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View Full Version : प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक


bindujain
09-02-2013, 07:50 PM
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सुश्रुत-ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हुए। वैद्यराज धनवंतरी के चरणों में बैठकर चिकित्सा शास्त्र सीखा। आप प्रथम वैद्य थे जो शल्य चिकित्सा में पारंगत थे। पथरी निकालने, टूटी हड्डियों का पता लगाने और जोडऩे, आंखों के मोतिया बिंद के आपरेशन करने में अद्वितीय। रोगी को आपरेशन से पहले शराब पिलाकर बेहोश करने की पद्घति के कारण उन्हें निश्चेतीकरण का जनक भी कहा जाता है। अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में उन्होंने आप्रेशन के लिए प्रयुक्त 101 उपकरणों का भी जिक्र किया है। उनमें से अनेक आधुनिक काल में प्रयुक्त उपकरणों के समान है।

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09-02-2013, 07:55 PM
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चरक-ईसा की दूसरी शताब्दी के प्रमुख वैद्य चरक संहिता ग्रंथ के लेखक। ये आयुर्वेद चिकित्सा का एक बेजोड़ ग्रंथ है। ये प्रथम वैद्य थे जिन्होंने पाचन तंत्र, शरीर में पोषक पदार्थों का परिवद्र्घन क्षय तथा शरीर की प्रतिरोधक शक्ति के विषय में जानकारी दी। उनके अनुसार शरीर में तीन दोष उपस्थित होते हैं जिन्हें पित्त कफ तथा वायु कहते हैं उन तीनों के अनुपालिक घट बढ़ से ही शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। उन्हें अनुवांशिक गुण दोषों के विषय में भी पता था तथा उन्होंने शारीरिक संरचना का भी अध्ययन किया था।

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09-02-2013, 07:59 PM
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कणाद-सन 600 ईं में हुए। आण्विक सिद्घांत का सर्वप्रथम प्रतिपादन किया। उनके अनुसार प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से निर्मित है जो पदार्थ का सूक्ष्मतम कण होता है, किंतु वह स्वतंत्र अवस्था में नही रह सकता। दो या अधिक सम अथवा भिन्न परमाणु आपस में मिलकर नया पदार्थ बना सकते हैं। उन्होंने परमाणु अथवा संयुक्त परमाणुओं के बीच घटने वाले रासायनिक परिवर्तन तथा ताप द्वारा होने वाले परिवर्तनों के विषय में भी जानकारी दी।

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09-02-2013, 08:38 PM
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पतंजलि
-ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुए। अपनी पुस्तक योगशास्त्र में योग का विविध वर्णन प्रस्तुत किया। उनके अनुसार मानव शरीर में नाडिय़ां तथा चक्र विद्यमान होते हैं जिन्हें सही प्रकार से संयोजित करने पर मनुष्य असीम शक्ति प्राप्त कर सकता है। उनके द्वारा प्रतिपादित अनेक बातें अब विश्व में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्घ की जाा रही हैं।

bindujain
09-02-2013, 08:40 PM
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आर्य भट्ट
-सन 476 ई. में केरल में पैदा हुए। नालंददा विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन किया बाद में इसी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। उन्होंने सर्वप्रथम प्रतिपादित किया कि धरती गोल है तथा अपनी धुरी पर घूमती है जिसके कारण दिन व रात होते हैं। यह भी बताया कि चंद्रमा में अपनी रोशनी नही है, वह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित है। सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण का वास्तविक कारण भी इन्होंने बताया। खगोल वैज्ञानिक के साथ साथ ये प्रसिद्घ गणितज्ञ भी थे। इन्होंने (पाई) का मान बताया, साइन की तालिका भी इन्होंने तैयार की
ax-by=c जैसी समीकरणों का हल निकाला जो आज सर्वमान्य है। आर्यभट्टीय नामक पुस्तक की रचना की। जिसमें अनेकों गणितीय तथा खगोलीय गणमानएं हैं जो ज्यामिति, मैंसुरेशन, वर्ग मूल, घनमूल, आदि। आर्य भट्ट सिद्घांत उनकी दूसरी पुस्तक है। भारत के प्रथम उपग्रह को इनका नाम दिया गया।

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09-02-2013, 08:46 PM
आर्यभट्*ट ने पाई का काफी सही मान 3.1416 निकाला। उन्होंने त्रिकोणमिति में व्यूत्क्रम साइन फंक्शन के विषय में बताया। उन्होंने यह भी दिखाया कि खगोलीय पिंडों का आभासी घूर्णन पृथ्*वी के अक्षीय पूर्णन के कारण होता है।

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09-02-2013, 08:47 PM
आर्यभट्ट का योगदान

पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है, जिसके कारण रात और दिन होते हैं, इस सिद्धांत को सभी जानते हैं, पर इस वास्तविकता से बहुत लोग परिचित होगें कि 'कोपरनिक्स' के बहुत पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानत: 24835 मील है। राहु नामक ग्रह सूर्य और चन्द्रमा को निगल जाता है, जिससे सूर्य और चन्द्र ग्रहण होते हैं, हिन्दू धर्म की इस मान्यता को आर्यभट्ट ने ग़लत सिद्ध किया। चंद्र ग्रहण में चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी के आ जाने से और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ने से 'चंद्रग्रहण' होता है, यह कारण उन्होंने खोज निकाला। आर्यभट्ट को यह भी पता था कि चन्द्रमा और दूसरे ग्रह स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं, बल्कि सूर्य की किरणें उसमें प्रतिबिंबित होती हैं और यह भी कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार घूमते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 'चंद्रमा' काला है और वह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि वर्ष में 366 दिन नहीं वरन 365.2951 दिन होते हैं। आर्यभट्ट के 'बॉलिस सिद्धांत' (सूर्य चंद्रमा ग्रहण के सिद्धांत) 'रोमक सिद्धांत' और सूर्य सिद्धांत विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। आर्यभट्ट द्वारा निश्चित किया 'वर्षमान' 'टॉलमी' की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है।

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09-02-2013, 08:48 PM
आर्यभट्ट का गणित में योगदान
विश्व गणित के इतिहास में भी आर्यभट्ट का नाम सुप्रसिद्ध है। खगोलशास्त्री होने के साथ साथ गणित के क्षेत्र में भी उनका योगदान बहुमूल्य है। बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया। बीजगणित में उन्होंने कई संशोधन संवर्धन किए और गणित ज्योतिष का 'आर्य सिद्धांत' प्रचलित किया।

वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने 'आर्यभट्ट सिद्धांत' नामक ग्रंथ की रचना की। उनके 'दशगीति सूत्र' ग्रंथों क ओ प्रा. कर्ने ने 'आर्यभट्टीय' नाम से प्रकाशित किया। आर्यभट्टीय संपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में रेखागणित, वर्गमूल, घनमूल, जैसी गणित की कई बातों के अलावा खगोल शास्त्र की गणनाएँ और अंतरिक्ष से संबंधित बातों का भी समावेश है। आज भी 'हिन्दू पंचांग' तैयार करने में इस ग्रंथ की मदद ली जाती है। आर्यभट्ट के बाद इसी नाम का एक अन्य खगोलशास्त्री हुआ जिसका नाम 'लघु आर्यभट्ट' था।

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09-02-2013, 08:49 PM
तथ्य

‘आर्यभट्टीय‘नामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ थे।
आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया।

आर्यभट्ट के प्रयासों के द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका।
आर्यभट्ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होंने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होनें सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला।

आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धान्त लिखा।

आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर 'भास्कर प्रथम' ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है- ‘महाभास्कर्य‘, ‘लघुभास्कर्य‘ एवं ‘भाष्य‘।

ब्रह्मगुप्त ने ‘ब्रह्म-सिद्धान्त‘ की रचना कर बताया कि ‘प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है।

आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है।

bindujain
10-02-2013, 10:55 AM
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वाराहमिहिर-उज्जैन के निकट कपित्था नामक ग्राम में 499 ई में पैदा हुए। प्रसिद्घ खगोल शास्त्री तथा गणितज्ञ आर्य भट्ट के संपर्क में आने के कारण खगोल तथा ज्योतिष शास्त्रों में अनुराग पैदा हुआ। शीघ्र ही इन विद्याओं में पारंगत हो गये तथा चंद्र गुप्त विक्रमादित्य के दरबारर में उनके नवरत्नों में शामिमममल हो गये। इन्होंने ही सर्वप्रथम घोषित किया कि पृथ्वी में एक आर्षण शक्ति है जिनके कारण सभी पदार्थ उससे चिपके रहते हैं। इसे ही आज गुरूवाकर्षण के नाम से जानते हैं। उनका वास्तविक नाम मिहिर था। वाराह चंद्रगुप्त द्वारा दी गयी उपाधि थी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनके नाम हैं-पंचसिद्घांतिका, बृहत संहिता, ब्रहज्जातक आदि जिनमें ज्योतिष का खजाना भरा पड़ा है। सन 587 ई में स्वर्गवास हुआ।

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10-02-2013, 10:57 AM
वाराहमिहिर
वैज्ञानिक विचार तथा योगदान

बराहमिहिर वेदों के ज्ञाता थे मगर वह अलौकिक में आंखे बंद करके विश्वास नहीं करते थे। उनकी भावना और मनोवृत्ति एक वैज्ञानिक की थी। अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह उन्होंने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि कोई शक्ति ऐसी है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है। आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते है। लेकिन उन्होंने एक बड़ी गलती भी की। उन्हें विश्वास था कि पृथ्वी गतिमान नहीं है। "अगर यह घूम रही होती तो पक्षी पृथ्वी की गति की विपरीत दिशा में (पश्चिम की ओर) कर अपने घोसले में उसी समय वापस पहुंच जाते।"
वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान (इकालोजी), जल विज्ञान (हाइड्रोलोजी), भूविज्ञान (जिआलोजी) के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उनका कहना था कि पौधे और दीमक जमीन के नीचे के पानी को इंगित करते हैं। आज वैज्ञानिक जगत द्वारा उस पर ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने लिखा भी बहुत था। संस्कृत व्याकरण में दक्षता और छंद पर अधिकार के कारण उन्होंने स्वयं को एक अनोखी शैली में व्यक्त किया था। अपने विशद ज्ञान और सरस प्रस्तुति के कारण उन्होंने खगोल जैसे शुष्क विषयों को भी रोचक बना दिया है जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। उनकी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका (पांच सिद्धांत), बृहत्संहिता, बृहज्जात्क (ज्योतिष) ने उन्हें फलित ज्योतिष में वही स्थान दिलाया है जो राजनीति दर्शन में कौटिल्य का, व्याकरण में पाणिनि का और विधान में मनु का है।

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10-02-2013, 11:00 AM
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ब्रह्मगुप्त-गुजरात के भिनमाल ग्राम में सन 598 में जन्म हुआ। छापावंश के राजा व्याघ्रमुख के दरबारी ज्योतिष रहे। ये विख्यात ज्योतिषि एवं गणितज्ञ थे। उन्होंने प्रथम बार शून्य के उपयोग करने के नियम प्रतिपादित किये। इनके अनुसार शून्य के साथ किसी भी संख्या को जोडऩे अथवा घटाने से उसका मान अपरिवर्तित रहता है। गुणा करने पर संख्या शून्य, तथा किसी भी संख्या को शून्य से भाग करने प वह असीम हो जाती है। उन्होंने ax+b=0,ax२+bx+c=0 तथा ax२+1=4२ जैसे समीकरणों को हल करने के नियम बताए। वे प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होंने बीजगणित को अंक गणित से अलग विषय प्रतिपादित किया। अंकीय विश्लेषण नामक उच्च गणित के ये आविष्कारक थे। इनको महान गणितज्ञ भास्कर द्वारा गणकचूड़ामणि का खिताब दिया गया। इनकी लिखी पुस्तकें ब्रहस्फुट सिद्घांत तथा करण खण्ड खाद्यका अत्यंत प्रसिद्घ है। इनका देहावसान सन 680 ई. में हुआ।

bindujain
10-02-2013, 11:03 AM
ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका

बीजगणित में ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका दो योगों का गुणनफल, जिनमें प्रत्येक गुणक स्वयं दो वर्गों का योग हो, को दो वर्गों के योग के रूप में अभिव्यक्त करती है

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उदाहरण के लिये,

http://upload.wikimedia.org/math/9/e/c/9ec4898b9708b03ebace60a47df8d68c.png


यह सर्वसमिका लाग्रेंज सर्वसमिका (Lagrange's identity) की विशेष स्थिति (special case) है।

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10-02-2013, 11:06 AM
ब्रह्मगुप्त का सूत्र

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/4/42/Brahmaguptas_formula.svg/200px-Brahmaguptas_formula.svg.png

ब्रह्मगुप्त का सबसे महत्वपूर्ण योगदान चक्रीय चतुर्भुज पर है। उन्होने बताया कि चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं। ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल निकालने का सन्निकट सूत्र (approximate formula) तथा यथातथ सूत्र (exact formula) भी दिया है।

चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का सन्निकट सूत्र:

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चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का यथातथ सूत्र:

http://upload.wikimedia.org/math/6/a/5/6a5ee2ebf2bf7c03af52b4d4d51e28cc.png

जहाँ t = चक्रीय चतुर्भुज का अर्धपरिमाप तथा p, q, r, s उसकी भुजाओं की नाप है। हेरोन का सूत्र, जो एक त्रिभुज के क्षेत्रफल निकालने का सूत्र है, इसका एक विशिष्ट रूप है।

bindujain
10-02-2013, 11:11 AM
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नागार्जुन-गुजरात में सोमनाथ के निकट फोर्ट देहक में सन 931 ई में हुए। अपने समय के प्रसिद्घ रसानयज्ञ थे। इनकी प्रसिद्घ पुस्तक रसरत्नाकर में रजत, स्व्र्ण, टिन तथा ताम्बा जैसी धातुओं के उनके स्रोतों सेस निष्कर्षण, आसवन, द्रवीकरण, ऊध्र्वपातन आदि की विस्तृत व्याख्या की गयी है। इन्होंने अमृत बनाने तथा धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने के लिए भी अनेक प्रयोग किये। इनकी पुस्तक में अनेक उपकरणों के चित्र भी दिये गये हैं। एक अन्य पुस्तक उत्तरतंत्र प्रसिद्घ पुस्तक सुश्रुत संहिता की पूरक के रूप में जानी जाती है, जिसमें इन्होंने अनेक दवाईयों को बनाने के प्रयोग लिखे हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हें आरोग्य मंजरी कक्ष पुतातंत्र योग सार तथा योग शतक।

bindujain
10-02-2013, 11:14 AM
भास्कर प्रथम-आप सातवीं शताब्दी के प्रमुख खगोल शास्त्रियों में से एक थे जो ब्रह्मगुप्त के समकालीन थे। भारत का दूसरा उपग्रह उनके नाम पर है।
भास्कर प्रथम (600 ई – 680 ईसवी) भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी संदर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् ६२९ में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे।

bindujain
10-02-2013, 11:19 AM
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भास्कर द्वितीय-आप का जन्म बीजापुर कर्नाटक में 1114 ई में हुआ। ब्रहमगुप्त से पे्रेरणा लेकर ये प्रसिद्घ ज्योतिषी तथा गणितज्ञ बने। इनकी प्रसिद्घ पुस्तक सिद्घांत शिरोमणि में एक अध्याय लीलावती नाम से अंकगणित दूसरा अध्याय बीजगणित, गोलाध्याय नाम के अध्याय में गोलको तथाा गृहगणित नाम के अध्याय में सौर मंडल की भीमांसा करता है। बीजगणित के समीकरणों को हल करने के लिए इन्होंने चक्रवाल नाम से एक विधि विकसित की जो यूरोपियन गणितज्ञों द्वारा 600 वर्षों बाद इनवर्स साइकल नाम से विकसित हो गयी है, इनकी पुस्तक में गोलकों के क्षेत्रफल तथा आयतन, त्रिकोणमिति तथा क्रमपरिवर्तन संयोग से संबंधित अनेक समीकरणों का वर्णन है। इन्हें अवकलन गणित का जन्मदाता भी कहा जा सकता है क्योंकि इन्होंने इस विद्या को न्यूटन तथा लिब-निज से कई शताब्दी पूर्व विकसित किया था। आज जिसे (Rolls Theorem) कहा जाता है, इसकी झांकी भी इनकी पुस्तक में है।

bindujain
15-02-2013, 04:19 PM
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सवाई जयसिंह-द्वितीय इनका जन्म 1668 ईं में हुआ। 13 वर्ष की आयु में अंबर के राजा बने। राजा होने के साथ साथ ये अपने समय के प्रसिद्घ ज्योतिषी तथा शिल्पकार भी थे। 1727 में जयपुर नगर बसाया जो स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। पंडित जगन्नाथ इनके गुरू थे। इन्होंने खगोल शास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथ पुर्तगाल, अरब तथा यूरोप से मंगवाकर उनका संस्कृत में अनुवाद करवाया। यूरोप से एक बड़ी दूरबीन भी इन्होंने मंगवाई। 1724 में दिल्ली में जंतर मंतर का निर्माण कराया तथा 1734 में सम्राट मोहम्मद शाह के सम्मान में एक पुस्तक फारसी में ‘जिज मोहम्मद शाही’ नाम से लिखवाई जिसमें सूची के रूप में अनेक प्रयोगों का वर्णन है। जंतर मंतर में पत्थरों सीमेंट से बड़े बड़े यंत्र बनवाए जिनका खाका उन्होंने स्वयं तैयार किया था। इन यंत्रों में सम्राट यंत्र (सूर्य घड़ी) राम यंत्र (सौर मंडल में स्थित बड़े पिंडों की दूरी नापने का यंत्र) तथा जय प्रकाश (सौर मंडल के पिंडों की स्थिति का पता लगाने का यंत्र) प्रमुख हैं। बाद में अन्य स्थानों पर भी जंतर मंतर बनवाए।

bindujain
15-02-2013, 04:20 PM
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जगदीश चंद्र बसु-30 नवंबर 1858 को मयमारगंज (जो अब बंगलादेश में है) में जन्म हुआ। 1885 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कालेज में व्याख्याता के रूप में चयन हुआ किंतु भारतीय होने के कारण इनका वेतन यूरोपीयन व्याख्याताओं की तुलना में बाधा ही निर्धारित हुआ। इन्होंने पद स्वीकार कर लिया किंतु वेतन स्वीकार नही किया। तीन वर्षों के बाद इनके प्रिंसीपल ने इनकी प्रखर बुद्घि का लोहा मानते हुए, इन्हें पूरा वेतन दिलवाया। 10 मई 1901 को रॉयल सोसाइटी के वैज्ञानिकों के सम्मुख अपना शोध पत्र पढ़ा तथा प्रयोग द्वारा सिद्घ किया कि पौधों में जीवन होता है। बेतार के तार का भी इन्होंने सर्वप्रथम आविष्कार किया, किंतु इसका श्रेय एक साल बाद मार्कोनी को मिला। माइक्रोवेव बनाने का श्रेय भी इन्हीं को है। इनके द्वारा बनाया गया यंत्र आज भी अनेक इलेक्ट्रानिक तथा न्यूक्लियर यंत्रों में आवश्यक पुर्जों के रूप में प्रयोग किये जाते हैं इनका सर्वोत्तम आविष्कार क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र है जो पेड़ पौधों की बढ़त को नाप सकता है जिसकी चाल घोंघे की चाल से भी 20000 गुना कम होती है। इन्होंने कलकत्ता में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 23 नवंबर 1937 को इनका देहांत हो गया।

bindujain
15-02-2013, 04:22 PM
http://ehindi.hbcse.tifr.res.in/scientist/pr4.jpeg/image_preview

पीसीरे-प्रफुल्ल चंद्र राय का जन्म 2 अगस्त 1861 को रारूली काटीपुरा (अब बंगलादेश) में हुआ। संस्कृत, लेटिन, फेंच तथा अंग्रेजी के मर्मज्ञ होने के साथ साथ ये राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा इतिहास के भी विद्वान थे। विज्ञान की ओर इनका रूझान बेंजामिन फ्रेंकलिन की जीवनी पढऩे पर हुआ जिसमें उसने पतंग द्वारा प्रयोग के विषय में लिखा था। 1888में एडिनवरा से डिग्री लेकर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवक्ता के रूप में काम दिया। इन्होंने बंगाल कैमिकल एवं फार्मेस्यिूटिकल वक्र्स की स्थापना की। इन्हें भारतीय रसायन उद्योग का जनक कहा जाता है। इनकी सर्वप्रथम खोज सोडा फोस्फेट है जिससे अनेक दवाईयां बनती हैं। मरक्यूरस नाइट्रेट तथा इसके अनेक उत्पादों को भी इन्होंने सर्वप्रथम बनाया। इन आविष्कारों से वह अकूत संपदा के स्वामी बन सकते थे किंतु इन्होंने सदा एक साधु के रूप में जीवन व्यतीत किया The History of Hindu Chemistry इनकी प्रसिद्घ पुस्तक है। इनका निधन 1944 में हुआ ।
डीएस वाडिया-आप का जन्म 25 अक्टूबर 1883 में सूरत गुजरात में हुआ। बड़ौदा कालेज से एमएससी पास करने के बाद प्रिंस आफ वेल्स कालेज में जम्मू में नौकरी आरंभ की। यहां उन्हें हिमालय के शिला खंडों में रूचि पैदा हुई और उस क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए अनेक उपलब्धियां हासिल कीं। वहां उन्होंने उन शिलाखंडों के बनने तथा बढऩे की क्रिया का खुलासा किया तथा अनेक पेचीदा गुत्थियों को सुलझाया।

bindujain
15-02-2013, 04:24 PM
http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQdUTSwUfk4ABRA3GqTH1JMjldlXGTbg kAHVPdTxkACYVwPcF45FQ
श्रीनिवास रामानुजम-आपका जन्म इरोड, तमिलनाडु में 22 दिसंबर 1887 को हुआ। बचपन से ही उनमें विलक्षण प्रतिभा के दर्शन होने लगे। 13 वर्ष की उम्र में इन्हें लोनी की त्रिकोणमिति की पुस्तक मिल गयी और उन्होंने शीघ्र ही इसके कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर डाला। इसके अतिरिक्त अपना स्वयं का शोध कार्य भी आरंभ कर दिया। मैट्रिकुलेशन परीक्षा में गणित में प्रथम श्रेणी प्राप्त की किंतु अन्य विषयों में रूचि न होने के कारण इंटर की प्रथम वर्ष की परीक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हुए। गणित में विशेष योग्यता के कारण उन्हें स्नातक डिग्री न होने के बावजूद रॉयल सोसाइटी और ट्रिनिटी कालेज का फेेलो चुना गया। जीएच हार्डी और जेई लिटिलवुड जैसे विख्यात गणितज्ञों के साथ अनेक निर्मेय स्थापित किये। जिनमें हार्डी –रामानुजम-लिटिलवुड, तथा रोजर रामानुजम जैसे प्रसिद्घ प्रमेय शामिल है। 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की अल्पायु में इस प्रतिभा का अंत हो गया।

bindujain
15-02-2013, 04:26 PM
http://www.pravasiduniya.com/wp-content/uploads/2011/09/sarvepalli-radhakrishnan.jpg

चंद्रशेखर वेंकटरमन-7 नवंबर 1888 को तिरूचरापल्ली, तमिलनाडु में जन्म हुआ। आरंभ में इनकी रूचि ध्वनि विज्ञान में थी और उन्होंने कलकत्ता स्थित इंडियन एसोसिएशन फोर कल्टीवेशन ऑफ साइंस में वायलिन तथा सितार में तारों द्वारा स्पंदन के विषय में खोज की। किंतु एक बार विदेश से जहाज में लौटते समय समुद्र की विशाल जलराशि तथा आकाश के नीले रंगों ने उनमें इस विषय में जिज्ञासा उत्पन्न कर दी। इसी के फलस्वरूप उन्होंने रमन इफेक्ट नामक शोध की जिस पर इन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1924 में इन्हें रॉयल सोसाइटी का फेेलो चुना गया। 1945 में इन्होंने बंगलौर में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 21 नवंबर 1970 को उनका देहांत हो गया।

bindujain
15-02-2013, 04:28 PM
http://3.bp.blogspot.com/_IfHKdZwDktA/SrpNSsoAAtI/AAAAAAAABFA/MDKhyME3cVI/s320/Dr.+Birbal+Sahni+picture.jpg

बीरबल साहनी-14 नवंबर 1891 को पंजाब के मेड़ा स्थान पर जन्म हुआ। लंदन विश्वविद्यालय से 1919 में डीएससी की डिग्री लेकर एसी स्टीवर्ड प्रसिद्घ वनस्पति वैज्ञानिक के साथ कार्य आरंभ किया। 1929 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डीएससी की उपाधि पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 1936 में रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने गये। बिहार में अनेक पौधों की खोज की। वनस्पति विज्ञान के अतिरिक्त कुछ प्राचीन चट्टानों की आयु ज्ञात की तथा पुरातत्व विज्ञानी की तरह कार्य करते हुए 1936 में रोहतक में पुराने सिक्कों की खोज की।

bindujain
15-02-2013, 04:29 PM
http://www.samaylive.com/pics/article/scientist-meghn_1297787644.jpg

मेघनाद साहा-6 अक्टूबर 1893 को ढाका में जन्म हुआ। जन्म से ही देशभक्ति का जज्वा मौजूद था जिसके कारण उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर के स्कूल दौरे का बहिष्कार किया। फलस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया तथा छात्रवृत्ति बंद कर दी गयी। हाईस्कूल पास करने के बाद इन्होंने प्रेसीडेंसी कालेज कोलकाता में दाखिला लिया, जहां इन्हें जगदीश चंद्र बोस तथा पी.सी रे जैसे अध्यापक तथा एसएन बोस व पीसी महालनोबीस सरीखे सह पाठियों का सानिध्य प्राप्त हुआ। एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में कार्य करते हुए उन्होंने एक सूत्र दिया जिससे खगोल शास्त्री सूर्य तथा अन्य सितारों के अंदर का अध्ययन कर सकें। 1922 में रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने गये। इन्होंने 1948 में कोलकाता में साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूकिलियर फिजिक्स की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दोमोदर घाटी, भाखड़ा नांगल तथा हीराकुंड परियोजनाओं में भी सहायता की। साइंस एण्ड कलचर नाम की पत्रिका भी इन्होंने आरंभ की। 1962 में लोकसभा सदस्य चुने गये। 16 फरवरी 1966 को उनका देहावसान हो गया।

aspundir
15-02-2013, 05:03 PM
http://3.bp.blogspot.com/-8NuudKkMJn0/UQJxrEHBQiI/AAAAAAAAf18/BCb6RSDm7-s/s1600/XOXO%7ECat+Did+It%7EJan23-2013%60+U+Rock.gif

bindujain
16-02-2013, 08:55 PM
http://www.indianetzone.com/photos_gallery/56/P.C%20Mahalanobis%20Indian%20Scientist.jpg

पी.सी. महालनोबीस-प्रशांतचंद्र महालनोबीस प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सांख्यिकी में विश्व में अपनी पहचान बनाई। वास्तव में सांख्यिकी का भारतीय इतिहास उनका ही व्यक्तिगत इतिहास है। उन्होंने सांख्यिकी को अनेक दिक्कतों को दूर करने का माध्यम बनाया। नदियों में आने वाली बाढ़ का आकलन सांख्यिकी की सहायता से किया। हीराकुंड बांध व दामोदार घाटी परियोजना को महालनोबीस ने सांख्यिकी की मदद से व्यवहारिक रूप दिया। उन्होंने कोलकाता में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेडिस्टिकल रिसर्च की स्थापना की और यह उनकी अथक मेहनत का ही परिणाम था कि भारत के अनेक विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सांख्यिकी का एक अलग विषय में रूप में पढ़ाया जाने लगा। 1945 में उन्हें सोसाइटी का फैलो चुना गया। 1972 में वे परलोक सिधारे।

bindujain
16-02-2013, 09:01 PM
शाति स्वरूप भटनागर-21 फरवरी 1894 को शाहपुर में पैदा हुए। 1921 में लंदन विश्वविद्यालय से उन्होंने पायस पर शोध की और डीएससी की उपाधि प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी कार्य किया। उन्होंने डॉ आरएन माथुर के सहयोग से एक तुला का निर्माण किया जिसे भटनागर माथुर तुला के नाम से जाना जाता है और जो अनेक रासायनिक क्रियाओं को समझाने के काम आता है। इन्होंने अपनी प्रयोगशाला में अनेक प्रकार के पदार्थ बनाए जैसे अग्नि निरोधक कपड़ा न फटने वाले ड्रम तथा बेकार चीजों से प्लास्टिक आदि। देश में राष्ट्रीय अनुसंधान शालाओं की एक श्रंखला बनवाने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। विज्ञान के क्षेत्र में युवाओं को दिया जाने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार इन्हीं के नाम से शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार जाना जाता है। एक जनवरी 1955 को उनका देहांत हो गया।

bindujain
16-02-2013, 09:04 PM
http://ehindi.hbcse.tifr.res.in/scientist/snbose_data/bose06.jpg]सत्येन्द्र नाथ बोस[/COLOR]-एक जनवरी 1894 को उनका जन्म हुआ। मेक्सप्लांक और आईन्स्टीन द्वारा किये गये कार्य पर मेघनाथ साहा के साथ मिलकर आगे शोध कार्य किया। सबसे महत्वपूर्ण कार्य था, रेडियेशन को सांख्यिकी द्वारा समझाया जाना। इसे बोस स्टेटिस्टिक्स का नाम दिया गया। बोस स्टेटिस्टिक्स का पालन करने वाले कण कण जैसे फोटोन और एल्फा कणों को बोसोन का नाम दिया गया।

rajnish manga
04-03-2013, 09:55 PM
:bravo:

प्राचीन काल से ले कर बीसवीं शताब्दी के आरंभिक समय तक भारतीय ज्ञान विज्ञान के सिरमौर वैज्ञानिकों तथा उनके द्वारा किये गए अनुसंधान तथा सृजनात्मक कार्यों व ग्रंथों का बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है. इस महत्वपूर्ण सूत्र के लिए आपका धन्यवाद्, बिंदुजी. जैसा कि आपने भी देखा होगा, इस सूचि में बहुत से नाम आने से रह गए हैं जिन्होंने बीसवीं शताब्दी ठीक पहले और बाद के दशकों में अभूतपूर्व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की. इस विवरण को और आगे बढ़ा सकें तो इस दिशा में यह आपकी स्थायी महत्त्व की देन होगी.

bindujain
06-03-2013, 06:50 AM
हलायुध

हलायुध या भट्ठ हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद्, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। उन्होने मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना की जो पिङ्गल के छन्दशास्त्र का भाष्य है।
भट्ठ हलायुध के कोश का नाम अभिधानरत्नमाला है, पर हलायुधकोश नाम से यह अधिक प्रसिद्ध है । इसके पाँच कांड (स्वर, भूमि, पाताल, सामान्य और अनेकार्थ ) हैं । प्रथम चार पर्यायवाची कांड हैं, पंचम में अनेकार्थक तथा अव्ययशब्द संगृहीत है । इसमें पूर्वकोशकारों के रूप में अमरदत्त, वरुरुचि, भागुरि और वोपालित के नाम उद्धृत है । रूपभेद से लिंग-बोधन की प्रक्रिया अपनाई गई है । ९०० श्लोकों के इस ग्रंथ पर अमरकोश का पर्याप्त प्रभाव जान पड़ता है । कविरहस्य भी इनका रचित है जिसमें 'हलायुध' ने धातुओं के लट्लकार के भिन्न भिन्न रूपों का विशदीकरण भी किया है ।