View Full Version : बचपन : हमेशा याद आने वाले दिन
bindujain
04-01-2013, 05:35 PM
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बचपन, न कोई भेद, न कोई नफरत ! धर्म जाति से ऊपर,
एक दूसरे की खुशी में लीन, एक दूजे के साथ साथ भोजन करने के पल, जब भी याद आते हैं तो आज के रक्त रंजित माहौल को देखकर लगता है कि, कहाँ आ गए हम ?"
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bindujain
04-01-2013, 05:36 PM
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04-01-2013, 05:39 PM
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04-01-2013, 05:47 PM
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04-01-2013, 05:50 PM
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04-01-2013, 05:53 PM
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04-01-2013, 07:09 PM
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04-01-2013, 07:20 PM
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bindujain
04-01-2013, 07:21 PM
अभाव में भी मुस्कुराता बचपन !
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bindujain
04-01-2013, 07:22 PM
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bindujain
05-01-2013, 09:24 AM
बच्चे भी चाहते हैं क्वालिटी टाइम
http://www.patrika.com/articlephoto.aspx?id=39530
मम्मी-पापा के बिजी शेडयूल से सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को होती हैं। मम्मी-पापा अगर दोनों नौकरीपेशा हों तो पूरे दिन नौकरी करने के बाद जब वो घर आते हैं तो इतने थके होते हैं कि बच्चों के साथ कुछ पल भी सही से बिता नहीं पाते हैं। इसका असर बच्चों पर यह पड़ता है कि भावानात्मक रूप से वे अपने आपको अकेला महसूस करने लगते हैं। लेकिन अगर माता-पिता चाहें तो कुछ छोटे-छोटे खास पल बच्चों के साथ सहेज सकते हैं।
हम अक्सर बच्चों के साथ कुछ पल बिताने के लिए वक्त ढूंढते हैं। लेकिन अगर दिल से उन पलों को खोजें तो यह पल हमें आसानी से मिल जाएंगे। कोशिश करें कि हफ्ते में एक या दो दिन जल्दी घर आएं। जल्दी घर आने का मतलब है बच्चों के प्ले टाइम में घर पहुंचे ताकि बच्चों के साथ उनके मनपसंद गेम आप भी खेल लें।
bindujain
06-01-2013, 04:55 AM
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bindujain
06-01-2013, 04:57 AM
ऐसे बच्चे होते हैं ज्यादा बुद्धिमान
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भले ही अब लोग बच्चे के जन्म के लिए अस्पताल को सबसे बेहतर मानते हैं, पर एक नए अध्ययन के तहत दावा किया है कि प्राकृतिक तरीके से जन्मे बच्चे ऑपरेशन के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान होते हैं.
येल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययन में दावा किया गया है कि प्राकृतिक तौर पर जन्मे बच्चों में ‘यूसीपी2’ प्रोटीन का उच्च स्तर उनके यादाश्त को बढ़ाने में सहायक होता है और यह मनुष्य की ‘आईक्यू’ को बढ़ाने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है.
‘डेली मेल’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, महिलाएं जब बच्चे को प्राकृतिक तरीके से जन्म देती हैं तो उनमें एक विशेष प्रोटीन का स्तर बहुत उच्च पाया जाता है जो बच्चों के विकासक्रम में उनकी बुद्धिमत्ता को बढ़ाता है.
bindujain
06-01-2013, 05:01 AM
बच्चे क्या सीखेंगे ?
http://www.aapkisaheli.com/article_image/romance-kids.jpg
bindujain
06-01-2013, 05:04 AM
हर बच्चे को शिक्षा
http://www.dw.de/image/0,,16481699_401,00.jpg
bindujain
06-01-2013, 05:04 AM
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bindujain
06-01-2013, 05:05 AM
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bindujain
06-01-2013, 05:13 AM
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bindujain
06-01-2013, 05:26 AM
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माखन चोर
bindujain
06-01-2013, 05:27 AM
http://hindi.boldsky.com/img/2013/01/04-1357293317-03-1357218737-shivaji.jpg
छत्रपति शिवाजी
bindujain
06-01-2013, 05:29 AM
शकुंतला
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bindujain
06-01-2013, 05:33 AM
टीचर जी
http://hindi.boldsky.com/img/2013/01/04-1357293407-03-1357203845-teacher.jpg
bindujain
10-01-2013, 06:49 PM
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bindujain
10-01-2013, 06:49 PM
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bindujain
11-01-2013, 05:43 PM
तुम भूल गए हो
याद हे मुझे आज भी
अब कोन लंगड़ी टांग और कोन
आईस - पाईस खेलता हे
हो गये हैं बच्चे जरूरत से ज्यादा बड़े
और बड़े थे जो वो बूढ़े बनकर
दुनिया की भीड़ में सारे खो गये
चोर सिपाही खेलना
भूल गये हैं अब सब
सिपाही थे जो मेरे पास
कर ली उन्होंने आज
चोरों के साथ संधि
और जो चोर थे पहले से ही
आज वो अंतर्राष्टीय मंचो पे
नजर सारे आने लगे हैं
चढ़ गये चश्मे बचपन में ही
हमारी आँखों में
किताबों में थे जो कार्टून
वो बच्चों के चेहरे पे
सारे नजर आने लगे हैं
अँधेरी रातों में टूटते तारों को
गिनना भूल अब नेट की चांदनी में
बच्चे नहाने लगे हैं
याद हे मुझे आज भी
बचपन में खाते थे
जो कोयला और मिटटी
मुहं में डालते ही मां
कितना मारती थी हमको
छोड़ दही और मक्खन
अब तो बड़े भी हमारे
कोयला खाने लगे हैं
कोयले से दांत मांज-मांज कर
कितना चमकाते थे हम
आ गये हैं अब बुरे दिन कितने
जो दांत कोयले से मांजते थे हम
वो चेहरे पे अब लगाने लगे हैं
याद हे मुझे आज भी वो
बारिश की पहली बूंद की
वो सोंधी सी खुशबु
जो महकती हुई मेरी
सांसो में समा जाती थी
आज वो तारकोल की
चिकनी सी सडक पर
गिरते ही बेहोश हुए जाती हे
किसी नदी पोखर की जो
बढ़ाती थी शोभा अब वो
किसी गंदे नाले में डूबकर
मर जाती हे यहाँ पर
याद हे मुझे आज भी
बारिशों में कागजों की किश्तियाँ
कितनी चलाई थी मैंने
आज बारिशें खो गई हैं कहां पर
किश्तियाँ बिना पानी के उनकी
आज सडकों पे चलने लगी हैं
मूछें मरोड़ें तो मरोड़ें कैसे उनकी
सुबह सवेरे उठते उठते ही
वो श्मशान भेजी जाने लगी हैं
याद हे मुझे आज भी
रबर बैंडों में हवाई जहाजों को
बांधकर उड़ाते थे कितना ऊँचा
रबर बैंड तो एक दुसरे से
गांठों में बंधे हाथों में झूलते
रह गये सारे के सारे
बिना रबर बैंडो के वो
हवाई जहाज सारे अब तो
कांडा जैसे लोग उड़ने लगे हैं
याद हे मुझे आज भी
जब दोड़ते थे सडकों पे
सोने चांदी के सिक्के
अब भागते हैं हम
पेपरों के पीछे
जो हम रोज फाड़ते थे
याद हे मुझे आज भी
वो पहला प्यार अपना
जब दूर छत पे खड़े तुमने
नजरों से दिया था
अपना पहला चुम्बन
और मैंने अपनी नजरों से
मत पूछो मुझसे
तुम्हें कहां कहां चूमा था
आज वहशी हो गये हैं
चुम्बन सारे प्यार व्यार
कह�����ं कोन अब किससे करता हे
खेलकर जज्बातों से मेरे यहाँ
हर आदमी रोज चलता हे
याद हे मुझे आज भी
टूटी हुई साइकिलों पर
रेस लगाते थे कितनी लम्बी
अब तो गाड़ियों के शहर में
सडकों को हम ढुंढ तें हैं
कितना रस था गीतों में पहले
आज वो सब नग्न धूमते हैं
आज बदबू सी आती हे उनमे से
हम जब उन्हें देखतें हैं
फर्क सिर्फ आज इतना हे
तुम आज के चमकीलें तारों को
अपने पास जोड़ते हो
मैं कल के टूटे हुए तारों को
अपने पास जोड़ता हूँ
दो पीढ़ियों के बीच जो
टूट गया हे पुल
मैं उस पुल की टूटी हुई रस्सियों में
आस की गांठे बांधता हूँ
ये लाइने लिखने का बस
मकसद हे इतना याद करो
थोडा मुड़कर देखो पीछे
क्या छोड़ आये तुम पीछे
हाथों में तुम्हारे हे जो आज
वो कभी न तुम्हारा होगा
हंसेगी तुम्हारी ही जिन्दगी तुम पर
यह चुटकला ऐसा होगा जिसपे
कोई ना हंसने वाला होगा
bindujain
11-01-2013, 05:51 PM
बचपन की मासूमियत बड़े होते - होते ना जाने कहाँ खो गयी
किश्ती भी वही पानी भी वही बारिशें ना जाने कहाँ सो गई
.
bindujain
11-01-2013, 05:55 PM
“बचपन का भी क्या ज़माना था
हँसता मुस्कुराता खुशियो का खज़ाना था
खबर न थी सुबह की न शाम का ठिकाना था
दादा दादी की कहानी थी परियो का फ़साना था
गम की कोई जुबान न थी सिर्फ हसने का बहाना था,
अब रही न वो जिन्दगी जैसे बचपन का जमाना था ”
Awara
11-01-2013, 06:26 PM
बिंदु जी आपने तो इस द्वारा मुझे फिर से में भेज दिया, आपको इस सूत्र के लिए धन्यवाद :bravo::bravo::bravo:
bindujain
14-01-2013, 08:54 AM
मेरी पहली खरीदारी
**--**
उस समय मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता था. माँ कोई सब्जी बना रही थी और घर में खड़ी लाल मिर्च खत्म हो गई थी. सब्जी में बघार लगाने के लिए मिर्च जरूरी थी. माँ दूसरे कामों में भी उलझी हुई थी, अत: यह कार्य उसने अपने लाड़ले को डरते डरते सौंपा. हाथ में चार आने का सिक्का दिया और कहा बेटा गली के आगे जो दूकान है वहाँ से चार आने की खड़ी मिर्ची ले आ. ले आएगा ना?
मैं उत्तेजित हुआ, हिरणों की तरह कुलाँचे लगाता दुकान तक पहुँच गया. मेरी निकर जरा ढीली हो रही थी, उसे संभालता हुआ दुकानदार को, जो एक दूसरे ग्राहक से उलझा हुआ था कम से कम दस बार एक ही सांस में बोल गया कि मुझे चार आने की मिर्ची चाहिए.
उस ग्राहक से निपटकर, आखिरकार दुकानदार ने अख़बार के एक टुकड़े में करारे लाल मिर्च को तौलकर पतले से धागे से पुड़िया बांधा और मुझे थमाया. जिस तेजी से मैं आया था, उसी तेजी से कूदता फांदता, एक हाथ में मिर्ची की पुड़िया और एक हाथ में निकर संभाले वापस घर लौटा और सगर्व पुड़िया माँ के हाथ में थमाया. दौड़ते भागते आने के कारण पुड़िया खुल गई थी और उसका धागा लटक रहा था.
माँ को थोड़ा शक हुआ. उसने पुड़िया हाथ में लेते हुए मुझसे पूछा कि मैं कितने पैसे की मिर्ची लाया था, चूँकि पुड़िया में उसे सिर्फ दो मिर्च ही मिली. मैंने कहा – मैं तो पूरे चार आने की मिर्ची लाया हूँ.
इससे पहले कि माँ कुछ और पूछती, वह मुझे लेकर बाहर आई. घर के दरवाजे से आगे गली में लाल मिर्च कतार में गिरे हुए बिखरे पड़े थे. जाहिर है, अपनी पहली खरीदारी की खुशी में मुझे यह भी भान नहीं था कि पुड़िया खुल गई है और मेरी हर कुलाँच में दो-चार मिर्च नीचे गिर रहे हैं.
bindujain
15-01-2013, 04:28 AM
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bindujain
19-01-2013, 04:49 PM
बच्चे मन के सच्चे
स्कूल में पढ़ाते हुये कितने ही अनुभव होते रहते हैं। कुछ खट्टे, कुछ मीठे...कई छोटी-छोटी घटनायें होती रहती हैं, मगर ज़्यादातर ही, ये घटनायें मानसपटल के किसी कोने में कुछ दिनों के लिये कैद होती हैं और फिर धीरे-धीरे धूमिल। बच्चों की बातें, अक्सर ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान बिखेर जाती है।
कल क्रिसमस की छुट्टियों के पहले आखिरी दिन था स्कूल का। पढ़ाई कम, गिफ़्ट-एक्सचेंज और खेल ज़्यादा। सभी बहुत खुश थे, बच्चे, टीचर, सभी...माहौल छुट्टियों का, क्रिसमस का...
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रीसेस के बाद, बच्चे कक्षा में आकर बैठने लगे थे। सबके कक्षा में आने का इंतज़ार कर रही थी मैं कि एक बच्ची आ कर उदास चेहरे से अपनी सीट पर अनमनी हो बैठी। कक्षा तीसरी की वह बच्ची, बहुत होशियार और मिलनसार है। मैं उसके पास गई और पूछा-
"क्या हुआ बेटा? आप इतनी उदास क्यों बैठी हैं? "
"कुछ नहीं..."
"अच्छा, अभी बाहर रीसेस में कुछ हुआ? किसी सहेली या दोस्त से अनबन हो गई? क्या बात है?"
"नहीं कुछ नहीं... "
"अच्छा जब तक तुम अपनी भावनाओं के बारे में बताओगी नहीं कैसे पता चलेगा? इसलिये अपने दिल की बात कह देना सबसे अच्छा होता है। क्या हुआ है?"
"वो...वो...जेनेट है न, वो रिचर्ड को, वो जो कक्षा दूसरी में है...उसे पसंद करती है। तो क्रिसमस के लिये रिचर्ड ने जेनेट को फूल और ज्वूलरी दी है। तो जेनेट उसी के साथ खेल रही है। मेरे साथ नहीं खेल रही।"
एक बार मन ही मन हँस पड़ी मैं। कक्षा दूसरी का ७ साल का बच्चे का कक्षा तीसरी की ८ साल की बच्ची को पसंद करना और इस बच्ची का बहुत ही सीरियसली इस वाकये का कहना और फिर उसे कोई ऐसा तोहफ़ा न मिल पाने का गम...मैं ने अपनी मुस्कान छुपा कर उतने ही गंभीरता से कहा,
"अच्छा, तो ये बात है। जेनेट तो तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त है, तुम दोनों ही एक क्लास में हो तो उसे बताओ कि तुम भी उसके साथ खेलना चाहती हो, और रिचर्ड भी तो तुम्हारा दोस्त है, तीनों साथ-साथ खेलो।"
"पर वो नहीं खेलते मेरे साथ अब..."
"अच्छा तो ऐसा करो, उन्हें बताओ कि इस से तुम्हारी भावनायें आहत होती हैं। और फिर उन्हें भी थोड़ा खेलने दो, तुम्हारे और भी कितने अच्छे दोस्त हैं, उनके साथ भी खेलो..है न?
"ह्म्म्म...."
बच्चे आहत होते हैं तो परिष्कार मन से कह देते हैं। और हम...अपने अहम में, और भी जाने कितनी बातें सोच कर कह नहीं पाते...और क्या सब समझ ही पाते हैं?
bindujain
12-02-2013, 05:55 PM
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bindujain
12-02-2013, 05:55 PM
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12-02-2013, 05:56 PM
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12-02-2013, 05:57 PM
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12-02-2013, 05:57 PM
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bindujain
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