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View Full Version : आम आदमी पार्टी का भविष्य????


abhisays
26-11-2012, 10:54 AM
आखिकार अरविन्द केजरीवाल एंड गैंग ने पार्टी का नामकरण कर लिया और नाम रखा है Aam Aadmi Party.

तो दोस्तों, बड़ा सवाल यह है की आम आदमी पार्टी सफल होगी, क्या यह कांग्रेस और बीजेपी के साम्राज्य को हिला पाएगी

http://en.wikipedia.org/wiki/Aam_Aadmi_Party

http://aamaadmiparty.org/

आखिरकार क्या आम आदमी पार्टी का कोई भविष्य है भारत की में ? :thinking:

सोचिये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइए :think:

ndhebar
26-11-2012, 11:02 AM
अवश्य सफल होगी
अगर इंसान में जज्बा और हौसला हो तो असंभव कुछ भी नहीं और मेरा मानना है की अरविन्द केजरीवाल में दोनों प्रचुर मात्र में मौजूद है
कल मैंने एक खबरिया चैनल पर एक खबर देखि की
अगर 42 साल के राहुल युवा हैं तो 44 के अरविन्द क्यूँ नहीं
सही बात है

arvind
26-11-2012, 11:40 AM
कम से कम अरविंद केजरीवाल की अभी तक बेदाग छवि है। साथ ही साथ (क्षुद्र) राजनीति के पैदाइश भी नहीं है। देश की सड़ी हुई राजनीति मे कुछ तो साफ-सुथरा दिख रहा है। वरना अगला वोट किसे दे, ये भी समझ मे नहीं आ रहा है। एक बार तो देश की जनता कम से कम मौका जरूर देगी, आगे का भविष्य तो कर्मो के आधार पर ही तय होगा।

Dark Saint Alaick
26-11-2012, 01:06 PM
मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ भी होने जा रहा है। देश को कांग्रेस मार्का राजनीति से बचाने के लिए विपक्ष के एकजुट होने की जरूरत है, लेकिन यहां एक और ऎसी पार्टी खडी हो गई है, जो वोटों के गणित में अंततः कांग्रेस को ही लाभ पहुंचाएगी, क्योंकि इतिहास गवाह है कि जब-जब विपक्ष एक हुआ है, कांग्रेस पिछड़ी है और जब-जब विपक्ष बिखरा है, कांग्रेस को उसका लाभ हुआ है। हां, लेकिन मेरा मानना है कि 'आम आदमी पार्टी' कोई बड़ी ताकत बनने नहीं जा रही, उसका हस्र भी अन्य तमाम क्षेत्रीय दलों जैसा होने जा रहा है, अलबत्ता श्री केजरीवाल जरूर वह 'राजनीतिक आवाज़' पा गए हैं, जो अब तक उनके पास नहीं थी और इससे देश का कोई भला हो न हो, उनका अवश्य होगा। साथ ही एक बात मैं यहां और कहना चाहूंगा कि अब टीम अन्ना को भी अपना स्टैंड सोच-समझ कर लेना चाहिए, किसी व्यामोह से ग्रस्त होकर उन्होंने कोई निर्णय लिया, तो उसकी भी दुर्गति तय है।

jai_bhardwaj
26-11-2012, 11:26 PM
मेरे विचार भी अलैक जी के विचारों से मेल करते हैं। मेरी दृष्टि में भी 'आप' को त्वरित राजनैतिक सफलता तो नहीं मिलेगी। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे समाज में बहुत जल्द कोई परिवर्तन होने से रहा। हमने अन्ना हजारे जी की बहुत सी रैलियाँ देखी हैं। यह जन समुदाय वर्तमान शासन के विरोध में एकत्र हुआ था। हाँ, अन्ना हजारे जी एक कारण अवश्य बने थे समुदाय को एकत्र करने के लिए। सच तो यह है कि जब हमें कोई अतिरिक्त लाभ लेना होता है तो हम 'पाप' (भ्रष्टाचार) से नहीं हिचकते हैं। किन्तु जब हमें उक्त लाभ नहीं मिल रही होती है तब हम 'आप' (आम आदमी पार्टी) की शरण में जाने की सोचते हैं। जब तक हमारे विचारों में 'पाप' के विरुद्ध दृढ निश्चय नहीं होगा तब तक अरविन्द केजरीवाल जी की सफलता पर प्रश्न चिन्ह टंगा रहेगा। इति।

abhisays
27-11-2012, 07:21 AM
किसी बुद्धिजीवी ने कहा है की राजनीति में हर 5 साल में एक बार परीक्षा होती है अगर पास हुए तो ठीक है नहीं तो फिर 5 साल इंतज़ार करना पड़ता है। इससे हम लोग अंदाज़ा लगा सकते हैं की राजनीति की डगर कितनी मुश्किलों से भरी हुई है।

भारत की राजनीति के कुछ खास पहलुओ पर भी नज़र डालनी होगी।


बड़े बड़े उद्योगपति चुनाव में पार्टियों को फण्ड करते है, सब कुछ लुका छिपा कर होता है, फिर जो नेता चुनाव जीतते है वो उन्ही कॉर्पोरेट के लोगो के लिए काम करते है, और आम जनता मरती रहती है।
अधिकतर लोग केवल जात पात, धर्म की नाम पर वोट देते हैं।
लोक सभा का इलेक्शन में करीब 10 करोड़ से भी अधिक का खर्चा आता है, और विधान सभा में 1 करोड़ से भी अधिक का। अब चूँकि चुनाव जितने में इतना इन्वेस्टमेंट है तो जितने के बाद इसकी रिकवरी भी तो करनी पड़ती है, तो ऐसे भी भ्रष्टाचार होता है, देश और गरीब जनता का पैसा लुटा जाता है।
जो लोग कहते है भारत में डेमोक्रेसी है, पूरी बकवास करते हैं, भारत में अभी भी मोनार्की है वो भी 21वी सदी से स्टाइल में। राजनीति कुछ परिवारों के फॅमिली बिज़नस है। जैसे गांधी परिवार, पहली दादी प्रधान मंत्री थी, फिर पिता जी प्रधान मंत्री बने अब 2014 में देखिएगा अपने 44 साल के युवा प्रधान मंत्री बनेगे। संसद में 30 साल से कम से सारे सांसद राजनैतिक फैमिलीज़ से हैं। 40 से कम के 75 प्रतिशत सांसद पोलिटिकल फैमिलीज़ से हैं।
भारत के मिडिल क्लास बहुत ही कम वोट डालने जाता है, बड़े शहरो में लोग पढ़ी लिखे लोग, बड़ी कम्पनीज में काम करने वाले, अंग्रेजी बोलने वाले लोग चुनाव वाले दिन छुट्टी मनाते है, और अगर चुनाव शुक्रवार के दिन हुआ तो लॉन्ग वीकेंड मनाने फॅमिली के साथ किसी रिसोर्ट पर चले जाते हैं। बैंगलोर में करीब में 6 साल से हूँ। यह सब में अपने निजी एक्सपीरियंस से लिख रहा हूँ।
राजनीति में एक और खास बात है, अगर किसी नेता कोई जेल हो जाए या भ्रष्टाचार में पकड़ा जाए तो उसे पब्लिक की जबरदस्त सहानभूति मिल जाती है और फिर वो चुनाव में भी जीत जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार में कई सारे गुंडे मवाली भी विधान सभा में हैं। यह जग जाहिर बात है। अभी आंध्र प्रदेश में ysr कांग्रेस पार्टी काफी अच्छी हालत में है क्योंकि इसके नेता जगमोहन रेड्डी जेल में है।
देश में क्षेत्रीय पार्टियों ने देश की हालत ख़राब कर के रख दी है, और सब फॅमिली पॉलिटिक्स, भ्रष्टाचार के दलदल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। बिहार में लालू फॅमिली राज्नीतीं में है तो तमिलनाडु में करूणानिधि ने 4 शादी करके और खूब सारे बच्चे पैदा करके सबको राजनीति में उतारा हुआ है। महाराष्ट्र में शरद पवार की फॅमिली है तो उत्तर प्रदेश में अपनी यादव फॅमिली है। पति पत्नी बाप चाचा मामा सब संसद नहीं तो विधान सभा में। मुलायम ने राजनीति में आकर अपने आने वाले 7 पुश्तो का भला कर दिया है।
एक और महत्वपूर्ण बात है चुनाव रैलिया जिसमे पता नहीं कैसे लाखो की भीड़ जमा हो जाती है, मैं सोचता हूँ कौन है यह लोग जो इस तरह की रैलियों में जाते हैं। फिर यह पता चलता है अधिकतर लोगो को पैसा देकर और चाय नास्ता का लालच देकर बुलाया जाता है। और बड़ी रैलियों में लाखो रुपयों का खर्चा होता है। सब कुछ काले धन से होता है। कई बार यह बड़ी रैलिया चुनाव नतीजों पर गहरा असर डालती हैं।
एक और भारतीय राजनीति की अनूठी चीज़ है वो है वोट बैंक की राजनीति, अगर नरेन्द्र मोदी गुजरात में दुध, दही और शहद की नदिया भी बहा दे, 24 घटे नॉन स्टॉप पॉवर सप्लाई दे दे, हर बेरोजगार को रोजगार दे दे, तो भी वहां की सबसे बड़ी माइनॉरिटी कम्युनिटी उनको वोट नहीं देगी, इसको कहते है वोट बैंक की राजनीति। यह सबसे पहले शुरू किया था कांग्रेस ने और आज सब कर रहे हैं। कांग्रेस मुस्लिमो के वोट कर लिए वोट बैंक की राजनीति करती है तो बीजेपी हिन्दुओ के वोट के लिए। ममता बनर्जी शुक्रवार को जुम्मावार बोलती है ताकि उनको लगता है इससे पश्चिम बंगाल की 30 प्रतिशत जनता खुश रहेगी और उनको वोट देगी। समाजवादी पार्टी के नेता अफ़ज़ल गुरु को दोषी कहने से बचते रहते है क्योंकि उनको लगता है की उनका वोट बैंक ना खिसक जाए। बीजेपी हर चुनाव के पहले राम मंदिर का मुद्दा उठाने लगती है। गो हत्या पर प्रतिबन्ध की बात करने लगती है। असाम में सीमाओं को बांग्लादेश के लिए खोल दिया जाता है ताकि वहां के और लोग आये और कांग्रेस का वोट बैंक बने।
एक और चीज़ है वो है नार्थ इंडिया और साउथ इंडिया में अंतर। उत्तर भारत इसमें हम लोग महाराष्ट्र को भी ले लेंगे, हमेशा से राजनीति में काफी एक्टिव रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में भी उत्तर भारत से भी ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन हुआ था, साउथ इंडिया को अगर कड़े शब्दों में कहा जाए अंग्रेजो से कोई खास दिक्कत नहीं थी। आप फ्रीडम struggle के इतिहास उठा कर देख लीजिये बहुत कम नेता मिलेंगे आपको जो की दक्षिण भारत से थे। आज आम आदमी पार्टी में भी दक्षिण का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 1977 के चुनाव में इंदिरा गाँधी का उत्तर भारत में पूरा पत्ता साफ़ हो गया था लेकिन दक्षिण में तब भी उन्हें अपार जन समर्थन मिला था। कहने का मतलब यह है की दक्षिण भारत में जो है ठीक है वाला हिसाब किताब है, यहाँ तो लोग नेता के मरने पर सुसाइड ही कर लेते हैं, पता नहीं कैसी अंध भक्ति है। इसलिए मुझे नहीं लगता दक्षिण भारत में कभी भी कोई जन लोकपाल बिल जैसा कोई बड़ा आन्दोलन हो सकता है। द्रविड़ियन और आर्यों वाली थ्योरी मुझे यहाँ सही नज़र आती है जिसमे कहाँ गया था पहले पुरे भारत में द्रविड़ जाति के लोग रहते थे फिर मध्य यूरोप से आर्य आये और उत्तर भारत में ब़स गए।
अगर briefly कहा जाए तो जब तक भारत में चुनाव लड़ने में करोड़ो रुपैये लगेंगे, मिडिल क्लास वोट डालने नहीं जाएगा, कॉर्पोरेट और नेताओ की मिलीभगत और वोट बैंक की राजनीति खत्म नहीं होगी तब तक भारतीय राजनीति में कुछ अच्छे की आशा करना बेकार है।

Ranveer
27-11-2012, 03:04 PM
मुझे इस आम आदमी पार्टी का भविष्य उज्ज्वल दिखता है । भले ही यह तुरंत सता मे न आए पर आने वाले समय मे भारतीय राजनीति मे बड़ी भूमिका निभा सकती है । इसकी कई वजहें हैं -
1 - जनता का सरकारी नीतियो से मोहभंग होना ।
2 - महंगाई , भष्टाचार , घोटाले जैसे मुद्दे से वर्तमान की पार्टियों से भी मोहभंग होना ।
3 - पूँजीपतियों के हित पर आम जनता के हित को इगनोर करना ।
4 - भारतीय जनता जो की भावना प्रधान है और ये एक करिश्माई तरीके से किसी को भी सता पर बैठा सकती है ।
5 - इस देश मे 50 % के लगभग लोग ओबीसी मे हैं जो वोट मे बड़ी भूमिका निभाते हैं । वे जानते हैं की बीजेपी स्वर्णों और हिंदुओं की हितैषी है , कोंग्रेस पूँजीपतियों और बड़े घरानो की , कम्युनिस्ट पार्टियों का आधार ही बहुत कम है , मुलायम , मायावती , लालू , और दक्षिण भारतीय पार्टियां क्षेत्रीय और ओछी राजनीति करती है _____ऐसे मे वे एक ऐसे विकल्प की तलाश मे हैं जो उनका असली हमदर्द हो । ये 50% लोग जिसके समर्थन मे चले जाते हैं केंद्र मे सरकार उसी की बनती है । पिछली बार कोंग्रेस का सरकार मे आने का कारण भी यही है ।
5 - इस बार बीजेपी के सता मे आने की पूरी उम्मीद दिख रही है किन्तु आम आदमी की पार्टी यदि तेजी से अपना जनाधार बना ले तो फिर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है । परंतु इतनी जल्दी जनाधार बनाकर सता मे आना मुश्किल है इसीलिए इस बार तो नहीं पर अगली बार ये कोई कमाल कर सकती है ।

दूसरी ओर , महात्मा गांधी ने एक बार कहा था की सता आदमी को भ्रष्ट बनाती है । चाहे कोई भी पार्टी हो भष्टाचार से बिलकुल अछूती नहीं रह सकती । अरविंद केजरीवाल भले 6 महीने मे भष्ट नेताओं को जेल मे भेजने के बात कर रहे हैं परंतु सच मे ऐसा संभव ही नहीं है क्यूंकी भारत मे कानूनी प्रक्रिया काफी जटिल है । आम आदमी पार्टी एक कान्सैप्ट लिए हुए है और इतिहास गवाह है की जब जब किसी देश की सरकारी नीतियों से परेशान हो जाती है तो सरकार मे आमूल परिवर्तन होता है ।
'

ndhebar
27-11-2012, 04:12 PM
भाई देश का भला होना चाहिए
और किसी पार्टी से तो उम्मीद है नहीं
अब तो "आप" ही कुछ कर सकती है

malethia
29-11-2012, 05:30 PM
स्वच्छ छवि के सदस्य ढूंढना भी इस पार्टी के लिए मुश्किल काम होगा और यदि कुछ अच्छे सदस्य मिल भी जाते है तो उनका जित पाना काफी मुश्किल होगा और यदि जीत भी जाते है इसकी क्या गारंटी है की वे भविष्य में भ्रष्ट नहीं होंगे !
मुझे तो इस पार्टी से भी कोई देश का भविष्य सुरक्षित नज़र नहीं आता :think:

bindujain
30-11-2012, 01:52 PM
जिस तरह हर फोरम पर नियामक बनने के बाद कोई भी सदस्य अकडू और खुसड़ हो जाता है वैसे ही सत्ता मिलने का बाद सब चोर हो जाते हैं :giggle::giggle::giggle:

jai_bhardwaj
30-11-2012, 10:35 PM
जिस तरह हर फोरम पर नियामक बनने के बाद कोई भी सदस्य अकडू और खुसड़ हो जाता है वैसे ही सत्ता मिलने का बाद सब चोर हो जाते हैं :giggle::giggle::giggle:

प्रायः विरोध सत्ताधारी दल का ही होता है .. आपका यह विचार भी इसी परिधि में आता है बन्धु डाकिया बाबू।

malethia
01-12-2012, 12:04 PM
प्रायः विरोध सत्ताधारी दल का ही होता है .. आपका यह विचार भी इसी परिधि में आता है बन्धु डाकिया बाबू।
राम राम भाई साहेब,
काफी समय बाद आपको यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई !