PDA

View Full Version : महाकाल


bindujain
10-03-2013, 09:08 AM
महा शिवरात्रि विशेष : महाकाल की कथा
http://hindi.webdunia.com/articles/1202/20/images/img1120220189_1_1.jpg

अनेकानेक प्राचीन वांग्मय महाकाल की व्यापक महिमा से आपूरित हैं क्योंकि वे कालखंड, काल सीमा, काल-विभाजन आदि के प्रथम उपदेशक व अधिष्ठाता हैं।


अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्ति प्रदानाय च सज्जनानाम्*
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकाल महासुरेशम॥

'अर्थात जिन्होंने अवन्तिका नगरी (उज्जैन) में संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवतार धारण किया है, अकाल मृत्यु से बचने हेतु मैं उन 'महाकाल' नाम से सुप्रतिष्ठित भगवान आशुतोष शंकर की आराधना, अर्चना, उपासना, वंदना करता हूँ।

इस दिव्य पवित्र मंत्र से निःसृत अर्थध्वनि भगवान शिव के सहस्र रूपों में सर्वाधिक तेजस्वी, जागृत एवं ज्योतिर्मय स्वरूप सुपूजित श्री महाकालेश्वर की असीम, अपार महत्ता को दर्शाती है।

शिव पुराण की 'कोटि-रुद्र संहिता' के सोलहवें अध्याय में तृतीय ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल के संबंध में सूतजी द्वारा जिस कथा को वर्णित किया गया है, उसके अनुसार अवंती नगरी में एक वेद कर्मरत ब्राह्मण हुआ करता था। वह ब्राह्मण पार्थिव शिवलिंग निर्मित कर उनका प्रतिदिन पूजन किया करता था। उन दिनों रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर समस्त तीर्थस्थलों पर धार्मिक कर्मों को बाधित करना आरंभ कर दिया।

वह अवंती नगरी में भी आया और सभी ब्राह्मणों को धर्म-कर्म छोड़ देने के लिए कहा किन्तु किसी ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। फलस्वरूप उसने अपनी दुष्ट सेना सहित पावन ब्रह्मतेजोमयी अवंतिका में उत्पात मचाना प्रारंभ कर दिया। जन-साधारण त्राहि-त्राहि करने लगे और उन्होंने अपने आराध्य भगवान शंकर की शरण में जाकर प्रार्थना, स्तुति शुरू कर दी। तब जहाँ वह सात्विक ब्राह्मण पार्थिव शिव की अर्चना किया करता था, उस स्थान पर एक विशाल गड्ढा हो गया और भगवान शिव अपने विराट स्वरूप में उसमें से प्रकट हुए।

विकट रूप धारी भगवान शंकर ने भक्तजनों को आश्वस्त किया और गगनभेदी हुंकार भरी, 'मैं दुष्टों का संहारक महाकाल हूँ...' और ऐसा कहकर उन्होंने दूषण व उसकी हिंसक सेना को भस्म कर दिया। तत्पश्चात उन्होंने अपने श्रद्धालुओं से वरदान माँगने को कहा। अवंतिकावासियों ने प्रार्थना की-

'महाकाल, महादेव! दुष्ट दंड कर प्रभो
मुक्ति प्रयच्छ नः शम्भो संसाराम्बुधितः शिव॥
अत्रैव्* लोक रक्षार्थं स्थातव्यं हि त्वया शिव
स्वदर्श कान्* नरांशम्भो तारय त्वं सदा प्रभो॥

अर्थात हे महाकाल, महादेव, दुष्टों को दंडित करने वाले प्रभु! आप हमें संसार रूपी सागर से मुक्ति प्रदान कीजिए, जनकल्याण एवं जनरक्षा हेतु इसी स्थान पर निवास कीजिए एवं अपने (इस स्वयं स्थापित स्वरूप के) दर्शन करने वाले मनुष्यों को अक्षय पुण्य प्रदान कर उनका उद्धार कीजिए।

इस प्रार्थना से अभिभूत होकर भगवान महाकाल स्थिर रूप से वहीं विराजित हो गए और समूची अवंतिका नगरी शिवमय हो गई।

bindujain
10-03-2013, 09:09 AM
http://www.ghumakkar.com/wp-content/uploads/2011/12/0.jpg

bindujain
10-03-2013, 09:10 AM
http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQ8exhpWfTTXTZUXhhUIME8LB5_ONXD3 w9u1sOF-jXGkBiPBMvO

bindujain
10-03-2013, 09:11 AM
http://www.ghumakkar.com/wp-content/uploads/2011/12/111.jpg

bindujain
10-03-2013, 09:13 AM
http://www.ghumakkar.com/wp-content/uploads/2011/12/10.jpg

bindujain
10-03-2013, 09:14 AM
http://www.ghumakkar.com/wp-content/uploads/2011/12/141.jpg

bindujain
10-03-2013, 09:29 AM
http://www.dprmp.org/uploads/ujjain-22-aa.jpg

bindujain
10-03-2013, 09:31 AM
http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcT1RMvFPARQIuef2ZuKllOXNCrztBYKT XvSg9ZnTUVb7KjVRR34pQ

jai_bhardwaj
10-03-2013, 02:23 PM
बम बम भोले ............धन्यवाद बन्धु।

aksh
10-03-2013, 11:35 PM
हर हर महादेव..!! ओउम नम: शिवाय