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View Full Version : ग़ालिब का मर्सिया : अल्ताफ हुसैन हाली


rajnish manga
10-01-2013, 05:00 PM
मर्सिया निगारी की परम्परा
उर्दू में मर्सिया लिखने की परम्परा अरबी और फ़ारसी साहित्य से आयी. मर्सिया का अर्थ है मरने वाले को याद करके रोना और उसके गुणों को याद करना. इस्लाम के आगमन से पहले भी मर्सियागोयी अरबी साहित्य में आ चुकी थी. इसमें कबीलों के किसी सरदार या नायक की हत्या हो जाने पर उसकी वीरता की प्रशंसा में कवितायें लिखी जाती थी. इसका एक उद्देश्य उस कबीले के ही अन्य सदस्यों को जोश दिलाना होता था ताकि मरने वाले सरदार की मौत का बदला लिया जा सके. इब्ने रशीक़ की किताब ‘अल-उम्दा’ से पता चलता है कि अरब कवि अपने बादशाहों और शक्तिशाली वंशों के विनाश और सल्तनत की बरबादी के विषय में मर्सिये लिखा करते थे.
अरब लोगों की तरह ही अन्य मुस्लिम सभ्यताओं में भी मर्सिये लिखने की रवायत चल पड़ी और स्थानीय भाषाओं में इस बारे में प्रयोग होने लगे. अपने आरंभिक काल में मर्सिये में कबीले के सरदार या राजा के बारे में ही वर्णन होता था किन्तु समय के बीतने के साथ ही मर्सियानिगारी के रूप में बदलाव आया और इसमें राजाओं और कबीले के सरदारों के अतिरिक्त अन्य प्रमुख और अपने अपने क्षेत्र के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भी शामिल किया जाने लगा. इन व्यक्तियों के साथ साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों यथा पिता, भाई, बेटों और पत्नि इत्यादि पर भी रंजोग़म और गहन शोक का इज़हार करते हुये मर्सिये लिखे जाने लगे. किसी शहर या समाज की बरबादी का मर्सिया भी जिसे शहर-आशोब कहते हैं मर्सिये की श्रेणी में ही आते हैं. उदाहरण के लिये, सन् 1258 में बग़दाद शहर की बरबादी ओ’ तबाही पर लिखे शैख़ सादी के मर्सिये देखे जा सकते हैं, जो फारसी शायरी का एक अनोखा रूप प्रस्तुत करते है.
अब ग़ालिब के मर्सिये के बारे में दो शब्द. ग़ालिब के समकालीन कवि ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली जो ग़ालिब के शागिर्द भी थे और उनके जीवनी लेखक भी थे, ने ग़ालिब का जो मर्सिया लिखा है उसमे दस बन्द अर्थात छंद हैं और लगभग एक सौ शे’र हैं. यह मर्सिया उर्दू में कहे गए सब से सशक्त व्यक्तिपरक मर्सियों में से एक माना जाता है. इसके एक एक शे’र में शोक की तीव्रता व्यक्त की गयी है. यह मर्सिया तरकीब-बन्द शैली में लिखा गया है जिसमें गज़ल की भांति शे’र लिखे जाते हैं और जिसके अंत में एक बहुत सजा हुआ ‘मतला’ बतौर गिरह के लगाया जाता है. फिर दूसरे बन्द की गज़ल पहले बन्द के वज़न पर ही कही जाती है और उसके बाद एक और मतले से गिरह लगाई जाती है. इस तरह बन्द में बन्द जुड़ते चले जाते है. हाली के मर्सिये की भाषा बहुत सरल और बोलचाल की भाषा है जो उस समय की शायरी की भाषा से अलग दिखायी देती है.
(उक्त विवरण जनाब नकी हुसैन जाफ़री की तहरीर पर आधारित है)

dipu
10-01-2013, 05:05 PM
thanks .......................................

rajnish manga
10-01-2013, 05:11 PM
अल्ताफ हुसैन ‘हाली’
मर्सिया जनाब मिर्ज़ा असद उल्लाह खाँ ग़ालिब मरहूम देहलवी
(१२८५ हि. मुताबिक़ १८६९ ईस्वी)


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=22812&stc=1&d=1358033341 http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=22813&stc=1&d=1358033341
(नोट: एक पंक्ति में आये हुए कठिन शब्दों को बोल्ड कर के दिखाया गया है तथा तहरीर को बेहतर तरीके से समझने के लिए उनके अर्थों को ठीक उससे अगली पंक्ति में ही दे दिया गया है)

(एक)
क्या कहूँ हाले-दर्दे-पिन्हानी
(छुपा हुआ हाल)
वक़्त कोताह किस्सा तूलानी
(विस्तृत)
ऐशे-दुनिया से हो गया दिल सर्द
देख कर रंगे-आलमे-फ़ानी
(नश्वर संसार के रूप)
कुछ नहीं जुज़ तिलिस्मे-ख्वाबो-ख़याल
(अलावा)
गोशः-ए-फ़क्रो-बज्मे-सुल्तानी
(सुलतान की बैठक में वैराग्य)
है सरासर फरेबे-वहमो-गुमाँ
ताजे-फगफूरो-तख्ते-ख़ाकानी
(चीन और तुर्की के बादशाहों की उपाधियाँ)
बे-हकीक़त है शक्ले-मौजे-सराब
(मृगमारिचिका)
जामे-जमशेद व राहे-रैहानी
(सुगन्धित फूलों से बनी शराब)
लफ्जे-मुह्मल है नुत्के-आराबी
(अरबी विद्वानों की वक्तृता निरर्थक है)
हर्फे-बातिल है अक्ले-यूनानी
(असत्य)
एक धोका है लह्ने-दाऊदी
(दाउद का स्वर)
इक तमाशा है हुस्ने-कन्आनी
(युसूफ की सुन्दरता)
न करून तिश्नगी में तर लबे-खुश्क
(प्यास)
चश्मे:-ए-खिज़्र का हो गर पानी
(अमृत का झरना)
लूँ न इकमुश्त ख़ाक के बदले
गर मिले खातिमे-सुलेमानी
(सुलेमान की अंगूठी)
बहरे-हस्ती बजुज़ सराब नहीं
(अलावा)
चश्म:-ए-ज़िन्दगी में आब नहीं

rajnish manga
10-01-2013, 06:13 PM
(दो)
जिससे दुनिया ने आशनाई की
उसने आखिर को कज़-कदाई की
(धोखा देना)
तुझ पे भूले कोई अबस ए उम्र
तूने की जिससे बेवफ़ाई की
है ज़माना वफ़ा से बेगाना
हाँ क़सम मुझको आशनाई की
यह वह बे-मेह्र है कि है इसकी
सुलह में चाशनी लड़ाई की
है यहाँ हज्ज़े-वस्ल से महरूम
(मिलन-सुख)
जिसको ताक़त न हो जुदाई की
है यहाँ हिफ्ज़े-वज़ा से मायूस
(प्रतिष्ठा की रक्षा)
जिसको आदत न हो गदाई की
(याचना)
खन्दः-ए-गुल से बेबक़i-तर है
(फूलों की हंसी से अधिक नश्वर)
शान हो जिसमें दिलरुबाई की
जिन्से-क़ासिद से नारवातर है
(तुच्छ वस्तु से भी तुच्छ)
खूबियाँ जिसमे हों खुदाई की
बात बिगड़ी रही सही अफ़सोस
आज खाकानी व सनाई की
(फारसी के प्रसिद्ध कवि)
रश्के-उरफीं व फ़खरे-तालिब मुर्द
[फारसी के प्रसिद्ध कवियों (उरफीं व तालिब
के प्रति) इर्ष्या और गर्व]
असद उल्लाह खान ग़ालिब मुर्द

rajnish manga
10-01-2013, 08:12 PM
(तीन)
बुलबुले-हिन्द मर गया हैहात
(अफ़सोस)
जिस की थी बात बात में इक बात
नुक्तादां, नुक्तासंज, नुक्ताशनास
(पारखी, कला-मर्मज्ञ, रहस्य जानने वाला)
पाक दिल, पाक ज़ात, पाक सिफ़ात
(पवित्र गुणों वाला)
शैख़ और बज़्ला-संजो-शोख मिज़ाज
(विनोदी स्वाभाव का)
रिंद और मर्जा-ए-करामो-सेकात
(धार्मिक बंधनों से मुक्त व गुणी तथा विद्वानों का केंद्र)
लाख मज़मून और उसका एक ठठोल
सौ तकल्लुफ और उसकी सीधी बात
दिल में चुभता था अगर वह बिस्मिल
(घायल)
दिन को कहता दिन और रात को रात
हो गया नक्श दिल पे जो लिक्खा
कलम उसका था और उसकी दवात
थीं तो दिल्ली में इसकी बातें थी
ले चलें अब वतन को क्या सौगात
उसके मरने से मर गई दिल्ली
मिर्ज़ा नौशा था और शह्र बरात
याँ अगर बज़्म थी तो उसकी बज़्म
याँ अगर ज़ात थी तो उसकी ज़ात
एक रौशन दिमाग़ था, न रहा

rajnish manga
10-01-2013, 08:34 PM
(चार)
दिल को बातें जब उसकी याद आयें
किसकी बातों से दिल को बहलायें
किसको जाकर सुनाएँ शे’रो गज़ल
किससे दादे-सुखनवरी पायें
(काव्य प्रशंसा)
मर्सिया उसका लिखते हैं एहबाब
(दोस्त)
किससे इस्लाह लें किधर जाएँ
(गलतियों का सुधार)
पस्त मज़मून है नौहा-ए-उस्ताद
किस तरह आसमाँ पे पहुंचाएं
लोग कुछ पूछने को आये हैं
अहले-मैय्यत जनाज़ा ठहराएं
लायेंगे फिर कहाँ से ग़ालिब को
सूए-मदफ़न अभी न ले जाएँ
(कारिस्तान की ओर)
उसको अगलों में क्यों न दें तरजीह
अहले-इन्साफ गौर फरमाएं
कुदसी व साइब व असीर व कलीम
(ईरान के प्रसिद्ध कवि)
लोग जो चाहें उनको ठहराएं
हमने सबका कलाम देखा है
है अदब शर्त मुंह न खुलवाएं
ग़ालिबे-नुक्तादां से क्या निस्बत
ख़ाक को आसमान से क्या निस्बत
(तुलना)

rajnish manga
10-01-2013, 09:07 PM
(पांच)

नस्र, हुस्नो-जमाल की सूरत
नज़्म, गंजो-दलाल की सूरत
तहनियत इक निशात की तस्वीर
(प्रशंसा)
ताज़ियत इक मलाल की सूरत
(शोक)
क़ाल उसका वह आइना जिसमें
(बातचीत)
नज़र आती थी हाल की सूरत
इसकी तौजीह से पकडती थी
(कारण बताना)
शकले-इम्काँ महाल की सूरत
(असंभव को संभव बनाने वाला)
सुखन इसका म’आल की सूरत
इसकी तावील से बदलनी थी
(स्पष्टीकरण)
रेंज हिज्राँ विसाल की सूरत
लुत्फ़े-आगाज़ से दिखाता था
(प्रारम्भ का सौन्दर्य)
सुखन इसका म’आल की सूरत
(परिणाम)
चश्मे-दौराँ से आज छुपती है
अनवरी व कमाल की सूरत
(ईरान के मशहूर कवि)
लौहे-इम्काँ से आज मिटती है
(संभावनाओं की सियाही)
इल्मो-फ़ज्लो-कमाल की सूरत
(ज्ञान और विद्वत्ता की चरम अवस्था)
देख लो आज फिर न देखोगे
ग़ालिब-ए-बेमिसाल की सूरत
अब न दुनिया में आयेंगे यह लोग
कहीं ढूंढे न पायेंगे यह लोग

rajnish manga
11-01-2013, 10:31 AM
(छह)
शहर में जो है सोगवार है आज
(शोकपूर्ण)
अपना बेगाना अश्कबार है आज
(आंसू बहा रहा है)
नाज़िशे-खल्क का महल न रहा
(दुनिया को जिस पर नाज़ था)
रिह्लते-फ़ख्र-ए-रोज़गार है आज
(दुनिया के गौरव का अंत)
था ज़माने में एक रंगीन तबा
(स्वभाव)
रुखसते-मौसमे-बहार है आज
बारे-एहबाब जो उठाता था
(दोस्तों का भार)
दोशे-एहबाब पर सवार है आज
(दोस्तों के कन्धों पर)
थी हर इक बात नीशतर उसकी
(चुभने वाली)
उसकी चुप से जिगर फ़िगार है आज
(फट जाना)
दिल में मुद्दत से थी ख़लिश जिसकी
वही बरछी जिगर के पार है आज
दिले-मुज़तर को कोन दे तस्कीन
(बैचेन मन)
मातमे-यारे-ग़मगुसार है आज
(दूसरों के ग़म उठाने वाले का मातम)
तल्खी-ए-ग़म कही नहीं जाती
जाने-शीरीं भी नागवार है आज
किसको लाते हैं बह्रे-दफन कि कब्र
हमातन चश्मे-इंतज़ार है आज
(पूरी तरह)
ग़म से भरता नहीं दिले-नाशाद
किससे ख़ाली हुआ जहानाबाद

rajnish manga
11-01-2013, 10:33 AM
(सात)
नक्दे-मानी का गंजदाँ न रहा
(अर्थ का ख़जाना)
ख़वाने-मज़बून का मैज़बां न रहा
(बहुत से विषयों का जानकार)
साथ उसके गयी बहारे-सुखन
अब कुछ अंदेशा-ए-खिज़ां न रहा
(पतझड़ का डर)
हुआ एक-एक कारवाँ सालार
कोई सालारे-कारवाँ न रहा
(कारवाँ का नायक)
रौनके-हुस्न था बयाँ उसका
गर्म बाज़ार-गुलरूखां न रहा
(सुंदरियों के सौन्दर्य का वर्णन करने वाला)
इश्क़ का नाम उससे रौशन था
कैसो-फ़रहाद का निशाँ न रहा
हो चुकीं हुस्नो-इश्क़ की बातें
गुलो-बुलबुल का तर्जुमा न रहा
अहले-हिन्द अब करेंगे किस पर नाज़
रश्के-शीराजो-इस्फ़हाँ न रहा
(जिस पर शीराज और इस्फ़हान जैसे नगरों को भी गर्व था)
ज़िंदा क्योंकर रहेगा नामे-मुलूक
(बादशाह का नाम)
बादशाहों का मद्हख्वाँ न रहा
(प्रशंसा करने वाला)
कोई वैसा नज़र नहीं आता
वह ज़मीं और वह आसमाँ न रहा
उठ गया, था जो मायादारे-सुख़न
(शायरी का धनी)
किसको ठहराएं अब मदारे-सुख़न
(काव्य का केंद्र बिन्दु)

rajnish manga
11-01-2013, 10:35 AM
(आठ)
क्या है जिसमें वह मर्देकार न था
(योग्य)
इक ज़माना कि साज़गार न था
(अनुकूल)
शाइरी का किया हक़ इसने अदा
पर कोई उसका हक़ गुज़ार न था
बे-सिला मद्ह, शे’रे-बे-तहसीन
(प्रशंसा गान का फल व शायरी की स्वीकृति न मिलना)
सुखन उसका किसी पे बार न था
नज़रे-साईल थी जान तक, लेकिन
(याचक पर न्यौछावर)
दरखुरे-हिम्मत-इक़तिदार न था
(सत्ता के योग्य)
मुल्को-दौलत से बहरावर न हुआ
(लाभान्वित)
जान देने पे इख्तियार न था
ख़ाकसारों से ख़ाकसारी थी
सरबलन्दों से इन्किसार न था
(नम्रता)
ऐसे पैदां कहाँ हैं मस्तो-ख़राब
हमने माना कि होशियार न था
मज़हरे-शाने-हुस्ने-फ़ितरत था
(प्राकृत सौन्दर्य का स्वरुप)
मानी-ए-लफ्ज़े-आदमीयत था
कुछ नहीं फ़र्क बाग़-ओ-जिन्दां में
आज बुलबुल नहीं गुलिस्ताँ में

rajnish manga
11-01-2013, 07:50 PM
(नौ)
शह्र सारा बना है बैते-हुज़्न
(शोक-स्थल)
एक यूसुफ़ नहीं जो कन्आ में
(यह एक शहर का नाम है जहाँ यूसुफ़ रहते थे)
मुल्क यक्सर हुआ है बेआइन
(पूरे तौर पर)
इक फ़लातून नहीं जो यूनां में
ख़त्म थी इक ज़बां पे शीरीनी
(मिठास)
ढूँढते क्या हो सेबो-रुग्मा में
(सेब और अनार)
हस्र थी इक बयाँ में रंगीनी
(निर्भर)
क्या धरा है अकीको-मर्ज़ां में
(कीमती पत्थर)
लबे-जादू बयाँ हुआ खामोश
गोशे-गुल व है क्यों गुलिस्ताँ में
गोशे-मानी शुनो हुआ बेकार
(सुनाने वाला)
मुर्ग़ क्यों नाराज़न है बुस्तां में
(बाग़ में नारा लगाने वाले)
वह गया जिससे बज़्म थी रौशन
शमाँ जलती है क्यों शबिस्ताँ में
(शयनागार)
न रहा जिससे था फ़रोग़-ए-नज़र
(आँखों की रौशनी बढाने वाला)
सुरमा बनता है क्यों सफाहाँ में
(एक शहर का नाम)
माहे-कामिल में आ गई जुल्मत
(पूर्णिमा में अंधकार छा गया)
आबे-हैवाँ पे छा गई ज़ुल्मत
(अमृत)

rajnish manga
11-01-2013, 07:52 PM
(दस)

हिन्द में नाम पायेया अब कौन
सिक्का अपना बिठाएगा अब कौन
हमने जानी है इससे कद्रे-सलफ़
(पूर्वजों का सम्मान)
उन पर ईमान लाएगा अब कौन
उसने सबको भुला दिया दिल से
उसको दिल से भुलायेगा अब कौन
थी किसी की न जिसमे गुजाइश
वह जगह दिल में पायेगा अब कौन
उससे मिलने को याँ हम आते थे
जाके दिल्ली से आयेगा अब कौन
मर गया कद्रदाने-फ़हमे-सुख़न
(काव्य का मर्म समझाने वाला)
शे’र हमको सुनाएगा अब कौन
मर गया तिश्नः-ए-मज़ाके-कलाम
(शायरी के स्वाद/रस का प्यासा)
हमको घर में बुलाएगा अब कौन
था बिसाते-सुखन में शातिर एक
हमको चालें बताएगा अब कौन
शे’र में नातमाम है ‘हाली’
(अपूर्ण)
ग़ज़ल इसकी बनाएगा अब कौन

***** समाप्त *****

amol
12-01-2013, 07:37 AM
बहुत खूबसूरत सूत्र है, रजनीश जी। :bravo::bravo::bravo:

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 03:27 AM
अत्यंत उत्तम, दुर्लभ कृति फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक आभार रजनीशजी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हाली का सम्पूर्ण सृजन मनमोहक है, ऎसी अजीम शख्सियत के एक बेहद धुंधले पक्ष को रोशनी में लाकर आपने निश्चय ही एक सराहनीय कार्य किया है। धन्यवाद। :hello:

rajnish manga
14-01-2013, 11:02 PM
बहुत खूबसूरत सूत्र है, रजनीश जी। :bravo::bravo::bravo:

अत्यंत उत्तम, दुर्लभ कृति फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक आभार रजनीशजी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हाली का सम्पूर्ण सृजन मनमोहक है, ऎसी अजीम शख्सियत के एक बेहद धुंधले पक्ष को रोशनी में लाकर आपने निश्चय ही एक सराहनीय कार्य किया है। धन्यवाद। :hello:

:hello:
अमोल जी, अभिषेक जी, दीपू जी, जय भारद्वाज जी, आप सब का उक्त सूत्र पढ़ने और पसंद करने के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. अलैक जी, आपसे प्रेरणा पा कर मैं इस दिशा में उन्मुख हुआ. गुज़रे वक्त के ये बेमिसाल शोअरा और उनका नफीस कलाम और अन्य कृतित्व आज के वक्त में भी अदब की दुनिया को मशाल दिखाने का काम करते हैं. जब भी हम उनको याद करके कुछ लिखते हैं तो इसे हमारी ओर से उनकी महानता को एक छोटी सी पुष्पांजलि समझना चाहिए. ऐसा करके हम उनकी छाया में बैठ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं. अंत में, आपने मिर्ज़ा ग़ालिब और ख्वाजा हाली के रंगीन चित्र दे कर सारे अनुष्ठान को जो चार चाँद लगा दिए हैं उसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. धन्यवाद.