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View Full Version : मेरी पसंद : गीत गजल कविता


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bindujain
06-01-2013, 07:53 PM
वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ ,

वो शब् -ओ -रोज़ -ओ -माह -ओ -साल कहाँ .

थी वो एक शक्स के तसव्वुर सी ,

अब वो रानाई -इ -ख़याल कहाँ .

इतना आसान नहीं लहू रोना ,

दिल में ताक़त , जिगर में हाल कहाँ .

फ़िक्र -इ -दुनिया में सर खपत हूँ ,

मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ .

वो शब् -ओ -रोज़ -ओ -माह -ओ -साल कहाँ .

bindujain
06-01-2013, 08:00 PM
किसी रंजिश को हवा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी ,

मुझको एहसास दिल दो , की मैं जिंदा हूँ अभी .

ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालों ,

अब कोई और दवा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी .

मेरे रुकने से मेरी सांसें भी रुक जायेंगी ,

फासले और बढ़ा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी .

चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है फ़क़ीर ,

भीड़ लोगों की हटा दो , की मैं जिंदा हूँ अभी

bindujain
06-01-2013, 08:16 PM
कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें

कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से

कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो दिल हो
बूँदें हो बरसात हो
और तुम आओ

bindujain
06-01-2013, 08:22 PM
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता



.

bindujain
06-01-2013, 08:26 PM
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे,कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे,अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में,सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत,कलम छीन ले रोशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो,ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें,असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए ,जहाँ से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ,क़लम छीन ले रोशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है,रहे सामने और दिखाई न दे

bindujain
07-01-2013, 02:55 AM
किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं

वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूं

दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूं

ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूं

अहमद नदीम क़ासमी

bindujain
07-01-2013, 02:57 AM
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूं, समन्दर में उतर जाऊँगा

तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा
घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा

तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा

अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा

तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना
वरना सोचा था कि जब चाहूँगा, मर जाऊँगा

चारासाज़ों से अलग है मेरा मेयार कि मैं
ज़ख्म खाऊँगा तो कुछ और संवर जाऊँगा

अब तो खुर्शीद को डूबे हुए सदियां गुज़रीं
अब उसे ढ़ूंढने मैं ता-बा-सहर जाऊँगा

ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं ‘नदीम’
बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा



अहमद नदीम क़ासमी

bindujain
07-01-2013, 02:58 AM
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है ।
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है ।

इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।

ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है ।

जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है ।

हज़ारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फ़रमाया,
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है ।

अकबर इलाहाबादी

bindujain
07-01-2013, 03:02 AM
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद[2] है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां[3] दिल में कि दो सदमे,यां[4] जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही[5] से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत[6] के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

अकबर इलाहाबादी



शब्दार्थ:

↑ धर्मोपदेशक
↑ मनोरथ
↑ वहाँ
↑ यहाँ
↑ दैवी प्रकाश
↑ प्रकृति

bindujain
08-01-2013, 04:48 AM
कुछ ऐसे भी होते हैं

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

कुछ ऐसे भी होते हैं जो,
गुणहीन हुआ करते हैं;
पर तिकड़मबाजी के कारण
गुणवान दिखा करते हैं।

असलियत छिपाने को अपनी,
ये व्यूह रचा करते हैं;
पद लोलुपता में माहिर ये,
कुर्सी पर पग धरते हैं।

टांग अड़ाते कदम कदम पर,
काम-धाम में अलसाये,
बस यही चाहते हैं झटपट,
माला कोई पहनाये।

तड़क-भड़क में डूबे रहते,
गला फाड़ कर चिल्लाते हैं;
कीड़े जैसे काव्य कुतरते,
गिद्ध बने मँडराते हैं।

ऐसों में कोई कवि हो तो,
कविता चोरी करता है;
अपनी रचना कह कर उसको,
झूम झूम कर पढ़ता है।

जब जब ऐसी कविता सुनते,
याद उसी की आती है;
चोरी की कविता का संग्रह,
जिसकी अनुपम थाती है।

और अगर ऐसा पद लोलुप,
निर्लज्ज कहीं होता है;
तो अच्छे अच्छों को अपने,
तिकड़म जल से धोता है।

सभी जगह मिलते हैं ऐसे,
गुणहीनों की बस्ती है;
मँहगा है गुण पाना जग में,
तिकड़मबाजी सस्ती है।

नाम डूबता ऐसों से ही,
राष्ट्रों का, संस्थाओं का;
जो योग्य हुआ करते हैं उन-
पुरुषों का महिलाओं का।

bindujain
09-01-2013, 06:09 PM
जिए ख्वाबों में हंसकर तो कभी ख्वाबों में हम रोये

नहीं मालूम कैसे बीज पिछले जन्म में बोये

अधूरा रह गया अपना हमेशा प्यार का किस्सा

तन्हा बैठ कर हमने खुद अपने अश्क हैं धोये


.

bindujain
09-01-2013, 06:10 PM
छोड़ अब चिन्ता फिकर,और काम धन्धा छोड़ दे
दोस्त बन और रात दिन चैटिंग से नाता जोड़ ले
पढ़ भी लोगे तो भला तुम कौन से बिड़ला बनोगे
फ्रैण्ड रिक्वेस्ट भेज कर जीवन-डगर को मोड़ ले

bindujain
09-01-2013, 06:11 PM
आजकल की नारियां, जैसे बड़ी बीमारियां
रूप के जलवे चकाचक, नाभि तलक हैं बालियां
फेसबुक, आर्कुट और ट्विटर से चिपकी रहें
देश, धर्म, समाज है इनके लिए दुश्वारियां
मौज मस्ती रात दिन, मां-बाप की काहे सुनें
जो कुंवर समझाइए, मारे पलट फुफकारियां
जो बची इन रोग से, उनको नमन स्वीकार हो
हे प्रभु इन बेटियों की तुम करो निगरानियां

bindujain
09-01-2013, 06:13 PM
चाहतों को कोई आशियां न मिला
मदीने में भी गये, खुदा न मिला
ढूँढ़ते हम रह गये सारे जहान में
एक भी सुकून का दुकाँ न मिला

bindujain
09-01-2013, 06:13 PM
हैं चकित सारे सितारे, हो गया कवि बावला है
आसमाँ पर इन्कलाबों की फ़सल बोने चला है
ऐ खुदा सूरज़ छुपा ले अपने दामन के तले ,
आँख पर उसकी चमकने आज़ एक दीपक ज़ला है।"

bindujain
09-01-2013, 06:14 PM
थी बड़ी ही देर चुप्पी, अब ज़रा आवाज़ हो
अँधेरों के इस शहर में सुबह का आगाज़ हो
कौन कहता है हवा पर पाँव रख सकते नहीं
आसमाँ छूने का ये शायद कोई अंदाज़ हो।

bindujain
09-01-2013, 06:15 PM
http://i447.photobucket.com/albums/qq194/sahityashilpi/alokshankercopy.jpg

bindujain
09-01-2013, 06:19 PM
http://hindi.changathi.com/Export/Preview.aspx

jai_bhardwaj
09-01-2013, 07:36 PM
दामन छुडा के आप को जाना ही था अगर
नज़रें उठा के प्यार से देखा था क्यों मुझे !!

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:05 PM
पंख लगाकर मेरे ख़्वाबों को , ले जाओ कहीं दूर
नालायक रात में आते हैं और सोने भी नहीं देते

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:06 PM
ख्वाहिशों को जेब में रख कर ही निकलिए
खर्चा बहुत होता है मंजिलों को पाने में !!

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:06 PM
तस्वीर में ख़याल होना तो लाजमी सा है
मगर एक तस्वीर है, जो ख्यालों में बनी है

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:07 PM
आँख रखते हो तो उसकी आँख की तहरीर पढो
मुँह से इकरार न करना तो है आदत उसकी !!

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:07 PM
नया नया शौक उन्हें रूठने का लगा है
फिर खुद भी भूल जाते हैं कि रूठे थे किसलिए

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:07 PM
किसी भी दर्द की हद से ज़रा गुजरने तक
मैं खुद को जोड़ता रहता हूँ फिर से बिखरने तक

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:08 PM
खिलौनों की जगह दिल टूटता है
कि गुडिया अब बड़ी होने लगी है

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:09 PM
अभी कमसिन हो, रहने दो, कहीं खो दोगी दिल मेरा
तुम्हारे ही लिए रखा है, ले लेना जवां हो कर
ना कमसिन हूँ, न नादाँ हूँ, मुहब्बत को समझती हूँ
तुम्हारा क्या भरोसा है, मुकर जाओ जवां होकर

jai_bhardwaj
09-01-2013, 08:10 PM
वो अक्सर मुझसे कहती थी
वफ़ा है जात औरत की
मगर जो मर्द होते हैं
बहुत बेदर्द होते हैं

किसी भंवरे की सूरत में
गुलों को दे जाते हैं गम
सुनो, तुमको कसम मेरी
रवायत तोड़ देना तुम
ना तन्हा छोड़ के जाना
ना ये दिल तोड़ के जाना

मगर फिर यूं हुआ एकदिन
मुझे अनजान रास्ते पर
अकेला छोड़ कर उसने
मेरा दिल तोड़ कर उसने
मुहब्बत छोड़ दी उसने
वफ़ा है जात औरत की
रवायत तोड़ दी उसने

bindujain
10-01-2013, 06:39 PM
नज़र जहाँ से बचा के देखो ... जो फासलें है मिटा के डेको ...
यह ज़िन्दगी मुस्करा उठे गी ...किसी को अपना बना के देखो .
उम्हारी चाहत में मिट चले हम ...कभी तो पलके उठा के देखो ...
बना दे शायर जो किसी को ...वोह चोट ज़रा तुम भी खा के देखो .

कोई भी अपना नहीं जहां में ...किसी को भी अजमा के देखो ...
निकले ग सिर्फ नाम उसी का ...जो तार दिल के हिल के देखो .
ऐना हूँ मैं मेरे सामने आके देखो खुद
ही नज़र आओगे जो आँख मिला के द्केहो .

मेरे गम में मेरी तकदीर नज़र आती है ..
.डग्मगोगे जो मेरा दर्द उठा के देखो .

यूँ तो आसान नज़र आता है मंजिल का सफ़र ...
कितना मुश्किल है मेरी राह से जा के देखो .

दिल तुम्हारा है , मैं यह जान भी दे दू तुम पर ...
बस मेरे साथ ज़रा दिल से निभा के देखो .

मौत बरहक़ है मगर तुमसे वादा है मेरा ...
लौट आऊंगा तुम इक बार बुला के देखो .

bindujain
10-01-2013, 06:40 PM
वो अक्सर मुझसे कहती थी
वफ़ा है जात औरत की
मगर जो मर्द होते हैं
बहुत बेदर्द होते हैं

किसी भंवरे की सूरत में
गुलों को दे जाते हैं गम
सुनो, तुमको कसम मेरी
रवायत तोड़ देना तुम
ना तन्हा छोड़ के जाना
ना ये दिल तोड़ के जाना

मगर फिर यूं हुआ एकदिन
मुझे अनजान रास्ते पर
अकेला छोड़ कर उसने
मेरा दिल तोड़ कर उसने
मुहब्बत छोड़ दी उसने
वफ़ा है जात औरत की
रवायत तोड़ दी उसने




:bravo::bravo::bravo::bravo:

bindujain
10-01-2013, 06:40 PM
अभी कमसिन हो, रहने दो, कहीं खो दोगी दिल मेरा
तुम्हारे ही लिए रखा है, ले लेना जवां हो कर
ना कमसिन हूँ, न नादाँ हूँ, मुहब्बत को समझती हूँ
तुम्हारा क्या भरोसा है, मुकर जाओ जवां होकर:bravo::bravo::bravo:

bindujain
10-01-2013, 06:41 PM
खिलौनों की जगह दिल टूटता है
कि गुडिया अब बड़ी होने लगी है



QUOTE=jai_bhardwaj;206972]

खिलौनों की जगह दिल टूटता है
कि गुडिया अब बड़ी होने लगी है

[/QUOTE]:bravo::bravo:

bindujain
10-01-2013, 06:46 PM
तेरे दिल में कोई यूँ ही बस जाएगा अहिस्ता अहिस्ता ...
हमसे ऐसे मिलती रही तो रोग -इ -मोहब्बत लग जायेगा अहिस्ता अहिस्ता .

अभी तो बहाने से नज़र झुकाती हो इस तरह ...
गिरा कर फिट बहाने से नज़र मिलोगी अहिस्ता अहिस्ता .

अब बेशक तुम न सोचो हमारे बारे में मगर देखना ...
जो कभी न सोचा , वोह ख्याल भी तेरे मन में आयेगा अहिस्ता अहिस्ता .

आग कब भड़केगी तेरे दिल की , हमे खबर नहीं ...
सुना है शोला भी सुलाघ्ता है देर तक अहिस्ता अहिस्ता .

इंतज़ार है हमे उस दिन का , तुम जब डौगी आवाज़ ...
अब आ जा जल्दी , और हम कहेंगे अहिस्ता अहिस्ता .

bindujain
11-01-2013, 06:27 PM
एक दो बार सही हर बार इनकार नहीं चलता.
इस कमर तोड़ महंगाई में उधार नहीं चलता.

माना की बहूत फ़िक्र है तुझे, अपनों के वास्ते,
पर महज फ़िक्र से ही,घर-परिवार नहीं चलता.

कभी धुप,कभी छाव,कभी बदली,कभी बारिश,
सदा एक जैसा मौसम का किरदार नहीं चलता.

अब छोड़ दे इरादा तू कातिल बनने का ज़माने में,
दिल में दया हो तो हाथो से तलवार नही चलता.

हरदम मत तौलो रिश्तों को दौलत की तराजू में,
खाली पैसों के बदौलत ही ब्यवहार नहीं चलता.

"नूरैन" सब कुछ पूछ मत ये पूछ,हाले-बिजिनस मेरी,
अन्धो के शहर में आईने का कारोबार नहीं चलता.

bindujain
11-01-2013, 06:28 PM
समा जाते है लोग दिल में ऐतबार बनकर.
फिर लूट लेते है ख़ज़ाना पहरेदार बनकर,

यकीं करता है इन्सान जिनपे हद से ज्यादा,
डुबों देते है वो ही कश्ती मझदार बनकर,

रिश्तों की अहमियत खूब समझती है दुनिया,
पर लालच आ जाती है बिच में दिवार बनकर.

दौरे-मुश्किल में वसूलों पे चलते है बहूत लोग,
पर भूला देते है वसूलों को मालदार बनकर.

झूठ बिक जाती है पलभर में हजारों के बिच,
सच रह जाता है तन्हा गुनाहगार बनकर,

इंसानियत हो गयी हैं गूंगी,मजहब के नारों से,
लोग,खुदा को बाटते है,धर्म का ठेकेदार बनकर,

bindujain
11-01-2013, 06:28 PM
भले ही अपनी नज़रों में,औरों के बाद रखना तुम.
भूल जाना मेरी हस्ती को, मत याद रखना तुम.

बस एक इल्तिजा है मेरी,तुम से रुखसत होते-होते,
होंठों पे मुस्कराहट की दौलत,आबाद रखना तुम.

हम तो किस्मत के मारे है,आज यहाँ और कल कहा,
बस मुहब्बत ना मिटे दिल से,येही फ़रियाद रखना तुम.

हर एक उम्मीद इंसान की, कभी होती कहा है पूरी,
बिछड़ के फिर कभी ना मिलने का,मुराद रखना तुम.

माना की बहूत दर्द दिया है, हमको दुनिया वालों ने,
पर आँखे नम ना करना दिल को सदा,फौलाद रखना तुम.

कल का हाल तो कल जाने,पर आज ये मेरी ख्वाहिस है,
जहा भी रहना नाम वफ़ा का, जिंदाबाद रखना तुम.

bindujain
11-01-2013, 06:31 PM
http://3.bp.blogspot.com/-oTpFHewO5u0/T90myMpi3ZI/AAAAAAAAAPQ/_DN1urnjVpM/s640/Gazal1.jpg

bindujain
13-01-2013, 11:32 AM
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने,
अब गुजारेगा मेरे साथ ज़माने कितने,
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन,
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने,
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है,
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने,
तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हे इससे क्या है,
भरने वाले है अभी ज़ख्म पुराने कितने

bindujain
13-01-2013, 11:33 AM
हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद,
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद,

जिन आंखों में काजल बनकर तैरी काली रात,
उन आंखों में आंसू का इक कतरा होगा चाँद,

रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर,
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद,

चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते,
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद,

bindujain
13-01-2013, 11:34 AM
दिल के उजले कागज़ पर हम कैसा गीत लिखें,
बोलो तुमको गैर लिखें या अपना मीत लिखें,

नीले अम्बर की अंगनाई में तारों के फूल,
मेरे प्यासे होटों पर है अंगारों के फूल,
इन फूलों को आख़िर अपनी हार या जीत लिखें,

कोई पुराना सपना दे दो और कुछ मीठे बोल,
लेकर हम निकले है अपनी आखों के कश खोल,
हम बंजारे प्रीत के मारे क्या संगीत लिखें,

शाम खड़ी है एक चमेली के प्याले में शबनम,
जमुना जी के ऊंगली पकड़े खेल रहा है मधुबन,
ऐसे में गंगा जल से राधा की प्रीत लिखें

bindujain
13-01-2013, 11:34 AM
गम मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे,
एक दिल देकर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे,

ये नमाज-ऐ-इश्क है कैसा आदाब किसका आदाब,
अपने पाये नाज़ पर करने भी दो सजदा मुझे,

देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊंगा,
देखती ही देखती रह जायेगी दुनिया मुझे

bindujain
13-01-2013, 11:35 AM
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे,
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ खुदा न करे,

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बनकर,
ये और बात मेरी ज़िंदगी वफ़ा न करे,

सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है,
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे,

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई मे,
खुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे,

bindujain
13-01-2013, 11:36 AM
झूम के जब रिन्दो ने पिला दी,
शेख़ ने चुपके चुपके दुआ दी,

एक कमी थी ताजमहल में,
हमने तेरी तस्वीर लगा दी,

आपने झूठा वादा करके,
आज हमारी उम्र बढ़ा दी,

तेरी गली में सजदे करके,
हमने इबादतगाह बना दी,

dipu
13-01-2013, 11:36 AM
very good .....................................

bindujain
13-01-2013, 11:37 AM
कभी कभी यूं भी हमने अपने जीं को बहलाया है,
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज़्ज़त वालो की इज़्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उस से बिछडे बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यूँ,
आँगन में हसते बच्चों को बेकारों धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है,

bindujain
13-01-2013, 11:38 AM
हर गोशा गुलिस्तान था कल रात जहाँ मैं था,
एक जशन -ऐ -बहारां था कल रात जहाँ मैं था,

नगमें थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं मे,
हर साँस ग़ज़लफान था कल रात जहाँ मैं था,

दरिया -ऐ -मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की,
जज्बात का तूफान था कल रात जहाँ मैं था,

महताब था बाहों में जलवे थे निगाहों मे,
हर सिंत चरागाँ था कल रात जहाँ मैं था,

bindujain
13-01-2013, 11:39 AM
कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए,
रात रोशन हो गयी दिन भी सुहाने हो गए,

ये भी मुमकिन है के उसने मुझको पहचाना न हो,
अब उसे देखे हुए कितने जमाने हो गए,

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फ़ेंक दो,
वे अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए,

मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन है,
उनकी आंखों से गिरे मोती के दाने हो गए,

bindujain
14-01-2013, 08:28 AM
माणिक वर्मा की ग़ज़लः
***+++***
जो सच बोले उसे सूली चढ़ा दो
ये तख्ती हर कचहरी में लगा दो

हमें दुनिया का नक्शा मत बताओ
हमारा घर कहाँ है ये बता दो

करो तुम कत्ल जब भी आस्था का
बजाकर शंख चीखों को दबा दो

यक़ीनन कल जलेगा घर में चूल्हा
ये वादा करके बच्चों को सुला दो

दीवाली आपके बच्चे भी देखें
ये माचिल लो हमारा घर जला दो

bindujain
14-01-2013, 08:41 AM
हम मुहब्बत के पुजारी हैं मुहब्बत की कसम।
जिसको भी सजदा करेंगे वो खुदा हो जाएगा॥

bindujain
14-01-2013, 08:42 AM
भेलनी के बेर जूठे थे ये कैसे देखते।
राम तो हैरत में थे जंगल में इतना प्यार है॥








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bindujain
14-01-2013, 08:42 AM
निभाना खून के रिश्ते बहुत आसान नहीं होता।
गुजर जाती है सारी जिंदगी खुद से लड़ाई में॥








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bindujain
14-01-2013, 08:43 AM
बहला रही है भूख को पानी उबाल कर।
वो मां है दिखा देगी बच्चों को पाल कर॥







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bindujain
14-01-2013, 08:43 AM
कैसे करवट वक्त ने बदली है लोगों देखिए।
दर दर फिरते थे जो वो आज रहबर हो गए॥








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bindujain
14-01-2013, 08:44 AM
बनाओ शहर में कुछ खुशनुमा इमारतें भी।
मगर बुजुर्गो की कुछ यादगार रहने दो॥










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bindujain
14-01-2013, 08:44 AM
ये झूठों का जमाना है, कोई सच बात मत कहना।
चुनांचे रात बेशक हो मगर तुम रात मत कहना॥










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bindujain
14-01-2013, 08:45 AM
गरदो गुबार, शोर, धुंआ और भीड़-भाड़।
मैं रह रहा हूं ऐसे बवालों के शहर में॥











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bindujain
14-01-2013, 08:46 AM
कितनी दीवारें उठी हैं एक घर केदरमियां।
घर कहीं गुम हो गया, दीवारों दर के दरमियां॥












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bindujain
14-01-2013, 08:46 AM
मोहब्बत जिंदगी केफैसलों से लड़ नहीं सकती।
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है॥










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jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:12 PM
चोटियों को छू के जाते, पर बरसते हैं नहीं
बादलों की एक सूरत, आदमी जैसी भी है

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:15 PM
हकीकत मुस्कुराती है, वफ़ा शरमाने लगती है
वो मौजूं-ए-वफ़ा पे, जिस घड़ी तक़रीर करते हैं

मौजूं = विषय/टापिक
तक़रीर = भाषण/बहस

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:18 PM
ये कब कहा था कि नजारों से खौफ आता है
मुझे तो चाँद -सितारों से खौफ आता है
मैं इत्तिफाक की खन्दक से दूर रहता हूँ
मुझे तो ताल्लुकात के घरों से खौफ आता है

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:26 PM
एक तो ख्वाब लिए फिरते हो गलियों गलियों
उसपे तकरार भी करते हो खरीददार के साथ
इस कदर खौफ है उस शहर की गलियों में, कि लोग
चाप सुनते हैं तो लग जाते हैं दीवार के साथ

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:31 PM
मैं अपने पैरों तले रौंदता हूँ साए को
बदन मेरा ही सही, दोपहर ना भाये मुझे
वही तो सबसे जियादा है नुक्ताचीन मेरा
जो मुस्कुरा के हमेशा गले लगाए मुझे

जियादा = अधिक
नुक्ताचीन = कमियाँ खोजने वाला

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:51 PM
फोन पे उसकी बातें, उसके कहकहे अच्छे लगते हैं
पल दो पल के सही, मगर ये रिश्ते अच्छे लगते हैं

रंग जगाते जुमलों से लगता है, जैसे उसको भी
खट्टी मीठी बातें करते लड़के अच्छे लगते हैं

हमें खबर है सभी लडकियां, हाथ ना आती परियां है
फिर भी जागती आँखों देखे, सपने अच्छे लगते हैं

मोतियों वाले मुखड़े भी अपने अहबाब में शामिल हैं
मगर मुझे तो खुश्कत चेहरे, साँवले अच्छे लगते हैं

हम दोनों मस्तानों की, इक ख्वाहिश मिलती जुलती है
मुझको शहजादी तो उसको, शहजादे अच्छे लगते हैं

मैं सोचूँ आखिर ऐसी इक खूबी होगी, जिसके शबब
शहर की माह्जबीनों को हम इतने अच्छे लगते हैं

कांच कुंवारी उम्रों को जब मिट्टी में मिल जाना है
फिर क्यों 'रज़ा' ये लम्हा भर के मैले अच्छे लगते हैं


अहबाब = संग्रह
शबब = कारण
माहजबीनों = सुन्दर स्त्रियों

rajnish manga
13-04-2014, 11:25 PM
ग़ज़ल
नज़रें तेरी पीने नहीं देती,


जरा सी देर को सब कुछ भुलाकर देख लेते हैं,
तुझे हम सामने अपने बिठाकर देख लेते हैं.!!

सूना है मद भरी नज़रें तेरी पीने नहीं देती,
इजाजत हो तो हम नज़रे मिला के देख लेते हैं.!!

वो चेहरे कैसे होते हैं के जिस से चाँद शर्माये,
तेरे रुख से सियाह जुल्फें हटा के देख लेते हैं.!!

शमा के पास जाकर किस तरह जलते हैं परवाने,
ज़रा हम भी तेरे नजदीक आ के देख लेते हैं.!!

कहीं बेताब दिल को इस तरह से चैन आ जाये,
तेरी तस्वीर को दिल से लगा के देख लेते हैं.!!

ख्यालो में तराशा है तेरा पैकर भी ये जाना,
कभी ख़्वाबों में भी तुझको बसा कर देख लेते हैं.!!
(इंटरनेट से)

rajnish manga
13-04-2014, 11:31 PM
नीरज के दोहे

कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान

गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार
लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार

जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल

भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म

करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार
जब कि मिलावट से बने रोज़ यहाँ सरकार

अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षडयंत्र
संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र

राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय
जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय

भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम

दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप

तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल
-गोपालदास नीरज

rajnish manga
13-04-2014, 11:32 PM
नीरज के दोहे

पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय
उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय

हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्व
हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व

जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार
जिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार

मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार

अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश
उनको भाता है नहीं अपना भारत देश

पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश
कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष

बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आस
परछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश

वाणी के सौन्दर्य का, शब्दरूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य

जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान

जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार
-गोपालदास नीरज

rajnish manga
13-04-2014, 11:34 PM
नीरज के दोहे

जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र

कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल

दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात

मिटे राष्ट्र कोई नहीं हो कर के धनहीन
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण

इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप

यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना याद
इस शराब ने हैं किये, कितने घर बर्बाद

रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमार
लेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार

जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्य
नहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य

रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूट
दाम बुराई के बढ़े, सच्चाई पर छूट

जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान
बहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान

अपना देश महान् है, इसका क्या है अर्थ
आरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ

काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवार
और इसी से है मुझे करना सागर पार

-गोपालदास नीरज

bindujain
16-04-2014, 04:59 AM
मैं यह सोच कर उसके दर से चला था
के वोह रोक लेगी मना लेगी मुझको

हवाओं में लहराता आहट था दामन
के दामन पकड़ के बिठा लेती मुझको

कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
के आवाज़ दे कर भुला लेगी मुझको

मगर उसने रोका न उसने मनाया
न दामन ही पकता न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक के उस से जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं

bindujain
16-04-2014, 05:00 AM
mai ye soch kar uske dar se
utha ke vo rok legi mana legi mujhko
hawao me leharata aata tha daman
ke daman pkadkar bitha legi mujhko

kadam aise andaz uth rahe the
ke aawaz deke bula legi mujhko
magar usne na roka na usne mnaya
na daman hi pakda na mujhko bithaya
na aawaz hi di na vapas bulaya
mai aur aahista aahista badta hi aaya
yaha tak ke us se zuda ho gaya
yaha tak ke us se zuda ho gaya
zuda ho gaya mai zuda ho gaya
zuda ho gaya mai zuda ho gaya

rajnish manga
19-04-2014, 10:47 PM
याद तुम्हारी आई सारी रात
रमानाथ अवस्थी

सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही कहीं बजी शहनाई सारी रात

मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आईं सारी रात

गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा मुझे समझाने
मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं दीवाने
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने
देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात

रात लगी कहने सो जाओ, देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
यहाँ तुम्हारा क्या कोई भी नहीं किसी का अपना
समझ अकेला मौत तुझे ललचाई सारी रात

मुझे सुलाने की कोशिश में, जागे अनगिन तारे
लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सब के सब हारे
जाते-जाते चाँद कह गया मुझसे बड़े सकारे
एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात

bindujain
22-04-2014, 02:37 PM
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या

कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या – २
कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या

होगा मसीहाऽऽऽ …
होगा मसीहा सामने तेरे
फिर भी न तू बच पायेगा
तेरा अपनाऽऽऽ आऽऽऽ
तेर अपना खून ही आखिर
तुझको आग लगायेगा
आसमान मेंऽऽऽ …
आसमान मे उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेगा
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या

सुख में तेरे …
सुख में तेरे साथ चलेंगे
दुख में सब मुख मोड़ेंगे
दुनिया वाले …
दुनिया वाले तेरे बनकर
तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते हैंऽऽऽ …
देते हैं भगवान को धोखा, इनसां को क्या छोड़ेंगे
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या

काम अगर ये
काम अगर ये हिन्दू का है
मंदिर किसने लूटा है
मुस्लिम का है काम अगर ये
खुदा का घर क्यूँ टूटा है
जिस मज़हब में
जिस मज़हब में जायज़ है ये
वो मज़हब तो झूठा है
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या

bindujain
22-04-2014, 02:41 PM
http://www.youtube.com/watch?v=lxwvlUS222Y&feature=player_embedded

bindujain
23-04-2014, 03:29 PM
लहरों की तरह यादें, दिल से टकराती हैं
तूफ़ान उठाती हैं

किस्मत में है, घोर अँधेरे
राते सुलगती, धूंदले सवेरे

तकते तकते, सूनी राहें
पथरा गयी है, अब तो निगाहें

बरसों से दिल पे, बोज़ उठाए
ढूंढ रहा हूँ, प्यार के साए

rajnish manga
23-04-2014, 11:12 PM
ग़ज़ल
शायर: कैसर-उल-जाफ़री

वक़्त आ जाने तो दे, बात करेंगे तुझसे
ज़िन्दगी हम भी मुलाक़ात करेंगे तुझसे

रास्ता देख के चल वरना ये दिन ऐसे हैं
गूंगे पत्थर भी सवालात करेंगे तुझसे

बात करते हए यूं फूल न बरसा वरना
बात-बे-बात भी सब बात करेंगे तुझसे

आज सुन ले हमें इन्सान के लबो-लहज़े में
कल फरिश्तों की तरह बात करेंगे तुझसे

जब भी मिलते हैं यही सोच के रह जाते हैं
फिर कभी शिकव-ए-हालात, करेंगे तुझसे

गर तकाज़ा है तो ‘कैसर’ की तबीयत में नहीं
इल्तिजा है तो वह दिन-रात करेंगे तुझसे

(लबो-लहज़े = शैली)

bindujain
24-04-2014, 10:36 AM
श्रद्धा जैन की एक ग़ज़ल
http://1.bp.blogspot.com/-M8IfwvstN7k/UxGhXrDaZfI/AAAAAAAAGSg/HHv_FfcYs5E/s1600/1511025_647918628615044_739621933_n.jpg
ग़ज़ल

बात दिल की कह दी जब अशआर में
ख़त किताबत क्यूँ करूँ बेकार में

मरने वाले तो बहुत मिल जाएंगे
सिर्फ़ हमने जी के देखा प्यार में

कैसे मिटती बदगुमानी बोलिये
कोई दरवाज़ा न था दीवार में

आज तक हम क़ैद हैं इस खौफ से
दाग़ लग जाए न अब किरदार में

दोस्ती, रिश्ते, ग़ज़ल सब भूल कर
आज कल उलझी हूँ मैं घर बार में

bindujain
30-04-2014, 07:13 AM
फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा करलो
हमसे एक और मुलाकात का वादा करलो

दिल हर बात अधूरी है अधूरी है अभी
अपनी एक और मुलाकात ज़रूरी है अभी
चंद लम्हों के लिये साथ का वादा करलो
हमसे एक और मुलाकात का वादा करलो
फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा करलो

आप क्यूँ दिलका हंसीं राज़ मुझे देते हैं
क्यूँ नया नग़मा नया साज़ मुझे देते हैं
मैं तो हूँ डूबी हुई प्यार की तूफ़ानों में
आप साहिल से ही आवाज़ मुझे देते हैं

कल भी होंगे यहीं जज़बात ये वादा करलो
हमसे एक और मुलाकात का वादा करलो
फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा करलो
हमसे एक और मुलाकात का वादा करलो

bindujain
30-04-2014, 07:17 AM
http://hindigeetmala.net/lyrics_png/12267_kabhi_khud_pe_kabhi_haalaat.png

bindujain
30-04-2014, 07:23 AM
http://www.hindigeetmala.net/lyrics_png/00492_ek_pyar_ka_nagma_hai_i.png

bindujain
30-04-2014, 07:27 AM
ज़िंदगी है दुआ, रब की अदा कहके शुक्रिया, जी लो ना
लाये थे जी क्या, ले जायें भी क्या कहके शुक्रिया, जी लो ना

bindujain
01-05-2014, 07:20 AM
http://www.hindigeetmala.net/lyrics_png/01433_ai_khuda_har_faisla_tera.png

rajnish manga
01-05-2014, 11:25 AM
ग़ज़ल
राजेन्द्र टोंकी बेवजह सी ज़िन्दगी को बावजह करता रहा
और यूँ लम्हा-ब-लम्हा ख़ुदकुशी करता रहा

दास्ताँ सुन कर मेरी सबने उदासी ओढ़ ली
मैं अकेला ही था जो उस बज़्म में हँसता रहा

ज़िन्दगी के फूल खिलते भी तो खिलते किस तरह
वर्क़े-गुल ही उम्र का जब हर बरस झरता रहा

हसरतों, नाकामियों से थी भरी झोली मेरी
दर्द का कश्कोल ले कर फिर भी मैं फिरता रहा

ख़्वाहिशें दिन की तरह पल-पल जवाँ होती रहीं
जिस्म सूरज की तरह पल-पल मगर ढलता रहा

रूह का धागा है कैसा देखने के शौक़ में
मोम का पैकर लिए मैं धूप में फिरता रहा

इस उदासी का सबब कुछ भी नहीं था दोस्तो
ये मुखौटा था जो असली आपको लगता रहा

वो फ़क़त इक झूठ था, वहमो-गुमाँ का नाम था
डर से मैं सहमा हुआ जिसको ख़ुदा कहता रहा


शब्दार्थ:
बावजह = सकारण / लम्हा-ब-लम्हा = प्रतिपल / बज़्म = सभा
वर्क़े-गुल = फूल की पँखुड़ी / कश्कोल = भिक्षापात्र / पैकर = शरीर
वहमो-गुमाँ = संशय और संदेह

bindujain
02-05-2014, 08:08 AM
मासूम ग़ाज़ियाबादी
http://4.bp.blogspot.com/-SraqOxW2IUc/UzVSdHoQXuI/AAAAAAAAGUg/p2VtAQto37A/s1600/284629_108821045886852_52969_n.jpg

ग़ज़ल

कभी तूफां, कभी कश्ती, कभी मझधार से यारी
किसी दिन लेके डूबेगी तुझे तेरी समझदारी

कभी शाखों, कभी ख़ारों, कभी गुल की तरफ़दारी
बता माली ये बीमारी है या फिर कोई लाचारी

अवामी गीत हैं मेरे, मेरी बाग़ी गुलूकारी
मुझे क्या दाद देगा वो सुने जो राग दरबारी

किसी का मोल करना और उसपे ख़ुद ही बिक जाना
कोइ कुछ भी कहे लेकिन यही फ़ितरत है बाज़ारी

खिज़ां में पेड़ से टूटे हुए पत्ते बताते हैं
बिछड़ कर अपनों से मिलती है बस दर-दर की दुतकारी

यहाँ इन्सां की आमद-वापसी होती तो है साहिब
वो मन पर भारी है या फिर चराग़ो-रात पे भारी

जो सीखा है किसी "मासूम" को दे दो तो अच्छा है
सिरहाने कब्र के रोया करेगी वरना फ़नकारी

bindujain
02-05-2014, 05:29 PM
ग़ज़ल
नशेमन तो नशेमन है चमन तक छोड़ देते हैं
हम अपने पेट की खातिर वतन तक छोड़ देते हैं

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं
अँधेरों से अगर आवाज़ देता है कोई बेकस
हम अपने सहन की उजली किरन तक छोड़ देते हैं

मुहब्बत से अगर दुशमन भी हमसे मांग ले पानी
दो-इक चुल्लू नहीं गंग-ओ-जमन तक छोड़ देते हैं

सुना "अहसान" कुछ बच्चे लिबासों को तरसते हैं
अगर ये बात है तो लो कफ़न तक छोड़ देते हैं

डा. अहसान आज़मी

bindujain
03-05-2014, 08:30 AM
ग़ज़ल

ये कौन छोड़ गया इस पे ख़ामियाँ अपनी
मुझे दिखाता है आईना झुर्रियाँ अपनी

बना के छाप लो तुम उनको सुर्ख़ियाँ अपनी
कुएँ में डाल दीं हमने तो नेकियाँ अपनी

बदलते वक़्त की रफ़्तार थामते हैं हुज़ूर !
बदलते रहते हैं अकसर जो टोपियाँ अपनी

ज़लील होता है कब वो उसे हिसाब नहीं
अभी तो गिन रहा है वो दिहाड़ियाँ अपनी

नहीं लिहाफ़, ग़िलाफ़ों की कौन बात करे
तू देख फिर भी गुज़रती हैं सर्दियाँ अपनी

क़तारें देख के लम्बी हज़ारों लोगों की
मैं फाड़ देता हूँ अकसर सब अर्ज़ियाँ अपनी

यूँ बात करता है वो पुर-तपाक लहज़े में
मगर छुपा नहीं पाता वो तल्ख़ियाँ अपनी

भले दिनों में कभी ये भी काम आएँगी
अभी सँभाल के रख लो उदासियाँ अपनी

हमें ही आँखों से सुनना नहीं आता उनको
सुना ही देते हैं चेहरे कहानियाँ अपनी

मेरे लिये मेरी ग़ज़लें हैं कैनवस की तरह
उकेरता हूँ मैं जिन पर उदासियाँ अपनी

तमाम फ़ल्सफ़े ख़ुद में छुपाए रहती हैं
कहीं हैं छाँव कहीं धूप वादियाँ अपनी

अभी जो धुन्ध में लिपटी दिखाई देती है
कभी तो धूप नहायेंगी बस्तियाँ अपनी

बुलन्द हौसलों की इक मिसाल हैं ये भी
पहाड़ रोज़ दिखाते हैं चोटियाँ अपनी

बुला रही है तुझे धूप 'द्विज' पहाड़ों की
तू खोलता ही नहीं फिर भी खिड़कियाँ अपनी

bindujain
04-05-2014, 06:17 AM
http://hindigeetmala.net/lyrics_png/00393_zindagi_ke_safar_mein.png

bindujain
05-05-2014, 07:05 AM
मेरी कश्ती तूफान में हिचकोले खाए जाये
तेरे प्यार की पतवार मिले तोमुमकिन है बच जाये

bindujain
05-05-2014, 07:13 AM
ले मेरे तजुर्बों से सबक ये मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ में

bindujain
05-05-2014, 08:40 AM
कोई सपना सलोना चाहता है,
लिपटकर मुझसे रोना चाहता है!

तू मेरा चैन खोना चाहता है,
तो क्या बेचैन होना चाहता है!

उसे माँ चाँद दिखलाने लगी है,
मगर बच्चा खिलौना चाहता है!

मैं नीली छत के नीचे ख़ुश हुआ तो
वो बारिश में भिगोना चाहता है!

मुझे जो फूल-सा मन दे दिया है,
बता किस में पिरोना चाहता है!

बनाना चाहता है मुझको कश्ती,
वो ख़ुद पानी का होना चाहता है!

मैं उसका बोझ हल्का कर रहा हूँ,
मगर वो दुख को ढोना चाहता है!

कभी दिखता है, छुपता है कभी तू,
तो तू क्या चाँद होना चाहता है!

हुआ रूमी मेरा एहसास बेघर
ये मिट्टी का बिछौना चाहता है।

rafik
05-05-2014, 09:51 AM
क़तारें देख के लम्बी हज़ारों लोगों की
मैं फाड़ देता हूँ अकसर सब अर्ज़ियाँ अपनी

खूबसूरत पंक्ति

bindujain
06-05-2014, 03:55 PM
छुअन से तेरी महक जाता था मै.
कभी बिना पिए भी बहक जाता था मै.
तेरे ख्वाबो की तो अब आदत सी हो गई है
न सोचू तुझे तो और भी तनहा हो जाता हूँ मै

rajnish manga
06-05-2014, 07:28 PM
ग़ज़ल
बहादुरशाह ज़फ़र / bahadur shah zafar

यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लयाक-ए-पा-बोस-ए-जान क्या हेना थी मैं न था

हाथ क्यों बंधे मेरे चला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हेना थी मैं न था

मैं ने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न-ओ-शबाब
हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी मैं न था

मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-कैस
क्या युंहीं दोनों के हिस्से में क़जा थी मैं न था

bindujain
07-05-2014, 07:06 AM
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।

ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ।।

मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।

हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।

ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।

मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।

मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब ख़ैरात में।
जो फ़कीरी में लुटाते अब यहाँ फिर कल वहाँ।

bindujain
08-05-2014, 01:00 PM
न जी भर के देखा, न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनायी ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की

मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुरआब1 का,
बरसती हुई रात बरसात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा, कहाँ रात की
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bindujain
08-05-2014, 01:00 PM
[size="4"]सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जायेगा

कितनी सच्चाई से मुझसे ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा

मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जायेगा

सब उसी के हैं हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जायेगा
(3)
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bindujain
08-05-2014, 01:01 PM
मुझसे बिछुड़ के खुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

उजले-उजले फूल खिले थे
बिलकुल जैसे तुम हँसते हो

मुझको शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो

दिल का हाल पढ़ा चेहरे से
साहिल से लहरें गिनते हो

तुम तनहा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों-सी बातें करते हो

bindujain
08-05-2014, 01:01 PM
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

और जाम टूटेंगे इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में

दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में

bindujain
08-05-2014, 01:02 PM
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीनों से,
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है

उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं,
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कराया है

कहाँ से आयी ये ख़शुबू, ये घर की ख़ुशबू है,
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है

तमाम उम्र मिरा दम उसी धुएँ में घुटा
वो इक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया है

bindujain
08-05-2014, 01:06 PM
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में, कि मिरी नज़र को ख़बर न हो,
मुझे एक रात नवाज़1 दे, मगर उसके बाद सहर2 न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम3 है, मुझे ये सिफ़त4 भी अता5 करे,
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो मिरी दुआ में असर न हो

मिरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी महव-ए-ख़्वाब6 है चाँदनी,
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में, पिछली रात की चाँदनी,
न बुझे ख़राबे7 की रोशनी, कभी बेचिराग़ ये घर में न हो

कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब8 के फूल को चूम के,
यूँ ही साथ-साथ चलें सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मिरे पास मेरे हबीब9 आ ज़रा और दिल से क़रीब आ,
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं कि बिछड़ने का कोई डर न हो

rajnish manga
08-05-2014, 08:15 PM
ग़ज़ल
कलीम आज़िज़ ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मुहब्बत भी बहुत थी

उस बुत के सितम सह के दिखा ही दिया हम ने
गो अपनी तबियत में बगावत भी बहुत थी

वाकिफ ही न था रंज-ए-मुहब्बत से वो वरना
दिल के लिए थोड़ी सी इनायत भी बहुत थी

यूं ही नहीं मशहूर-ए-ज़माना मेरा कातिल
उस शख्स को इस फन में महारत भी बहुत थी

क्या दौर-ए-ग़ज़ल था के लहू दिल में बहुत था
और दिल को लहू करने की फुर्सत भी बहुत थी

हर शाम सुनाते थे हसीनो को ग़ज़ल हम
जब माल बहुत था तो सखावत भी बहुत थी

बुलवा के हम "आजिज़" को पशेमां भी बहुत हैं
क्या कीजिये कमबख्त की शोहरत भी बहुत थी

bindujain
11-05-2014, 07:44 AM
आज तू गैर सही, प्यार से बैर सही
तेरी आँखों में कोई प्यार का पैगाम नही
तुझको अपना ना बनाया तो मेरा नाम नही

तूने ठुकराया था जिस दिल को किसी की खातिर
आज उस दिल में बग़ावत के सिवा कुछ भी नही
जिनमे सपने थे तेरे प्यार के ऐ जान-ए-वफा
आज उन आँखो में नफ़रत के सिवा कुछ भी नही
प्यार की आग में संगदिल मैं जला हू जितना
तुझको उतना ना जलाया तो मेरा नाम नही

सारी दुनिया में फ़कत तुझसे मोहब्बत की है
तू किसी और की हो जाए ये मुमकिन ही नही
नाम तेरा ही मेरे नाम के साथ आएगा
तू किसी और की कहलाए ये मुमकिन ही नही
नाज़ है तुझको बहुत हुस्न पे अपने लेकिन
तेरे सर को ना झुकाया तो मेरा नाम नही

तेरे माथे पे मेरे प्यार का टीका होगा
जुल्फ़ तेरी मेरे शानो पे लहराएगी
है यकीं मुझको के मगरूर जवानी तेरी
मोम बनके मेरी बाहों में सिमट आएगी
संगमरमर से हँसी तेरे बदन पे संगदिल
लाल जोड़ा ना सजाया तो मेरा नाम नही

bindujain
11-05-2014, 07:45 AM
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लूट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे

नींद भी खुली ना थी के हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक़ उठे के ज़िंदगी फिसल गयी
पात-पात झर गये के शाख-शाख जल गयी,
चाह तो निकल सकी ना, पर उमर निकल गयी
गीत अश्क बन गये, स्वप्न हो दफ़न गये,
साथ के सभी दिए धुआँ पहन पहन गये,
और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे

क्या शबाब था के फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या कमाल था के देख आईना सहर उठा
इस तरफ ज़मीन और आसमां उधर उठा
थाम कर जिगर उठा के जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली
लूट गयी कली-कली के घुट गयी गली-गली,
और हम लूटे-लूटे, वक़्त से पीटे पीटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले के ज़ुल्फ़ चाँद की संवार दूँ
होंठ थे खुले के हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया के हर दुखी को प्यार दूँ
और सांस यूँ के स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ
हो सका ना कुछ मगर, शाम बन गयी सहर,
वो उठी लहर के ढह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे, नीर नैन में भरे,
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे

माँग भर चली के एक जब नयी-नयी किरण
ढोलके धुनक उठी, धूमक उठे चरण-चरण
शोर मच गया के लो चली दुल्हन, चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी, गाज़ एक वह गिरी,
पूछ गया सिंदूर, तार-तार हुई चूनरी
और हम अज़ान से, दूर के मकान से,
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे

bindujain
11-05-2014, 07:47 AM
वो हम न थे, वो तुम न थे
वो हम न थे, वो तुम न थे
वो रहगुज़र थी प्यार की
लूटी जहा पे बेवजह पालकी बहार की

ये खेल था नसीब का, न हंस सके न रो सके
न तूर पर पहुँच सके, न दार पर ही सो सके
कहानी किससे ये कहे, चढ़ाव की उतार की
लूटी जहा पे बेवजह पालकी बाहर की

तुम ही थे मेरे रहनुमा, तुम ही थे मेरे हमसफ़र
तुम ही थे मेरी रोशनी, तुम ही ने मुझको दी नज़र
बिना तुम्हारे ज़िंदगी शमा है एक मज़ार की
लूटी जहा पे बेवजह पालकी बाहर की

ये कौन सा मुक़ाम है, फलक नही ज़मी नही
के शब नही सहर नही, के ग़म नही खुशी नही
कहा ये लेके आ गयी, हवा तेरे दयार की
लूटी जहा पे बेवजह पालकी बाहर की

गुज़र रही है तुमपे क्या बना के हम को दर-ब-दर
ये सोचकर उदास हूँ, ये सोचकर है चश्मतर
ना चोट है ये फूल की, ना है ख़लिश ये ख़ार की
लूटी जहा पे बेवजह पालकी बाहर की

bindujain
11-05-2014, 10:17 PM
भरे बाज़ार से अक्सर मैं खाली हाथ आता हूँ,
कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते..!!

bindujain
11-05-2014, 10:19 PM
सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने का हुनर

सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है…..

bindujain
11-05-2014, 10:21 PM
किसी को धन नहीं मिलता
किसी को तन नहीं मिलता


लुटाओ धन मिलेगा तन
मगर फिर मन नहीं मिलता


हमारी चाहतें अनगिन
मगर जीवन नहीं मिलता


किसी के पास धन-काया
मगर यौवन नहीं मिलता


ये सांपों की है बस्ती पर
यहाँ चन्दन नहीं मिलता


जहां पत्थर उछलते हों
वहां मधुबन नहीं मिलता


मोहब्बत में मिले पीड़ा
यहाँ रंजन नहीं मिलता


लगाओ मन फकीरी में
सभी को धन नहीं मिलता


वो है साजों का मालिक पर
सभी को फन नहीं मिलता


अगर हो कांच से यारी
तो फिर कंचन नहीं मिलता


मिलेंगे लोग पंकज पर
वो अपनापन नहीं मिलता.

bindujain
11-05-2014, 10:22 PM
मेरी जुबां पर सच भर आया
कुछ हाथों में पत्थर आया

मैंने फूल बढ़ाया हंस कर
मगर उधर से खंजर आया

उनको मिली विफलताएं तो
दोष हमारे ही सर आया

मुझे इबादत की जब सूझी
बुझता घर रोशन कर आया

थकन मिट गयी मेरी पंकज
जब मेरा अपना घर आया

Dr.Shree Vijay
11-05-2014, 10:56 PM
बेहतरीन संकलन.........

bindujain
13-05-2014, 09:42 AM
ग़ज़ल

बढ़े चलिये, अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता
निगाहों का उजाला भी दियों से कम नहीं होता

भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अम्नो- अमाँ क़ायम नहीं होता

मनुष्यों की तरह यदि पत्थरों में चेतना होती
कोई पत्थर मनुष्यों की तरह निर्मम नहीं होता

तपस्या त्याग यदि भारत की मिट्टी में नहीं होते
कोई गाँधी नहीं होता, कोई गौतम नहीं होता

ज़माने भर के आँसू उनकी आँखों में रहे तो क्या
हमारे वास्ते दामन तो उनका नम नहीं होता

परिंदों ने नहीं जाँचीं कभी नस्लें दरख्तों की
दरख़्त उनकी नज़र में साल या शीशम नहीं होता

-अशोक रावत

bindujain
13-05-2014, 09:43 AM
तय तो करना था सफ़र हमको सवेरों की तरफ़
ले गये लेकिन उजाले ही अँधेरों की तरफ़

मील के कुछ पत्थरों तक ही नहीं ये सिलसिला
मंज़िलों भी हो गयी हैं अब लुटेरों की तरफ़

जो समंदर मछलियों पर जान देता था कभी
वो समंदर हो गया है अब मछेरों की तरफ़

साँप ने काटा जिसे उसकी तरफ़ कोई नहीं
लोग साँपों की तरफ़ हैं या सपेरों की तरफ़

शाम तक रहती थीं जिन पर धूप की ये झालरें
धूप आती ही नहीं अब उन मुडेरों की तरफ़

कुछ तो कम होगा अँधेरा रोज़ कुछ जलती हुई
तीलियाँ जो फ़ेंकता हूँ मैं अँधेरों की तरफ़.


-अशोक रावत

bindujain
14-05-2014, 10:15 PM
सावन को जरा खुल के बरसने की दुआ दो
हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो

मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए डर से
उन सारे परिंदों को चहकने की दुआ दो

वो लोग जो उजड़े हैं फसादों से, बला से
लो साथ उन्हें फिर से पनपने की दुआ दो

जिन लोगों ने डरते हुए दरपन नहीं देखा
उनको भी जरा सजने संवारने की दुआ दो

neeraj

bindujain
14-05-2014, 10:32 PM
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।

गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है

bindujain
15-05-2014, 08:29 AM
हाथ आ कर गया, गया कोई ।
मेरा छप्पर उठा गया कोई ।

लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई ।

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई ।

ऐसी मंहगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई ।

अब कुछ अरमाँ हैं न कुछ सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई ।

यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई ।

वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा-मोटा ख़ुदा गया कोई ।

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई ।
श्रेणी: ग़ज़ल

bindujain
15-05-2014, 08:29 AM
शोर यूँ ही न परिंदों[1] ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।

बानी-ए-जश्ने-बहाराँ[2] ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काटों को लहू अपना पिलाया होगा।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे,
ये सराब[3] उन को समंदर नज़र आया होगा।

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी,
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा

bindujain
15-05-2014, 08:30 AM
वक्त ने किया क्या हंसी सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम ।

बेक़रार दिल इस तरह मिले
जिस तरह कभी हम जुदा न थे
तुम भी खो गए, हम भी खो गए
इक राह पर चल के दो कदम ।

जायेंगे कहाँ सूझता नहीं
चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं
बुन रहे क्यूँ ख़्वाब दम-ब-दम ।

bindujain
15-05-2014, 08:32 AM
कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं

एक ज़रा हाथ बढ़ा, दे तो पकड़ लें दामन
उसके सीने में समा जाये हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत हैं तो फिर फ़ासला इतना क्यों हैं

दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई
एक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं

तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं


कुर्बत=समीपता ; मसर्रत=खुशी

bindujain
15-05-2014, 09:44 PM
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
Lyrics: Nida Fazli


अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं।

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम हैं।

bindujain
15-05-2014, 09:52 PM
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था -




उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया
जिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया



http://2.bp.blogspot.com/-9_NVuAh7qko/UnKEjDgNOcI/AAAAAAAAApE/PoxqPwG-Kuc/s1600/1muktibodh-by-haripal-tyagi.jpg
हरिपाल त्यागी की कूची से मुक्तिबोध

Dr.Shree Vijay
15-05-2014, 10:10 PM
एक सुंदर प्रयास.........

bindujain
15-05-2014, 10:12 PM
उधर ज़ुल्फ़ों में कंघी हो रही है, ख़म निकलता है
इधर रुक रुक के खिंच खिंच के हमारा दम निकलता है।
इलाही ख़ैर हो उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
न उनका ख़म निकलता है न हमारा दम निकलता है।



सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मरज़ी है।


गर सियाह-बख़्त ही होना था नसीबों में मेरे
ज़ुल्फ़ होता तेरे रुख़सार कि या तिल होता।

जाम जब पीता हूँ मुँह से कहता हूँ बिसमिल्लाह
कौन कहता है कि रिन्दों को ख़ुदा याद नहीं।

मय = Wine
ख़म=Curls of the Hhair (ख़म means “Bend ” or “Curve”, but here can be thought of meaning curls of the hair)
मकसूद = Intended, Proposed
सियाह= स्याह = Black
बख़्त = Fate
रिन्द = Drunkard

bindujain
18-05-2014, 04:40 PM
बदल कर रुख़ हवा उस छोर से आए तो अच्छा है
मेरी कश्ती भी साहिल तक पहुँच जाए तो अच्छा है

मसाइल और भी मौजूद हैं इसके सिवा लेकिन
महब्बत का भी थोड़ा ज़िक्र हो जाए तो अच्छा है

अदालत भी उसी की है, वक़ालत भी उसी की है
वो पेचीदा दलीलों में न उलझाए तो अच्छा है

जहाँ फूलों की बारिश हो, जहाँ ख़ुशबू के दरिया हों
कोई ऐसे जहाँ की राह बतलाए तो अच्छा है

कभी ऐसा नहीं होगा मुझे मालूम है फिर भी
मेरे हाथों में तेरा हाथ आ जाए तो अच्छा है

bindujain
18-05-2014, 04:43 PM
जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता है
बात करता है कि बस जी ही जला देता है

बात होती है इशारों में जो रूठे है कभी
उसका हम पर यूँ बिगड़ना भी मजा देता है

बात करेने का सलीक़ा भी तो कुछ होता है
वो हरिक बात पे नशतर-सा चुभा देता है

हमने दी है जो कभी उसको खुशी की अर्ज़ी
पुर्जा-पुर्जा वो हवाओं में उड़ा देता है

है अँधेरों में चराग़ों सा वजूद उसका "ख़याल"
राह भटका हो कोई राह दिखा देता है

bindujain
18-05-2014, 04:45 PM
बात छोटी-सी है पर हम आज तक समझे नहीं
दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं

सुर्ख़ रुख़सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
दौड़कर छत पे चले जाना तेरा भूले नहीं

हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े में थे वो
मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं

हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए
आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं

अब के है बारूद की बू चार-सू फैली हुई
खौफ़ है फैला हुआ आसार कुछ अच्छे नहीं.

उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल'
तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं

bindujain
18-05-2014, 05:03 PM
रुक जाना नही तू कही हार के

रुक जाना नहीं तू कही हार के
कांटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के
ओ राही, ओ राही

नैन आंसू जो लिये हैं, ये राहों के दिये हैं
लोगों को उनका सब कुछ देके
तू तो चला था सपने ही लेके
कोई नहीं तो तेरे अपने हैं सपने ये प्यार के

सूरज देख रुक गया हैं, तेरे आगे झूक गया हैं
जब कभी ऐसे कोई मसताना
निकले हैं अपनी धून में दीवाना
शाम सुहानी बन जाते हैं, दिन इंतजार के

साथी ना कारवाँ हैं, ये तेरा इम्तिहान हैं
यूही चला चल दिल के सहारे
करती हैं मंजिल तुझ को इशारे
देख कही कोई रोक नहीं ले, तूझ को पुकार के

Dr.Shree Vijay
18-05-2014, 09:52 PM
अतिसुन्दर रचनायें.........

bindujain
19-05-2014, 10:23 PM
http://hindigeetmala.net/lyrics_png/01433_ai_khuda_har_faisla_tera.png

bindujain
19-05-2014, 10:33 PM
http://hindigeetmala.net/lyrics_png/06592_kisi_nazar_ko_tera_intajaar.png

bindujain
20-05-2014, 04:41 PM
हमारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए [ग़ज़ल] - प्रकाश "अर्श"


मारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए। /
के रिश्ता जो भी जाए घर वो ना-मंजूर हो जाए॥ /
/
हिकारत से यूँ रस्ते में मुझे जालिम ना देखा कर /
मुहब्बत इस कदर ना कर कोई मगरूर हो जाए॥ /
/
जली होंगी कई लाशें दफ़न होंगे कई किस्से /
संभलना शहर फ़िर कोई ना भागलपूर हो जाए॥ /
/
कोई शिकवा हो तो कह दे इसे ना दिल में रक्खा कर /
ज़रा सा जख्म है बढ़कर न ये नासूर हो जाए॥ /
/
जिसे भी देखिये वो बेदिली से देखता है अब /
मुहब्बत करने वालों का न ये दस्तूर हो जाए॥ /
/
वो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में /
कमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए॥ /
/
है पीना कुफ्र ये जो "अर्श" से कहता रहा कल तक /
वही प्याला लबों को दे तो फ़िर मंजूर हो जाए॥ /

bindujain
20-05-2014, 04:55 PM
दुआऎं [कविता] - किरण सिन्धु



दुआओं का अपना ही वजूद होता है:
दुआएँ होठों से नहीं आँखों से बोलती हैं.
कभी किसी भूखे बच्चे को,
पेट भर खाना खिला कर तो देखो,

कभी किसी बूढे - बेसहारे को,
कुछ कदम साथ चल कर,
रास्ता पार करा कर तो देखो,

कभी किसी अबला की लुटती अस्मत को,
अपनी शराफत और भरोसे की चादर,
ओढ़ा कर तो देखो.

इनकी आँखों में इक नमी सी तैर जाती है,
एक ऐसा नूर जो दिल की गहराइयों में समा कर,
अन्दर तक उजाला भर दे.
एक ऐसे रिश्ते की बुनियाद,
जो सभी रिश्तों से ऊपर है.
दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है,
ये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है

Dr.Shree Vijay
20-05-2014, 05:25 PM
हमारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए [ग़ज़ल] - प्रकाश "अर्श"



वो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में /
कमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए॥ /



दुआऎं [कविता] - किरण सिन्धु



दुआओं का अपना ही वजूद होता है:
दुआएँ होठों से नहीं आँखों से बोलती हैं.

दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है,
ये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है





दोनों ही गजले अंतरमन को सोचने पर मजबूर करती हें ,
बेहतरीन.........

bindujain
21-05-2014, 06:54 AM
कहाँ जाऊँ मुझे ढूँढे से अपना घर नहीँ मिलता ।
सफर के वास्ते जैसे कोई रहबर नहीँ मिलता ॥

न झाडो रौब खुद्दारी का मेरे सामने साहब ।
अगर पगडी बचाता तो ये मेरा सर नहीँ मिलता ॥

कोई बिस्तर पे रातेँ काटता है करवटेँ लेकर ।
किसी को नीँद आती है मगर बिस्तर नहीँ मिलता ॥

भला कितनी तरक्की चाहते तो तुम यहाँ पर अब ।
जवाँ बेटोँ की आँखोँ मेँ बडोँ का डर नहीँ मिलता ॥

खुदा जिसने भी देखा हो मुझे चेहरा बता जाना ।
सुना है जिससे मिलता है कभी कह कर नहीँ मिलता ॥

bindujain
21-05-2014, 07:02 AM
एक हसरत थी की आंचल का मुझे प्यार मिले
मैने मंज़िल को तलाशा मुझे बाज़ार मिले
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

मुझको पैदा किया संसार में दो लाशों ने
और बर्बाद किया कौम के अय्याशों ने
तेरे दामन में बता मौत से ज़्यादा क्या है
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

जो भी तस्वीर बनता हूं बिगड़ जाती है
देखते देखते दुनिया ही उजड़ जाती है
मेरी कश्ती तेरा तूफान से वादा क्या है
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

तूने जो दर्द दिया उसकी कसम ख़ाता हूं
इतना ज़्यादा है की एहसां से दबा जाता हूं
मेरी तक़दीर बता और तक़ाज़ा क्या है
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

मैने जज़्बात के संग खेलते दौलत देखी
अपनी आँखो से मोहब्बत की तिजारत देखी
ऐसी दुनिया में मेरे वास्ते रखा क्या है
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

आदमी चाहे तो तकदीर बदल सकता है
पूरी दुनिया की वो तस्वीर बदल सकता है
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है

Dr.Shree Vijay
21-05-2014, 04:55 PM
एक हसरत थी की आंचल का मुझे प्यार मिले
मैने मंज़िल को तलाशा मुझे बाज़ार मिले
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है





श्री रामअवतार त्यागीजी द्वारा लिखित ,
श्री मुकेशजी द्वारा गाई यह गजल मेरी फेवरिट गजलों में से एक हें
यह गजल यह देने के लिए आपका हार्दिक आभार.........

rajnish manga
21-05-2014, 09:01 PM
कहाँ जाऊँ मुझे ढूँढे से अपना घर नहीँ मिलता ।
सफर के वास्ते जैसे कोई रहबर नहीँ मिलता ॥

न झाडो रौब खुद्दारी का मेरे सामने साहब ।
अगर पगडी बचाता तो ये मेरा सर नहीँ मिलता ॥

कोई बिस्तर पे रातेँ काटता है करवटेँ लेकर ।
किसी को नीँद आती है मगर बिस्तर नहीँ मिलता ॥



सुन्दर विचार, गज़ब की अभिव्यक्ति और लाजवाब शायरी. दिल पर असर छोड़ने वाली पंक्तियाँ. प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.

rajnish manga
21-05-2014, 09:03 PM
ग़ज़ल
शायर: ज्ञात नहीं है

ये मोजज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझ पे गिरे और ज़ख्म आये मुझे

वो मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से, तो शर्म आये मुझे

वो मेहरबान है तो इकरार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमां है तो सौ बार आजमाए मुझे

वही तो सब से ज्यादा है नुक्ता-चीं मेरा
जो मुस्कुरा के हमेशा गले लगाए मुझे

बरंग-ए-ऊद मिलेगी उसे मेरी खुश्बू
वो जब भी चाहे बडे शौक़ से जलाए मुझे

मैं अपनी जात में नीलाम हो रहा हूँ
गम-ए-हयात से कह दो खरीद लाये मुझे

(मोजज़ा = / संग = / बरंग-ए-ऊद = खुशबू वाली लकड़ी के समान)

bindujain
22-05-2014, 09:21 AM
Machal Ke Jab Bhi Aankhon Se Chhalak / मचल के जब भी आँखों से छलक

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना हैं आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

bindujain
23-05-2014, 07:02 AM
ज़रा पाने की चाहत में, बहुत कुछ छूट जाता है,
नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है ।

ग़नीमत है नगर वालों, लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर, दरोगा लूट जाता है.

तराज़ू के ये दो पलड़े, कभी यकसां नहीं रहते,
जो हिम्मत साथ देती है, मुक़द्दर रूठ जाता है.

अजब शै हैं ये रिश्ते भी, बहुत मज़बूत लगते हैं,
ज़रा-सी भूल से लेकिन, भरोसा टूट जाता है.

गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे,
कभी मैं रूठ जाता हूं, कभी वो रूठ जाता है.

बमुश्किल हम मुहब्बत के दफ़ीने खोज पाते हैं,
मगर हर बार ये दौलत, सिकंदर लूट जाता है.

आलोक श्रीवास्तव

bindujain
23-05-2014, 07:03 AM
वही आंगन, वही खिड़की, वही दर याद आता है,
मैं जब भी तन्हा होता हूँ, मुझे घर याद आता है।

मेरे सीने की हिचकी भी, मुझे खुलकर बताती है,
तेरे अपनों को गाँव में, तू अक्सर याद आता है।

जो अपने पास हों उनकी कोई क़ीमत नहीं होती,
हमारे भाई को ही लो, बिछड़कर याद आता है।

सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें
मगर जब चोट लगती है, मुक़द्दर याद आता है।

मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है,
नवम्बर याद आता है, दिसम्बर याद आता है।


आलोक श्रीवास्तव-

bindujain
23-05-2014, 07:19 AM
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ।
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ।

मैंने सिर्फ़ उसूलों के बारे में सोचा भर था,
कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूँ।

कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ।

मुझमें शायद थोड़ा-सा आकाश कहीं पर होगा,
मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूँ।

इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले,
अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूँ।

खुशबू के अहसास सभी रंगों ने छीन लिए हैं,
जैसे-तैसे फूलों की मुस्कान बचा पाया हूँ।

अशोक रावत

bindujain
23-05-2014, 07:24 AM
ज़ुबां पर फूल होते हैं

ज़ुबां पर फूल होते हैं, ज़हन में ख़ार होते हैं
कहाँ दिल खोलने को लोग अब तैयार होते हैं

न अपने राज़ हमसे बांटती हैं ख़िड़कियाँ घर की
न हमसे बेतकल्लुफ़ अब दरो-दीवार होते हैं

ये सारा वक़्त काग़ज़ मोड़ने में क्यों लगते हो
कहीं काग़ज़ की नावों से समंदर पार होते हैं

बगीचे में कि जंगल में, बड़े हों या कि छोटे हों
किसी भी नस्ल के हों पेड़ सब ख़ुद्दार होते हैं

उसूलों का सफ़र कोई शुरू यूँ ही नहीं करता
मुझे मालूम था ये रास्ते दुश्वार होते हैं

कभी संकल्प जिनके हार से विचिलित नहीं होते
हमेशा जीत के वे लोग दावेदार होते हैं
अशोक रावत

bindujain
23-05-2014, 08:06 AM
मैं अपने दोस्तोंज से आकल मिलता बहुत कम हूँ
बुरा लगता है कोई शिकायत क्यों नहीं करता???

Deep_
04-06-2014, 01:52 PM
सबी रचनाएं एक दुसरे से बढ़ कर है! प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!

rafik
04-06-2014, 04:34 PM
कहाँ जाऊँ मुझे ढूँढे से अपना घर नहीँ मिलता ।
सफर के वास्ते जैसे कोई रहबर नहीँ मिलता ॥


शानदार

bindujain
29-06-2014, 07:21 AM
झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं

हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं

जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथ में जँचते नहीं

अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं

साँप से तुलना ना कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं

कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं

बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मर्ज़ी से कभी चलते नहीं

फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं

ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिल में हैं
ये अलग है बात कि कहते नहीं

bindujain
30-06-2014, 07:17 AM
जिनके आँगन में अमीरी का शजर लगता है-
अन्जुम रहबर



जिनके आँगन में अमीरी का शजर लगता है,
उनका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है

चाँद तारे मेरे क़दमों में बिछे जाते हैं
ये बुजुर्गों की दुआओं का असर लगता है

माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
सर पे आँचल नही होता है तो डर लगता है

bindujain
30-06-2014, 07:25 AM
सोचा नही अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नही-
बशीर बद्र


सोचा नही अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नही
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नही

देखा तुझे सोचा तुझे चाह तुझे पूजा तुझे
मेरी खाता मेरी वफ़ा तेरी खता कुछ भी नही

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नही

इस शाम की देहलीज पर बैठे रहे वो देर तक
आंखों से की बातें बहुत मुंह से कहा कुछ भी नही

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जाएगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकि बचा कुछ भी नही

एहसास की खुशबू कहाँ, आवाज़ के जुगनू कहाँ
खामोश यादों के सिवा, घर में रखा कुछ भी नहीं

***********************

bindujain
30-06-2014, 07:28 AM
वह सुंदर नहीँ हो सकती
सीमा सचदेव

अपनी ही सोचों में गुम
एक
मध्मय-वर्गीय परिवार की लड़की
सुशील
गुणवती
पढ़ी-लिखी
कमाऊ-घरेलू
होशियार
संस्कारी
ईश्वर में आस्था
तीखी नाक
नुकीली आँखें
चौड़ा माथा
लंबा कद
दुबली-पतली
गोरा-रंग
छोटा परिवार
अच्छा खानदान
शौहरत
इज़्ज़त
जवानी
सब कुछ...........
सब कुछ तो है उसके पास
परंतु
परंतु, वह सुंदर नहीँ हो सकती
क्यों?
क्योंकि..........................
वक्त और हालात के
थपेड़ों के
उसके चेहरे पर निशान हैं

*******************************

rajnish manga
30-06-2014, 08:06 AM
बहुत सुन्दर. समाज की दोहरी मानसिकता पर एक ज़ोरदार कटाक्ष.

Deep_
30-06-2014, 03:01 PM
अपनी ही सोचों में गुम
.......
उसके चेहरे पर निशान हैं


:bravo::bravo::bravo:

rajnish manga
30-06-2014, 10:44 PM
अजीब कहानी
साभार: उमेश चौहान

बड़ी अजीब कहानी है।
सिर के ऊपर पानी है॥

दिन भर मंदिर, कंठी, माला,
रात में मदिरा जॉनी है॥

बाहर सत्य, अहिंसा, गाँधी,
अंदर उल्टी बानी है॥

जलन, फरेब भरा रग-रग में
मिटा आँख का पानी है॥

धोखे पर आकाश टँगा है
ढहता छप्पर-छानी है॥

देश-विदेश बैंक के खाते
किंतु दिवालिया रानी है॥

समरथ को कुछ दोष नहीं है
दुर्बल की पिट जानी है॥

rafik
01-07-2014, 11:50 AM
अजीब कहानी
साभार: उमेश चौहान बड़ी अजीब कहानी है।
सिर के ऊपर पानी है॥

दिन भर मंदिर, कंठी, माला,
रात में मदिरा जॉनी है॥

बाहर सत्य, अहिंसा, गाँधी,
अंदर उल्टी बानी है॥
आजकल के दोहरे चरित्र पर शानदार वार किया है ,बहुत ही शानदार

bindujain
01-07-2014, 05:04 PM
जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है

Lyrics: Akhtar


जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है,
बंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता है।

ये फर्श-ओ-अर्श क्या है अल्लाह जानता है,
पर्दों में क्या छिपा है अल्लाह जानता है।

जाकर जहाँ से कोई वापस नहीं है आता,
वो कौन सी जगह है अल्लाह जानता है

नेक़ी-बदी को अपने कितना ही तू छिपाए,
अल्लाह को पता है अल्लाह जानता है।

ये धूप-छाँव देखो ये सुबह-शाम देखो
सब क्यों ये हो रहा है अल्लाह जानता है।

क़िस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन
क़िस्मत में क्या लिखा है अल्लाह जानता है।


rafik
01-07-2014, 05:15 PM
बहुत खूब

:bravo::bravo::bravo::bravo:

bindujain
02-07-2014, 10:08 PM
दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं

Lyricist: Danish Aligarhi


दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।

तुम तो ख़ुद ही क़ातिल हो, तुम ये बात क्या जानो
क्यों हुआ मैं दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं।

बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।

यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितना लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।

जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर ‘दानिश’
उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।


बाम = Terrace, Rooftop
दोशीज़ा = Bride

bindujain
02-07-2014, 10:10 PM
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है

Lyricist: Mirza Ghalib

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?

हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।

हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है।

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है।

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैंने नहीं जानता दुआ क्या है।


मुश्ताक़ = Eager, Ardent
बेज़ार = Angry, Disgusted

bindujain
02-07-2014, 10:11 PM
नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं

Lyricist: Tasneem Farooqui


नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते हैं।

इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते हैं।

हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नहीं आता
तुम्हें नज़र में सजा कर शराब पीते हैं।

उन्हीं के हिस्से आती है प्यास ही अक्सर
जो दूसरों को पिला कर शराब पीते हैं।

bindujain
02-07-2014, 10:12 PM
इससे पहले कि बात टल जाए


Lyricist: Farhat Shahzad



इससे पहले कि बात टल जाए
आओ इक दौर और चल जाए।

आँसुओं से भरी हुई आँखें
रोशनी जिस तरह पिघल जाए।

दिल वो नादान, शोख बच्चा है
आग छूने से जो मचल जाए।

तुझको पाने की आस के सर से
जिन्दगी की रिदा ना ढल जाए।

वक़्त, मौसम, हवा का रुख जाना
कौन जाने कि कब बदल जाए।



रिदा = Cloak

bindujain
02-07-2014, 10:19 PM
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा

अशोक चक्रधर


(कहने को चार मुक्तक पर कहन में अनेक विचार)
1.
दिल की बातें दिल में ही रहना मुश्किल है,
उन बातों का भाषा में बहना मुश्किल है,
मीठा मीठा दर्द उठा करता जो अंदर,
सहना है आसान मगर कहना मुश्किल है।
2.
जो मेहनत करी तेरा पेशा रहेगा
न रेशम सही तेरा रेशा रहेगा
अभी कर ले पूरे सभी काम अपने
तू क्या सोचता है हमेशा रहेगा?
3.
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा गाते रहे,
क्या करूं, ये मुझको समझाते रहे,
सुन रहा था गौर से, पर यक-ब-यक
एक हिचकी आई और जाते रहे।
4.
मदद करना सबकी, इनायत न करना,
न चाहे कोई तो, हिदायत न करना।
शिकायत अगर कोई, रखता हो तुमसे
पलटकर तुम उससे, शिकायत न करना।

Dr.Shree Vijay
02-07-2014, 10:28 PM
बेहतरीन.........

rajnish manga
03-07-2014, 10:15 AM
:bravo:

मिर्ज़ा ग़ालिब तो अतुलनीय हैं. तसनीम फ़ारूकी, फरहत शहज़ाद और अशोक चक्रधर की रचनाएं भी अद्वितीय हैं. प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.

bindujain
03-07-2014, 10:09 PM
रात भी नींद भी कहानी भी
हाय, क्या चीज है जवानी भी|
दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है पानी भी।

ख़ल्क़ क्या-क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़बानी भी।
आये तारीख़े-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे-दरम्यानी भी।

अपनी मासूमियों के पर्दे में
हो गयी वो नज़र सियानी भी।
दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को है वो रातरानी भी।

दिले - बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी।
दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थीं आसमानी भी।

दिल को आदाबे-बन्दगी भी न आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी।
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी मेज़बानी भी।

ज़िन्दगी ऐन दीदे - यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी।
एक पैग़ामे-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी।

इस अदा का तेरे जवाब नहीं
मेह्रबानी भी सरगरानी१ भी।
दिल में इक हूक भी उठी ऐ दोस्त
याद आयी तेरी जवानी भी।

मनसबे - दिल२ ख़ुशी लुटाना है
ग़मे-पिनहाँ की पासबानी भी।
देख दिल के निगारखाने में
जख़्में-पिनहाँ की है निशानी भी।

फ़िराक गोरखपुरी :

bindujain
03-07-2014, 10:13 PM
दिल चीज क्या हैं, आप मेरी जान लीजिये
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये

इस अंजुमन में आप को आना हैं बार बार
दीवारों डर को गौर से पहचान लीजिये

माना के दोस्तों को नही, दोस्ती का फस
लेकिन ये क्या के गैर का एहसान लीजिये

कहिये तो आसमा को जमीन पर उतार लाये
मुश्किल नहीं हैं कुछ भी अगर ठान लीजिये

rajnish manga
04-07-2014, 07:24 AM
फ़िराक़ गोरखपुरी और शहरयार का कलाम दे कर आपने बहुत अच्छा किया. ये दोनों ही हमारे देश के अज़ीम शायर थे.

rafik
04-07-2014, 11:03 AM
बहुत खूबसूरत गजल ,धन्यवाद मित्र
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

Deep_
04-07-2014, 11:40 AM
आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।

- गुलज़ार जी

Deep_
04-07-2014, 11:45 AM
बस एक चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं!
कहीं पे सांस रुकी है!
नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!!

कोई अनोखी नहीं, ऐसी ज़िन्दगी लेकिन!
खूब न हो, मिली जो खूब मिली है!
नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!!

सहर भी ये रात भी, दोपहर भी मिली लेकिन!
हमीने शाम चुनी, हमीने शाम चुनी है!
नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!!

वो दासतां जो, हमने कही भी, हमने लिखी!
आज वो खुद से सुनी है!
नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!!
- गुलज़ार जी

Deep_
04-07-2014, 11:49 AM
मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे

दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

- गुलज़ार जी

(तीनों रचनाएं ईन्टरनेट से ली गई है)

rafik
04-07-2014, 04:54 PM
मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे

- गुलज़ार जी

(तीनों रचनाएं ईन्टरनेट से ली गई है)
गुलज़ार जी की गजल पेश करने के लिए! धन्यवाद मित्र

:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

Deep_
07-07-2014, 11:56 AM
प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा
दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये
प्यार अकेला नहीं जी सकता
जीता है तो दो लोगों में
मरता है तो दो मरते हैं

प्यार इक बहता दरिया है
झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं
सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता
बस दरिया है और बह जाता है.

दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है
चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है
पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना
नीचे से फिर भाग के सूरत उपर उठना
बादल बन आकाश में बहना
कांपने लगता है जब तेज़ हवाएँ छेड़े
बूँद-बूँद बरस जाता है.

प्यार एक ज़िस्म के साज़ पर बजती गूँज नहीं है
न मन्दिर की आरती है न पूजा है
प्यार नफा है न लालच है
न कोई लाभ न हानि कोई
प्यार हेलान हैं न एहसान है.

न कोई जंग की जीत है ये
न ये हुनर है न ये इनाम है
न रिवाज कोई न रीत है ये
ये रहम नहीं ये दान नहीं
न बीज नहीं कोई जो बेच सकें.

खुशबू है मगर ये खुशबू की पहचान नहीं
दर्द, दिलासे, शक़, विश्वास, जुनूं,
और होशो हवास के इक अहसास के कोख से पैदा हुआ
इक रिश्ता है ये
यह सम्बन्ध है दुनियारों का,
दुरमाओं का, पहचानों का
पैदा होता है, बढ़ता है ये, बूढा होता नहीं
मिटटी में पले इक दर्द की ठंढी धूप तले
जड़ और तल की एक फसल
कटती है मगर ये फटती नहीं.

मट्टी और पानी और हवा कुछ रौशनी
और तारीकी को छोड़
जब बीज की आँख में झांकते हैं
तब पौधा गर्दन ऊँची करके
मुंह नाक नज़र दिखलाता है.

पौधे के पत्ते-पत्ते पर
कुछ प्रश्न भी है कुछ उत्तर भी
किस मिट्टी की कोख़ से हो तुम
किस मौसम ने पाला पोसा
औ' सूरज का छिड़काव किया.

किस सिम्त गयी साखें उसकी
कुछ पत्तों के चेहरे उपर हैं
आकाश के ज़ानिब तकते हैं
कुछ लटके हुए ग़मगीन मगर
शाखों के रगों से बहते हुए
पानी से जुड़े मट्टी के तले
एक बीज से आकर पूछते हैं.

हम तुम तो नहीं
पर पूछना है तुम हमसे हो या हम तुमसे
प्यार अगर वो बीज है तो
इक प्रश्न भी है इक उत्तर भी.

- गुलज़ार जी

rafik
07-07-2014, 03:38 PM
तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे

तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल-महफ़िल गायेंगे,
जब तक आंसू साथ रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे,
तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं,
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे,
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारें छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे,
किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रास्ता आसान है,
हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे,
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे..





जगजीत सिंह

rajnish manga
07-07-2014, 10:55 PM
दीप जी, आपके द्वारा प्रस्तुत collection लाजवाब है. गुलज़ार साहब ने अपनी कविताओं तथा गीतों की साहित्यिक गुणवत्ता से कभी कोई समझोता नहीं किया और उनका उच्च स्तर बनाये रखा. धन्यवाद.

Deep_
08-07-2014, 01:29 PM
दीप जी, आपके द्वारा प्रस्तुत collection लाजवाब है. गुलज़ार साहब ने अपनी कविताओं तथा गीतों की साहित्यिक गुणवत्ता से कभी कोई समझोता नहीं किया और उनका उच्च स्तर बनाये रखा. धन्यवाद.

टिप्प्णी के लिए धन्यवाद रजनीश जी!

rajnish manga
08-07-2014, 11:02 PM
ग़ज़ल
शायर: मौलाना हसरत मोहानी

ख़ू समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की
जिनको दामन की ख़बर है न गिरेबानों की

आँख वाले तेरी सूरत पे मिटे जाते हैं
शम*अ़-महफ़िल की तरफ़ भीड़ है परवानों की

राज़े-ग़म से हमें आगाह किया ख़ूब किया
कुछ निहायत ही नहीं आपके अहसानों की

आशिक़ों ही का जिगर है कि हैं ख़ुरसंदे-ज़फ़ा
काफ़िरों की है ये हिम्मत न मुसलमानों की

याद फिर ताज़ा हुई हाल से तेरे 'हसरत'
क़ैसो-फ़रहाद के भूले हुए अफ़सानों की

शब्दार्थ:
ख़ू = आदत / निहायत = हद / ख़ुरसंदे-ज़फ़ा = अकृपा पर भी प्रसन्न

bindujain
09-07-2014, 09:06 AM
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार की सर्वाधिक चर्चित ग़ज़ल ...

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है


एक चिंगारी कही से ढूंढ लाओ दोस्तो
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है


एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है


एक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है


निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है


दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

bindujain
09-07-2014, 09:08 AM
आसमां भी मिल जाएगा उड़कर तो देख ...............


अपने हालात- ए- जिंदगी से लड़कर तो देख
आसमां भी मिल जाएगा उड़कर तो देख ।

क्यों दुनिया से यहां-वहां लड़ता फिरता है
खुद से आगे भी कभी निकलकर देख।

ठोकर खाकर उठ जाना कोई नई बात नहीं,
गिर किसी नजर से फिर संभलकर तो देख।

वक्त से आगे निकलना तो बड़ी बात हुई,
दो कदम वक्त के साथ ही चलकर तो देख।

जो भी मिलता है हमें यूं लगे मिला है पहले भी,
अनजान कहता है मगर इस दफ़ा मिलकर तो देख।

तूने जिसे दीवार पर लगाई थी कभी अपनीतस्वीर,
हो गए कितने ही दिन चलके वही घर तो देख।

Dr.Shree Vijay
09-07-2014, 01:12 PM
दिन ब दिन इस सूत्र में निखार आते जा रहां हें.........

bindujain
10-07-2014, 10:20 PM
अपना मुक़द्दर हो गया
[ग़ज़ल] - देवमणि पांडेय

इस तरह कुछ आजकल अपना मुक़द्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया

ज़िंदगी को हार का तोहफ़ा मिला तो यूँ लगा
आँसुओं का सिलसिला पलकों का ज़ेवर हो गया

जब तलक दुःख मेरा दुःख था एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया

मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
वो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया

इस क़दर बदला है चेहरा आदमी ने इन दिनों
कल तलक जो आईना था आज पत्थर हो गया

थी जहाँ फूलों की बारिश, ख़ूँ का दरिया है वहाँ
क्या उम्मीदें थीं रुतों से क्या ये मंज़र हो गया

bindujain
10-07-2014, 10:29 PM
http://1.bp.blogspot.com/-Nd72TpCUsdE/T9R_i6D7PmI/AAAAAAAAH1Q/c5042ALPurM/s640/cool-oil-painting-of-south-indian-girl-sitting-inside-house-and-2-parrots.jpg
कौन है दोस्त यहां यार किसे कहते हैं
किसको ख़ामोशियां इज़हार किसे कहते हैं
फूल देकर किसी लड़की को रिझाने वालों
तुमको मालूम नहीं प्यार किसे कहते हैं

bindujain
10-07-2014, 10:32 PM
http://pixitr.com/files/glamgalz/imgs/gossips/victoria_justice_bhills_01.jpg
साथ तेरा मिला तो मुहब्बत मेरी
दिल के काग़ज़ पे उतरी ग़ज़ल हो गई
तूने हँस के जो देखा मेरी ज़िंदगी
झील में मुस्कराता कँवल हो गई

bindujain
10-07-2014, 10:38 PM
http://pixitr.com/files/glamgalz/imgs/gossips/victoria_justice_bhills_04.jpg
बहुत बिखरा, बहुत टूटा, थपेडे़ सह नही पाया,
हवाओं के इशारों पे मगर मैं बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूँ प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नही पाए, कभी मैं कह नही पाया

bindujain
10-07-2014, 10:40 PM
http://farm4.static.flickr.com/3207/2908372619_d09be091ea.jpg
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

bindujain
10-07-2014, 10:41 PM
http://farm3.static.flickr.com/2115/2096056717_6520f61b97.jpg
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

bindujain
10-07-2014, 10:41 PM
http://farm3.static.flickr.com/2355/2908376131_4f12d73e04.jpg
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया

bindujain
10-07-2014, 10:44 PM
http://farm3.static.flickr.com/2330/2096830756_117b40c91b.jpg
भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा -

bindujain
10-07-2014, 10:46 PM
http://farm4.static.flickr.com/3172/2814921421_527f9e3d1d.jpg
लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है

bindujain
10-07-2014, 10:47 PM
http://farm4.static.flickr.com/3194/2815776290_b502e32a98.jpg
मेरा दिल क्यूँ धड़क बैठा, ये साँसें कंपकंपाई क्यूँ
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.

rajnish manga
10-07-2014, 11:46 PM
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार की सर्वाधिक चर्चित ग़ज़ल ...

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है

एक चिंगारी कही से ढूंढ लाओ दोस्तो
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है


दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों को पढ़ना हिंदी में रचे गये कालजयी साहित्य से साक्षात्कार करना है. इस ग़ज़ल का पुनर्पाठ एक थकी हुई पीढ़ी को अमृत पिलाने के समान है. धन्यवाद, बिंदु जी.

rajnish manga
11-07-2014, 12:05 AM
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया

भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा

लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है

मेरा दिल क्यूँ धड़क बैठा, ये साँसें कंपकंपाई क्यूँ
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.


बहुत खूबसूरत. एक एक रूबाई सच्चे मोतियों की तरह है जिनसे मिल कर एक आकर्षक हार बनता है. इस हार को प्रस्तुत करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

Swati M
12-07-2014, 05:44 PM
खुबसुरत.

bindujain
14-07-2014, 06:27 PM
http://hindigeetmala.net/lyrics_png/12561_sab_kuchh_sikha_hamne_na.png

bindujain
14-07-2014, 06:45 PM
http://chivethebrigade.files.wordpress.com/2014/07/random-07_11_14-920-24.jpg?w=920&h=1380

ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
तू ने ख़्वाबों के सिवा मुझ को दिया भी क्या है

rafik
15-07-2014, 09:23 AM
यहा पर बहुत बहुत अच्छी गजल पेश किए जा रही है ,आनन्द से भरपुर है !धन्यवाद मित्रो

bindujain
19-07-2014, 08:28 AM
देवमणि पाण्डेय

सबसे दिल का हाल न कहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
जो कुछ गुज़रे ख़ुद पर सहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
क़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

नए रंग में ढली है दुनिया प्यार पे लेकिन पहरे हैं
ख़्वाब सुहाने बुनते रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

प्यार को अब इस दुनिया ने जाने कितने नाम दिये
हमने कहा ख़ुशबू का गहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

उसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
मिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं

rajnish manga
19-07-2014, 11:05 AM
देवमणि पाण्डेय

...
हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
क़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं

इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
....



बहुत खूबसूरत, बहुत दिलकश ग़ज़ल. एक एक लफ्ज़ मोतियों सा चमक रहा है. धन्यवाद.

Deep_
19-07-2014, 11:28 AM
भला बुरा, बुरा भला है! खोटे पर...सब खरा भला है
भला बुरा, बुरा भला है! खोटे पर...सब खरा भला है


झुठ सच का क्या पता है? एक कम, एक बड़ी बला है!
चाल-ढाल सब एक जैसी, सारा कुछ ही नपा-तुला है
सच के सर जब धुंआ उठे तो, झुठ आग में जला हुआ है..
भला बुरा, बुरा भला है! खोटे पर...सब खरा भला है


काला है तो काला होगा, मौत का मसाला होगा,
चुना कथ्था ज़िंदगी तो, सुपारी जैसा छाला होगा!
बाप ने जना नही तो, पापीओं ने पाला होगा
थुंक से निकल गया था, भुक ने निकाला होगा


वो जो अब कहीं नहिं है, उस पे भी तो यकीं नहिं है!
रहता है जो पलक फलक पै, उसका घर भी जमीं नहिं है!
अक्ल का खयाल अगर वो शक्ल से भीं हंसी नहिं है
पहले हर जग़ह था वो, सुना है की अब कहीं नहिं है!


भला बुरा, बुरा भला है! खोटे पर...सब खरा भला है
भला बुरा, बुरा भला है! खोटे पर...सब खरा भला है!



- गुलज़ार जी (फिल्म 'अक्स' से)

rajnish manga
19-07-2014, 12:23 PM
दीप जी को गुलज़ार साहब की इस सुन्दर रचना की प्रस्तुति के लिये धन्यवाद.

rajnish manga
19-07-2014, 12:28 PM
ग़ज़ल
महताब हैदर नक़वी

अगर कोई ख़लिश -ए- जाविदाँ सलामत है
तो फिर जहाँ में ये तर्ज-ए-फुगाँ सलामत है

अभी तो बिछड़े हुए लोग याद आयेंगे
अभी तो दर्द-ए-दिल-ए-रायगां सलामत है (दर्द-ए-दिल-ए-रायगां = बेकार से दिल का दर्द)

अगरचे इसके न होने से कुछ नहीं होता
हमारे सर पे अगर आसमाँ सलामत है

हमारे सीने का ये ज़ख़्म भर गया ही तो क्या
अदू के तीर अदू की कमाँ सलामत है (अदू = शत्रु)

जहाँ में रंज-ए-सफ़र हम भी खींचते हैं
जो गुम हुआ है वही कारवाँ सलामत है

Deep_
19-07-2014, 04:38 PM
http://favim.com/610/201106/11/Favim.com-beautiful-light-moon-photo-photography-sky-71738.jpg

मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने

रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे

(गुलज़ार जी की त्रिवेणी)

Deep_
19-07-2014, 04:41 PM
http://smspk.kalpoint.com/modules/wallpapers-submit/images/moon-study-free-mobile-wallpaper-1369474551.jpg
सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा (भिक्षापात्र)
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें

सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।


(गुलज़ार जी की त्रिवेणी)

Deep_
19-07-2014, 04:48 PM
http://onwardtoourpast.com/wp-content/uploads/2013/04/newspaper_stack.jpg?fb9390

सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर

कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।
(गुलज़ार जी की त्रिवेणी)

bindujain
20-07-2014, 03:54 PM
कुँअर बेचैन


ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार क*़दम, धूप चली मीलों तक

प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक

प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक

घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक

माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी
मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक

मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक

हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक

bindujain
20-07-2014, 03:56 PM
कुँअर बेचैन

सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर

दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर

या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर

बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर

बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर

शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर

bindujain
20-07-2014, 03:59 PM
अज़ीज़ अहमद खाँ शफ़क़

ज़ौक़-ए-अमल के सामने दूरी सिमट गई
दरवाज़ा हम ने खोला तो दीवार हट गई

बेटे को अपने देख के इक बाप ने कहा
तुम हो गए जवान मगर उम्र घट गई

पहले तो ख़ुद को देख के हैरत-ज़दा हुई
चिड़िया फिर आईने से लपक कर चिमट गई

पतवार भी उठाने की मोहलत न मिल सकी
ऐसी चली हवाएँ कि कश्ती उलट गई

नाराज़ हो गया है ख़ुदा सब से ऐ ‘शफ़क’
दुनिया तमाम प्यार के रिश्ते से कट गई

bindujain
20-07-2014, 04:23 PM
क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

1/5

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

bindujain
20-07-2014, 04:25 PM
2/5

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

bindujain
20-07-2014, 04:26 PM
3/5

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

bindujain
20-07-2014, 04:27 PM
4/5

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

bindujain
20-07-2014, 04:27 PM
5/5

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

rajnish manga
20-07-2014, 11:32 PM
कुंवर बैचेन साहब, अज़ीज़ अहमद खां 'शफ़क' और पूर्व प्रधानमंत्री कवि अटल जी की कवितायें/ग़ज़लें प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद.

Deep_
21-07-2014, 12:54 PM
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में


जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में


शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में


रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में


दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

(गुलज़ार जी )
ईस गज़ल को गुलाम अली ने गाया है (http://myhindiforum.com/www.youtube.com/watch?v=GY1-7PZPVCc)

Deep_
21-07-2014, 12:58 PM
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के

कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी-भरकम हो जाते हैं

कुछ भारी-भरकम बर्फ़ के-से
बरसों के तले गलते-गलते
हलके-फुलके हो जाते हैं

नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है

बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं

(गुलज़ार जी )

rajnish manga
21-07-2014, 11:34 PM
....
नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है

बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं

(गुलज़ार जी )

कम शब्दों में ही गुलज़ार साहब ने सांसारिक रिश्तों की असलियत व जटिलता समझाने की कोशिश की है. बहुत खूब. प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.

rafik
22-07-2014, 10:21 AM
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं

नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है

बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं

(गुलज़ार जी )

गुलजार जी की गजल पेश करने के लिए धन्यवाद मित्र ,गुलजार जी ने रिश्ते को जिस तरीके से पेश किया ,दिल को छू जाती है !

:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

bindujain
22-07-2014, 10:30 PM
मुनव्वर राना


नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

मुलाक़ातों पे हँसते बोलते हैं मुस्कराते हैं
तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

खुले रखते हैं दरवाज़े दिलों के रात दिन दोनों
मगर सरहद पे पहरेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

मेरा दुश्मन मुझे तकता है मैं दुश्मन को तकता हूँ
कि हायल राह में किलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

मुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है
मिरे कांधे पे ज़िम्मेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
***

bindujain
22-07-2014, 10:31 PM
शिव ओम अंबर

राजभवनों की तरफ़ न जायें फरियादें,
पत्थरों के पास अभ्यंतर नहीं होता
ये सियासत की तवायफ़ का टुप्पटा है
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता।

Deep_
22-07-2014, 10:46 PM
रजनीश जी और रफिक जी को धन्यवाद!

rafik
23-07-2014, 10:00 AM
रजनीश जी और रफिक जी को धन्यवाद!

धन्यवाद मित्र

rafik
23-07-2014, 10:03 AM
शिव ओम अंबर
राजभवनों की तरफ़ न जायें फरियादें,
पत्थरों के पास अभ्यंतर नहीं होता
ये सियासत की तवायफ़ का टुप्पटा है
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता।


मुनव्वर राना


नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

मुलाक़ातों पे हँसते बोलते हैं मुस्कराते हैं
तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

बहुत अच्छे मित्र

bindujain
23-07-2014, 07:34 PM
हर स्वप्न पूरा नहीं हो सकता मैं जानता हूँ,
फिर भी कुछ सपने हैं जिन्हें साकार करना चाहता हूँ
http://www.bollygallery.com/show/Pooja%20Gaur/Pooja%20Gaur%20-%2045.jpg

rajnish manga
26-07-2014, 10:25 PM
Ghazal ग़ज़ल
Qatil Shifai क़तील शिफ़ाई

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं

बच निकलते हैं अगर आतिश-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं

खुद-नुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं

शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूं लोग मेरे नाम से जल जाते हैं

रब्त-ए-बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं

bindujain
27-07-2014, 07:38 AM
दिल में यादों का धुआँ है यारो !
आग की ज़द में मकाँ है यारो !
http://www.bromygod.com/wp-content/uploads/2014/07/Girls-Tight-Dress-007-04192014.jpg

bindujain
27-07-2014, 07:40 AM
खा गया वक्त हमें नर्म निवालों की तरह
हसरतें हम पे हसीं ज़ोहरा—जमालों की तरह
http://www.bromygod.com/wp-content/uploads/2014/07/Girls-Tight-Dress-020-07132014.jpg

bindujain
27-07-2014, 07:41 AM
सता-सता के हमें

Lyrics: Wafa Roomani


सता-सता के हमें अश्कबार करती है
तुम्हारी याद बहुत बेक़रार करती है।

वो दिन जो साथ गुज़ारे थे प्यार में हमने
तलाश उनको नज़र बार-बार करती है।

ग़िला नहीं जो नसीबों ने कर दिया है जुदा
तेरी जुदाई भी अब हमको प्यार करती है।

कनारे बैठ के जिसके किए थे कौल-ओ-क़रार
नदी वो अब भी तेरा इंतज़ार करती है।

rajnish manga
27-07-2014, 11:53 AM
ग़ज़ल
शकील बदायूंनी / shakeel badayuni

बना-बना के तमन्ना मिटाई जाती है
तरह-तरह से वफा आजमाई जाती है

जब उनको मेरी मुहब्बत का ऐतबार नहीं
झुका-झुका के नजर क्यों मिलाई जाती है

हमारे दिल का पता वो हमें नहीं देते
हमारी चीज हमीं से छुपाई जाती है

‘शकील’ दूरी-ए-मंजिल से नाउम्मीद ना हो
अब आई जाती है मंजिल अब आई जाती है

bindujain
27-07-2014, 12:08 PM
आज मेरा मन उदास है

ललित कुमार

आज मेरा मन उदास है
किससे कहूँ?
नहीं कोई आस-पास है
किससे कहूँ?
इस सूनेपन को
एकाकी मन को
इन सन्नाटों को
अनकही बातों को
इन अंधेरों को
दुखों के घेरों को
इस गहराती रात को
अपने मन की बात को
किससे कहूँ?

आज मेरा मन उदास है
किससे कहूँ?
नहीं कोई आस-पास है
किससे कहूँ?

rafik
28-07-2014, 10:52 AM
सता-सता के हमें

Lyrics: Wafa Roomani


सता-सता के हमें अश्कबार करती है
तुम्हारी याद बहुत बेक़रार करती है।



बहुत अच्छे मित्र
ग़ज़ल
शकील बदायूंनी / shakeel badayuni

बना-बना के तमन्ना मिटाई जाती है
तरह-तरह से वफा आजमाई जाती है

जब उनको मेरी मुहब्बत का ऐतबार नहीं
झुका-झुका के नजर क्यों मिलाई जाती है

:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

bindujain
28-07-2014, 06:52 PM
काम कोई मुझे बाकी नहीं / अकबर इलाहाबादी



काम कोई मुझे बाकी नहीं मरने के सिवा
कुछ भी करना नहीं अब कुछ भी न करने के सिवा

हसरतों का भी मेरी तुम कभी करते हो ख़याल
तुमको कुछ और भी आता है सँवरने के सिवा

bindujain
28-07-2014, 06:53 PM
ख़ामोशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए / 'ज़फ़र' इक़बाल


ख़ामोशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए

ख़्वाब की ताबीर पर इसरार है जिन को अभी
पहले उन को ख़्वाब से बेदार होना चाहिए

डूब कर मरना भी उसलूब-ए-मोहब्बत हो तो हो
वो जो दरिया है तो उस को पार होना चाहिए

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए

बात पूरी है अधूरी चाहिए ऐ जान-ए-जाँ
काम आसाँ है इसे दुश्वार होना चाहिए

दोस्ती के नाम पर कीजे न क्यूँकर दुश्मनी
कुछ न कुछ आख़िर तरीक़-ए-कार होना चाहिए

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए

bindujain
28-07-2014, 06:57 PM
जतिन्दर परवाज़


ग़ज़ल

सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र खून में तर
शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर

तुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता है
तुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर

बेमौसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों के
बेमौसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती पर

आ भी जा अब आने वाले कुछ इन को भी चैन पड़े
कब से तेरा रस्ता देखें छत आँगन दीवार-ओ-दर

जिस की बातें अम्मा अब्बू अक्सर करते रहते हैं
सरहद पार न जाने कैसा वो होगा पुरखों का घर

bindujain
29-07-2014, 08:25 AM
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
Lyricist: Qateel Shifai


अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।

बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।


bindujain
29-07-2014, 08:28 AM
नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
Lyricist: Tasneem Farooqui



नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते हैं।

इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते हैं।

हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नहीं आता
तुम्हें नज़र में सजा कर शराब पीते हैं।

उन्हीं के हिस्से आती है प्यास ही अक्सर
जो दूसरों को पिला कर शराब पीते हैं।

bindujain
29-07-2014, 08:30 AM
रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए

Lyricist: Tasleem Fazli


रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ, फिर जान-ए-जाना हो गए।

दिन-ब-दिन बढ़ती गईं, उस हुस्न की रानाइयाँ
पहले गुल, फिर गुलबदन, फिर गुलबदाना हो गए।

आप तो नज़दीक से, नज़दीकतर आते गए
पहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमाँ हो गए।

प्यार जब हद से बढ़ा सारे तकल्लुफ़ मिट गए
आप से फिर तुम हुए, फिर तू का उनवाँ हो गए।



रानाई = Beauty
उनवाँ = Title

rafik
30-07-2014, 09:33 AM
रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए

lyricist: Tasleem fazli

रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ, फिर जान-ए-जाना हो गए।


नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
lyricist: Tasneem farooqui



नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते हैं।

जतिन्दर परवाज़


ग़ज़ल

सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र खून में तर
शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर

तुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता है
तुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर

दिल को छूने वाली गजले पड़ने पर दिल को सकून मिलता है, धन्यवाद मित्र

rafik
30-07-2014, 11:07 AM
http://2.bp.blogspot.com/-0GkzVHqrizM/T33TSmXHFDI/AAAAAAAAAMM/FbEGb3dXY_4/s200/ateet.jpg (http://2.bp.blogspot.com/-0GkzVHqrizM/T33TSmXHFDI/AAAAAAAAAMM/FbEGb3dXY_4/s1600/ateet.jpg)


अतीत के झरोखे खोलती हैं यादें,
बिन कहे बहुत कुछ बोलती हैं यादें |

कुछ रह गया था शायद उस हसीन पल में,
आज उसको दिल में, टटोलती हैं यादें |

कुछ लोग थे बुरे भी, कुछ थे बहुत ही अच्छे,
उन लोगों को आज भी, तौलती हैं यादें |

जिन खुशियों की थी चाहत, छिन गईं वो सारी,
जाने क्यों ये सोचकर खौलती हैं यादें |

वो गांव वो चौबारा, जीते थे जहां खुलकर,
बगैर उनके आखिर, किस मोल की हैं यादें |

वो श्वेत श्याम दुनिया, जन्नत थी उस समय में,
इस रंगीन युग में उसकी, मखौल सी हैं यादें |

वो गुज़रा हुआ ज़माना, कितना भी कोई भूले,
हर आने वाले युग में परोसती हैं यादें |

rafik
30-07-2014, 03:33 PM
आज मेरा गम, तेरे गम सा क्यूँ है ?
हम सब सुरक्षित है, यह वहम सा क्यूँ है ?
जख्म बन चुका है नासूर
पर वो ही पुराना मरहम सा क्यूँ है ?
बेकसूरों को मुआवजा , जान कि कीमत ?
और खुनी को बिरयानी , दामाद सी आवभगत
इस देश में ऐसा, नियम सा क्यूँ है ?
आज मेरा गम, तेरे गम सा क्यूँ है ?
गांधी भी चुप हैं , और भगतसिंह भी मौन है
सब जानते है पता कातिल का ....
पर सब "बन" के पूछ रहें है, कि अपराधी कौन है ?
आँख बंद करने से मौत टल जायेगी, तुझे ऐसा भ्रम सा क्यूँ है ?
आज मेरा गम, तेरे गम सा क्यूँ है ?
इन सफेदपोशों को, आईना भी, चेहरा कैसे दिखा देता है ?
बेशर्मी इतनी लहू में इनकें , लाशों पे राजनीति करना सीखा देता है ||
मारें तुने बेगुनाह हजारों , कभी कोर्ट में कभी फोर्ट में , कभी रोड पे कभी मोड़ पे
पर यह तो बता , इन सफेदपोश गद्दारों पे तेरा रहम सा क्यूँ है ?
आज मेरा गम, तेरे गम सा क्यूँ है ?
हम सब सुरक्षित है, यह वहम सा क्यूँ है ?

rafik
30-07-2014, 03:51 PM
सच्चाई के आईने, काले हो गये....|
बुजदिलो के घर मेँ, उजाले हो गये....||
झुठ बाजार मेँ, बेखौफ बिकता रहा....|
मैने सच कहा तो, जान के लाले हो गये....||
पसीना-बेच कर, जिसने परिवार पाले....|
वो भुखा सो गया, जब बच्चे कामवाले हो गये.....||
लहजा मिटा, मिजाज नरम, आँखो मेँ शरम.....|
सब बेच खाये जब, वो शहर वाले हो गये.....||
अपनी कमाई से एक, झोपड़ी तक ना बना सके......|
वो सियासत मेँ आये, तो महल वाले हो गये......||

bindujain
04-08-2014, 07:25 PM
नहीं मिलना तो भला याद भी आते क्यों हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो

डर तुम्हे इतना भी क्या है कहो ज़माने का
रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाते क्यों हो

दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आएगा
आप पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यों हो

हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
हम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो

जाने किस वक्त तुम्हे इनकी ज़रूरत होगी
आप बे वक्त ही अश्कों को गिराते क्यों हो

यारी पिंजरे से ही कर ली है जब परिंदे ने
आसमां उसको खुला आप दिखाते क्यों हो

ज़िंदगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग तुम इश्क की सरकार लगाते क्यों हो

मुझको मालूम है दुश्मन नहीं हो दोस्त मेरे
मुझसे खंजर को बिना बात छुपाते क्यों हो

इश्क मरता नहीं नीरज है पता सदियों से
फ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो

bindujain
04-08-2014, 08:27 PM
kisee najar ko teraa, intajaar aaj bhee hain
kahaa ho tum ke ye dil bekaraar aaj bhee hain

wo waadiyaa, wo fijaayen ke hum mile the jahaan
meree wafaa kaa wahee par majaar aaj bhee hain

n jaane dekh ke kyoo un ko ye huaa yehasaas
ke mere dil pe unhe ikhtiyaar aaj bhee hain

wo pyaar jis ke liye humane chhod dee duniyaan
wafaa kee raah mein ghaayal wo pyaar aaj bhee hain

yakeen naheen hain magar aaj bhee ye lagataa hain
meree talaash mein shaayad bahaar aaj bhee hain ..

rafik
08-08-2014, 04:34 PM
नहीं मिलना तो भला याद भी आते क्यों हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो

डर तुम्हे इतना भी क्या है कहो ज़माने का
रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाते क्यों हो

दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आएगा
आप पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यों हो

हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
हम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो


दिलचस्प गीत गजल

bindujain
10-08-2014, 06:07 AM
उर्मिलेश शंखधर

जाने कब से तरस रहे हैं, हम खुल कर मुस्कानें को
इतने बन्धन ठीक नहीं हैं, हम जैसे दीवानों को

लिये जा रहे हो दिल मेरा, लेकिन इतना याद रहे
बेच न देना बाज़ारों में, इस अनमोल ख़जाने को

तन की दूरी तो सह लूँगा, मन की दूरी ठीक नहीं
प्यार नहीं कहते हैं केवल, आँखों के मिल जाने को

यह अपना दुर्भाग्य विधाता, ने तन दिया अभावों का
मन दे दिया किसी राजा का, जग में प्यार लुटाने को

सुख-दुख अगर देखना है तो, अपने चेहरे में देखो
होंठ मिले हैं मुस्कानें को, आँखें अश्क़ बहाने को

bindujain
10-08-2014, 08:18 AM
गोपालदास ‘नीरज’

बादलों से सलाम लेता हूँ
वक्त क़े हाथ थाम लेता हूँ
सारा मैख़ाना झूम उठता है
जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ

bindujain
10-08-2014, 08:19 AM
http://kavyanchal.com/tasveer/plog-content/thumbs/_____________________/_______________-_____________________-______-__________________-_____________________/large/66-neeraj-2.jpg

bindujain
12-08-2014, 10:01 PM
आलोक श्रीवास्तव

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक

टूटे हुए ख़्वाबों की इक लम्बी कहानी है
शीशे की हवेली से, पत्थर के मकानों तक

दिल आम नहीं करता, अहसास की ख़ुशबू को
बेकार ही लाए हम चाहत को ज़ुबानों तक

लोबान का सौंधापन, चंदन की महक में है
मंदिर का तरन्नुम है, मस्जिद की अज़ानों तक

इक ऐसी अदालत है, जो रूह परखती है
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक

हर वक़्त फ़िजाओं में, महसूस करोगे तुम
मैं प्यार की ख़ुशबू हूँ, महकूंगा ज़मानों तक

bindujain
12-08-2014, 10:02 PM
आलोक श्रीवास्तव

वही आंगन, वही खिड़की, वही दर याद आता है
मैं जब भी तनहा होता हूँ मुझे घर याद आता है

मेरे सीने की हिचकी भी मुझे खुलकर बताती है
तेरे अपनों को गाँव में तू अक्सर याद आता है

जो अपने पास हों उनकी कोई क़ीमत नहीं होती
हमारे भाई को ही लो, बिछड़कर याद आता है

सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत की कुछ सोचें
मगर जब चोट लगती है, मुक़द्दर याद आता है

मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है
नवम्बर याद आता है, दिसम्बर याद आता है

bindujain
12-08-2014, 10:04 PM
आलोक श्रीवास्तव

धड़कते, साँस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है

तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते मैंने देखा है

न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है
ख़ुद अपने आप को नींदों में चलते मैंने देखा है

मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें
तेरे सीने में अपना दिल मचलते मैंने देखा है

बदल जाएगा सब कुछ, बादलों से धूप चटखेगी
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते, मैंने देखा है

मुझे मालूम है सबकी दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्क़िलों को हाथ मलते, मैंने देखा है

bindujain
31-08-2014, 09:31 PM
]होंगे कामयाब होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो हो हो मन मे है विश्वास
पुरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन॥धृ॥
होगी शान्ती चारो ओर
होगी शान्ती चारो ओर
होगी शान्ती चारो ओर एक दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास होगी शांती चारो ओर एक दिन ॥१॥

हम चलेंगे साथ साथ
डाले हाथोमें हाथ
हम चलेंगे साथ साथ एक दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास हम चलेंगे साथ साथ एक दिन॥२॥

नही डर किसी का आज
नहि भय किसी का आज
नहि डर किसी का आज के दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास नही डर किसी का आज एक दिन ॥३॥

bindujain
07-09-2014, 09:05 PM
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूं
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूं

मैंने सिर्फ उसूलों के बारे में सोचा भर था
कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूं

कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूं

मुझमें शायद थोड़ा सा आकाश कहीं पर होगा
मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूं

इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले
अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूं

खुशबू के अहसास सभी रंगों ने छीन लिए हैं
जैसे-तैसे फूलों की मुस्कान बचा पाया हूं

bindujain
07-09-2014, 09:06 PM
तय तो करना था सफर हमको सवेरों की तरफ
ले गये लेकिन उजाले ही अंधेरों की तरफ

मील के कुछ पत्थरों तक ही नहीं ये सिलसिला
मंजिलें भी हो गयीं हैं अब लुटेरों की तरफ

जो समंदर मछलियों पर जान देता था कभी
वो समंदर हो गया है अब मछेरों की तरफ

साँप ने काटा जिसे उसकी तरफ कोई नहीं
लोग साँपों की तरफ हैं या सपेरों की तरफ

शाम तक रहती थीं जिन पर धूप की ये झालरें
धूप आती ही नहीं अब उन मुडेरों की तरफ

कुछ तो कम होगा अंधेरा, रोज कुछ जलती हुई
तीलियां जो फेंकता हूं मैं अंधेरों की तरफ

bindujain
07-09-2014, 09:07 PM
दुश्मनों से भी निभाना चाहते हैं
दोस्त मेरे क्या पता क्या चाहते हैं

हम अगर बुझ भी गये तो फिर जलेंगे
आँधियों को ये बताना चाहते हैं

साँस लेना सीख लें पहले धुएं में
जो हमें जीना सिखाना चाहते हैं

ये जुबां क्यों तल्ख हो जाती है जब हम
गीत कोई गुनगुनाना चाहते हैं

bindujain
07-09-2014, 09:08 PM
रोज कोई कहीं हादसा देखना
अब तो आदत में है ये फजां देखना

उन दरख्तों की मुरझा गयी कोपलें
जिनको आँखों ने चाहा हरा देखना

रंग आकाश के, गंध बारूद की
और क्या सोचना, और क्या देखना

जाने लोगों को क्या हो गया हर समय
बस बुरा सोचना, बस बुरा देखना

उसको आना नहीं है कभी लौटकर
फिर भी उसका मुझे रास्ता देखना

एक जोखिम भरा काम है दोस्तों
इस समय ख्वाब कोई नया देखना