View Full Version : रपटीली-प्रेम-डगर (कहानी)
jai_bhardwaj
13-01-2013, 06:57 PM
प्रस्तुत कहानी अंतरजाल से चुनी गयी है। मैं हृदय से मूल प्रस्तोता और मूल प्राप्ति स्थान को धन्यवाद देते हुए मंच पर प्रस्तुत कर रहा हूँ।
jai_bhardwaj
13-01-2013, 06:58 PM
यूं तो प्यार की हर कहानी एक जैसी होती है पर कुछ कहानियां ऐसी होती है जिनका असर सबपर पड़ता है. ऐसी ही
एक कहानी है निशा, ललित और दया की. पात्रों के नाम काल्पनिक है पर कहानी वास्तविक है. असली जिंदगी में भी
ऐसे पात्र मिल जाते है सोचकर विश्वास नहीं होता पर कहते है न प्यार ऐसी बला है जो कुछ भी करा देती है. प्यार आग
में चलने की ताकत दे देती है और गम में भी मुस्कराने की मजबूर कर देती है. पर कभी कभी प्यार के बीच ऐसे रिश्ते
बनते है जो बेहद अजीब होने के साथ जिंदगी की एक ऐसी कड़वी तस्वीर हमारे सामने रखती है जिसे सही मान पाना
हमारे लिए नामुमकिन होता है.
चलिए प्यार क्या है कैसे होता है, क्यूं होता है इस सब के बारें में तो यहां सभी लिख रहे है पर प्यार में कैसे कैसे दौराहे
आ जाते है उसको में अपनी कहानियों से दर्शाने की कोशिश कर रहा हूं.
jai_bhardwaj
13-01-2013, 06:58 PM
कहानी निशा की है. एक सीधी साधी लड़की जिसकी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव है. उसके पिता कार
चलाते है जो की ट्रांस्पोर्ट के काम में लगी हुई है. घर आराम से चलता है. 12वीं पास करने के बाद निशा
एक जगह जॉब करने लगती है. घर वालों के मना करने के बावजूद भी वह सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए ऐसा
करती है. इसी दौरान उसे अपने मोहल्ले में रहने वाले ललित से प्यार हो जाता है. प्यार उसकी जिंदगी
में सपनों का नया मुकाम लेकर आता है. ललित और निशा चोरी चोरी अपने प्यार को आगे बढ़ाते है.
ललित कॉलेज जाता है तो निशा बालकनी में आकर उसे निहारते हुए निगाहों से टाटा बाए बाए कहती है
और शाम को जब निशा ऑफिस सॆ आती है तो मोहल्ले के गेट पर ललित अपनी निगाहे बिछा उसका
स्वागत करता है.
इसी तरह दोनों का प्यार सबकी नजरों से छुपछुपा कर आगे बढ़ता है. उनका प्यार जमाने के प्यार की
तरह नहीं होता. उनके बीच सिर्फ प्यारी बातें होती है और मिलने की इच्छा दिल के कोने में होती है.
कभी कभार अकेले मिल भी जाएं तो दोनों अपनी सीमाओं में ही रहते है. ऐसे में एक दिन ललित की
बहन की शादी होती है. निशा पहली बार साड़ी पहनती है जिसे देख ललित का दिल बहुत हिचकौले खाने
लगता है.
ललित उस दिन पहली बार निशा के कोमल गालों को छुता है. उसका यह स्पर्श निशा के दिल में हमेशा
हमेशा के लिए बस जाता है. ललित की बहन की शादी के बाद उसकी भी शादी तय कर दी जाती है. यह
सुन निशा के कदमों तले से जमीन खिसक जाती है. उसे समझ नहीं आता क्या करें. ललित ने जो उसे
इतना प्यार दिया उसे भूल जाए या कोई और रास्ता निकाले.
jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:02 PM
घर से भागकर शादी करने का भी विचार दोनों के दिमाग में आता है पर दोनों अपने दिलों के गेट पर ताले लगा कर
जिन्दगी में सफर में आगे बढ़ने का सोचते है. ललित की शादी हो जाती है और निशा अपनी जॉब में दिल लगाकर काम
करने लगती है. पर दिल जब एक बार किसी से लग जाता है तो उसे छोड़्ना नामुमकिन हो जाता है. शादी के कुछ दिनों
बाद ही ललित दुबारा निशा से बात करने लगता है. निशा को भी इसमें बुरा नहीं लगता. उसे तो बस प्यार से मतलब
हैं.
लेकिन इसी दौरान निशा की जिंदगी में दया आता. दरअसल होता यूं है कि निशा एक दोस्त से शर्त लगाती है और शर्त
के मुताबिक दोनों को बीयर पीनी होती है. वो लड़का तो बीयर पी लेता है और निशा भी बीयर चढ़ा लेती है. बीयर पीने
के बाद निशा उस लड़के के एक दोस्त के साथ घर जाती है जिसे वह जानती है. वह अंजान होते हुए भी निशा को उसके
घर तक छोड़ देता है. पहली ही मुलाकात में निशा दया को दिल दे बैठती है.
दया को निशा पहली ही नजर में पसंद आ जाती है. दया का अपना कार का गैराज है. दया अच्छा खासा कमाता खाता
और थोड़ा बहुत पैसे वाला है पर शक्ल सुरत में निशा से थोड़ा उन्नीस ही है. पर फिर भी निशा को लगता है जब
ललित ने साथ छोड़ ही दिया है तो फिर वो क्यू उसके लिए मरती रहे इसलिए उसने भी सोच लिया कि वह दया के
साथ ही अपनी जिंदगी काटेगी.
निशा ने किसी तरह अपने परिवार वालों से दया के बारें में बात की और निशा के माता पिता को भी दया पसंद आ गए
और बड़ी धूम धाम से दोनों की शादी हुई. शादी के बाद निशा अपने ननिहाल की छाव छोड़ उस इंसान के घर चल पड़ी
जिसके साथ उसकी मात्र दो ही मुलाकात हुई थी.
jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:03 PM
कहते है ना अगर पहले किसी चीज को इस्तेमाल ना करे और उसपर हद से ज्यादा विश्वास कर लें तो वह
नुकसानदायक होती है. और भारत में जहां शादी एक ऐसा बोझ है जिसे मां बाप बच्चों के ऊपर थोप देते हैं, बिना यह
सोचे समझें कि उससे बच्चों के ऊपर क्या असर पड़ेगा और यहां अगर शादी के बाद तलाक ले लो तो दुनिया वालों की
नजरें ही इंसान को मार डालती हैं.निशा ने दया को अपने जीवन का हमसफर तो बना लिया पर अपने हमसफर के
साथ साथ उसे अपने पूर्व प्रेमी की भी याद आती रही. शायद इसमें गलती दया की हो पर वह भी क्या करें जब निशा
के दिल के कौने में ही ललित की तस्वीर जमा बैठी थी.
निशा ने शादी के एक साल बाद दुबारा ललित से बात चीत करना शुरु कर दिया. इसी दरमियां दया की मां का निधन हो
गया और दया के भाईयों ने जायदाद के लिए कानूनी लड़ाई शुरु कर दी. एक ही झटके में दया अकेला हो गया, पर यहां
उसके सहारे के लिए निशा हमेशा खड़ी रहीं. घर बंट गए और निशा और दया अकेले रहने लगे.
लेकिन शायद निशा का परिवार वालों से अलग होना उसके लिए अच्छा ही साबित हुआ. निशा को अब एक अच्छा
मौका मिल गया ललित से मिलने का. फोन पर बातचीत से दोनों की करीबी इतनी बढ़ गई कि अब ललित दया की
गैर मौजुदगी में निशा से मिलने आ जाता था. लेकिन यहां यह बताना जरुरी है कि दोनों के बीच कुछ हुआ नहीं. सिर्फ
चाय और बातचीत बस. लेकिन दिलों के तुफान में यह थोड़ी सी दूरी कब तक बंट पाती.
jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:04 PM
एक दिन निशा का मन बहुत दुखी था. शायद दया ने उसे डांटा था और गालियां भी दी थी. इसलिए निशा ने फोनकरके
ललित को अपने दिल को बहलाने के लिए बुला लिया. मौका नाजुक था. निशा ललित के कंधे पर सर रखकर बहुत
रोई. दोनों की यह नजदीकी बहुत बढ़ गई और देखते ही देखते निशा ने सारी मर्यादा तोड़ ललित से शारीरिक संबंध बना
लिए. अब इसे बेवफाई कहे या वक्त की नाजुक नब्ज, पर निशा ने एक ऐसा कदम उठा लिया जिसे वह अपना हक
मानती थी और इसके पीछे उसका तर्क था कि उसे भी तो छोटी-सी खुश पाने का हक है.
खैर यह छोटी-सी खुशी अब उसे बहुत बड़ी लगने लगी. ललित का साथ उसे दया से भी ज्यादा अच्छा लगने लगा.
ललित के साथ बिताया गया थोड़ा-सा ही समय उसे दया के साथ बिताए दिन भर से ज्यादा बेहतर लगने लगा. हालात
ऐसे हो गए कि अब हर संडे का निशा बेकरारी से इंतजार करती और ललित के साथ अपना संडे अपने मन-मुताबिक
बिताती. जिस प्रेम कहानी को निशा ने प्यार से शुरु किया था कहीं ना कहीं अब उसके सेक्स का तड़का लग गया था.
पर कहते हैं हम इंसानों की एक आदत होती है कि वह हद से ज्यादा किसी चीज से संतुष्ट नहीं हो पाते. कुछ ही दिनों में
ललित को भी अपने घर की जिम्मेदारियां निभानी पड़ी और उसका निशा से मिलना कम हो गया. और अब दया के
साथ भी निशा का वैवाहिक जीवन कुछ खास नहीं चल रहा था. धीरे-धीरे निशा को आत्म-ग्लानि होने लगी.
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने निशा को सही और गलत के बीच का फर्क कांच की तरह साफ कर दिया. उस
दिन बरसात हो रही थी. निशा की थोड़ी तबियत खराब थी.दया काम पर गया था और इसी बीच ललित ने फोन करके
निशा से कहा कि वह आ रहा है. निशा ने लाख मना किया पर ललित जी आज थोड़े मूड में थे सो आ गए. निशा की
तबियत पहले ही खराब थी और ऊपर से ललित भी आ गया. अभी ललित आया ही था कि निशा की तबियत बिगड़ने
लगी और उसे चक्कर आने लगे. निशा को ऐसी हालत में देख कर तो ललित के होश उड़ गए. वह फौरन निशा को उसी
हालत में छोड़कर वहां से भाग गया. जिस समय निशा को उसके सहारे जरूरत थी उसी समय ललित वहां से चला
गया.
jai_bhardwaj
13-01-2013, 07:06 PM
निशा ने चक्कर खाकर गिरने से पहले ललित को पुकारा पर वह मदद को नहीं आया. थोड़ी ही देर में निशा को जरा सा
होश आया और उसने मोबाइल से ललित को कॉल लगाने की कोशिश की पर फोन लग गया उसके पति को. जैसे ही
दया ने सुना कि निशा बेहोश है वह फौरन दौड़ता हुआ घर पहुंचा और निशा को अस्पताल लेकर आया. अस्पताल में
पता चला कि निशा को बेहद कमजोरी है और उसे खून की भी जरूरत है. दया ने ऐसे समय में निशा को खून दिया
और पति होने का फर्ज निभाया.
जैसे ही निशा को होश आया वह फूट-फूट कर रोने लगी. उसे यह समझ ही नहीं आया कि आखिर ललित भागा क्यूं?
उसकी आंखों के सामने कई सवाल घूमने लगे. सही क्या और गलत क्या है? ललित से जिस सेक्स की चाह में निशा
ने उससे रिश्ता जोड़ा था वह ऐसा निकलेगा उसे मालूम नहीं था.
उसको समझ आ गया कि जिस खुशी की तलाश में वह बार-बार ललित को बुला रही थी उसी ने मुसीबत से समय
उससे पल्ला झाड़ लिया. आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए वह दया के कंधों पर सर रखकर अपने घर को गई और
मन से ललित को पूरी तरह निकाल दिया.
लेकिन क्या निशा ललित को पूरी तरह भुला देगी? क्या जो रिश्ता निशा और ललित के बीच था वह अब खत्म होगा?
ये यक्ष-प्रश्न अभी भी नुकीले कंटक की भाँति मेरे मस्तिष्क में चुभ रहे हैं।
(यदि इस कहानी की पुनरावृत्ति हो रही हो तो इसे निःसंकोच मिटाया जा सकता है।)
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