Pawan Tyagi
03-01-2013, 01:34 PM
हमारे यहाँ सब कुछ है। पुलिस बल है, कानून व्यवस्था है। सख्त कानून हैं। महिलाओं के लिए हेल्पलाइन है। दिल्ली में हर थोड़ी दूरी पर आपको एक पी सी आर वैन घूमती फिरती दिखाई दे जाएगी। है तो सब कुछ हमारे पास। पुलिस की मानें तो काम भी करता है।
http://3.bp.blogspot.com/-_PYsga802Q0/UOSlu7m2XGI/AAAAAAAAAG4/gwus9lyraKs/s1600/police.jpg
हाल ही में एक टी वी चैनल पर हो रही बहस में भी सुना, एक पुलिस अधिकारी बार बार कह रही थी की पुलिस को Gender Sensitization की ट्रेनिंग दी जाती है, महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन है 1091 जिसपर सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही फोन पर होती हैं। तमाम तरह के काम पुलिस करती है, मुझे तो पता भी नहीं था की पुलिस क्या क्या करती है, उनकी बातें सुनकर ही पता चला।
दिल्ली फिर भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। क्यूँ नहीं है ?
चलिए एक विश्लेषण करते हैं।
http://2.bp.blogspot.com/-vKivD_VMUzU/UOSltfOxB9I/AAAAAAAAAG0/XYvh8ORNHTU/s1600/how-indian-police-deal-with-rape-complaints.gif
पुलिस को महिलाओं के प्रति बेहतर व्यवहार (gender sensitization) की ट्रेनिंग दी जाती है। ज़ाहिर है की पुलिस इस ट्रेनिंग के बाद मान लेती है की पुलिस वाले इस ट्रेनिंग के बाद महिलाओं से बेहतर व्यवहार करेंगे। लेकिन क्या ऐसा होता है ? मुझे नहीं लगता की होता है, शायद आपको भी नहीं लगता होगा। यानी पुलिस ट्रेनिंग ख़तम होते ही काम ख़तम हुआ मान लेती है। जिस पुलिसकर्मी को ट्रेनिंग दी गई उसके आगे के व्यवहार का विश्लेषण नहीं करती। यह कुछ ऐसा होता है की आपको स्कूल में पढ़ाया तो जा रहा है लेकिन आपकी परीक्षा नहीं ली जा रही। आपने पढ़ाई की, या नहीं की, आप पास हो गए। और फिर यह ट्रेनिंग कितने पुलिसकर्मियों को मिलती है ? यदि सबको मिलती है, तो यह ट्रेनिंग किसी काम नहीं आ रही। क्या यह बात बताने की ज़रुरत है?
महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन है 1091, फिर भी हाल ही में एक और हेल्पलाइन 181 शुरू की गई है। क्यूँ भई, अगर नंबर बढ़ा देने से महिलाएं सुरक्षित हो सकती हैं तो मैं तो कहता हूँ की 2 क्या 1000-2000 नंबर खोल दीजिये खर्च भी ज्यादा नहीं आएगा। असलियत तो यह है की मंशा यह नहीं है की महिलाएं सुरक्षित हो जायें। मंशा यह है की यह दिखाया जाये की हम कुछ कर रहे हैं।
http://1.bp.blogspot.com/-V7AkNLkI7AY/UOSlrPkrUDI/AAAAAAAAAGs/QAgZtskeukY/s1600/Corrupt_Traffic_Cop_Cartoon.jpg
पुलिस की पी सी आर वैन भी दिल्ली में बहुतायत से हैं। इधर उधर घूम रही हैं। अक्सर देखता हूँ की उनमें बैठे पुलिसकर्मी रात में छोटी मोटी चाय - बीडी की दूकान बंद करवाते रहते हैं। उन्हें पेट्रोल जलाने और गाडी का मीटर बढाने के लिए गोल गोल चक्कर लगाते भी देखा है, लेकिन उनके सामने ही कोई, किसी लड़की का पर्स उड़ा ले, या 5-7 लड़के लड़कियों के साथ छेडछाड कर रहे हों तो वे क्या करते हैं? रिपोर्ट लिखवाने की सलाह देते हैं? सबसे पहले आपकी गलती बताते हैं फिर रिपोर्ट लिखने में आनाकानी, और अगर लिख भी गई तो उसपर कितनी कार्यवाही होती है ये सबको पता है। इसलिए आप रिपोर्ट ही नहीं लिखवाते। पुलिस का काम आसान हो जाता है।
इस समस्या का निदान कैसे हो?
पुलिस का यह सोच लेना की उनका कोई कदम उठाना ही समस्या का समाधान होता है, ऐसा है जैसे बिल्ली को देख कर कबूतर का आँखें बंद कर लेना और सोचना की बिल्ली है ही नहीं। अगर पुलिस अपने कर्मियों को कोई ट्रेनिंग देती है तो इसकी समीक्षा होना बहुत ज़रूरी है की उस ट्रेनिंग का कोई फायदा हुआ भी है या नहीं? कोई हेल्पलाइन खोलती है तो यह देखना की उस हेल्पलाइन से लोगों को वाकई मदद मिल भी रही है या नहीं? पुलिस की पी सी आर वैन घूम रही हैं तो वे सिर्फ घूम ही रही हैं या पूरे दिन में उन्होंने कुछ किया भी है। पीसीआर वैन में कैमरा नहीं होता, पूरे दिन वैन क्या करती रही इसको जानने का क्या तरीका है? लेकिन यहाँ सबसे बड़ी समस्या है की पुलिस खुद ही अपनी कमियाँ नहीं ढूंढ रही। वह माने बैठी है की उसके कर्मी तो 3-3 दिन तक लगातार काम करते हैं, उनपर बहुत बोझ है .. काम के घंटे तो गिनने की व्यवस्था तो उनके पास है लेकिन उन घंटों में काम कितना हुआ और किस तरह हुआ इसे जानने के लिए उनके पास कोई कार्यप्रणाली नहीं है। कितनी FIR लिखी गई और कितनी केस सुलझाये गए, यह जानने के लिए उनके पास आंकड़े हैं, लेकिन कितनी FIR लिखने से मना कर दिया गया, यह जानने के लिए उनके पास कोई कार्यप्रणाली नहीं है। शायद वह जानना भी नही चाहती। इस स्तिथि से बाहर आने का कोई रास्ता भी है या नहीं?
http://2.bp.blogspot.com/-qqqfSS07SJw/UOSm7stWq1I/AAAAAAAAAHM/lTzGgmmO8a0/s1600/theek-hai1.jpg
क्या यह ज़रूरी है की हम अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास ही जायें? क्या कोई दूसरी संस्था नहीं हो सकती जो लोगों की शिकायतें दर्ज करे और उन शिकायतों पर पुलिस को कार्यवाही करने के लिए कहे? हम FIR लिखवाने पुलिस थाने जायें यह ज़रूरी तो नहीं। यह काम तो कोई दूसरी संस्था भी कर सकती है। साथ ही वह यह भी कर सकती है की हमसे इस बात की जानकारी ले की हमारी शिकायत पर संतुष्टिपूर्ण कार्यवाही की गई या नहीं। कोई पुलिस अधिकारी यदि भ्रष्टाचार करता है तो वह संस्था उस भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करे। जन्लोकपाल कानून बनाने के पीछे कुछ ऐसी ही मंशा रही है। लेकिन अगर जन्लोकपाल कानून नहीं भी बन रहा तो क्या हम ऐसे ही बैठे रहे और इंतज़ार करें। शायद जबतक ऐसी कोई संस्था बनकर तैयार होगी तबतक कानून व्यवस्था ख़तम हो चुकी हो। सरकार को चाहिए की वह ऐसी कोई संस्था बनाए और लोगों को चहिये की वे इसके लिए आवाज़ उठाएं। कबतक यह दिखावा चलता रहेगा की सब "ठीक है !"
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हाल ही में एक टी वी चैनल पर हो रही बहस में भी सुना, एक पुलिस अधिकारी बार बार कह रही थी की पुलिस को Gender Sensitization की ट्रेनिंग दी जाती है, महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन है 1091 जिसपर सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही फोन पर होती हैं। तमाम तरह के काम पुलिस करती है, मुझे तो पता भी नहीं था की पुलिस क्या क्या करती है, उनकी बातें सुनकर ही पता चला।
दिल्ली फिर भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। क्यूँ नहीं है ?
चलिए एक विश्लेषण करते हैं।
http://2.bp.blogspot.com/-vKivD_VMUzU/UOSltfOxB9I/AAAAAAAAAG0/XYvh8ORNHTU/s1600/how-indian-police-deal-with-rape-complaints.gif
पुलिस को महिलाओं के प्रति बेहतर व्यवहार (gender sensitization) की ट्रेनिंग दी जाती है। ज़ाहिर है की पुलिस इस ट्रेनिंग के बाद मान लेती है की पुलिस वाले इस ट्रेनिंग के बाद महिलाओं से बेहतर व्यवहार करेंगे। लेकिन क्या ऐसा होता है ? मुझे नहीं लगता की होता है, शायद आपको भी नहीं लगता होगा। यानी पुलिस ट्रेनिंग ख़तम होते ही काम ख़तम हुआ मान लेती है। जिस पुलिसकर्मी को ट्रेनिंग दी गई उसके आगे के व्यवहार का विश्लेषण नहीं करती। यह कुछ ऐसा होता है की आपको स्कूल में पढ़ाया तो जा रहा है लेकिन आपकी परीक्षा नहीं ली जा रही। आपने पढ़ाई की, या नहीं की, आप पास हो गए। और फिर यह ट्रेनिंग कितने पुलिसकर्मियों को मिलती है ? यदि सबको मिलती है, तो यह ट्रेनिंग किसी काम नहीं आ रही। क्या यह बात बताने की ज़रुरत है?
महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन है 1091, फिर भी हाल ही में एक और हेल्पलाइन 181 शुरू की गई है। क्यूँ भई, अगर नंबर बढ़ा देने से महिलाएं सुरक्षित हो सकती हैं तो मैं तो कहता हूँ की 2 क्या 1000-2000 नंबर खोल दीजिये खर्च भी ज्यादा नहीं आएगा। असलियत तो यह है की मंशा यह नहीं है की महिलाएं सुरक्षित हो जायें। मंशा यह है की यह दिखाया जाये की हम कुछ कर रहे हैं।
http://1.bp.blogspot.com/-V7AkNLkI7AY/UOSlrPkrUDI/AAAAAAAAAGs/QAgZtskeukY/s1600/Corrupt_Traffic_Cop_Cartoon.jpg
पुलिस की पी सी आर वैन भी दिल्ली में बहुतायत से हैं। इधर उधर घूम रही हैं। अक्सर देखता हूँ की उनमें बैठे पुलिसकर्मी रात में छोटी मोटी चाय - बीडी की दूकान बंद करवाते रहते हैं। उन्हें पेट्रोल जलाने और गाडी का मीटर बढाने के लिए गोल गोल चक्कर लगाते भी देखा है, लेकिन उनके सामने ही कोई, किसी लड़की का पर्स उड़ा ले, या 5-7 लड़के लड़कियों के साथ छेडछाड कर रहे हों तो वे क्या करते हैं? रिपोर्ट लिखवाने की सलाह देते हैं? सबसे पहले आपकी गलती बताते हैं फिर रिपोर्ट लिखने में आनाकानी, और अगर लिख भी गई तो उसपर कितनी कार्यवाही होती है ये सबको पता है। इसलिए आप रिपोर्ट ही नहीं लिखवाते। पुलिस का काम आसान हो जाता है।
इस समस्या का निदान कैसे हो?
पुलिस का यह सोच लेना की उनका कोई कदम उठाना ही समस्या का समाधान होता है, ऐसा है जैसे बिल्ली को देख कर कबूतर का आँखें बंद कर लेना और सोचना की बिल्ली है ही नहीं। अगर पुलिस अपने कर्मियों को कोई ट्रेनिंग देती है तो इसकी समीक्षा होना बहुत ज़रूरी है की उस ट्रेनिंग का कोई फायदा हुआ भी है या नहीं? कोई हेल्पलाइन खोलती है तो यह देखना की उस हेल्पलाइन से लोगों को वाकई मदद मिल भी रही है या नहीं? पुलिस की पी सी आर वैन घूम रही हैं तो वे सिर्फ घूम ही रही हैं या पूरे दिन में उन्होंने कुछ किया भी है। पीसीआर वैन में कैमरा नहीं होता, पूरे दिन वैन क्या करती रही इसको जानने का क्या तरीका है? लेकिन यहाँ सबसे बड़ी समस्या है की पुलिस खुद ही अपनी कमियाँ नहीं ढूंढ रही। वह माने बैठी है की उसके कर्मी तो 3-3 दिन तक लगातार काम करते हैं, उनपर बहुत बोझ है .. काम के घंटे तो गिनने की व्यवस्था तो उनके पास है लेकिन उन घंटों में काम कितना हुआ और किस तरह हुआ इसे जानने के लिए उनके पास कोई कार्यप्रणाली नहीं है। कितनी FIR लिखी गई और कितनी केस सुलझाये गए, यह जानने के लिए उनके पास आंकड़े हैं, लेकिन कितनी FIR लिखने से मना कर दिया गया, यह जानने के लिए उनके पास कोई कार्यप्रणाली नहीं है। शायद वह जानना भी नही चाहती। इस स्तिथि से बाहर आने का कोई रास्ता भी है या नहीं?
http://2.bp.blogspot.com/-qqqfSS07SJw/UOSm7stWq1I/AAAAAAAAAHM/lTzGgmmO8a0/s1600/theek-hai1.jpg
क्या यह ज़रूरी है की हम अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास ही जायें? क्या कोई दूसरी संस्था नहीं हो सकती जो लोगों की शिकायतें दर्ज करे और उन शिकायतों पर पुलिस को कार्यवाही करने के लिए कहे? हम FIR लिखवाने पुलिस थाने जायें यह ज़रूरी तो नहीं। यह काम तो कोई दूसरी संस्था भी कर सकती है। साथ ही वह यह भी कर सकती है की हमसे इस बात की जानकारी ले की हमारी शिकायत पर संतुष्टिपूर्ण कार्यवाही की गई या नहीं। कोई पुलिस अधिकारी यदि भ्रष्टाचार करता है तो वह संस्था उस भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करे। जन्लोकपाल कानून बनाने के पीछे कुछ ऐसी ही मंशा रही है। लेकिन अगर जन्लोकपाल कानून नहीं भी बन रहा तो क्या हम ऐसे ही बैठे रहे और इंतज़ार करें। शायद जबतक ऐसी कोई संस्था बनकर तैयार होगी तबतक कानून व्यवस्था ख़तम हो चुकी हो। सरकार को चाहिए की वह ऐसी कोई संस्था बनाए और लोगों को चहिये की वे इसके लिए आवाज़ उठाएं। कबतक यह दिखावा चलता रहेगा की सब "ठीक है !"