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View Full Version : नौकरी की आवश्यकता : लक्ष्मीनंदन बोरा


abhisays
15-11-2012, 05:08 PM
क़िताब का नाम मेघनाद साहा है। अंग्रेज़ी किताब है, प्रसिद्ध पदार्थवैज्ञानिक की। जीवनी का असमिया अनुवाद कर इस महीने में दिल्ली भेजना है, नई दिल्ली के नेशनल बुक ट्रस्ट को। इसके निदेशक दो बार तकाज़ा भी कर चुके हैं पर इसी महीने में काम समाप्त कर पाऊँगा या नहीं बता नहीं सकता। पांडुलिपि जमा करने की तारीख बीते भी दो महीने हो चुके हैं।

मैंने काम नहीं लेने का ही सोचा था। लेकिन इस वैज्ञानिक के प्रति मेरा अपार लगाव है। किताब का अनुवाद करने की ज़िम्मेवारी लेकर अच्छा कार्य ही किया है ऐसा लगता है। इनको मैंने कलकत्ते में दो बार देखा। तब वह आणविक आयोग के अध्यक्ष थे। एक बार उनके कुछ प्रिय छात्रों ने उनसे इस तरह पूछा, ''सर आप एक बड़े वैज्ञानिक हैं लेकिन कुछ वर्षों से राजनीति क्यों कर रहे हैं?'' सवाल सुनकर वह बहुत गंभीर हो गए। छात्रों को लगा वह सवाल का जवाब नहीं देंगे।

abhisays
15-11-2012, 05:09 PM
उन लोगों ने सोचा कि वे सवाल से असंतुष्ट हुए हैं। पर वह कुछ देर तक चुपचाप रहने के बाद धीरे-धीरे कहने लगे, ''देश के सभी नागरिकों को समान सुविधाएँ मिलनी चाहिए। यह ही राजनीति का उद्देश्य होना चाहिए। देखो मैं किसी कारणवश इस तरह का व्यक्ति बन गया। सुविधा के अभाव में मुझसे अधिक गुणी लड़का खतम हो जाएगा या हो गया है उसकी खबर क्या हम रखते है? मेरे जीवन के पहले भाग में जो अवर्णनीय दुख हुआ वह इस वक्त सोचने पर डर लगता है।
विचार जानने के बाद इस वैज्ञानिक के प्रति मेरा विशेष लगाव हुआ। गाँव के एक साधारण दुकानदार के पुत्र मेघनाद को पिता हाईस्कूल में पढ़ाना नहीं चाहते थे। शिक्षकों के अनुरोध पर लड़के की पढ़ाई जारी रखी। उस दौरान मेघनाद के कष्टों की कथा का वर्णन पुस्तक में सुंदरता से किया गया है।

पुस्तक के उस अंश का अनुवाद कर मुझे बेहद अच्छा लगा। लेकिन एक हिस्से का अनुवाद करने के बाद नई तरह की समस्याएँ आ गईं। मैंने एक दूसरी जीविका ग्रहण कर ली। स्थान का परिवर्तन हुआ। मैं बड़ी असुविधा में पड़ गया। खाने पीने की बड़ी तकलीफ़ हुई। बीच-बीच में होटल में खाना पड़ा। भाड़े के घर को खुद साफ़ सुथरा कर रखना पड़ा। इसी ने मेरे कार्य की प्रगति में बाधा पहुँचाई।

abhisays
15-11-2012, 05:09 PM
मेघनाद साहा की असमिया पाण्डुलिपि समय पर न दे सकने के कारण दिल्ली से मेरे पास प्राय: तकाज़ा आने लगा।
इसी बीच मुझे दुख को कम करने की एक तरकीब सूझ गई। मेरे कार्यालय में एक चपरासी की नौकरी निकली। यह खबर मिलने के साथ ही कई युवा लड़के मुझसे मिलने आए। उनका साक्षात्कार लिया। बहुत सोच समझ कर एक सहज सरल लड़के का चुनाव कर लिया। वह मेरे साथ रहने को राज़ी हुआ। मेरे घर रहना मतलब मेरी रसोई आदि करना। नि:संदेह अधिक काम नहीं है। घर में सिर्फ़ मैं ही हूँ। परिवार पैतृकस्थान पर ही है।

abhisays
15-11-2012, 05:09 PM
लड़के का नाम गौतम है। बातें कम करता है। करता भी है तो अनिच्छा से करता है। अक्सर आधा वाक्य उच्चारण कर ही काम चला देता है। अक्सर लोगों की आदत होती है ज़रूरत से ज़्यादा बातें करना, आयं आयं करना।
उसकी वजह से मुझे सुविधा हो गई है। गौतम के चरित्र का एक गुण या अवगुण है। इस युवा लड़के का कोई साथी नहीं है। उसे साथ के चपरासी-चौकीदारों के साथ बचा समय बात कर व्यतीत करते हुए मैंने नहीं देखा। मेरे घर पर भी कोई चपरासी चौकीदार उससे मिलने नहीं आता है। वह किस तरह इतना चुपचाप बिना संग के रहता है देखकर मुझे ही बीच-बीच में अचरज होता है।

abhisays
15-11-2012, 05:09 PM
हाँ, एक बार अवश्य ही उसने मुझे क्षति पहुँचाई। वेतन मिलने के बाद उसे उसके घर भेजा। जाते वक्त यह कह कर सावधान कर दिया, "अब तुम बड़े हो गए हो तुम्हें अपने लिए रुपए जमा करने चाहिए। इसलिए सारे रुपए रिश्तेदारों को देकर मत आना। यहाँ तुम्हारा खर्च नहीं है। आने वाले महीने से रुपए बैंक में जमा करना।" इतना बढ़िया उपदेश दे उदारता दिखाने के बावजूद उसके मुख से कृतज्ञता नहीं झलकी और न ही किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त हुई।
उसका चेहरा सदैव चिंतित नज़र आता है। वह जैसे एक रोबोट, काम करने वाली एक यंत्रचालित काया है। वह अपने घर जाकर दो दिन बाद लौट नहीं आया। सात दिन बाद वापस लौटा। इन सात दिनों में मैं मेघनाद साहा की जीवनी का एक परिच्छेद भी अनुवाद नहीं कर सका। खुद घर साफ़ करना पड़ा, चाय बनाकर पीनी पड़ी, भात खाने के लिए आधा मील दूर होटल जाना पड़ा।

abhisays
15-11-2012, 05:10 PM
सात दिन बाद गौतम के वापस आने पर मुझे गुस्सा चढ़ गया। मैं गरज उठा,"तुम्हारे जैसे लोगों को प्यार करने से कोई फ़ायदा नहीं है। मैं तुझे घर नहीं भी भेज सकता था। लेकिन तुम इसको न समझ सके। तुम्हें इतनी देर क्यों लगी? मैंने तुम्हें तुम्हारी सुविधा के लिए नहीं रखा है। रखा है मेरी सुविधा के लिए, कार्यालय की सुविधा के लिए। इसी तरह होता रहा तो कितने दिनों तक नौकरी करोगे?"
मेरी कटु बातें सुनकर उसके चेहरे पर असंतोष की लकीरें उभरनी चाहिए थीं। परंतु उस चेहरे पर किसी तरह की अनुभूति नहीं हुई। वह कोई चेहरा नहीं जैसे लड़के, लड़कियों का बनाया हुआ मुखौटा है। हालाँकि मैं जब गाली गलौज कर रहा था तब वह सिर नीचे झुकाए था।

abhisays
15-11-2012, 05:10 PM
उसकी प्रतिक्रिया विहीन स्थिति ने मेरे गुस्से को और बढ़ाया। उसके पास जाकर मैंने चिल्लाकर कहा, "बड़ा जब कुछ पूछता है तो उसका जवाब देना चाहिए। क्यों देरी हुई बताते क्यों नहीं हो।"
आखिरकार वह बोला,"बहन को बुखार है।"
फिर एक वाक्य। बहन को कितना बुखार है? क्या स्थिति खतरे में है? यह तो वह कह सकता था लेकिन उसने मुझे संतुष्ट कर सकने वाला जवाब देने की कोशिश नहीं की। इसलिये मैंने सवाल कर असली कारण जानने का प्रयास किया।
"कितना बुखार है?"
"बहुत।"
"डाक्टर ने क्या कहा?"
"डाक्टर नहीं है।"
डाक्टर नहीं है इसका अर्थ यही हो सकता है कि बाईहाटा से बीस मील दूर इसके गाँव में डाक्टर नहीं जाता है या वहाँ डाक्टर उपलब्ध नहीं है।
"क्या दवा खिलाई?"
"कविराज की।"
"अब उठ बैठ सकती है?"
"नहीं।"
"बहन की उम्र क्या है?"
"चौदह।"
"घर में उसे बोझ समझ कर ही इलाज नहीं करवाया है क्या?"
"इलाज अब होगा।"
गौतम के मुँह से अबकी पहली बार एक पूरा वाक्य सुनने को मिला।
"कारण तू पैसा दे आया है?"
"हाँ।"
सूखे बांस की लकड़ी से रस निकालना और हमारे गौतम भट्टाचार्य से बात निकालना एक ही बात है। मैंने उससे और कुछ नहीं पूछा। मेरा गुस्सा उतर गया। वह काम में जुट गया।

abhisays
15-11-2012, 05:10 PM
मैं उसके काम से संतुष्ट हूँ। उसकी तरह सहज सरल लड़के के बदले अन्य कोई दूसरा होता तो मुझे बहुत कष्ट होता। भाड़े के घर में अकेले रहने वाले व्यक्ति को बिना कष्ट रखने के लिए इतने सारे कार्य करने पड़ते हैं यह गौतम का कार्य देखकर ही समझ सका। वह सुबह उठ कर चाय बनाता है। बाद में घर साफ़ करता है। कुएँ से पानी निकालकर नहाने के लिए घर की टंकी भरनी पड़ती है। उसके बाद दूध वाले से दूध लेकर गरम करना पड़ता है। चक्की के आटे से रोटियाँ और साग सब्ज़ी से तरकारी बनानी पड़ती है। वह नाश्ते के बाद खाना पकाने के काम में लग जाता है। साढ़े नौ बजे खुद खा कर कार्यालय जाने के पहले मेरे लिए खाना हॉटकेस में रख जाता है। वह मुझे घर का कोई भी काम करने का मौका नहीं देता है। सुबह मेरा बिछौना वह ही झाड़ झपट कर ठीक कर देता है। मच्छरदानी भी सजाकर रखता है।

abhisays
15-11-2012, 05:10 PM
सूर्यास्त होने के पहले ही वह कार्यालय से लौटकर मेरे जूठे छोड़े गए बर्तनों को धोता है। उसके बाद आधा मील दूर बाज़ार से सामान लाकर रसोई के काम में लग जाता है।रात नौ बजे मैं भात खाता हूँ। मैं जब भात खा रहा होता हूँ तब वह बीच में पूछता है, "क्या कुछ चाहिए?" मुझे कुछ नहीं चाहिए कह देने पर वह भात खाना शुरू करता है। उसके बाद बर्तन वर्तन धोकर कुछदेर बरामदे में बैठा रहता है। उसके बाद आकर मेरे बिछौने का बेडकवर अलग कर सजाने के बाद बांस की कुर्सी पर रखता है। मच्छरदानी तानकर सोने जाता है।
मेरे भाड़े के घर से कुछ दूर एक सिनेमा हाल है। वहाँ काफी दिनों से बांगला फिल्म 'बेदेर मेये ज्योत्सना' चल रही है। यह फिल्म नहीं देखने वाले युवक युवती न के बराबर हैं। लेकिन हमारे गौतम ने सिनेमा देखने की इच्छा व्यक्त कर कभी मुझसे अनुमति नहीं ली है।

abhisays
15-11-2012, 05:10 PM
काम में उसे थोड़ी बहुत फ़ुर्सत मिलती अवश्य है पर उस दौरान मैं उसे बिछौने में पड़ा पाता हूँ। सुबह हॉकर जो अखबार दे जाता है उसे वह सतही नज़रों से पढ़ता है या नहीं, कह नहीं सकता। मेरे न रहने पर वह टी वी देखता है या नहीं मेरे द्वारा पता लगाना असंभव है। परंतु मैं जब टीवी देख रहा होता हूँ तब वह मेरे कमरे में नहीं आता है। इसलिये मुझे कभी कभी लगता है कि आजकल इतना सीधा लड़का भाग्य से ही मिलता है।
सांप को पहचाना जा सकता है पर मनुष्य को पहचानना दुष्कर है। बूढ़े लोगों द्वारा पहले इस तरह की बात अक्सर कहते सुनता था। इसका हाथों हाथ प्रमाण मिला युवा गौतम भट्टाचार्य में।
उस दिन रविवार था। मैं सारे दिन घर पर नहीं था। पलाशबाड़ी की ओर गया था। शाम को जब घर लौटा तो पाया रविवार होने पर भी हमारा युवा लड़का घर में ही है। आँगन में घास काट रहा है। मैंने उसे देख कर पूछा तुम्हें आज कहीं जाना है तो जा सकते हो। मेरे लिए भात नहीं बनाना पड़ेगा।

abhisays
15-11-2012, 05:11 PM
वह कुछ नहीं बोला। मैं समझ गया वह घर पर ही रहेगा। मैं जब निकल कर जा रहा था तब उससे कहा मेरे आने में देर हो सकती है। एक दरवाज़ा खोल इस दरवाज़े में ताला लगा तुम सो जाना। मेरे पास चाबी है।
सिर्फ़ रात के नौ बज कर पचीस मिनट हुए हैं। मैं दोस्त के घर भात खा कर जाएेरिगोग से नयनपुर से होते हुए गणेशगुड़ी चरिआली की ओर आ रहा हूँ। सड़क पर लोग बाग न के बराबर हैं। कुछ घरों से दूर दर्शन की आवाज़ आ रही है। ऐसी आवाज़ स्तब्धता को और अधिक बढ़ाती है।

abhisays
15-11-2012, 05:11 PM
मैं अकस्मात चौंक उठा। एक साथ तीन गोलियों की आवाज़। कितनी विपदा है। मैं जब एक घर में अतिथि बनकर बैठा था उसी दौरान क्या कहीं संघर्ष होने के कारण शहर में कर्फ्यू लगाया गया है? मुझे भी क्या कानून तोड़ने वाला समझ गोली मारेंगे? मैंने सड़क के किनारे बल्ब की कम रोशनी से देखा कि एक व्यक्ति मेरी तरफ़ दौड़ कर आ रहा है। उसके पीछे पीछे बंदूकधारी पुलिस है। वह मेरे सामने आकर उल्टे गिर गया। उसका शरीर खून से लथपथ है। वह दर्द से कराह रहा है। मैं दौडूँगा या पहले की तरह चलूँगा सोचने का वक्त भी नहीं मिला। मैं पसीने से तरबतर हो खून से सने शरीर की ओर देख रहा हूँ उसकी मौत की यातना देखने के लिए कितनी देर रुका रहूँगा। मैं असमंजस में पड़ गया। मेरी चेतना काम नहीं कर रही थी।

abhisays
15-11-2012, 05:11 PM
इस बीच एक पिस्तौल धारी पुलिस अधिकारी ने पड़े शरीर पर टार्च मारी। क्या वीभत्स दृश्य था। पूरा शरीर खून से लथपथ। उसके मुँह से खून निकल रहा है। कोमल चेहरा- एक युवक लड़के का।
पुलिस अधिकारी ने मेरी ओर टेढ़ी नज़र से देखते हुए कहा, "इसमें रुचि मत लीजिए। समझे? खुद को असुविधा होगी। यह कह उसने लड़के के हाथ की नाड़ी देख कहा, "साला शेष।"

abhisays
15-11-2012, 05:11 PM
युवा लड़का अभी मेरे सामने मरा। मैं पूछने को विवश हुआ असली बात क्या है? उन्होंने वितृष्णा से कहा यह ही देश है समझे? इनकी उद्दंडता के चलते मनुष्य रह नहीं सकते। डकैत थे। कई अन्य भाग गए।
मैं और वहाँ नहीं ठहरा, घर पहुँचा। गौतम सो चुका था। उसको उठाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। मैं सो गया। परंतु नींद नहीं आई। मध्य रात्रि तक भी। बार-बार मुझे गोली से आहत उस युवक का चेहरा याद आने लगा।
मेरे जीवन की भयावह अनुभूति थी वह घटना, जो देखी। यातना से कराहती गोलियों से छलनी एक देह, उसकी मौत के असहनीय दर्द की पुकार, यह दृष्य देखने के पहले ही मेरी मौत का आजाना अच्छा था।
अब मैं क्या करूँ? रात मेरे लिए लंबी हो रही है। कहीं मन को लगाना ही अच्छा होगा।

abhisays
15-11-2012, 05:11 PM
तभी मुझे मेघनाद साहा की अंग्रेज़ी जीवनी की याद आई। अब भी इकसठ पेज का अनुवाद बाकी है। उधर नेशनल बुक ट्रस्ट से लगातार तकाज़ा आ रहा है इसलिए मैंने मध्य रात्रि को किताब के कुछ पेजों का अनुवाद करने की सोची। लेकिन आश्चर्य की बात है कि मैं किताब खोजकर न निकाल सका। दो कमरे देख डाले। किताब नहीं थी। अच्छा किताब को कौन ले सकता है। सुबह किताब टेबल पर ही थी।
मैंने लाइट बुझा दी बिछौने में ही इधर-उधर करवट लेता रहा। मैं पुलिस अधिकारी की तरह निर्दयी नहीं हो सकता। मेरी आँखों में अभी भी था- वह दर्दनाक मौत का दृष्य।

abhisays
15-11-2012, 05:12 PM
आकाश का अंधेरा छँटने लगा, परंतु चिड़ियाँ अभी भी जगी नहीं हैं। मैंने सोचा एक कप चाय ही पी ली जाए। रसोई घर में कहाँ चाय चीनी है मैं नहीं जानता। इसलिए गौतम को जगाने मैं उसके कमरे में गया। लाइट जला दी। आँखे मच्छरदानी के पास ले जाकर देखा। वह पूरी नींद में था। उसे जगाना बुरा लगा। लेकिन एक चीज़ को देख मेरी आँखें भी सहसा विश्वास न कर सकीं। टेढ़े होकर सो रहे गौतम के नज़दीक किताब अधखुली पड़ी थी। परंतु स्थिति को समझने में मुझे कठिनाई हुई।
मैं चाय पीने की बात भूल गया। अब गौतम के बारे में मेरा कौतूहल अधिक हो गया। मैंने धीरज धर प्रतीक्षा की। निर्धारित समय पर गौतम उठा। वह हाथ मुँह धो गैस जला कर चाय बनाने में लग गया। उसने मेरे सामने एक कप चाय रख दी।
मैंने पूछा, "वह किताब तुम्हारे बिछौने में है। गौतम, तुम अंग्रेज़ी पढ़ सकते हो?"
वह कुछ न कह मेरे सामने से हट कर जाना चाहने लगा। मैंने फिर कहा, "कहा है न, मत जाओ, मेरी बात का जवाब दो।"

abhisays
15-11-2012, 05:12 PM
मैंने उसकी ओर देखा। वह पूरी तरह तैयार न था। काफी समय बीता। वह निश्चल खड़ा रहा। अखिरकार उसने कहा, "मुझे मारिये सर, मुझे नौकरी से निकाल दीजिये सर। मैंने आप जैसे पिता समान व्यक्ति से झूठ बोला सर।''
"तुम क्या कह रहे हो मैं कुछ नहीं समझा। मुझे संदेह हो रहा है तुम काफी पढ़े लिखे लड़के हो। तुमने तस्वीर देखने के लिए यह किताब मच्छरदानी के अंदर नहीं ली थी। इसमें न तस्वीर है और न यह सहज है। बताओ तुम कितने तक पढ़े हो।"
"सर, थोड़ी-सी पढ़ाई की है। हमारे जैसे गरीब को शिक्षा अर्जित कर क्या फायदा है?"
एक एक लम्बे शब्द। भाषा पर गौतम का इतना अधिकार है मैं सोच भी नहीं सका था।

abhisays
15-11-2012, 05:12 PM
मैंने देखा उसकी आँखें गीली हो गई हैं। उसने टूट चुकी आवाज़ में कहा- मुझे क्षमा कीजिये सर नौकरी पाने के लिए मैंने आपसे छिपाया। चुपचाप रह मैंने अपनी शिक्षा को छिपाने का प्रयास किया। कुछ फायदा नहीं हुआ सर पकड़ा गया। अब से मैं गौतम को अलग नज़रों से देखने लगा। मुझे फिर सवाल नहीं करना पड़ा। वह मन में दुख के चलते अपने आप कहता गया, " मैं जानता हूँ सर पदार्थ विज्ञान में प्रथम श्रेणी से बी एस सी पास का कहता तो आप निश्चय ही मुझे नौकरी पर नहीं रखते। परंतु इस बार की सौ रुपए की नौकरी ही कुछ महीनों से मेरा घर चला रही है।" मैं गौतम के चेहरे की ओर और देख न सका। मैं व्यथा में डूब गया। मैंने आँखें मूँद लीं। गौतम द्वारा नाक सुड़कने की आवाज़ सुनी।
मैंने धीरे से कहा, "मुझे तुम्हें क्षमा करने का कोई अधिकार नहीं है गौतम। हमारे समाज का भी कोई अधिकार नहीं है।"
अचानक मेरे मुँह से तुम्हारा शब्द निकल आया। गौतम ने पूछा, "सर, आपने उत्तम महाचार्य का नाम सुना है न? अखबार में निश्चय ही उसके बारे में पढ़ा होगा। वह मेरा बड़ा भाई था। सर, काफी महनत के बाद इंजीनियर हुआ था। उसके लिए हमारी ज़मीन बिक गई थी लेकिन सर पाँच साल तक नौकरी न मिलने पर उसने फांसी लगा ली।

मैं उसे और कुछ न कह सका। उसके पास खड़े रहना ही असहनीय हो गया, मैं रास्ते पर निकल आया।