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View Full Version : शिक्षा और व्यवसाय {Education & career }


bindujain
02-01-2013, 05:03 PM
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02-01-2013, 05:19 PM
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03-01-2013, 05:34 AM
दीया मिर्जा: संसद भंग करने वाले

http://navbharattimes.indiatimes.com/thumb/msid-15995851,width-300,resizemode-4/diya-mirza-jpg.jpg

ये नारा देने वाले, संसद भंग करने वाले सांसदों का संसद में प्रवेश करना बंद होना चाहिए। वे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं!

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05-01-2013, 09:22 AM
काम में खोज लो सच्ची खुशी

आपने कुछ ऎसे लोगों को देखा होगा, जो रोज के अपने एक ही शेड्यूल से परेशान जाते हैं। उनका मन काम में नहीं लगता और बाद में काम के मारे दिखाई पड़ते हैं। वे यहां तक सोचने लग जाते हैं कि ये कॅरियर न चुना होता, तो अच्छा होता। लेकिन जब आप प्रोफेशनल लाइफ से जुड़ ही गए हैं, तो आपको काम को पूरा तो करना पड़ेगा ही। तो क्यों न कुछ ऎसा करें कि काम भी होता रहे और उस काम का आनन्द भी लें। कॅरियर में संघर्ष हमेशा चलता रहता है, लेकिन उससे पार पाना आपके अपने हाथ में होता है। आप किसी चीज के प्रति जितना नकारात्मक रवैया रखते हैं, वे चीजें आपको उतनी ही बुरी लगने लगती है। इसलिए सफल होना है तो सकारात्मक विचारों के साथ आगे बढिए।

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05-01-2013, 10:58 AM
प्रथम लड़कियों का इंटरनेट बैण्ड
दिल्ली की सागरिका देब अभी तक के पहले इंटरनेट इंटरनेशनल बैण्ड, वाइल्ड ब्लॉसम्स का हिस्सा है। बैण्ड का उद्भव तब हुआ जब सागरिका ने इंटरनेट पर एक बैण्ड आरंभ करने के कैरोलिन सिउ के प्रस्ताव को हां कहने का निर्णय किया। लॉस एंजेल्स से कैरोलिन सेउ (हांगकांग) और सागरिका दोनों ने एक गायन प्रतियोगिता के लिए आॅडिशन दिया था और उनका चयन नहीं हुआ। तब इन लड़कियों के साथ फिलीपींस से लवलिन ओनोजॉ (नाइजीरिया) और न्यूजीलैण्ड से एलिशिया रश शामिल हो गईं। इस ग्र्रुप में अब पूरे विश्वभर से 11 सदस्यों है और ये इंटरनेट पर धुनें और संगीत सांझा करते हैं। सागरिका गायकों में से एक है और नए सदस्यों को भर्ती करने का काम भी करती है। बैण्ड अपना संगीत, तस्वीरें और वीडियो मकाऊ से गेविन लैम द्वारा डिजाइन किए एक सामान्य डाटाबेस फाइल सिस्टम पर सांझा करता है। ग्र्रुप ने पहला गाना, क्रिसमस कैरोल साइलेंट नाइट का अपना संस्करण दिसंबर 25, 2010 को जारी किया।
(साभार-लिम्का बुक आफ रिकॉड्स)

bindujain
05-01-2013, 10:59 AM
चुटकी में हल किया न्यूटन की अबूझ पहेली

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जर्मनी में भारतीय मूल के एक छात्र ने दुनिया की गणित में 350 से अधिक वर्षो से अबूझ बनी पहेली को हल किया है। 16 वर्षीय शौर्य रे प्रख्यात गणितज्ञ और भौतिकविद् सर आइजक न्यूटन के बने सर्वाधिक जटिल गणितीय सवाल को सुलझा लिया है। इस सवाल को सुलझाने के लिए भौतिकशास्त्री अभी तक कंप्यूटर का प्रयोग करते थे। समाचार पत्र डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय किशोर के इस समाधान का अर्थ है कि वैज्ञानिक अब यह पता लगा सकते हैं कि किसी गेंद को फेंके जाने पर वह किस रास्ते से गुजरेगी और वह किस प्रकार दीवार से टकराएगी और किस तरह लौटेगी।
शौर्य के मुताबिक, ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसरों ने कहा था कि न्यूटन के इस सवाल को कोई हल नहीं कर सकता। इसके बाद मैंने खुद से पूछा, मैं इसे क्यों नहीं हल कर सकता। मुझे विश्वास नहीं था कि इसका कोई हल भी होगा। शौर्य के पिता पेशे से इंजीनियर हैं जो चार साल पहले कोलकाता से जर्मनी चले गए थे। शौर्य ने छह साल की उम्र में ही गणित के कठिन सवालों को हल करना शुरू कर दिया था। किशोरावस्था में उसके पिता उसे अंकगणित के सवाल हल करने के लिए दिया करते थे। बाद में वह जर्मनी गया और वहां उसने जर्मन भाषा सीखी।

bindujain
05-01-2013, 11:00 AM
सपने रंग बिरंगे- कितने सच्चे, कितने अच्छे
सपनों की दुनिया अनूठी होती है। सारे संसार में ऐसा कोई व्यक्ति शायद ही हो जिसने कभी कोई सपना न देखा हो। उम्र, वक्त, स्थान, परिवेश तथा देश के अनुसार सपने भी रंग बदलते हैं। बचपन, जवानी और वृद्ध अवस्था में अनुभूत सपनों में अंतर होता है। नन्हे बच्चों के स्वप्न प्राय: छोटी-मोटी बातों यानी खिलौनों आदि से जुड़े रहते हैं। कई बार शिशु पालने में स्वयं को देखता है। किशोरावस्था में व्यक्ति के सपने खेलकूद, मस्ती, छीना-झपटी से जुड़े रहते हैं। युवा मानस रोमांटिक सपने देखता है। प्राकृतिक दृश्यों में आनंद अनुभव करता है। अधेड़ व्यक्ति अपनी नौकरी, गृहस्थ जीवन, बच्चों की देखरेख तथा भावी चिंताओं से जुड़े स्वप्न देखता है। वृद्ध लोग जीवन में जिन अभावों की पूर्ति के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे तथा परिवेश से लड़ते-झगड़ते रहे। उसी के अनुरूप स्वप्न-दर्शन करता है।जीवन के अंतिम चरण की ओर बढ़ता व्यक्ति धर्म स्थानों, मंदिर, गिरिजाघर आदि के समीप मंडराने के स्वप्न देखता है। कई बार गहरी नींद में यमराज का स्वप्न देख बौखला उठता है।

बुरे सपने का अच्छा फल
माना जाता है कि अच्छे सपने प्राय: शुभ फलदायक नहीं होते, इसी प्रकार बुरे सपने सदा अशुभ नहीं होते। यह धारणा गलत नहीं है। जैसे स्वप्न में अपनी मृत्यु देखना बुरा लगता है, परंतु यह आयु की वृद्धि तथा रोग से मुक्ति को दर्शाता है।इसी तरह किसी अपराध के लिए पुलिस द्वारा गोली का शिकार होना उन्नति का सूचक है।
स्वयं को फांसी पर झूलते देखना तथा लोगों को विलाप करते देखना भाग्य में वृद्धि का सूचक है।
सांप द्वारा डंक का शिकार होना धन प्राप्ति का सूचक है।

अच्छे सपनों का बुरा फल
इसके विपरीत अपनी शादी का दृश्य देखना या घोड़ी पर सवार होकर बारात देखना एक बड़ी आपत्ति, भय या मृत्यु का सूचक है।स्वयं को सरकार द्वारा सम्मानित होते प्रसन्न भाव में देखना पराजय का संकेत है तथा धन हानि को दर्शाता है। कोई युवती यदि हाथों में मेहंदी देखती है तो वह वैधव्य या विवाह-विच्छेद का दुख भोगने वाली होती है।
यदि कोई गर्भवती स्वप्न में पुत्र जन्म का अनुभव करती है, पुत्र जन्म का स्वप्न देखती है, तो उसे अपने गर्भ की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना चाहिए। ऐसे स्वप्न गर्भपात के सूचक हैं।

bindujain
05-01-2013, 11:01 AM
हजार तक के पहाड़े
पहाड़े हर कोई लिखता है। रोजमर्रा में खूब गुणा-भाग भी करता है लेकिन एक हजार तक के पहाड़े लिखने की हिम्मत अब तक किसी ने नहीं जुटाई थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के 18 साल के छात्र सौरभ माहेश्वरी ने यह कारनामा कर दिखाया है। रविवार को उसने केनेडी आॅडिटोरियम में कागज के रोल पर 4 घंटे 52 मिनट 22 सेकेंड में एक हजार तक के पहाड़े लिख डाले। यह काम उसने तय से कम वक्त में किया। एएमयू में डिप्लोमा इन इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष के छात्र सौरभ ने सुबह 10 बजे पहाड़े लिखने की शुरुआत की थी। लिम्का बुक आॅफ रिकॉर्ड्स की टीम से सौरभ ने साढ़े पांच घंटे में एक हजार तक के पहाड़े लिखने का वादा किया था। इससे पहले पहाड़े लिखने का रिकॉर्ड बनाने की कोशिश नहीं की थी, लेकिन जब वह पहाड़े लिखने लगा तो वादे से कम वक्त में पहाड़े लिख दिए। इस बीच सौरभ ने दो ब्रेक लिए। एक ब्रेक 10 मिनट का था और दूसरा 11 मिनट का। लिम्का बुक की टीम ने हर दो घंटे बाद ब्रेक की अनुमति दी थी, लेकिन उसने पहला ब्रेक ढाई घंटे बाद लिया। दोपहर 3.25 बजे तक सौरभ ने एक हजार तक के पहाड़े लिख डाले। सौरभ ने बताया कि इतने पहाड़े लिखना ज्यादा मुश्किल नहीं था।
कैमरे में हुआ रिकॉर्ड
सौरभ पर एक कैमरे की नजर थी। कैमरे में उसकी हर गतिविधि रिकॉर्ड कराई गई थी, ताकि वह लिम्का बुक आॅफ रिकॉर्ड्स को भेज सके।

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05-01-2013, 11:02 AM
ब्रिटेन के बच्चे पढ़ने में कमजोर
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि ब्रिटेन में पांच साल तक का 10 में से हर चौथा लड़का और हर पांचवीं लड़की सांता क्लाज के लिए अपनी खरीदारी की सूची या पत्र नहीं लिख पाते। अध्ययन में यह भी पाया गया कि सात ब्रिटिश लड़कों में से एक से ज्यादा पांच साल की उम्र तक अपना नाम नहीं लिख पाते। शोधकर्ताओं ने पाया कि लड़कियों के मुकाबले लड़कों की स्कूल जाने से पहले मौलिक लेखन में नाकाम रहने की संभावना दो गुना ज्यादा होती है। शिक्षा विभाग के आंकड़े दिखाते हैं कि 10 में से चौथा लड़का और पांचवीं लड़की सांता के लिए पत्र या खरीदारी सूची तक नहीं लिख सकती। आंकड़ों के अनुसार, आठ प्रतिशत लड़के 10 तक गिनती नहीं कर पाते जबकि ऐसा नहीं कर पाने वाली लड़कियां केवल पांच प्रतिशत हैं। बड़ी संख्या में लड़के अपनी शिक्षा की अच्छी शुरुआत करने में नाकाम हैं।

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05-01-2013, 11:02 AM
एक स्कूल जिसकी फीस है 21 लाख
अमेरिका के न्यूयॉर्क में ऐसा स्कूल खुला है, जहां एक बच्चे की सालाना पढ़ाई का सालाना खर्च 40 हजार डॉलर यानी लगभग 21 लाख रुपए है। इसे दुनिया के सबसे महंगे स्कूलों में माना जा रहा है।कुछ वर्षों में इस स्कूल की शाखाएं बीजिंग, लंदन और सॉओ पॉलो में खोली जाएगी और बाकी शहरों को बाद में जोड़ा जाएगा। न्यूयॉर्क के इस स्कूल में कई मशहूर हस्तियों के बच्चे दाखिला ले चुके हैं जिनमें हॉलीवुड अभिनेता टॉम क्रूज की बेटी सिरी भी शामिल है। इस स्कूल का नाम है एवेन्यूज- द वर्ल्ड स्कूल, जिसके विज्ञापन का दावा है कि इस स्कूल में आपको सब कुछ विश्व का सबसे बेहतरीन मिलेगा। स्कूल की खूबियां- भले ही अमेरिका में पिछले दस साल में निजी स्कूलों में शिक्षा हासिल करने वालों की संख्या में 10 प्रतिशत की कमी आई हो, लेकिन एवेन्यूज स्कूल के सह संस्थापक क्रिस विटल कहते हैं कि ये बिजनस मॉडल इस स्थिति को बदल देगा। न्यूयॉर्क शहर के इतिहास में ये सबसे महंगा निजी स्कूल है। एवेन्यूज स्कूल के प्रबंधन ने इस स्कूल के लिए सात करोड 50 लाख डॉलर यानी लगभग तीन अरब 92 करोड़ रुपए जुटाए है। इस स्कूल के लिए पैसा देने वालों के 600 ब चे इस स्कूल में दाखिला ले चुके हैं। ये स्कूल न्यूयॉर्क के बाहरी इलाके में एक गोदाम को बदलकर बनाया गया है। एलिट स्कूल- इस स्कूल में तीन साल की उम्र में ब च्चों की दो क्लास होंगी। इनमें एक क्लास अंग्रेजी की होगी, दूसरी भाषा वो चुन सकते हैं वो चाहे स्पैनिश हो या मैंडरिन हो।

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05-01-2013, 11:03 AM
अब कंप्यूटर चलेगा इशारों से
आधुनिक कंप्यूटर की मदद से कंकाल तंत्र की हर बारीकी देखी जा सकती है। जर्मनी के सारब्रुकेन शहर में रिसर्चर ऐसा प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं जो बड़े भारी आंकड़ों को छोटे कंप्यूटर में डाल सकता है। जर्मनी के सेंटर फॉर आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के वोल्फगांग वाल्स्टर जर्मनी के जाने माने कंप्यूटर विज्ञानी हैं। सारब्रुकेन यूनिवर्सिटी और दूसरी एजेंसियों के साथ मिल कर वह भविष्य का कंप्यूटर बना रहे हैं। इससे खरीदारी जैसे रोजमर्रा के काम आसान हो जाएंगे। ये लोग सुपर मार्केट मॉडल पर काम कर रहे हैं। यहां की चीजों को कंप्यूटर से जोड़ दिया गया है। चाहे वाइन की बोतल हो या कुछ और यहां अंगुली रखते ही प्रोडक्ट के बारे में सारी जानकारी मिल जाएगी। और एक ट्रॉली भी है, जो ग्राहकों को मनचाहे प्रोडक्ट तक पहुंचा सकती है। वाल्स्टर का लक्ष्य है कि कंप्यूटर लोगों से बात करे, जरूरी है कि यह ऐसा हो, जिसके साथ लोग खुद को आसानी से ढाल सकें। हमें कीपैड और माउस वाले कंप्यूटर नहीं चाहिए, जैसे कि पहले था। हमारी कोशिश है कि लोगों और कंप्यूटर के बीच संवाद हो सके।
कल पर नजर- काम के लिए निर्देश देते ही नंबर भी डायल हो सकते हैं। लेकिन इससे भी आगे जाने का इरादा है। एक्सपर्ट देख रहे हैं कि कैसे आंखों ही आंखों में कार चल जाए। लक्ष्य ऐसा है कि भविष्य के कंप्यूटर सोच भी सकेंगे और आपकी बात समझ भी सकेंगे। प्रयोगशाला में ऐसी कार पर काम चल रहा है, जो आंखों और आवाज से चल सके। क्वांटम कंप्यूटर पर तो रिसर्चर एक अणु पर भी काम कर सकते हैं। भविष्य के कंप्यूटर और तेज होंगे। लेकिन उनकी बिजली की खपत भी कम करनी होगी। सारब्रुकेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रांक विलहेम माउख का कहना है, हम कंप्यूटर पर एक साथ अलग अलग जानकारी फीड कर सकते हैं। लेकिन जैसे हाथ से उछला सिक्का किस करवट गिरेगा, यह तय नहीं किया जा सकता, वैसे ही कंप्यूटर कौन सी जानकारी कहां डालेगा, यह तय करना मुश्किल है। सामान्य कंप्यूटर की तुलना में क्वांटम कंप्यूटर कई गुना तेजी से काम करता है। भविष्य का डीएनए कंप्यूटर बायो मॉलिक्यूल के साथ काम करता है। और इसके लिए एक कोशिका में लगने वाली ऊर्जा से काम चल जाता है।कंप्यूटर चाहे कितने भी बुद्धिमान क्यों न हो जाएं, वे इंसान की जगह नहीं ले सकते हैं।

bindujain
05-01-2013, 11:15 AM
नेताओं ने शिक्षा को धंधा बना लिया है : शिवराज

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मुख्यमंत्री ने पर्यटन के क्षेत्र में युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से भारत परिक्रमा पोर्टल का शुभारंभ किया

भोपाल । नेताओं ने शिक्षा को धंधा बना लिया है। कई राज्य तो ऐसे हैं जहां उनके कॉलेज हैं। ये बातें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को नेशनल युवा को ऑपरेटिव सोसायटी के युवा एक्सपो-2013 के शुभारंभ अवसर पर कही। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज चलाने वाले नेताओं का उद्देश्य शिक्षा देना नहीं है। यह लोग टेबल के ऊपर और नीचे से पैसा लेते हैं।

शिवराज ने आगे कहा कि उन्होंने प्रदेश में पांच नए मेडिकल कॉलेज खोलने का निर्णय लिया है। 16 जनवरी को होने वाली युवा पंचायत का जिक्र करते हुए चौहान ने कहा कि वे बाकी घोषणाएं पंचायत में करेंगे। नैतिक शिक्षा की पैरवी करते हुए सीएम ने कहा कि मैं धर्म निरपेक्षता को नहीं मानता। हमारे देश में सर्व धर्म समभाव की परंपरा रही है और इसकी शिक्षा दी जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने पर्यटन के क्षेत्र में युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से भारत परिक्रमा पोर्टल का शुभारंभ किया। पंचायतें बुलाकर सुझाएंगे समस्याएं मुख्यमंत्री निवास में होने वाली पंचायतों के बारे में शिवराज ने कहा कि कई बार होता ऐसा होता है कि जिसने गेहूं की बालियां नहीं देखीं वह कृषि नीति बनाता है। इसी के चलते हमने फैसला लिया है कि जनता से पूछ कर ही उनकी समस्याओं का निराकरण करें और नीतियां बनाई जाएं। इसीलिए हर वर्ग की पंचायतें बुलाई जा रही हैं।

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05-01-2013, 11:21 AM
विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या 256 प्रतिशत बढ़ी

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सरकार ने बताया कि आईआईएम बेंगलूर की एक रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में 256 प्रतिशत बढ़ी.
यह आंकड़ा 2000 से 2009 के दौरान का है.
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर ने अविनाश पांडे के सवालों के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी.
थरूर ने बताया कि भारतीय प्रबंध संस्थान, बेंगलूर की एक रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2009 के दौरान विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों के ‘प्रवाह’ में 256 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
उन्होंने कहा कि इसका कारण व्यक्तिगत हितों और प्राथमिकताओं के साथ-साथ देश में तुलनात्मक अवसरों का उपलब्ध नहीं होना है.
थरूर ने थामस संगमा के एक अन्य सवाल के जवाब में बताया कि मेघालय सरकार से मिली सूचना के अनुसार लोअर प्राइमरी सरकारी स्कूलों में सहायक शिक्षकों की भर्ती के संबंध में सीबीआई ने एक जांच की थी.
राज्य सरकार ने सीबीआई रिपोर्ट को गुवाहाटी उच्च न्यायालय की शिलांग पीठ में चुनौती दी थी.
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार उम्मीदवारों के चयन की वैधता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार ने 12 अक्टूबर 2012 को एक उच्चस्तरीय जांच समिति अधिसूचित की है.

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05-01-2013, 11:22 AM
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bindujain
05-01-2013, 11:24 AM
सोनिया को 71 लाख का पैकेज,
ट्वीटर में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर करेंगी काम
http://www.samaylive.com/pics/article/sonia256__1715437678.jpg


भीलवाड़ा की एक लड़की को 71 लाख रुपए का पैकेज ऑफर किया गया है. सोनिया ट्वीटर में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करेंगी.
भीलवाड़ा की प्रतिभावान बेटी सोनिया गोयल को एक सोशल नेटवर्किग साइट ने सालाना 71 लाख रुपए (1 लाख 10 हजार यूरो) का पैकेज ऑफर किया है.

सोनिया सोशल नेटवर्किग साइट ट्वीटर में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करेंगी. बचपन से ही मेधावी रही आरके कॉलोनी की निवासी सोनिया को जैसे ही कंपनी से यह सूचना मिली तो वह खुशी से उछल पड़ी.

फिलहाल सोनिया आईआईटी दिल्ली में कम्प्यूटर साइंस में बी-टेक फाइनल इयर में पढ़ रही है. उसे पढ़ाई के दौरान ही कैंपस प्लेसमेंट में ट्वीटर में नौकरी का ऑफर मिला.

सोनिया अगले वर्ष अक्टूबर अमरीका में सेन फ्रांसिस्को स्थित कार्यालय में नौकरी ज्वॉइन करेगी.

दूसरी तरफ सोनिया इस ऑफर से बेहद खुश है. उसने बताया कि उनकी बड़ी बहन सपना ने भी आईआईएम कोजिकोड से एमबीए किया है.

फिलहाल सोनिया बेंगलूरू के एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में र्कायरत हैं. तो उनकी छोटी बहन दीपिका लखनऊ की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से विधि की पढ़ाई कर रही है.

बेटियों की इस उपलब्घि के लिए उनके पिता आर के गोयल और मां अनुराधा गोयल उत्साहित हैं. सोनिया अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को देती हैं. सोनिया ने दसवीं 94 और 12 वीं 90 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की है.

bindujain
06-01-2013, 05:22 AM
सीएसआर के इंडिपेंडेंस स्ट्रीम के रूप में उभरे

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नए कम्पनी बिल ने कम्पनियों के लिए कॉपरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी सीएसआर को अनिवार्य बना दिया है। इसके तहत कम्पनियों को नेट प्रॉफिट का नेट प्रॉफिट का 2 फीसदी सोशल वेलफेयर पर खर्च करना होगा। इससे सीएसआर के इंडिपेंडेंट स्ट्रीम के रूप में उभरने की उम्मीद है।

कुछ कम्पनियां सीएसआर में ज्यादा इंडिपेंडेंट प्रोफेशनल लोगों को शामिल करने के लिए मौजूदा प्रोग्राम को रिव्यू कर रही हैं। इससे कॉम्पिटिटिव सैलरी, जॉब क्रिएशन और टॉप पर ज्यादा ताकतवर प्रोफेशनल की जरूरत पैदा होगी। इस अमेंडमेंट से इंडिया में सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी सेक्टर को ज्यादा कॉपरेट अटेंशन अट्रैक्ट करने में मदद मिलेगी। इससे फाइनैन्शल और ह्यूमन कैपिटल में कैपिटल में ज्यादा इन्वेस्टमेंट होगा।

अगर शुरूआत में टॉप पर थोडी हलचल देखने को मिलती है, तो भी आखिकार इससे कॉपरेट्स में सीएसआर की बडी टीम बनेगी। ब्रांड स्ट्रैटिजी के साथ सीएसआर को अजस्ट करने के पिरामिट के टॉप पर ज्यादा जॉब्स क्रिएट होंगे। अगर कम्पनी को मौजूदा प्रोग्राम को बढाने की जरूत महसूस होती है, तो वह और प्रोफेशनल्स हायर करेगी।

जो कम्पनियां ऎवरेज नेट प्रॉफिट का 2 फीसदी सीएसआर पर खर्च नहीं कर पाएंगी, उन्हें इसकी वजह बतानी होगी। उन पर कार्रवाई की जा सकती है। पेनल्टी भी लगाई जा सकती है। अभी ज्यादातर कम्पनियो में सीएसआर ऎक्टिविटीज दूसरे मैनेटमेंट एरिया मसलन-एचआर, मार्केटिंग और कॉपरेट कम्युनिकेशन का हिस्सा हैं। कुछ कम्पनियां कम्युनिटी के साथ मिलकर इसके लिए काम कर रही हैं। वहीं, कुछ इसे सिर्फ टैक्स चुकाने की तरह कानूनी खानापूर्ति मानती हैं। हालांकि, कुछ ऎसी भी कम्पनियां हैं, जिनसे बिजनेस से सीएसआर गहरा जुडा हुआ है।

bindujain
06-01-2013, 05:24 AM
नया साल का खुमार और नौकरियों की बहार

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नया साल नई नौकरियों के लिए बडी सौगात लेकर आया है। सूत्रों के अनुसार नए साल में कंपनियां 10 लाख से अधिक नियुक्तियां कर सकती हैं। साथ ही इस साल वेतन में 10 से 15 फीसदी तक की बढोतरी की संभावना नजर आ रही है। मानव संसाधन सलाहकारों के अनुमान के मुताबिक, 2013 में नई नौकरियों के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे।

नियुक्ति को लेकर कंपनियों का रूझान पिछले साल के मुकाबले सकारात्मक और बेहतर रहेगा। माना जा रहा है कि नए साल में अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं मंदी के दौर से बहार निकल आएंगी, जिससे घरेलू अंतरराष्ट्रीय बाजार में नौकरियों के अधिक अवसर बनेंगे।

उद्योग जगत के अनुमान के मुताबिक 2012 में आर्थिक अनिश्चित के बावजूद करीब 7 लाख रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए। नए साल में में यह आंकडा कम से कम 5-6 लाख से लेकर से लेकर 10 लाख से अधिक नई नौकरियों के अवसर बनेंगे। आर्थिक अस्थिरता के साथ-साथ कई अन्य कारणों से 2012 ना तो नियोक्ता के लिए अच्छा रहा, ना ही नौकरी तलाश रहे लोगों के लिए अच्छा साबित हुआ।

वैश्चिक आर्थिक मंदी के चलते 2012 में बनी रही स्थिरता के बाद इस साल भारतीय रोजगार बाजार का परिदृश्य मध्यम गति से रफ्तार पकडेगा। हालांकि, अन्य देशों के मुकाबले भारत की स्थिति नियुक्तियों के मामले में बेहतर रहेगी। खचोंü में कटौती की धारण और आर्थिक परिदृश्य के चलते इस साल अधिकांश सेक्टरों में वेतन वृद्धि प्रदर्शन के हिसाब से 10 से 15 फीसदी तक हो सकती है।

bindujain
06-01-2013, 05:32 AM
एमबीए में कòरियर के लिए बेस्ट ऑप्शन

http://www.aapkisaheli.com/article_image/mba.jpg

फाइनैंस एमबीए करना सही विकल्प हो सकता है। फाइनैंस में एमबीए करना सही ऑप्शन हो सकता है। पर यह भी सच है कि इसकी पढाई करने वाले स्टूडैन्टस को अमूमन किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट जैसे अह्म टॉपिक्स की जानकारी कम ही होती है। जबकि मार्केट टें्रड और मांग को देखते हुए इन्हें जानना भी काफी जरूरी है। सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए दरअसल एमबीए प्रोग्राम की फिलोसफी के ही खिलाफ जाते हैं, उदाहरण के लिए फाइनैंस में एमबीए को लें। इसे करने वाले छात्र को किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट आदि की जानकारी कम होती है। इसके बावजूद कंपनियां अभी भी वित्त में एमबीए कोर्स किए हुए लोगों को नियुक्त करती हैं। यह साबित करता है कि एंप्लायर्स किसी खास टॉपिक की समझवाले एंप्लाई की जगह वास्ट नॉलेज वाले लोगों को रखना पसंद करते हैं। ऎसे में आज सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए कार्यक्रमों से फिलहाल बचा जाए तो बेहतर है, क्योंकि ऎसे प्रोग्राम अमूमन किसी मैनेजमेंट प्रोग्राम की मूल भावना का उल्लंघन करते हैं।

bindujain
06-01-2013, 08:09 AM
नकारात्मक सोच से ऐसे बचें

सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही रहता है, परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा व्यक्ति कई बार अवसाद में भी चला जाता है।

ऐसी स्थिति से बाहर आने में काफी लंबा समय भी लग सकता है। नकारात्मकता से आखिर कैसे बचे? क्योंकि प्रोफेशनल वर्ल्ड में हमें तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है। साथ ही अपने आपको प्रतिस्पर्धा के इस युग में आगे बनाए रखने के लिए भी तरह-तरह के जतन करना पड़ते हैं। ऐसे में हम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखने के लिए स्वयं ही प्रयत्न कर सकते हैं।

परिस्थितियों को पहचानें
अक्सर हमारे में मन में कोई भी आवश्यक कार्य या कोई बिजनेस मीटिंग के पूर्व नकारात्मक विचार आते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो? अगर मीटिंग सफल नहीं हुई तब? मेरा फर्स्ट इम्प्रेशन गलत पड़ गया तो फिर क्या होगा? इस प्रकार के प्रश्न मन में आते जरूर हैं। इनसे पीछा छुड़ाने के लिए इन बातों का अध्ययन करें कि आखिर ये प्रश्न कौन-सी परिस्थितियों में उपजते हैं।

इन परिस्थितियों में संभलना सीखें
जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे सही तरीके से सामना करना सीखें। इस बात की तरफ ध्यान दें कि इन परिस्थितियों के दौरान अब आप पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं देंगे और इस दौरान संयमित होकर स्वयं के सफल होने की ही कामना स्वयं से करेंगे।

स्वयं से तर्क करना सीखें
नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें।

परिणाम आप पर निर्भर करते हैं
अगर आपने ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब न केवल अच्छे विचार आएँगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएँगे। यह स्थिति आते ही आपके कार्यों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना आरंभ हो जाएगा। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आपमें स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा।

सकारात्मकता के कारण ही कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को आगे बढ़ने का मौका देती हैं। यही नहीं, कंपनियाँ अब इस बात को पहले इंटरव्यू में ही जान लेती हैं कि आने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। क्या वह सकारात्मकता में विश्वास रखता है कि नहीं? वह नकारात्मक परिस्थितियों में किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है? क्या वह केवल दिखावे के लिए सकारात्मकता का चोला ओढ़े हुए है? कोई भी कंपनी ऐसा कर्मचारी नहीं रखना चाहती, जिसकी नकारात्मक विचारधारा हो। इस कारण थिंक पॉजीटिव...एक्ट पॉजीटिव।

bindujain
06-01-2013, 08:10 AM
अपने आप से समझौता न करें

अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?

दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।

* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।

* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।

लक्ष्य की निकटता आपको *और *अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।

* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।

असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।

bindujain
06-01-2013, 08:11 AM
परीक्षा से डर कैसा

हलो दोस्तो, इन दिनों लगभग आप सभी परीक्षा में व्यस्त होंगे या इसकी तैयारियाँ कर रहे होंगे। परीक्षा के दिनों में टेलीविजन के सीरियल देखने का मन होता है। इसी बीच होली भी आई और जिन स्टुडेंट्*स का रंगों से खेलने का मन हुआ, उन्होंने खूब रंग और गुलाल खेला होगा।

कुछ विद्यार्थियों को परीक्षा का डर ज्यादा होता है तो वे पूरे समय पढ़ाई में ही लगे रहते हैं। परीक्षा के दिनों में पढ़ाई को गंभीरता से लेना ठीक है पर परीक्षा तनाव नहीं बनना चाहिए। जो स्टूडेंट्स परीक्षा के दिनों में तरोताजा रहते हैं और अपनी तैयारी पर विश्वास रखते हैं वे अच्छा स्कोर कर जाते हैं। परीक्षा का ज्यादा टेंशन होने पर परीक्षा हॉल में भी चीजों के भूल जाने का डर रहता है। इसलिए ज्यादा अच्छा तो यह है कि परीक्षा को आने दो और अपनी तैयारी पूरी रखो।

जितनी भी तैयारी करें आत्मविश्वास से करें। कुछ कठिन होने के कारण छूट भी रहा हो तो उसमें अपनी मेहनत जाया न करें। क्योंकि इस तरह ऐसा भी हो सकता है कि आप 10 नंबरों के लिए शेष 90 नंबरों से खिलवाड़ कर रहे हों। ऐसी स्थिति में आपको जो मैटर ईजी लगे उसे और अच्छे से तैयार करें, परीक्षा में उन प्रश्नों के आने पर आप उसे किस तरह हल करें, उसका प्रस्तुतीकरण कैसा हो। इस पर ध्यान दें। तो काफी हद तक संभावना है कि कोई कठिन प्रश्न आने पर आपको छोड़ना भी पड़े तो यह अतिरिक्त तैयारी उसे काफी हद तक कवर कर लेगी।

ठीक है ना दोस्तो वैसे भी थोड़ी देर के लिए सकारात्मक होकर सोच लें कि मैरिट में आने वाले छात्रों को भी 100 में से 100 मार्क्स तो आते नहीं हैं। अत: एकदम परफैक्ट होने के चक्कर में ऐसा न हो कि जो हमें आता हो वही न कर पाएँ। आशा करता हूँ इन बातों को ध्यान रखते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ पेपर देने जाएँगे और बढ़िया करेंगे। विश यू ऑल द बेस्ट।

bindujain
07-01-2013, 08:01 AM
शिक्षा ऎसी हो, जो सुसंस्कार दे
दिल्ली में गैंग रेप की घटना से यह सिद्ध हुआ है कि जितना नीचे मनुष्य गिर सकता है, उतना नीचे पशु भी नहीं गिर सकता। इस पर आक्रोश और दु:ख स्वाभाविक है। इन दिनों कानून और व्यवस्था संबंधी बहुत से सुझाव दिए जा रहे हैं। उन पर गंभीरता से विचार करके बिना विलंब किए क्रियान्वित करना प्रशासन और सरकार का प्राथमिक दायित्व है। आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में सरकार आधे मन से काम नहीं करेगी और ऎसे उपाय बरतेगी कि उसका परिणाम व्यवहार में दिखाई दे सके।


गैंग रेप की घटना हो या आतंकवाद की अथवा भ्रष्टाचार की, इन सबके समाधान का कानून और प्रशासन के अतिरिक्त एक अन्य पक्ष भी है। वह पक्ष सांस्कृतिक है। मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने का कार्य शिक्षा का है। विचार करना चाहिए कि क्या हमारी शिक्षा यह कार्य पूरी ईमानदारी से कर रही है या कि वह मनुष्य को केवल पैसा कमाने वाली मशीन बनाने भर का ही कार्य कर रही है। गैंग रेप की घटना कानून और व्यवस्था की कमी के कारण तो घटित होती ही है, किंतु इसके अतिरिक्त उसका एक कारण यह भी है कि हमारी शिक्षा में मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया जा रहा।


इस दिशा में पहली बाधा हमारी संवैधानिक पंथ-निरपेक्षता प्रतीत होती है, किंतु वास्तव में ऎसा है नहीं। आचार्य विनोबा भावे ने, जिनकी पंथ-निरपेक्षता पर किसी को भी संदेह नहीं है, छोटी-छोटी पुस्तकों में ऎसी सामग्री जुटा दी है, जो विभिन्न संप्रदायों और मजहबों से सर्वसम्मत सार-भूत मूल्यों को समाहित किए हैं। शताब्दियों से मानव-मूल्यों की शिक्षा उपनिषद्-गीता, बाइबिल, कुरान जैसे धर्मग्रंथों के माध्यम से दी जाती रही है।

दुर्भाग्य से ये धर्मग्रंथ संप्रदायों के घेरों में घिर गए हैं और पंथ-निरपेक्षता में बाधक प्रतीत होते हैं। देश में ऎसे प्रबुद्ध चिंतक हैं, जो इन ग्रंथों के शाश्वत और सार्वभौम मूल्यों को रेखांकित करके ऎसी पाठ्यसामग्री उपलब्ध करा सकते हैं, जिसे पंथ-निरपेक्षता को सुरक्षित रखते हुए शिक्षा की मुख्य धारा में पाठ्क्रम के रूप में प्रस्तावित किया जा सकता है। यह कार्य करणीय है, क्योंकि पंथ-निरपेक्षता का अर्थ चरित्र-निरपेक्षता नहीं है। इस देश की परंपरा और मानसिकता नैतिकता को पवित्र धर्मग्रंथों से जोड़कर देखने की है।


फिर भी यदि पश्चिमी प्रणाली की धर्म-ग्रंथ-निरपेक्ष आचार मीमांसा भी हमारा सहयोग कर सके तो उससे भी परहेज नहीं करना चाहिए। नैतिकता का आधार अध्यात्म है। अध्यात्म के बिना नैतिकता बिना नींव का महल है। अध्यात्म का सूत्र योग है। पिछले कुछ दशकों में योग के अनेक आंदोलन चले हैं। वे भी दुर्भाग्य से व्यक्ति-केंद्रित हो गए। योग के प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर हम एक ऎसी पद्धति भी बना सकते हैं, जो व्यक्ति का रूपांतरण कर सके।


योग का प्रयोजन चित्त-वृत्ति का परिष्कार है। चित्त-वृत्ति परिष्कृत हुए बिना केवल कानूनी प्रावधान गैंग रेप जैसी दुर्घटनाओं को एक सीमा तक ही रोक सकते हंै। धर्मस्थान पवित्रता के केंद्र माने जाते हैं, किंतु अब उनकी पवित्रता पर संदेह होने लगा है। वे स्वयं को महिमा-मंडित करने वाले बनते जा रहे हैं। धर्मगुरू इस संबंध में गंभीरता से विचार करें। धर्मगुरू देखें कि उनके अनुयायी कुछ "कर्मकांड" करके ही संतुष्ट हो जाते हैं या उनके जीवन में पवित्रता का भी प्रवेश होता है। उन्हें भी इस दिशा में फलदायी कदम उठाने होंगे।

विशेषकर भारत में संसार के सभी प्रमुख धर्मो के प्रमुख केंद्र हैं। छोटे-छोटे गांव में भी एक न एक धर्म का स्थान है। इन केंद्रों के व्यवस्थापकों को सोचना होगा कि ये वृद्ध स्त्री-पुरूषों के समय बिताने का स्थान न रहकर संस्कार-निर्माण का कार्य करने का केंद्र बन सकें।

bindujain
10-01-2013, 09:20 PM
आईआईटी में पढ़ना हुआ महंगा, सरकार ने की फीस में 40000 रुपये की वृद्धि

http://hindi.pardaphash.com/uploads/images/660/82944.jpg

bindujain
11-01-2013, 04:29 AM
किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए फोकस है जरूरी

कैट की परीक्षा में टॉप करने छात्रों अंशुल, सोनाली और एडवेट का मानना है कि सफलता के लिए फोकस सबसे अहम है। बिना इसके कैट जैसी परीक्षा में टॉप करना आसान नहीं है।


सोचा नहीं था कि पहला स्थान मिलेगा
अंशुल गर्ग
100 पर्सेटाइल अंक हासिल करने हासिल करने वाले आईआईटी रोपड़ के छात्र अंशुल गर्ग कहते हैं कि अमूमन इंजीनियरिंग और प्रबंधन को अलग-अलग देखा जाता है। लेकिन इंजीनियरिंग के बेहतर छात्र के लिए जिंदगी और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में प्रबंधन काफी जरूरी है। अंशुल ने कहा कि मेरा प्रश्नपत्र अच्छा गया था। मुझे इस बात की पूरी उम्मीद थी कि मेरे अंक अच्छे आएंगे पर मैं पहला स्थान पाऊंगा, मैंने सोचा नहीं था। वह अपनी इस सफलता का श्रेय अपने पढ़ाई के तरीके को देते हैं।
पीटी एजुकेशन से पढ़ाई करने वाले अंशुल के पिता व्यवसायी है और मां गृहणी है। मेरे बड़े भाई एमसीए की पढ़ाई कर रहे हैं। वह कहते हैं कि मैं एमबीए कर इंटरप्रिन्योरशिप करना चाहता हूं। मैं एमबीए द्वारा अपनी स्किल को मजबूत करना चाहता हूं।
परीक्षा के दौरान खुद को रखा शांत
सोनाली गर्ग
कैट परीक्षा में 99.99 पर्सेटाइल अंक हासिल करने वाली आईआईटी दिल्ली की छात्रा सोनाली गर्ग कहती है कि किसी भी परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए आवश्यक है फोकस और रिलैक्स रहना।
वह कहती है कि अक्*सर देखने में आता है कि छात्रों को जानकारी तो बहुत होती है लेकिन तनाव होने की वजह से वह परीक्षा में बेहतर नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि मैं परीक्षा के एक हफ्ते पहले अपने संस्थान के महोत्सव में व्यस्त थी। ऐसे में मैंने तैयारी के लिए बहुत समय नहीं दिया। मैंने एक हफ्ते में अपनी तैयारी को अंतिम रूप दिया। परीक्षा में जो प्रश्न मुझे आते थे मैंने सिर्फ उन्हीं का उत्तर दिया। मेरे माता-पिता सहित मेरे दोस्तों ने मुझे काफी प्रोत्साहित किया। जिसके चलते मैं इतने अच्छे अंक हासिल करने में कामयाब हुई।
अपने विषयों का किया समयानुसार प्रबंधन
किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए जरूरी है कि आप उसके लिए कितने तैयार है। यह कहना है परीक्षा में 99.9 फीसदी अंक लाने वाले एडवेट कुमार का।
एडवेट कहते हैं, अगर आप अपनी तैयारी को लेकर शुरू से ही फोकस हैं और आप टाइम को सही से मैनेज कर रहे हैं तो दूसरों की तुलना में आपके सफल होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। पटना के रहने वाले एडवेट ने कैट के माध्यम से एमबीए करने का इरादा तो दसवीं कक्षा में पढ़ाई करते समय ही बना लिया था, लेकिन जरूरत थी इस इरादो को सच्चाई में बदलने की। उनकी कड़ी मेहनत के बल उन्होंने इस साल आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग की, जिसके बाद बोकारो के कोचिंग इंस्टिट्यूट में बतौर अध्यापक नौकरी भी लग गई।

dipu
11-01-2013, 09:25 AM
nice topic .................................

bindujain
11-01-2013, 10:10 AM
कैट 2012 नतीजे : 10 छात्रों को मिले परफेक्ट 100

http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/636x303/web2images/www.bhaskar.com/2013/01/10/9838_c.jpg

भारतीय प्रबंध संस्थान और प्रमुख बिजनेस स्कूलों में दाखिले के लिए आयोजित कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) -2012 के परिणाम घोषित कर दिए गए हैं। दस छात्रों ने 100 परसेंटाइल हासिल किए हैं। दो हजार परीक्षार्थियों ने 99 परसेंटाइल से ज्यादा अंक प्राप्त किए। 11 अक्टूबर से 6 नवंबर 2012 के बीच 21 दिन चली इस परीक्षा में देशभर में कुल 1,91,642 परीक्षार्थियों ने भाग लिया था। आईआईएम-कोझीकोड ने कैट का संयोजन किया था। कैट के परिणाम के आधार पर 13 आईआईएम की 2,946 सीटों के लिए विद्यार्थी चुने जाएंगे। कैट के स्कोर के आधार पर ही फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एफएमएस), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रीयल इंजीनियरिंग और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) में भी एडमिशन होता है। देश के डेढ़ सौ से ज्यादा बी-स्कूल भी कैट के स्कोर को
महत्व देते हैं।

इंजीनियरिंग स्ट्रीम के छात्रों ने किया कमाल
100 परसेंटाइल हासिल करने वाले 10 में से नौ विद्यार्थी इंजीनियरिंग स्ट्रीम से हैं। इनमें से नौ आर्इआर्इटी के छात्र हैं। पांच तो अब भी स्नातक में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। 99.99 परसेंटाइल हासिल करने वाली चार लड़कियां भी इंजीनियरिंग स्ट्रीम से हैं।

99 परसेंटाइल से ज्यादा में मुंबई टॉपर
99 परसेंटाइल या इससे ज्यादा अंक पाने वाले 180 परीक्षार्थियों के साथ मुंबई पहले स्थान पर रहा। दिल्ली 168 परीक्षार्थियों के साथ दूसरे, हैदराबाद 105 परीक्षार्थियों के साथ तीसरे, कोलकाता 92 परीक्षार्थियों के साथ चौथे और चेन्नई 85 परीक्षार्थियों के साथ पांचवे स्थान पर रहा। 99 परसेंटाइल से ज्यादा हासिल करने
वाले परीक्षार्थियों में 255 छात्राएं और 1,640 छात्र शामिल हैं।

bindujain
14-01-2013, 02:38 PM
तकदीर पर भरोसा रखें

http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/636x303/web2images/www.bhaskar.com/2013/01/12/8973_the_road_to_destiny1.jpg

वह एक लैब असिस्टैंट थे। लेकिन उनका मन थिएटर में रमा था। उन्हें प्रतिमाह १२५ रुपए तनख्वाह मिलती थी, जबकि थिएटर में उन्हें कुछ नहीं मिलता था। वह कॉलेज के नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। एक दिन पंजाब कला मंच पर उनके कॉलेज के नाटक का मंचन हुआ, जिसे देखने वालों में पंजाब थिएटर की जानी-मानी हस्ती हरपाल तिवाना भी थे। तिवाना ने उन्हें अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया, जिस पर उन्होंने कहा यदि उन्हें १२५ रुपए से ज्यादा दिए जाएं, तो ही वह उनके साथ काम करेंगे। तिवाना डेढ़ सौ रुपए देने पर राजी हो गए। उन दिनों वह थिएटर में सेलरी पाने वाले इकलौते शख्स थे। यह शख्स और कोई नहीं ओम पुरी थे। थिएटर से सिनेमा तक एक लंबा सफर तय करने के बाद ओम पुरी इन दिनों वापस थिएटर में लौट आए हैं।

'भाग मिल्खा भाग' के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपने कॅरियर की शुरुआत 'यूरेका फोब्र्स' के साथ बतौर सेल्समैन की थी। एक साक्षात्कार में इस फिल्मकार ने बताया कि उन्होंने एक फिल्म सेट पर टी-ब्वॉय के रूप में भी काम किया है। आज की दिग्गज महिला नेता और अतीत में भारतीय टेलीविजन की सबसे लोकप्रिय बहू हमेशा इतनी लोकप्रिय नहीं थी। १८ साल की उम्र में स्मृति अभिनेत्री बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आईं। उनका यहां कोई गॉडफादर नहीं था। उन्होंने यहां कुछ दिन मैक्डोनल्ड फास्ट फूड शृंखला के रेस्तरां में बर्गर इत्यादि सर्व करने और फर्श बुहारने का काम भी किया। आखिरकार किस्मत ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और आज वह इस मुकाम पर हैं।

उनकी असली प्रतिभा एक अप्रत्याशित माहौल में सामने आई, जब वह एक बस कंडक्टर के रूप में काम कर रहे थे। निष्णात अभिनेता बलराज साहनी ने ऐसी ही एक बस में सफर करते हुए वर्ष १९५० में उन्हें मुसाफिरों का मनोरंजन करते हुए देखा। जिसके बाद उन्होंने उन्हें मुंबई आने की सलाह दी। उन्होंने पहले स्क्रीन टेस्ट में एक पियक्कड़ शराबी का जबरदस्त अभिनय किया, जिसके बाद उनका नाम 'जॉनी वाकर' पड़ गया। कुछ ही लोग जानते होंगे कि वह कट्टर मुसलमान थे और मद्यपान से कोसों दूर थे। वह अपने समुदाय में एक नियमित कुली थे। बाद में वह बैंगलोर परिवहन सेवा के साथ बतौर बस कंडक्टर जुड़ गए। उनके दोस्त राज बहादुर ने फिल्मों की पढ़ाई करने की उनकी योजनाओं में पूरा साथ दिया, जिसके बाद रजनीकांत नामक इस लेजेंड ने सुपरस्टारडम की ओर पहला कदम बढ़ाया।

'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी फिल्म में अपने अभिनय के जरिए सुर्खियां बटोरने वाले इस अभिनेता का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक छोटे-से कस्बे से है। वह पहले बड़ौदा की एक फैक्ट्री में चीफ कैमिस्ट थे। थिएटर में उनकी गहरी दिलचस्पी थी, जिसकी खातिर उन्होंने चौकीदार की नौकरी भी की। कोई आश्चर्य नहीं कि यह अभिनेता आज भी खुद को 'कॉमन मैन' मानता है। इस अभिनेता का नाम है नवाजुद्दीन सिद्दीकी।

उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत ताज महल पैलेस एंड टॉवर होटल में वेटर और रूम सर्विस स्टाफर के रूप में की थी। बाद में उन्होंने अपनी पुश्तैनी बेकरी शॉप का जिम्मा संभाला। हालांकि अंकल चिप्स के साथ फ्रेंचाइजी करार करने के बावजूद उनकी यह बेकरी नहीं चली। आज हम उन्हें बोमन ईरानी के रूप में जानते हैं, जो 'मुन्नाभाई शृंखला' में अपने दमदार अभिनय के बाद घर-घर में लोकप्रिय हो गए।

वह बैंकॉक में मेट्रो गेस्ट हाउस में शेफ थे। उनकी पहली सेलरी 1000 बहत (1500 रुपए) थी और वह रात में किचन के फर्श पर ही सोते थे। उन्होंने कोलकाता में एक ट्रैवल एजेंसी के लिए प्यून के रूप में भी काम किया। यह कोई संयोग नहीं था कि 'मास्टरशेफ इंडिया' के निर्माताओं ने इस एक्शन हीरो अक्षय कुमार को अपने शो के होस्ट के रूप में चुना।