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View Full Version : एक पैसा बचाया मतलब एक पैसा कमाया


ravi sharma
03-02-2013, 04:52 PM
खुशहाल ज़िन्दगी जियें, बरबाद ज़िन्दगी नहीं। दूसरों को दिखाने के लिए पैसा खर्च न करें। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि दुनियावी वस्तुओं में वास्तविक संपत्ति नहीं है। अपने धन का नियोजन करें, धन को अपना नियोजन न करने दें। जितनी लम्बी चादर हो, उतने ही पैर पसारें।
“एक पैसा बचाया मतलब एक पैसा कमाया” – बेंजामिन फ्रेंकलिन

ravi sharma
03-02-2013, 04:53 PM
१ – संपत्ति की परिभाषा बदलें – “मुझे याद है अपनी पहली नौकरी के दौरान अपने दफ्तर के कमरे में बैठकर मैं दीवार पर लगी शानदार महँगी कार की तस्वीर को निहारता रहता था। देरसबेर मैंने ऐसी कार खरीद भी ली। आज, दस साल बाद मैं अपने दफ्तर के कमरे में बैठा हुआ दीवार पर लगी अपने बच्चों की तस्वीर को एकटक देखता रहता हूँ। खिड़की से बाहर मुझे पार्किंग लौट में खड़ी अपनी साधारण कार भी दिखती है। दस सालों में कितना कुछ बदल गया है! मेरे कहने का मतलब यह है कि मेरे लिए संपत्ति की परिभाषा यह है – इतना धन जो मेरे और मेरे परिवार की ज़ायज ज़रूरतों को पूरा कर दे, हमारी ज़िन्दगी को खुशहाल बनाये, और जिससे हम दूसरों की भी कुछ मदद कर पायें। (साईं इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाय; मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय)

ravi sharma
03-02-2013, 04:54 PM
१ – संपत्ति कीपरिभाषाबदलें – “मुझे याद है अपनी पहली नौकरी के दौरान अपने दफ्तर के कमरे में बैठकर मैं दीवार पर लगी शानदार महँगी कार की तस्वीर को निहारता रहता था। देरसबेर मैंने ऐसी कार खरीद भी ली। आज, दस साल बाद मैं अपने दफ्तर के कमरे में बैठा हुआ दीवार पर लगी अपने बच्चों की तस्वीर को एकटक देखता रहता हूँ। खिड़की से बाहर मुझे पार्किंग लौट में खड़ी अपनी साधारण कार भी दिखती है। दस सालों में कितना कुछ बदल गया है! मेरे कहने का मतलब यह है कि मेरे लिए संपत्ति की परिभाषा यह है – इतना धन जो मेरे और मेरे परिवार की ज़ायज ज़रूरतों को पूरा कर दे, हमारी ज़िन्दगी को खुशहाल बनाये, और जिससे हम दूसरों की भी कुछ मदद कर पायें। (साईंइतनादीजिये, जामेंकुटुंबसमाय; मैंभीभूखानरहूँ, साधुनभूखाजाय)

ravi sharma
03-02-2013, 04:54 PM
२ – मिल-बांटकर काम चला लें - नई फ़िल्म सिनेमाहाल में देखना बहुत ज़रूरी तो नहीं। किसी दोस्त के पास उसकी dvd हो तो कुछ घंटों के लिए मांगकर ले आयें। इसमें संकोच कैसा! घर में ही बढ़िया सा नाश्ता बनायें और सस्ता सुंदर होम थियेटर का मज़ा लें। दोस्त को भी बुला लें। हिसाब लगायें आपने कितने पैसे बचाए!

ravi sharma
03-02-2013, 04:55 PM
३ – भूल न जाना, कभी माल न जाना - माल जाने में कुछ मज़ा नहीं है। कम उम्र के लड़के-लड़कियां माल जाने के शौकीन होते हैं, सभी जानते हैं क्यों। बहुत सारे लोग बोर होने पर भी माल चले जाते हैं। चाहे जो हो, माल जाएँ और कुछ खर्चा न करें, यह सम्भव नहीं है। यदि आपको कपड़े खरीदने हों तो बेहतर होगा यदि आप थोक कपड़ा बेचनेवालों से खरीदें। बहुत सारे ब्रांडेड स्टोर भी अक्सर डिस्काउंट/सेल चलाते रहते हैं। सजग खरीददार माल न जाकर बहुत पैसा बचा सकते हैं।

ravi sharma
03-02-2013, 04:55 PM
४ – विज्ञापनों की खुराक कम करें - विज्ञापन जानलेवा हैं! शायद ही कोई इस बात से इनकार करे। विज्ञापन निर्माता विज्ञापनों की रचना इस प्रकार करते हैं कि आपको अपने जीवन और अपने आसपास कमी ही कमी दिखने लगती है। वे आपमें उत्पादों की कभी न बुझनेवाली प्यास जगाना चाहते हैं। वे आपको यकीन दिलाते हैं की अमुक चीज़ के बिना आप अधूरे हैं। विज्ञापन देखने से बचें।

ravi sharma
03-02-2013, 04:55 PM
४ – विज्ञापनों की खुराक कम करें - विज्ञापन जानलेवा हैं! शायद ही कोई इस बात से इनकार करे। विज्ञापन निर्माता विज्ञापनों की रचना इस प्रकार करते हैं कि आपको अपने जीवन और अपने आसपास कमी ही कमी दिखने लगती है। वे आपमें उत्पादों की कभी न बुझनेवाली प्यास जगाना चाहते हैं। वे आपको यकीन दिलाते हैं की अमुक चीज़ के बिना आप अधूरे हैं। विज्ञापन देखने से बचें।

ravi sharma
03-02-2013, 04:56 PM
५ – नकद खरीदें - “जो धन आपके पास नहीं है उसे आप नहीं उड़ा सकते” – यह बात पुरानी हो गई है। कई बैंक ओवरड्राफ्ट सुविधा देते हैं – मतलब आप डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करने से भी अपने बैंक अकाउंट को चूना लगा सकते हैं। सारी मुसीबतों से बचने के लिए जब खरीदें, नकद खरीदें।

ravi sharma
03-02-2013, 04:56 PM
६ – सौदेबाजी में शर्म कैसी? - किसी दुकान में यदि आप वस्तुओं के दाम की तुलना करने के लिए कीमत का लेबल चेक करेंगे तो आपकी इज्ज़त दांव पर नहीं लग जायेगी। सोचसमझ कर भावताव करके सामान खरीदें। आजकल फोन कनेक्शन लेते समय लोग कितना सोचते हैं! जिसमें ज्यादा से ज्यादा फायदा होता है उसे चुनते हैं। यही नीति दूसरी चीज़ें खरीदते समय क्यों न अपनाई जाए?

ravi sharma
03-02-2013, 04:57 PM
७ – लम्बी बचत योजना बनायें - समझदार आदमी सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखता। यदि आप मार्केट में पैसा लगाते हों तो अपना पोर्टफोलियो लचीला और विस्तृत रखें। चाहे fd में पैसा लगायें या शेयरों में, उनपर निगाह रखना बहुत ज़रूरी है। छोटी अवधि के लाभ के लिए किया गया निवेश ज्यादा मुनाफा दे सकता है लेकिन सुरक्षित नहीं होता।

ravi sharma
03-02-2013, 04:57 PM
8 – बाज़ार के गुलाम नहीं बनें - आपने कभी देखा है कि कोई छोटा बच्चा कभी खिलौने से खेलने के बजाय उसके डब्बे से खेलने में ही आनंद लेता है। बच्चो के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वे तभी खुश होंगे जब उनके पास बहुत कुछ खेलने के लिए होगा। हम बड़े लोग क्यों अपने मज़े के लिए दुनिया भर का कबाड़ अपने इर्दगिर्द खरीदकर जमा करते रहते हैं?

ravi sharma
03-02-2013, 04:58 PM
९ – स्वस्थ रहें - डाक्टर जेम्स एम् रिप बहुत बड़े ह्रदय रोग विशेषज्ञ और लेखक हैं। वे कहते हैं कि हमारी फिटनेस का ऊंचा स्तर हमारे लंबे जीवन को सुनिश्चित करता है। कोई बूढा आदमी जिसका दिल मज़बूत है वह उस जवान आदमी से बेहतर है जो दौड़भाग नहीं कर सकता। अपनी फिटनेस का स्तर बढ़ाकर हम अपनी जैविक घड़ी को पीछे कर सकते हैं।

ravi sharma
03-02-2013, 04:58 PM
१० – घरबैठे ज़िन्दगी का लुत्फ़ लें - अगली बार घर से बाहर निकलने से पहले सोचें – क्या बाहर जाने की ज़रूरत है? हो सकता है बाहर निकले बगैर ही काम बन जाए। घर में बैठें और पैसे बचाएँ।
११ – बुरे दिनों के लिए ख़ुद को तैयार रखें - आज सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा है और आप ख़ुद को हिमालय की चोटी पर महसूस कर रहे हैं लेकिन आपको स्वयं को आड़े वक़्त के लिए तैयार रखना चाहिए। हो सकता है कल कुछ बुरा हो जाए और आपकी आजीविका संकट में आ जाए। पैसे की हिफाज़त करें, पैसा आपकी हिफाज़त करेगा। जितना ज़रूरी हो उतना ही खर्च करें और बाकी पैसा बचा लें। दूसरों से होड़ करने के चक्कर में आप छोटी सी आर्थिक चोट सहने के लायक भी न रह पायेंगे।

ravi sharma
03-02-2013, 04:58 PM
१२ – पड़ोसी की चिंता करना छोडिये - यदि रुपया-पैसा ही खुशियाँ लाता है तो दुनिया के धनी देशों में लोग दुखी क्यों हैं? यह पाया गया है कि किसी देश का धनी होना उसके नागरिकों के सुखी होने की गारंटी नहीं है। क्यों? क्योंकि धनी लोग अपनी तुलना अपने से और धनी से करते हैं। वे उनसे जलते-कुढ़ते हैं। पश्चिमी देशों में यह सब बहुत बड़े सामाजिक अवसाद का कारण है।

ravi sharma
03-02-2013, 04:59 PM
१३ – इंस्टेंट नुस्खों से परहेज करें - आज हर चीज़ को क्विक-फिक्स करने की लहर चल पड़ी है। मोटापा घटाने के लिए भूख मारनेवाले कैप्सूल खाना लोग आसान समझते हैं, कम खाना और कसरत करना बहुत मुश्किल काम लगता है। मेहनत करने से कतराते हैं क्योंकि जेब में पड़ा पैसा दूसरों से मेहनत करवाना जानता है। हर बात के लिए मेहनत करने का सरल विकल्प त्याग देना और पैसे के दम पर काम निकालने में कैसी समझदारी है?

ravi sharma
03-02-2013, 04:59 PM
१४ – आदतन खरीददारी से बचें - जिस दिन आप नया टीवी लेकर आते हैं उस दिन घर में कितना उत्साह होता है! नई कार में बैठकर शोरूम से घर आते समय दिल बल्लियों उछलता है। ये तो बड़ी महँगी चीजें हैं, लोगों को तो नए जूते का डब्बा खोलते समय भी बड़ा रोमांच लगता है। लेकिन कितने समय तक? याद रखें, सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब… इसीलिए कहता हूँ, वही खरीदो जो ज़रूरी हो।

ravi sharma
03-02-2013, 04:59 PM
१५ – समय ही धन है - आपके पास जितना कम काम होता है आपको उतना ही कम व्यवस्थित होने की आवश्यकता होती है। ऐसे काम करने में ही अपनी ऊर्जा और समय लगाना चाहिए जिनके बदले में कुछ बेहतर मिले। इस प्रकार आप कम काम करने के बाद भी रचनात्मक अनुभव करेंगे। आपको कम संसाधनों की ज़रूरत होगी और आप तनाव मुक्त भी रहेंगे। यही विजय का सूत्र है। सरलीकरण और अपरिग्रहण पर ध्यान दें। ज़रूरी बातों पर ही ध्यान दें। बाकी सब काम का नहीं है।

ravi sharma
03-02-2013, 05:00 PM
१६ – बिना खर्च किए ही कुछ देने की कोशिश करें - दोस्त का जन्मदिन आ रहा है और आप उसे तुरतफुरत कुछ सस्ता और सुंदर गिफ्ट देना चाहते हैं? उसे पत्र लिखें। सच मानें, आज के ज़माने में इससे अच्छा और सस्ता उपहार हो ही नहीं सकता। हर हफ्ते थोड़ा सा समय निकाल लें और अपने प्रियजनों को चिठ्ठी लिखें। हाथ से लिखे ख़त की बात ही कुछ और है। चिठ्ठी लम्बी हो यह ज़रूरी नहीं है, महत्वपूर्ण हैं आपकी भावनाएं और आपका लिखना। यदि लिखना सम्भव न हो तो अपने हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बना सकते हैं। माना कि आप कलाकार नहीं हैं लेकिन आपके हाथ का बना ग्रीटिंग कार्ड इतना बुरा तो नहीं होगा कि कोई उसे पाकर रो पड़े!

ravi sharma
03-02-2013, 05:00 PM
१७ – लालच को अपने ऊपर हावी न होने दें - स्टीफन आर कोवी के अनुसार यदि आप ग़लत साधनों का प्रयोग करके दूसरों का आदर सम्मान और प्रशंसा प्राप्त कर भी लेते हैं तो देरसबेर आपके हाथ कुछ नहीं आता। ऐसा बहुत कुछ था जिसकी आपको परवाह करना चाहिए थी लेकिन आपने उसे नज़रंदाज़ किया। जो माता-पिता अपने बच्चों को उनका कमरा साफ़ करने के लिए कहते हुए झल्लाते रहते हैं उन्हें ही वह कमरा ख़ुद साफ़ करना पड़ता है। इससे रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कमरा जल्द ही पहले जैसा हो जाता है। क्या यही सब पैसे पर लागू नहीं होता? आज दुनिया में लोग इतने गंभीर आर्थिक संकट में इसीलिए फंसे पड़े हैं क्योंकि लोगों ने यह मान लिया कि साधन नहीं बल्कि साध्य महत्वपूर्ण हैं। मेरी सलाह – धनी होने की आकांक्षा रखने में कुछ ग़लत नहीं है, लेकिन इसके लिए उचित साधनों का ही प्रयोग करना चाहिए।

Deep_
08-07-2013, 10:25 AM
रवि जी, यह सुत्र मुझे अत्यंत प्रभावित कर गया । असल में अगर हम सब ये त्रूटियां सुधार लें तो भारतीय अर्थतंत्र काफी हद तक बहेतर हो सकता है। यहां विज्ञापनो की एसी झड़ी सी बरसती रहेती है । ज्यादातर विज्ञापन एसे ही होतें हो मानो उनकी वस्तु अगर हम न खरीदें तो हम छोटे हो गए, बेवकुफ बन गए, हमनें कोई भारी भुल कर दी, हमें हमारे बच्चो एवं परिवार की केयर नहिं करते... इस प्रकार की हीनता भरी अनुभुती हमें यह विज्ञपन करवातें है।

ज्यादातर कंपनी विदेशी भी होती है जो यहां मानों एक लघु उध्योग चला रही हो। भारत के बहोत से लधु एवं गृह उध्योगो को ईन्होंने खत्म कर दिया है। हम प्रोडक्ट के नाम पर से यह अंदाजाभी नहिं लगा सकते की यह कंपनी भारतीय है या विदेशी । यह कंपनी अपना फायदा कमा कर अपने अपने देशो में क्या उत्पाद करतीं है यह भी हमारे लिये गोपनीय है।

एक आम भारतीय का दोष यह होता है की वह विदेशी ब्रांड से आकर्षित हो जाता है, स्वदेशी ब्रांड की गुणवत्ता पर सदैव संदेह ही रखता है। चाईनीझ प्रोडक्ट खरीदने वालों को यह पता नहि होता की चाईना ईसका मुनाफा कहां कहां ईस्तमाल करनेवाला है। आगे क्या कहुं? हम सब समझदार है ही!

rajnish manga
08-07-2013, 01:17 PM
रवि जी, यह सुत्र मुझे अत्यंत प्रभावित कर गया । असल में अगर हम सब ये त्रूटियां सुधार लें तो भारतीय अर्थतंत्र काफी हद तक बहेतर हो सकता है। यहां विज्ञापनो की एसी झड़ी सी बरसती रहेती है । ज्यादातर विज्ञापन एसे ही होतें हो मानो उनकी वस्तु अगर हम न खरीदें तो हम छोटे हो गए, बेवकुफ बन गए, हमनें कोई भारी भुल कर दी, हमें हमारे बच्चो एवं परिवार की केयर नहिं करते... इस प्रकार की हीनता भरी अनुभुती हमें यह विज्ञपन करवातें है।

ज्यादातर कंपनी विदेशी भी होती है जो यहां मानों एक लघु उध्योग चला रही हो। भारत के बहोत से लधु एवं गृह उध्योगो को ईन्होंने खत्म कर दिया है। हम प्रोडक्ट के नाम पर से यह अंदाजाभी नहिं लगा सकते की यह कंपनी भारतीय है या विदेशी । यह कंपनी अपना फायदा कमा कर अपने अपने देशो में क्या उत्पाद करतीं है यह भी हमारे लिये गोपनीय है।

एक आम भारतीय का दोष यह होता है की वह विदेशी ब्रांड से आकर्षित हो जाता है, स्वदेशी ब्रांड की गुणवत्ता पर सदैव संदेह ही रखता है। चाईनीझ प्रोडक्ट खरीदने वालों को यह पता नहि होता की चाईना ईसका मुनाफा कहां कहां ईस्तमाल करनेवाला है। आगे क्या कहुं? हम सब समझदार है ही!

आपके विचार हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर करेंगे. विज्ञापन का मनोविज्ञान टार्गेट ग्रुप को प्रभावित करने का ही काम करता है जिसमे बड़े और बच्चे, महिलायें और पुरुष, उच्च वर्ग और माध्यम वर्ग सभी शामिल हैं. दूसरे, प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होने वाले बाजार को पहिये या पंख लगाने का काम यही विज्ञापन करते हैं. सफल विज्ञापन का काम है आपको बिना जरुरत के चीजें खरीदने पर आमादा करना.