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View Full Version : छोटी मगर शानदार कहानियाँ


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Sameerchand
22-11-2012, 07:16 AM
दोस्तों इस सूत्र में मैं आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ प्रश्तुत करूँगा. जो काफी शिक्षाप्रद भी हैं. तो देर न करते हुए शुरू करते हैं आज की कहानी.....

आप सब के विचार यहाँ आमंत्रित हैं और अगर आप भी योगदान करना चाहे तो आपका स्वागत हैं......

Sameerchand
22-11-2012, 07:16 AM
मैं तुझे तो कल देख लूंगा।


सूफी संत जुनैद के बारे में एक कथा है.


एक बार संत को एक व्यक्ति ने खूब अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. संत ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं कल वापस आकर तुम्हें अपना जवाब दूंगा.


अगले दिन वापस जाकर उस व्यक्ति से कहा कि अब तो तुम्हें जवाब देने की जरूरत ही नहीं है.


उस व्यक्ति को बेहद आश्चर्य हुआ. उस व्यक्ति ने संत से कहा कि जिस तरीके से मैंने आपका अपमान किया और आपको अपशब्द कहे, तो घोर शांतिप्रिय व्यक्ति भी उत्तेजित हो जाता और जवाब देता. आप तो सचमुच विलक्षण, महान हैं.


संत ने कहा – मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है कि यदि आप त्वरित जवाब देते हैं तो वह आपके अवचेतन मस्तिष्क से निकली हुई बात होती है. इसलिए कुछ समय गुजर जाने दो. चिंतन मनन हो जाने दो. कड़वाहट खुद ही घुल जाएगी. तुम्हारे दिमाग की गरमी यूँ ही ठंडी हो जाएगी. आपके आँखों के सामने का अँधेरा जल्द ही छंट जाएगा. चौबीस घंटे गुजर जाने दो फिर जवाब दो.


क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति पूरे 24 घंटों के लिए गुस्सा रह सकता है? 24 घंटे क्या, जरा अपने आप को 24 मिनट का ही समय देकर देखें. गुस्सा क्षणिक ही होता है, और बहुत संभव है कि आपका गुस्सा, हो सकता है 24 सेकण्ड भी न ठहरता हो

Sameerchand
22-11-2012, 07:16 AM
कौन बड़ा?


एक बार एक आश्रम के दो शिष्य आपस में झगड़ने लगे – मैं बड़ा, मैं बड़ा.

झगड़ा बढ़ता गया तो फैसले के लिए वे गुरु के पास पहुँचे.

गुरु ने बताया कि बड़ा वो जो दूसरे को बड़ा समझे.

अब दोनों नए सिरे से झगड़ने लगे – तू बड़ा, तू बड़ा!

Sameerchand
22-11-2012, 07:16 AM
सुरक्षा का उपाय


एक बार नसरूद्दीन ने एक लड़के से उसके लिए कुँऐं से पानी खींचने का अनुरोध किया। जैसे ही वह लड़का कुँए से पानी खींचने को झुका, नसरूद्दीन ने उसके सिर में जोर से थप्पड़ मारा और कहा, "ध्यान रहे। मेरे लिए पानी खींचते समय घड़ा न टूटे।"

वहाँ से गुजरते हुए एक राहगीर ने यह सब देखा तो उसने नसरूद्दीन से कहा - "जब उस लड़के ने कोई गल्ती ही नहीं की तो तुमने उसे क्यों मारा?"

नसरूद्दीन ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया - "यदि मैं यह चेतावनी घड़े के फूटने के बाद देता तो उसका कोई फायदा नहीं होता।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:16 AM
एक मिनट की भी देरी किसलिए?


एक बार एक जंगल में जबरदस्त आग लग गई और जंगल का एक बड़ा हिस्सा जलकर खाक हो गया. जंगल में एक गुरु का आश्रम था. जब जंगल की आग शांत हुई तो उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी कि जंगल को फिर से हरा भरा करने के लिए देवदार का वृक्षारोपण किया जाए.


एक शक्की किस्म के चेलने ने शंका जाहिर ही - मगर गुरूदेव, देवदार तो पनपने में बरसों ले लेते हैं.


यदि ऐसा है तब तो हमें बिना देरी किए तुरंत ही यह काम शुरू कर देना चाहिए - गुरू ने कहा.

Sameerchand
22-11-2012, 07:17 AM
अपने भीतर के प्रकाश को देखो


एक गुरूजी लंबे समय से अचेतावस्था में थे। एक दिन अचानक उन्हें होश आया तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को अपने नजदीक बैठे हुए पाया।

उन्होंने प्रेमपूर्वक कहा - "तुम इतने समय तक मेरे बिस्तर के नजदीक ही बैठे रहे और मुझे अकेला नहीं छोड़ा?"

शिष्य ने रुंधे हुए गले से कहा - "गुरूदेव मैं ऐसा कर ही नहीं सकता कि आपको अकेला छोड़ दूं।"

गुरूजी - "ऐसा क्यों?"

"क्योंकि आप ही मेरे जीवन के प्रकाशपुंज हैं।"

गुरूजी ने उदास से स्वर में कहा - "क्या मैंने तुम्हें इतना चकाचौंध कर दिया है कि तुम अपने भीतर के प्रकाश को नहीं देख पा रहे हो?"

Sameerchand
22-11-2012, 07:17 AM
शेर और लोमड़ी


एक लोमड़ी, जंगल के राजा शेर के अधीनस्थ एक नौकर के रूप में कार्य करने को सहमत हो गयी। कुछ समय तक तो दोनों अपने स्वभाव और सामर्थ्य के अनुसार भलीभांति कार्य करते रहे। लोमड़ी शिकार बताती और शेर हमला करके शिकार को दबोच लेता। परंतु लोमड़ी को जल्द ही यह ईर्ष्या होने लगी कि शेर शिकार का ज्यादा हिस्सा स्वयं चट कर जाता है और उसे बचाखुचा हिस्सा ही मिलता है। वह सोचने लगी कि आखिर वह किस मायने में शेर से कम है। और उसने यह घोषणा कर दी कि भविष्य में वह अकेले ही शिकार करेगी। अगले ही दिन जब वह एक भेड़शाला में से भेड़ के बच्चे को दबोचने ही वाली थी कि अचानक शिकारी और उसके पालतू कुत्ते आ गए और उसे अपना शिकार बना लिया।

"जीवन में अपना स्थान नियत करो और यह स्थान ही आपकी रक्षा करेगा।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:17 AM
तुम्हारा फर्नीचर कहाँ है?


पिछली शताब्दी की बात है। एक अमेरिकी पर्यटक सुप्रसिद्ध पुलिस कर्मचारी रब्बी हॉफेज़ चैम से मिलने गया।

उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि रब्बी सिर्फ एक कमरे में रहते थे और वह भी किताबों से भरा हुआ था। उसमें फर्नीचर के नाम पर सिर्फ एक मेज और कुर्सी थी।

"तुम्हारा फर्नीचर कहाँ हैं रब्बी?" - पर्यटक ने पूछा ।

"और तुम्हारा कहाँ हैं?" - रब्बी ने कहा ।

"मेरा फर्नीचर ! लेकिन मैं तो यहाँ एक पर्यटक हूँ और यहाँ से गुजर ही रहा था।"

"और मैं भी" -- -- -- रब्बी ने भोलेपन से कहा ।

Sameerchand
22-11-2012, 07:17 AM
आदमी और शेर


एक बार एक शेर और एक आदमी साथ-साथ यात्रा कर रहे थे। उनके मध्य यह बहस होने लगी कि कौन ज्यादा ताकतवर और श्रेष्ठ है। उनके मध्य नोक-झोंक तीखी हुई ही थी कि वे चट्टान पर उकेरी गयी एक मूर्ति के पास से गुजरे जिसमें एक आदमी को शेर का गला दबाते हुए दर्शाया गया था।

"वो देखो। हमारी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए क्या तुम्हें और किसी प्रमाण की आवश्यकता है?" - आदमी ने गर्व से कहा।

शेर ने उत्तर दिया - "ये कहानी कहने का तुम्हारा नजरिया है। यदि हम लोग शिल्पकार होते तो शेर के एक पंजे के नीचे बीस आदमी दबे होते।"

"इतिहास सिर्फ विजेताओं द्वारा ही लिखा जाता है।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:18 AM
अपनी आँखें खुली रखो


दार्जिलिंग में कुछ बुजुर्ग मित्रों का एक समूह था जो आपस में समाचारों के आदान-प्रदान और एक साथ चाय पीने के लिये मिलते रहते थे। उनका एक अन्य शौक चाय की महँगी किस्मों की खोज और उनके विभिन्न मिश्रणों द्वारा नए स्वादों की खोज करना था।

मित्रों के मनोरंजन हेतु जब समूह के सबसे उम्रदराज़ बुजुर्ग की बारी आयी तो उसने समारोहपूर्वक एक सोने के महंगे डिब्बे में से चाय की पत्तियाँ निकालते हुए चाय तैयार की। सभी लोगों को चाय का स्वाद बेहद पसंद आया और वे इस मिश्रण को जानने के लिए उत्सुक हो उठे। बुजुर्ग ने मुस्कराते हुए कहा - "मित्रों, जिस चाय को आप बेहद पसंद कर रहे हैं उसे तो मेरे खेतों पर काम करने वाले किसान पीते हैं।"

"जीवन की बेहतरीन चीजें न तो महंगी हैं और न ही उन्हें खोजना कठिन है।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:18 AM
मत बदलो


वर्षों तक मैं मानसिक रोगी रहा - चिंताग्रस्त, अवसादग्रस्त और स्वार्थी। हर कोई मुझे अपना स्वभाव बदलने को कहता ।

मैं उन्हें नाराज करता, पर उनसे सहमत भी था। मैं अपने आपको बदलना चाहता था लेकिन अपने तमाम प्रयासों के बावजूद मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाया।

मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती थी जब दूसरों की तरह मेरे सबसे नजदीकी मित्र भी मुझसे बदलने को कहते। मैं ऊर्जारहित और बंधा-बंधा सा महसूस करता ।

एक दिन उसने कहा - "अपने आप को मत बदलो। तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।"

ये शब्द मेरे कानों को मधुर संगीत की तरह लगे - "मत बदलो, मत बदलो, मत बदलो ............. तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो।"

मैंने राहत महसूस की। मैं जीवंत हो उठा और अचानक मैंने पाया कि मैं बदल गया हूँ। अब मैं समझ गया हूँ कि वास्तव में, मैं तब तक नहीं बदला था जब तक कि मैंने ऐसे व्यक्ति को नहीं खोज लिया जो मुझसे हर हाल में प्रेम करता हो।

Sameerchand
22-11-2012, 07:18 AM
राजा से तो बेहतर वृक्ष है


एक लड़का आम के वृक्ष पर पत्थर मारकर आम तोड़ने का प्रयास कर रहा था। गलती से एक पत्थर अपने लक्ष्य से भटककर वहां से गुजर रहे राजा को लगा। राजा के सैनिकों ने दौड़कर उस लड़के को पकड़ लिया और उसे राजा के समक्ष प्रस्तुत किया ।

राजा ने कहा -"इसके लिए तुम सजा के भागीदार हो। ............ताकि फिर कभी कोई राजा के ऊपर पत्थर फेंकने की हिम्मत न करे, अन्यथा ऐसे तो शासन चलाना मुश्किल हो जाएगा।"

लड़के ने विनयपूर्वक उत्तर दिया - "हे वीर एवं न्यायप्रिय राजन, जब मैंने आम के वृक्ष पर पत्थर मारा तो मुझे उपहार स्वरूप मीठे रसीले फल खाने को मिले और जब आपको पत्थर लगा तो आप मुझे दंड दे रहे हैं....आप से भला तो वृक्ष है।"

राजा का सिर शर्म से झुक गया।

Sameerchand
22-11-2012, 07:18 AM
कोट के भीतर डायनामाइट

मुल्ला नसरुद्दीन खुशी-खुशी कुछ बुदबुदा रहा था। उसके मित्र ने इस खुशी का राज पूछा।

मुल्ला नसरुद्दीन बोला - "वो बेवकूफ अहमद जब भी मुझसे मिलता है, मेरी पीठ पर हाथ मारता है। आज मैंने अपने कोट के भीतर डायनामाइट की छड़ छुपा ली है। इस बार जब वो मेरी पीठ पर हाथ मारेगा तो उसका हाथ ही उड़ जाएगा।"

"भले ही मुझे हानि पहुंचे, मैं उसे क्षति पहुंचाकर बदला लूंगा।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:19 AM
मृगतृष्णा


जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था।

अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे।

बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?"

प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं।

"दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है;
और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:19 AM
नदी का पानी बिकाऊ


गुरू जी के प्रवचन में एक गूढ़ वाक्य शामिल था।

कटु मुस्कराहट के साथ वे बोले, "नदी के तट पर बैठकर नदी का पानी बेचना ही मेरा कार्य है"।

और मैं पानी खरीदने में इतना व्यस्त था कि मैं नदी को देख ही नहीं पाया।

"हम जीवन की समस्याओं और आपाधापी के कारण प्रायः सत्य को नहीं पहचान पाते।"

Sameerchand
22-11-2012, 07:19 AM
प्रार्थना


वे प्रतिवर्ष पिकनिक पर सपरिवार जोशोखरोश से जाते थे और अपनी धर्मपरायण चाची को बुलाना नहीं भूलते थे. मगर इस वर्ष वे हड़बड़ी में भूल गए.

आखिरी मिनटों में किसी ने याद दिलाया. चाची को जब निमंत्रण भेजा गया तो उन्होंने कहा – “अब तो बहुत देर हो चुकी. मैंने तो आँधी-तूफ़ान और बरसात के लिए प्रार्थना भी कर ली है.”

Sameerchand
22-11-2012, 07:19 AM
बुद्धिमानी


मुल्ला नसरूद्दीन शादी की दावत में निमंत्रित थे. पिछली दफ़ा जब वे ऐसे ही समारोह में निमंत्रित थे तो किसी ने उनका जूता चुरा लिया था. इसलिए इस बार मुल्ला ने जूता दरवाजे पर छोड़ने के बजाए अपनी कोट की जेब में ठूंस लिए.

“आपकी जेब में रखी किताब कौन सी है” – मेजबान ने मुल्ला से पूछा.

“लगता है यह मेरे जूतों के पीछे पड़ा है” मुल्ला ने सोचा और कहा – “वैसे तो लोग मेरी बुद्धिमानी का लोहा मानते हैं.” और फिर चिल्लाया – “मेरी जेब में रखी इस भारी भरकम चीज का मुख्य विषय भी यही है - बुद्धिमानी.”

“अरे वाह!, आपने इसे कहाँ से खरीदा – ‘बुक-वार्म’ से या ‘क्रॉसवर्ड’ से?”

“मोची से”

Sameerchand
22-11-2012, 07:26 AM
और बाकी कहानिया, आप लोगो की प्रतिक्रियाओं के बाद।

Sikandar_Khan
22-11-2012, 08:34 AM
समीर भाई ! बहुत ही शानदार सीख देने वाली कहानियाँ हैँ |

abhisays
22-11-2012, 09:05 AM
बहुत ही अच्छी कहानिया हैं। :bravo::bravo:

Dark Saint Alaick
22-11-2012, 04:31 PM
आपने तो आते ही धमाका कर दिया समीरजी। श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण के लिए आभार स्वीकार करें। :cheers:

anjana
22-11-2012, 06:05 PM
काँच की बरनी और दो कप चाय


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।



दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये , धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प् ?? ोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो.... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी ह ? ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक- अप करवाओ.. टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है.... बाकी सब तो रेत है.. छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे... अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप" क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

anjana
22-11-2012, 06:06 PM
एकाग्रचित्त बनें

एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने की सलाह दी थी।
उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले, पानी एक में भी नहीं निकला। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं चलकरउस स्थान पर आया, जहां उसने दस गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह समझ गया। बोला, 'दस कुआं खोदने की बजाए एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और पुरूषार्थ लगाते तो पानी कबका मिल गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल आएगा।'
कहने का मतलब यही कि आज की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है। इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है और पूरी एक भी नहींहो पाती।

anjana
22-11-2012, 06:08 PM
पथ का निर्माण:-

जंगल में चराई के बाद किसी बछड़े को गाँव की गौशाला तकलौटना था. नन्हा बछड़ा था तो अबोध ही, वह चट्टानों, मिट्टी के टीलों, और ढलानोंपर से उछलता-कूदता हुआ अपने गंतव्य तक पहुँचने में सफल हो गया.
अगले दिन एक कुत्ते ने भी गाँव तक पहुँचने के लिए उसीरास्ते का इस्तेमाल किया. उसके अगले दिन एक भेड़ उस रास्ते पर चल पड़ी. एक भेड़ के पीछे अनेक भेड़ चल पडीं. भेड़ जो ठहरीं!
उस रास्ते पर चलाफिरी के निशान देखकर लोगों ने भी उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. ऊंची-नीची पथरीली जमीन पर आते-जाते समय वे पथकी दुरूहता को कोसते रहते – पथ था ही ऐसा! लेकिन किसी ने भी सरल-सुगम पथ की खोज के लिए प्रयास नहीं किये.
समय बीतने के साथ वह पगडंडीउस गाँव तक पहुँचने का मुख्य मार्ग बन गयी जिसपर बेचारे पशु बमुश्किल गाड़ीखींचते रहते. उस कठिन पथ के स्थान पर कोई सुगम पथ होता तो लोगों को यात्रा में न केवल समय की बचत होती वरन वे सुरक्षित भी रहते.
कालांतर में वह गाँव एक नगरबन गया और पथ राजमार्ग बन गया. उस पथ की समस्याओं पर चर्चा करते रहने के अतिरिक किसी ने कभी कुछ नहीं किया.
बूढ़ा जंगल यह सब बहुत लंबेसमय से देख रहा था. वह बरबस मुस्कुराता और यह सोचता रहता कि मनुष्य हमेशा ही सामने खुले पड़े विकल्प को मजबूती से जकड़ लेते हैं औरयह विचार नहीं करते कि कहींकुछ उससे बेहतर भी किया जा सकता है.

anjana
22-11-2012, 06:10 PM
मुल्ला नसरुद्दीन के गुरु की मज़ार :-
मुल्ला नसरुद्दीन इबादत की नई विधियों की तलाश में निकला. अपने गधे पर जीन कसकर वह भारत, चीन, मंगोलिया गया और बहुत से ज्ञानियों और गुरुओं से मिला पर उसे कुछ भी नहीं जंचा.
उसे किसी ने नेपाल में रहने वाले एक संत के बारे में बताया. वह नेपाल की ओर चल पड़ा. पहाड़ी रास्तों पर नसरुद्दीन का गधा थकान से मर गया. नसरुद्दीन ने उसे वहीं दफ़न कर दिया और उसके दुःख में रोने लगा. कोई व्यक्ति उसके पास आया और उससे बोला – “मुझे लगता है कि आप यहाँ किसी संत की खोज में आये थे. शायद यही उनकी कब्र है और आप उनकी मृत्यु का शोक मना रहे हैं.”
“नहीं, यहाँ तो मैंने अपने गधे को दफ़न किया है जो थकान के कारण मर गया” – मुल्ला ने कहा.
“मैं नहीं मानता. मरे हुए गधे के लिए कोई नहीं रोता. इस स्थान में ज़रूर कोई चमत्कार है जिसे तुम अपने तक ही रखना चाहते हो!”
नसरुद्दीन ने उसे बार-बार समझाने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. वह आदमी पास ही गाँव तक गया और लोगों को दिवंगत संत की कब्र के बारे में बताया कि वहां लोगों के रोग ठीक हो जाते हैं. देखते-ही-देखते वहां मजमा लग गया.
संत की चमत्कारी कब्र की खबर पूरे नेपाल में फ़ैल गयी और दूर-दूर से लोग वहां आने लगे. एक धनिक को लगा कि वहां आकर उसकी मनोकामना पूर्ण हो गयी है इसलिए उसने वहां एक शानदार मज़ार बनवा दी जहाँ नसरुद्दीन ने अपने ‘गुरु’ को दफ़न किया था.
यह सब होता देखकर नसरुद्दीन ने वहां से चल देने में ही अपनी भलाई समझी. इस सबसे वह एक बात तो बखूबी समझ गया कि जब लोग किसी झूठ पर यकीन करना चाहते हैं तब दुनिया की कोई ताकत उनका भ्रम नहीं तोड़ सकती.

Sameerchand
23-11-2012, 03:39 PM
सबसे बड़ा सबक


चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में चीन से एक दूत आया. वह चाणक्य के साथ ‘राजनीति के दर्शन’ पर विचार-विमर्श करना चाहता था. चीनी राजदूत राजशाही ठाठबाठ वाला अक्खड़ किस्म का था. उसने चाणक्य से बातचीत के लिए समय मांगा. चाणक्य ने उसे अपने घर रात को आने का निमंत्रण दिया.

उचित समय पर चीनी राजदूत चाणक्य के घर पहुँचा. उसने देखा कि चाणक्य एक छोटे से दीपक के सामने बैठकर कुछ लिख रहे हैं. उसे आश्चर्य हुआ कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का बड़ा ओहदेदार मंत्री इतने छोटे से दिए का प्रयोग कर रहा है.

चीनी राजदूत को आया देख चाणक्य खड़े हुए और आदर सत्कार के साथ उनका स्वागत किया. और इससे पहले कि बातचीत प्रारंभ हो, चाणक्य ने वह छोटा सा दीपक बुझा दिया और एक बड़ा दीपक जलाया. बातचीत समाप्त होने के बाद चाणक्य ने बड़े दीपक को बुझाया और फिर से छोटे दीपक को जला लिया.

चीनी राजदूत को चाणक्य का यह कार्य बिलकुल ही समझ में नहीं आया. चलते-चलते उसने पूछ ही लिया कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया.

चाणक्य ने कहा – जब आप मेरे घर पर आए तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का निजी कार्य कर रहा था, तो उस वक्त मैं अपना स्वयं का दीपक प्रयोग में ले रहा था. जब हमने राजकाज की बातें प्रारंभ की तब मैं राजकीय कार्य कर रहा था तो मैंने राज्य का दीपक जलाया. जैसे ही हमारी राजकीय बातचीत समाप्त हुई, मैंने फिर से स्वयं का दीपक जला लिया.

चाणक्य ने आगे कहा - मैं कभी ‘राज्य का मंत्री’ होता हूँ, तो कभी राज्य का ‘आम आदमी’. मुझे दोनों के बीच अंतर मालूम है.

Sameerchand
23-11-2012, 03:40 PM
अनजान जी, इस सूत्र में आपके योगदान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद :bravo::bravo::bravo::bravo:

Sameerchand
23-11-2012, 03:41 PM
बुरे इरादे छुपाए नहीं छुपते


एक बार की बात है. एक गरीब बुढ़िया एक गांव से दूसरे गांव पैदल जा रही थी. उसके सिर पर एक भारी बोझ था. वह बेचारी हर थोड़ी दूर पर थक कर बैठ जाती और सुस्ताती. इतने में एक घुड़सवार पास से गुजरा. बुढ़िया ने उस घुड़सवार से कहा कि क्या वो अपने घोड़े पर उसका बोझा ले जा सकता है. घुड़सवार ने मना कर दिया और कहा – बोझा तो मैं भले ही घोड़े पर रख लूं, मगर तुम तो बड़ी धीमी रफ्तार में चल रही हो. मुझे तो देर हो जाएगी.

थोड़ी दूर आगे जाने के बाद घुड़सवार के मन में आया कि शायद बुढ़िया के बोझे में कुछ मालमत्ता हो. वो बुढ़िया की सहायता करने के नाम पर बोझा घोड़े पर रख लेगा और सरपट वहाँ से भाग लेगा. ऐसा सोचकर वह वापस बुढ़िया के पास आया और बुढ़िया से कहा कि वो उसकी सहायता कर प्रसन्न होगा.

अबकी बुढ़िया ने मना कर दिया. घुड़सवार गुस्से से लाल-पीला हो गया. उसने बुढ़िया से कहा, अभी तो थोड़ी देर पहले तुमने मुझसे बोझा ढोने के लिए अनुनय विनय किया था! और अभी थोड़ी देर में ये क्या हो गया कि तुमने अपना इरादा बदल दिया?

‘उसी बात ने मेरा इरादा बदला जिसने तुम्हारा इरादा बदल दिया.’ बुढ़िया ने एक जानी पहचानी मुस्कुराहट उसकी ओर फेंकी और आगे बढ़ चली.

Sameerchand
23-11-2012, 03:41 PM
मेरा दिल तो पहले से ही वहाँ पर है


एक बुजुर्ग हिमालय पर्वतों की तीर्थयात्रा पर था. कड़ाके की ठंड थी और बारिश भी शुरू हो गई थी.

धर्मशाला के एक कर्मचारी ने पूछा “बाबा, मौसम खराब है. ऐसे में आप कैसे जाओगे?”

बुजुर्ग ने प्रसन्नता से कहा – “मेरा दिल तो वहाँ पहले से ही है. बाकी के लिए तो कोई समस्या ही नहीं है.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:42 PM
गगरी आधी भरी या खाली


एक बुजुर्ग ग्रामीण के पास एक बहुत ही सुंदर और शक्तिशाली घोड़ा था. वह उससे बहुत प्यार करता था. उस घोड़े को खरीदने के कई आकर्षक प्रस्ताव उसके पास आए, मगर उसने उसे नहीं बेचा.

एक रात उसका घोड़ा अस्तबल से गायब हो गया. गांव वालों में से किसी ने कहा “अच्छा होता कि तुम इसे किसी को बेच देते. कई तो बड़ी कीमत दे रहे थे. बड़ा नुकसान हो गया.”

परंतु उस बुजुर्ग ने यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “आप सब बकवास कर रहे हैं. मेरे लिए तो मेरा घोड़ा बस अस्तबल में नहीं है. ईश्वर इच्छा में जो होगा आगे देखा जाएगा.”

कुछ दिन बाद उसका घोड़ा अस्तबल में वापस आ गया. वो अपने साथ कई जंगली घोड़े व घोड़ियाँ ले आया था.

ग्रामीणों ने उसे बधाईयाँ दी और कहा कि उसका तो भाग्य चमक गया है.

परंतु उस बुजुर्ग ने फिर से यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “बकवास! मेरे लिए तो बस आज मेरा घोड़ा वापस आया है. कल क्या होगा किसने देखा है.”

अगले दिन उस बुजुर्ग का बेटा एक जंगली घोड़े की सवारी करते गिर पड़ा और उसकी टाँग टूट गई. लोगों ने बुजुर्ग से सहानुभूति दर्शाई और कहा कि इससे तो बेहतर होता कि घोड़ा वापस ही नहीं आता. न वो वापस आता और न ही ये दुर्घटना घटती.

बुजुर्ग ने कहा – “किसी को इसका निष्कर्ष निकालने की जरूरत नहीं है. मेरे पुत्र के साथ एक हादसा हुआ है, ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, बस”

कुछ दिनों के बाद राजा के सिपाही गांव आए, और गांव के तमाम जवान आदमियों को अपने साथ लेकर चले गए. राजा को पड़ोसी देश में युद्ध करना था, और इसलिए नए सिपाहियों की भरती जरूरी थी. उस बुजुर्ग का बेटा चूंकि घायल था और युद्ध में किसी काम का नहीं था, अतः उसे नहीं ले जाया गया.

गांव के बचे बुजुर्गों ने उस बुजुर्ग से कहा – “हमने तो हमारे पुत्रों को खो दिया. दुश्मन तो ताकतवर है. युद्ध में हार निश्चित है. तुम भाग्यशाली हो, कम से कम तुम्हारा पुत्र तुम्हारे साथ तो है.”

उस बुजुर्ग ने कहा – “अभिशाप या आशीर्वाद के बीच बस आपकी निगाह का फ़र्क होता है. इसीलिए किसी भी चीज को वैसी निगाहों से न देखें. निस्पृह भाव से यदि चीजों को होने देंगे तो दुनिया खूबसूरत लगेगी.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:42 PM
थुम्बा में रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर वैज्ञानिक एक दिन में लगभग 12 से 18 घंटे के लिए काम करते थे. इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों कि संख्या सत्तर के लगभग थी . सभी वैज्ञानिक वास्तव में काम के दबाव और अपने मालिक की मांग के कारण निराश थे, लेकिन हर कोई उससे वफादार था और नौकरी छोड़ने के बारे में नहीं सोचता था .
एक दिन, एक वैज्ञानिक अपने बॉस के पास आया था और उनसे कहा - सर, मैं अपने बच्चों को वादा किया है कि मैं उन्हें हमारी बस्ती में चल रही प्रदर्शनी दिखाने के लिए ले जाऊँगा . तो मैं 5 30 बजे कार्यालय छोड़ना चाहता हूँ .

उनका बॉस ने कहा - ठीक है, तुम्हे आज जल्दी कार्यालय छोड़ने के लिए अनुमति दी जाती है.

वैज्ञानिक ने काम शुरू कर दिया. उसने दोपहर के भोजन के बाद भी अपना काम जारी रखा. हमेशा की तरह वह इस हद तक अपने काम में मशगूल था कि जब उसने अपनी घड़ी में देखा कि समय रात्रि 8.30 बज चुके थे . अचानकउसे अपना वह वादा जो उसने अपने बच्चों को किया था याद आया . उसने अपने मालिक के लिए देखा, वह वहाँ नहीं था. उसे सुबह ही बताया था, उसने सब कुछ बंद कर दिया और घर के लिए चल दिया.

अपने भीतर गहराई में, वह अपने बच्चों को निराश करने के लिए दोषी महसूस कर रहा था.

वह घर पहुंच गया. बच्चे वहाँ नहीं थे पत्नी अकेली हॉल में बैठी थी और पत्रिकाओं को पढ़ने में मशगूल थी . स्थिति विस्फोटक थी , उसे लगा कोई भी बात करने पर वह उस पर फट पड़ेगी . उसकी पत्नी ने उससे पूछा - क्या आप के लिए कॉफीलाऊं या मैं सीधे रात्रिभोज की व्यवस्था करू अगर आप भूखे है आपकी पसंद का भोजन बना है.

आदमी ने कहा - अगर तुम भी पियो तो मैं भी कॉफी लूँगा , लेकिन बच्चे कहां हैं ?? पत्नी ने कहा - आपको नहीं पता है आपका प्रबंधक 5 15 बजे आया और प्रदर्शनी के लिए बच्चों को ले गया.

असल में हुआ क्या था

मालिक ने उसे दी गई अनुमति के अनुसार उसे 5,00 बजे उसे गंभीरता से काम करते देखा और सोचा कि यह व्यक्ति काम को नहीं छोड़ सकता है , लेकिन उसने अपने बच्चों से वादा किया है कि वो उन्हें प्रदर्शनी के लिए लें जाएगा . तो वह उन्हें प्रदर्शनी के लिए लेकर गया.

मालिक ने हर बार यही नहीं किया था पर जो एक बार किया उससे उस वैज्ञानिक कि प्रतिबद्धता हमेशा के लिए स्थापित हो गयी
यही कारण है कि थुम्बा में सभी वैज्ञानिकों ने उनके मालिक के तहत काम जारी रखा जबकि तनाव जबरदस्त था.


क्या आप अनुमान लगा सकते हैं वो मेनेजर कौन था



जी हाँ वो हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम थे

Sameerchand
23-11-2012, 03:43 PM
शिकार


एक दिन सुल्तान ने नसरुद्दीन को अपने साथ भालू के शिकार पर चलने को कहा। नसरुद्दीन जाना नहीं चाहता था पर सुल्तान को खुश करने के लिए वह साथ में जाने को तैयार हो गया।

शिकार पर गया दल जब शाम को लौटा तो सभी लोग उनसे यह जानने को उत्सुक थे कि शिकार कैसा रहा और उन्होंने नसरुद्दीन से इसके बारे में पूछा।

नसरुद्दीन बोला - "बेहतरीन" !

लोगों ने फिर उत्सुकतावश पूछा - "तुमने कितने भालू मारे?"

"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।

"तो तुमने कितने भालुओं का पीछा किया?"- उन्होंने पूछा।

"एक भी नहीं " - नसरुद्दीन फिर बोला।

"तो तुम्हें कितने भालू दिखायी दिए?"- उन्होंने पूछा।

"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।

तो फिर तुम यह कैसे कह सकते हो कि शिकार बेहतरीन रहा? - एक व्यक्ति ने कहा।

नसरुद्दीन ने मुस्कराते हुए कहा।- "महोदय! यह जान लीजिये, कि जब आप भालू जैसे खतरनाक जानवर के शिकार पर हों तो सबसे अच्छी बात यही है कि उससे आपका सामना ही न हो।

Sameerchand
23-11-2012, 03:44 PM
संघर्ष की महत्ता


एक व्यक्ति को तितली का एक कोकून मिला, जिसमें से तितली बाहर आने के लिए प्रयत्न कर रही थी. कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया था जिसमें से बाहर निकलने को तितली आतुर तो थी, मगर वह छेद बहुत छोटा था और तितली का उस छेद में से बाहर निकलने का संघर्ष जारी था.

उस व्यक्ति से यह देखा नहीं गया और वह जल्दी से कैंची ले आया और उसने कोकून को एक तरफ से काट कर छेद बड़ा कर दिया. तितली आसानी से बाहर तो आ गई, मगर वह अभी पूरी तरह विकसित नहीं थी. उसका शरीर मोटा और भद्दा था तथा पंखों में जान नहीं थी. दरअसल प्रकृति उसे कोकून के भीतर से निकलने के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया के दौरान उसके पंखों को मजबूती देने, उसकी शारीरिक शक्ति को बनाने व उसके शरीर को सही आकार देने का कार्य भी करती है. जिससे जब तितली स्वयं संघर्ष कर, अपना समय लेकर कोकून से बाहर आती है तो वह आसानी से उड़ सकती है. प्रकृति की राह में मनुष्य रोड़ा बन कर आ गया था, भले ही उसकी नीयत तितली की सहायता करने की रही हो. नतीजतन तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और जल्द ही काल कवलित हो गई.

संघर्ष जरूरी है हमारे बेहतर जीवन के लिए.

Sameerchand
23-11-2012, 03:44 PM
शायद ऊपर कोई रास्ता निकल आए


कुछ बच्चों ने तय किया कि मुल्ला नसरूद्दीन को परेशान करने के लिए जब मुल्ला कहीं चप्पल निकाले तो उसे छुपा दिया जाए.

उन्होंने एक उपाय निकाला. जब मुल्ला पास से गुजर रहा था तो मुल्ला को सुनाने के लिए एक बच्चे ने दूसरे से जोर से कहा – “सामने वाले पेड़ पर कोई भी नहीं चढ़ सकता, और मुल्ला तो कभी भी नहीं.”

मुल्ला ठिठका, पेड़ को देखा जो कि बेहद छोटा और शाखादार था. “कोई भी चढ़ सकता है इस पर – तुम भी. देखो मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि कैसे.” ऐसा कह कर उसने अपनी चप्पलें निकाली और उन्हें अपनी कमरबंद में खोंसा और पेड़ पर चढ़ने लगा.

“मुल्ला,” बच्चे चिल्लाए क्योंकि उनका प्लान फेल हो रहा था – “ऊपर पेड़ में तुम्हारे चप्पलों का क्या काम?”

“इमर्जेंसी के लिए हमेशा तैयार रहो,” मुल्ला ने मुस्कुराते हुए बात पूरी की – “क्या पता ऊपर कोई रास्ता मिल ही जाए”

Sameerchand
23-11-2012, 03:44 PM
किसान और गेहूँ के दाने


एक प्राचीन दृष्टान्त है. तब ईश्वर मनुष्यों के साथ धरती पर निवास करते थे. एक दिन एक वृद्ध किसान ने ईश्वर से कहा – आप ईश्वर हैं, ब्रह्माण्ड को आपने बनाया है, मगर आप किसान नहीं हैं और आपको खेती किसानी नहीं आती, इसलिए दुनिया में समस्याएँ हैं.

ईश्वर ने पूछा – “तो मुझे क्या करना चाहिए?”

किसान ने कहा - “मुझे एक वर्ष के लिए अपनी शक्तियाँ मुझे दे दो. मैं जो चाहूंगा वो हो. तब आप देखेंगे कि दुनिया से समस्याएँ, गरीबी भुखमरी सब समाप्त हो जाएंगी.”

ईश्वर ने किसान को अपनी शक्ति दे दी. किसान ने चहुँओर सर्वोत्तम कर दिया. मौसम पूरे समय खुशगवार रहने लगा. न आँधी न तूफ़ान. किसान जब चाहता बारिश हो तब बारिश होती, जब वो चाहता कि धूप निकले तब धूप निकलती. सबकुछ एकदम परिपूर्ण हो गया था. चहुँओर फ़सलें भी लहलहा रही थीं.

जब फसलों को काटने की बारी आई तब किसान ने देखा कि फसलों में दाने ही नहीं हैं. किसान चकराया और दौड़ा दौड़ा भगवान के पास गया. उसने तो सबकुछ सर्वोत्तम ही किया था. और यह क्या हो गया था. उसने भगवान को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.

भगवान ने स्पष्ट किया – चूंकि सबकुछ सही था, कोई संधर्ष नहीं था, कोई जिजीविषा नहीं थी – तुमने सबकुछ सर्वोत्तम कर दिया था तो फसलें नपुंसक हो गईं. उनकी उर्वरा शक्ति खत्म हो गई. जीवन जीने के लिए संघर्ष अनिवार्य है. ये आत्मा को झकझोरते हैं और उन्हें जीवंत, पुंसत्व से भरपूर बनाते हैं.

यह दृष्टांत अमूल्य है. जब आप सदा सर्वदा खुश रहेंगे, प्रसन्न बने रहेंगे तो प्रसन्नता, खुशी अपना अर्थ गंवा देगी. यह तो ऐसा ही होगा जैसे कोई सफेद कागज पर सफेद स्याही से लिख रहा हो. कोई इसे कभी देख-पढ़ नहीं पाएगा.

खुशी को महसूस करने के लिए जीवन में दुःख जरूरी है. बेहद जरूरी.

Sameerchand
23-11-2012, 03:45 PM
कांच कि बरनी (बड़ा बर्तन ) और दो कप चाय

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे
आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल
टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने
की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...
आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे
- धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर
से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ
... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना
शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर
हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से
चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –


इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र
, स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की
गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं
भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे
पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने
बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस
गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है
... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह
नहीं बताया
कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही
रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

Sameerchand
23-11-2012, 03:45 PM
धार्मिकता और अंधभक्ति


आप धार्मिक हैं या अंधभक्त? व्यक्ति को धार्मिक तो होना चाहिए, मगर अंधभक्त नहीं.

आर्मी के एक कमांडिंग ऑफ़ीसर की यह कहानी है –

कमांडिंग ऑफ़ीसर ने अपने नए-नए रंगरूटों से पूछा कि रायफल के कुंदे में अखरोट की लकड़ी का उपयोग क्यों किया जाता है.

“क्योंकि इसमें ज्यादा प्रतिरोध क्षमता होती है” एक ने कहा.

“गलत”

“इसमें लचक ज्यादा होती है” दूसरे ने कहा.

“गलत”

“शायद इसमें दूसरी लकड़ियों की अपेक्षा ज्यादा चमक होती है” तीसरे ने अंदाजा लगाया.

“बेवकूफी की बातें मत करो.” कमांडर गुर्राया – “अखरोट की लकड़ी का प्रयोग इस लिए किया जाता है क्योंकि यह नियम-पुस्तिका में लिखा है.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:46 PM
वृद्ध रहित भूमि


एक बार एक देश में यह निर्णय लिया गया कि वृद्ध किसी काम के नहीं होते, अकसर बीमार रहते हैं, और वे अपनी उम्र जी चुके होते हैं अतः उन्हें मृत्यु दे दी जानी चाहिए। देश का राजा भी जवान था तो उसने यह आदेश देने में देरी नहीं की कि पचास वर्ष से ऊपर के उम्र के लोगों को खत्म कर दिया जाए।

और इस तरह से सभी अनुभवी, बुद्धिमान बड़े बूढ़ों से वह देश खाली हो गया. उनमें एक जवान व्यक्ति था जो अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। उसने अपने पिता को अपने घर के एक अंधेरे कोने में छुपा लिया और उसे बचा लिया।

कुछ साल के बाद उस देश में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने दाने को मोहताज हो गई। बर्फ के पिघलने का समय आ गया था, परंतु देश में बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था. सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था, अपने बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे किनारे दोनों तरफ जहाँ तक बन पड़े हल चला ले।

उस युवक ने बहुतों को इस काम के लिए कहा, परंतु किसी ने सुना, किसी ने नहीं. उसने स्वयं जितना बन पड़ा, सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में बर्फ पिघली और सड़क के किनारे किनारे जहाँ जहाँ हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए।

लोगों में यह बात चर्चा का विषय बन गई, बात राजा तक पहुँची. राजा ने उस युवक को बुलाया और पूछा कि ये आइडिया उसे आखिर आया कहाँ से? युवक ने सच्ची बात बता दी।

राजा ने उस वृद्ध को तलब किया कि उसे यह कैसे विचार आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। उस वृद्ध ने जवाब दिया कि जब लोग अपने खेतों से अनाज घर को ले जाते हैं तो बहुत सारे बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं. उन्हीं का अंकुरण हुआ है।

राजा प्रभावित हुआ और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ. राजा ने अब आदेश जारी किया कि आगे से वृद्धों को ससम्मान देश में पनाह दी जाती रहेगी।

कहावत है –

वृद्धस्य वचनम् ग्राह्यं आपात्काले ह्युपस्थिते।

जिसका अर्थ है – विपदा के समय बुजुर्गों का कहा मानना चाहिए.

Sameerchand
23-11-2012, 03:46 PM
क्या मेरा वेतन बढ़ेगा?


प्रेरक सम्मेलन (मोटिवेशन सेमिनार) से लौटकर उत्साहित प्रबंधक ने अपने एक कामगार को अपने ऑफ़िस में बुलाया और कहा – “आज के बाद से अपने काम को तुम स्वयं प्लान करोगे और नियंत्रित करोगे. इससे तुम्हारी उत्पादकता बढ़ेगी.”

“इससे क्या मेरे वेतन में बढ़ोत्तरी होगी?” कामगार ने पूछा.

“नहीं नहीं, -” प्रबंधक आगे बोला – “पैसा कहीं भी प्रेरणा देने का कारक नहीं बनता और वेतन में बढ़ोत्तरी से तुम्हें कोई संतुष्टि नहीं मिलेगी.”

“ठीक है, तो जब मेरी उत्पादकता बढ़ जाएगी तब मेरा वेतन बढ़ेगा?”

“देखो, -” प्रबंधक ने समझाया “जाहिर है कि तुम मोटिवेशन थ्योरी को नहीं समझते. इस किताब को ले जाओ और इसे अच्छी तरह से पढ़ो. इसमें सब कुछ विस्तार में समझाया गया है कि किस चीज से तुममें प्रेरक तत्व जागेंगे.”

वह आदमी बुझे मन से किताब ले कर जाने लगा. जाते जाते उसने पूछा - “यदि मैं इस किताब को अच्छी तरह से पूरा पढ़ लूं तब तो मेरा वेतन बढ़ेगा?”

Sameerchand
23-11-2012, 03:46 PM
कल्पतरू


एक बार एक आदमी घूमते-घामते स्वर्ग पहुँच गया. स्वर्ग में सुंदर नजारे देखते हुए वह बहुत देर तक घूमता रहा और अंत में थक हार कर एक वृक्ष के नीचे सो गया.

स्वर्ग में जिस वृक्ष के नीचे सोया था, वह कल्पतरू था. कल्पतरू की छांह के नीचे बैठ कर जो भी व्यक्ति जैसी कल्पना करता है, वह साकार हो जाता है.

कुछ देर बाद जब उस आदमी की आँख खुली तो उसकी थकान तो जाती रही थी, मगर उसे भूख लग आई थी. उसने सोचा कि काश यहाँ छप्पन भोग से भरी थाली खाने को मिल जाती तो आनंद आ जाता.

चूंकि वह कल्पतरू के नीचे था, तो उसकी छप्पन भोग से भरी थाली उसके कल्पना करते ही प्रकट हो गई. चूंकि उसे भूख लगी थी तो उसने झटपट उस भोजन को खा लिया. भोजन के बाद उसे प्यास लगी. उसने सोचा कि काश कितना ही अच्छा होता कि इतने शानदार भोजन के बाद एक बोतल बीयर पीने को मिल जाती. उसका यह सोचना था कि बीयर की बोतल नामालूम कहाँ से प्रकट हो गई.

उसने बीयर की बोतल खोली और गटागट पीने लगा. भूख और प्यास थोड़ी शांत हुई तो उसका दिमाग दौड़ा. यह क्या हो रहा है उसने सोचा. क्या मैं सपना देख रहा हूँ? खाना और बीयर हवा में से कैसे प्रकट हो गए? लगता है कि इस पेड़ में भूत पिशाच हैं जो मुझसे कोई खेल खेल रहे हैं. उसने सोचा.

उसका इतना सोचना था कि कल्पतरू ने उसकी यह कल्पना भी साकार कर दी. हवा में से भूत पिशाच प्रकट हो गए जो उसके साथ डरावने खेल खेलने लगे. वह आदमी डर कर सोचने लगा ये भूत प्रेत तो अब मुझे मार ही डालेंगे. मेरी मृत्यु निश्चित है.

आप समझ सकते हैं कि कल्पतरू के नीचे उसकी इस कल्पना का क्या हश्र हुआ होगा.

दरअसल हमारा दिमाग ही कल्पतरू के माफ़िक है. आप जो सोचते हैं वही होता है. सारी चीजें दो बार सृजित होती हैं. एक बार आपके दिमाग में और फिर दूसरी बार भौतिक संसार में. आज नहीं तो कल, जो आपने सोचा है, वह होकर रहेगा. बहुत बार आपकी कल्पना और चीजों के होने में इतना समय हो जाता है कि आप भूल जाते हैं कि कभी आपने इसके लिए ख्वाब भी देखे होंगे. आप अपने लिए स्वर्ग भी रचते हैं और आप अपने लिए नर्क भी रचते हैं. यदि आप स्वर्ग की सोचेंगे तो आपको स्वर्ग मिलेगा. छप्पन भोग की सोचेंगे तो छप्पन भोग मिलेगा. भूत पिशाच की सोचेंगे तो भूत पिशाच मिलेंगे.

और जब आप समझ जाते हैं कि आप अपने लिए स्वयं स्वर्ग या नर्क बुन सकते हैं तो फिर आप इस तरह की अपनी दुनिया को बनाना छोड़ सकते हैं. स्वर्ग या नर्क बनाने की जरूरत फिर किसी को नहीं होती. आप इन झंझटों से निवृत्त हो सकते हैं. मस्तिष्क की यह निवृत्ति ही मेडिटेशन (ध्यान योग) है.

Sameerchand
23-11-2012, 03:47 PM
महज सम्मान के लिए


एक पत्रकार ने एक छोटे शहर के कई व्यक्तियों से शहर के मेयर के बारे में पूछा।

"वह झूठा और धोखेबाज है" - एक व्यापारी ने कहा।

"वह घमंडी गधा है" - एक व्यापारी ने कहा।

"मैंने अपने जीवन में उसे कभी वोट नहीं दिया" - डॉक्टर ने कहा।

"उससे ज्यादा भ्रष्ट नेता मैंने आज तक नहीं देखा" - एक नाई ने कहा।

अंततः जब वह पत्रकार उस मेयर से मिला तो उसने उससे पूछा कि वह कितना वेतन प्राप्त करता है?

"अजी मैं वेतन के लिए कार्य नहीं करता"- मेयर ने कहा।

"तब आप यह कार्य क्यों करते हैं?"

"महज सम्मान के लिए।" मेयर ने उत्तर दिया।

Sameerchand
23-11-2012, 03:47 PM
तो समस्या क्या है?



नसरूद्दीन एक दुकान पर गया जहाँ तमाम तरह के औजार और स्पेयरपार्ट्स मिलते थे.
“क्या आपके पास कीलें हैं?”
“हाँ”

“और चमड़ा, बढ़िया क्वालिटी का चमड़ा”
“हाँ है”

“और जूते बांधने का फीता”
“हाँ”

“और रंग”
“वह भी है”

“तो फिर तुम जूते क्यों नहीं बनाते?”

Sameerchand
23-11-2012, 03:47 PM
मृगतृष्णा


जब महात्मा बुद्ध ने राजा प्रसेनजित की राजधानी में प्रवेश किया तो वे स्वयं उनकी आगवानी के लिए आये। वे महात्मा बुद्ध के पिता के मित्र थे एवं उन्होंने बुद्ध के संन्यास लेने के बारे में सुना था।

अतः उन्होंने बुद्ध को अपना भिक्षुक जीवन त्यागकर महल के ऐशोआराम के जीवन में लौटने के लिए मनाने का प्रयास किया। वे ऐसा अपनी मित्रता की खातिर कर रहे थे।

बुद्ध ने प्रसेनजित की आँखों में देखा और कहा, "सच बताओ। क्या समस्त आमोद-प्रमोद के बावजूद आपके साम्राज्य ने आपको एक भी दिन का सुख प्रदान किया है?"

प्रसेनजित चुप हो गए और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं।

"दुःख के किसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नहीं है;
और अपने में संतुष्ट रहने से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:48 PM
ईश दर्शन का सबसे सरल तरीका


एक विद्यार्थी ने पूछा – “सर, क्या हम भगवान को देख सकते हैं? हमें इसके लिए (भगवान के दर्शन) क्या करना होगा?”

ईश्वर के दर्शन व्यक्ति के अपने कार्यों से संभव होता है. प्राचीन काल में इसे तपस्या कहा जाता था. बालक ध्रुव ने यह अपनी पूरी विनयता और विनम्रता से हासिल किया. जब ईश्वर उनकी प्रार्थना से प्रकट नहीं हुए तब भी उन्होंने विश्वास और विनम्रता नहीं छोड़ी और अंततः ईश्वर को उन्हें दर्शन देना ही पड़ा.

विद्वान परंतु अहंकारी राजा रावण ने भी भगवान शिव के दर्शन हेतु तपस्या की. वे सफल नहीं हुए. उनकी तपस्या में विनम्रता नहीं थी, बल्कि घमंड भरा था. क्रोध से उन्होंने भगवान से पूछा कि उनकी तपस्या में क्या कमी थी.

और, जब भगवान शिव ने रावण को दर्शन नहीं दिए तो अंततः उसने अपने सिर को एक-एक कर काट कर बलिदान देना प्रारंभ कर दिया. इसे देख भगवान शिव भी पिघल गए और प्रकट हो गए.

कर्नाटक में मैंगलोर और मणिपाल के पास एक छोटा सा शहर है उडिपि (जहाँ कुछ समय के लिए आदि शंकराचार्य ने निवास किया था और जहाँ से दुनिया को डोसा बनाने की कला मिली). वहाँ पर कनकदास नामक एक प्रसिद्ध मंदिर है. कहानी यह है कि प्राचीन काल में कनकदास नामक एक शूद्र वहाँ रहता था जिसे कृष्ण मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी. वह नित्य ही मंदिर के पीछे जाकर जाली से कृष्ण भगवान की मूर्ति का दर्शन पीछे से करता था.

एक दिन भगवान की मूर्ति 180 अंश के कोण में घूम गई और अपने भक्त को उसने दर्शन दे दिया! आज भी वह मूर्ति मंदिर में इसी रूप में विद्यमान है! कनकदास की भक्ति और समर्पण से उसे ईश्वर दर्शन हुआ.

सवाल यह है कि इस घोर कलियुग में आखिर क्या किया जाए कि ईश्वर का आशीर्वाद मिले? क्या कोई तरीका है जिससे भगवान के दर्शन हों? इन प्रश्नों के अपने हिसाब से हर एक के कई उत्तर हो सकते हैं परंतु एक बेहद आसान, मितव्ययी, सुनिश्चित तरीका यह है (क्या इसे आधुनिक कलियुग में फैशनेबुल विधियों में से एक नहीं माना जाना चाहिए?) कि आप अपने माता-पिता व बुजुर्गों का खयाल रखें. आपके अभिभावक ईश्वर के जीवित स्वरूप हैं और उनका ध्यान रखना ही ईश्वर दर्शन का आसान और सुनिश्चित तरीका है.

Sameerchand
23-11-2012, 03:48 PM
नदी का पानी बिकाऊ


गुरू जी के प्रवचन में एक गूढ़ वाक्य शामिल था।

कटु मुस्कराहट के साथ वे बोले, "नदी के तट पर बैठकर नदी का पानी बेचना ही मेरा कार्य है"।

और मैं पानी खरीदने में इतना व्यस्त था कि मैं नदी को देख ही नहीं पाया।

"हम जीवन की समस्याओं और आपाधापी के कारण प्रायः सत्य को नहीं पहचान पाते।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:48 PM
छुट्टन के तीन किलो


छुट्टन पटसन तौल-2 कर ढेरी बना रहा था. उधर से एक बौद्ध गुजरा. उसने छुट्टन से पूछा “तुम जिंदगी भर पटसन तौलते रहोगे – तुम्हें मालूम है, बुद्ध कौन था?”

छुट्टन ने बताया – “नहीं, पर यह खूब पता है कि पटसन का यह गुच्छा तीन किलो का है.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:49 PM
सीमित शब्द


एक बार एक गुरुकुल के कुछ छात्र लाओ त्जू की इस सूक्ति पर विचार-विमर्श कर रहे थे -

"जिन्हें मालूम है, वे कहते नहीं,
जो कहते हैं उन्हें मालूम नहीं."


इस सूक्ति का सटीक अर्थ जब उनमें से कोई नहीं बता पाया तो वे इसका अर्थ जानने अपने गुरू के पास पहुँचे.


गुरु ने पूछा - "तुममें से कितने लोग गुलाब की खुशबू के बारे में जानते हो"


सभी शिष्यों ने सहमति में सर हिलाया.


यदि तुम सबको यह मालूम है तो मुझे इसे शब्दों में समझाओ.


सबके सब चुप थे क्योंकि वे इसे शब्दों में कह नहीं सकते थे...!!

Sameerchand
23-11-2012, 03:49 PM
नकल ही करनी है तो बाघ की करो, लोमड़ी की नहीं।


अरब के शेख सादी की एक दंतकथा इस प्रकार है -

जंगल से गुजरते हुए एक आदमी ने ऐसी लोमड़ी को देखा जिसके पैर टूट चुके थे और वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही थी। उसने सोचा कि आखिर वह अपना गुजारा कैसे करेगी। तभी उसने देखा कि एक बाघ अपने मुँह में शिकार को दबाये हुए वहाँ आया। पेटभर खाने के बाद वह बचाखुचा शिकार लोमड़ी के लिए छोड़कर चला गया।

अगले दिन भी ईश्वर ने बाघ को लोमड़ी के लिए भोजन के साथ वहाँ भेज दिया। वह आदमी ईश्वर की महानता के बारे में सोचकर आश्चर्यचकित हो गया और उसने यह निर्णय लिया कि वह बिना कुछ एक कोने में पड़ा रहेगा और ईश्वर उसका भरण-पोषण करेंगे।

अगले एक माह तक वह ऐसा ही करता रहा और जब वह मृत्युशय्या पर पहुंच गया तब उसे एक आवाज़ सुनायी दी - "मेरे बच्चे! तुम गलत राह पर हो। सत्य को पहचानो। नकल ही करनी है तो बाघ की करो, लोमड़ी की नहीं।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:50 PM
"हिम्मत मत हारो"



एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखे, आपके जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी आप पर गिरेगी। जैसे कि ,आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा ,कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में आपको हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

Sameerchand
23-11-2012, 03:50 PM
चिड़िया ने दिया क़ीमती सबक़


किसान ने एक दिन छोटी-सी चिड़िया पकड़ ली। वह इतनी छोटी थी कि किसान की एक मुट्ठी में दो चिड़ियां समा सकती थीं। किसान कहने लगा कि वह उसे पकाकर खा जाएगा। चिड़िया बोली, ‘कृपा करके मुझे छोड़ दो। वैसे भी मैं इतनी छोटी हूं कि तुम्हारे एक कौर के बराबर भी नहीं होऊंगी।’

किसान ने जवाब दिया, ‘लेकिन तुम्हारा मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। और हां, मैंने कहावत सुनी है कि कुछ नहीं से कुछ भी होना बेहतर है।’ उसकी बात सुनकर चिड़िया बोली, ‘अगर मैं तुम्हें ऐसा मोती देने का वादा करूं, जो शुतुरमुर्ग के अंडे से भी बड़ा हो, तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?’ उसकी बात सुनकर किसान बहुत ख़ुश हो गया और तत्काल उसने मुट्ठी खोलकर उसे उड़ा दिया।

चिड़िया आज़ाद होते ही कुछ दूर पर एक पेड़ की थोड़ी ऊंची डाल पर जा बैठी, जहां तक किसान का हाथ नहीं पहुंच पाता था। किसान ने उसे बैठा देखकर बड़ी बेसब्री से कहा, ‘जाओ, जल्दी जाओ, मेरे लिए वह मोती लेकर आओ।’ चिड़िया हंसकर बोली, ‘वह मोती तो मुझसे भी बड़ा है, मैं उसे कैसे ला सकती हूं?’ किसान ने ग़ुस्से और खीझ से कहा, ‘तुम्हें लाना ही पड़ेगा, तुमने वादा किया है।’

चिड़िया वहीं बैठी रही। उसने जवाब दिया, ‘मैंने तुमसे कोई वादा नहीं किया था। मैंने सिर्फ़ यही कहा था कि अगर मैं ऐसा वादा करूं, तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे। और इतना सुनते ही तुम लालच में अंधे हो गए थे। ’ उसकी बात सुनकर किसान हाथ मलने लगा। चिड़िया बोली, ‘लेकिन दुखी मत हो, मैंने आज तुम्हें वह पाठ पढ़ाया है, जो ऐसे हर मोतियों से ज्यादा क़ीमती है। हमेशा कुछ भी करने से पहले सोच-विचार करो।’

Sameerchand
23-11-2012, 03:51 PM
वास्तविकता – प्रश्न एक उत्तर अनेक



वास्तविकता का बोध मस्तिष्क के स्तर और व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है. कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –

1 व्यास ने चार्वाक से पूछा – चार्वाक! क्या कभी तुमने यह अनुभव किया है कि तुम कहाँ से आए हो, कहाँ तुम्हें जाना है और इस जीवन का उद्देश्य क्या है?

चार्वाक का उत्तर था – मैं अपने चाचा जी के घर से आया हूँ, और बाजार जा रहा हूँ. मेरा उद्देश्य है अच्छी सी ताजी मछली खरीदना.


2 यही प्रश्न नारायण ने सुरेश से पूछा. सुरेश का उत्तर था:

मैं अपने अभिभावकों से इस जगत् में आया हूँ. भाग्य जहाँ ले जाएगा, वहाँ मुझे जाना है. जो मुझे मिला है उससे अधिक इस संसार को अर्पित करूं यह मेरे जीवन का उद्देश्य है.

3 और जब यही बात गोविंदप्पा ने शंकर से पूछा तो शंकर जा जवाब था – मैं संपूर्णता से आया हूँ और संपूर्णता में ही वापस लौटना है. और जीवन की इस यात्रा में पग-दर-पग संपूर्णता को महसूस करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है.

4 बुद्ध के प्रश्न पर महाकश्शप का प्रत्युत्तर था – मैं शून्य से आया हूँ, शून्य में मुझे जाना है और मेरे जीवन का उद्देश्य भी शून्य ही है.

अष्टावक्र ने जनक से जब यही प्रश्न पूछा तो जनक ने जवाब दिया – मैं न तो आया हूँ, न कहीं जाऊंगा. और न ही कोई उद्देश्य है.

6 कृष्ण मुस्कुराए, और कुछ नहीं पूछे. भीष्म मुस्कुराए और कोई जवाब नहीं दिए.
सत्य के बोध के लिए हर एक का दृष्टकोण अलग होता है.

Sameerchand
23-11-2012, 03:51 PM
जीवन को किसने समझा


“पथ क्या है?”

“दैनंदिनी जीवन ही पथ है.”

“क्या इसे समझा जा सकता है?”

“यदि आप इसे समझने की जितनी कोशिश करेंगे, तो आप इससे उतना ही दूर जाते जाएंगे.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:51 PM
ऐसी कितनी चीजें हैं जिनके बिना मेरा जीवन आराम से कट रहा है


सुकरात का ऐसा मानना था कि बुद्धिमान लोग सहज रूप से मितव्ययी जीवन व्यतीत करते हैं।

यद्यपि वे स्वयं जूते नहीं खरीदते थे पर प्रायः बाजार में जाकर दुकानों में सजाकर रखे गए जूते व अन्य चीजों को देखना पसंद करते थे।

जब उनके एक मित्र ने इसका कारण पूछा तो वे बोले - "मैं वहां जाना इसलिये पसंद करता हूं ताकि मैं यह जान सकूं कि ऐसी कितनी चीजें हैं जिनके बिना मेरा जीवन आराम से कट रहा है। "

Sameerchand
23-11-2012, 03:52 PM
शेर और डॉल्फिन


समुद्र के तट पर चहलकदमी करते हुए शेर ने एक डॉल्फिन को लहरों के साथ अठखेलियाँ करते हुए देखा। उसने डॉल्फिन से कहा कि वे दोनों अच्छे मित्र बन सकते हैं।

"मैं जंगल का राजा हूँ और सागर पर तुम्हारा निर्विवाद राज है। यदि संभव हो तो हम दोनों एक अच्छा मित्रतापूर्ण गठजोड़ कर सकते हैं।"

डॉल्फिन ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उनकी मित्रता होने के कुछ ही दिनों बाद शेर की भिडंत जंगली भैंसे से हो गयी। उसने डॉल्फिन को मदद के लिए पुकारा। डॉल्फिन भी शेर की मदद करना चाहती थी परंतु वह चाहकर भी समुद्र के बाहर नहीं जा सकती थी। शेर ने डॉल्फिन को धोखेबाज करार दिया।

डॉल्फिन ने कहा - "मुझे दोष मत दो। प्रकृति को दोष दो। भले ही मैं समुद्र में कितनी भी ताकतवर हूँ, पर मेरी प्रकृति मुझे समुद्र के बाहर जाने से रोकती है।"

"ऐसे मित्र का चुनाव करना चाहिए जो न सिर्फ आपकी मदद करने का इच्छुक हो

बल्कि ऐसा करने में सक्षम भी हो।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:52 PM
मैं कैसे बताऊँ...


नसरूद्दीन एक बार एक किचन गार्डन में दीवार फांद कर घुस गया और अपने साथ लाए बोरे में आराम से जी भर कर जो भी मिला सब फल सब्जी तोड़ कर भरने लगा.

इतने में माली ने उसे देखा और दौड़ता हुआ आया और चिल्लाया –

“ये तुम क्या कर रहे हो?”

“मैं चक्रवात में फंसकर उड़ गया था और यहाँ टपक पड़ा”

“और ये सब्जियाँ किसने तोड़ीं?”

“तूफ़ान में उड़ने से बचने के लिए मैंने इन सब्जियों को पकड़ लिया था तो ये टूट गईं.”

“अच्छा, तो वो बोरे में भरी सब्जियाँ क्या हैं?”

“मैं भी तो यही सोच रहा था जब तुमने मेरा ध्यान अभी खींचा.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:53 PM
मित्र बनाओ और तबाह करो


सिविल वॉर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति लिंकन दक्षिणी इलाके में रहने वाले व्यक्तियों को शत्रु कहने के बजाए गुमराह व्यक्ति कहकर संबोधित किया करते थे।

एक बुजुर्ग एवं उग्र देशभक्ति महिला ने लिंकन को यह कहते हुए फटकार लगायी कि वे अपने शत्रु को तबाह करने के बजाए उनके प्रति नरम रवैया अपना रहे हैं।

लिंकन ने उस महिला को उत्तर दिया - "ऐसा आप कैसे कह सकती हैं मैंडम! क्या मैं अपने शत्रुओं को उस समय तबाह नहीं करता, जब मैं उन्हें अपना मित्र बना लेता हूँ।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:53 PM
मुझ पर भरोसा है या गधे पर?


एक बार एक किसान मुल्ला के पास आया और उसका गधा दोपहर के लिए उधार मांगा ताकि वो अपने खेत पर कुछ सामान ढो सके.

मुल्ला ने जवाब दिया - “मेरे मित्र, मैं हमेशा तुम्हें खेतों में काम करते देखता हूँ, और खुश होता हूं. तुम फसलें पैदा करते हो और हम सब उसका उपयोग करते हैं, यह वास्तविक समाज सेवा है. मेरा दिल भी तुम्हारी सहायता करने को सदैव तत्पर रहता है. मैं हमेशा ख्वाब देखा करता था कि मेरा गधा तुम्हारे खेतों में उगाए गए फसलों को प्रेम पूर्वक ढो रहा है. आज तुम मुझसे गधा उधार मांग रहे हो यह मेरे लिए बेहद खुशी की बात है. मगर क्या करूं, मेरा गधा आज मेरे पास नहीं है. मैंने आज अपना गधा किसी और को उधार दे रखा है.”

“ओ मुल्ला, कोई बात नहीं. मैं कोई अन्य व्यवस्था कर लूंगा. और मुझे तुम्हारे इन दयालु शब्दों और मेरे प्रति आपकी भावना से मुझे बेहद प्रसन्नता हुई. आपको बहुत बहुत धन्यवाद” किसान ने कहा और वापस जाने लगा.

इस बीच घर के पिछवाड़े से मुल्ला के गधे के रेंकने की आवाज आई. किसान रुक गया. उसने मुल्ला की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा और कहा – “मुल्ला तुम तो कहते थे कि तुमने गधा किसी और को दे दिया है, पर वो तो पीछे बंधा हुआ है.”

“अजीब आदमी हो तुम भी! तुम्हें मेरी बात पर यकीन होना चाहिए कि गधे के रेंकने पर?” मुल्ला ने किसान से पूछा!

Sameerchand
23-11-2012, 03:53 PM
काना सांभर


एक काना सांभर समुद्र के किनारे घास चर रहा था। अपने आपको किसी संभावित हमले से बचाने के लिए वह अपनी नज़र हमेशा ज़मीन की ओर रखता था जबकि अपनी कानी आँख समुद्र की ओर रखता था क्योंकि उसे समुद्र की ओर से किसी हमले की आशंका नहीं थी।

एक दिन कुछ नाविक उस ओर आए। जब उन्होंने सांभर को चरते हुए देखा तो आराम से उस पर निशाना साधकर अपना शिकार बना लिया।

अंतिम आंहें भरते हुए सांभर बोला - "मैं भी कितना अभागा हूँ। मैंने अपना सारा ध्यान ज़मीन की ओर लगा रखा था जबकि समुद्र की ओर से मैं आश्वस्त था। पर अंत में शत्रु ने उसी ओर से हमला किया।"


"खतरा प्रायः उसी ओर से दस्तक देता है

जिस ओर से आपने अपेक्षा न की हो।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:54 PM
समर्पण और खुशहाली


एक बार एक राजा ज्ञान प्राप्ति के लिए एक प्रसिद्ध मठ पर गया. मठ में गुरु के अलावा बाकी सभी राजा को देख कर अति उत्साहित थे.

राजा ने मठाधीश से अपने आने का मंतव्य बताया और कहा – गुरूदेव, मैं आपके ज्ञान व प्रसिद्ध मठ से बेहद प्रभावित हूँ, और मैं अपने राज्य में अपने शासन से खुशहाली लाना चाहता हूँ. कृपया कुछ दिशा दर्शन करें.

गुरुदेव ने कहा –अच्छी बात है, मगर खुशहाली शासन व नियंत्रण से नहीं आती है, बल्कि सभी के अपने कार्यों के प्रति समर्पण से प्राप्त होती है.

"अपने कार्य के प्रति समर्पण का भाव पैदा करें, खुशहाली, प्रगति स्वयमेव प्राप्त होगी"

Sameerchand
23-11-2012, 03:54 PM
विजिटिंग कार्ड


चीनी के मैजी साम्राज्य काल में कैचू नामक चीनी ज़ैन विद्या के एक गुरू हुआ करते थे। वे क्योटो के एक किले में रहते थे। एक दिन क्योटो प्रांत के गर्वनर पहली बार उनसे मिलने आये।

उन्होंने गुरूजी के शिष्य को अपना विज़िटंग कार्ड दिया जो शिष्य ने गुरूजी के समक्ष प्रस्तुत किया, जिस पर लिखा था “किटागाकी, गवर्नर ऑफ क्योटो”

कार्ड को पढ़कर गुरूजी बोले - “मझे ऐसे किसी आदमी से नहीं मिलना। उससे कहो कि यहां से चला जाये।”

इसके बाद शिष्य ने अफसोस जताते हुये वह विजिटिंग कार्ड गवर्नर को वापस कर दिया।

गर्वनर ने बात समझते हुए कहा - “दरअसल मुझसे ही गलती हो गयी है।”यह कहकर उन्होंने “गवर्नर ऑफ क्योटो” शब्द काट दिये और पुनः वह कार्ड देते हुए कहा - “एक बार गुरूजी से फिर पूछ लो।”

जब गुरूजी ने पुनः वह कार्ड देखा तो तत्परता से बोले - “अच्छा! किटागाकी आया है। उसे तुरंत बुलाओ, मैं उससे मिलना चाहता हूँ।

Sameerchand
23-11-2012, 03:54 PM
सबसे महत्त्वपूर्ण काम, व्यक्ति एवं समय


एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा - "सबसे महत्तपूर्ण काम क्या है? सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन है तथा हमारे जीवन का सबसे बेहतरीन समय कौनसा है?

गुरूजी ने उत्तर दिया - "इस समय तुम्हारे पास जो काम है, वही सबसे महत्त्वपूर्ण है। वह व्यक्ति जिसके साथ तुम काम कर रहे हो (या जिसके लिये तुम काम कर रहे हो, जैसे - अध्यापक के लिये छात्र, चिकित्सक के लिये मरीज......) सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है तथा यह समय (वर्तमान) ही सबसे महत्वपूर्ण समय है। इसे व्यर्थ न जाने दो।"

Sameerchand
23-11-2012, 03:55 PM
मिट्टी का या सोने का?


कालिदास से एक बार राजा ने पूछा – कालिदास, ईश्वर ने आपको बुद्धि तो भरपूर दी है, मगर रूप-रंग देने में भी यदि ऐसी ही उदारता वे बरतते तो बात ही कुछ और होती.

कालिदास ने राजा के व्यंग्यात्मक लहजे को पहचान लिया. कालिदास ने कुछ नहीं कहा, परंतु सेवक को पानी से भरे एक जैसे दो पात्र लाने को कहा – एक सोने का एक मिट्टी का.

दोनों पात्र लाए गए. गर्मियों के दिन थे. कालिदास ने राजा से पूछा – राजन्! क्या आप बता सकते हैं कि इनमें से किस पात्र का पानी पीने के लिए उत्तम है?

राजा ने छूटते ही उत्तर दिया – यह तो सीधी सी बात है, मिट्टी का. और फिर तुरंत उन्हें अहसास हुआ कि कालिदास क्या कहना चाहते हैं!

"बाह्य रूपरंग सरसरी तौर पर लुभावना लग सकता है, मगर असली सुंदरता तो आंतरिक होती है. मिट्टी का घड़ा आपकी (वास्तविक) प्यास बुझा सकता है, सोने का घड़ा नहीं!"

Sameerchand
23-11-2012, 03:55 PM
शहर के दरवाजे और जुबान पर ताले


एक समय एक राजा राज्य करता था जिसकी बुद्धिमत्ता, चातुर्य और राज्य कौशल चतुर्दिक प्रसिद्धि के शिखर पर था. राज्य धन्य-धान्य से परिपूर्ण था और चहुँओर खुशहाली का साम्राज्य था.

राजा का वजीर एक बार राज्य भ्रमण पर निकला. यात्रा से वापस आकर उन्होंने राजा से कहा – राजन्! आपकी प्रसिद्धि चतुर्दिक है, दुनिया के तमाम अन्य राजा महाराजा आपकी बुद्धिमत्ता और राज्य कौशलता का लोहा मानते हैं, और चहुँओर लोग आपकी तारीफ करते हैं. राज्य भी धन्यधान्य से परिपूर्ण और खुशहाल है. मगर फिर भी कुछ लोग मुझे ऐसे मिले जो आपकी बुराई करते हैं, आपके बारे में फूहड़ चुटकुले सुनाते हैं और आपके बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णयों की खिल्ली उड़ाते हैं. ऐसा कैसे है राजन्?

राजा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया – राज्य की तमाम जनता को मालूम है कि राजा उनके लिए क्या करता है. रहा सवाल जबान का, तो मैं राज्य के बाहरी रास्तों पर बने हुए दरवाजों को तो बंद कर उन पर ताले लगवा सकता हूँ, मगर मनुष्य की जुबान पर नहीं. और उनकी ये जुबानें मुझे सदैव उत्तम कार्य करते रहने को प्रेरित करती रहती हैं कि शायद कभी उनकी जुबान बदल जाएँ.

Sameerchand
23-11-2012, 03:55 PM
लीला

एक गुरू जी अपने शिष्यों को हिंदू मान्यताओं को समझाते हुये बोले - "सारा जगत प्रभु की लीला है, यानि यह संसार एक खेल है और यह ब्रहांड खेलकूद का मैदान है। आध्यात्म का लक्ष्य जीवन को एक खेल बनाना है। "

एक शुद्धतावादी पर्यटक को उनकी बातें निरर्थक लगीं। वह बोला - " तो क्या कर्म का कोई महत्त्व नहीं है ?"

गुरू जी उत्तर दिया - "जरूर है। लेकिन कोई कार्य तब आध्यात्मिक हो जाता है जब इसे खेल की तरह किया जाये। "

Sameerchand
23-11-2012, 03:55 PM
नमक की सही कीमत


एक बार एक सुल्तान अपने लाव-लश्कर के साथ यात्रा पर था. यात्रा लंबी, कई दिनों की थी, और एक बार बीच पड़ाव में रसोई का नमक खत्म हो गया.

रसोइये ने सुल्तान से फरियाद की कि उसके भंडार का नमक खत्म हो गया है. सुल्तान ने तुरंत अपने अपने एक सिपाही को बुलाया और पास के गांव के किराना दुकान से शीघ्र ही नमक लेकर आने को कहा. साथ ही सुल्तान ने सिपाही को रुपए देते हुए कहा कि नमक की वाजिब कीमत देकर ही लाना.

सिपाही की प्रश्न-वाचक निगाहों को सुल्तान ताड़ गया. सुल्तान ने स्पष्ट किया – “तुम सुल्तान के सिपाही, चाहो तो सुल्तान के नाम पर मुफ़्त नमक ला सकते हो या फिर पैसा तो तुम्हारी जेब का नहीं, राजकोष का है ऐसा सोचकर अनाप-शनाप भाव से नमक ला सकते हो. मगर दोनों ही परिस्थिति में तुम गलत कार्य करोगे.

जरा जरा सी बातें ही हमें बहुत कुछ सिखाती हैं. बूंद-बूंद से घट भरता है. आज तुम नमक की तुच्छ सी कीमत सही-सही अदा नहीं करोगे तो भविष्य में बड़े बड़े सौदे में सही कीमत कैसे लगाओगे? इसीलिए जाओ और सही कीमत देकर ही नमक लाओ.”

Sameerchand
23-11-2012, 03:56 PM
अपने भाग्यविधाता बनो


एक दिन नसरुद्दीन अपने गाँव में टहल रहा था। तभी उसके कुछ पड़ोसी पास आकर बोले - "नसरुद्दीन। तुम बहुत बुद्धिमान और नेक इंसान हो। हम लोगों को अपना चेला बना लो। तुम हमें यह समझाओ कि हम किस तरह अपना जीवन व्यतीत करें और जीवन में सुख और शांति के लिए हमें क्या करना चाहिये?"

नसरुद्दीन ने कहा - "ठीक है। मैं तुम्हें पहला शिक्षा अभी दिए देता हूँ। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तुम अपने पैरों और चप्पलों का विशेष ध्यान रखो। उन्हें हर समय साफ और स्वच्छ रखो। "

पड़ोसी उसकी बात को ध्यान से सुन रहे थे, तभी उनका ध्यान नसरुद्दीन के पैरों की ओर गया जो बहुत मैले-कुचैले थे तथा उसकी चप्पलें भी टूटी-फूटी थीं।

एक पड़ोसी तपाक से बोला - "लेकिन नसरुद्दीन, तुम्हारे पैर तो बहुत ही गंदे हैं और चप्पलों का तो कहना ही क्या। जिन बातों का तुम खुद ही पालन नहीं कर रहे हो, उनका पालन हम कैसे कर सकते हैं ?"

नसरुद्दीन - "तो मैं भी यह जानने के लिए इधर-उधर नहीं भटकता कि मुझे अपना जीवन कैसे बिताना चाहिये?"

Sameerchand
23-11-2012, 03:56 PM
अगर आजादी चाहते हो तो पहले मरना सीखो


एक गांव में एक आदमी अपने प्रिय तोते के साथ रहता था.

एक बार जब वह आदमी किसी काम से दूसरे गांव जा रहा था, तो उसके तोते ने उससे कहा – “मालिक, जहाँ आप जा रहे हैं वहाँ मेरा गुरु-तोता रहता है. उसके लिए मेरा एक संदेश ले जाएंगे?”

“क्यों नहीं!” – उस आदमी ने जवाब दिया.

“मेरा संदेश है,” तोते ने कहा - “आजाद हवाओं में सांस लेने वालों के नाम एक बंदी तोते का सलाम.”

वह आदमी दूसरे गांव पहुँचा और वहाँ उस गुरु-तोते को अपने प्रिय तोते का संदेश बताया. संदेश सुनकर गुरु-तोता तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया.

जब वह आदमी अपना काम समाप्त कर वापस घर आया तो उस तोते ने पूछा कि क्या उसका संदेश गुरु-तोते तक पहुँच गया था.

आदमी ने तोते को पूरी कहानी बताई कि कैसे उसका संदेश सुनकर उसका गुरु-तोता तत्काल मर गया था.

यह बात सुनकर वह तोता भी तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया.

उस आदमी ने बुझे मन से तोते को पिंजरे से बाहर निकाला और उसका दाह-संस्कार करने के लिए ले जाने लगा. जैसे ही उस आदमी का ध्यान थोड़ा भंग हुआ, वह तोता तुरंत उड़ गया और जाते जाते उसने अपने मालिक को बताया – “मेरे गुरु-तोते ने मुझे संदेश भेजा था कि अगर आजादी चाहते हो तो पहले मरना सीखो!”

Sameerchand
23-11-2012, 03:57 PM
कोयल , पंख और कीड़े


एक जंगल में एक कोयल अपने सुर में गा रही थी। तभी एक किसान वहाँ से एक बक्सा लेकर गुजरा जिसमें कीड़े भरे हुये थे। कोयल ने गाना छोड़ दिया और उसने किसान से पूछा - "इस बक्से में क्या है और तुम कहाँ जा रहे हो?'

किसान ने उत्तर दिया कि बक्से में कीड़े भरे हुये हैं जिन्हें वह पंख के बदले शहर में बेचने जा रहा है। यह सुनकर कोयल ने कहा - "मेरे पास बहुत से पंख हैं जिनमें से एक पंख तोड़कर मैं आपको दे सकती हूँ। इससे मेरा बहुत समय बच जाएगा और आपका भी।'

किसान ने कोयल को कुछ कीड़े निकालकर दिए जिसके बदले में कोयल ने अपना एक पंख तोड़कर दिया। अगले दिन भी यही हुआ। फिर ऐसा रोज ही होने लगा। एक दिन ऐसा भी आया जब कोयल के सभी पंख समाप्त हो गए।

सभी पंख समाप्त हो जाने के कारण कोयल उड़ने में असमर्थ हो गयी और कीड़े पकड़कर खाने लायक भी नहीं बची। वह बदसूरत दिखने लगी, उसने गाना बंद कर दिया और जल्द ही भूख से मर गयी।

"भोजन प्राप्त करने का जो आसान मार्ग कोयल ने चुना,

वही मार्ग अंततः सबसे कठिन साबित हुआ।'

Sameerchand
23-11-2012, 03:57 PM
सभी तीर निशाने पर


एक बार एक राजा एक छोटे से शहर की यात्रा पर था. वहाँ उसने आश्चर्य से देखा कि पेड़ों के तनों पर, घरों की दीवारों पर तीर बिंधे हुए हैं और हर तीर ठीक निशान के बीचों बीच है. उसने ऐसे विलक्षण धनुर्धर से मिलना चाहा. राजा ने उस धनुर्धर को बुलाया और पूछा कि वह हर बार इस तरह का सटीक निशाना कैसे लगा लेता है.

उस धनुर्धर ने स्पष्ट किया – बहुत आसानी से श्रीमान्. मैं पहले तीर चलाता हूँ, फिर जहाँ तीर लगता है उसके चारों ओर निशान बना देता हूँ.

“हम अपनी धारणा पहले बना लेते हैं, वस्तुस्थिति जानने की कोशिश बाद में करते हैं. हम देखते हैं तो इस लिए नहीं कि कुछ नया देखें, बल्कि अपने विचारों को पुख्ता करने वाली चीजों को ढूंढने के लिए.

और, हम वाद-विवाद करते हैं तो सत्य का पता लगाने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ अपनी धारणा को ऐन-कैन-प्रकारेण पुख्ता बनाने के लिए!”

Sameerchand
25-11-2012, 07:13 AM
दृष्टि रावण सी या विभीषण सी?


युद्ध में पराजित रावण मृत्यु शैय्या पर पड़े अंतिम सांस गिन रहे थे. राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा कि रावण प्रकाण्ड विद्वान है, अतः उससे कुछ ज्ञान प्राप्त कर आओ.

लक्ष्मण रावण के पास गए और अपनी इच्छा का इजहार किया. रावण ने लक्ष्मण को बहुत सी ज्ञान की, राजनीति की और लोकाचार की बातें बताई. तब लक्ष्मण ने रावण से पूछा - आप तो प्रकाण्ड विद्वान हैं, शिष्टाचार की बातें बता रहे हैं, मगर फिर भी आपने सीता माँ का अपहरण क्यों किया?

रावण ने बिना किसी पश्चाताप के कहा – मैं राक्षस कुल में पैदा हुआ और इस तरह की बातें अपने रोजमर्रा जीवन में देखता था. इसीलिए मैंने भी यह कार्य कर डाला.

लक्ष्मण को अचरज हुआ. विभीषण भी तो उसका भाई था, जो उसके विपरीत आचरण वाला था. वह सीधे विभीषण के पास गया और पूछा – आप राक्षस कुल में पैदा हुए, रोजमर्रा जीवन में राक्षसी कर्म को आपने देखा फिर भी आपके मन में दैवत्व कहाँ से आ गया?

विभीषण ने जवाब दिया – यह सही है कि मैं राक्षस कुल में पैदा हुआ, मगर प्रारंभ से ही मैं इस तरह के राक्षसी कर्म और अन्याय को नापसन्द करता था और मैंने प्रण किया था कि ऐसे काम मैं कभी नहीं करूंगा तथा लोगों को भी ऐसे कार्य करने से भरसक मना करूंगा.


"परिस्थितियाँ बेशक महत्वपूर्ण हो सकती हैं, मगर ये आपको अलग तरीके से सोचने के लिए रोक नहीं सकतीं. थिंक डिफ़रेंटली!"

Sameerchand
25-11-2012, 07:14 AM
इच्छा

एक विद्यार्थी था. उसे विविध विषयों पर ज्ञान की प्राप्ति का बड़ा शौक था. उसने प्रकाण्ड विद्वान सुकरात का नाम सुन रखा था. ज्ञान की लालसा में एक दिन अंततः वह सुकरात के पास पहुँच ही गया और सुकरात से पूछा कि वह भी किस तरह से सुकरात की तरह प्रकाण्ड पंडित बन सकता है.

सुकरात बहुत कम बात करते थे. विद्यार्थी को यह बात बोलकर बताने के बजाए उसे वे समुद्र तट पर ले गए. जब किसी बात को सिद्ध करना होता था तब सुकरात इसी तरह की विचित्र किस्म की विधियाँ अपनाते थे. समुद्र तट पर पहुँच कर वे बिना अपने कपड़े उतारे समुद्र के पानी में उतर गए.

विद्यार्थी ने समझा कि यह भी ज्ञान प्राप्ति का कोई तरीका है, अतः वह भी सुकरात के पीछे पीछे कपड़ों सहित समुद्र के गहरे पानी में उतर पड़ा. अब सुकरात पलटे और विद्यार्थी के सिर को पानी में बलपूर्वक डुबा दिया. विद्यार्थी को लगा कि यह कुछ बपतिस्मा जैसा करिश्मा हो जिसमें ज्ञान स्वयमेव प्राप्त हो जाता हो. उसने प्रसन्नता पूर्वक अपना सिर पानी में डाल लिया. परंतु एकाध मिनट बाद जब उस विद्यार्थी को सांस लेने में समस्या हुई तो उसने अपना पूरा जोर लगाकर सुकरात का हाथ हटाया और अपना सिर पानी से बाहर कर लिया.

हाँफते हुए और गुस्से से उसने सुकरात से कहा – ये क्या कर रहे थे आप? आपने तो मुझे मार ही डाला था!

जवाब में सुकरात ने विनम्रता पूर्वक विद्यार्थी से पूछा – जब तुम्हारा सिर पानी के भीतर था तो सबसे ज्यादा जरूरी वह क्या चीज थी जो तुम चाहते थे?

विद्यार्थी ने उसी गुस्से में कहा – सांस लेना चाहता था और क्या!

सुकरात ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – जिस बदहवासी से तुम पानी के भीतर सांस लेने के लिए जीवटता दिखा रहे थे, वैसी ही जीवटता जिस दिन तुम ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने भीतर पैदा कर लोगे, तो समझना कि तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है.


"इच्छा सभी करते हैं, सवाल जीवटता पैदा करने का है."

Sameerchand
25-11-2012, 07:14 AM
ज्यूपिटर, नेप्च्यून, मिनर्वा और मोमस

एक कथा के अनुसार स्वर्ग में ज्यूपिटर(बृहस्पति) , नेप्च्यून(वरुण) और मिनर्वा(ग्रीक मान्यता के अनुसार कला और ज्ञान की देवी) में यह शर्त लग गयी कि उनमें से कौन इस संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु बना सकता है। मोमस भी स्वर्ग में रहने वाले एक देवता थे। उन्हें इस प्रतियोगिता का निर्णायक बनाया गया।

ज्यूपिटर ने इंसान, मिनर्वा ने घर और नेप्च्यून ने सांड को बनाया। निर्णायक की सीट पर बैठे मोमस ने सभी रचनाओं में दोष निकालने शुरू कर दिये। सबसे पहले उसने सांड में यह दोष निकाला कि उसके सींग आँखों के नीचे नहीं हैं जिससे वह उन्हें देख नहीं पाता।

फिर उसने इंसान में यह दोष ढूंढा कि उसकी छाती में कोई खिड़की नहीं है जिससे उसके मन के विचार और भावनायें दिखायी नहीं देतीं है।

अंत में उसने घर में दोष निकाला कि इसमें पहिए नहीं लगे हैं। पहिए न होने के कारण उसके निवासी उसे बुरे पड़ोसियों से दूर नहीं ले जा सकते।

जैसे ही मोमस ने अपना निर्णय समाप्त किया, ज्यूपिटर ने उसे स्वर्ग से बाहर का रास्ता दिखा दिया और कहा कि किसी भी रचना में दोष निकालना बहुत आसान है। उसे दूसरों की रचना में तब तक दोष निकालने का हक़ नहीं है, जब तक वह स्वयं कोई अनूठी रचना न करे।


"किसी दूसरे की रचना में दोष निकाना सबसे आसान काम है।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:14 AM
हवा और सूरज


एक दिन हवा और सूरज में इस बात को लेकर नोकझोक हो गयी कि उनमें से कौन ज्यादा ताकतवर है। उन्होंने इस बात का फैसला एक प्रतियोगिता के जरिए करने का निर्णय लिया। उन्होंने यह तय किया कि जो भी उस यात्री को अपना कोट उतारने को विवश कर देगा, वही ज्यादा ताकतवर कहलायेगा।

हवा ने कहा कि पहले वह प्रयास करेगी। इसके बाद हवा अपनी पूरी रफ्तार से बहने लगी। बादल उमड़ने लगे और यात्री को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बर्फ का तूफान आ गया हो। हवा जितनी तेज बहती जाती, वह यात्री अपना कोट उतनी ही मजबूती से अपने शरीर से जकड़े रहता।

इसके बाद सूरज की बारी आयी। अपनी पहली किरण से ही उसने घने बादलों और ठंड को दूर भगा दिया। यात्री को अचानक गर्मी महसूस हुयी। जैसे - जैसे सूरज गर्म होता गया, यात्री को गर्मी का अहसास होता गया और अंततः उसने गर्मी से छटपटाते हुए अपना कोट उतारकर जमीन पर फेंक दिया।

सूरज को इस प्रतियोगिता का विजेता घोषित कर दिया गया। वास्तविकता यह है कि प्रकृति की भयावह शक्तियों और खतरों की तुलना में सूरज की गुनगुनी धूप किसी भी व्यक्ति की बांछे खिला सकती है।


"शक्ति की तुलना में विनय का दर्ज़ा हमेशा ऊपर होता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:15 AM
छोटा सा अंतर

छोटा सा अंतरएक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो लिखने का शौकीन था ,लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी । लेकिन ,लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था । एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा ।

जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था । और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी -छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं ।अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,"नमस्ते भाई ! तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं । इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?इस पर वह व्यक्ति जो छोटी -छोटी मछलियों को एक -एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"देखिए !सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं । ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा । "

और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला ,"किन्तु , इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया ,और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है । "इसी प्रकार ईश्वर ने आप सब में भी यह योग्यता दी है कि आप एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं । जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि ।

आप अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं ,आपको यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है ।और विश्वास जानिए ,ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा ।

Sameerchand
25-11-2012, 07:15 AM
असली चमत्कार

एक स्वामी जी थे जिनके भक्तों की संख्या लाखों में थी. वे अपने प्रवचनों में मनुष्यों में मनुष्यत्व बचाए रखने की बातें अकसर किया करते थे.

एक बार एक अन्य स्वामी के भक्त उन्हें सुनने आए. प्रवचन के बीच में उन भक्त ने स्वामी जी का उपहास उड़ाते हुए कहा कि हमारे स्वामी तो नदी के एक किनारे खड़े होकर हाथों में ब्रश लेकर हवा में चित्र बनाते हैं तो वह नदी के दूसरे किनारे पर रखे कैनवस पर उतर आता है. क्या आप ऐसा कोई चमत्कार कर सकते हैं?

स्वामी जी ने कहा हाँ, क्यों नहीं! मैं इससे भी ज्यादा चमत्कार करता हूँ. आपके तथाकथित गुरु जादू की छड़ी से ऐसा ट्रिक कर दिखाते हैं, पर मेरा यह तरीका नहीं है. मेरा चमत्कार तो यह है जब मुझे खूब भूख लगती है तभी मैं खाता हूँ, और जब मुझे जोर की प्यास लगती है, तभी मैं खाता हूं. और यही बात मैं अपने भक्तों को सिखाता हूँ.

Sameerchand
25-11-2012, 07:15 AM
चरमराते हुए पहिये


एक ऊबड़खाबड़ रोड पर दो बैल एक बैलगाड़ी को खींचते ले जा रहे थे। तभी बैलगाड़ी के पहियों से चरमराने की आवाज़ आने लगी। गाड़ीवान ने पहियों को कोसते हुए कहा - "अरे निर्दयी! जब कठोर परिश्रम करके गाड़ी खींचने वाले ये जानवर नहीं कराह रहे हैं तो तुम क्यों शोर मचा रहे हो?"

Sameerchand
25-11-2012, 07:16 AM
भेड़िया ओर मेमना

नदी के किनारे एक भेड़िये को कुछ दूरी पर एक भटकता हुआ मेमना दिखायी देता है। वह उस पर हमला करके अपना शिकार बनाने का निश्चय करता है। निरीह मेमने के शिकार के लिए वह बहाना ढूंढने लगता है।

वह मेमने पर चिल्लाता है - "अरे दुष्ट! जिस नदी का मैं पानी पी रहा हूँ उसे गंदा करने की तेरी हिम्मत कैसे हुयी?"

मेमना नम्रतापूर्वक बोला - "माफ कीजिए श्रीमान! लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि मैं किस तरह पानी गंदा कर रहा हूँ, जबकि पानी तो आपकी ओर से बहता हुआ मेरे पास आ रहा है।"

"हो सकता है! पर सिर्फ एक वर्ष पहले मैंने सुना था कि तुम मेरी पीठ पीछे बहुत बुराई कर रहे थे।" - भेड़िये ने बात बनाते हुये कहा।

"लेकिन श्रीमान, एक वर्ष पहले तो मैं पैदा ही नहीं हुआ था" - मेमने ने कहा।

"हो सकता है कि तुम न हो। वो तुम्हारी माँ भी हो सकती है। पर इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। अब तुम मेरे भोजन में और व्यवधान नहीं डालो।" - भेड़िये ने गुर्राते हुए कहा और बिना पल गवाये उस निरीह मेमने पर टूट पड़ा।

"एक तानाशाह अपनी तानाशीही के लिए हमेशा कोई न कोई बहाना तलाश लेता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:16 AM
हीरे की असली कीमत

एक मुर्गे को दाना खोजते समय मैदान में दाने के आकार में तराशा हुआ एक हीरा मिल गया. मुर्गे ने तुरंत उस पर चोंच मारी, मुंह में लिया और जब उसे उसका स्वाद नहीं जमा और जीभ को कड़ा-कड़ा महसूस हुआ तो उसने तत्काल ही उसे वापस थूक दिया.

यह देख हीरा मुर्गे से बोला – ओ मूर्ख मुर्गे, तुम्हें मालूम नहीं मेरी असली कीमत क्या है? मैं एक नवलखा हार में लगा हुआ था, पर यहाँ उसमें से गिर गया हूँ. मैं असली नायाब हीरा हूँ. फुर्सत में तराशा गया और कई राजकुमारियों के गले की शोभा रह चुका हूँ. मैं बेशकीमती हूँ, और तुम मुझे यूं ही फेंक कर चले जा रहे हो?

मुर्गे ने उसकी ओर निस्पृह सी दृष्टि डाली और गर्व से बोला – तुम्हारी कीमत और खासियत तुम अपने पास रखो, मेरी नजर में तो तुम्हारी कीमत गेंहू के एक दाने के बराबर भी नहीं है!

Sameerchand
25-11-2012, 07:16 AM
समर्पण और खुशहाली

एक बार एक राजा ज्ञान प्राप्ति के लिए एक प्रसिद्ध मठ पर गया. मठ में गुरु के अलावा बाकी सभी राजा को देख कर अति उत्साहित थे.

राजा ने मठाधीश से अपने आने का मंतव्य बताया और कहा – गुरूदेव, मैं आपके ज्ञान व प्रसिद्ध मठ से बेहद प्रभावित हूँ, और मैं अपने राज्य में अपने शासन से खुशहाली लाना चाहता हूँ. कृपया कुछ दिशा दर्शन करें.

गुरुदेव ने कहा –अच्छी बात है, मगर खुशहाली शासन व नियंत्रण से नहीं आती है, बल्कि सभी के अपने कार्यों के प्रति समर्पण से प्राप्त होती है.

"अपने कार्य के प्रति समर्पण का भाव पैदा करें, खुशहाली, प्रगति स्वयमेव प्राप्त होगी"

Sameerchand
25-11-2012, 07:16 AM
संसदीय हास परिहास

बाबू जगजीवन राम रेल बजट पेश कर रहे थे. अपने बजट भाषण में उन्होंने सांसद की पत्नियों के लिए निशुल्क रेल यात्रा की घोषणा की. एक अविवाहित सांसद ने पूछा – अविवाहित सांसद क्या यह सुविधा अपने मित्र के लिए ले सकते हैं? बाबूजी ने कहा – यह सुविधा स्पाउस (spouse) के लिए है, स्पाइस(spice) के लिए नहीं!

Sameerchand
25-11-2012, 07:17 AM
अंडे

मुल्ला नसरुद्दीन अंडे बेचकर गुजारा करते थे। एक दिन एक व्यक्ति उनकी दुकान पर आया और बोला - "बताओ मेरे हाथ में क्या है ?'

नसरुद्दीन बोला - "मुझे कोई सुराग दो।'

वह व्यक्ति बोला - "एक क्या, मैं तुम्हें कई सुराग दूँगा। यह अंडे के आकार का है। यह अंडे की तरह लगता है। इसका स्वाद और गंध भी अंडे की तरह है। अंदर से यह सफेद और पीला है। वैसे तो यह तरल रूप में होता है पर पकाने या गर्म करने पर ठोस जाता है। इसके अलावा, यह मुर्गी से प्राप्त होता है...........'

"हाँ में समझ गया। तुम शायद केक की बात कर रहे हो।' - मुल्ला नसरूद्दीन तपाक से बोला।

"कभी कभी ज्ञानीव्यक्ति को भी प्रत्यक्षदिखने वाली वस्तु दिखायीनहीं पड़ती और पादरीको मसीहा दिखायी नहींदेते।''

Sameerchand
25-11-2012, 07:17 AM
मुर्गा और आभूषण

एक मुर्गा अपनी मुर्गियों व स्वयं का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में खेत की जमीन खोद रहा था। तभी उसे जमीन में दबा एक आभूषण मिला। वह समझ गया कि यह जरूर कोई बेशकीमती चीज़ है।

जब उसे समझ में नहीं आया कि उस आभूषण का क्या किया जाये, तो वह बोला- "ऐसे व्यक्तियों के लिये जो तुम्हारी कीमत समझते हैं, तुम निश्चय ही बेहतरीन हो। लेकिन मैं एक दाना अनाज के बदले संसार के सभी आभूषणों को कुर्बान कर सकता हूँ।'


"किसी वस्तु का मूल्य उसे देखने वाले की आँखों में होता है।'

Sameerchand
25-11-2012, 07:17 AM
सुखी व्यक्ति की कमीज

खलीफा एक बार बीमार पड़ गया. उसे रेशमी वस्त्रों, नर्म गद्दों में भी आराम नहीं मिलता था, नींद नहीं आती थी और बेवजह दुःखी रहता था. दुनिया के तमाम वैद्यों हकीमों को बुलाया गया. परंतु किसी को भी बीमारी समझ नहीं आ रही थी और लिहाजा इलाज भी नहीं हो पा रहा था. अंत में एक ऐसे वैद्य को बुलाया गया जो अपने विचित्र परंतु प्रभावी इलाज हेतु प्रसिद्ध था. वैद्य ने देखते ही बताया कि खलीफा का इलाज बस यही है कि किसी सुखी व्यक्ति की कमीज खलीफा के सिर पर घंटे भर के लिए रखी जाए.

चहुँओर सुखी व्यक्ति को ढूंढा जाने लगा. जिसे भी पूछो, वो किसी न किसी कारण से दुःखी था. व्यक्तियों को दुःखी बनाने के सैकड़ों हजारों अनगिनत कारण थे. इस बीच सुखी व्यक्ति ढूंढने वाले खलीफा के सिपाहियों को एक गरीब चरवाहा अपने ढोरों के साथ जाते हुए मिला. उनमें से एक ने चरवाहे से मजाक में पूछा – क्यों रे तू सुखी है या दुखी?

चरवाहे ने जवाब दिया – मैं दुःखी क्यों होऊं? मैं तो दुनिया का सबसे सुखी इंसान हूं.

तो चल निकाल अपनी कमीज उतार हमें अपने खलीफा के लिए यह चाहिए – एक सिपाही ने कहा.

पर, मेरे पास न तो कमीज है और न ही मैं कमीज पहनता हूं – चरवाहे ने कहा.

जब यह बात खलीफ़ा तक पहुँची तो उन्होंने मंथन किया और पाया कि उनकी बीमारी की जड़ रेशमी वस्त्र, नर्म गद्दे और हीरे-जवाहरात हैं. खलीफा ने वे सब सामाजिक कार्य में वितरित कर दिए. खलीफा अब स्वस्थ और सुखी हो गया था.

Sameerchand
25-11-2012, 07:18 AM
विद्या ददाति विनयम्


एक स्टेशन पर एक युवक छोटा सा सूटकेस हाथ में लेकर ट्रेन से उतरा. उतर कर वह कुली ढूंढने लगा. कुली-कुली उसने कई आवाजें लगाई, परंतु कोई कुली नहीं आया. उस युवक के साथ एक अन्य व्यक्ति भी ट्रेन से उतरा. उसने जब देखा कि युवक एक बहुत ही छोटे से सूटकेस को उठाने के लिए कुली ढूंढ रहा है तो उसकी मदद के लिए गया कि शायद युवक को कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होगी, जिसके कारण वह छोटे से सूटकेस को ढोने के लिए भी कुली ढूंढ रहा है.

उस व्यक्ति ने युवक से पूछा – आप इस जरा से सूटकेस को उठाने के लिए कुली को क्यों ढूंढ रहे हैं?

मैं पढ़ा लिखा व्यक्ति हूँ, और सूटकेस छोटा हो या बड़ा इसे तो कुली ही उठाते हैं – युवक ने जवाब दिया.

कुली तो हैं नहीं, यदि तुम्हें कोई समस्या न हो तो मैं इसे उठा कर आप जहाँ कहें पहुँचा देता हूं – उस व्यक्ति ने प्रस्ताव दिया.

युवक सहर्ष राज़ी हो गया. गंतव्य पर पहुँचने पर युवक उस व्यक्ति को मेहनताना देने लगा. मगर उस व्यक्ति ने मना कर दिया.

शाम को वहीं स्टेशन के पास एक सभागार में प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण था. सभागार में वह युवक भी पहुँचा. दरअसल वह खासतौर पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण सुनने ही इस शहर में आया था.

उसने देखा कि वह व्यक्ति जिसने उसका बैग उठाया था, और कोई नहीं, ईश्वरचंद्र विद्यासागर थे!

Sameerchand
25-11-2012, 07:18 AM
वर्तमान में जियो


एक कंजूस व्यक्ति ने जीवन भर कंजूसी करके पांच लाख दीनार एकत्रित कर लिये। इस एकत्रित धन की बदौलत वह एक साल तक बिना कोई काम किए चैन की बंशी बजाने के स्वप्न देखने लगा। इसके पहले कि वह उस धन को निवेश करने का इरादा कर पाता, यमदूत ने उसके दरवाज़े पर दस्तक दे दी।

उस व्यक्ति ने यमदूत से कुछ समय देने की प्रार्थना की परंतु यमदूत टस से मस नहीं हुआ। उसने याचना की - "मुझे तीन दिन की ज़िंदगी दे दो, मैं तुम्हें अपना आधा धन दे दूँगा।" पर यमदूत ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

उस व्यक्ति ने फिर प्रार्थना की - "मैं आपसे एक दिन की ज़िंदगी की भीख मांगता हूं। इसके बदले तुम मेरी वर्षों की मेहनत से जोड़ा गया पूरा धन ले लो।" पर यमदूत फिर भी अडिग रहा।

अपनी तमाम अनुनय-विनय के बाद उसे यमदूत से सिर्फ इतनी मोहलत मिली कि वह एक संदेश लिख सके। उस व्यक्ति ने अपने संदेश में लिखा - "जिस किसी को भी यह संदेश मिले, उससे मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि वह जीवनभर सिर्फ संपत्ति जोड़ने की फिराक में न रहे। ज़िंदगी का एक - एक पल पूरी तरह से जियो। मेरे पांच लाख दीनार भी मेरे लिए एक घंटे का समय नहीं खरीद सके।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:18 AM
सतत जागरूकता


ज़ैन विद्या सीखने वाले छात्र को तब तक इसके अध्यापन की अनुमति नहीं है जब तक कि वह कम से कम 10 वर्ष तक अपने गुरू के सानिध्य में न रहे।

टैनो नामक एक छात्र 10 वर्ष का कठिन परिश्रम करके 'गुरू' का दर्ज़ा प्राप्त करने में सफल हो गया। एक दिन वह अपने गुरू नैनिन से मिलने गया। उस दिन तेज बारिश हो रही थी, इसलिये टैनो ने लकड़ी की खड़ाऊँ पहनी तथा अपने साथ छाता लेकर गया।

जैसे ही उसने गुरू जी के कक्ष में प्रवेश किया, उन्होंने उससे पूछा -"लगता है तुमने अपनी खड़ाऊँ और छाता बाहर दालान में ही छोड़ दिया है। तुम मुझे यह बताओ कि तुमने अपना छाता बांयी ओर रखा है या खड़ाऊँ?"

टैनो को इस बारे में कुछ याद नहीं था अतः वह उत्तर न दे पाने के कारण शर्मिंदा हो गया। उसे यह एहसास भी हो गया कि वह लगातार जागरूक नहीं रह सका। वह पुनः नैनिन का शिष्य बन गया और सतत जागरूकता के अभ्यास के लिए पुनः 10 वर्षों तक श्रम किया।


"ऐसा व्यक्ति जो लगातार जागरूक रहता है तथा हर पल में पूरी तरह

शरीक होता है, वही गुरू कहलाने के योग्य है।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:18 AM
दुनिया मेरी नजर में

गांव के बाहर बने चौपाल पर उस गांव का एक निवासी रस्सियाँ बुनता हुआ बैठा था.

इतने में एक यात्री वहाँ आया और उस निवासी से जानना चाहा कि इस गांव में किस किस्म के व्यक्ति रहते हैं. यात्री ने आगे बताया कि वो अपने वर्तमान गांव को छोड़ कर नई जगह बसना चाहता है.

गांव के निवासी ने पूछा – तुम्हारे वर्तमान गांव में किस किस्म के लोग रहते हैं?

वे सभी लालची, कूढ़ मगज, निष्ठुर और असभ्य हैं – यात्री ने बताया.

इस गांव के निवासी भी ठीक ऐसे ही हैं – गांव के उस निवासी ने खुलासा किया.

संयोगवश थोड़ी देर के बाद एक अन्य यात्री वहाँ पहुँचा और उसने भी उस निवासी से ठीक यही बात पूछी. क्योंकि वह भी अपना गांव छोड़कर नए गांव में बसना चाहता था.

गांव के उस निवासी ने यात्री से वही प्रश्न पूछा कि उसके वर्तमान गांव में किस किस्म के लोग रहते हैं.

यात्री ने बताया – हमारे गांव के निवासी दयालु, बुद्धिमान, सभ्य, भद्र अच्छे हैं.

उस निवासी ने कहा – हमारे गांव में भी सभी ऐसे ही हैं.

Sameerchand
25-11-2012, 07:18 AM
फल खाने की अधीरता

आम के मौसम में बग़ीचे में बंदरों का खूब उत्पात रहता था. बहुत सारा फल बंदर खा जाते थे. इस बार मालिक ने बंदरों को दूर रखने के लिए कुछ चौकीदार रख लिए सुरक्षा के कड़े उपाय अपना लिए.

बंदरों को मीठे आम का स्वाद मिलना मुश्किल हो गया. वे अपने सरदार के पास गए और उनसे अपनी समस्या के बारे में बताया.

बंदरों के सरदार ने कहा कि हम भी इनसानों की तरह आम के बगीचे लगाएंगे, और अपनी मेहनत का फल बिना किसी रोकटोक के खाएंगे.

बंदरों ने एक बढ़िया जगह तलाशा और खूब सारे अलग अलग किस्मों के आम की गुठलियाँ एकत्र किया और बड़े जतन से उन्हें बो दिया.

एक दिन बीता, दो दिन बीते बंदर सुबह शाम उस स्थान पर जा कर देखते. तीसरे दिन भी जब उन्हें जमीन में कोई हलचल दिखाई नहीं दी तो उन्होंने पूरी जमीन फिर से खोद डाली और गुठलियों को देखा कि उनमें से पेड़ क्यों निकल नहीं रहे हैं. इससे गुठलियों में हो रहे अंकुरण खराब हो गए.


"कुछ पाने के लिए कुछ समय तो देना पड़ता है!"

Sameerchand
25-11-2012, 07:19 AM
उत्कृष्टता को साझा करना


एक किसान को हमेशा राज्य स्तरीय मेले में सर्वश्रेष्ठ मक्का उत्पादन के लिए पुरस्कार मिलता था। उसकी यह आदत थी कि वह अपने आसपास के किसानों को मक्के के सबसे अच्छे बीज बांट देता था।

जब उससे इसका कारण पूछा गया तो उसने कहा - "यह मेरे ही हित की बात है। हवा अपने साथ पराग कणों को उड़ा कर लाती है। यदि मेरे आसपास के किसान घटिया दर्जे के बीज का प्रयोग करेंगे तो इससे मेरी फसल को भी नुक्सान पहुँचेगा। इसीलिए मैं चाहता हूँ कि वे बेहतरीन गुणवत्ता के बीजों का प्रयोग करें।"


"जो कुछ भी आप दूसरों को देते हैं, अंततः वही आपको वापस मिलता है।
अतः यह आपके ही स्वार्थ की बात है कि आप स्वार्थरहित बनें।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:19 AM
ब्रह्मज्ञान

एक बार एक भिखारीनुमा व्यक्ति अरस्तू के पास गया और उनसे ब्रह्मज्ञान मांगने लगा.

अरस्तू ने उसे सिर से लेकर पैर तक देखा और कहा – “अपने कपड़े साफ करो, और रोज नहाओ-धोओ. अपने बालों को कटवाओ और कंघी करो...गलतियाँ करो, मगर उन्हें दोहराओ नहीं...अपनी गलतियों से सीखो. वास्तविक तपस्या तो अपने आप में झांकना और अपनी गलतियों से सीखना ही है.”

Sameerchand
25-11-2012, 07:19 AM
मुफ़्त के गधे

नसरूद्दीन गधे बेचने का कारोबार करता था. वो साप्ताहिक बाजार में गधे लेकर आता और अपने गधे बेहद कम कीमत में बेचता जिससे उसके सारे गधे बिक जाते और वो ठीकठाक मुनाफा कमाता.

एक दिन गधे बेचने वाला एक दूसरा व्यापारी नसरूद्दीन के पास आया और बोला “मुल्ला, मैं अपने गधों के लिए चारा इधर-उधर से जुगाड़ कर लेता हूं. मेरे चरवाहे बंधुआ मजदूर हैं जिन्हें मैं कोई फूटी कौड़ी भी नहीं देता. इस तरह से मैं गधों पर ज्यादा कुछ खर्चा नहीं करता. फिर भी जो कीमत मैं लगाता हूँ, उसमें कम लाभ मिलता है. तुम तो मुझसे भी कम कीमत में गधे बेचते हो. ऐसे कैसे कर लेते हो?”

मुल्ला ने फिलासफी झाड़ी – “तुम चारा चुराते हो, मैं गधे चुराता हूं”

Sameerchand
25-11-2012, 07:19 AM
जिंग और चुआन


जिंग और चुआन ने स्नातक परीक्षा पास करने के तुरंत बाद एक थोक भंडार कंपनी में नौकरी करना शुरू कर दिया। दोनों ने बहुत मेहनत की। कुछ वर्ष बाद, उनके बॉस ने जिंग का प्रमोशन सेल्स एक्जीक्यूटिव पद पर कर दिया, जबकि चुआन को सेल्स रिप्रिजेन्टेटिव ही बने रहने दिया। चुआन को जब यह बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने अपने बॉस को इस्तीफा सौंप दिया एवं यह उनसे यह शिकायत की कि वे कठोर परिश्रम करने वालों को महत्व न देकर चापलूसों का प्रमोशन करते हैं।

बॉस यह जानते थे कि चुआन ने भी इतने वर्ष परिश्रम से कार्य किया है लेकिन चुआन को उसमें और जिंग में अंतर समझाने के लिए उन्होंने चुआन को एक कार्य करने को कहा। उन्होंने चुआन से कहा कि वह बाजार जाकर ऐसे विक्रेता का पता लगाये जो तरबूज बेच रहा हो। चुआन ने बाजार से लौटकर बताया कि तरबूज बेचने वाला मिल गया है।

बॉस ने पूछा - "कितने रू. किलो ?'

चुआन फिर बाजार गया और लौटकर बोला - "12 रू. प्रति किलो।'

तब बॉस ने चुआन से कहा - "अब मैं यही कार्य जिंग को सौंपूंगा।'

फिर जिंग बाजार गया और लौटकर बोला - "बॉस केवल एक व्यक्ति तरबूज बेचता है। 12 रु. प्रति किलो, 100रु. के 10 किलो। उसके पास 340 तरबूज हैं। उसकी दुकान पर 58 तरबूज थे जिसमें से प्रत्येक लगभग 15 किग्रा. का है। ये तरबूज अभी दो दिन पहले ही दक्षिण प्रांत से लाये गये हैं। ये ताजे, लाल और अच्छी गुणवत्ता के हैं।'

चुआन बहुत प्रभावित हुआ और वह अपने और जिंग में फर्क को समझ गया। अंत में उसने इस्तीफा वापस लेने और जिंग से सीखने का निर्णय लिया।

"एक सफल व्यक्ति हमेशा तल्लीन प्रेक्षक, अधिक चिंतनशील एवं गहराई से सोचने वाला होता है।सफल व्यक्ति कई वर्ष आगे तक का अनुमान कर लेता है जबकि हम महज कल तक के बारे में ही सोच पाते हैं।'

"एक वर्ष और एक दिन में 365 गुना का अंतर होता है।'

Sameerchand
25-11-2012, 07:19 AM
राजा की खुशामद

प्रसिद्ध दार्शनिक डायोजिनीस दाल-रोटी खा रहे थे। उन्हें दाल-रोटी खाते हुए एक अन्य दार्शनिक अरिस्टीप्पस ने देखा, जो राजा की खुशामद करके आराम से गुजर-बसर कर रहे थे।

अरिस्टीप्पस तपाक से बोले - "यदि तुम भी राजा की जी-हुजुरी करना सीख लो तो इस तरह तुम्हें दाल-रोटी पर गुजारा नहीं करना पड़ेगा। "

डायोजिनीस ने सरलतापूर्वक उत्तर दिया - "यदि तुम दाल-रोटी पर गुजारा करना सीख लो तो तुम्हें राजा की खुशामद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:20 AM
जब गुरु का ज्ञान मिलता है

सूफ़ी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान तब तक नहीं होता जब तक कि उसके गुरु की कृपा दृष्टि का एक अंश उस पर न पड़े.

एक बार एक सूफ़ी संत मृत्युशैय्या पर थे. उन्हें अपने प्रिय तीन नए-नए शिष्यों के भविष्य की चिंता थी कि इन्हें ज्ञान की ओर ले जाने वाला सही गुरु कहाँ कैसे मिलेगा. संत चाहते तो वे किसी सक्षम विद्वान का नाम ले सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और चाहा कि शिष्य स्वयं अपने लिए गुरु तलाशें.

इसके लिए संत ने मन ही मन एक विचित्र उपाय तलाशा. उन्होंने अपने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा – कि हमारे आश्रम में जो 17 ऊँट हैं उन्हें तुम तीनों मिलकर इस तरह से बांट लो – सबसे बड़ा इनमें से आधा रखेगा, मंझला एक तिहाई और सबसे छोटे के पास नौंवा हिस्सा हो.

यह तो बड़ा विचित्र वितरण था, जिसका कोई हल ही नहीं निकल सकता था. तीनों शिष्यों ने बहुत दिमाग खपाया मगर उत्तर नहीं निकला, तो उनमें से एक ने कहा – गुरु की मंशा अलग करने की नहीं होगी, इसीलिए हम तीनों मिलकर ही इनके मालिक बने रहते हैं, कोई बंटवारा नहीं होगा.

दूसरे ने कहा – गुरु ने निकटतम संभावित बंटवारे के लिए कहा होगा.

परंतु बात किसी के गले से नहीं उतरी. उनकी समस्या की बात चहुँओर फैली तो एक विद्वान ने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा – तुम मेरे एक ऊँट ले लो. इससे तुम्हारे पास पूरे अठारह ऊँट हो जाएंगे. अब सबसे बड़ा इनमें से आधा यानी नौ ऊंट ले ले. मंझला एक तिहाई यानी कि छः ऊँट ले ले. सबसे छोटा नौंवा हिस्सा यानी दो ऊँट ले ले. अब बाकी एक ऊँट बच रहा है, जो मेरा है तो उसे मैं वापस ले लेता हूँ. शिष्यों को उनका नया गुरु मिल गया था. गुरु शिष्यों की समस्या में स्वयं भी शामिल जो हो गया था.

Sameerchand
25-11-2012, 07:20 AM
जैसा चाहोगे वैसा ही मिलेगा

एक धार्मिक कक्षा में शिक्षक ने अपने शिष्यों को घरू-कार्य दिया कि अगले दिन वे अपने धर्म ग्रंथ से एक एक अनमोल वचन लिख लाएँ, और पूरी कक्षा के सामने उसे पढ़ें और उसका अर्थ बताएं.

दूसरे दिन एक विद्यार्थी ने पूरी कक्षा के सामने पढ़ा – “लेने से ज्यादा अच्छा देना होता है.” पूरी कक्षा ने ताली बजाई.

दूसरे विद्यार्थी ने कहा – “ईश्वर उन्हें पसंद करता है जो हँसी-खुशी अपना सर्वस्व दान करते हैं.” कक्षा में एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी.

तीसरे ने कहा – “मूर्ख सदैव कंगाल बना रहता है.”

उन तीनों ने एक ही धार्मिक किताब से अंश उठाए थे. मगर तीनों की अपनी दृष्टि ने अलग अलग अनमोल वचन पकड़े.

"जब आप सोचते हैं, जब आप किसी चीज की विवेचना करते हैं तो यह आपके चेतन-अवचेतन मस्तिष्क और आपकी सोच को ही प्रतिबिंबित करता है. अपनी सोच को धनात्मक बनाए रखें तो काले अक्षरों में भी स्वर्णिम आभा दिखाई देगी. "

Sameerchand
25-11-2012, 07:20 AM
घोड़े की चोरी

नसरुद्दीन के पास एक बेहतरीन घोड़ा था। सभी उससे ईर्ष्या करते थे। उसके कस्बे का एक व्यापारी, जिसका नाम अहमद था, वह घोड़ा खरीदना चाहता था। उसने नसरुद्दीन को उस घोड़े के बदले 100 ऊँट देने का प्रस्ताव दिया पर नसरुद्दीन उस घोड़े को बेचना नहीं चाहता था।

अहमद ने गुस्से में आकर कहा - "मैंने तुम्हें बेहतरीन प्रस्ताव दिया है। यदि तुम शराफत से नहीं मानोगे तो मुझे दूसरे तरीके भी आजमाने पड़ सकते हैं जो तुम्हें पसंद नहीं आऐंगे।"

एक दिन वह रेगिस्तान में भिखारी का रूपधारण करके बैठ गया। उसे पता था कि नसरुद्दीन वहां से गुजरेगा। उसे कराहता हुआ देख नसरुद्दीन को उस पर दया आ गयी और उसने उसका हाल पूछा।

अहमद ने कराहते हुए कहा कि उसने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है और वह इतना कमजोर हो चुका है कि अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकता। नसरुद्दीन को उस पर दया आ गई और वह बोला - "मैं तुम्हें अपने घोड़े पर बैठाकर ले चलूंगा और मैं पीछे - पीछे पैदल चल लूंगा।" जैसे ही नसरुद्दीन ने उसे उठाकर अपने घोड़े पर बैठाया, अहमद ने घोड़े को सरपट
दौड़ाना शुरू कर दिया। नसरुद्दीन ने उससे रुकने को कहा। अहमद पीछे मुड़कर जोर से चिल्लाते हुए बोला - "मैंने तुमसे पहले ही कहा था नसरुद्दीन! यदि तुम अपना घोड़ा मुझे नहीं बेचोगे तो मैं उसे चुरा लूंगा।"

नसरुद्दीन बोला - "ठहरो मित्र, एक बात सुनते जाओ! मुझे तुमसे सिर्फ यह कहना है कि घोड़ा चुराने की अपनी यह तरकीब किसी को नहीं बताना।"

अहमद - "क्यों?"

नसरुद्दीन - "यदि किसी दिन सड़क के किनारे पड़े बीमार व्यक्ति को वास्तव में मदद की आवश्यकता होगी तो लोग इस तरकीब को याद कर कभी उसकी मदद नहीं करेंगे।"

नसरुद्दीन के इन शब्दों को सुनकर अहमद का मन ग्लानि से भर गया। वह वापस लौटा और नसरुद्दीन से क्षमा मांगते हुए उसका घोड़ा लौटा दिया।

Sameerchand
25-11-2012, 07:57 AM
अमरता का वरदान

एक दिन वेदव्यास से उनके मामाश्री ने कहा – भांजे मुझे अमरता का वरदान चाहिए. मुझे भगवान ब्रह्मा के पास ले चलो.

भगवान ब्रह्मा ने असमर्थता जाहिर की पर कहा कि वे उन्हें विष्णु के पास ले चलते हैं जो कोई हल अवश्य निकालेंगे.

वे सभी भगवान विष्णु के पास पहुँचे. विष्णु ने भी वही बात कही, और उन्हें लेकर भगवान शंकर के पास गए.

भगवान शंकर ने बताया कि जीवन-मृत्यु का लेखा जोखा तो यमराज के पास रहता है. शायद वे कोई हल निकालें. और वे सभी यमराज के पास गए.

यमराज ने कहा कि पहले देखें तो सही कि मामाश्री की मृत्यु की तिथि क्या दर्ज है. चित्रगुप्त को तलब किया गया जिनकी पोथी में ब्रह्माण्ड के सभी जीवों की मृत्यु की तिथि दर्ज रहती है. चित्रगुप्त से यमराज ने पूछा कि वेदव्यास के मामा की मृत्यु की तिथि कौन सी है. चित्रगुप्त ने अपनी पोथी खोली, और उस प्रविष्टि पर गए जिस पर मामाश्री की मृत्यु की तिथि अंकित थी. प्रविष्टि पर नजर पड़ते ही चित्रगुप्त का मुँह खुला का खुला रह गया. उन्होंने मामाश्री की ओर अपनी नजरें घुमाई. मामाश्री स्वर्ग सिधार चुके थे. प्रविष्टि में दर्ज था – जिस घड़ी त्रिदेव, यमराज, चित्रगुप्त और वेदव्यास एक साथ मिलेंगे, वह घड़ी मामाश्री की मृत्यु की घड़ी होगी!

Sameerchand
25-11-2012, 07:57 AM
सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़

बीरबल की ही तरह नसरुद्दीन भी अपने सुल्तान को अत्यंत प्रिय था। एक दिन कदी (मुस्लिम देशों, विशेषकर तुर्की में जज को कदी कहते थे) और वजीर (सुल्तान का विशेष सिपहसालार) ने ईर्ष्यावश कुछ ऐसा करने का निर्णय लिया जिससे नसरुद्दीन सुल्तान की नजरों से गिर जाये। एक दिन उन्हें ऐसा करने का मौका उस समय मिला जब सुल्तान ने कहा - "मैं अपने तीरंदाज़ों का अभ्यास देखने जा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप सभी लोग भी आयें।"

जल्द ही वे उस जगह पहुंच गए जहां तीरंदाज़ अभ्यास कर रहे थे। अपने तीरंदाज़ों को सटीक निशाना लगाते हुए देखकर सुल्तान ने प्रसन्नतापूर्वक कहा - "बेहतरीन ! शाबास ! निस्संदेह मेरे तीरंदाज़ सल्तनत के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ हैं।"

"माफ कीजिए सुल्तान ! पर हम लोगों में एक ऐसा भी शख्स मौजूद है जो स्वयं ही आपकी सल्तनत का सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ होने का दावा करता है।" - कदी ने ईर्ष्यावश कहा।
सुल्तान ने कहा - "वो कौन है?" कदी ने उत्तर दिया - "अपने नसरुद्दीन ही वो शख्स हैं"

सुल्तान ने नसरुद्दीन को धनुष और तीर देते हुए कहा - "ठीक है नसरुद्दीन। तुम अपनी काबिलियत साबित करो।"

नसरुद्दीन को तो तीरंदाज़ी आती ही नहीं थी। भय से कांपते हुए उसने सुल्तान से धनुष और तीर लिया। इसी बीच, कदी और वजीर आपस में बात करने लगे कि - "जहां तक हम जानते हैं, नसरुद्दीन अनाड़ी तीरंदाज़ है। आज वह निश्चय ही सुल्तान की नज़रों से गिर जाएगा।"

नसरुद्दीन भी सोचने गया कि - "हो न हो, यह कदी और वजीर की ही साजिश है। पर मैं उन्हें सबक सिखा कर ही दम लूंगा।"

नसरुद्दीन ने जैसे ही पहला तीर चलाया, अनाड़ी तीरंदाज़ होने के कारण उसका निशाना चूक गया। पर वह अपने को संभालते हुए बोला - "इस तरह कदी तीर चलाते हैं।" उसने दूसरा तीर चलाया तो वह भी निशाना चूक गया। वह बोला - "और इस वजीर निशाना लगाते हैं।" जैसे ही उसने तीसरा तीर चलाया, भाग्यवश वह सटीक निशाने पर लगा। खुश होते हुए वह बोला - "और इस तरह मैं निशाना लगाता हूं।"

वहां मौजूद लोगों ने नसरुद्दीन की जमकर तारीफ की और सुल्तान से खुश होकर उसे बहुमूल्य उपहार प्रदान किये।
अपनी शिकस्त देखकर कदी और वजीर उससे और अधिक ईर्ष्या करने लग गए।

Sameerchand
25-11-2012, 07:57 AM
लोमड़ी एवं सेही

एक बार एक लोमड़ी नदी पार करते समय तेज धार में बहकर एक सकरी घाटी में फंस गई और काफी प्रयास करने के बावजूद वहां से निकल न पाने के कारण थककर वही लेट गई। तभी
दुर्भाग्यवश रक्त चूसने वाली मक्खियों का एक झुंड उस पर टूट पड़ा और वे उसे काटने और डंक मारने लगीं। तभी एक सेही वहां से गुजरी। लोमड़ी को बुरी हालत में देखकर दयावश
उसने उसे वहां से निकालकर मक्खियों से दूर ले जाने का प्रस्ताव दिया। हालाकि, लोमड़ी ने उसे ऐसा कुछ भी करने को साफ मना कर दिया।

सेही ने उससे पूछा - "ऐसा क्यों?"

लोमड़ी बोली - "ऐसा इसलिए कह रही हूं कि जो मक्खियां अब तक मेरा खून पी रहीं थीं, अब उनका पेट भर चुका है। यदि तुम उनसे मुझे बचाकर नदी के उस पार ले भी जाओगे तो
भूखे भेड़ियों का झुंड मुझ पर टूट पड़ेगा और मुझे चट कर जाएगा।"

"भूखे भेड़ियों की बजाए रक्त चूसने वाली मक्खियों से जूझना बेहतर है। "

Sameerchand
25-11-2012, 07:57 AM
तो, लिखते क्यों नहीं!

मुल्ला को एक बार कॉलेज में विद्यार्थियों को लेखन कला विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया.

मुल्ला ने अपना आख्यान इस प्रश्न से प्रारंभ किया – “यहाँ विद्यार्थियों में जो सचमुच लेखक बनना चाहते हैं वे अपना हाथ ऊँचा करें?”

सबने अपने हाथ ऊँचे कर दिए. जाहिर सी बात थी क्योंकि व्याख्यान लेखन कला पर था और इसमें दिलचस्पी लेने वालों का ही जमावड़ा था.

“तो आप सभी को मेरी सलाह है कि” मुल्ला ने अपना व्याख्यान समाप्त किया - “यहाँ झख मारने के बजाए आप सभी अपने अपने घर जाएँ और तुरंत लिखना शुरू करें.”

Sameerchand
25-11-2012, 07:58 AM
बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर

एक बार नसरुद्दीन अपनी बहन से मिलने उसके गाँव जा रहे थे। रास्ते में उसे डकैतों ने घेर लिया। डकैतों को नसरुद्दीन के बुद्धिमान और सुल्तान के प्रिय होने के बारे में पता था।

डकैतों के सरदार ने उसे एक कद्दू देते हुए कहा - "तुम्हें इस कद्दू का सही वजन बताना है। यदि तुमने इसका गलत वज़न बताया तो तुम्हारे पास मौजूद सारा धन लूट लिया जाएगा और यदि तुमने इसका सही वजन बता दिया तो तुम्हें जाने दिया जाएगा। "

चूंकि नसरुद्दीन अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति थे, इसलिए एक पल भी गंवाए बिना उन्होंने कहा कि कद्दू का वज़न सरदार के सिर के वज़न के बराबर है। नसरुद्दीन के उत्तर की सत्यता को जांचने के लिए सरदार को अपना सिर कलम करना पड़ता। नसरुद्दीन के बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर पर वह जोर से हंसा और नसरुद्दीन को जाने की अनुमति प्रदान की।

Sameerchand
25-11-2012, 07:58 AM
अनूठा तर्क

किसी ने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा - "तुम्हारी उम्र क्या है?"

मुल्ला ने उत्तर दिया - "अपने भाई से तीन वर्ष बड़ा हूं।"

"तुम यह कैसे जानते हो?" - उसने फिर पूछा।

"पिछले वर्ष मैंने अपने भाई को यह कहते हुए सुना था कि मैं उससे दो वर्ष बड़ा हूं। इस बात को सुने एक वर्ष हो गया है। इसलिए अब मैं उससे तीन वर्ष बड़ा हो गया हूं। और जल्दी ही मैं उसका दादा कहलाने लायक बड़ा हो जाऊंगा।"

Sameerchand
25-11-2012, 07:59 AM
कटोरा धोना

एक भिक्षु ने जोसु से कहा -"मैने अभी -अभी मठ में प्रवेश किया है। कृपया मुझे शिक्षा दीजिए।'

जोसू ने पूछा - "क्या तुमने चावल खा लिया?'

भिक्षु ने उत्तर दिया - "हाँ'

तब जोसू ने कहा - "तो तुम्हारे लिए अच्छा यह होगा कि तुम सबसे पहले अपना कटोरा धो।'

तब जाकर भिक्षु की आँखें खुलीं।

"जो बहुत स्पष्ट है,उसे देखना कठिन है।'

एक बेवकूफ हाथ में लालटेन लिए आग को ढूंढ रहा था। यदि उसे आग के बारे में पता होता, तो वह काफी पहले ही चावल पका चुका होता।

Sameerchand
25-11-2012, 07:59 AM
उत्कंठा

एक घमंडी शिष्य अन्य लोगों को सत्य की शिक्षा प्रदान करना चाहता था। उसने अपने गुरू से मंशा जाहिर की।

गुरू ने कहा - प्रतीक्षा करो।

उसके बाद हर वर्ष वह शिष्य अपने गुरू से आज्ञा लेने पहुँच जाता और उसके गुरू एक ही उत्तर देते - "थोड़ी प्रतीक्षा करो।'

एक दिन उसने अपने गुरू से कहा - "आखिर मैं कब शिक्षा प्रदान योग्य हो पाऊँगा?'

गुरू ने उत्तर दिया -"जब तुम्हारे मन से दूसरों को उपदेश देने की उत्कंठा समाप्त हो जाए। '

Sameerchand
25-11-2012, 07:59 AM
महानता का प्रतीक - दयालुता


एक बार समर्थ गुरू रामदास अपने शिष्यों के साथ भ्रमण पर थे। जब वे एक गन्ने के खेत के पास के गुजरे तो उनके कुछ शिष्य गन्ना तोड़कर खाने लगे और मीठे गन्नों का आनंद लेने लगे। अपनी फसल का नुक्सान होते देख खेत का मालिक डंडा लेकर उन पर टूट पड़ा। गुरू को यह देख बहुत कष्ट हुआ कि उनके शिष्यों ने स्वाद के लालच में आपत्तिजनक रूप से अनुशासन को तोड़ा।

अगले दिन वे सभी छत्रपति शिवाजी के महल में पहुँचे जहाँ उनका जोरदार स्वागत हुआ। परंपरागत स्नान के अवसर पर शिवाजी स्वयं उपस्थित हुये। जब गुरू रामदास ने अपने वस्त्र उतारे तो शिवाजी यह देखकर दंग रह गए कि उनकी पीठ पर डंडे की पिटाई के लाल निशान बने हुए थे।

यह समर्थ गुरू रामदास की संवेदनशीलता ही थी कि उन्होंने अपने शिष्यों पर होने वाले वार को अपनी पीठ पर झेला। शिवाजी ने गन्ने के खेत के मालिक को बुलाया। जब वह भय से कांपता हुआ शिवाजी और समर्थ गुरू रामदास के समक्ष प्रस्तुत हुआ, तब शिवाजी ने गुरू से मनचाहा दंड देने को कहा। लेकिन रामदास ने अपने शिष्यों की गलती स्वीकार की और किसान को माफ करते हुए हमेशा के लिये कर मुक्त खेती का आशीर्वाद प्रदान किया।

Sameerchand
25-11-2012, 08:00 AM
एक मीटिंग यमराज के साथ

एक शहर में अलादीन नाम का बेहद धनी व्यवसायी रहता था. उसके ढेरों नौकर चाकर थे और वह उन सबसे सलीके से पेश आता था और सभी अलादीन की इज्जत करते थे.

एक दिन सुबह सुबह अलादीन ने अपने सर्वाधिक प्रिय नौकर मुस्तफा को कुछ कीमती चीजें लाने के लिए बाजार भेजा. थोड़ी ही देर में मुस्तफ़ा बदहवास, हाँफता-दौड़ता आया. उसका चेहरा भयभीत था जैसे किसी भूत को देख लिया हो. अलादीन ने पूछा कि आखिर हुआ क्या. मुस्तफा ने कहा कि वो बाद में बताएगा कि माजरा क्या है. अभी तो उसे तत्काल शहर से बीस मील दूर इस्तांबूल दो घंटे के भीतर पहुँचना है, इसीलिए उसे सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा दिया जाए.

अलादीन ने मुस्तफ़ा को घोड़ा देकर विदा किया. परंतु उससे रहा नहीं गया और वह खुद बाजार गया कि आखिर वहाँ हुआ क्या था और पता तो चले कि माजरा क्या है.

अलादीन ने वहाँ यमराज को बैठे पाया. अलादीन का माथा ठनका. उसने यमराज से पूछा कि क्या आपको देखकर ही मुस्तफ़ा भयभीत होकर इस्तांबूल की ओर भागा है? यमराज ने जवाब दिया – भयभीत होकर गया है यह तो नहीं कह सकता, मगर हाँ, उसे यहाँ देखकर मुझे भी बड़ा ताज्जुब हुआ था कि वो यहाँ क्या कर रहा है क्योंकि दो घंटे में तो इस्तांबूल में मेरी उसके साथ मीटिंग है.

Sameerchand
25-11-2012, 08:00 AM
स्वधर्म

एक साधु गंगा में स्नान कर रहे थे. गंगा की धारा में बहता हुआ एक बिच्छू चला जा रहा था. वह पानी की तेज धारा से बच निकलने की जद्दोजहद में था. साधु ने उसे पकड़ कर बाहर करने की कोशिश की, मगर बिच्छू ने साधु की उँगली पर डंक मार दिया. ऐसा कई बार हुआ.

पास ही एक व्यक्ति यह सब देख रहा था. उससे रहा नहीं गया तो उसने साधु से कहा – महाराज, हर बार आप इसे बचाने के लिए पकड़ते हैं और हर बार यह आपको डंक मारता है. फिर भी आप इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे बह जाने क्यों नहीं देते.

साधु ने जवाब दिया – डंक मारना बिच्छू की प्रकृति और उसका स्वधर्म है. यदि यह अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता तो मैं अपनी प्रकृति क्यों बदलूं? दरअसल इसने आज मुझे अपने स्वधर्म को और अधिक दृढ़ निश्चय से निभाने को सिखाया है.

"आपके आसपास के लोग आप पर डंक मारें, तब भी आप अपनी सहृदयता न छोड़ें "

Sameerchand
25-11-2012, 08:00 AM
जैसा पद वैसी भाषा

एक बार एक राजा अपने मंत्री व अंगरक्षक के साथ शिकार पर गया. और जैसा कि कहानियों में होता है, तीनों घने जंगल में अलग हो गए और रास्ता भटक गए.

रास्ते की तलाश में राजा को एक जन्मांध साधु मिला जो साधना में रत था. राजा ने साधु को प्रणाम किया और बड़े ही आदर से पूछा – ऋषिराज, यदि आपकी साधना में विघ्न न हो तो कृपया मुझे यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता बता सकेंगे?

साधु ने रास्ता बता दिया.

कुछ देर के बाद मंत्री भी भटकता हुआ वहाँ आ पहुँचा. उसने साधु से रास्ता पूछा – साधु महाराज, इधर से बाहर निकलने का रास्ता किधर से है?

साधु ने रास्ता बताया और यह भी कहा कि राजा अभी थोड़ी देर पहले ही रास्ता पूछकर गए हैं.

अंत में भटकता हुआ अंगरक्षक भी वहाँ साधु के पास पहुँचा और भाला ठकठकाते हुए साधु से रास्ता पूछा – ओए साधु, इधर घटिया जंगल से निकलने का रास्ता तो जरा बता!

साधु ने कहा – सिपाही, तुम्हारे राजा और मंत्री भी रास्ता भटक कर इधर आए थे और अभी ही बाईं ओर के रास्ते गए हैं.

साधु का शिष्य अंदर कुटिया में यह सब सुन रहा था. उससे रहा न गया. वह बाहर आया और पूछा – बाबा, आप तो जन्मांध हैं, फिर आपने इन तीनों को ठीक ठीक कैसे पहचान लिया?

साधु ने कहा – व्यक्ति की भाषा उसका दर्पण होता है – वे अपनी वाणी से अपने व्यक्तित्व का बखान खुद ही कर रहे थे!

Sameerchand
25-11-2012, 08:00 AM
तलवार बाजीका रहस्य

ताजीमा नो कामी राजा सोगन के तलबारबाजी उस्ताद थे। एक दिन शोगन का एक अंगरक्षक ताजीमा के पास तलबार बाजी सीखने आया।

ताजीमा ने उससे कहा -"मैंने तुम्हें बारीकी से देखा है और तुम अपने आप में उस्ताद हो। अपना शिष्य बनाने के पूर्व मैं तुमसे यह जानना चाहूँगा कि तुमने किससे तलवारबाजी सीखी है।'

अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैंने कभी भी किसी से भी प्रशिक्षण नहीं लिया।'

गुरू ताजीमा बोले - "तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते। मैं उड़ती चिड़िया पहचानता हूँ।'

अंगरक्षक ने विनम्रतापूर्वक कहा - "मैं आपकी बात नहीं काटना चाहता गुरूदेव। पर मैंने वास्तव में तलवारबाजी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है।'

उसके बाद गुरू ताजीमा ने अंगरक्षक के साथ कुछ देर तक तलवारबाजी का अभ्यास किया। फिर उसे रोकते हुए वे बोले - "चुंकि तुम यह कह रहे हो कि तुमने किसी से तलवारबाजी नहीं सीखी, इसलिए मैं मान लेता हूँ। लेकिन तुम अपने आप में निपुण हो। मुझे अपने बारे में कुछ और बताओ।'

अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैं सिर्फ यह बताना चाहता हूँ कि जब मैं बच्चा था तब मुझसे एक तलवारबाजी गुरू ने यह कहा था कि आदमी को कभी मृत्यु का भय नहीं होना चाहिये। मैं तब तक मृत्यु के प्रश्न से जूझता रहा जब तक कि मेरे मन में जरा सी भी चिंता रही।'

ताजीमा बोले - "यही तो मुख्य बात है। तलवारबाजी का सर्वोपरि रहस्य यही है कि तलवारबाज मृत्यु के भय से मुक्त हो। तुम्हें किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। तुम अपने आप में उस्ताद हो।'

Sameerchand
25-11-2012, 08:01 AM
बड़ा हुआ तो क्या हुआ

एक गांव में एक राक्षस रहता था जो गांव के बच्चों को परेशान करता रहता था. एक दिन बाहर गांव से एक बालक अपने भाइयों से मिलने आया. जब उसने राक्षस के बारे में जाना तो अपने भाइयों से कहा – “तुम सब मिलकर उसका मुकाबला कर उसे भगा क्यों नहीं देते?”

“क्या तुम पागल हो? वो तो कितना विशाल और दानवाकार है, और हम उसके सामने पिद्दी!”

“पर, इसी में तो तुम्हारी जीत छुपी है. उसे कहीं भी निशाना लगा कर मारोगे तो तुम्हारा निशाना चूकेगा नहीं. उसका निशाना जरूर चूक सकता है!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:01 AM
जिंदगी की नाव, आ रही है कि जा रही है?

मुल्ला नदी की ओर जी जान लगा कर दौड़ता हुआ जा रहा था. उसे दूसरे गांव जाना था और नाव जाने का समय हो चुका था, और वह पहले ही लेट हो गया था. नदी किनारे उसे नाव दिखाई दी. वह और जी जान लगा कर भागा और एक छलांग में नाव के ऊपर जा चढ़ा. इस कोशिश में वो नाव में गिर पड़ा, उसके कपड़े फट गए और उसकी कोहनी छिल गई, जिसमें से खून टप टप टपकने लगा.

मगर वो प्रसन्न था. उसने नाव को पकड़ ही लिया था. वो खुशी से उठा और चिल्लाया – मैंने नाव को पकड़ ही लिया. लेट हो गया था, मगर मुझे नाव आखिरकार मिल ही गई. पास में बैठे दूसरे यात्री ने अपना सामान समेटते हुए मुल्ला को बताया – ये नाव जा नहीं रही है, बल्कि आ रही है, और अभी ही किनारे लगी है!

Sameerchand
25-11-2012, 08:01 AM
ब्रह्मज्ञान

एक बार एक भिखारीनुमा व्यक्ति अरस्तू के पास गया और उनसे ब्रह्मज्ञान मांगने लगा.

अरस्तू ने उसे सिर से लेकर पैर तक देखा और कहा – “अपने कपड़े साफ करो, और रोज नहाओ-धोओ. अपने बालों को कटवाओ और कंघी करो...गलतियाँ करो, मगर उन्हें दोहराओ नहीं...अपनी गलतियों से सीखो. वास्तविक तपस्या तो अपने आप में झांकना और अपनी गलतियों से सीखना ही है.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:01 AM
प्रार्थना


एक मठ में यह सर्व-प्रचलित नियम नहीं था “शांति बनाए रखने के लिए वार्तालाप नहीं करें”

बल्कि यह नियम था – “यदि शांति को बेहतर बना सकते हैं तो वार्तालाप जरूर करें”

Sameerchand
25-11-2012, 08:02 AM
सबसे महत्त्वपूर्णकाम, व्यक्तिएवं समय


एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा - "सबसे महत्तपूर्ण काम क्या है? सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन है तथा हमारे जीवन का सबसे बेहतरीन समय कौनसा है?

गुरूजी ने उत्तर दिया - "इस समय तुम्हारे पास जो काम है, वही सबसे महत्त्वपूर्ण है। वह व्यक्ति जिसके साथ तुम काम कर रहे हो (या जिसके लिये तुम काम कर रहे हो, जैसे - अध्यापक के लिये छात्र, चिकित्सक के लिये मरीज......) सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है तथा यह समय (वर्तमान) ही सबसे महत्वपूर्ण समय है। इसे व्यर्थ न जाने दो।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:02 AM
अपने भाग्यविधाता बनो

एक दिन नसरुद्दीन अपने गाँव में टहल रहा था। तभी उसके कुछ पड़ोसी पास आकर बोले - "नसरुद्दीन। तुम बहुत बुद्धिमान और नेक इंसान हो। हम लोगों को अपना चेला बना लो। तुम हमें यह समझाओ कि हम किस तरह अपना जीवन व्यतीत करें और जीवन में सुख और शांति के लिए हमें क्या करना चाहिये?"

नसरुद्दीन ने कहा - "ठीक है। मैं तुम्हें पहला शिक्षा अभी दिए देता हूँ। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तुम अपने पैरों और चप्पलों का विशेष ध्यान रखो। उन्हें हर समय साफ और स्वच्छ रखो। "

पड़ोसी उसकी बात को ध्यान से सुन रहे थे, तभी उनका ध्यान नसरुद्दीन के पैरों की ओर गया जो बहुत मैले-कुचैले थे तथा उसकी चप्पलें भी टूटी-फूटी थीं।

एक पड़ोसी तपाक से बोला - "लेकिन नसरुद्दीन, तुम्हारे पैर तो बहुत ही गंदे हैं और चप्पलों का तो कहना ही क्या। जिन बातों का तुम खुद ही पालन नहीं कर रहे हो, उनका पालन हम कैसे कर सकते हैं ?"

नसरुद्दीन - "तो मैं भी यह जानने के लिए इधर-उधर नहीं भटकता कि मुझे अपना जीवन कैसे बिताना चाहिये?"

Sameerchand
25-11-2012, 08:02 AM
दुख का कारण


एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी। एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट सुनी। देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की कोशिश कर रहा था, परन्तु चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी।


नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।

Sameerchand
25-11-2012, 08:03 AM
सर्वश्रेष्ठ दान

तीन भाईयों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गयी कि सर्वश्रेष्ठ दान कौन सा है? पहले ने कहा कि धन का दान ही सर्वश्रेष्ठ दान है, दूसरे ने कहा कि गौ-दान सर्वश्रेष्ठ दान है, तीसरे ने कहा कि भूमि-दान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। निर्णय न हो पाने के कारण वे तीनों अपने पिता के पास पहुंचे।

पिता ने उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने सबसे बड़े पुत्र को धन देकर रवाना कर दिया। वह पुत्र गली में पहुंचा और एक भिखारी को वह धन दान में दे दिया। इसी तरह उन्होंने दूसरे पुत्र को गाय दी। दूसरे पुत्र ने भी उसी भिखारी को गाय दान में दे दी। फिर तीसरा पुत्र भी उसी भिखारी को भूमि दान देकर लोट आया।


कुछ दिनों बाद पिता अपने तीनों पुत्रों के साथ उसी गली में टहल रहे थे जहां वह भिखारी प्रायः मिलता था। उन लोगों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वह अब भी भीख मांग रहा था। उस भिखारी ने गाय और भूमि बेचने के पश्चात प्राप्त हुआ पूरा पैसा मौजमस्ती में उड़ा दिया था। पिता ने समझाया - "वही दान सर्वश्रेष्ठ दान है जिसका सदुपयोग किया जा सके। ज्ञानदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:03 AM
यह रोना क्यों ?

एक माँ की तीन संतानें युद्ध में भाग लेने के लिए गयीं। कुछ दिन बाद यह खबर आयी कि पहला पुत्र युद्ध में मारा गया है। माँ ने मुस्कराते हुए कहा - "वह भाग्यशाली है कि उसने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया है।" कुछ ही दिनों बाद दूसरा पुत्र भी युद्धभूमि में शहीद हो गया। माँ ने कहा - "मुझे ऐसे पुत्र की माँ होने का गर्व है जिसने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया हो।"

कुछ समय बाद उसका तीसरा पुत्र भी शहीद हो गया। इस बार जब उसने तीसरे पुत्र के निधन का समाचार सुना तो मुस्कराहट के साथ माँ की आँखों में आँसू भी थे। उनके पास में खड़े एक व्यक्ति ने कहा - "आखिर आपकी आँखों में आँसू आ ही गए?"

माँ ने कहा - "मेरी आँखों में आँसू इसलिए हैं क्योंकि मेरे प्यारे देश पर न्योछावर करने के लिए अब मेरे पास और पुत्र नहीं बचे हैं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:03 AM
एक प्राचार्य का पत्र

एक स्कूल में एक नए प्राचार्य ने पदभार ग्रहण किया. पदभार ग्रहण करने के पश्चात उन्होंने तमाम शिक्षकों के नाम निम्न परिपत्र जारी किया :

मेरे प्रिय शिक्षक बंधु,

मैं एक युद्धबंदी यातना शिविर का बंदी रह चुका हूं. मैंने वह सब अत्याचार और दारूण दृश्य देखे हैं जो लोगों की कल्पना शक्ति से भी परे है. शिक्षित इंजीनियरों ने गैस चैम्बर बनाए थे. प्रशिक्षित डॉक्टरों ने लोगों को तड़पा कर मारने वाले टीके ईजाद किए थे. प्रशिक्षित नर्सों ने नवजात शिशुओं को मौत के घाट उतारा था. युवाओं, महिलाओं और बच्चों को हाई-स्कूल और कॉलेज पढ़े सैनिकों ने गोलियों से भूना था. इसीलिए मैं शिक्षा को संदेह की दृष्टि से देखता हूँ.

मेरा निवेदन है कि अपने विद्यार्थियों को मनुष्यता, मानवता का पाठ पहले पढ़ाएं. आपकी मेहनत शिक्षित और प्रशिक्षित दानव और मनोरोगी बनाने में नहीं लगनी चाहिए. पढ़ना लिखना तभी सफल है जब हमारे बच्चे मनुष्य बनें.

Sameerchand
25-11-2012, 08:04 AM
संतोष का वरदान

भगवान विष्णु अपने एक भक्त की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनको दर्शन देकर बोले – वत्स, कोई वरदान मांगो.

भक्त के दिमाग में तत्काल कोई खयाल नहीं आया. तो उसने भगवान से कहा कि वो सोचकर वरदान मांगेगा.

भक्त ने यह समस्या अपने मित्रों व रिश्तेदारों से साझा किया.

एक ने कहा – अमर होने का वरदान मांग लो.

दूसरे ने कहा – अमर होने का क्या फायदा. यदि बीमारी व तकलीफ झेलते रहे. तो अच्छा स्वास्थ्य मांगो.

तीसरे ने सुझाव दिया – अमरता या अच्छे स्वास्थ्य का अचार डालोगे यदि आपके पास पैसा नहीं हो? पैसा मांगो. पैसा.

इस तरह से हर कोई अपनी अपनी थ्योरी बताने लगा.

थक हार कर भक्त फिर से भगवान की शरण में गया और बोला – भगवान, मैं क्या वरदान मांगूं, यही मुझे समझ में नहीं आ रहा है. आप ही मुझ पर कृपा करें और समुचित वरदान दे दें.

भगवान मुस्कुराए और भक्त को संतोषी बने रहने का वरदान दे दिया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:04 AM
अहंकार ऐसे पथ तलाशता है

मुल्ला नसरुद्दीन की बीवी उनसे झगड़ रही थीं। वह गुस्से में बोलीं - "सुनिए जी, आखिर यह क्या मामला है। आज तुम साफ-साफ बता ही दो कि तुम मेरे सभी रिश्तेदारों को नफरत और घृणा से क्यों देखते हो?"

मुल्ला ने उत्तर दिया - "नहीं बेगम! यह सही नहीं है और मैं तुम्हें इसका प्रमाण भी दे सकता हूं। और इसका प्रमाण यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और तुम्हारी सास को अपनी सास से अधिक प्यार करता हूं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:04 AM
हर कोई नायक है

एक दिन एक गणितज्ञ ने जीरो से लेकर नौ अंक तक की सभा आयोजित की। सभा में जीरो कहीं दिखायी नहीं पड़ रहा था। सभी ने उसकी तलाश की और अंततः उसे एक झाड़ी के पीछे छुपा हुआ पाया। अंक एक और सात उसे सभा में लेकर आये।

गणितज्ञ ने जीरो से पूछा - "तुम छुप क्यों रहे थे?"

जीरो से उत्तर दिया - "श्रीमान, मैं जीरो हूं। मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इतना दुःखी हूं कि झाड़ी के पीछे छुप गया।"

गणितज्ञ ने एक पल विचार किया और तब अंक एक से कहा कि समूह के सामने खड़े हो जाओ। अंक एक की ओर इशारा करते हुए उसने पूछा - "इसका मूल्य क्या है?" सभी ने कहा - "एक"। इसके बाद उसने जीरो को एक के दाहिनी ओर खड़े होने को कहा। फिर उसने सबसे पूछा कि अब इनका क्या मल्य है? सभी ने कहा - "दस"। इसके बाद उसने एक के दाहिनी ओर कई जीरो बना दिए। जिससे उसका मूल्य इकाई अंक से बढ़कर दहाई, सैंकड़ा, हजार और लाख हो गया।

गणितज्ञ जीरो से बोला - "अब देखिये। अंक एक का अपने आप में अधिक मूल्य नहीं था परंतु जब तुम इसके साथ खड़े हो गए, इसका मूल्य बढ़कर कई गुना हो गया। तुमने अपना योगदान दिया और बहुमूल्य हो गए।"

उस दिन के बाद से जीरो ने अपनेआप को हीन नहीं समझा। वह यह सोचने लगा - "यदि मैं अपनी भूमिका का सर्वश्रेष्ठ तरीके से निर्वहन करूं तो कुछ सार्थक होगा। जब हम एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो हम सभी का मूल्य बढ़ता है।"

"जब हम एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं, तो बेहतर कार्य करते हैं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:04 AM
प्रार्थना

एक दिन एक मोची रब्बी के पास पहुँचा और अपनी व्यथा बताई.

मैं मोची का काम करता हूँ. मेरे ग्राहक गरीब मजदूर हैं. वे शाम को जब आते हैं तब उनके जूते चप्पल खराब रहते हैं. मैं उन्हें रात में ठीक करता हूँ. कई बार सुबह भी यह काम करना पड़ता है क्योंकि मजदूर सुबह सुबह काम पर जाते हैं. इस वजह से मैं सुबह व शाम को भगवान का ध्यान और पूजा नहीं कर पाता इससे मैं अपने आप को अपराधी मानता हूँ.

रब्बी ने कहा – यदि मैं भगवान होता तो मैं तुम्हारे कार्य को पूजा और प्रार्थना से ज्यादा अच्छा समझता.

Sameerchand
25-11-2012, 08:05 AM
अमीर

एक बार एक अमीर व्यापारी एक संन्यासी के आश्रम में पहुंचा। संन्यासी को प्रणाम करने के उपरांत उसने पूछा - "किस तरह से आध्यात्म मुझ जैसे सांसारिक व्यक्ति को सहायता प्रदान कर सकता है?"

संन्यासी ने कहा - "इससे तुम और अधिक अमीर हो जाओगे।"

ललचायी आँखों के साथ व्यापारी ने पूछा - "कैसे?"

संन्यासी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - "तुम्हें इच्छाओं से मुक्त होने की शिक्षा देकर।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:05 AM
कथाएं और दृष्टांत

एक गुरूजी अपने शिष्यों को कथाओं और दृष्टांतों के माध्यम से शिक्षा देते थे, जिसे उनके शिष्य खूब पसंद करते परंतु उन्हें कभी-कभी यह शिकायत भी होती कि गुरूजी गंभीर विषय पर व्याख्यान नहीं देते हैं।

गुरूजी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शिष्यों की शिकायत पर वे कहते -"प्रिय शिष्यों! तुम लोगों का अब भी यह समझना बाकी है कि मनुष्यमात्र और सत्य के मध्य केवल कथा ही है।"

कुछ देर चुप रहने के बाद वे पुनः बोले - "कथाओं से घृणा मत करो। एक खोये हुए सिक्के को सिर्फ सस्ती मोमबत्ती के माध्यम से खोजा जा सकता है। सरल कथाओं के माध्यम से ही गंभीर सत्य प्राप्त किया जा सकता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:05 AM
किसका, कैसा ऋण

बादशाह सिकंदर लोधी के जमाने में जैन-उद्-दीन नामक प्रसिद्ध संत हुए थे. उनका मठ धनी था और संत दयालु थे. मठ का अधिकांश धन उन्होंने दीन दुखियों की सेवा सुश्रूषा में लगा दिया था.

समय बीतता गया और उनका मठ धन विहीन हो गया. एक दिन संत ने मठ में रखे कुछ कागजातों को छाना और उन्हें जलाने का हुक्म दिया. उनके एक शिष्य ने इन कागजातों को देखा तो पाया कि ये तो मठ द्वारा शहर के कई सेठों को दिए गए ऋण के कागजात हैं. यदि ये ऋण वसूल हो जाएं तो मठ फिर से धन्-धान्य से भरपूर हो सकता है. शिष्य ने यह बात संत को बताई.

संत ने कहा – “जब मठ धनी था तब जिन लोगों ने मठ से रुपए उधार लिए थे, तब भी मुझे यह प्रत्याशा नहीं थी कि यह धन मठ को वापस मिलेगा. उन लोगों ने तो महज विश्वास बनाए रखने के नाम पर और शासकीय जरूरतों के मुताबिक ये कागजात सौंप दिए थे. अब मठ गरीब हो गया है. ऐसी स्थिति में हमारे मन में लालच आ सकता है और बिलकुल वही बात आ सकती है जैसा कि तुमने कहा है. इसीलिए मैं इन कागजातों को जला रहा हूँ ताकि मैं इस तरह की संभावना को पूरी तरह समाप्त कर सकूं.

Sameerchand
25-11-2012, 08:05 AM
एक रुपए में महल को कैसे भरोगे

एक बुद्धिमान राजा के तीन पुत्र थे. राजा वृद्ध हो चला तो उसने अपने तीनों पुत्रों में से किसी एक को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का सोचा. वह पारंपरिक रूप से ज्येष्ठ पुत्र को राजा बनाने के विरुद्ध था. वह चाहता था कि बुद्धिमान पुत्र राजा बने ताकि राज्य का कल्याण हो.

तो राजा ने इसके लिए अपने पुत्रों की परीक्षा लेने के लिए एक दिन अपने पास बुलाया और प्रत्येक को एक एक रूपए देकर कहा कि यह रुपया ले जाओ और उससे कुछ खरीद कर महल को पूरा भर दो.

ज्येष्ठ पुत्र ने सोचा कि पिता शायद पागल हो गया है. एक रूपए में आजकल क्या आता है जिससे महल को भरा जा सकता है! उसने वह रुपया एक भिखारी को दे दिया.मंझले ने सोचा कि एक रूपए में तो महल को पूरा भरने लायक कबाड़ ही मिलेगा. वह कबाड़ी बाजार पहुँचा और सबसे सस्ता कबाड़ खरीद कर ले आया. फिर भी उससे महल का सबसे छोटा कमरा ही भर पाया.

कनिष्ठ पुत्र ने थोड़ा विचार किया और बाजार चला गया. जब वह वापस आया तो उसके हाथ में अगरबत्ती का पैकेट था. उसने उन अगरबत्तियों को जलाया, और महल के हर कमरे में एक एक अगरबत्ती लगा दी. पूरा महल सुगंध और दैवीय माहौल से भर गया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:06 AM
कभी मत बदलो, इस्तीफा दो और मुक्ति पाओ

मुल्ला नसरुद्दीन एक ऑफिस में काम करने लगे। हर कोई उससे नाराज़ रहता। वह कोई काम नहीं करता था और सारा समय सोता ही रहता था। ऑफिस के लोग उससे इतने तंग आ चुके थे कि धीरे-धीरे उन्होंने उसके ऊपर चिल्लाना शुरू कर दिया। जल्द ही ऑफिस के बॉस ने भी नसरुद्दीन को डाँट पिला दी। लेकिन उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया।एक दिन नसरुद्दीन रोज-रोज के तानों, आलोचना और डाँट से तंग आ गया और उसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देना उसके लिए अपनेआप को बदलने से ज्यादा आसान था।(इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो बदलना नहीं चाहते इसलिए वे इस्तीफा देकर भाग खड़े होते हैं।)

नसरुद्दीन ने इस्तीफा दे दिया। सभी लोग बहुत खुश हो गए। बॉस तो अत्यधिक खुश होकर बोला - "चूंकि नसरुद्दीन ने अपने आप ही इस्तीफा दिया है इसलिए हम सभी को उदारता दिखाते हुए उसे विदाई पार्टी देनी चाहिए। हम सभी उससे इतने नाखुश थे कि इसके अलावा और कोई चारा नहीं था।"

इसलिए नसरुद्दीन के सम्मान में एक बेहतरीन रात्रिभोज का आयोजन किया गया जिसमें तरह-तरह के व्यंजन, मिष्ठान और संगीत आदि की व्यवस्था थी। इस समारोह में ऑफिस के सभी लोग उपस्थित थे। यह सोचते हुए कि नसरुद्दीन तो जा ही रहा है, कई लोगों ने नसरुद्दीन के सम्मान में अच्छी-अच्छी बातें बोली। नसरुद्दीन आश्चर्यचकित थे।

तभी नसरुद्दीन उठ खड़े हुए। अपनी आँखों में आँसू भरकर बोले - "मुझे नहीं पता था कि सभी लोगों के मन में मेरे प्रति इतना प्रेम और सम्मान है। मुझे इतना अधिक प्रेम और कहाँ मिलेगा? मैंने निर्णय लिया है कि आप सभी को छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा। मैं अपना इस्तीफा वापस ले रहा हूं!

Sameerchand
25-11-2012, 08:06 AM
गुरू के प्रति राजकुमारों की भक्ति

ख़लीफ़ा मामू के मन में विद्वानों के प्रति आदर सम्मान था। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को शिक्षित करने के लिए एक गुरूजी को नियुक्त किया। एक दिन जब कक्षा समाप्त हो गयी और गुरूजी अपने घर जाने को खड़े हुए, दोनों राजकुमार दौड़कर उनके जुते उठा लाये। दोनों एक साथ उनके पास पहुंचे थे अतः उनके मध्य यह विवाद हो गया कि गुरूजी को जूता पहनाने का नेक काम कोन करेगा। अंत में यह निर्णय हुआ कि दोनों राजकुमार एक - एक जूता पहनायेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया।

जब ख़लीफ़ाने इसके बारे में सुना तो उन्होंने गुरूजी से पूछा -"इस संसार में सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति कौन है?"

गुरूजी ने उत्तर दिया - "मुस्लिमों के नेता ख़लीफ़ा से ज्यादा इस संसार में और कौन प्रतिष्ठित और सम्मानित हो सकता है?"

ख़लीफ़ा मामू ने कहा - "नहीं सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सम्मानित वह है जिसे जूता पहनाने के लिए ख़लीफ़ा के दोनों पुत्र आपस में झगड़ पड़े हों।"

गुरूजी ने कहा - "पहले मैं उन्हें ऐसा करने से रोकने वाला था, फिर मेरे मन में यह विचार आया कि मैं उनकी श्रृद्धा के आड़े क्यों आऊँ।"

ख़लीफ़ा मामू ने कहा - "यदि आपने ऐसा किया होता तो मैं बहुत नाराज़ होता। उनका यह कार्य उन्हें अपमानित नहीं करता बल्कि यह दर्शाता है कि दोनों राजकुमार कितने भले और सभ्य हैं। राजा, पिता और गुरू के प्रति सेवा का भाव रखने से प्रतिष्ठा गिरने के बजाए बढ़ती है।

Sameerchand
25-11-2012, 08:06 AM
राजा का मालिक कौन?

एक बार राजा की मुलाकात दूसरे देश के दरवेश से हुई. जैसी की परंपरा थी, दूसरे देश के अतिथि को राजा सौहार्द स्वरूप कुछ भेंट करता था. राजा ने दरवेश से पूछा - “मांगो, तुम क्या चाहते हो”

दरवेश ने जवाब दिया - “यह उचित नहीं होगा कि मैं अपने गुलाम से कुछ मांगूं!”

राजा को क्रोध आ गया कि यह अदना सा दरवेश उसे अपना गुलाम कहे. उसने दरवेश से कहा – “तुम राजा से इस तरह कैसे बोल सकते हो? स्पष्ट करो नहीं तो तुम्हारा सिर कलम करवा दिया जाएगा.”

“मेरे पास एक गुलाम है जो कि आपका स्वामी है. इस लिहाज से आप भी तो मेरे गुलाम हुए!” दरवेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

“कौन है मेरा स्वामी?” राजा ने पूछा.

“सिंहासन खोने का भय” – दरवेश ने जवाब दिया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:06 AM
चूहे का दिल

अति-प्रसिद्ध, अति-प्राचीन भारतीय लोककथा है यह. चूहा सदैव बिल्लियों से आतंकित रहता था. वह एक साधु के पास पहुँचा और उसे अपनी व्यथा बताई. साधु ने चूहे को बिल्ली बना दिया. बिल्ली कुत्तों से आतंकित रहने लगी. बिल्ली बनी चूहा साधु के पास पहुँचा और अपनी व्यथा बताई. साधु ने उसे कुत्ता बना दिया. कुत्ता शेरों से डरने लगा. जाहिर है, साधु ने उसे शेर बना दिया. परंतु शेर शिकारियों से डरने लगा और साधु की शरण में फिर से जा पहुँचा.

यह देख साधु ने उसे फिर से चूहा बना दिया और कहा – “कोई कुछ भी कर ले, परंतु तुम्हारी समस्या दूर नहीं होगी क्योंकि तुम्हारा दिल तो चूहे का है!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:06 AM
कभी बेवकूफों को सलाह मत दो

एक समय की बात है, नर्मदा नदी के तट पर एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था जिसकी मोटी शाखाऐं दूर-दूर तक फैली हुयी थीं। उस पेड़ पर चिड़ियों का एक परिवार रहता था। बरगद का पेड़ भारी बारिश के दिनों में भी चिड़ियों की रक्षा करता था।

मानसून के समय एक दिन आकाश में काले बादल छाए हुए थे। जल्द ही भयंकर बारिश शुरू हो गयी। भयंकर तूफानी बारिश से बचने के लिए बंदरों का एक समूह उस पेड़ के नीचे शरण लिए हुए था। वे ठंड के मारे कांप रहे थे। चिड़ियों ने बंदरों की दुर्दशा देखी।

उनमें से एक चिड़िया ने बंदरों से कहा - "अरे बंदरों! हर बारिश के मौसम में तुम लोग इसी तरह क्यों परेशान होते रहते हो? हमें देखो, हम लोग अपनी सुरक्षा के लिए इस चोंच की सहायता से घास का तिनका-तिनका जोड़ कर घोंसला बनाते हैं। परंतु ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ और दो पैर दिए हैं जिनका उपयोग तुम लोग खेलने-कूदने में ही करते हो। तुम लोग अपनी सुरक्षा के लिए घर क्यों नहीं बनाते?"

इन शब्दों को सुनकर बंदरों को गुस्सा आ गया। उन्होंने सोचा कि चिड़ियों की हमसे इस तरह से बोलने की हिम्मत कैसे हुयी। बंदरों के सरदार ने कहा - "सुरक्षित तरीके से अपने घोसले में बैठकर हमे उपदेश दे रही हैं। रुकने दो बारिश को, तब हम उन्हें मजा चखायेंगे।"

जैसे ही बारिश रुकी, बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने चिड़ियों को घोंसलों को तबाह करना शुरू कर दिया। उन्होंने घोंसलों और उसमें रखे अंडों को उठाकर जमीन पर पटक दिया। बेचारी चिड़ियाँ अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगीं।

किसी ने सही ही कहा है, सच्ची सलाह केवल गंभीर लोगों को ही देनी चाहिए और वह भी केवल मांगे जाने पर। बेवकूफ व्यक्ति को सलाह देने का अर्थ है -

"अपने विरुद्ध उसके गुस्से को भड़काना।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:07 AM
स्वयं पर नियंत्रण


चीन में एक बौद्ध भिक्षु ध्यान योग में तल्लीन रहता था. उसकी देखभाल एक बूढ़ी स्त्री करती थी. कई वर्षों की सेवा-सुश्रूषा के बाद एक दिन बूढ़ी महिला ने उस बौद्ध भिक्षु की परीक्षा लेनी चाही.

उसने एक युवती को बुला कर कहा कि वो ध्यानस्थ बौद्ध भिक्षु के कमरे में जाए और उसे आलिंगन में ले ले और उससे प्यार जताए.

युवती ने ऐसा ही किया. मगर बौद्ध भिक्षु यह अप्रत्याशित हरकत देख कर ताव में आ गया और आनन फानन में उस युवती को झाड़ू से मारते हुए बाहर कर दिया.

यह देख उस बूढ़ी स्त्री ने उस बौद्ध भिक्षु से दूरी बना ली क्योंकि उसके अनुसार इतने दिनों की तपस्या और ध्यान योग के बाद भिक्षु को युवती की आवश्यकताओं की समझ होनी चाहिए थी और इस हेतु उसे शांति पूर्वक समझाना था. साथ ही उसे स्वयं पर भी नियंत्रण बनाए रखना था.

Sameerchand
25-11-2012, 08:07 AM
भिक्षाम देहि

भिक्षाम देहि!......दोपहर के अंतिम प्रहर में जब एक गृहिणी को यह स्वर सुनायी दिया तो वह दरवाज़े पर आए भिक्षुक के लिए एक कटोरा चावल लेकर आ गयी। चावल देते - देते उसने कहा - "महाराज! मेरे मन में आपके लिए एक प्रश्न है। आखिर लोग एक - दूसरे से झगड़ते क्यों हैं?"

भिक्षुक ने उत्तर दिया - "मैं यहाँ भिखा मांगने के लिए आया हूं, आपके मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नहीं।"

यह सुनकर वह गृहिणी दंग रह गयी। सोचने लगी - यह भिक्षुक कितना असभ्य है! वह भिक्षा लेने वाला और मैं दान कर्ता हूं! उसकी हिम्मत कैसे हुयी मुझसे ऐसे बात करने की! फिर वह बोली - "तुम कितने घमंडी और कृतघ्न हो। तुम्हारे अंदर सभ्यता और लिहाज नाम की कोई चीज नहीं है।" .....और वह देर तक उसके ऊपर चिल्लाती रही।

जब वह थोड़ा शांत हुयी, तब भिक्षुक बोला - "जैसे ही मैंने कुछ बोला, तुम गुस्से से भर गयीं। वास्तव में केवल गुस्सा ही सभी झगड़ों के मूल में है। यदि लोग अपने गुस्से पर काबू रखना सीख जायें तो दुनिया में कम झगड़े होंगे।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:07 AM
मीठा बदला

एक बार एक देश के सिपाहियों ने शत्रुदेश का एक जासूस पकड़ लिया. जासूस के पास यूँ तो कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली, मगर उसके पास स्वादिष्ट प्रतीत हो रहे मिठाइयों का एक डब्बा जरूर मिला.

सिपाहियों को मिठाइयों को देख लालच आया. परंतु उन्हें लगा कि कहीं यह जासूस उसमें जहर मिलाकर तो नहीं लाया है. तो इसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने पहले जासूस को मिठाई खिलाई. और जब जासूस ने प्रेम पूर्वक थोड़ी सी मिठाई खा ली तो सिपाहियों ने मिल कर मिठाई का पूरा डिब्बा हजम कर लिया और उस जासूस को जेल में डालने हेतु पकड़ कर ले जाने लगे.

इतने में उस जासूस को चक्कर आने लगे और वो उबकाइयाँ लेने लगा. उसकी इस स्थिति को देख कर सिपाहियों के होश उड़ गए. वह जासूस बोला – लगता है मिठाइयों में धीमा जहर मिला हुआ था. खाने के कुछ देर बाद इसका असर होना चालू होता है लगता है. और ऐसा कहते कहते वह जासूस जमीन में ढेर हो गया. वह बेहोश हो गया था.सिपाहियों की तो हवा निकल गई. वे जासूस को वहीं छोड़ कर चिकित्सक की तलाश में भाग निकले.

इधर जब सभी सिपाही भाग निकले तो जासूस उठ खड़ा हुआ और इस तरह अपने भाग निकलने के मीठे तरीके पर विजयी मुस्कान मारता हुआ वहां से छूमंतर हो हो गया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:07 AM
गांधी जी के जूते

एक बार गांधी जी जब ट्रेन पर चढ़ रहे थे तो ट्रेन ने थोड़ी सी रफ़्तार पकड़ ली थी. चढ़ते समय हड़बड़ी में गांधी जी के एक पैर का जूता नीचे पटरी पर गिर गया.

अब चूंकि ट्रेन रुक नहीं सकती थी तो गांधी जी ने तुरंत दूसरे पैर का जूता निकाला और उसे भी नीचे फेंक दिया और अपने सहायक से कहा - जिस किसी को भी एक जूता मिलता तो उसका प्रयोग नहीं हो पाता. अब दोनों जूते कम से कम किसी के काम तो आ सकेंगे.

Sameerchand
25-11-2012, 08:08 AM
समर्पण - स्टालिन और चर्चिल

राष्ट्रपति ट्रूमैन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आयोजित हुये याल्टा सम्मेलन में भाग लिया था। उन्हें विंस्टन चर्चिल बहुत जटिल, अडिग और आसानी से कोई बात न मानने वाले व्यक्ति लगे जबकि रूस के जोसेफ स्टालिन बहुत मिलनसार, मित्रतापूर्ण और आसानी से बात मानने वाले व्यक्ति लगे।

किसी भी समझौते या संशोधन पर हस्ताक्षर करने के पूर्व चर्चिल बाकायदा झगड़ा करते थे। इसके विपरीत स्टालिन किसी भी समझौते पर आसानी से हस्ताक्षर करने और सहयोग प्रदान करने को तत्पर रहते।

याल्टा सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में तय हुये समझौतों के क्रियान्वयन का प्रबंध शुरू हुआ। ट्रूमैन ने पाया कि विंस्टन चर्चिल ने सभी समझौतों का पूरी गंभीरता से पालन और क्रियान्वयन किया जबकि जोसेफ स्टालिन ने समझौतों की कोई परवाह नहीं की और अपना गुप्त एजेंडा ही क्रियान्वित करते रहे। इन दोनों के कार्य का परिणाम अब इतिहास के पन्नों में है।

ट्रूमैन को समझ में आया कि चर्चिल इसलिए अड़ियल थे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के प्रति गंभीर रहने का था जबकि स्टालिन इसलिए मिलनसार और समझौते करने में तत्पर बने रहे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के पालन का नहीं था।

Sameerchand
25-11-2012, 08:08 AM
मुझे अपना अहंकार दे दो

एक संन्यासी एक राजा के पास पहुचे। राजा ने उनका आदर सत्कार किया। कुछ दिन उनके राज्य में रुकने के पश्चात संन्यासी ने जाते समय राजा से अपने लिए उपहार मांगा।

राजा ने एक पल सोचा और कहा - "जो कुछ भी खजाने में है, आप ले सकते हैं।"

संन्यासी ने उत्तर दिया - "लेकिन खजाना तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तो राज्य का है और तुम सिर्फ ट्रस्टी हो।"

"तो यह महल ले लो।"

"यह भी प्रजा का है।" - संन्यासी ने हंसते हुए कहा।

"तो मेरा यह शरीर ले लो। आपकी जो भी मर्जी हो, आप पूरी कर सकते हैं।" - राजा बोला।

"लेकिन यह तो तुम्हारी संतान का है। मैं इसे कैसे ले सकता हूं?" -संन्यासी ने उत्तर दिया।

"तो महाराज आप ही बतायें कि ऐसा क्या है जो मेरा हो और आपके लायक हो?" - राजा ने पूछा।

संन्यासी ने उत्तर दिया - "हे राजा, यदि आप सच में मुझे कुछ उपहार देना चाहते हैं, तो अपना अहंकार, अपना अहम दे दो।"

"अहंकार पराजय का द्वार है। अहंकार यश का नाश करता है।यह खोखलेपन का परिचायक है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:08 AM
दो गलत मिलकर सही नहीं होते

हमनेऐसा सुना है कि अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके मगध की राजगद्दी हथिया ली थी। जब कुछ समय गुजर गया तो अजातशत्रु को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने अपने पापों का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। इसने अपने राजगुरू को बुलाकर पूछा कि वह किस तरह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है?

राजगुरू ने उसे पशुबलि यज्ञ करने का परामर्श दिया। सारे राज्य में पशुबलि यज्ञ की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर के साथ की गयीं।भगवान बुद्ध उसी दौरान उसके राज्य में पधारे। उनके आगमन का समाचार सुनकर अजातशत्रु उनसे मिलने आया।

भगवान बुद्ध ने उससे पास की एक झाड़ी से फूल तोड़कर लाने को कहा। अजातशत्रु ने ऐसा ही किया। उन्होंने अजातशत्रु से फिर कहा - "अब दूसरा फूल तोड़कर लाओ ताकि पहला फूल खिल सके।"

अजातशत्रु ने निवेदन किया - "लेकिन महात्मा यह असंभव है। एक टूटा हुआ फूल दूसरे फूल को तोड़ने से कैसे खिल सकता है?"

बुद्ध ने उत्तर दिया - "उसी तरह जैसे तुम एक हत्या के पश्चाताप के लिए दूसरी हत्या करने जा रहे हो। एक गलत कार्य को तुम दूसरे गलत कार्य से कभी सही नहीं कर सकते। इसके बजाए तुम अपना सारा जीवन मनुष्यों, जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की सेवा में समर्पित कर दो।"

यह सुनकर अजातशत्रु उनके चरणों में गिर पड़ा और आजीवन उनका समर्पित अनुयायी बना रहा।

Sameerchand
25-11-2012, 08:08 AM
कुछ नहीं

खोजा अपने मित्र अली की फलों की दुकान पर केले खरीदने गया. अली को शरारत सूझी. खोजा ने एक दर्जन केले के भाव पूछे.

अली ने जवाब में कहा – दाम कुछ नहीं

खोजा ने कहा – अच्छा! तब तो एक दर्जन दे दो.

केले लेकर खोजा जाने लगा.

पीछे से अली ने पुकारा – अरे, दाम तो देते जाओ.

खोजा ने आश्चर्य से पूछा – अभी तो तुमने दाम कुछ नहीं कहा था, फिर काहे का दाम?

अली ने शरारत से कहा – हाँ, तो मैं भी तो वही मांग रहा हूं. दाम जो बताया ‘कुछ नहीं’ वह तो देते जाओ.

अच्छा – खोजा ने आगे कहा – तो ये बात है.

फिर खोजा ने एक खाली थैला अली की ओर बढ़ाया और पूछा – इस थैले में क्या है?

बेध्यानी में अली ने कहा – कुछ नहीं.

तो फिर अपना दाम ले लो – खोजा ने वार पलटा.

Sameerchand
25-11-2012, 08:08 AM
दिल और जुबान

वह दो वरदान क्या हैं जो मनुष्यत्व को प्राप्त हैं? वे हैं – दिल और जुबान

और वह दो अभिशाप क्या हैं जो मनुष्यत्व को प्राप्त हैं? वे हैं दिल और जुबान

क्रूर, कठोर हृदय मनुष्य को अपराधी बना देता है, वहीं कोमलहृदयी मनुष्य महान होता है. वहीं, चटोरी और कड़वी जुबान जहाँ मनुष्य के लिए घातक है, संतोषी और मीठी जुबान सर्वत्र सुखदायी व प्रशंसनीय होती है.

Sameerchand
25-11-2012, 08:09 AM
विशेषज्ञ कभी गलत नहीं हो सकते

एकबार, पता नहीं कैसे मुल्ला नसरुद्दीन की बेगम का नाम मतदाता सूची से नदारद हो गया। चुनाव नजदीक ही थे और उनकी बेगम वोट डालने को आतुर थीं लेकिन मतदाता सूची में उनका नाम नहीं था। अतः नसरुद्दीन अपनी बेगम को लेकर चुनाव आयुक्त के यहाँ पहुंचे। वहां जाकर पता चला कि उनका सिर्फ नाम ही नदारद नहीं है बल्कि वे मृत घोषित थीं। बेगम गुस्से से तमतमा गयीं क्योंकि नसरुद्दीन सारे मामले को बहुत हल्के में ले रहे थे। वह न तो गुस्से में थे न ही विचलित, जो कि उन्हें होना चाहिए था। आखिर उनकी बेगम को मृत घोषित करने की उनकी हिम्मत कैसे हुयी।

चुनाव आयुक्त के पास पहुंचकर बेगम बोलीं -"यह अच्छी बात नहीं है। मैं जिंदा हूँ! और मतदाता सूची में दर्ज है कि मैं मर गयीं हूं। आखिर यह सब क्या मचा रखा है?"

बेगम को गुस्से में भरा देख नसरुद्दीन बोले - "जरा ठहरो बेगम! तुम एक अधिकारी से कैसे झगड़ सकती हो? वे हमेशा सही होंगे। वे गलत कैसे हो सकते हैं? निश्चित रूप से वे हम लोगों से ज्यादा जानकार हैं। और तुम अनपढ़ महिला होकर एक महान अधिकारी से जबान चला रही हो? यदि उन्होंने लिखा है कि तुम मर गयी हो, तो तुम्हें मर जाना चाहिए।"

"विशेषज्ञ कभी गलत नहीं हो सकते"

Sameerchand
25-11-2012, 08:09 AM
कुछ भी व्यर्थ नहीं करना चाहिए

राजा उदयन की रानी ने बौद्ध संघ को 500 चादरें दान कीं। आयुष्मान आनंद नामक भिक्षुक उन चादरों को ले जाने के लिए महल में आया। राजा ने उनका स्वागत किया और उनके वाहन पर चादरों को लदवाने का प्रबंध किया।

जब आनंद वहां से प्रस्थान करने लगे, तब राजा ने जिज्ञासा को शांत करने के लिए उनसे पूछा - "इतनी सारी चादरों का आप क्या करेंगे?"

आनंद ने उत्तर दिया - "जिन शिष्यों के वस्त्र फट गए हैं, इन चादरों से उनके लिए वस्त्र बनवा दिए जायेंगे।"

प्रश्नोत्तर सत्र थोड़ी देर और जारी रहा। राजा उदयन प्रश्न पूछते रहे और आनंद जवाब देते रहे।

राजा उदयन ने फिर पूछा - "शिष्यों के पुराने वस्त्रों का क्या होगा?"

"हम उनसे बैठने की चटाई बना लेगें।"

"और पुरानी चटाईयों का क्या करेंगे?"

"हम उन्हें अलग-अलग करके उनसे तकियों के कवर बना लेंगे।"

"पुराने तकियों के कवर का क्या करेंगे?"

"हम उनका पोछा बना लेंगे जो सफाई के काम आयेगा या उनको गद्दा भरने के काम में लायेंगे।"

"पुराने पोछों और गद्दों का क्या करेंगे?"

"हम उनका चूर्ण बनाकर लुगदी बना लेंगे जो दीवारों की चुनाई के काम आएगा।"

राजा उदयन बौद्ध संघों के वित्तीय प्रबंधन से पूरी तरह संतुष्ट हो गए और उन्होंने अपने राज्य में ऐसी ही वित्तीय प्रणाली को लागू करने का सबक सीखा। उन्होंने घोषणा की कि जहाँ तक संभव हो, कोई भी चीज व्यर्थ न की जाये और उसका किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाए।

Sameerchand
25-11-2012, 08:10 AM
लड़ाई - झगड़ा

मुल्ला नसरुद्दीन और उनकी बेगम के मध्य किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। पूरे मुहल्ले को उनके झगड़े का शोरगुल सुनायी दे रहा था। अंत में बेगम को इतना गुस्सा आया कि वह बोरिया-बिस्तर लेकर अपनी सहेली के पास रहने चली गयीं।

सहेली उस दिन बहुत व्यस्त थी क्योंकि उसके घर में भोज का आयोजन था। इसलिए मुल्ला नसरुद्दीन के विरोध में बेगम की दास्तान सुनने का उसके पास वक्त नहीं था। इसके बजाए वह उसे नसरुद्दीन के पास वापस जाने के लिए मनाने लग गयी।

नसरुद्दीन को सहेली के घर पर बुलवाया गया। उन दोनों को सुलह करने के लिए एक कमरे में अकेला छोड़ दिया गया। थोड़ी - थोड़ी देर के बाद एक नौकर आकर उन्हें खाने-पीने की स्वादिष्ट चीजें दे जाता। दोनों मियां-बीवी काफी देर तक खाते-पीते और झगड़ते रहे। उनके पड़ोसी भी वहां आ गए और दोनों को शांत हो जाने के लिए मनाते रहे। अंततः बेगम मुस्करायीं और घर जाने के लिए राजी हो गयीं। सारे गाँव ने राहत की सांस ली। इस दौरान खाना - पीना जारी रहा। नसरुद्दीन और उनकी बेगम ने भरपेट खाना खाया।

देर रात, भोजन के बाद जब वे दोनों अपने घर की ओर लौट रहे थे, तब नसरुद्दीन बोले - "बेगम! हम लोगों को प्रायः लड़ते रहना चाहिए। क्योंकि यह हमारे पेट के लिए अच्छा है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:10 AM
बिना डगमगाये हुए दान देना - कर्ण और पुजारी


कर्ण एक उदार चरित्र राजा थे। उन्होंने कभी भी दान मांगने वाले व्यक्ति को अपने द्वार से खाली हाथ नहीं भेजा। अपने इसी गुण के कारण वे दानवीर कर्ण कहलाए।

एक बार दानवीर कर्ण स्नान की तैयारी कर रहे थे। स्नान के पूर्व की तैयारियाँ की जा रही थीं। विभिन्न धातुओं के कपों में तेल, उबटन, साबुन, हर्बल पाउडर तथा लेप आदि रखे हुये थे। कर्ण एक - एक करके अपने बांये हाथ से कप को उठाकर दाहिने हाथ में सामग्री लेकर उसे शरीर के विभिन्न अंगों में लगा रहे थे। उनके शरीर पर बहुत कम कपड़े थे।

उसी समय एक तेजस्वी पुजारी उनके सम्मुख आ खड़ा हुआ और उसने भिक्षा मांगने की मुद्रा में अपनी दाहिनी हथेली कर्ण की ओर बढ़ा दी। मांगने में कुछ गलत नहीं होता। मांगना बच्चों की प्रवृति है। बच्चे मांगते हैं, नौजवान छीनते हैं, वयस्क साझा करते हैं एवं बुजुर्ग देते हैं। मांगने, साझा करने और देने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन छीनने में समस्या है। छीनना युवा उमंग है। छीनना अभिमान है। छीनना अवज्ञा है। मांगो, साझा करो और दो, परंतु छीनो मत।

इस प्रकार, अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए मांगना सदाचार और नैतिक दृष्टि से उचित है। जिस समय पुजारी ने कर्ण की ओर हथेली फैलाकर कुछ मांगा, कर्ण के बायें हाथ में उस समय नारियल के तेल से भरा एक स्वर्ण कप था। कर्ण ने तत्काल वह स्वर्ण कप तेल समेत अपने बांये हाथ से उस पुजारी के दांये हाथ में रख दिया।

स्वर्ण कप प्राप्त कर वह पुजारी बहुत खुश हुआ। मुस्कराते हुए उसने कर्ण को धन्यवाद दिया। वहाँ से जाने के पूर्व पुजारी ने कर्ण से पूछा - "हे दानवीर! क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूं?" कर्ण ने उत्तर दिया - "जी हां, आप पूछ सकते हैं।"

पुजारी ने कहा - "जब भी हम किसी को कुछ दान देना चाहते हैं, तो अच्छा यही होता है कि हम दांये हाथ से दान दें और दायें हाथ से ही लें। श्रीमान, मुझे आशा है कि आपको यह बात पता होगी? तब आपने अपने बांये हाथ से यह कप मुझे क्यों दिया?"

कर्ण ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - "श्रीमान, आप सत्य कह रहे हैं कि हमेशा दांये हाथ से ही दान करना चाहिए। उस समय वह स्वर्ण कप मेरे बांये हाथ में था। बिना एक भी पल गवाए जो कुछ भी मेरे हाथ में था, मैंने आपको दे दिया। यदि मैं इस स्वर्ण कप को बांये हाथ से दांये हाथ में लेता तो उस थोड़े से समय अंतराल में मेरे मन में यह प्रश्न उठ सकता था कि मैं गरीब पुजारी को स्वर्ण कप क्यों दान में दे रहा हूं! मैं क्यों न चांदी का कप दान में दूं! या सिर्फ आटा या अनाज दान देना ही पर्याप्त होगा! मेरे मन में सभी तरह ही डगमगाहट पैदा हो सकती थी। डगमगाना मन की प्रकृति है। डगमगाने वाला मन मनुष्य का शत्रु हो सकता है। स्थिर मन ही मनुष्य का मित्र होता है। हमारा मस्तिष्क कीचड़ भी हो सकता है और शानदार भी हो सकता है। इसलिए, हे बुद्धिमान सज्जन, मैं नहीं चाहता था कि स्वर्ण कप दान देने के पूर्व मेरे मन में जरा सी भी शंका जन्म ले अतः मैंने तत्काल आपको वह कप दान में दे दिया। कृपया मेरा दान स्वीकार करें और अपना आशीर्वाद दें।"

पुजारी ने कहा - "भगवान आपका भला करे!" और वह पुजारी प्रसन्नतापूर्वक स्वर्ण कप और स्वर्णिम विचार को लेकर वहां से चला गया।

बिना डगमगाये हुए दान दें। सर्वश्रेष्ठ वस्तु दान दें।
निरंतर दान देते रहें। दान देना ही उपासना है।

Sameerchand
25-11-2012, 08:10 AM
कोई भी बात गलत नहीं, बस अधूरी

एक सूफी संत अपने सहयोगी के साथ एक शहर में शिक्षा प्रदान करने पहुंचे। जल्द ही उनका एक अनुयायी उनके पास आया और बोला - "हे महात्मा, इस शहर में सिवाए बेवकूफों के और कोई नहीं रहता। यहाँ के निवासी इतने जिद्दी और बेवकूफ हैं कि आप एक भी व्यक्ति के विचार नहीं बदल सकते।"

संत ने उत्तर दिया - "आप सही कह रहे हैं।"

इसके ठीक बाद एक और व्यक्ति वहां आया और प्रसन्नतापूर्वक बोला - "हे महात्मा, आप एक भाग्यशाली शहर में हैं। यहां के लोग सच्ची शिक्षा चाहते हैं और वे आपके वचनों पर न्यौछावर हो जायेंगे।"

संत ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - "आप सही कह रहे हैं।"

संत की बात सुनकर उनका सहयोगी बोला - "हे महात्मा, आपने पहले व्यक्ति से कहा कि वह सही कह रहा है। और दूसरा व्यक्ति जो उसके ठीक विपरीत बात बोल रहा था, उसे भी आपने कहा कि वह सही बोल रहा है। आखिर यह कैसे संभव है कि काला रंग सफेद हो जाये।"

संत ने उत्तर दिया - "हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इस संसार को देखता है। मैं उन दोनों की बात का क्यों खंडन करूं? एक व्यक्ति अच्छी बात देख रहा है, दूसरा बुरी। क्या तुम यह कहोगे कि उनमें से एक गलत समझ रहा है। क्या हर जगह अच्छे और बुरे लोग नहीं होते? इन दोनों में से किसी ने भी गलत बात नहीं कही, बस अधूरी बात कही।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:10 AM
परीक्षण का जोखिम उठाने का साहस

एक राजा के दरबार में एक महत्त्वपूर्ण पद रिक्त था। इस पद के लिए वह योग्य उम्मीदवार की तलाश में था। उसके दरबार में बहुत से बुद्धिमान और शक्तिशाली उम्मीदवार मौजूद थे।

राजा ने उनसे कहा - "मेरे बुद्धिमान साथियों! मेरे समक्ष एक समस्या है और मैं यह देखना चाहता हूं कि तुम लोगों में से कौन इसे सुलझा पाता है।"इसके उपरांत वह सभी लोगों को लेकर एक विशाल दरवाज़े के पास पहुंचा। इतना बड़ा दरवाज़ा उनमें से किसी ने नहीं देखा था। राजा बोला - "यह मेरे राज्य का सबसे बड़ा और भारी दरवाज़ा है। तुममें से कौन इसे खोल सकता है?"

कुछ दरबारियों ने इंकार की मुद्रा में तुरंत अपने सिर हिला दिए। कुछ अन्य बुद्धिमान दरबारियों ने नजदीकी से दरवाज़े को देखा ओर अपनी असमर्थता जाहिर की।

बुद्धिमान दरबारियों को इंकार करते देख बाकी सभी दरबारी भी इस बात पर सहमत हो गए कि यह बहुत बड़ी समस्या है और इसका सुलझना असंभव है।

केवल एक दरबारी उस दरवाज़े के पास तक गया। उसने अपनी आँखों और अंगुलियों से दरवाज़े का परीक्षण किया तथा उसे हिलाने की कोशिश की। अंततः काफी ताकत लगाकर उसने दरवाज़े को खींचा और दरवाज़ा खुल गया। हालाकि दरवाज़ा अधखुला ही रह गया था परंतु इसे बंद करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि उसके साहस की परीक्षा हो चुकी थी।राजा ने कहा - "तुम ही दरबार में उस महत्त्वपूर्ण पद पर बैठने के योग्य हो क्योंकि तुमने सिर्फ देखकर और सुनकर ही विश्वास नहीं कर लिया। तुमने कार्य को संपन्न करने के लिए अपनी ताकत का प्रयोग किया और परीक्षण का जोखिम उठाया।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:10 AM
मृत्यु का भय

खाने का शौकीन एक राजा खा खाकर इतना मोटा हो गया कि उसका चलना फिरना दूभर हो गया . उसने कई डॉक्टरों से अपने मोटापे का इलाज करवाया मगर इलाज का कुछ असर नहीं हुआ क्योंकि राजा खाना छोड़ नहीं सकता था.

जो डॉक्टर उसे कम खाने या नहीं खाने की सलाह देते , उन्हें वह प्राण दण्ड दे देता.

राजा ने अंततः अपने मोटापे के इलाज के लिए बड़े इनाम की घोषणा की . परंतु प्राणदण्ड के भय के कारण कोई डॉक्टर आया ही नहीं.

एक दिन एक भविष्यवक्ता राज दरबार में आया और उसने भविष्यवाणी की कि अब राजा का कोई इलाज नहीं हो सकता . क्योंकि राजा के दिन गिने चुने हैं . राजा अब सिर्फ एक महीने का मेहमान है . आज से ठीक एक महीने के बाद राजा की मृत्यु हो जाएगी . और इस बीच यदि राजा ने आईना देख लिया तो उसकी मृत्यु की तिथि और पहले खिसक आएगी.

राजा घबरा गया . उसने ज्योतिषी को कैद कर लिया और कहा कि यदि उसकी भविष्यवाणी सच नहीं हुई तो एक महीने बाद राजा नहीं , वह ज्योतिषी मरेगा .राजा रोज दिन गिनने लगा . दरअसल वह घंटा मिनट और सेकंड गिनने लगा . एक महीना उसे एकदम पास और प्रत्यक्ष दिख रहा था . सामने मौत दिख रही थी . उसकी भूख - प्यास मिट गई थी.

रोते गाते एक महीना बीत गया . राजा को कुछ नहीं हुआ . राजा ने ज्योतिषी को बुलवा भेजा और व्यंग्य से कहा - महीना बीत गया और मैं जिंदा हूँ . तुम्हारी भविष्यवाणी गलत निकली . तुम्हें फांसी पर लटकाया जाने का हुक्म दिया जाता है.

उस भविष्यवक्ता ने कहा - पहली बात तो यह कि मैं भविष्यवक्ता नहीं हूँ . दूसरी बात यह कि मैं पेशे से डाक्टर हूँ . तीसरी बात यह कि आपने पिछले तीस दिनों से आईना नहीं देखा होगा , तो जरा देखें.

राजा ने तुरंत आईना मंगा कर देखा . राजा का मुंह खुला रह गया . उसका मोटापा जाता रहा था . पिछले तीस दिनों से मृत्यु भय से उसने कुछ खाया पीया जो नहीं था!

Sameerchand
25-11-2012, 08:11 AM
सही कीमत

एक गरीब आदमी को राह चलते एक चमकीला पत्थर मिला . वास्तव में वह चमकीला पत्थर बिना तराशा हीरा था . इसकी कीमत वह गरीब आदमी जानता नहीं था . संयोग से उसी वक्त एक जौहरी उधर से गुजर रहा था . उसने वह चमकीला पत्थर गरीब के हाथ में देखा तो उसने वह हीरा उससे सौ रुपए में खरीदना चाहा . जौहरी की पारखी नजरों ने उसकी सही कीमत पहचान ली थी.

उस गरीब को थोड़ा संदेह हुआ कि जौहरी इस पत्थर की इतनी कीमत क्यों दे रहा है . तो उसने उस पत्थर को सौ रुपए में बेचने से इंकार कर दिया . उसने जौहरी से कहा कि वो इसके पांच सौ लेगा.

जौहरी ने गरीब से कहा कि मूर्ख , इस सड़े पत्थर के पांच सौ कौन देगा . चल चार सौ में दे दे.

गरीब ने सोचा कि चलो ये भी फायदे का सौदा है , तो उसने हामी भर दी.

परंतु जब जौहरी ने अपनी जेब टटोली तो उसमें सिर्फ तीन सौ निकले . जौहरी ने गरीब से कहा कि वो इंतजार करे , जल्दी ही मैं बाकी रुपये लेकर लौटता हूं.

और जब जौहरी पूरे पैसे लेकर वापस आया तो उसने देखा कि गरीब के हाथ में चमकीले पत्थर की जगह रुपए थे . जौहरी ने गरीब से पूछा कि माजरा क्या है.

गरीब ने जौहरी को बताया कि उस पत्थर की सही कीमत तुम लगा ही नहीं रहे थे . उसकी असली कीमत तो उस दूसरे जौहरी ने लगाई , और मुझे पूरे हजार रुपए दिए!

इस पर वह जौहरी झल्लाया और बोला - मूर्ख ! उस पत्थर की असली कीमत लाख रूपए थी . तुम्हें तो वो हजार रुपए में मूर्ख बना गया!

मूर्ख तो तुम बन गए - गरीब आगे बोला - तुम तो मुझे चार सौ रुपल्ली में मूर्ख बनाने चले थे कि नहीं ? और मैंने तुम्हें मूर्ख बना दिया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:11 AM
लकीर छोटी या बड़ी

कक्षा में गुरूजी ने एक लकीर खींची और प्रश्न पूछा कि इस लकीर को छोटा कैसे किया जा सकता है .

अधिकांश बच्चों ने कहा कि किसी एक तरफ से लकीर को मिटाकर .

परंतु एक बच्चा खड़ा हुआ , उसने गुरुजी के हाथ से कलम ली और उस लकीर के ऊपर एक बड़ी लकीर खींच दी . फिर गुरूजी से मुखातिब होकर बोला - लीजिए गुरुजी , यह लकीर मैंने छोटी कर दी . इस बड़ी लकीर के सामने यह छोटी है . और यदि आप कहें तो मैं बड़ी भी बना सकता हूँ !

"अपनी लकीर आप स्वयं के कृत्य से बड़ा बनाएं , न कि दूसरों की लकीरें छोटी कर !"

Sameerchand
25-11-2012, 08:11 AM
बादामी दिमाग

पहले मेरी मां मुझे रोज सुबह नाश्ते में पांच बादाम देती थी और कहती थी कि इससे दिमाग सुधरेगा . बाद में मेरी बीवी भी नाश्ते में पांच बादाम देती रही .

परंतु मेरे पिता अकसर मुझे बादाम खाते देखते और मुझसे कहते - बादाम खाने से दिमाग तेज नहीं होता .

मैंने उनके इस वाक्य को सैकड़ों मर्तबा सुना था . मगर फिर भी मैं इंतजार करता . उनके आगे के वाक्य का . आगे वे कहते -

"दिमाग सुधरता है जीवन के थपेड़े खाने से !"

Sameerchand
25-11-2012, 08:11 AM
दुनिया एक सराय है

एक सूफी संत राजा के दरबार में आए और राजा से बोले - मुझे इस सराय में सोने के लिए थोड़ी सी जगह चाहिए.

राजा ने अप्रसन्नता से कहा - यह सराय नहीं है , यह राजमहल है!

संत ने राजा से पूछा - तुमसे पहले यहाँ कौन रहता था?

राजा ने कहा - मेरे पिता.

संत ने फिर पूछा - और उससे पहले?

राजा ने फिर तनिक अप्रसन्नता से बताया - मेरे पितामह.

तो , जब लोग यहाँ आते जाते रहते हैं , फिर भी तुम कहते हो यह सराय नहीं है ! संत ने राजा से प्रश्न किया.

हर कोई सराय में रहता है ! कोई उसे प्रासाद कहता है , कोई होम , स्वीट होम.

Sameerchand
25-11-2012, 08:11 AM
सोचने के लिए एक दिन दे दो

मैंने अपने मित्र प्रभात के साथ शर्त लगाया कि मैच में पाकिस्तान नहीं, इंडिया जीतेगा. और जब मैं अपने मित्र से शर्त हार गया तो मैंने अपने मित्र को कहा कि वो शर्त जीतने के उपलक्ष्य में मुझसे कुछ मांग ले .प्रभात ने मुझसे कहा कि अभी तो कुछ सूझ नहीं रहा है , अतः सोचने के लिए मैं उसे एक दिन का समय दे.

मैंने कहा - दिया, खुशी खुशी दिया.

दूसरे दिन प्रभात मेरे पास पहुँचा और और मुझसे एक नया कीमती मोबाईल शर्त जीतने के नाम पर मांगने लगा.परंतु मैंने स्पष्ट किया- मैंने तुम्हें शर्त जीतने पर मुझसे कुछ मांगने को कहा था. तो तुमने एक दिन सोचने के लिए मांगा था. तो वो मैंने तुम्हें दे दिया था. दिया था कि नहीं ?

Sameerchand
25-11-2012, 08:12 AM
संसार का सबसे दुःखी इंसान

राजा का दरबार लगा हुआ था। उस दिन दरबार मे चर्चा का विषय था कि इस संसार में सबसे दुःखी इंसान कौन है?

सभी दरबारियों ने अपनी-अपनी राय रखी। सभी दरबारियों में आपस में मतभेद था। अंततः वे सभी इस नतीजे पर पहुंचे कि यदि कोई गरीब और बीमार हैं तो वह सबसे ज्यादा दुःखी है।

इस नतीजे से राजा संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने अपने सबसे समझदार दरबारी चतुरनाथ की ओर देखा, जिसने सारी बहस चुपचाप सुनी थी। राजा ने चतुरनाथ से पूछा - "तुम्हारी इस बारे में क्या राय है?"

चतुरनाथ ने उत्तर दिया - "हे महाराज! मेरी इस बारे में विनम्र राय यह है कि जो व्यक्ति ईर्ष्यालु और द्वेषी है, वह हमेशा दुःखी रहता है। वह दूसरा को अच्छा कार्य करते हुए देखकर दुःखी होता है। उसका चित्त कभी शांत नहीं रहता। वह हमेशा शंकालु रहता है। वह दूसरों का भला होते देख नफरत से भर जाता है। ऐसा इंसान ही संसार में सबसे ज्यादा दुःखी होता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:12 AM
गुरू की जरूरत

गुरूकुल में आये एक आगंतुक ने वहां रहने वाले एक अंतःवासी से पूछा - "तुम्हें गुरू की जरूरत क्यों है?"

अंतःवासी ने उत्तर दिया - "जिस तरह पानी को गर्म करने के लिए पानी और आग के मध्य एक बर्तन का होना जरूरी है। उसी तरह हमारे जीवन में गुरू की जरूरत है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:12 AM
अवज्ञा परीक्षण

गुरु बारी बारी से अपने शिष्यों को दीक्षा दे रहे थे. प्रत्येक शिष्य के कान में वे गुरु मंत्र फूंकते और उन्हें बताते कि इस मंत्र का ताउम्र पाठ करते रहें और इसे किसी को न बताएं.एक शिष्य को जब गुरु ने गुरुमंत्र फूंका और यही निर्देश दिए तो शिष्य ने गुरु से प्रतिप्रश्न किया – “गुरूदेव, आपने कहा है कि इस मंत्र को किसी को न बताऊं. तो मेरे ऐसा करने से क्या हो जाएगा?”

गुरु ने कहा – “होगा तो कुछ नहीं, गुरु मंत्र अप्रभावशाली हो जाएगा और तुम्हारी दीक्षा खत्म हो जाएगी.”

वह शिष्य तत्क्षण उठा और सीधे बीच बाजार में पहुँच गया. वहाँ उसने लोगों की भीड़ एकत्र की और उस गुरु मंत्र को सबको बता दिया.

गुरु के पास जब यह वाकया पहुँचा और जब कुछ शिष्यों ने इस कांड पर कार्यवाही करने की बात कही तो गुरु ने कहा – “कुछ करने की जरूरत नहीं है. उसका यह कृत्य ही अपने आप में यह कहता है कि वह भी अपने स्वयं के विचारों के लिहाज से गुरु है.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:12 AM
अंधा कानून

चार मित्रों का रूई का साझा कारोबार था. उनके पास एक भंडार गृह था जिसमें रूई की गांठें रखी रहती थीं. भंडार गृह में रुई की गाठों को चूहे कुतरते थे जिससे उन्हें अच्छा खासा नुकसान सहना पड़ता था. चारों मित्रों ने सोचविचार कर एक बिल्ली पाल ली. बिल्ली की वजह से चूहों की समस्या से निजात मिल गई. जल्द ही बिल्ली चारों मित्रों की चहेती बन गई. चारों ने एक दिन मजाक में यह करार कर लिया कि बिल्ली की चारों टांगे वे आपस में बांट लेते हैं. और ऐसा सोच कर हर एक ने उस बिल्ली की चारों टांगों में अपने अपने पसंद से सोने के घुंघरू बाँध दिए. बिल्ली अपने पैरों के घुंघरू से आवाज निकालते इधर उधर उछलकूद मचाती रहती.

एक दिन बिल्ली के एक पैर में चोट लग गई और वह लंगड़ाने लगी. जिस मित्र के हिस्से की टाँग थी, उसने उस पैर में पट्टी बाँध दी ताकि बिल्ली जल्द ठीक हो सके. बिल्ली के उछल कूद से पट्टी जल्द ही ढीली हो गई और उसका एक सिरा खुल गया और जमीन में लपटने लगा.

संयोग वश एक शाम जब चारों मित्र भंडार में आरती कर रहे थे तो बिल्ली ने ऊपर से से छलांग लगाई. बिल्ली के पैर में बंधी पट्टी का खुला सिरा जलते दीपक की लौ पर पड़ा और उसमें आग लग गई. इस कारण से वहीं पर रखे रूई की गांठ में भी आग लग गई. इससे बिल्ली घबरा गई और उछल कूद मचाने लगी. देखते ही देखते पूरा रूई का गोदाम खाक में बदल गया.

अब मित्रों ने बिल्ली को लेकर आपस में एक दूसरे को भला बुरा कहना शुरू कर दिया. बात यहाँ तक आ गई कि लंगड़ी टाँग का मालिक बाकी के तीन मित्रों को हर्जाना दे क्योंकि उस टाँग की पट्टी के कारण ही आग लगी.

बात बढ़ती गई और न्यायाधीश के सामने निराकरण के लिए पहुँची. न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की बातचीत सुनी और निर्णय दिया – “यह सच है कि बिल्ली के लंगड़े पैर में बंधी पट्टी में आग लगी थी परंतु बिल्ली ने इस आग को फैलाने में अपने बाकी तीन अच्छे पैरों का प्रयोग किया अतः इन अच्छे पैरों के मालिक लंगड़े पैर के मालिक को हर्जाना दें.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:13 AM
देश के लिए बलिदान

भगत सिंह को पढ़ने लिखने में भी रूचि थी (भगत सिंह का लिखा "मैं नास्तिक क्यों हूँ" आपको कभी मौका मिले तो जरुर पढ़े.). वे जितना स्वतंत्रता संग्राम और क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ते, इस संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़ने की उनकी इच्छा उतनी ही बलवती होती जाती. उन्होंने रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल होने के लिए शचीन्द्रनाथ सान्याल को पत्र लिखा. रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल होने की एक शर्त यह भी थी – पार्टी के बुलावे पर बिना किसी देरी किए तुंरत ही घर परिवार छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना होगा.

इस बीच भगत सिंह की दादी की इच्छा-स्वरूप उनकी शादी तय कर दी गई. शादी की तारीख करीब आ गई. उसी दौरान, शादी के कुछ दिन पहले रिवोल्यूशनरी पार्टी से बुलावा आ गया. भगत सिंह ने चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ दिया और पार्टी कार्यालय लाहौर चले गए.

परंतु घर छोड़ने से पहले उन्होंने एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने लिखा था “मेरे जीवन का उद्देश्य है भारत की स्वतंत्रता के लिए मर मिटना. मेरे उपनयन संस्कार के समय मुझसे मन में कोई शपथ लेने को कहा गया था. मैंने शपथ ली थी कि मैं देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा. अब समय आ गया है और मैं देश की सेवा के लिए जा रहा हूं.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:13 AM
दुनिया का विनाश

एक बौद्धलामा "दुनिया का विनाश" विषय पर एक व्याख्यान देने वाले थे। उनके इस व्याख्यान का बहुत प्रचार-प्रसार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए मठ में एकत्र हो गयी।

लामाजी का व्याख्यान एक मिनट से कम समय में समाप्त हो गया।

उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा - "ये सारी चीजें मानवजाति का विनाश कर देंगी - अनुकंपा के बिना राजनीति, काम के बिना दौलत, मौन के बिना शिक्षा, निडरता के बिना धर्म और जागरूकता के बिना उपासना।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:13 AM
खानपान पर नियंत्रण रखो

एक सेठ था। उसे कई दिनों से बहुत खांसी आ रही थी लेकिन उसे खट्टी चीजें - खट्टा दही, खट्टा मट्ठा, अचार आदि खाने की बुरी आदत थी। वह खांसी के उपचार के लिए कई वैद्यों के पास गया। सभी ने उसे खट्टी चीजें न खाने की सलाह दी ताकि उनकी दवाऐं कुछ असर दिखा सकें परंतु सब व्यर्थ।

अंत में वह एक बुजुर्ग वैद्य के पास गया जिसने उस सेठ को अपनी दवाओं के साथ कोई भी मनचाही चीज खाने की अनुमति दे दी। वैद्य ने उसे दवाऐं दी और सेठ अपनी आदत के अनुसार खट्टी चीजें खाता रहा। कुछ दिनों बाद जब वह वैद्य के पास पहुंचा तो वैद्य ने उसका हालचाल पूछा। उसने कहा - "खांसी में और बढ़ोत्तरी तो नहीं हुई परंतु कुछ खास फायदा भी नहीं हुआ।"

वैद्य ने उससे कहा - "तुम मेरी दवाओं के साथ - साथ खट्टी चीजें खाते रहो। इससे तुम्हें तीन फायदे होंगे।"

सेठ ने व्यग्रता से पूछा - "कौन से तीन फायदे?"

वैद्य ने उत्तर दिया - "पहला यह कि तुम्हारे घर में कभी चोर नहीं आयेंगे। दूसरा यह कि तुम्हें कुत्ता नहीं काटेगा। तीसरा यह कि तुम बूढ़े नहीं होगे।"

सेठ ने फिर पूछा - "ये सब तो अच्छी बात है परंतु इनका खट्टी चीजों से क्या संबंध?"

वैद्य ने उत्तर दिया - "यदि तुम खट्टी चीजें खाते रहोगे तो तुम्हारी खांसी कभी ठीक नहीं होगी। तुम दिन-रात खांसते रहोगे तो चोर तुम्हारे घर कैसे आयेंगे? और खांसी से तुम इतने कमजोर हो जाओगे कि बिना छड़ी की सहायता के तुम चल भी नहीं सकोगे। तुम्हारे हाथ में छड़ी देखकर कुत्ते तुम्हारे पास नहीं फटकेंगे। कमजोरी के चलते भरी जवानी में ही मर जाओगे इसलिए तुम बूढ़े ही नहीं होगे।"

"जो व्यक्ति अपने खान-पान को लेकर लापरवाह है, वह कभी भी बीमारियों से मुक्त नहीं हो सकता।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:13 AM
रायफल की खेती

भगत सिंह का पूरा परिवार क्रांतिकारी था. उनके पितामह, पिता व चाचा सभी ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था.

एक बार उनके पिता कृशन सिंह अपने मित्र नंद किशोर मेहता को अपना आम का बग़ीचा दिखाने ले गए. बगीचे में भगत सिंह अकेले काम कर रहे थे. मित्र ने सामान्य उत्सुकतावश पूछा कि बेटे तुम यहाँ अकेले क्या कर रहे हो.

भगत सिंह ने उत्तर दिया – रायफल की खेती करने के लिए बीज बो रहा हूं.

मित्र को आश्चर्य हुआ. उन्होंने प्रश्न किया – रायफल की खेती?

हाँ, ताकि मैं अपने देश को फिरंगियों से मुक्त करवा सकूं – भगत सिंह ने उत्तर दिया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:14 AM
दो खरगोशों का पीछा करना

एक शिष्य, जो अपने समय के सुप्रसिद्ध गुरूजी से धनुर्विद्या सीख रहा था, उनके समक्ष एक प्रश्न लेकर गया - मैं धनुर्विद्या की कला में और पारंगत होना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि आपसे धनुर्विद्या सीखने के अलावा मैं दूसरे गुरूजी के पास भी धनुर्विद्या सीखने जाऊं ताकि मैं कुछ और गुर सीख सकूं। इस बारे में आपका क्या विचार है।"

गुरूजी ने उत्तर दिया - "वह शिकारी जो एकबार में दो खरगोशों का पीछा करता है, उसके हाथ एक भी खरगोश नहीं लगता।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:14 AM
उधारी

एक शाम नसरूद्दीन अपने घर के बरामदे में बड़ी चिंतित मुद्रा में घूम रहा था. बार बार पसीना पोंछे जा रहा था. उसकी पत्नी से आखिर रहा नहीं गया तो पूछा – “क्या बात है, बहुत चिंतित लग रहे हो?”

“मैंने इब्राहीम से सौ दीनार उधार लिया था. आज शाम को यह उधारी चुकानी थी. मेरे पास आज यह उधारी चुकाने को पैसा नहीं है”

“इब्राहीम तो बहुत ही भला आदमी है. उससे जाकर बोल क्यों नहीं देते कि आज उधारी नहीं चुका पाओगे. वो भला आदमी जरूर मान जाएगा.”

“तुम ठीक कहती हो.” यह कहकर नसरूद्दीन इब्राहीम के पास चला गया.

जब नसरूद्दीन वापस आया तो उसकी बीवी ने पूछा – “क्या हुआ?”

“हुआ तो कुछ खास नहीं, मगर जब मैंने उसे अपनी परेशानी बताई तो अब वो अपने बरामदे में टहल रहा है और पसीना पोंछे जा रहा है.” नसरूद्दीन ने बताया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:14 AM
ईश्वर ने हमें पलकें भी दी हैं

जब गुरूजी का एक शिष्य गंभीर गलती करते हुए पकड़ा गया तो सभी लोगों को गुरूजी से यह अपेक्षा हुई कि वे उसे कठोरतम दंड देंगे। जब एक माह गुजरने के बाद भी गुरूजी ने उसे कोई दंड नहीं दिया तो किसी ने यह कहते हुए अपनी आपत्ति व्यक्त की - "जो कुछ भी घटित हुआ है, हम उसे भूल नहीं सकते आखिर ईश्वर ने हमें आँखें दी हैं।"

गुरूजी ने उत्तर दिया - "तुमने बिल्कुल सही कहा। परंतु ईश्वर ने हमें पलकें भी दी हैं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:14 AM
जीत का बिंदु

यह उस समय की बात है जब अब्राहम लिंकन वकालत करते थे। एक व्यक्ति उनके पास अपना मुकदमा सौंपने गया। लिंकन ने उसकी फाइल को पढ़ा और कहा - "कानूनी दाँवपेंच के हिसाब से तुम यह मुकदमा जीत सकते हो।"

यह कहने के तुरंत बाद उन्होंन उसकी फाइल को लौटा दिया और कहा - "सत्य के आधार पर तुम्हारा मुकदमा जीतना असंभव है। बेहतर होगा तुम कोई दूसरा वकील तलाश लो। यदि मैं तुम्हारा मुकदमा लड़ूंगा तो मेरे मन में हर समय यह दबाब बना रहेगा कि मैं अदालत में झूठ बोल रहा हूँ। और यह भी हो सकता है कि ज्यादा दबाब के चलते मैं अदालत में सब कुछ सत्य बोल दूं और तुम मुकदमा हार जाओ।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:14 AM
श्रीनिवास रामानुजन – भागफल

गुरुजी गणित के सवाल पढ़ा रहे थे. गुरुजी ने एक प्रश्न पूछा “यदि हमारे पास 3 केले हों, और तीन छात्र हों और इन केले को सबको बराबर बराबर बांटना हो तो हर छात्र को कितने केले मिलेंगे?”

पहली पंक्ति में बैठे एक बुद्धिमान छात्र ने उत्तर दिया – “हर एक को एक केला मिलेगा.”

“बहुत सही.” गुरूजी ने कहा और वे भाग व भागफल के बारे में विस्तार से बताने लगे.

परंतु एक छात्र से रहा नहीं गया और उठ खड़ा होकर उसने पूछा “गुरूजी, यदि कोई भी छात्र को को कोई भी केला नहीं दिया जाए तो क्या इनमें से हरेक को एक केला मिलेगा?”इस मूर्खता भरे प्रश्न को सुन सारे छात्र हो हो कर हंस पड़े.

मगर गुरूजी गंभीर हो गए. उन्होंने छात्रों से कहा – इसमें हंसने जैसी कोई बात नहीं है. यह वह प्रश्न है, जिसका उत्तर ढूंढने के लिए गणितज्ञों को सौ साल लग गए. यह छात्र पूछ रहा है कि शून्य को यदि शून्य से भाग दे दिया जाए तो परिणाम क्या होगा?

यह प्रश्न पूछने वाले छात्र थे श्रीनिवास रामानुजन जो आगे चलकर महान गणितज्ञ बने.

Sameerchand
25-11-2012, 08:15 AM
मछली रानी जीवन दायिनी

नसरूद्दीन यात्रा पर थे. रास्ते में उन्हें एक योगी मिला. योगी समाधिस्थ थे और ध्यान कर रहे थे. नसरूद्दीन ने सोचा कि इस योगी से कुछ सीखने को मिलेगा और वहीं इंतजार करने लगे. योगी की समाधि टूटी तो मुल्ला को सामने बैठे देख योगी ने प्रश्न किया – “तुम कौन हो और क्या चाहते हो?”

नसरूद्दीन ने कहा – “महात्मा, मैं दूर देश से आया हूँ. ज्ञान की तलाश में. आपके पास जो ज्ञान है वह मुझ अज्ञानी को भी दे दें तो बड़ी कृपा होगी”

योगी ने अपना ज्ञान बांटा – “मैं विश्वास करता हूँ कि प्रत्येक जीव जंतु में आत्मा होती है. यहाँ तक कि पशुओं में भी और कीट पतंगों में भी. जो उन्हें उनके जीवन में अच्छा बुरा करने की शक्ति प्रदान करती है.”

“आपका बिलकुल सही कहना है,” मुल्ला ने कहा – “एक बार जब मैं मर रहा था तो मछली ने मेरा जीवन बचाया था.”

“अच्छा!,” योगी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा – “यह तो सचमुच आश्चर्यजनक है. तुम तो सचमुच ईश्वरीय दुआ प्राप्त व्यक्ति प्रतीत होते हो. मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना कि किसी की जान मछली ने बचाई हो. खैर, आखिर वो किस्सा क्या था?”

“ओह, किस्सा कुछ यूँ है,” मुल्ला ने विस्तार से बताया – “एक बार मैं दूर देश की यात्रा पर था. जंगल में मैं भटक गया. भूख प्यास से मेरी हालत खराब हो गई. कई दिनों तक न तो खाना मिला न पीने को पानी. आखिर में चलते चलते मुझे एक तालाब दिखा. मैंने पानी पीने के लिए दौड़ लगा दी.”

“अच्छा, तो तुम बेध्यानी और जल्दबाजी में कुंड में गिर गए होगे और कोई ईश्वरीय चमत्कार हुआ होगा, और दैवीय शक्ति संपन्न मछली ने तुम्हें तालाब से निकाला होगा..” योगी के स्वर में आतुरता थी.

“नहीं, जैसे ही मैं तालाब में कूदा, मेरे पैर के नीचे एक बड़ी सी मछली फंस गई. मैंने उसे पकड़ लिया और वहीं भून कर खा गया. भूख के मारे मैं तो मरा जा रहा था. उस मछली ने सचमुच मेरा जीवन बचाया. ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें!” नसरूद्दीन ने खुलासा किया.

Sameerchand
25-11-2012, 08:15 AM
प्रवाह के साथ बहना

ताओ दंतकथा के अनुसार एक बार एक वयस्क व्यक्ति दुर्घटनावश नदी में गिर कर भंवर में फंस गया और एक खतरनाक जलप्रपात की ओर बहने लगा।

सभी प्रत्यक्षदर्शी यह दृश्य देखकर घबड़ा गए क्योंकि उस प्रपात में गिरकर मनुष्य का मरना तय था। तभी आश्चर्यजनक रूप से वह व्यक्ति जलप्रपात में गिरकर भी सकुशल नदी से बाहर निकल आया। लोगों ने उससे पूछा कि उसके जीवित बचने का क्या राज़ है?

उस व्यक्ति ने उत्तर दिया - "मैंने नदी के प्रवाह को अपने अनुरूप बदलने के बजाए स्वयं को नदी के प्रवाह के अनुरूप ढ़ाल लिया। बिना कुछ भी सोचे हुए मैं नदी के प्रवाह के अनुरूप बहने लगा। मैं भंवर के साथ ही डूबा और भंवर के साथ ही ऊपर निकल आया। इस तरह मैं जीवित बच गया।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:15 AM
यह भी गुजर जाएगा

एक छात्र अपने गुरू के पास पहुंच कर बोला - "मैंने ध्यान लगाने का अनुभव भयानक रहा है! मैं बहुत विचलित महसूस कर रहा हूं और मेरे पैरों में दर्द हो रहा है। मुझे कई दिनों से नींद भी नहीं आ रही है। यह तो बहुत ही भयानक है।"

गुरू जी ने तथ्यात्मक रूप से उत्तर दिया - "यह भी गुजर जाएगा"

एक सप्ताह बाद वह शिष्य पुनः गुरूजी के पास लौटा और बोला - "मेरा ध्यान आश्चर्यजनक रहा! मैं अपने आप में बहुत जागरूक,शांत और जीवंत महसूस कर रहा हूं। यह सचमुच आश्चर्यजनक है।"

गुरू जी ने तथ्यात्मक रूप से उत्तर दिया - "यह भी गुजर जाएगा"

Sameerchand
25-11-2012, 08:15 AM
भीख मांगना

नसरुद्दीन अपने आप को बेवकूफ साबित करने के लिये प्रायः बाजार के बीचोबीच खड़े हो जाया करते थे।

जब भी कोई व्यक्ति उन्हें दो सिक्के दिखाकर एक लेने का आग्रह करता तो वे हमेशा छोटा सिक्का ही उठाते ताकि लोग उन्हें बेवकूफ समझते रहें। एक दिन एक दयालु व्यक्ति ने उनसे कहा - "नसरुद्दीन तुम्हें बड़ा सिक्का उठाना चाहिए ताकि तुम जल्दी धनवान बन जाओ और लोग तुम्हें बेवकूफ न समझें।"

नसरुद्दीन ने उत्तर दिया - "हो सकता है यह सही हो परंतु जिस दिन से मैं बड़ा सिक्का उठाना शुरू कर दूंगा, लोग मुझे बेवकूफ सिद्ध करने के लिए सिक्के देना बंद कर देंगे। तब तो मैं कंगाल ही हो जाऊंगा।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:15 AM
तुम्हारा धर्म अलग है

एक भटका हुआ राहगीर रात के समय एक गाँव में पहुंचा और एक घर के दरवाज़े खटखटाये। दरवाज़ा खुलने पर उसने घर में रात गुजारने देने का अनुरोध किया। उस घर के निवासी ने उस राहगीर से उसके धर्म के बारे में पूछा। राहगीर का उत्तर सुनने के बाद वह बोला कि उसका धर्म अलग होने के कारण वह उसे रात में अपने घर में ठहरने की अनुमति नहीं दे सकता।

राहगीर ने दरवाज़ा खोलने के लिए उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया और ईमानदारी से वहाँ से चला गया। पास में ही मौलश्री का पेड़ था। वह राहगीर उस पेड़ के नीचे ही सो गया। रातभर उसके ऊपर सुगंधित फूलों की वर्षा होती रही। सुबह जब उसकी आँखें खुलीं तो वह ऊर्जा और ताजगी से भरा हुआ था।

उसने फिर उसी घर के दरवाज़े खटखटाये और दरवाज़ा खुलने पर उसने घर के मालिक को तीन बार धन्यवाद दिया कि उसने रात को उसे शरण नहीं दी थी। वह राहगीर बोला -"यदि रात को आपने मुझे अपने घर में शरण दे दी होती तो मैं मौलश्री वृक्ष के नीचे रात गुजारने के दैवीय अनुभव से वंचित रह जाता और पूरी रात मुझे आपके और आपके धर्म के बारे में सुनना पड़ता। यह प्रकृति और मानवता ही सर्वोपरि धर्म है। वृक्ष के नीचे सोते हुए मैंने यही सीखा। इन सब अनुभवों को दिलाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद!"

Sameerchand
25-11-2012, 08:16 AM
ज्ञान बड़ा या हीरा


एक बुद्धिमान व्यक्ति को पहाड़ों में घूमते घूमते एक कीमती पत्थर मिला तो उन्होंने उसे अपने थैले में रख लिया. कुछ समय पश्चात आगे जाने पर उन्हें एक भूखा-प्यासा यात्री मिला. उस बुद्धिमान व्यक्ति ने भोजन से भरे अपने थैले का मुंह उस भूखे प्यासे यात्री की ओर कर दिया. खाना खाते-खाते यात्री ने थैले में रखा कीमती पत्थर भी देख लिया.
उस पत्थर को देखकर उस यात्री के मन में लालच जागा और उसने बुद्धिमान व्यक्ति से पूछा कि क्या वह उस पत्थर को ले सकता है.

बिना कोई दूसरा विचार किए उस बुद्धिमान व्यक्ति ने वह पत्थर यात्री को दे दिया. वह यात्री बेहद प्रसन्न होकर चला गया.

परंतु कोई दो-एक घंटे बाद ही वह यात्री वापस उस बुद्धिमान व्यक्ति के पास आया और वह कीमती पत्थर वापस करते हुए बोला –

“मैं इस कीमती पत्थर को ले जाते हुए बेहद प्रसन्न था. परंतु मैं सोचने लगा कि इतने कीमती पत्थर को आपने मुझे आसानी से बिना किसी फल प्रतिफल या आशा प्रत्याशा में दे दिया. तो, अब आप मुझे अपने पास का वह ज्ञान दे दें जिसने आप के भीतर यह क्षमता प्रदान की है!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:16 AM
आप अपनी लँगोटी कैसे बचाते हैं?

एक आध्यात्मिक गुरु अपने शिष्य की धार्मिकता, समर्पण और ज्ञान से इतना प्रभावित हुए कि जब वे अन्य आश्रम की ओर प्रस्थान पर गए तो अपने शिष्य को एक गांव के बाहर एक छोटे से झोंपड़े में छोड़ गए कि वह गांव वालों का कल्याण करेगा.

उस शिष्य के पास एक लंगोट और एक भिक्षा पात्र के अलावा कुछ नहीं था. वह गांव से अपना आहार भिक्षा रूप में प्राप्त करता और झोपड़ी में तप और ध्यान करता. जब उसका लंगोट गंदा हो जाता तो रात्रि के अंधेरे में उसे धोकर वहीं सुखा देता.

एक दिन सुबह उसने देखा कि उसके लंगोट को किसी चूहे ने कुतर डाला है. गांव वालों ने उसके लिए नए लंगोट का प्रबंध कर दिया. मगर जब नए लंगोट को भी चूहों ने नहीं बख्शा तो फिर शिष्य ने चूहों के उत्पात से बचने के लिए बिल्ली पाल ली.

अब वह भिक्षा में बिल्ली के लिए दूध भी मांग लाता. उसे चूहों से तो निजात मिल गई थी, मगर बिल्ली के लिए नित्य दूध मांग लाना पड़ता था.

इस समस्या का हल निकालने के लिए उसने एक गाय पाल ली. मगर गाय के लिए चारा भी उसे मांग लाना पड़ता था. उसने आसपास खाली जमीन पर चारा उगाने को सोचा. कुछ समय तो ठीक चला, पर इससे उसे ध्यान योग में समय नहीं मिलता था. तो उसने गांव के एक व्यक्ति को काम पर रख लिया. अब उस व्यक्ति पर नजर कौन रखे. तो उसने लँगोटी छोड़ धोती धारण कर ली और एक स्त्री से विवाह कर लिया.

और, देखते ही देखते, वह गांव का सर्वाधिक अमीर व्यक्ति बन गया.

कुछ समय पश्चात उसका आध्यात्मिक गुरु वापस उस गांव के भ्रमण पर आया. वह उस स्थल पर पहुँचा जहाँ झोपड़ी में उसका शिष्य रहता था. परंतु यह क्या? वहाँ तो अट्टालिका खड़ी थी. उसे दुःख हुआ कि गांव वालों ने उसके शिष्य को भगा दिया शायद. परंतु उस अट्टालिका से एक मोटा ताजा आदमी बाहर आया और आते ही गुरु के चरणों में लिपट गया. गुरु ने उसे पहचान लिया. गुरु को झटका लगा. पूछा – अरे! इसका क्या मतलब है?

“गुरूदेव, आपको विश्वास नहीं होगा,” उस शिष्य ने कहा – “मेरी अपनी लँगोटी बचाए रखने के लिए इसके बेहतर और कोई तरीका ही नहीं था!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:16 AM
भेंगी आँख


दो सहेलियाँ अरसे बाद मिलीं.
शुरूआती रोने धोने के बाद दोनों अपने-अपने बच्चों पर आ गईं.
“अरी, बता” एक ने पूछा, “तेरा बेटा कैसा है?”
“क्या बताऊँ, बहन” दूसरी ने उत्तर दिया, “उसके तो भाग ही फूट गए. उसकी बीवी एकदम फूहड़ मिली है. कोई काम धाम नहीं करती, बस फैशन मारते रहती है. यहाँ तक कि सुबह का नाश्ता भी मेरा बेटा बना कर उसे खिलाता है!”
“ओह,” पहली ने अफसोस जताया और फिर पूछा, “और तेरी बेटी – वो कैसी है?”
“वाह, उसकी किस्मत की तो मत पूछ,” दूसरी ने चहकते हुए बताया, “उसे एकदम राजकुमारों जैसा पति मिला है. उसे कोई काम ही नहीं करने देता. अच्छे अच्छे कपड़े पहनाता रहता है. यहाँ तक कि वह मेरी बेटी को रोज सुबह नाश्ता बनाकर भी वही सर्व करता है!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:18 AM
असली राजा के लिए गाना

अकबर ने एक दिन तानसेन से कहा – तानसेन, तुम इतना अच्छा गाते हो तो तुम्हारा गुरु कितना अच्छा गाता होगा. हमें उसका गाना सुनना है.

तानसेन ने कहा – जहाँपनाह, मेरे गुरु स्वामी हरिदास जंगलों में रहते हैं और वे अपनी मर्जी के मालिक हैं. मन पड़ता है तभी गाते हैं. कोई बादशाह या शहंशाह उनसे गाना गाने के लिए कह नहीं सकता. मगर हाँ, आपकी यदि इच्छा है तो मैं प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ.

दूसरे दिन अकबर और तानसेन जंगलों में हरिदास के पास गए. वहाँ पहुँचकर तानसेन ने एक राग छेड़ा. तानसेन बहुत बढ़िया, तन्मयता से गा रहे थे. वातावरण सुमधुर हो गया था. तभी तानसेन ने जानबूझ कर एक गलत सुर ले लिया. यह सुनते ही स्वामी हरिदास ने वहाँ से सुर सँभाला और खुद गाने लगे. उनकी आवाज में तो जादू था. अकबर बड़े प्रसन्न हुए.

लौटते समय अकबर ने तानसेन से पूछा – तानसेन, तुम भी इतनी मेहनत और रियाज करते हो, मगर तुम्हारा गला स्वामी हरिदास जैसा सुमधुर क्यों नहीं है?

इस पर तानसेन ने जवाब दिया – जहाँपनाह, मैं अपने राजा – यानी आप के लिए गाता हूँ, और स्वामी हरिदास अपने राजा – यानी ईश्वर के लिए, इसीलिए!

Sameerchand
25-11-2012, 08:18 AM
दर्पण में देखो


सुकरात बहुत बदसूरत थे। वे अपने साथ हर समय एक दर्पण रखा करते थे जिसमें वे प्रायः अपना प्रतिबिंब देखा करते थे। उनके एक मित्र ने कहा - "तुम इतने बदसूरत हो फिर भी बार-बार अपना चेहरा दर्पण में क्यों निहारते रहते हो?"

सुकरात ने उत्तर दिया - "यह मुझे अच्छे कार्य करने की याद दिलाता है ताकि मैं अपने अच्छे कार्यों से अपनी बदसूरती को छुपा सकूं।"

कुछ देर रुककर वे फिर बोले - "और इसी तरह जो लोग देखने में खूबसूरत हैं, उन्हें यह समय यह याद रखना चाहिए कि उनके बुरे कार्यों से ईश्वर द्वारा उन्हें दी गयी खूबसूरती में भी दाग लगते हैं।"

उनकी राय में मनुष्य को चंदन की तरह होना चाहिए जो देखने में भले ही आकर्षक न हो पर अपनी सुगंध चारों ओर फैलाता है।

Sameerchand
25-11-2012, 08:18 AM
सही कूटनीति

एक प्रभावशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री से सामंत का पद हासिल करने के लिए उनके पीछे पड़ा था।

प्रधानमंत्री उसे वह पद देना नहीं चाहते थे। अंततः उन्होंने उसकी भावनाओं को आहत किए बिना उसे संतुष्ट करने का रास्ता खोज ही लिया। उन्होंने कहा - "मैं क्षमा चाहता हूं कि मैं तुम्हें सामंत का पद नहीं दे रहा हूं परंतु मैं तुम्हें उससे भी बेहतर चीज दे रहा हूं। तुम अपने मित्रों से यह कहो कि मैंने तुम्हें सामंत के पद का प्रस्ताव दिया था परंतु तुमने उसे ठुकरा दिया।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:18 AM
छोटा सा अंतर

एक बुद्धिमान व्यक्ति, जो लिखने का शौकीन था, लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी । लेकिन, लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था । एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा ।जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था । और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी -छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं ।अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,"नमस्ते भाई ! तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं । इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?इस पर वह व्यक्ति जो छोटी -छोटी मछलियों को एक -एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"देखिए !सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं । ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा । " और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला ,"किन्तु , इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया ,और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है । "इसी प्रकार ईश्वर ने आप सब में भी यह योग्यता दी है कि आप एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं । जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि । आप अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं ,आपको यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है ।और विश्वास जानिए ,ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा ।

Sameerchand
25-11-2012, 08:19 AM
संतोष का पुरस्कार

आसफउद्दौला नेक बादशाह था। जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था। एक दिन उसने एक फकीर को गाते सुना- जिसको न दे मौला उसे दे आसफउद्दौला। बादशाह खुश हुआ। उसने फकीर को बुलाकर एक बड़ा तरबूज दिया। फकीर ने तरबूज ले लिया, मगर वह दुखी था। उसने सोचा- तरबूज तो कहीं भी मिल जाएगा। बादशाह को कुछ मूल्यवान चीज देनी चाहिए थी।

थोड़ी देर बाद एक और फकीर गाता हुआ बादशाह के पास से गुजरा। उसके बोल थे- मौला दिलवाए तो मिल जाए, मौला दिलवाए तो मिल जाए। आसफउद्दौला को अच्छा नहीं लगा। उसने फकीर को बेमन से दो आने दिए। फकीर ने दो आने लिए और झूमता हुआ चल दिया। दोनों फकीरों की रास्ते में भेंट हुई। उन्होंने एक दूसरे से पूछा, 'बादशाह ने क्या दिया?' पहले ने निराश स्वर में कहा,' सिर्फ यह तरबूज मिला है।' दूसरे ने खुश होकर बताया,' मुझे दो आने मिले हैं।' 'तुम ही फायदे में रहे भाई', पहले फकीर ने कहा।

दूसरा फकीर बोला, 'जो मौला ने दिया ठीक है।' पहले फकीर ने वह तरबूज दूसरे फकीर को दो आने में बेच दिया। दूसरा फकीर तरबूज लेकर बहुत खुश हुआ। वह खुशी-खुशी अपने ठिकाने पहुंचा। उसने तरबूज काटा तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसमें हीरे जवाहरात भरे थे। कुछ दिन बाद पहला फकीर फिर आसफउद्दौला से खैरात मांगने गया। बादशाह ने फकीर को पहचान लिया। वह बोला, 'तुम अब भी मांगते हो? उस दिन तरबूज दिया था वह कैसा निकला?' फकीर ने कहा, 'मैंने उसे दो आने में बेच दिया था।' बादशाह ने कहा, 'भले आदमी उसमें मैंने तुम्हारे लिए हीरे जवाहरात भरे थे, पर तुमने उसे बेच दिया। तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि तुम्हारे पास संतोष नहीं है। अगर तुमने संतोष करना सीखा होता तो तुम्हें वह सब कुछ मिल जाता जो तुमने सोचा भी नहीं था। लेकिन तुम्हें तरबूज से संतोष नहीं हुआ। तुम और की उम्मीद करने लगे। जबकि तुम्हारे बाद आने वाले फकीर को संतोष करने का पुरस्कार मिला।'

Sameerchand
25-11-2012, 08:19 AM
संतों की संगत का असर


एक नगर के बाहर जंगल में कोई साधु आकर ठहरा। संत की ख्याति नगर में फैली तो लोग आकर मिलने लगे। प्रवचनों का दौर शुरू हो गया।

संत की ख्याति दिन रात दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग दिनभर संत को घेरे रहते थे। एक चोर भी दूर से छिपकर उनको सुनता था। रात को चोरी करता और दिन में लोगों से छिपने के लिए जंगल में आ जाता। वह रोज सुनता कि संत लोगों से कहते हैं कि सत्य बोलिए। सत्य बोलने से जिंदगी सहज हो जाती है। एक दिन चोर से रहा नहीं गया, लोगों के जाने के बाद उसने अकेले में साधु से पूछा-आप रोजाना कहते हो कि सत्य बोलना चाहिए, उससे लाभ होता है लेकिन मैं कैसे सत्य बोल सकता हूं।संत ने पूछा-तुम कौन हो भाई?चोर ने कहा-मैं एक चोर हूं।संत बोले तो क्या हुआ। सत्य का लाभ सबको मिलता है। तुम भी आजमा कर देख लो।

चोर ने निर्णय लिया कि आज चोरी करते समय सभी से सच बोलूंगा। देखता हूं क्या फायदा मिलता है। उस रात चोर राजमहल में चोरी करने पहुंचा। महल के मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही उसने देखा दो प्रहरी खड़े हैं। प्रहरियों ने उसे रोका-ऐ किधर जा रहा है, कौन है तूं।

चोर ने निडरता से कहा-चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं। प्रहरियों ने सोचा कोई चोर ऐसा नहीं बोल सकता। यह राज दरबार का कोई खास मंत्री हो सकता है, जो रोकने पर नाराज होकर ऐसा कह रहा है। प्रहरियों ने उसे बिना और पूछताछ किए भीतर जाने दिया।

चोर का आत्म विश्वास और बढ़ गया। महल में पहुंच गया। महल में दास-दासियों ने भी रोका। चोर फिर सत्य बोला कि मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। दास-दासियों ने भी उसे वही सोचकर जाने दिया जो प्रहरियों ने सोचा। राजा का कोई खास दरबारी होगा।अब तो चोर का विश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया, जिससे मिलता उससे ही कहता कि मैं चोर हूं। बस पहुंच गया महल के भीतर।

कुछ कीमती सामान उठाया। सोने के आभूषण, पात्र आदि और बाहर की ओर चल दिया। जाते समय रानी ने देख लिया। राजा के आभूषण लेकर कोई आदमी जा रहा है। उसने पूछा-ऐ कौन हो तुम, राजा के आभूषण लेकर कहां जा रहे हो।चोर फिर सच बोला-चोर हूं, चोरी करके ले जा रहा हूं। रानी सोच में पड़ गई, भला कोई चोर ऐसा कैसे बोल सकता है, उसके चेहरे पर तो भय भी नहीं है। जरूर महाराज ने ही इसे ये आभूषण कुछ अच्छा काम करने पर भेंट स्वरूप पुरस्कार के रूप में दिए होंगे। रानी ने भी चोर को जाने दिया। जाते-जाते राजा से भी सामना हो गया। राजा ने पूछा-मेरे आभूषण लेकर कहां जा रहे हो, कौन हो तुम?

चोर फिर बोला- मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। राजा ने सोचा इसे रानी ने भेंट दी होगी। राजा ने उससे कुछ नहीं कहा, बल्कि एक सेवक को उसके साथ कर दिया। सेवक सामान उठाकर उसे आदर सहित महल के बाहर तक छोड़ गया।

अब तो चोर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने सोचा झूठ बोल-बोलकर मैंने जीवन के कितने दिन चोरी करने में बरबाद कर दिए। अगर चोरी करके सच बोलने पर परमात्मा इतना साथ देता है तो फिर अच्छे कर्म करने पर तो जीवन कितना आनंद से भर जाएगा।चोर दौड़ा-दौड़ा संत के पास आया और पैरों में गिर पड़ा। चोरी करना छोड़ दिया और उसी संत को अपना गुरू बनाकर उन्हीं के साथ हो गया।संत की संगत ने चोर को बदल दिया। कथा का सार यही है कि जो सच्चा संत होता है वह हर जगह अपना प्रभाव छोड़ता ही है।

Sameerchand
25-11-2012, 08:19 AM
प्रसन्नता और संतुष्टि का राज

प्रसिद्ध राजा अश्वघोष के मन में वैराग्य हो गया यानि संसार और दुनियादारी से उसे अरुचि हो गई। घर-परिवार को छोड़कर वे यहां-वहां ईश्वर और सच्ची शांति की खोज में भटकने लगे। कई दिनों के भूखे प्यासे अश्वघोष एक दिन भटकते हुए एक किसान के खेत पर पहुंचे। अश्वघोष ने देखा कि वह किसान बड़ा ही प्रसन्न, स्वस्थ व चेहरे से बड़ा ही संतुष्ट लग रहा था।
अश्वघोष ने किसान से पूछा,''मित्र तुम्हारी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का राज क्या है? देखने में तो तुम थोड़े गरीब या सामान्य ही लगते हो। ''
किसान ने जवाब दिया,'' सभी जगह ईश्वर के दर्शन और परिश्रम में ही परमात्मा का अनुभव करना ही मेरी इस प्रसन्नता और संतुष्टि का कारण है।''
अश्वघोष ने कहा,''मित्र उस ईश्वर के दर्शन और अनुभव मुझे भी करा दोगे तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी।''
अश्वघोष की इच्छा जानकर किसान ने कहा,''ठीक है... पहले आप कुछ खा-पी लें, क्योंकि तुम कई दिनों के भूखे लग रहे हो।''
किसान ने घर से आई हुई रोटियां दो भागों में बांटीं। दोनों ने नमक मिर्ची की चटनी से रोटियां खाईं। फिर किसान ने उन्हें खेत में हल चलाने के लिये कहा। थोड़ी देर में ही श्रम से थके हुए और कई दिनों बाद मिले भोजन की तृप्ति के कारण राजा अश्वघोष को नींद आने लगी। किसान ने आम के पेड़ के नीचे छाया में उन्हें सुला दिया। जब राजा अश्वघोष सो कर उठे, तो उस दिन जो शांति और हल्केपन का अहसास हुआ वह महल की तमाम सुख-सुविधाओं में भी आज तक नहीं हुआ था।
राजा को किसान से पूछे गए अपने प्रश्र का जवाब खुद ही मिल गया। जिसकी तलाश में राजा दर-दर भटक रहा था वह शांति का रहस्य राजा को मिल गया कि ईश्वर पर अटूट आस्था और परिश्रम ही सारी समस्याओं का हल है।

Sameerchand
25-11-2012, 08:22 AM
हमेशा प्रभु का नाम जपो

एक बार नरोत्तम नाम का राजा हुआ करता था। वह बहुत ताकतवर था। उसके राज्य में दो छोटी लड़कियाँ थीं - एक का नाम था "तपी" और दूसरी का "जपी"।एक बार उन दोनों के मन में राजा से मिलने का विचार आया। उन्हें यह भी आशा थी कि राजा उन्हें कुछ दान स्वरूप देगा। कम उम्र होने के कारण उनके मन में कोई स्पष्ट विचार नहीं था कि राजा से मिलने पर वे उनसे क्या मांगेगी।

वे सीधे दरबार पहुंच गयीं और सुरक्षा उपायों से भयभीत होकर चुपचाप खड़ी हो गयीं।

तपी बोली - "जय पुरुषोत्तम!"

यह सुनकर राजा ने सोचा कि वह ईश्वर से कुछ मांगना चाहती है।

जपी बोली - "जय नरोत्तम!"

अपना नाम सुनकर राजा बहुत खुश हुआ।

राजा ने तपी को रु. 5/- देकर विदा कर दिया। इसके बाद वह अंदर गया और उसने एक बड़े से कद्दू को बीच से काटकर उसमें सोने के सिक्के भर दिए। सोने के सिक्के भरने के बाद उसने कद्दू को फिर से बंद कर दिया और बाहर आकर वह कद्दू जपी को दे दिया।

जपी उस कद्दू को लेकर दरबार के बाहर आ गयी। चूकिं कद्दू आकार में बड़ा और सोने के सिक्कों से भरा हुआ था अतः उसे वह कद्दू उठाकर ले जाने में भारी लगने लगा। बाहर निकलकर उसने उस कद्दू को एक सब्ज़ी विक्रेता को मात्र 25 पैसे में बेच दिया और प्रसन्नतापूर्वक घर चली गयी। वह सब्ज़ी विक्रेता बिल्कुल भी ईमानदार नहीं था।

तपी रु.5/- लेकर यह सोचती हुई इधर-उधर टहल रही थी कि इस पैसे का क्या किया जाए। तभी उसे अपने माता-पिता और भाई-बहिनों की याद आयी। वह सब्ज़ी विक्रेता के पास कद्दू खरीदने पहुंची। सब्ज़ी विक्रेता ठग था इसलिए उसने 25 पैसे में खरीदा गया वह कद्दू रु. 5/- में तपी को बेच दिया।

Sameerchand
25-11-2012, 08:23 AM
तीन हजार उपदेश और एक भी याद नहीं

प्रत्येक रविवार चर्च जाने वाले एक व्यक्ति ने एक समाचारपत्र के संपादक को ख़त लिखा कि प्रत्येक रविवार को चर्च जाने में कोई लाभ नहीं है और यह समय की बर्बादी है। अपने पत्र में उसने लिखा - "मैं पिछले 30 वर्षों से नियमित रूप से चर्च जा रहा हूं। अब तक मैंने 3000 से ज्यादा उपदेश सुने हैं और आज उनमें से एक भी याद नहीं है। मेरे ख्याल से मैंने अपना समय बर्बाद किया है और पादरी लोग भी उपदेश देकर भक्तों का समय बर्बाद कर रहे हैं।"

"संपादक के नाम ख़त" कॉलम में यह ख़त छपने के बाद काफी विवाद खड़ा हो गया तथा कुछ दिनों तक अखबार की सुर्खियों में बना रहा जब तक कि एक अन्य व्यक्ति ने इसका खंडन करते हुए यह पत्र नहीं लिखा -

"मुझे शादी किए हुए 30 वर्ष हो गए हैं और मेरी पत्नी ने मेरे लिए अब तक 32,000 से अधिक बार स्वादिष्ट भोजन पकाया है किंतु मुझे अब तक खाए गए सभी पकवानों के बारे में ठीक से कुछ याद नहीं है। किंतु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि इस भोजन ने मुझे कामकाजी बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा दी है। यदि मेरी पत्नी ने मेरे लिए ये भोजन नहीं पकाया होता तो मैं अब तक शारीरिक रूप से मर चुका होता। इसी तरह यदि मैं नियमित रूप से चर्च नहीं गया होता तो आध्यात्मिक रूप से मर चुका होता।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:23 AM
समुद्र मंथन

समुद्र मंथन की पौराणिक कहानी आप जानते होंगे. जब अमृत प्राप्ति के लिए असुर और देव मिल-जुल कर समुद्र का मंथन करने लगे तब अमृत प्राप्ति से पहले विष की प्राप्ति हुई थी. और ऐसा विष जो तमाम जगत को नष्ट करने की शक्ति रखता था. विश्व को इसके प्रभाव से बचाने के लिए उसे शिव ने अपने कंठ में धारण किया. विष की वजह से उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए.

आपको भी अपने जीवन में अमृत तुल्य चीजें प्राप्त करनी हो तो मंथन करना होगा. और यह भी ध्यान रखें कि मंथन से पहले पहल विष निकलेगा, विष तुल्य चीजों की ही प्राप्ति होगी. और उसे आपको धारण भी करना होगा. उसके प्रभाव से बचने के उपाय भी करने होंगे. और उसके बाद विश्वास रखिए, अंत में मंथन से आपको अमृत की प्राप्ति होगी.

Sameerchand
25-11-2012, 08:23 AM
चवन्नी की सिद्धि

स्वामी रामतीर्थ ऋषिकेश में गंगा के किनारे टहल रहे थे. वहाँ उनको एक योगी मिला. आरंभिक बातचीत के बाद योगी ने बताया कि उन्हें सिद्धि प्राप्त है. स्वामी ने योगी से पूछा कि वे कितने वर्ष से साधना कर रहे हैं और उन्हें क्या सिद्धि प्राप्त है.योगी ने बताया कि वे पिछले चालीस वर्षों से हिमालय में तपस्या कर रहे हैं और उन्हें यह सिद्धि प्राप्त है कि वे तेज गंगा की धारा को नंगे पाँव चलते हुए पार कर सकते हैं जैसे कि सूखी जमीन.

इस पर स्वामी ने कहा – इसके अलावा कोई और सिद्धि आपको प्राप्त है?

योगी ने कहा – क्या पानी पर जमीन की तरह चलना कोई कम सिद्धि है?

स्वामी ने फिर कहा – यह तो चवन्नी छाप सिद्धि है. गंगा के एक किनारे से दूसरे किनारे जाने के लिए नावें हैं, जो आपको चवन्नी में पहुँचा देते हैं. आपने अपने जीवन के बहुमूल्य चालीस वर्ष सिर्फ चवन्नी की सिद्धि हासिल करने में लगा दिये हैं!

Sameerchand
25-11-2012, 08:23 AM
अनुकूलन

एक नौजवान ने विरासत में मिली अपनी सारी दौलत गंवा दी। जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है, गरीब होते ही उसके सभी मित्र भी उससे किनारा कर गए।

अपनी बुद्धि के अनुसार वह एक स्वामी जी की शरण में पहुंचा और उनसे बोला - "मेरा अब क्या होगा? न मेरे पास धन है, न ही मित्र।"

स्वामी जी ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा - "चिंता मत करो बेटे। मेरे शब्दों को याद रखना। कुछ दिनों में सब कुछ ठीक हो जायेगा।"

नौजवान की आँखों में आशा की किरण दिखायी दी। उसने पूछा - "क्या मैं फिर से धनवान हो जाऊंगा?"

स्वामी जी ने उत्तर दिया - "नहीं। तुम्हें गरीबी और अकेले रहने की आदत हो जायेगी।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:25 AM
गप्प

एक शिष्य ने अपने गुरू से इस बात के लिए पश्चाताप किया कि उसे गप्प मारने की आदत है।

गुरूजी ने बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कहा कि "यदि तुम गप्प में नया मिर्चमसाला नहीं डालते तो यह इतनी बुरी बात नहीं है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:25 AM
संघर्ष से ही शक्ति और विवेक प्राप्त होता है

महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया। युद्ध के पहले ही दिन वे अत्यंत वीरता और उत्साह के साथ लड़े किंतु अंत में उन्हें अर्जुन द्वारा पराजय का सामना करना पड़ा।

पहले ही दिन पराजय होने से दुर्योधन को बहुत बुरा लगा और वह द्रोणाचार्य के पास जाकर बोला - "गुरूदेव! अर्जुन आपका शिष्य रहा है। आप उसे कुछ ही पलों में हरा सकते हैं। फिर आप इतना बिलंब क्यों कर रहे हैं?"

कुछ देर चुप रहने के बाद द्रोणाचार्य बोले - "तुम ठीक कह रहे हो दुर्योधन! उसके द्वारा युद्ध में प्रयोग की जाने वाली युक्ति और रणनीति से मैं भलीभांति अवगत हूं परंतु मैंने अपना सारा जीवन शाही विलासितापूर्ण तरीके से व्यतीत किया है जबकि अर्जुन ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। संघर्ष के ही कारण उसने मुझसे ज्यादा शक्ति और विवेक प्राप्त कर लिया है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:25 AM
स्वर्ण के लिए खुदाई

एंड्र्यू कार्नेगी युवावस्था में ही अमेरिका चले आए थे, और वहाँ आजीविका के लिए छोटी-मोटी नौकरी करने लगे थे. बाद में वे अमेरिका के सबसे बड़े स्टील निर्माता बने.

एक समय उनकी कंपनी में 43 करोड़पति काम करते थे. किसी ने उनसे कभी पूछा था कि वे अपनी कंपनी के कर्मचारियों के साथ कैसे काम करते हैं. एंड्र्यू कार्नेगी ने जवाब दिया – “लोगों के साथ काम करना तो सोने के खदान में काम करने जैसा है. आपको एक तोला सोना पाने के लिए टनों में मिट्टी खोदना पड़ता है. और जब आप खोदते रहते हैं तो आप मिट्टी को नहीं देखते. आपकी निगाहें चमकीले सोने के टुकड़े ढूंढने में लगी रहती है.”

हर व्यक्ति में, हर परिस्थिति में कुछ न कुछ उत्तम रहता ही है. अलबत्ता इन्हें पाने के लिए यदा कदा खुदाई गहरी करनी पड़ती है, क्योंकि ये सतह पर दिखाई नहीं देते.सफल व्यक्ति हंस की तरह काम करते हैं - हंस मिलावटी दूध के पात्र में से दूध को पी लेता है, और जल को छोड़ देता है.

Sameerchand
25-11-2012, 08:26 AM
चतुर जौहरी

शहर में एक बेहद सफल, धनवान जौहरी था. उसकी जवाहरातों की दुकान का बड़ा नाम था. बीच बाजार में बड़ी सी दुकान थी, और बड़े बड़े शोकेस में चमचमाते जवाहरात हर एक का ध्यान बरबस खींच लेते थे.

एक दिन नवाब उस दुकान में खरीदारी करने पहुँचे. दुकानदार और कर्मचारी नवाब के सामने एक से एक जवाहरात और नई डिजाइन के गहने पेश करने लगे.मगर नवाब को उनमें से कोई पसंद नहीं आए. वो जल्दी ही इस सिलसिले से बोर होने लगा.

अंत में नवाब जब चलने को हुआ तो उसकी नजर कोने पर पड़े रत्नजटित एक साड़ी-पिन पर पड़ी, जिसे उसके सामने पेश नहीं किया गया था.

नवाब ने जौहरी से उसके बारे में पूछा, तो जौहरी ने नवाब को बताया कि वह एक अलग किस्म का, प्राचीन, परंतु बेहद कीमती जेवर है. डिजाइन भले ही आज के हिसाब से आकर्षक न लगे, मगर जेवर पुश्तैनी, भाग्यवर्धक है. जौहरी ने नवाब की दृष्टि की भी तारीफ की कि उन्हें यह छोटा, परंतु खास जेवर अलग से दिखाई दिया.नवाब ने वह साड़ी-पिन ऊंची कीमत देख कर खरीद लिया.

नवाब के जाने के बाद जौहरी के पुत्र ने जो व्यापार के गुर अपने पिता से सीख रहा था, अपने पिता से कहा – “यह साड़ी-पिन तो बेहद साधारण था, यह मूल्यवान भी नहीं था, इसमें कुछ कमी थी, और इसे तुड़वाकर आप नया डिजाइन बनवाने वाले थे...”चतुर जौहरी ने अपने पुत्र को व्यापार का गुर समझाया - “कीमतें ग्राहकों के मुताबिक तय होती हैं. नवाब के लिए यहाँ मौजूद हर जवाहरातों और जेवरों की कीमत धूल बराबर ही थी. सवाल उनके पसंद के जेवर का था. एक बार उनके पसंद कर लेने के बाद कीमत तो हमें ही तय करनी थी. यदि नवाब की हैसियत मुताबिक कीमत नहीं बताता तो वह उसे खरीदता ही नहीं!...”

Sameerchand
25-11-2012, 08:26 AM
व्यावहारिकता

एक शिष्या अपने विवाह की तैयारियों में लगी हुयी थी। इस अवसर पर होने वाले प्रीतिभोज के लिए उसने घोषणा की कि गरीबों के प्रति अगाध प्रेम के कारण उसने यह तय किया है कि समारोह में सबसे आगे की पंक्तियों में गरीब लोग ही बैठेंगे और अमीर मेहमान पीछे की पंक्तियों में रहेंगे। भोजन में भी यही क्रम रहेगा।

यह बात कहकर उसने अपने गुरूजी की आँखों में देखा तथा उनकी स्वीकृति चाही।

गुरूजी ने एक पल विचार करने के बाद कहा -"मेरे विचार से यह सर्वथा ग़लत होगा। किसी को भी विवाह समारोह में मजा नहीं आएगा। तुम्हारे परिवार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। तुम्हारे अमीर मेहमानों को अपमान महसूस होगा और गरीब मेहमान भी बेझिझक भोजन नहीं कर पायेंगे।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:27 AM
ड्यूटी का बहाना

एक गुरूजी ने राज्यपाल को सख्त शिकायती पत्र लिखकर यह आपत्ति जतायी कि नस्लभेद विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया है।

राज्यपाल ने पत्र लिखकर यह उत्तर दिया कि उन्होंने सिर्फ अपनी ड्यूटी की है।

गुरूजी बोले - "जब भी कोई बेवकूफ व्यक्ति गलती करता है तो उस पर शर्मिंदा होने की बजाए वह यही कहता है कि यह उसकी ड्यूटी थी।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:27 AM
जुनैद एवं नाई


पुण्यात्मा जुनैद ने एक बार भिखारी का वेश धारण किया और मक्का में एक नाई की दुकान पर पहुँच गए। वह नाई उस समय एक रईस ग्राहक की दाढ़ी बना रहा था। उसने तुरंत उस रईस व्यक्ति की दाढ़ी बनाना छोड़कर पहले भिखारी की दाढ़ी बनाने का निर्णय लिया। उसने न केवल भिखारी का वेश धारण किए जुनैद से पैसे नहीं लिए वरन उन्हें भिक्षा भी दी।


जुनैद उस नाई से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस दिन जो कुछ भी भिक्षा के रूप में प्राप्त करेंगे, उस नाई को दे देंगे।


उसी दिन एक अमीर तीर्थयात्री ने जुनैद को सोने के सिक्कों से भरा पर्स भिक्षा के रूप में दिया। जुनैद खुशी-खुशी उस नाई की दुकान पर पहुंचे और उसे वह पर्स दे दिया।


जब नाई को यह ज्ञात हुआ कि जुनैद ने उसे वह पर्स क्यों दिया है तो वह क्रोधित हो गया और बोला - "आखिर तुम किस तरह के पुण्यात्मा व्यक्ति हो? तुम मुझे मेरे प्रेम के बदले में यह पुरस्कार दे रहे हो ! "


"जब आप अपने उपकार के बदले में कुछ चाहते हैं
तो आप का उपहार रिश्वत बन जाता है। "

Sameerchand
25-11-2012, 08:27 AM
बयाज़िद ने नियम तोड़ा

संत बयाज़िद कभी-कभी अपने संप्रदाय के नियम और परंपराओं के विरुद्ध कार्य किया करते थे। एक बार वे तीर्थयात्रा से लौटते समय एक नगर में पहुंचे। वहां के नागरिकों ने श्रद्धाभाव से उनका स्वागत किया। उनके नगर आगमन के कारण लोगों में हलचल मच गयी।

बयाज़िद जब लोगों की चापलूसी से थक गए तो बाज़ार के बीचोबीच पहुंचकर उन्होंने सब लोगों के सामने ही ब्रेड का पैकेट उठाकर खाना शुरू कर दिया। रमज़ान की पवित्र महीना होने के कारण उस दिन उपवास था। यद्यपि वह उपवास का दिन था परंतु बयाज़िद जानते थे कि यात्रा में होने के कारण उन्हें उपवास तोड़ने की अनुमति थी।

परंतु उनके अनुयायियों को यह अच्छा नहीं लगा। वे उनके व्यवहार से इतने क्षुब्ध हुए कि उन्हें छोड़कर अपने घरों को चले गए।

बयाज़िद ने अपने शिष्य से कहा - "जैसे ही मैंने उनकी आकांक्षा के अनुरूप आचरण नहीं किया, उनकी सारी श्रृद्धा गायब हो गयी। "

"श्रद्धा की कीमत आपको अपेक्षा अनुरूप आचरण कर के चुकानी पड़ती है। "

Sameerchand
25-11-2012, 08:27 AM
आखिर आप किस तरह लोगों की मदद करते हैं?

एक सामाजिक कार्यक्रम में अपने गुरूजी से मिलने पर एक मनोचिकित्सक ने अपने मन में उमड़ रहे एक प्रश्न को पूछने का निर्णय लिया।

उसने पूछा - "आखिर आप किस तरह लोगों की मदद करते हैं?"

गुरू जी ने उत्तर दिया - "मैं उनको उस सीमा तक ले जाता हूं कि उनके मन में कोई भी प्रश्न शेष न रहे। "

Sameerchand
25-11-2012, 08:27 AM
तीन छन्नी परीक्षण

प्राचीन यूनान में सुकरात नामक एक विख्यात दार्शनिक एवं ज्ञानी व्यक्ति रहा करते थे। एक दिन उनका एक परिचित उनसे मिलने आया और बोला - "क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे मित्र के बारे में क्या सुना है?"

सुकरात ने उसे टोकते हुए कहा - "एक मिनट रुको। इसके पहले कि तुम मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताओ, उसके पहले मैं तीन छन्नी परीक्षण करना चाहता हूं।"

"तीन छन्नी परीक्षण?"

सुकरात ने कहा - "जी हां मैं इसे तीन छन्नी परीक्षण इसलिए कहता हूं क्योंकि जो भी बात आप मुझसे कहेंगे, उसे तीन छन्नी से गुजारने के बाद ही कहें।"

"पहली छन्नी है "सत्य "। क्या आप यह विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि जो बात आप मुझसे कहने जा रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है?"

"व्यक्ति ने उत्तर दिया - "जी नहीं, दरअसल वह बात मैंने अभी-अभी सुनी है और...."

सुकरात बोले - "तो तुम्हें इस बारे में ठीक से कुछ नहीं पता है। "

"आओ अब दूसरी छन्नी लगाकर देखते हैं। दूसरी छन्नी है "भलाई "। क्या तुम मुझसे मेरे मित्र के बारे में कोई अच्छी बात कहने जा रहे हो?"

"जी नहीं, बल्कि मैं तो...... "

"तो तुम मुझे कोई बुरी बात बताने जा रहे थे लेकिन तुम्हें यह भी नहीं मालूम है कि यह बात सत्य है या नहीं।"- सुकरात बोले।

"तुम एक और परीक्षण से गुजर सकते हो। तीसरी छन्नी है "उपयोगिता "। क्या वह बात जो तुम मुझे बताने जा रहे हो, मेरे लिए उपयोगी है?"

"शायद नहीं..."

यह सुनकर सुकरात ने कहा - "जो बात तुम मुझे बताने जा रहे हो, न तो वह सत्य है, न अच्छी और न ही उपयोगी। तो फिर ऐसी बात कहने का क्या फायदा?"

"तो जब भी आप अपने परिचित, मित्र, सगे संबंधी के बारे में कुछ गलत बात सुने,
ये तीन छन्नी परीक्षण अवश्य करें।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:28 AM
कोई मेरे सारे पाप धो दो!

गंगा नदी के घाट पर स्नानार्थियों की भीड़ थी. शुभ मुहूर्त पर सब अपने पाप गंगा नदी में धोने दूर-दराज से मुंह अंधेरे चले आए थे.

सब अपने अपने समय से स्नान ध्यान कर जा रहे थे. वहीं पर आगे एक गड्ढे में एक स्त्री गिरी हुई पड़ी थी. वह मदद के लिए हाथ उठाकर चिल्ला रही थी कि कोई उसे उस गड्ढे से बाहर निकलने में मदद करे!

लोग मदद के लिए हाथ बढ़ाते, मगर वह स्त्री हाथ पकड़ने से पहले उनसे पूछती – “यदि आप पूरी तरह निष्पाप हों. तभी आप मुझे बाहर निकालें. नहीं तो जो श्राप मुझपर है, वह आप पर स्थानांतरित हो जाएगा. और मैं यह भार अपने ऊपर लेना नहीं चाहती.”

लोग सहम जाते, कुछ क्षण विचार कर फिर आगे बढ़ जाते. बहुत देर हो गई. यही सिलसिला चलता रहा.

आखिर में एक युवक आया. वह गंगा में अभी हाल ही में स्नान कर आया था. उसके शरीर से नदी का पानी ढंग से सूखा भी नहीं था. उस स्त्री के क्रंदन सुनकर वह उसके पास पहुँचा. उस स्त्री ने उससे फिर वही बात दोहराई.

उस युवक ने पूरी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा – “बिलकुल. मैं पूरी तरह निष्पाप व्यक्ति हूँ. देख नहीं रही कि मैं अभी गंगा से स्नान कर निकला हूँ. मेरे सारे पूर्व पाप पवित्र गंगा की नदी की धारा में धुल चुके हैं. और अभी तक मुझसे कोई नया पाप नहीं हुआ है. यदि मैं तुम्हें नहीं बचाऊं तो एक नया पाप जरूर हो जाएगा. अब जल्द अपना हाथ मुझे दो...”

"हम सभी अपने कर्मकांड विश्वास-रहित तरीके से करते हैं. जिस दिन हममें विश्वास पैदा हो जाएगा, उस दिन चमत्कार भी हो जाएगा."

Sameerchand
25-11-2012, 08:28 AM
पत्थरों का थैला


एक युवक को मुंह अंधेरे किसी दूसरे नगर जाना था. समय का भ्रम होने से वह घर से थोड़ा पहले निकल गया. रास्ते में नदी पड़ती थी. तय समय से यदि वह घर से निकलता तो सूर्योदय पर नदी तक पहुँच जाता जिससे उसे नदी पार करने में सहूलियत होती. मगर चूंकि वह जल्दी निकल गया था, अतः अभी भी घनघोर अँधेरा था. युवक ने सूर्योदय तक का समय नदी के किनारे काटने का निश्चय किया. वह बैठने के लिए समुचित चट्टान तलाशने लगा. इतने में उसके पैर से कोई चीज टकराई. उसने टटोला तो पाया कि वह एक थैला था. थैले के अंदर उसे लगा कि किसी ने पत्थरों के छोटे छोटे टुकड़े जमा कर रखे हैं. उसने बेध्यानी में थैला हाथ में ले लिया.

उसे नदी के किनारे पर ही बैठने लायक एक चट्टान मिल गया. नदी की कल कल धारा बह रही थी और वातावरण में सुमधुर संगीत की रचना कर रही थी.

युवक ने थैले से एक पत्थर निकाला और नदी की धारा में उछाल दिया. छप् की आवाज हुई और वो देर तर गूंजती रही. युवक ने दूसरा पत्थर थैले से निकाला और नदी की धारा में उछाल दिया. फिर से छप्प की आवाज हुई और एक नया संगीत बज उठा. युवक ने थैले के पत्थरों से देर तक संगीत की रचना की.

इतने में यकायक क्षितिज में सूर्य की किरणें चमकने लगीं. युवक के हाथ में थैले का आखिरी पत्थर था. वह उसे नदी की ओर उछालने ही वाला था कि एक चमकीली रौशनी उसके आँखों में पड़ी. वह रौशनी उसके हाथ में रखे पत्थर से परिवर्तित हो कर आ रही थी. उसके हाथ में हीरा था जो सूर्य प्रकाश से दमकने लगा था.

युवक ने अपना माथा पकड़ लिया. तो, वह अब तक थैले में भरी सामग्री को पत्थरों के टुकड़े समझ कर फेंक रहा था!

"हम सभी क्षणिक आनंद की खातिर अपना बहुत सारा जीवन इसी प्रकार पत्थर की तरह फेंकते रहते हैं, और तभी उसके महत्व को समझ पाते हैं जब जीवन का क्षीणांश बचता है."

Sameerchand
25-11-2012, 08:28 AM
गुस्सा न करें


पांडवों को उनके गुरु ने पहला सबक यह सिखाया कि जो सबक वे उन्हें सिखाते हैं उन्हें वे अपने जीवन में भी उतारें. एक बार गुरु ने एक और सबक सिखाया – गुस्सा न हों. फिर गुरु ने अपने शिष्यों को कहा कि वे आज के सबक की परीक्षा कल लेंगे.

दूसरे दिन गुरु ने पांडव बंधुओं से पूछा कि क्या उन्होंने कल का सबक सीख लिया? युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी चारों भाइयों ने स्वीकृति में सर हिलाया.
गुरु ने तीक्ष्ण दृष्टि से युधिष्ठिर की ओर देखा और पूछा – युधिष्ठिर, तुम्हें यह जरा सा सबक सीखने में क्या समस्या है? तुम्हारे चारों छोटे भाई इसे सीख लिए. सबक याद करो और मैं फिर कल तुमसे पूछूंगा.

अगले दिन गुरु ने कक्षा प्रारंभ होते ही सबसे पहले युधिष्ठिर से पूछा कि क्या उन्होंने सबक सीख लिया? युधिष्ठिर ने फिर से इंकार में सर हिलाकर जवाब दिया – “अभी नहीं गुरूदेव!”

गुरु ने आव देखा न ताव और तड़ से युधिष्ठिर को एक तमाचा जड़ दिया. और कहा “कैसे मूर्ख हो! जरा सा एक लाइन का सबक सीख नहीं सकते!”

युधिष्ठिर मार खाकर भी मुस्कुराते खड़े थे. गुरु को और ताव आ गया. बोले “मूर्ख, दंड पाकर भी किसलिए मुस्कुरा रहे हो! कारण बताओ नहीं तो तुम्हें और सज़ा मिलेगी.”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – “गुरुदेव, अब मैंने सबक सीख लिया!”

एक क्षण को गुरु को समझ में नहीं आया कि युधिष्ठिर क्या कह रहे हैं. परंतु दूसरे ही क्षण वे जड़वत हो गए. जो बात वे युधिष्ठिर को, अपने शिष्यों को सिखाना चाह रहे थे, वह बात युधिष्ठिर ने उन्हें सिखा दी थी!

Sameerchand
25-11-2012, 08:28 AM
अपने आप को प्रकाशित करें

जब बुद्ध मृत्युशैय्या पर थे, तो एक समय उनका एक शिष्य आनंद जार जार रोने लगा. बुद्ध ने क्षीण आवाज में उससे रोने का कारण पूछा.

आनंद ने कहा – “तथागत, मेरे जीवन का प्रकाश तो खत्म हो रहा है. आपके बगैर मेरे जीवन का क्या होगा? मैं आपके बगैर नहीं रह सकता.”

बुद्ध ने धीरे से कहा – “इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें मत करो. अपने आप को प्रकाशित करो. प्रकाश तुम्हारे भीतर स्वयं है. उसे पहचानो.”

"आपके भीतर भी बुद्ध जैसा प्रकाश है. उसे पहचानें. पहले अपने आप पर विश्वास करना सीखें."

Sameerchand
25-11-2012, 08:29 AM
क्या मुझे ही हर चीज के बारे में सोचना होगा?

एक समय की बात है अहमदाबाद शहर में कई दिनों तक एक निर्माण कार्य चलता रहा। उस कार्य में लगे श्रमिकों ने निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद गंदगी और धूल का ढेर नहीं समेटा जिससे चारों ओर गंदगी के ढ़ेर नज़र आने लगे।

"वो देखो कितनी गंदगी पड़ी हुयी है!", "कोई है जो इसकी सफाई का प्रबंध करे!", "उनके गंदगी न समेटने के कारण उड़ती धूल से मेरे कीमती कपड़े गंदे हो गए है!", "आखिर नगर निगम कब इस गंदगी को साफ कराएगा!", "इस गंदगी के कारण हमारा शहर भिखारियों का अड्डा लगने लगा है!"

इस तरह की बातें सुनते-सुनते जब नसरुद्दीन ऊब गए तो एक दिन उन्होंने एक गडढ़ा बनाना शुरू कर दिया। उस गडढ़े की खुदाई के कारण गंदगी और धूल का एक और ढ़ेर बनने लगा।

यह देखकर एक नागरिक ने उनसे कहा - "नसरुद्दीन तुम गडढ़ा क्यों कर रहे हो?"

नसरुद्दीन ने उत्तर दिया - "मैं लोगों की शिकायतें सुनते-सुनते थक गया हूँ और मैंने यह निर्णय लिया है कि एक गडढ़ा खोदकर सारी गंदगी उसमे दफना दूं।"

"लेकिन तुम्हारे गडढ़ा खोदने से तो गंदगी का एक नया ढ़ेर बन रहा है।"- उस व्यक्ति ने कहा।

नसरुद्दीन चिल्लाये - "क्या मुझे ही हर चीज के बारे में सोचना होगा?"

Sameerchand
25-11-2012, 08:29 AM
बीच रस्ते से अपने आप को हटा लें

एक काष्ठ शिल्पी था, जिसकी मूर्तियाँ सजीव प्रतीत होती थीं. किसी ने उससे पूछा कि उसकी मूर्तियाँ इतनी सजीव कैसे होती हैं.

शिल्पी ने बताया – “जब मैं कोई शिल्प बनाने जाता हूँ तो सबसे पहले मन में एक आकार ले आता हूँ. फिर उस आकार के हिसाब से लकड़ी ढूंढने जंगल में चला जाता हूँ. वहाँ वृक्षों में उस आकृति को ढूंढता हूँ, और जब वह आकृति मुझे किसी वृक्ष में दिखाई दे जाती है तो मैं उसका वह हिस्सा काट कर ले आता हूँ और मनोयोग से शिल्प उकेरता हूँ.”

"मनोयोग से किए गए कार्य जीवन से परिपूर्ण होते हैं. एक विश्वप्रसिद्ध वायलिन वादक ने कभी कहा था – मेरे पास शानदार संगीत के नोट्स हैं, शानदार वायलिन है. मैं इन दोनों को मिलाकर इनके रास्ते से हट जाता हूँ!"

Sameerchand
25-11-2012, 08:30 AM
तीन किस्से सकारात्मक सोच के

गोल्फ कोर्स में एक विदेशी यात्री आया. वह अपनी जिंदगी में पहली दफा गोल्फ कोर्स में आया था. उसे स्थानीय भाषा भी नहीं आती थी. उसने भी प्रैक्टिस कर रहे खिलाड़ियों के बीच गोल्फ के एक दो शॉट हाथ आजमाने की सोचा. जाहिर है उसके पहले पहल शॉट से गोल्फ की बाल कहीं से कहीं चली जाती थी. मगर उसने किसी के शानदार शॉट मारने पर लोगों के द्वारा चिल्लाए जाने वाले चंद शब्द याद कर रखे थे – वाह क्या शानदार शॉट मारा है. और वो अपना शॉट खेलकर हर बार बोलता – वाह! क्या शानदार शॉट मारा है.


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एक स्त्री अपने किशोर पुत्र के अजीब व्यवहार से परेशान रहती थी. अंततः एक दिन उसने उससे पूछ ही लिया – “बेटे, जब मैं तुम्हारे साथ बाहर जाती हूँ तो तुम मेरे साथ चलने के बजाए या तो बहुत आगे चलते रहते हो या बहुत पीछे. ऐसा क्यों? क्या तुम्हें मेरे साथ चलने में शर्म आती है?”“नहीं मम्मी” – बेटे ने स्पष्ट किया – “दरअसल तुम इतनी कमउम्र लगती हो कि लोग बाद में मुझसे तुम्हारे बारे में बात करते हैं कि ये तुम्हारी नई गर्लफ्रैंड है बड़ी खूबसूरत.”


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प्राथमिक शाला की एक छात्रा अपनी शिक्षिका के पास पहुँची और उसे अपना पर्चा दिखाया. शिक्षिका ने पर्चा देखा तो पाया कि उसमें वर्तनी की कई गलतियाँ थीं. परंतु शिक्षिका ने कहा – “तुम्हारा पर्चा बहुत अच्छा है. तुम्हारी हस्तलिपि बहुत सुंदर है. उत्तर लिखने की शैली भी अच्छी है.”छात्रा ने कहा “धन्यवाद. मुझसे वर्तनी की गलतियाँ कुछ हो जाती हैं, उन्हें सुधारने में अब ध्यान लगाउंगी.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:30 AM
एक था दास और एक थी राजकुमारी

एक राजकुमारी का दिल एक दास पर आ गया. वह उस दास से विवाह करना चाहती थी. राजा ने कितने ही प्रयत्न किए कि राजकुमारी उस दास को भूल जाए, मगर हुआ उसका उल्टा.

अंत में दूर देश से एक विद्वान की सेवा ली गई. उस विद्वान ने राजा को एक युक्ति सुझाई. राजा ने उस अजीब युक्ति को तो पहले स्वीकारने से इंकार कर दिया मगर जब देखा कि और कोई चारा नहीं है तो मान गया.

राजा ने राजकुमारी को बुलाया और कहा – राजकुमारी, तुम उस दास से विवाह कर सकती हो, मगर तुम्हें हमारी एक शर्त माननी होगी. शर्त भी तुम्हारे अनुकूल ही है. वह शर्त है – दुनिया जहान से दूर सिर्फ एक ही कमरे में तुम्हें और दास को एक महीने साथ रहना होगा. सुख सुविधा तमाम उपलब्ध होगी, मगर तुम दोनों उस कमरे से बाहर नहीं जा सकोगे. यदि एक महीना साथ रह लिए तो फिर तुम दोनों विवाह कर सकोगे. बोलो मंजूर है?

राजकुमारी को और क्या चाहिए था! वह सहर्ष तैयार हो गई. राजकुमारी और दास के एक ही कमरे में साथ रहने का पहला सप्ताह तो बढ़िया गुजरा. दूसरे सप्ताह में बोरियत होने लगी और राजकुमारी को दास के कुछ कार्य और आदतें परेशान करने लगी. तीसरे हफ़्ते आते आते दोनों में झगड़ा हो गया और चौथे हफ़्ते की शुरूआत में राजकुमारी ने दास को बर्दाश्त से बाहर पाया और कमरे से बाहर आ गई!

"अलग रहना आसान है, साथ रहना बेहद मुश्किल!"

Sameerchand
25-11-2012, 08:30 AM
इतिहास लिखें या बनाएँ

नेताजी सुभाष चंद्र बोस सच्चे कर्मवीर थे. आमतौर पर वे आम सैनिकों की भांति ही कार्यरत रहते थे. एक मर्तबा अनौपचारिक बातचीत में आजाद हिंद फौज के एक अफसर ने नेताजी को सुझाव दिया कि आजाद हिंद फौज का इतिहास लिख लेना चाहिए.

नेताजी ने तत्काल जवाब दिया – “पहले हम इतिहास तो बना लें. फिर कोई न कोई तो लिख ही देगा!”

"इतिहास लिखा नहीं जाता अपितु इतिहास बनाया जाता हैं!"

Sameerchand
25-11-2012, 08:30 AM
पक्का शिष्य कच्चा गुरु

यह कहानी महान तिब्बती संत मिलरेपा से संबंधित है. मिलरेपा का हृदय बेहद पवित्र, निर्मल और नम्र था, और गुरु का प्रिय था जिससे आश्रम में अन्य साथी शिष्य उससे जलते थे.

साथी शिष्यों ने मिलरेपा को मजा चखाने की ठानी. एक दिन उनमें से एक ने मिलरेपा से कहा “यदि तुम सचमुच अपने गुरु को मानते हो तो उनका नाम लेकर यहाँ पहाड़ से कूद जाओ. तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा.”

और यह क्या? मिलरेपा बिना किसी हिचकिचाहट के वहाँ से कूद गया. खाई तीन हजार फीट गहरी थी. शिष्यों ने सोचा कि नीचे तो वहाँ मिलरेपा हड्डी पसली एक हो गई होगी, और वह ईश्वर को प्यारा हो गया होगा. बेचारा विश्वासी मूर्ख!

परंतु जब वे वापस आश्रम लौटे तो पाए कि मिलरेपा प्रसन्न मुद्रा में पद्मासन लगाए ध्यान कर रहे हैं. उनका बाल भी बांका नहीं हुआ था.

एक बार आश्रम के एक कमरे में भीषण आग लग गई. कमरे में एक बच्चा और एक स्त्री फंस गए थे. किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी भीतर जाकर उन्हें बचाने की. एक शिष्य ने मिलरेपा से कहा जो वहाँ अभी पहुँचा ही था – गुरु का नाम लेकर भीतर जाओ और फंसे बच्चे और स्त्री को ले आओ. वह शिष्य मिलरेपा से बेहद जलता था और चाहता था कि मिलरेपा भी उस अग्नि में स्वाहा हो जाए. मगर यह क्या – मिलरेपा आसानी से भीतर गया और बिना किसी परेशानी के जलती आग में से बच्चे और स्त्री को बचा लाया.

कुछ दिनों पश्चात् शिष्य मंडली को दूसरे शहर जाना था. बीच में नदी पड़ती थी. सब नाव में बैठ रहे थे. एक शिष्य ने मिलरेपा से मजाक किया – तुम्हें तो नाव की जरूरत ही नहीं है. बस, गुरु का नाम लो और नदी पार कर लो.

मिलरेपा ने सहमति में सिर हिलाया और नदी में डग भरते हुए चला गया. उसके लिए नदी जैसे सड़क बन गई थी.

संयोग से उस वक्त गुरु वहीं पर थे. उन्होंने मिलरेपा को नदी को अपने कदमों से डग भर कर पार करते देखा तो विश्वास नहीं हुआ. उन्हें पूर्व की घटनाओं की जानकारी नहीं थी. उन्होंने मिलरेपा से दरयाफ्त की कि नदी को उन्होंने अपने कदमों से कैसे पार किया. मिलरेपा ने बताया कि आप गुरु का नाम लिया और बस नदी पार हो गया.

गुरु ने सोचा कि यह मूर्ख शिष्य जब मेरा नाम लेकर नदी पार कर सकता है तो मुझ स्वयं में कितनी शक्ति होगी. यह विचार कर गुरु भी नदी में उतरा. परंतु यह क्या! नदी की धारा ने उसे लील लिया.

"असली शक्ति व्यक्ति में नहीं, उसके विश्वास में होती है."

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
ऑनेस्टी इज द बेस्ट क्वालिफ़िकेशन

सी.वी. रमन ने 1949 में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाया था. वैज्ञानिक सहायकों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का दौर चल रहा था. साक्षात्कार समाप्त होने के पश्चात् रमन बाहर आए तो एक साक्षात्कारकर्ता को उन्होंने देखा. उन्हें याद आया कि इसे तो अपर्याप्त योग्यता के कारण साक्षात्कार से पहले ही बाहर कर दिया गया था. उन्होंने जिज्ञासावश पूछा – “आप अब तक यहाँ क्या कर रहे हैं? आपको तो सुबह ही कह दिया गया था कि आपकी योग्यता अपर्याप्त है, और हम आपको नौकरी पर नहीं रख सकते.”

उस व्यक्ति ने जवाब दिया – “मान्यवर, मुझे आपने बता दिया था, और मैं समझ गया हूँ, और मैं वापस चला भी गया था. मगर आपके ऑफ़िस से मुझे गलती से अधिक यात्रा व्यय का भुगतान कर दिया गया है. दरअसल मैं उसे वापस करने आया हूँ.”

“अच्छा, ये बात है!” रमन आश्चर्यचकित होकर उसे अपने आफिस की ओर ले जाते हुए बोले – “आइए, आपको हम इस पद पर नियुक्त करते हैं. आपकी शैक्षणिक योग्यता कम है, वह हम आपको सिखा देंगे. दरअसल ज्यादा जरूरी योग्यता - "ईमानदारी आप में है, और यह मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है.”

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
पानी पंप करना

एडीसन का एक ग्रीष्मकालीन निवास था जिस पर उन्हें बड़ा गर्व था। वे सभी मेहमानों को अपना घर और उसमें प्रयुक्त मेहनत बचाने वाले उपकरणों को चाव से दिखाते थे। घर के मुख्य द्वार पर एक बड़ा सा दरवाज़ा लगा था जिसे ताकत से घुमाकर ही घर में प्रवेश किया जा सकता था।

एक मेहमान ने एडीसन से पूछा कि जब घर में सुख-सुविधा के इतने उपकरण लगे हुए है तब यह दरवाज़ा इतना भारी क्यों है?

एडीसन ने उत्तर दिया - "जो कोई भी इस दरवाज़े को एक बार घुमाता है, घर की छत पर लगी टंकी में 8 गैलन पानी चढ़ जाता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
तालाब में बारहसिंगा

एक बारहसिंगा तालाब में अपनी प्यास बुझाने आया। जैसे ही वह पानी पीने लगा, उसे अपनी परछाई दिखायी दी। अपने सींगों को देखकर वह बहुत खुश हुआ कि प्रकृति ने उसे कितना सुंदर तोहफा दिया है। तभी उसका ध्यान अपने पतले पैरों की ओर गया। वह अपने पतले पैरों को देखकर दुःखी हो गया। वह अपने शरीर को निहारने में लगा हुआ था कि कुछ शिकारी दबे पांव उसके नजदीक आ पहुंचे।

बारहसिंगा अपने पतले पैरों की वजह से, जिन्हें वह बदसूरत और बेकार समझ रहा था, सरपट भागा और शिकारियों की पहुंच से दूर हो गया। तभी उसके सींग, जिन्हें वह गर्व की चीज समझ रहा था, घनी झाड़ियों में उलझ गए और शिकारियों ने उसे पकड़ कर मार डाला।

"हम प्रायः अपने पास मौजूद छोटी-छोटी परंतु महत्त्वपूर्ण चीजों की उपेक्षा करते हैं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
अर्थ का अर्थ

एक गुरु के आश्रम में ज्ञान चर्चा के लिए एक बड़े अधिकारी पधारे. आरंभिक दुआ-सलाम के बाद अधिकारी ने गुरु से पूछा “गुरुदेव कृपा कर बताएँ कि हमारे दैनिक जीवन में हमारे सामने रहते हुए भी वह क्या चीज है जिसे हम देख नहीं पाते हैं”

गुरु शांत रहे. उन्होंने अधिकारी को नाश्ते में फल दिए. पीने को पेय प्रस्तुत किया. खान-पान के बाद यह सोचकर कि गुरु ने शायद उनके प्रश्न पर ध्यान नहीं दिया, अपना प्रश्न फिर से दोहराया.

“बिलकुल सही,” गुरु ने अब अपना मुंह खोला – “इसका यही अर्थ है – हालाकि अपने दैनिक जीवन में वह रहता है, मगर फिर भी हम देख नहीं पाते हैं!”

ज्ञानी बोलते नहीं,
जो बोलते हैं जानते नहीं,
बुद्धिमान मौन रहते हैं,
चतुर थोड़ा बोलते हैं,
मूर्ख बहस करते हैं

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
दूसरा गधा लाना

"ठीक है नसरुद्दीन कि तुम अपने गधे के मर जाने पर दुःखी हो रहे हो। पर इतना दुःख तो तुमने अपनी पहली बीवी के मर जाने पर भी व्यक्त नहीं किया था।"

"तुम्हें यह याद होगा कि जब मेरी पहली बीवी मरी थी तो सारे गांव वालों ने मुझे यह सांत्वना दी थी कि वे मेरे लिए दूसरी बीवी तलाश करेंगे। पर अब तक किसी गांव वाले ने मुझे दूसरा गधा देने की बात नहीं की है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:31 AM
सिर्फ तुम

जब एक नए शिष्य ने मठ में प्रवेश लिया तो गुरू जी ने उससे सबसे पहले यह प्रश्न किया -

"क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जो सारी उम्र तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा?"

"वह कौन है गुरूजी?"

"सिर्फ तुम"

"और क्या तुम ऐसे व्यक्ति को जानते हो जिसके पास तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर हो?"

"वह कौन है गुरूजी?"

"सिर्फ तुम"

"और क्या तुम अपनी सभी समस्याओं का उत्तर जानते हो?"

"मैं नहीं जानता गुरूजी।"

"सिर्फ तुम"

Sameerchand
25-11-2012, 08:32 AM
पांच घंटियों वाली योजना

किसी जमाने में एक होटल हुआ करता था जिसका नाम "द सिल्वर स्टार"था। होटल मालिक के तमाम प्रयासों के बावजूद वह होटल बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। होटल मालिक ने होटल को आरामदायक, कर्मचारियों को विनम्र बनाने के अलावा किराया भी कम करके देख लिया, पर वह ग्राहकों को आकर्षित करने में नाकाम रहा। इससे निराश होकर वह एक साधु के पास सलाह लेने पहुंचा।

उसकी व्यथा सुनने के बाद साधु ने उससे कहा - "इसमें चिंता की क्या बात है? बस तुम अपने होटल का नाम बदल दो।"

होटल मालिक ने कहा - "यह असंभव है। कई पीढ़ियों से इसका नाम "द सिल्वर स्टार" है और यह देशभर में प्रसिद्ध है।"

साधु ने उससे फिर कहा - "पर अब तुम इसका नाम बदल कर "द फाइव वैल" रख दो और होटल के दरवाज़े पर छह घंटियाँ लटका दो।"

होटल मालिक ने कहा - "छह घंटियाँ? यह तो और भी बड़ी बेवकूफी होगी। आखिर इससे क्या लाभ होगा?"

साधु ने मुस्कराते हुए कहा - यह प्रयास करके भी देख लो।

होटल मालिक ने वैसा ही किया।

इसके बाद जो भी राहगीर और पर्यटक वहां से गुजरता, होटल मालिक की गल्ती बताने चला आता। अंदर आते ही वे होटल की व्यवस्था और विनम्र सेवा से प्रभावित हो जाते। धीरे - धीरे वह होटल चल निकला। होटल मालिक इतने दिनों से जो चाह रहा था, वह उसे मिल गया।

"दूसरे की गल्ती बताने में भी कुछ व्यक्तियों का अहं संतुष्ट होता है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:32 AM
बद से बदतर तरीका

एक महाराजा समुद्र की यात्रा के दौरान भयंकर तूफान में फंस गए। उनका एक गुलाम जो पहली बार जहाज पर चढ़ा था, डर के मारे कांपने लगा और चिल्ला-चिल्ला के रोने लगा। वह इतनी जोर से रोया कि जहाज पर सवार बाकी सभी लोग उसकी कायरता देख गुस्सा हो गए। महाराजा ने भी गुस्सा होकर उसे समुद्र में फेंकने का आदेश दे दिया।

लेकिन राजा के सलाहकार, जो कि एक संन्यासी थे, ने उन्हें रोकते हुए कहा - "कृपया यह मामला मुझे निपटाने दें। शायद मैं उसका इलाज कर सकता हूं।"

राजा ने उनकी बात मान ली। उन्होंने कुछ नाविकों से उस गुलाम को समुद्र में फेंक देने का आदेश दिया। जैसे ही उस गुलाम को समुद्र में फेंका गया वह बेचारा गुलाम जोर से चिल्लाया और अपनी जान बचाने के लिए कठोर संघर्ष करने लगा।

कुछ ही पलों में संन्यासी ने उसे दोबारा जहाज पर खींच लेने का आदेश दिया। जहाज पर वापस आकर वह गुलाम चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। जब महाराजा ने संन्यासी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा - "जब तक स्थितियां बद से बदतर न हो जाए, हम यह जान नहीं पाते कि हम कितने भाग्यशाली हैं।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:32 AM
बदबूदार घोंसला

कबूतर के एक जोड़े ने अपने लिए घोंसला बनाया. परंतु जब कबूतर जोड़े उस घोंसले में रहते तो अजीब बदबू आती रहती थी. उन्होंने उस घोंसले को छोड़ कर दूसरी जगह एक नया घोंसला बनाया. मगर स्थिति वैसी ही थी. बदबू ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा.

परेशान होकर उन्होंने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और नए मोहल्ले में घोंसला बनाया. घोंसले के लिए साफ सुथरे तिनके जोड़े. मगर यह क्या! इस घोंसले में भी वही, उसी तरह की बदबू आती रहती थी.

थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग, चतुर कबूतर से सलाह लेने की ठानी और उनके पास जाकर तमाम वाकया बताया.

चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घूमा फिरा और फिर बोला – “घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी. बदबू घोंसले से नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है. खुले में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से आ रही है. अब जरा अपने आप को साफ करो.”

"दुनिया जहान में खामियाँ निकालने और बदबू ढूंढने के बजाए अपने भीतर की खामियों और बदबू को हटाएँ. दुनिया सचमुच खूबसूरत, खुशबूदार हो जाएगी"

Sameerchand
25-11-2012, 08:33 AM
परीक्षा की घडी

एक जहाज समुद्र में डूब गया – उसमे से एक आदमी किसी तरह तैर कर एक छोटे से द्वीप पर पहुँच गया | वह इश्वर से प्रार्थने करता रहा की कोई उसे बचाने आये पर कुछ हुआ नहीं

बेचारे ने किसी तरह लकड़ियाँ जोड़ कर धूप और बारिश से बचने के लिए एक छोटी सी झोपडी बना ली | लेकिन एक दिन वह जब खाने के लिए कुछ कुछ ढूंढ कर लौटा – तो उसकी झोपडी जल रही थी …. वह रो पड़ा और उसने इश्वर से कहा की तू मेरे साथ ऐसा कैसे कर सका?

जब अगले दिन की सुबह उसकी नींद खुली – तो एक जहाज की आवाज़ से – जो उसे बचाने आया था

उसने पूछा – तुम्हे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ?

जवाब मिला – तुम्हारे धुंए के संकेत से …..

इसलिए – विश्वास रखो – कैसी भी परीक्षा की घडी क्यों न हो – उसे भगवान् का कोई संकेत समझो ….

Sameerchand
25-11-2012, 08:33 AM
जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो

एक आदमी रोज़ नदी से पानी भर कर साहेब के घर तक ले जाया करता था. कन्धों पर एक लम्बी लकड़ी होती, जिसके दोनों सिरों पर एक एक घड़ा बंधा होता | उनमे से एक घड़ा थोडा सा क्रैक्ड था, तो सारे रास्ते उसमे से पानी रिसता रहता | तो मंजिल तक आते आते – एक घड़ा पूरा भरा होता, तो दूसरा सिर्फ आधा रह जाता | पहला घड़ा तो अपने पर्फोमेंस से काफी खुश था लेकिन यह घड़ा हमेशा हीन भावना में घिरा रहता |

एक दिन इस घड़े ने आदमी से कहा – तुम मुझे फेंक दो – और दूसरा घड़ा ले आओ – क्योंकि मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पाता हूँ | तुम इतना भार उठा कर शुरू करते हो लेकिन पहुँचने तक मैं आधा खाली होता हूँ |

इस पर आदमी ने उसे कहा – की आज जाते हुए तुम नीचे पगडण्डी को देखते चलना | घड़े ने ऐसा ही किया – रस्ते भर रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे थे | लेकिन मंजिल आते आते वह फिर आधा खाली हो जाने से दुखी था – उसने बोलना शुरू ही किया था की आदमी ने कहा – अभी कुछ मत कहो – लौटने के समय रास्ते की दूसरी तरफ भी देखते जाना | और लौटते हुए घड़े ने यह भी किया – लेकिन इस तरफ कोई फूल न थे |

नदी के किनारे अपने घर लौट कर उस आदमी ने घड़े को समझाया – मैं पहले से जानता हूँ की तुमसे पानी नहीं संभल पाता – पर यह बुरा ही हो ऐसा ज़रूरी तो नहीं !!! मैंने तुम्हारी और फूलों के पौधे रोप दिए थे – जिनमे तुम्हारे द्वारा रोज़ पानी पड़ता रहा – और वे खिलते रहे |

इसीलिए – हमें समझना है की जीवन में हर चीज़ परफेक्ट हो ऐसा कोई आवश्यक तो नहीं – ज़रुरत इस बात की है की हम हर कमी को पोजिटिव बना पाते हैं – या नहीं ….. | तो अब से हम – किसी को क्रैक्ड पोट कहने या- कोई हमें कहे तो हर्ट होने – से पहले यह कहानी याद करें |

Sameerchand
25-11-2012, 08:33 AM
सुखी वैवाहिक जीवन का रहस्य

एक दंपति का वैवाहिक जीवन 60 वर्ष से अधिक हो चुका था। उन्होंने एक - दूसरे से कभी कोई बात नहीं छुपायी। वे सभी मसलों पर आपस में बात किया करते थे। उनके बीच में कभी कोई रहस्य नहीं था, सिवाय एक जूते के डिब्बे के, जो उस वृद्ध पुरुष की अल्मारी में ऊपर की ओर रखा रहता था। पुरुष ने अपने पत्नी को यह कह रखा था कि वह कभी भी उस डिब्बे को खोलकर न देखे।

महिला ने भी इतने वर्ष उस डिब्बे की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। एक दिन वह बुजुर्ग पुरुष बहुत बीमार पड़ गया। डॉक्टरों ने बताया कि उसके बचने की उम्मीद बहुत कम है। एक - दूसरे के मध्य सभी शेष विषयों की जानकारी लेने के उद्देश्य से पत्नी उस जूते के डिब्बे बिस्तर पर पड़े पुरुष के पास लेकर पहुंची।

पुरुष ने भी माना कि जूते के डिब्बे के रहस्य से पर्दा उठाने का यही सही वक्त है। जब पत्नी ने उस डिब्बे को खोला तो उसमें कढ़ाईकारी की हुयीं दो गुड़ियां और रुपैये 950000/- मिले। पत्नी ने इसके बारे में जानना चाहा। पुरुष ने उत्तर दिया - "जब हमारी शादी हुयी थी तो मेरी दादी ने मुझे सुखी वैवाहिक जीवन के रहस्य के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि मैं कभी भी तुमसे बहस न करूं। यदि मुझे कभी तुम्हारे ऊपर गुस्सा आये तो मैं चुप रहूं और अपना ध्यान गुड़िया को सजाने के लिए की जाने वाली कढ़ाईकारी पर लगा दूं।"उस वृद्ध महिला की आँखों में खुशी के आंसू छलक आये। डिब्बे में सिर्फ दो गुड़िया थीं। पत्नी यह सोचकर भी खुश थी कि इतने वर्षों के लंबे वैवाहिक जीवन में उसने सिर्फ दो बार ही अपनी पति का दिल दुखाया था।

"लेकिन प्रिये! यह तो हुयी गुड़िया की बात। फिर इतने सारे पैसों का क्या रहस्य है? ये कहाँ से आये?"

पति ने उत्तर दिया - "ओह! ये पैसा मैंने उन गुड़ियों को बेचकर कमाया है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:33 AM
किसकी समस्या ?

एक व्यक्ति को यह आशंका हुयी कि उसकी पत्नी कुछ ऊँचा सुनने लगी है। उसे लगा कि उसकी पत्नी को सुनने की मशीन लगवाने की आवश्यकता है। वह असमंजस में पड़ गया कि पत्नी को इस संबंध में कैसे बताया जाए। अतः उसने अपने पारिवारिक डॉक्टर से संपर्क किया।

डॉक्टर ने उसे पत्नी की बहरापन जांचने के लिए आसान घरेलू उपाय बताया - "तुम 40 फुट दूर से खड़े होकर अपनी पत्नी से उस तरह बात करो जैसे उसके नजदीक ही खड़े हो, और देखों कि वह तुम्हें सुन पा रही है या नहीं। यदि नहीं तो 30 फुट की दूरी से बात करो, फिर 20 फुट और इसी तरह पास आते जाओ जब तक कि तुम्हें जबाव न मिले।"

उसी शाम उसकी पत्नी किचन मे खाना पका रही थी और वह दूसरे कमरे में था। वह अपने आप से बोला - "मैं लगभग 40 फुट दूर हूं। देखते हैं क्या होता है?" फिर उसने सामान्य स्वर में अपनी पत्नी से पूछा - "अजी सुनती हो! आज क्या बना रही हो?" कोई उत्तर नहीं मिला! तब पतिदेव किचन की ओर बढ़े। किचन से लगभग 30 फुट की दूरी से उसने फिर पूछा -"अजी सुनती हो! आज क्या बना रही हो?" अभी भी कोई उत्तर नहीं मिला।

फिर वह और नजदीक स्थित डाइनिंग रूम तक पहुंच कर बोला - "अजी आज क्या बना रही हो?" फिर कोई उत्तर नहीं मिला। फिर वह किचन के दरवाजे तक यानि पत्नी से 10 फुट की दूरी तक पहुंच कर बोला - "अजी आज क्या बना रही हो?" तब भी कोई उत्तर नहीं मिला। तब वह पत्नी के ठीक पीछे जाकर चिल्लाया - "आज क्या बना रही हो????"पत्नी ने उत्तर दिया - "जयेश, मैं पांचवी बार बता रही हूं कि मैं खिचड़ी बना रही हूं।"

"जरूरी नहीं कि दूसरों के साथ ही कोई समस्या हो, जैसा कि हम मानते हैं। ये हमारे साथ भी हो सकती है।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:33 AM
सुअर और गाय

एक बार की बात है किसी गांव में एक बहुत धनी और कंजूस व्यक्ति रहता था। सभी गांव वाले उससे बहुत नफरत करते थे। एक दिन उस व्यक्ति ने गांव वालों से कहा - "या तो तुम लोग मुझसे ईर्ष्या करते हो या तुम लोग धन के प्रति मेरे दीवानेपन को ठीक से नहीं समझते, केवल मेरा ईश्वर ही जानता है। मुझे पता है कि आप लोग मुझसे नफरत करते हैं। लेकिन जब मैं मरूंगा तो अपने साथ यह धन नहीं ले जाऊंगा। मैं यह धन अन्य लोगों के कल्याण के लिए छोड़ जाऊंगा। तब आप सभी लोग मुझसे खुश हो जायेंगे।"उसकी ये बात सुनने के बाद भी लोग उसके ऊपर हँसते रहे।

गांव वाले उसके ऊपर जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। वह फिर बोला - "मैं क्या अमर हूं? मैं भी दूसरे लोगों की ही तरह मरूंगा। तब यह धन सभी के काम आएगा।" उस व्यक्ति को यह समझ में नहीं आ रहा था कि लोग उसकी बातों पर भरोसा क्यों नहीं कर रहे हैं।

एक दिन वह व्यक्ति टहलने गया हुआ था कि अचानक जोरदार बारिश शरू हो गयी। उसने एक पेड़ के नीचे शरण ली। पेड़ के नीचे उसने एक सुअर और गाय को खड़ा पाया। सुअर और गाय के मध्य बातचीत चल रही थी। वह व्यक्ति चुपचाप उनकी बातें सुनने लगा।

सुअर, गाय से बोला - "ऐसा क्यों है कि सभी लोग तुमसे प्रेम करते हैं और मुझसे नफरत? जब मैं मरूंगा तो मेरे बाल, चमड़ी और मांस लोगों के काम में आयेंगे। मेरी तीन-चार चीजें काम की हैं जबकि तुम सिर्फ एक चीज ही देती हो - दूध। तब भी सब लोग हर वक्त तुम्हारी ही सराहना करते रहते हैं, मेरी नहीं।"

गाय ने उत्तर दिया - "तो सुनो, मैं लोगों को जिंदा रहते दूध देती हूं। इस कारण सभी लोग मुझे उदार समझते हैं। और तुम सिर्फ मरने के बाद ही काम आते हो। लोग भविष्य में नहीं वर्तमान में यकीन रखते हैं। सीधी सी बात है, यदि तुम जिंदा रहने के दौरान ही लोग के काम आओ तो लोग तुम्हारी भी तारीफ करेंगे।"

Sameerchand
25-11-2012, 08:34 AM
मानसिकता

“जी नमस्ते, मेरा नाम सरिता है और में आपके बिलकुल ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूँ...”

”जी नमस्ते, कहिए?”

” मुझें घर में काम करने के लिए एक बाई की जरूरत है तो क्या अपनी बाई को ऊपर भेज देंगी?”

”जरूर भेज दूँगी, वैसे कितने लोग है आप के घर में?”

” बस मैं अकेली ही हूँ।”

”अच्छा थोड़ी देर में बाई आ जाएगी।”

‘’जी धन्यवाद”... कहकर मेंने इंटेर्कोम रख दिया। थोड़ी देर बाद, दरवाजे की घंटी बजी तो वाकई बाहर एक बाई को खड़ा पाया, मन में एक खुशी के लहर लहरा गयी...सोचा, चलो एक समस्या का समाधान तो आसानी से हो गया है। बाई से सारी बात तय हो गयी थी वक्त और पैसों को लेकर....और फिर कल से उसके आने का इंतज़ार भी शुरू हुआ...लगा कि बाई के हाथ में एक सुदर्शन चक्र है और वो कल से मेरे अव्यवस्थित घर की धुरी घुमा देगी। अगले रोज़ बाई का इंतज़ार करती रही पर वो नहीं आई। उसके अगले दिन मैं परेशान सी लिफ्ट से उतर कर किसी नई बाई की तलाश में मुड़ी ही थी कि सामने से वही बाई दिखाई, वह मुझे देख कर कन्नी काटने की कोशिश में थी...मैंने उसे पकड़ कर पूछ ही लिया -”सब कुछ तय हो तो गया था फिर तुम आई क्यों नहीं?”

वो सकुचा कर बोली.....”मेमसाहब मैं तो आना चाहती थी पर आपके नीचे वाली आंटी जी ने मना कर दिया आपके यहाँ आने से”....

”पर क्यों मना किया और तुमने उनकी बात भी मान ली, क्या तुम्हें और पैसा नहीं चाहिए?’

वो बोली...” पैसा किसे बुरा लगे हैं मेमसाहब, पर आप तो यहाँ हमेशा रहने वाली हो नहीं, उनका काम तो पक्का है न, और वो बोल रही थी कि आप अकेली औरत हो...उन्हे शक है कि कुछ.....कि कुछ.....”, इसके आगे बाई कुछ बोली नहीं और चली गई ।

और मैं चुपचाप खड़ी उसकी पीठ पर अपने अकेले होने के एहसास को ढूँढने लगी ....समझ नहीं पाई कि चुनौतियों को पार करके यहाँ तक पहुँचने के लिए खुद को शाबाशी दूँ, या नीचे वाली उस आंटी जी की “अकेले” शब्द की मानसिकता पर दुख मनाऊँ।

Sameerchand
25-11-2012, 08:34 AM
दुख का कारण

एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी। एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट सुनी। देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की कोशिश कर रहा था, परन्तु चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी।

नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।

Sameerchand
25-11-2012, 08:35 AM
एक परिपूर्ण दुनिया

मुल्ला भीड़ भरे बाजार में पहुँचा और एक कोने पर खड़ा होकर भाषण झाड़ने लगा.

थोड़ी ही देर में अच्छी खासी भीड़ एकत्र हो गई.

वो भाषण दे रहा था – “क्रांति होगी तो हमारी दुनिया परिपूर्ण हो जाएगी, परफेक्ट हो जाएगी. क्रांति होगी तो सभी के पास कारें होंगी. क्रांति होगी तो सभी के पास मोबाइल होगा.
क्रांति होगी तो रहने के लिए सभी के पास घर होगा...”

इतने में भीड़ में से कोई विरोध में चिल्लाया – “मुझे न कार चाहिए न मोबाइल और न घर!”

मुल्ला का भाषण जारी था – “क्रांति होगी तो विरोध में बोलने वाले ऐसे आदमी भी न रहेंगे...”

"यदि आप परिपूर्ण, परफ़ेक्ट दुनिया चाहते हैं तो वहाँ से आपको मनुष्यों को रफादफा करना होगा."

Sameerchand
25-11-2012, 08:35 AM
समाधान

एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।

बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।

फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।

एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?

पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।

Sameerchand
25-11-2012, 08:35 AM
दंभी

एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’

दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’

थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”

नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“

मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’

“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।

मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।

Sameerchand
25-11-2012, 08:36 AM
सही ताले की ग़लत चाबी

अमीर जमींदार के घर में मुल्ला लंबे समय से काम कर रहा था. 11 वर्षों तक निरंतर काम करने के बाद एक दिन मुल्ला जमींदार से बोला – “अब मैं भर पाया. मैं अब यहाँ काम नहीं करूंगा. मैं यहाँ काम करके बोर हो गया. मैं काम छोड़कर जाना चाहता हूँ. वैसे भी आप मुझ पर भरोसा ही नहीं करते!”

जमींदार को झटका लगा. बोला – “भरोसा नहीं करते? क्या कह रहे हो मुल्ला! मैं तुम्हें पिछले 11 वर्षों से अपने छोटे भाई सा सम्मान दे रहा हूँ. और घर की चाबियाँ यहीं टेबल पर तुम्हारे सामने पड़ी रहती हैं और तुम कहते हो कि मैं तुम पर भरोसा नहीं करता!”

“भरोसे की बात तो छोड़ ही दो,” मुल्ला ने आगे कहा – “इनमें से कोई भी चाबी तिजोरी में नहीं लगती.”

"हमारे पास भी बहुत सी चाबियाँ नहीं हैं जो कहीं नहीं लगतीं?"

Sameerchand
25-11-2012, 08:36 AM
दूरदर्शी

एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा, ‘‘मियाँ, अपना रास्ता लो। मेरे पास छलनी नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू चाहिए।’’

सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं हैं।’’ उसने कहा, ‘‘मसखरी को छोड़, मै तराजू मांगने आया हूँ, वह दे दे और बहरा बन कर ऊटपटांग बातें न कर।’’

सुनार ने जवाब दिया, ‘‘हजरत, मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, मैं बहरा नहीं हूँ। तुम यह न समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूँ। तुम बूढ़े आदमी सुखकर काँटा हो रहे हो। सारा शरीर काँपता हैं। तुम्हारा सोना भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है। इसलिए तौलते समय तुम्हारा हाथ काँपेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई, जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लूं और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए, ताकि ख़ाक को छानकर सोना अलग कर सको। हमारी दुकान में छलनी कहां? मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अन्तिम परिणाम को देखकर दूरदर्शिता से कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लो।’’

जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रखे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।

Sameerchand
25-11-2012, 08:36 AM
उदार दृष्टि

पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।

एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।

लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।

जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।

पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ मनुष्य हैं।”

Sameerchand
25-11-2012, 08:36 AM
न देने वाला मन

एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है। पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।

अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया। उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।

Sameerchand
25-11-2012, 08:37 AM
मासूम सज़ा

एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा – किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए।

दरबारियों में से किसी ने कहा – उसे सूली पर लटका देना चाहिए, किसी ने कहा उसे फाँसी दे देनी चाहिए, किसी ने कहा उसकी गरदन धड़ से तत्काल उड़ा देनी चाहिए।

बादशाह नाराज हुए। अंत में उन्होंने बीरबल से पूछा – तुमने कोई राय नहीं दी!

बादशाह धीरे से मुस्कराए, बोले - क्या मतलब?

जहाँपनाह, ख़ता माफ हो, इस गुनहगार को तो सज़ा के बजाए उपहार देना चाहिए – बीरबल ने जवाब दिया। जहाँपनाह, जो व्यक्ति आपकी मूँछें नोचने की जुर्रत कर सकता है, वह आपके शहजादे के सिवा कोई और हो ही नहीं सकता जो आपकी गोद में खेलता है। गोद में खेलते-खेलते उसने आज आपकी मूँछें नोच ली होंगी। उस मासूम को उसकी इस जुर्रत के बदले मिठाई खाने की मासूम सज़ा दी जानी चाहिए – बीरबल ने खुलासा किया।

बादशाह ने ठहाका लगाया और अन्य दरबारी बगलें झांकने लगे।

Sameerchand
25-11-2012, 08:37 AM
लेखक

जेबकतरे ने उसकी जेब काटी तो लगा था कि काफी माल हाथ लगा है, भारी जान पड़ती थी। देखा तो सब के सब काग़ज़ निकले। काग़ज़ों पर नजर डाली तो तीन कविताएँ, एक कहानी और दो लघु-कथाएं थीं। नोट एक भी न था।

जेबकतरे को लेखक की जेब काटने का पछतावा हो रहा था।

Sameerchand
25-11-2012, 08:37 AM
मेजबान

'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा

'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।

Sameerchand
25-11-2012, 08:37 AM
खुशामद

एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।'

बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया।'

Sameerchand
25-11-2012, 08:38 AM
उलझन

‘ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी।

‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ एक भारतीय संस्था में एक भारतीय बच्चे को विदेश में अँग्रेजी पढ़ाई जा रही थी।

अपने देश में विदेशी ढंग से और विदेश में देसी ढंग से। अपने देश में, ‘ए फॉर अर्जुन, बी फॉर बलराम’ क्यों नहीं होता? मैं उलझन में पड़ गया।

मैं सोचने लगा अगर अँग्रेजी हमारी जरूरत ही है तो ‘ए फार अर्जुन – बी फार बलराम’ ही क्यों न पढ़ा जाए?

Sameerchand
25-11-2012, 08:38 AM
हृदय परिवर्तन

एक कारखाने में एक कर्मचारी की गलती से उसकी मौत हो गयी . सड़क पर लाश रख कर जाम लगा दिया. मृतक की बीबी का रो रो कर बुरा हाल था. १८ वर्षीय बेटा और १५ वर्षीय बेटी अपने पिता की लाश से लिपट लिपट कर रो रहे थे. पूरा वातावरण ग़मगीन था.

स्थानीय पत्रकार और फोटोग्राफर शव और भीड़ का छायांकन करते हुए लोगों से इस विषय में जानकारी ले रहे थे. मृतक की पत्नीऔर बच्चे चीख चीख कर कारखाना मालिक को दोषी ठहरा रहे थे. पुलिस आयी और मौक़ा मुआयना करने कारखाने के अन्दर चलीगयी. साथ में मृतक के दो रिश्तेदार भी अन्दर गए.

थोड़ी देर बाद एक सिपाही मृतक के एक रिश्तेदार के साथ मृतक की बीबी और बच्चों को बुला लाया.
अब वे सभी कारखाना मालिक के केबिन में बैठे थे. वहाँ पर कारखाना मालिक, थानेदार, मृतक की पत्नी और
बच्चे, दोनों रिश्तेदार और दो स्थानीय पत्रकार ही उपस्थित थे. मेज पर रुपयों की कुछ गड्डियां रखी हुयी थी.
थानेदार ने दोनों रिश्तेदारों की तरफ इशारा किया तो उन्होने तक कीपत्नी से कहा, 'भाभी, ये दो लाख रुपये हैं जो आपके खर्चे के लिए हैं.तीन लाख का ड्राफ्ट बेटी के नाम से और दो लाख काड्राफ्ट बेटे के नाम से बन कर आने वाले हैं.ये आप रख लो. जो होना था वो तो हो ही गया है. शायद ईश्वर को यही मंज़ूर था. अब
आप जैसा उचित समझें दरोगा जी और पत्रकारों को बता दें.'

मृतक की पत्नी और बच्चों के चहरे पर चमक थी. मृतक की पत्नी ने अपने बच्चों की ओर देखा और थानेदार की तरफ देखते हुए बोली, 'साहब हम अपने पति से बहुत दुखी थे. वे बहुत अधिक शराब पीते थे.
बच्चों से भी मार पीट करते रहते थे. आज सुबह भीघर से झगडा कर के निकले थे . थोड़ी देर पहले ही हमें उनके साथियों से खबर मिली थी कि कारखाने में आने से पहले उन्होंने जमकर शराब पी थी.
क्या कहें मेरा नसीब ही ऐसा है. ये मालिक साहब तो भगवान् की तरह हैं. ' यह कहते हुए
उसने सामने रखी गड्डियों को समेत लिया .

केबिन से बाहर निकलते समय थानेदार, पत्रकार और दोनों रिश्तेदारों की जेबें उभरी हुयी थी.

Sameerchand
25-11-2012, 08:38 AM
प्रार्थना और जूता

नसरूद्दीन मजार पर गया और जूता पहन कर ही दुआ मांगने लगा.

वह नक्काशीदार चमरौंधे जूते पहना था जिसमें बढ़िया आवाज आ रही थी और उस पर काम की गई जरी की चमक कौंध रही थी.

वहीं मंडरा रहे एक फोकटिया छाप आदमी की नजर नसरुद्दीन के जूतों पर पड़ी. उसे लगा कि काश यह जूता उसके पास होता. जूते पर हाथ साफ करने की गरज से वो नसरुद्दीन के पास गया और उसके कान में धीरे से बोला –

“जूते पहन कर प्रार्थना करने से, दुआ मांगने से ईश्वर हमारी प्रार्थना नहीं सुनता.”

“मेरी प्रार्थना न पहुंचे तो भी कोई बात नहीं, कम से कम मेरे जूते मेरे पास तो रहेंगे.” – नसरूद्दीन का उत्तर था.

Sameerchand
25-11-2012, 08:39 AM
ज्ञान का राजसी मार्ग

जब यूक्लिड अपने एक कठिन ज्यामितीय प्रमेय को अलेक्सांद्रिया के राजा टॉल्मी को समझा रहा था तो राजा की समझ में कुछ आ नहीं रहा था.

राजा टॉल्मी ने यूक्लिड से कहा – क्या कोई छोटा, सरल तरीका नहीं है तुम्हारे प्रमेय को सीखने का?

इस पर यूक्लिड ने उत्तर दिया – महोदय, इस देश में आवागमन के लिए दो तरह के रास्ते हैं. एक तो आम जनता के लिए लंबा, उबाऊ, कांटों, गड्ढों और पत्थरों भरा रास्ता और दूसरा शानदार, आसान रास्ता राजसी परिवार के लोगों के लिए. परंतु ज्यामिती में कोई राजसी रास्ता नहीं है. सभी को एक ही रास्ते से जाना होगा. चाहे वो राजा हो या रंक!

Sameerchand
25-11-2012, 08:39 AM
सही ताले की ग़लत चाबी

अमीर जमींदार के घर में मुल्ला लंबे समय से काम कर रहा था. 11 वर्षों तक निरंतर काम करने के बाद एक दिन मुल्ला जमींदार से बोला – “अब मैं भर पाया. मैं अब यहाँ काम नहीं करूंगा. मैं यहाँ काम करके बोर हो गया. मैं काम छोड़कर जाना चाहता हूँ. वैसे भी आप मुझ पर भरोसा ही नहीं करते!”

जमींदार को झटका लगा. बोला – “भरोसा नहीं करते? क्या कह रहे हो मुल्ला! मैं तुम्हें पिछले 11 वर्षों से अपने छोटे भाई सा सम्मान दे रहा हूँ. और घर की चाबियाँ यहीं टेबल पर तुम्हारे सामने पड़ी रहती हैं और तुम कहते हो कि मैं तुम पर भरोसा नहीं करता!”

“भरोसे की बात तो छोड़ ही दो,” मुल्ला ने आगे कहा – “इनमें से कोई भी चाबी तिजोरी में नहीं लगती.”

"हमारे पास भी बहुत सी चाबियाँ नहीं हैं जो कहीं नहीं लगतीं?"

Sameerchand
25-11-2012, 08:39 AM
सुझाव

एक दिन मुल्ला नसरूद्दीन एक अमीर सेठ के पास गया और कुछ रुपए उधार मांगे.

“तुम्हें रुपया क्यों चाहिए?”

“मुझे एक हाथी खरीदना है.”

“यदि तुम्हारे पास पैसा नहीं है, तुम उधारी के पैसे से हाथी खरीद रहे हो तो तुम हाथी को चारा कैसे खिलाओगे?”

“मैं उधारी मांग रहा हूँ, सुझाव नहीं!”

Sameerchand
25-11-2012, 08:39 AM
प्रबंधन का गुर

जंगल का राजा सिंह युद्ध की तैयारी कर रहा था. सभी जानवरों को उनके बल-बुद्धि के अनुरूप कार्य दिए जा रहे थे. गधे और गिलहरी की जब बारी आई तो रणनीतिकारों ने गधे को मूर्ख समझ और गिलहरी को नाजुक मान कर युद्ध से बाहर रखने की सलाह सिंह को दी.

इस पर सिंह ने कहा - “युद्ध में जीतने के लिए सही काम के लिए सही जानवर होना जरूरी है. हर जानवर का सर्वोत्तम प्रयोग में लेना होगा. गधे की रेंक दूर दूर तक जाती है तो उसका उपयोग हम युद्ध घोष के लिए करेंगे और गिलहरी दौड़ भाग करने में माहिर है तो हम उसका उपयोग सूचना आदान-प्रदान के लिए करेंगे.”

"घनश्याम दास बिड़ला ने एक बार कहा था – सही काम के लिए सही आदमी ही प्रबंधक का एकमात्र गुर है."

Sameerchand
25-11-2012, 08:40 AM
जीवन और कार्य

एक पिता बहुत ही श्रमशील मनुष्य था . फिर भी वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों का किसी प्रकार से भरण पोषण कर रहा था. काम से छूटने के बाद वह और अधिक कमाई के लिए प्रत्येक शाम को कक्षाएं भी लेता था. रविवार के अलावा शायद ही कोई दिन होता हो जब वह अपने परिवार के साथ बैठ कर भोजन करता हो. इस प्रकार वह कमा भी रहा था और पढ़ भी रहा था ताकि अपने बच्चों को बेहतर भविष्य का निर्माण कर सके.

जब कभी भी परिवारवाले कहते की वह परिवार को अधिक समय नहीं दे रहा है तो वह कारण बताता कि उन्ही लोगों के लिए ही बाहर रहता है. फिर भी वह प्रयास करता कि वह परिवार को अधिक से अधिक समय दे सके.

अंततः वह दिन भी आया जब परिक्षा का परिणाम आना था और पिता 'आनर्स' के साथ उत्तीर्ण हुआ . शीघ्र ही उसे एक विभाग में सुपरवाइजर के पद का नियुक्तिपत्र मिला . अब उसे वेतन में अच्छी राशि मिलने लगी थी.

एक सपना सच हो चुका था किन्तु पिता अब अपने परिवार को और अधिक सुविधा संपन्न बनाना चाहता था. उसकी इच्छा थी कि उसके बच्चे
ब्रांडेड वस्त्र पहने, पांच सितारा होटलों में भोजन करें और विदेशों में छुट्टियां बिताएं. ऐसा सोचते हुए वह अधिक श्रम करने लगा. उसे उम्मीद थी कि जल्द भी उसके कार्य से प्रभावित हो कर उसे प्रबंधक के पद पर नियुक्त किया जा सकता है तब उसका वेतन वर्तमान से कहीं अधिक होगा. इसके लिए उसने
विश्वविद्यालय में एक नए विषय की कक्षा में प्रवेश भी ले लिया था.

एक बार फिर से उसके परिवार वालों ने उससे कहा कि वह परिवार को अधिक समय नहीं दे रहा है तो उसने वही पुराना कारण बताया कि वह उन्ही लोगों के लिए ही बाहर रहता है. फिर भी वह प्रयास करता कि वह परिवार को अधिक से अधिक समय दे सके.

परिश्रम का फल मीठा होता है. पिता का श्रम काम आया और उसे प्रबंधक के पद पर नियुक्त कर दिया गया. बहुत खूब. उसने एक नौकरानी रख ली ताकि उसकी पत्नी को घरेलू कार्यों से छुट्टी मिल सके. उसने यह भी सोचा कि उसका तीन कमरों का घर अब छोटा पड़ने लगा है अतः
उसे सभी सुविधाओं से युक्त एक आरामदायक विशाल भवन लेना चाहिए. उसे पता था कि श्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता और इसका फल वह पहले भी चख चुका था. यही सोच कर उसने एक और विषय में उपलब्धिपूर्ण सफलता प्राप्त की और फिर से उसे महाप्रबंधक के पद पर नियुक्ति मिली और वह अधिक वेतन का स्वामी बन गया. अब उसकी जिम्मेदारियां बढ़ गयी थी इसलिए कभी कभी उसे रविवार के दिन भी उसे कार्य निपटाने पड़ते थे. उसके परिवार के सदस्यों ने उससे शिकायत की कि वह परिवार को अधिक अधिक से समय नहीं दे रहा है. उसने वही पुराना कारण बताया कि वह उन्ही लोगों के लिए ही बाहर रहता है. फिर भी वह प्रयास करता कि वह परिवार को अधिक से अधिक समय दे सके.

जैसा सुनिश्चित था वही हुआ और पिता के श्रम का फल उसे दुगुना वेतनमान के रूप में मिला . उसने शहर के प्रतिष्ठित स्थान पर धनाड्य व्यक्तियों के भवनों के मध्य एक सर्वसुविधा संपन्न विशाल भवन खरीद लिया. नए भवन में स्थानांतरित होने की पहली रात को भोजन करते समय पिता ने अपने पारिवारिक सदस्यों के बीच घोषणा की कि अब वह तरक्की के लिए ना तो अधिक श्रम करेगा और ना ही कोई पढाई ही. वह अब अपने परिवार को अधिक से अधिक समय देगा. पत्नी और बच्चों ने उसके इस कथन का न केवल मुक्तकंठ से स्वागत किया बल्कि भूरि भूरि प्रशंसा भी की.

अगले दिन प्रातः पिता अपने बिस्तर पर मृत पाया गया. उसके चेहरे पर निश्चिंतता की मुस्कुराहट शेष थी.

Sameerchand
25-11-2012, 08:40 AM
==== खिड़की के उस पार ====

गंभीर रूप से पीड़ित दो व्यक्ति एक चिकित्सालय के एक कक्ष में अगल बगल के पलंग पर लेटे रहते थे. एक व्यक्ति को फेफड़ों में दवा के उचित संचार के लिए दोपहर बाद एक घंटे के लिए बैठना पड़ता था. कक्ष की एक मात्र खिड़की उसी के सिरहाने लगी हुयी थी. दूसरा व्यक्ति को हर समय पलंग पर सीधे पीठ के बल लेटे रहना पड़ता था. वे दोनों घंटों बात किया करते थे. बातों के विषय में उनका घर, बच्चे, पत्नी, परिवार, उनकी नौकरी,
देश के वर्तमान समाचार, चलचित्र आदि रहते थे.

प्रत्येक दोपहर जब बैठा हुआ व्यक्ति खिड़की के पार देखता तो उस दृश्य का शाब्दिक चित्रण किया करता था. जिसे लेटा हुआ व्यक्ति बड़ी तल्लीनता से सुनता था. यही वह एक घंटा होता था जब लेटे हुए व्यक्ति के लिए संसार बहुत रंगीला और चंचल हो जाता था. सुन सुन कर वह अब तक जान चुका था कि खिड़की के पार एक सुन्दर सा पार्क है जिसका दूसरा सिरा एक अति सुन्दर झील से मिलता था. उस झील में रंग बिरंगी बतखें और हंस तेरा करते थे. कभी कभी कुछ बच्चे कागज़ की नावें भी झील में तैराया करते थे. वह यह भी जानता था कि युवा जोड़े अक्सर उस पार्क में खिले बहुरंगी फूलों की पंक्तियों के बीच से एक दूसरे के हाथों में हाथ फंसाए हुए टहलते रहते थे. उसे यह भी ज्ञात हो चुका था कि झील के उस पार अति व्यस्त शहर की ऊंचे ऊंचे भवनों के सर
पर टिका हुआ आसमान भी दिखाई देता था.

खिड़की के पार देखता हुआ व्यक्ति जब भी किसी दृश्य को शब्दों से चित्रित करता तो लेटा हुआ व्यक्ति आँखे बंद कर करके एक एक शब्द से उस दृश्य को अपने मानस पटल पर चित्रित करता रहता था.

इस प्रकार कई सप्ताह और कई माह निकल गए.

एक सुबह जब प्रथम पाली की परिचारिका उन दोनों के शुष्क स्नान (शरीर पोंछने) के लिए पानी लेकर आयी तो खिड़की के पलंग वाले व्यक्ति को मृत पाया. वह सोते हुए चिरनिद्रा में विलीन हो गया था. परिचारिका ने अविलम्ब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सूचित किया ताकि शव को बाहर निकाला जा सके.

जैसे ही कक्ष की हलचल में कुछ ठहराव आया तो लेटे हुए व्यक्ति ने परिचारिका से अनुरोध किया कि उसे खिड़की वाले पलंग पर स्थानांतरित कर दिया जाए. एक सहयोगी के सहायता से परिचारिका ने उसे उसके इच्छित पलंग पर लिटा दिया . जब वह पूर्ण रूप से संतुष्ट हो गया तो वह चली गयी.
लेटे हुए व्यक्ति बड़ी पीड़ा के साथ अपनी कोहनियों के बल खडा हुआ और एक दृष्टि खिड़की के बाहर डाली. वह आश्चर्यचकित रह गया. उसे बाहर चिकित्सालय की भद्दी दीवार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखा.

सायंकाल में परिचारिका के आने पर उसने पूछा कि जो व्यक्ति इससे पहले इस पलंग पर था उसे क्या व्याधि थी. क्योंकि वह खिड़की के पार के बड़े लुभावने दृश्यों को बताया करता था.

इस पर परिचारिका ने मुस्कुराते हुए कहा, "वह व्यक्ति को दृष्टिहीन था अतः वह कुछ भी देखने में सक्षम नहीं था." फिर थोड़ा ठहर कर गंभीर होते हुए कहा,"संभव है कि वह आपका उत्साहवर्धन करते हुए आपकी जिजीविषा को बढाता रहा हो."

(समाप्त)

vijaysr76
19-12-2012, 11:29 AM
असली सुख


चींटी हर समय काम करती रहती थी। कभी बिल की व्यवस्था करती, तो कभी राशन-पानी की। उसे काम करते अकर्मण्य कछुआ देखता रहता था। एक दिन चींटी अपने परिवार के लिए खाना लेने बाहर गई हुई थी। लौटकर आई, तो देखा कि कछुआ उसके बिल के ऊपर पत्थर बना बैठा हुआ है। चींटी ने उसके खोल पर दस्तक दी, तो उसने मुंह निकाला। चिढकर बोला- क्या है? चींटी बोली- यहां मेरा घर है, यहां से हट जाओ। कछुए ने कहा - देखती नहीं, मैं आराम कर रहा हूं। मुझे यहां से कोई नहीं हटा सकता। जाओ, मेरी तरह जाकर आराम करो। चींटी ने कहा - क्या तुम्हें अपने आलस में सुख मिलता है? कछुए ने कहा- मैं क्या, जो भी मेरी तरह अपने हाथ-पांव सभी कामों से खींचकर अपने में लीन हो जाता है, वही सुखी है। यह कहकर कछुआ फिर अपने खोल के भीतर समा गया। चींटी तो मेहनती थी। उसने कछुए के पास से बिल बनाया और जमीन के भीतर-भीतर अपने बिल में चली गई। चीटियां संगठित होकर कछुए के नीचे पहुंच गईं और उसे बेतरह काटने लगीं। आखिरकार चींटियों के प्रहार से बचने के लिए कछुए को आलस त्याग कर वहां से हटना ही पडा। चींटी आकर बोली- अब बताओ, तुम्हें सुख किसमें मिला? चींटियों से कटते रहने में या अपने हाथ-पांव हिलाकर वहां से हटने में?
कथा-मर्म- संकट आने पर हम काम करें, इससे अच्छा है कि काम करने की आदत डाल लें, जिसमें असली सुख है।

vijaysr76
19-12-2012, 11:31 AM
आपके ज्ञान से किसी का अहित नहीं होना चाहिए


एक व्यापारी एक अनजान व्यक्ति को व्यवसाय में साझेदार बनाना चाहता था। उसने तसल्ली करने के लिए अपने एक मित्र से उसके बारे में पूछा कि वह कैसा आदमी है? मित्र उस आदमी को जानता था। जिसे व्यापारी साझेदार बना रहा था, वह वास्तव में ठग था, लेकिन मित्र ठहरा शास्त्रों का ज्ञाता, वह दूसरे की बुराई कैसे कर सकता था? उसने शास्त्रों में पढा था कि किसी की बुराई मत करो। उसके दोष बताना तो परनिंदा होगी। उसने ठग की प्रशंसा कर दी कि वह जिसके साथ काम करता है, उस पर अपना विश्वास जमा लेता है। सज्जन की बात पर विश्वास करके व्यापारी ने उसे साझेदार बना लिया। साझेदार ने मीठी-मीठी बातें करके व्यापारी पर विश्वास जमाया और दो महीने में ही सब कुछ लेकर चंपत हो गया। व्यापारी मित्र के पास गया। बोला - तुमने झूठ क्यों बोला? उसने कहा कि मैंने तो झूठ नहीं बोला। वह ज्यादा समय तक सच्चाई और ईमानदारी से विश्वास जमाता था, धोखा तो वह मात्र आखिरी दिन ही देता था। मैं सज्जन व्यक्ति हूं, किसी की निंदा करना तो पाप है। व्यापारी बोला - वाह मित्र, तुम्हारे इस कथित शास्त्र-ज्ञान और सज्जनता ने तो मेरी लुटिया ही डुबो दी।कथा-मर्म- अगर आपके ज्ञान से किसी का अहित होने की आशंका हो, तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं.

malethia
19-12-2012, 11:33 AM
ज्ञानवर्धक कहानियों का उत्तम संकलन ..............:hello::hello:

vijaysr76
19-12-2012, 11:34 AM
वाहनों के अर्थ


हंस : कहा जाता है कि हंस नीर (जल) और क्षीर (दूध) को अलग-अलग कर देता है। इसलिए वह विवेक का प्रतीक है। इसी कारण देवी सरस्वती ने उसे अपना वाहन बनाया है। हंस मोती चुगकर सर्वश्रेष्ठ को ग्रहण करने का संदेश देता है।
वृषभ : कृषक का प्रिय वृषभ (बैल) श्रमशीलता का प्रतीक है। जन-जन के आराध्य शिव जी का वाहन बैल भी उनके साथ पूजा जाता है। यह हमारी संस्कृति में श्रम की उपासना का अप्रतिम उदाहरण है।
गरुड : भगवान विष्णु का वाहन गरुड सांपों का शत्रु है। इस कारण यह कहा जाता है कि गरुड विष को खत्म करने वाला अर्थात आतंक को नष्ट करने वाला पक्षी है।
अश्व : अश्व (घोडा) को स्फूर्ति एवं शक्ति का प्रतीक माना जाता है। हमारी सृष्टि के साक्षात देवता माने जाने वाले सूर्य के रथ में सात घोडे होते हैं, जो सात किरणों के प्रतीक हैं। अश्वमेध यज्ञ से संबद्ध होने के कारण भी इसे पूज्य माना गया है।
गज : गज अर्थात हाथी वैभव का सूचक है। पुराणों में कहा गया है कि धन-संपन्नता की देवी लक्ष्मी की अर्चना गजराज जल से करते रहते हैं। गज को बुद्धि के देवता गणपति का प्रतीक भी माना गया है।
सिंह : देवी दुर्गा का वाहन वनराज सिंह शक्ति का प्रतीक है, तभी तो स्वामी विवेकानंद उद्घोष करते हैं - हे युवाओं, तुम सिंह की तरह निर्भय बनो और आगे बढे चलो। इस प्रतीक को वैदिक, बौद्ध, जैन तीनों धर्र्मो में अपनाया गया है।
(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

vijaysr76
19-12-2012, 11:37 AM
देवों के आयुध


देवता व्यक्ति नहीं, शक्ति का स्वरूप हैं। निश्चित रूप से उनके प्रिय अस्त्रों-शस्त्रों में भी गहरे अर्थ छिपे हैं:- अंकुश : बुद्धि के देवता गणपति का यह अस्त्र आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। हाथी को काबू में रखने वाला अंकुश यह संदेश देता है कि विवेक द्वारा ही इंद्रियों एवं महाशक्तिशाली मन पर संयम रखा जा सकता है।
चक्र : भगवान विष्णु का अस्त्र चक्र जीवन की गतिशीलता का प्रतीक है। ठहराव में विकृति आती है, इसी कारण सृष्टि का कण-कण गतिशील है। भगवान विष्णु ने हर युग की परिस्थितियों के अनुकूल गुणों को धारण कर ही धरती पर जन्म लिया और अत्याचार का अंत किया। वस्तुत: यह अस्त्र उन सिद्धांतों, आदर्र्शो और उद्देश्यों का परिचायक है, जो युगों से सत्यमेव जयते का शंखनाद करते आ रहे हैं।
गदा : अनीति एवं अत्याचार का संहार करने वाले भगवान विष्णु का यह अस्त्र बुद्धि का प्रतीक है। इसे दंडनीति का पर्याय भी कहा गया है। गोल, कुंभाकार, अंडाकार आदि रूपों में सुशोभित गदा का रामायण और महाभारत में व्यापक उल्लेख मिलता है। वृहत्संहिंता में गदा को वासुदेव कृष्ण के पुत्र साम्ब का आयुध माना जाता है।
त्रिशूल : वैदिक साहित्य के अनुसार मनुष्य के कल्याण के मार्ग में तीन बंधन हैं-लोभ, मोह और अहंकार। शिव का त्रिशूल इन्हीं का विनाश करने वाली शक्ति का प्रतीक है।
खड्ग : मां काली का शस्त्र खड्ग आकाश-तत्व का प्रतीक है। इसे वैराग्य को सूचित करने वाला प्रतीक भी माना गया है। शुंगकाल, मौर्यकाल एवं गुप्तकाल में मां काली के अतिरिक्त अन्य देवों के साथ भी खड्ग का अंकन किया गया है।
[साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार]

ALEX
19-12-2012, 12:36 PM
एक लड़के के आपात आपरेशन के लिए एक फोन
के बाद डाक्टर जल्दी जल्दीअस्पताल में प्रवेश
करते हैं....उन्होंने -तुरंत अपने कपडे बदल कर
सर्जिकल गाउन पहना, ऑपरेशनके लिए खुद
को तैयार किया और ऑपरेशन थियेटर
की तरफ चल पड़े...हॉल में प्रवेश करते ही उनकी नज़र लड़के की माँ पर
जाती है...जो उनका इंतज़ार करती जान
पड़ती थी और बहुत व्याकुल भी लग रही थी....
डॉक्टर को देखते ही लड़के की माँ एकदम गुस्से
से बोली : आपने आने इतनी देर क्यों कर दी..?
आपको पता नहीं है कि मेरे बेटे की हालत बहुत गंभीर है..?
आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास है
की नहीं..??
डॉक्टर मंद मंद मुस्कुराते हुए कहता है : मैं
अपनी गलती के लिए आपसे
माफ़ी मांगता हूँ...फोन आया तब मैं अस्पताल में नहीं था,जैसे ही खबर मिली मैं तुरंत अस्पताल
केलिए निकल पड़ा..रास्ते में ट्रैफिक
ज्यादा होने की वजह से थोड़ी देर हो गयी. अब
आप निश्चिन्त रहो मैं आ गया हूँ भ
गवान की मर्ज़ी से सब ठीक हो जाएगा..अब
आप विलाप करना छोड़ दो..'' इस पर लड़के की माँ और ज्यादा गुस्से से :
विलाप करना छोड़ दूं मतलब..? आपके कहने
का मतलब क्या है..? मेरे बच्चे को कुछ
हो गया होता तो.? इसकी जगह
आपका बच्चा होता तो आप क्या करते..??
डॉक्टर फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए : शांत हो जाओ बहन, जीवन और मरण वो तो भगवान
के हाथ में है, मैं तो बस एक मनुष्य हूँ, फिर भी मैं
मेरे सेजितना अच्चा प्रयास हो सकेगा वो मैं
करूँगा..बाकी आपकी दुआ और भगवान
की मर्ज़ी..! क्या अब आप मुझे ऑपरेशन
थियेटर में जाने देंगीं.?? डॉक्टर ने फिर नर्स को कुछ सलाह दी और ऑपरेशन रूम में चले गए..
कुछ घंटे बाद डॉक्टर प्रफुल्लित मुस्कान लिए
ऑपरेशन रूम से बाहर आकर लड़के की माँ से
कहते हैं : भगवान का लाख लाख शुक्र है
की आपका लड़का सही सलामत है, अब
वो जल्दी से ठीक हो जाएगा और आपको ज्यादा जानकारी मेरा साथी डॉक्टरदे
देगा..ऐसा कह कर डॉक्टर तुरंत वहां से चल पड़ते
हैं..
लड़के की माँ ने तुरंत नर्स से पुछा : ये डॉक्टर
साहब को इतनी जल्दी भी क्या थी.?
मेरा लड़का होशमें आ जाता तब तक तो रूक जाते तो क्या बिगड़ जाता उनका..? डॉक्टर तोबहुत
घमंडी लगते हैं''
ये सुनकर नर्स की आँखों में आंसू आ गए और
कहा :''मैडम ! ये वही डॉक्टर हैं
जिनका इकलौता लड़का आपके लड़के
की अंधाधुंध ड्राइविंग की चपेट में आकर मारा गया है..उनको पता था की आपके लड़के के
कारण ही उनके इकलौते लड़के की जान गयी है
फिर भी उन्होंने तुम्हारे लड़के की जान बचाई
है...और जल्दी वो इसलिए चले गए क्योंकि वे
अपने लड़के की अंतिम क्रिया अधूरी छोड़
कर आ गए थे...
(i don't know if it is already hera:)

vijaysr76
22-12-2012, 02:38 PM
मर्यादा (http://eeshay.com/%e0%a4%ae%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a 4%a6%e0%a4%be/48863/)



भगवान राम – जीवन का सोन्दर्य है मर्यादा – मर्यादा जीवन का माधुर्य है – सुविधा के समय मर्यादित


रहना सरल है किंतु विपत्ति के समय मर्यादा मै रहना और स्वयं को नियंत्रण रखना धर्ममय जीवन का
गोरव है ! जब जब जीवन को मर्यादा मै बान्धते है जीवन मै सोन्दर्य आता है ! मर्यादा जब टूटती है तो
जीवन का सोन्दर्य का भी टूटता है ! सडक पर मर्यादाहीन होकर चलते है तो दुर्घटना होती है ! भगवान राम
के लिये राजसत्ता और धन वैभव का महत्व नही था ! महत्वपूर्ण थी तो मर्यादा और मर्यादित आचरण !
प्रक्रति की प्रत्येक वस्तु जब तक मर्यादा मै है तब तक कल्याणकारी है नदियो की धारा, हवा का वेग,
अग्नि की लपटै, विद्युत की तरंगे, और सब कुछ जब तक मर्यादा मै तब तक सुन्दर है सुखदायी भी है !
सीमा लांघते ही अमंगल शुरु हो जाता है ! भगवान श्री राम का जीवन मानवमात्र को यही सीख देता है
कि मर्यादित रहे और संतुलित रहे ! सुखी रहे !
मर्यादा महज कहने सुनने का विषय़ नही है यह तो धारण करने की कीमती चीज है ! सच्चे अर्थो मै
मर्यादा का पालन करने से मनुश्य का जीवन महक उटता है !

jai_bhardwaj
22-12-2012, 04:59 PM
मनोरंजक, ज्ञानवर्धक और हृदयस्पर्शी कहानियों का अद्भुद संसार है यह सूत्र। धन्यवाद बंधुओं।