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View Full Version : अवांछित बेटियां


ravi sharma
16-11-2012, 02:00 PM
अपने गर्भ में आये विनष्ट मादा भ्रूणों की स्मृतियों को शाखा ने गुडियों के रूप में सहेज लिया था। जब घर में अंबर नहीं होता और वह अकेली होती तो छुपाकर रखी इन गुडियों को वह कबर्ड से निकालती, फिर उन्हें अपने सीने से चिपका कर मातृत्व की सरिता द्वारा सींचने लग जाती। तीन बार गर्भपात की वह शिकार हुई थी, इसलिये तीन गुडियां थीं उसके पास। इनके नाम तक रखकर उसने क्रोशिये और धागे से लिख दिये थे उनकी कलाइयों पर। हर बार वह इनकी उम्र का हिसाब लगाती और एक अपराधबोध से भरकर विह्वल हो जाती, मुझे माफ कर देना मेरी बच्चियों! तुम सबको कोख में ही मार देने के जुल्म में पति और समाज के साथ मैं भी साझीदार हूं। चाहती थी कि तुम सबकी और तुम्हारे जैसी अनेकों की मां बन कर मैं फलों से लदा एक विशाल छतनार पेड बन जाऊं। पति नामधारी पुरुष के बिना गर्भ धारण करना और फिर भरण - पोषण करना संभव होता और उसमें समाज का कोई दखल नहीं होता तो मैं अपनी दसों इन्द्रियों की कसम खाकर कहती हूं, मेरी अजन्मी पुत्रियों, मैं अभी से सिर्फ और सिर्फ लडक़ियों को जन्म देती, जिनकी संख्या कम से कम दो दर्जन होती बल्कि इससे भी ज्यादा कर पाती तो मुझे और मजा आता।

ravi sharma
16-11-2012, 02:00 PM
शाखा जब कॉलेज में पढती थी तब से ही सहेलियों से अपने मनोभावों को शेयर करती हुई यह इच्छा जताती थी कि वह बहुत सारी लडक़ियों की मां बनना चाहती है। सहेलियां उसका तेवर जानतीं थीं और यह समझती थीं कि ऐसा कह कर दरअसल वह अपने भीतर के एक विरोध को मुखर कर रही है। उसके परिवार में कई बाल - बच्चेदार दम्पत्ति थे, बडे भाइयों और चाचाओं के, लेकिन सबने बडी चालाकी से सिर्फ नर शिशुओं को जन्म दिया था। सिर्फ एक उनके पिता थे, जिन्होंने कोई चालाकी नहीं की थी, इसलिये उन्हें चार बेटियां ही थीं और इसके लिये वे एक हीनभावना से हमेशा ग्रसित रहा करते थे। घर के दूसरे लोग भी इस मामले को लेकर उनके प्रति उपेक्षा - भाव रखते थे। शाखा को इन स्थितियों से सख्त ऐतराज था और इस ऐतराज की प्रतिक्रिया में वह दर्जनों बेटियों की मां बनना चाहती थी। मगर विवाह के तुरन्त बाद ही उसे पता चल गया कि वह महज उसकी एक अपरिपक्व सोच एवं भावुकता थी।

ravi sharma
16-11-2012, 02:33 PM
जब पहला ही गर्भ ठहरा तो अम्बर ने भ्रूण परीक्षण के लिये उसे तैयार होने को कहा, शाखा मुझे लडक़ी नहीं चाहिये। तुम अपनी आंखों से देख चुकी हो कि छोटी बहन की शादी ने मुझे कितनी जिल्लत दी और किस कदर दिवालिया बना दिया। आज भी उसकी ससुराल के कुत्ते मेरे जिस्म को नोंच रहे हैं, जैसे मैं उनका जन्मजात कर्जदार हूं। अब और साहस नहीं है कि बेटी ब्याहने के नाम पर कोई दोबारा मेरी खाल उतार ले। मामूली सी नौकरी है, जिसके जरिये अपने लिये भी चन्द हसरतें और चंद सपने पूरे करने हैं, अन्यथा यह जिन्दगी दहेज जमा करने में ही स्वाहा हो जायेगी।

ravi sharma
16-11-2012, 02:34 PM
शाखा को एकबारगी लगा था कि अंबर के उठाए मुद्दे को वह बेजा नहीं ठहरा सकती। यह सच है कि परिधि के विवाह में उसने क्या कुछ नहीं सहा। चार साल तक पागलों की तरह भटकने के बाद थक - हारकर उसे अपनी हैसियत से बाहर जाकर एक बडी दहेज राशि पर एक रिश्ता तय करना पडा। क्लर्क से रिटायर हुए पिता की सारी जमापूंजी, छह सात साल की अपनी नौकरी में काट - कपटकर की गयी बचत और ऊपर से हर मुमकिन कर्ज लेकर जो कुल जमा हुआ, वह अब भी काफी कम था उस दाम से जो लडक़े के बाप ने अपने बेटे के लिये लगाया था। अपनी बहन परिधि को अंबर बहुत प्यार करता था। वह एक अच्छे घर में जाकर सुख से रहे, यह उसकी दिली ख्वाहिश थी। लडक़े के पिता के सामने जाकर उसने हाथ जोड दिये, खुद को पूरी तरह निचोडक़र भी मैं इतना रस नहीं निकाल सका कि आपके इच्छा - पात्र को भर सकूं। मुझ पर कृपा कर के थोडी सी रियायत

ravi sharma
16-11-2012, 02:35 PM
जैसे उसके उबल पडने का कोई स्विच ऑन हो गया हो, वह फनफना उठा - तो तुम भाड में जाओ, मेरा घर कोई राहत केन्द्र नहीं है। कई लोग पहले ही क्यू में हैं, तुम अपनी बराबरी की कोई दूसरी जगह ढूंढ लो। ऐसा बेमुरव्वत सलूक तो कोई सूदखोर महाजन भी नहीं करता होगा। उसने समझ लिया कि बेहतर है यहां से जाकर किसी कसाई से अनुरोध किया जाय। इस घर में परिधि कभी सुखी नहीं रह सकती।

ravi sharma
16-11-2012, 02:36 PM
उसने दूसरे घर - वर की तलाश शुरु कर दी इसमें दो वर्ष और लग गये। धैर्य की ऐसी सख्त परीक्षा शायद इस दुनिया में अन्य किसी भी चीज क़े ढूंढने में नहीं हो सकती। एक बार तो उसे ऐसा भी लगा कि इस परीक्षा में बार बार फेल हो जाना ही उसकी नियति है। परिधि के लिये लडक़ा ढूंढना उससे शायद संभव नहीं।

ravi sharma
16-11-2012, 02:36 PM
उसके एक रिश्तेदार ने सलाह दी, अगर ऊंची रकम देने की सामर्थ्य नहीं है तो पसंद - चयन की कसौटी को जरा लचीला कर लेना चाहिये।
अन्तत: उसने ऐसा ही किया। अपनी रूपवती - गुणवती बहन के लिये उसे एक डेढ आंख वाले थुथुरमुंहे लडक़े को पसन्द करना पडा। यहां नगद उतना ही मांगा गया, जितना वह दे सकता था। खुद को यह समझाकर शादी कर दी कि चेहरे की स्थूल सुन्दरता से कहीं बडी होती है आंतरिक सुन्दरता। मगर यहां आलम यह था कि कोई सी भी सुन्दरता नहीं थी। शादी के बाद परिधि को मंहगे घरेलू उपकरण मांग लाने के लिये परेशान किया जाने लगा। अंबर एक की पूर्ति करता तब तक दूसरी मांग फिर उग आती। तात्पर्य यह कि परिधि की जान प्रताडना और थूकम - फजीहत की सांसत में जाकर फंस गयी। अंबर से आये दिन थुथुरमुंहा और उसके परिवार की रार - तकरार मचने लगी।

ravi sharma
16-11-2012, 02:37 PM
यह परिस्थिति आज भी जारी है, ऐसे में अगर वह बेटी के बाप होने को अभिसाप मानकर इससे बचने के लिये सख्त एहतियात बरतना चाहता है तो शाखा इस मानसिकता को समझ सकती है। उसने उसकी मन:स्थिति से सहमति व्यक्त करते हुए कहा, मैं तुम्हारी पीडा से अलग नहीं हूं अम्बर। दहेज के दानवी चेहरों ने हजारों - लाखों घर उजाडे हैं और बेशुमार जिन्दगियां तबाह की हैं लडक़ियां फिर भी जन्म लेती रही हैं और दुनिया को अगर रुक नहीं जाना है तो जन्म लेती ही रहेंगी। तुम्हारी तो एक ही बहन थी, मेरे पिता ने तो चार बेटियों को ब्याहा है। उनके एक जमाई तुम भी हो, तुमने तो उनसे कभी कुछ लेने में रुचि नहीं दिखाई। तो लोग तुम्हारी तरह भी हैं दुनिया में। मेरी यह पहली प्रेगनेन्सी है, इसे प्लीज र्निद्वन्द्वता से सम्पन्न होने दो। पहले इशू में कोई वर्जना, कोई रुकावट, कोई संशय उचित नहीं। अगर बेती भी होती है तो हमें उसे स्वीकार करना है। आखिर बेटी के रूप में कम से कम एक संतान घर में जरूरी भी है और उसकी परवरिश हमारा दायित्व भी है।

ravi sharma
16-11-2012, 02:38 PM
अंबर ने कोई जिरह नहीं की। शाखा तनिक अचम्भित रह गई इतनी आसानी से वह मान जायेगा, सोचा नहीं था। कुछ पल चिंतामग्न रहने के बाद कहा उसने, एक बेटी घर के लिये कितनी अहम् होती है, यह मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है शाखा? जब मेरी मां चल बसी थी तो बहुत छोटी होकर भी परिधि ने ही पूरे घर को संभाला था। मैं उससे कई साल बडा था, लेकिन घर को संवारने - संभालने और रसोई सीधी करने के मामले में मैं किसी काम का नहीं था। दमा और हृदय रोग के मरीज बाऊजी को परिधि ने अपनी सुश्रुषा से हमेशा संतुष्ट रखा। वे कहते थे मुझे, अपनी परिधि की सुघडता देखो, अंबर। इसने घुट्टी में ही कब सीख लिया यह सब, हमें पता ही नहीं चला। ऐसी ही बेटियां घर की लक्ष्मी कही जाती हैं। इसके मनोहारी बर्ताव, सम्बोधन और बोल घर को स्वर्ग का आभास दिलाने लगते हैं। मैं न भी रहूं तो इसका ब्याह खूब अच्छी जगह करना बेटे। कहकर एक दीर्घ नि:श्वास भरी अम्बर ने।