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View Full Version : तन्त्र_मंत्र_भूत _प्रेत= क्या है सच्चाई ?


Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 04:37 PM
प्रिय मित्रों , एक नए हिंदी मंच के एक नए सूत्र पर मुझे आप सबका अभिनन्दन करते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है ! यहाँ मैं इन्टरनेट जगत में बिखरी पड़ीं तन्त्र मंत्र ,भूत प्रेत की घटनाओं/कहानियों का संकलन करूँगा ! निश्चय ही इस मत पर सभी की राय अलग अलग होगी ,कृप्या अपने विचार शालीनता से रखें !मेरा उद्देश्य अंध-विश्वाश फैलाना नहीं अपितु सत्य का बोध कराना हैl:think:

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 04:53 PM
ध्यान रहे ,कहानियों में नगण्य रूप से अश्लील शब्दों का उपयोग सम्भव है , मैं यथासंभव प्रयास करूँगा के इनका कम से कम प्रयोग हो ,पर कहानी के विषय को प्रभावित करने पर सभी का उद्धरण सम्भव नही होगा !

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 04:55 PM
reserved for index...................

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 04:55 PM
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Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 05:00 PM
हैदराबाद की घटना

यह घटना सन १९९५ में मई महीने की है, मै हैदराबाद आया हुआ था अपने मामा जी के पास, मेरे मामा जी, सी.आर.पी.ऍफ़. में थे और यहाँ स्थान्तरित हुए थे, २ वर्ष हो चुके थे और उनसे मिलना नहीं हो पा रहा था, तो मै हैदराबाद पहुँच गया, उन्होंने अफज़लगंज में एक मकान लिया हुआ था किराए पर, मकान नया तो नहीं था हाँ काम चलाऊ तो था ही!
मै हैदराबाद घूमता रहा, शाम को घर आता और खाना खा के सो जाता था

एक दिन मैंने सोचा की क्यूँ न यहाँ की सबसे बड़ी मस्जिद मक्का-मस्जिद घूमा जाए! तो मै दिन में करीब १ बजे मस्जिद घूमे चला गया! मस्जिद सच में ही शानदार और एतेहासिक महत्व की है! उसमे एक बड़ा सा अहाता है और वहाँ एक बड़ा सा तालाब भी है जिसकी दीवार पत्थरों से बनी है और उसमे मछलियाँ पाली हुई हैं! मै उस दिन मस्जिद घूमा और फिर बाज़ार चला गया, अगले दिन न जाने क्यूँ मेरे दिल मन में दुबारा वहाँ जाने की इच्छा हुई, मै फिर दुबारा वहाँ चला गया! दरअसल वहाँ शान्ति का माहौल है, मन को शान्ति मिलती है, मै फिर से उस तालाब पर चला गया और मछलियाँ देखने लगा! वहाँ काफी लोग थे, हर उम्र के! फिर में बाहर अहाते में आकर एक पत्थर पे बैठ गया!
तभी मैंने देखा की एक छोटी से लड़की वहाँ आई और आके किसी को आवाज देने लगी, मैंने सोचा शायद घूमने वाले लोगों में से ही कोई होगी ये, उसकी उम्र ज्यादा नहीं थी, कोई 10 बरस ही होगी, लेकिन अच्छे परिवार से सम्बंधित है ऐसा महसूस हुआ मुझे!

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 05:01 PM
फिर सहसा ही वो मेरी तरफ मुड़ी और बोली; " क्या आपने यहाँ किसी छोटे बच्चे को देखा जो की काले रंग के कुरते में है और सर पे टोपी लगाई हुई है, सफ़ेद रंग की?"

"नहीं, मैंने तो नहीं देखा?" मैंने कहा,

"ये रोज़ ही ऐसा करता है, खाने के वक़्त हमेशा ढूंढना पड़ता है इसे, न जाने कहाँ गया अब ये?" वो चारों तरफ देख के बोली,

"तुम क्या यहीं रहती हो?" मैंने सवाल किया,

"हाँ, यहीं पास में रहती हूँ, यहाँ मेरे अब्बू की दुकान है बच्चों के कपड़ों की" उसने तपाक से जवाब दिया!

"पढ़ाई करती हो?" मैंने पूछा.

"हाँ, तीसरी जमात में हूँ" उसने जवाब दिया,

"अच्छा है, पढाई करनी ही चाहिए, नाम क्या है तुम्हारा?" मैंने फिर से सवाल किया,

"निसार नाम है मेरा और आपका?" उसने भी सवाल किया,

मैंने उसको अपना नाम बता दिया, वो झिझक नहीं रही थी, ऐसे बात कर रही थी की वो जैसे वहाँ की हर चीज़ से वाकिफ हो!

"आप कहाँ से आये हैं? यहाँ के तो नहीं लगते?" उसने पूछा

"मै दिल्ली से आया हूँ" मैंने जवाब दिया

"मैंने कल भी आपको यहाँ देखा था, आप कल भी आये थे न यहाँ?" उसने पूछा,

"हाँ, मै कल भी आया था यहाँ, लेकिन मै कल यहाँ नहीं बैठा था?" मैंने कहा,

"कल आप तालाब के पास बैठे थे, मैंने देखा था" वो बोली,

"हाँ" मैंने कहा,

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 05:11 PM
" अच्छा, मै अपने भाई को ढूंढती हूँ अब, एक बात तो बताओ? क्या आपने सारा हैदराबाद घूम लिया? उसने फिर से सवाल किया,

"हाँ, लगभग सारा घूम लिया, ये मस्जिद रह गयी थी तो सोच इसको भी घूम लिया जाए, इसको क्यूँ छोड़ा जाए!" मैंने हंस के जवाब दिया!

"आपको इस मस्जिद की खासियत मालूम है?" उसने जोर देके कहा,

"नहीं, मुझे नहीं मालूम, वैसे क्या खासियत है इस मस्जिद में? मुझे तो आम मस्जिद की तरह ही लग रही है, हाँ बड़ी ज़रूर है!" मैंने मस्जिद की तरफ मुंह करके कहा,

"इस मस्जिद की पीछे की दिवार में एक पत्थर मक्का का लगा है, लेकिन वो हर एक इंसान को नहीं दिखाई देता, क्या आपने वो देखा? उसने पूछा,

"नहीं, मैंने तो नहीं देखा और न ही मुझे किसी ने बताया इस बारे में?" मैंने कहा.

"चलिए, मै दिखाती हूँ आपको, लोग यहाँ गाइड को पैसे देते हैं ताकि वो उनको वो पत्थर दिखवा दें!" उसने मुस्कुरा के जवाब दिया,

"लेकिन, तुम अपने भाई को ढूंढ रही थीं न? तुम उसको ढूंढ लो!" मैंने कहा,

"वो जाएगा कहाँ, यहीं होगा या फिर अब्बू की दुकान पे चला गया होगा खुद ही, चलो मै दिखाती हूँ" उसने कहा,

मेरे मन में ख़याल आया की शायद ये लड़की ऐसे ही मेरे जैसे लोगों को वो पत्थर दिखा कर ५-१० बना लेती होगी, खैर, मै उठ के खड़ा हुआ और उसके पीछे चलने लगा, वहाँ उसने मुझको वो पत्थर दिखा दिया और उसके बारे में बात करती रही, और फिर हम दोनों उसी जगह पे आ गए जहां वो मुझे पहली बार मिली थी, मैंने अपनी जेब से १० निकाले और उसको देने लगा, लेकिन उसने मना कर दिया और हंस के बोली,

"आप ही रख लो, नारियल की मिठाई खा लेना!"

मै भी हंस पड़ा, लेकिन उसने पैसे नहीं लिए, ये मेरे लिए थोडा चौंकने की बात थी,

"अच्छा, अब मै चलती हूँ, आप कल फिर आओगे यहाँ? और यहाँ हैदराबाद में कब तक हो? उसने पूछा,

"कल मै आऊंगा या नहीं,ये तो मै नहीं कह सकता लेकिन आज १५ तारीख है और १८ को मुझे वापिस जाना है" मैंने कहा,

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 06:33 PM
"यानि की आप १८ तारीख को वापिस जायंगे" उसने कहा;

"हाँ" मैंने कहा,

"अच्छा अब मै चलती हूँ, आप कल आओगे तो बात करुँगी" उसने हँसते हुए कहा, मै उसका जवाब नहीं दे सका और मेरे देखते ही देखते वो वहाँ से चली गयी और लोगों की भीड़ में गुम हो गयी, मै इसके कोई आधे घंटे बाद वहाँ से वापिस घर की तरफ चल दिया, और बिस्तर पर लेटने के काफी देर तक इसी बात में उलझा रहा और नींद आ गयी!

मै तकरीबन २ बजे वहाँ पहुंचा जहाँ मेरी मुलाक़ात निसार से पहली बार हुई थी, मै वहाँ बैठा और पानी पीने लगा गया, मै पानी पी ही रहा था की मुझे उसकी आवाज सुनाई दी,

"आ गए आप!"

"हाँ, मै आ गया, और सच में तुमको ही ढूंढ रहा था!" मैंने बेझिझक जवाब दिया!

"मै जानती हूँ!" उसने भी तपाक से जवाब दिया!

"ये लो, आपने तो ली नहीं होगी,तो मै ही लेके आ गयी आपके लिए ये नारियल की मिठाई!" वो मिठाई का कागज़ खोलते ही बोली,

मुझे थोड़ी हैरत हुई, कि निसार को कैसे मालूम की मैंने मिठाई नहीं खायी?
खैर, मैंने अपने ख्यालों को दरकिनार किया और मिठाई का एक टुकड़ा मुंह में रख लिया, मिठाई वाकई में लाजवाब थी!

"ये कौन सी दुकान से लायी हो निसार तुम? काफी बढ़िया मिठाई है!" मैंने एक और टुकड़ा उठाते हुए पूछा,

"यहीं पास में कई दुकानें हैं, कहीं से भी मिल जायेगी" उसने मुस्कुरा के कहा,

"अच्छा निसार, ज़रा अपने घर के बारे में बताओ, कौन कौन है घर में तुम्हारे? मैंने उस से आँखें मिला के पूछा,

"मेरे अब्बू हैं, अम्मी हैं, बाबा हैं, मै और मेरा छोटा भाई अख्तर हैं" उसने जवाब दिया

"और घर कहाँ है तुम्हारा?" मैंने पूछा

"यहीं पास में ही है, मेरे घर चलोगे?"

"अरे नहीं! मै तो सिर्फ पूछ रहा था!" मैंने हंस के जवाब दिया,

और उस दिन करीब २ घंटे तक हम ऐसे ही बातें करते रहे, वो मेरे बारे में पूछती और मै उसके बारे में, वो दिल्ली के बारे पे पूछती और मै हैदराबाद के बारे में! ऐसे ही वक़्त गुजर गया! मुझे ये निसार अच्छी लगने लगी थी, बेहद मासूम, प्यारी और चुलबुली बच्ची सी!
फिर मै करीब ६ बजे वापिस अपने मामा जी के घर आ गया, ८ बजे करीब मामा जी आये और उन्होंने मुझे कल अपने सेन्टर में चलने के लिए कहा, मै जाना तो नहीं चाहता था, लेकिन मना न कर सका

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 06:34 PM
अगले दिन मुझे सेन्टर जाना पड़ा, काफी दूर था सेन्टर, २ घंटे से ज्यादा का वक़्त लग गया था, वहाँ मै मामा जी के दोस्तों के साथ मिला, खाया-पिया और इसी में २ बज गए, मै घर पे ४ बजे करीब पहुंचा, लेकिन मन नहीं माना और फिर से मस्जिद की और बढ़ने लगा, साढे ४ बज चुके थे, मै फिर वहीँ जाके बैठ गया जहां २ दिनों से मै और निसार मिल रहे थे, काफी वक़्त गुजर गया लेकिन निसार का कोई अता-पता नहीं था, मै अपनी नज़रें चारो और दौड़ा रहा था, की निसार मुझे दिख जाए, और अचानक ही वो मुझे दिखाई दे गयी! वो मेरी तरफ ही बढ़ रही थी, मुझे बेहद ख़ुशी हुई!

"आज कहाँ थे सारा दिन?" उसने मुझसे कड़क लहजे में पूछा और सच कहता हूँ मुझे उसका ये लहजा बेहद प्यारा और बेहद करीबी लगा!

"हाँ; मै तुमको कल बता नहीं सका की मुझे कहाँ जाना था अपने मामा जी के साथ" मैंने थोडा धीमे लहजे में उस से कहा,

"कोई बात नहीं, चलो आप आये तो!" उसने मजाक के लहजे में ये बात की और मैंने भी हंस के अपना सर हिला दिया,

"अच्छा ये लो, ये एक छोटी सी किताब है, इसको रख लो, बेहद काम आएगी ज़िन्दगी में!" उसने वो मुझे देते हुए बोला,

"लेकिन ये तो उर्दू में है?" मैंने सवाल किया,

"आप उर्दू जानते हैं, ये मै जानती हूँ अच्छी तरह से!" उसने कहा,

"तुमको कैसे पता की मै उर्दू जानता हूँ?" मैंने हैरत से पूछा,

"आपके बोलने के लहजे से मैंने समझ लिया की आपको उर्दू आती है" उसने इत्मिनान से ये बात कही,

ये बात तो मुझे पता थी की निसार एक ज़हीन बच्ची है और दूसरे अपनी उम्र के बच्चों से अलग है,

"कल मै सुबह जा रहा हूँ निसार" मैंने कहा

"हाँ मालूम है" उसने आँखें नीचे करके कहा,

"पता नहीं कभी दोबारा यहाँ आ भी पाऊंगा या नहीं, तुम एक काम करो, मुझे अपने घर का पता दे दो, मै अगर कभी आया तो तुमसे ज़रूर मिलूँगा निसार" मैंने हल्के
से लहजे में ये बात कही,

वो मुस्कुराई , लेकिन कहा कुछ नहीं, उसने मेरी जेब से पेन निकला और किताब के पीछे अपना पता लिखा दिया, और वहाँ से चली गयी, ये मेरी उस से आखिरी मुलाक़ात थी, मुझे भी अजीब सा लगा रहा था, ३ दिनों में एक अजीब सा नाता बन गया था मेरा उस से,

मै अहाते से बाहर आया और घर की ओर चल दिया, वो किताब मैंने जेब में रख ली थी, छोटी सी कोई १०० पृष्ठों की किताब होगी वो, रात को घर जाके सुबह हैदराबाद छोड़ने की तैय्यारी शुरू कर दी

Advocate_Arham_Ali
30-11-2012, 06:35 PM
और वक़्त गुजरता गया अपनी रफ़्तार से, मुझे एक बार फिर से हैदराबाद जाने का मौका मिला ये बात सन १९९७ के दिसम्बर महीने की है, खैर, मै वहाँ पहुंचा; मामा जी के यहाँ रुका और अगले दिन उनकी मोटरसाइकिल उठायी और निसार के दिए हुए पते की तरफ चल दिया! मैंने मस्जिद के सामने एक शख्स से रास्ता पूछा और उसके बताये हुए रास्ते पे चल दिया, लेकिन लगातार चलने के बाद भी वो जगह आ ही नहीं रही थी, कोई कहता इधर, कोई कहता उधर, जैसा जो कहते मै वहीँ चल देता, लेकिन पता नहीं चला!
मैंने एक बुज़ुर्ग आदमी से पूछा की मुझे यहाँ जाना है, बुज़ुर्ग आदमी ने कहा की इस नाम की जगह तो यहाँ कोई नहीं है, हाँ एक गाँव है इस नाम का वहां चले जाओ, मैंने वैसा ही किया और उस गाँव की ओर चल पड़ा, शहर से काफी बाहर था ये गाँव, मै वहाँ पहुंचा तो एक चाय वाले से पूछा की मुझे इस जगह जाना है, मैंने उसको परचा दिखाया,

"नाम बताओ जिस से मिलना है?" उसने कहा,
मैंने नाम बताया,
"इस नाम का तो कोई आदमी नहीं रहता यहाँ? आप एक काम करो सामने मस्जिद है, वहां मालूम कर लो" उसने इशारा करते हुए बताया,

मै वहीँ चल दिया, वहाँ ४-५ बुज़ुर्ग लोग बैठे हुए थे, मैंने जब उनसे पूछा तो एक आदमी आगे आया और बोला,"ये पता आपको किसने दिया?"
मैंने सब-कुछ बता दिया, वो हैरत में पड़ गया और मुझे अपने साथ आने को कहा, मै चल दिया,

उसने एक टूटे-फूटे खंडहरनुमा घर की ओर इशारा किया और बोला, "इस नाम का आदमी आज से ४०-४५ साल पहले यहाँ रहा करता था, उसकी बीवी, बाप और एक लड़की थी निसार और एक लड़का था, एक रात बारिश में छत गिर गयी और सारा परिवार इसमें दब के मर गया"

मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं, खून जैसे जम गया हो, हाथ-पाँव ठन्डे हो गए, मैंने किसी तरह से खुद को संभाला और वापिस चल दिया, रास्ते में फिर से वो मस्जिद पड़ी मैंने, मोटरसाइकिल बाहर लगाई और उसी जगह जाके बैठ गया जहां मेरी मुलाक़ात निसार से हुई थी, मै ढूंढता रहा, नाम लेता रहा लेकिन.....................

निसार नहीं आई

वो किताब आज भी मेरे पास है, उसका शीर्षक है ' लम्बी उम्र की १०० दुआएं'

Dark Saint Alaick
02-12-2012, 12:45 AM
बेहतरीन, रोमांचक और पठनीय कथा है अरहम साहब। उम्मीद है, ऐसा ही और भी श्रेष्ठ सृजन पढने के अवसर निरंतर देते रहेंगे। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद। :thumbup:

Advocate_Arham_Ali
11-12-2012, 10:01 PM
धन्यवाद महोदय !!
चलो किसी को तो पढ़ने की फुर्सत मिली , मुझे लगा यहाँ सिर्फ पोस्टिंग ही होती है !

abhisays
11-12-2012, 10:08 PM
धन्यवाद महोदय !!
चलो किसी को तो पढ़ने की फुर्सत मिली , मुझे लगा यहाँ सिर्फ पोस्टिंग ही होती है !


ऐसा नहीं है अरहम जी, यहाँ अच्छा पढने वाले बहुत है। आपके आगामी प्रविस्तियो का इंतज़ार रहेगा। :bravo::bravo:

malethia
11-12-2012, 10:22 PM
आपकी प्रथम कहानी सच में ही रोचक है ! अगली कहानी का इंतज़ार है !

Advocate_Arham_Ali
11-12-2012, 11:30 PM
ऐसा नहीं है अरहम जी, यहाँ अच्छा पढने वाले बहुत है। आपके आगामी प्रविस्तियो का इंतज़ार रहेगा। :bravo::bravo:
:giggle: :giggle: ........ :think:

Dark Saint Alaick
24-12-2012, 01:48 AM
आदाब, जनाब अरहम साहब। आपके इस सूत्र में चौदह प्रविष्ठियां हैं और सूत्र को अब तक देखा गया है 234 बार। मेरी एक प्रविष्ठि को अगर दस बार देखा गया, तो मैं उसे श्रेष्ठ औसत प्रतिशत मानता हूं, इस लिहाज़ से आपके सूत्र का दर्शक प्रतिशत काफी ऊंचा है और मुझे उम्मीद है कि जैसे-जैसे सूत्र में रोचक कथाओं की संख्या बढ़ेगी, यह प्रतिशत और तेज़ी से बढ़ेगा। उम्मीद है आप नई कथाओं का समावेश लगातार करते रहेंगे। शुक्रिया।

bindujain
24-12-2012, 05:20 AM
भूत प्रेत आदि सब मनणन्त बाते है हकीकत में कुछ नहीं होता
बैसे कहानी अच्छी लगी

mavali
28-12-2012, 09:59 PM
आदाब, जनाब अरहम साहब। आपके इस सूत्र में चौदह प्रविष्ठियां हैं और सूत्र को अब तक देखा गया है 234 बार। मेरी एक प्रविष्ठि को अगर दस बार देखा गया, तो मैं उसे श्रेष्ठ औसत प्रतिशत मानता हूं, इस लिहाज़ से आपके सूत्र का दर्शक प्रतिशत काफी ऊंचा है और मुझे उम्मीद है कि जैसे-जैसे सूत्र में रोचक कथाओं की संख्या बढ़ेगी, यह प्रतिशत और तेज़ी से बढ़ेगा। उम्मीद है आप नई कथाओं का समावेश लगातार करते रहेंगे। शुक्रिया।
देर से देखने के लिए क्षमा और अमूल्य प्रतिकिर्या के लिए शुक्रिया ! जल्दी ही कॉपी मारता हूँ !:giggle: :cheers:

mavali
30-12-2012, 05:46 PM
भूत प्रेत आदि सब मनणन्त बाते है हकीकत में कुछ नहीं होता
बैसे कहानी अच्छी लगी

:giggle: :giggle:

भगवान को तो मानते हो भाई, तो फिर शैतान को क्यूँ नही ?