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View Full Version : तन्त्र_मंत्र_भूत _प्रेत= क्या है सच्चाई ? रें&


mavali
31-12-2012, 06:38 PM
उक्त कथा शत प्रतिशत कॉपी मारी गयी है /मारी जा रही है .क्यूंकि जमाना ही इसी का है :giggle:
क्यूंकि जो जमाने के साथ नही बदलते ,जमाना उनको बदल देता है :devil:
सूत्र का भविष्य आप सभी के सहयोग पर निर्भर करता है !:cheers:

mavali
31-12-2012, 06:39 PM
चंबा हिमाचल प्रदेश की वो घटना

ये घटना है सन २००५ की, जगह थी हिमाचल का चंबा जिला, वहाँ मेरे ताऊ जी का बड़ा लड़का यानी कि मेरा कजिन भाई कनिष्ठ अभयन्ता के पद पर है एक सरकारी उपक्रम में , मेरा उसके साथ बेहद दोस्ती भरा स्नेह है, जब भी आता है तो मेरे पास हमेशा आता है, ऐसे ही एक बार जब वो यहाँ दिल्ली आया हुआ था तो वो मेरे से और मेरे एक दोस्त से मिला, मेरे दोस्त को और मेरे को उसने वहां आने का निमंत्रण दिया, हमने अगले महीने, यानी कि दिसम्बर में वहां जाने का कार्यक्रम बना लिया!

और इस तरह मै और मेरा दोस्त नियत समय पर वहाँ पहुँच गए, वहाँ आके मेरे कजिन भाई ने हमारा स्वागत किया, और हम लोग उसकी सरकारी गाडी से उसके निवास-स्थान कि ओर रवाना हो गए, रास्ता बेहद खूबसूरत था, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली, छोटे-छोटे घर और वहाँ के मौसम ने तो ये तय कर दिया था कि हमारा वक़्त वहाँ काफी अच्छा कटने वाला है!

मेरे कजिन भाई का नाम ललित है, ललित को वहां पर एक सरकारी आवास आबंटित हुआ था, सो हम लोग वहीँ ठहर गए, ललित कि शादी नहीं हुई थी अभी और वो वहाँ पर अकेला ही रहता था, कुल मिला के सोने पे सुहागे वाली बात थी, कोई रोक-टोक नहीं और जो मर्जी जैसा खाओ और पियो, कोई कहने टोकने वाला नहीं था वहाँ पर!

ललित का आवास शहर कि चहल-पहल से दूर, शान्ति वाली जगह पर था, ये और भी बढ़िया बात थी, कहीं आने-जाने के लिए गाडी तो थी ही, खैर, उस शाम को ललित ने भोजन का प्रबंध किया और साथ में शराब का भी, चूँकि वहाँ सर्दी बहुत थी और ३ बजे के आस-पास ही शाम की सुग्बुघाहट महसूस होने लगती थी, हमने खाना खाया और खा-पी के आराम से रजाई तान के सो गए! उस रोज़ वो २२ दिसम्बर का दिन था जब सुबह मेरी आँख खुली!

mavali
31-12-2012, 06:39 PM
मै नित्य कर्मों से फारिग होकर, गरम कपडे पहन कर मकान के छज्जे पे आया, अभी तक धुंध बरकरार थी, सर्दी कड़क पड़ रही थी, मैंने सोचा चाय वगैरह, नाश्ता करने के बाद ही कहीं घूमने-फिरने का कार्यक्रम बनाया जाए, तब तक ललित की भी आँख खुल चुकी थी, सुबह के यही कोई ७ बजे होंगे, ललित ने कहा की नाश्ता आने वाला है, क्यूंकि उसका ड्राईवर ही ये बंदोबस्त करता है, ठीक साढ़े ७ बजे नाश्ता आ गया और गरमा-गरम चाय भी! इस चाय का तो मजा ही कुछ अलग था, एक तो ठण्ड, ऊपर से धुंध, धुप का तो कोई नामोनिशान भी नहीं था! ललित ने बताया की उसका ड्राईवर १० बजे उसको उसके दफ्तर छोड़ेगा और आधे घंटे में वापिस यहाँ आ जाएगा और फिर हम लोग उसके साथ घूमने -फिरने जायेंगे! कार्यक्रम बढ़िया था!

ठीक ११ बजे ललित का ड्राईवर वहाँ आ गया, हम तो पहले से ही तैयार थे, सो हम उसके साथ निकल पड़े! ड्राईवर काफी भला आदमी था, सीधा-साधा अक्सर कि जैसे छोटे कस्बों में रहने वाले रहते हैं, जिन्होंने वही कि भूमि को अपनी कर्मभूमि बना ली है अपना जीवन वहीँ के अनुसार संतुलित कर लिया है, ड्राईवर ने, हां मै आपको उसका नाम बता दूँ, उसका नाम किशोर था, कोई ४६-४७ बरस का होगा वो, उसने हमको वहाँ काफी घुमाया, हमें काफी बढ़िया लगा!

और इसी तरह से ४ दिन गुजर गए! हम सुबह जाते और ५ बजे तक वापिस आ जाते, बाद में खा-पी के सो जाते, येही चलता रहा!

mavali
31-12-2012, 06:40 PM
और फिर एक दिन,

किशोर ने ललित को बताया की वो अपनी बीवी-बच्चों के साथ कही जा रहा है, और कल आ नहीं सकता, इसका मतलब ये था कि २६ दिसम्बर को हमको वहीँ ललित के घर में ही रुकना पड़ेगा, चलो कोई बात नहीं,ऐसा मैंने सोचा, एक दिन घर में ही सही, पूरा आराम करेंगे और इस से अगले दिन के लिए फिर से तैयार हो जायंगे, फिर हम रात को अपना खा-पी के सो गए!

किशोर ने आना नहीं था तो नाश्ता भी नहीं होता, मेरे दोस्त ने सुझाव दिया कि चलो कही आस-पास के ढाबे में ही कुछ खा-पी लेंगे, और ऐसा ही हुआ, हम नाश्ता करके वापिस आये और लंच के लिए थोडा सामान ले आये, १ बजे करीब मेरी नींद लग गयी, मै सो गया, साथ में मेरा मित्र भी, तकरीबन ३ बजे मेरी नींद खुली, मौसम पहले से साफ़ था और आकाश में सूर्य भी दिखाई दे रहे थे, मैंने सोचा कि चलो आस-पास कहीं टहल लिया जाए, ये सोच के मैंने अपने कपडे पहने और बाहर निकल आया,

मैंने , जहां कुछ लकड़ी के टाल, या घर बने थे वहाँ तक तक चलने कि सोची, और मै चल पड़ा, चलते-चलते काफी वक़्त हो गया था यही कोई ४० मिनट के करीब, लेकिन मै चलता रहा, मौसम खुशगवार था, ये भी एक वजह थी.........

mavali
31-12-2012, 06:40 PM
मै मौसम की खुमारी में आगे बढ़ता रहा, इंसानी आबादी कम होने लगी थी, दूर दूर तक बस खुला आसमान ही था, कुछ पेड़ थे, एक दम शांत, और ऊपर से जाती बिजली की मोटी-मोटी तारें, हाई-टेंशन तारें जो की पूरे शहर को बिजली मुहैय्या करती होंगी, कहाँ से आ रही हैं और कहाँ जा रही है कुछ मालूम नहीं पड़ता था, माहौल में शान्ति थी,एक अजीब सी शान्ति, जो आवाज आ रही थी तो वो बस मेरे जूते के नीचे आते हुए कंकडों की आवाज थी, मैंने अपने आस-पास देखा, दूरदराज तक कोई घर नहीं था, बस इक्का-दुक्का लकड़ी की टालें थीं जो कि अब बंद पड़ी थीं, शायद ठण्ड के कारण बंद होंगी...

मै आगे बढ़ता रहा, थोड़ी दूर जाकर मैंने देखा कि एक पेड़ कि नीचे कोई खड़ा है, शायद को बच्चा है, मै उसी ओर बढ़ गया, मैंने देखा कि एक लड़की, जिसकी उम्र यही कोई 18-19 बरस होगी एक पेड़ के नीचे पेड़ के चक्कर लगा रही है, मुझे ये बात अजीब सी लगी, मै और आगे बढ़ा उसके करीब, बच्ची के कपडे बिलकुल गीले थे, पानी अभी तक टपक रहा था, मै समझ गया कि ये कोई मामूली मसला नहीं, रूहानी मसला है, मैंने अपने आपको तैयार किया, और बच्ची के करीब बढ़ा, बच्ची ठिठक के खड़ी हो गयी, मेरी और उसकी आँखें एक दूसरे से मिलीं, मै और वो अपलक एक-दूसरे को देखते रहे, मैंने बच्ची को हाथ से इशारा किया ताकि वो और आगे आये,

"क्या नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा

वो कुछ बुदबुदाई, मैंने फिर से पूछा, "क्या नाम है तुम्हारा?"

वो फिर कुछ बुदबुदाई, मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया, मै और उसके करीब गया और उसके पास आके अपने घुटने मोड़ के बैठ गया,
मैंने फिर पूछा, "अपना नाम बताओ, क्या नाम है?"

इस बार वो कुछ नहीं बोली बस अपलक मेरी आँखों में देखती रही, मैंने फिर दुबारा सवाल किया, "मुझे अपना नाम बताओ?"

वो चुप ही खड़ी रही, कुछ नहीं बोली, हाँ उसकी सांस में घुर्र-घुर्र कि आवाज ज़रूर आई,

फिर अचानक उसने अपने हाथ के इशारे से मुझे कुछ देखने के लिए अपनी ऊँगली का इशारा किया, मैंने खड़े होकर वहाँ देखा, वहाँ एक टिम्बर-फैक्ट्री थी, काफी पुरानी लग रही थी, लेकिन थी काफी लम्बी-चौड़ी, इस से पहले कि मै उस लड़की को देखता उस लड़की ने मेरा उल्टा हाथ पकड़ लिया, मैंने दस्ताने पहने हुए थे, लेकिन उसके हाथ का सर्द एहसास मेरे पूरे बदन में रेंग गया...........

mavali
31-12-2012, 06:41 PM
वो लड़की मुझे अपने साथ चलने के लिए बार-बार मेरे हाथ को खींचती थी, मैं उसको देखा, बड़ी मासूमियत से वो मेरी ओर देख रही थी, मै चल पड़ा उसके साथ, वो मुझे जिस ओर ले जा रही थी वो एक बंद पड़ी टिम्बर-फैक्ट्री सी मालूम पड़ती थी, यही कोई ३०० मीटर दूर होगी, लड़की आगे-आगे और मै पीछे-पीछे, फिर उसने उस फैक्ट्री के पीछे की ओर इशारा किया, और मेरा हाथ थामे चलती रही, मै भी चुप-चाप चलता रहा..

यहाँ काफी अँधेरा था, जगह-जगह छोटे-छोटे गड्ढों में पानी भरा पड़ा था, कीचड हो रही थी, साथ ही साथ हवा में सड़ती हुई लकड़ी की गंध भी आ रही थी, वो लड़की मुझे घसीटे ले जा रही थी, काफी अन्दर जाकर वो मुझे एक कमरेनुमा जगह पे ले आई, ये कमरा कोई बड़ा नहीं था, वहाँ मेज़, और कुछ लकड़ी के फ़ट्टे पड़े थे और बाहर की ओर खुलने वाली एक खिड़की और एक दरवाज़ा भी था, जिसकी चौखट, आधी, वक़्त के साथ टूट चुकी थी........लड़की ने मेरा हाथ छोड़ा और उस दरवाज़े से बाहर निकल पड़ी, मैंने अपने-आप को स्वरक्षा मंत्र से बाँधा और आने वाले क्षण की प्रतीक्षा करने लगा, कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, उस जगह मुर्दानगी सी छाई थी, मैंने आगे पीछे देखा और उस दरवाज़े की तरफ बढ़ा जहां से वो लड़की गयी थी...........मै अभी बढ़ा ही था की वो लड़की अपने साथ एक ३५-३६ साल की औरत का हाथ थामे अन्दर आई, औरत गोरे रंग की, दरम्याने कद की और साधारण सी लग रही थी, उसके हाथ में अखबार की एक कतरन थी, उसने वो कतरन मेरे हाथ में थमा दी, कतरन काफी सीली हुई थी, और काफी मुश्किल से ही उसने अक्षर दिखाई दे रहे थे........

mavali
31-12-2012, 06:42 PM
फिर भी मैंने आँखें खोल के उस कतरन को देखा, उसमे एक औरत और एक बच्ची का फोटो छपा था, नीचे लिखा था 'गुमशुदा की तलाश' और साथ में नीचे की तरफ वहाँ के पुलिस अधिकारी का नाम और कार्यालय का पता व फ़ोन नंबर लिखे थे, मैंने गौर किया की कतरन में जिस औरत और लड़की की तस्वीर है वो मेरे सामने खड़े हैं............एक पल के लिए ठण्ड के उस मौसम में भी मेरे माथे पे पसीने आ गए.............मै अभी भी मामले पूरी तरह से समझा नहीं था, मैंने उस औरत से सवाल किया,

"कौन हो आप और क्या ये आपकी बेटी है?"

उसने कुछ नहीं कहा और हाँ में सर हिला दिया, वो चार आँखें मेरी ओर मेरे चेहरे को देख रही थीं, और मै उस औरत की आँखों में,

"मुझे पूरी बात बताओ, क्या हुआ था?" मैंने सवाल किया,

अब बच्ची ने मेरा हाथ पकड़ा और और मुझे अपने साथ आने को कहा, वो औरत हमारे आगे-आगे चल पड़ी, वो मुझे फैक्ट्री के काफी अन्दर एक खाली जगह पे ले आई, और एक जगह की तरफ इशारा किया, वो कोई ऐसी जगह होगी की एक चारपाई बिछ जाए, फिर उसने मुझे एक फावड़े की तरफ इशारा किया, मै समझ गया, की वो कह रही है की फावड़ा उठाओ और यहाँ खोदो, मैंने वैसा ही किया, मैंने फावड़ा उठाया और वहाँ खोदने लगा, खोदने में काफी मेहनत लग रही थी, काफी झाड-झंखाड़ था वहाँ, करीब एक घंटे के बाद मैंने उस गड्ढे में साढ़े ४ फीट की खुदाई कर दी थी, उन दोनों की नज़रें लगातार गड्ढे पे ही टिकी थी, अचानक की मेरा फावड़ा एक कम्बल जैसी किसी चीज़ से टकराया............

mavali
31-12-2012, 06:42 PM
फावड़े के टकराते ही वो औरत और बच्ची एक दूसरे से लिपट गए, मै भी थोडा घबरा गया.............अब मैंने फावड़ा अलग रख दिया, और हाथों से ही उस कम्बल को खोलने लगा, कम्बल के अन्दर एक और नीले रंग की चादर थी, जो की काफी अकड़ गयी थी, मैंने उसको अपने हाथों से फाड़ा, और अन्दर देखने लगा, अन्दर देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए.................................. अन्दर २ नर-कंकाल थे, काफी पुराने, हाँ उनके बाल काफी लम्बे थे, देखते ही मालूम पड़ता था की ये नर-कंकाल किन्ही महिलाओं के हैं, एक किसी वयस्क औरत का और एक किसी बच्ची का, ये एक दूसरे से बंधे हुए थे एक लोहे की तार से जो की अब जंग खा चुकी थी, कंकाल देखते ही वो औरत और वो लड़की फूट के रो पड़े और कुछ अजीब से शब्द बोलने लगे, वो शब्द शायद उनकी अपनी गाँव की भाषा थी, मै वो शब्द नहीं समझ सका, मैंने उस चादर से उन कंकालों को ढक दिया और गड्ढे से बाहर आ गया, वो औरत और वो बच्ची अभी भी गड्ढे की तरफ ही देख रहे थे, मैंने उनको टोका नहीं और वहीँ खड़ा रहा, वो औरत एक झटके में पलटी और मुझे हाथ से इशारा किया की मै उसके साथ आऊं, मै चल पड़ा और उसी कमरे में आ गया जहां मुझे वो लड़की लायी थी, उस औरत ने वो कतरन मुझे दी और पहली बार मुझसे बोली,

"मेरा नाम गीता है और ये मेरी बेटी कोमल है, मेरे पति वर्ष १९८४, फागुन मॉस में बीमारी के चलते गुजर गए थे, वो इसी फैक्ट्री में लकड़ी काटने का काम करते थे, उनकी मौत के बाद, मालिक ने हम पर तरस खाकर, मुझे अपने घर में साफ़-सफाई की नौकरी पर रख लिया था, और रहने के लिए ये कमरा दे दिया था, सितम्बर १९८४ की बात है, मालिक का बड़ा बेटा अपने दो दोस्तों के साथ दिल्ली से आया था, घूमने, मै उस रोज़ मालिक के घर में काम कर रही थी, अचानक वो रसोई में आया और मेरा हाथ पकड़ लिया, मेरी बेटी दूसरे कमरे में सोयी हुई थी, घर में मालिक नहीं थे, मालकिन भी नहीं थी, मैंने उसको ऐसा करने से मन किया, लेकिन वो नहीं माना, मैंने तब वहाँ रखा चिंता उसके हाथ पर दे मारा, वो बौखला गया और मुझे चांटे मारने लगा, मैंने विरोध किया, चिल्लाने लगी तो उसने मेरा गला पकड लिया और घोंटने लगा, मै अभी भी विरोध कर रही थी, लेकिन उसने मेरा गला नहीं छोड़ा और इसी बीच मेरी बेटी कमरे से उठ के वहाँ आ गयी, उसने उस पर ध्यान नहीं दिया, उसने मेरा गला घोंटना ज़ारी रखा, मेरी मौत हो गयी, जब मेरी बच्ची चिल्लाई तो उसने उसका भी गला दबा दिया"

ये कहते कहते उसकी बेटी उसकी टांगों से चिपक गयी,

मुझे ऐसा की काटो तो खून नहीं.......

mavali
31-12-2012, 06:43 PM
"ऐसा करने के बाद, उसने अपने दोनों दोस्तों को बुलाया और जल्दी-जल्दी हमारी लाश २ बोरों में भरी, गाडी में लादी और इस फैक्ट्री में आ गए, उन्होंने एक चादर और कम्बल में हमारी लाश लपेटी, लोहे के तार से बाँधा, और उस गड्ढे में दबा दिया, जहां तुमने अभी खोदा था" उसने हाथ के इशारे से ये बात मुझे समझाई,

"किसी ने कुछ पूछा नहीं? मालिक ने भी नहीं?" मैंने पूछा

"पूछा, मालिक ने अपने बेटे से पूछा की गीता आई नहीं या फिर जल्दी चली गयी?, बेटे ने कहा की वो आज आई ही नहीं, बात आई गयी हो गयी" गीता बोली,

"और उसका बेटा? उसका क्या हुआ? मैंने सवाल किया,

"वो ४ दिन और ठहरा और फिर वापिस दिल्ली चला गया" गीता ने बड़े सर्द लहजे में ये बात कही,

"और वो गुमशुदा की रिपोर्ट? वो किसने की?" मैंने पूछा,

"मालिक ने, क्यूंकि मजदूरों में ये बात चल निकली थी की आखिर गीता गयी कहाँ? कहीं को गड़बड़ तो नहीं हुई?, मालिक ने फिर पुलिस में गुमशुदा की रपोर्ट कराई, पुलिस ने जितना सम्भव था किया, आखिर कुछ नहीं हुआ, और तब से आज तक हम ऐसे ही भटक रहे हैं" ये कहते हुए गीता की चीत्कार फूट पड़ी,

"अब तुम मुझसे क्या चाहती हो?" मैंने ज़रा जोर देकर ये बात कही,
"तुम हमारे कातिलों को पकद्वाओ, हमें मुक्त करवाओ" उसने एक फरियादी के तौर पे ये कहा,

मैंने उस मासूम बच्ची को देखा, मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था, वो दोनों लाचारी से मेरी तरफ दख रहीं थीं................

mavali
31-12-2012, 06:44 PM
"ठीक है, मै पूरी कोशिश करूँगा" मैंने कहा
"मुझे विश्वाश है" गीता बोली
मै उसी पल वहाँ से निकला, वो कतरन मेरे पास ही थी, ललित के घर आते ही मैंने ये वाक़या उसको सुनाया, वो भी हैरत में पड़ गया, और बाकी की बात किशोर ने तस्दीक कर दी, हमने अगली सुबह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मिलने की ठानी और रात को सुबह का कार्यक्रम बना कर सो गए,

सुबह कोई १० बजे हम वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मिलने पहुंचे, अपना परिचय दिया, उनको भी हैरत हुई, लेकिन वो उस कतरन को देख कर जांच के लिए राजी हो गए, अगले दिन पुलिस ने उस फैक्ट्री में से वो नर-कंकाल जब्त कर लिए और जांच के लिए भेज दिया गया, पुलिस ने मालिक की बीवी से उसके बेटे का पता लिया और दिल्ली में बलजीत नगर से पकड़ लिया, उसकी निशानदेही पर उसके दोनों दोस्त भी धर लिए गए, २ दिनों के बाद वो हमारे सामने खड़ा था, पहले ना-नुकुर करने के बाद जब उसको सारे सुबूत दिखाए गए तो उसने अपना गुनाह कुबूल कर लिया और पुलिस ने उसको उसके दोस्तों के साथ जेल भेज दिया, जहां आज तक वो अपनी सजा काट रहे हैं, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मुझे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हमको उसी रात अपने यहाँ भोज पर बुलाया, काफी बातें हुई, वो आज तक मेरे साथ संपर्क में हैं,

हाँ, मै बाद में उसी फैक्ट्री में गया, जहां गीता और उसकी बेटी कोमल रह रहे थे, मैंने उनको आवाज दी, दोनों दौड़े चले आये!! वो काफी खुश थे! मैंने उनको विश्वाश दिलाया की मै आने वाली अमावस की रात्रि को उनको मुक्त कर दूंगा ताकि उनको शांति मिले! वो बच्ची मेरे से लिपट गयी! गीता बहुत खुश थी!! बहुत खुश!

मैंने उनसे विदा ली, तभी मेरे पीछे से आवाज आई, "तुमने अपना नाम नहीं बताया अभी तक!" मैंने धीरे से अपना नाम लिया और पीछे मुडके देखा.........

वहाँ कोई नहीं था.