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View Full Version : अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर


Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:12 AM
विश्व कैंसर दिवस विशेष
अब लाइलाज नहीं रहा कैंसर

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24599&stc=1&d=1359922338

देश में बीमारियों से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है कैंसर। तमाम प्रयासों के बावजूद कैंसर के मरीजों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है सिर्फ इसीलिए, ताकि लोगों को कैंसर के नुकसान के बारे में बताया जा सके और उन्हें अधिक से अधिक जागरूक किया जा सके।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:13 AM
आधुनिक विश्व में कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिससे सबसे ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है। विश्व में इस बीमारी की चपेट में सबसे अधिक मरीज हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2005 में 7.6 लाख लोग कैंसर से मौत के आगोश में समा गए थे। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मरने से और विश्व स्तर पर इस बीमारी के फैलने से सब चिंतित हैं। बढ़ते हुए कैंसर के खतरों को देखते हुए विश्व स्वास्थ संगठन ने कैंसर के प्रति निरंतर जागरुकता फैलाने के लिए 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाने का निर्णय लिया ताकि इस भयानक बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई जा सके। जिससे बढ़ते कैं सर के स्तर को कम किया जा सकता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:14 AM
क्या है कैंसर

शरीर के रोजाना क्षतिग्रस्त होने वाले सेल्स जब अनियंत्रित गति से बढ़ने लगते हैं तो सेल्स का यह समूह टयूमर का रूप ले लेता है, जिसे कैंसर कहा जाता है। दरअसल, स्वस्थ्य सेल्स की कमी के कारण ही खंडित होने वाली सेल्स का पुनर्निर्माण नहीं हो पाता और वह संगठित रूप ले लेती है। यह समूह लिम्फ और गांठ भी हो सकता है। कैंसर उस स्थिति में गम्भीर हो जाता है जबकि प्रभावित जगह से कैंसर युक्त सेल्स शरीर के अन्य भाग, फेफड़े, आमाशय, प्रोस्टेट या फिर मस्तिष्क में पहुंचती है। एक बार संगठित होने के बाद यह सेल्स अपने तरह की हजारों सेल्स का निर्माण कर लेती हैं इस स्थिति को एंजियोजेनिस कहते हैं। ज्यामितीय क्रम में बढ़ने वाली कैंसर की संक्रमित सेल्स को खत्म करने के लिए उनके ओरिजन यानी उत्पन्न होने वाली जगह की पहचान जरूरी कही गई है, जो निरंतर संक्रमित सेल्स बनाती रहती है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:15 AM
जीन भी हैं कारगर

किसी भी व्यक्ति के जीन को सेल्स के खंडित होने के लिए कारगर माना गया है, जो शरीर की जरूरी प्रक्रिया है। चार प्रमुख तरह के जीन को सेल्स के विभाजन के लिए जिम्मेदार माना गया है। कारसिनो और आनको जीन को सेल्स के विभाजन के लिए प्रमुख बताया गया है। तम्बाकू का सेवन, रेडिएशन का अधिक संपर्क, एचआइवी, हेपेटाइटिस व अन्य बीमारियों का संक्रमण स्वास्थ्य सेल्स के रक्षा कवच को कमजोर करता है और आसानी से कारसिनो और आनको का प्रभाव बढ़ने लगते हैं, इस सबके बीच ब्लड सेल्स को प्रभावित करने वाले मैलिग्नेंसी कैंसर को भी गम्भीर माना गया है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:15 AM
प्रारंभिक पहचान व जानकारी है जरूरी

शरीर के किसी भी हिस्से या लिम्फ में दर्द युक्त या दर्द रहित गांठ का अनुभव होने पर एमआरआई, सीटी स्कैन, पैट (पोजिशिनिंग इमेजिन टोमोग्राफी) की मदद से बीमारी की पहचान की जाती है, हालांकि इससे पहले गांठ की एफएनएसी (फाइन नीडल एस्पिरेशन सायटोलॉजी) के जरिए साधारण सेल्स से कैंसरयुक्त सेल्स को पहचाना जाता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:16 AM
आधुनिक इलाज से बंधी उम्मीद

कैंसर के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए इलाज की आधुनिक विधि की भूमिका अहम हो गई है। रेडियोथैरेपी व कीमोथैरेपी के अलावा मॉलिक्यूलर, स्टेम सेल्स, नैनो टैक्नोलॉजी व टारगेटेट दवाओं के जरिए कैंसर सेल्स को बढ़ने से पहले खत्म किया जा सकता है जिसमें स्टेम सेल्स थैरेपी को सबसे अधिक रामबाण माना गया है। सेल्यूलर विधि से मरीज के शरीर के ही रक्त को लेकर उसकी डेंडटराइन सेल्स की मदद से मरीज में स्वास्थ्य सेल्स पहुंचाए जाते हैं।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:17 AM
सावधानी बरतें

कैंसर से बचने के लिए तम्बाकू उत्पादों का सेवन बिलकुल न करें, कैंसर का खतरा बढ़ाने वाले संक्रमणों से बचकर रहें, चोट आदि होने पर उसका सही उपचार करें और अपनी दिनचर्या को स्वस्थ बनाए। कैंसर के ज्यादातर मामलों में फेफड़े और गालों के कैंसर देखने में आते हैं जो तम्बाकू उत्पादों का अधिक सेवन करने का नतीजा होता है। ऐसे मामलों में उपचार बेहद जटिल हो जाता है और मरीज के बचने के चांस भी कम हो जाते हैं। इसके साथ ही आजकल महिलाओं में स्तन कैंसर काफी ज्यादा देखने में आ रहा है जो बेहद खतरनाक होने के साथ काफी पीड़ादायक होता है। यदि सही समय पर अगर इसके लक्षणों को पहचान कर उपचार किया जाए तो इसका इलाज बेहद सरल बन जाता है। कैंसर से सबसे ज्यादा खतरा होता है युवाओं को जो आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए धूम्रपान का सहारा लेते हैं। भारत उन देशों में काफी आगे है जहां तम्बाकू और अन्य नशीले पदार्थों की वजह से कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:20 AM
कैंसर के लक्षण


* बार-बार मुंह में छाले।
* किसी अंग में सफेद पानी आना या खून आना।
* खांसी में खुन आना।
* ठीक न होने वाली गांठ या दर्द, छाला।
* गले में खराश जो इलाज के बावजूद ठीक न हो।
* आवाज का कर्क श होना।
* खाना निगलने में तकलीफ होना।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:21 AM
कैंसर के कारण

* अधिक शारीरिक सक्रियता न होना।
* एल्कोहल और नशीले पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना।
* पौष्टिक आहार ना लेना।
* अपनी दिनचर्या में व्यायाम को शामिल ना करना।
* कैंसर आनुवांशिक भी हो सकता है। कई बार कैंसर से पीड़ित माता या पिता के जीन बच्चे में भी आ जाते हैं जिससे बच्चे को भविष्य में कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है।
* किसी गम्भीर बीमारी के कारण भी आपको कैंसर हो सकता है। यानी यदि आप किसी गम्भीर बीमारी के लिए दवाएं ले रहे हैं तो इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स के कारण आप कैंसर के शिकार हो सकते हैं।
* कई बार उम्र बढ़ने के साथ भी शरीर में चुस्ती-फुर्ती नहीं रहती और उम्र के पड़ाव पर व्यक्ति बीमार पड़ने लगता है, ऐसे में कई बार कैंसर
भी हो जाता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:22 AM
देश में सबसे अधिक होने वाली मौतों में कुछ कैंसर प्रमुख हैं

* महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, गर्भाश्य कैंसर और सर्वाइकल कैंसर से सबसे अधिक मौते होती हैं।
* पुरुषों में सबसे अधिक मौत लंग, स्टमक, लीवर, कोलेस्ट्रोल और ब्रेन कैंसर से होती हैं।
* कैंसर से मरने वाले लोगों में महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों से अधिक है।
* भारत में 30 लाख से भी अधिक लोग कैंसर से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं दुनिया में 15 लाख महिलाओं की मृत्यु नशीले पदार्थों के सेवन से होती है।
* कैंसर से बचना चाहते हैं तो आपको अपनी जीवनशैली नियंत्रित करनी होगी। इतना ही नहीं आपको अपने खानपान पर विशेष ध्यान होगा।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:38 AM
आपरेशन के बिना कैंसर का ट्यूमर खत्म करती है साइबरनाइफ तकनीक

कैंसर के मरीजों के लिए साइबरनाइफ रोबोटिक रेडियो सर्जरी तकनीक उपयोगी साबित हो रही है क्योंकि इस तकनीक में न तो कैंसर का ट्यूमर निकालने के लिए कोई आपरेशन करना पड़ता है और न ही परंपरागत थैरेपी की तरह इसमें लंबा समय लगता है। मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में रेडियेशन आन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. तेजिन्दर कटारिया ने बताया ‘कैंसर के मामले लगातार बढ रहे हैं। ज्यादातर मामलों में जब तक इस बीमारी का पता चलता है, तब तक यह बहुत बढ चुकी होती है। समय रहते पता चलने पर कैंसर का इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन इस बीमारी का नाम सुन कर ही मरीज बहुत घबरा जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि साइबरनाइफ रोबोटिक रेडियो सर्जरी एक अत्याधुनिक तकनीक है जो कैंसर के मरीजों के लिए उपयोगी साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि साइबरनाइफ तकनीक से इलाज में कोई चीरा नहीं लगाया जाता। इसमें ‘नॉन इन्वेसिव’ तरीके से ट्यूमर हटाया जाता है। यह उन मरीजों के लिए अत्यंत लाभदायक है जिनका कैंसर वाला ट्यूमर आपरेशन से नहीं निकाला जा सकता। साइबरनाइफ तकनीक में एनेस्थीसिया का भी उपयोग नहीं किया जाता।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:41 AM
श्वसन अंगों का इलाज़ मुश्किल

बीएलके अस्पताल में रेडियेशन आन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख और एसोसिएशन आफ रेडियेशन आन्कोलॉजिस्ट आफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस हुक्कू ने कहा ‘इस तकनीक से इलाज के दौरान मरीज के शरीर में लक्षित ट्यूमर पर एक सत्र में 30 मिनट से 90 मिनट तक रेडियेशन बीम डाली जाती है और इस दौरान मरीज पूरी तरह होश में रहता है।’ डॉ हुक्कू के अनुसार, साइबरनाइफ तकनीक से इलाज में एक से पांच सत्र लगते हैं, जबकि पारंपरिक थैरेपी के लिए 25 से 40 सत्रों की जरूरत होती है। रेडियेशन बीम डालने पर अन्य उतकों या कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।’ उन्होंने कहा कि साइबरनाइफ तकनीक से फेफड़ों या जिगर में कैंसर के ट्यूमर हटाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि श्वसन क्रिया के कारण इन अंगों में हलचल होती रहती है। लेकिन यह मुश्किल भी नहीं होता। यह तकनीक उन मरीजों के लिए भी लाभकारी है जिनका एक बार कैंसर का इलाज होने पर ट्यूमर खत्म तो हो जाता है, लेकिन कुछ समय बाद फिर कैंसर का ट्यूमर बन जाता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 12:41 AM
रेडियेशन डिलीवरी डिवाइस का कमाल

साइबरनाइफ तकनीक में एक रेडियेशन डिलीवरी डिवाइस होता है जिसे लीनियर एक्सीलेटर या लाइनेक कहा जाता है। लाइनेक को एक लचीली रोबोटयुक्त भुजा पर लगाया जाता है। डॉ हुक्कू ने कहा कि इलाज के दौरान एक्सरे ट्यूमर की तस्वीर लेता रहता है, शुरूआती सीटी स्कैन से उसे मिला कर ट्यूमर की स्थिति का पता लगाया जाता है और आधुनिक सॉफ्टवेयर के जरिये रोबोट वाली भुजा को इसकी जानकारी दी जाती है। यह भुजा लचीली होने की वजह से अलग अलग कोणों पर मुड़ सकती है और ट्यूमर वाले स्थान पर रेडियेशन बीम डाल सकती है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 02:39 AM
विश्व में मुंह के कैंसर के 86 प्रतिशत मामले भारत में

भारत मुंह के कैंसर के मामलों में पूरे विश्व में अब भी सबसे उपर बना हुआ है तथा देश में प्रत्येक वर्ष कैंसर के 75 से 80 हजार नये मामले सामने आते हैं। कैंसर के अधिकतर मामलों के लिए तंबाकू चबाने को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि भारतीय धूम्रपान करने की बजाय तंबाकू अधिक चबाते हैं। तंबाकू चबाने वालों की 26 प्रतिशत आबादी भारत में वास करती है जबकि धूम्रपान करने वालों में से 14 प्रतिशत भारतीय हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि गैर संचारी रोगों को कम करने के लिए तंबाकू चबाने पर रोक लगाना स्वास्थ्य मंत्रालय की महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की एकमात्र सबसे बड़ी चुनौती है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू) के विशेषज्ञों की ओर से गुटखा के हानिकारक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए हाल में तैयार एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूरे विश्व के 86 प्रतिशत मुंह के कैंसर के मामले भारत में सामने आते हैं। सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि तंबाकू और गुटखा का सेवन देश में मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय वर्ष 2011 की अधिसूचना के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन पर जोर दे रहा है जिसमें गुटखा में तंबाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 03:27 PM
‘कैंसर ... क्या आप जानते हैं?

कैंसर की रोकथाम और इससे निपटने के लिए रणनीतियां बनाने और प्रयासों को और पुख्ता बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विभिन्न सरकारें और बड़े स्वास्थ्य संगठन हर साल चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाते हैं। विश्व कैंसर दिवस की शुरूआत ‘यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल’ (यूआईसीसी) ने वर्ष 1933 में जिनीवा में की थी। इस साल विश्व कैंसर दिवस की थीम ‘कैंसर ... क्या आप जानते हैं?’ है जो कैंसर के बारे में व्याप्त भ्रांतियों और उन्हें दूर करने की जरूरत पर केंद्रित है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 03:28 PM
बोन कैंसर : तकनीकें बचा सकती हैं अंगों को

बोन कैंसर यानी हड्डियों का कैंसर अब न तो लाइलाज है और न ही इसकी वजह से अंग काटने की नौबत आती है। विशेषज्ञों का दावा है कि नवीनतम तकनीकों की मदद से समय रहते बोन कैंसर का पता लगा कर उसका इलाज किया जा सकता है। इन आधुनिक तकनीकों की मदद से बोन कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु दर घटाने में मदद मिली है। राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के कन्सल्टेन्ट आर्थोपेडिक ओन्कोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय तिवारी ने बताया कि अब बोन कैंसर अर्थात आस्टियोसरकोमा के 80 से 90 फीसदी मामलों में जो सर्जरी की जाती है, उसमें अंगों को काटना नहीं पड़ता। पहले बोन कैंसर वाले अंग को काटना मानक इलाज माना जाता था। अब आस्टियोसरकोमा का अगर समय रहते पता चल जाए, तो इसके 60 से 70 फीसदी मरीजों को उनके अंग काटे बिना बचाया जा सकता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 03:29 PM
ट्यूमर होता है बच्चों में बीमारी का कारण

इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के मानद सचिव और ईएसआईपीजीआईएमएसआर के डीन डॉ. सुधीर कपूर ने बताया, बोन ट्यूमर हड्डियों में ही पैदा होता है और विकसित होता है। बोन कैंसर वाले करीब 35 फीसदी बच्चों को इस बीमारी का कारण यह ट्यूमर होता है। ऐसे बच्चों को बड़े होने पर भी बोन कैंसर होने की आशंका रहती है। डॉ. कपूर ने कहा कि कई मरीजों को जब इस बीमारी का पता चलता है, तब तक यह बीमारी अंतिम अवस्था में पहुंच चुकी होती है और प्रभावित अंग को काटने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता। यह बीमारी लाइलाज नहीं है, लेकिन आज भी हड्डियों से जुड़ी तकलीफ को लोग गंभीरता से नहीं लेते और शुरू में इस समस्या का पता ही नहीं चल पाता। नवीनतम तकनीकों में प्रोस्थेसिस का उपयोग प्रमुख है। इसकी मदद से उस हड्डी को ही हटा दिया जाता है, जहां कैंसर वाला ट्यूमर बनता है।

Dark Saint Alaick
04-02-2013, 03:30 PM
एक्स्ट्राकारपोरियल रेडियोथैरेपी

एक अन्य तकनीक है एक्स्ट्राकारपोरियल रेडियोथैरेपी एंड रीइम्प्लान्टेशन। इस तकनीक में ट्यूमर हटाने के बाद, उस हड्डी को निकाल कर रेडियोथैरेपी दी जाती है। इस दौरान मरीज एनेस्थीसिया के असर के कारण बेहोश रहता है। रेडियोथैरेपी के बाद हड्डी फिर से यथास्थान पर लगा दी जाती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आन्कोलॉजिस्ट डॉ. शिशिर रस्तोगी ने कहा कि बच्चों और किशोरों को हड्डियों का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है। शुरू में दर्द को या इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को हल्के तौर पर लिया जाता है। समय रहते अगर बीमारी का पता चल जाए, तो उसका इलाज हो सकता है।