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View Full Version : Afzal Guru's mercy petition rejected, execution soon


mullu
09-02-2013, 06:43 AM
Afzal Guru, convicted for his role in the attack on Parliament in 2001, will be executed soon. Sources say President Pranab Mukherjee rejected Afzal Guru's mercy petition a few days ago, clearing the way for his hanging.

A formal announcement by the government is expected soon today, sources said. The Home Ministry had recommended the death sentence for Guru last month.

Nine years ago, in 2004, Afzal Guru was given the death sentence by the Supreme Court. The sentence was scheduled to be carried out on October 20, 2006, but was stayed after his wife filed the mercy petition, which had been pending with the President's office.

The main opposition party, the BJP, has for long questioned the delay in the execution of Guru. But activists and political groups in Kashmir have argued that it is not an open and shut case.

Afzal Guru is from Sopore in Kashmir and curfew has been imposed in all important towns of the state. Separatist groups have earlier warned against Guru's execution. Chief Minister Omar Abdullah is in Delhi and is leaving for Srinagar immediately.

In December 2001, five heavily-armed terrorists drove into the Parliament complex and opened fire. Nine people were killed, most of them members of the security forces. All the terrorists were shot dead.

Both Houses of Parliament had just been adjourned and many MPs and ministers, including then Deputy Prime Minister LK Advani were still inside.

A few days later, Afzal Guru was arrested.

In November last year, Ajmal Kasab, the terrorist from Pakistan who was caught during the 26/11 attacks in Mumbai, was executed in a Pune jail.

mullu
09-02-2013, 06:50 AM
Breaking News ::

Afzal Guru Hanged. :gm::gm::gm:

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:42 PM
13 दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमला करने के आरोपी अफजल गुरु को शनिवार सुबह ठीक आठ बजे तिहाड़ के जेल नंबर तीन में फांसी दे दी गई। दो दिनों से जेल के अंदर फांसी दिए जाने को लेकर तैयारी चल रही थी। शुक्रवार शाम पश्चिम जिला के डीसी सी आर गर्ग ने भी तिहाड़ जेल पहुंच कर फांसी दिए जाने को लेकर तैयारियों का विस्तृत जायजा लिया था। इसके बाद उन्होनें दिल्ली सरकार व गृह मंत्रालय को तैयारी पूरी होने की जानकारी दे दी थी। इसके बाद अफजल को फांसी दी गई।

जेल सूत्रों की मानें तो इस मामले को लेकर गृह मंत्रालय ने दो दिन पूर्व जब तिहाड़ जेल प्रशासन को जेल में फांसी देने का आर्डर दिया था तब एक दो बड़े अधिकारियों की ही इसकी जानकारी थी कि अफजल को फांसी दी जाएगी। सभी अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं थी। उन्हें केवल यह पता था कि किसी को फांसी दिया जाना है। इसे बेहद गोपनीय रखा गया। तिहाड़ जेल के पास अभी फांसी दिए जाने के लिए कोई भी जल्लाद नहीं है।

अफजल तिहाड़ के हाई सिक्योरिटी वार्ड में अपने सेल में अकेला रहता था। उसी परिसर में सेल से कुछ दूरी पर उसे फांसी दी गई। सूत्रों की मानें तो उसे तिहाड़ के जेल नंबर तीन में ही दफना भी दिया गया। इसके लिए पहले से कब्र खोदा गया था।

कुछ घंटों में ही कर ली गई फांसी की तैयारी

नई दिल्ली। संसद भवन के दोषी को शनिवार सुबह फांसी होने के साथ इस हमले की भेंट चढ़े शहीदों को न्याय मिल गया। 2001 में यह हमला जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने किया था। इसी संगठन से अफजल गुरु जुड़ा हुआ था। उसने भी पाक में जाकर आतंकी ट्रेनिंग ली थी।

कब क्या हुआ :-

21 जून 2011 :- गृहमंत्रालय ने खारिज की अफजल गुरु की दया याचिका।

21 जनवरी 2013 :- गृहमंत्रालय ने अफजल गुरु की फांसी पर अपनी रजामंदी दी।

3 फरवरी 2013 :- राष्ट्रपति ने उसकी फांसी पर दस्तखत कर मुहर लगाई

4 फरवरी 2013 :- गृहमंत्री ने अफजल गुरु की फांसी पर दस्तखत कर मुहर लगाई।

8 फरवरी 2013 :- गृहमंत्रालय की बैठक में फांसी का दिन शनिवार को तय किया गया।

8 फरवरी 2013 :- फांसी देने को लेकर कोर कमेटी बनाई गई।

8 फरवरी 2013 :- अफजल गुरु को डेथ वारंट पढ़कर सुनाया गया।

9 फरवरी 2013 [सुबह 5:30 बजे] :- फांसी की जगह पर ले जाया गया।

9 फरवरी 2013 [सुबह 7:00 बजे] :- अफजल गुरु के स्वस्थ्य की जांच की गई।

9 फरवरी 2013 [सुबह 7:30 बजे] :- फांसी की प्रक्रिया शुरु की गई।

9 फरवरी 2013 [सुबह 8:00 बजे] :- जेल नंबर तीन में दी गई फांसी

9 फरवरी 2013 [सुबह 8:15 बजे] :- अफजल गुरु को डाक्टरों ने मृत घोषित किया।

9 फरवरी 2013 [सुबह 9:00 बजे] :- तिहाड़ जेल में दफनाया गया अफजल गुरु।

फांसी पर नेताओं का नजरिया

''देर आए दुरुस्त आए।'' -गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी

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''इस फैसले में देरी हुई। इसकी वजह यह थी कि इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना जरूरी था और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।''

-अभिषेक मनु सिंघवी, कांग्रेस प्रवक्ता

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''कांग्रेस ने राजनीतिक कारणों की वजह से ही लंबे अर्से से इस फैसले को लटकाए रखा था।''

-भाजपा सांसद स्मृति ईरानी

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''किसी भी धर्म, भाषा या समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग अगर आतंक फैलाते हैं तो उन्हें ऐसी ही सजा भुगतनी पड़ेगी।''

-पूर्व राज्यसभा उपाध्यक्ष नजमा हेपतुल्ला

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''लोगों से अनुरोध है कि वह किसी भी तरह के हिंसात्मक प्रदर्शन से दूर रहें। ऐसा करने से स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है।''

- उमर अब्दुल्ला, मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर

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''सरकार का यह फैसला काफी देरी से आया, लेकिन अच्छी बात है कि लोगों की भावनाओं की कद्र की गई। सरकार ने बहादुरी का परिचय दिया है।''

- संजय राउत, शिवसेना प्रवक्ता

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''यह फैसला दुनिया के लिए एक संदेश है कि भारत कमजोर नहीं है।'' -राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली

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''राजनीति से प्रेरित नहीं है, अफजल की फांसी।''

- सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी

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''मैंने प्रधानमंत्री को सूचित किया था कि यदि 15 फरवरी तक अफजल पर फैसला नहीं किया तो वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।''

-सुब्रमण्यम स्वामी, अध्यक्ष जनता पार्टी

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''फैसला आने में काफी लंबा समय लगा।''

- अशोक सिंघल, विहिप नेता

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''अंत में न्याय की जीत हुई और अफजल को फांसी हुई।''

- नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री बिहार

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''हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। केंद्र सरकार को यह फैसला पहले ही ले लेना चाहिए था।''

- मनमोहन वैद्य (आरएसएस नेता)

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''अफजल को फांसी उन सांप्रदायिक ताकतों को शांत करने के लिए दी गई है जो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।''

- दीपांकर भट्टाचार्य महा सचिव, भाकपा (माले)

गुलाम कश्मीर में तीन दिन का शोक

मुजफ्फराबाद [पाकिस्तान]। पाकिस्तान के कब्जे वाले गुलाम कश्मीर प्रशासन ने भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के विरोध में तीन दिन का शोक मनाने की घोषणा की है। वहीं अफजल की फांसी के विरोध में गुलाम कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद में रैली आयाजित की गई।

राज्य सरकार के सलाहकार मुर्तजा दुर्रानी ने कहा, शनिवार से शुरू हुए शोक के दौरान झंडा आधा झुका रहेगा। उधर, मुजफ्फराबाद में आयोजित रैली में करीब चार सौ लोग एकत्रित हुए। उन्होंने भारतीय झंडा जलाया और भारत विरोधी नारे लगाए। रैली का आयोजन पसबन-ए-हुर्रियत ने किया। यह संगठन कश्मीरियों का प्रतिनिधित्व करता है जो भारत से आकर पाक अधिकृत कश्मीर में बस गए। हुर्रियत प्रमुख उजैर अहमद गजाली ने फांसी की निंदा करते हुए घोषणा की कि उसके समर्थक सोमवार को मुजफ्फराबाद स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करेंगे।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:43 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24725&stc=1&d=1360421013

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:44 PM
मकबूल बट, सतवंत सिंह, केहर सिंह, अजमल आमिर कसाब और अब अफजल गुरु -भारत के इतिहास में ये चौथा मौका है जब किसी आतंकी को फांसी देने के बाद उसका शव जेल में ही दफना दिया हो या अंतिम संस्कार कर दिया गया हो। सवाल उठता है कि फांसी के बाद शव पर किसका अधिकार हो। प्रख्यात कानूनविद् आरएस. सोढी कहते हैं कि ऐसे मामले में शव पर सरकार का अधिकार होता है और यही दलील सतवंत सिंह और केहर सिंह के मामले में भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके जस्टिस सोढ़ी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और केहर सिंह का मामला याद करते हुए बताते हैं कि जब परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए सतवंत और केहर का शव और उनके अवशेष मांगे तो भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि जब तक व्यक्ति जीवित रहता है तब तक तो उसका अपने शरीर पर अधिकार होता है, लेकिन फांसी के बाद शव पर सरकार का हक होता है। सरकार ने अपनी दलील में ब्रिटिश काल के एक कानून का हवाला भी दिया था। सोढ़ी उस मामले में सतवंत और केहर सिंह के वकील थे। उन्होंने ही परिजनों की ओर से याचिका दाखिल कर सतवंत और केहर के शवों की मांग की थी। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए थे, लेकिन सरकार ने फांसी के बाद दोनों का अंतिम संस्कार भी तिहाड़ जेल में कर दिया। दूसरे दिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में मुद्दा उठाया और सरकार पर आदेश उल्लंघन का आरोप लगाया। साथ ही अंतिम रस्में पूरी करने के लिए अवशेष मांगे। हालांकि कोर्ट ने आदेश के उल्लंघन के आरोपों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन सतवंत-केहर के अवशेष परिजनों को सौंपने के आदेश दिए और शर्त लगाई कि परिजन अवशेष लेकर कीरतपुर साहिब नहीं जाएंगे, बल्कि सरकार की देखरेख में अवशेष लेकर हरिद्वार जाएंगे।

इसके पहले कश्मीर के आतंकी मकबूल बट का शव भी मांगा गया था। उसे 1968 में फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन वह श्रीनगर जेल से सुरंग बनाकर पाकिस्तान भाग गया। 1974 में पाकिस्तान में गिरफ्तार हुआ तो भागकर फिर भारत आ गया। वह लंबे समय तक जेल में रहा और 11 फरवरी 1984 को उसे तिहाड़ में फांसी पर लटकाया गया। उसका शव भी तिहाड़ में दफना दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके. गर्ग मकबूल का केस याद करते हुए बताते हैं कि उसके दूर के रिश्तेदारों ने वकील रमेश पाठक के जरिये अर्जी दाखिल कर शव की मांग की थी। मामला बहुत संवेदनशील था। सरकार ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर याचिका का विरोध किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

अब कसाब के बाद अफजल का शव भी जेल में दफनाया गया है। यह भी एक संयोग है कि दिल्ली के तीन सबसे बड़े आपराधिक मामलों यानी महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अब संसद हमले के गुनाहगार का अंतिम संस्कार जेल की चारदीवारी में हुआ है। शव उनके परिजनों को नहीं दिया गया।

अंतिम इच्छा का कानूनी प्रावधान नहीं :

फांसी की सजा से पहले अपराधी की अंतिम इच्छा पूरी करने या पूछने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। ये जेल की एक रवायत है जिसे जेल अधिकारी अपने स्तर पर पूरा करते हैं। डीके. गर्ग कहते हैं कि ये एक परंपरा ही है। अगर कोई अपराधी कहे कि फांसी आज नहीं कल दी जाए तो क्या अंतिम इच्छा मान ली जाएगी, नहीं। कानूनी प्रावधान होता तो अंतिम इच्छा मानना बाध्यकारी होता।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:48 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24726&stc=1&d=1360421251


कन्नौज [उत्तर प्रदेश ]। शहीद कमलेश कुमारी को दिया गया अशोक चक्र अब उनके परिजन ससम्मान लेंगे। यहां के खेड़ा जगदीशपुर में शहीद के पति अवधेश कुमार ने बताया कि अफजल गुरू को फांसी न देने से परिवार वालों में नाराजगी थी। इसके चलते उन्होंने 13 दिसंबर 2007 को अशोक चक्र वापस कर दिया था। फांसी की सूचना पर दुख हल्का हुआ है। अवधेश अपनी बेटियों को भी देश की रक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं। शहीद कमलेश कुमारी के गांव खेड़ा जगदीशपुर में दीपावली जैसा माहौल है। ग्रामीणों ने शहीद स्मारक पहुंचकर मिठाई बांटी।

''हमे गर्व है कि भाभी ने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। गांव के सभी लोगों को शहादत पर गर्व है। सरकार ने अफजल गुरू को फांसी देकर सही निर्णय लिया।''

अजीत सिंह, देवर

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''कमलेश कुमारी ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। सही मायने में वह आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। हमें उन पर गर्व है।''

मीरा देवी, जेठानी

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''अफजल गुरू को 12 साल तिहाड़ जेल में रखने के पीछे सरकार की क्या मंशा थी। यह सवाल हमेशा दिल में रहेगा। फिलहाल आज उनके दिल को ठंडक महसूस हुई है। यह वास्तव में महान दिन है।''

मधू देवी, देवरानी

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''कमलेश कुमारी ने क्षेत्र ही नहीं पूरे देश का नाम रोशन किया है। अफजल को फांसी होने से उसकी आत्मा को शांति मिलेगी।''

उर्मिला देवी, ननद

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''चाची की शहादत को वह कभी नहीं भुला पाएगी। सरकार ने अफजल को फांसी देकर उनका दुख जरूर हल्का किया है। वह भी उनकी शहादत पर गर्व महसूस कर रहीं हैं।''

नीलू कुमारी, भतीजी

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अफजल को फांसी पर ही पूर्व सैनिकों ने पहने मेडल

बिजनौर। संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी होने के बाद जिले के पूर्व सैनिकों का सीना फिर मेडलों से सज गया। उन्होंने सात साल पहले प्रण लिया था कि जब तक अफजल को फांसी नहीं होगी, मेडल नहीं पहनेंगे।

शनिवार सुबह दिल्ली की तिहाड़ जेल में संसद पर हुए आतंकी हमले के मामले में अफजल गुरु को फांसी की खबर सुनकर जिले के पूर्व सैनिकों के चेहरे खुशी से खिल उठे। गौरतलब है कि 16 नवंबर 2006 को जिले के 16 पूर्व सैनिकों ने अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की मांग को लेकर अपने मेडल जिला प्रशासन को वापस कर दिए थे।

जिला प्रशासन ने संग्रहालय नहीं होने की बात कहते हुए मेडल पूर्व सैनिकों को वापस कर दिए थे। इस पर उन्होंने अफजल गुरु को फांसी नहीं होने तक इनको नहीं पहनने का प्रण लिया था। शनिवार दोपहर भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना [ईसीएचएस] अस्पताल परिसर में पूर्व सैनिक अजय फौजी, मोहम्मद असद व अनिल शर्मा आदि को रिटायर्ड कैप्टन नरेंद्र सिंह गहलौत ने फिर से मेडल से पहनाए।

इन्होंने लिया था प्रण

अजय फौजी, मोहम्मद असद, अनिल शर्मा, मनोज राणा, मुन्ना सिंह, वीएल त्यागी, केशव सिंह, राजेश कुमार, बृज मोहन राणा, वृक्षराज शर्मा, भरत लामा, वेद प्रकाश, सीताराम, राजेश सिंह, धर्मपाल सिंह व कृष्णपाल सिंह। अजय फौजी ने बताया कि शनिवार को मेडल पहनने न पहुंच पाने वाले साथी शीघ्र ही मेडल पहनेंगे।

शहीदों के परिजनों ने स्वागत किया

नई दिल्ली। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने का शहीदों के परिजनों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह फैसला सरकार को बहुत पहले ही ले लेना चाहिए। परिजनों को खुशी है कि देर से सही, लेकिन उन्हें इंसाफ मिला।

संसद हमले में मारे गए मातबर सिंह नेगी के पुत्र गौतम नेगी ने बताया कि सुबह समाचार चैनलों के माध्यम से उन्हें अफजल को फांसी पर लटकाने की सूचना मिली, जिसे सुनकर कुछ समय के लिए तो वह भी स्तब्ध रह गए। उन्होंने सरकार के फैसले पर खुशी जाहिर की है।

शहीद कमलेश यादव के पति अवधेश ने कहा कि उन्हें सरकार के इस कदम से राहत मिली है। हमले में अपने पति चौधरी बिजेंद्र को खो चुकी जयवती देवी ने कहा कि उन्हें आतंकी अफजल को फांसी दिये जाने की खुशी है, लेकिन यह फैसला पहले ही लेना चहिए था। हालांकि सभी शहीदों के परिजन इस बात से खुश हैं कि उनके अपनों की कुर्बानी बेकार नहीं गई।

शहीद बेटे को आज मिली सच्ची श्रद्धांजलि: फूल सिंह

लोनी। संसद हमले में शहीद हुए टीला शहवाजपुर गांव के शहीद देशराज सिंह के पिता फूल सिंह ने कहा कि अफजल गुरू को फांसी देने पर उसके बेटे को आज सच्ची श्रद्धांजलि मिली है। शहीद के पिता पर जहां आज अफजल गुरू को फांसी देने पर खुशी के भाव साफ झलक रहे थे वहीं उन्हें अपने बेटे खोने का भी मलाल था। शहीद की पत्नी मुनेश देवी ने कहा कि सरकार ने अफजल गुरू को फांसी देने में देरी की है। गुरू को उसी समय फांसी दे देनी चाहिए थी। सरकार द्वारा अफजल गुरू पर बेवजह जहां करोड़ों रुपए खर्च किए गए है वहीं शहीदों के साथ मजाक किया जा रहा था।

बता दें कि 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के कर्मचारी व टीला शहवाजपुर गांव निवासी देशराज भी शहीद हो गया था। देशराज के पिता फूल सिंह [88], माता हरवती देवी [85], पत्नी मुनेश, पुत्र वीरेंद्र व नितिन के अलावा पुत्री सीमा है। शहीद का बड़ा बेटा वीरेंद्र एलएलबी की पढ़ाई कर चुका है, जबकि छोटा बेटा नितिन इंटर में पढ़ रहा है। वीरेंद्र ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से मार्च 2002 को सेक्टर-105 नोएडा में इंडेन का पैट्रोल पंप का लाइसेंस मिला था। लेकिन उसकी ओपनिंग अगस्त 2009 में हुई। शहीद की पत्नी मुनेश ने कहा कि अफजल को फांसी दिए जाने पर आज उनके पति को सच्ची श्रद्धांजलि दी गई है।

वे अब तक श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट जाते थे लेकिन अब संसद जाएंगे। उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति के आभारी है। वही देशराज के पिता फूल सिंह ने कहा कि आज उनके पुत्र व आतंकी हमले में शहीद लोगों की आत्मा को शांति मिल गई। फांसी की सूचना से पूरे देश के साथ टीला शहवाजपुर गांव में खुशी का माहौल बना हुआ है।

संसद हमले में अपनी जान देने वाले शहीद:-

1. जेपी यादव

2.घनश्याम

3. ओमप्रकाश

4.नानक चंद

5.रामपाल

6. बिजेंद्र सिंह

7. कमलेश कुमारी

8. देशराज

9. मातबर सिंह नेगी

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:50 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24727&stc=1&d=1360421391


राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक फैसलों का रास्ता साफ किया है। राष्ट्रपति भवन में प्रणब की आमद के महज छह महीनों के भीतर देश में आतंकवाद के दो बड़े गुनहगारों को सजा के तख्त तक पहुंचा दिया गया। राष्ट्रपति के पास अब किसी आतंकी हमले के दोषी की कोई दया याचिका लंबित नहीं है।

विरासत में मिली लंबित दया याचिकाओं की लंबी फेहरिस्त का निपटारा करते हुए प्रणब ने जुलाई, 2012 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से अब तक चार पर अपना फैसला सुना दिया है। आठ दया याचिकाएं गृह मंत्रालय को समीक्षा के लिए भेजी जा चुकी हैं। मुखर्जी ने दो आतंकियों मुंबई आतंकी हमले के गुनहगार अजमल आमिर कसाब और अफजल गुरु के अलावा दो अन्य दोषियों की दया याचिकाएं निपटाई हैं। इनमें बेटी और पत्नी की हत्या के दोषी सैबन्ना निंगप्पा नाटिकर की दया याचिका खारिज कर दी गई जबकि अगस्त, 2010 में सुप्रीम कोर्ट से मृत्युदंड पाने वाले अतबीर की सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई। दिल्ली के अतबीर ने 1996 में संपत्ति के विवाद में सौतेली मां, सौतेली बहन और सौतेले भाई की हत्या कर दी थी।

राष्ट्रपति भवन से मिली जानकारी के अनुसार 30 अक्टूबर, 2012 से 17 नवंबर, 2012 के बीच अफजल समेत नौ दया याचिकाएं गृह मंत्रालय को समीक्षा के लिए भेज दी गई थीं। नए गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के पद संभालने के बाद राष्ट्रपति ने अफजल की दया याचिका 15 नवंबर को गृह मंत्रालय के पास भेजी थी। मंत्रालय की सिफारिश आने के बाद 4 फरवरी को उन्होंने अपना फैसला सुना दिया।

प्रणब से पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपने कार्यकाल में फैसला तो 22 दया याचिकाओं पर दिया, लेकिन ज्यादातर के प्रति उन्होंने दया दिखाई। पाटिल ने सिर्फ दो दया याचिकाएं खारिज की थीं।

'प्रणब मुखर्जी ने चटकाए दो विकेट'

नई दिल्ली। भले ही लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले सबसे बड़े दोषी अफजल गुरु को सरकार ने फांसी दे दी है लेकिन सरकार को यह फैसला लेने में काफी वक्त लगा। इस पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, देर आए दुरुस्त आए। वहीं, अफजल की फांसी पर ट्विटर पर लोग सरकार का शुक्रिया अदा कर रहे हैं।

एक बात गौर करने वाली है कि सरकार ने मुंबई हमले के सबसे बड़े आतंकी अजमल आमिर कसाब को शीतकालीन सत्र से पहले फांसी दी गई थी और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को बजट सत्र से पहले दी गई है। लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ऐसे में सरकार की ओर से उठाया गया इतना बड़ा कदम चुनाव की सरगर्मी को तेज कर सकता है।

- ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान जैनुल अबेदीन अली खान ने फांसी के निर्णय का स्वागत करते इसे उचित करार दिया हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार ने इस निर्णय से साफ है कि देश में अब आतंकवाद को किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

- जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने एमएनएस को बताया था कि अगर सरकार 15 फरवरी से पहले अफजल को फांसी नहीं देती है तो स्वामी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।

- गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने अफजल गुरु की मौत की पुष्टि कर दी है। उन्होंने बताया कि चार फरवरी को ही उन्होंने अफजल की फांसी को मंजूरी दे दी थी। शनिवार सुबह 8 बजे उसे मृत घोषित कर दिया गया।

- किरण बेदी ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि जो भी हुआ है अच्छा हुआ है। देर से ही सही लेकिन बिल्कुल उचित फैसला लिया गया है। कानून ने अपना रंग दिखाया।

- बीजेपी ने इस फैसले को देर से लिया गया राष्ट्रीय हित का फैसला बताया है। बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने कहा कि देश को आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस रवैया अपनाना चाहिए।

- केंद्रीय सूचना प्रसार मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने एक सही कदम उठाया है। कानून और प्रशासन को ध्यान में रखते हुए अफजल को फांसी हुई है। उन्होंने कहा कि फांसी का फैसला बिल्कुल न्यायिक था।

- शिवसेना के नेता संजय राउत ने राष्ट्रपति को बधाई दी है।

- मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कश्मीर के लोगों से शांति बरकरार रखने की अपील की है।

- काफी संयम के साथ दिग्विजय सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार का फैसला बिल्कुल सही था, कानून और प्रशासन के मद्देनजर ही सरकार ने यह कदम उठाया है।

- बिग बी ने सरकार के फैसले की सराहना करते हुए लिखा कि सरकार ने कानून के दायरे में रहकर ही यह कदम उठाया है। उन्होंने लिखा कि कानून सबके लिए एक समान है। कानून के दायरे में जो भी आते हैं सबके लिए सजा भी एक समान ही होगी।

- रोचक ट्वीट्स:

- डियर प्रेसीडेंट प्रणब मुखर्जी। आपने अफजल को तो उसके अंजाम तक पहुंचा दिया। अब आप आइआरसीटीसी के हैंगिंग मैटर को भी सुलझा डालिए।

- स्टीरियो टाइपराइटर

- प्रणब जी आप तो राष्ट्रपति बनने के लिए ही पैदा हुए थे। अभी तक आप महंगाई, गार और बाकी चीजों की फालतू में ही चिंता कर रहे थे।

- आदित्य कालरा

- लगता है सलमान खान से ज्यादा अब प्रणब मुखर्जी रिवाइटल खा रहे हैं। उनका यह फैसला देखकर तो ऐसा ही लग रहा है।

- एंग्री बॉम्बे गर्ल

- फास्ट बॉलर प्रणब मुखर्जी ने फ*र्स्ट ओवर में ही चटकाए दो विकेट।

- रिट्विटर

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:51 PM
केंद्र सरकार ने अफजल को फांसी पर लटकाकर आतंक के खिलाफ सख्ती के संकेत देने की कोशिश भले ही की हो, लेकिन आतंकवादी पूरी तरह बेफिक्र हैं। उनका कहना है कि फांसी से उनके हौसले पस्त नहीं होंगे और कश्मीर छीनकर रहेंगे।

आतंकी संगठन अल उमर मुजाहिदीन के सुप्रीम कमांडर होने का दावा करने वाले मुश्ताक अहमद जरगर ने बीबीसी को बताया कि अफजल को फांसी देने से उनके हौसले पस्त नहीं होंगे। जरगर ने कहा, अफजल को फांसी दिए जाने से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम कोई बातचीत नहीं करेंगे। कश्मीर छीनकर लेंगे। जिहाद ही एकमात्र रास्ता है कश्मीर की आजादी का। कंधार कांड में भारत सरकार द्वारा छोड़े गए इस आतंकी ने कहा, भारत सरकार गलतफहमी में न रहे। हम कश्मीर छीन के लेंगे। हम लड़ते रहेंगे।

इसी तरह लश्कर ए तैयबा ने भारत को चेतावनी दी कि वह अफजल की फांसी का बदला लेकर रहेगा। लश्कर प्रवक्ता डॉ. अब्दुल्ला गजनवी ने फोन पर बताया, अफजल को फांसी पर चढ़ाने से ही सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। बहुत जल्द ही भारत को इसका नतीजा भुगतना होगा।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:53 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24728&stc=1&d=1360421523


शनिवार सुबह 8.00 बजे अफजल गुरु को फांसी दे दी गई। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और गृहसचिव आर के सिंह ने पुष्टि की । संसद पर हमले में दोषी आतंकी अजमल को तिहाड़ के तीन नंबर जेल में फांसी दी गई। फांसी के बाद आतंकी अफजल के परिजनों को दिल्ली बुलाया गया। तिहाड़ में ही अफजल को दफनाया गया। पूरी इस्लामिक रीति रिवाज से इसे दफनाया गया।

जब फांसी की खबर चल रही थी उस वक्त आतंकी अफजल की पत्नी तबस्सुम गुरु श्रीनगर के एक नर्सिग होम में ड्यूटी कर रहीं थीं। संसद पर हुए आतंकी हमले के अभियुक्त अफजल गुरू को फांसी पर लटकाए जाने और उसे तिहाड़ जेल में ही दफनाए जाने की जानकारी उसकी पत्नी को नहीं थी। टेलीविजन चैनलों के माध्यम से उसे अफजल को फांसी दिए जाने की सूचना मिली। यह कहना है कि संसद हमले के आरोप से बरी हो चुके प्रोफेसर एसएआर गिलानी का। गिलानी ने कहा कि उनकी अफजल की पत्नी तबस्सुम से बात हुई है। तबस्सुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका के लिए आवेदन किया था। इस दया याचिका को पिछले तीन फरवरी को निरस्त कर दिया गया। लेकिन इसकी भी जानकारी तबस्सुम को नहीं दी गई। इसके अलावा उसे दया याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ न्यायिक समीक्षा के लिए आवेदन करने का भी मौका नहीं दिया गया। गिलानी का कहना है कि न केवल तबस्सुम और उसके परिवार वालों की दया याचिका खारिज की गई बल्कि परिवार को अफजल गुरू के अंतिम संस्कार के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया। गिलानी ने कहा अफजल गुरू को फांसी का निर्णय कानून व्यवस्था के हिसाब से नहीं किया गया है बल्कि इस मामले को राजनीतिक तरीके से निपटाया गया है। उधर अफजल गुरु के भाई मुश्ताक अहमद गुरु ने अफजल गुरु का पार्थिव शरीर मांगा है। मुश्ताक ने कहा कि कर्फ्यू लगने की वजह से वह एक दूसरे से मिल नहीं पा रहे हैं। कहीं भी जा नहीं सकते हैं। आतंकी अफजल के भाई ने सरकार पर सूचना नहीं देने का आरोप लगाया है। जबकि गृह मंत्रालय ने कहा है कि परिजनों को सूचना दी गई थी।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:56 PM
हम उससे अंतिम घड़ियों में नहीं मिल पाए, इसका हमें जिंदगी भर अफसोस रहेगा। कम से कम हमें अब उसका शव ही दे दिया जाए, ताकि हम उसे यहां अपने गांव में दफना सकें, अफजल गुरु के ससुर गुलाम मुहम्मद बुहरू ने अपने दामाद की मौत पर कहा।

बारामुला के आजादगंज इलाके में अपने मकान में अपने नाती गालिब को दिलासा दे रहे गुलाम मोहम्मद ने कहा हम लोगों तो बीते 11 साल से ही मर रहे हैं। मेरे दामाद के साथ कोई इंसाफ नहीं हुआ और न हमें बताया गया कि उसे फांसी दी जाएगी। हम उसे गत अगस्त रक्षाबंधन के दौरान दिल्ली में मिले थे, उसके बाद हम उससे नहीं मिल पाए।

बुहरू ने कहा कि हमें सुबह खबरों में पता चला था हमने उसी समय यहां से दिल्ली जाने का प्रयास किया, लेकिन बाहर क*र्फ्यू था, पुलिस ने हमें नहीं निकलने दिया। इसके बाद हमने स्थानीय पुलिस स्टेशन में भी संपर्क किया। लेकिन किसी ने हमारी मदद नहीं की। बस अब हम उसके शव का इंतजार कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह उसका बेटा जो हमेशा इस उम्मीद में रहता था कि वह अपने बाप की गोद में दूसरे बच्चों की तरह खेलेगा, अब हमेशा अपने बाप के साये के लिए तरसेगा, मेरी बेटी तब्बुस्सम तो इस समय गहरे सदमे में हैं। उसकी हालत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। सुना है, मेरे दामाद को तिहाड़ जेल में दफनाया गया है, यह हमारे साथ दूसरा जुल्म है।

इसी दौरान पास बैठा गालिब बोला, मेरे अबु की लाश ला दो, हम उसे यहां दफनाएंगे। मैं भी अपने अब्बु को देखना चाहता हूं। उसे चुप कराते हुए बुहरू ने कहा कि गुरू का पूरा परिवार यहां है, बीबी यहां है, बेटा यहां है, भाई यहां है, हम उसे यहां अपने मजहबी तरीके से दफनाएंगे।

अफजल के चचेरे भाई यासीन ने कहा कि यह हमारे लिए बहुत ही दुखद है। अगर मेरे भाई को अपना पक्ष रखने का मौका मिलता तो वह बच जाता। उसे फांसी नहीं होती। हमें तो यह भी नहीं पता था कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हमारी दया याचिका को रद्द कर दिया है। हम ही नहीं पूरा कश्मीर इस समय दुखी है। हमारी भाभी की हालत भी ठीक नहीं है। बस हम चाहते हैं कि अब हमें उसका शव ही दे दो ताकि हम उसका चेहरा देख सकें, उसे अपने मजहब के मुताबिक अपने कब्रिस्तान में दफना सकें।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:57 PM
मुंबई व संसद पर हुए आतंकी हमले के आरोपियों को फांसी पर चढ़ा कर अपनी पीठ थपथपा रही यूपीए सरकार को इस तरह के अन्य मामलों के आइने में अपनी तस्वीर देख लेनी चाहिए। समय पर सरकार की तरफ से फैसला न लेने और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाने की वजह से ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और दिल्ली स्थित युवा कांग्रेस कार्यालय पर हुए हमले के आरोपी सजा पाने के दस-दस वर्ष बाद भी जिंदा है। गहरे कानूनी दांव-पेंच में फंस चुके ये तीनों मामले राजनीतिक तरीकेसे भी बेहद संवेदनशील हैं। फांसी में लगातार बिलंब के चलते दोषियों को उम्रकैद की उम्मीद बढ़ती जा ही रही है। साथ ही इस मुद्दे पर राजनीति करने वालों को भी मौका मिल गया है।

दिल्ली में 11 सिंतबर 1993 को युवा कांग्रेस के कार्यालय के सामने हमले के मामले के मुख्य आरोपी और खालिस्तान लिबरेशन आर्मी के आतंकी देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को 2001 में फांसी की सजा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में इस पर मुहर लगाई और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मई 2011 में उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन सरकार ने कोई तेजी नहीं दिखाई। तब तक भुल्लर को लेकर पंजाब में राजनीति गर्माने लगी। इसी बीच भुल्लर की तरफ से किसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी कि चूंकि 2001 में फांसी की सजा मिलने के 11 वर्ष बाद भी उस पर अमल नहीं हुआ है, इसलिए सजा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट में मामला विचाराधीन है। भुल्लर के मामले को दुनिया भर की कई मानवाधिकार संस्थाओं ने भी उठा कर सरकार के लिए दो टूक फैसला करना मुश्किल कर दिया है।

राजीव गांधी हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दोषी करार और फांसी की सजा प्राप्त मुरुगन, संथन और पेरारीवालन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। 2011 में इनकी दया याचिका भी राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दी थी, लेकिन तभी इनको लेकर तमिलनाडु में राजनीति शुरू हो गई। विधान सभा ने राष्ट्रपति से उक्त तीनों को क्षमादान का अनुरोध करते हुए प्रस्ताव पारित कर दिया। भुल्लर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से याचिका दायर की गई है,उसी तरह की याचिका राजीव गांधी के हत्यारों के बारे में भी दायर की गई है।

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी बलवंत सिंह रजोआना को लेकर सरकार की तरफ से समय पर फैसला नहीं किए जाने से उसका मामला भी फंस चुका है। रजोवाना को फांसी नहीं देने की अपील पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने स्वयं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिल कर की थी। इससे केंद्र पर भी दबाव बना। इस मामले में रजोआना के साथ संयुक्त आरोपी जगतार सिंह हवारा ने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कानून के मुताबिक सह अभियुक्त पर अंतिम फैसला किए बगैर फांसी की सजा प्राप्त अभियुक्त पर कोई फैसला नहीं हो सकता।

सरकार के पास अभी भी कई बड़े गुनाहगारों की अर्जी लंबित पड़ी है जिन्हें जल्द से जल्द फांसी पर लटका देना चाहिए। पूरे देश की निगाहें अब इसपर टिकी हुई है कि अगला नंबर किसका होगा।

-राजीव गांधी के हत्यारे

-राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी करार दिए गए संथन, मुरुगन और पेरारिवलन को 1998 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। इन्हें पिछले साल 9 सितंबर 2011 को फांसी पर लटकाया जाना था लेकिन इनकी ओर से हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया कि इनकी दया याचिका के निपटारे में 11 साल लगे हैं और ऐसे में इन्हें फांसी की सजा दिया जाना सही नहीं होगा। 11 अगस्त 2011 को राष्ट्रपति ने इनकी दया याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

-राजोआना: बेअंत सिंह का हत्यारा

-31 अगस्त 1995 को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फासी की सजा भी अब तक लटकी हुई है। अदालत ने 31 जुलाई, 2007 को बलंवत सिंह को फासी की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ राजोआना ने हाईकोर्ट में कोई अपील दायर नहीं की थी। हाईकोर्ट से सजा की पुष्टि होने के बाद जिला अदालत ने पांच मार्च को पटियाला जेल अधीक्षक को एक्जीक्यूशन वारंट जारी किए थे। जेल अधीक्षक ने कई तरह के तर्क देते हुए राजोआना को फांसी पर चढ़ाने से मना कर दिया था और यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आने का हवाला देते हुए डेथ वारंट वापस कर दिए। लेकिन अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए दोबारा से डेथ वारंट जारी कर दिए।

इस मामले में खुद सरकार ही राजोआना की फांसी की सजा को माफ करने को लेकर राष्ट्रपति के पास दया याचिका लेकर पहुंच गई। यह मामला भी अभी विचाराधीन है। मालूम हो कि पंजाब में शिअद-भाजपा की मिलीजुली सरकार है।

-अशफाक: लाल किले पर हमला

22 दिसंबर 2000 को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने लालकिले पर हमला किया था। इस मामले में अशफाक उर्फ आरिफ को गिरफ्तार किया गया। दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2005 को अशफाक को फांसी की सजा सुनाई। फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने 13 सितंबर 2007 को अशफाक की सजा बरकरार रखी। फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त , 2011 को अशफाक की फांसी की सजा को बरकरार रखा।

-भुल्लर: रायसीना पर बम ब्लास्ट

11 सितंबर 1993 को दिल्ली के रायसीना रोड स्थित यूथ कांग्रेस के दफ्तर के बाहर आतंकवादियों ने कार बम धमाका किया था। इसमें 9 लोगों की मौत हो गई थी और 35 घायल हुए थे। पटियाला हाउस कोर्ट स्थित टाडा कोर्ट ने 25 अगस्त 2001 को भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च 2002 को फांसी की सजा पर मुहर लगा दी। जिसके बाद भुल्लर ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की। राष्ट्रपति ने 27 मई , 2011 को दया याचिका खारिज कर दी थी। इसी दौरान भुल्लर के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर फांसी की सजा कम किए जाने की गुहार लगाई, जो अभी पेंडिंग है।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 06:58 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24729&stc=1&d=1360421879

आतंकी अफजल गुरु की फांसी से संबंधित जानकारियों को बयां करने के क्रम में कई तथ्यात्मक गलतियां को लेकर एक बार फिर केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे विवादों में घिर गए है। सुशील कुमार शिंदे ने शनिवार की सुबह प्रेसवार्ता के दौरान इस संबंध में जानकारी देने के क्रम में कई तथ्यात्मक गलतियां कीं। इसमें शिंदे ने तारीख और वक्त गलत बताया।

उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री ने इस संबंध में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, अफजल गुरु को आज आठ बजे फांसी दी गई। 2011 में ही गृह मंत्रालय ने इसकी सिफारिश की थी। राष्ट्रपति को 21 जनवरी को फाइल भेजी गई। राष्ट्रपति ने तीन फरवरी को दया याचिका खारिज की थी। इस फाइल पर चार फरवरी को मैंने हस्ताक्षर किए और आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया गया।

शनिवार की सुबह अपना बयान देते समय शिंदे ने कई तथ्यात्मक गलतियां कीं। इसमें शिंदे ने तारीख और वक्त गलत बताया। गृहमंत्री ने कहा, कोर्ट ने आठ फरवरी की तारीख तय की थी। आठ बजे का वक्त भी तय हो गया था। तो आज आठ बजे अफजल को फांसी दे दी गई है। लेकिन इसके बाद अंग्रेजी में बोलते समय शिंदे ने तो और भी गड़बड़ी की। उन्होंने अफजल की फांसी के वक्त के बारे में आठ बजे सुबह [8 ए.एम.] के बजाय आठ बजे रात [8 पी.एम.] कह दिया।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 07:00 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24730&stc=1&d=1360422006


मौत बांटने वाले भी कभी अपने ही अंत से डर जाते हैं। हां ऐसा ही हाल देश के लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले आतंकी अफजल गुरु का हुआ था। जब उसे टीवी पर मुंबई हमले के सबसे बड़े दोषी अजमल आमिर कसाब की फांसी की बात पता चली थी तो अफजल गुरु के चेहरे का रंग ही उड़ गया था, उसके माथे पर शिकन दिखाई देने लगी थी। इससे भी बुरा हाल तो 1993 में दिल्ली में यूथ कांग्रेस कार्यालय के बाहर बम विस्फोट करने वाला देवेंद्र सिंह भुल्लर का हुआ था। वह जेल में ही अपनी मौत के खौफ से बीच-बीच में चिल्लाने लगता था।

एक लंबी खींचतान के बाद आखिरकार देश के लोकतंत्र के मंदिर पर बुरी नजर डालने वाले अफजल गुरु को फांसी दे दी गई। अजमल कसाब के बाद अफजल गुरु की भी कहानी आज खत्म हो गई। लेकिन अफजल गुरु के मामले को अंजाम देने में सरकार को काफी वक्त लगा। जब मुंबई हमले के दोषी अजमल आमिर कसाब की फांसी की खबर ने तिहाड़ जेल में बंद अफजल गुरु के चेहरे का रंग उड़ा दिया था। अफजल को अपने मौत का खौफ रह-रह कर सताने लगा था।

कसाब के बाद अफजल अब तीसरा कौन यह सवाल कहीं न कहीं उठने लगे हैं। हालांकि अब तक आतंकी संगठन बब्बर खालसा से संबंध रखने वाले देवेंद्रपाल सिंह भुल्लर पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। बताया जाता है कि उसकी दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज हो चुकी है। मौत बांटने वाला भुल्लर आज खुद के सामने मौत देखकर इस कदर खौफजदा है कि अक्सर चिल्ला उठता है। मौत के डर ने उसे मानसिक रोगी बना दिया है। बीमारी के कारण ही वह मौत से दूर है। उसका दिल्ली के मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान अस्पताल में इलाज चल रहा है।

अस्पताल में भुल्लर अक्सर चिल्ला पड़ता है, जल्लाद आ रहे हैं, मुझे फांसी पर लटका देंगे। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने अदालत व तिहाड़ प्रशासन को अवगत करा दिया है कि भुल्लर की हालत में सुधार नहीं हो रहा है। डॉक्टर परेशान हैं कि उसकी बीमारी को किस रूप में लें।

वर्ष 1993 में भुल्लर ने यूथ कांग्रेस कार्यालय के बाहर बम विस्फोट किया था। इसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च, 2002 को भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई थी।

तिहाड़ जेल प्रवक्ता सुनील गुप्ता का कहना है कि कसाब को फांसी की खबर टेलीविजन पर देखने के बाद अफजल के चेहरे पर शिकन देखी गई थी, लेकिन उसकी दिनचर्या सामान्य रही।

jai_bhardwaj
09-02-2013, 07:06 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24731&stc=1&d=1360422388

jai_bhardwaj
09-02-2013, 07:07 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24732&stc=1&d=1360422388

jai_bhardwaj
09-02-2013, 07:28 PM
शनिवार सुबह 8.00 बजे अफजल गुरु को फांसी दे दी गई। गृहसचिव आर के सिंह ने पुष्टि की है। तिहाड़ के तीन नंबर जेल में संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल को फांसी दे दी गई। सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर 2006 में तिहाड़ जेल के अधिकारी बक्सर जेल से छह रस्सी ले आए थे। तो ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इसी रस्सी से अफजल को फांसी दी गई होगी।

ब्रिटिश शासनकाल से देश की किसी भी जेल में फांसी देने के लिए बक्सर (बिहार) केंद्रीय कारागार के पुनर्वास प्रशिक्षण केंद्र में ही फंदे वाली मनीला रस्सी का निर्माण होता रहा है। जेल के एक अधिकारी ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत में पहले फिलीपींस की राजधानी मनीला में फांसी के लिए रस्सी तैयार होती थी। बाद में बक्सर जेल में भी वैसी ही रस्सी का निर्माण होने लगा। अंग्रेजों ने ही इसे मनीला रस्सी नाम दिया। बक्सर केन्द्रीय कारा में तैयार मौत के फंदे से पहली बार सन् 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था। वर्तमान समय में देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है तब-तब केन्द्रीय कारा बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते है। अधिकारी के मुताबिक आजादी के बाद अबतक देश में जितनी भी फांसी दी गई, उसके लिए रस्सी यहीं से भेजी गई। यहां की रस्सी से अंतिम फांसी कोलकाता में 14 अगस्त, 2004 को दुष्कर्मी व हत्यारे धनंजय को दी गई थी।

मनीला रस्सी क्यों है खास

गले में लिपट बिना तकलीफ मौत की नींद सुलाने वाली मनीला रस्सी को बनाने के लिए खास विधि अपनाई जाती है। पहले कच्चे सूत की एक-एक कर 18 धागे तैयार किए जाते हैं। सभी को मोम में पूरी तरह संतृप्त किया जाता है। इसके बाद सभी धागों को मिलाकर एक मोटी रस्सी तैयार की जाती है।

इस रस्सी की कीमत महज 182 रूपये

168 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता वाली विशेष प्रकार की रस्सी की कीमत महज 182 रूपये है। इस कीमत में बढ़ोतरी अजादी के बाद से नहीं की गई है। अंग्रेजों के जमाने में रूई सुता से इस रस्सी का निर्माण किया जाता था। मनीला रस्सी का निर्माण आज भी पंजाब में उत्पादित होने वाली जे-34 गुणवक्ता वाली रूई के सुतों से किया जाता है जो विशेष आर्दता में तैयार 50 धागों से बना होता है। जिसका वजन 3 किलो 950 ग्राम होने के साथ 60 फीट लम्बा होता है।

jai_bhardwaj
10-02-2013, 07:00 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=24910&stc=1&d=1360508391


श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को अफजल गुरु को फांसी दिए जाने पर अफसोस जताते हुए कहा, इससे आम कश्मीरियों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता की भावना और ज्यादा मजबूत होगी। मुझे इस बात का भी अफसोस रहेगा कि परिजन फांसी से पूर्व गुरु से नहीं मिल सके। हम प्रयास करेंगे कि अफजल गुरु का शव उसके परिजनों को सौंपा जाए। विदित हो कि उमर की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस भी संप्रग का घटक दल है और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला केंद्र सरकार में मंत्री हैं।

यहां एक टीवी चैनल से साक्षात्कार में मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु की फांसी के बाद आम कश्मीरियों में धारणा बनी है कि फांसी देने का फैसला सियासी था। इसलिए संप्रग सरकार को साबित करना पडे़गा कि यह फैसला सियासी नहीं था। अफजल को फांसी दिए जाने की सूचना से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, लेकिन मेरी राय में उसे यह सजा न दी जाती तो ज्यादा बेहतर होता। उसे फांसी दिए जाने के कश्मीर में दूरगामी परिणाम होंगे, विशेषकर यहां की नौजवान पीढ़ी पर।

इसे आप मानो या न मानो, लेकिन आम अवाम में इस फांसी के बाद यह भावना मजबूत हुई है कि उसके साथ पूरा इंसाफ नहीं हुआ। फिलहाल, हमारा ध्यान इस बात पर है कि हम लोगों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता कैसे और किस हद तक कम कर सकते हैं।

उमर ने कहा, फिलहाल तो अफजल गुरु की फांसी का असर हमें सुरक्षा व्यवस्था के मोर्चे पर झेलना है। यह चुनौती गुरु की फांसी से राज्य के हालात पर होने वाले दूरगामी प्रभावों के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है। मुझे नहीं मालूम कि अफजल के परिजनों को केंद्र सरकार ने स्पीड पोस्ट के जरिये पहले ही उसकी फांसी की सजा से अवगत करा दिया था। कम से कम हमें केंद्र सरकार समय पर सूचित करती, तो हम गुपचुप तरीके से उसके परिजनों को दिल्ली ले जाकर अफजल से मिलवाते।

इंसानियत के तौर पर अफजल को फांसी दिए जाने से पहले परिजनों से अंतिम मुलाकात का मौका दिया जाना चाहिए था। यह बहुत ही अफसोसजनक है कि वह फांसी से पहले अपने परिवार से नहीं मिल पाया। उसके परिजनों को यह गम हमेशा रहेगा।

उन्होंने कहा कि गुरु की सजा माफी के लिए, उसके मामले की दोबारा सुनवाई के लिए न सिर्फ जम्मू-कश्मीर में बल्कि बाहर भी बहुत से लोगों ने आवाज उठाई थी। मेरे विरोधी गुरु की फांसी के लिए मुझे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन मेरी जिम्मेदारी सिर्फ इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर में पैदा होने वाले हालात से निपटने तक ही सीमित है। इस तरह के फैसले पूरी कैबिनेट या फिर सरकार में शामिल सहयोगियों को बताकर नहीं लिए जाते हैं। जब अजमल कसाब को फांसी दी गई थी तब मुझे आभास हो गया था किअफजल का भी नंबर आने वाला है। इसलिए मैंने पहले ही पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों को ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने के लिए कहा था।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मौके पर स्वर्गीय राजीव गांधी और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों को फांसी दिए जाने में हो रही देरी के लिए भारतीय जनता पार्टी सरीखे दलों को आड़े हाथ भी लिया। कहा, उनके रवैये को देखते हुए ही मैं कह सकता हूं कि गुरु की फांसी एक सियासी फैसला था।

संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को शनिवार को फांसी दिए जाने के बाद से घाटी में तनाव फैला है। इस बीच, घाटी के दस जिलों में लगाया गया क*र्फ्यू भी बरकरार है। रविवार को भी घाटी में मोबाइल और इंटरनेट सेवा पर रोक जारी रही, हालांकि सरकार ने टीवी के प्रसारण पर लगी रोक हटा ली है। शनिवार रात को बारामुला और सोपोर समेत कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा बलों झड़पें भी हुई हैं।

शुक्रवार से ही घाटी की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया था। इसके लिए राज्य पुलिस बल के साथ सीआरपीएफ के जवानों को भी तैनात किया गया है।

इस बीच परिवारजनों को अफजल का शव दिए जाने की मांग को लेकर जेकेएलएफ प्रमुख यासिन मलिक ने 24 घंटे की भूख हड़ताल करने का ऐलान किया है। वहीं केंद्र सरकार ने घाटी में हालात सामान्य रखने के मद्देनजर हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारुख समेत कई नेताओं को दिल्ली और जम्मू कश्मीर समेत नजरबंद किया गया है। राज्य के मुख्यमंत्री ने सभी से शांति बनाए रखने की अपील की है।

jai_bhardwaj
10-02-2013, 07:01 PM
कश्मीर में अखबार के प्रकाशन पर रोक

श्रीनगर । केबल टीवी, एसएमएस, मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं को ठप करने के बाद प्रशासन ने कश्मीर घाटी में अगले आदेश तक स्थानीय अखबारों के प्रकाशन व वितरण पर भी रोक लगा दी है। अधिकारिक तौर पर आदेश जारी नहीं किया गया है, लेकिन कश्मीर में रविवार को प्रशासन ने किसी भी अखबार का वितरण नहीं होने दिया।

नागरिक या पुलिस प्रशासन ने स्थानीय अखबारों के प्रकाशन व वितरण पर रोक पर कुछ भी कहने से इन्कार किया है। शनिवार रात को 11 बजे पुलिस ने अखबारों के प्रकाशन व उनके वितरण को रुकवाने का ऑपरेशन शुरू किया, जो रविवार तड़के तक जारी रहा। कश्मीर के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ग्रेटर कश्मीर के प्रिंटर पब्लिशर राशिद मखदूमी ने बताया कि हम अपने अखबार को अंतिम रूप दे रहे थे कि अचानक पुलिस आ गई। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि अखबार नहीं छपेगा, अगर छपेगा तो वह उसे वितरित नहीं होने देंगे। इसके बाद हमने अखबार को नहीं छापा, अलबत्ता हमारा ऑनलाइन एडीशन ही जारी हुआ है।

कश्मीर रीडर अखबार के संपादक शौकत मौटा ने कहा, हमारा अखबार छप चुका था, लेकिन पुलिस ने उसे लालचौक में हमारे एजेंट के पास से जब्त कर लिया। एक भी प्रति कहीं नहीं जा पाई है। पुलिस ने कार्यालय के लिए भी एक प्रति नहीं छोड़ी। हमें चार दिनों तक अखबार न छापने की हिदायत की गई है। वादी के प्रमुख न्यूज पेपर वितरक जनता न्यूज एजेंसी के अनुसार, उन्हें रात को ही पुलिस ने सूचित कर दिया था कि कोई अखबार नहीं बांटा जाए। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद मीडिया के साथ बातचीत में लोगों से संयम बनाए रखने और मीडिया से विशेषकर न्यूज चैनलों से आग्रह किया था कि वह किसी भी समाचार को महज सुनी सुनाई बात पर न प्रसारित करें, उसके प्रसारण से पूर्व सभी तथ्य जांच लें।