PDA

View Full Version : रेप पीड़ितों को जल्द ‘इंसाफ’


dipu
10-01-2013, 05:03 PM
देशवासियों की तमाम दुआएं भले ही “दामिनी” को नया जीवन नहीं दे सकीं, लेकिन उसकी कुर्बानी ने यौन उत्*पीड़न और प्रताड़ना का शिकार हुई महिलाओं को जल्द से जल्द इंसाफ दिलाने की राह तैयार कर दी है। दरअसल, इस तरह के मामलों के लिए राजधानी में छह नई विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन हो गया है। यह अदालतें दिल्ली के साकेत, कड़कड़डूमा, रोहिणी, तीस हजारी और द्वारका में बनाई गई हैं और इनके पीठासीन अधिकारी यानि जजों को भी नियुक्त कर दिया गया है।

खास बात यह भी है कि इन न्यायालयों की कमान जिन जजों को सौंपी गई हैं, वे सभी दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के तेजतर्रार जजों में से एक हैं। इन विशेष अदालतों में क्षेञाधिकार के हिसाब से अलग-अलग अदालतों में चल रहे केस स्थानांतरित कर दिए जाएंगे।

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों की सहमति से इन जजों की नियुक्ति की गई हैं। ये तेजतर्रार जज हैं अतिरिक्त सञ न्यायाधीश योगेश खन्ना, डॉ टीआर नवल, महेशचंद्र गुप्ता, निवेदिता अनिल शर्मा, वीरेंद्र भट्ट और कावेरी बावेजा। ये विशेष अदालतें यह सुनिश्चित करेंगी कि अब किसी और दामिनी को इंसाफ के लिए सालों तक इंतजार न करना पडे और उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिल सके। कोशिश यह रहेगी कि दोषी दरिंदे जल्द ही सजा पा सकें।

aksh
11-01-2013, 10:52 AM
जब तक कानून से जुडे सभी स्थानो पर सम्वेदन शील लोग नहीं आयेंगे..तब तक कुछ भी कर ले सुधार आना मुश्किल ही लगता है..!!

कल ही क्राइम पेट्रोल पर एक एपीसोड देखा जिसमै एक नवयुवक को सिर्फ 200 रुपये की चोरी के इल्जाम मै इसलिये 11 महीने अन्दर रहना पडा क्योंकि उसके पास एक पर्स मिला जिसमे 200 रुपये थे...!!

उसको गिरफ्तार करने के बाद इस बात पर किसी ने ध्यान नही दिया कि वो पर्स उस व्यक्ति का नहीं था जिसके पैसे चोरी हुये थे...

महत्वपूर्ण बात ये है कि उसको ये सिद्ध करने के लिये कहा जा रहा था कि ये रुपये उसके ही थे...एक सब्जी बेचने वाले के पास दो सौ रुपये होने का प्रमाण देने की क्या आवश्यकता मेहसूस हुयी, ये समझ से परे है..!!

अंत मे उस युवक को तब छोडा गया जब उसने दो सौ रुपये की चोरी को कबूल कर लिया...क्योंकि उस चोरी की सजा सिर्फ तीन महीने तक ही हो सकती थी...और वो पहले ही ग्यारह महीने की सजा काट चुका था...!!

जिन लोगों का थाने और कोर्ट कचहरी से पाला पड चुका है वो इस बात को अच्ची तरह जानते है कि सिस्टम ना सिर्फ सड गल चुका है बल्कि बदबू भी आने लगी है...हमे इसमै अभी भी कुछ हद तक बाकी सम्वेदनशीलता को पूरी तरह से रेस्टोर करना होगा ताकि लोगों का इस प्रक्रिया मै भरोसा बन सके और बढ सके...!!

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:02 PM
पुलिस का अमानवीय चेहरा फिर उजागर हुआ है। दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म की शिकार व जान गंवा चुकी दामिनी के

साथी और भुक्तभोगी युवक ने एक न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में 16 दिसंबर की काली रात के सच को बयां कर

दिया है। उसका सच दिल्ली पुलिस और शहरी संभ्रात कहे जाने वाले तमाशबीनों की निष्ठुरता और सड़-गल चुके

सिस्टम की दारुण व्यथा है। यह कम खौफनाक नहीं है कि घोर यातना के बाद जब दुष्कर्मियों ने उन्हें और उनकी दोस्त

को बस से फेंक दिया, तब कोई भी मदद के लिए सामने नहीं आया। लोग उन पर निगाह डालते रहे और गुजरते रहे।

यह निष्ठुरता शहरी समाज की लज्जित करने वाली वह बदरंगी तस्वीर है, जो सदियों तक कालखंड को चुभती रहेगी।

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:03 PM
दामिनी के साथी के मुताबिक पुलिस की पीसीआर वैन काफी देर बाद पंहुची, लेकिन वह भी मदद के बजाय थानों के इलाके को लेकर उलझी रही। वे दोनों तड़पते रहे और वह झगड़ती रही। पुलिस ने खून से लथपथ उनकी दोस्त को पीसीआर वैन में चढ़ाने में भी मदद नहीं की। अकेले उन्हें ही जुझना पड़ा। पुलिस का यह आचरण उसके अमानवीय होने का घिनौना सबूत है। अब भी वह देश के आमजन को सत्ता की रिआया और कीडे़-मकोड़े से अधिक कुछ नहीं समझती है। अन्यथा, मरणासन्न पड़ी दामिनी और उसके साथी के प्रति उसका व्यवहार क्रूरतापूर्ण नहीं होता। दिल्ली पुलिस का रवैया असंवेदनशील, अक्षम्य और उस पर से भरोसा उठाने वाला है। इस घटना के बाद देश का जनमानस कैसे पुलिस पर भरोसा करेगा कि वह उसकी सुरक्षा को लेकर संवेदनशील है? ऊपर से विचलित करने वाला तथ्य यह कि अस्पताल में भी दामिनी और उसके साथी युवक का इलाज तब शुरू हुआ, जब उनके सगे-संबंधी वहां पहुंच गए। आखिर क्यों? क्या अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह मरणासन्न पड़े पीडि़तों का तत्काल इलाज शुरू करें? लेकिन उसने ऐसा न कर प्रक्रियाओं का हवाला देकर अब अपनी संवेदनहीनता पर परदा डाल रहा है।


युवक के खौफनाक सच के खुलासे से दिल्ली पुलिस की निर्ममता और तंत्र की नाकामी की पोल खुल गई है। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर नीरज कुमार का वह बड़बोलापन भी बेपर्दा हो गया है कि उनकी पुलिस ने तत्परता से काम करते हुए आरोपी दुष्कर्मियों को गिरफ्तार किया। लेकिन क्या पुलिस कमिश्नर के पास अपनी पुलिस की संवेदनहीनता और निष्ठुरता का कोई जवाब है? क्या वह बताएंगे कि उसने पीडि़तों के प्रति मानवता क्यों नहीं दिखाई? सवाल अब यह भी उठने लगा है कि क्या गृह मंत्रालय दोषी पुलिसकर्मियों और उनके बचाव में जुटे आला अधिकारियों को दंडित करेगा? क्या पुलिस कमिश्नर अपनी नैतिक जवाबदेही दिखाते हुए अपने पद से इस्तीफा देंगे? क्या दिल्ली सरकार पीडि़तों के इलाज में लापरवाही बरतने वाले कर्मियों को दंडित करेगी? ढेरों ऐसे सवाल हैं, जो मुंह बाए खड़े हैं। लेकिन ये सवाल बस सवाल भर हैं।


सरकार इससे चिंतित और विचलित नहीं है। इसकी संभावना कम ही है कि वह सभी दोषी पुलिसकर्मियों और तंत्र में पसरे असंवेदनशील लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। आमजन के बीच पुलिस की छवि ठीक नहीं है। लोगों में धारणा है कि वह रिश्वत लेकर अपराधियों को बचाती है। सही लोगों को झूठे मुकदमे में फंसाती है। वह सत्ता के इशारे पर लाठियां बरसाती है। उसकी बानगी राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में देखी जा रही है। पुलिस की क्रूरता का ही आलम है कि 2001 से 2010 तक 14,231 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है। इस मामले में महाराष्ट्र शीर्ष पर है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और कर्नाटक के आंकड़े भी दिल दहलाने वाले हैं। समझ से परे है कि जब एक अरसे से पुलिस में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है तो फिर उस पर अमल क्यों नहीं हो रहा है? जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी कहा जा चुका है कि 1861 के भारतीय पुलिस कानून में सुधार की जरूरत है। पुलिस सुधार के लिए विधि आयोग, रिबेरो कमेटी, पदमनाभैया कमेटी, मलिमथ कमेटी और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भी सुझाव दिए गए हैं, लेकिन इस दिशा में दो कदम भी आगे नहीं बढ़ा गया। मतलब साफ है कि केंद्र और राज्य सरकारें इसे लेकर गंभीर नहीं हैं। ऐसे में सत्ता संरक्षित पुलिस निष्ठुर और असंवेदनशील आचरण दिखाती है तो अस्वाभाविक क्या है।

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:04 PM
पिछले महीने राजधानी दिल्ली में एक छात्रा के साथ जो हुआ उसने सारे देश को हिला कर रख दिया. ये घटना दुनिया

भर में लोगों के नाराजगी की बहुत बड़ी वजह बन गई. लोग हर तरह से अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं. कोई

मोमबत्ती जला कर तो कोई चुपचाप रात भर इंडिया गेट पर जग कर विरोध कर रहा है. वो लड़की तो इस दुनिया से

चली गई लेकिन उसको इंसाफ दिलाने के लिए आज भी लोग काफी जागरुक हैं. लेकिन अब सवाल ये है कि ये

जागरुकता कब तक रहेगी क्या उसके दोषियों को सजा होने तक ये जागरुकता, ये हौसला, ये जज्बा बना रहेगा?

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:05 PM
आज सुर्खियों में आने के बाद भी ऐसी कई घटनाएं हैं जो मीडिया और लोगों की याद्दाश्त से गायब हो गई हैं. वो भी एक ऐसे देश में जहां हर 30 मिनट बाद नारी की आबरू तार–तार की जाती है. हमारे देश में पहले भी बलात्कार की कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जो मानवता को शर्मिंदा कर देने वाली हैं. ऐसी ही एक दर्दनाक घटना वर्ष 1973 में हुई थी. उस समय भी लोगों ने नाराजगी जताई थी अपने गुस्से का इजहार किया था लेकिन उस सब का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि आज भी वो दरिंदा खुले आम घूम रहा है और वो लड़की आज भी सजा काट रही है उस गुनाह की जिसे उसने किया ही नहीं था.

पीड़िता और उसका परिवार आज भी उस जंग को लड़ तो रहा है लेकिन बिलकुल अकेले और एकांत में. 39 साल से चल रहे दर्दनाक संघर्ष की एक सच्ची कहानी है यह जो समाज की कड़वी हकीकत बयां करती है.

हर रोज की तरह उस दिन 27 नवम्बर 1973 को अरुणा शानबाग (जो मुंबई में नर्स का काम करती थी) अपने ड्यूटी पर गई थी. उसे क्या पता था कि वहीं काम करने वाले एक क्लीनर सोहनलाल भरता वाल्मीकि की निगाह उस पर है. उस दिन जब वो अकेले काम कर रही थी तब सोहनलाल ने अचानक अरुणा पर हमला कर दिया था और उसके साथ बेहद अप्राकृतिक ढंग से बलात्कार किया था लेकिन उसकी हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई. उसने सबूत मिटाने के लिए अरुणा को जान से मारने का भी प्लान बना रखा था.उसने अरुणा के गले में लोहे की चेन बांधी और गला घोटने की कोशिश की. जब उसे लगा कि वो मर चुकी है तो उसे छोड़ कर वो फरार हो गया. लेकिन दुर्भाग्यवश अरुणा मरी नहीं थी बल्कि बेहद प्रताड़ित किए जाने की वजह से वह कोमा में चली गई थी .


जांच के दौरान पुलिस को कुछ सुराग हाथ लगे और सोहनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया. अरुणा पुलिस को ये भी नहीं बता सकी कि उसके साथ किस कदर दरिंदगी से एक घिनौने अपराध को अंजाम दिया गया था क्योंकि वो कोमा में जा चुकी थी. सोहनलाल पर लूटपाट और हत्या के प्रयास का केस चला और सात साल की छोटी सी सजा दी गई. लेकिन यहां ये कहानी खत्म नहीं होती है बल्कि यहां से शुरू होती है इस भयंकर अपराध की सबसे डरा देने वाली सच्चाई. इस वारदात को हुए 39 साल बीत चुके हैं. अरुणा आज भी जिन्दा है लेकिन, न तो बोल सकती है न सुन सकती न ही हिल सकती है. एक जिन्दा लाश की तरह पिछले 39 साल से वह अस्पताल में पड़ी हुई है.वह अपनी बेहद जरूरी क्रियाएं भी खुद नहीं कर सकती जबकि उसे इस भयानक अंजाम पर पहुंचाने वाला दरिंदा आज भी इसी समाज में आजाद घूम रहा है.

आज भी सोहनलाल अपना नाम बदल कर दिल्ली के एक अस्पताल में एक वार्ड बॉय का काम कर रहा है. दरिंदा बाहर घूम रहा है जबकि पीड़िता आज भी उस गुनाह की सजा भुगत रही है जो उसने किया ही नहीं था और हमें ये भी पता नहीं कि कब तक उसकी ये सजा जारी रहेगी….आखिर कब तक नारी वो दर्द सहेगी जिसकी वो बिल्कुल भी हकदार नहीं है.

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:07 PM
आज भी उसके पापा को वो दिन याद है जब पहली बार उनकी मां ने उसे उनके हाथों में दिया था और कहा था कि ये ले अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी. तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि मां सही कह रही हैं. उन्होंने उनकी बात को बहुत हल्के से लिया था. पर आज उन्हें ये महसूस हो रहा है कि सही में बेटी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है. काश मैं उसी दिन इस बात की गहराई को समझ जाता तो शायद ये नहीं होता जो आज हुआ .

आज से 1 साल पहले की बात है जब मीरा ने अपने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी. तब उसके परिवार वाले बहुत खुश थे कि उनकी बेटी डाक्टर बन गई है. पर उसके पापा कुछ ज्यादा ही खुश थे और हों भी क्यों न उनकी बेटी जो थी. अचानक एक दिन मीरा ने अपने पापा से कहा कि उस को इंटर्नशिप करने दूसरे शहर जाना होगा इस पर उसके पापा तैयार हो गये पर उसकी मां और दादी नहीं तैयार हो रही थीं. वो कह रही थीं जो करना है यहीं रह कर करो जमाना ठीक नहीं है पर मीरा को तो जैसे धुन सवार थी कि उसे अच्छी जगह से ही इंटर्नशिप करनी है. काफी बहस के बाद उसकी मां और दादी भी मान गईं और मीरा फिर एक नई दुनिया के तरफ कदम बढ़ाने लगी. हर व्यक्ति की तरह वो भी ढेरों सपने देखने लगी. पर उसे क्या पता था कि उसे अपने सपनों के बदले इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.

सब कुछ ठीक चल रहा था वो अपने जीवन में काफी खुश भी थी लेकिन अचानक एक दिन जब वो रात को अपने काम पर से लौट रही थी कि अचानक चार-पांच लड़कों ने मिल कर उसके साथ बुरी तरह बलात्कार किया. ये तो कुछ भी नहीं था. उन लोगों ने तो हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. उन लोगों ने न सिर्फ बलात्कार किया बल्कि उसे बहुत बुरी तरह पीटा भी और सड़क किनारे फेंक कर चले गए. जब ये खबर उसके घर पहुंची तो सारे लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई. सब भाग कर उसके पास पहुंचे उसके कष्ट को देख कर उसके पापा को लग रहा था कि कैसे उसके दुख को कम कर दें लेकिन वो कुछ भी नहीं कर पा रहे थे और फिर वो हुआ जिसके बारे में उसके पापा ने कभी नहीं सोचा था. उनकी मीरा हमेशा के लिए उनको छोड़ कर चली गई और वो कुछ न कर सके|

ये सिर्फ एक कहानी नहीं है. बल्कि एक सच्चाई है जो आज के समाज में हर पल घटित हो रही है. वर्तमान समय में हालात इतने खराब हो गये हैं कि हर मां बाप अपनी बेटी को बाहर भेजने से पहले सौ बार सोचते हैं कि क्या वो वहां सुरक्षित रहेगी .

आज नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है ऐसा क्यों? ये एक बहुत बड़ा सवाल है हमारे समाज के सामने. क्यों आज हर औरत घर से निकलते समय ये सोचती है कि वो आज घर सही सलामत वापस लौट पाएगी?

आज हम भारत के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जबकि देश की आधी आबादी यानि नारी को जब हम सही हक और सुरक्षा तक नहीं दे रहे हैं तो ये सभी दावे खोखले प्रतीत होते हैं.

देश का विकास तब तक नहीं होगा जब तक महिलाओं को उचित सुरक्षा नहीं मिलेगी. क्यों कि जब तक वो सुरक्षित नहीं महसूस करेंगी तो काम कैसे कर पाएंगी. हम भारत को अमेरिका बनाना चाहते हैं परन्तु क्या आपने कभी अमेरिकी और भारतीय महिलाओं की तुलना करके देखा है. दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है. क्योंकि वहां की नारियों को उनका हक, अधिकार और समाज की तरफ से सुरक्षा सब मिलती है पर यहां तो रक्षक ही भक्षक बन कर घूमते हैं तो ये सब उम्मीद ही बेकार है.

पुरुष ये क्यों नहीं सोचता है कि वो जिसके साथ ये सब कर रहा है वो किसी की बेटी, किसी की बहन है. और उसको खोने का दर्द कितना भयानक होगा कितना दर्द होगा उसके अपनों को. कब ये पुरुष समाज इस दर्द को समझेगा ताकि वो ये पाप करने से पहले कम से कम एक बार जरूर सोचे?

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:09 PM
पुरुष समाज ये कभी नहीं चाहेगा कि कोई भी स्त्री उससे आगे बढ़े या फिर कोई उसे चुनौती दे. अपनी इसी चाहत को जिंदा रखने के लिए उसने हमेशा से ही नारी के विकास का विरोध किया है और आज भी कर रहा है. उसने स्त्रियों को विज्ञान, कला, संस्कृति इन सब चीजों से दूर रखा है ताकि वो शिक्षित, सजग और आत्मनिर्भर न बन सकें. क्योंकि पुरुष समाज को हमेशा ये डर सताता रहा है कि कहीं वो अगर इनको उन सब चीजों से जोड़ देता है तो वो अपना अधिकार न मांगने लगें. कहने को तो हम आधुनिक युग में जी रहे हैं लेकिन आज भी हमारे पुरुष समाज की सोच 18वीं सदी वाली है. आज के समय में महिलाएं जिस तरह से अपनी हर मर्यादाओं को तोड़कर आगे बढ़ रही है उसे देख कर पुरुष समाज ये सोचने पर मजबूर हो गया है कि क्या पुरुष और स्त्री का स्थान समाज में एक हो गया है ? क्या आपको पता है कि समस्या की शुरुआत यहीं से होती है ?

महिलाओं के साथ अपमान की घटनाएं होना कोई नई बात नहीं हैं. पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता, राजनीतिक ताकत से बेशर्म होती संस्कृति, कानून को ठेंगे पर रखने की मानसिकता, संवेदनाशून्य पुलिस बल तथा जमीन से उखड़े और कानून से बेखौफ प्रवासी लोगों की बढ़ती आबादी इन घटनाओं की वजहों में शामिल हैं. इससे अलग भी ढेरों कारण हो सकते हैं पर ये कारण सबसे प्रमुख माने जाते हैं.

जब कोई हादसा सुर्खियों में आता है, आक्रोश नजर आता है, टीवी पर गर्मागर्म बहस देखने को मिलती है, मोमबत्तियों के साथ जुलूस निकलता है, अधिकारियों और राजनेताओं के वादे मिलकर पारिवारिक माहौल बना देते हैं लेकिन महिलाओं के लिए हालात नहीं बदलते, क्यों ? इस ‘क्यों’ का जवाब मिलना बहुत मुश्किल है. आज स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि कोई भी शब्द उसको बयां नहीं कर सकते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण पुरुषों की मानसिकता है.

यह बात कुछ हद तक सही भी हो सकती है कि पुरुष वर्चस्व और सामंती उत्पीड़न के खिलाफ स्त्रियों में बढ़ रहे प्रतिरोध के कारण उन पर हिंसा भी बढ़ रही है. पर हम ये जानते हैं कि यह प्रतिरोध ग्लोबल चेतना के कारण बढ़ा है. एक ओर तो हम आधुनिकता की बात करते हैं, बदलाव की बात करते हैं, पर विचारों व मानसिकता में जो बदलाव अपेक्षित है वह बदलाव आज तक नहीं आया. जब-जब स्त्री अधिकारों की बात आती है तो परम्पराओं के नाम पर उसका हनन होता है.

देश के महानगरों और महानगर बनने की कगार पर खड़े नगरों में पुरुषों में यौन कुंठा और निराशा दोनों बढ़ी है. नगरों में स्त्रियों के साथ बढ़ रही छेड़खानी और बलात्कार की घटनायें इसकी गवाह हैं. स्त्रियों से ये छेड़खानी और यौन दुर्व्यवहार की घटनायें लगातार बढ़ती जा रही हैं सामाजिक जागरूकता और विकास के आँकड़े कुछ भी कहें, हकीकत यह है कि स्त्रियों के प्रति परम्परागत पुरुषवादी रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है. आखिर खोट कहाँ है, इसके पीछे कौन से कारण हैं? आखिर इस बढ़ती घटना के लिए कौन दोषी है?

आज हमारा समाज विनाश की तरफ बढ़ रहा है, संस्कृति में गिरावट आ रही है और लोग निरंकुशता की ओर जा रहे हैं. उन्हें लगता है कि वे कुछ भी गलत करके भाग सकते हैं लिहाजा ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है. इन्हें लगता है कि कोई कुछ करेगा नहीं, पुलिस करप्ट है, कानून व्यवस्था ठीक नहीं है. अधिकारियों और नेताओं को लगता है कि वे सत्ता में हैं, कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता और ऐसे में वे अपनी इच्छानुसार गलत कार्य करने से परहेज़ नहीं करते. स्त्रियाँ आज के आधुनिक दौर में जिस प्रकार हिंसा का शिकार हो रही हैं वह समाज व सरकार के लिए चुनौती है, परन्तु यहाँ वास्तविकता यह है कि पुरुष प्रधान समाज स्त्री की जागरुकता को पचा नहीं पा रहा हैं. इसलिए दिन प्रतिदिन ये घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.

(यह प्रविष्टि एक ब्लॉग के सौजन्य से)

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:11 PM
नारी अधिकार

नारी अधिकार के दावे और उनका खोखलापन जगजाहिर है. दावे-प्रतिदावे अकसर किए जाते रहते हैं किंतु अनुपालन शून्यता के कारण हालात जस के तस हैं. ‘महिला की स्थिति दोयम दर्ज़े के थी और रहेगी’ इसे पुरुष प्रधान समाज बड़े ही गर्व से रेखांकित करता है. अब इसे हम जागरुक और सशक्तीकृत समाज की मानसिकता कहें या फिर कुछ और……..?

दुनिया में कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. यूपी में बलात्कार की शिकार लड़की को जिंदा जला देने की दर्दनाक घटना सामने आई और कारण सिर्फ इतना था कि उसने अपनी शिकायत को वापस लेने से मना कर दिया था. गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में लड़की के पिता ने अपराधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. मामला कोर्ट में था. लड़की और उसके पिता पर समझौते का लगातार दबाव बनाया जा रहा था. एक सप्*ताह पहले लड़की और उसके परिवार को धमकी दी गई थी कि यदि वह केस को वापस नहीं लेते हैं तो उन्*हें जिंदा जला दिया जाएगा और वही हुआ जो होता आया है. इस समाज के दरिंदों ने अपनी जिद के आगे उसकी जान की कोई कीमत नहीं समझी.

वहीं केरल में एक नाबालिग के साथ उसके पिता और सौतेले पिता ने एक साल तक बलात्कार किया. गौरतलब है कि केरल में एक 17 साल की नाबालिग के साथ उसके पिता, सौतेले पिता और अन्य सदस्यों ने एक साल तक बलात्कार किया. इस कांड में उसके पिता, मां और सौतेले पिता भी शामिल थे. पुलिस के अनुसार, एक ऑटोरिक्शा वाले ने इस लड़की को रात में सड़क पर देखा था. इसके बाद वह उसे पुलिस स्टेशन लेकर पहुंचा जहां पर जब महिला पुलिसकर्मी ने लड़की से पूछताछ की तो बलात्कार की बात सामने आई.

इधर राजस्थान की राजधानी जयपुर में शराब के नशे में पति के केरोसिन उड़ेलकर आग लगाने पर गंभीर रूप से झुलसी विवाहिता ने शुक्रवार देर रात दम तोड़ दिया. आप भी सोच रहे होंगे कि ये क्या है, क्या स्थिति हो गई है हमारे समाज की? किस दिशा में जा रहा है ये समाज. आज जिधर देखिए उधर बस ये ही देखने को मिलेगा कि किसी ने लड़की को जला दिया, किसी ने उसके साथ बलात्कार कर दिया और तो और हद तो तब हो जाती है जब ये सुनने को मिलता है कि बाप ने सगी बेटी के साथ बलात्कार किया. ये सब क्या है? आज महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं चाहे वो उनका घर ही क्यों न हो.

आज हम भारत के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जबकि देश की आधी आबादी यानि नारी को जब हम सही हक तक नहीं दे रहे हैं तो ये सभी दावे खोखले प्रतीत होते हैं.

देश का विकास तब तक नहीं होता जब तक महिलाओं को उनका उचित अधिकार नहीं मिलता. हम भारत को अमेरिका बनाना चाहते हैं परन्तु क्या आपने कभी अमेरिकी और भारतीय महिलाओं की तुलना कर के देखा है. दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है. क्योंकि वहां की नारियों को उनका हक, अधिकार और समाज के तरफ से सुरक्षा सब मिलती है पर यहां तो रक्षक ही भक्षक बन कर घूमते हैं तो ये सब उम्मीद ही बेकार है.

हमारे समाज को अपनी दकियानुसी सोच बदलनी होगी. ज्यादातर पुरुष महिलाओं को खुद से निम्न समझते हैं परन्तु वो ये नहीं समझते कि उनकी माता भी महिला है और वे हवा में प्रकट नहीं हुए हैं. तो फिर वो क्यों नारी पर इतना जुल्म करते हैं? क्यों हमेशा उनकी इज्जत से खेलते हैं? अगर देखा जाए तो विज्ञान के अनुसार महिलाएं पुरुषों से ज्यादा विकसित हैं लेकिन पुरुष समाज ये मानने के लिए तैयार नहीं है. जहां तक उच्च और निम्न होने का सवाल है तो जब भगवान ने भेद नहीं किया तो ये समाज कौन होता है इन दोनों में भेद करने वाला.

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:14 PM
सामाजिक वर्जनाओं का अंत (नवीन परिदृश्य)


आज बेटे के प्रति इसी चाहत की वजह से ही भ्रूण हत्या से जुड़े आंकड़ों में वृद्धि होती जा रही है तो ऐसे में संभव है कि आपको यह जानकर हैरानी होगी की कोई ऐसा भी सोच सकता है कि उसे बेटा नहीं चाहिए.

अधिकांश लोगों का यही मानना है कि बेटा ही वंश आगे बढ़ाएगा, वहीं बेटियों को बोझ समझे जाने की प्रवृत्ति में भी बढ़ोतरी देखी जा सकती है. उल्लेखनीय है कि बेटे के प्रति चाहत कोई आज का मसला नहीं है. अगर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर डाली जाए तो कितने ही लोग ऐसे नजर आएंगे जिन्होंने बेटे की चाहत के चलते कई शादियां की और आज भी कई लोग बेटे के चाहत में अपनी बेटी को मार देते हैं.

लेकिन ऐसे परिदृश्य में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने बेटियों को बेटे से ज्यादा महत्व देते हैं.
देखा जाए तो हिंदू मान्यताओं के अनुसार शवयात्रा में शामिल होने, अर्थी को कंधा और मुखाग्नि देने जैसे कर्मकांड पुरुष ही करते हैं, जबकि महिलाओं की भूमिका घर तक ही सीमित है. परंतु अब वह जमाना गया जब कहा जाता था कि पुत्र के बिना गति यानी (मोक्ष) नहीं मिलता. कम से कम बिहार के गया में तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है. यहां महिलाएं अर्थी को कंधा देने से लेकर पिंडदान जैसी क्रियाओं को अंजाम दे रही हैं.


इंजीनियरिंग की थर्ड ईयर की छात्रा दीपिका दीक्षित की ही बात कर लें तो पिता की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण में दीपिका अपनी मां के साथ मध्य प्रदेश के रतलाम से गया धाम अपने पिता का पिंडदान करने गई थी. बेटा न होने के कारण उसकी मां हमेशा पति के पिंडदान को लेकर चिंतित रहा करती थी. लेकिन जब दीपिका को अपनी मां की परेशानी की वजह पता चली तो उसने अपनी मां से कहा कि मां अगर मैं पापा का पिंडदान करुंगी तो वो खुश नहीं होगें क्या? इस पर उसकी मां कुछ बोल नहीं पाई तब दीपिका ने उन्हें समझाया कि “मां, पापा मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे, तभी तो उन्होंने कोई बेटा गोद नहीं लिया. वह हमेशा मुझसे कहते रहते थे कि मैं ही उनका बेटा हूं तो क्या मैं उनके लिए इतना भी नहीं कर सकती? क्या उनका प्यार मेरे लिए सिर्फ दिखावा था? यह कहते-कहते वह रोने लगी.

इस पर उसकी मां ने उसे गले लगाकर रोते हुए कहा कि वैसे तो तू मुझसे छोटी है, पर आज तूने मुझे छोटा साबित कर दिया अपनी यह सोच बता कर. फिर दीपिका ने अपने पापा का पिंडदान कर उनके बेटे होने का फर्ज अदा किया.

86 वर्षीया सुगिया देवी की मौत हुई तो अर्थी को उनकी तीन पोतियों नीलम, तिस्ता और शिप्रा यादव ने कंधा दिया. उन्होंने न सिर्फ अपनी दादी के शव को शमशान घाट पहुंचाया बल्कि मुखाग्नि भी दी. ऐसा नहीं था कि मौके पर सुगिया की कोई संतान मौजूद नहीं थी. शवयात्रा और दाह संस्कार के समय शमशान घाट पर उनके पांच बेटे, पोतें और अन्य रिश्तेदार मौजूद थे, पर सुगिया देवी उन लोगों के व्यव्हार से इतनी दुखी थी कि मरते समय उन्होंने अपने पोतियों से कहा था कि चाहे कुछ भी हो पर मेरा अंतिम काम तुम लोग ही करना तभी मेरी आत्मा को शांती मिलेगी .

सनातनी परंपरा में बेटे का महत्व सिर्फ वंश परंपरा को आगे बढ़ाने से ही नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पुत्र के हाथों से पिंडदान होने पर ही मोक्ष मिलता है. लेकिन अगर सभी परिवार वाले इस खोखली मान्यताओं को नकारकर बेटियों को अपने परिवार और जीवन का वैसा ही हिस्सा मानने लगें जैसा वह बेटे को मानते हैं तो शायद कभी किसी बेटी को कोख में ही दम नहीं तोड़ना पड़ेगा और ना ही पैदा होने के बाद एक बोझ की तरह जीवन जीना पड़ेगा.

jai_bhardwaj
11-01-2013, 07:16 PM
अंत में ..............


“मेरे नाम को छिपाया जाता है जैसे मैंने कोई गुनाह किया हो. मेरे माता-पिता, भाई-बहन या फिर मुझ से जुड़े किसी भी व्यक्ति का नाम उजागर नहीं किया जाता है जैसे उन सब ने कोई गुनाह किया हो. ऐसा क्यों होता है मेरे समाज में कि मेरे साथ ही बलात्कार होता है और मुझे ही दोषी पाया जाता है.” यह आवाज उन हजारों लड़कियों की है जिनके साथ बलात्कार जैसी घिनावनी घटना हुई है और उस घटना ने उन्हें शारीरिक स्तर के साथ-साथ मानसिक स्तर भी तोड़ दिया है.

दिल्ली गैंग रेप को लेकर हर तरफ ‘न्याय चाहिए’ का शोर तो सुनाई दे रहा है और उस शोर के बीच में ही अपने आपको को महान व्यक्तियों, बुद्धिजीवियों धर्मगुरुओं में से एक बताने वाले आसाराम बापू का कहना है कि बलात्कार जैसे वारदातों में गलती दोनों तरफ की होती है. उन्होंने कहा कि केवल 5-6 लोग ही दोषी नहीं हैं. बलात्कारियों के साथ-साथ पीड़िता भी दोषी है. उसे दोषियों को भाई कह कर संबोधित करते हुए उनसे ऐसा घृणित कार्य ना करने का अनुरोध करना चाहिए था. इससे उसकी जान और इज्जत दोनों बच जाती. इतना ही काफी नहीं था कि आसाराम बापू ने अपनी बात में यह भी साफ किया कि वे आरोपियों को कठोर सजा दिए जाने के खिलाफ हैं. उनके मुताबिक इस तरह के बने कानूनों का हमेशा से दुरुपयोग हुआ है. दहेज प्रताड़ना के खिलाफ बना कानून इसका एक उदाहरण है. आसाराम बापू जैसे सभी बुद्धिजीवियों, धर्मगुरुओं को यह बात समझने की जरूरत है कि बलात्कार पीड़िता पर आरोप लगाने से हम मर्दवादी समाज की घिनौनी सोच को छिपा नहीं सकते हैं और साथ ही इस बात को ज्ञात कराना जरूरी है कि अधिकांश बलात्कारी महिलाओं के रिश्तेदारों में से एक होते हैं तो इस संदर्भ में आसाराम बापू की ‘बलात्कारी को भाई बनाकर बलात्कार जैसी घटना से बचने वाली बात निरर्थक साबित हो जाती है’. समाज के हर व्यक्ति को अपने मानसिक स्तर पर विकास करते हुए यह सोचना होगा कि क्यों हम बलात्कार से पीड़ित महिला या मासूम लड़कियों को बलात्कार जैसी घिनौनी घटना के लिए दोषी मान लेते हैं या फिर दोषी बना देते हैं. बदलते समय के साथ हम समाज में बहुत सी बातों में परिवर्तन चाहते हैं या फिर कई स्तर पर हम नजरिए में परिवर्तन कर भी रहे हैं पर सवाल यह है कि क्या लाभ है उन खोखले परिवर्तनों का जब हम आज भी बलात्कार पीड़ित को ही दोषी की नजर से देखते हैं.

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:38 PM
रामायण काल में बलात्कार जैसे दुष्कृत्य पर दंड-विधान



दिल्ली में हुए गैंगरेप की शिकार युवती के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे भारतीय समाज को झंकझोर डाला है .आरोपियों पर

सख्त से सख्त व् शीघ्र अति शीघ्र सजा की मांग को लेकर जनता का सैलाब सड़कों पर उतर आया है .अधिकांश

जनसमूह इन अपराधियों को फांसी की सजा दिए जाने के पक्ष में है तो कानूनविदों की राय है कि भारतीय कानून के

अनुसार इन्हें केवल उम्रकैद कीसजा दी जा सकती है .किसी का मत है कि इन्हें हाथी के पैरों टेल कुचलवा दिया जाये

तो कुछ की मांग है कि इन्हें सीधे आग के हवाले कर दिया जाये .कुछ का मत है कि इनके अंग भंग कर इन्हें नपुंसक

बना दिया जाये .विगत चालीस वर्षों में महिला विरूद्ध अपराधों में जिस तरह आठ सौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है

[नवम्बर २०११ में एन.सी.आर.बी.द्वारा प्रकाशित आंकड़े ] उसके परिपेक्ष्य में मानव समाज के माथे पर कलंक स्वरुप

इस अपराध ‘बलात्कार’ के लिए कड़ी सजा निर्धारित करने का समय आ गया है .इसी संदर्भ में हमें हमारे शीर्ष

मार्गदर्शक धार्मिक ग्रन्थ ”श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ” में उल्लिखित इस घिनोने अपराध ‘बलात्कार’ हेतु दण्डित किये

गए पापाचारी पुरुषों से सम्बद्ध प्रसंगों पर विचार करना आवश्यक ही नहीं समयोचित भी है क्योंकि ”रामायण ” पग

पग पर हर भारतीय मनुज को उचित आचरण हेतु निर्देशित करती है .

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:38 PM
रामायण काल में बलात्कार जैसे दुष्कृत्य पर दंड-विधान



दिल्ली में हुए गैंगरेप की शिकार युवती के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे भारतीय समाज को झंकझोर डाला है .आरोपियों पर

सख्त से सख्त व् शीघ्र अति शीघ्र सजा की मांग को लेकर जनता का सैलाब सड़कों पर उतर आया है .अधिकांश

जनसमूह इन अपराधियों को फांसी की सजा दिए जाने के पक्ष में है तो कानूनविदों की राय है कि भारतीय कानून के

अनुसार इन्हें केवल उम्रकैद कीसजा दी जा सकती है .किसी का मत है कि इन्हें हाथी के पैरों टेल कुचलवा दिया जाये

तो कुछ की मांग है कि इन्हें सीधे आग के हवाले कर दिया जाये .कुछ का मत है कि इनके अंग भंग कर इन्हें नपुंसक

बना दिया जाये .विगत चालीस वर्षों में महिला विरूद्ध अपराधों में जिस तरह आठ सौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है

[नवम्बर २०११ में एन.सी.आर.बी.द्वारा प्रकाशित आंकड़े ] उसके परिपेक्ष्य में मानव समाज के माथे पर कलंक स्वरुप

इस अपराध ‘बलात्कार’ के लिए कड़ी सजा निर्धारित करने का समय आ गया है .इसी संदर्भ में हमें हमारे शीर्ष

मार्गदर्शक धार्मिक ग्रन्थ ”श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ” में उल्लिखित इस घिनोने अपराध ‘बलात्कार’ हेतु दण्डित किये

गए पापाचारी पुरुषों से सम्बद्ध प्रसंगों पर विचार करना आवश्यक ही नहीं समयोचित भी है क्योंकि ”रामायण ” पग

पग पर हर भारतीय मनुज को उचित आचरण हेतु निर्देशित करती है .

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:39 PM
नारी की मान -मर्यादा को रौदने वाले इस दुष्कर्म का सूत्रपात करने का श्रेय देवराज इंद्र को जाता है .महामुनि गौतम

की भार्या देवी अहल्या के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त होकर काम के वशीभूत इंद्र ने महामुनि गौतम का छद्म रूप धरकर

देवी अहल्या से बलात्कार किया .इस दुष्कर्म के परिणामस्वरूप इंद्र को जो दंड दिया गया उसका उल्लेख

”श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण” में इस प्रकार वर्णित है -


[''मम रूपं समास्थाय ....तत्क्षनात'' (श्लोक-२७,२८ ,बालकाण्डे अष्टचत्वारिंश : सर्ग: पृष्ठ १२६ ) ]


”अर्थात दुर्मते तूने मेरा रूप धारण कर यह न करने योग्य पापकर्म किया है ,इस लिए तू विफल (अन्डकोशों से रहित )

हो जायेगा .रोष में भरे महात्मा गौतम के ऐसा कहते ही देवराज इंद्र के दोनों अंडकोष उसी क्षण पृथ्वी पर गिर पड़े ]


इसके अतिरिक्त ‘उत्तर कांड ‘ के ‘ विंश:सर्ग: ‘में भी रावण पुत्र मेघनाद [ जो देवराज इंद्र को कैद कर इन्द्रजीत कहलाया

]के द्वारा कैद कर लिए जाने पर ब्रह्मा जी मेघनाद को वरदान देकर इंद्र को उसकी कैद से मुक्त कराकर पराजय व्

देवोचित तेज़ नष्ट हो जाने से दुखी इंद्र से कहते हैं -


”तम तू दृष्टा… …. …सुदुष्क्रतम ”[श्लोक-१८ पृष्ठ -६८९] अर्थात -भगवान ब्रह्मा जी ने उनकी इस अवस्था को लक्ष्य

किया और कहा -शतक्रतो !यदि आज तुम्हे इस अपमान से शोक और दुःख हो रहा है तो बताओ पूर्वकाल में तुमने बड़ा

भारी दुष्कर्म क्यों किया था ?’

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:41 PM
”सा ………, …….तदाब्रवीत ” [३० से ३५ श्लोक ,पृष्ठ -६८२ ]-इंद्र !तुमने कुपित और काम पीड़ित होकर उसके

[अहल्या] के साथ बलात्कार किया .उस समय उन महर्षि ने अपने आश्रम में तुम्हे देख लिया ”


‘देवेन्द्र !इससे उन परम तेज़स्वी महर्षि को बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने तुम्हे शाप दे दिया .उसी शाप के कारण तुमको

इस विपरीत दशा में आना पड़ा -शत्रु का बंदी बनना पड़ा .”


‘उन्होंने शाप देते हुए कहा -’वासव !शक्र !तुमने निर्भय होकर मेरी पत्नी के साथ बलात्कार किया है ,इसीलिए तुम युद्ध

में जाकर शत्रु के हाथ में पड़ जाओगे .”


‘दुर्बुद्धे !तुम जैसे राजा के दोष से मनुष्य लोक में भी यह जार भाव प्रचलित हो जायेगा ,जिसका तुमने यहाँ सूत्रपात

किया है .इसमें संशय नहीं है .”


‘जो जारभाव से पापाचार करेगा ,उस पुरुष पर उस पाप का आधा भाग पड़ेगा और आधा भाग तुम पर पड़ेगा

क्योंकि इसके प्रवर्तक तुम्ही हो .निसंदेह तुम्हारा यह स्थान स्थिर नहीं होगा ”


वर्णित प्रसंग में उल्लिखित तथ्य इस और संकेत करते हैं कि-उस समय बलात्कारी को नपुंसक बनाना व् उसकी

सामाजिक प्रतिष्ठा से उसे विलग कर देना बलात्कार के दंड निर्धारित किये गए थे .

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:42 PM
”उत्तर कांड ”के ‘अशीतितम:सर्ग ‘ में राजा दण्ड द्वारा भार्गव कन्या अरजा के साथ बलात्कार का प्रसंग भी विचारणीय है .

गुरु पुत्री द्वारा बार बार सचेत किये जाने पर भी काम के अधीन दण्ड ने बलपूर्वक स्वेच्छाचारवश अरजा के साथ

समागम किया .दंड द्वारा किये गए इस अत्यंत दारुण व् महाभयंकर अनर्थ पर देवर्षि शुक्र तीनों लोकों को दग्ध करते

हुए कहते हैं -


[पश्यध्वं....... ....भविष्यति ' -श्लोक ४ से १० पृष्ठ -७८४ ]‘अर्थात -देखो शास्त्रविपरीत आचरण करने वाले अज्ञानी

राजा दण्ड को कुपित हुए मेरी ओर से अग्नि-शिखा के समान कैसे घोर विपत्ति प्राप्त होती है ‘


‘पापकर्म का आचरण करने वाला वह दुर्बुद्धि नरेश सात रात के भीतर ही पुत्र ,सेना और सवारियों सहित नष्ट हो जायेगा

.”’खोटे विचारवाले इस राजा के राज्य को सब ओर से सौ योजन लम्बा-चौड़ा है ,देवराज इंद्र ,भारी धूल की वर्षा करके

नष्ट कर देंगे .”खोटे विचारवाले इस राजा के राज्य को सब ओर से सौ योजन लम्बा-चौड़ा है ,देवराज इंद्र ,भारी धूल की

वर्षा करके नष्ट कर देंगे .”यहाँ जो सब प्रकार के स्थावर-जंगम जीव निवास करते हैं ,इस धूल की भारी वर्षा से सब

ओर से विलीन हो जायेंगे ‘जहाँ तक दण्ड का राज्य है वहां तक के समस्त चराचर प्राणी सात रात तक केवल धूलि की

वर्षा पाकर अद्रश्य हो जायेंगे .’


[इत्युक्त्वा .....ब्रह्मवादिना ,श्लोक-१७,१८ ]‘ऐसा कहकर शुक्र ने दूसरे राज्य में जाकर निवास किया तथा उन ब्रह्मवादी

के कथनानुसार राजा दण्ड का वह राज्य सेवक,सेना और सवारियों सहित सात दिन में भस्म हो गया .”


स्पष्ट है कि उस काल में बलात्कार को सर्वोच्च धर्मविरुद्ध आचरण मानते हुए ब्रह्म ऋषि ने राजा दण्ड व् उसके

देशवासियों को शाप की आग में जला डाला .राजा दण्ड को अपने इस पापाचार के कारण अपना समस्त वैभव -राज्य

गवाना पड़ा .इस दण्ड को यदि वर्तमान परिपेक्ष्य में लागू किया जाये तो बलात्कारी के साथ उसके परिवारीजन को भी

दण्डित किया जाना चाहिए और उसकी समस्त संपत्ति सरकार द्वारा जब्त कर ली जानी चाहिए .

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:43 PM
‘बलात्कारी शिरोमणि ‘ रावण का उल्लेख यहाँ न किया जाये यह तो संभव ही नहीं ..ब्रह्मर्षि कन्या वेदवती जहाँ रावण

द्वारा तिरस्कृत किये जाने पर प्रज्वलित अग्नि में समां गयी वही रावण द्वारा अपह्रत हुई देवताओं,नागों,राक्षसों.

असुरों ,मनुष्यों ,यक्षों और दानवों की कन्यायें व् स्त्रियाँ भय से त्रस्त एवं विह्वल हो उठी थी .ऐसे पापाचारी रावण द्वारा

जब ‘रम्भा’पर बलात्कार किया जाता है तब नलकूबर उसे भयंकर शाप देते हुए कहते हैं -


‘अकामा…..तदा ” -श्लोक-५४,५५,५६ ,उत्तर कांड षड्विंश : पृष्ठ -६७१]अर्थात -वे [नलकूबर ] बोले ‘भद्रे [रम्भा ]

!तुम्हारी इच्छा न रहते हुए भी रावण ने तुम पर बल पूर्व्वक अत्याचार किया है .अत:वह आज से दूसरी किसी युवती

से समागम नहीं कर सकेगा जो उसे चाहती न हो ‘


‘यदि वह काम से पीड़ित होकर उसे न चाहने वाली युवती पर बलात्कार करेगा तो तत्काल उसके मस्तक के सात टुकड़े

हो जायेंगे ” माता सीता के हरण का दुष्परिणाम तो रावण को अपने प्राण गवाकर ही भुगतना पड़ा था .


निश्चित रूप से यहाँ भी बलात्कारी को प्राणदंड की ही सजा दिए जाने का निर्देश दिया गया है .

jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:45 PM
‘किष्किन्धा कांड ‘के ‘अष्टादश:’सर्ग में ‘श्री राम ‘स्वयं लोकाचार व् लोकविरुद्धआचरण हेतु पापी के वध को धर्मयुक्त

ठहराते है . बाली द्वारा अपने वध पर रोष व्यक्त करने पर श्रीराम उसे उसके वध का कारण बताते हुए कहते हैं -

[अस्य ........ ...पर्यवस्तिथ:-श्लोक १९,२४ ,पृष्ठ -६८८,८८९ ]”इस महामना सुग्रीव के जीते जी इसकी पत्नी रूमा का

,जो तुम्हारी पुत्रवधू के सामान है ,कामवश उपभोग करते हो ,अत: पापाचारी हो .वानर ! इस तरह तुम धर्म से भ्रष्ट हो

स्व्च्छाचारी हो गए …………तुम्हारे इसी अपराध के कारण तुम्हे यह दंड दिया गया है .वानरराज जो लोकाचार से भ्रष्ट

होकर लोकविरुद्ध आचरण करता है ,उसे रोकने या राह पर लेन के लिए मैं दंड के सिवा और कोई उपाय नहीं देखता .मैं

उत्तम कुल में उत्पन्न क्षत्रिय हूँ अथ मैं तुम्हारे पाप को क्षमा नहीं कर सकता जो पुरुष अपनी कन्या,बहिन अथवा .छोटे

भाई की स्त्री के पास काम बुद्धि से जाता है ,उसका वध करना ही उसके लिए उपयुक्त दंड माना गया है ……….तुम धर्म

से गिर गए हो ……हरीश्वर !हम लोग तो भरत की आज्ञा को ही प्रमाण मानकर धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाले

तुम्हारे जैसे लोगों को दंड देने के लिए सदा उद्यत रहते हैं .”


स्पष्ट है कि हमारे मार्गदर्शक धार्मिक ग्रन्थ ”रामायण” में बलात्कारियों के लिए नपुंसकता ,वध -जैसे कठोर दण्डों का

विधान किया गया है .वर्तमान में बर्बरता कि सीमायें लाँघ चुके इस अपराध हेतु ऐसे ही कड़े दंड का प्रावधान शीघ्र

किया जाना चाहिए .


[शोध ग्रन्थ-''श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण '' गीता प्रेस ,संवत-२०६३ इकतीसवां पुनर्मुद्रण ]

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 11:07 PM
जब तक कानून से जुडे सभी स्थानो पर सम्वेदन शील लोग नहीं आयेंगे..तब तक कुछ भी कर ले सुधार आना मुश्किल ही लगता है..!!

कल ही क्राइम पेट्रोल पर एक एपीसोड देखा जिसमै एक नवयुवक को सिर्फ 200 रुपये की चोरी के इल्जाम मै इसलिये 11 महीने अन्दर रहना पडा क्योंकि उसके पास एक पर्स मिला जिसमे 200 रुपये थे...!!

उसको गिरफ्तार करने के बाद इस बात पर किसी ने ध्यान नही दिया कि वो पर्स उस व्यक्ति का नहीं था जिसके पैसे चोरी हुये थे...

महत्वपूर्ण बात ये है कि उसको ये सिद्ध करने के लिये कहा जा रहा था कि ये रुपये उसके ही थे...एक सब्जी बेचने वाले के पास दो सौ रुपये होने का प्रमाण देने की क्या आवश्यकता मेहसूस हुयी, ये समझ से परे है..!!

अंत मे उस युवक को तब छोडा गया जब उसने दो सौ रुपये की चोरी को कबूल कर लिया...क्योंकि उस चोरी की सजा सिर्फ तीन महीने तक ही हो सकती थी...और वो पहले ही ग्यारह महीने की सजा काट चुका था...!!

जिन लोगों का थाने और कोर्ट कचहरी से पाला पड चुका है वो इस बात को अच्ची तरह जानते है कि सिस्टम ना सिर्फ सड गल चुका है बल्कि बदबू भी आने लगी है...हमे इसमै अभी भी कुछ हद तक बाकी सम्वेदनशीलता को पूरी तरह से रेस्टोर करना होगा ताकि लोगों का इस प्रक्रिया मै भरोसा बन सके और बढ सके...!!

आपका उदाहरण शत-प्रतिशत सही है अक्षजी। ... और मेरा मानना है कि ऎसी ही स्थिति क्रान्ति के लिए जरूरी होती है। जनता का गुस्सा उबाल पर है, समाधान कहीं नज़र नहीं आ रहा और सरकार आंख, कान, नाक बंद किए बैठी है, तब जनता के पास और कोई चारा ही क्या बचता है यानी हम एक क्रान्ति अथवा उससे उत्पन्न गृह युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं।

Dark Saint Alaick
13-01-2013, 11:11 PM
एक अद्भुत, सामयिक और समाज को दिशा देने वाले सूत्र का निर्माण करने के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं, जय भाई। सलाह वाकई वही होती है, जो सही समय पर दी जाए और आपके इस सूत्र में अभिव्यक्त विचार देश को एक नई दिशा दिखाने वाले हैं, आभार आपका। :bravo:

jai_bhardwaj
14-01-2013, 07:04 PM
एक अद्भुत, सामयिक और समाज को दिशा देने वाले सूत्र का निर्माण करने के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं, जय भाई। सलाह वाकई वही होती है, जो सही समय पर दी जाए और आपके इस सूत्र में अभिव्यक्त विचार देश को एक नई दिशा दिखाने वाले हैं, आभार आपका। :bravo:

अलैक जी, आपकी प्रतिक्रिया से निश्चित ही मुझे सकारात्मक ऊर्जा मिली है। हाँ, मैं इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि सूत्र में मैंने अंतरजाल से चुने गए कुछ विचार मात्र रखें हैं ... सूत्र का निर्माण नहीं। धन्यवाद बन्धु।

jai_bhardwaj
15-01-2013, 11:58 PM
मेरी दीदी बहुत बहादुर थीं, हमेशा कहतीं थीं कि एक दिन डॉक्टर बनूंगी। झूठ और जुल्म से उन्हें सख्त नफ़रत थी।
दिल्ली गैंगरेप की शिकार हुई लड़की के बारे में उसकी चचेरी बहनों ने यह बताते हुये गुस्से में कहा- सभी आरोपितों की सजा है कि उनको सीधे आग में जला देना चाहिये।

उ.प्र. के बलिया जिले के नरही क्षेत्र के एक अति पिछड़े गांव में रहने वाले पीड़िता के पिता ने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिये पैसे कम पड़ने पर बिहार में अपनी ननिहाल में मिली ड़ेढ़ बीघे जमीन बेंच दी। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस बेटी के लिये चार महीने पहले पिता ने कहा था कि गांव को एक डॉक्टर देने की उम्मीद पूरी कर रहा हूं, उसका यह हश्र होगा।

दामिनी, अमानत और कई नामों से पुकारते हुये मीडिया ने बताया कि उस बहादुर बच्ची ने होश में आते ही अपनी मां से पूछा था -वे पकड़े गये क्या?

वह जीना चाहती थी। लेकिन वावजूद अपनी जिजीविषा के वह मौत से मुकाबला हार गयी।


टीवी पर उसके अंतिम संस्कार की खबर के साथ ही यह खबर भी आ रही थीं कि दिल्ली में एक नाबालिग से छेड़छाड़ हुई। पश्चिम बंगाल में 45 साल की एक महिला की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी। दिल्ली में एक बरेली का आदमी भूख हड़ताल पर है। जया बच्चन और शबानी आजमी की भावुक होने की खबरें आ रही थीं ।


माननीया पूर्व राष्ट्रपति महोदया जी ने अपने बचाव के लिये लड़कियों को जूडो-कराटे सीखने की सलाह दे रही हैं। वहीं एक महानुभाव बयान दे रहे हैं- (बलात्कार से बचने के लिये ?)लड़कियों को स्कर्ट की जगह जींस-पैंट पहनना चाहिये। माननीया की सीख है -अपने बचाव के लिये समर्थ बनो, हमला करना सीखो। वहीं महानुभाव का विचार है- बचना है तो अपने को सुधारो वर्ना हमें दोष मत देना। एक बाबा जी यह कह रहे हैं कि लडकी को ऐसे वक्त पर दुराचारियों को भैया संबोधन से पुकारना चाहिए था।

दिल्ली गैंगरेप की शिकार पीड़िता की हालत सुधरने , स्थिर होने और बिगड़ जाने की खबरें मीडिया चैनलों में आतीं रहीं। घटना के विरोध में आक्रोशित युवाओं का स्वत:स्फ़ूर्त आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, पुलिसिया बहादुरी और राजनीति की खबरें भी। लोगों के बचकाने बयान भी आये। शर्मिंदगी, बयान वापसी और माफ़ीनामा भी हुआ।


पीड़िता को इलाज के लिये सिंगापुर ले जाने के निर्णय की भी आलोचना ही हुई। तालिबान के खिलाफ़ आवाज उठाने वाली पाकिस्तान की बहादुर बच्ची मलाला युसुफ़जई का कहना है- बलात्कारियों ने उसको सड़क पर फ़ेंक दिया। सरकार ने उसको सिंगापुर में फ़ेंक दिया। दोनों में क्या अंतर है?

bharat
16-01-2013, 02:52 PM
"I demand that the Prime Minister to
immediately issue an Ordinance to make the
offence of rape as one of terrorism.
Gone are the days when rape was an offence
committed occasionally, by an individual
against a woman in a fit of passion. Today
rape has become an epidemic, committed by
a gang, accompanied by a depraved and
beastly brutalisation of the victim, as in the
recent gangrape in a bus.
Such incidents have terrorized women, and
traumatized parents. Hence it is tantamount
to terrorism as per UN definition by which
“terrorism is the act by violence to overawe
innocent civilians to do or not to do
something against their will.
Therefore without delay the Prime Minister
must get an Ordinance issued to make rape
a terrorism offence with either death or Bobbit
cut as sentence." - Dr. Swamy

Courtesy- dr swami's twitter

dipu
16-01-2013, 03:00 PM
काश उस लड़की ने एक आध बलात्कारी के लिंग / मुह आदि पर लात जमा दी होती