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View Full Version : सुभाष चंद्र बोस ही थे गुमनामी बाबा!


Awara
13-02-2013, 09:06 AM
फैजाबाद के रामभवन में दो वर्ष तक रहे दिवंगत गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। यह दावा सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के सचिव शक्ति सिंह, विधायक अखिलेश सिंह व उनके सहयोगी अनुज धर का है। शुक्रवार को प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता के दौरान इस मामले को लेकर मीडिया के समक्ष कई साक्ष्य प्रस्तुत किए गए और प्रदेश सरकार से अपील की गई कि वह अदालत के आदेश का अनुपालन करते हुए जांच कमेटी गठित करे और तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपे।

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फैजाबाद के रामभवन निवासी शक्ति सिंह की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यूपी सरकार को गुमनामी बाबा की पहचान पुष्ट करने के लिए जांच आयोग का गठन करने के लिए विचार करने के निर्देश दिए हैं। शुक्रवार को प्रेस क्लब में मीडिया से मुखातिब होने के दौरान शक्ति सिंह ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके घर में भगवनजी के नाम से दो वर्ष तक रहे हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित पुस्तक इंडियाज बिगेस्ट कवर अप के लेखक व भूतपूर्व पत्रकार अनुज धर ने कई ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए जिससे साबित होता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत किसी दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि वह पूर्व योजना के तहत रूस चले गए थे। वहां से वह अलग-अलग देशों में आते-जाते रहे। 1955 में वह लखनऊ भी आए थे। यहां वह सिंगार नगर में रुके थे। उसके बाद वह गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी के रूप नीमसार, अयोध्या, बस्ती व फैजाबाद में रहे। सितंबर 1985 को फैजाबाद में वह दिवंगत हुए थे। हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी आयोग को जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले थे, लेकिन रामभवन से मिले दांतों के डीएनए टेस्ट से सामने आया कि दांत सुभाष चंद्र बोस के नहीं थे।
अनुज धर ने दावा किया कि डीएनए जांच की सरकारी रिपोर्ट मनगढ़ंत है। आयोग व सरकार के पास ऐसे तमाम सुबूत हैं, जिससे साबित हो सकता है कि सुभाष चंद्र बोस ही भगवनजी थे।

भय से गुमनामी में रहे भगवन :

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में गहन अध्ययन करने वाले अनुज धर ने बताया कि साक्ष्यों से साबित होता है कि भगवनजी को भय था कि उनके सामने आते ही कई देश उनके पीछे पड़ जाएंगे। उन्होंने एक पत्र में लिखा है कि मेरा जनता के सामने आना उचित नहीं है। उन्हें विश्वास था कि उन्हें भारत सरकार की सहमति से ही युद्ध अपराधी घोषित किया गया है। उनका यह भी दावा था कि 1947 के सत्ता हस्तांतरण के अभिलेख सार्वजनिक किए जाएंगे तो भारत के लोग जान जाएंगे कि वह अज्ञातवास में जाने पर क्यों विवश हुए थे?

पर्दे के पीछे से बात करते थे भगवन:

फैजाबाद के सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के सचिव शक्ति सिंह ने बताया कि उनके एक दोस्त ने उनसे कहा था कि उसके बाबा बीमार हैं। इसी कारण गुमनामी बाबा को रामभवन में रखा गया था। व्हील चेयर से बाबा को रात में डेढ़ बजे उनके घर लाया गया था। वहां उनसे मिलने सीमित लोग आते थे। कुछ लोग कार से भी देर रात आते थे और सुबह होने से पहले ही चले जाते थे। चिट्ठियां भी आती थीं। गुमनामी बाबा ज्यादातर लोगों से पर्दे के पीछे रहकर बात करते थे। वह किसी के सामने नहीं आते थे। उनकी अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। वह कई भाषाएं जानते थे।

कमेटी गठित कर जांच की मांग :

- यूपी सरकार हाई कोर्ट के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच समिति गठित करे। समिति में जांच एजेंसियों के विशेषज्ञ हों और एक वरिष्ठ पत्रकार को भी शामिल किया जाए।
- निजी विशेषज्ञ से डीएनए जांच कराई जाए और जांच में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उन पत्रों को शामिल कर लेखन की भी जांच कराई जाए, जिन्हें उन्होंने गुमनामी से पहले और बाद में लिखे थे।
- भगवनजी के हस्तलेख का परीक्षण अमेरिका या ब्रिटेन की किसी प्रतिष्ठित प्रयोगशाला में कराया जाए।