) का आधा से 1 ग्राम सत्व (अर्क) या आँवले का 1 से 2 ग्राम चूर्ण लेने से जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः काला जीरा, चिरायता और कटुकी एक-एक चम्मच लेकर इन सबको रात्रि में भिगोकर सुबह 500 ग्राम पानी में तब तक उबालें जब तक पानी केवल दो चम्मच रह जाये। उस पानी को सुबह पीने से जीर्णज्वर में लाभ होता है।
चौथिया ज्वरः दूध में पुनर्नवा (विषखपरा) की 1 से 2 ग्राम जड़ का सेवन करने से चौथिया ज्वर में लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:08 PM
मलेरिया

पहला प्रयोगः इन्द्रजौ, नागरमोथ, पित्तपापड़ा, कटुकी प्रत्येक का आधा से 1 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार खाने से मलेरिया में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः तुलसी के हरे पत्तों तथा काली मिर्च को बराबर मात्रा में लेकर, बारीक पीसकर गुंजा जितनी गोली बनाकर छाया में सुखावें। 2-2 गोली तीन-तीन घण्टे के अन्तर से पानी के साथ लेने से मलेरिया में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः नीम अथवा तुलसी का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा या तुलसी का रस 10 ग्राम और अदरक का रस 5 ग्राम पीने से मलेरिया में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः करेले के 1 तोला रस में 2 से 5 ग्राम जीरा डालकर पीने से अथवा रात्रि में पुराने गुड़ के साथ जीरा खिलाने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:10 PM
टायफाईडः

चार-पाँच दिन उपवास करने से टायफाईड नियंत्रित होता है। इस रोग में मूँग का पानी या चावल की राब ही एकमात्र ऐसा आहार है जो रोगी के रोग को मंद करके शक्ति प्रदान करता है।
तुलसी के सात पत्ते, खूबकला छः ग्राम, उन्नाव 4 नग एवं सात मुनक्के पीसकर 2 तोला पानी में मिलाकर, सुखाकर सुबह-शाम देने से बुखार का वेग शांत होता है।

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12-11-2012, 05:10 PM
सर्दी का बुखारः

पहला प्रयोगः 6 ग्राम सोंठ के साथ 2 ग्राम दालचीनी का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा या आधा से 2 ग्राम पीपर के साथ निर्गुण्डी का 20 से 50 मि.ली. रस पीने से सर्दी के बुखार में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम तुलसी, 2 से 5 ग्राम अदरक एवं आधा से 2 ग्राम मुलहठी को घोंटकर 2 से 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है। सर्दी के बुखार में किसी अनुभवी वैद्य के परामर्श से त्रिभुवनकीर्तिरस एवं लक्ष्मीविलासरस ले सकते हैं।
तीसरा प्रयोगः सर्दी के बुखार की गंभीर हालत में अजवाइन एवं नमक को सेंककर उसकी गरम-गरम पोटली छाती पर रखने से कफ पिघलकर वेदना शांत होती है।
चौथा प्रयोगः अदरक व पुदीने का काढ़ा देने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। शीतज्वर में लाभप्रद है।

aspundir
12-11-2012, 05:10 PM
न्यूमोनिया

पुदीना का ताजा रस शहद के साथ मिलाकर दो-तीन घंटे के अंतराल से देते रहने से न्यूमोनिया से होने वाले अनेक विकारों की रोकथाम होती है और ज्वर शीघ्रता से मिट जाता है।
सर्व प्रकार के बुखार की रामबाण दवा

पहला प्रयोगः दो तोला कुटी हुई गुडुच (गिलोय) को रात्रि में थोड़े पानी में भिगोकर सुबह मसल-छानकर पीने से सब प्रकार के बुखार में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 30 से 40 मुनक्कों को लगभग 250 ग्राम पानी में रात को भिगो दें। सुबह उसे खूब उबालकर उसके बीज निकालकर खा जायें और वही पानी पी जायें। इससे शरीर में बल और स्फूर्ति का संचार होगा। रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और ज्वर का उन्मूलन हो जायेगा।
तीसरा प्रयोगः रात्रि में 25 ग्राम सोंफ पानी में भिगोकर रखें। सुबह उसी पानी में उबालें। उबल जाने पर सोंफ को खूब मसलकर उसका पानी छान लें। इस पानी में 4 मूँग भार (200-250 मि.ग्राम) जितनी फुलायी हुई लाल फिटकरी का चूर्ण डालकर सुबह खाली पेट 40 दिन तक पीने से पुराने से पुराना किसी भी प्रकार का बुखार मिटता है। इस प्रयोग से 20 वर्ष पुरानी कब्जियत भी दूर हो जाती है।

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12-11-2012, 05:10 PM
शरीरपुष्टि

पहला प्रयोगः 1 से 2 ग्राम सोंठ एवं उतनी ही शिलाजीत खाने से अथवा 2 से 5 ग्राम शहद के साथ उतनी ही अदरक लेने से शरीर पुष्ट होता है।
दूसरा प्रयोगः 3 से 5 अंजीर को दूध में उबालकर या अंजीर खाकर दूध पीने से शक्ति बढ़ती है।
तीसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को आँवले के 10 से 40 मि.ली. रस के साथ 15 दिन लेने से शरीर में दिव्य शक्ति आती है।
चौथा प्रयोगः एक गिलास पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर उसमें दो किसमिश रात्रि में भिगो दें। सुबह छानकर पानी पी जायें एवं किसमिश चबा जायें। यह एक अदभुत शक्तिदायक प्रयोग है।
पाँचवाँ प्रयोगः शाम को गर्म पानी में दो चुटकी हल्दी पीने से शरीर सदा नीरोगी और बलवान रहता है।

aspundir
12-11-2012, 05:11 PM
असमय आनेवाले वृद्धत्व को रोकने के लिएः

पहला प्रयोगः त्रिफला एवं मुलहठी के चूर्ण के समभाग मिश्रण में से 1 तोला चूर्ण दिन में दो बार खाने से असमय आनेवाला वृद्धत्व रुक जाता है।
दूसरा प्रयोगः आँवले एवं काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर उसका 1 से 2 ग्राम बारीक चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से असमय आने वाला बुढ़ापा दूर होता है एवं शक्ति आती है।

aspundir
12-11-2012, 05:11 PM
सिर के रोग

सिरदर्द

पहला प्रयोगः घोड़ावज या वायसर (ईश्वर बेल की जड़) का लेप सिर पर लगाने से अथवा नाक में सरसों के तेल की बूँदे टपकाने से सिरदर्द में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः लहसुन की 1 से 5 कलियों को 1 ग्राम नमक के साथ पीसकर भोजन के साथ सेवन करने से वात्तिक सिरदर्द में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः जब सिरदर्द सता रहा हो तब ध्यानमुद्रा में शांत होकर बैठ जायें अथवा दोनों हाथों की कोहनियों के 1-1 सेन्टीमीटर ऊपर केवल सात मिनट के लिए कसकर रूमाल बाँध दें। इससे सिरदर्द में आराम मिलेगा।
चौथा प्रयोगः गर्मी के कारण सिरदर्द होता हो तो धनिया पीसकर सिर पर लगायें।
पाँचवाँ प्रयोगः जिसका सिर बहुत दुःखता हो वह दाँतों से जीभ को थोड़ा बाहर निकाल कर तर्जनी उँगली(अँगूठे के पास वाली) को अँगूठे से दबाकर '0' बनाये। ऐसा दिन में तीन बार 2-2 मिनट तक करें। इससे अनेक प्रकार के दर्द मिट जाते हैं।
छठा प्रयोगः प्रतिदिन भोजन करने के बाद सिर में कंघी करने से सिर की पीड़ा दूर हो जाती है।
सिरदर्द के तीन मुख्य कारण होते हैं- जुकाम, कब्जियत और पित्तप्रकोप। इन्हें दूर किये बिना सिरदर्द नहीं मिटता।

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12-11-2012, 05:11 PM
सर्दी का सिरदर्द

पहला प्रयोगः सिर तथा नाक में कफ भर जाने पर काली मिर्च के बारीक पाउडर को नास की तरह लेने से कफ निकलकर छींक आकर सिर हल्का हो जायेगा।
दूसरा प्रयोगः आधा तोला नौसादर तथा दो आनी भार (1.5 ग्राम) कपूर को पीसकर सूँघने से सिर की तीव्र पीड़ा मिटती है।

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12-11-2012, 05:12 PM
आधासीसी (Migraine)-

पहला प्रयोगः सूर्योदय से पूर्व नारियल एवं गुड़ के साथ छोटे चने बराबर मात्रा में कपूर मिलाकर तीन दिन खाने से आधासीसी का दर्द मिटता है।
दूसरा प्रयोगः पीपर (पाखर) एवं वच का आधा-आधा ग्राम चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से आधासीसी (आधे सिर का दर्द) में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः गाय का शुद्ध ताजा घी सुबह-शाम 2-2 बूँद नाक में डालने से दर्द में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः दही, चावल व मिश्री मिलाकर सूर्योदय से पहले खाने से सूर्योदय के साथ बढ़ने-घटने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है। यह प्रयोग कम-से-कम छः दिन करें।

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12-11-2012, 05:12 PM
अपस्मार (मिर्गी) (Epilepsy)-

पहला प्रयोगः नींबू के रस में अरीठे को घिसकर उसका नस्य लेने से अथवा भांगरे के रस में समान मात्रा में बकरी का दूध मिलाकर उसकी बूँदें नाक में रोज डालने से मिर्गी के रोग में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः लहसुन की थोड़ी कलियों को दूध में भिगोकर प्रतिदिन सेवन करने से थोड़े ही दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाता है।
बेहोशी के दौरे आने पर लहसुन को पीसकर रोगी को सुँघाने से तथा उसका रस रोगी की नाक में डालने से बेहोशी दूर होती है।
पागलपनः इस रोग के मरीज को सूत की खाट पर बाँधकर नीचे से कड़वे सहजने की पत्तियों का धुआँ 15 मिनट तक दें। मरीज को ऊपर से कम्बल ढाँक दें जिससे उसकी नाक, आँख एवं कान में धुआँ प्रवेश करेगा। इस प्रयोग से चार-पाँच दिन में ही मरीज ठीक हो सकता है।

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12-11-2012, 05:12 PM
चक्कर आना

पहला प्रयोगः 10 से 50 मि.ली. अदरक एवं तुलसी के 5 मि.ली. रस को शहद में लेने से अथवा सोंफ तथा मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 2 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से चक्कर आने पर लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 6 ग्राम धनिया एवं 6 ग्राम आँवलों को अधकूटा पीसकर, रात्रि को पानी में भिगोकर, सुबह छानकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः रात्रि को 11 या 21 बादाम पानी में भिगो दें। सुबह में बादाम का छिलका निकालकर बादाम को पीसकर उसमें तीन छोटी इलायची, तीन काली मिर्च डालकर दूध के साथ उबालकर ठंडा करके 8-10 दिन पीना चाहिए। डायबिटीज न हो तो मिश्री डालें। बादाम को जितना ज्यादा पीसेंगे उतनी ज्यादा गुणकारक होगी।

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12-11-2012, 05:13 PM
अनिद्रा

पहला प्रयोगः सोंफ, मिश्री एवं दूध का ठण्डा शर्बत पीने से अथवा भैंस का दूध पीकर सोने से अथवा मालिश करने से नींद अच्छी आती है।
दूसरा प्रयोगः हरी धनिया के रस में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर अग्नि पर चाशनी तैयार करके शरबत तैयार करें। इस तैयार 20-25 ग्राम शरबत में आवश्यकतानुसार जल मिलाकर पीने से अनिद्रारोग की निवृत्ति में सहायता मिलती है।
तीसरा प्रयोगः 200 मि.ली दूध में 1 से 5 ग्राम पीपरामूल मिलाकर पीने से नींद आ जाती है।

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12-11-2012, 05:13 PM
लौकी का तेल बनाने की विधि

तिल अथवा नारियल का तेल 250 ग्राम लें। सवा किलोग्राम लौकी (दूधी) लेकर उसको छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पीसें और महीन कपड़े से मजबूती से छानकर उसका पानी निकाल लें।
तेल को एक बर्तन में धीमी आँच पर उबालें। जब थोड़ा गर्म हो जाय तब उसमें लौकी का निकाला हुआ पानी धीरे-धीरे डाल दें। अब दोनों को उबलने दें। जब सारा पानी जल जाय तब तेल को उतारकर ठण्डा होने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर उसे एक बोतल में भरकर रख लें।
यह तेल बादाम रोगन (बादाम का तेल) का छोटा भाई कहलाता है। सप्ताह में एक दो बार शरीर पर इस तेल की मालिश करने से बहुत लाभ होते हैं। संक्षेप में, इससे स्मरणशक्ति बढ़ती है, मस्तिष्क में ठण्डक रहती है और दिमाग को बल मिलता है।

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12-11-2012, 05:14 PM
खुजली (Eczema)

पहला प्रयोगः आश्रम में उपलब्ध लालबूटी में करंज या नीम का तेल मिलाकर मालिश करने से खुजली में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः पवार (चक्रमर्द) के बीज के चूर्ण में नींबू का रस मिलाकर उसे खुजली वाले स्थान पर लेप करें। पानी के साथ यह चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को आधा तोला मात्रा में खायें तथा मरिच्यादि तेल की मालिश करें। नीम के काढ़े से स्नान करें। एवं आरोग्यवर्धिनीवटी नं. 1 की दो-दो गोली पानी के साथ लेवें।
सिर में फुन्सी एवं खुजलीः सिर पर नींबू का रस और सरसों का तेल समभाग में मिलाकर लगाने से और बाद में दही रगड़कर धोने से कुछ ही दिनों में सिर का दारुण रोग मिटता है। इस रोग में सिर में फुंसियाँ एवं खुजली होती है।

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12-11-2012, 05:14 PM
घमौरियाँ

पहला प्रयोगः नींबू का रस लगाने से अथवा आम की गुठली के चूर्ण को पानी में मिलाकर उसे शरीर पर लगाकर स्नान करने से घमौरियाँ मिटती हैं।
दूसरा प्रयोगः ग्रीष्म ऋतु में प्रायः पीठ के ऊपर घमौरियाँ (छोटी-छोटी फुन्सियाँ) हो जाती हैं। 5 ग्राम सोंफ कूटकर पानी से भरे बर्तन में डाल दें व प्रातः इसी पानी से स्नान करे व सोंफ को पानी में पीसकर लेप बनाकर पीठ पर लगाने से घमौरियाँ शीघ्र ही ठीक होती हैं।

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12-11-2012, 05:14 PM
शीतपित्त (Urticaria)

पहला प्रयोगः सरसों के तेल की मालिश करके गर्म पानी से नहाने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः काली मिर्च का चूर्ण घी के साथ चाटने से एवं घी में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर लेप करने से लाल चकत्ते (शीतपित्त) ठीक हो जाते हैं।
शीतपित्त में वायु की प्रधानता पर 1-2 ग्राम अजवाइन व गुड़, पित्त की प्रधानता पर 1 से 2 ग्राम हल्दी व गुड़ एवं कफ की प्रधानता पर अदरक का 2 से 10 मि.ली. रस व गुड़ सुबह-शाम लेने से राहत मिलेगी।

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12-11-2012, 05:14 PM
खाज (Pruritis)

पहला प्रयोगः आँवले के 2 ग्राम चूर्ण को 1 लीटर पानी में भिगोकर उसका पानी लगाने से तथा पूरे दिन वही पानी पीने से खाज में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः सफेद ऊन की राख को गाय के घी में मिलाकर खाज पर लगाने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः पुराने खाज (विचिर्चिका) में डामर का लेप उत्तम दवा है।
डामर लगाकर पट्टी बाँधकर चार दिन के बाद खोलकर पुनः पट्टी बाँधें। ऐसी तीन पट्टियाँ बाँधें। चौथी पट्टी बाँधने के बाद एक सप्ताह बाद पट्टी खोलें तो खाज पूर्णतः मिट जायेगी।

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12-11-2012, 05:14 PM
दाद (Ringworm)

पहला प्रयोगः पवार (चक्रमर्द) के बीज के चूर्ण में दही का पानी अथवा नींबू का रस मिलाकर दाद पर लेप करने से तीन-चार दिन में ही दाद मिट जाती है।
दूसरा प्रयोगः नींबू के रस में इमली की गुठली घिसकर लगाने से खाज व दाद में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः दाद-खाज पर पुदीने का रस लगाने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः तुलसी की पत्तियों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद-खाज मिट जाती है।

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12-11-2012, 05:15 PM
रक्तविकार

पहला प्रयोगः दो तोला काली द्राक्ष (मुनक्के) को 20 तोला पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह उसे मसलकर 1 से 5 ग्राम त्रिफला के साथ पीने से कब्जियत, रक्तविकार, पित्त के दोष आदि मिटकर काया कंचन जैसी हो जाती है।
दूसरा प्रयोगः बड़ के 5 से 25 ग्राम कोमल अंकुरों को पीसकर उसमें 50 से 200 मि.ली. बकरी का दूध और उतना ही पानी मिलाकर दूध बाकी रहे तब तक उबालकर, छानकर पीने से रक्तविकार मिटता है।

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12-11-2012, 05:15 PM
सफेद दाग (कोढ़)

पहला प्रयोगः बावची के तेल की मालिश करें। फोड़ा होने पर लगाना बंद कर दें। फोड़े पर मिट्टी या गोबर का लेप करें। सात दिन बाद पुनः बावची का तेल लगायें।
दूसरा प्रयोगः 50 से 200 मि.ली गोमूत्र में 1 से 3 ग्राम हल्दी मिलाकर पीने से या तुलसी का रस लगाने व 5 से 20 मि.ली. पीने से सफेद दाग मिटते हैं।
तीसरा प्रयोगः पीपल की छाल का दो ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार छः महीने तक लेने से एवं केले के पत्तों की राख तथा उसके बराबर हल्दी लेकर दोनों को पानी में पीसकर उसका लेप करने से सफेद कोढ़ मिटता है।
सफेद कोढ़ में वमन कराने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः चने को पानी में भिगोकर या उबालकर जब इच्छा हो तब खायें। जिस पानी में चने भिगोयें उसी पानी को पियें। चने में नमक न डालें। 3 से 6 महीने तक यह प्रयोग करने से हर प्रकार के कुष्ठ में लाभ होता है।
इस प्रयोग के दौरान चने के अतिरिक्त कुछ न खायें।
पाँचवाँ प्रयोगः काकोटुम्बर नामक बूटी जहाँ-तहाँ होती है। उसका दूध लगायें और उसकी छाल का काढ़ा बनाकर पियें। उस दाग पर लोहे की शलाका से घिसें। जलन होने पर घिसना बन्द कर दें। त्रिफला चूर्ण का रोज सेवन करें। दूध, फल, मिठाई, खटाई और लाल मिर्च बंद कर दें।
दूध के साथ तुलसी, प्याज, मछली या खटाई खाने से कोढ़ निकलता है अतः इस प्रकार के भोजन से सावधान रहें।

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12-11-2012, 05:15 PM
वातरक्त (लेप्रसी-कुष्ठ रोग)

1 तोला अडूसे, गुडुच(गिलोय) एवं अरण्डी की जड़ 20 से 50 मि.ली. काढ़े में अथवा अमलतास की फलियों एवं गिलोय के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में अरण्डी का 1 से 5 ग्राम तेल मिलाकर पीने से वातरक्त में लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:15 PM
त्वचा के मस्से

पहला प्रयोगः बंगला, मलबारी, कपूरी अथवा नागरबेल के पत्ते के डंठल का रस मस्से पर लगाने से मस्से झड जाते हैं। यदि तब भी न झडें तो पान में खाने का चूना मिलाकर घिसें।
दूसरा प्रयोगः थूहर का दूध या कार्बोलिक एसिड सावधानी पूर्वक लगाने से मसे निकल जाते हैं।
त्वचा के लाल छालेः काले जीरे को गोमूत्र में पीसकर शरीर पर लगाकर नहाने से अथवा चन्दन तेल, तुवरक तेल एवं बावची का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:16 PM
जलने पर

पहला प्रयोगः जलने पर गुवारपाठा का गूदा लगाने से बर्फ जैसी ठण्डक हो जाती है तथा घाव जल्दी भरता है।
दूसरा प्रयोगः हल्दी का पानी लगाने से जले हुए में आराम मिलता है।
तीसरा प्रयोगः नारियल के तेल में हरड़ का चूर्ण मिलाकर लगाने से घाव में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः कच्चे आलू को पीसकर जले हुए स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।

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12-11-2012, 05:16 PM
जलने से होने वाले दागः

प्रथम प्रयोगः भांगरे एवं तुलसी के पत्तों का रस (जख्म मिट जाने के बाद) लगाने से सफेद दाग नहीं पड़ते।
दूसरा प्रयोगः गरमी से त्वचा पर हुए चकत्तों पर त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगाने से राहत मिलती है।

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12-11-2012, 05:16 PM
त्वचा के सर्वरोगः

प्रथम प्रयोगः नींबू के रस में नारियल की जटा का तेल मिलाकर शरीर पर उसकी मालिश करने से त्वचा की शुष्कता, खुजली आदि त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः पुराने त्वचा के रोग में करेले के पत्तों को पीसकर उसकी मालिश करने से खूब लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:16 PM
रक्तस्राव होने पर

पहला प्रयोगः हरी धनिया का 10 से 20 मि.ली. रस दिन में दो बार पीने से मुँह से रक्त नहीं गिरता।
दूसरा प्रयोगः नाक-मुँह से रक्तस्राव होने पर 1 ग्राम फिटकरी को 20 ग्राम पानी में मिलाकर सुबह-शाम पियें। इससे रक्तार्थ, दस्त में खून गिरना, मूत्ररक्त, अतिआर्तव आदि में भी लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः आधा से 1 ग्राम कपूर और 1 से 2 ग्राम अनार की छाल के साथ माजूफल का आधा से 1 ग्राम चूर्ण खाने से रक्तस्राव बंद होता है।

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12-11-2012, 05:17 PM
फोड़े फुन्सी होने पर

प्रथम प्रयोगः अरण्डी के बीजों की गिरी को पीसकर उसकी पुल्टिस बाँधने से अथवा आम की गुठली या नीम या अनार के पत्तों को पानी में पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः एक चुटकी कालेजीरे को मक्खन के साथ निगलने से या 1 से 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण का सेवन करने से तथा त्रिफला के पानी से घाव धोने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः सुहागे को पीसकर लगाने से रक्त बहना तुरंत बंद होता है तथा घाव शीघ्र भरता है।
फोड़े से मवाद बहने परः
पहला प्रयोगः अरण्डी के तेल में आम के पत्तों की राख मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः थूहर के पत्तों पर अरण्डी का तेल लगाकर गर्म करके फोड़े पर उल्टा लगायें। इससे सब मवाद निकल जायेगा। घाव को भरने के लिए दो-तीन दिन सीधा लगायें।
पीठ का फोड़ाः गेहूँ के आटे में नमक तथा पानी डालकर गर्म करके पुल्टिस बनाकर लगाने से फोड़ा पककर फूट जाता है।

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12-11-2012, 05:17 PM
गाँठ

पहला प्रयोगः आकड़े के दूध में मिट्टी भिगोकर लेप करने से तथा निर्गुण्डी के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में 1 से 5 मि.ली अरण्डी का तेल डालकर पीने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 2 से 5 ग्राम कांचनार और रोहतक का दिन में दो-तीन बार सेवन व बाह्य लेप करने से गाँठ पिघलती है।
तीसरा प्रयोगः गेहूँ के आटे में पापड़खार तथा पानी डालकर पुल्टिस बनाकर लगाने से न पकने वाली गाँठ पककर फूट जाती है तथा दर्द कम हो जाता है।
गण्डमाला की गाँठें (Goitre)- गले में दूषित हुआ वात, कफ और मेद गले के पीछे की नसों में रहकर क्रम से धीरे-धीरे अपने-अपने लक्षणों से युक्त ऐसी गाँठें उत्पन्न करते हैं जिन्हें गण्डमाला कहा जाता है। मेद और कफ से बगल, कन्धे, गर्दन, गले एवं जाँघों के मूल में छोटे-छोटे बेर जैसी अथवा बड़े बेर जैसी बहुत-सी गाँठें जो बहुत दिनों में धीरे-धीरे पकती हैं उन गाँठों की हारमाला को गंडमाला कहते हैं और ऐसी गाँठें कंठ पर होने से कंठमाला कही जाती है।
प्रयोगः कौंच के बीज को घिस कर दो तीन बार लेप करने तथा गोरखमुण्डी के पत्तों का आठ-आठ तोला रस रोज पीने से गण्डमाला (कंठमाला) में लाभ होता है।
कफवर्धक पदार्थ न खायें।

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12-11-2012, 05:17 PM
काँखफोड़ा (बगल मे होने वाला फोड़ा)-

कुचले को पानी में बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करके उसका लेप करने से या अरण्डी का तेल लगाने से या गुड़, गुग्गल और राई का चूर्ण समान मात्रा में लेकर, पीसकर, थोड़ा पानी मिलाकर, गर्म करके लगाने से काँखफोड़े में लाभ होता है।

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12-11-2012, 05:17 PM
घाव और छाले

पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का चूर्ण भुरभुराने से अथवा बेल के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः मक्खन में कत्था घोंटकर लगाने से गंदा मवाद निकलकर घाव भरने लगता है।
तीसरा प्रयोगः शस्त्र से घाव लगने पर तुरंत उस पर शुद्ध शहद की पट्टी बाँधें अथवा हरड़े या हल्दी या मुलहठी का चूर्ण या भूतभांगड़ा या हंसराज की पत्तियों को पीसकर उसका लेप घाव पर करने से रक्त तुरंत रुक जाता है व पकने की संभावना कम रहती है।
चौथा प्रयोगः चोट लगकर खून निकलता हो तो हल्दी भुरभुराकर सर्वगुण तेल का पट्टा बाँधे। बाजारू पिसी हुई हल्दी में नमक होता है अतः दूध में हल्दी पीस लें।
वैसे भी शरीर पर किसी भी प्रकार से कटकर घाव पड़ जाने पर 24 घंटे तक कुछ नहीं खाने से घाव पकता नहीं।

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12-11-2012, 06:02 PM
भीतरी चोट

पहला प्रयोगः 1 से 3 ग्राम हल्दी और शक्कर फाँकने और नारियल का पानी पीने से तथा खाने का चूना एवं पुराना गुड़ पीसकर एकरस करके लगाने से भीतरी चोट में तुरंत लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 2 कली लहसुन, 10 ग्राम शहद, 1 ग्राम लाख एवं 2 ग्राम मिश्री इन सबको चटनी जैसा पीसकर, घी डालकर देने से टूटी हुई अथवा उतरी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
तीसरा प्रयोगः बबूल के बीजों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दिन शहद के साथ लेने से अस्थिभंग के कारण दूर हुई हड्डी वज्र जैसी मजबूत हो जाती है।

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12-11-2012, 06:03 PM
मोच एवं सूजनः

पहला प्रयोगः लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों को उबालकर बाँधने से सूजन उतर जाती है।
दूसरा प्रयोगः अरनी के उबाले हुए पत्तों को किसी भी प्रकार की सूजन पर बाँधने से तथा 1 ग्राम हाथ की पीसी हुई हल्दी को सुबह पानी के साथ लेने से सूजन दूर होती है।
तीसरा प्रयोगः मोच अथवा चोट के कारण खून जम जाने एवं गाँठ पड़ जाने पर बड़ के कोमल पत्तों पर शहद लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े से गरारे करने से गले की सूजन में फायदा होता है।
सूजन में करेले का साग लाभप्रद है।

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12-11-2012, 07:12 PM
वातरोग-गठिया आदि

वातरोग

पहला प्रयोगः दो तीन दिन के अंतर से खाली पेट अरण्डी का 2 से 20 मि.ली. तेल पियें। इस दौरान चाय-कॉफी न लें। साथ में दर्दवाले स्थान पर अरण्डी का तेल लगाकर, उबाले हुए बेल के पत्तों को गर्म-गर्म बाँधने से वात-दर्द में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः निर्गुण्डी के पत्तों का 10 से 40 मि.ली. रस लेने से अथवा सेंकी हुई मेथी का कपड़छन चूर्ण तीन ग्राम, सुबह-शाम पानी के साथ लेने से वात रोग में लाभ होता है। यह मेथीवाला प्रयोग घुटने के वातरोग में भी लाभदायक है। साथ में वज्रासन करें।
तीसरा प्रयोगः सोंठ के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में 5 से 10 ग्राम अरण्डी का तेल डालकर सोने के समय लेने से खूब लाभ होता है। यह प्रयोग सायटिका एवं लकवे में भी लाभदायक है।

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12-11-2012, 07:12 PM
संधिवात (Arthritis)

पहला प्रयोगः निर्गुण्डी के 30-40 पत्तों को पीसकर नाभि पर लगाने से एवं 10 से 40 मि.ली. पिलाने से संधिवात में आराम मिलता है।
दूसरा प्रयोगः अडूसे की छाल का 2 ग्राम चूर्ण लेने से तथा महानिंब के पत्तों को उबालकर बाँधने से संधिवात में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः सोंठ के साथ गुडुच का काढ़ा 20 से 50 मि.ली. पीने से संधिवात दूर होता है।

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12-11-2012, 07:12 PM
कमर का वातरोग

निर्गुण्डी के 20 से 50 मि.ली. रस में अरण्डी का 2 से 10 मि.ली. तेल मिलाकर पीने से कमर के दर्द में राहत मिलती है। कमर से पाँव तक शरीर को हल्के हाथ से दबाकर सेंक करना, सुप्तवज्रासन, धनुरासन, उत्तानपादासन, अर्धमत्स्यासन आदि करना भी अत्यधिक लाभदायक है। यदि बुखार न हो और भूख अच्छी लगती हो तो मालिश भी कर सकते हैं।

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12-11-2012, 07:12 PM
पैरों का वात (सायटिका)

पहला प्रयोगः सरसों के तेल में सोंठ व कायफल की छाल गर्म करके मालिश करने से अथवा पीड़ित भाग पर अरण्डी का तेल लगाकर ऊपर से थोड़े गर्म किये हुए अरण्डी के पत्ते रखकर पट्टी बाँधने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः लहसुन की 10 कलियों को 100 ग्राम पानी एवं 100 ग्राम दूध में मिलाकर पकायें। पानी जल जाने पर लहसुन खाकर दूध पीने से सायटिका में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः निर्गुण्डी के 40 ग्राम हरे पत्ते अथवा 15 ग्राम सूखे पत्ते एवं 5 ग्राम सोंठ को थोड़ा कूटकर 350 ग्राम पानी में उबालें। 60-70 ग्राम पानी शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पीने से सायटिका में लाभ होता है।

aspundir
12-11-2012, 07:12 PM
आमवात (गठिया) (Gout)-

इसमें जोड़ों में दर्द व सूजन रहती है। शरीर में संचारी वेदना होती है अर्थात दर्द कभी हाथों में होता है तो कभी पैरों में । इस रोग में अधिकांशतः उपचार के पूर्व लंघन आवश्यक है तथा प्रात: पानी प्रयोग एवं रेत या अँगीठी (सिगड़ी) का सेंक लाभदायक है। 3 ग्राम सोंठ को 10 से 20 मि.ली. (1-2 चम्मच) अरण्डी के तेल के साथ खायें।
पहला प्रयोगः 250 मि.ली. दूध एवं उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियाँ, 1-1 चम्मच सोंठ और हरड़ तथा 1-1 दालचीनी और छोटी इलायची डालकर पकायें। पानी जल जाने पर वही दूध पीयें।
दूसरा प्रयोगः 'पानी प्रयोग' के अलावा निम्नलिखित चिकित्सा करें।
पहले तीन दिन तक उबले हुए मूँग का पानी पियें। बाद में सात दिन तक सिर्फ उबले हुए मूँग ही खायें। सात दिन के बाद पंद्रह दिन तक केवल उबले हुए मूँग एवं रोटी खायें।
सुलभ हो तो एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति अपनायें।
औषधियाँ- सिंहनाद गुगल की 2-2 गोली सुबह, दोपहर व शाम पानी के साथ लें।
'चित्रकादिवटी' की 2-2 गोली सुबह-शाम अदरक के साथ 20 मि.ली. रस व 1 चम्मच घी के साथ लें।

aspundir
12-11-2012, 07:13 PM
कंपवात

निर्गुण्डी की ताजी जड़ एवं हरे पत्तों का रस निकाल कर उसमें पाव भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म करके सुबह-शाम 1-1 चम्मच पीने से तथा मालिश करते रहने से कंपवात, संधियों का दर्द एवं वायु का दर्द मिटता है। स्वर्णमालती की 1 गोली अथवा 1 ग्राम कौंच का पाउडर दूध के साथ लेने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:13 PM
मांसपेशियों का दर्द

लहसुन के रस में पिसा हुआ सेंधा नमक मिलाकर मालिश करने से मांसपेशियों का दर्द दूर होता है।

aspundir
12-11-2012, 07:13 PM
लकवा (पक्षाघात) (Paralysis)

पहला प्रयोगः लकवे का अटैक होते ही तुरंत तिल का तेल 50 से 100 ग्राम की मात्रा में थोड़ा-सा गर्म करके पी जायें व साथ में लहसुन खायें। लकवे से प्रभावित अंग एवं सिर पर सेंक करना भी अटैक आते ही आरंभ करें व आठ दिन बाद मालिश करें। इसमें उपवास लाभदायक है।
प्रभावित अंग पर चार दिन के बासी स्वमूत्र की प्रतिलोम गति से मालिश करने से भी लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः पहले दिन लहसुन की पूरी कली पानी के साथ निगलें। फिर रोज 1-1 कली बढ़ाते हुए 21वें दिन 21 कलियाँ निगलें। उसके बाद रोज 1-1 कली घटाते जायें। इस प्रकार करने से लकवा मिटता है।
तीसरा प्रयोगः हरे लहसुन की पत्तियों सहित पूरी डाली का रस निकालकर उसे पानी में मिलाकर पिलाने से बी.पी. के बढ़ने के कारण हुए लकवे में लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:14 PM
स्त्री-रोग

श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)-

श्वते प्रदर में पहले तीन दिन तक अरण्डी का 1-1 चम्मच तेल पीने के बाद औषध आरंभ करने पर लाभ होगा। श्वेतप्रदर के रोगी को सख्ती से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
पहला प्रयोगः आँवला-मिश्री के 2 से 5 ग्राम चूर्ण के सेवन से अथवा चावल के धोवन में जीरा और मिश्री के आधा-आधा तोला चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः पलाश (टेसू) के 10 से 15 फूल को 100 से 200 मि.ली. पानी में भिगोकर उसका पानी पीने से अथवा गुलाब के 5 ताजे फूलों को सुबह-शाम मिश्री के साथ खाकर ऊपर से गाय का दूध पीने से प्रदर में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः बड़ की छाल का 50 मि.ली. काढ़ा बनाकर उसमें 2 ग्राम लोध्र चूर्ण डालकर पीने से लाभ होता है। इसी से योनि प्रक्षालन करना चाहिए।
चौथा प्रयोगः जामुन के पेड़ की जड़ों को चावल के मांड में घिसकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम देने से स्त्रियों का पुराना प्रदर मिटता है।

aspundir
12-11-2012, 07:14 PM
रक्तप्रदर (Menorrhagia)-

पहला प्रयोगः आम की गुठली का 1 से 2 ग्राम चूर्ण 5 से 10 ग्राम शहद के साथ लेने से या एक पके केले में आधा तोला घी मिलाकर रोज सुबह-शाम खाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 10 ग्राम खैर का गोंद रात में पानी में भिगोकर सुबह मिश्री डालकर खाने से अथवा जवाकुसुम (गुड़हल) की 5 से 10 कलियों को दूध में मसलकर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः अशोक की 1-2 तोला छाल को अधकूटी करके 100 ग्राम दूध एवं 100 ग्राम पानी में मिलाकर उबालें। केवल दूध रहने पर छानकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
चौथा प्रयोगः गोखरू एवं शतावरी के समभाग चूर्ण में से 3 ग्राम चूर्ण को बकरी या गाय के सौ ग्राम दूध में उबालकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः कच्चे केलों को धूप में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम गुड़ मिलाकर रक्तप्रदर की रोगिणी स्त्री को खिलाने से लाभ होगा। इस चूर्ण के साथ कच्चे गूलर का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन प्रातः-सायं 1-1 तोला सेवन करने से ज्यादा लाभ होता है।
सावधानीः उपचार के दौरान लाभ न होने तक आहार में दूध व चावल ही लें। बुखार हो तो उन दिनों उपवास करें।

aspundir
12-11-2012, 07:15 PM
मासिक अधिक होने पर

काली मिट्टी की पट्टी पेट पर बाँधने से, पीपल के पाँच पत्ते रोज तीन बार खाने से एवं बबूल के 5 से 10 ग्राम गोंद का सेवन करने से लाभ होता है।
मासिक बंद होने पर

अरण्डी के पत्तों पर थोड़ा सा अरण्डी का ही थोडा सा गर्म तेल लगाकर पेट पर बाँधने से एवं तिल के 50 मि.ली. काढ़े में सोंठ, काली मिर्च, लेंडीपीपर, हींग और भारंग की जड़ का 3 ग्राम चूर्ण डालकर पीने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:15 PM
गर्भधारण

पहला प्रयोगः शिवलिंगी के 9-9 बीज दूध या पानी में घोंटकर प्रातःकाल खाली पेट मासिक के पाँचवें दिन से चार दिन तक लेने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अश्वगंधा के काढ़े में घृत पकाकर यह घृत एक तोला मात्रा में ऋतुकाल में स्त्री यदि सेवन करे तो उसे गर्भ रहता है। (एक किलो अश्वगंधा के बोरकूट चूर्ण को 16 लीटर पानी में उबालें। चौथाई भाग अर्थात् 4 लीटर पानी रह जाने पर उसमें 1 किलो घी डालकर उबालें। जब केवल घी बचे तब उसे उतारकर डिब्बे में भर लें। यही घृत पकाना है।)
तीसरा प्रयोगः दूध के साथ पुत्रजीवा की जड़, बीज अथवा पत्तों के एक तोला चूर्ण को लेने से, ब्रह्मचर्य का पालन करने से, तीन महीने तक यह प्रयोग करने से बाँझ को भी संतान प्राप्ति हो सकती है। जिनके बालक जन्मते ही मर जाते हों उनके लिए भी यह एक अकसीर प्रयोग है। पुत्रजीवा के बीजों की माला पहनने से भी लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:15 PM
गर्भस्थापक

रात को किसी मिट्टी के बर्तन में 25 ग्राम अजवायन, 25 ग्राम मिश्री 25 ग्राम पानी में डुबाकर रखें। सुबह उसे ठण्डाई की नाईं पीसकर पियें।
भोजन में बिना नमक की मूँग की दाल व रोटी खायें। यह प्रयोग मासिक धर्म के पहले दिन से लेकर आठवें दिन तक करना चाहिए।

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12-11-2012, 07:15 PM
गर्भरक्षा

प्रथम प्रयोगः जिस स्त्री को बार-बार गर्भपात को जाता हो उसकी कमर में धतूरे की जड़ का चार उँगल का टुकड़ा बाँध दें। इससे गर्भपात नहीं होगा। जब नौ मास पूर्ण हो जाय तब जड़ को खोल दें।
दूसरा प्रयोगः जौ के आटे को एवं मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बार-बार होने वाला गर्भपात रुकता है।

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12-11-2012, 07:16 PM
सुन्दर बालक के लिए

नारियल का पानी पीने से अथवा नौ महीने तक रोज बबूल के 5 से 10 ग्राम पत्ते खाने से गर्भवती स्त्री गौरवर्णीय बालक को जन्म देती है। फिर चाहे माता-पिता श्याम ही क्यों न हों।

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12-11-2012, 07:16 PM
गर्भिणी की उल्टी

बेल का 5 ग्राम गूदा एवं धनिया का 50 मि.ली. पानी मिलाकर पीने से अथवा कपूरकाचली के 2 ग्राम चूर्ण को 10 मि.ली. गुलाबजल में मिश्रित करके लेने से गर्भिणी की उल्टी शांत होती है।

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12-11-2012, 07:16 PM
गर्भिणी के पेट की जलन

10-15 मुनक्के का सेवन करने से अथवा बकरी के 100 से 200 मि.ली. दूध में 10 से 20 ग्राम सोंठ पीसकर लेने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:17 PM
प्रसव पीड़ा

पहला प्रयोगः प्रसूति के समय ताजे गोबर (1-2 घण्टे के भीतर का) को कपड़े में निचोड़कर एक चम्मच रस पिला देने से प्रसूति शीघ्र हो जाती है।
दूसरा प्रयोगः तुलसी का 20 से 50 मि.ली. रस पिलाने से प्रसूति सरलता से हो जाती है।
तीसरा प्रयोगः पाँच तोला आँवले को 20 तोला पानी में खूब उबालिये। जब पानी 8 तोला रह जाये तब उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर देने से बिना किसी प्रसव पीड़ा के शिशु का जन्म होता है।
चौथा प्रयोगः नीम अथवा बिजौरे की जड़ कमर में बाँधने से प्रसव सरलता से हो जाता है। प्रसूति के बाद जड़ छोड़ दें।

aspundir
12-11-2012, 07:21 PM
शिशु-रोग

दस्त लगने पर

पहला प्रयोगः जायफल या सोंठ अथवा दोनों का मिश्रण पानी में घिसकर सुबह-शाम 3 सेस 6 रत्ती (करीब 400 से 750 मिलीग्राम) देने से हरे दस्त मिट जाते हैं।
दूसरा प्रयोगः 1 ग्राम खसखस पीसकर 10 ग्राम दही में मिलाकर देने से बच्चों की दस्त की तकलीफ दूर होती है।

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12-11-2012, 07:21 PM
उदरविकार

5 ग्राम सौंफ़ लेकर थोड़ा कूट लें। एक गिलास उबलते हुए पानी में डालें व उतार लें और ढँककर ठण्डा होने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर मसलकर छान लें। यह सोंफ का 1 चम्मच पानी 1-2 चम्मच दूध में मिलाकर दिन में 3 बार शिशु को पिलाने से शिशु को पेट फूलना, दस्त, अपच, मरोड़, पेटदर्द होना आदि उदरविकार नहीं होते हैं।
दाँत निकलते समय यह सोंफ का पानी शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए जिससे शिशु स्वस्थ रहता है।
अपच

नागरबेल के पान के रस में शहद मिलाकर चाटने से छोटे बच्चों का आफरा, अपच तुरंत ही दूर होता है।
सर्दी-खाँसी

पहला प्रयोगः हल्दी का नस्य देने से तथा एक ग्राम शीतोपलादि चूर्ण पिलाने से अथवा अदरक व तुलसी का 2-2 मि.ली. रस 5 ग्राम शहद के साथ देने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 1 ग्राम सोंठ को दूध अथवा पानी में घिसकर पिलाने से कफ निकल जाता है।
तीसरा प्रयोगः नागरबेल के पान में अरंडी का तेल लगाकर हल्का सा गर्म कर छोटे बच्चे की छाती पर रखकर गर्म कपड़े से हल्का सेंक करने से बालक की छाती में भरा कफ निकल जाता है।

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12-11-2012, 07:22 PM
न्यूमोनिया

महालक्ष्मीविलासरस की आधी से एक गोली 10 से 50 मि.ली. दूध अथवा 2 से 10 ग्राम शहद अथवा अदरक के 2 से 10 मि.ली. रस के साथ देने से न्यूमोनिया में लाभ होता है।
फुन्सियाँ होने पर

पहला प्रयोगः पीपल की छाल और ईंट पानी में एक साथ घिसकर लेप करने से फुन्सियाँ मिटती हैं।
दूसरा प्रयोगः हल्दी, चंदन, मुलहठी व लोध्र का पाऊडर मिलाकर या किसी एक का भी पाऊडर पानी में मिलाकर लगाने से फुन्सी मिटती है।
दाँत निकलने पर

पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मसूढ़े पर घिसने से बालक के दाँत बिना तकलीफ के उग जाते हैं।
दूसरा प्रयोगः मुलहठी का चूर्ण मसूढ़ों पर घिसने से दाँत जल्दी निकलते हैं।
नेत्र रोगः त्रिफला या मुलहठी का 5 ग्राम चूर्ण तीन घंटे से अधिक समय तक 100 मि.ली. पानी में भिगोकर फिर थोड़ा-सा उबालें व ठण्डा होने पर मोटे कपड़े से छानकर आँखों में डालें। इससे समस्त नेत्र रोगों में आशातीत लाभ होता है। यह प्रतिदिन ताजा बनाकर ही प्रयोग में लें तथा सुबह का जल रात को उपयोग में न लें।
हिचकीः धीरे-धीरे प्याज सूँघने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:22 PM
पेट के कृमि

पहला प्रयोगः पेट में कृमि होने पर शिशु के गले में छिले हुए लहसुन की कलियों का अथवा तुलसी का हार बनाकर पहनाने से आँतों के कीड़ों से शिशु की रक्षा होती है।
दूसरा प्रयोगः सुबह खाली पेट एक ग्राम गुड़ खिलाकर उसके पाँच मिनट बाद बच्चे को दो काली मिर्च के चूर्ण में वायविडंग का दो ग्राम चूर्ण मिलाकर खिलाने से पेट के कृमि में लाभ होता है। यह प्रयोग लगातार 15 दिन तक करें तथा एक सप्ताह बंद करके आवश्यकता पड़ने पर पुनः आरंभ करें।
तीसरा प्रयोगः पपीते के 11 बीज सुबह खाली पेट सात दिन तक बच्चे को खिलायें। इससे पेट के कृमि मिटते हैं। यह प्रयोग वर्ष में एक ही बार करें।
चौथा प्रयोगः पेट में कृमि होने पर उन्हें नियमित सुबह-शाम दो-दो चम्मच अनार का रस पिलाने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।
पाँचवाँ प्रयोगः गर्म पानी के साथ करेले के पत्तों का रस देने से कृमि का नाश होता है।
छठा प्रयोगः नीम के पत्तों का 10 ग्राम रस 10 ग्राम शहद में मिलाकर पिलाने से उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।
सातवाँ प्रयोगः तीन से पाँच साल के बच्चों को आधा ग्राम अजवायन के चूर्ण को समभाग गुड़ में मिलाकर गोली बनाकर दिन में तीन बार खिलाने से लाभ होता है।
नाभि पकने परः चंदन, हल्दी, मुलहठी या दारुहल्दी का चूर्ण भुरभराएँ।
मुख की गर्मीः मुलहठी का चूर्ण या फुलाया हुआ सुहागा मुँह में भुरभुराएँ या उसके गर्म पानी से कुल्ले करवायें। साथ में 1 से 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण देने से लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:23 PM
मुँह से लार निकलनाः

कफ की अधिकता एवं पेट में कीड़े होने की वजह से मुँह से लार निकलती है। इसलिए दूध, दही, मीठी चीजें, केले, चीकू, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि न खिलायें। अदरक एवं तुलसी का रस पिलायें। कुबेराक्ष चूर्ण खिलायें।
तुतलापनः

पहला प्रयोगः सूखे आँवले के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर चाटने से थोड़े ही दिनों में तुतलापन दूर हो जाता है।
दूसरा प्रयोगः दो रत्ती शंखभस्म दिन में दो बार शहद के साथ चटायें तथा छोटा शंख गले में बाँधें एवं रात्रि को एक बड़े शंख में पानी भरकर सुबह वही पानी पिलायें।
तीसरा प्रयोगः बारीक भुनी हुई फिटकरी मुख में रखकर सो जाया करें। एक मास के निरन्तर सेवन से तुतलापन दूर हो जायेगा।
साथ में यह प्रयोग करवायें- अन्तःकुंभक करवाकर, होंठ बंद करके, सिर हिलाते हुए 'ॐ...' का गुंजन कंठ में ही करवाने से तुतलेपन में लाभ होता है।

aspundir
12-11-2012, 07:23 PM
शैयामूत्र (Enuresis)

सोने से पूर्व ठण्डे पानी से हाथ पैर धुलायें।
प्रयोगः सोंठ, काली मिर्च, पीपर, इलायची, एवं सेंधा नमक प्रत्येक का 1-1 ग्राम का मिश्रण 5 से 10 ग्राम शहद के साथ देने से अथवा काले तिल एवं खसखस समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच चबाकर खिलाने एवं पानी पिलाने से लाभ होता है। पेट के कृमि की चिकित्सा भी करें।
दमाः बच्चे के पैर के तलवे के नीचे थोड़ी लहसुन की कलियों को छीलकर थोड़ी देर रखें एवं ऊपर से ऊन के गर्म मोजे तथा चप्पल पहना दें। ऐसा करने से दमा धीरे-धीरे मिट जाता है। साथ में 10 से 20 मि.ली. अदरक एवं 5 से 10 मि.ली. तुलसी का रस दें।
सिरदर्दः अरनी के फूल सुँघाने से अथवा अरण्डी के तेल को थोड़ा सा गर्म करके नाक में 1-1 बूँद डालने से बच्चों के सिरदर्द में लाभ होता है।
बालकों की पुष्टि

पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का 10 बूँद रस पानी में मिलाकर रोज पिलाने से स्नायु एवं हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
दूसरा प्रयोगः शुद्ध घी में बना हुआ हलुआ खिलाने से शरीर पुष्ट होता है।
मिट्टी खाने परः बालक की मिट्टी खाने की आदत को छुड़ाने के लिए खूब पके हुए केलों को शहद के साथ खिलायें।

aspundir
12-11-2012, 07:24 PM
स्मरणशक्ति बढ़ाने हेतु

पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का 5 से 20 मि.ली. रस पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
दूसरा प्रयोगः पढ़ने के बाद भी याद न रहता हो सुबह एवं रात्रि को दो तीन महीने तक 1 से 2 ग्राम ब्राह्मी तथा शंखपुष्पी लेने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः 5 से 10 ग्राम शहद के साथ 1 से 2 ग्राम भांगरा चूर्ण अथवा 1 से 2 ग्राम शंखावली के साथ उतना ही आँवला चूर्ण खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
चौथा प्रयोगः बादाम की गिरी, चारोली एवं खसखस को बारीक पीसकर, दूध में उबालकर, खीर बनाकर उसमें गाय का घी एवं मिश्री डालकर पीने से दिमाग पुष्ट होता है।
पाँचवाँ प्रयोगः दस ग्राम सौंफ को अधकूटी करके 100 ग्राम पानी में खूब उबालें। 25 ग्राम पानी शेष रहने पर उसमें 100 ग्राम दूध, 1 चम्मच शक्कर एवं एक चम्मच घी मिलाकर सुबह-शाम पियें। घी न हो तो एक बादाम पीसकर डालें। इससे दिमागी शक्ति बढ़ती है।

aspundir
12-11-2012, 07:24 PM
शिशु को नींद न आने पर

पहला प्रयोगः बालक को रोना बंद न होता हो तो जायफल पानी में घिसकर उसके ललाट पर लगाने से बालक शांति से सो जायेगा।
दूसरा प्रयोगः प्याज के रस की 5 बूँद को शहद में मिलाकर चाटने से बालक प्रगाढ़ नींद लेता है।

aspundir
12-11-2012, 07:24 PM
सौन्दर्य

त्वचा की कान्ति

पहला प्रयोगः नींबू का रस एवं छाछ समान मात्रा में मिलाकर लगाने से धूप के कारण काला हुआ चेहरा निखर उठता है।
दूसरा प्रयोगः राई के तेल में चने का आटा और हल्दी मिलाकर लगाने से त्वचा कान्तियुक्त होती है।
तीसरा प्रयोगः मक्खन एवं हल्दी का मिश्रण करके रात्रि को सोते समय मुँह पर लगाने से मुँह कान्तिवान एवं निरोगी होता है।
चौथा प्रयोगः चेहरे पर झुर्रियाँ हों तो दो चम्मच ग्लिसरीन में आधा चम्मच गुलाब जल एवं नींबू के रस की बूँदें मिलाकर मुँह पर रात्रि को लगायें। सुबह उठकर ठण्डे पानी से मुँह धो डालें। त्वचा का रंग निखरकर झुर्रियाँ कम हो जायेंगी।
पाँचवाँ प्रयोगः तुलसी के पत्तों को पीसकर लुगदी बनाकर मुँह पर लगाने से मुँहासों के दाग धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं।
छठा प्रयोगः एक कप दूध को उबालें। जब दूध गाढ़ा हो जाये तब उसे नीचे उतार लें। उसमें एक नींबू निचोड़ दें तथा हिलाते रहें जिससे दूध व नींबू का रस एकरस हो जाय। फिर ठण्डा होने के लिए रख दें। रात को सोते समय इसे चेहरे पर लगाकर मसलें। चाहें तो एक-डेढ़ घण्टे के अन्दर चेहरा धो सकते हैं या रात भर ऐसे ही रहने दें। सुबह में चेहरा धो लें। इस प्रयोग से मुँहासे ठीक होते हैं। चेहरे की त्वचा कान्तिमय बनती है।
मुख की दुर्गन्धः धनिया चबाने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है।

aspundir
12-11-2012, 07:24 PM
त्वचा की ताजगी

पहला प्रयोगः दूध एवं अरण्डी का तेल समान मात्रा में मिलाकर शरीर पर मालिश करने से त्वचा चमकदार होती है।
दूसरा प्रयोगः जौ के आटे को दही में मिलाकर पेस्ट बनाकर चेहरे एवं गले पर लगायें। 15 मिनट बाद गर्म पानी से साफ कर दें। इससे त्वचा में सफेदी आती है तथा त्वचा मुलायम हो जाती है।
शुष्क त्वचा

पहला प्रयोगः हाथ-पैर की त्वचा फटने पर बड़ का दूध लगाने से शीघ्र आराम होता है।
दूसरा प्रयोगः आँवले के तेल में नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर लगाने से त्वचा की रूक्षता, झुर्रियाँ एवं कालापन मिटता है।
तीसरा प्रयोगः तेल मालिश के साथ सुबह 1 से 2 ग्राम तुलसी की जड़ तथा उतने ही सोंठ के चूर्ण को गर्म पानी के साथ निरंतर सेवन करते रहने से कोढ़ जैसे भयंकर रोग भी दूर होते हैं। यह प्रयोग त्वचा की रूक्षता एवं फटने के रोग को दूर करता है।

aspundir
12-11-2012, 07:25 PM
मुँह की खीलें (Pimples)

पहला प्रयोगः जीरे या लौंग को पानी में अथवा जायफल को दूध में घिसकर लेप करने से खीलें मिटती हैं।
दूसरा प्रयोगः जामुन की गुठली को पानी में घिसकर लगाने से मुँहासों में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः हरे पुदीने की चटनी पीसकर चेहरे पर सोते समय लेप करने से चेहरे के मुँहासे, फुन्सियाँ समाप्त हो जायेंगी।
खीलें होने पर तीखे, गर्म एवं चटपटे पदार्थों का सेवन बन्द कर दें।

aspundir
12-11-2012, 07:25 PM
बिवाई होने पर

प्रथम प्रयोगः चमेली के पत्तों के 400 मि.ली. रस को 100 ग्राम घी में मिलाकर गर्म करें। जब रस जल जाये तब उस घी को लगाने से बिवाई मिटती है।
दूसरा प्रयोगः ऐड़ी पर नींबू घिसने से बिवाई में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः महुए के फल (टोली, डोरिया) का तेल लगाकर सिंकाई करने से अथवा कोकम का तेल लगाने से लाभ होता है।
होंठ फटने परः

नाभि में नित्य प्रातः सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते अपितु फटे हुए होंठ मुलायम व सुंदर हो जाते हैं। साथ ही नेत्रों की खुजली व खुश्की दूर हो जाती है।

aspundir
12-11-2012, 07:26 PM
सौन्दर्य का खजाना

पहला प्रयोगः खुली हवा में घूमने से, कच्ची हल्दी का सेवन करने से तथा सप्ताह में एक बार 2 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण को गर्म पानी के साथ लेने से सौन्दर्य बढ़ता है।
दूसरा प्रयोगः मसूर की दाल के आटे को शहद में मिलाकर लगाने से मुख सुन्दर होता है।
तीसरा प्रयोगः कोहनी की कठोरता एवं कालिमा को दूर करने के लिए रस निकले हुए आधे नींबू में आधी चम्मच शक्कर डालकर घिसें। कोहनी साफ और कोमल हो जायेगी।

aspundir
12-11-2012, 07:26 PM
बाल के रोग

सिर में रूसी (Dandruff) होने परः

पहला प्रयोगः 250 ग्राम छाछ में 10 ग्राम गुड़ डालकर सिर धोने से अथवा नींबू का रस लगाकर सिर धोने से रूसी दूर होती है।
दूसरा प्रयोगः आधी कटोरी दही में दो चम्मच बेसन मिलाकर बालों की जड़ में लेप करें। 20 मिनट बाद सिर धो लें। रूसी दूर होकर बाल चमक उठेंगे।

aspundir
12-11-2012, 07:26 PM
बाल झड़ने पर

प्रथम प्रयोगः मुलहठी के चूर्ण को भांगरे के रस में पीसकर लेप करने से अथवा सुखाये हुए आँवलों के चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर लेप करने से बाल झड़ना बंद होकर बाल काले होते हैं।
दूसरा प्रयोगः आवश्यकता से अधिक भावनात्मक दबाव के कारण बाल अधिक गिरते हैं। महिलाओं में एस्ट्रोजन हारमोन की कमी के कारण बाल अधिक गिरते हैं। भोजन में लौह तत्व व आयोडीन की कमी से भी बाल असमय गिरते हैं।
दही में सभी तत्त्व होते हैं जिनकी बालों को आवश्यकता रहती है। एक कप दही में पिसी हुई 8-10 काली मिर्च मिलाकर सिर धोने से सफाई अच्छी होती है। बाल मुलायम व काले रहते हैं एवं गिरने बन्द हो जाते हैं। कम-से-कम सप्ताह में एक बार इसी तरह बाल धोयें।

aspundir
12-11-2012, 07:26 PM
गंजापन

पहला प्रयोगः गुंजा, हाथीदाँत की राख और रसवंती प्रत्येक 2 से 10 ग्राम का लेप करने से जिस जगह के बाल निकले होंगे वहाँ वापस उग जायेंगे।
दूसरा प्रयोगः दही एवं नमक समान मात्रा में मिलाकर जहाँ-जहाँ गंजापन आ गया हो वहाँ रोज रात्रि को चार-पाँच मिनट मालिश करने से लाभ होता है।

aspundir
12-11-2012, 07:27 PM
बाल सफेद होने पर

पहला प्रयोगः निबौली का तेल दो महीने तक लगाने एवं नाक में डालने से अथवा तुलसीके 10 से 20 ग्राम पत्तों के साथ उतने ही सूखे आँवले को पीसकर नींबू के रस में मिलाकर लगाने से बाल काले होते हैं।
दूसरा प्रयोगः लोहभस्म, भांगरा, त्रिफला एवं काली मिट्टी – इन सबको एक महीने तक गन्ने के रस में रखकर लेप करने से, रोज रात्रि को बालों में गाय का घी लगाकर पैर के तलुए में गाय का घी काँसे की कटोरी से थोड़ी देर घिसने से तथा हाथ की आठों उँगलियों के नाखूनों को परस्पर एक-दूसरे से दो-तीन मिनट घिसने से सफेद बाल काले होते हैं।
तीसरा प्रयोगः अल्पायु में सफेद बालों के लिए हाथी दाँत, आँवला एवं भृंगराज का तेल बनाकर सिर में डालें। घी गरम करके उसकी कुछ बूँदें नाक में टपकायें तथा दिन में दो बार त्रिफलाचूर्ण यष्टिचूर्ण के साथ लें। भोजन के बाद एक गिलास कुनकुने पानी में एक चम्मच घी डालकर पीयें तथा सर्वांगासन व जलनेति करें।

aspundir
12-11-2012, 07:27 PM
बाल बढ़ाने के लिए

पहला प्रयोगः स्नान के समय तिल के पत्तों का रस लगाने से, मुलहठी, आँवला या भृंगराज का तेल लगाने से, करेले की जड़ अथवा मेथी को पानी में घिसकर लगाने से, निबौली का तेल लगाने से बाल बढ़ते हैं।
दूसरा प्रयोगः बड़ की पुरानी जटाओं को नींबू के रस में घिसकर अच्छे से लेप करें। आधे घण्टे पश्चात् बाल धो डालें। फिर नारियल का तेल लगायें। ऐसा तीन दिन करने से बालों का झड़ना बंद होता है। बाल लंबे, काले तथा मजबूत होते हैं।
सिर में जूँ एवं लीख

पहला प्रयोगः निबौली, सरसों अथवा माजूफल का तेल लगाने से अथवा अरीठे का फेन लगाने से जूँ और लीखें मर जाती हैं।
दूसरा प्रयोगः तुलसी के पत्ते पीसकर सिर पर लगा लें। तदुपरांत सिर पर कपड़ा बाँध लें। सारी जुएँ मरकर कपड़े से चिपक जाएँगी। दो-तीन बार लगाने से ही सारी जुएँ साफ हो जायेंगी।
बालों की मुलायमता

गोमूत्र सिर में लगाकर थोड़ी देर पश्चात् धो डालने से तथा सरसों के तेल की मालिश करने से बाल मुलायम होते हैं।

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12-11-2012, 07:28 PM
सामान्य रोग

आंतरिक गर्मी

पहला प्रयोगः नीम के पत्तों का 20 से 50 मि.ली. रस 5 से 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सात दिन पीने से गर्मी मिटती है।
दूसरा प्रयोगः आम की अंतरछाल, गूलर की जड़ की छाल और बड़ के अंकुरों का 10 से 40 मि.ली. रस निकालकर उसमें 1 से 2 ग्राम जीरा और 5 से 20 ग्राम मिश्री डालकर पीने से सब प्रकार की गर्मी मिटती है।
तीसरा प्रयोगः सौंफ, जीरा एवं मिश्री रात को भिगोकर सुबह छानकर खाली पेट पीने से शरीर की गर्मी दूर होती है।
चौथा प्रयोगः नींबू के रस में मिश्री डालकर शरबत पीने से भी गर्मी में राहत होती है।
पाँचवाँ प्रयोगः कच्चे आम के छिलके उतारकर उसे पानी में उबाल लें। तत्पश्चात् उसके गूदे को ठंडे पानी में मसल-मसलकर रस बना लें व नमक, जीरा, शक्कर आदि स्वादानुसार मिलाकर पीने से गर्मी में लाभ होता है।
छठा प्रयोगः गन्ने को चूसकर नियमित सेवन करने से पेट की गर्मी व हृदय की जलन दूर होती है।
सातवाँ प्रयोगः गर्मियों में सिरदर्द हो, लू लग जाये, आँखें लाल हो जायें तब अनार का शरबत गुणकारी सिद्ध होता है।

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12-11-2012, 07:28 PM
तलुओं की जलन

पहला प्रयोगः तुकमरिया को भीगोकर पैर के तलुओं में बाँधें।
दूसरा प्रयोगः हाथ-पैर के तलुओं में यदि जलन होती हो तो लौकी को कद्दूकस करके उसकी पट्टी बाँधने से अथवा रस चुपड़ने से खूब ठंडक मिलती है।
गोखरू (कदर)- पैर अथवा हाथ में गोखरू होने पर उसे काटकर उसमें नीले थोथे का चूर्ण भर दें अथवा उबलते तेल का पोता रखने से गोखरू हमेशा के लिए मिट जाता है।

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12-11-2012, 07:28 PM
मोटापा

पहला प्रयोगः केवल सेवफल का ही आहार में सेवन करने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अरनी के पत्तों का 20 से 50 मि.ली. रस दिन में तीन बार पीने से स्थूलता दूर होती है।
तीसरा प्रयोगः चंद्रप्रभावटी की 2-2 गोलियाँ रोज दो बार गोमूत्र के साथ लेने से एवं दूध-भात का भोजन करने से 'डनलप' जैसा शरीर भी घटकर छरहरा हो जायेगा।
चौथा प्रयोगः आरोग्यवर्धिनीवटी की 3-3 गोली दो बार लेने से व 2 से 5 ग्राम त्रिफला का रात में सेवन करने से भी मोटापा कम होता है। इस दौरान केवल मूँग, खाखरे, परमल का ही आहार लें। साथ में हल्का सा व्यायाम व योगासन करना चाहिए।
पाँचवाँ प्रयोगः एक गिलास कुनकुने पानी में आधे नींबू का रस, दस बूँद अदरक का रस एवं दस ग्राम शहद मिलाकर रोज सुबह नियमित रूप से पीने से मोटापे का नियंत्रण करना सहज हो जाता है।

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12-11-2012, 07:29 PM
वजन बढ़ाने हेतु

1 से 3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को दूध के साथ लेने से तथा भोजन से पूर्व तथा बाद में दो-दो चम्मच घी खाने से वजन बढ़ता है।

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12-11-2012, 07:29 PM
ऊँचाई बढ़ाने हेतु

1 से 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, 1 से 2 ग्राम काले तिल, 3 से 5 खजूर को 5 से 20 ग्राम गाय के घी में एक महीने तक खाने से लाभ होता है। साथ में पादपश्चिमोत्तानासन, 'पुल्ल-अप्स' करने से एवं हाथ से शरीर झुलाने से ऊँचाई बढ़ती है।

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12-11-2012, 07:30 PM
वेदना

पहला प्रयोगः हाथ-पैर की पीड़ा में महानारायण तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः शरीर की पसलियों, फेफड़ों, हृदय में पीड़ा हो या मार पड़ी हो तो पंचगुण तेल की मालिश करें।
तीसरा प्रयोगः धतूरे के 5 फूल को तिल के 100 ग्राम तेल में गर्म करके, तेल को छानकर उस तेल को लगाने से शरीर के किसी भी भाग की वेदना मिटती है।

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12-11-2012, 07:30 PM
काँटा लगने पर

आकड़े का दूध लगाने से अपामार्ग की जड़ घिसकर लगाने से काँटा निकल जाता है।

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12-11-2012, 07:31 PM
कुछ रोगों से बचाव

पहला प्रयोगः ताँबे के सिक्के को पेट पर बाँधने से अथवा पपीते की जड़ को हाथ पैर में बाँधने से हैजा, प्लेग आदि महामारियों से बचाव आता है।
दूसरा प्रयोगः ताँबे के तार में रूद्राक्ष एवं पपीते की जड़ पिरोकर पहनने से अनेक प्राणघातक रोगों से बचाव होता है।
तीसरा प्रयोगः गुडुच का शहद के साथ प्रयोग करने से तीनों (वात, पित्त एवं कफ जनित) रोगों से बचाव होता है।

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12-11-2012, 07:31 PM
शराब का नशा

पहला प्रयोगः 50 ग्राम अनार के दाने एवं 5 से 10 बिजौरे नींबू के अंदर की केसर खाने से शराब-दारू का नशा शांत होता है।
दूसरा प्रयोगः एक रूपये का भार (10 ग्राम) जितनी फिटकरी को पानी में घोलकर पिलाने से बेहोश शराबी भी होश में आ जाता है।

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12-11-2012, 07:32 PM
शरीर ठण्डा एवं नाड़ी की गति मंद होने पर

100 ग्राम पानी में 5 ग्राम लौंग का चूर्ण डालकर खूब उबालें। फिर उस पानी से मरीज के हाथ-पैर, तलुए, छाती, गर्दन पर अच्छी तरह मालिश करें। इससे शरीर में गर्मी आकर नाड़ी तेज होने लगेगी।
विशेष लाभ न होने पर पानी में सोंठ का चूर्ण डालकर इस्तेमाल करें अथवा केवल सोंठ का चूर्ण शरीर पर मलने से आधे मिनट में ही शरीर में गर्मी आ जाती है।

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12-11-2012, 07:32 PM
विषैली वस्तु खाने पर या दवाई की प्रतिकूल असर होने पर

किसी दवा का प्रतिकूल असर (Side Effect) होने या कोई विषैली वस्तु खा लेने पर पानी में पालक उबालकर उस पानी में अदरक का थोड़ा-सा रस मिलाकर प्रभावित व्यक्ति को देने से तत्काल राहत मिलती है।

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12-11-2012, 07:32 PM
विद्युत का झटका

विद्युत के तार का स्पर्श हो जाने या वर्षा ऋतु में बिजनी गिरने के कारण यदि झटका लगा हो तो रोगी के चेहरे और माथे पर तुलसी का स्वरस मलें। इससे रोगी की मूर्च्छा दूर होती है। साथ में घी या तिल के तेल द्वारा शरीर की मालिश करें।

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12-11-2012, 07:32 PM
अल्सरः

इस पेट व आँतों की बीमारी में एक माह तक केवल बकरी का दूध ही पियें। ताजा धारोष्ण दूध पी सकें तो बहुत अच्छा है। फिर भी न हो सके तो दूध गर्म करते समय उसमें दो चम्मच मुलहठी का चूर्ण एवं एक गिलास पानी डालें। पूरा पानी जल जाय तब तक उबालें। ऐसा दूध तीन बार पियें। प्रातःकाल 2 चम्मच हरड़े का चूर्ण एवं सायंकाल 2 चम्मच त्रिफला चूर्ण गर्म पानी के साथ लें।
एक माह के बाद दूध-चावल की खीर खायें एवं शुद्ध घी का सेवन करें। डेढ़ माह बाद दूध-रोटी खायें। 3 माह बाद नमक-मिर्च बिना की सब्जी खायें एवं साढ़े तीन माह बाद सामान्य आहार लें।

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12-11-2012, 07:33 PM
कैंसर

पहला प्रयोगः सुबह में पाँच तुलसी के पत्ते खायें। एक-एक घण्टे के अंतर से एक-एक पत्ता मुँह में रखें। 50 ग्राम ताजे दही में 10 ग्राम तुलसी का रस मिलाकर दिन में दो तीन बार लें।
दूसरा प्रयोगः सफेद पुनर्नवा की 10 ग्राम जड़ एवं बरना की 10 ग्राम जड़ को 400 मि.ली. पानी में लेकर उसका 50 मि.ली. काढ़ा करके पीने से कैंसर की कच्ची गाँठें पिघल जाती हैं।
तीसरा प्रयोगः हरड़, सेंधा नमक एवं धावई के फूल समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 2 से 5 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से कैंसर में लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:33 PM
हिस्टीरिया

काले मुँहवाले लंगूर की लीद इकट्ठी करके उसे छाया में सुखाकर उसका पाउडर बना लें। जब रोगी को हिस्टीरिया का दौरा पड़े तब उसके मुँह से झाग-फेन आदि ठीक से साफ करके चवन्नी भर (2.5 ग्राम) पाउडर में आठ से दस ग्राम तक अदरक का रस मिलाकर उसके गले में उतार दें। दूसरे दिन ठीक उसी समय रोगी को दौरा पड़े या न पड़े, यही उपचार फिर से करें। ऐसा निरंतर पाँच दिन तक करने से हिस्टीरिया में लाभ होता है।

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12-11-2012, 07:34 PM
विष चिकित्सा

बिच्छू दंश

पहला प्रयोगः पत्थर पर दो-चार बूँद पानी की डालकर उस पर निर्मली या इमली के बीज को घिसें। उस घिसे हुए पदार्थ को दर्दवाले स्थान पर लगायें एवं जहाँ बिच्छू ने डंक मारा हो वहाँ घिसा हुआ बीज चिपका दें। दो मिनट में ही बिच्छू का विष नष्ट हो जायेगा और रोता हुआ मनुष्य भी हँसने लगेगा।
दूसरा प्रयोगः पोटेशियम परमैंगनेट एवं नींबू के फूल (साइट्रिक एसिड) को बारीक पीसकर अलग-अलग बॉटल में भरकर रखें। बिच्छू के डंक पर मूँग के दाने जितने नींबू के फूल का पाउडर एवं पोटेशियम परमैंगनेट का मूँग के दाने जितना पाउडर रखें। ऊपर से एक बूँद पानी भी डालें। थोड़ी देर में उभार आकर विष उतर जायेगा। यह अदभुत दवा है।
कान खजूराः
पहला प्रयोगः आकड़े का दूध लगाने से कान खजूरे का दंश मिटता है।
दूसरा प्रयोगः नमक का पानी सहने योग्य गर्म करके कान में डालने से कानखजूरा मर जाता है।
तीसरा प्रयोगः यदि कानखजूरा शरीर पर चिपक गया हो तो उसके ऊपर सरसों का तेल डालने से वह मर जाता है या आँच देने से छूट जाता है।

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12-11-2012, 07:37 PM
भौंरी, मक्खी, मधुमक्खी के दंश

पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों को नमक के साथ पीसकर लगाने से भौंरों के दंश की वेदना मिट जाती है।
दूसरा प्रयोगः मधुमक्खी, भौंरी के दंशप्रभावित स्थान पर गाय के गोबर का तीन दिन लेप करने से लाभ होता है।
बगईः बैल, कुत्ते अथवा घोड़े पर बैठने वाली बगई नामक पीली मक्खी यदि मनुष्य के कान में घुस जाये तो शुद्ध घी का हलुआ या सेवफल का टुकड़ा कान के आगे बाँधकर रखने से वह स्वतः निकल जाती है।

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12-11-2012, 07:37 PM
लूता (ब्लस्टर-जिसकी पेशाब से फफोले हो जाते हैं) का विष

प्रथम प्रयोगः नींबू, घास और हल्दी को पानी के साथ पीसकर लगाने से लूता का विष नष्ट हो जाता है।
दूसरा प्रयोगः जीरे को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है।
कुत्ते का विषः
पहला प्रयोगः आकड़े के दूध, गुड़ एवं तेल का लेप करने से पागल कुत्ते के काटने का जहर नहीं चढ़ेगा।
दूसरा प्रयोगः खरखोड़ी (केक्टसनुमा बिना काँटेवाली वनस्पति) का दूध रोटी पर लगाकर खिलाने से या कड़वी तुम्बी का गर्भ पानी में घोलकर पिलाने से वमन-विरेचन होकर पागल कुत्ते के काटने से आनेवाला पागलपन मिट जाता है।
दीमकः काले जीरे को कपड़े अथवा पुस्तकों के बीच में रखने से अथवा चंदन की लकड़ी को अलमारी में रखने से दीमक नहीं लगते।
चींटी-चींटे, काक्रोच आदिः लहसुन के चूर्ण की पोटली खिड़की पर रखने से काक्रोच आदि जन्तु दूर होते हैं।
खटमल, मच्छर आदि जंतु तुलसी की सुगंध सहन नहीं कर सकते।

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12-11-2012, 07:37 PM
स्थावर-जंगम विष

चौलाई के 20 से 50 मि.ली. रस पिलाने से अथवा उसकी जड़ की 5 से 10 ग्राम चटनी में आधा से 2 ग्राम काली मिर्च डालकर खिलाने से अथवा रोगी को चौलाई की सब्जी खिलाने से सब प्रकार के स्थावर-जंगम विष दूर होते हैं।
स्थावर विष

नीलाथोथाः गेहूँ के आटे में खूब घी डालकर एवं शक्कर मिलाकर हलुआ बनाकर खिला देने से नीले थोथे के जहर का असर नहीं होता।
तेजाब (Acid)- पानी में चूना घोलकर दो-तीन बार कपड़छन करके अथवा चूने का निथारा हुआ पानी 40 तोला पिलाने से तेजाब का खराब प्रभाव नहीं पड़ता।

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12-11-2012, 07:37 PM
जंगम विष

थूहर (थोर)-
पहला प्रयोगः ठण्डे पानी में मिश्री या शक्कर मिलाकर पिलावें व लगावें।
दूसरा प्रयोगः इमली के पत्तों के घिसकर लेप करें।

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12-11-2012, 07:38 PM
धतूरे का विष

पहला प्रयोगः तिल का 20 से 50 मि.ली. तेल 50 से 200 मि.ली. गर्म पानी में मिलाकर पिलायें।
दूसरा प्रयोगः दूध में मिश्री डालकर पिलायें।
तीसरा प्रयोगः मनुष्य ने जितनी मात्रा में धतूरे के बीज, फूल अथवा पत्ते खाये हो उतनी ही मात्रा में कपास के बीज, फूल या पत्ते पीसकर पिलाने से लाभ होता है।
भाँग का विषः दही खिलाने से लाभ होता है।
अफीमः
पहला प्रयोगः दो रूपये भार(20 ग्राम) शक्कर एवं उतना ही घी गर्म करके पिलायें।
दूसरा प्रयोगः सुहागे का पावलीभार (2.5 ग्राम) कपड़छन चूर्ण खिलायें।

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12-11-2012, 07:38 PM
तमाकू (तम्बाकू)

पहला प्रयोगः तमाकू चढ़ने पर प्याज का 5 से 20 मि.ली. रस पिलाने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः अफीम, कुचला, धतूरा, तमाकू आदि से किसी भी प्रकार का जहर खा लेने पर तुलसी के पत्तों के 10 से 40 मि.ली. रस में 5 से 20 ग्राम घी मिलाकर खाने से लाभ होता है।
जमालघोटाः 200 ग्राम बकरी के दूध मे उतना ही ठण्डा पानी मिलाकर उसमें 50 ग्राम शक्कर मिलाकर पिलाने से जमालघोटे के कारण होते दस्त बंद हो जाते हैं।

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12-11-2012, 07:45 PM
रस-प्रयोग

किस रोग में कौन सा रस लेंगे?
भूख लगाने के हेतुः प्रातःकाल खाली पेट नींबू का पानी पियें। खाने से पहले अदरक का कचूमर सैंधव नमक के साथ लें।
रक्तशुद्धिः नींबू, गाजर, गोभी, चुकन्दर, पालक, सेव, तुलसी, नीम और बेल के पत्तों का रस।
दमाः लहसुन, अदरक, तुलसी, चुकन्दर, गोभी, गाजर, मीठी द्राक्ष का रस, भाजी का सूप अथवा मूँग का सूप और बकरी का शुद्ध दूध लाभदायक है। घी, तेल, मक्खन वर्जित है।
उच्च रक्तचापः गाजर, अंगूर, मोसम्मी और ज्वारों का रस। मानसिक तथा शारीरिक आराम आवश्यक है।
निम्न रक्तचापः मीठे फलों का रस लें, किन्तु खट्टे फलों का उपयोग न करें। अंगूर और मोसम्मी का रस अथवा दूध भी लाभदायक है।
पीलियाः अंगूर, सेव, रसभरी, मोसम्मी। अंगूर की अनुपलब्धि पर लाल मुनक्के तथा किसमिस का पानी। गन्ने को चूसकर उसका रस पियें। केले में 1.5 ग्राम चूना लगाकर कुछ समय रखकर फिर खायें।
मुहाँसों के दागः गाजर, तरबूज, प्याज, तुलसी और पालक का रस।
संधिवातः लहसुन, अदरक, गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी, हरा धनिया, नारियल का पानी तथा सेव और गेहूँ के ज्वारे।
एसीडिटीः गाजर, पालक, ककड़ी, तुलसी का रस, फलों का रस अधिक लें। अंगूर मोसम्मी तथा दूध भी लाभदायक है।
कैंसरः गेहूँ के ज्वारे, गाजर और अंगूर का रस।
सुन्दर बनने के लिएः सुबह-दोपहर नारियल का पानी या बबूल का रस लें। नारियल के पानी से चेहरा साफ करें।
फोड़े-फुन्सियाँ- गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी और नारियल का रस।
कोलाइटिसः गाजर, पालक और पाइनेपल का रस। 70 प्रतिशत गाजर के रस के साथ अन्य रस समप्राण। चुकन्दर, नारियल, ककड़ी, गोभी के रस का मिश्रण भी उपयोगी है।
अल्सरः अंगूर, गाजर, गोभी का रस। केवल दुग्धाहार पर रहना आवश्यक है।
सर्दी-कफः मूली, अदरक, लहसुन, तुलसी, गाजर का रस, मूँग अथवा भाजी का सूप।
ब्रोन्काइटिसः पपीता, गाजर, अदरक, तुलसी, पाइनेपल का रस, मूँग का सूप। स्टार्चवाली खुराक वर्जित।
दाँत निकलते बच्चे के लिएः पाइनेपल का रस थोड़ा नींबू डालकर रोज चार औंस(100-125 ग्राम)।
रक्तवृद्धि के लिएः मोसम्मी, अंगूर, पालक, टमाटर, चुकन्दर, सेव, रसभरी का रस रात को। रात को भिगोया हुआ खजूर का पानी सुबह में। इलायची के साथ केले भी उपयोगी हैं।
स्त्रियों को मासिक धर्म कष्टः अंगूर, पाइनेपल तथा रसभरी का रस।
आँखों के तेज के लिएः गाजर का रस तथा हरे धनिया का रस श्रेष्ठ है।
अनिद्राः अंगूर और सेव का रस। पीपरामूल शहद के साथ।
वजन बढ़ाने के लिएः पालक, गाजर, चुकन्दर, नारियल और गोभी के रस का मिश्रण, दूध, दही, सूखा मेवा, अंगूर और सेवों का रस।
डायबिटीजः गोभी, गाजर, नारियल, करेला और पालक का रस।
पथरीः पत्तों वाली भाजी न लें। ककड़ी का रस श्रेष्ठ है। सेव अथवा गाजर या कद्दू का रस भी सहायक है। जौ एवं सहजने का सूप भी लाभदायक है।
सिरदर्दः ककड़ी, चुकन्दर, गाजर, गोभी और नारियल के रस का मिश्रण।
किडनी का दर्दः गाजर, पालक, ककड़ी, अदरक और नारियल का रस।
फ्लूः अदरक, तुलसी, गाजर का रस।
वजन घटाने के लिएः पाइनेपल, गोभी, तरबूज का रस, नींबू का रस।
पायरियाः गेहूँ के ज्वारे, गाजर, नारियल, ककड़ी, पालक और सुआ की भाजी का रस। कच्चा अधिक खायें।
बवासीरः मूली का रस, अदरक का रस घी डालकर।

Dark Saint Alaick
12-11-2012, 10:39 PM
भारतीय आचार-विचार और चिकित्सा पद्धति के दृष्टिगत अत्यंत उपयोगी जानकारी आपने दी है मित्र ! इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं ! :bravo: