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View Full Version : पसंदीदा शेर/ मुक्तक/ कविता/ गजल/ या पद


bindujain
03-02-2013, 08:18 PM
बादल हवा की ज़द पे बरस कर बिखर गए,
अपनी जगह चमकता हुआ आफ़ताब है।

नाहक ख़याल करते हो दुनिया की बात का,
तुम को ख़राब जो कहे वो खुद ख़राब है।
-बशीर बद्र

bindujain
03-02-2013, 08:19 PM
मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है,
कि तू नहीं, तेरा ग़म ,तेरी जुस्तजू भी नहीं।
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं।

bindujain
03-02-2013, 08:21 PM
कहूँ कुछ उससे मगर ख़याल होता है

शिकायतों का नतीजा अक्सर मलाल होता है

-परवीन शाकिर

bindujain
03-02-2013, 08:22 PM
भाव कुंद कर दे वो पैमाना न दरमियान रख।
मेरे ख्यालों की बस ऊंची उड़ान रख।

दिल से दिल का कोई फासला न हो,
कुछ इस सलीके से गीता और कुरान रख।

बहुत हुई महलों की फिक्र, छोड़ दे,
बेघरों के हिस्से में भी कोई मकान रख।
-मुनव्वर राना

bindujain
03-02-2013, 08:36 PM
जिनके आँगन में अमीरी का शज़र लगता है,
उसका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है
-अंजुम रहबर

bindujain
03-02-2013, 08:37 PM
सच बात मान लीजिये चेहरे पे धूल है
इल्ज़ाम आइनों पे लगाना फ़िज़ूल है
-अंजुम रहबर

bindujain
03-02-2013, 08:38 PM
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ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से,
वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से।
-अकबर इलाहाबादी

bindujain
03-02-2013, 08:39 PM
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हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

-अकबर इलाहाबादी.

bindujain
03-02-2013, 08:42 PM
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हर एक शय और महंगी और महंगी होती जा रही है,
बस एक ख़ूने-बशर है जिसकी अर्ज़ानी नहीं जाती।

-अली सरदार जाफ़री


[(शय = वस्तु, चीज), (ख़ूने-बशर = आदमी/ इंसान का खून), (अर्ज़ानी = सस्तापन)]

bindujain
03-02-2013, 08:45 PM
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आपसे झुक के जो मिलता होगा,
उसका क़द आपसे ऊँचा होगा

-अहमद नसीम क़ासमी

bindujain
03-02-2013, 08:47 PM
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दाग़ दामन के हों, दिल के हों, या चेहरे के 'फ़राज़',
कुछ निशां उम्र की रफ़्तार से लग जाते हैं

-अहमद 'फ़राज़'

bindujain
03-02-2013, 08:48 PM
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जैसा दर्द हो वैसा मंज़र होता है,
मौसम तो इंसान के अंदर होता है

-अज़ीज़ ऐजाज़

bindujain
03-02-2013, 08:50 PM
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वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गयी फुर्सत
हमे गुनाह भी करने को ज़िन्दगी कम है
-आनंद नारायण मुल्ला

bindujain
03-02-2013, 08:51 PM
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नतीजा एक ही निकला, कि थी क़िस्मत में नाकामी,
कभी कुछ कह के पछताये, कभी चुप रह के पछताये।
-आरज़ू लखनवी

bindujain
03-02-2013, 08:52 PM
सर्द नसों में चलते-चलते, गर्म लहू जब बर्फ़ हुआ,
चार पड़ौसी जिस्म उठाकर झोंक आए अंगारों में।
चाँद अगर पूरा चमके, तो उसके दाग खटकते हैं,
एक न एक बुराई तय है, सारे इज़्ज़तदारों में।
-आलोक श्रीवास्तव

bindujain
03-02-2013, 08:52 PM
ज़रा पाने की चाहत में, बहुत कुछ छूट जाता है,
नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है ।

ग़नीमत है नगर वालों, लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर, दरोगा लूट जाता है.

तराज़ू के ये दो पलड़े, कभी यकसां नहीं रहते,
जो हिम्मत साथ देती है, मुक़द्दर रूठ जाता है.

अजब शै हैं ये रिश्ते भी, बहुत मज़बूत लगते हैं,
ज़रा-सी भूल से लेकिन, भरोसा टूट जाता है.

गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे,
कभी मैं रूठ जाता हूं, कभी वो रूठ जाता है.

बमुश्किल हम मुहब्बत के दफ़ीने खोज पाते हैं,
मगर हर बार ये दौलत, सिकंदर लूट जाता है.

(दफ़ीना = गढ़ा हुआ धन या खजाना)

-आलोक श्रीवास्तव

bindujain
03-02-2013, 08:54 PM
मंज़िलें क्या हैं, रास्ता क्या है,
हौसला हो तो, फ़ासला क्या है।

वो सज़ा देके दूर जा बैठा,
किससे पूछूँ मेरी ख़ता क्या है।

जब भी चाहेगा छीन लेगा वो,
सब उसी का है, आपका क्या है।

तुम हमारे क़रीब बैठे हो,
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है।

चाँदनी आज किस लिए नम है,
चाँद की आँख में चुभा क्या है।

ख़्वाब सारे उदास बैठे हैं,
नींद रूठी है, माजरा क्या है।

बेसदा काग़ज़ों में आग लगा,
अपने रिश्ते को आज़्मा, क्या है।

गुज़रे लम्हों की धूल उड़ती है,
इस हवेली में अब रखा क्या है।
-आलोक श्रीवास्तव

bindujain
03-02-2013, 08:58 PM
मैं चलते-चलते इतना थक गया हूँ, चल नहीं सकता,
मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नहीं सकता

मैं ये अहसास लेकर, फ़िक्र करना छोड़ देता हूँ,
जो होना है, वो होगा ही, कभी वो टल नहीं सकता
-कुँअर बेचैन

bindujain
03-02-2013, 08:59 PM
तराशा जाये तो पत्थर भी फिर पत्थर नहीं रहता,
हज़ारों बुत हैं ऐसे जो कि पत्थर से निकलते हैं

'कुँअर' इस ज़िन्दगी में हमने अक्सर यह भी देखा है,
कई रास्ते हमारी अपनी ठोकर से निकलते हैं
-कुँअर बेचैन