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View Full Version : रक्त सम्बन्ध


jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:56 PM
प्रस्तुत कहानी अंतरजाल से चुनी गयी है। मैं मूल रचनाकार,प्रस्तोता एवं मूल स्थान का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:56 PM
आपरेशन थियेटर के बाहर मौजूद लोगों के चेहरों पर परेशानी व घबराहट के लक्षण दूर से देखे जा सकते थे। सभी किसी अनहोनी के भय से सहमे हुए थे। दरअसल आपरेशन थियेटर के अन्दर घर का चिराग़ जिंदगी व मौत के बीच झूल रहा था। थोड़ी देर पहले तीस वर्षीय दीपक कुमार की बाइक किसी ट्रक की टक्कर से चकनाचूर हो गयी थी और उसपर सवार दीपक को गंभीर घायलावस्था में लोगों ने अस्पताल पहुंचाया था।
थोड़ी देर बाद एक नर्स ओ.टी. से बाहर निकली, ''पेशेन्ट को एबी पाजि़टिव ब्लड ग्रुप की फौरन ज़रूरत है।

वहाँ मौजूद लोगों ने एक दूसरे की ओर देखा, फिर उनमें से दीपक का छोटा भाई बोला, ''मैं ब्लड बैंक में देखता हूं।

ब्लड बैंक ऊपर की मंजि़ल पर था। उसने रैंप की ओर कदम बढ़ाये लेकिन उसी समय एक व्यकित उसके पास आया, ''मेरे पास एबी पाजि़टिव ब्लड मौजूद है। ये लीजिए। उसने ब्लड का पाउच उनकी ओर बढ़ाया।
''लेकिन आप?" शायद आने वाला उनके लिए अजनबी था अत: इन लोगों ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा।
''मैं ये ब्लड अपने एक रिश्तेदार के लिये ले जा रहा था जो पास के एक हास्पिटल में एडमिट थे। लेकिन अभी अभी मेरे मोबाइल पर मैसेज आया है कि उनकी मृत्यु हो गयी। इसलिए अब यह ब्लड मेरे लिये बेकार है।" उसने पाउच उनके हाथ में थमाया और खामोशी से बाहर की ओर बढ़ गया।
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समय पर दीपक कुमार के इलाज ने उसकी जान बचा ली थी। और अब डाक्टरों के अनुसार वह खतरे से बाहर था। फिर उसे जल्दी ही अस्पताल से छुटटी मिल गयी। और उस दिन दीपक कुमार के घर में एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें सभी करीबी रिश्तेदार व दोस्तआमंत्रित थे।

''भाई का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं। वरना हम तो उम्मीद छोड़ बैठे थे।" दीपक का छोटा भाई प्रदीप कुमार एक रिश्तेदार को बता रहा था।

''ऊपर वाले ने भी हमारा साथ दिया। वरना एबी पाजि़टिव ब्लड आसानी से मिलता भी नहीं। अगर वो अजनबी हमारी मदद न करता तो शायद बहुत देर हो जाती।" दीपक कुमार की बहन अपने भाई की मंगेतर राशि मौर्या को बता रही थी। राशि मौर्या के साथ दीपक कुमार की हाल ही में मंगनी हुई थी। एक्सीडेंट की खबर सुनकर दीपक कुमार की होने वाली ससुराल से कई लोग वहां मिलने के लिये आये थे।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:57 PM
उधर दीपक कुमार मेहमानों से बात करते करते अचानक इस तरह चौंका जैसे उसे कुछ याद आ गया हो।
''माफ कीजिए मैं अभी आया।" उसने सामने खड़े मेहमान से कहा और एक तरफ को बढ़ गया।
थोड़ी देर बाद उसकी मोटरसाइकिल तेज़ रफ्तार के साथ शहर की एक सड़क नाप रही थी।

जल्दी ही वह शहर के बीच मौजूद एक खंडहरनुमा बहुत पुरानी इमारत के पास पहुंच गया। ये एक टूटा फूटा बहुत पुराना किला था जहाँ रात के वक्त सन्नाटा ही रहता था। दिन में ज़रूर इक्का दुक्का पर्यटक यहाँ भूले भटके पहुंच जाते थे। क्योंकि ये इमारत दुनिया के पर्यटन मैप पर नहीं थी।
उसने बाइक बाहर ही छोड़ी और किले के अन्दर घुसता चला गया। चारों तरफ घना अँधेरा छाया हुआ था, लेकिन हैरत की बात ये थी कि दीपक कुमार तेज़ी के साथ कुछ इस तरह चल रहा था मानो तेज़ रोशनी फैली हो। उसकी चाल भी कुछ बदली बदली सी लग रही थी मानो कोई हवा में तैर रहा हो।

किले के अन्दर बने विभिन्न विशालकाय कमरों को पार करता हुआ वह जल्दी ही एक ऐसे कमरे में पहुंचा जिसमें नीचे जाने के लिये सीढि़यां बनी हुई थीं। जो दरअसल किसी तहखाने में जाने का रास्ता था। वह सीढि़यों से नीचे उतरने लगा।
जहाँ किले के बाहरी खंडहर अँधेरे में डूबे हुए थे, वहीं उसके उलट इस तहखाने में हल्की नीली रोशनी फैली हुई थी। उस रोशनी में सामने किसी प्राचीन राजा की आदमकद मूर्ति साफ दिखाई दे रही थी।
दीपक कुमार अंतिम सीढ़ी से उतरकर नीचे खड़ा हो गया।
''आओ, मेरे करीब आओ।" अचानक वहाँ एक आवाज़ गूंजी। और यह आवाज़ नि:संदेह उसी राजा की मूर्ति से आयी थी। दीपक कुमार धीरे धीरे उस मूर्ति की ओर बढ़ने लगा। अचानक वह विशाल मूर्ति दो भागों में बँट गयी। और अब सामने वही अजनबी दिखाई दे रहा था जिसने दीपक कुमार को अस्पताल में खून दिया था।

''क्या तुम मुझे पहचान सकते हो?" अजनबी की आवाज़ तहखाने में गूंजी।
''हाँ मैं तुम्हें पहचान सकता हूं।" दीपक कुमार इस तरह बोला मानो सपने में बोल रहा हो।
''मेरा तुम्हारा खून का रिश्ता है।"
''हाँ।"
''तो फिर जाओ और मेरे खून को पूरी दुनिया में फैला दो।" अजनबी का आदेश सुनकर दीपक कुमार वापस घूमा और तहखाने से बाहर जाने लगा। जबकि अजनबी फिर से मूर्ति के बीच समा गया था।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:57 PM
शहर के अस्पतालों में इधर नये तरह की हैरतअंगेज़ सरगर्मियां दिखाई देने लगी थीं।
यानि अस्पतालों में रक्तदान करने करने वालों की लंबी क़तारें लगने लगी थीं और शहर के अस्पताल आश्चर्यमिश्रित खुशी में डूबे थे। कहाँ तो रक्तदान के नाम पर बड़ी मुशिकल से लोग आते थे और कहां अब इतनी भीड़ नज़र आ रही थी कि उन्हें नियनित्रत करने के लिये कई कर्मचारी अलग से लगाये गये थे। अब तो हालत ये हो गयी थी कि कई अस्पतालों के ब्लड बैंकों में खून रखने की जगह ही नहीं बची थी।

उधर शहर के बीचोंबीच मौजूद पुराने किले के उस तहखाने में वही रहस्यमय अजनबी इस समय भी मौजूद था, पलथी मारकर बैठा और आँखें बन्द किये ध्यानामग्न।
फिर उसने अपनी आँखें खोल दीं और उसके चेहरे पर धीरे धीरे हल्की मुस्कुराहट उभर आयी।

''अब मेरी मंजि़ल मेरे बहुत पास आ चुकी है। बस एक आखिरी क़दम और।" वह बड़बड़ा रहा था। फिर वह उठ खड़ा हुआ और उस विशाल मूर्ति की ओर बढ़ने लगा जिसके भीतर से वह दीपक कुमार के सामने निकला था।
जैसे ही वह मूर्ति के क़रीब पहुंचा, मूर्ति दो भागों में बँट गयी। वह अन्दर प्रवेश कर गया और मूर्ति फिर से अपनी पुरानी हालत में वापस आ गयी।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:58 PM
दीपक कुमार की मंगेतर राशि मौर्या अपने कमरे में बैठी किसी सोच में गुम थी। उसी समय वहाँ उसका भाई पंकज मौर्या दाखिल हुआ।
''हैलो राशि, क्या कर रही हो? चलो बैडमिंटन खेलते हैं।"

''रहने दो भाई। इस वक्त मूड नहीं है।" राशि ने अनमने भाव से जवाब दिया।
''राशि, मुझे लग रहा है कि इधर दो तीन दिन से तुम कुछ अपसेट हो। क्या बात है?"
''कोई बात नहीं भाई।"
''नहीं। कुछ तो मामला ज़रूर है।" पंकज ने उसे कुरेदा।

''भाई । पता नहीं क्या बात है। मुझे लगता है एक्सीडेंट के बाद दीपक कुमार जी बदल गये है।"
''क्यों? ऐसा क्यों सोचती हो तुम?"
''पहले वो रोज़ मुझे फोन करते थे। लेकिन अब तो वो फोन करते ही नहीं। और अगर मैं फोन करती हूं तो हूं हां के अलावा कोई बात ही नहीं करते।"

''ये तो कोई ऐसी बात नहीं। मेरा ख्याल है कि अभी वह अपने को पूरी तरह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहे हैं।"
''फिर भी पता नहीं क्यों मुझे अजीब सा महसूस हो रहा है।"
''तुम चिंता करना छोड़ दो। वैसे भी अब शादी को कुछ ही दिन बाकी बचे हैं।"
उसी समय वहां रखा राशि का मोबाइल बजने लगा। राशि ने फोन उठाया और फिर हैरत से भाई की ओर देखा।
''क्या बात है राशि? किसका फोन है?"

''दीपक कुमार जी का।" उसने फोन उठाकर हैलो कहा।
''राशि, क्या इस समय तुम मुझसे मिल सकती हो?"
''इस समय? क्यों?"
''मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं। साथ में पंकज को भी ले आओ। मैं तुम्हें पता बता रहा हूँ ।" उधर से दीपक कुमार ने पता बताया और फोन काट दिया।

''आखिर उसने तुम्हें और मुझे साथ में क्यों बुलाया है? और वह भी घर से बाहर दूसरी जगह।" पंकज ने उलझन भरे भाव में कहा।
''पंकज मुझे तो घबराहट हो रही है। पता नहीं वह क्या बात करना चाहता है।" राशि के स्वर से परेशानी साफ झलक रही थी।
''दिल पे मत ले यार। कोई परेशानी की बात नहीं होगी। मुझे यकीन है।" पंकज ने उसे दिलासा दिया हालांकि अन्दर ही अन्दर उसे भी चिंता हो रही थी।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:58 PM
कुछ देर बाद राशि व पंकज दीपक कुमार की बतायी जगह पर पहुंच चुके थे और हैरानी से इधर उधर देख रहे थे।
''आखिर दीपक कुमार ने इस पुराने टूटे फूटे किले में क्यों बुलाया है? क्या एक्सीडेंट ने उसके दिमाग पर भी असर डाला है?" पंकज ने मुंह बनाते हुए कहा।
''वही तो मैं भी तुम्हें इतनी देर से बता रही थी कि एक्सीडेंट के बाद वह बिलकुल बदल गये हैं।"
फिर दोनों चुप हो गये क्योंकि दीपक कुमार किले के खंडहरों से निकल कर उनकी ओर आ रहा था। जल्दी ही वह उनके पास पहुंच गया।

''क्या बात है दीपक? तुमने हमें क्यों बुलाया है?" पंकज ने पूछा।
''मैं तुम लोगों को अपने सम्राट से मिलाना चाहता हूं।" दीपक कुमार की आवाज़ पूरी तरह सपाट थी। तमाम जज़्बात से खाली। राशि और पंकज ने हैरत से एक दूसरे की ओर देखा।
''सम्राट? ये इक्कीसवीं सदी में सम्राट कहां से पैदा हो गये? कहीं तुम हमें प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति से तो नहीं मिलाना चाहते?" राशि ने थोड़ा मज़ाकिया लहजे में कहा।
''मैं तुम लोगों को जिनसे मिलाना चाहता हूं वह इस महल में हैं। मेरे साथ आओ।" दीपक कुमार वापस खंडहर की ओर बढ़ गया। मन में कौतूहल लिये राशि और पंकज भी उसके पीछे चल पड़े।

जल्द ही तीनों उस तहखाने में पहुंच चुके थे जहाँ एक आदमकद मूर्ति मौजूद थी।
''क्या तुम लोग इस मूर्ति को पहचानते हो?"
दोनों ने नहीं में सर हिलाया, फिर पंकज बोला, ''इस मूर्ति पर तो कुछ लिखा भी नहीं है। शायद यह किसी प्राचीन राजा की मूर्ति है।"
''यही हैं हमारे सम्राट।"
दीपक कुमार की बात सुनकर दोनों को पूरा यकीन हो गया कि उसका दिमाग चल गया है।
''दीपक! आर यू ओके?" राशि ने आगे बढ़कर दीपक के कंधे पर हाथ रखा जिसे दीपक ने धीरे से हटा दिया और मूर्ति की ओर मुंह करके निहायत आदरसूचक स्वर में बोला, ''सम्राट, मैंने आपकी आज्ञा का पालन कर दिया। इन दोनों को ले आया हूं।"

इससे पहले कि राशि और पंकज उसकी बात का समझ पाते, मूर्ति दो भागों में विभाजित हो चुकी थी और मूर्ति के बीच में वही अजनबी दिखाई दे रहा था। इस समय उसका हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था। वह ऊपर से नीचे तक क़ीमती राजसी लिबास में था और सर पर एक मुकुट भी सुशोभित हो रहा था।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:59 PM
''स्वागतम राशि मौर्य और पंकज मौर्य।" उसकी आवाज़ में पता नहीं क्या बात थी कि पहले से ही डरे हुए राशि व पंकज के जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गयी।
''अ...आप कौन हैं?" राशि ने डरते डरते पूछा।
''थोड़ी प्रतीक्षा करो। मैं सब कुछ बताऊंगा। बताना ही पड़ेगा। वरना तुम लोगों को यहां बुलाने का उददेश्य कैसे पता चलेगा।" उस अजनबी सम्राट की बातें सुनकर दोनों की हैरत बढ़ती जा रही थी। आखिर वह है कौन और उसकी इनमें क्या दिलचस्पी थी?

वह अजनबी मूर्ति पर हाथ फेर रहा था जबकि उसकी आँखें शून्य को निहार रही थीं। वह मानो खुद से बातें कर रहा था, ''सन 322 ई.पू. की बात है। यानि आज से 2400 साल पहले एक लड़ाई हुई थी सम्राट धनानंद और चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच। जिसमें सम्राट धनानंद वीरगति को प्राप्त हुए थे और भारत देश पर मौर्य वंश का शासन स्थापित हो गया था।
नंद वंशज शूद्र थे और ऊंचे कुल वालों की आँखों में चुभते थे। अत: उन सबने इनके खिलाफ चन्द्रगुप्त का साथ दिया और ब्राह्मण कौटिल्य को तो भुलाया ही नहीं जा सकता। फिर जब नंद वंश का शासन समाप्त हो गया तो उसके वंशजों की खुलेआम हत्याएं की जाने लगी। उनके इस धरती पर समूल विनाश की योजनाएं बनने लगीं।" उसने एक गहरी साँस ली अत: राशि को बोलने का मौका मिल गया।

''ये तो इतिहास की बातें हैं। आप हमें क्यों सुना रहे हैं? इन बातों से आपसे या हम से क्या सम्बन्ध?"
''इस इतिहास से तुम लोगों का भी सम्बन्ध है और मेरा भी। क्योंकि तुम लोग मौर्य वंशज हो और मैं नंद वंशज।"
एक बार फिर राशि व पंकज के दिल अंजानी आशंकाओं से घिर गये। 'तो क्या यह व्यक्ति उनसे पुराने इतिहास का बदला लेना चाहता है?" राशि ने घूमकर देखा, दीपक कुमार एक तरफ खडा हुआ था। मौन, भावहीन और तटस्थ।

''पुराने समय में इस तरह के युद्ध आम थे, जिसमें एक जीतता था और दूसरा हार जाता था। अब उन बातों को दोहराने का कोई मतलब नहीं। न तो अब मौर्यों का शासन है न नंद वंश का। अब तो हम लोकतांत्रिक देश में हैं जहाँ सब बराबर हैं।" उस अजनबी की मंशा भांपते हुए पंकज ने बात को बराबर करने की कोशिश की लेकिन शायद उस नंद वंशज ने उसकी बात ही नहीं सुनी । वह अपनी ही बात को आगे बढ़ा रहा था, ''चन्द्रगुप्त मौर्य कौटिल्य की सहायता से सम्राट धनानंद को मारकर शासक बन गया। फिर देश में नंद वंश का दमन आरम्भ हो गया। उस दमन की आग को और भड़काया सम्राट अशोक ने।
''मैं नहीं मान सकती। सम्राट अशोक द ग्रेट से महान कोई शासक ही नहीं हुआ देश में। उसने देश में शांति का साम्राज्य स्थापित कर दिया था।" राशि ने आवेश में आकर कहा।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:59 PM
नंद वंशज के होंठों पर एक व्यंगात्मक मुस्कान उभरी, ''शांति की स्थापना की थी उसने। लेकिन अपने दुश्मनों का पूरी तरह सफाया करने के बाद। उसने बचे खुचे नंद वंशजों की चुन चुनकर हत्या करायी और कलिंग को तो पूरी तरह मिटा दिया जो नंद वंशजों का आखिरी ठिकाना था।"

''यह गलत है। कलिंग युद्ध के रक्तपात को देखकर ही सम्राट अशोक ने अहिंसा का प्रण लिया था और युद्ध को रोक दिया था।" राशि ने उसकी बात काटी।
''युद्ध को रोका तो था लेकिन नंद वंश को पूरी तरह साफ करने के बाद।"
''मैं कहता हूं उन घटनाओं को दो हज़ार साल से ऊपर हो चुके हैं। किसी को नहीं पता वास्तव में उस समय क्या हुआ था और क्या परिस्थितियाँ थीं। न उस समय हम मौजूद थे और न ही तुम।" पंकज ने हाथ उठाकर तकरार रोकनी चाही।

''हाँ तुम लोग उस समय मौजूद नहीं थे। लेकिन मैं था उस समय।" उस अजनबी नंद वंशज के अंतिम वाक्य ने मानो वहाँ धमाका सा किया।
''तुम...तुम उस समय थे?" राशि ने इस प्रकार उसकी ओर देखा मानो उसे उसके पागल हो जाने का पूरा यकीन हो गया है।
''नंद वंश के राजकुमार शौर्यानन्द के साथ कलिंग राज्य की राजकुमारी दमयंती का विवाह हुआ था। और मैं उन दोनों की एकमात्र संतान महावीरानन्द हूं। मौर्य शासकों के दमन चक्र से किसी तरह बचा हुआ शाही नन्द वंश का राजकुमार।" ये मूर्ति जिसके बारे में इतिहासकार तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं, वास्तव में मेरे दादा सम्राट धनानंद की है।"

''तुम सिर्फ एक पागल आदमी हो। या फिर बहुत बड़े ठग। अगर महावीरानन्द नाम का कोई राजकुमार था भी तो वह दो हज़ार साल पहले ही मर खप गया होगा। क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हारी उम्र दो हज़ार साल है?" राशि ने इस बार थोड़ा गुस्से से कहा।
''दो हज़ार नहीं। दो हज़ार तीन सौ साल है मेरी आयु।"
''बकवास। तुम सिर्फ एक फ्राड हो।" राशि ने तैश में आकर कहा।
''मेरी बातों का सुबूत अगर देखना है तो इस रास्ते से नीचे उतर जाओ।" कथित राजकुमार महावीरानन्द ने मूर्ति के बीच बने रास्ते की ओर संकेत किया।

एक बार फिर दोनों असमंजस में पड़ गये। यह देखकर उसने पंकज का हाथ पकड़ लिया और मूर्ति के बीच बने रास्ते की ओर बढ़ा। पंकज को ऐसा मालूम हो रहा था मानो किसी लौह मानव के हाथ उसके बाज़ू में गड़ गये हों। वह न चाहते हुए भी आगे बढ़ गया। मजबूरन राशि को भी उसके पीछे अपने कदम बढ़ाने पड़े। उन्होंने देखा मूर्ति के बीच नीचे जाने के लिये सीढि़यां मौजूद थीं। वे सभी उससे नीचे उतरते चले गये। सबसे पीछे दीपक कुमार था। नीचे घुसते ही उन्हें लगा मानो वे किसी बहुत प्राचीन प्रयोगशाला में पहुंच गये हैं। एक तरफ बहुत पुरानी दैत्याकार मशीनें दिख रही थीं तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक प्रयोग करने के छोटे छोटे अनगिनत यन्त्र।
''ये प्रयोगशाला उतनी ही पुरानी है जितना कि मैं।"
''यानि दो हज़ार तीन सौ साल पुरानी।" राशि ने इतने धीमे स्वर में कहा कि उसकी बात बगल में मौजूद पंकज ही सुन पाया।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:59 PM
''अशोक महान को पता नहीं था कि शौर्यानन्द की एकमात्र सन्तान अर्थात मैं बहुत बड़ा वैज्ञानिक हूं। बल्कि उसे तो पता ही नहीं था कि शौर्यानन्द की कोई सन्तान भी है। वास्तव में मैं बचपन ही में घर से दूर चला गया था, क्योंकि मुझे नन्द वंश की पराजय का बदला लेना था।"
''तो फिर बदला लेने के लिये तुमने बड़ी सेना इकटठा की होगी।" पंकज ने कहा।
''मैंने पहले कोशिश की लेकिन कोई मेरा साथ देने को तैयार नहीं हुआ। फिर मैंने अपनी विधि बदल दी। अब मुझे ऐसे घातक हथियार बनाने थे जो पल भर में पूरे मौर्य वंश को तबाह व बरबाद कर दें। इसके लिये मैंने ये प्रयोगशाला बनायी और अपने जैसे विचार रखने वाले कुछ वैज्ञानिकों के साथ प्रयोगों में जुट गया। इनही प्रयोगों के बीच अचानक ही मुझे अमरत्व का सूत्र मिल गया।"

''क्या मतलब? क्या तुम कहना चाहते हो कि तुम अमर हो?" पंकज ने हैरत से कहा।
''हाँ। मैं अमर हूं।"
''हम विश्वास नहीं कर सकते। दुनिया में जो भी आया है उसे एक न एक दिन मरना ही है।"
''तुमको मेरी बात पर विश्वास करना ही पड़ेगा। इसलिए क्योंकि अमरत्व का सूत्र प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में निहित है।"
''वह किस तरह?"
''वर्तमान शताब्दी में विज्ञान की थोड़ी भी जानकारी रखने वाला जानता है कि मनुष्य के शरीर की प्रत्येक कोशिका में एक केन्द्रक उपस्थित होता है। और उसके अन्दर उपस्थित डीएनए कुण्डली में उस शरीर का समस्त लेखा जोखा संगृहीत होता है।"
''हाँ। ये तो है।" राशि ने सकारात्मक रूप में सर हिलाया।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 06:59 PM
''लेकिन आज के वैज्ञानिकों को ये नहीं मालूम कि इसी डीएनए कुण्डली के एक भाग में उस मनुष्य की समस्त गतिविधियों का लेखा जोखा भी संगृहीत होता है। अर्थात उसके मस्तिष्क की स्मृति की सूक्ष्म प्रतिलिपि उसके शरीर की प्रत्येक कोशिका में उपस्थित रहती है। और अगर उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो उसके शरीर की मात्र एक कोशिका लेकर उस मनुष्य को फिर से जीवित किया जा सकता है, जिसके अन्दर उसी शरीर के गुण, भावनाएं और स्मृति होगी, जिस शरीर से वह कोशिका ली जायेगी।

''मैं समझ गया।" पंकज ने एक गहरी साँस ली, ''दो हज़ार साल पहले महावीरानन्द ने कोशिका में स्मृति की खोज की। फिर जब वह बूढ़ा हुआ तो उसने अपनी कोशिका किसी खास तरीके से नये शरीर में प्रत्यारोपित कर दी, जिससे वह शरीर नया महावीरानन्द बन गया। इस तरह यह क्रम चलता रहा और महावीरानन्द आज भी जीवित है। एक नये शरीर में।"
''तुम काफी बुद्धिमान हो। महावीरानन्द ने पंकज की तरफ उंगली उठायी, ''महावीरानन्द इसी रूप में जीवित है और इसी के साथ क़ायम है नन्द वंश। वह वंश जिसके सर्वनाश का कौटिल्य ने पूरा प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। आज उसकी आत्मा तड़प रही होगी क्योंकि नंद वंश महावीरानन्द के रूप में जीवित है। और अब यह वंश बहुत जल्द पूरी दुनिया में फैल जायेगा।"

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:00 PM
''चलो, ये तो समझ लिया कि नन्द वंश तुम्हारे रूप में मौजूद है। लेकिन यह वंश पूरी दुनिया में फैल जायेगा यह कैसे संभव होगा?" राशि ने पूछा।
''इसकी शुरूआत हो चुकी है। और इस तरह का पहला नंद वंशज बना है तुम्हारा मंगेतर दीपक कुमार।"
''क्या मतलब? वंशज तो पैदा होते हैं। उन्हें बनाया कहां जाता है? और दीपक कुमार जी तो ब्राह्मण हैं। जबकि नंद वंशज शूद्र थे।"

''कोशिकाओं पर आधारित मेरे शोध ने इस मान्यता को बदल दिया है कि वंशज केवल जन्मजात हो सकते हैं। वास्तव में मैंने नंद वंशजों की कोशिका मिश्रित ऐसे रक्त का आविष्कार कर लिया है जिसे किसी के शरीर में थोड़ी सी मात्रा में पहुंचाने पर उस व्यकित की पूरी डीएनए कुंडली बदल कर नंद वंश के समान हो जायेगी। इस तरह ब्राह्मण वर्ग का व्यकित भी हमारे शूद्र वंश का हो जायेगा। अब तक हज़ारों व्यक्तियों के शरीरों में मेरा यह रक्त पहुंच चुका है और अब दुनिया के तमाम डीएनए परीक्षण उन्हें शूद्र वर्ग का ही सिद्ध करेंगे। और मेरे रक्त की एक विशेषता और है।"
''वह क्या?"
''जिस व्यक्ति के शरीर में वह खून पहुंचता है उस व्यक्ति का मस्तिष्क मेरे मस्तिष्क का गुलाम बन जाता है। फिर वह व्यक्ति वही करता है जो मैं चाहता हूं।"

''विश्वास नहीं होता।" पंकज व राशि दोनों के चेहरों पर अविश्वास के भाव थे।
''विश्वास तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि स्वयं तुम्हारा मंगेतर तुम्हें मेरी ही आज्ञा पर यहां लेकर आया है।" उसने दीपक कुमार की तरफ उंगली उठायी। दीपक कुमार का चेहरा पहले की तरह सपाट रहा।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:00 PM
और अब महावीरानन्द भी खामोश होकर अपनी किसी मशीन पर काम करने में मसरूफ हो गया था। इन लोगों की तरफ से पूरी तरह बेपरवाह। राशि और पंकज ने एक दूसरे की तरफ देखा। फिर राशि ने ही महावीरानन्द को मुखातिब किया,
''शायद तुमने हम लोगों को अपना इतिहास सुनाने के लिये बुलाया था? अब हमें जाने दो।"
''इतिहास बताना आवश्यक था। लेकिन यहां बुलाने का उददेश्य दूसरा है।" कहते हुए उसने शायद कोई मशीन चालू की थी क्योंकि अब वहाँ एक हलकी सी आवाज़ गूंजने लगी थी।
''इतिहास में मौर्य वंश ने नन्द वंश को तबाह व बरबाद किया था।...."

''यह तो तुम अभी बता चुके हो।" राशि ने टोका।
''लेकिन मैंने यह नहीं बताया कि उसी मौर्य वंश ने नन्द वंश के अस्तित्व को बचाया भी है।"
राशि व पंकज को उसकी बात सुनकर एक बार फिर झटका सा लगा।
''वह कैसे? पंकज ने अनायास ही पूछा।
''जब पहले महावीरानन्द यानि मैंने दो हज़ार तीन सौ साल पहले कोशिका प्रत्यारोपण के द्वारा अपने को अमर बनाना चाहा तो मुझे ऐसे शरीर की आवश्यकता थी जिसकी डीएनए कुंडली नन्द वंश के लगभग समान हो। और जब मैंने ऐसे शरीर की खोज की तो वह मौर्य वंश के व्यक्ति में ही मिली। तब से आज तक शरीर बदलने के लिये मुझे हमेशा मौर्य वंश के शरीर की खोज होती है। मेरा आशय तुम लोग समझ गये होगे।" उसने उनकी ओर दृष्टि की।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:00 PM
दोनों वाकई उसका आशय समझ कर मन ही मन काँप गये थे।
''तुम्हारा मतलब कि तुम ... तुम...!"
''मेरी मशीनों ने मुझे बताया है कि मेरे वर्तमान शरीर की आयु बहुत कम रह गयी है। अत: अब महावीरानन्द पंकज मौर्य के शरीर में स्थापित हो जायेगा।"
पंकज ने बेचैनी से चारों तरफ देखा, ''लेकिन मैं ही क्यों? लाखों मौर्य जाति के लोग हर तरफ फैले हुए हैं।"
''हाँ। लेकिन उनमें असली मौर्य वंशज गिनती के ही हैं। मैंने दस हज़ार मौर्य जाति के लोगों के परीक्षण के बाद तुम्हें ढूंढा है।"

''लेकिन हम इसके लिये तैयार नहीं। हम वापस जा रहे हैं।" राशि ने पंकज का हाथ पकड़ा और सीढि़यों की तरफ कदम बढ़ाया। किन्तु उसी समय फर्श से एक पिंजड़े नुमा संरचना निकली और दोनों उसके अन्दर कैद होकर रह गये।

''यहाँ जो महावीरानन्द चाहेगा वही होगा।" कहते हुए वह पंकज के पास आया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, ''तुम्हें खुश होना चाहिए कि महावीरानन्द के अमर होने में तुम्हारा शरीर भागीदार बनने वाला है। अभी मेरी मशीन तुम्हारे शरीर में मेरी खास कोशिकाओं को प्रत्यारोपित कर देगी और फिर तुम्हारा व्यक्तित्व बदलने की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी। चौबीस घण्टे के बाद तुम भूल जाओगे कि तुम पंकज मौर्य थे, बल्कि तुम महावीरानन्द हो जाओगे।"
''और मैं? शायद अब तुम मुझे मार डालोगे।" राशि की आवाज़ पर उसने उसकी तरफ देखा।
''नहीं। महावीरानन्द ने आजतक किसी की हत्या नहीं की। तुम्हें तो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।"

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:01 PM
''कैसी भूमिका?"
''तुम्हें नये महावीरानन्द की पत्नी की भूमिका निभानी है।"

''क्या? राशि चीख पड़ी, ''अरे ये मेरा भाई है। सगा भाई ।"
''वो तो अभी है। लेकिन महावीरानन्द बनने के बाद इसके जीन पूरी तरह बदल जायेंगे। फिर ये तुम्हारा भाई कहां रह जायेगा। वास्तव में तुम भी मेरे प्रयोग में भागीदार बनोगी। क्योंकि महावीरानन्द के बच्चे जीवित पैदा ही नहीं होते। पता नहीं क्या कारण है। शायद मेरा अगला प्रयोग इस कारण का पता लगा ले।"
पिंजरे में क़ैद राशि व पंकज गुस्से से पागल हो रहे थे। लेकिन उस सनकी नन्द वंशज से बचने का उन्हें कोई उपाय भी नहीं समझ में आ रहा था। दीपक कुमार तो किसी बेजान वस्तु की तरह एक कोने में खड़ा हुआ था। फिर राशि और पंकज ने अपने गुस्से को ठंडा किया। उन्हें लग रहा था कि उस सनकी वैज्ञानिक से ठंडे दिमाग के साथ ही निपटा जा सकता है।

''अच्छा ये बताओ कि तुम्हें पंकज के शरीर की क्या ज़रूरत है। अपना खून वैसे भी तुम पूरी दुनिया में फैला रहे हो और सब को अपना वंशज बना रहे हो। उनकी डीएनए कुंडली तो कहीं ज्यादा तुम्हारे समान होगी। पंकज की कुंडली से भी ज्यादा ।"
''वास्तव में रक्त द्वारा बनने वाले वंशजों में एक खराबी है। उनकी डीएनए कुंडली में केवल वंशावली वाला भाग ही परिवर्तित होता है। स्मृति वाला भाग परिवर्तित नहीं होता। मुझे अपने लिये ऐसे शरीर की आवश्यक्ता है जिसमें डीएनए कुंडली का स्मृति वाला भाग भी लगभग समान हो।
और अब मैं अपनी प्रक्रिया आरंभ करने जा रहा हूं।" वह एक मशीन की तरफ बढ़ा।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:01 PM
''एक मिनट रुको।" राशि ने उसे रोका, ''अब हम तुम्हारी कैद से छूट तो सकते नहीं। फिर थोड़ी देर और हमसे बात करने में क्या बुराई है!"
''ठीक है।" वह रुक गया, ''मुझे कोई जल्दी नहीं। तुम लोग जितनी बातें करना चाहो कर लो।"
''तुमने कहा कि तुम्हें अपनी डीएनए कुंडली से मिलती जुलती कुंडली केवल मौर्य वंशजों में ही मिली। आखिर इसका कारण क्या है?"
''मैं नहीं जानता। ये एक संयोग ही हो सकता है।"
''मैं भी विज्ञान की छात्रा हूं। ये संयोग हो ही नहीं सकता।"
''फिर ?"
''ये तभी संभव है जब हमारे और तुम्हारे पूर्वज कुछ पीढि़यों पहले एक ही रहे हों।"

''हो ही नहीं सकता। नंद वंश और मौर्य वंश दो पूरी तरह अलग वंश थे।" उसने इंकार किया।
''तो फिर डीएनए कुंडली लगभग एक जैसी क्यों है? यहाँ तक कि स्मृति वाला भाग भी समान दिखाई देता है।"
महावीरानन्द राशि की बात पर सोच में पड़ गया। राशि ने कहना जारी रखा, ''ये माना हुआ तथ्य है कि दुनिया के तमाम इंसानों का जन्म एक ही पूर्वज से हुआ है। चाहे हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इवोल्यूशन थ्योरी की बात करें या फिर धार्मिक दृष्टिकोण से आदम-इवा या मनु-अनंती की कहानी पढ़ें। सभी में तमाम दुनिया के लोगों की उत्पत्ति का सिलसिला आखिर में एक पूर्वज पर जाकर थम जाता है।"

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:01 PM
''तो फिर?"
''इसीलिए मनुष्यों की डीएनए कुंडली एक दूसरे से काफी समानता रखती है। और उनके पूर्वज जितने ज्यादा एक दूसरे के क़रीब होते हैं उतनी ही ज्यादा ये समानता बढ़ जाती है।"
''हाँ ये तो तथ्य है।" उसने राशि की बात पर सहमति में सर हिलाया।
''इसीलिए कहा जा सकता है कि नन्द वंश और मौर्य वंश के पूर्वज पाँच छह पीढ़ी पहले नि:संदेह एक ही थे। वरना दोनों की कुंडली में इतनी समानता होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।"
''ठीक है। मैं यह बात मान लेता हूं।"

''तो फिर अगर तुम पंकज को महावीरानन्द बना भी दोगे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। न तुम्हारा वंश बढ़ेगा और न हमारा कम होगा। क्योंकि हम दोनों एक ही वंश के हैं।"
''ये बकवास है। मैं नहीं मान सकता।" उसने इसबार थोड़ा विचलित होकर कहा।

''तुम्हारे न मानने से सच्चाई नहीं बदल सकती। वह सच्चाई जो डीएनए कुंडली कह रही है। वास्तव में तुम अपने वंश के एक भाई के अस्तित्व को खत्म करके दूसरे भाई को बढ़ा रहे हो। और इसके लिये तुम्हारे पूर्वजों की आत्माएं तुम्हें कभी माफ नहीं करेंगी। वह पूर्वज जो हमारे व तुम्हारे एक ही थे।" राशि की बात सुनकर महावीरानन्द बेचैन हो गया और उस हाल में तेज़ी से इधर उधर टहलने लगा।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:02 PM
'ये दीपक कुमार जैसे इंसान नुमा रोबोट, जिनका दिमाग तुम्हारे कब्ज़े में है। अगर कभी तुम्हें नया शरीर नहीं मिला तो इनका क्या होगा?" राशि ने फिर एक सवाल फेंका।
''ये लोग पागल हो जायेंगे। इनके शरीर खाना पीना सोना जागना सारे काम करेंगे। लेकिन पागलों की तरह इन्हें अपना कुछ होश नहीं होगा। हां। अगर मैंने अपने जीवनकाल में ही यन्त्रों द्वारा इनका सम्पर्क अपने मस्तिष्क से काट दिया तो ये फिर से अपने व्यक्तित्व को पहचान लेंगे।

''फिर तो मतलब ये हुआ कि तुम अपने रक्त द्वारा अपना वंश नहीं बढ़ा रहे हो बल्कि ऐसे मशीनी यन्त्र बना रहे हो जिनका कण्ट्रोल तुम्हारे मस्तिष्क द्वारा होता है। वास्तव में तुम नन्द वंश को बढ़ाने का नहीं बल्कि नष्ट करने का काम कर रहे हो।"
''नहीं। ये गलत है।" महावीरानन्द ने गुस्से से कहा।

''ये हक़ीक़त है।" राशि बिना उसके गुस्से की परवाह किये बोलती रही, ''तुम दरअसल तमाम मानव वंशजों की समाप्ति का कारण बनने जा रहे हो। एक दिन आयेगा जब दुनिया के तमाम मानवों में तुम्हारा ही दूषित रक्त पहुंच जायेगा। उस समय तुम्हें स्वयं को भी जीवित रखने के लिये नया शरीर मिलना असंभव हो जायेगा। तब महावीरानन्द का जीवन समाप्त हो जायेगा। और साथ में दुनिया के तमाम मनुष्य भी पागल होकर खत्म हो जायेंगे।"

महावीरानन्द के चेहरे से लग रहा था कि राशि की बातों ने उसके मन में घोर उथल पुथल मचा दी है और वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया है। राशि ने आगे कहना जारी रखा, ''जबकि अगर तुम अपनी प्रक्रिया यहीं रोक दो तो दुनिया के सभी वंश बचे रहेंगे, यहाँ तक कि नन्द वंश भी।
''नन्द वंश कैसे बचा रहेगा?"
''इसलिए कि मौर्य वंश ही नंद वंश भी है। डीएनए कुंडली से स्पष्ट है कि दोनों के पूर्वज एक ही थे। और वैसे भी दुनिया के तमाम वंशों की उत्पत्ति एक ही पूर्वज से हुई है।"

राशि की बातें सुनकर महावीरानन्द खामोश हो गया था। वह मन ही मन सोचने लगा था जबकि राशि व पंकज उसके चेहरे को ताक रहे थे। पता नहीं उसके दिल में क्या था। उधर वह खामोशी के साथ एक मशीन की तरफ जा रहा था। फिर उसने उस मशीन का एक बटन दबा दिया। दूसरे ही पल पंकज व राशि को घेरे में लेने वाला पिंजरा हट चुका था।
''जाओ भाग जाओ। तुमने मेरी सोच बदल दी है।" उसने मशीन ही को घूरते हुए कहा।
''म..मगर...!" राशि ने कुछ कहना चाहा।

''कुछ मत बोलो। फौरन यहाँ से निकल जाओ। और साथ में अपने मंगेतर को भी ले जाओ।" उसने दीपक कुमार को भी उनके साथ जाने का इशारा किया।
अब राशि व पंकज ने कुछ बोलना मुनासिब नहीं समझा। और तेज़ी से सीढि़यों की ओर बढ़े। पता नहीं कब उसका इरादा फिर बदल जाता। दीपक कुमार भी उनके पीछे पीछे था।

jai_bhardwaj
03-02-2013, 07:02 PM
तीनों किले से काफी दूर निकल आये थे।
''राशि! आज तुमने बहुत बड़ा काम किया। वरना मुझे तो लग रहा था कि अब जान बचनी नामुमकिन है।" पंकज ने एक गहरी साँस ली।
''लेकिन खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं। महावीरानन्द का दिमाग कभी भी पलट सकता है।"
''तो क्या हम पुलिस को उसके बारे में बता दें?"
''पुलिस तो इस कहानी पर यकीन ही नहीं करेगी।"

उसी समय एक बड़े धमाके ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्होंने घूमकर देखा तो वह पुराना किला धुल के बादल में छुपा हुआ था।
''ओह। लगता है उसने अपने ठिकाने को नष्ट कर दिया है।" पंकज ने अनुमान लगाया।
''और शायद खुद को भी खत्म कर लिया है। यकीन नहीं आता मेरी बातों ने उसपर इतना असर कर दिया।" राशि ने गहरी साँस ली।

''लेकिन दीपक जी कहाँ हैं?" पंकज ने इधर उधर देखा।
''वह रहे।" वास्तव में दीपक कुमार इस धमाके के कारण ज़मीन पर गिर गया था और अब धीरे धीरे उठ रहा था। दोनों उसके पास पहुंचे।
''दीपक जी आप ठीक तो हैं?"
''हाँ, मैं ठीक हूं। लेकिन...., उसने इधर उधर हैरत से देखा, ''लेकिन मैं यहाँ कहां? मैं तो घर पर सो रहा था -- और राशि, पंकज तुम मेरे साथ यहाँ कहाँ?"

''क्या अभी जो घटनाएं हुई हैं उनके बारे में तुम्हें कुछ याद है?" राशि ने पूछा।
दीपक कुमार ने अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला, ''कुछ कुछ दिमाग में उभर रहा है। कोई पुराना किला, एक मूर्ति , तहखाना....। लगता है मैं कोई सपना देख रहा था।"
''हाँ एक बुरा सपना । लेकिन अब उस सपने का अंत हो चुका है। चलो घर चलते हैं।" राशि ने दीपक कुमार का हाथ थाम लिया।

--समाप्त--