PDA

View Full Version : FDI इन रिटेल :: फायदा या नुकसान


Ranveer
08-12-2012, 07:40 AM
मल्टी ब्रांड रिटेल मे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई ) पर संसद की मुहर लग गई है तो निश्चित है की जल्दी वालमार्ट जैसी कंपनियाँ यहाँ छा जाएंगी ।
भारत मे खुदरा व्यापार पहले से ही विस्तृत है और इसके आ जाने पर कई लोगों पर भारी संकट आ सकता है । कहा जा रहा है की मंहगाई पर रोक लगेगी पर ऐसा तो बिलकुल नहीं दिखता । कुल मिलाकर फायदे कम और नुकसान ज्यादा दिख रहे हैं ।

एक और बात दिखी ___मायावती ने यदि पक्ष मे समर्थन न किया होता तो शायद ये संसद से पास न हुआ होता । ये भी अवसरवादिता की एक मिसाल है ।

क्या आपलोग एफ़डीआई के पक्ष मे हैं ?

malethia
08-12-2012, 10:45 AM
भविष्य में fdi से छोटे खुदरा व्यापारियों को नुक्सान होने की सम्भावना है ,लेकिन शुरुआत में इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा !
जयपुर में आज भी कारफूर और मेट्रो की शॉप है लेकिन मुझे इसमें कहीं भी ऐसा नहीं लगा की ये आम आदमी की पहुँच में है !
अभी ये भी कह पाना मुश्किल है की कौन कौनसे राज्य इसे स्वीकार करेंगे और कौनसे नहीं ,क्यूंकि ncp में महाराष्ट्र में मंजूरी देने से साफ़ मना कर दिया है जबकि संसंद में इन्होने इसका समर्थन किया था ,इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता !

abhisays
08-12-2012, 10:48 AM
मैं एफ डी आई के पक्ष में हूँ लेकिन खुदरा बाज़ार में एफ डी आई के पक्ष में नहीं हूँ। इसके बहुत सारे कारण हैं। मैं थोड़ी देर में पॉइंट बाय पॉइंट लिखता हूँ। अभी केवल इतना ही कहूँगा अगर एफ डी आई इन रिटेल आ गया तो छोटे मोटे दूकान सब 2-3 साल में बंद हो जायेंगे। कुछ लोग कहेंगे अरे ऐसे कैसे बिग बाज़ार और रिलायंस तो कब से है कहाँ कुछ हुआ पड़ोस की किराने की दूकान तो वैसे ही चलती है। मेरा विचार है वालमार्ट जब आएगा ऐसा नहीं रहेगा, वो अपने यहाँ बिकने वाले सामनो की कीमत इतनी कम कर देगा की ग्राहक वही जाएगा सामन खरीदने, और पड़ोस की किराने की दूकान कम्पटीशन का कारण कुछ साल में बंद हो जायेगी।

इसपर और विचार लिखा हूँ। ब्रेक के बाद :cheers:

malethia
08-12-2012, 10:55 AM
मैं एफ डी आई के पक्ष में हूँ लेकिन खुदरा बाज़ार में एफ डी आई के पक्ष में नहीं हूँ। इसके बहुत सारे कारण हैं। मैं थोड़ी देर में पॉइंट बाय पॉइंट लिखता हूँ। अभी केवल इतना ही कहूँगा अगर एफ डी आई इन रिटेल आ गया तो छोटे मोटे दूकान सब 2-3 साल में बंद हो जायेंगे। कुछ लोग कहेंगे अरे ऐसे कैसे बिग बाज़ार और रिलायंस तो कब से है कहाँ कुछ हुआ पड़ोस की किराने की दूकान तो वैसे ही चलती है। मेरा विचार है वालमार्ट जब आएगा ऐसा नहीं रहेगा, वो अपने यहाँ बिकने वाले सामनो की कीमत इतनी कम कर देगा की ग्राहक वही जाएगा सामन खरीदने, और पड़ोस की किराने की दूकान कम्पटीशन का कारण कुछ साल में बंद हो जायेगी।

इसपर और विचार लिखा हूँ। ब्रेक के बाद :cheers:
मुझे नहीं लगता की वालमार्ट कम रेट में माल देगा !
ऐसा कुछ भी होने की सम्भावना नहीं है ,ये कहा जा सकता है की छोटे दुकानदारों का थोडा मुनाफा अवश्य कम हो जाएगा ,लेकिन देखा जाए तो उनके खर्चे भी उतने ही कम होते है ,अत: कम मुनाफे में भी छोटे दुकानदारों को फायदा ही रहेगा !

Ranveer
08-12-2012, 09:36 PM
अभिषेक जी के विस्तृत विचारों का इंतज़ार है ..........

Dark Saint Alaick
08-12-2012, 10:30 PM
मैं एफ डी आई के पक्ष में हूँ लेकिन खुदरा बाज़ार में एफ डी आई के पक्ष में नहीं हूँ। इसके बहुत सारे कारण हैं। मैं थोड़ी देर में पॉइंट बाय पॉइंट लिखता हूँ। अभी केवल इतना ही कहूँगा अगर एफ डी आई इन रिटेल आ गया तो छोटे मोटे दूकान सब 2-3 साल में बंद हो जायेंगे। कुछ लोग कहेंगे अरे ऐसे कैसे बिग बाज़ार और रिलायंस तो कब से है कहाँ कुछ हुआ पड़ोस की किराने की दूकान तो वैसे ही चलती है। मेरा विचार है वालमार्ट जब आएगा ऐसा नहीं रहेगा, वो अपने यहाँ बिकने वाले सामनो की कीमत इतनी कम कर देगा की ग्राहक वही जाएगा सामन खरीदने, और पड़ोस की किराने की दूकान कम्पटीशन का कारण कुछ साल में बंद हो जायेगी।

इसपर और विचार लिखा हूँ। ब्रेक के बाद :cheers:

अभिषेकजी, अगर आपके सिर्फ इस पॉइंट पर बात करें, तो हमें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। एक-दो किस्से सुनाता हूं।
जयपुर में रिलायंस, आदित्य बिड़ला ग्रुप और ऎसी ही अन्य बड़ी कम्पनियों के कई बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोरूम हैं। मुझे भाव-ताव करना आदि पसंद नहीं हैं, अतः ऐसे स्टोर्स से खरीदारी मुझे बेहतर लगती रही है। किन्तु इनके साथ मेरे अनुभव बहुत कटु रहे हैं। आप जाइए, एक-दो पहरेदार आपके पीछे लग जाएंगे, जैसे आप चोर हों। कई बार इन कर्मचारियों से मेरी तीखी झडपें हुईं। मैंने मैनेजर को बुलवाया और कहा, आप तीन मंजिला इतना बड़ा शोरूम खोले बैठे हैं और इतना नहीं कर सकते कि क्लोज़ सर्किट टीवी लगवा लें। आपके ये दो पहरेदार मेरे पीछे-पीछे घूम कर मुझे लगातार असहज करते हुए यह अहसास करा रहे हैं कि मैं चोर हूं और ज़रा सी नज़र चूकी, तो मैं कुछ पार कर फरार हो जाऊंगा। उन्होंने माफी मांगी, उन दोनों को डपट कर दूर भेज दिया, लेकिन इसे आप क्या कहेंगे कि अब वे कुछ दूर से नज़र रख रहे थे।
दूसरा, एक बड़ा सा शोरूम। आदित्य बिड़ला ग्रुप का। मुझे सिर्फ दो सोडे और एक टूथ ब्रश खरीदना था, वह लेकर जब मैं भुगतान के काउंटर पर आया, तो वहां लाइन लगी हुई थी। पता चला कि कम्प्युटर खराब है, ठीक करने के प्रयास हो रहे हैं। उसके ठीक होने पर ही बिल बनेंगे। मैंने कहा, महाशय अगर आपकी यह बिलिंग मशीन काम नहीं कर रही तो आप मैन्युअली बिल क्यों नहीं बना देते, जवाब मिला, नहीं सर, हमें इसकी परमीशन नहीं है। अब मेरे पास वह एक दो चीजें वापस पटक कर लौट आने और अपनी कॉलोनी के किराना स्टोर की सेवाएं लेने के अलावा कोई और कहां बचा था। आपको यह भी बता दूं कि 'मोर' का यह तीन मंजिला स्टोर अब बंद हो चुका है।
अब आप सोचिए, वालमार्ट या उस जैसी कम्पनियां क्या गफलत में नहीं हैं? दबाव की वज़ह से बिल तो पास हो गया, लेकिन तमाम प्रबंधक एवं अन्य कर्मचारी वे कहां से लाएंगी, इन्ही में से न? मेरे विचार से ज्यादा ख़तरा रिलायंस जैसों पर है।

Sikandar_Khan
08-12-2012, 10:44 PM
मैं एफ डी आई के पक्ष में हूँ लेकिन खुदरा बाज़ार में एफ डी आई के पक्ष में नहीं हूँ। इसके बहुत सारे कारण हैं। मैं थोड़ी देर में पॉइंट बाय पॉइंट लिखता हूँ। अभी केवल इतना ही कहूँगा अगर एफ डी आई इन रिटेल आ गया तो छोटे मोटे दूकान सब 2-3 साल में बंद हो जायेंगे। कुछ लोग कहेंगे अरे ऐसे कैसे बिग बाज़ार और रिलायंस तो कब से है कहाँ कुछ हुआ पड़ोस की किराने की दूकान तो वैसे ही चलती है। मेरा विचार है वालमार्ट जब आएगा ऐसा नहीं रहेगा, वो अपने यहाँ बिकने वाले सामनो की कीमत इतनी कम कर देगा की ग्राहक वही जाएगा सामन खरीदने, और पड़ोस की किराने की दूकान कम्पटीशन का कारण कुछ साल में बंद हो जायेगी।

इस पर और विचार लिखा हूँ। ब्रेक के बाद :cheers:
मुझे नही लगता है ! वेलमार्ट जैसी कम्पनियोँ के बाजार मे आ जाने से कोई खाश फर्क आएगा !
उदहारण के तौर पर आप बिग बाजार को ही ले लीजिए ! बिग बाजार से वही सामान लेना ठीक है जिन पर कीमत प्रिँट होती है ! लेकिन रोजमर्रा की जरूरत के सामान जैसे दाल , चावल , शक्कर ,तेल और वो सभी सामान जो लूज मिलते हैँ ! आपको काफी महंगे मिलेँगे |
इन सामनोँ के लिए हमेँ पड़ोस की किराना दुकानोँ पर ही निर्भर रहना पड़ेगा |
एक आम आदमी की पहुच से ऐसे बाजार हमेशा दूर ही रहेँगे ! जिन्हे एक किलो चावल , दो किलो आटा , आधा किलो दाल , आधा किलो दाल , आधा किलो शक्कर , एक पाव चाय पत्ती , एक नहाने का साबुन खरीदना पड़ता है |

Dark Saint Alaick
08-12-2012, 11:05 PM
मुझे नही लगता है ! वेलमार्ट जैसी कम्पनियोँ के बाजार मे आ जाने से कोई खाश फर्क आएगा !
उदहारण के तौर पर आप बिग बाजार को ही ले लीजिए ! बिग बाजार से वही सामान लेना ठीक है जिन पर कीमत प्रिँट होती है ! लेकिन रोजमर्रा की जरूरत के सामान जैसे दाल , चावल , शक्कर ,तेल और वो सभी सामान जो लूज मिलते हैँ ! आपको काफी महंगे मिलेँगे |
इन सामनोँ के लिए हमेँ पड़ोस की किराना दुकानोँ पर ही निर्भर रहना पड़ेगा |
एक आम आदमी की पहुच से ऐसे बाजार हमेशा दूर ही रहेँगे ! जिन्हे एक किलो चावल , दो किलो आटा , आधा किलो दाल , आधा किलो दाल , आधा किलो शक्कर , एक पाव चाय पत्ती , एक नहाने का साबुन खरीदना पड़ता है |

आपका यह तर्क बहुत ही उपयुक्त है, सिकंदरजी। आपने मात्रा कुछ ज्यादा ही लिखी है। मेरा अपार्टमेंट जहां है, वहां से तकरीबन एक किलोमीटर दूर एक कच्ची बस्ती है। उस चौराहे पर एक लकड़ी की स्टाल में एक दूकान चल रही है। मैं अपनी सिगरेट हमेशा उसी से खरीदता हूं। आपको यह जान कर ताज्जुब होगा कि वह होंडा सिटी में आता है और कच्ची बस्ती में रहने वालों को आज भी दो रुपए का तेल, एक रुपए की मिर्च, पांच रुपए का आटा आदि बिना किसी शिकन के बेचता है। शायद उसके होंडा सिटी में घूमने का एक बड़ा राज़ यह है। ऎसी स्थिति में क्या करेगा वालमार्ट?

abhisays
09-12-2012, 06:38 AM
अभिषेक जी के विस्तृत विचारों का इंतज़ार है ..........

अमेरिका और पश्चिम देश कई वर्षो से भारत के सर्राफा बाज़ार खुलने के इंतज़ार कर रहे हैं। उनका प्लान है कैसे भी करके दुनिया के 1/6 आबादी के रिटेल व्यवसाय पर कब्ज़ा कर लिया जाए, सप्लाई से लेकर डिमांड तक तमाम चैनल उनके हाथो में आ जाए। कितनी अजीब बात है एक तरफ ओबामा बैंगलोर में जॉब भेजे जाने पर चिंता करते है और इसे अपने चुनाव कैंपेन में शामिल करते हैं और बोलते है की भारत में जॉब आउटसोर्स बंद होने चाहिए और दूसरी तरफ उनकी सेक्रेटरी हिलेरी क्लिंटन भारत में आकर fdi इन रिटेल की पैरवी करती हैं। क्या यह डबल स्टैंडर्ड्स नहीं है?

एक और बात जिसपर मैं आप लोगो का ध्यान ले जाना चाहूँगा वो है स्माल स्केल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर। कुछ रोजमर्रा की चीजें।

1. माचिस
2. झाड़ू
3. अगरबत्ती
4. बच्चो के लिखने के लिए कॉपी, रजिस्टर।
5. और कई सारे लोकल मेड सामन।

इस तरह की चीजें सब लोकल बनती और अपने पड़ोस के किराने की दूकान में मिलती है। बड़े शहरो को छोड़ दे तो और भी कई चीजें है जो लोकल ही बनती और बिकती।



मैं बताता हूँ अगर वालमार्ट आ गया तो क्या होगा

वो छोटे छोटे मैन्युफैक्चरिंग करने वाले कम्पनीज को एक्वायर करेगा। फिर सब उसके लिये सामान बनायेंगे। जो माचिस 10 रुपैये में मिलता है वो 7 रुपैये में बेचेगा।
मंथली ऑफर्स रहेंगे की 2000 का सामन खरीदो, घर पर फ्री डिलीवरी, और डील कूपन बहुत कुछ।
एक बात सोचिये जरा जहाँ जहाँ FDI इन रिटेल है और जहाँ अपने वालमार्ट जी पहुच गए हैं वहां बाकी छोटे मोटे दूकान वालो का क्या हाल है।
वालमार्ट का बिज़नस मॉडल ऐसा होता है की खुद घाटे में भी रह कर सारा कम्पटीशन ख़तम कर दो और फिर अपनी दादागिरी दिखाओ।
न्यूयॉर्क में वालमार्ट तो घुसने नहीं दिया गया है।

Opposition to Walmart in the city is driven by what protesters say is the chain's history of low wages and poor employee benefits. There are also fears from unions that the company's low prices will hurt the profit margins of other shops, endangering the jobs of its members.
वालमार्ट का रिकॉर्ड रहा है की वो कम से कम लोग रख कर, हर कुछ ऑटोमेट करके, लागत कम से कम रख कर जबरदस्त पैसे कमाती है। यह आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है।
नोट करियेगा मैं वालमार्ट की केवल बात नहीं कर रहा हूँ, मैं वालमार्ट जैसे सभी रिटेल कम्पनीज की बात कर रहा हूँ, जो सप्लाई चेन के बीच के सारे लोगो को साफ़ करके अपना धंदा चमका लेती है। यह बात तो यूरोप और अमेरिका में चलिए चलाई जा सकती है क्योंकि वहां आबादी काफी कम है इकॉनमी आलरेडी विकसित है। लेकिन भारत के 125 करोड़ की आबादी जहाँ 70 प्रतिशत से भी अधिक लोग 1 डॉलर से कम में अपने गुजारा चलाते हैं, मुझे तो काफी मुश्किल दिखती है।
ऐसा नहीं है इससे केवल नुक्सान ही है, इससे फायदा है माध्यम वर्ग को जो की कार में घूमता है, अच्छे अच्छे होटल और रेस्टोरेंट में खाता है, बड़ी कम्पनीज में काम करता है। उन्हें काफी options मिल जायेंगे।
एक किसी मंत्री ने कहाँ की देखो पेप्सी पंजाब के किसानो से कितना आलू खरीदता है, चीनी खरीदता है, मैं बोलूँगा वाह और वही चीनी पानी में घोल कर 1 रुपैये में बनाता है और हम भारतीय उसे 10 रुपैये में गटक लेते हैं। पिछले 20 साल में पेप्सी, कोक, म्च्दोनाल्ड, KFC ने देश का क्या भला किया है, बस देश के डॉक्टर्स को काफी फायदा हो रहा है।
मैं तो कहता हूँ, अगर FDI लाना है तो रोड बनाने में लाओ FDI, बिल्डिंग और ब्रीज बनाने के लिए विदेशी कम्पनीज लाओ। उनसे तकनिकी आदान प्रदान करो। स्कूल और कॉलेज में ले आओ FDI. उन्ही चीजों में क्यों लाये FDI जिनमे विदेशियों का फायदा और अपना नुक्सान
कुछ लोग बोल रहे है की इससे रोजगार लोगो को मिलेगा, लेकिन US सरकार की खुद की रिपोर्ट कहती है की वालमार्ट के कारण बेरोजगारी बड़ी और छोटे मोटे व्यापारी रोड पर आ गए। इसलिए जितने जॉब ने आयेगे उससे ज्यादा तो बेरोजगारी हो जायेगी।
किसान को फायदा मिलेगा, इस बात को भी कुछ ज्यादा ही हाइप दे दिया गया है। लैटिन अमेरिका के किसान को इससे कुछ फायदा नहीं हुआ। पूरी रिपोर्ट इन्टरनेट पर पड़ी है।
कुछ लोग कहते है की इससे देश का सप्लाई चेन सिस्टम और अच्छा हो जाएगा, इसके लिए फिर FDI इन रिटेल की क्या जरुरत। फ़ूड प्रोसेसिंग और कोल्ड स्टोरेज में आलरेडी FDI allowed है।
एक और चीज़ जो अपने पर्सनल एक्सपीरियंस से कह रहा हूँ। मैं अभी सितम्बर में शिकागो के पास vernon हिल्स में एक्सटेंडेड स्टे करके होटल में 1 महीने रुका था। और वहां के 5 KM के दायरे में यह सभी दुकाने थी
वालमार्ट (हर चीज़ की दूकान, दुनिया की तीसरी बड़ी कंपनी)
Kohl's (कपडे की दूकान, अपने tcs से दुगुनी बड़ी कंपनी)
Office Depot (स्टेशनरी की दूकान, विप्रो और इनफ़ोसिस जोड़ भी दे तो इसके बराबर नहीं)
सैम क्लब (हर चीज़ की दूकान, वालमार्ट द्वारा संचालित)
बेस्ट buy (इलेक्ट्रॉनिक की दूकान, रिलायंस के बराबर की कंपनी)

और भी कई बड़े बड़े दूकान थे, लेकिन ऊपर लिखे गए दुकानों में गया था कुछ कुछ ख़रीदा भी था। इसलिए इनका जिक्र कर रहा हूँ
Kohl's जो की अपने यहाँ के बिग बाज़ार से करीब 5 गुना बड़ा था, में केवल 4-5 employee थे, कई सारे सेल्फ सर्विस काउंटर थे, कपडे सेलेक्ट करो, उन्हें मशीन से पास कराओ स्कैन हो जाएगा स्क्रीन पर पैसे आ जायेंगे फिर आखिर में अपना कार्ड स्वैप करो और बिल लो चलते बनो मतलब 1 बड़ी दूकान और 1 ग्राहक और बीच में कोई नहीं, सोचिये कहाँ गया रोजगार। इसलिए जो लोग रोजगार बढ़ने की बात कर रहे है वो शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर रेत में डाल लिए हैं और उन्हें सच्चाई दिख नहीं रही है।

अब जरा सोचिये, जब यह सब आ जाएगा अपने लस्कर के साथ तो बेचारा लोकल दूकान वाला जो पान, बीडी, सिगरेट, चाय, दूध, दही, चीनी, चावल, कॉपी, रजिस्टर, माचिस, अगरबत्ती, केक, समोसा, जलेबी, रिचार्ज कूपन, झाड़ू, चाय पत्त्ती, और पता नहीं क्या क्या बेचता है उसका क्या होगा। मैं तो बोलता हूँ इससे करीब भारत के 10 करोड़ लो बुरी तरह से affected होंगे, उनका जीवन और कठिन हो जाएगा।

Ranveer
09-12-2012, 07:17 AM
चलिये इतना मान लेते हैं की छोटी मोटी जरूरतों के लिए लोग वालमार्ट या टेसको नहीं जाएँगे , पर जब महीने का राशन लेना हो तो अवश्य विचार करेंगे क्यूंकी उन्हे बाज़ार के मुक़ाबले सस्ता ही मिलेगा ।
मुझे लगता है की वालमार्ट टेसको या कैफेकोर आदि का बिग बाज़ार ,रिलाइन्स से तुलना नहीं किया जा सकता । उसकी निवेश क्षमता इतनी है की वो एक शहर बसा सकती है , ऐसे मे कर्मचारियों की कमी या लाइन लगाकर पैसे का भुगतान वाली समस्या नहीं आने देगी ।

खुदरा बाजार मे इसके आने से कई लाभ भी है और हानियाँ भी । लाभ ये की इससे कीमतों मे गिरावट आएगी क्यूंकी बाज़ार मे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी । उपभोक्ता वर्ग को महंगाई से थोड़ी राहत मिलेगी । कई जगहों पर कृषि और छोटे खाद प्रसंस्करण उद्योग स्थापित हो सकते हैं और किसानो को बिचौलियों के चंगुल मे फँसने की बजाए अपनी उपज का सीधा और सर्वाधिक लाभ मिल सकता है । इन सबसे इतना तो जाहिर है की देश मे निवेश और रोजगार के अवसर बनेंगे ।
किन्तु इसकी हानि इसके लाभ से कई गुना खतरनाक है ...जैसे -
1 - वालमार्ट , टेस्को , कैफेकोर आदि इतनी बड़ी और वैश्विक कंपनियाँ हैं की वो जहां जाती है वहाँ के खुदरा बाजार पर पूरी तरह से छा जाती हैं । इन कंपनियों पर किसानो की निर्भरता खाद सुरक्षा पर एक खतरा हो सकता है ।
2 -किसान इन पर पूरी तरह निर्भर हो सकते हैं । चूंकि इनका मकसद अधिकतम लाभ कमाना होगा , ऐसे मे किसानो के दीर्घकालीन हित से इन्हे कोई मतलब नहीं होगा ।
3 -छोटे कारोबारी और दुकानदार धीरे धीरे खत्म हो सकते हैं क्यूंकी उपभोक्ता कम दाम के कारण कंपनियों से समान खरीदने पर ज्यादा आकर्षित होगे । कुछ जो बचे रहेंगे उन्हे भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड सकता है । इससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ेगी ।
4 -देश मे मौजूद छोटे और कुटीर उगयोग पर बुरा असर पड़ेगा क्यूंकी इन्हे भी विदेशी सामानों से कड़ी स्पर्धा मिलेगी ।

Sikandar_Khan
09-12-2012, 09:12 AM
आपका यह तर्क बहुत ही उपयुक्त है, सिकंदरजी। आपने मात्रा कुछ ज्यादा ही लिखी है। मेरा अपार्टमेंट जहां है, वहां से तकरीबन एक किलोमीटर दूर एक कच्ची बस्ती है। उस चौराहे पर एक लकड़ी की स्टाल में एक दूकान चल रही है। मैं अपनी सिगरेट हमेशा उसी से खरीदता हूं। आपको यह जान कर ताज्जुब होगा कि वह होंडा सिटी में आता है और कच्ची बस्ती में रहने वालों को आज भी दो रुपए का तेल, एक रुपए की मिर्च, पांच रुपए का आटा आदि बिना किसी शिकन के बेचता है। शायद उसके होंडा सिटी में घूमने का एक बड़ा राज़ यह है। ऎसी स्थिति में क्या करेगा वालमार्ट?
मेरे विचार से वालमार्ट ऐसी स्थिति मे कुछ नही कर सकता है ! क्योँकि आज भी भारत की तकरीबन 70% से अधिक आबादी अपने पड़ोस की खुदरा किराना दुकान पर ही निर्भर है ! आप खुद ही सोचिए क्या वालमार्ट पाँच रुपए का आटा और दो रुपए का तेल कैसे बेच सकती है ?
कानपुर मे एक बहुत बड़ा मॉल जो की एशिया मे टॉप मे गिना जाता है ! जिसने पूरी दुनियां के अंतराष्ट्रीय ब्रांड के शोरुम और बिग बाजार भी है ! उस मॉल मे बहुत भीड़ होती है लेकिन उनमे खरीदारी करने वाले 10% और मॉल घूमने वाले 90% लोग ही होते हैँ |
मै खुद अपने नजदीकी बाजार या किराना दुकान से सामान खरीदना पसंद करता हूँ क्योँकि यहाँ पर उस रेट मे जो क्वालिटी मुझे मिल जाती हैँ ! वो बिगबाजार कभी नही दे सकता है |

Dark Saint Alaick
09-12-2012, 10:31 PM
एक पत्रकार बी. पी. गौतम के विचार एफडीआई पर
(उनके फेसबुक पेज से)

एफडीआई के दूरगामी परिणाम बेहद घातक


विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफडीआई) देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन आम आदमी एफडीआई के बारे में इतना सब होने के बाद भी कुछ ख़ास नहीं जानता। असलियत में एफडीआई को लेकर आज जो कुछ हो रहा है, उसकी नींव वर्ष 1991 में ही रख दी गई थी। विदेशी निवेश की नीतियों को उदार बनाने की दृष्टि से वर्ष 1991 में ही एफडीआई की नींव रखी गई थी, जिसका पूरा असर आम आदमी को आज दिखाई दे रहा है और अब जो हो रहा है, उसका असर ऐसे ही कई वर्षों बाद नज़र आएगा। अगर, सामने दुष्परिणाम आये, तो उस समय भारत के पास करने को कुछ नहीं होगा, क्योंकि विदेशी कंपनियों के पास संसद की मंजूरी क़ानून के रूप में पहले से ही होगी।
अब सवाल उठता है कि आने वाले समय में भारत के लिए एफडीआई के क्या नुकसान हो सकते हैं?, तो सीधा सा जवाब है कि लाभ में बेचने वाला ही होता है, खरीदने वाला कभी नहीं होता। विदेश से वस्तु के बदले वस्तु आती, तो भारत की जनता को बराबर का लाभ होता, लेकिन दुकान, दुकानदार और दुकान में बिकने वाला सामान सब विदेशी ही होगा। दुकानदार (संबंधित कंपनी) की मर्जी का ही होगा, तो भारतीयों की मेहनत की कमाई उसी की जेब में जायेगी। उस के पैसे का टर्न ओवर सही से होता रहेगा, तो भारतीय अर्थव्यवस्था दौड़ती नज़र आयेगी, लेकिन संबंधित कंपनी अपना टर्न ओवर कम या बंद कर देगी, तो भारतीय अर्थव्यवस्था उसी गति से ऊपर-नीचे होती रहेगी, मतलब भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी विदेशी कंपनीयां बनने जा रही हैं। जिस देश की अर्थव्यवस्था विदेशियों के हाथ में चली जायेगी, वो देश दिखने में भले ही खुशहाल नज़र आये, पर वास्तव में खोखला ही होगा।
विश्व की अर्थव्यवस्था वर्ष 2008 में चरमराई, तब भारत उतना ही प्रभावित हुआ, जितना भारत में निवेश कर चुकी विदेशी कंपनीयां प्रभावित हुई थीं, इससे सबक लेकर भारत सरकार को विदेशी निवेश और कम करना चाहिए था, लेकिन भारत सरकार ने 14 दिसंबर 2012 को खुदरा क्षेत्र में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश की छूट प्रदान कर दी, इसके बाद 5 अक्टूबर 2012 को बीमा क्षेत्र में भी 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, जिसका दुष्परिणाम सामने आ ही गया है। अब विदेशी कंपनीयां कृषि, खनन, खुदरा व्यापार और अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सौ प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश कर सकती हैं। रीयल स्टेट, वायदा वस्तु निगम, केबल टीवी नेटवर्क, नागरिक उड्डयन और बिजली क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान है। टीवी चैनल, सूचना प्रसारण और निजी बैंकिंग क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश किया जा सकता है। रक्षा और प्रिंट मीडिया क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक, डीटीएच, एफएम, रेडियो और सार्वजनिक बैंकिंग क्षेत्र में 20 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता है। विदेशी निवेश के लिए खोले जा रहे सभी क्षेत्र ऐसे हैं, जिनसे भारत के आम लोग सीधे प्रभावित होंगे, साथ ही कृषि और मीडिया क्षेत्र में विदेशी निवेश होने से देश पर अपरोक्ष रूप से विदेशी पूरी तरह हावी हो जायेंगे। विदेशी कंपनीयां पूरी तैयारी के साथ आ रही हैं, उनके पास पर्याप्त धन है, पर्याप्त संसाधन हैं, जिससे वह बाजार पर पूरी तरह छा जायेंगी, जबकि देश के व्यापारी जैसे-तैसे उत्पादन कर पाते हैं, उनके पास न पर्याप्त धन है और न ही पर्याप्त संसाधन। विदेशी गाँव-गाँव उत्पाद पहुंचाने में समर्थ हैं, उनके उत्पाद सामने होते हैं, तो ग्राहक उन्हें ही खरीदने को मजबूर भी हो जाता है और धीरे-धीरे देशी उत्पाद बाजार से पूरी तरह गायब ही हो जाते हैं। कई उत्पादों के साथ ऐसा हो भी चुका है, इसलिए भविष्य में भी ऐसा ही होने की संभावनाएं अधिक हैं।
इसके अलावा भारत में निवेश करने वाले प्रमुख देशों में मारिशस, सिंगापुर, अमेरिका, इंग्लैण्ड, नीदरलैंड, जापान, साईप्रस, जर्मनी, फ़्रांस और संयुक्त अरब अमीरात वगैरह से भारत को कुछ न कुछ लाभ फिर भी होगा, लेकिन पड़ोसी देश चीन भारत के बाजार में अधिकांशतः अपने उत्पाद ही उतारेगा, जिससे भारत को साफ़ तौर पर नुकसान ही है। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए, तो चीन भारत का दुश्मन देश भी है, जो भारत का धन भारत के विरुद्ध ही उपयोग करेगा, ऐसे में भारत को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे चीन की आर्थिक स्थिति खराब हो, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी भारत चीन को आर्थिक रूप से संपन्न होने में मदद कर रहा है, जिसका दुष्परिणाम सीमा पर स्पष्ट पड़ेगा। कुल मिला कर आने वाले वर्षों में भारत की अर्थ व्यवस्था विदेशियों के हाथों में ही होगी, इसलिए भारत की दृष्टि से एफडीआई नुकसान देह ही है।

Advocate_Arham_Ali
11-12-2012, 09:57 PM
इससे हमारे देश के कर्ता धर्ताओं का दोगलापन तो ज़ाहिर हो गया ........

malethia
11-12-2012, 10:02 PM
एक पत्रकार बी. पी. गौतम के विचार एफडीआई पर
(उनके फेसबुक पेज से)

एफडीआई के दूरगामी परिणाम बेहद घातक


विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफडीआई) देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन आम आदमी एफडीआई के बारे में इतना सब होने के बाद भी कुछ ख़ास नहीं जानता। असलियत में एफडीआई को लेकर आज जो कुछ हो रहा है, उसकी नींव वर्ष 1991 में ही रख दी गई थी। विदेशी निवेश की नीतियों को उदार बनाने की दृष्टि से वर्ष 1991 में ही एफडीआई की नींव रखी गई थी, जिसका पूरा असर आम आदमी को आज दिखाई दे रहा है और अब जो हो रहा है, उसका असर ऐसे ही कई वर्षों बाद नज़र आएगा। अगर, सामने दुष्परिणाम आये, तो उस समय भारत के पास करने को कुछ नहीं होगा, क्योंकि विदेशी कंपनियों के पास संसद की मंजूरी क़ानून के रूप में पहले से ही होगी।
अब सवाल उठता है कि आने वाले समय में भारत के लिए एफडीआई के क्या नुकसान हो सकते हैं?, तो सीधा सा जवाब है कि लाभ में बेचने वाला ही होता है, खरीदने वाला कभी नहीं होता। विदेश से वस्तु के बदले वस्तु आती, तो भारत की जनता को बराबर का लाभ होता, लेकिन दुकान, दुकानदार और दुकान में बिकने वाला सामान सब विदेशी ही होगा। दुकानदार (संबंधित कंपनी) की मर्जी का ही होगा, तो भारतीयों की मेहनत की कमाई उसी की जेब में जायेगी। उस के पैसे का टर्न ओवर सही से होता रहेगा, तो भारतीय अर्थव्यवस्था दौड़ती नज़र आयेगी, लेकिन संबंधित कंपनी अपना टर्न ओवर कम या बंद कर देगी, तो भारतीय अर्थव्यवस्था उसी गति से ऊपर-नीचे होती रहेगी, मतलब भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी विदेशी कंपनीयां बनने जा रही हैं। जिस देश की अर्थव्यवस्था विदेशियों के हाथ में चली जायेगी, वो देश दिखने में भले ही खुशहाल नज़र आये, पर वास्तव में खोखला ही होगा।
विश्व की अर्थव्यवस्था वर्ष 2008 में चरमराई, तब भारत उतना ही प्रभावित हुआ, जितना भारत में निवेश कर चुकी विदेशी कंपनीयां प्रभावित हुई थीं, इससे सबक लेकर भारत सरकार को विदेशी निवेश और कम करना चाहिए था, लेकिन भारत सरकार ने 14 दिसंबर 2012 को खुदरा क्षेत्र में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश की छूट प्रदान कर दी, इसके बाद 5 अक्टूबर 2012 को बीमा क्षेत्र में भी 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, जिसका दुष्परिणाम सामने आ ही गया है। अब विदेशी कंपनीयां कृषि, खनन, खुदरा व्यापार और अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सौ प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश कर सकती हैं। रीयल स्टेट, वायदा वस्तु निगम, केबल टीवी नेटवर्क, नागरिक उड्डयन और बिजली क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान है। टीवी चैनल, सूचना प्रसारण और निजी बैंकिंग क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष निवेश किया जा सकता है। रक्षा और प्रिंट मीडिया क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक, डीटीएच, एफएम, रेडियो और सार्वजनिक बैंकिंग क्षेत्र में 20 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता है। विदेशी निवेश के लिए खोले जा रहे सभी क्षेत्र ऐसे हैं, जिनसे भारत के आम लोग सीधे प्रभावित होंगे, साथ ही कृषि और मीडिया क्षेत्र में विदेशी निवेश होने से देश पर अपरोक्ष रूप से विदेशी पूरी तरह हावी हो जायेंगे। विदेशी कंपनीयां पूरी तैयारी के साथ आ रही हैं, उनके पास पर्याप्त धन है, पर्याप्त संसाधन हैं, जिससे वह बाजार पर पूरी तरह छा जायेंगी, जबकि देश के व्यापारी जैसे-तैसे उत्पादन कर पाते हैं, उनके पास न पर्याप्त धन है और न ही पर्याप्त संसाधन। विदेशी गाँव-गाँव उत्पाद पहुंचाने में समर्थ हैं, उनके उत्पाद सामने होते हैं, तो ग्राहक उन्हें ही खरीदने को मजबूर भी हो जाता है और धीरे-धीरे देशी उत्पाद बाजार से पूरी तरह गायब ही हो जाते हैं। कई उत्पादों के साथ ऐसा हो भी चुका है, इसलिए भविष्य में भी ऐसा ही होने की संभावनाएं अधिक हैं।
इसके अलावा भारत में निवेश करने वाले प्रमुख देशों में मारिशस, सिंगापुर, अमेरिका, इंग्लैण्ड, नीदरलैंड, जापान, साईप्रस, जर्मनी, फ़्रांस और संयुक्त अरब अमीरात वगैरह से भारत को कुछ न कुछ लाभ फिर भी होगा, लेकिन पड़ोसी देश चीन भारत के बाजार में अधिकांशतः अपने उत्पाद ही उतारेगा, जिससे भारत को साफ़ तौर पर नुकसान ही है। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए, तो चीन भारत का दुश्मन देश भी है, जो भारत का धन भारत के विरुद्ध ही उपयोग करेगा, ऐसे में भारत को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे चीन की आर्थिक स्थिति खराब हो, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी भारत चीन को आर्थिक रूप से संपन्न होने में मदद कर रहा है, जिसका दुष्परिणाम सीमा पर स्पष्ट पड़ेगा। कुल मिला कर आने वाले वर्षों में भारत की अर्थ व्यवस्था विदेशियों के हाथों में ही होगी, इसलिए भारत की दृष्टि से एफडीआई नुकसान देह ही है।
मुझे इस तारीख के बारे में थोडा संसय है ,कृपया मेरा संसय दूर करें !

Dark Saint Alaick
12-12-2012, 10:28 PM
आपने सही पकड़ा, मलेठियाजी। यह सितम्बर होना चाहिए। :scratchchin:

ndhebar
13-12-2012, 02:21 PM
मुझे तो इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता
बल्कि खरीददारी के लिए एक और विकल्प बढ़ जायेगा
ये लोग अपनी आमदनी पर इनकम टैक्स भी पूरा भरेंगे तो सरकार को भी फायदा
और सरकार को फायदा तो हमें भी फायदा

Dark Saint Alaick
14-12-2012, 02:24 AM
मुझे तो इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता
बल्कि खरीददारी के लिए एक और विकल्प बढ़ जायेगा
ये लोग अपनी आमदनी पर इनकम टैक्स भी पूरा भरेंगे तो सरकार को भी फायदा
और सरकार को फायदा तो हमें भी फायदा

सरकार को तो कई फायदे होते ही रहते हैं, लेकिन उससे आपको कब फायदा हुआ? :giggle:

ndhebar
14-12-2012, 05:13 PM
सरकार को तो कई फायदे होते ही रहते हैं, लेकिन उससे आपको कब फायदा हुआ? :giggle:
सरकार को होने वाला फायदा ही तो हमें सुविधाओं के रूप में वापस मिलता है

aksh
15-12-2012, 05:04 PM
मल्टी ब्रांड रिटेल भारत के बाजारों में पीछे के रास्ते से पहले ही विदेश के बड़े बड़े रिटेलर्स के हाथ में जा ही चुका है...सबको पता है कि इनके रिटेल आउटलेट पहले ही खुल चुके हैं...और अगर इनको खुल कर आने दिया जाता है तो कम से कम इतना फायदा तो होगा कि जितने वैज्ञानिक तरीके से ये फसल से लेकर भंडारण और विपरण की कुशलता को देश में लेकर आयेंगे..उससे देश का ही फायदा होगा...!! पुरानी पीड़ी के किसान अगर इनसे सामंजस्य नहीं भी बैठा सके तो उनकी भी आने वाली पीढ़ी तैयार है इनके साथ बिजनेस करने के लिए जो कि पढ़ी लिखी है, पहले से अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए बेताब है...!!

आज हमारे देश में खेती के क्षेत्र में जो भी तरक्की हुयी है वो नाकाफी है...और बहुत हद तक सरकारी मदद और सब्सिडी पर टिकी हुयी है...कब तक हम सीमित साधनों से खेती करते हुए, फ्री की बिजली, सब्सीडी वाली खाद और अकुशल विपरण व्यवस्था को ढोते रहेंगे...?? किसान अपने खेती को जिस वैज्ञानिक तरीके से कर सकते थे उस तरीके से ना करके दोयम दर्जे की कुशलता से कार्य कर रहे हैं...आने वाले समय में जिस तेजी से खेती योग्य भूमि घटती जा रही है..उसे देखते हुए हमें ना सिर्फ इस गति को रोकना होगा बल्कि खेती में और अधिक कुशलता लानी होगी..और वो सब्सिडी के रास्ते नहीं आ सकती...इस बात का हमें खास ध्यान रखना होगा..

किसान को अपनी खेती एक उद्योग के तौर पर चलानी होगी और उसे उद्योग को मिलने वाले सारे फायदे मिलने चाहिए और साथ ही साथ उसे देश की अर्थ व्यवस्था में टैक्स के तौर पर भी योगदान देना होगा...आखिर कब तक खेती को टैक्स फ्री रख कर हम अपनी ही तरक्की में बाधक बनते रहेंगे...?? इस तरह के प्रावधानों का सिर्फ नुक्सान ही होता है...और अगर मेरी बात गलत होती तो आज भारत का किसान इस हालत में नहीं होता जिस हालत में वो आज है...क्योंकि उसने आज तक अपने काम को उद्योग या उद्यम नहीं माना बल्कि सरकारों के रहमो करम पर चलने वाली एक आजीविका के रूप में देखा है जिसका फायदा छोटा किसान तो नहीं उठा पा रहा है पर वो किसान अवश्य उठा रहे हैं जिनको इससे इतनी आय होती है कि उनको किसी भी तरह की फ्री बिजली, और सब्सिडी की जरूरत नहीं होगी...!!

अगर रिटेल में एफ डी आई आती है तो छोटे छोटे किसानों को भी आधुनिक सुविधाओं से युक्त एक सिस्टम का हिस्सा बनने का मौक़ा मिलेगा...और ये बात ध्यान में रखनी होगी कि भारत के किसी भी किसान का शोषण नहीं हो सकेगा क्योंकि भारत सरकार और देश का क़ानून कभी भी इस बात की इजाजत नहीं देगा...!!

रही बात छोटे व्यापारियों की तो एक बात समझ लीजिए कि बिना बिल के अपना काम धंधा करने वाले ज्यादातर व्यापारी ऐसे हैं जिनको कि वैट और इनकम की लिस्ट में होना चाहिए पर वो इससे अपने आप को दूर ही रखते हैं...क्योंकि जो भी वो बचाते हैं सीधा उनकी ही जेब में जाता है...इसलिए ऐसा करना उनको फायदे मंद भी लगता है...

जब बड़े स्टोर खुलेंगे...तो वो खत्म नहीं होंगे क्योंकि जिनको उनसे खरीदारी करने में फ़ायदा या फक्र महसूस होगा वो उनसे ही खरीदारी करेंगे...और जिनको हर चीज बिल लेकर खरीदने में फक्र और सुविधा महसूस होगी वो इन स्टोर से खरीदारी करेंगे...!!

जब एक बड़ा स्टोर खुलता है तो उसका मालिक उसके अंदर नहीं बैठता बल्कि वो उसके अंदर बहुत सारे लोगों को नौकरी पर रखता है...काम करने के लिए, देखभाल करने के लिए और हिसाब किताब रखने के लिए...इसलिए वो हमेशा हर चीज को दुरस्त रखता है और पूरा टैक्स चुकाता है...और हमेशा ही हिसाब किताब परफेक्ट रखता है.... जबकि छोटा दुकानदार ( जिसकी दूकान दिन रात सोना उगल रही है...) कभी भी हिसाब किताब नहीं रखता, ज्यादातर सिर्फ माल बेचने और खरीदने में ही व्यस्त रहता है, ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया नहीं करवाता, और सब कुछ अपने नियंत्रण में होने के कारण अक्सर टैक्स को अपनी ही जेब में रख लेता है...

इन विदेशी रिटेल चैन के आने से भारत के खुदरा व्यापारियों का रवैया भी बदलेगा और वो भी अपने आप को इनसे टक्कर लेने के लिए तैयार करेंगे...और ठीक वैसा ही होगा जैसा कि इस देश में कम्प्युटर के आने से हुआ है...और अगर आप सभी को याद हो तो उस समय कम्प्युटर का जिस कदर विरोध हुआ था वैसा विरोध आज तक किसी भी चीज का नहीं हुआ है...और आज हकीकत सभी के सामने है...

aksh
15-12-2012, 05:12 PM
मेरे विचार से वालमार्ट ऐसी स्थिति मे कुछ नही कर सकता है ! क्योँकि आज भी भारत की तकरीबन 70% से अधिक आबादी अपने पड़ोस की खुदरा किराना दुकान पर ही निर्भर है ! आप खुद ही सोचिए क्या वालमार्ट पाँच रुपए का आटा और दो रुपए का तेल कैसे बेच सकती है ?
कानपुर मे एक बहुत बड़ा मॉल जो की एशिया मे टॉप मे गिना जाता है ! जिसने पूरी दुनियां के अंतराष्ट्रीय ब्रांड के शोरुम और बिग बाजार भी है ! उस मॉल मे बहुत भीड़ होती है लेकिन उनमे खरीदारी करने वाले 10% और मॉल घूमने वाले 90% लोग ही होते हैँ |
मै खुद अपने नजदीकी बाजार या किराना दुकान से सामान खरीदना पसंद करता हूँ क्योँकि यहाँ पर उस रेट मे जो क्वालिटी मुझे मिल जाती हैँ ! वो बिगबाजार कभी नही दे सकता है |

ये लोग कोई छोटे मोटे लोग नहीं हैं...ये मार्केटिंग और रिटेल की दुनिया के दिग्गज हैं...!! सिकंदर भाई...जब एक दूर दराज गाँव में रहने वाली लड़की को पचास पैसे में शेम्पू और तेल का कोम्बी पैक ये लोग बेच सकते हैं..तो फिर ये लोग क्या नहीं कर सकते...?? ये लोग वो नहीं कर सकते जो कि हमारे खुदरा व्यापारी करते हैं...

५०० रूपये का उधर लो और एक महीने के बाद ५५० रूपये लौटाओ...अर्थात १० % प्रति माह का व्याज...साल भर से पहले ही पैसा डबल...??

चाय की पत्ती अगर २०० रूपये की एक किलो है...जो तो दस रूपये की २५ ग्राम चाय की पत्ती बेचकर ये लोग शायद उसे चार सौ रूपये किलो नहीं बेचेंगे...?? ये लोग शायद बेहद गरीब जनता का मदद के नाम पर शोषण नहीं कर सकेंगे...!! ऐसा मेरा मानना है...!! हकीकत का समना आपको और मुझे अभी करना है...और मुझे उम्मीद है कि चीजें बेहतर होंगी...!!

nlshraman
16-12-2012, 05:03 PM
There will a quality improvement in commodities and quantity improvement as well यानी मिलावट पर अंकुश लगेगा और घटतौली भी कम होगी। मिलावट व घटतौली में हमारे देश की शान बना रखी है इन खुदरा खुदड़ियों ने।

Narendra Patel
16-12-2012, 05:26 PM
ye sach hai fdi ke ane se tatkal koi nuksan nahi hai lekin ane wala kal dukhdai hoga.......

aksh
24-12-2012, 11:36 PM
ye sach hai fdi ke ane se tatkal koi nuksan nahi hai lekin ane wala kal dukhdai hoga.......

ये सभी पहले भी कही जा चुकी बात है जब भारत मै कम्प्यूटर तेजी से पैर पसार रहा था तब भी इसी तरह का प्रचार किया गया था जो कि सिर्फ एक थोथा प्रचार था...!! हमको नयी नयी व्यवस्था बनाते और अपनाते रहना चाहिये..!!

Ranjansameer
25-12-2012, 02:23 AM
भारत में भारतीयों ने खुदरा कारोबार का एक अनोखा ढांचा बनाया है। आजादी मिलने के बाद धीरे धीरे पैदान चढ़ता हुआ 1990 के दशक के आखिर में इसने तेजी पकड़ी। मौजूदा दौर में आज भारत दुकानदारों का देश है जहां करीब 1.5 करोड़ खुदरा कारोबारी हैं और यह लगभग ४०० अरब डॉलर से भी बड़ा बाजार है। लेकिन भारतीय खुदरा बाजार वास्तव में आज भी असंगठित हैं वावजूद इसके की कुल बिक्री का 94 फीसदी इनके जरिये ही होता है। एक तरह से कह सकते हैं की भारतीय खुदरा बाज़ार की सबसे बड़ी दुर्दशा यही हैं।

पिछले दशक में हमारे देश यानी भारतवर्ष में सबसे ज्यादा विस्तार हुआ हैं तो वह हैं खुदरा बाज़ार। आज हमारे यहाँ डिपार्टमेंटल स्टोर से लेकर हाइपर मार्केट और यहां तक कि स्पेशियलिटी स्टोर भी हमारे यहाँ खुल चुके हैं। कई वैश्विक दिग्गज पहले से ही भारतीय बाजार में मौजूद हैं। बड़े शहरों और मेट्रो में शॉपिंग मॉल खरीदारी के लिए मध्य वर्ग की पहली पसंद के तौर पर उभर रहे हैं। यहाँ तक की अब मेट्रो 'बी" शहरों में भी यह साड़ी सुविधाए ग्राहकों के पास पहुच रही हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी खुदरा कारोबार का आकार भी बढ़ेगा। लोगों की क्रय शक्ति बढऩे पर बेहतर सेवाओं और उत्पादों के लिए उनकी मांग भी बढ़ेगी।

अगर इसे सही तरीके से अंजाम दिया गया तो यह देश के लिए बहुत बड़े फायदे की सौगात साबित हो सकता है। ग्राहकों को किफायती कीमत पर बेहतरीन उत्पाद और सेवाएं मिल सकेंगी। चुकी बाज़ार में प्रतियोगिता काफी रहेगी, जिससे सारा फायदा भारतियों ग्राहकों को ही मिलेगा। एफडीआई से सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि भारत दुनिया का शॉपिंग हब बन सकता है जिससे अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी।

हमेशा से एफडीआई को लेकर बहस सकारात्मक पहलुओं को न लेकर नकारात्मक बिंदुओं के इर्द-गिर्द हो रही है। कहा जा रहा है कि इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान होगा और उनकी आजीविका संकट में पड़ जाएगी। हां एक बात कहना चाहूँगा की सरकार ने जो मसौदे बनाये हैं इस बिल को लेकर उनमे कही कही सुधर की जरुरत हैं। जैसे की - बहुब्रांड खुदरा कारोबार मुद्दा....इत्यादि.

कुल मिलाजुलाकर, मैं यही कहना चाहूँगा की अगर इस एफडीआई से एक तिहाई नुक्सान हैं तो दो तिहाई फायदा....बाकी की बातें आपलोगों के आपने अपने पक्ष रखने के बाद..

bharat
06-01-2013, 02:44 AM
इस बारे में मेरे भी मिले जुले से ही विचार हैं! विदेशी निवेश से होने वाली कमाई बाहर जाएगी भी तो क्या! अभी भी हमें तो कुछ नहीं मिल रहा! वो सुविधाएं देंगे तो कमाई करेंगे! अभी के दुकानदार सुविदाओं के नाम पर कुछ नहीं और कीमतें मन-मर्ज़ी की! छोटे शहरों में ज्यादातर दुकानदार टैक्स की चोरिओ करते हैं और रसीद नाम की भी कोई चीज होती है , इन्हें शायद पता ही नहीं! खैर उनकी दुकानदारी तो फिर भी ऐसे ही चलेगी क्यूंकि वालमार्ट हर छोटे बड़े शहर में तो खुलने से रहा! और जिन्हें पांच पञ्च या दस दस रुपये की खुली चीज लेनी हो वो भी वाल्ल्मार्ट में जाने से रहे! इसलिए इतना हो हल्ला करना फिजूल ही है! जरूरी नहीं की वालमार्ट यहाँ उसी शैली में काम करे जैसे पश्चिमी देशों में करता है!
abhisays जी ने एक प्रविष्टि में ये उदाहरण दिया! Kohl's जो की अपने यहाँ के बिग बाज़ार से करीब 5 गुना बड़ा था, में केवल 4-5 employee थे, कई सारे सेल्फ सर्विस काउंटर थे, कपडे सेलेक्ट करो, उन्हें मशीन से पास कराओ स्कैन हो जाएगा स्क्रीन पर पैसे आ जायेंगे फिर आखिर में अपना कार्ड स्वैप करो और बिल लो चलते बनो मतलब 1 बड़ी दूकान और 1 ग्राहक और बीच में कोई नहीं, सोचिये कहाँ गया रोजगार।

मुझे नहीं लगता भारत में कभी भी ऐसे हालात होंगे ! एक उदाहरण मैं आपको देता हूँ! अमेरिका में ही ज्यादातर स्नैक्स रेस्तरां में सोडा मशीन लगी होती है! वो लोग आपको सिर्फ कप दे देते हैं , अब आगे ये आप पर है की आपको कोन्सa सोडा लेना है, जाइये और खुद ले लीजिये! अब mcdonald तो भारत में भी है! छोटे या बड़े किसी भी शहर में ये सुविधा भारत में mcdonald दे नहीं पायेगा! कारन बताने की जरुरत ही नहीं है! :doh:

तो इसलिए दुसरे देशों की तुलना करते हुए फायदे या लाभ गिनवाना शायद जमता नहीं है!
आपका क्या मत है इस बारे में मित्र?